काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सुश्री उषा लाल

कवयित्री 


पिता का नाम-श्री चन्द्र प्रकाश 


माता का नाम-श्रीमती शान्ती देवी 


पति का नाम- श्री अनिल लाल


स्थायी पता - 8/3बैंक रोड


                   विश्व विद्यालय परिसर


                    इलाहाबाद ,


                    211002.


जन्म स्थान - फ़ैज़ाबाद , उत्तर प्रदेश


मोबाइल नम्बर- 9451057829


शिक्षा - एम.एससी.(जन्तु विज्ञान) बी.एड


व्यवसाय- पाठन


प्रकाशित रचनायें - २ काव्य संकलन


 


(१) है कौन चिरंजीवी 


 


मैंने जीवन से पूछा जब


पल बचे शेष कितने मेरे ? 


उसने उल्टा यह प्रश्न किया


जो मिले तुम्हें वह कहाँ गये ?


 


मैं डूबी असमंजस में यह 


लेखा जोखा करने बैठी 


कुछ समझ नहीं पायी लेकिन 


ये पूँजी कहाँ गवाँ बैठी !!


 


कुछ दे मुस्कान ख़रीदी थी


कुछ देकर आँसू लायी थी 


कुछ बिना मोल ही व्यर्थ गये 


कुछ गिरवी मैं रख आयी थी !


 


कैसे हाथों से फिसल सभी


मुझको रीता करते आये


अब लगा शेष वह राशि हुयी


जिसको अथाह कहते आये !


 


मैंने फिर कहा ,"सुनो !मुझको


कुछ पल तुम और अभी दे दो"


हँस कर बोला जीवन मुझसे


"जो पास तेरे उनको जी लो।"


 


"कुछ पल देकर मुस्कान एक


रोते अधरों पर फैला दो


कुछ दे कर ,बोझ किसी काँधे 


का अपने ऊपर ला देखो !


 


 है कौन यहाँ पर चिरंजीव 


सब के पल चुकते जाते हैं


हर पल ख़ुद पर न्योछावर कर


हम जीवन व्यर्थ गँवाते हैं !!


 


             (२) कलम का विद्रोह 


 


आज क़लम विद्रोह कर उठी


बोली तुम झूठा लिखती हो !


किस युग की बातें करती हो


सच पर क्यूँ परदा ढकती हो ! 


 


देखो दुनिया बदल रही है


प्रेम - राग सब मिथ्या ही है


भाई चारा कहीं खो गया 


नातों की बुनियाद हिली है !


 


याद नहीं किस युग की गाथा


जब 'रसखान', 'श्याम' रंग रंगे,


'अकबर' के प्रासाद कक्ष में


होते 'कृष्ण जन्म' के जलसे!


 


नामों से 'पहचान' जान कर


क्यूँ बन जाते हैं अंगारे ?


कब हिन्दू या मुस्लिम बन गये


इक 'आदम' के वंशज सारे !


 


कैसा यह उन्माद बढ़ रहा


कौन इसे है यूँ भड़काता?


छूने भर से धर्म भ्रष्ट हो 


कैसा है कच्चा यह नाता ? 


 


हो क़ुरान , गीता या बाइबिल 


नहीं किसी की सीख घृणा है


हर मज़हब का एक सूत्र है


मानवता का धर्म बड़ा है !


 


बस कर दो !अब बस भी कर दो!


मज़हब को मत शस्त्र बनाओ,


जात- धर्म का तमग़ा फेंको 


"होमों सेपियन " ही कहलाओ”!!


 


            (३)गरिमा लौटानी होगी


 


द्वार बन्द कर , चक्षु मूँद कर,


   चिन्तन से क्या होगा!


बाहर आकर तुम्हें बहुत


   परिवर्तन करना होगा!!


 


गति है जिसमें उसको बस


   एक राह दिखानी होगी ,


स्थिर है जो उसमें


   नयी ऊर्जा लानी होगी!


 


जिस जीवन की मात्र कल्पना


    तुम्हें कँपा जाती है


कितनी कलियाँ नित्य वहीं


    बिन विकसे मुरझाती हैं!


 


रोता और सिसकता बचपन


    है कलंक हम सब पर


बढ़कर उन सब अधरों पर


   मुस्कान खिलानी होगी!


 


  अरे स्वयम् को रहे संजोते


     हैं मनुष्य हम कैसे?


  मानवता को एक


      नई पहचान दिलानी होगी!


 


 देश ,जाति और रंग भेद से


     ऊपर उठ कर देखो


जीवित रहने की गरिमा 


    जंग में फैलानी होगी!


 


कुत्सित कर डाला है हमने


    भू तल को इस जग को


इसकी खोई सुन्दरता 


      हमको लौटानी होगी!!


 


            (४) हर रोज़ नयी मंज़िल मिलती


 


रोज़ - रोज़ की भाग दौड़ में 


सदा यही कोशिश रहती है,


किस - किस से आगे हो जाऊँ 


तलब यही हर पल उठती है !


 


थी दृष्टि उन्हीं पर गड़ी रही


जो मुझसे आगे निकल गये


बस कैसे उन्हें पछाड़ सकूँ 


दिन इसी जुगत में शेष हुए!


 


रुक कर इक पल पीछे देखा


थे कितने बन्धन टूट गये


मैं होड़ लगा भागता रहा


और दृश्य मनोरम छूट गये !


 


फिर सोचा सब का साथ रहे


थी नहीं मेरी क़िस्मत ऐसी


पर " अन्तर्मन " से विलग हुआ


प्रभु ! ये विडम्बना है कैसी ?


 


कितनी कोमल अभिलाषायें


मेरे अन्तर में सिसक रहीं


हैं कितनी मधुरिम इच्छायें


जो बन्द द्वार में सिमट गयीं!


 


अब रुको ठहरते हैं कुछ पल 


हम किसी घनेरे वृक्ष तले


स्मृतियों के कुछ पृष्ठ पलट


मन को थोड़ा हर्षित कर लें!


 


कुछ गति भी कम करनी होगी


है कहाँ पहुँचने की जल्दी?


हर इक पल में ही 'जीवन' है


हर मोड़ नयी मंज़िल मिलती !!


 


                    (५)जीवन का लेखा चित्र


 


जीवन का लेखाचित्र खींच


मैं ठिठक गयी यह सोच तनिक


कि बैठ कभी कुछ छाँव देख


खुद से दो बातें थी करनी !


 


था वक़्त कहाँ तब पास मेरे


जब थम कर यह मन में कहती


कि कुछ पल रुक कर सुस्ता लो


है आगे मुश्किल राह बड़ी !


 


इस आशा से मन पुलकित था


ठहराव कभी पा जाऊँगी 


न सोच सकी, बचपन यौवन की


गलियाँ फिर न पाऊँगी!


 


एक जाल था वह - रेशम का सा


जो रहा जकड़ता दिन प्रतिदिन 


जिसमें जो भी एक बार फँसा 


वह चक्रव्यूह में जाता घिर !


 


वह लोभ मोह माया ममता 


कि अगणित गाँठें नित बंधती 


था नहीं सहज रहना बच कर


फिर मैं पापी कैसे बचती


 


मन में मेरे यह भाव उठे 


है सदा शीर्ष पर कौन टिका 


ऊपर -नीचे जो लहर चले 


वह ही लक्षण है जीवन का !


 


यह काल चक्र चलता रहता


हैं कितने ही आते जाते 


चल देंगे हम सब हाथ झाड़ 


पूरी कर के अपनी साँसें!


 


 


 


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला

नटखट बचपन


 


अक्सर मुझको नटखट बचपन,


 याद बहुत आता है ।


 


माता का अनुपम दुलार ,


जो रोते हुए हंसाता है ।


 


कितना गहरा प्यार पिता का,


 जिसकी कोई माप नहीं थी ।


 


हम सब पर न्योछावर थे वह,


 अपनी तो परवाह नहीं थी ।


 


सखी सहेली वह बचपन की,


 जिनके साथ खेलते थे ।


 


भाई बहनों का संग खाना,


 साथ-साथ जब सोते थे ।


 


वह सावन के झूले सुंदर ,


वह बचपन की प्यारी होली।


 


 लुक्का छिप्पी, गुड्डा गुड़िया, 


जो थी सखियों संग खेली ।


 


बाग बगीचे पंछी नदिया ,


याद अभी भी आते हैं।


 


 वो टेढ़े मेंढे गांव के रस्ते,


 मन में घर पहुंच आते हैं ।


 


वह अतीत की सारी यादें ,


हैं मस्तिष्क पटल पर रहती ।


 


जब मन करता उन यादों में,


 जाकर हूं उड़ती फिरती ।


 


नए जन्म में फिर से वह सब ,


क्या मुझको मिल पाएगा ?


 


भोला भाला नटखट बचपन ,


लौट कभी क्या आएगा ?


 


अक्सर मुझको नटखट बचपन,


 याद बहुत आता है।


 


 माता का वह अनुपम दुलार ,


जो रोते हुए हंसाता है


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


सुषमा दिक्षित शुक्ला

मानवता का मर्म समझ लो


 


 


 मानव धर्म समान जगत में ,


कोई धर्म नहीं है ।


 


मानव सेवा से बढ़कर ,


तो कोई कर्म नहीं है ।


 


मानवता का मर्म समझ लो ,


यही धर्म की परिभाषा ।


 


करो सार्थक इस जीवन को,


 यही प्रभु की अभिलाषा ।


 


बड़े भाग्य मनुजत्व मिला है,


 इसको व्यर्थ गंवाना ना ।


 


पावन कर्म करो हे! मितवा,


 जीवन को भटकाना ना ।


 


 यही कर्म है यही धर्म है ,


यह ही कर्तव्य तुम्हारा है ।


 


मानवता के पावन पथ पर ,


ही गंतव्य तुम्हारा है ।


 


मानवता का सेवक ही तो,


 प्रभु सेवा का भागी है ।


 


यही मर्म जो समझ सका है ,


वह प्रभु का अनुरागी है ।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार हास्य कवि विशेष शर्मा


शिक्षक एवं कवि


पता ग्राम बेलवा बजरिया नकहा लखीमपुर


शिक्षा स्नातक बीएड बीटीसी टीईटी पांच बार


सेवा प्राथमिक विद्यालय सिसौरा फूलबेहड खीरी


शौक काव्य सृजन काव्यपाठ


बच्चों को शिक्षित करना


उपलब्धि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विभिन्न काव्य मंचों पर काव्यपाठ एवं शताधिक सम्मान एवं पुरुस्कार।


विधा अवधी एवं खडी बोली मे हास्य व्यंग्य।


कृति *वटवृक्ष*


स्वरदूत 9839737993


8887628508


 


मेरी कुछ कविताएं


 


खेतन खरिहानन औ बागन बगीचन मा


देखेन तौ याक बात भाइ गई मन ते।


गांव केर गोरी ई छोरी चकोरी का


कैसेउ पटाइ लियो कौनेउ जतन ते।


हम सा लफंटू वा बिना ढूंढे पाइ गई


खूबइ अघाइ का निचोरि लीसि धन ते।


जहां गई ब्याही वा हुंऔ तौ रही नाइ


खाइसि पीसि हमसे औ चली गई अन्ते।।


 


😁😁😁😁😁😁😁


 


 


राम लाल जोखे पैरु डगरु मुरारीलाल


मर्री छोटकन्नी मुन्नी और नाउ मीना है।


दुइ केर नाउ साहब जौन चहौ लिखि लियौ


नामकरण इनका भवा अबही ना है।


हम कहा ई सब का तुमरेन औलादें है


मुसकाइ बोली सब भगवानै दीना है


बरहें का पेट महिंया देखतै बौराइ गेन


हाय राम यू कौन श्रमिक का पसीना है।।


😁😁😁😁😁😁😁


सुखीराम कहै लागि सुनौ भइया दुखीराम


चिंतन की बातै कछू आई है ध्यान मा।


बात या बताओ का मौत सबकी निश्चित है


दुखीराम बोले यू तौ तय है विधान मा।


सुनतै यू सुखीराम के सुर सुखाइ गए


बोले यहै चिंता है बसी आठौ याम मा


मरत मरत सबसे बाद मरी जौन मनई


ऊका फूकै या गाडै को लइ जाई श्मशान मा


 


😁😁😁😁😁😁


 


सुखीराम जी की घरवाली हेराइ गई


चारिउ वार ढूढै लाग पूरे जी जान से।


राह महिया मंदिर देखना श्री राम जी का


रोइ रोइ विपदा सुनाइन भगवान से।


श्री राम बोले बीबी हमरिउ हेरान रही


वनवास दौर महिया जंगल सुनसान से।


ताकी खोज कीन रहै पवनपुत्र बजरंगी


पास ही मा मंदिर है मिलौ हनुमान से।।


 


😁😁😁😁😁😁


झोरिया मा कुर्ता कै लाठी मा टांग लीन


जूता बडकन्ना कै पहिरि लीन पांव मा।


कोई से सलाम ठोंक रोक रोक राम राम


यहै करत आइ गए पाडे के गांव मा।


द्वार याक पहुंचे यक बूढ़ा भिखारी जानि


भीख लाईं सुखीराम आइ गए ताव मा।


बोले या भीख नाइ हमका सब वोट दियौ


ठाढै हन अबकी प्रधानी के चुनाव मा।।


 


 


✍️ विशेष शर्मा


 


😁😁😁🙏🙏🙏


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सौदामिनी खरे "दामिनी"


पति- स्व0अशोक खरे


जन्म - 25 अगस्त 


स्थान - रायसेन मध्यप्रदेश 


शिक्षा-स्नातक ( हिन्दी, )


विधा - गद्य, पद्य लेखन


लघुकथा,कविता,नवगीत,


समसामयिक ,निबंध, सवैया भजन,दोहा ,गजल,इत्यादि।


प्रकाशन - साझा संकलन पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशन ( प्रणाम पर्यटन, साहित्य समीर,सरिता संवाद,मेरी संगिनी, कर्मनिष्ठा,शब्दलोक इत्यादि पूर्वांचल प्रहरी समाचार पत्र )


 सम्मान पत्रःविभिन्न वाटसप साहित्यिक मंच द्वारा ।


 


व्यवसाय - अध्यापन


पता -  अशोक नगर कालोनी बार्ड नम्बर-13म0न026


थाना- रायसेन 


मध्यप्रदेश 


मो0 9753152005


ईमेल saudamini50@gmail.com


(सौदामिनी खरे "दामिनी")


 


 


गीतिका


212 212 212 212


*ख्वाब कितने ही उसने दिखाये मुझे,*


बात वो जमाने की बताये मुझे।


 


हर घड़ी साथ मैं तो रहूँ मोहना,


आपसे दूर रहना सजाये मुझे।


 


रात की चाँदनी देख आसमां में सजी,


रास मधुवन में कोई दिखाये मुझे।


 


पूछ तो समा सुन्दर है क्यों यहाँ, 


गीत मुरली के तूने सुनाये मुझे।


 


नाव मझधार में लहराय है मेरी,


राह देखू आके तू बचाये मुझे।


 


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे "दामिनी" रायसेन मध्यप्रदेश।


 


कविता:-


 


दिन रात देता पहरा वो सीमा का सिपाही।


वतन पे जा लुटाता वो सीमा का सिपाही ।


होली हो दिवाली, राखी हो या बैशाखी।


ईद पर भी देता पहरा वो सीमा का सिपाही।


शीत हो शिशिर हो ठिठुरने से भरे दिन हो।


बर्फीली सरजमीं पर वो सीमा का सिपाही ।


झाडियों की चुभन हो काँटो की जमी हो।


दलदल में भी लड़ता वो सीमा का सिपाही।


बादलों से हो बरसा बिजलियां कौंधती हो।


तूफानों से भी लड़ता वो सीमा का सिपाही ।


आँधी हो या लू हो जला देने वाली उमस हो।


शोलो से खेलता है वो सीमा का सिपाही ।


आपदा हो या महामारी चाहे दंगा फसाद हो।


खड़ा दुश्मन के सीने पे सीमा का सिपाही।


अपने हो पराये या सगे सम्बन्धी भाई हो


सब से रिश्ता जोड़े वो सीमा का सिपाही ।


जय हिंद जय भारत, वंदे मातरम् गान हो।


तिरंगे पे जा लुटाता वो सीमा का सिपाही ।


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे "दामिनी "खरे रायसेन मध्यप्रदेश।


 


 


गीतः-


 


 


कान्हा देते हो क्यो अपनी सफाई।


आज पकडे गये हो कन्हाई ।


मेरी दही की गघर फोड़ डाली। 


मै निकली थी मथुरा नगरिया।


सर पे लेकर दध की गगरिया ।


आज पकड़े गये हो कन्हाई-------


नंद भवन मे लगी है अदालत ।


राधा रानी ने की है वकालत।


जज बनी आज देखो नंदरानी।


टूटी मटकी का मोल चुकायी।


आज पकड़े गये हैं कन्हाई ------'


सारी सखियां बनीआज दुश्मन ।


मेरे लाला की करती शिकायत।


सारे जग मे नही कोई तुझसा।


मेरा प्यारा सलौना कन्हाई-------


आँसू आंखो में भर भर के रोई।


नजर तुझको न लगे लाल कोई।


पूरे जग निराला है मोहन।


तेरी राधा से करूँगी सगाई-------


नंद बाबा सुनो आज मेरी ।


मेरे लाला की सूरत है भोली।


नही दहिया की लाला निहोरी।


तेरे लिए घणी माखन बनाई-------


श्याम सुन्दर की शोभा निराली।


गल बैजंती माला सुहाती।


नील वदन रंग राती।


उस पर मोर पंखी लगाई--------।


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे "दामिनी" रायसेन पर 


 


सवैया


 


 


उठो राम लल्ला जगा रही तोरी मैया ।


लड्डू , पेडा माखन, मिश्री खाओ और मलैया।


भोर भयो सूरज उग आयो आई लाल किरण परछैया।


दशरथ नंदन मुख चूम रही कौशल्या लेय बलैया।


सुन्दर साँवरे मेरो लल्ला मेरी नैन तरैया।


भरत लखन शत्रु शूधन के बडे भैया।


अयोध्या के राजकुअंर है सारे जग के राम रमैया।


हृदय पुलक हुलसी कौशल्या भोर जगायो उठो राम बड भैया


या छवि ब्रम्हा विरंची निहारें होन लगे सुमन वृष्टि बरसैया।


दामिनी हृदय पुलक भये हैं सबके राम रखबैया।


 


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश 


 


भारत की नारी ये भारत की सुसंस्कृत नारी है।


सरल सुखद शांत शुभ्र शीतल शील धारी है।


यह भारत की नारी है।


सरित पावनी गंगा सी,नित बहती अविरल धारा है।


यह भारत की नारी है।


आशा अवंतिका अनुप्रिया अनंताआनंदी अंबिका अंबा है।


नियमा नित्या निद्रा नीरान्जना निर्भया निर्मला शुभकारी है।


यह भारत की नारी है।


गृहणी गर्विता गायत्री गौरी,गजाला गर्भिता गोपिका रानी है।


यह भारत की नारी है।


माधुरी मधुबनी माया मंदिरा सी,मीनाक्षी मृणालिनी मातेश्वरी है ।


यह भारत की नारी है।


कोमला कामिनी कृतिका काम्या सी,करुणा कृष्णा कालिका कृपाणधारी है।


यह भारत की नारी है।


चारु चंचला चपला चंद्रिका सी,चित्ता चित्रा चिरमयी चरणदासी है।


यह भारत की नारी है।


विनीता ,विषया ,वीरांगनाएँ विजया,


विभूति, विशाखा,विराटसाम्रराजयी है


भव्या, अभव्या, भवानी, भूमिका भगवती सी,


भरणी भार्या भगिनी भुवनेश्वरी भारती है।


यह भारत की नारी है।


 


 


 


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार एस के कपूर "श्री हंस"बरेली

एस के कपूर "श्रीहंस"


पता- 06,पुष्कर एन्कलेव।टेलीफोन टावर के सामने स्टेडियम रोड बरेली (ऊ प्र)।(243005)


 


आयु।70वर्ष


व्यवसाय।सेवानिवृत्त बैंक प्रबंधक.भारतीय स्टेट बैंक, बरेली मुख्य शाखा।वर्ष 2010


 


साहित्यिक कार्य।कविता।लेखन।मुख्य विधा. मुक्तक,छंद मुक्त (तुकांत), हाइकु, गद्य(आलेख)


विशेष उपलब्धि , 5000 से अधिक मुक्तकों की रचना अबतक,। कॅरोना के प्रति जागरूक करने के 30 कविताओं का सृर्जन।


विस्तृत वर्णन,,,,,,,,


 


1,,भारतीय हिंदी सेवा पंचायत,जनपद बरेली के जिलाध्यक्ष/व मंडल अध्यक्ष


 


1क/लगभग 15 सामाजिक ।साहित्यिक ।वरिष्ठ नागरिक।सांस्कृतिक संस्थायों से सम्बन्धित,मेंबर व वरिष्ठ पदाधिकारी के रूप में सहभागिता।


2... Pilibhit Jaycees के सचिव, अध्यक्ष के रूप में 1975 से 1977 तक कार्य ।


2.A संस्थापक अध्यक्ष।पीलीभीत मिडटाउन जेसीस।वर्ष 1986. ।स्टेट वाईस प्रेजिडेंट 1987. ।स्टेट ट्रेनर 1988. ।


एवमं


संस्थापक अध्यक्ष।सेवा निर्वत एस बी आई अधिकारी सामाजिक क्लब,बरेली।अध्यक्ष अक्टूबर2016 से अक्टूबर 2018 तक।वर्तमान में क्लब के सरंक्षक।क्लब द्वारा नियमित रूप से सामाजिक सेवा कार्य सम्पन्न ,में निरंतर सहभागिता।


 


3/दूरदर्शन ,आकाशवाणी बरेली,रामपुर पर कार्यक्रम प्रस्तुत किये व यूट्यूब ,वेब पोर्टल, इंडिया समाचार 24 टी वी , डी टी वी लाइव,अक्षरवार्ता, सुप्रसिद्ध e जर्नलस पर वीडियो, रचना ,आलेख प्रकाशित, प्रस्तुति।


4/अनेक पत्र पत्रिकाओं में रचनायें, आलेख प्रकाशित।


उदहारण।आई नेक्स्ट (अबतक 144 लेख) ।गीत प्रिया।परफेक्ट जौर्निलिस्ट।हेल्थ वाणी। रोहिलखण्ड*किरण।प्रेरणा अंशु। काव्यमृत ।काव्य रंगोली ।स्वर्ण धारा। प्रणाम पत्रिका व अनेक संस्थाओं की मासिक e पत्रिकायें।इंकलाब।एक कदम सहित्य कीं ओर।


विनायक शक्ति। आध्यात्मिक काव्यधारा, काव्यरंगोली और अन्य कई व स्टेट बैंक की अनेक *पत्र पत्रिकायों ,कलीग,सेकंड इनिंग्स,हमदोस्त,संवाद आदि में सैंकड़ों लेख व कविताएं प्रकाशित।


एवमं


सेलेक्टेड न्यूज़ ,बरेली,मासिक समाचार पत्र का संपादन मई 2014 से मई 2016 तक किया।


4आ।


साहित्य संगम संस्थान ,दिल्ली ,उत्तराखंड की ज़िया,


विश्व जन चेतना ट्रस्ट,काव्य रंगोली,अध्यात्म्य साहित्य काव्य धारा, काव्यामृत, व मानव सेवा क्लब व अन्य लगभग 10 संस्थायों द्वारा 300 से अधिक भौतिक व डिजिटल सम्मानपत्र ,स्मृति चिन्ह प्रदत्त।


5/क्विजमास्टर व कार्यक्रम संचालन में विशेष अभिरुचि व क्विज से सम्बंधित गेम्स कराने का लंबा अनुभव।कॉलेज ,संस्थायों में मोटिवेशनल लेक्चर के रूप में, कई बार कार्यक्रम प्रस्तुत।


6/सेवा निवृत्त प्रबंधक,


भारतीय स्टेट बैंक,


बरेली शाखा , ऊ प्र,(वर्ष जून 2010में)


7/शिक्षा।एम एस सी (रसायन शास्त्र),


सी ए आई आई बी (भाग 1)


8।चीफ आफ इंटरवियू बोर्ड।महिंद्रा बैंक कोचिंग।


बरेली में 2011से 2017 तक कार्य किया।


8अ।लगभग 20 सामाजिक, साहित्यिक, व्हाट्सएप्प ग्रुप्स का एडमिन।


9।ऊ प्र बुक ऑफ रिकार्ड्स द्वारा 14 अक्टूबर,2017 को ट्रॉफी।मैडल ।प्रमाणपत्र प्रदत्त


10,,,, 03 feb 2019 को एक outside मेंटर के रूप में एक पृथक बैंक पेंशनर्स क्लब (बरेली में ),की आधारशिला रखने में सहयोग प्रदत।


11.जिला विज्ञान क्लब, बरेली के कार्यक्रमों में निरन्तर निर्णायक की भूमिका निभा रहे हैं और अभी जारी है।


11a....सेवा काल के मध्य 30 से अधिक राजभाषा प्रतियोगिताओं 


में विजयी घोषित,,, प्रमाण पत्र,पुरुस्कार प्राप्त


12,विभिन्न स्कूलों कॉलेज में निम्नलिखित विषयों पर लेक्चर दिये हैं और जारी है।


(Topics of Lectures delivered)


 


How to prepare for competition and interviews


And corporate jobs


 


Situation analysis (case studies),


 unsuccessful to successful,


despair to hope.


 


Personality development


And many more similar lectures


 


Stress, time management


Effective public relations, public speaking


Image building,self confidence etc.


13......वेस्ट used सामान से खूबसूरत हैंडीक्राफ्ट ,डेकोरेशन आइटम बनाना।


 


एस के कपूर "श्री हंस"


बरेली(ऊ प)


मो 9897071046


मोब 8218685464


 


 


कविता-1


कॅरोना से जीत कर ही आना है।


 


रहोगे घर के अंदर तो


कॅरोना बाहर ही होगा।


वह फंस जायेगा जो


लोगों से दो चार होगा।।


जो घर में रह गया तो


समझो वह बच गया।


कुछ दिन संभल जाओ


फिर मौसमे बहार होगा।।


 


कॅरोना से दूर दूर रहना ही


जीत का मन्त्र है।


सावधानी ही केवल बचाव


का एक यन्त्र है।।


घर में वजह बहुत हैं मन


को बहलाने के लिए।


नहीं समझे समय से तो 


मानो मानवता का अंत है।।


 


खुद मत करो कोई भी इलाज


तरीका यह तो आत्मघाती है।


निर्देशों का उल्लंघन तो मानो


सीधा अपनी बर्बादी है।।


अकेले का नुकसान नहीं यह


चार को और है ले डूबता।


संभल कर चलने में ही तो


बसी जिन्दगी की आबादी है।।


 


125 करोड भारतीयों के


जीवन जान का सवाल है।


हमारी देश की अस्मिता और


इक पहचान का सवाल है।।


जीत कर आना ही है हमें


देश परंपरा मूल्यों की खातिर।


यह अब अपनी मातृभूमि की


आन,बान,शान का सवाल है।।


 


रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"


*बरेली।


मो 9897071046


          8218685464


 


कविता-2


पृथ्वी दिवस।


रोक लो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को।


 


नदी ताल में कम हो रहा जल


और हम पानी यूँ ही बहा रहे हैं।


ग्लेशियर पिघल रहे और समुन्द्र


तल यूँ ही बढ़ते ही जा रहे हैं।।


काट कर सारे वन कंक्रीट के कई


जंगल बसा दिये विकास ने।


अनायस ही विनाश की ओर कदम


दुनिया के चले ही जा रहे हैं ।।


 


पॉलीथिन के ढेर पर बैठ कर हम


पॉलीथिन हटाओ का नारा दे रहे हैं।


प्रक्रति का शोषण कर के सुनामी


भूकंप का अभिशाप ले रहे हैं ।।


पर्यवरण प्रदूषित हो रहा है दिन रात


हमारी आधुनिक संस्कृति के कारण।


भूस्खलन,भीषणगर्मी,बाढ़,ओलावृष्टि


की नाव बदले में आज हम खे रहे हैं।।


 


ओज़ोन लेयर में छेद,कार्बन उत्सर्जन


अंधाधुंध दोहन का ही दुष्परिणाम है।


वृक्षों की कटाई बन गया आजकल


विकास प्रगति का दूसरा नाम है।।


हरियाली को समाप्त करने की बहुत


बडी कीमत चुका रही है ये दुनिया।


इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र का नित


 असुंतलन आज हो गया आम है ।।


 


सोचें क्या दे कर जायेंगे हम अपनी 


  अगली पीढ़ी को विरासत में ।


शुद्ध जल और वायु को ही कैद कर


दिया है जीवन शैली की हिरासत में।।


जानता नहीं आदमी कि कुल्हाड़ी


पेड पर नहीं पाँव पर चल रही है।


प्रकृति नहीं सम्पूर्ण मानवता ही नष्ट


हो जायेगी इस दानव सी हिफाज़त में।।


रचयिता एस के कपूर श्री हंस


बरेली


 


 


वसुधैव कुटुम्बकम जैस


संसार की जरूरत है।।।


मुक्तक


 


तकरार की नहीं परस्पर


प्यार की जरूरत है।


 


हर बात पर मन भेद नहीं


इकरार की जरूरत है।।


 


मिट जाती हस्ती किसीऔर 


को मिटाने वाले की।


 


वसुधैव कुटुम्बकम जैसे


संसार की जरूरत है।।


 


रचयिता।।।।एस के कपूर


श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।


मोब नॉ 9897071046।।


8218685464।।।।।।।।।।


 


क्रोध और अहंकार(हाइकु)


 


क्रोध अंधा है


अहम का धंधा है


बचो गंदा है


 


अहम क्रोध


कई हैं रिश्तेदार


न आत्मबोध


 


लम्हों की खता


मत क्रोध करना


सदियों सजा


 


ये भाई चारा


ये क्रोध है हत्यारा


प्रेम दुत्कारा


 


ये क्रोधी व्यक्ति


स्वास्थ्य सदा खराब


न बने हस्ती


 


क्रोध का धब्बा


बचके रहना है


ए मेरे अब्बा


 


ये अहंकार 


जाते हैं यश धन


ओ एतबार


 


जब शराब


लत लगती यह


काम खराब


 


 


रचयिता।एस के कपूर


श्री हंस।बरेली


 


 


महिला दिवस


 


शीर्षक नारी, शक्ति भक्ति ममता का प्रतीक


मुक्तक माला


 


माँ का आशीर्वाद जैसे कोई


खजाना होता है।


 


मंजिल की जीत का जैसे


पैमाना होता है।।


 


माँ की गोद मानो कोई


वरदान है जैसे।


 


चरणों में उसके प्रभु का


ठिकाना होता है।।


 


 


अहसासों का अहसास मानो


बहुत खास है माँ।


 


दूर होकर भी लगता कि बस


आस पास है माँ।।


 


बहुत खुश नसीब होते हैं जो


पाते माँ का आशीर्वाद।


 


हारते को भी जीता दे वह


अटूट विश्वास है माँ


 


अच्छा व्यवहार बेटीयों से


निशानी अच्छे इंसान की।


 


इनसे घर की बढ़ती शोभा जैसे


उतरी परियाँ आसमान की।।


 


बेटी को भी दें आप बेटे जैसा


घर में प्यार और सम्मान।


 


जान लीजिए बेटियों के जरिये


ही आती रहमते भगवान की।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


 


नववर्ष


फसल चक्र ऋतु परिवर्तन का


संकेत है हिन्दी नव वर्ष।


नव रात्री के जयकारों से होता


व्याप्त सब में भक्ति हर्ष।।


सूर्य चंद्रमा दिशा परिवर्तन और


जुड़ी कृषकों की ख़ुशहाली।


विक्रमादित्य भगवान झूले लाल


से भीजुड़ा ऐतिहासिक स्पर्श।।


 


हिन्दी नव वर्ष नव संवत्सर तो


नये मौसम का आगाज है।


देवी मां औरआर्यसमाज कृपा व


मिला संस्कारों का साज़ है।।


क्या जनवरी अंग्रेजी वर्ष में है


कोई भी ऐसा परिवर्तन।


नव संवत्सर तो ५७ वर्षों की


लिए अधिक आवाज़ है।।


 


जनवरी नव वर्ष के साथ मनाये


अवश्य हिंदी नव वर्ष भी।


बधाई दें सबको नव संवत्सर


की अवश्य और सहर्ष भी।।


अपने पुरातन मूल्यों का हो 


अधिक से अधिक प्रसार।


कभी भूल नहीं पाये कोई इस


का महत्व और दर्श भी।।


 


हिंदी नव वर्ष की अनंत।असीम।अपार शुभकामनायों सहित।



मोब 9897071046


8218685464


 


 


सीमा शुक्ला अयोध्या

घनघोर श्यामल ये घटा


नभ में अलौकिक छा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा,


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


घन बीच चमके दामिनी,


वन में शिखावल नृत्य है।


तरु झूमती है डालियां,


वसुधा मनोरम दृश्य है।


 


झींगुर, पपीहा, मोर, दादुर,


ध्वनि हृदय हर्षा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा,


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


कल कल करें पोखर नदी,


सनसन चले शीतल पवन।


गिरती सुधा रसधार बुझती


तप्त अवनी की अगन।


 


सुरभित धरा खिल खिल उठी


हर पीर मन बिसरा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा,


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


तन को भिगोती बूंद ये,


मन भाव की सरिता बहे।


विरहन नयन में नीर हो,


कविमन सरस कविता कहे।


 


धानी चुनर ओढ़े धरा


सबके हृदय को भा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

'शान्ति की खोज में' एक कविता 


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विधा- गीत 


 


 


विश्व में जगह-जगह बुद्ध की विपश्यना से।


क्या मिला राष्ट्र को पंचशील की स्थापना से। 


 


हम शान्ति ओम् शान्ति का मंत्र बोलते रहे, 


पर सदा विचलित हुए शत्रु की प्रवंचना से। 


 


परतंत्रता की त्रासदी हजार वर्ष झेलकर, 


उबर नहीं सके विश्व बन्धुत्व की कामना से। 


 


दूसरों के आतिथ्य हेतु हम द्वार खोलते रहे, 


पर क्या पता वो शत्रु है ग्रस्त हैै दुर्भावना से। 


 


आज सत्य शान्ति करुणा उदारता को भूल, 


आोत-प्रोत हो गये हैं राष्ट्रीयता की भावना से।


 


अब सतर्क हो गये हैं गगन जल थल में हम, 


शत्रु डर गया है अब युद्ध की सम्भावना से। 


 


मौलिक रचना- 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


महराजगंज, उ० प्र० 


मो० नं० 9919886297


डॉ बीके शर्मा

बड़ा एहसान किया तुमने


::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::


साहिल जो प्यार राहों में 


दिया तुमने |


इस काफिर पर 


बड़ा एहसान किया तुमने ||


बस इस इंतजार में 


जीता रहा हरदम |


कि आखिर बेवफा 


कह तो दिया तुमने ||


हवा ऐसी लगी


कि दवा काम ना आई |


 मोहब्बत में यह 


कैसा जख्म दिया तुमने ||


जब जब सताती रही 


यादें तेरी मुझको |


 बस यही सोचा कि 


याद किया तुमने ||


यह खत्म ना होगा


सफर मेरा तेरे लिए |


अगर एक पल भी 


प्यार किया है तुमने ||


 


 डॉ बीके शर्मा


उच्चैन , भरतपुर ,राजस्थान


कालिका प्रसाद सेमवाल

तुम्हीं सच बताओ मुझे मान दोगी


********************


तुम्हें गीत की हर लहर पर संवारूँ,


तुम्हें जिन्दगी में सदा यदि दुलारूँ,


तुम्हीं सच बताओ मुझे मान दोगी,


बहुत मैं चला हूँ बहुत मैं चलूंगा,


कहीं गीत बनकर तुम्हारा ढलूंगा,


तुम्हीं सच बताओ मुझे गान दोगी।


 


प्रणय की निशानी नहीं रह सकेगी,


भले यह जवानी नहीं रह सकेगी,


तुम्हीं सच बताओ मुझे प्रान दोगी,


हृदय में कहो या सुमन में बिठाऊँ,


तरसते नयन है कहाँ देख पाऊँ,


तुम्हीं सच बताओ कहां ध्यान दोगी।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


डॉ बीके शर्मा 

यह मेरा हक है


*************


नियति 


"रकवा" नहीं किसी का 


खूब जियो 


और


जीने दो


यह मेरा हक है ||


इस जगती में 


जो भी जीवनरस है


खूब पियो 


और


पीने दो


यह मेरा हक है ||


यह लबादा फटा नहीं 


जर्जर हृदय से अधिक 


खुद सीयो 


और


सीने दो 


"यह मेरा हक है"


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन ,भरतपुर ,राजस्थान


सुनीता असीम

गीतिका 


 


हिज्र के पालने में सुलाना नहीं।


आशिकी में हमें यूँ रूलाना नहीं।


*****


देख बढ़ती हुई दूसरों की खुशी।


आप अपना कभी दिल जलाना नहीं।


*****


 लो ग़रीबों की तुम तो दुआएँ सदा।


बेवजह ही किसी को दबाना नहीं।


**** 


जख्म अपने हमेशा रखो तुम हरे।


पर इन्हें दूसरों को दिखाना नहीं।


*****


टूट जाते हैं रिश्ते बढ़ें दूरियां।


ख़ार रिश्तों में अपने बढ़ाना नहीं।


*****


हो गईं हों अगर गलतियाँ कुछ बड़ी।


बात कोई बड़ों से छिपाना नहीं।


*****


दर्द-ए- दिल बढ़ा जा रहा है मेरा।


और इसको सुनो तुम बढ़ाना नहीं।


*****


खूब होते रहे हादसे शह्र में।


तुम मगर इनका बनना निशाना नहीं।


*****


रंजिशे ग़म बढ़े जा रहे इस क़दर।


बच रहा आज इनसे जमाना नहीं।


*****


सुनीता असीम


२२/६/२०२०


कालिका प्रसाद सेमवाल

जीवन में दुत्कार बहुत है


*******************


द्वार तुम्हारे आया हूँ प्रिय,


जीवन में दुत्कार बहुत है।


 


जीवन का मधु हर्ष बनो तुम,


जीवन का नव वर्ष बनो तुम,


तुम कलियों सी खिल खिल जाओ,


चंदा किरणों -सी मुसकाओं,


रखना याद मुझे तुम रागिन,


अंतिम यह फरियाद सुहागिन।


 


कैसे अपना दिल बहलाऊँ


इस दिल पर भार बहुत है।


 


देखो यह नटखट पन छोड़ो,


मुझसे प्रेयसी, तुम मुँह मत मोड़ों,


आओ गृह की ओर चलें हम,


जग बन्धन को तोड़ चले हम,


तुमको पाकर धन्य बनूंगा,


प्यार -प्रीति में नित्य सुनूँगा।


 


तेरे हित में मुझको अब मरना है,


जीवन में अंगार बहुत है।


 


संध्या की यह मधुमय बेला,


रह जाता हूँ यहाँ अकेला,


सूरज की किरणों का मेला,


रचता है जीवन से खेला,


अपना तन-मन भार बनाकर,


चल पड़ता गृह, हार मनाकर।


 


कल समझौता होगा प्रिय,


जीवन में मनुहार बहुत है।


 


दुनिया कल यदि बोल सकेगी,


प्यार हमारा तोल सकेगी,


स्वत्व नहीं है उसको इतना,


कर ले बर्बरता हो जितना,


उसको क्या अधिकार यहां है,


कि रच दे विरह कि प्यार जहां है।


 


प्यार नयन की भाषा


यह इजहार बहुत है।


 


नव प्रभात की नूतन लाली,


रंग जाती है धरती थाली,


भौंरों के जब झुण्ड मनोहर,


गुंजित करते कुसुम -सरोवर ,


मथनी उर को मेरी हारें,


हाय, न क्यों तुम मुझे दुलारे।


 


कैसे तुमको राग सुनाऊं,


जीवन-तार बहुत है।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


निशा"अतुल्य"

दोहे पर मेरा प्रयास 


😊🙏🏻


 


दिन मेरा बीते नही, ना ही बीते रात 


धरा ग्रीष्म में तप रही,कब होगी बरसात ।


 


व्याकुल पंछी जीव हैं,ढूंढे वृक्ष की छाँव


बादल घिर जो आ गये,ठौर मिलेगी गाँव।


 


बरखा की बूंदे गिरी, नाचा मन का मोर


पावस ऋतु जो आ गई,बादल हैं घनघोर।


 


नदियां पानी से भरी, भर गए ताल तलाब


टप टप गिरती बूंद भी,गाती रहें मल्हार।


 


ऋतु सावन की है खड़ी,बाट निहारूँ आज 


पिया मिलन की आस है, घिर आया मधुमास ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/16राधेश्यामी छंद)


कब से तरस रहीं थीं आँखें,


उड़ न रहीं थीं मन-खग पाँखें।


नव प्रकाश ले अब तो आईं,


कटीं जो रातें तनहाई में।


प्रीतम पावस लेकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।।


 


कैसे-कैसे रजनी बीती,


कैसे कह दूँ अपनी बीती?


विरह-अगन की जलन-तपन अति,


रहीं सताती तरुणाई में।


प्रीतम पावस लेकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।।


 


साजन-मिलन सुखद-मन-भावन,


जैसे हो मनमोहक सावन।


पाकर सजनी निज साजन को,


सुध-बुध खोए अँगड़ाई में।


प्रीतम पावस लेकर आए,बरसे मन की अँगनाई में।।


 


मन-मयूर भी लगा नाचने,


हो हर्षित सजन के सामने।


भूली सजनी लख प्रियतम को,


कष्ट सहा जो विलगाई में।


प्रीतम पावस लेकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।।


 


जो सुख मिला सजन पावस से,


शायद मिले न वह सावन से।


परम दिव्य बस वह प्रभात है,


जो है दिनकर अरुणाई में।


प्रीतम पावस लेकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।।


          


विह्वल-मगन-दीवानी सजनी,


की थी अति विशिष्ट वह रजनी।


प्रेम-वार्ता में कब-कैसे,


रजनी बीती पहुनाई में।


प्रीतम पावस बन कर आए, बरसे मन की अँगनाई में।।


                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


संजय जैन (मुम्बई

*गुलाब हो या दिल*


विधा : कविता


 


मेरे दिल में अंकुरित हो तुम।


दिलकी डालियों पर खिलते हो।


और गुलाब की पंखड़ियों की तरह खुलते हो तुम।


कोई दूसरा छू न ले तुम्हें


इसलिए कांटो के बीच


रहते हो तुम।


फिरभी प्यार का भंवरा कांटों


के बीच आकर छू जाता है।


जिससे तेरा रूप और भी निखार आता है।।


 


माना कि शुरू में कांटो से


तकलीफ होती है।


जब भी छूने की कौशिश


करो तो तुम चुभ जाते हो।


और थोड़ा दर्द दे जाते हो।


पर साथ ही तुझे पाने की


जिदको बड़ा देते हो।


और अपने पास ले आते हो।।


 


देखकर गुलाब का खिलारूप।


दिलमें बेचैनियां बड़ा देता है।


और पास अपने ले आता है।


रात के सपने से निकालकर।


सुबह होते ही पास बुलाता है।


और हंसता खिलखिलाता अपना चेहरा हमें दिखता है।।


 


मोहब्बत का एहसास गुलाब कराता है।


शान ए महफिलों की बढ़ाता है ।


शुभ अशुभ में भी 


भूमिका निभाता है।


तभी तो फूलदिवस भी मानवता है।


तभी तो गुलाब को हम


दिलों जान से चाहते है।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


22/06/2020


डॉ निर्मला शर्मा

ऑनलाइन क्लास 


 


कोरोना के संक्रमण से


बदल गया संसार 


क्षेत्र न कोई छूट रहा


फैले विविध विकार


विकास की गति धीमी हुई


सिमट गया संसार


संक्रमण के कारण से 


ऑनलाइन हुई है क्लास 


माता-पिता और बच्चों को


 हुआ बड़ा संत्रास 


सारा दिन घर में रहे 


हिले ना एक भी पल


कभी न हमने सोचा था


ऐसा होगा कल


याद आ रहै बच्चों को 


स्कूल के वह पल 


बिना किसी अवरोध के


पढ़ते सारे चंचल


खुली कक्षा में बैठकर 


पढ़ने में आनंद 


ऑनलाइन शिक्षण में कहाँ 


शिक्षा की वैसी तरंग 


ऑनलाइन शिक्षण ने किया


 क्लास रूम पर आघात


 वातावरण को बिगड़ रहा


 आनन्द का हुआ अभाव


भेदभाव भी हो रहा


 बच्चों के क्यों साथ? 


शहरी और ग्रामीण में 


शिक्षा बँटी है आज 


संसाधन पूरे नहीं  


हुआ हाल बेहाल


 स्मार्ट क्लास के लिए नहीं


 इंटरनेट का जाल 


प्रतिस्पर्धा की दौड़ में 


बच्चे हुए बीमार 


मनोरोग से ग्रसित हो 


स्वास्थ्य किया है खराब 


एक जगह पर बैठकर 


हो गए लापरवाह 


उत्साह मन का खो गया


हृदय से उठती आह!


स्वास्थ्य भी उनका बिगड़ गया


 मन भी हुआ लाचार 


बिना गाइडलाइन चल रहा


शिक्षा का यह प्रचार


शिक्षक भी है गुजर रहा


 परेशानियों से आज


 दक्षता उसकी भी नहीं


अनायास ही बढ़ गया


शिक्षण का विस्तृत आकाश


डाले कैसे संस्कार वह 


कैसे समझाएं संस्कृति 


आभासी शिक्षण ने ले ली


गुरु की महान पदवी


 डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अदभुत चितवन देखके,


भूल गये भव ताप।


मुरलीधर की मोहिनी,


हर लीन्हे संताप।।


 


जगतपिता तेरी कृपा,


सत्य हृदय कूं फूल।


सुरभित हुए तन मन प्रभु, 


जग लागे अनकूल।।


 


मोर मुकुट की सौम्यता,


अधरन की मुस्कान।


हरे बांस की बांसुरी,


करें अलंकृत प्राण।।


 


रूप सौंदर्य के धनी,


मुरलीधर घन श्याम।


ज्योती बन हिय में जलें,


जीवन हो अभिराम।।


 


श्रीकृष्णाय नमो नमः 👏👏👏👏👏🍁🍁🍁🍁🍁


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डा.नीलम

*माटी*


 


माटी माटी करता हो


माटी को न जाने हो


माटी होकर देखो तो


माटी क्या है जानोगे


 


एक बीज रोपके देखो


श्रम बिंदुसे सींच के देखो


माटी के हमदम बन जाओ


भर झोलियां वो देगी देखो


 


माटी माटी करते हो.......


 


माटी से ही तेरा तन बना


माटी से ही तेरा घर बना


ये संपूर्ण जगत जो दृश्या


माटी से ही सबकुछ बना


 


जिस तन पर इतराता है


जिस धन पर इतराता है


बदला वक्त माटी होगा


क्यों मिथ्या इतराता है


 


माटी माटी करता है........


 


ये जो शान ओ' शौकत है


कुछ ही दिन की रौनक है


इक दिन सब लुट जायेगी


जो तन ओ' धन की दौलत है


 


जन्म मिला है माटी से


परण हुआ है माटी से


जब होगी पुकार यम की


मिलन होगा फिर माटी से


 


माटी माटी करता है.........


 


          डा.नीलम


एस के कपूर"श्री हंस" बरेली

*चीन को सबक सिखाना*


*है।।।हाइकू।।।।*


1......है दगाबाज


सिद्ध हो गया आज


चीनी आवाज़


2........कॅरोना दिया


विश्वास हर लिया


यह क्या किया


3.......ये तकरार


करेंगें बहिष्कार


चीनी व्यापार


4......पीठ में छुरा


जवाब दें करारा


बहुत बुरा


5......विश्वास घाती


होगा तू बेनकाब


चीरेंगें छाती


6.......विधि विधान


मानता नहीं चीन


मिटे निशान


7....विस्तार वाद


पुरानी चीनी नीति


होगा बर्बाद


*योग।।।।।।हाइकु*


1......दूर हो रोग


रोज़ सुबह योग


काया नीरोग


2.......योग फायदा


रोज़ ही योग करें


बने कायदा


3,,,,,,विश्व को दिया


विश्व ने अपनाया


ओ लाभ लिया


4,,,,,,रोज़ हो योग


करे ये काया कल्प


बने निरोग


5,,,,बढे क्षमता


योग भगाये रोग


मन रमता


6,,,ये लाभकारी


स्वस्थ बने शरीर


है हितकारी


7,,,,,,योग दिवस


हो ये प्रत्येक दिन


न रोग चिन्ह


 


एस के कपूर"श्री हंस"*बरेली*।


मोब।। 9897071046


                    8218685464


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

धर्म निरपेक्षता ढकोसला


 


 


धर्म ,समाज ,राष्ट्र धरोहर


माँ ,जन्म ,जन्म भूमि की 


पहचान।।


धर्म ,धन्य मानवता का


अभिमान ।


धर्म ,संस्कृति ,संस्कार 


नहीं सिखाता प्राणी


प्राण में भेद भाव।।


हिंसा ,घृणा ,विद्वेष धर्म नहीं


धर्म मार्ग है प्रेम ,शांति का


संदेस।।


धर्म नहीं करता मानव 


मानव में भेद।


अन्याय ,अत्याचार का प्रतिकार


सद कर्मो का सत्य ,सत्यार्थ


धर्म ,करुणा ,छमाँ मानवता


की मर्यादा मूल्य।।


लोकतंत्र मत बहुमत का मेल


लोक तंत्र में जाती धर्म के 


वर्ग बेमेल।।


लोकतंत्र सत्ता ,शासन का


मार्ग कभी तोड़ कर ,कभी


जोड़ कर मत बहुमत नित्य


निरंतर सत्ता शक्ति के संतुलन


अनेक।।


लोक तंत्र जनता का, जनता द्वारा,


जनता के लिये 


अक्सर भोली भाली जनता


अपने सपने को खुद


भवों के प्रवाह में दाँव लगाती


कभी हारती कभी जीतती


कभी हराती कभी खुद


हार जाती ।।


धर्म धुरी है मानवता कि जिसके इर्द गिर्द


मानव घूमता आशाओ के


विश्वाश में ,आस्था के अस्तित्व


में ,विराटता के बैभव में,


विचलित हो जाता ,जब मानव


धर्म मार्ग उसे तब बतलाता।।


लोकतंत्र भी मानवता के मूल्यों


का रखवाला 


मत बहुमत के चक्कर में 


बांटता बटाता और बँट जाता


लोकतंत्र सिद्धांत मत बहुमत


पर आधारित ।।


धर्म ,अक्षुण ,अक्षय युग समाज


का निर्माणी निर्णय कारी।


लोक तंत्र में बहुमत निर्णय


परिवर्तन का पथ प्रवाह


धर्म में कर्म ,ज्ञान के वेद्,


पुराण, कुरान जीवन मूल्य


आधार ।।


धर्म कि परिभाषा कि उलटी


व्याख्या घृणा का क्रूर ,


क्रूरतम, उग्र ,उग्रता ,उग्रवाद


लोक तंत्र में छद्म खद्दर धारी


जनता के प्रतिनिधि महात्मा


कि आत्मा विध्वंसक ,विघटन


कारी मानवता में घृणा के 


संचारी।।


धर्म निरपेक्ष नहीं मानव मन 


मस्तिष्क कि आस्था 


के मूल्यों कि परम शक्ति भगवान,


खुदा ,अल्ला ,बुद्ध ,जीजस , नानक भक्ति की शक्ति।


लोकतंत्र सिद्धान्तों के सापेक्ष मति ,सहमति कि


संयुक्त ताकत राज्य प्रशासन


की निति ,नियति राज्य निति राजनीती 


निरपेक्ष नहीं ,जब भगवान,


खुदा ,जीजस ,अल्ला भक्ति


के सापेक्ष।।


लोकतंत्र निरपेक्ष कैसे


लोक तंत्र बहुमत का प्रति


प्रतिनिधि का सापेक्ष।।


निरपेक्ष नहीं पैदा होता मानव


पैदा होता धर्म ,रिश्तों ,नातो के


समाज सापेक्ष में


कैसे हो सकता निरपेक्ष ।।


धर्मनिपेक्षता का राग ढोंग,


छद्म ,छलावा सबसे ज्यादा


धर्मांध धर्म निरपेक्षता कि


राग अलापता । 


धर्म निरपेक्षता खोखले


मर्यादाओ का अँधेरा अन्धकार


दिखता ।।


जब इंसान कि पहचान माँ ,बाप,


मातृभूमि ,समाज ,धर्म ,राष्ट्र 


जो मानव ,मानवता के रिश्तों


में रचता बसता समरसता


के समता मूलक राष्ट्र कि 


बुनियाद।।


शासन प्रशासन लोक तंत्र हो


राज तंत्र हो जो भी हो कि


सांसे धड़कन प्राण।।


हर राष्ट्र कि मौलिक चाहत


एक सूत्र में बंधा रहे राष्ट्र 


समाज ,धर्म का भी चिंतन


सिद्धान्त।।


दूरदृष्टि ,मजबूत इरादे ,नेक नियति


निष्ठा ,ईमानदारी ,आस्था और


विश्वास, धर्म और लोकतंत्र कि आत्मा आवाज़।।


 


धर्मनिरपेक्षता फरेब ,धोखा ,मौका,


मतलब परस्ती का समाज देश


के बुनियादों का दीमक जाल।।


देश समाज के खस्ता हाल


का जज्बा जज्बात जिमेदार।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 एक गीतिका 😊😊


 


भले-बुरे की जिनको यारो,


              जग में है पहचान नहीं।


उनको तुम पशुवत ही मानो,


               सच में वे इंसान नहीं।


 


मानवता के दुश्मन हैं वो,


             हर दिन नफ़रत फैलाते।


उनकी बातों पर हम सबको,


            देना बिल्कुल ध्यान नहीं।


 


दूर हमें है उनसे रहना,


              समझ छूत की बीमारी।


उनकी बातों का हम सबको,


                लेना है संज्ञान नहीं।


 


अलग-थलग ही रखना उनको,     


           समझ यार कूड़ा करकट।


भले लगें वे द्विज के जैसे,


                देना उनको मान नहीं।


 


कोरोना के वाहक हैं वो,


              सावधान हमको रहना।


गले लगाकर उनको हमको,


               देनी अपनी जान नहीं।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


 


  *"न मन हारे-न तन हारे"*


 


"सोचे पल-पल मन जग में,


कैसे-बीते ये जीवन?


देखे सपने बचपन में,


आदर्श होगा ये जीवन।।


टूटे सपने मन के सारे,


क्यों-वो अपनो से हारे?


छूटे जब सभी सहारे,


फिर पहुँचे वो प्रभु द्वारे।।


 


दूर हो दु:ख मन के सारे,


जैसे-जैसे प्रभु नाम पुकारें।


प्रभु भक्ति में डूबा जो मन,


न मन हारे-न तन हारे।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 22-06-2020


भरत नायक "बाबूजी

चाणक्य नीति -----


(दोहानुवाद)


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■बहूनां चैव सत्तवानां रिपुञ्जयः । वर्षान्धाराधरो मेधस्तृणैरपि निवार्यते॥


भावार्थ :


शत्रु चाहे कितना बलवान हो; यदि अनेक छोटे-छोटे व्यक्ति भी मिलकर उसका सामना करे तो उसे हरा देते हैं । छोटे-छोटे तिनकें से बना हुआ छप्पर मूसलाधार बरसती हुई वर्षा को भी रोक देता है । वास्तव में एकता में बड़ी भारी शक्ति है ।


 


★१- शक्ति संगठन में बड़ी, होती रिपु की हार।


ज्यों तिनका-छत रोक ले, वर्षा-तेज प्रहार।।


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■त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् । कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः॥


भावार्थ :


दुष्टों का साथ छोड़ दो, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन अच्छे काम करो तथा सदा ईश्वर को याद करो । यही मानव का धर्म है ।


 


★२- साथ सु-जन रह तज कु-जन, निशिदिन करो सु-कर्म।


करो ईश-आराधना, यही मनुज का धर्म।।


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■जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि । प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तितः॥


भावार्थ :


जल में तेल, दुष्ट से कहि गई बात, योग्य व्यक्ति को दिया गया दान तथा बुद्धिमान को दिया ज्ञान थोड़ा सा होने पर भी अपने- आप विस्तार प्राप्त कर लेते हैं ।


 


★३- तेल-वारि खल को कथन, पात्र ज्ञान उपकार।


रहकर मात्रा अल्प भी, पा जाते विस्तार।।


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■उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी । तादृशी यदि पूर्वा स्यात्कस्य स्यान्न महोदयः ॥


भावार्थ :


गलती करने पर जो पछतावा होता है, यदि ऐसी मति गलती करने से पहले ही आ जाए, तो भला कौन उन्नति नहीं करेगा और किसे पछताना पड़ेगा ?


 


★४- गलती करके बाद में, होता पश्चाताप।


कर्म-पूर्व यह सोच लो, होगी उन्नति आप।।


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■दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये । विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा॥


भावार्थ :


मानव-मात्र में किभी भी अहंकार की भावना नहीं रहनी चाहिए बल्कि मानव को दान, तप, शूरता, विद्वता, शुशीलता और नीतिनिपुर्णता का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए । यह अहंकार ही मानव मात्र के दुःख का कारण बनता है और उसे ले डूबता है ।


 


★५- दान-शौर्य-तप-ज्ञान पर, कर न मनुज अभिमान।


कारण बनता दुःख का, अहंकार ही जान।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः....*अठारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


जदि तू भजहु मोंहि चितलाई।


सुनु मम सखा औरु मम भाई।।


     पइबो हमहिं अवसि हे मितऊ।


     सत्य प्रतिग्या इह मम अहऊ।।


     अस्तु,त्यागि सभ करमहिं धरमा।


      आवहु मोरी सरन सुकरमा ।।


करब मुक्त मैं तव सभ पापा।


हरब सकल जे तव भव-तापा।।


     करउ न सोक आउ मम सरना।


     नाथ सच्चिदानंदघन अपुना।।


गीता-बचन-मरम मत कहऊ।


भगति बिहीन-अनिछ जे रहऊ।।


     पर जे करै न निंदा मोरी।


     उनहिं सुनावउ भाव-बिभोरी।।


गीता-सार कहहु निष्कामा।


करि प्रसार पाउ मम धामा।।


     कहहि जे गीता गृह-गृह जाई।


     अहहि उहहि मम अति प्रिय भाई।।


करै पाठ जे गीता-ग्याना।


ग्यान-जग्य-पूजित मो पाना।।


     सुनै जे गीता नित चितलाई।


      सकल पाप मुक्त होइ जाई।।


कह आनंदकंद प्रभु कृष्ना।


किम अर्जुन तुम्ह भे गत-तृष्ना??


     कहे धनंजय हे प्रभु अच्युत।


     भवा मोर मन मोह-भ्रमइ च्युत।।


संसय-बिगत भवा मन मोरा।


करबइ जे कहु नंदकिसोरा।।


     संजय कह तब सुनु हे राजन।


     अर्जुन-कृष्न मध्य सम्बादन।।


सुनि अद्भुत रोमांचक तथ्या।


मिला मोंहि आनंद अकथ्या।।


    बेदइ ब्यास कृपा मैं पाई।


    दिब्य दृष्टि सभ परा लखाई।।


गूढ़ ग्यान जे दीन्ह जोगेस्वर।


कृष्न अर्जुनहिं चुनि-चुनि हिकभर।।


दोहा-हे राजन धृतराष्ट्र मैं, होंहुँ मुदित बहु बार।


        करि स्मरनहिं प्रभु-कथन,जाइ होय उद्धार।।


       जहाँ जोगेस्वर कृष्न रहँ, अरु अर्जुन-धनु-बान।


       अहहि मोर मत राजनइ, होवहि बिजय महान।।


                        डॉ0हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


               अठारहवाँ अध्याय समाप्त।


               ऊँ भगवते वासुदेवाय नमः!!


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