राजेंद्र रायपुरी

😊😊 एक गीतिका 😊😊


 


जो शुभचिंतक होते अपने, 


                       याद वही तो आते हैं।


अपने दिल के कोने में भी, 


                      जगह वही तो पाते हैं।


 


जो शुभचिंतक होते ना वो,


                   दिल में बसा नहीं करते,


कैसे बसें कहो वो दिल में,


                    जो दिन- रात सताते हैं।


 


नेकी कर दरिया में डालो,


                      सुनी कहावत है हमने,


ऐसा जो करते हैं उनके,


                   गुण जग में सब गाते हैं।


 


जो हक़ मार सभी का यारो,


                     झोली भरते हैं अपनी,


अपने रिश्ते-नाते क्या वो,


                    सबसे गाली खाते हैं।


 


मानो हम जो कहते उसको, 


                    बात नहीं ये है झूठी।


जिनका जीवन परहित बीता, 


                    संत वही कहलाते हैं।


 


               ।।‌राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


       *"सवेरा"*


"दीप से दीप जला नेह के,


इतना कर दो उजियारा।


जीवन में फिर साथी कोई,


रहे न नफ़रत का डेरा।।


जीवन पथ पर जग में फिर से,


होगा ऐसा सवेरा।


छाये न कोई गम की बदली,


होगा ख़ुशियों का डेरा।।


इतना त्याग करना जग में,


बना रहे नेह का फेरा।


कैसी-आये गम की बदली,


घेरे न जीवन सवेरा।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःः


        सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 28-06-2020


नूतन लाल साहू

ज्ञान की बातें


देरी कर दो क्रोध में तो


क्रोध टल जाता है


खुद ही अपने आग में


क्रोध जल जाता है


सुनो सौ लोगो की बात,पर


दिल की बात तुम मानो


काज सफल उसी का होता है


जिसने खोया नहीं विवेक


देरी कर दो क्रोध में तो


क्रोध टल जाता है


खुद ही अपने आग में


क्रोध जल जाता है


सबसे मूल्यवान है,समय


और शब्दों का अर्थ है सार


जो भी साधा सिर्फ अर्थ को


उनका जीवन हुआ,व्यर्थ


देरी कर दो क्रोध में तो


क्रोध टल जाता है


खुद ही अपने आग में


क्रोध जल जाता है


जो पोथी में लिखा हुआ है


उसे न अपना मान


ढला नहीं, जो कर्म में


वो है कैसा ज्ञान


देरी कर दो क्रोध में तो


क्रोध टल जाता है


खुद ही अपने आग में


क्रोध जल जाता है


बाहर से दोस्त तो बहुतेरे होते हैं


पर भीतर छुरी चलाता है


इकदिन अपने ही छुरी से


खुद ही मर जाता है


देरी कर दो क्रोध में तो


क्रोध टल जाता है


खुद ही अपने आग में


क्रोध जल जाता है


नूतन लाल साहू


रवि रश्मि 'अनुभूति '

 


भूल नहीं सकते हम सब तो , 


          बलिदान सभी वीरों का ।


चलो सभी हम करें सफ़ाया ,  


          सभी ही उन अधीरों का ।।


चीर गई थी सीना गोली , 


          मत भूलो उस गोली को ।


जो कानों में ज़हर घोलती , 


          करो न विस्मृत उस बोली को ।।


 


 लिए तिरंगा आगे आये जो , 


          भून उन्हें भी था डाला ।


उलटे क़दमों थे भागे वे , 


          तभी था मुँह किया काला ।।


आगे तो क़दम बढ़ाना मत , 


          चीख उठीं थीं प्राचीरें । 


ललकार उठे थे सैनिक भी , 


          चलो चलें छाती चीरें ।।


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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


25.6.2020 , 10:16 एएम पर रचित ।


   मुंबई (महाराष्ट्र ) ।


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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹


28.6.2020 .


डॉ निर्मला शर्मा

दिल-ओ-दिमाग। ( कविता)


दिल और दिमाग में चलती है कशमकश कोई


जिंदगी आज दिखाती है गुजरा हुआ मंजर कोई


कभी चलते थे राहों पर तो हुजूम साथ चलता था


वीरान हुई सड़कों पर कभी मेला सा लगता था


पर आज है छाई अजब सी बेचारगी सी है


कैसा हुआ मंजर कि चुभन लगती ख़ंजर सी है


न अब शामिल कोई सुख में तो दुख को कौन है बाँटे


सन्नाटा सा पसरा है कि अब सूना सा है पनघट


कहाँ जमघट वो सावन का नहीं झूले हैं पेड़ों पर


कहाँ त्योहार हैं मनते वो अब सपने हैं नींदों में


है अब संसार भी सिमटा सिमटती सी ये दुनिया है


कभी मिलजुल के रहते थे अब बन गई बीच दूरियाँ हैं


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

दिनांकः २८.०६.२०२०


वारः रविवार


विषयः बदरा


विधाः दोहा


छन्दः मात्रिक


शीर्षकः बरसो बदरा झूमकर


उमड़ घुमड़ बादल करे , वृष्टिवधू से प्रीत।


बूंद बूंद अनुपम मिलन , नच मयूर नवगीत।।१।।


नवपरिणय आतुर मिलन,हुआ व्योम घनश्याम। 


मेढक शहनाई बजे , वधू वृष्टि अभिराम।।२।।


सखी बनी हरिता धरा , प्रकृति मातु नवरंग।


मृगद्विज कुटुम्ब चारुतम , अलिकुंज मीत संग।।३।।


विद्युत चहुँदिक गर्जना , रवि शशि तारकवृन्द।


मेघराज गिरि घोटिका , स्वागत सर अरविन्द।।४।।


कर निनाद कलकल सरित् , जलप्रपात मृदुगान। 


वर्षा बन सुन्दर परी , सागर कन्यादान।।5।।


श्वाति समागम चारुतम , सारस युगल प्रसन्न।


नगर नर्तिका बन मयूर , नाच वधू आसन्न।।६।।


सूखी है चारु धरा , शुष्क पड़ा नीलाभ। 


भौतिकता आघात से , भू तापित अरुणाभ।।७।।


कृषक मानस हो मुदित , हरे भरे सर खेत।


पा जमाई बादल सफल , हरियाली हो रेत।।८।।


हो निकुंज अति मुदित बन,हरित ललित वनकुंज।


नीर क्षीर पूरित ज़मी , धनधान्य सुखपूंज।।९।।


बरसो बदरा झूमकर, सूखी धरणी नींव ।


सुनो कृषक सम्वेदना, धरा करो संजीव।।१०।।


रचनाकारः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक(स्वरचित)


नयी दिल्ली


अर्चना द्विवेदी     अयोध्या

छोड़कर पंछी उड़ा पिंजर पुराना


ढूंढने फिर से नया इक़ आशियाना


 


दूर रहकर भी हमेशा पास ही है 


दे गया अनमोल यादों का खज़ाना


 


व्यर्थ हैं सारे ज़खीरे प्यार वाले


गर नहीं मिलता किसी दिल मे ठिकाना


 


टूट जाते हैं शज़र जब आँधियों से


फिर परिंदों को नहीं मिलता ठिकाना


 


जो लिखा तक़दीर में मिटता नहीं


हर अदा में ज़िंदगी हो शायराना


 


मौत की तारीख़ होती है मुक़र्रर


ज़िंदगी ये सोचकर ही आज़माना


 


मोह क्या करना सुनहरी तीलियों से


ये दिखावे का कवच है टूट जाना।


     अर्चना द्विवेदी


    अयोध्या


दयानन्द त्रिपाठी

सुहानी शाम होते ही दलान पे खड़ी होगी,


टहलते ही सही हमारी राह देखती होगी।


 


सुबहे शाम का सपना बड़ा मोहक रहा होगा,


आइना देख के वो हर बार सजती होगी।


 


जब़ मेरा ज़िक्र उसके ख्वाब में हुआ होगा,


आँखों के अश्क सी पिघलती होगी।


 


ख्व़ाब दिल में सजा कर रखा होगा,


तमाम दुआएं फलती - फूलती होंगी।


 


ठंडी हवाओं ने तुझको प्यार किया होगा,


उसमें हमारी यादों की आरज़ू महरती होगी।


 


रचना गीतिका :-


दयानन्द त्रिपाठी


महराजगंज उत्तर प्रदेश।


अविनाश सिंह

*हाइकु:-पिताजी संबंधित*


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पिता हमारे


है चाँद और तारे


लगते न्यारे।


 


पिता महान


दे वो जीवन दान


करो सम्मान। 


 


पिता का प्यार


न दिखता हमेशा


है एक जैसा।


 


मुश्किल कार्य


हो जाते है आसान


पिता के साथ।


 


घर की नींव


भोजन का निवाला


जुटाये पिता।


 


पिता का रूप


अदृश्य महक सी


चारों तरफ।


 


पिता दुलारे


करे मार्गप्रशस्त


गुरु समान।


 


पिता की डाँट 


सफलता का राज


रखना ध्यान।


 


घर की शान


रखे सभी का ध्यान


करो सम्मान।


 


*अविनाश सिंह*


*8010017450*


विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग

दूर बहुत है लक्ष्य


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दूर बहुत है लक्ष्य परन्तु रूक मत जाना,


रूक जाएं तो बहुत कठिन है उसको पाना ।


 


श्रम से बहे स्वेद की धारा यही ठीक है,


नही काम आता जीवन मे कोई बहाना।


 


बदल वृत्ति को त्याग पाप की छाया को,


नही सरल है इन चीजों का भार उठाना।


 


व्यथा भूख की कभी कहां सह पाया कोई,


अगर हो सके तो भूखे की भूख मिटाना ।


 


जिन रिश्तों पर आशाओं के दीप जले,


छोड़ मनुज उपक्रम से अपने उसे बुझाना।


 


जिनके पांव धरातल पर नही टिके कभी भी,


उसे पड़ेगा समरांगण मे मुहकी खाना ।


 


विजय कल्याणी तिवारी


बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-878


सुषमा दिक्षित शुक्ला

ये मातृ भूमि का वन्दन है 


 


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है । 


हम सब तेरे रखवाले मां,


ये माँ बच्चों का बंधन है।


 ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनन्दन है ।


तेरी आन न जाने पाये ,


तुझपे जान लुटा देंगे ।


तेरे चरणों में लाकर के ,


शत्रू शीश झुका देंगे ।


ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनंदन है ।


हम सब तेरे रखवाले मां,


 ये मां बच्चों का बंधन है ।


चंदन जैसी तेरी ममता ,


 है रखनी तेरी शान हमें ।


अगर जरूरत पड़ी वक्त पर,


 न्योछावर है प्रान तुम्हें ।


ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनंदन है।


 हम सब तेरे रखवाले ,


मां ये मां बच्चों का बंधन है ।


मां तेरा क्रंदन असहनीय ,


ऐ! मातृभूमि तू प्यारी है ।


हम तेरे प्यारे बालक हैं,


 तू हम सब की फुलवारी है ।


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है ।


हम सब तेरे रखवाले मां ,


ये माँ बच्चों का बंधन है ।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रूणा रश्मि "दीप्त"

रूणा रश्मि "दीप्त"


Runa Rashmi


B.Sc. Chemistry honours


B.Ed.


M.A. Hindi


--अभिरुचि: कविताएं, लघुकथा और आलेख लेखन (हिन्दी एवं मैथिली)


-- महिला काव्य मंच की सक्रिय सदस्य।


-- विभिन्न आनलाइन काव्य प्रतियोगिताओं में सक्रिय सहभागिता एवं श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में निरंतर सम्मानित।


-- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में रचनाएं प्रकाशित


-- दो साझा काव्य संग्रह प्रकाशित


--दो एकल काव्य संकलन प्रकाशित


-- दो साझा काव्य संग्रह प्रकाशनाधीन


--सम्मान :


1. आगमन काव्योत्सव एवं सम्मान समारोह


2. आगमन स्थापना दिवस एवं सम्मान समारोह


3. प्राइड आफ वीमेन अवार्ड, 2019


 


runa.rashmi@gmail.com


 


M.no. 9931190744


*********


1.तांटक छंद


##########


 


मुरलीधर कान्हा


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आओ कान्हा मुरली लेकर, संग तुम्हारे मैं झूमूँ,


संग गोपियों राधा बनके, वृंदावन में मैं घूमूँ।


 


धुन में तेरी डूबूँ ऐसे, सुध बुध अपनी मैं भूलूँ,


बावरिया सी गीत सुनाऊँ,वन वन मीरा सी डोलूँ।


 


गिरिवरधारी, कृष्णमुरारी,गोकुल के तुम ग्वाले हो,


नंद दुलारे, मुरलीवाले, मन के तुम मतवाले हो।


 


मात यशोदा के तुम लाला, माखन खूब चुराते हो,


झूठी मूठी कसमें खाते, फिर भी मन को भाते हो।


 


ग्वालबाल सब संगी साथी,गोपिन को भी प्यारे हो,


राधा रानी को तुम भाते, जग में सबसे न्यारे हो।


 


पापी और अधर्मी के तो, तुम बनते संहारक हो,


धर्म डगर पर चलने वालों,के तुम बनते तारक हो।


                                       ©️®️


                                 रूणा रश्मि "दीप्त"


                                   राँची , झारखंड


 


 


2.दोहे


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बेबस मजदूर


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बंद हो गए काम सब, बैठे सब मजदूर।


हैं अपनों से दूर ये, मिलने से मजबूर।।


 


पैदल ही सब चल पड़े, वाहन मिला न कोय।


 देख लिया है दूर तक, साधन दिखा न कोय।।


 


इन बेबस लाचार पर, पड़ी वक्त की मार।


फैलाओ नहि संक्रमण, कहती है सरकार।।


 


जाना संभव है नहीं, वापस अपने प्रान्त।


जाने कब होगा यहाँ, बंदी का अब अन्त।।


 


भोजन बिन कैसे रहें, हम लाचार गरीब।


किंतु कमाने का नहीं, सूझे कुछ तरकीब।।


 


जीवन कटता आस पर, हैं जो दानी लोग।


कृपा करें वे लोग तब, मिलता भोजन भोग।।


 


संकट के इस काल में, पता चला है आज।


मानवता इंसानियत, से है भरा समाज।।


                          ©️®️


                       रूणा रश्मि "दीप्त"


                        राँची , झारखंड


 


 


 


 


3. छंदमुक्त कविता


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अमन


*****


अमन की बात करते हैं,


लिए तलवार हाथों में।


कहो अब शांति हो कैसे,


है जब अंगार बातों में।


 


दिखे बस स्वार्थ ही अपना,


वतन की फिक्र ना कोई।


करें दुष्कर्म ये ऐसे,


कि माता भारती रोई।


 


करें जाग्रत इन्हें मिलकर,


चेतना शून्य है इनकी।


सिखा दें राह जीने की,


बढ़े सौहार्द्रता जग की।


 


प्रेम की लौ जले दिल में,


बुझे नफरत की चिनगारी।


बढ़ा दें नेह हर दिल में


बनें ये भाव उद्गारी।


 


अमन होगा तभी जग में,


सुकूं औ चैन पाएंगे।


बढ़ेगा भाइचारा भी,


गीत उल्फत के गाएंगे।


                     ©️®️


                 रूणा रश्मि "दीप्त"


                   राँची , झारखंड


 


4. छंदमुक्त कविता


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गीत, गजल और कविता


******************


व्यक्त हो जब भाव लय में, गीत होता है वही।


काफिया रदीफ के संग, गजल बनता है सही।


 


शब्द संयोजन उचित हो, और सुंदर हो चयन।


और फिर अभिव्यक्ति करते, हम सदा ही कर मनन।


 


शब्द लड़ियों में पिरोकर, गीतमाला गूँथते।


गीत कह लो या गजल ये, मन सभी का मोहते।


 


दर्द-ए-दिल हो बयां या, दास्तां उल्फत भरी।


गीत-गजलों में सदा ही, बात सबने है कही।


 


जोश है भरना दिलों में, या दिखानी भक्ति है।


भाव कविता से जगा दें, यही इसकी शक्ति है।


 


संग ले अहसास अपने, आ गए हम भी यहाँ।


भाव शब्दों संग मिलकर, गीत बनते हैं जहाँ।


                             ©️®️


                         रूणा रश्मि "दीप्त"


                          राँची , झारखंड


 


5. छंदमुक्त कविता


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मेरे प्रियवर


**********


तुम हो मेरे चंदा प्रियवर


और मैं तेरी चाँदनी।


हर धड़कन का राग तुम्हीं हो,


मैं हूँ तेरी रागिनी।


 


जीवन में संगीत तुम्हीं से,


तुमसे ही हैं गीत मेरे।


मेरे गीतों के बोलों में,


बसते हो मनमीत मेरे।


 


सुदृढ़ तरुवर हो तुम गर तो,


मैं हूँ शाखा मतवाली।


कोमल नन्हीं दूब अगर मैं,


तुमसे मेरी हरियाली।


 


तुम सुरभित हो पुष्प अगर तो


मैं मँडराती तितली हूँ।


इन्हीं सुवासित वायु के संग,


ढ़ूँढने तुमको निकली हूँ।


 


मेरे मन का दीपक हो तुम,


मैं दीपक की बाती हूँ।


अँधियारी काली रातों के,


तुम ही हो मेरे जुगनू।


 


मिलन हमारा ऐसे जैसे


सागर से नदियाँ मिलतीं,


जुदा न होंगे एक दूजे से,


हर धड़कन बस ये कहती।


                         ©️®️


                 


                    राँची , झारखंड


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार अनिता मंदिलवार सपना

अनिता मंदिलवार 'सपना'


जन्म व जन्मस्थान~ 04 फरवरी


बिहार शरीफ, जिला नालन्दा 


*शिक्षा ~- स्नातकोत्तर (वनस्पति शास्त्र, हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य , पीजीडीसीए, बी•एड), 


विशेष- वाणी सर्टिफिकेट 


*संप्रति* ~ व्याख्याता जीवविज्ञान 


शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय असोला, अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़


*लेखन विधा* ~गद्य एव पद्य (कविता, ग़ज़ल, नाटक, रूपक, लेख, कहानी, लघुकथा, हाइकु, तांका, चोका)


 


*प्रकाशित पुस्तकें* ~सृजन समीक्षा, जीवन के रंग-दोहों के संग, सपनों की उड़ान, सच का दीपक, बसंत तुम आए क्यों, काव्यमेध, सपना की काव्यांजलि, स्वप्न सिंदूरी 


 


संपादन-


1. अतिथि संपादक-गुलमोहर काव्य संग्रह 


2. सह संपादक- ये दोहे बोलते हैं


3. संपादक- कुण्डलियाँ यूँ बोलती हैं 


4. संपादक -अमलताश - काव्य संग्रह 


5. संपादक- प्यार का जन्म- कहानी संग्रह 


 


*प्राप्त सम्मान* ~छत्तीसगढ़ रत्न सम्मान 2019, नेशनल एक्सीलेंस अवार्ड, इन्टरनेशनल आइकन अवार्ड 2020 वुमन आवाज अवार्ड 2018लक्ष्मीबाई मेमोरियल अवार्ड 2019 के साथ लगभग 300 सम्मान 


 


*संपर्क सूत्र* ~98265 19494


ईमेल- anita.mandilwarr1@gmail.com 


 


 


रचनाएँ-


 


1.मनहरण घनाक्षरी 


 


श्याम रंग रंगा आस,


सतरंगी मधुमास,


सुगंध पुष्प सुवास,


गीत कोई गाइए ।


 


आज यहाँ मरूथल,


हुआ देखो जल-थल,


बह रहा कलकल,


मेघ बन जाइए ।


 


बाँध गया मन मेरा, 


मोह नहीं छूटा तेरा,


गली गली करे फेरा,


प्रीत छलकाइए ।


 


झूम झूम गाये रहे,


नाचे इठलाय कहे ,


जीवन उमंग बहे,


रंग बरसाइए । 


 


 


2. प्यासा पंछी


 


आए पावस जो 


रस बूंद लिए 


चातक को मिला


जीवन दान 


जीने के लिए


कोयल के 


मधुर गान


कण-कण में 


संचार लिए


दूब हँसे, 


फूल खिले


प्यासे पंछी को 


नीर मिले


उड़ता फिरे 


जाने कहाँ 


सताये पीड़ा 


अंतर्मन की


शाखों से टूटे, 


पीले पत्ते 


वैसा ही है हाल मेरा


टूटी अभिलाषा, 


घोर निराशा


सपना बिखरा, 


दीपक बुझे ।


 


नवगीत


 


अंदर भरे हैं हलाहल


अवसादों के पार हुई ।


अश्रु आचमन करते रहते


अंतर्मन तार तार हुई ।।


 


तन मन एक नदी जैसे


उतर रही धीरे धीरे धीरे 


प्राण बसती धमनियों में 


डूब रही तीरे तीरे


फूल बन गए सख्त पत्थर 


मानवता की हार हुई ।


 


दिवस आये हैं कराहते


कलप रहा देखो तन मन


याद आये अब न कोई


जल रहे जैसे भू अगन


सुख दुख अब आँखमिचौली 


बीते दिन अब चार हुई ।


 


पैरों की पायल चुप है


जंजीरें बोल रही है


जीवन का भरोसा पाकर 


बंद द्वार अब खोल रही है


खिले जो मुस्कान अधर पर


स्वप्न सभी साकार हुई ।


 


अंदर भरे•••


अवसादों के•••••


 


 


अनिता मंदिलवार सपना


 


4.नवगीत


 


अश्रु बन भावनाएँ टूटे


शब्द करे दावा


उर पीड़ा बाहर फूटे


बहती बन लावा ।


 


शब्द कैसे हों खामोश


ह्रदय अनुभूतियाँ भर कर


शताब्दियों के प्रवाह से


जीवन धारा से लड़कर 


 


अस्थियाँ भी देह से छूटे


संसार छलावा 


उर पीड़ा बाहर फूटे


बहती बन लावा ।


 


खुशियों का मेला लगता


उसे हम कभी कह न सके


दुख की बस सौगात मिली 


उसे हम यहाँ सह न सके


 


समय यहाँ हाथ से छूटे


क्यों अब पछतावा 


उर पीड़ा बाहर फूटे


बहती बन लावा ।


 


शब्द पत्थर पर बह घिसे


देखो लहू गीत गाते हैं 


याद रहा निर्मोही पल


होंठ सिल जहाँ जातें हैं 


 


सत्य यही बाकी सब झूठे


क्यों यहाँ दिखावा 


उर पीड़ा बाहर फूटे


बहती बन लावा ।


 


क्षितिज भी शून्य देख रहा


अंबर तिमिर वरण सा है


संसार का ऐसा कोना


अब तक नहीं किरण सा है


 


मरीचिका बन "सपना" टूटे


रिश्तों का धावा 


उर की पीड़ा बाहर फूटे


बहती बन लावा ।


 


5. मीत मेरे बन जाते तुम तो


गीत मेरी तब पूरी होती ।


 


सागर सी गहरी प्रीति यहाँ 


तेरे प्रीति में गाती रहूँ 


यादें तेरी लिपट बेल सी


नवगीत मैं भी पाती रहूँ 


गीत मेरे सुन पाते तुम जो


प्रीत मेरी तब पूरी होती ।


 


आज कितना विवश हूँ मैं 


पंख मिलते जो उड़ती रहूँ 


नैना मेरे जो सजल हुए 


राहों पलकें बिछाती रहूँ 


रीत सिखलाते प्रीतम तुम जो


जीत मेरी तब पूरी होती ।


 


अधरों पर जीवन का अमृत


एक तुम्हारा रूप नयन में 


मिलते हार या जीत "सपना"


आप ही बस मेरे चयन में 


मन के मीत नहीं मिलते तो


बिन तुम दिवस अधूरी होती ।


 



व्याख्याता (जीवविज्ञान)


अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सुश्री उषा लाल

कवयित्री 


पिता का नाम-श्री चन्द्र प्रकाश 


माता का नाम-श्रीमती शान्ती देवी 


पति का नाम- श्री अनिल लाल


स्थायी पता - 8/3बैंक रोड


                   विश्व विद्यालय परिसर


                    इलाहाबाद ,


                    211002.


जन्म स्थान - फ़ैज़ाबाद , उत्तर प्रदेश


मोबाइल नम्बर- 9451057829


शिक्षा - एम.एससी.(जन्तु विज्ञान) बी.एड


व्यवसाय- पाठन


प्रकाशित रचनायें - २ काव्य संकलन


 


(१) है कौन चिरंजीवी 


 


मैंने जीवन से पूछा जब


पल बचे शेष कितने मेरे ? 


उसने उल्टा यह प्रश्न किया


जो मिले तुम्हें वह कहाँ गये ?


 


मैं डूबी असमंजस में यह 


लेखा जोखा करने बैठी 


कुछ समझ नहीं पायी लेकिन 


ये पूँजी कहाँ गवाँ बैठी !!


 


कुछ दे मुस्कान ख़रीदी थी


कुछ देकर आँसू लायी थी 


कुछ बिना मोल ही व्यर्थ गये 


कुछ गिरवी मैं रख आयी थी !


 


कैसे हाथों से फिसल सभी


मुझको रीता करते आये


अब लगा शेष वह राशि हुयी


जिसको अथाह कहते आये !


 


मैंने फिर कहा ,"सुनो !मुझको


कुछ पल तुम और अभी दे दो"


हँस कर बोला जीवन मुझसे


"जो पास तेरे उनको जी लो।"


 


"कुछ पल देकर मुस्कान एक


रोते अधरों पर फैला दो


कुछ दे कर ,बोझ किसी काँधे 


का अपने ऊपर ला देखो !


 


 है कौन यहाँ पर चिरंजीव 


सब के पल चुकते जाते हैं


हर पल ख़ुद पर न्योछावर कर


हम जीवन व्यर्थ गँवाते हैं !!


 


             (२) कलम का विद्रोह 


 


आज क़लम विद्रोह कर उठी


बोली तुम झूठा लिखती हो !


किस युग की बातें करती हो


सच पर क्यूँ परदा ढकती हो ! 


 


देखो दुनिया बदल रही है


प्रेम - राग सब मिथ्या ही है


भाई चारा कहीं खो गया 


नातों की बुनियाद हिली है !


 


याद नहीं किस युग की गाथा


जब 'रसखान', 'श्याम' रंग रंगे,


'अकबर' के प्रासाद कक्ष में


होते 'कृष्ण जन्म' के जलसे!


 


नामों से 'पहचान' जान कर


क्यूँ बन जाते हैं अंगारे ?


कब हिन्दू या मुस्लिम बन गये


इक 'आदम' के वंशज सारे !


 


कैसा यह उन्माद बढ़ रहा


कौन इसे है यूँ भड़काता?


छूने भर से धर्म भ्रष्ट हो 


कैसा है कच्चा यह नाता ? 


 


हो क़ुरान , गीता या बाइबिल 


नहीं किसी की सीख घृणा है


हर मज़हब का एक सूत्र है


मानवता का धर्म बड़ा है !


 


बस कर दो !अब बस भी कर दो!


मज़हब को मत शस्त्र बनाओ,


जात- धर्म का तमग़ा फेंको 


"होमों सेपियन " ही कहलाओ”!!


 


            (३)गरिमा लौटानी होगी


 


द्वार बन्द कर , चक्षु मूँद कर,


   चिन्तन से क्या होगा!


बाहर आकर तुम्हें बहुत


   परिवर्तन करना होगा!!


 


गति है जिसमें उसको बस


   एक राह दिखानी होगी ,


स्थिर है जो उसमें


   नयी ऊर्जा लानी होगी!


 


जिस जीवन की मात्र कल्पना


    तुम्हें कँपा जाती है


कितनी कलियाँ नित्य वहीं


    बिन विकसे मुरझाती हैं!


 


रोता और सिसकता बचपन


    है कलंक हम सब पर


बढ़कर उन सब अधरों पर


   मुस्कान खिलानी होगी!


 


  अरे स्वयम् को रहे संजोते


     हैं मनुष्य हम कैसे?


  मानवता को एक


      नई पहचान दिलानी होगी!


 


 देश ,जाति और रंग भेद से


     ऊपर उठ कर देखो


जीवित रहने की गरिमा 


    जंग में फैलानी होगी!


 


कुत्सित कर डाला है हमने


    भू तल को इस जग को


इसकी खोई सुन्दरता 


      हमको लौटानी होगी!!


 


            (४) हर रोज़ नयी मंज़िल मिलती


 


रोज़ - रोज़ की भाग दौड़ में 


सदा यही कोशिश रहती है,


किस - किस से आगे हो जाऊँ 


तलब यही हर पल उठती है !


 


थी दृष्टि उन्हीं पर गड़ी रही


जो मुझसे आगे निकल गये


बस कैसे उन्हें पछाड़ सकूँ 


दिन इसी जुगत में शेष हुए!


 


रुक कर इक पल पीछे देखा


थे कितने बन्धन टूट गये


मैं होड़ लगा भागता रहा


और दृश्य मनोरम छूट गये !


 


फिर सोचा सब का साथ रहे


थी नहीं मेरी क़िस्मत ऐसी


पर " अन्तर्मन " से विलग हुआ


प्रभु ! ये विडम्बना है कैसी ?


 


कितनी कोमल अभिलाषायें


मेरे अन्तर में सिसक रहीं


हैं कितनी मधुरिम इच्छायें


जो बन्द द्वार में सिमट गयीं!


 


अब रुको ठहरते हैं कुछ पल 


हम किसी घनेरे वृक्ष तले


स्मृतियों के कुछ पृष्ठ पलट


मन को थोड़ा हर्षित कर लें!


 


कुछ गति भी कम करनी होगी


है कहाँ पहुँचने की जल्दी?


हर इक पल में ही 'जीवन' है


हर मोड़ नयी मंज़िल मिलती !!


 


                    (५)जीवन का लेखा चित्र


 


जीवन का लेखाचित्र खींच


मैं ठिठक गयी यह सोच तनिक


कि बैठ कभी कुछ छाँव देख


खुद से दो बातें थी करनी !


 


था वक़्त कहाँ तब पास मेरे


जब थम कर यह मन में कहती


कि कुछ पल रुक कर सुस्ता लो


है आगे मुश्किल राह बड़ी !


 


इस आशा से मन पुलकित था


ठहराव कभी पा जाऊँगी 


न सोच सकी, बचपन यौवन की


गलियाँ फिर न पाऊँगी!


 


एक जाल था वह - रेशम का सा


जो रहा जकड़ता दिन प्रतिदिन 


जिसमें जो भी एक बार फँसा 


वह चक्रव्यूह में जाता घिर !


 


वह लोभ मोह माया ममता 


कि अगणित गाँठें नित बंधती 


था नहीं सहज रहना बच कर


फिर मैं पापी कैसे बचती


 


मन में मेरे यह भाव उठे 


है सदा शीर्ष पर कौन टिका 


ऊपर -नीचे जो लहर चले 


वह ही लक्षण है जीवन का !


 


यह काल चक्र चलता रहता


हैं कितने ही आते जाते 


चल देंगे हम सब हाथ झाड़ 


पूरी कर के अपनी साँसें!


 


 


 


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला

नटखट बचपन


 


अक्सर मुझको नटखट बचपन,


 याद बहुत आता है ।


 


माता का अनुपम दुलार ,


जो रोते हुए हंसाता है ।


 


कितना गहरा प्यार पिता का,


 जिसकी कोई माप नहीं थी ।


 


हम सब पर न्योछावर थे वह,


 अपनी तो परवाह नहीं थी ।


 


सखी सहेली वह बचपन की,


 जिनके साथ खेलते थे ।


 


भाई बहनों का संग खाना,


 साथ-साथ जब सोते थे ।


 


वह सावन के झूले सुंदर ,


वह बचपन की प्यारी होली।


 


 लुक्का छिप्पी, गुड्डा गुड़िया, 


जो थी सखियों संग खेली ।


 


बाग बगीचे पंछी नदिया ,


याद अभी भी आते हैं।


 


 वो टेढ़े मेंढे गांव के रस्ते,


 मन में घर पहुंच आते हैं ।


 


वह अतीत की सारी यादें ,


हैं मस्तिष्क पटल पर रहती ।


 


जब मन करता उन यादों में,


 जाकर हूं उड़ती फिरती ।


 


नए जन्म में फिर से वह सब ,


क्या मुझको मिल पाएगा ?


 


भोला भाला नटखट बचपन ,


लौट कभी क्या आएगा ?


 


अक्सर मुझको नटखट बचपन,


 याद बहुत आता है।


 


 माता का वह अनुपम दुलार ,


जो रोते हुए हंसाता है


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


सुषमा दिक्षित शुक्ला

मानवता का मर्म समझ लो


 


 


 मानव धर्म समान जगत में ,


कोई धर्म नहीं है ।


 


मानव सेवा से बढ़कर ,


तो कोई कर्म नहीं है ।


 


मानवता का मर्म समझ लो ,


यही धर्म की परिभाषा ।


 


करो सार्थक इस जीवन को,


 यही प्रभु की अभिलाषा ।


 


बड़े भाग्य मनुजत्व मिला है,


 इसको व्यर्थ गंवाना ना ।


 


पावन कर्म करो हे! मितवा,


 जीवन को भटकाना ना ।


 


 यही कर्म है यही धर्म है ,


यह ही कर्तव्य तुम्हारा है ।


 


मानवता के पावन पथ पर ,


ही गंतव्य तुम्हारा है ।


 


मानवता का सेवक ही तो,


 प्रभु सेवा का भागी है ।


 


यही मर्म जो समझ सका है ,


वह प्रभु का अनुरागी है ।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार हास्य कवि विशेष शर्मा


शिक्षक एवं कवि


पता ग्राम बेलवा बजरिया नकहा लखीमपुर


शिक्षा स्नातक बीएड बीटीसी टीईटी पांच बार


सेवा प्राथमिक विद्यालय सिसौरा फूलबेहड खीरी


शौक काव्य सृजन काव्यपाठ


बच्चों को शिक्षित करना


उपलब्धि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विभिन्न काव्य मंचों पर काव्यपाठ एवं शताधिक सम्मान एवं पुरुस्कार।


विधा अवधी एवं खडी बोली मे हास्य व्यंग्य।


कृति *वटवृक्ष*


स्वरदूत 9839737993


8887628508


 


मेरी कुछ कविताएं


 


खेतन खरिहानन औ बागन बगीचन मा


देखेन तौ याक बात भाइ गई मन ते।


गांव केर गोरी ई छोरी चकोरी का


कैसेउ पटाइ लियो कौनेउ जतन ते।


हम सा लफंटू वा बिना ढूंढे पाइ गई


खूबइ अघाइ का निचोरि लीसि धन ते।


जहां गई ब्याही वा हुंऔ तौ रही नाइ


खाइसि पीसि हमसे औ चली गई अन्ते।।


 


😁😁😁😁😁😁😁


 


 


राम लाल जोखे पैरु डगरु मुरारीलाल


मर्री छोटकन्नी मुन्नी और नाउ मीना है।


दुइ केर नाउ साहब जौन चहौ लिखि लियौ


नामकरण इनका भवा अबही ना है।


हम कहा ई सब का तुमरेन औलादें है


मुसकाइ बोली सब भगवानै दीना है


बरहें का पेट महिंया देखतै बौराइ गेन


हाय राम यू कौन श्रमिक का पसीना है।।


😁😁😁😁😁😁😁


सुखीराम कहै लागि सुनौ भइया दुखीराम


चिंतन की बातै कछू आई है ध्यान मा।


बात या बताओ का मौत सबकी निश्चित है


दुखीराम बोले यू तौ तय है विधान मा।


सुनतै यू सुखीराम के सुर सुखाइ गए


बोले यहै चिंता है बसी आठौ याम मा


मरत मरत सबसे बाद मरी जौन मनई


ऊका फूकै या गाडै को लइ जाई श्मशान मा


 


😁😁😁😁😁😁


 


सुखीराम जी की घरवाली हेराइ गई


चारिउ वार ढूढै लाग पूरे जी जान से।


राह महिया मंदिर देखना श्री राम जी का


रोइ रोइ विपदा सुनाइन भगवान से।


श्री राम बोले बीबी हमरिउ हेरान रही


वनवास दौर महिया जंगल सुनसान से।


ताकी खोज कीन रहै पवनपुत्र बजरंगी


पास ही मा मंदिर है मिलौ हनुमान से।।


 


😁😁😁😁😁😁


झोरिया मा कुर्ता कै लाठी मा टांग लीन


जूता बडकन्ना कै पहिरि लीन पांव मा।


कोई से सलाम ठोंक रोक रोक राम राम


यहै करत आइ गए पाडे के गांव मा।


द्वार याक पहुंचे यक बूढ़ा भिखारी जानि


भीख लाईं सुखीराम आइ गए ताव मा।


बोले या भीख नाइ हमका सब वोट दियौ


ठाढै हन अबकी प्रधानी के चुनाव मा।।


 


 


✍️ विशेष शर्मा


 


😁😁😁🙏🙏🙏


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सौदामिनी खरे "दामिनी"


पति- स्व0अशोक खरे


जन्म - 25 अगस्त 


स्थान - रायसेन मध्यप्रदेश 


शिक्षा-स्नातक ( हिन्दी, )


विधा - गद्य, पद्य लेखन


लघुकथा,कविता,नवगीत,


समसामयिक ,निबंध, सवैया भजन,दोहा ,गजल,इत्यादि।


प्रकाशन - साझा संकलन पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशन ( प्रणाम पर्यटन, साहित्य समीर,सरिता संवाद,मेरी संगिनी, कर्मनिष्ठा,शब्दलोक इत्यादि पूर्वांचल प्रहरी समाचार पत्र )


 सम्मान पत्रःविभिन्न वाटसप साहित्यिक मंच द्वारा ।


 


व्यवसाय - अध्यापन


पता -  अशोक नगर कालोनी बार्ड नम्बर-13म0न026


थाना- रायसेन 


मध्यप्रदेश 


मो0 9753152005


ईमेल saudamini50@gmail.com


(सौदामिनी खरे "दामिनी")


 


 


गीतिका


212 212 212 212


*ख्वाब कितने ही उसने दिखाये मुझे,*


बात वो जमाने की बताये मुझे।


 


हर घड़ी साथ मैं तो रहूँ मोहना,


आपसे दूर रहना सजाये मुझे।


 


रात की चाँदनी देख आसमां में सजी,


रास मधुवन में कोई दिखाये मुझे।


 


पूछ तो समा सुन्दर है क्यों यहाँ, 


गीत मुरली के तूने सुनाये मुझे।


 


नाव मझधार में लहराय है मेरी,


राह देखू आके तू बचाये मुझे।


 


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे "दामिनी" रायसेन मध्यप्रदेश।


 


कविता:-


 


दिन रात देता पहरा वो सीमा का सिपाही।


वतन पे जा लुटाता वो सीमा का सिपाही ।


होली हो दिवाली, राखी हो या बैशाखी।


ईद पर भी देता पहरा वो सीमा का सिपाही।


शीत हो शिशिर हो ठिठुरने से भरे दिन हो।


बर्फीली सरजमीं पर वो सीमा का सिपाही ।


झाडियों की चुभन हो काँटो की जमी हो।


दलदल में भी लड़ता वो सीमा का सिपाही।


बादलों से हो बरसा बिजलियां कौंधती हो।


तूफानों से भी लड़ता वो सीमा का सिपाही ।


आँधी हो या लू हो जला देने वाली उमस हो।


शोलो से खेलता है वो सीमा का सिपाही ।


आपदा हो या महामारी चाहे दंगा फसाद हो।


खड़ा दुश्मन के सीने पे सीमा का सिपाही।


अपने हो पराये या सगे सम्बन्धी भाई हो


सब से रिश्ता जोड़े वो सीमा का सिपाही ।


जय हिंद जय भारत, वंदे मातरम् गान हो।


तिरंगे पे जा लुटाता वो सीमा का सिपाही ।


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे "दामिनी "खरे रायसेन मध्यप्रदेश।


 


 


गीतः-


 


 


कान्हा देते हो क्यो अपनी सफाई।


आज पकडे गये हो कन्हाई ।


मेरी दही की गघर फोड़ डाली। 


मै निकली थी मथुरा नगरिया।


सर पे लेकर दध की गगरिया ।


आज पकड़े गये हो कन्हाई-------


नंद भवन मे लगी है अदालत ।


राधा रानी ने की है वकालत।


जज बनी आज देखो नंदरानी।


टूटी मटकी का मोल चुकायी।


आज पकड़े गये हैं कन्हाई ------'


सारी सखियां बनीआज दुश्मन ।


मेरे लाला की करती शिकायत।


सारे जग मे नही कोई तुझसा।


मेरा प्यारा सलौना कन्हाई-------


आँसू आंखो में भर भर के रोई।


नजर तुझको न लगे लाल कोई।


पूरे जग निराला है मोहन।


तेरी राधा से करूँगी सगाई-------


नंद बाबा सुनो आज मेरी ।


मेरे लाला की सूरत है भोली।


नही दहिया की लाला निहोरी।


तेरे लिए घणी माखन बनाई-------


श्याम सुन्दर की शोभा निराली।


गल बैजंती माला सुहाती।


नील वदन रंग राती।


उस पर मोर पंखी लगाई--------।


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे "दामिनी" रायसेन पर 


 


सवैया


 


 


उठो राम लल्ला जगा रही तोरी मैया ।


लड्डू , पेडा माखन, मिश्री खाओ और मलैया।


भोर भयो सूरज उग आयो आई लाल किरण परछैया।


दशरथ नंदन मुख चूम रही कौशल्या लेय बलैया।


सुन्दर साँवरे मेरो लल्ला मेरी नैन तरैया।


भरत लखन शत्रु शूधन के बडे भैया।


अयोध्या के राजकुअंर है सारे जग के राम रमैया।


हृदय पुलक हुलसी कौशल्या भोर जगायो उठो राम बड भैया


या छवि ब्रम्हा विरंची निहारें होन लगे सुमन वृष्टि बरसैया।


दामिनी हृदय पुलक भये हैं सबके राम रखबैया।


 


 


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश 


 


भारत की नारी ये भारत की सुसंस्कृत नारी है।


सरल सुखद शांत शुभ्र शीतल शील धारी है।


यह भारत की नारी है।


सरित पावनी गंगा सी,नित बहती अविरल धारा है।


यह भारत की नारी है।


आशा अवंतिका अनुप्रिया अनंताआनंदी अंबिका अंबा है।


नियमा नित्या निद्रा नीरान्जना निर्भया निर्मला शुभकारी है।


यह भारत की नारी है।


गृहणी गर्विता गायत्री गौरी,गजाला गर्भिता गोपिका रानी है।


यह भारत की नारी है।


माधुरी मधुबनी माया मंदिरा सी,मीनाक्षी मृणालिनी मातेश्वरी है ।


यह भारत की नारी है।


कोमला कामिनी कृतिका काम्या सी,करुणा कृष्णा कालिका कृपाणधारी है।


यह भारत की नारी है।


चारु चंचला चपला चंद्रिका सी,चित्ता चित्रा चिरमयी चरणदासी है।


यह भारत की नारी है।


विनीता ,विषया ,वीरांगनाएँ विजया,


विभूति, विशाखा,विराटसाम्रराजयी है


भव्या, अभव्या, भवानी, भूमिका भगवती सी,


भरणी भार्या भगिनी भुवनेश्वरी भारती है।


यह भारत की नारी है।


 


 


 


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार एस के कपूर "श्री हंस"बरेली

एस के कपूर "श्रीहंस"


पता- 06,पुष्कर एन्कलेव।टेलीफोन टावर के सामने स्टेडियम रोड बरेली (ऊ प्र)।(243005)


 


आयु।70वर्ष


व्यवसाय।सेवानिवृत्त बैंक प्रबंधक.भारतीय स्टेट बैंक, बरेली मुख्य शाखा।वर्ष 2010


 


साहित्यिक कार्य।कविता।लेखन।मुख्य विधा. मुक्तक,छंद मुक्त (तुकांत), हाइकु, गद्य(आलेख)


विशेष उपलब्धि , 5000 से अधिक मुक्तकों की रचना अबतक,। कॅरोना के प्रति जागरूक करने के 30 कविताओं का सृर्जन।


विस्तृत वर्णन,,,,,,,,


 


1,,भारतीय हिंदी सेवा पंचायत,जनपद बरेली के जिलाध्यक्ष/व मंडल अध्यक्ष


 


1क/लगभग 15 सामाजिक ।साहित्यिक ।वरिष्ठ नागरिक।सांस्कृतिक संस्थायों से सम्बन्धित,मेंबर व वरिष्ठ पदाधिकारी के रूप में सहभागिता।


2... Pilibhit Jaycees के सचिव, अध्यक्ष के रूप में 1975 से 1977 तक कार्य ।


2.A संस्थापक अध्यक्ष।पीलीभीत मिडटाउन जेसीस।वर्ष 1986. ।स्टेट वाईस प्रेजिडेंट 1987. ।स्टेट ट्रेनर 1988. ।


एवमं


संस्थापक अध्यक्ष।सेवा निर्वत एस बी आई अधिकारी सामाजिक क्लब,बरेली।अध्यक्ष अक्टूबर2016 से अक्टूबर 2018 तक।वर्तमान में क्लब के सरंक्षक।क्लब द्वारा नियमित रूप से सामाजिक सेवा कार्य सम्पन्न ,में निरंतर सहभागिता।


 


3/दूरदर्शन ,आकाशवाणी बरेली,रामपुर पर कार्यक्रम प्रस्तुत किये व यूट्यूब ,वेब पोर्टल, इंडिया समाचार 24 टी वी , डी टी वी लाइव,अक्षरवार्ता, सुप्रसिद्ध e जर्नलस पर वीडियो, रचना ,आलेख प्रकाशित, प्रस्तुति।


4/अनेक पत्र पत्रिकाओं में रचनायें, आलेख प्रकाशित।


उदहारण।आई नेक्स्ट (अबतक 144 लेख) ।गीत प्रिया।परफेक्ट जौर्निलिस्ट।हेल्थ वाणी। रोहिलखण्ड*किरण।प्रेरणा अंशु। काव्यमृत ।काव्य रंगोली ।स्वर्ण धारा। प्रणाम पत्रिका व अनेक संस्थाओं की मासिक e पत्रिकायें।इंकलाब।एक कदम सहित्य कीं ओर।


विनायक शक्ति। आध्यात्मिक काव्यधारा, काव्यरंगोली और अन्य कई व स्टेट बैंक की अनेक *पत्र पत्रिकायों ,कलीग,सेकंड इनिंग्स,हमदोस्त,संवाद आदि में सैंकड़ों लेख व कविताएं प्रकाशित।


एवमं


सेलेक्टेड न्यूज़ ,बरेली,मासिक समाचार पत्र का संपादन मई 2014 से मई 2016 तक किया।


4आ।


साहित्य संगम संस्थान ,दिल्ली ,उत्तराखंड की ज़िया,


विश्व जन चेतना ट्रस्ट,काव्य रंगोली,अध्यात्म्य साहित्य काव्य धारा, काव्यामृत, व मानव सेवा क्लब व अन्य लगभग 10 संस्थायों द्वारा 300 से अधिक भौतिक व डिजिटल सम्मानपत्र ,स्मृति चिन्ह प्रदत्त।


5/क्विजमास्टर व कार्यक्रम संचालन में विशेष अभिरुचि व क्विज से सम्बंधित गेम्स कराने का लंबा अनुभव।कॉलेज ,संस्थायों में मोटिवेशनल लेक्चर के रूप में, कई बार कार्यक्रम प्रस्तुत।


6/सेवा निवृत्त प्रबंधक,


भारतीय स्टेट बैंक,


बरेली शाखा , ऊ प्र,(वर्ष जून 2010में)


7/शिक्षा।एम एस सी (रसायन शास्त्र),


सी ए आई आई बी (भाग 1)


8।चीफ आफ इंटरवियू बोर्ड।महिंद्रा बैंक कोचिंग।


बरेली में 2011से 2017 तक कार्य किया।


8अ।लगभग 20 सामाजिक, साहित्यिक, व्हाट्सएप्प ग्रुप्स का एडमिन।


9।ऊ प्र बुक ऑफ रिकार्ड्स द्वारा 14 अक्टूबर,2017 को ट्रॉफी।मैडल ।प्रमाणपत्र प्रदत्त


10,,,, 03 feb 2019 को एक outside मेंटर के रूप में एक पृथक बैंक पेंशनर्स क्लब (बरेली में ),की आधारशिला रखने में सहयोग प्रदत।


11.जिला विज्ञान क्लब, बरेली के कार्यक्रमों में निरन्तर निर्णायक की भूमिका निभा रहे हैं और अभी जारी है।


11a....सेवा काल के मध्य 30 से अधिक राजभाषा प्रतियोगिताओं 


में विजयी घोषित,,, प्रमाण पत्र,पुरुस्कार प्राप्त


12,विभिन्न स्कूलों कॉलेज में निम्नलिखित विषयों पर लेक्चर दिये हैं और जारी है।


(Topics of Lectures delivered)


 


How to prepare for competition and interviews


And corporate jobs


 


Situation analysis (case studies),


 unsuccessful to successful,


despair to hope.


 


Personality development


And many more similar lectures


 


Stress, time management


Effective public relations, public speaking


Image building,self confidence etc.


13......वेस्ट used सामान से खूबसूरत हैंडीक्राफ्ट ,डेकोरेशन आइटम बनाना।


 


एस के कपूर "श्री हंस"


बरेली(ऊ प)


मो 9897071046


मोब 8218685464


 


 


कविता-1


कॅरोना से जीत कर ही आना है।


 


रहोगे घर के अंदर तो


कॅरोना बाहर ही होगा।


वह फंस जायेगा जो


लोगों से दो चार होगा।।


जो घर में रह गया तो


समझो वह बच गया।


कुछ दिन संभल जाओ


फिर मौसमे बहार होगा।।


 


कॅरोना से दूर दूर रहना ही


जीत का मन्त्र है।


सावधानी ही केवल बचाव


का एक यन्त्र है।।


घर में वजह बहुत हैं मन


को बहलाने के लिए।


नहीं समझे समय से तो 


मानो मानवता का अंत है।।


 


खुद मत करो कोई भी इलाज


तरीका यह तो आत्मघाती है।


निर्देशों का उल्लंघन तो मानो


सीधा अपनी बर्बादी है।।


अकेले का नुकसान नहीं यह


चार को और है ले डूबता।


संभल कर चलने में ही तो


बसी जिन्दगी की आबादी है।।


 


125 करोड भारतीयों के


जीवन जान का सवाल है।


हमारी देश की अस्मिता और


इक पहचान का सवाल है।।


जीत कर आना ही है हमें


देश परंपरा मूल्यों की खातिर।


यह अब अपनी मातृभूमि की


आन,बान,शान का सवाल है।।


 


रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"


*बरेली।


मो 9897071046


          8218685464


 


कविता-2


पृथ्वी दिवस।


रोक लो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को।


 


नदी ताल में कम हो रहा जल


और हम पानी यूँ ही बहा रहे हैं।


ग्लेशियर पिघल रहे और समुन्द्र


तल यूँ ही बढ़ते ही जा रहे हैं।।


काट कर सारे वन कंक्रीट के कई


जंगल बसा दिये विकास ने।


अनायस ही विनाश की ओर कदम


दुनिया के चले ही जा रहे हैं ।।


 


पॉलीथिन के ढेर पर बैठ कर हम


पॉलीथिन हटाओ का नारा दे रहे हैं।


प्रक्रति का शोषण कर के सुनामी


भूकंप का अभिशाप ले रहे हैं ।।


पर्यवरण प्रदूषित हो रहा है दिन रात


हमारी आधुनिक संस्कृति के कारण।


भूस्खलन,भीषणगर्मी,बाढ़,ओलावृष्टि


की नाव बदले में आज हम खे रहे हैं।।


 


ओज़ोन लेयर में छेद,कार्बन उत्सर्जन


अंधाधुंध दोहन का ही दुष्परिणाम है।


वृक्षों की कटाई बन गया आजकल


विकास प्रगति का दूसरा नाम है।।


हरियाली को समाप्त करने की बहुत


बडी कीमत चुका रही है ये दुनिया।


इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र का नित


 असुंतलन आज हो गया आम है ।।


 


सोचें क्या दे कर जायेंगे हम अपनी 


  अगली पीढ़ी को विरासत में ।


शुद्ध जल और वायु को ही कैद कर


दिया है जीवन शैली की हिरासत में।।


जानता नहीं आदमी कि कुल्हाड़ी


पेड पर नहीं पाँव पर चल रही है।


प्रकृति नहीं सम्पूर्ण मानवता ही नष्ट


हो जायेगी इस दानव सी हिफाज़त में।।


रचयिता एस के कपूर श्री हंस


बरेली


 


 


वसुधैव कुटुम्बकम जैस


संसार की जरूरत है।।।


मुक्तक


 


तकरार की नहीं परस्पर


प्यार की जरूरत है।


 


हर बात पर मन भेद नहीं


इकरार की जरूरत है।।


 


मिट जाती हस्ती किसीऔर 


को मिटाने वाले की।


 


वसुधैव कुटुम्बकम जैसे


संसार की जरूरत है।।


 


रचयिता।।।।एस के कपूर


श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।


मोब नॉ 9897071046।।


8218685464।।।।।।।।।।


 


क्रोध और अहंकार(हाइकु)


 


क्रोध अंधा है


अहम का धंधा है


बचो गंदा है


 


अहम क्रोध


कई हैं रिश्तेदार


न आत्मबोध


 


लम्हों की खता


मत क्रोध करना


सदियों सजा


 


ये भाई चारा


ये क्रोध है हत्यारा


प्रेम दुत्कारा


 


ये क्रोधी व्यक्ति


स्वास्थ्य सदा खराब


न बने हस्ती


 


क्रोध का धब्बा


बचके रहना है


ए मेरे अब्बा


 


ये अहंकार 


जाते हैं यश धन


ओ एतबार


 


जब शराब


लत लगती यह


काम खराब


 


 


रचयिता।एस के कपूर


श्री हंस।बरेली


 


 


महिला दिवस


 


शीर्षक नारी, शक्ति भक्ति ममता का प्रतीक


मुक्तक माला


 


माँ का आशीर्वाद जैसे कोई


खजाना होता है।


 


मंजिल की जीत का जैसे


पैमाना होता है।।


 


माँ की गोद मानो कोई


वरदान है जैसे।


 


चरणों में उसके प्रभु का


ठिकाना होता है।।


 


 


अहसासों का अहसास मानो


बहुत खास है माँ।


 


दूर होकर भी लगता कि बस


आस पास है माँ।।


 


बहुत खुश नसीब होते हैं जो


पाते माँ का आशीर्वाद।


 


हारते को भी जीता दे वह


अटूट विश्वास है माँ


 


अच्छा व्यवहार बेटीयों से


निशानी अच्छे इंसान की।


 


इनसे घर की बढ़ती शोभा जैसे


उतरी परियाँ आसमान की।।


 


बेटी को भी दें आप बेटे जैसा


घर में प्यार और सम्मान।


 


जान लीजिए बेटियों के जरिये


ही आती रहमते भगवान की।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


 


नववर्ष


फसल चक्र ऋतु परिवर्तन का


संकेत है हिन्दी नव वर्ष।


नव रात्री के जयकारों से होता


व्याप्त सब में भक्ति हर्ष।।


सूर्य चंद्रमा दिशा परिवर्तन और


जुड़ी कृषकों की ख़ुशहाली।


विक्रमादित्य भगवान झूले लाल


से भीजुड़ा ऐतिहासिक स्पर्श।।


 


हिन्दी नव वर्ष नव संवत्सर तो


नये मौसम का आगाज है।


देवी मां औरआर्यसमाज कृपा व


मिला संस्कारों का साज़ है।।


क्या जनवरी अंग्रेजी वर्ष में है


कोई भी ऐसा परिवर्तन।


नव संवत्सर तो ५७ वर्षों की


लिए अधिक आवाज़ है।।


 


जनवरी नव वर्ष के साथ मनाये


अवश्य हिंदी नव वर्ष भी।


बधाई दें सबको नव संवत्सर


की अवश्य और सहर्ष भी।।


अपने पुरातन मूल्यों का हो 


अधिक से अधिक प्रसार।


कभी भूल नहीं पाये कोई इस


का महत्व और दर्श भी।।


 


हिंदी नव वर्ष की अनंत।असीम।अपार शुभकामनायों सहित।



मोब 9897071046


8218685464


 


 


सीमा शुक्ला अयोध्या

घनघोर श्यामल ये घटा


नभ में अलौकिक छा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा,


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


घन बीच चमके दामिनी,


वन में शिखावल नृत्य है।


तरु झूमती है डालियां,


वसुधा मनोरम दृश्य है।


 


झींगुर, पपीहा, मोर, दादुर,


ध्वनि हृदय हर्षा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा,


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


कल कल करें पोखर नदी,


सनसन चले शीतल पवन।


गिरती सुधा रसधार बुझती


तप्त अवनी की अगन।


 


सुरभित धरा खिल खिल उठी


हर पीर मन बिसरा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा,


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


तन को भिगोती बूंद ये,


मन भाव की सरिता बहे।


विरहन नयन में नीर हो,


कविमन सरस कविता कहे।


 


धानी चुनर ओढ़े धरा


सबके हृदय को भा गई।


रिमझिम गिरी बूंदे धरा


ऋतु वृष्टि की है आ गई।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

'शान्ति की खोज में' एक कविता 


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विधा- गीत 


 


 


विश्व में जगह-जगह बुद्ध की विपश्यना से।


क्या मिला राष्ट्र को पंचशील की स्थापना से। 


 


हम शान्ति ओम् शान्ति का मंत्र बोलते रहे, 


पर सदा विचलित हुए शत्रु की प्रवंचना से। 


 


परतंत्रता की त्रासदी हजार वर्ष झेलकर, 


उबर नहीं सके विश्व बन्धुत्व की कामना से। 


 


दूसरों के आतिथ्य हेतु हम द्वार खोलते रहे, 


पर क्या पता वो शत्रु है ग्रस्त हैै दुर्भावना से। 


 


आज सत्य शान्ति करुणा उदारता को भूल, 


आोत-प्रोत हो गये हैं राष्ट्रीयता की भावना से।


 


अब सतर्क हो गये हैं गगन जल थल में हम, 


शत्रु डर गया है अब युद्ध की सम्भावना से। 


 


मौलिक रचना- 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


महराजगंज, उ० प्र० 


मो० नं० 9919886297


डॉ बीके शर्मा

बड़ा एहसान किया तुमने


::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::


साहिल जो प्यार राहों में 


दिया तुमने |


इस काफिर पर 


बड़ा एहसान किया तुमने ||


बस इस इंतजार में 


जीता रहा हरदम |


कि आखिर बेवफा 


कह तो दिया तुमने ||


हवा ऐसी लगी


कि दवा काम ना आई |


 मोहब्बत में यह 


कैसा जख्म दिया तुमने ||


जब जब सताती रही 


यादें तेरी मुझको |


 बस यही सोचा कि 


याद किया तुमने ||


यह खत्म ना होगा


सफर मेरा तेरे लिए |


अगर एक पल भी 


प्यार किया है तुमने ||


 


 डॉ बीके शर्मा


उच्चैन , भरतपुर ,राजस्थान


कालिका प्रसाद सेमवाल

तुम्हीं सच बताओ मुझे मान दोगी


********************


तुम्हें गीत की हर लहर पर संवारूँ,


तुम्हें जिन्दगी में सदा यदि दुलारूँ,


तुम्हीं सच बताओ मुझे मान दोगी,


बहुत मैं चला हूँ बहुत मैं चलूंगा,


कहीं गीत बनकर तुम्हारा ढलूंगा,


तुम्हीं सच बताओ मुझे गान दोगी।


 


प्रणय की निशानी नहीं रह सकेगी,


भले यह जवानी नहीं रह सकेगी,


तुम्हीं सच बताओ मुझे प्रान दोगी,


हृदय में कहो या सुमन में बिठाऊँ,


तरसते नयन है कहाँ देख पाऊँ,


तुम्हीं सच बताओ कहां ध्यान दोगी।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


डॉ बीके शर्मा 

यह मेरा हक है


*************


नियति 


"रकवा" नहीं किसी का 


खूब जियो 


और


जीने दो


यह मेरा हक है ||


इस जगती में 


जो भी जीवनरस है


खूब पियो 


और


पीने दो


यह मेरा हक है ||


यह लबादा फटा नहीं 


जर्जर हृदय से अधिक 


खुद सीयो 


और


सीने दो 


"यह मेरा हक है"


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन ,भरतपुर ,राजस्थान


सुनीता असीम

गीतिका 


 


हिज्र के पालने में सुलाना नहीं।


आशिकी में हमें यूँ रूलाना नहीं।


*****


देख बढ़ती हुई दूसरों की खुशी।


आप अपना कभी दिल जलाना नहीं।


*****


 लो ग़रीबों की तुम तो दुआएँ सदा।


बेवजह ही किसी को दबाना नहीं।


**** 


जख्म अपने हमेशा रखो तुम हरे।


पर इन्हें दूसरों को दिखाना नहीं।


*****


टूट जाते हैं रिश्ते बढ़ें दूरियां।


ख़ार रिश्तों में अपने बढ़ाना नहीं।


*****


हो गईं हों अगर गलतियाँ कुछ बड़ी।


बात कोई बड़ों से छिपाना नहीं।


*****


दर्द-ए- दिल बढ़ा जा रहा है मेरा।


और इसको सुनो तुम बढ़ाना नहीं।


*****


खूब होते रहे हादसे शह्र में।


तुम मगर इनका बनना निशाना नहीं।


*****


रंजिशे ग़म बढ़े जा रहे इस क़दर।


बच रहा आज इनसे जमाना नहीं।


*****


सुनीता असीम


२२/६/२०२०


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