आशा त्रिपाठी

*हर भारतवासी अब चाहे,*


*मान और सामान देश का*।।


 


देश की माटी, देश का पानी


देश की थाती देश का धन हो।


नही रहे निर्भरता कोई ,


श्रमयोगी सा साधक मन हो।


नही चलेगा अब भारत में,


 चीनी चाल के क्रूर वेष का।


*हर भारतवासी अब चाहे*,


*मान और सामान देश का*।।


 


अपनी हो श्रम गति स्वदेशी,


आत्मविश्वास का प्रखरित बल हो।


दृढ संकल्प ले बढ़े सतत हम,


अटल कर्म से सभी सबल हो ।।


परदेशी आयात बन्द हो,


स्वदेशी से सम्मान देश का।।


*हर भारतवासी अब चाहे*,


*मान और सामान देश का*।।


आत्म शक्ति से निखरे भारत,


ग्राम,नगर,घर-घर कौशल हो।


विदेशी निर्भरता को त्यागकर,


जय किसान का अद्भूत बल हो।


अपना खाना,अपना पानी,


अपना हो परिधान देश का।


*हर भारतवासी अब चाहे,*


*मान और सामान देश का*।।


परदेशी वैसाखी लेकर,


 विश्वगुरू ना बन पायेगे,


स्वदेशी मंत्र की प्रतिज्ञा से,


माटी में सोना उपजायेगे।


ग्राम-ग्राम उद्योग लगाकर,


बचायेगे स्वाभिमान देश का।


*हर भारतवासी अब चाहे*,


*मान और सामान देश का*।


घर-घर में खुशहाली होगी,


देश प्रेम का भाव जगेगा।


जन-जन की किस्मत बदलेगी,


हर घर को अब काम मिलेगा।


चरण चूमती मंजिल होगी,


समृद्धि और सोपान देश का।।


*हर भारतवासी अब चाहे*,


*मान और सामान देश का*।।


✍आशा त्रिपाठी


     28-06-2020


एस के कपूर "श्री हंस*" *बरेली*।

*रखें खूब ध्यानअपना कि ये*


*कॅरोना फैल रहा है।।।।।।।*


 


कहाँ जा रहे हैं आप कि ये


कॅरोना बाहर ही खड़ा है।


गया नहीं कॅरोना अभी कि


अपनी जिद पर अड़ा है।।


अनलॉक जरूर हुआ है


पर आर्थिक गति के लिये।


पर आप रहें संभल कर ही


कि ये संकट बहुत बड़ा है।।


 


हाथ धोते रहें बार बार जब


भी कुछ करें नया आप।


पता नहीं कि कहाँ पर है


कॅरोना ने छोड़ी कोई छाप।।


सावधानी हटी दुर्घटना घटी


बिलकुल सिद्ध है आज तो।


कि अनजाने में न ओढ़ कर


बैठ जायें कॅरोना का लिहाफ।।


 


दो ग़ज़ दूरी, नियमित गरारे,


और चेहरे पर लगा रहे मास्क।


सैनिटाइजर पास में और जायें


बाहर जब जरूरी हो टास्क।।


बचाव ही सुरक्षा और देखो


जान जहान दोनों एक साथ।


आज की तारीख घर अपना


"बेस्ट डील दैट रियली रॉक्स"।।


 


न जायें बाहर निकल कि नहीं


कॅरोना से कोई कोना खाली।


मत खेलो जान से तुम कि यह


पड़ेगा खिलौना बहुत भारी।।


यह अदृश्य विषाणु है कुछ 


जरूरत से ज्यादा ही संक्रमित।


बस रहें आप जरा सतर्कता से


क्यों लाये रोना धोना ये बबाली।।


 


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली*।


मोब।। 9897071046


                     8218685464


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*गीत*(तुम्हारे बिना)


रौशनी लगती फ़ीकी तुम्हारे बिना,


चाँदनी लगती तीखी तुम्हारे बिना।


चलातीं लगे छूरियाँ दिल पे अब तो-


सभी बातें सीधी तुम्हारे बिना।।


 


नहीं भाए मौसम सुहाना भी अब तो,


पिया-पी पपीहा का गाना मधुर तो।


लगे सूनी-सूनी सुनो हे प्रिये अब-


मेरे मन की वीथी तुम्हारे बिना।।


 


रंग में कोई रंगत नहीं दीखती,


संग के संग संगत नहीं सूझती।


फूल भी चुभ रहे खार की ही तरह-


लगे मधु न मीठी तुम्हारे बिना।।


 


लगे जैसे क़ुदरत गई रूठ अब तो,


लगे प्रेम-सरिता गई सूख अब तो।


वो तेरा रूठना फिर मनाना मेरा-


लगे बात बीती तुम्हारे बिना।।


 


आके फिर से बसा दे ये उजड़ा चमन,


ताकि खुशियाँ मनाएँ ये धरती-गगन।


अमर प्रेम-रस को मेरी रूह यह-


बता कैसे पीती तुम्हारे बिना??


 


मेरी आत्मा, मेरी जाने ज़िगर,


तुम्हीं हो ख़ुदा का ज़मीं पे हुनर।


तुम्हें देख कर ही तो गज़लें बनीं-


शायरी लगती रीती तुम्हारे बिना।।


 


ज़ुबाँ शायरी की तुम्हीं हो प्रिये,


कहकशाँ सब सितारों की तुम ही प्रिये।


वस्त्र कविता का मानस-पटल पे भला-


कल्पना कैसे सीती तुम्हारे बिना??


            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                9919446372


भरत नायक "बाबूजी"

*"कलम, स्याही और आत्मा"*


(कुण्डलिया छंद)


""""""'"'''"'"""""""""""""""""""""""""""""""""


★सर्जन कुछ दूषित हुआ, बदली सर्जक सोच।


आग उगलती थी कलम, आयी उसमें लोच।।


आयी उसमें लोच, स्वार्थ ही अब अहम हुआ।


सूखी स्याही धार, लगे अब तो सृजन जुआ।।


कह नायक करजोरि, अहम लगता धन-अर्जन।


आत्मा का व्यवसाय, बना है अब तो सर्जन।।


 


★आत्मा तृष्णा मेंं फँसी, कलम हुई लाचार।


अान कहाँ पर बेचता, सच्चा रचनाकार।।


सच्चा रचनाकार, करे निज शोणित-स्याही।


करता सृजन सुकर्म, लूटता न वाहवाही।।


कह नायक करजोरि, कपट छल का हो खात्मा।


खोये कलम न अर्थ, शुद्ध निज रखना आत्मा।।


 


★कलम करो कर्मण्य की, प्रेम बहे मसि-धार।


आत्मा से सर्जन करो, सुखी सकल संसार।।


सुखी सकल संसार, रचो कल्याणी रचना।


आडंबर को ओढ़, अहंकारी मत बनना।।


कह नायक करजोरि, श्रेष्ठ शुचि भल भाव भरो।


निहित रहे कल्याण, कलम को कृतकृत्य करो।।


"""""""""""""""""""""""""""""'"""""""""""'""


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


""""''"'"'"""""""""'"''""""""""""""""""""""""""


संजय जैन (मुम्बई

*समय निकल जायेगा*


विधा : कविता


 


दिल से दिल मिलाकर देखो।


जिंदगी की हकीकत को पहचानो।


अपना तुपना करना भूल जाओगे।


और आखिर एक ही पेड़ की छाया के नीचे आओगे।


और अपने आप को तुम तब अपने आप को पहचान पाओगे।।


 


क्योकि छोड़कर नसवार शरीर,


एक दिन सब को जान है।


जो भी कमाया धामाया 


सब यही छोड़ जाना है।


फिर भी भागता रहता है


माया के चक्कर मे।।


 


और न खाता है न पीता है,


और न चैन से जीता है।


खुद तो परेशान रहता है


और घर वाले को भी..।


इसलिए संजय कहता है


की कर ले कुछ अच्छे कर्म।


जिन्हें तेरे साथ अंत मे जाना है।।


 


घुटन की जिंदगी जीने से,


तो अच्छा है आदि खा के जीओ।


एक साथ हिल मिलकर


अपने परिवार में रहो।


जो भाग्य में लिखा है


वो तुझे मेहनत से मिल जाएगा।


पर लालच में स्वर्ग वाला,


समय निकल जायेगा।।


 


जय जिनेंद्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


29/06/2020


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दिलों ओ दिमाग पे छाई है 


तेरी यादों की परछाई 


नादानियां तेरी शरारते


तेरा शर्माना छुप जाना शर्माई।


दिलों दिमाग पे छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


दिल में जज्बे का तूफां


दिमाग में जज्बातों के जंग


तुझे खोने फिर संग लाने की जिद आई।


दिलो ओ दिमाग छाई है 


तेरी यादों की परछआई।।


 


बरसात का मौसम बरसात


में भीगना छोकना बरसात का


पानी कागज की कश्ती बचपन


की कस्मे रस्में कमसिन की


कसम भोली सूरत दिलों की दस्तक छाई।


दिलो ओ दिमाग पे छाई है  


तेरी यादों की परछाई ।।


 


जिंदगी के तक़दीर का वो लम्हा


उसके साथ गुजरे तोहफा लम्हा


तुम्हारा साथ जिंदगी का एहसास


तेरी अक्स जिंदगी की साँसे धड़कन सौगात तू आयी।


दिलो ओ दिमाग में छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


गली की कली नाज़ुक


वक्त की नाज़ नज़ाकत


तू लाखों अरमानों की चाहत 


नादानों की मोहब्बत की खुशबू


 नज़ाकत अर्ज आरजू।


दिलों ओ दिमाग छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


हुस्न की हद हैसियत तेरी


दीवानगी में दिलो का


पागल हो जाना तेरी मासूम


चाहतों में जीने मरने का कस्मे खाना सिर्फ मेरी ही चाहत में तेरी


जिंदगी का तराना आशिकी।


दिलों ओ दिमाग में छाई है


तेरे यादों की परछाई।।


 


माँ बाप हसरतों की जमीं


दोस्तों की आहों का का बहाना


चाहतों की आसमां


जहाँ में तन्हा तू नाज़ुक हुस्न


की चाँद की चॉदनी।


दिलों दिमाग में छाई है तेरे यादों


की परछाई।।


 


दुनियां की भीड़ में आज भी तन्हा


तेरे संग गुजरे लम्हों की दौलत का कारवां तेरे ही इंतज़ार


की जिंदगी तेरे प्यार की हकीकत


इकरार का इज़हार का लम्हा आती जाती।


दिलों ओ दिमाग में छाई है


तेरे यादो की परछाई।।


 


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


निशा"अतुल्य"

स्तुति 


शिवशंकर


29.6.2020


 


हे शिव शंकर हे अभ्यंकर


तुम कैलाश निवासी हो 


अजर अमर हे अविनाशी


नील कंठ तुम धारी हो ।


 


शिव शंकर हे अभ्यंकर 


तुम कैलाश निवासी हो ।।


 


वाम अंग तेरे गौरा विराजे


नंदी की सवारी हो 


सूत पाया तुमने गणेश सा


जिस पर मैया बलहारी हो ।


 


शिव शंकर हे अभ्यंकर 


तुम कैलाश निवासी हो ।।


 


भूत, प्रेत सँग चले प्रभु


तुम रागी वैरागी हो 


माँ सती ले काँधे पर डोले


प्रेम रस अविरागी हो ।


 


शिव शंकर हे अभ्यंकर 


तुम कैलाश निवासी हो ।।


 


धूनी रमाई श्मशान प्रभु ने


नश्वरता बतलाते हो 


पी कर तुमने हाला को


जग के तुम कल्याणी हो ।


 


शिव शंकर हे अभ्यंकर 


तुम कैलाश निवासी हो ।।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

रजा राज बन गई है..


 


हमारी जिंदगी कांटों का ताज बन गई है


आज बेबसी हमारी मुमताज बन गई है 


 


समझते रहे सुहानी राह जिसे जिंदगी भर


वही समझ मुश्किल भरा काज बन गई है


 


दुःखों की धारा में पतवार समझ बैठे जिसे


वह जीवन नौका ही यमराज बन गई है


 


सत्य उलझन और गरज से भरी है धरती


कैसे टटोलें मन को रजा राज बन गई है।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😌😌 आशा- उम्मीद 😌😌


 


आशा उनसे प्यार की, 


                     करनी है बेकार।


जो करना है चाहते, 


                    हरदम ही तक़रार।


 


उन लोगों से प्यार की,


                   क्या करनी उम्मीद।


जिनको भाती है नहीं,


                   कभी दिवाली-ईद।


 


आशा सबके ख़ैर की, 


                     करनी है बेकार।


आपस में ही आज सब, 


                     भाॅ॑ज रहे तलवार।


 


आशा मन में ले यही, 


                    बैठी सजनी द्वार।


आते ही साजन मुझे, 


                      देंगे ढेरों प्यार।


 


आशा या उम्मीद से,


                  बने नहीं कुछ काम।


करें नहीं कुछ काम तो, 


                    कैसे होगा नाम।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

पग रज से पावन धरा


मुरलीधर चितचोर


देवलोक फीकों लगे


बृज मोहे मनमोर


 


श्यामा सलोनी सूरत


सुंदर शील सुशील


श्याम संग श्री सोभित


जलधर सह नभ नील


 


युगलछवि मम हृदय बसे


मिले चक्षु आराम


सत्य होंय सब साधना


जग लागे सुखधाम।


 


युगलरूपाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


       *"कभी तो..."*


"कह देते कुछ तो साथी उनको,


यूँही उदास न होते।


चाहत के रंगो को जग में,


यूँही पल-पल न खोते।।


पा लेते जीवन में उनको,


जहाँ जग में तुम होते।


खो कर गरिमा जीवन की फिर,


क्या-यहाँ पल -पल न रोते?


न पाने का दु:ख जग में फिर,


जीवन जग में सह लेते।


सहेज सपने उनके जग में,


कभी तो अपना कहते।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 29-06-2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः....*प्रथम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7


रावन-राज बढ़ा अघ भारी।


सुर-नर-मुनि सभ भए दुखारी।।


    मातु-पिता कै बड़ अपमाना।


    साधु-संत-सज्जन नहिं माना।।


पर दारा, पर धन जन लोभी।


कुकरम करहिं न मन रह छोभी।।


    राच्छस असुर-राज रह बाढ़ा।


    अधरम-कुकरम-प्रेम प्रगाढ़ा।।


चहुँ दिसि बिलखहिं जे जन सज्जन।


हरषहिं,बेलसहिं जे रह दुर्जन ।।


     धरम-ह्रास अरु सज्जन-नासा।


      अघ बड़ भारहिं मही उदासा।।


परम बिकल अकुलाइ असोका।


गऊ रूप महि गइ सुर-लोका।।


     नैन अश्रु भरि ब्यथा बतावा।


     पर नहिं कछुक सहयता पावा।।


तब सभ मिलि गे ब्रह्मा पासा।


हिय महँ धरे उछाह-उलासा।।


     ब्रह्मा गए समुझि अभिप्राया।


     पर नहिं सके बताइ उपाया।।


कह बिरंचि नहिं कछु बस मोरे।


कटिहइँ कष्ट सकल प्रभु तोरे।।


दोहा-सुनहु धरनि धीरजु धरउ,धरहु मनहिं महँ आस।


        प्रभु जानहिं बिपदा सकल,कटिहइँ रखु बिस्वास।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372 क्रमशः.....


अनिल प्रजापति जख्मी भांडेर दतिया

शीर्षक- मेरा हिंदुस्तान


 विधा -कविता


 


 


 सदियों से ना पीछे हैं ना कभी रहे मेरा हिंदुस्तान


 वीर अभी भी है यहां पर जाने ना देंगे हम शान


 अब आगे जो कदम बढ़ाया कसम हिंदुस्तान की


 चीन चीन कर मारेंगे खैर नहीं अब तेरे जान की


 


 मेरा हिंदुस्तान महान बच्चे बच्चे बोल रहे


हो हिम्मत आन लड़ो जय भारत माता बोल रहे


 


 घर-घर में झांसी की रानी ना कृपाण पुरानी है


 भारत की वीर गाथा तो माहिर जग में जानी है


 


 भगत सिंह सुखदेव राज गली गली में घूम रहे


 भऱी वीरता कूट-कूट कर मस्ती में यह झूम रहे


 


 


                 स्वरचित


 अनिल प्रजापति जख्मी भांडेर दतिया मध्य प्रदेश


हेमन्त सक्सेना - मेरठ भारत 

#रंगभेद #


 


सड़क पर गिरा हुआ वो अश्वेत 


निरीह होकर कराहता रहा 


तड़पता रहा


चिल्लाता रहा 


"मुझे साँस नहीं आ रही" 


 


मग़र... 


अश्वेत रंग पर भारी  


श्वेतरंगी अहंकारी इंसान ने 


अनसुनी कर दीं उसकी चीखें 


जकड़ता गया अपनी टाँगों से 


उस अश्वेत की गर्दन 


जब तक मरा नहीं वो


 


काश वो जानता!!


कि दर्द का कोई रंग नहीं होता 


मौत की कोई नस्ल नहीं होती 


 


और फिर... 


उस निरीह अश्वेत के आँसू 


बहने लगे अनगिनत आँखों से


तब्दील हो गए सैलाब में 


उसकी सिसकियाँ


शंखनाद बनकर


गूंजने लगीं 


हर गली, हर शहर में


उसकी चीखें कोहराम बन गईं 


उसकी साँसें


उफनने लगीं


समुद्री तूफान की तरह 


उसकी मौत 


चक्रवात बनकर करने लगी तांडव 


 


आँखों में सैलाब! 


होंठों पे शंखनाद!! 


साँसों में तूफान लिए 


सड़कों पर छा गया अश्वेत रंग 


एक बार फिर शुरू हो गई 


अपने रंग और नस्ल के अस्तित्व को जिन्दा रखने की लड़ाई 


इस उम्मीद के साथ 


कि मर जाए अबकी बार 


रंगभेद का ये दानव 


हमेशा के लिए


और ये लड़ाई आखिरी साबित हो 


नस्लवाद के ख़िलाफ़ 


 


- हेमन्त सक्सेना - 


  मेरठ 


  भारत 


 


(अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस अफसर के हाथों हुई हत्या की हृदय विदारक घटना से प्रेरित)


सुषमा दीक्षित शुक्ला

तुम ही मेरे सावन थे 


 


 तुम थे बसन्त मेरे तुम ही मेरे सावन थे ।


तुमसे ही हर मौसम था सब कुछ तुम साजन थे ।


 


तुम से ही तो जगमग इस घर की दीवाली थी ।


तुम सँग ही तो खेली वो सांचे रँग की होली थी।


 


वो सुबहें कितनी प्यारी जब थे तुम्हे जगाते ।


पर कभी कभी तो तुम ही चाय बना कर लाते ।


 


वो शामें कितनी प्यारी जब साथ घूमने जाते ।


कभी कभी मोबाइल पर घर के समान लिखाते ।


 


हर छुट्टी वाले दिन हम सबको कहीँ घुमाते ।


खाना, पिक्चर ,शॉपिग तुम जी भर प्यार लुटाते ।


 


हम सब अक्सर साथ साथ मंदिर जाया करते थे ।


जब इक दूजे के खातिर फरियाद किया करते थे ।


 


साथ बैठ कर टी वी जब हम देखा करते थे ।


घर के सारे प्लांनिग जब साथ किया करते थे ।


 


पल पल जब फोन तुम्हारा आता ही रहता था ।


तब हर कोई तुमको दीवाना ही कहता था ।


 


तुम थे बसन्त मेरे तुम ही मेरे सावन थे ।


तुम से ही हर मौसम था ,सब कुछ तुम साजन थे ।


 


         


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार शशि कुशवाहा लखनऊ

शशि कुशवाहा


पति-एड. एच.एस.मौर्या


पिता:-श्री आर.बी.कुशवाहा


माता:-श्रीमती निर्मला कुशवाहा


शिक्षा :-डबल एम ए (इतिहास,शिक्षाशास्त्र) बी एड 


निवास :-लखनऊ,उत्तर प्रदेश


सम्प्रति:-अध्यापिका ( बेसिक शिक्षा विभाग)


कार्यरत :- सीतापुर ,उत्तर प्रदेश


मो.न.-8115469686


ईमेल:- kushwahashashi1180@gmail.com


 


लेखन विधा -कविता,कहानी,लेख ,धारावाहिक कहानियां पसंद विषय( हॉरर और लव)


 


प्रकाशित रचनाएँ :-अदिति एक अनोखी प्रेम कहानी (उपन्यास)


साझा काव्य संकलन :-काव्य चेतना काव्य संग्रह,कालिका साझा काव्य संग्रह,रत्नावली साझा संग्रह


विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन


 


 


सम्मान:-विभिन्न साहित्यिक समूहों और मंचों द्वारा सम्मान पत्र।


 


 


1- "आधुनिकता की आँधी"


 


आधुनिकता की इस चकाचौंध में,


शिष्टाचार के मायने बदलते रहे।


सभ्यता और संस्कृति को छोड़कर,


नैतिकता के पाठ को भूलते रहे।


 


अपनी कमी को छुपा कर,


दूसरो पर दोषारोपण करते रहे।


माँ बाप के दिए संस्कारो को,


आधुनिकता की चादर से ढकते रहे।


 


एक वक्त था बुजुर्गों के पाव छू,


आशीर्वाद लेने को धर्म समझते थे।


आज हाय हेल्लो के चक्कर में,


माँ बाप के दिए संस्कारो को भूलते रहे। 


 


संयुक्त परिवारों में रहकर,


सुख दुःख में साथ निभाते थे।


एकल परिवार की परंपरा में,


आज मूल्यों के मायने बदलते रहे।


 


अपनों की खुशियों में खुश होकर ,


उत्सव सा मिलकर मनाते थे।


आज ऊँचाई पर देख कर उन्हें ही


ईर्ष्या की अग्नि में जलाते रहे।


 


अभी भी वक्त हैं सुधरना होगा,


आधुनिकता की आंधी से बचना होगा।


रिश्तों के सच्चे मायने को समझ कर ,


अपनों को अपनेपन का एहसास कराना होगा।


 


 


 


2 -           "चल मुसाफिर चल"


 


चल मुसाफिर चल,आगे को बढ़ता चल।


मेहनत कर धूप में पसीना बहाता चल।


 


ना थकना हैं और ना रुकना हैं  ,


मंजिल तक पहुँचने को हवा संग बहता चल।


 


राहें हैं लंबी और कठिन डगर हैं ,


भूले भटके जो भी मिले रास्ता दिखाता चल।


 


कदम जो लड़खड़ाये, हौले से संभालना,


विश्वास का दामन थाम आगे को बढ़ता चल।


 


कभी जो फंस जाओ लहरों के भवँर में,


नाम ईश्वर का ले हर बाधा को पार करता चल।


 


हर कदम पर मिलेंगी नयी चुनौतियाँ,


रब का नाम ले हर परीक्षा को पास करता चल।


 


चल मुसाफिर चल,आगे को बढ़ता चल।


मेहनत कर धूप में पसीना बहाता चल।


 


शशि कुशवाहा


लखनऊ,उत्तर प्रदेश


 


 


3 - "  भगवान परशुराम"


 


बैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया हैं बड़ी महान,


6वें अवतार के रूप में धरती पर आये करुणानिधान।


 


पिता जमदग्नि और माता रेणुका के थे पांचवे संतान,


विष्णु जी अवतरित हुए ले अवतार परशुराम भगवान।


 


जन्मे थे ब्राम्हण कुल में युद्ध कौशल में थे वो महान ,


अस्त्र शस्त्र के ज्ञाता और वीरता थी उनकी पहचान ।


 


माता पिता से प्रेम की अदभुत गाथा हैं महान ,


आज्ञा पाकर पिता की ली झटके में माता की जान।


 


ख़ुश ही जमदग्नि ने मांगने को कहा जब वरदान,


चतुराई और विवेक से मांग लिए माँ संग भाइयों के प्राण ।


 


हो गया था शक्ति पर अपनी जब उनको मान,


तोड़ धनुष शिव जी का राम ने चूर किया अभिमान।


 


त्रेता और द्वापर युग में भूमिका निभायी महान ,


अजर अमर हो गए तबसे परशुराम भगवान ।


 


उनके जैसा ना कोई हुआ शक्तिशाली भगवान,


कर्मो से रच गये इतिहास में एक अलग पहचान।


 


शशि कुशवाहा


लखनऊ,उत्तर प्रदेश


 


4 -


 


 


 


  "आओ मिलकर दीप जलाए"


 


फ़ैल रहा हैं विकट अँधियारा ,


मचा हुआ हैं हाहाकार ।


उम्मीद की किरण फैलाये,


आओ मिलकर दीप जलाए।


 


एक दिया किसानों के नाम का,


दे अन्न जिसने जीवन हैं दिया ।


सर्दी ,गर्मी और बारिश में भी,


मुस्कुराकर कर्तव्य का पालन किया।


 


एक दिया गुरुजनों के नाम,


दे ज्ञान अज्ञानता को दूर किया।


प्रेम , सजा और समर्पण से,


सुन्दर भविष्य का निर्माण किया।


 


एक दिया महापुरुषों के नाम,


दे जीवन अपना देश के नाम किया।


अपना सब कुछ न्यौछावर कर ,


स्वतंत्रता का अधिकार दिया।


 


एक दिया शहीदों के नाम,


जिन्होंने घर परिवार सब त्याग दिया।


डटे रहे जो सरहद पर हरदम,


हर ख़ुशी को अपनी कुर्बान किया।


 


एक दिया समर्पित उनको,


कठिन समय में जिन्होंने साथ दिया।


अपनी चिंता और फ़िक्र छोड़ के,


बीमारों की सेवा में जीवन दान किया।


 


एक दिया अपने नाम का ,


जो बैर और वैमनस्य को मिटाए।


प्रेम , सहानुभूति और समर्पण ,


का चारों ओर प्रकाश फैलाये।


 


शशि कुशवाहा


लखनऊ,उत्तर प्रदेश 


 


5 -


आखिर क्यों ? 


 


जन्म तेरे धरा पर लेने पर, 


घर में उदासी सी छा जाती है ।


माँ को छोड़ कर हर ओठो पर


क्यों मनहूसियत सी छाने लगती है?


 


बेफिक्री से चलने पर 


घूर घूर के देखा जाता है ।


ताने कसने को रहता तैयार


क्यों बेशर्मी का तंज कसा जाता है?


 


अतीत की यादों से कभी


मन ख़ुशी से जब नाच जाता है ।


दो पल की ख़ुशी में देख के उसको


क्यों बेपरवाह का ताना लग जाता है ?


 


प्रेम भरे हृदय से जब  


प्रिय को आलिंगन कर जाती है।


इजहार कर समर्पण कर देती है,


क्यों निर्लज्ज उसे समझा जाता है ? 


 


कभी तो अपनी मर्जी से 


सपने को पूरा करने आगे कदम बढ़ाती है।


स्वछंदता का आरोप लगा 


क्यों सारी गलतियाँ शीश पर मढ़ दी जाती है ?


 


घर बाहर दोनों करती है सामंजस्य 


जिम्मेदारियों से कभी नही पीछे हटती हैं।


ना रूकती , ना थकती , ना करती है आराम ,


ऐ औरत फिर भी क्यों गैरो में तौला जाता है ? 


 



 


 


डॉ.राम कुमार झा "निकुंज

दिनांकः २८.०६.२०२०


दिवसः रविवार


विधाः गीत


शीर्षकः 🇮🇳राष्ट्र विजय अनुनाद करें🇮🇳


 


ज्ञान विज्ञानी राष्ट्र मंच पर , 


सारस्वत यश रसधार बहे। 


भारत सेवा भक्ति प्रीति नित


हम संघशक्ति बन सभी चलें।  


 


आपद की इस विकट घड़ी में,


हम भूल स्वार्थ सब साथ चले। 


दिखा रहे अपनी आँखें फिर,


मिल चीन पाक का दमन करें। 


 


अन्तर्मन रख त्याग वतन हम,


नित तन मन जीवन दान करें।


पहचाने हम निज ताकत को,


हम धीर वीर प्रतिमान बने। 


 


गा शौर्य गान सीमा प्रहरी,


हम ध्वजा तिरंगा शान रखें।


बद़जुबान को दें लगाम नित,


हम राष्ट्र हितैषी ध्यान रखें।


 


हम वीर सपूतों की सन्तानें,


क्यों मर्माहत मत वतन करें।


योगदान निर्माण राष्ट्र में,


हम यथाशक्ति अवदान करें। 


 


कठिन परीक्षा कोरोना में,


हम करें सामना एक रहें। 


साथ निभा हम विकट घड़ी में,


सरकार साथ हम अटल रहें। 


 


शौर्य वीर की अमर कथा हम,


काल कपाल हम लिख सकते।


हो प्रहार चाहे भू जल नभ,


बन महाकाल हम लड़ सकते।  


 


साहस धीरज अरिमर्दन में,


हम सैन्यशक्ति विश्वास रखें।


प्रलयंकर बन शत्रु विनाशक,


बलिदानी को हम नमन करें।  


 


प्रश्न उठा क्यों सैन्य शक्ति पर,


क्यों खुद दुश्मन को सबल करें।


दृढ़ संकल्पित सबल प्रशासन,


नित बहुमत का सम्मान करें।  


 


तजें स्वार्थ सत्ता सुख वैभव,


नित संघशक्ति उत्थान करें।


संविधान सम्मत है शासक, 


जन हित निर्णय सहयोग करें।  


 


भड़कायें मत आग वतन में,


समरस सद्भावन भाव रखें। 


भारत माँ जयहिन्द वतन बस,


बस अमर गीत जयगान करें।  


 


जीतेंगे हम अन्तर्बहि संकट,


यदि रहें साथ प्रतिकार करें।


नैतिक पथ मानवता रक्षक,


हम राष्ट्र विजय अनुनाद करें। 


 


डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

*राम बाण🏹*


 


          ऐसा रूप सँवरना उनका।


        दर्पण सम्मुख है इठलाना।।


           दर्पण की निर्मलता मानें।


          दूर दूर तक है झुठलाना।।


 


          क्रीम लगी दीवारें खुद ही।


        मुखड़े की रौनक बता रहीं।।


          इत्र बाग की खुशबू देकर।


       मन बगिया को है लुभा रहीं।


          सपने के झूले हैं सुखमय।


        अपने मन को है बहलाना।।


 


            भ्रम की बेलायें फैंली हैं।


          आशाओं के बादल गहरे।।


         दोष नजर का कौन बताये।


             शंकाओं के लगते पहरे।


     नजरों का बढ चढ़कर हिस्सा।


    कमसिन लगता है झुँझलाना।।


 


           घर में रहकर भूल गये थे।


                  पर्दे में कैसे है रहना।


                बेपर्दे में रहकर जाना।


                चेहरे को ढंकते रहना।


             अंकुश के पर्दे में घायल।


         जख्मों को देकर सहलाना।।


 


             सपनों की है हेरा फेरी।


          ये दुखड़े हैं जज्बातों के।।


           इच्छायें बुनियादी करने।


          चलते खंजर उन्मादों के।।


         राम कहें मन रूप सँवारो।


          जीवन जीना सिखलाना।।


 


      *डॉ रामकुमार चतुर्वेदी*


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः.....*प्रथम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-6


जेहि बिधि जपहु जपहु प्रभु-नामा।


कटिहँइँ कष्ट अवसि श्रीरामा।।


    प्रभु करुनाकर दया-निधाना।


    भगत-आस पुरवहिं भगवाना।।


अबल-सबल जे गुन अरु दोषा।


रहहिं मगन जदि राम-भरोसा।।


     रीझहिं राम प्रेम-सम्माना।


     सबरि-बेर निज कंठ लगाना।।


लंका-राज बिभीषन दीन्हा।


उरहिं लगा सुग्रीवहिं लीन्हा।।


    लइ निज सरन अंगदहि भगवन।


    कीन्ह बालि-इच्छा प्रभु पूरन।।


राम-चरित बड़ अजब-अनोखा।


बुधि जन समुझहिं ग्यान-झरोखा।।


     मूरख समुझि सकहि नहिं लीला।


     समुझहिं केवल प्रभु-गुन- सीला।।


सीय-हरन पछि राम-बियोगा।


लखि गिरिजा भइँ भ्रमित दुजोगा।।


    पुनि सुनि रामहिं चरित-बखाना।।


    अद्भुत प्रभु-महिमा पहिचाना।।


जप-तप-नियम न जग्य सहारा।


कलिजुग बस प्रभु-नाम अधारा।।


दोहा-राम ब्रह्म ब्यापक अलख,परमातम भगवान।


        अस प्रभु जे सुमिरन करै, तासु होय कल्यान।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


संजय जैन (मुंबई

*आचार्यश्री से प्रार्थना*


विद्या : गीत भजन 


 


गुरुदेव प्रार्थना है ,


अज्ञानता मिटा दो।


सच की डगर दिखा,  


 गुरुदेव प्रार्थना है।


ॐ विद्यागुरु शरणम,


ॐ जैन धर्म शरणम।


ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।


 


हम है तुम्हारे बालक, 


कोई नहीं हमारा।


मुश्किल पड़ी है जब भी,  


 तुमने दिया सहारा।


चरणों में अपने रख लो,  


 चन्दन हमें बना दो।


गुरुदेव प्रार्थना है ,


अज्ञानता मिटा दो।१।


 


ॐ विद्यागुरु शरणम , 


ॐ जैन धर्म शरणम।


ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।


पूजन तेरा गुरवर,


अधिकार मांगते है।


थोड़ा सा हम भी तेरा,


बस प्यार मंगाते है।


मन में हमारे अपनी, 


सच्ची लगन जगा दो।


गुरुदेव प्रार्थना है ,


अज्ञानता मिटा दो।2।


 


ॐ विद्यागुरु शरणम , 


ॐ जैन धर्म शरणम।


ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।


अच्छे है या बुरे है,


जैसे भी है तुम्हारे।


मुंकिन नहीं है अब हम,


किसी और को पुकारे।


अपना बन लो हमको,


अपना वचन निभा दो।


गुरुदेव प्रार्थना है ,


अज्ञानता मिटा दो।३।


 


ॐ विद्यागुरु शरणम, 


ॐ जैन धर्म शरणम।


ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।


 


आचार्यश्री के 53वे दीक्षा दिवस पर उनके चरणों मे संजय जैन मुम्बई का भजन समर्पित है।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुंबई )


28/06/2020


ऋचा मिश्रा “रोली”

मेरी एक अभिलाषा 


 


देखती हूं जब उन नादान बच्चो को 


तो दर्द भरे दिल से आह निकल आती


काश मैं पूरे कर पॉउ उनके सपने 


मन ही मन यही मैं सोच के अकुलाती


खेलने और खाने की उम्र जब है इनकी


कंधों पर अपने वो भार उठाते है


धूप में वो चलते बिना जूते के पैरों से


 इस कदर उनके नन्हे पैर है जल जाते 


सोचती हूं कि ये बस्ते का भार उठाये 


पर उनके मा बाप बेबसी से बोझ उठवाते


चाहू मै हर पल उन्हें खाना भी ख़िलावू


उनके पास बैठ के ढ़ेर सा बतियावू


उनके सुख उनके दर्द उनका साया बनू


उनके सारे कष्टो को मैं खुद से हरू


समझे वो बात मेरी मैं उनको समझावू


उनको आगे बढ़ाने का जुनून दिल मे लावू


मैं उनके संघर्षो का इम्तेहान बन जाती 


दर्द भरे दिल से यह आह निकल आती


वो जब कभी मागे माँ से पकवान कपडे


सुन कर मा उनकी सजदे में रो देती है 


चुप कराती उनको और मीत मै बन जाती 


खुशी होती गर मै उनके काम कभी आती


 


 स्वरचित ऋचा मिश्रा “रोली”


  श्रावस्ती बलरामपुर 


   उत्तर प्रदेश


भरत नायक "बाबूजी"

*"मैं तो हूँ मजदूर"*


  (सरसी छंद गीत)


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विधान - १६ + ११ = २७ मात्रा प्रतिपद, पदांत Sl, युगल पद तुकांतता।


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*श्रम करता सुख देता सबको, मैं साहस परिपूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


है सोपान सजाये मैंने, अनगिन भव भरपूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*थम जाएगी गति इस जग की, कंधे जब दूँ डाल।


हाथ हिला दूँ सृष्टि सजे तब,भाग्य लिखूँ मैं भाल।।


कैद करूँ मैं प्रबल-पवन को, मैं हूँ वह भू-शूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*पर्वत तोड़ूँ, नदियाँ जोड़ूँ, करता नव निर्माण।


बाँधा मैंने बाँधों को भी, पानी पूरक प्राण।।


एक किया है धरा- गगन को, मैं हूँ क्षितिज सुदूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*लाली भरता सूरज में जो, मैं ही नवल प्रभात।


बना विश्वकर्मा का संबल, देता हूँ सौगात।।


अन्न-वसन-छत देता सबको, थककर तन कर चूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*मैं जागूँ जब जग जग जाता, सोऊँ जग सो जात।


वर्षा-गर्मी ओले-शोले, स्वेद बहे मम गात।।


साधूँ दम के दम पर दम को, जोर लगा भरपूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*किस्मत गढ़ता हूँ नित नव मैं, उन्नति का हूँ राज।


मैंने कुबेर का कोश भरा, पूरण कर हर काज।।


काश! मुझे भी कोई समझे, सुविधा से हर दूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*बदहवास मैं फिर भी क्यों हूँ, दबंग से दब आज?


टूटे मेरे सपने सारे, हत मेरी आवाज।।


नित-नित नत नम नैन निहारूँ, मैं तो हूँ मजबूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*प्रगति सकल सह परिवर्तन का, मैं ही शिक्षा सार।


खटता-बँटता-कटता-मिटता, नहीं मिले आधार।।


अपलक राह निहारूँ मैं भी, मन आशा ले पूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

-    


       ----रिश्ते ---              


पैदा होता ही इंसान रिश्तों के साथ । नौ माह कोख में रखती तमाम दुःख कष्टों को सहती माँ ।।     


 


अपने औलाद कि खातिर असह वेदना भी जीवन का वरदान मानती खुद चाहे ना पसंद हो संतान की चाहत में सब कुछ करती जीती मारती माँ।।


                              


 


स्नेह सरोवर की निर्मल निर्झर गंगा कि धारा । ममता, ममत्व, वात्सल्य मानव का सृष्टी का का रिश्ता माँ ।।


 


ख़ाबों और खयालो में अपने चाहत अरमानो की जीत, चाहत।


कुल ,खानदान का रौशन चिराग हो माँ का लाडला बेटा।।       


 


आन ,मान, सम्मान का का सत्य सत्यार्थ प्रकाश चिराग माँ का बेटा।                               


साहस, शक्ति ,ज्ञान, योग्यता का अभिमान हो माँ काबेटा दुनियां में माँ बाप खानदान का रोशन नाम करे ,समाज राष्ट्र का नव निर्माण करे ,माँ का बेटा।।


 


काल ,समय ,भाग्य ,भगवान ,कर्म धर्म ,कर्तव्य ,दायित्व बोध का अहंकार बने माँ का बेटा।।    


 


मजबूत इरादों कि बाहों के झूले में झुलाता । अपने सिंघासन जैसे कंधे पर शान से दुनिया को अहंकार से बतलाता देखो ये दुनियां वालों मेरे कंधे पर मेरा नाज़ ।


 


चौथेपन कि मेरी नज़रे लाठी कन्धा फौलाद मेरी औलाद।।


 


मानव का दुनियां में पिता पुत्र का रिश्ता उम्मीदों के आसमान का रिश्ता और फरिश्ता।।               


 


माँ बेटे पिता पुत्र का दुनिया, समाज ,परिवार का बुनियादी रिश्ता।।


 


बहना जीवन का गहना रिश्तों के परिवार समाज खुशियों कि रीत प्रीति का बचपन से जीवन का रिश्ता।।


 


कच्चे धागे का बंधन संग ,साथ बहना चाहे बड़ी हो या छोटी । प्यारी ,लाड़ली ,दुलारी परिवार का प्यार बहना ,दीदी जीवन की सच्चाई का रिश्ता लक्ष्मी ,लाज परिवरिस का प्यार।।           


 


लड़ाई झगड़े कट्टी, मिल्ली बचपन कि शरारत रिश्तो के कुनबे परिवार की खुशियाँ चमन बहार का रिश्ता।।                           


 


हर राखी पर उपहार मांगती दुआओं भैया की झोली भरती। भैया दूज कि मर्यादाओं कि अपनी अस्मत हस्ती कि हिफाजत कि हिम्मत ताकत का आशीर्बाद भी देती का रिश्ता बहना दीदी।।          


 


बचपन की अठखेली आँख मिचौली घड़ी पल प्रहर दिन महीनो साल । वर्तमान से निकल अपने अरमानो के साजन के घर चल देती ।।


 


आँखों में विरह के आंसू दे जाती नन्ही सी पारी नाज़ों की काली परिवार कि चर्चा यादों का दर्पण हो जाती।।


 


भाई से भाई का रिश्ता परस्पर प्रेम प्रधिस्पर्धा साथ- साथ खेलते पढ़ते लिखते बापू के अरमानों के जाबाज परिन्दे खुली नज़रो के खाब बापू के अरमानो के अवनि आकाश। स्वछंद अनरमानो के पंखों के परवाज़ भाई -भाई परस्पर परिवार की साख सम्मान का विश्वास रिश्ता ।।


 


मानव का रिस्तो से नाता ,रिश्ता ही परिवार बनाता परिवारों से सम्माज का नाता समाज का परम्परा रीती,रीवाज निति से रिश्ता नाता ।   


संस्कृति, संस्कार का समाज की पहचान से नाता मानव से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट् का रिश्ता नाता।। मानव, परिवार ,समाज, राष्ट्र कि संस्कृति समबृद्धि पहचान बताता।                          


 


हर एक मानव कि ताकत से संगठित सक्तिशाली परिवार समाज संगठित सक्तिशाली परिवारों के का संबल समाज से मजबूत, महत्व्पूर्ण ,सक्षम राष्ट्र का नाता रिश्ता।।


 


रिश्तों में समरसता ,विश्वास, प्रेम प्रतिष्ठा परिवार का आधार।


    


परस्पर ईमान ,ईमानदार सम्बन्धों के मानव मानवता से ही परिवार का रिश्ता नाता।।                


 


संबंधो में द्वेष ,दम्भ ,घृणा का कोई स्थान नहीं ,द्वेष, दम्भ ,घृणा परिवारों के विघटन के हथियारों से रिश्ता नाता ।                  


 


 


छमा, दया ,करुणा ,प्रेम, सेवा, सत्कार मानव, मानवता के रिश्तों परिवार में प्यार,सम्मान, परम्परा का सार्थक व्यवहार जीवन मूल्यों का रिश्ता नाता।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


एस के कपूर "श्री हंस"

*सुन ले ए चीन। भारत से तू* 


*टकराना नहीं।*


 


हे सुन लो चीन हमसे तुम


टकराना नहीं।


भारत ने बस सीखा है कभी


घबराना नहीं।।


वक़्त आने पर चीन तुझको


औकात बता देंगें।


बस भारत की शौर्य गाथा को


कभी भुलाना नहीं।।


 


हे चीन हम समझ चुके हैं तेरे


हर चक्रव्यूह को।


जान चुके तेरे सब सच झूठऔर 


हर कब कौन क्यों को।।


तेरी हर फरेबी जाहिर हो चुकी


है पूरे जहान में।


दुनिया का हर देश समझ चुका


तेरी हर हाँ ना यूँ को।।


 


मत शामत बुला चीन कि तेरी


जवानी हिला देंगें।


नभ,जल,थल में तेरी रवानी


को ही भुला देंगें।।


अपने पड़ोसियों की जमीन को


हड़पना काम तेरा।


तेरी विस्तार वादी नीति को हम


बीती कहानी बना देंगें।।


 


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली*


मोब।। 9897071046


                         8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

वतन


 


मेरा वतन है प्रभु तेरे हवाले


हे मनमोहन बांसुरी वाले


 


पाक नेपाल या फिर चाइना


भूटान और यह दुष्ट कोरोना


सब दिल से निकले ये काले


हे मनमोहन बांसुरी वाले


 


धन्य वीर वह सिंहनी जाये


परिवार छोड़ सीमा पै धाये


प्यारे वतन के बन रखवाले


हे मनमोहन बांसुरी वाले


 


सौम्य चमन लगे वतन हमारा


सबके लिए है प्राणों से प्यारा


रक्षक है जिसके मुरली वाले


हे मनमोहन बांसुरी वाले


 


दो मधुसूदन तुम ऐसी शक्ति


हृदय सदन में हो राष्ट्र भक्ति


रहें प्रफुल्लित बन मतवाले


हे मनमोहन बांसुरी वाले।


 


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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