सीमा गर्ग मंजरी
जन्मतिथि ~ 11जुलाई
101राजनकुँज रूडकीरोड मेरठ शहरसुदीपा 250001
मूल निवासी ~ उत्तर प्रदेश
8058229442
जी मेल ~ Seemagarg1107@gmail.com
विधा ~ कविता, कहानी, लघुकथा, संस्मरण, आलेख,समीक्षा आदि लिखती हूँ |
साहित्य में उपलब्धियाँ ~
मेरा एक एकल काव्य संग्रह ~
भाव मंजरी प्रकाशित
बाइस सांझा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ~
छ काव्य संग्रह प्रकाशाधीन हैं
मेरा एक लघुकथा एकल संग्रह कथा मंजरी मातृभाषा संस्थान के संस्मय प्रकाशन द्वारा प्रकाशाधीन है |
एक कथादीप सांझा संग्रह है |
एक वर्ल्ड रिकॉर्ड लघुकथा सांझा संग्रह है ।
अभी बाल काव्य संग्रह के लिए परिश्रमरत हूँ ।
अनेकानेक साहित्यिक मंचों द्वारा सर्वश्रेष्ठ रचना के लिए अनेकानेक बार सम्मानित किया जा चुका है |
विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में बेव पोर्टल, गूगल, यू टयूब पर अनेकानेक रचनायें निरन्तर प्रकाशित होती रहती हैं |
करीब दो सौ रचनाओं का शानदार प्रकाशन पत्र पत्रिकाओं में
करीब दो सौ रचनाओं का बेहतरीन आनलाइन प्रकाशन
अभी फिलहाल काव्य मंजरी समूह के चतुर्थ स्थापना दिवस पर आयोजित फुलवारी कार्यक्रम में मुझे सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान एवं
साहित्य सेवी सम्मान प्राप्त हुआ है |
नवकिरण साहित्य साधना मंच द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ रचनाकार का सम्मान प्राप्त हुआ है ।
फिलहाल बदलाव मंच द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में उत्कृष्ट, रचनाकार सम्मान प्राप्त हुआ है ।
आगमन साहित्यक समूह की आजीवन सदस्या हूँ |
आदरणीय गुरूदेव श्री श्री रविशंकर जी द्वारा आर्ट आँफ लिंविंग के टी, टी पी कोर्स के द्वारा बच्चों को संस्कार और संस्कृति की शिक्षा देने के लिए प्रयासरत हूँ |
धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में भी अपने सहयोगी मण्डल के साथ भाग लेती हूँ |
निवेदिका ~ सीमा गर्ग मंजरी
कविताये 1
मां शारदे को नमन
जल ही जीवन है
सृष्टि में जल ही जीवन है,
जल से ही बढता जीवन है ।
कुएं,तडाग,नद,नदियाँ,झरने ,
बरसा जल से लगेंगे भरने।
जल की हर एक बूँद बचाओ,
जल संरक्षण से प्रकृति सजाओ।
तृषित मानव जीवन बेकल है ,
जल पीयूष सम सबको समझाओ ।
गहरी नदियां जल से लबालब ,
जीव जगत हित बहती अविरल।
सूखे अब सरोवर और नदियाँ ,
जल बिन मरते पंछी पशु गैया ।
भूखे पेट कुछ दिन रह सकते,
पर जल बिन मरते कंठ सूखे।
खेती-बाड़ी उपज फसल नहीं ,
जब तक जल संरक्षण नहीं ।
कृषक के श्रम का मोल न कोई,
जल बिन फसल उगे न कोई।
कैसे अन्न धन फल फूल मिलेंगे,
जगत में प्राणी के प्राण बचेंगे ।
निर्मल अविरल गंगा की धारा,
कल कल निर्झर अमृत धारा ।
देती सबको भर जल का दान,
हम बूँद बूँद का करें सम्मान ।।
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ
कविताये-२
कालचक्र --
चतुर्दिक युग में काल का पहरा,
मन्वन्तर में पलटे युग का फेरा !
जीव का जन्म मरण है पराधीन ,
कालचक्र मुख जीवन का पर्यवसान !
सृष्टि का हर प्राणी काल निवाला है ,
वक्त की कदर से जग में नाम उजाला है !
अमृतबेला की दिव्य स्वर्णिम लाली,
नियमित अंबर घट पे इठलाती है !
सूरज, चाँद, सितारे,यामिनी ये ,
कालचक्र के नियम से चलते है !
मनुज वही जो समय से चलते हैं !!
मौसम चक्र जलवायु परिवर्तन ,
ग्रीष्म शीत बर्षा ऋतु आगमन!
मास दिवस और बर्ष का मान ,
कालचक्र से है सृष्टि परिवर्तन !
शैशव, बाल, किशोर,जवान,
बुजुर्ग, वृद्धावस्था में सम्मान!
जीवन दर्पण नित रंग बदलते,
कालचक्र का नियम गतिमान !
समय का आओ करें सम्मान ,
आयु प्रतिपल क्षीण हो रही !
काल जिह्वा में भस्म खो रही ,
मनुज है वही जो समय से चलते!
टिक टिक घड़ी चले निरन्तर,
पल छिन घटते जाते समान्तर!
उठो चलो आओ आगे बढ़ो,
शुभ संकल्प पुरूषार्थ में ढालो !
काल अनुपान जो मानव करते ,
कर्म को श्रम साध्य वही बनाते!
दृढ़ श्रम कर्म धर्म के बलबूते ,
सौभाग्य की विरल लकीरें गढ़ते !
ब्रह्मदेव के कर्म लेख भी बदलते ,
कालचक्र का जो पालन करते !
सच में मनुज वही हैं कहलाते!!
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ
कविताये-3
मूक प्राणी की सुन फरियाद --
समय आया बडा दुखदाई ,
दया धर्म नहीं मन में भाई !
तन के उजले मन के काले ,
भले-बुरे कर्मों के जंजाले !
कोटिअक्षि साक्षी है भगवान,
मानव बना तू क्यूँ शैतान!
मदान्ध प्राणी मत करना,
निरीह जीवों पर अत्याचार!
दिया सकल धरा पर प्रभु ने ,
सबको जीने का अधिकार!
चींटी या हाथी,हैं सभी समान,
मानव बना तू क्यूँ शैतान !
बोया पेड बबूल का तो,
आम कहां से खायेगा !
जैसी करनी वैसी भरनी,
पर्वत सी पीर पड़ेगी सहनी!
कर्मफल से मत बन,तू अंजान ,
मानव बना तू क्यूँ शैतान !
मूक प्राणी की सुन फरियाद,
शुभ कर्म जीवन की बुनियाद !
जुल्मों सितम से वध न करना ,
स्वच्छंद जियें,चाहें आजाद रहना!
धरा के सारे प्राणी ईश्वर की संतान ,
मानव बना तू क्यूँ शैतान!!
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ
कविताये-4
प्रकृति कामिनी
मैं प्रकृति कामिनी हूँ
मानव हित सृजन धारिणी हूँ
मेरी रसवन्ती मकरंदी रुपहली सूरत है
सुकोमल सतरंगा निराला रुप अनूप है
प्रकृति पुरूष ने सहचरी कहकर
मेरा सृजन विस्तार किया था
नूतन तूलिका से मनोरम दिव्य
श्रंगार किया था
विलासी मानव ने पीड़ित किया
मृतप्राय हो गयी थी
जर्जर देह कर डाली मेरी
काया क्षीणकाय हो गयी थी
मेरे जिस्मों जान को
नोच कर कुल्हाड़ी चलाई थी
प्राण पर मेरे भीषण प्रहार किये थे
सुमन, फल, फूल,मकरंद,रस नित पान किये
इस स्वार्थी मानव ने मेरे
हरितम आभूषण छीन लिये
मेरे शस्य श्यामला हरित रंग रुप
को काट महल खडे किये थे
इन्सां जिस थाली में खाया
तूने उसी में छेद किया
मानव तुझ जैसा स्वार्थी कृतघ्न
प्राणी कोई दूजा नहीं
मंदिर और शिवाले में दिखावे
की पूजा का काम नहीं
मेरा मंजुल रुप रंग कुरुप बनाने वाले
मेरी श्रंगारित हरियाली का दोहन करने वाले
ईश्वर ने ऐसा अद्भुत खेल रचाया है
मेरे संवर्द्धन हेतु जग को नाच नचाया है
अब मैने अद्भुत नवल कलेवर सजाया है
प्राणदायिनी वायु की ऊर्जाशक्ति को बढाया है
अब देखो मेरी हरी चुनरिया लहराई है
प्रकृति धानी दुल्हिन सा श्रंगार कर मुस्काई है
जल, जलधर,पवन, गगन, सृष्टि में
सकल संचारी भावना हरषाई है ।।
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ
कविताये-5
आओ करें हम जल का दान --
दान की श्रेष्ठ सनातन संस्कृति
ज्येष्ठ मास की निर्जला एकादशी
घट जल का दान करें उपवासी
जल का दान सुकृत परम्परा
जल बिन प्राण रहे ना आधारा
जल बिन जीव अचेत निष्प्राण
जल को तरसे न व्याकुल प्राण
पंचतत्व से बना मानव शरीरा
जल बिन प्राण रहे ना आधारा
जल तर्पण से पूर्वजों की तृप्ति
अंशदान करने से मिलती मुक्ति
अति पुण्य पावन ये कर्म महान
आओ करें हम जल का दान
अन्न, वायु, वसन,शीतल, मृदुनीर
दान करें वो हैं महादानी बलवीर
सरिता की बहें अविरल धारा
कल, कल, निर्झर जल की धारा
जीव जगत हित रहें सदानीरा
हरे-भरे वृक्ष कभी फल ना खाये
सृष्टि हित फल फूल अन्न बरसाये
छम छम बूँदें जब हैं बरसती
हरी भरी वसुधा प्रकृति हंसती
जलधर बरसाये शीतल जलधार
हर लेते जन मन की भव पीर
परोपकारी होते हैं ये संत महान
परपीड़ा हर लेते सुधा समान
आओ करें हम जल का दान
जगत है दूषित जल शुद्धि करता
जल बिन जीवन कभी ना चलता
बूँद, बूँद संरक्षण की कलश भरता
जल दोहन रोकें,व्यर्थ जो बहता
जन के तन,मन,प्राण में फूंके शंख
आओ, मिल जुल करें जल संरक्षण
जल ही जीवन धन है, करें आओ मनन
अपने कर्म कौशल को बनाये महान
कर्म फल नहीं निष्फल,ये गीता का ज्ञान
अपनी मंजिल की जो लीक बनाते
निविड़ कंटक में सुगन्धित सुमन खिलाते
परोपकारी होते हैं यही संत सुजान
आओ करें हम जल का दान ।।
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ