फूल तुम पर मैं बिखराऊं
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आओ मेरी प्रेयसी!जी भर मैं दुलराऊं।
तेरा रूप मनोहर मेरे मन की ज्वाला,
तुम कुछ इतनी सुंदर ज्यों फूलों की माला,
तेरे चलने पर यह धरती मुस्काती,
देखकर रूप तुम्हारा किरणें भी शरमातीं,
तुम जिस दिन आई थी, मन में मैं सकुचाया,
लेकर छाया -चुम्बन कुछ आगे बढ़ आया,
आओ पास हमारे फूल तुम पर मैं बिखराऊं।
चंचल सूरज की किरणें धरती रोज सजाती,
सिन्धु लहरियां तक से बेखटके टकरातीं,
उड़ -उड़ जाते पंछी गाकर गीत सुहाना,
खिल खिल पड़ती कलियां सुन भौंरों का गाना,
तुम लहराओ लाजवंती सा अपना आंचल,
मुझ पर करते छाया नभ के कोमल बादल,
छूकर कनक अंगुलियां जगती से टकराऊं,
तेरे नयनों से जब मैंने नयन मिलाये,
उस दिन चांद-सितारे धरती पर झुक आये,
बोल गयी थी कोमल कोमल कोमल भाषा,
देखो, जी मुस्काओ, आई मन्जुल आशा,
तेरी प्रीति-प्रिया यह इस पर गीत लुटाओ,
तेरी मानस-शोभा इस पर तुम लुट जाओ।
दे-दो अपना आंचल जी भर के फहराऊं।
वह चन्दन की गलियां जिसके नीचे छाया,
उस दिन तुमको जाने क्यों मैंने शरमाया,
अंचल छोर उठा जब दांतों तले दबाया,
नत नयनों से देखा मन मन मैं मुस्काया,
दुनिया क्या कहती है उसको यों ठुकराया,
जैसे झटका खाकर कन्दुक पास न आया,
आओ लेकर तुमको नभ में मैं उड़ जाऊं।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171