डॉ सुषमा सिंह कानपुर

*बाल गीत*


जब से यह कोरोना आया।


सारा जग है चक्कर खाया।


सबका बहुत बुरा है हाल।


सबके मन मे कई सवाल।


इसकी कोई नहीं दवाई।


बोल रहा था मुन्ना भाई।


घर में रक्खो सदा डेटॉल।


यह करता है खूब कमाल।


पानी मे फिटकरी घुला दो।


फिर उसमें डेटॉल मिला दो।


इसको इक बोतल में भरलो।


घर को सैनीटाइज करलो।


हाथों को धोकर कई बार।


बीमारी से पाओ पार।


रक्खो नहीं किसी से दूरी।


पर दो फुट डिस्टेंस जरूरी।


मुँह पर अपने मास्क लगाओ।


कोरोना को दूर भगाओ।


@


डॉ सुषमा सिंह


कानपुर


soni kumari pandey

जय सरस्वती मां


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शीर्षक: करो चीन का संपूर्ण बहिष्कार


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देशभर में जागा क्रोध है


लेना चीन से प्रतिशोध है


सीमा पर करे तकरार है


फिर हमसे करें व्यापार हैं


 


चीन का फन कुचलना होगा


 ड्रैगन पर वार करना होगा


अब मिलकर रण करना होगा


हम सबको प्रण करना होगा


 


अपनी शक्ति दिखानी होंगी


औकात भी बतानी होगी


इस बार विरोध में धार हो


 चाइना में हाहाकार हो


 


रफ्तार पर अब प्रहार करो


अब चीन का बहिष्कार करो


चरित्र में इसके पाप है


हरी घास में हरा सांप है


 


ना कोई धर्म ना ईमान है


शांति का दुश्मन शैतान है


समझो दो मुंहे की चाल को


और फैलते इसके जाल को


 


चार कदम है आगे आता


भगाने पर दो कदम जाता


दो कदम हड़प कर जाता है


ऐसे साम्राज्य बढ़ाता है


 


चमगादड़ खाने वाला है


वायरस फैलाने वाला है


खुली नहीं आंख दिखाता है


गलवान को अपना बताता है


 


शांति प्रिय है देश हमारा


वसुधैव कुटुंबकम है नारा


दुनिया को बुद्ध दिए हमने


शांति हेतु युद्ध किये हमने


 


भू माफिया है यह भिखारी


बुद्धि गई है इसकी मारी


चीन का काल अब आया है


 गलवान में मरने आया है


 


भारत से जो टकराता है


पूरा ही वो मिट जाता है


कभी भारत से बैर लेना 


प्राणो का मोह छोड़ देना


 


शेरों को जो उकसाओगे


तुम वहीं ढेर हो जाओगे


गलवान नहीं ले पाओगे


 बीजींग जरूर गंवाओगे।


         -soni kumari pandey


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*कसक*


कसक उठती हृदय में देख कर,मजलूम को बेघर,


हैं आए वो भी दुनिया में,अशुभ तक़दीर को लेकर।।


 


न खाने का ठिकाना है,न पानी का ठिकाना है,


मग़र गढ़ते नगर नित नव,खुले अंबर तले रहकर।।


 


हृदय पीड़ा से भर जाता,उन्हें जब भागता देखूँ,


ढूँढते निज ठिकाने को,ठिकाना ग़ैर को देकर।।


 


पसीना खुद बहाकर वो,बनाते ग़ैर की क़िस्मत,


जलाकर धूप में ख़ुद को,सजाएँ दूसरों के घर।।


 


ग़मों का दौर जब आता,सतत वो भागते-फिरते,


रखे निज शीष पर गठरी,जो रहती भाग्य नित बनकर।।


 


सभी ये राष्ट्र के गौरव,परिश्रम के पुजारी हैं,


इन्हीं का दर्द भी अपना,यही समझें सभी मिलकर।।


    


जरूरत प्रेम देने की,उन्हें सम्मान देने की,


प्रतिष्ठा है निहित इसमें,यही है राष्ट्र के हितकर।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


 *डॉ बीके शर्मा*  उच्चैन, भरतपुर ,राजस्थान

*एक चेहरा है* 


*************


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं |


रोज लिखता हूं गजल 


फिर दोस्तों को सुनाता हूं || -1


 


देख ली है सारी दुनिया 


मैंने उसकी आंखों में |


कहां छुपाया उसने मुझको


यह समझ नहीं मैं पाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -2


 


वह मुझे अनजान सी 


जब कहीं शहर में मिल जाती है |


वह पास से गुजर जाती है 


मैं रोक ना उसको पाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -3


 


इस कदर लोगों की नजर 


आ कर मुझ पर रुक जाती है |


लोगों का यह सीधा इशारा


देख सहम मैं जाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -4


 


झलक उसकी तस्वीर बन


 आंखों में मेरे बस गई |


आज तक था मैं अकेला 


अब साथ उसको पाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -5


 


इस तरह एक चांद को 


देखने की आदत बन गई |


जाग उठा प्रेम दिल में 


और खुद को मैं सताता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं


 खुद को भूल जाता हूं -6


 


मिले ना दोस्त अगर तो 


यह ग़ज़ल खुद ही गुनगुनाता हूं |


एक चेहरा है जिसको देख मैं


 खुद को भूल जाता हूं ||- 7


 


 


 *डॉ बीके शर्मा* 


उच्चैन, भरतपुर ,राजस्थान


सुनीता असीम

चल बरसते बादलों का आज हम पीछा करें।


आसमाँ के पार से पानी वो बरसाया करें।


***


ग़म रहे हैं जिन्दगी का सिर्फ हिस्सा ही यहाँ।


आप बस रोकर या हसकर के इन्हें चुकता करें।


***


जिन्दगी की साजिशें हम तो कभी समझे नहीं।


सुख यहां थोड़े रहे दुख बारहा बरपा करें।


***


इक दिया रोशन करो फिर रोशनी भरपूर हो।


अब अंधेरों से नहीं हम आज समझौता करें।


***


इब्तिदा ए इश्क में घायल हुई है आशिकी।


बात करके यार की दिल को नहीं गन्दा करें।


***


सुनीता असीम


२०/६/२०२०


 


 


########


कमलेश सोनी

चाल वाज चीन ,कटता कितना महीनतीन तेरह तेइस का तिकड़म चला रहा है 


            अपने को गिनता है सर्व शक्तिमान तू ।।


अब तक सब धान बाइस के तौले तूने


             सावधान अब और हो जा बेईमान तू ।।


बोट भर के हो पर खोट कितनी है भरी


              गीला होगा लँगोट खूब ले पहिचान तू ।।


कमलेश नाक में नकेल तेरी डालेंगे अब


              मुँह पे मुसक्का बाँधूँगा ले मेरी मान तू ।।


रश्मि लता मिश्रा

गीतिका 


212 212 212 212


 


वीरता धीरता है दिखा चल दिए


माँ कहे लाड़ले सर कटा चल दिए।


 


जान तो देश खातिर सहेजे रहे


आ गया देख वक्त तो गवां चल दिए।


 


कौन है देख जो भारती से बड़ा


आज अपना लहू भी बहा चल दिये।


 


चीन के चार देखो गिरा के चले


नीति रण की यही तो निभा चल दिये।


 


नमन है वीर को वीरता को करें


देख नम आँख करके कहाँ चल दिये।


 


रश्मि लता मिश्रा


दयानन्द त्रिपाठी* महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

*यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ.....*


 


जीवन में आपाधापी है


संकट है मन पापी है।


 


बैठ घोर तम में सोचा करता हूँ


मन में द्वंद चलाया करता हूँ


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


शूल बड़े हैं जीवन की राहों में


कंटक हैं प्रतिपल बाहों में।


 


निर्मम छाया से टकराता हूँ


नयनों के मृदुल खारे जल से


पावन हो जाया करता हूँ


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


मैं अकिंचन जीवन पथ में 


प्राण निछावर करने आया हूँ।


 


बीते पलछिन को भुलाया करता हूँ


उर के घातों को समझाया करता हूँ।


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


 


*रचना - दयानन्द त्रिपाठी*


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


विवेक दुवे निश्चल

*वो शोहरतें पुरानी ।*


*वो दौलते कहानी ।*


*चाहतों की चाह में ,*


 *ये दुनियाँ दिवानी ।*


*हो सकीं न मुकम्मिल,*


*और कट गई जवानी ।*


*जिंदगी के सफ़र की ,*


*सबकी यही कहानी ।*


... *"निश्चल"@*.....


कालिका प्रसाद सेमवाल

*मां तुम जीवन का आधार हो*


********************


माँ परिवार की आत्मा होती है,


माँ आदिशक्ति माया होती है,


माँ घर की आरती होती है,


माँ जीवन की आस होती है,


माँ ही घर का प्रकाश होती है,


माँ गंगा सी पावन होती है,


माँ वृक्षों में पीपल सी होती है,


माँ देवियों में गायत्री होती है,


माँ फलों में श्रीफल होती है,


माँ शहद सी मीठी होती है,


माँ ममता का प्याला होती है,


माँ ऋतुराज वसंत होती है,


माँ ईद दिवाली और होली होती है,


माँआन ,बान ,शान होती है,


माँ रामायण वेद पुराण होती है,


माँ वीणा की झंकार होती है,


माँ जीवन का मधुमास होती है,


माँ तन, मन, धन होती है,


माँ ईश्वर की अनुपम कृति होती है,


माँ ही इस जहां में हमें लाईं है,


माँ ही जीवन का आधार होती है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज

विषयः चित्राधारित


दिनांकः २०.०६.२०२०


दिवसः शनिवार


छन्दः मात्रिक( दोहा)


विधाःस्वैच्छिक 


शीर्षकः कटा आम का पेड़


 


मानवीय संवेदना , मरी आज संसार । 


ठूठ बना यह पेड़ भी , परहित में फलदार।।१।।


 


भौतिक लिप्सा है बला , क्षत विक्षत वन वृक्ष।


व्यर्थ सभी बिन प्रकृति है, जीतो या अंतरिक्ष।।२।।


 


देखो धीरज भाव मन , कटा आम का पेड़।


जीवन हन्ता जो मनुज , फलता पड़ा अधेड़।।३।।


 


साहस पावन तरु कटा , माना नहीं है हार।


गज़ब हौंसला आपदा , सीख मनुज उपहार।।४।।


 


व्यथा कथा संत्रास की , सहता पेड़ रसाल।


लक्ष्य मात्र वश जिंदगी , मानव हो खुशहाल।।५।।


 


जन्म मरण संसार का , चलती जीवन रीति।


जो जीए परमार्थ में , बाँटे मधुरिम प्रीति।।६।।


 


पलभर की ये जिंदगी , पाओ यश कर दान।


सुख समझो सेवा वतन,खुशियाँ मुख मुस्कान।।७।।


 


डिप्रेशन जीवन्त बन , बाधक नित उत्कर्ष। 


कठिनाई दुर्गम समझ , जीवन है संघर्ष।।८।।


 


पथ प्रदर्शक आपदा , देती साहस राह।


धीरज सह विश्वास मन , पूरण होती चाह।।९।।


 


नव पल्लव नव आश का , फल रसाल संदेश।


जीओ जबतक जिंदगी , परहित यश परिवेश।।१०।।


 


सुख दुख जीवन सरित् का,समझो तुम दो तीर।


जलकर पाता चमक को , स्वर्ण मौन गंभीर।।११।।


 


कवि निकुंज प्रमुदित हृदय,कटा पेड़ आचार।


बिना सिसक अरु रोष का, फल देता संसार।।१२।।


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक(स्वरचित)


नई दिल्ली


सन्दीप मिश्र सरस* बिसवाँ सीतापुर

( *21 जून को विश्व योग दिवस को समर्पित*)


पंचइंद्रियाँ जिह्या, आंखें, कान, त्वचा औ नस्या है।


चित्तवृत्ति को साध न पाना सबसे बड़ी समस्या है। 


योग वही जो मानव मन को भोग वासना मुक्त बना दे, 


योग साधना ही जीवन की सबसे शुद्ध तपस्या है।


 


*सन्दीप मिश्र सरस*


बिसवाँ सीतापुर


संजय जैन (मुम्बई)

*मिलन का वियोग*


विधा : गीत


 


इस अस्त व्यस्त से, 


भरे माहौल में।


पत्नी बच्चे आशा, 


लागाये बैठी है।


की कब आओगें,


अपने घर अब तुम।


अब तो आंखे भी,


थक गई है।


तुम्हारे आने का,


इंतजार करते करते।।


 


महीनों बीत गए है,


तुम्हे देखे बिना।


बच्चे भी हिड़ रहे है,


तुमसे मिले बिना।


की कब आएंगे पापा, 


हम सब से मिलने।


तभी मम्मी का मुरझाया, 


चेहरा खिल जाएगा।।


 


पिया का वियोग, 


क्या होता है।


यह पतिव्रता नारी,  


समझ सकती है।


अपनी तन्हाईयो का,


जिक्र किससे कहे।


जब पति ही दूर हो तो,


अपनी व्यथा किससे कहे।।


 


इस अस्त व्यस्त भरे माहौल से,


कैसे मिले हमे छुटकारा।


कोई तो बताये जिससे,


मिल सके अपने परिवार से।


सबके शिकवे शिकायते,


हम दूर सके इस माहौल में।


और हिल मिलकर अब,


जी सके उनके साथ हम।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


20/06/2020


निशा"अतुल्य"

योग 


20.6.2020


घनाक्षरी 


 


योग सब मिल करो


स्वस्थ तन मन रखो


मिलकर मुहिम ये


सब ही चलाइए।


 


करे साँस प्रश्वास जो


नाड़ी शुद्ध उसकी हो


कपालभाति कर के


स्वास्थ्य सब पाइए।


 


आसन भुजंग करो


पीठ दर्द दूर करो


मेरुदंड होए स्वस्थ 


लचीले हो जाइए।


 


भ्रामरी क्रिया महान


एकाग्रता देती दान


ओज आये चेहरे पे


सबको दिखाइए ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

बहिष्कार


                         ( कहानी )


 


अचानक अखबार में भारतीय सैनिकों पर चीन के हमले की खबर ने सबको आहत कर डाला।कल तक तो दोनों देशों के बीच सन्धि वार्ता और सेनाओं को पीछे हटाने की सार्थक बात चल रही थी और आज ये हृदय भेदक खबर-------।


मन क्रोध और नफरत की आग से भड़क उठा।


देशभर में विद्रोह और प्रदर्शन होने लगे।समवेत स्वर में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की माँगें उठने लगीं।


लोगों ने चीनी एप्प्स को मोबाइल से रिमूव करना स्टार्ट कर दिया।


सरकार ने रेलवे का करोड़ों का प्रोजेक्ट समाप्त कर दिया।


प्रधानमंत्री जी ने आपात बैठक की घोषणा की।आज देश चीन के विरोध में खड़ा था।


रमा बगीचे में पेड़ पौधों को पानी देते हुए इन सब बातों पर चिंतन-मनन कर ही रही थी कि उसी समय उसका दस साल का बेटा उसके पास आया और बोला----"मम्मी अब हमको चाइना मेड प्रोडक्टस् को यूज़ नहीं करना चाहिए न।"


आप ही तो कह रहीं थी पापा से।


रमा ने स्वीकृति में सिर हिलाते हुए" हाँ" में जवाब दिया ।


तो मम्मा हमारे घर में चाइनीज़ आइटम्स अभी तक रखे क्यों हैं?


आपको याद है एक बार आपने और पापा ने मुझे आज़ादी की कहानी सुनाई थी।


उसमें आपने असहयोग आंदोलन औऱ स्वदेशी आंदोलन की बातें बताई थीं ।


तब पूरे भारत ने कैसे विदेशी वस्त्रों और सामानों का बहिष्कार कर दिया था।


तभी राजीव भी वहाँ आ गए थे।वे मुस्कुराते हुए बोले-अरे भाई !आज कौनसी चर्चा हो रही है आजादी की।


पापा मै मम्मी को आज स्वदेशी आंदोलन की याद दिला रहा हूँ।


आप सभी चीन के प्रोडक्ट्स को यूज़ न करने की बात तो कर रहे हैं पर इसे लाइफ में अप्लाई कब करेंगे!!


मैं बहुत एक्साइटेड हूँ।


जैसे उस समय अंग्रेज़ों को मुँह की खानी पड़ी, आज चीन को नाक रगड़वानी है।


उसे स्वदेशी की ताकत दिखलानी है।


मै और रमन अपने बेटे की बातें सुन एकदूसरे का मुँह आश्चर्यजनक से देख रहे थे।


मन मैं कितनी प्रसन्नता थी बताया नहीं जा सकता।


तभी बाहर से उसके दोस्तों ने खेलने के लिए उसे आवाज़ लगाई तो अनुमति लेकर वह चला गया।


अब बारी हमारी थी।


राजीव ने प्रसन्न मुद्रा मैं कहा--रमा ये विचार हमारे मन में क्यों नहीं आया?


पर फिर भी, मैं आज बहुत खुश हूँ।


ये है हमारी आने वाली पीढ़ी!जो देश हित में सदैव तत्पर रहेगी।


तब बेटे के लौटने पर सबने मिलकर चीनी समान का विरोध करने की मुहिम घर से ही स्टार्ट कर दी।


घर के बाहर चीनी लाफिंग बुद्धा, फेंगशुई के अन्य आइटम्स को चादर बिछा पटकना शुरू किया और जमा कर उन्हें नष्ट कर दिया।


देखते ही देखते यह खबर आग की तरह शहर में फैल गई और एक नवीन आंदोलन की शरुआत हो गई।


आइए हम भी---- चीनी सामान को हटाएँ


                          औऱ स्वदेशी अपनाएँ।


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


भरत नायक "बाबूजी"

*"जाल विछाता व्याध है"* (दोहे)


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*स्वार्थ भरा जब सोच मेंं, कैसे हो सुविचार?


पापापूरित जो हृदय, करता वह अपकार।।१।।


 


*मोल न जाने मान का, जिसका कहीं न मान।


देत फिरे सम्मान वह, पात्र-कुपात्र न जान।।२।।


 


*कहता फिरता शान से, पावन अपना काम।


धूर्त सुजन से छद्म-छल, करता फिरे तमाम।।३।।


 


*जाल बिछाता व्याध है, दाने का दे लोभ।


बचकर रहना चाल से, बाद न हो मन-क्षोभ।।४।।


 


*मातु-पिता को भी छले, कुटिल-कृतघ्न-कपूत।


घोर-घिनौनी नीच अति, कपटी की करतूत।।५।।


 


*भाषा-बोली-लेख को, अज्ञ करे बदरंग।


ज्ञान-युद्ध फिर भी करे, विज्ञ जनों के संग।।६।।


 


*चाहे कोई आम जन, या हो राजकुमार।


होता कौशल नष्ट है, अहंकार की धार।।७।।


 


*कर लेता है पारखी, हीरे की पहचान।


जान न पाये मूढ़ जन, तजता पाहन जान।।८।।


 


*छीन निवाला और का, भरो नहीं निज पेट।


पाप कमाई का सदा, होता मटियामेट।।९।।


 


*जिससे जो भी है लिया, सबको समझ उधार।


कर्ज चुकाकर रे मनुज! अपना जनम सुधार।।१०।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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एस के कपूर " श्री हंस*" *बरेली।*

*विषय ।।।।हिंद*


*शीर्षक।।।।यह हिंद की ललकार है।*


 


मैं भगवद गीता का गुण गान हूँ।


मैं राम राज्य की खान हूँ।।


135 करोड़ की शान हूँ मैं।


मैं हिन्द भारत देश महान हूँ।।


 


मेरा संस्कारों से ही रहा नाता है।


शांति संदेश ही मुझको भाता है।।


नहीं पहली गोली मैं चलाता हूँ।


तभी हिंद भारत महान कहलाता है।।


 


मैंने ये आज़ादी संघर्षों से पायी है।


बलिदानों से कीमत बहुत चुकाई है।।


स्वाधीनता का मोल खूब जानता हूँ।


पहचान हिंद भारत महान बनाई है।।


 


अखंडता संप्रभुता से वचन बद्ध हूँ।


सीमा रक्षा को सदा प्रतिबद्ध हूँ।।


पहले दोस्ती का मेरा हाथ होता है।


पर शत्रु को परास्त करने में सिद्ध हूँ।।


 


विविधता में एकता हमारा मन्त्र है।


श्रम कर्म धर्म ही हमारा एक यंत्र है।।


हमें अपने परिश्रम पर है बहुत नाज़।


यही मेरे हिंद भारत महान का तंत्र है।।


 


जय किसान जवान विज्ञान मेरा नारा है।


वेद पुराणों से भरा इतिहास हमारा है।।


गंगा जमुना पवित्र पुण्य माटी हमारी।


हिंद भारत महान का ऊपर सितारा है।।


 


गांधी गौतम बोस मेरे कई रूप हैं।


कलाम आजाद से रंगी यहाँ की धूप है।।


कण कण में गूंजती राम कृष्ण की वाणी।


हिंद भारत महान तभी शांति स्वरूप है।


 


कॅरोना,पाक,चीन दुश्मन भी मेरे अपार हैं।


विश्व शांति दूत भारत से करते तकरार हैं।।


पर जान लो मत कम आँकना मेरे देश को।


यह हिंद भारत महान की ललकार है।।


 


*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस*"


*बरेली।*


मोब। 9897071046


                      8218685464


कालिका प्रसाद सेमवाल

फूल तुम पर मैं बिखराऊं


********************


आओ मेरी प्रेयसी!जी भर मैं दुलराऊं।


तेरा रूप मनोहर मेरे मन की ज्वाला,


तुम कुछ इतनी सुंदर ज्यों फूलों की माला,


तेरे चलने पर यह धरती मुस्काती,


देखकर रूप तुम्हारा किरणें भी शरमातीं,


तुम जिस दिन आई थी, मन में मैं सकुचाया,


लेकर छाया -चुम्बन कुछ आगे बढ़ आया,


 


आओ पास हमारे फूल तुम पर मैं बिखराऊं।


चंचल सूरज की किरणें धरती रोज सजाती,


सिन्धु लहरियां तक से बेखटके टकरातीं,


उड़ -उड़ जाते पंछी गाकर गीत सुहाना,


खिल खिल पड़ती कलियां सुन भौंरों का गाना,


तुम लहराओ लाजवंती सा अपना आंचल,


मुझ पर करते छाया नभ के कोमल बादल,


छूकर कनक अंगुलियां जगती से टकराऊं,


 


तेरे नयनों से जब मैंने नयन मिलाये,


उस दिन चांद-सितारे धरती पर झुक आये,


बोल गयी थी कोमल कोमल कोमल भाषा,


देखो, जी मुस्काओ, आई मन्जुल आशा,


तेरी प्रीति-प्रिया यह इस पर गीत लुटाओ,


तेरी मानस-शोभा इस पर तुम लुट जाओ।


 


दे-दो अपना आंचल जी भर के फहराऊं।


वह चन्दन की गलियां जिसके नीचे छाया,


उस दिन तुमको जाने क्यों मैंने शरमाया,


अंचल छोर उठा जब दांतों तले दबाया,


नत नयनों से देखा मन मन मैं मुस्काया,


दुनिया क्या कहती है उसको यों ठुकराया,


जैसे झटका खाकर कन्दुक पास न आया,


आओ लेकर तुमको नभ में मैं उड़ जाऊं।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


राजेंद्र रायपुरी

😌 नानी उसकी याद दिला दो 😌


 


सबको आफ़त में है डाला,   


                        कोरोना फैलाकर।


फिर भी देखो आॅ॑ख दिखाता,


                      वो सरहद पर आकर। 


नानी उसकी याद दिला दो, 


                        तोड़ यार सब रिश्ते।


बंद करो व्यापार चीन से, 


                       फिरे नाक वो घिसते।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

हर अल्फ़ाज़ रेशमी आवाज़ मिश्री सी मिठास बयां करते हर शायर कलम की धार।।           


 


जज्बे, जज्बात बस इतना कहता जीओ हज़ारों साल हर कदमों की मुस्कुराहटों से दुनिआ मैं खुशियां हज़ार !!


 


बहारों की फ़िज़ाओं में गज़ब की कशिश हलचल वक्त भी ठहर कर दे रहा था गवाही !!              


 


अंदाज़ खास आगाज़ की आवाज़ खास मुस्कुराता चेहरा जहाँ की खुशियों जज्बा जज्बात मनु कायनात की मिज़ाज़।।


 


सूरज सुरूर पे ही था चाँद दस्तक दे रहा था नए कायनात की बान।।                


 


सागर की सांसों ,धड़कन, वजूद की मल्लिका रौनक सागर की गहराई से उठते तूफानों की परछाई ।।  


 


चाँद ,चांदनी की चमक का ही जलता चिराग हर शायर फनकार!!     


 


सजी सवंरी सतरूपा मनु की


कायनात का इंतज़ार।।


 


चारों तरफ पानी ही पानी


जमीं का नहीं नामों निशाँ


सागर के तूफां में बस एक नांव।।


 


जहाँ के वजूद वज्म की


उम्मीद अरमान वक्त की


तेज रफ्तार ।।


 


मनु की सच्चाई का साथ


खूबसूरत मल्लिकाये मोहब्बत


की कायनात ।।


 


                          


 


बिटिया बहना फरिश्तों की नाज़ों की बहना गहना।। !


 


सागर की जान ,आरजू ,अरमान सच्चाई ,परछाई संग जमीं आसमान की उड़ान ।।           


 


हद हस्ती की पहचान ईमान !!


 


 सूरज सुरूर पे था चाँद ने दस्तक दिया सांसों धड़कन वजूद की मल्लिका रौनक जहाँ में खास।।


 


मोहब्बत कि बुनियाद का कायनात बँट गया आज 


टुकड़े हज़ार।।


 


नफरतों के दौर में इंसानी


रिश्तों में खत्म हो गयी मिठास।।


 


मनु की सच्चाई की परछाई सतरूपा भी है आज शर्मसार


क्यों जहाँ के बने बुनियाद।।


 


क्यों बनाई दुनियां जहाँ इंसान


ही एक दूजे की खिचता टांग


एक दूजे की लाशो की सीढ़ियों


पर छूना चाहता आसमान।।


 


जमी पर पैर नहीं हवा में


उड़ता मंजिल मकसद गुरुर


के जूनून का कायनात।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


सत्यप्रकाश पाण्डेय

क्यों गर्व करे तू प्राणी.....


 


क्यों गर्व करें तू प्राणी,यह दो पल की जिंदगानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


निर्धारित साँसों की पूंजी,


और आस नहीं कोई दूजी।


धन दौलत रह जायेगी तेरी,


क्यों करता है तेरा मेरी।।


 


यहां न बस चले किसी का, क्यों बनता अभिमानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


कड़वे बोल न बोल किसी से,


जो न पुरें कोई मरहम से।


सारा जगत मान तू अपना,


यहां न कोई पराया अपना।।


 


दो मुठ्ठी राख बनेगी तेरी,क्यों मति हुई बौरानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


दो दो आंसू बहायेंगे अपने,


दो गज कपड़े में लिपटेंगे सपने।


चार कदम तेरे साथ चलेंगे,


फिर तुझसे वे कभी न मिलेंगे।।


 


बारह दिन तुझे याद करेंगे,कहेंगे दुनियां है आनी जानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


कुछ तो ऐसी करनी कर जा,


प्रीति हृदय में ऐसी भर जा।


मरकर सबका प्यारा बन जा,


सबके हिय का राजा बन जा।।


 


अलविदा होकर भी जग में,गूँजें तेरी ही वाणी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


 क्यों गर्व करें तू प्राणी,यह दो पल की जिंदगानी...


 


युगलरूपाय नमो नमः 👏👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


          *"अन्त"*


"ऐसा कर्म करे ये तन-मन,


मिटे जीवन का अंधेरा।


छाये न कोई गम की बदली,


पल-पल हो खुशियों का डेरा।।


संवारे जीवन पथ ऐसा,


फिर बन जाये जीवन माली।


महक जाये पग-पग फूलो से,


यहाँ टूटे न कोई डाली।।


छाये हरियाली जीवन में,


जग में ऐसा आये बसंत।भक्ति संग परोपकार में,


चाहे जब हो जीवन का अन्त।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःः


         20-06-2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः...*अठारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


जेहि बिधि मिलै परम सिधि अर्जुन।


तुमहिं बताउब मैं सो अब सुन।।


      निज-निज करम- धरम अनुसारा।


       जग ब्यापी प्रभु पूजहिं सारा ।।


परम सिद्धि तुरतइ मिलि जाई।


बिनु संदेह कृपा प्रभु पाई।।


     अपुन धरम बल रह गुन रहिता।।


     पर रह श्रेष्ठ,अपर गुन सहिता।।


जदि हो करम धरम अनुकूला।


मिलै न पाप नाहिं भव-सूला।।


     दोषयुक्त स्वाभाविक करमा।


     तजु न पार्थ नहिं होय अधरमा।।


जस रह अग्नि धूम्र लइ दोषा।


वस नहिं कर्म कोऊ निर्दोषा।।


      अनासक्त बुध,स्पृह रहिता।


इंद्रि-जीति सांख्य-बल सहिता।।


जे नर जग रह ताको मिलई।


नैष्यइ कर्म सिद्धि जे अहई।।


       सुद्ध सच्चिदानंद्घनस्यामा।


      पाव परम सिधि आतम धामा।।


सुचि बुधि जन एकांतइ बासी।


अल्पाहारी नाहिं निरासी।।


     दृढ़ बैराग-प्राप्त नर ध्यानी।


     रखैं नियंत्रन तन-मन-बानी।।


सात्विक भाव राखि हिय बस मा।


तजि सब्दादिक बिषय छिनहिं मा।।


    काम-क्रोध-बल औरु घमंडा।


    ममता रहित द्वेष करि खंडा।।


दोहा-सांत भाव जे जन अहहिं,अरु समभाव सुजोग।


        ब्रह्म सच्चिदानंदघन,अहहीं पावन जोग ।।


                       डॉ0हरि नाथ मिश्र


                        9919446372 क्रमशः........


कालिका प्रसाद सेमवाल

🎍🌷शुभ प्रभात🌷🎍


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प्यार ही धरोहर है


**************


प्यार अमूल्य धरोहर है


इसकी अनुभूति


किसी योग साधना


से कम नहीं है,


इसके रूप अनेक हैं


लेकिन


नाम एक है।


 


प्यार रिश्तों की धरोहर है


और इस धरोहर


को बनाये रखना


हमारी संस्कृति


एकता और अखंडता है ,


यह अनमोल है।


 


प्यार 


निर्झर झरनों की तरह


हमारे दिलों में


बहता रहे


यही जीवन की


सच्ची धरोहर है। में


 


प्यार


उस परम पिता परमात्मा


से करें


जिसने हमें 


जीवन दिया है,


इस धरा धाम पर


हमें प्रभु ही लाते हैं।


 


प्यार


उन बेसहारा


बच्चों से करें


जो अभाव का जीवन जी रहे हैं


जो कुपोषण के शिकार हैं


और जो अनाथ है


 


आओ


हम सब संकल्प लें


हम सभी के प्रति


प्यार का भाव रखेंगे


किसी के प्रति


गलत नज़रिया


नहीं रखेंगे,


तभी मनुष्य जीवन सफल हो सकता है।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


 मानस सदन अपर बाजार


 रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


दयानन्द त्रिपाठी महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

आज मैं चुप-चाप हूँ.....


 


हृदय के पोर में कसक सा भरा


तन - मन दोनों शिथिल सा परा


बादलों की उमड़-घुमड़ छाप हूँ,


              आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


रात भी दिन सा जला


तम हृदय का हो भला


प्रेम निश्छल विह्वल आप हूँ,


          आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


विरह का अपना मजा है


मिलन का पल सजा है


सजल नयनों का छाप हूँ,


      आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


रचना-दयानन्द त्रिपाठी


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


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