नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

वैश्विक महामारी कोरोना-सम्पूर्ण विश्व में एक त्रदसी जिसने समूचे विश्व समुदाय को विवस कर दिया सोचने को कि मानवता के धीरे धीरे विनाश की यह मानव कि खुद कि ईजाद है या मानव द्वारा प्रकृति के साथ किये गए विकास के अँधा धुंध कि परिणीति या कोई और कारण अभी तक समूचा विश्व इस महामारी का कारण तक नही खोज पाया निवारण का खोजने का प्रयास कर रहा है।


जगह जगह मानवता बिवस है क्या उपाय करे इस महामारी के संक्रमण कि संक्रामकता से विकसित राष्टों का विकास का दम्भ तिलस्म टूट रहा है ।बेवस लाचारी में मानवता तड़फ तड़फ कर दम तोड़ रही है।अगर परम् शक्ति सत्ता ईश्वर नाम कि क़ोई ताकत है तो संभवतः मानव के सर्व शक्ति मान होने के अभिमान पर अट्टहास कर रही है ।


संस्कृतीयो को चुनौती-वैश्विक महामारी कोरोना कि शुरुआत चीन के बुहान् शहर से हुई जहाँ भगवान् बुद्ध के अहिंसा परमो धर्मः के पोषक और अनुयायी हैं आश्चर्य इस बात का है कि चीन में किस बुद्ध के सिद्धान्त के अनुयायी है क्योकि भगवान् बुद्ध ने अहिंसा को मूल सिद्धान्त मानवता के सर्वोत्तम मूल्यों के रूप में विश्व के समक्ष रखा था जबकि चीन में क़ोई जीव सुरक्षित नहीं है सभी प्रकार के जीव जंतु कीड़े मकोड़ो का आहार करते है।क्या इसके पीछे चीन कि विशाल जनसख्य के लिये भरपूर खाद्यान्न उपलब्ध नहीं है जो सम्भव नहीं है क्योकि चीन ने विकास के प्रत्येक माप दंड पर विश्व में अग्रणी भूमिका निभा रहा है तो क्या इस तरह कि महामारी अब विश्व समुदाय के लिये सामान्य बात् है जो कही इबोला कोरोना कि मार के रूप में सामने आया है और आता रहेगा।


 


सामान्य असामान्य--जब चीन के बुहान् शहर में कोरोना महामारी ने दस्तक हुआ तब किसी को पता नहीं था कि सुखी खाँसी बुखार और सांस लेने कि साधारण सी परेशानी मानवता के लिये इतनी भयावह स्तिति पैदा कर देगी।चीन तो दावा करता है कि उसके यहाँ संक्रमण नियंत्रण में है कितना विश्वास किया जा सकता है निश्चित नहीं है।बहुत जानकारों का मत है कि यह एक सोची समझी वैश्विक शक्ति एवम् नेतृत्व कि सोची समझी रणनिति तृतीय विश्व युद्ध का नया तरीका है मानव द्वारा तैयार किये गए जैविक हथियार के मानवीय भूल के विस्फोट का नतीजा है जिसका नतीजा संक्रमण है।


इसे कितना सही माना जा सकता है शोध का विषय है लेकिन यह संसय का विषय अवश्य है कि चीन द्वारा इस महामारी के विषय में विश्व समुदाय को अवगत नहीं कराया गया ना ही उससे निपटने के अपने तौर तरीको को मानवता के हितार्थ बताया गया जिससे कि विश्व समुदाय को कम हानि उठानी पड़ती ।


 


विश्व के विकसित देशों पर प्रभाव-- इस त्रदासी का भयावह पहलू है पश्चात विकसित राष्ट्रों की अपूरणीय क्षति शीत युद्ध समाप्त होने के लगभग पंद्रह वर्षो बाद चीन ही एक ऐसा राष्ट्र है जो इनको परोक्ष प्रत्यक्ष चुनौती देता रहता है जो इन सर्व शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों के लिये चुनौती और अहं पर चोट है यह भी कारण हो नया कारण सम्भव है आधुनिक युग में युद्ध का क्योंकि परमाणु शक्ति सम्पन्न अब बहुत राष्ट्र हो चुके है और परमाणु युद्ध कि भयानक परिणीति विश्व नागासाकी और हिरोशिमा में देख चूका है और परमाणु शस्त्रो का प्रयोग सिर्फ प्रत्यक्ष कारण करक के युद्ध में ही संभव है शीत युद्ध में राजनितिक कुशलता दक्षता में ऐसे शस्त्रो का प्रयोग सर्वथा असंभव है।नाटो संधि और वारसा पैक्ट के बाद सोवियत संघ एक शक्तिय ध्रुव था रूस के विखंडन और पूर्वी जर्मनी के जर्मनी में एकीकरण के पश्चात वारसा पैक्ट लगभग दिन हिन् हो गया और नाटो संधि उत्तरोत्तर शक्तिशाली अब तथाकथित वारसा पैक्ट का एतिहासिक शक्ति केंद्र नजर आता है ।अतः बहुत सम्भव है कि यह छद्म विश्व युद्ध का नया वैज्ञानिक तरीका हो ।क्योकि जो आंकड़े अब तक है उनके आधार पर स्पष्ठ तौर पर परिलक्षित है कि इस महामारी का प्रभाव क्यूबा उत्तरी कोरिया वियतनाम आदि दशो पर कम है जबकि यूरोप के देश अमेरिका इंग्लॅण्ड जर्मनी इटली स्पेन फ्रान्स न्यूजीलैंड आस्ट्रेलिया आदि देशो में कोरोना संक्रमण ने सर्वाधिक चौतरफा हानि पहुचाई है जिसमे मानव शक्ति आर्थिक हानि सम्मिलत है ।यहाँ एक बात महत्व्पूर्ण है कि इस महामारी का प्रभाव दक्षिणी देशो में भी अधिक नहीं है।इस महामारी का सर्वाधिक प्रभाव एशिया यूरोप के देशो पर पड़ा है।


 


कोरोना का प्रभाव-कोरोना संक्रमण ने एक तरह से समूचे मानव समाज को जीवन शैली कि एक नया आयाम प्रदान किया है पश्चिमी देशो के अति खुलेपन के समाज को भी कोरोना ने अपनी जीवन पद्धति के लिये विवस कर दिया है ।पश्चिमी देशों में भाग दौड़ और अति व्यस्तम जीवन शैली के कारण जीवन के लिये अनिवार्य भोजन भी बनाने कि।फुरसत नहीं होती आधा पका भोजन हाफ कुक्ड फ़ूड फ्रिज में रख कर हप्तो खाते है जो इस तरह के संक्रमण का प्रमुख कारण है।दूसरा वहाँ सभी आपस में मिलते है तो हाथ मिलाने या गले मिलकर किस करने कि परम्परा है जो इस सक्रमण का कारण है


इस संक्रमण में सोसल डिस्टेंसिन सभ्यता का ईजाद किया साथ ही साथ मानव के एकात्म भाव शारीर कि वास्तविकता का लाक डाउन नई जीवन शैली या यूँ कहे कि सयमित जीवन शैली का इज़ाद किया जिसके दुष्परिणाम एवम् सार्थक दोनों ही रहे दुष्परिणाम कि व्यवसायिक और औद्योगिक गतिविधियाँ एक एक रुक गयी जिसके कारण आर्थिक उपज उन्नति का मार्ग अवरुद्ध ही गया और व्यक्ति कि आय घट गयी या रोजगार समाप्त हो गया विकास कि रफ़्तार थम गयी ।लेकिन इसका दूसरा सार्थक पहलू है लोगो का बाहर निकलना सडको पर भीड़ भाड़ कम हुआ जिसके परिणाम स्वरुप सड़क दुर्घटनाओ में कमी आई और मानव के द्वारा होने वाले प्राकृतिक प्रदूषण में कमी आई ।कोरोना संक्रमण का सबसे बीभत्स पहलू यह है कि जब इस संक्रमण से क़ोई व्यक्ति संक्रमित हो जाता है तो उसके सगे संबंधी भी उसके पास तक नहीं पहुचने से परहेज करते है संक्रमित व्यक्ति को जब अपने बेटी बेटो पत्नी से ऐसा व्यवहार प्रत्यक्ष देखने को मिलता है तो उसे खुद पर मानव समाज और रिश्तो संबंधो से विश्वाश उठ जाता है संक्रमण में मानव कि भावनाये भी तिरस्कार से संक्रमित हो जाती है नतीजन वह टूट जाता है विशेषकर अधिक उम्र का व्यक्ति ।


वैसे भी कोरोना साठ साल से अधिक उम्र के लिये या किसी बिमारी से ग्रसित व्यक्ति के ज्यादा घातक है इस उम्र में अमुमन आम व्यक्ति का लगाव अपने रिश्तों नातो पर चमोत्कर्ष पर होता है।


 


 भारत विश्व गुरु क्यों और कैसे--भारतीय समाज कि शैली सभ्यता निश्चित रूप से विश्व के अन्य देशो से अधिक परिमार्जित और प्रासंगिक है एक तो यहाँ के अधिकतर लोग धर्म को अपनी जीवन पद्धति का आधार मानते है जिसके अनुसार सामाजिक सरोकार को अंत्यंत सार्थक और व्यवहारिक और करुणा पूर्ण रखा है ।यहाँ के अधिकतर लोग शाकाहार पसंद करते है और ताज़ा भोजन ही पसंद करते है मिलने जुलने में प्रणाम या चरण स्पर्श कि संस्कृति यहाँ आम है दूसरा यहाँ नियमित जीवन शैली और दिनचर्या बहुत महत्व्पूर्ण है ।विश्व समुदाय का यह मानना हो सकता है कि आर्थिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े होने के कारण यहाँ धार्मिक जीवन शैली ज्यादा महत्व्पूर्ण है मगर आज यह सोचने को समूचा विश्व विवस है कि यही जीवन शैली एक आदर्श जीवन शैली हो सकती है जो कोरोना के साथ साथ तमाम आपदाओ और संक्रमण से मानवता कि रक्षा करने में सक्षम और समर्थ है । सबसे खास बात भारतीय जिस परिस्तिति परिवेश स्तर आमिर गरीब हो उनमे दो बाते खास है एक तो शारीरिक श्रम कि आदत दूसरा चिंता मुक्त जीवन शैली के साथ साथ योग यही खासियत भी है भारतीयता और उसके धार्मिक समाज कि जिसके कारण शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता विश्व के अन्य देशो से भारतीयो में अधिक होती है । साथ ही साथ दक्षिण एसिया के अधिकतर देशो कि संस्कृति आपस में बहुत मिलती जुलती है इसी दृष्टि के दृष्टिकोण के अंतर्गत भारत के प्रधान मंत्री द्वारा सबसे पहले दक्षिण एसिया के देशो के मध्य कोरोना संक्रमण से निपटने के लिये सहयोग कि पहल का नेतृत्व किया गया।


                                       भारत पर कोरोना संक्रमण का प्रभाव--भारत विकासशील देश है और बहुत से क्षेत्रो में आत्म निर्भरता हासिल कि है मगर अभी बहुत कुछ करना बाकी है ।भारत कि लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी दैनिक आय पर आधारित है कोरोना संक्रमण के कारण लगभग साठ दिनों के लाक डाउन से सारी गतिविधिया एकाएक रुक गयी परिवहन संचार उद्योग आदि सभी कार्य बंद हो गए जिसके कारण आय बंद हो गयी और लोगो के समक्ष रोजी रोटी का प्रश्न खड़ा हो गया दूसरा देश के एक राज्य से दूसरे राज्यो में गए कामगर मजदूरो में भय का वातावरण व्यप्त हो गया जिसके कारण उनका पलायन शुरू हो गया जिसके कारण कभी दिल्ली उत्तर प्रदेश सिमा पर भीड़ एकठ्ठा हो गयी और अपने घर वापसी के लिए जिद्द करने लगी ऐसी ही स्तिति गुजरात महाराष्ट्र में हुई मजदूर जहाँ था वहाँ रुकने के लिये तैयार नहीं था क्योकि उसके समक्ष न्यूनतम दिनचर्या के लिये रोटी का प्रश्न था और प्रशासनिक व्यवस्थाओ पर उसे भरोसा नहीं था।नतीज़न उनके लिये प्रशासन को परिवहन कि अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ी वावजूद इसके हज़ारो लोग सैकड़ो मिल पैदल या किसी न किसी साधन से भागे जिससे पुरे राष्ट्र में भगदड़ कि स्तिति हो गयी ।तबलीगी जमात ने कोरोना के प्रसार में कम से कम भारत में महती भूमिका अदा कि प्रारम्भ में इसके प्रसार में टाइम बम कि भूमिका अदा कि। सारी गतिविधियों के बंद होने के कारण आर्थिक रफ़्तार थम गयी जो किसी भी विकासशील राष्ट्र के लिये बर्दास्त कर पाना संभव नहीं है ।


राज्य सरकारो के पास अपने कर्मचारियों के अपने खर्चे और कर्मचारियों के वेतन के लिये पैसा नहीं रह गया।


 बेरोजगारी कि स्तिति विश्व के सापेक्ष भारत में भी बढ़ी नतीजा आम जनता ने कोरोना से बचाव के सुरक्षा उपाय को नकारना शुरू कर दीया और यह धारणा बलवती हो गयी कि यदि मारना ही है तो भूखे मरने से ज्यादा बेहतर कोरोना से मारना है।


 


भारत सरकार कि पहल--निर्विवाद रूप से आजादी के बाद भारत को ऐसा नेतृत्व प्रधान मंत्री के रूप में मिला है जिसे सम्पूर्ण विश्व स्वीकार करता है ।भारत में अब तक जितने भी प्रधान मंत्री हुए है सभी कि अपनी अलग पहचान है सब बेजोड़ थे या है लेकिन बर्तमान का नेतृत्व का नेतृत्व भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा स्पष्ठ है आज़ादी के बाद भारतीय जन मानस ने कांग्रेस के अतिरिक्त किसी पर इतना भरोसा नहीं किया आदरणीय अटल जी तेरह दिन तेरह महीने और सादे चार वर्ष का कार्यकाल अवश्य पूरा किया मगर इतने बहुमत से नहीं ।भारतीय जन मानस के विश्वास पर वर्तमान नेतृत्व खरा उतरने कि प्राण पण से कोशिश कर रहा है।चूँकि लोकतंत्र कि अपनी मर्यादा होती है जिसका निर्बहन करना एक गुरुतर जिम्मेदारी होती है भारत में कोरोना संक्रमण काल में राज्य सरकारो के मध्य समन्वय का अभाव दिखा हा यु कहे कि था ही नहीं ख़ास कर उन राज्यो में जहाँ केंद्र सरकार के मत का शासन नहीं है जो लोकतंत्र कि खूबसूरती पर बदनुमा धब्बा बनकर मजदूरों का बिस्फोट तबलीगी बिस्फोट आदि के तौर पर जनमानस ने देखा ।


 संसाधनों के होते हुये भी समुचित उपयोग अवसर के अनुसार नहीं किया जा सका नतीज़न जन मांनस में आक्रोस ने जन्म लेना शुरू कर दिया।केंद्र सरकार ने बुजुर्गो के लिये उनकी पेंशन किसानो को सहतार्थ नगद रकम उपलब्ध कराया एल पी जी गैस सस्ते दर पर उपलब्ध करा रही है साथ ही साथ पी एम केयर फंड कि नई व्यवस्था के अंतर्गत संक्रमण से निपटने के लिये धन राशि जुटाई सांसदों विधायको ने अपने वेतन का तीस प्रतिसत दो वर्षो तक न लेने का अहम फैसला किया सरकार कि नयी घोषणा के अनुसार अगले दो वर्षो तक किसी नयी योजना की घोषणा नहीं कि जायेगी साथ ही साथ बीस लाख करोड़ का पॅकेज आर्थिक नुक्सान कि भरपाई के लिये केंद्र सरकार ने किया है ।सरकार कि नियत पर शक नहीं है उसकी घोषणाओं और व्यवस्थाओ का न्यायोचित वितरण न होने पर आक्रोस बढेगा और जन मानस में यह सन्देश जाते देर नहीं लगेगी कि सरकार सभी एक जैसी होती है जनता को पीसना ही है मुझे विश्वास है कि पूर्वव्रती सरकारो के विषय में यह मिथक वर्तमान सरकार तोड़ने में सफल और सक्षम होगी।


 


आंकड़े क्या कहते है--उनहत्तर लाख कुल मरीज लेख लिखे जाने तक पुरे विश्व में है जिसमे भारत में भारत में सवा दो लाख है कुल मृतको कि संख्या लगभग चार लाख है इतनी संख्या में दोनों विश्व युद्ध मिला दे तब भी लोग कालकलवित नहीं हुये थे ।विश्व के अन्य देशो में कोरोना मरीजो में मृत्य दर सात प्रतिसत है तो भारत में साढे तीन प्रतिशत स्पष्ठ है कि समय रहते सरकार द्वारा उठाये गए सार्थक कदमो से भारत में सक्रमण के प्रति जागरूकता बड़ी और इसे कई मायनो में सफलता मिली।


कोरोना संक्रमण के सार्थक पहलु-हर विपरीत अवसर खौफ आफत दहसत के समय भी कुछ सार्थक तथ्य उभर कर सामने आते है कोरोना संक्रमण ने भी यही सन्देश दिया है ।लाक डाउन के कारण नदियो का जल स्वक्ष हुआ मानव द्वारा फैलाई जा रही गन्दगी में कमी आयीं।दूसरा सड़को पर वाहन का चलना कम हो जाने के कारण वायु प्रदूषण में कमी आई ध्वनि प्रदूषण में कमी आई ।आम जन के खर्चे में कमी आई और संसाधनों के सदुपयोग कि शिक्षा मिली क्योकि बेकार बेमतलब कि पार्टी माल शॉपिंग और गैर जरुरी जैसे शराब सिगरेट या अन्य हानिकारक बस्तुओं के क्रय विक्रय में कमी आई।यदि यही सद्बुद्धि में बदल जाए तो समाज देश सम्पन्न मजबूत होगा।एक अत्यंत महत्व्पूर्ण आंकड़ा जो प्रत्येक भारत वासी को लाक डाउन से आत्म संतोष प्रदान करेगा जो चौकाने वाला भी है केवल भारत में ही प्रतिवर्ष लगभग तीन करोड़ लोग बिभिन्न हादसों के शिकार हो जाते है जिसमे सड़क दुर्घटना रेल हवाई जहाज आदि कि सामूहिक दुर्घटना लाक डाउन के कारण लगभग पचहत्तर लाख लोगो कि जान सिर्फ भारत में बची।


 लॉकडाउन के बाद कि स्तिति--अब तक लॉकडाउन सरकार के आदेश के तहत थे मगर लॉक डाउन खुलने के बाद स्तिति उलट जायेगी अपनी सुरक्षा और बेहतरी के लिये आम जन को स्वयं उन नियमो का कड़ाई से पालन करना होगा जो लॉक डाउन के दौरान लागू थे बेवजह कि भीड़ प्रदूषण और अनावश्यक खर्चो से बचाना होगा तब कही जाकर भारत वासी अपनी लोकतंतंत्रिक अधिकारो कि मर्यादा पालन कर सकेगा कोरोना भाग जाएगा भारतवासी जीत जायेगा ।साथ ही साथ कोरोना मरीजो को दुर्भाग्य से किसी को भी हो जाय को भस्वनात्मक रूप से सुरक्षित सहयक बनकर देख भाल करनी होगी और कोरोना बिमारी से लड़ना होगा बीमार का बहिस्कार नहीं।एक महत्व्पूर्ण तथ्य यहाँ और भी है भारतीय पुलिस द्वारा लाक डाउन के दौरान सराहनीय अनुकरणीय कार्य किया गया है निश्चित रूप से उनके बिषय में समाज में सार्थक सोच उभारनी चाहिये।चिकित्सक निरंतर सेवा भाव से अपनी योग्यता दक्षता क्षमता के अनुसार उत्कृष्ट सेवाएं मरीजो को उपलब्ध करा रहे है उनके निष्काम कर्म को सलाम साम्मान किया जाना चाहिये पत्रकार मिडिया जो प्रतिपल खुद को खतरे में दाल कर् सभी जानकारियां जन जन तक वहुचने में महती भूमिका अदा कर जन जन को खतरों से सावधान सचेत कर रहा है लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ को मजबूत निष्पक्ष होना देश हित कि अनिवार्यता है।


 


विश्व एवम् भारत पर कोरोना महामारी के प्रभाव और सिख--कोरोना संक्रमण तभी पूरी तरह से नियांत्रि हो सकता है जब मानव इसका निदान खोज ले तब तक संक्रमण जारी रह सकता है पश्चिमी देशो खासकर यूरोपीय देशो को अपनी जीवन शैली खान पान में बदलाव करने होंगे क्योकि कोरोना संकट प्रारम्भ हो सकता है विश्व राजनितिक प्रतिस्पर्धा प्रतिद्वंतीता का अंत नहीं क्योकि जैविक हथियारों कि दुनियां में शीत प्रतिस्पर्धा कायम होगी जो भयानक रूप में आती जायेगी ।भारत में इसका प्रभाव संख्या के आधार पर अधिक दिखेगा लेकिन हानि के आधार पर न्यूनतम होगा भारतीय जन मानस के लिये यह संक्रमण बहुत सिख दे गया। देश और इतिहास को बहुत अच्छी तरह याद है कि जब वर्तमान प्रधान मंत्री ने अपने प्रथम स्वतन्त्रता दिवस पर स्वस्च्छता को अपना उद्देश्य घोषित किया था तब बहुत से लोगो ने मज़ाक उड़ाया था लेकिन आज इस संक्रमण के दौर में सभी को उस उदेशय के संकल्प का आभास हो चूका होगा ।यदि नहीं हुआ है तो भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। भारतीय जन मानस के लिए सिखने कि खास बात यह है कि पर्यावरण को स्वयं के प्राण के अस्तित्व से जोड़ कर् संजोये संसाधनों का दुरूपयोग ना हो साथ ही साथ अनावश्यक खर्चो से बचे यहाँ थोडा भ्रम अर्थ शास्त्रियों को हो सकता है कि देश कि जनता कि क्रय क्षमता बढ़ने से मांग बढ़ती है और उत्पादन बढ़ाने के लिये उद्योगों को मजबूत होना लाज़मी है।मगर जरुरत होने पर जनता कि क्रय शक्ति मौजूद रहनी चाहिये।लॉकडाउन के दौरान बहुत से वैवाहिक आयोजन हुये जिसमे सिमित खर्च हुये और धन कि बर्बादी रुकी जनता को जागरूक होना पड़ेगा ताकि ऐसी परिस्तितियो में परेशान न हो ।सरकार के स्तर पर यह सोचना लाज़मी हो जाता है कि जब भी ऐसी स्तिति आने वाली हो उसके पहले भारतीय समाज कि स्तिति का अध्य्यन और निश्चित समयावधि में निराकरण करने का बाद शक्ति से प्रशाशनिक निर्णयो का पालन कराया जाय साथ ही साथ राज्य और केंद्र सरकारो के मध्य ऐसे आपदा के समय ताल मेल हो चाहे पक्ष कि सरकार हो या बिपक्ष कि जो इस महामारी में स्पष्ठ तौर पर नहीं दिखी राष्ट्रीय हितो पर समूचे राष्ट्र का स्वर एक होना चाहिये।एक ख़ास सिख भारत को बाहरी ताकतों से कही अधिक अपने ही लोगो से पराजित होना पड़ता है इस प्रबृति का समूल समापन होना चाहिये।लॉकडाउन के दौरान दुर्घटनाये रुक गयी थी कारण यातायात परिवहन बंद था ।अब चलना फिर शुरू हुआ है तो सावधानी सयमित और सुरक्षित होकर वाहन चलाये या परिवहन का उपयोग करे।यदि स्वीकार करें तो यह एक अवसर भी है बहुत कुछ सिखने समझने और आचरण में ढालने का।अन्यथा कोई समाधान कभी बढ़ते आफत दहसत का नहीं मिल पायेगा।              


 



सुषमा दीक्षित शुक्ला

अब ना सखी मोहे सावन सुहाए


 


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए


 अब ना सखी मोरा मन मचलाये।


 अब तो सही मोहे पिया बिसराए।


 अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


 अब नहीं करते पिया मीठी बतियाँ ।


अब नहीं सावन गाती हैं सखियां।


 कोई उमंग सखी मन में ना आए।


 अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


 बिरहा की अग्नी में हियरा जले है


 कब से ना उनसे नयना मिले हैं ।


 अब ना पिया मोहे गरवा लगाए।


 अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


 मोरे पिया का ऐसा था मुखड़ा।


 धरती पे आया हो चाँद का टुकड़ा।


 जैसे अनंगों ने रूप सजाए।


अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


 अब ना तरंगो ने दामन भिगाये 


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।


 



मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*


🌷🌷🌷🌷🌷


*उद्देश्य*


निश्चित है उद्देश्य वो, निश्चय हो गर राह।


बाधा सारी दूर कर, पाते निश्चित चाह।


विचलित होना मत कभी, नहीं निराशा हाथ,


बढ़ते जाना राह पर, मंजिल पर हो वाह।।


 


 संकट में लाए सदा, दृढ़ निश्चय विश्वास।


कर्म निहित मानव सदा, बन जाता है खास।


करो जतन निश्चय सहित, भूलो मत उद्देश्य,


मिले मूल उद्देश्य जब, लक्ष्य रचे इतिहास।।


 


संकल्पित उद्देश्य ही, जीवन का हो मूल।


दृढ़ इच्छा विश्वास से,प्रस्तर खिलता फूल।


शास्त्र कहे संकल्प से, सहज रूप उद्देश्य,


मस्तक का चंदन बने, मधु चरणों की धूल।।


*मधु शंखधर स्वतंत्र*


*प्रयागराज*


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार भावना गौड़ ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)

भावना गौड़


पिताजी - स्व.श्री जितेन्द्र कुमार शर्मा


जन्म- 7 जनवरी 


जन्मस्थान - कालाकोट जिला राजौरी(जम्मू कश्मीर)


पता ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


शिक्षा - मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र


अभिरूचि - कुकिंग,गार्डेनिंग,साहित्य पठन व लेखन


अनभुव - टीचिंग अध्ययन


उपलब्धियां - हिन्दी साहित्य ग्रुप में ऑनलाइन - 22


                     सम्मान पत्र पिंकिश फाउंडेशन(नारी सशक्तिकरण) -09


                     अंकुर साहित्य परिवार -02     


                     नवीन कदम साहित्य समाचार पत्र -01


                     दैनिक वर्तमान अंकुर नोएडा - 07


                     दैनिक नवीन कदम (छत्तीसगढ़) - 01,


                     दैनिक हरियाणा प्रदीप( गुरूग्राम) -03!


 


1.


उमंग


 


मन में एक उमंग होती बेटी की


मैं भी एक दिन दुल्हन बनूगी


बचपन में देखा दीदी की ब्याह


बहुत उत्साह से काम किए


अब अपनी उमंग मन आई


दुल्हन बन पिया के घर जाने की


बहुत अरमा से ख्वाब सजाए


एक घरौंदा मेरा भी बन जाए


उस आँगन में अपने पग रख पाए


खुशियों से वो भी पूरा हो जाए


अब बात चली ब्याह की मन हो जाए


उमंग रहती बड़ी नया घर नए लोग


यही उमंग एक खुशी बन जाती है


घर परिवार और नए रिश्ते की नींव


सच में बहुत प्यारी ख्वाहिश की 


उंमग है मेरी अभी नए रिश्ते में बंधने की ।


 


   ✍️✍️भावना गौड़


    ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


 


2.


बाल कविता


 


  नन्हें मुन्ने राही हम


     देश सिपाही


बड़े होकर वीर बनेगें


  नन्हें नन्हें कदमों से


दुश्मन के छक्के छुड़ाएंगे


   नहीं किसी से कम


   बाल वीर है हम


एक दिन बड़े होकर


 देश सिपाही बनेंगे


नज़रें नहीं झुकने देगें


  आज नहीं तो कल


   बड़े तो होगें पल


सपनें सभी पूरे करेंगे हम 


   वीर सिपाही बनेंगे


बोलेगें जय हिंद जय भारत


  वीर सिपाही है हम ।


 


✍️भावना गौड़


ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


 


 


3.


 


विदाई(हाइकू)


 


1.


रूप निखारे


जीवन है सँवारे


लगते प्यारे


 


2.


बेटी सहती


दुल्हन है बनती


नाज करती


 


3.


घर की कली


विदाई कर चली


अपनी गली


 


4.


छाई उदासी


नयनों में छाया सी


मन की प्यासी


 


5.


बेटी है कली


पिता के गोद पली


नाज़ो से चली ।


 


✍️✍️भावना गौड़


ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


 


4.


दोस्ती एक रिश्ता


 


     बहुत प्यारा रिश्ता 


अनमोल बन्धन विश्वास भरा


   दोस्ती की ना कोई उम्र 


दोस्ती के लिए कोई भी रिश्ता


   माँ पापा भाई बहन दोस्त


संयोग एक खुशनसीबी से दोस्त पाया


   दोस्ती से ना जाने कब प्रेम हुआ


वो दोस्ती का रिश्ता कब प्यार बन गया


   बहुत खुश हूं वो ही मेरा जीवन हुआ


एक दोस्त प्रेम बनकर एक रिश्ता बना


    दोस्ती करो तो दिल से निभाओ


मत सोचिए कि अमीर गरीब छोटा बड़ा


   बस दोस्ती का रिश्ता विश्वास से बने


दुःख सुख जब भी आए मत देखो वो कैसा


     हर पल उसके लिए तैयार रहे साथ


कच्चे धागों से अनमोल कड़ी का रिश्ता दोस्ती


   खून के रिश्ते से भी मजबूत बन्धन प्यार 


साथ निभाना अंतिम पल तक दोस्ती के यार।


 


  ✍️✍️भावना गौड़


ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


    


 


5.


पिता(हाइकु)


 


1.


पिता हमारे


जीवन है सँवारे


लगते प्यारे


 


2.


पिताजी दूर


मिलन मजबूर


मेरा कुसूर


 


3.


यादें पुरानी


करते थे शैतानी 


हमनें मानी


 


4.


उनका साया


मैंने प्यार है पाया


छत्र छाया


 


5.


स्पर्श करती


प्रेम से मैं कहती


मर्म सहती ।


 


✍️✍️


सुरेंद्र सैनी टोहाना फतेहाबाद हरियाणा

125120)


 कविता 1


रंग मेरे देश के,,,


 


कोरोना की इस जंग में मैंने


अमीरों को उड़ते हुय यान में देखा।


वही गरीब को खुले आसमान देखा।


व्यापारी की होशियारी देखी,,,


किसान की दिलदारी देखी,,।।


 


नेतायों के लारे देखे,,,


सड़को पर पिटते भूख के मारे,,


गरीब देश के सारे देखे,,


लोकडाउन में देश को देखा


समाज के बदले हुय परिवेश को देखा।।


 


मतदान से जो बदले सरकार


आम जनता धक्के खाती देखी


Nri जो बैठे विदेश में,,


सरकार उन्हें यान में लाती देखी।


गरीब मजदूर की मजबूरी देखी


राज्यों की नपती दूरी देखी।।


 


लोकडाउन में करोड़ों देखे


क्वारन्टीन में लाखों देखे


बन्द के बंद बाजार भी देखें।


पुलिस डॉ की डयूटी देखी।


गरीब की किस्मत फूटी देखी।।


 


बन्द देश की रेल भी देखी


भारत का भाईचारा भी देखा


India का इम्तिहान भी देखा


दानियों का दान भी देखा।


भूख से मरता इंसान भी देखा।।


 


लाला की कालाबाजारी,,,


महंगे दाम बेचे चीज जो सारी


मोदी की दूरदर्शिता दिखी।


मानवता कही तरसती दिखी


अमीर गरीब का भेद दिखा


सरकारों का अपना खेल दिखा।।


             ( कवि सुरेंद्र सैनी)


 


 कविता 2


      भाई


जब भाई का हो 


कांधे पे हाथ


कैसी भी बिगड़ी हो 


बन जाती है बात


एक दोस्त के 


माफिक होता है भाई


सलाहकार अनुज अग्रज,,


 


कितनी भी हो


जीवन में निराशा


भाई ही भाई के


काम है आता


 


भाइयों के बिन


परिवार अधूरा


भाई की मौजूदगी से 


जो होता है पूरा


कितनी भी हो


उनमे  में पटी खाई


दिल से दूर न होता भाई


      सुरेंदर सैनी,,,,,,


 


कविता 3


पापी पेट


 


लेकर पापी पेट


वो घूम रहा है सड़को पर


पैदल चल चलकर 


फट गई है एड़ियां


सर पर बोझा


खाली पेट माप रहा है


देश की सड़कों की लम्बाई।।


 


भोजन की व्यवस्था न 


साधन की सुविधा,,


कोरोना की बीमारी में


वो सबसे अभागा,,


मेरे देश का वो ही


नन्हा शिल्पकार


जिसने कितनी ही ईमारतों


को सींचा है अपने खून पसीने से।।


 


सरकार के मिले आश्वासन का


जो पी गया प्याला,,उसके हिस्से


की नेतायों ने खाई खूब खीर


उसे मिली तो बस सड़को की 


वीरान राते और पुलिस की


लाठियों की सौगात


मिली तो केवल खाली लकीर


मेरे देश का वो अभागा मजदूर।।


 


सवाल पापी पेट का 


जो इतने जुल्म सह रहा है


मजबूर अपने हालातों से


न सच किसी से कह रहा है।


हुक्मरानों जरा जाग जायो


और न उसको तुम रुलायो।।


 


हजारो मील जो माप सकता है


मेहनत से मुश्किलों को काट सकता है।


आ गया जो अपनी आई पर,,,


फिर खुद लिखेगा वो अपनी तक़दीर


क्रोदित हुआ जो उसका जमीर,,,


सड़को पर अभागा,, क्यों खाये धक्के


मेरे देश का निर्माता वो 


बना जो आज फकीर,,,।।


 


कविता 4


मयखाना 


गम ओर तनाव में 


खुशी के मिजाज में 


हर पल जो साथ निभाये 


एक ही साथी नजर आये


मेरा प्यारा मयखाना ।।


 


दुनिया की भीड से ज्यादा 


अकेलेपन में साथ निभाये 


दुख दर्द मेरा करता साँझा 


मुझे जो धीर बंधाये,,, 


वो दोस्त है मेरा मयखाना ।।


 


दुखी लोगों का मरहम 


ओर खुशियो की दुकान 


झूठ से दूर वह सच की जुबा 


अनगिनत कहानियो का सन्ग्ग्र्ह 


हजारो गजलो का सामान 


मेरा प्यारा मयखाना ।।


 


जाती धर्म का करे भेद ना 


सबको अपनी शरण है देता 


अमीर गरीब वो सबका साथी 


टूटे दिलो की दवा का नाम 


एक ही केवल मयखाना ,,,।।


   ( कवि सुरेंद्र सैनी)


 


कविता 5


        मेरी ताकत


मेरे आंगन का शोर हो तुम


काली रात का भोर हो तुम 


जब भी मैं हो जाऊं निर्बल 


मेरी ताकत और ज़ोर हो तुम।।


 


विश्वास हो तुम जुनून हो तुम 


तुम बिन आंगन हो जाए सूना सूना 


खिलते कमल का फूल हो तुम


पग-पग जब भी आए मुश्किल 


मेरे आत्मविश्वास का शोर हो तुम।।


 


जमाने की इस भीड़ से हटकर 


मेरा चेन और सुकून हो तुम 


सफलता आई जब इन कंधों पर 


संभालने वाली कोर हो तुम।।


 


मेरे  कंधों का जोर हो तुम 


टूट कर बिखरा जब हताश मैं


  संभालने वाली डोर हो तुम


मेरा प्यार,उमंग जुनून हो तुम


मेरी ताकत और मेरा जोर हो तुम,,,,,                 


 (सुरेंद्र सैनी)


 


 


अवनीश त्रिवेदी 'अभय

मत्तगयंद सवैया


 


प्रीति भरे उर भीतर है पर बोलन से अति वो सकुचाती।


बात करे कुछ ना हमसे पर होंठन से मृदु है मुसकाती।


देह कपास लगे अति शोभित नैनन कोटि मनोज लजाती।


घूँघट के पट झाँपि रही मुख चाल चले सबसे बलखाती।


 


अवनीश त्रिवेदी 'अभय'


सुषमा दीक्षित शुक्ला

तू बिखर गई जीवन धारा,


 हम फिर भी तुझे समेट चले।


 हम फिर से तुझे समेट चले ।


तू रोई थी घबराई थी ,


उठ उठ कर फिर गिर जाती थी,


 तू डाल डाल हम पात चले ।


हम फिर से तुझे समेट चले ।


हम फिर भी तुझे समेट चले।


 विपरीत दिशा का भंवर जाल,


 नैनों से अविरल अश्रु माल ,


प्रति क्षण तड़पे दिन रात जले ।


हम फिर भी तुझे समेट चले।


 हम फिर से तुझे समेट चले।


 प्रियतम का उर में मधुर वास,


 महसूस किया हर श्वांस श्वांस ,


 फिर वीर पिता से प्रेरित हो ,


अब वीर सुता बनकर निकले ।


हम फिर से तुझे समेट चले।


 हम फिर भी तुझे समेट चले ।


तू बिखर गई जीवन धारा ,


हम फिर से तुझे समेट चले ।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार विजय कुमार सक्सेना "विजय"

विजय कुमार सक्सेना "विजय"


जन्मतिथि -- 10 जनवरी 1960


पिता -- श्री श्याम बहादुर सक्सेना


स्थाई पता -- मो-गदरपुरा निकट-शिव मंदिर, कस्बा-बिसौली, जिला-बदायूँ, उ0 प्र0, पिन-243720


मोबाइल न0 --9456065978


शिक्षा -- एम0 ए0 (अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र), बी0 एड0, एल0एल0बी0


सम्प्रति -- प्रधानाचार्य, लाला छोटे लाल स्मा0 हा0 से0 वि0,राजा की सीकरी, जिला-बदायूँ, उ0 प्र0


प्रकाशित पुस्तक --सांझा काव्य संकलन "मेरी कलम से" 


रचनाओं का प्रकाशन -- नये क्षितिज, स्मृति वन्दन, काव्य रंगोली तथा अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित।


उपलब्धियाँ/सम्मान -- 


(01) -- राष्ट्रीय कवि चौपाल शाखा-मैनपुरी,उ0 प्र0 द्वारा "रामेश्वर दयाल दुबे साहित्य सम्मान " ।


(02) -- काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका, खीरी द्वारा "साहित्य भूषण" एवं "मातृत्व ममता सम्मान" ।


(03) -- सृजन कला एवं अभिरुचि मंच, बहजोई (सम्भल) द्वारा "साहित्य साधक सम्मान" ।


(04) -- अखिल भारतीय साहित्य परिषद, विराट नगर (जयपुर) द्वारा "साहित्य सम्राट सम्मान" एवं "साहित्य भूषण सम्मान" ।


(05) -- के0 बी0 हिंदी साहित्य समिति, बिसौली (बदायूँ) द्वारा "राज बहादुर विकल स्मृति सम्मान", "सहयोग श्री सम्मान" एवं "गिरिजा कुमार माथुर स्मृति सम्मान" ।


(06) -- सरिता लोक सेवा संस्थान, सहिनवा (सुल्तानपुर) द्वारा "हिंदी रत्न सम्मान" ।


(07) -- विश्व हिंदी रचनाकार मंच, रामपुर उ0 प्र0 द्वारा "मातृभूमि सम्मान"।


(08)-- के0 टी0 साहित्यिक विकास समिति, बीसलपुर (पीलीभीत) द्वारा "हिंदी भाषा भूषण सम्मान" ।


अन्य -- शिक्षा के क्षेत्र में "उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान" द्वारा प्रो0 जे0 एस0 रुस्तगी, यू0 एस0 ए0 एवं "लाखन सिंह स्मृति सम्मान" द्वारा लाला छोटे लाल मोहरा देवी ट्रस्ट, नई दिल्ली।


विशेष -- 


(01)--आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर काव्य पाठ। 


(02)--विभिन्न साहित्यिक मंचों एवं कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ।


सम्पर्क सूत्र -- 9456065978


ई मेल -- vijaykumarsaxena1960@gmail.com


 


(01) -- सरस्वती वंदना 


      ***********************


हे हंसवाहिनी माँ वर दो वर दो वर दो।


बन ज्योति पुंज माता सब दूर तिमिर कर दो।।


 


तुम ज्ञान की देवी हो,विज्ञान तुम्हीं से है।


सब काव्य कलाओं में,सुर ताल तुम्हीं से है।


वीणा के तारों में झनकार मधुर भर दो।


हे हंसवाहिनी माँ-----


 


वेदों ने पुराणों ने,महिमा तेरी गायी है।


कबिरा की साखी तू,मानस चौपाई है।


मेरे भी गीतों के माँ स्वर सुरभित कर दो।


हे हंसवाहिनी माँ-----


 


विद्या की देवी तू,मैं अज्ञानी बालक।


याचक बन कर आया,हे माता महादानी।


चरणों में शीश मेरा माँ हस्त वरद धर दो।


हे हंसवाहिनी माँ-----


 


पूजा की थाली में,भावों का चन्दन है।


शब्दों के पुष्पों से,माँ तेरा वन्दन है।


नित ध्यान धरूँ तेरा उद्धार मेरा कर दो।


है हंसवाहिनी माँ-----


 


(02) -- क्यों घबराता है तू बन्दे


      ******************************


क्यों घबराता है तू बन्दे,


          बुरा वक्त जब आता है।


 


तूफाँ में जब नाव फंसी हो,


          मांझी पार लगाता है।


 


गम के बादल छाते हैं तो,


          सूरज भी छिप जाता है।


 


उम्मीदों की किरण दिखाने,


          नया सवेरा आता है।


 


बीज सदा मिट्टी में मिल कर,


          के ही जीवन पाता है।


 


और आग में तप कर के,


         सोना कुंदन बन जाता है।


 


जीवन की गाड़ी तो प्यारे,


          हिम्मत से ही चलती है।


 


पर्वत के सीने से ही,


          निर्मल जल धार निकलती है।


 


राह कठिन हो सकती है,


     पर राह नहीं छोड़ा करते।


 


प्रण कर लें तो हम नदियों की,


          धारा को मोड़ा करते।


 


किस्मत का सब दोष बताकर,


          मन को क्यों बहलाता है।


 


कांटे हों जिसके दामन में,


          वो गुलाब कहलाता है।


 


(03) -- माँ 


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माँ है माता भाग्य विधाता,और ममता का रुप है माँ।


माँ है लक्ष्मी दुर्गा काली,और पूजा की धूप है माँ।।


माँ है करुणा प्रेम भावना,और जीने की आशा माँ।


माँ है त्याग तपस्या मेरी,जीवन की परिभाषा माँ।।


माँ है श्रद्धा सत्य आस्था,और मेरा विश्वास है माँ।


माँ है गंगा जमुना जैसी,सब देवों का वास है माँ।।


माँ से बचपन और जवानी,अरु ईश्वर का साथ है माँ।


माँ से हँसता गाता बचपन,तेरे बिना अनाथ है माँ।।


माँ है खेल खिलौने मेरे,चंदा और चकोरी माँ।


माँ है किस्सा और कहानी,मीठी मीठी लोरी माँ।।


माँ है इस जीवन की बगिया,और खुशबू का वास है माँ।


माँ के बिन क्या जीवन जीना,जीवन बहुत उदास है माँ।।


माँ से सब बच्चों की खुशियाँ,और खुशियों की ताली माँ।


माँ ऊपर से कड़क दीखती,होती भोली भाली माँ।।


माँ है वीर शिवा की प्यारी,प्यारी पन्ना दाई माँ।


माँ है रण में चंडी काली,रानी लक्ष्मी बाई माँ।।


माँ है रोली कुमकुम चंदन,और पूजा की थाली माँ।


माँ दुनिया में सबसे सुंदर,गोरी हो या काली माँ।।


माँ है सब देवों की जननी,और चारों ही धाम है माँ।


माँ के चरणों में है जन्नत,और जन्नत का नाम है माँ।।


 


(04) -- देश प्रेम गीत


      ***********************


सारी दुनिया से प्यारा है जिसको वतन।


उसको शत शत नमन उसको शत शत नमन।।


 


प्यार जिसने किया इस धरा से सदा।


सांसों में जिसके खुशबू वतन की सदा।


दिल में जिसके बसे प्यार की अंजुमन,


उसको शत शत नमन-----


 


कैसे लिक्खूं मैं उसकी कहानी यहाँ।


कर दी जिसने निछावर जवानी यहाँ।


सीमा पर जो खड़ा सर पे बांधे कफ़न,


उसको शत शत नमन-----


 


जान से ज्यादा प्यारा है जिसको वतन।


सुबह उठ कर करे श्रद्धा से नित नमन।


गंगाजल से करे जो सदा आचमन,


उसको शत शत नमन-----


 


हमने समझा जिन्हें अपना इक रहनुमा।


उनके दमन पे हैं दाग कुछ बदनुमा।


जिसके दम से बचा है हमारा चमन,


उसको शत शत नमन-----


 


(05) -- फूल 


      ***************


फूल को कुछ पता नहीं होता,


 


कल क्या उसका हश्र होना है।


 


शीश पर किसके उसको चढ़ना है,


 


किसकी अर्थी पे उसको सोना है।


 


फूल हो या कि कोई इंसां हो,


 


सबके जीवन में यह ही होता है।


 


आज का कुछ पता नहीं उसको,


 


कल की चिंता में फिर भी रोता है।


 


फूल की जिंदगी से कुछ सीखो,


 


कैसे खिल कर के बिखर जाता है।


 


पंखुड़ी उसकी बिखर जायें पर,


 


खुशबू अपनी बिखेर जाता है।


 


बीत जाये जो उसका रोना क्या,


 


व्यर्थ में क्या भविष्य का सोचो।


 


शान से जीना है जमाने में,


 


सार्थक वर्तमान का सोचो।


 



बिसौली (बदायूँ)--- मो0 न0-- 9456065978


 


 


श्री राम चरित मानस कब और क्यों लिखी गयी

बलराम सिंह यादव धर्म एवं आध्यात्म शिक्षक


संबत सोरह सै एकतीसा।


 करउँ कथा हरि पद धरि सीसा।।


नौमी भौम बार मधुमासा।


अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।


 ।श्रीरामचरितमानस।


  अब मैं प्रभुश्री हरि जी के चरणों पर सिर रखकर सम्वत 1631 में इस कथा का प्रारम्भ करता हूँ।चैत्र मास की नवमी तिथि, मङ्गलवार को श्री अयोध्याधाम में यह चरित्र प्रकाशित हुआ।


।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।


  भावार्थः---


  श्रीरामचरितमानस की रचना का प्रारम्भ सम्वत 1631 में ही करने का मुख्य कारण यह है कि त्रेता युग में प्रभुश्री रामजी के जन्म के समय जो शुभ लक्षण थे,अर्थात योग,लग्न,ग्रह,वार और तिथि थे,वे सभी शुभ लक्षण सम्वत 1631 में श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ करने के समय थे।रामजन्म के समय की स्थिति का वर्णन करते हुए गो0जी लिखते हैं---


जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भये अनुकूल।


चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।।


नौमी तिथि मधुमास पुनीता।


सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।


मध्यदिवस अति सीत न घामा।


पावन काल लोक बिश्रामा।।


सीतल मंद सुरभि बह बाऊ।


हरषित सुर संतन मन चाऊ।।


बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा।


स्रवहिं सकल सरितामृतधारा।।


  श्रीरामचरितमानस की रचना के प्रारम्भ करने के पूर्व का उल्लेख श्रीवेणीमाधवजी ने अपने प्रसिद्ध ग्रँथ--गोसाईंचरित में विस्तार से किया है।इस ग्रँथ में यह कहा गया है कि सम्वत 1628 में गो0जी ने काशी में सर्वप्रथम रामगीतावली और बाद में कृष्णगीतावली की रचना की और इन्हें श्रीहनुमानजी को सुनाया।तब श्री हनुमानजी की आज्ञा लेकर वे अयोध्या के लिए चले।मार्ग में प्रयागराज में मकरस्नान हेतु रुके और वहीं उन्हें श्रीयाज्ञवल्क्यजी और भरद्वाजजी के सङ्गमतट पर दर्शन हुये और वहीं संवाद की अलौकिक घटना हुयी,तब हरिप्रेरित वे पुनः काशी आ गये और वहाँ संस्कृत भाषा में रामचरित की रचना करने लगे।वे दिन में जो रचते थे,वह रात्रि में लुप्त हो जाता था।तब आठवें दिन भगवान शिवजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर अयोध्या में अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना करने का आदेश दिया।


अस कहि संभु भवानि अंतर्धान भये तुरत।


आपन भाग्य बखानि चले गोसाईं अवधपुर।।


(गोसाईं चरित)


  भगवान शिवजी की आज्ञा से गो0जी अयोध्या आये और बरगदिहा बाग में ठहरे,जिसे अब तुलसीचौरा कहते हैं।यहीं लगभग दो वर्षों तक दृढ़ नियम संयम का पालन करते हुए एकही समय दुग्ध पान करते रहने के बाद गो0जी ने सम्वत 1631 में श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की।


वेणीमाधवजी ने लिखा है--पय पान करैं सोउ एक समय।


रघुबीर भरोस न काछुक भय।।


दुइ बत्सर बीते न वृत्ति डिगो।


इकतीस को सम्बत आइ लगो।।


और इस प्रकार दो वर्ष सात माह छब्बीस दिन में सम्वत 1633 में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को रामविवाह के दिन इस महाकाव्य की रचना पूर्ण हुई।


  प्रभुश्री रामजी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर प्रारम्भ होकर रामविवाह के दिन पूर्ण होने वाले इस ग्रँथ का महत्व व इसकी प्रसिद्धि होनी स्वाभाविक ही है।


 यह श्रीरामचरितमानस मुनियों को प्रिय है।इस सुहावने व पवित्र मानस की रचना भगवान शिवजी ने ही की थी जिसे गो0जी ने भाषाबद्ध किया।यह तीनों प्रकार के दोषों, दुःखों और दरिद्रता को नष्ट करने वाला और कलियुग की कुचालों और समस्त पापों का नाश करने वाला है।यथा,,,


रामचरितमानसमुनिभावन।


बिरचेउ संभु सुहावन पावन।।


त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन।


कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन।।


।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।


।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


बलराम सिंह यादव धर्म एवं आध्यात्म शिक्षक 


अरुणिमा स्मृति सम्मान 2020

यह सम्मान प्रति वर्ष जून माह में अंतिम शनिवार रविवार को एक मंचीय कार्यक्रम में प्रदान किया जाता है.. 


 


1-अर्चना द्विवेदी जी अयोध्या


2-अलका अस्थाना लखनऊ


3-हेमलता त्रिपाठी गुड़िया


4 -डॉ अर्चना प्रकाश जी लखनऊ


5-भारती रंजन कुमारी


शिक्षिका, लेखिका, समाज सेविका दरभंगा, बिहार


6-इन्दु झुनझुनवाला


7-इला श्री जायसवाल


8-लक्ष्मी करियारे जांजगीर चंपा छग


9-डॉ मीरा त्रिपाठी पाण्डेय मुंबई


10-रेनू द्विवेदी लखनऊ


 


11-निशा सिंह नवल लखनऊ


-


12-प्रीती मिश्रा पद: स. शि.


विद्यालय: पू मा वि बेलवा पदुम पयागपुर, बहराइच 


13- डॉ प्रमिला मिश्रा, सहायक आचार्य एवं प्रभारी संस्कृत विभाग, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय चित्रकूट उ प्र


 


14-रूपा व्यास रावतभाटा राज


15- रश्मिलता मिश्रा बिलासपुर


16-रुचि मटरेजा बहराइच 


17 -सीमा मंजरी गर्ग जी मेरठ


18-संगीता जानी रजनी नगर बेंगलुरु


19-सविता मिश्रा वाराणसी 


21-रीता दीक्षित लखनऊ


23-डॉ वन्दना सिंह जी हजरतगंज लखनऊ


24-सुषमा सिंह जी लोदी रोड नई दिल्ली


25-सुषमा दीक्षित शुक्ल लखनऊ


 


26-सुषमा मोहन पाण्डेय सीतापुर


27-अपर्णा मिश्रा बिलासपुर


28-मधु तिवारी,कोंडागाँव , छग


29-प्रिया चारण उदयपुर राज


30-काव्यरंगोली रिज़र्व


31-काव्यरंगोली रिज़र्व


32-काव्यरंगोली रिज़र्व


33-काव्यरंगोली रिज़र्व


34-काव्यरंगोली रिज़र्व


35-काव्यरंगोली रिज़र्व


 


यह सम्मान अकटुबर या नवम्बर में होने वाले 2 दिवसीय कार्यक्रम में वितरित किये जायँगे कार्यक्रम सम्भावित स्थल लखीमपुर या लखनऊ होगा


काव्यरंगोली टीम 


सम्पर्क सूत्र 9919256950


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार संगीता राजपूत 'श्यामा ' कानपुर ( उत्तर प्रदेश )

संगीता राजपूत " श्यामा " 


शिक्षा - एम ए 


संप्रति - लेखिका, कवयित्री 


जन्मस्थान - कानपुर ( उत्तर प्रदेश ) 


 


प्रकाशित पुस्तके - श्यामला, माह और विहंगम लघुकथा संग्रह 


अन्य साँझा संग्रह मे प्रकाशित कवितायें


 


कविताये 1


शीर्षक- तुझको मै मनाऊगा 


______________ 


 


आके बैठो पास मेरे 


तुझको मै मनाऊगा, गीत मधुर सुनाऊंगा---- 


 


प्रियतम हूँ मै तेरा सजनी 


दूर खङी क्यो चुप्पी साधे 


भेद दिलो के खोलो गोरी 


मन मे बातो को क्यू बांधे 


आखों से आंसू चुराऊगा 


गीत मधुर सुनाऊंगा 


तुझको मै ----- 


 


बैरी बनता जग का घेरा 


बिन तेरे कौन है सहारा 


चमके टिमटिम नभ का तारा 


दमके ऐसा संग हमारा 


नेह की सरगम बजाऊगा 


गीत मधुर सुनाऊंगा 


तुझको मै------- 


 


हीरे मोती पास नहीं है 


गांव में है दूर बसेरा 


अर्पण करता जीवन अपना 


खींच के लाऊं मैं सवेरा 


मांग सिन्दूरी सजाऊगा 


गीत मधुर सुनाऊंगा 


तुझको मै-------- 


 


✍ संगीता राजपूत 'श्यामा '


कानपुर ( उत्तर प्रदेश )


 


कविता 2


शीर्षक ( कोहराम ) 


 


थम सी गयी है जिन्दगी 


पूस की ठंडी रातो मे 


छा रहा है अंधेरा घना 


और सुलग रहे अंगार भी 


छल प्रपंच का कोहरा 


मचा रहा कोहराम भी 


धधक रहे षड्यंत्र के शोले 


उठ रही नफरतो की दीवार भी 


किस किस को समझाऊँ मैं 


हर कोई बस फूंकने को तैयार है 


वामपंथ के कीचङ मे सन कर 


बर्बाद हो रहे नौजवान भी 


उन्मुक्त हो कर रहे उपद्रव 


रौदते मर्यादा और सम्मान भी 


चाहते हो मिटाना, तो मिटाओ 


अन्याय अत्याचार को 


चाहते गर तोङना, तो तोङो 


बेङिया जातिवाद की 


राष्ट्र की सेवा में तप कर 


चमको तुम कुंदन के जैसे 


बढ चलो कर्तव्य पथ पर 


तुम हो तैयार, तो हूँ तैयार मै भी 


 


संगीता राजपूत 'श्यामा '


कानपुर ( उत्तर प्रदेश )


 


कविता 3


शीर्षक - प्रेम दीप 


 


दीपक जलाके प्रेम का 


स्वयं को बाती बना दिया 


हदय के उजङे नगर मे 


प्रेम कमल दल खिला दिया ----- 


 


जन्म जन्म की मै प्यासी 


पिया विरह में तप रही 


आखों में आस मिलन की 


प्रीति की माला जप रही 


प्यार का अक्षर आधा पहला 


मैने पूरा सच्चा बना दिया -------- 


 


प्रेम की धारा बहती जग में 


प्रेम ही होता जीवन सार 


बिना प्रीत के सूना जीवन 


सुन ले मेरे प्राण आधार 


फूलों से महके नगर का 


तुमको मैने स्वामी बना दिया ----- 


 


आत्मा से आत्मा का बंधन 


पुण्य प्रेम का बनता मार्ग 


काम रहित हो प्रीति जिसकी 


पावन वो ही होता प्यार 


तेरे बिन मै रह ना पाऊँ 


स्वयं को हंसिनी बना दिया ------ 


 


 


संगीता राजपूत ' श्यामा '


कानपुर ( उत्तर प्रदेश )


 


कविता 4


शीर्षक ( कचौरी )


 


  तपती रेत, सुलगती छूप 


 


पीङा की तपिश मे , झुलसता रूप 


पैरो की फटी बिवाइया, सख्त हुयी


 


पेट मे दौङती भूख और हांफता शरीर 


 


ठेले पर लगी कचौरी, जी ललचाने 


लगी 


 


फटी जेबे, खाली हाथ ,आखो की लाचारी 


 


टूटता धैर्य, बढती भूख और आक्रामक हो चली 


 


झपटा हाथ , हाथो मे दबा दो कचौरिया 


 


भूखे लङखङाते कदम और पीछे 


भागती भीङ 


 


भीङ के पत्थर से लहूलुहान शरीर 


 


सुनसान टूटी इमारत, कचौरी संग स्वयं को छुपाता शरीर 


 


गहरे घाव , घाव की पीङा से कांपते हाथ 


 


बहता खून, टूटती सांसे 


निर्जीव पङा शरीर 


 


कुत्तो का झुंड, कचौरी पर झपटना 


 


निर्जीव आखों का अभी भी कचौरी को देखना 


 


संगीता राजपूत "श्यामा " 


कानपुर ( उत्तर प्रदेश )


 


कविता 5


शीर्षक - मातृत्व


 


 


विचार मग्न प्रकृति बैठी 


हर घर मातृत्व बरसाऊ कैसे 


निज संतान को ढाढ़स दे 


 वो प्रेम सुधा भर लाऊं कैसे ----- 


 


स्वयं को बाटा माँ के रूप मे 


गढी प्रकृति ने ममता की मूरत 


अमृत मय है माँ की बोली 


छवि सलोनी मधुमय सूरत 


ईश भी जिनको शीश नवाते 


ह्दय मै उसका दुखाऊँ कैसे  


निज संतान ----- 


 


सागर तल से गहरी होती 


मां भावो की डोली है 


जिनकी आशीषों से मिलती 


खुशियों की भर झोली है 


मां की थपकी बङी सुहावन 


आँचल प्यार का भुलाऊ कैसे 


निज संतान को----- 


 


भरे रहे कुटुम्बी सारे 


पीहर लागे माँ बिन सूना 


देखे दौङ लगाये छाती 


देती वह अपने से दूना 


जिनकी माँ ना होती जग में 


बहते नीर सुखाए कौन 


निज संतान ----- 


 



 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ.दीप्ति गौड़ ‘दीप’  ग्वालियर (म.प्र.) भारत


सम्प्रति- शासकीय शिक्षिका


विधा - गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे, हाइकू,कहानी,लेख,निबंध,समीक्षा |


ईमेल- gaurdeepti2012@gmail.com


प्रकाशन- काव्य संग्रह ‘देहरी का दीप’,शिक्षा क्षेत्र की 20 पुस्तकों का प्रकाशन,अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में सहभागिता, आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं अन्य चैनल्स पर काव्य पाठ का प्रसारण ।


सम्मान-सर्वांगीण दक्षता हेतू भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल शर्मा स्मृति स्वर्ण पदक,विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के रूप में राज्यपाल अवार्ड, "नेशन बिल्डर अवॉर्ड", राष्ट्रीय लक्ष्मीबाई काव्य भूषण सम्मान , “ग्वालियर गौरव सम्मान”, “अद्वितीय युवा प्रतिभा” “शब्द-सृजन सम्मान”,तेजस्विनी सम्मान,राष्ट्रीय शौर्य काव्य अलंकरण आदि से सम्मानित l शिक्षण कार्य में पर्यावरण गीत, दोहे, हाइकु, खगोल जागरुकता, मद्य निषेध आदि से संबंधित काव्य का प्रयोग नवाचार के रूप में कर रही हैं । 


ब्लॉग- अनुभूति के छंद कवयित्री डॉ. दीप्ति गौड़ ‘दीप’


 


कविता-1


हमने दुनिया के गम उठाए हैं 


हमने दुनिया के गम उठाए हैं ।


तब कहीं रोशनी में आए हैं ।


ये जो परछाईयां सिसकती हैं,


मेरी मजबूरियों के साए हैं ।


अब किसी पर यकीं नहीं होता ,


हमने इतने फरेब खाए हैं ।


चार दिन के लिए ज़माने में ,


 ज़िंदगानी उधार लाए हैं ।


ये जहां कितना बेमुरब्बत है, 


चोट खाकर ही जान पाए हैं ।


इक अंधेरा मिटा नहीं दिल का ,


“दीप”हमने बहुत जलाए हैं


 


जिंदगी तुझसे शिकायत है मुझे 


 


जिंदगी तुझसे शिकायत है मुझे l


चंद खुशियों की जरूरत है मुझे l


 


कैसा बादल है बरसता ही नहीं,


प्यार की बूंद की चाहत है मुझे l


 


दिल की धड़कन भी उनसे कहती है,


पास आने की इजाज़त है मुझे l


 


मैं ज़माने की तरफ क्या देखूं ,


उनकी सूरत ही तो जन्नत है मुझे l


 


हसरतों के गुलाब खिलते हैं ,


इन बगीचों की जरूरत है मुझे l


 


कब तलक ‘दीप’ को सताओगेे


हँस के कह दो कि मुहब्बत है मुझे l


 


बात होती है जो प्यार में 


 


बात होती है जो प्यार में,


वो नहीं होती तकरार में ।


हो रहा दो दिलों का मिलन ,


आ रहा लुत्फ़ इस बार में ।


फूल-सा है मुलायम बदन ,


तिल भी चुभता है रुखसार में।


जब सरकती है चिलमन कोई ,


लुत्फ़ आता है दीदार में ।


“दीप “मेरा वो महबूब है ,


छोड़ सकता न मझधार में ।


 


हवायें गुनगुनाती हैं


                                      


हवायें गुनगुनाती हैं बहारें मुस्कुराती हैं l


कोई आया है परदेशी खबर सखियां सुनाती हैं l


 


नज़र भर देखने की धुन में पागल हो गई आंखें,


मेरे पैरों की पायल भी मिलन के गीत गाती है l


 


पपीहा बोलता है बरगदों की डाल पर बैठा,


गुलाबी चूड़ियां सुन कर खुशी से खनखनाती है l


 


किसी का नाम लिख रखा है मेहंदी से हथेली पर,


जिसे पढ़कर सभी सखियां हकीकत जान जाती हैं l


 


लगा दीवार पे दर्पण दिखाता रूप यौवन का,


हुई मैं ‘दीप’ दीवानी मुझे यादें सताती हैं l


 


 दिल आशिकाना बन जाएगा


 


दिल मेरा है तन्हा तन्हा, 


कोई फ़साना बन जाएगा l


उनसे नजरें मिलती रहीं तो, 


दिल आशिकाना बन जाएगा l


मेरे अल्फाज़ो में कोई, 


बहर बिठा दो प्यारी-सी,


छेड़ दो दिल से कोई तरन्नुम 


एक तराना बन जाएगा l


सारा कुसूर जमाने का था 


ना थी मेरी कोई खता,


बन जाओ तुम मेरे हमदम 


इक आशियाना बन जाएगा l


लब मेरे खामोश है लेकिन


निकलेगी जिस रोज़ दुआ,


राह के कोई फ़क़ीरों जैसा, 


इक नजराना बन जाएगा l


फसले-गुल में हमने बुलाया , 


है दीदार की हमको तलब,


गजलों की महफिल है शहर में, 


यही बहाना बन जाएगा l


दिल के नशेमन में ये सोचकर 


जगह बनाई थी हमने ,


‘दीप’ किसी दिन अपना भी तो 


हक मालिकाना बन जाएगा l


रचनाकार


डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप"


विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के रूप में राज्यपाल अवार्ड 2018 से सम्मानित


शिक्षाविद् एवम् साहित्यकार


ग्वालियर (म.प्र.)भारत


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार ऋचा मिश्रा" रोली" बलरामपुर उत्तर प्रदेश

ऋचा मिश्रा “रोली"


पिता का नाम -अरुण कुमार मिश्र 


माता का नाम - कृष्णा कुमारी मिश्रा


पता - श्रावस्ती बलरामपुर उत्तर प्रदेश


Mo 6386339158


 


कविताये


तुझे जब याद करती हूँ, स्वयं को भूल जाती हूँ।


सदा अपने स्वरों में मैं ,तुझे ही गुनगुनाती हूँ।


तुझे जब...............


वो' तेरे प्यार का संगम, अदा वो मुस्कुराने की।


तसव्वुर में बसाकर लाज से नजरें झुकाती हूँ।


तुझे जब.............


वो तेरा झूठका -लड़ना,झगड़ना प्यार भी करना।


उसे जब सोचती हूँ मैं, हृदय में खिलखिलाती हूँ


तुझे जब..................


वो सीने में धड़कते दिल की बातें जब सुनी मैंने।


कसम से याद में मैं, हर घड़ी आँसू बहाती हूँ।


तुझे जब......................


कि तुझसे हो गया हर पल दुलारा आज जीवन का ।


गमों के दौर में भी मैं खुशी से मुस्कुराती हूँ।


तुझे ही.....................


 


2


शीर्षक---------- भुखमरी


 


भूख के मारे तड़प रहे है 


नही मिल रहा खाने को 


सड़को पर है भीख मांगते 


अपनी भूख मिटाने को 


कोई भी जो देता रोटी


आशिर्वाद वो देते है


कोई जो दे देता उनको


जूठन भी खा लेते है 


हे ईस्वर तेरी कैसी लीला 


अनुपम अजब निराली है 


पूछ रही है रोली तुमसे 


बन कर आज सवाली है 


कोई रेस्टोरेंट में जाकर 


पिज़्ज़ा बर्गर खाता है 


 एक रोटी के लिए भिखारी 


दर दर ठोकर पाता है 


मालिक अब मेरी भी सुन  


रहे सलामत जग सारा 


भूख से कोई प्राण न खोए 


न कहे तुझे कोई हत्यारा 


 


 3-


 


विधा----- पर्यावरण संरक्षण


 


फैला दो इतनी हरियाली


पत्ती - पत्ती डाली - डाली ,


वृक्ष लगाएं हम सब मिलकर


पर्यावरण की बात निराली ।


 


मिलकर हाथ बढ़ाओगे तो


शुद्ध हवा , जल पाओगे ,


दोहन करते रहे प्रकृति को 


तो पीछे पछताओगे ।


 


ध्वनि,वायु,जल औ मिट्टी में  


प्रदूषण अब गहरा है ,


इसको दूर भगाएँगे हम 


बाँधा सर पर सहरा है ।


 


पर्यावरण अगर बचता तो 


तरु की छाया पायेंगे ,


जनगण की रक्षा भी होगी 


सुंदर फल भी खायेंगे ।


 


वृक्ष बचाओ जीवन पाओ         


और हवा भी शुद्ध बनाओ ,


इन सब का तुम कर लो संचय


तो जीवन हो जाए सुखमय ।


 


         4-


 


नई सृष्टि निर्माण करें 


...........................


 


मैं ही जननी , मैं ही ज्वाला 


मैं ही भद्र-कराली हूँ ,


मैं ही दुर्गा , मैं चामुंडा ,


मैं ही खप्पर वाली हूँ !


 


सृष्टि सदा हँसती आँचल में 


नर को देती काया हूँ ,


मुझसा कोई नहीं जगत में 


धूप कहीं मैं छाया हूँ ।


 


त्यागमयी , करुणा की मूरत ,


देवी भी ,कल्याणी भी ,


मुझमें है संसार समाहित,यह 


गंगा का पानी भी ।


 


अन्नपूर्णा ,लक्ष्मी मैं ही हूँ ,आ 


जग का कल्याण करें ,


जहाँ सदा खुशियाँ बसती हैं


नई सृष्टि निर्माण करें !


 


5-


**जीवन क्या है**


 


जीवन गीत है ,और ये संगीत है 


मानव हृदय का देखो , ये मीत है 


जीवन बहार है ,जीवन फुहार है 


खिल गया जबसे ,धरा पर निखार है 


जीवन नाता है ,वीरो की गाथा है 


जीवन अवसाद है ,बनता प्रसाद है 


नवल ये गात है ,जीवन प्रभात है 


जीवन उन्माद है ,जीवन उपकार है 


हो न सफल तो ,सब कुछ बेकार है


जीवन कहानी है ,ख्वाबो की रवानी है 


प्रिय के मिलन की ,अद्भुत निसानी है 


जीवन राग है ,बन बैठा विराग है 


तिमिर हो हटाता हुआ ,ऐसा चिराग है


जीवन बहाना है ,खुशियो का ठिकाना है 


साथ यहाँ सदा एक ,दूजे का निभाना है 


जीवन तो प्रीत है ,गुनगुनाता गीत है


सफर ये सुहाना ,जीवन ही मीत है 


 


स्वरचित


 


 


 


रूपा व्यास, पता-'परमाणु नगरी'रावतभाटा

नमन मंच


शीर्षक-'जीवन के गुरु'(कविता)


 


जीवन में गुरु स्थान महान।


गुरु ही हैं, मेरे जीवन की शान।।


 


एक गुरु माँ समान।


जीवन हुआ आपसे आसान।


हर क्षण सीखा आपसे बार-बार।


हर गलती पर भी मुझे मिला आपसे प्यार।।


 


 एक गुरु पिता समान।


जीवन हुआ आपसे आसान।।


आपसे है,मेरी आन-बान।


आपसे ही सीखा,मैंने सभी का मान।।


 


एक गुरु मित्र समान।


जीवन हुआ तुमसे आसान।।


जीवन हुआ तुमसे व्यावहारिक।


तुमसे ही सीखा,जीना मैंने पारिवारिक।।


 


एक गुरु पुत्री समान।


जीवन हुआ तुमसे आसान।।


तुम पूर्वी हो मेरी प्रेरणास्त्रोत।


मेरे जीवन उन्नति का तुम ही हो,स्त्रोत।।


 


-रूपा व्यास,


पता-'परमाणु नगरी'रावतभाटा


जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान)


मोबाईल न.-9461287867


ई-मेल-


rupa1988rbt@gmail.com


*स्वरचित व मौलिक*


काव्य रंगोली ज्योतिष समस्या समाधान

काव्य रंगोली की एक ओर प्रस्तुति ज्योतिष विज्ञान समस्या समाधान ग्रह नक्षत्र सामुद्रिक शास्त्र अंक ज्योतिष भृगु संहिता रावण संहिता जन्म कुंडली प्रश्न कुंडली पंचांग आदि के अच्छे जानकार लोंगो द्वारा आपकी समस्या एवम जिज्ञासाओं का समाधान किया जायेगा। अपना मोबाइल नम्बर समस्या निम्न नम्बर पर व्हाट्सएप्प करे। प्रति मास 1 दिन किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा सरल उपाय लाइव बताये जायँगे।ज्योतिष के जानकार भी संपर्क करे. व्यवसायिक लोग दूर रहे समाजसेवा का जज्बा हो तो जुड़े..


सम्पर्क करें कार्यक्रम प्रमुख नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर ज्योतिषाचार्य एवम भबिष्य वक्ता मो0 9889621993


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ आभा माथुर जी उन्नाव

डॉ. आभा माथुर


जन्मतिथि-15-08-1947


जन्म स्थान-बिजनौर (उ.प्र.)


 


 


पूर्ण शिक्षा-डॉक्टरेट


कार्यक्षेत्र-उत्तर प्रदेश सरकार में प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी पद से सेवा निवृत्त


 


सामाजिक गतिविधियाँ 1-प्रान्तीय सचिव


भारत विकास परिषद्, रजि0


2-उपाध्यक्ष - रोटरी इण्टरनेशनल क्लब


3- सदस्य-जन एकता मुहिम


4-सदस्य-पेंशनर्स एसोसिएशन


 


लेखन विधा - कविताएं,कहानी,संस्मरण, लघुकथाएं ,लेख आदि


 


रचना प्रकाशन- विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र एवम पत्रिकाओं में नियमित शताधिक रचनाये संस्मरण कहानियां इत्यादि प्रकाशित


 


प्राप्त सम्मान- अनेक संस्थाओ द्वारा असंख्य सम्मान प्राप्त एवम शोशल मीडिया की प्रतियोगिताओं में सम्मानित


 


 


विशेष उपलब्धि-आँग्ल भाषा में भी लेखन


 


सम्पर्क सूत्र मोबाइल 9919577775


ईमेल abha.mathur.dr@gmail.com


1045 गाँधी नगर 


ईदगाह रोड,उन्नाव, उ.प्र.


              कविताये 1-पराया चाँद


तुम मिल कर भी 


  न मिल सके, 


 जैसे कोई पथिक प्यासा


 सागर जल अंजुलि में भर


 हसरत से देखे पर


प्यास को न छल सके, 


 कुछ यूँ ही मैं


 तुम्हें देखती रही


 शब्द बन गये


 भावों के बाँध थे


 तुम किसी और के चाँद थे. 


      --डॉ. आभा माथुर     


   


2- एक मैं बच गई


 


वह छोटी लड़की 


बहुत नटखट पर शिक्षिकाओं 


की प्यारी ,क्यों कि पढ़ाई सहित


सभी कार्यक्रमों में आगे


घिरी रहती थी सहेलियों से


 


वह नवयुवा प्रवक्ता जो


जानी जाती थी साहस 


और विनोद प्रियता के लिये


लोकप्रिय थी साथियों में


 


वह परिपक्व अधिकारी 


जो कर्मठता के लिये प्रसिद्ध थी


धीरे धीरे पड़ गई अकेली


अब समय काटती है


मोबाइल के साथ


 


अकेले में याद करती है


 


       


3- समन्दर


 


ऊपर से दिखता है शान्त


तू भी मैं भी, 


अन्तस् में तूफ़ान छुपाये


तू भी मैं भी


तेरे उर में जलचर विचरें


मेरे उर में लहरें


जाने क्या क्या राज़ छुपाये


दोनों ने ही गहरे


ज़ख़्म खाये दोनों बैठे हैं


झांके कोई अन्दर


क्या बतलाऊँ, किसे सुनाऊँ?


ऊपर दिखता सुन्दर


जानते हो, अनजान बनो मत


ओ समन्दर।                         


 


4- ख़रबूज़ा और यादें


आज ख़रबूजा़ खाया


ख़रबूज़ा अपने साथ


अनगिनत यादें ले आया


बचपन के दिन


घर में ख़रबूज़ों का आना


काट काट कर खाना


उनके बीजों का संग्रह


सड़ाया जाना


गूदा अलग कर धोना


सुखाया जाना और


सब बच्चों में बँटवारा


हिस्सा कम होने की शंका


बच्चों में खटपट


बड़ों की डाँट


छिलके न फैलाने का निर्देश


ख़रबूज़े अभी भी 


बाज़ार में आते हैं


वह स्वाद क्यों नहीं ?


 हम समझ नहीं पाते हैं,


 बहुत विचार किया तो पाया


 स्वाद ख़रबूज़े में नहीं,


 बचपन में था।


           डॉ.आभा माथुर


      


5- नये युग की नारी


 


नहीं चाहिये कोमल दुर्बल


छुई मुई सी ललनायें


आज चाहिये मेधा साहस


प्रज्ञा वाली बालायें


नारी का लज्जालु रूप अब


बीते कल की बात हुआ


निर्भयता, संकोच रहितता


यह है उसका रूप नया


काँटों भरे कठिन युग में


भूलो नत-नयना नारी को


तेजस्वी मुख निर्भीक दृष्टि


अब नहीं रही सुकुमारी वह


कोमलता अब नहीं चाहिये


युग है कठिन प्रहारों का


बच कर चलना है मुश्किल


नव युग है यह असि-धारों का


अब उच्चादर्शाें की अफ़ीम में


बेसुध न रह पायेगी


कर्तव्य विवश केवल नारी


यह स्थिति सही न जायेगी


अब उसे त्याग की देवी कहकर


स्वार्थ न साध सकोगे तुम


वस्त्राभूषण रूपी बे़डी में


अब नहिं बाँध सकोगे तुम


इसलिये आधुनिक नारी को


अनुचित लज्जा तज देनी है


जो विकृत हुई सदियों से वह


मूरत संशोधित करनी है


        


 


 


6- सावन आया है भरपूर


मन वल्लरी में किसलय फूटे


जग के नियम लगे सब झूठे


कामनाएं भी पंख पसारे


उड़ीं गगन में दूर


कि सावन आया है भरपूर


 


अम्बर में जब बादल घुमड़े


सौ सौ भाव हृदय में उमड़े


निर्गत बचपन मन पर छाया


यौवन ने भी गीत सुनाया


आयु भूल मन पीछे भागा


निकल गया अति दूर


कि सावन आया है भरपूर


 


दिवा स्वप्न जब टूटा मेरा


पाया चारों ओर अँधेरा


 


दिवा स्वप्न में करतल ध्वनि थी


सत्य जगत में मैं एकाकी


कहाँ गये वे जगमग सपने ?


कहाँ गये वे प्रियजन अपने


जीवन पथ पर चलते चलते


आ पहुँची अति दूर 


कि सावन आया है भरपूर


 


खिड़की से जब हाथ बढ़ाया


नीर बिन्दु ने कर सहलाया


रोमांचित कर तन मन मेरा


एक विस्मृत सपना दिखलाया


तन मन यूँ झंकृत कर डाला


बजता ज्यों सन्तूर 


कि सावन आया है भरपूर


 


दूर कौन वह छोटी बच्ची


नन्ही नन्ही बाहें फैला


गोल गोल चक्कर पर चक्कर


लगा रही है,वर्षा जल में


नहा रही है ,खिले फूल सा


उसका मुखड़ा,मुखड़े पर है नूर


कि सावन आया है भरपूर


 


पास आओ ए, छोटी बच्ची


चेहरा दिखलाओ तुम अपना


यह चेहरा तो पहचाना सा


लगता है कुछ कुछ अपना सा


अरे ये चेहरा मेरा कैसे


आह्लाद से दिप् दिप् करता


जैसे मला सिन्दूर


कि सावन आया है भरपूर


 


बच्ची बदली नवयुवती में


युवती से फिर प्रौढ़ा


प्रौढ़ा से फिर वृद्धा


जीवन पथ समाप्तप्राय है


ईश मिलन नहिं दूर


कि सावन आया है भरपूर


         *डॉ.आभा माथुर*


  


 


 


7-*ज़रा सोचो*


कन्याभोज करने वालों


तुम ध्यान से मेरी बात सुनो


यदि आये पसन्द यह बात मेरी


 तो इसको भरे समाज कहो


 यूँ तो छोटी बच्ची को तुम


 देवी कह पूजा करते हो


 पर वहीं अजन्मी कन्या को


 यमलोक तुम्ही पहुँचाते हो


 मासूम बच्चियों को पा कर


 राक्षसों की लार टपकती है


 वह छोटी है , क्या समझेगी


 टॉफ़ी पा गोद में आती है.


 अवसर पाते ही जो नर से


 एक नरपिशाच बन जाते हैं


वे ही नर ख़ुद को इस समाज


 का रखवाला बतलाते हैं


क्या सारे भारतवासी ही


 मानवता को हैं भूल गये ?


 क्यों मानव ,दानव बन बैठा?


 क्यों पाप पुण्य सब भुला दिये ?


 पाठक आगे की बात सुनो


 पंचायत का निर्णय देखो


 है गैंगरेप का दण्ड मिला


 एक बंगदेश की नारी को


 सोचा दण्ड के माध्यम से


 उनकी "दावत" हो जायेगी


 वे तो दण्डित कर रहे उसे


 उन पर कोई आँच न आयेगी


वह इसी गाँव की बेटी थी


" काका" कह तुम्हें बुलाती थी


तुमने ही ऐसा दण्ड दिया


 मानवता थर्रा जाती थी


 अब गर्वित सर ऊँचा कर के


 तुम जग में घूमा करते हो


 थू ,तुम नाली के कीड़ों पर


 जो ख़ुद को मर्द बताते हो


 कुछ पंचायत-सदस्य बनकर


 ख़ुद को भगवान समझ बैठे


 जीने दें तुम को या मारें


 अपना अधिकार समझ बैठे


 क्यों ग़ैर जाति से प्रेम किया ?


 क्यों अपने गाँव में प्रेम किया ?


 ऐसे नाना अपराधों का है


 केवल एक दण्ड " हत्या"


 दुर्भाग्य विवश कोई नारी


 किसी भेड़िये का शिकार बनी


 भेड़िये को देते दोष नहीं


 नारी निन्दा की पात्र बनी


 कब तक भारतवासी पीड़ित को


 निन्दित कर तड़पायेंगे ?


 ज़ख़्मों पर मरहम रख न सके


 वे जिह्वा बाण चलायेंगे 


 हा! भीष्म! अगर तुम होते तो


 तत्काल प्राण तुम तज देते


 तुमने न उठाया धनुष-बाण


 नारी माना था शिखन्डी को


 वह तो था अर्द्ध नारी लेकिन


उस पूर्ण नारी की करो बात


वध कर अपनी ही पुत्री का


मूँछों पर देते "मर्द" ताव


जितना सोचो उतनी ही यह


सूची बढ़ती ही जाती है


कुछ कुकृत्य तो ऐसे हैं


कहते जिह्वा कट जाती है


रक्षक ही जब भक्षक बनते


तब पाये निर्भया ठौर कहाँ ?


यह इसी देश की गाथा है


जग में ऐसा कोई देश कहाँ ?


ईश्वर मेरे भारत का तुम


उद्धार करो,मत देर करो


 अनुचित और उचित में भेद करें


 ऐसा विवेक हम सब को दो.


          डॉ. आभा माथुर


 


                 


8- दादी का गाँव


सुबह हो गई मीठी मीठी


लाली छाई चारों ओर


चीं चीं चूँ चूँ काँव काँव का


सारे नभ में छाया शोर


आशु उठा अँगड़ाई ले कर


जल्दी उसे नहाना है


नाश्ता कर, बस्ता लेकर


जल्दी स्कूल जाना है।


तभी उसे आ गई याद


कल टीचर की कही बात


" कल से गर्मी की छुट्टी है


एक मास की छुट्टी है ।"


मन उड़ गया सैर करने


लगा गगन में मन उड़ने


पक्षी चूँ चूँ क्यों करते हैं ?


क्या यह हमसे कुछ कहते हैं?


ध्यान लगा सोचा उसने 


तो बात का अर्थ समझ आया


कौआ संदेशा लाता है


यह दादी ने था बतलाया


उसने पूछा "कौए भाई, 


क्या तुम मुझसे कुछ कहते हो ?


जो कहना है स्पष्ट कहो


संकेतों में क्यों कहते हो ?"


कौआ बोला " काँव काँव


आशु चलो दादी के गाँव


गाँव में दादी रहती हैं


राह तुम्हारी तकती हैं


अब गर्मी की छुट्टी है, 


थोड़े दिन की मस्ती है"


आशु गया मम्मी के पास


बोला " मम्मी सुन लो बात


अब गर्मी की छुट्टी है


थोड़े दिन की मस्ती है


दादी के घर जाना है


नदी में ख़ूब नहाना है


बाग़ों में फूल खिले होंगे


पेड़ों पर आम लगे होंगे


ख़ूब आम मैं खाऊँगा


थोड़े तुम्हें खिलाऊँगा"


मम्मी पहले झल्लाईं


फिर थोड़ा सा मुस्काईं


बोलीं " बच्चे, बात सुनो


ज़िद्दी बच्चे नहीं बनो


तुम्हे मॉल ले जाऊँगी


पिज़्ज़ा भी खिलवाऊँगी"


लेकिन बच्चा मचल गया


गर्दन से माँ की लटक गया


"मॉल तो अक्सर जाते हैं,


गाँव मगर कब जाते हैं ?


गाँव में दादी रहती हैं


राह हमारी तकती हैं


वह भी पापा की मम्मी हैं


जैसे तुम मेरी मम्मी हो


जब टूर पे क्लास को टीचर ने


सारा लखनऊ घुमाया था


मैं सुबह सवेरे चला गया था


देर रात को आया था


तब तुम कितना घबराई थीं !


खाना भी खा नहिं पाई थीं !


जब लौट के मैं घर आया था


तब तुम्हें चैन आ पाया था


दादी पापा की मम्मी हैं।


वह भी तो घबराती होंगी,


क्या हम सब से दूर रह कर


वह कभी चैन पाती होंगी ?


जब कभी गाँव हम जाते हैं,


वह कितनी ख़ुश हो जाती हैं


लड्डू पूड़ी आम जामुन


वह हमको ख़ूब खिलाती हैं"


आख़िर बच्चे की जीत हुई


मम्मी उसकी ज़िद मान गईं


बच्चे की बातें सच्ची थीं


इस कारण मम्मी हार गईं


पापा तो यह ही चाहते थे, 


लेकिन वह कह ना पाते थे


बच्ते की बातें सुन सुन कर


वह फूले नहीं समाते थे


फिर कुछ दिन बाद ही दादी के


गाँव में वह सब बैठे थे


सब ख़ुश थे और आशु बाबू


आम के पेड़ पर बैठे थे


           *डॉ.आभा माथुर*   


       


9- बोन्साई


 


पहले मुझे भूमि से उखाड़ा गया


फिर सहायक जड़ें मेरी काटी गर्इं


जिससे मैं बढ़ न सकूँ


केवल मुख्य जड़ मेरी छोड़ी गई


जिससे मैं मर न सकूँ


गमले मैं रहता हूँ, शोभा बढ़ाता हूँ


निश्चित धूप, निश्चित छाँव पाता हूँ


निश्चित मात्रा में खाद पानी 


मेरा आहार है, हाँ यह सच है


कि मिलता मुझे दुलार है


समय, समय पर मेरी 


जड़ें काटी जाती हैं, समझ सकोगे 


क्या तुम मेरी व्यथा को ?


बैठक कक्ष में सजाया जाता हूँ


सराहना पाता हूँ


फिर भी कभी कभी यह सोचता


हूँ कि, विशाल वृक्षों की


मैं जगहँसाई हूँ


हाँ मैं बोन्साई हूँ।    


 


 


10 फ़ैशनेबल  चूज़ा


            ( बाल कविता )


उन्नाव के गाँधीनगर में रहता था एक चूज़ा


फड़फड़ करता घूमा करता काम न था कोई दूजा


उन्ही दिनों पड़ोसियों ने टीवी एक मँगाया


चूज़े को भी टीवी कार्यक्रमों ने बहुत लुभाया


रंग चढ़ा सोचा उसने क्यों खाऊँ दाना दुनका


क्यों न मैगी नूडुल्स खाऊँ बस दो मिनट का नुस्ख़ा ?


प्यास लगे तो पीऊँ पेप्सी ,विवेल से मैं नहाऊँ


गर्मी में एसी लगवाऊँ फ़ैशनेबल बन जाऊँ


इन्ही ख़्यालों में दिन दिन भर अब वह डूबा रहता


सब मुर्ग़े मुर्ग़ियों को वह अंकल आन्टी जी


कहता


बच्चे के यह ढंग देखकर उसकी माँ घबराती


लेकिन फिर भी क्या करती वह कुछ भी समझ न पाती


एक दिन चूज़ा माँ से बोला "लगती मुझे थकान


बढ़ती उम्र का बच्चा हूँ ला दो मुझको कॉम्प्लान


या फिर च्यवनप्राश ही ला दो,झंडू का ही लाना "


माँ बोली "क्या कहता है तू झाड़ू आज लगाना ?


बेटा हम मुर्ग़े मुर्ग़ी ,कूड़ा संसार हमारा


कूड़े से ही भोजन चुनते ,यह अधिकार हमारा"


चूज़े ने सर ठोंक लिया फिर बोला "मम्मी सुन लो


कूड़े से मुझको नफ़रत है मोती सोप मँगा दो "


माँ बोली " प्यारे बेटे मोती सुंदर है माना "


किन्तु कड़ा है बहुत ,भला संभव है उसको खाना ?"


चूज़े ने सोचा मुश्किल है इनको कुछ समझाना


गुमसुम होकर बैठ गया वह छोड़ा पीना खाना


एक दिन मुर्ग़ी बोली "बेटा क्यों रहते चुपचाप ?


कहो तो दूध मलाई लाऊँ ,मत हो मगर उदास"


चूज़ा थोड़ा चहका बोला "माँ चॉकलेट मँगा दो


या फिर मेरी अच्छी मम्मी अंकल चिप्स खिला दो "


मुर्ग़ी बोली " ना ना बेटा अंकल को नहीं


खाते


अंकल का तो आदर करना,करना उन्हे


नमस्ते "


चूज़ा बोला "छोड़ो मम्मी बिस्कुट ही खिलवा दो


प्रिया गोल्ड के गुड डे या फिर पार्ले जी


दिलवा दो "


"चुप कर ,चुप कर मेरे बेटे,अब फिर कभी


न कहना


पार्ले जी तो थानेदार हैं उन से बच कर


रहना"


चूज़ा कुछ मुस्का कर बोला "मत कुछ मुझे


खिलाओ


लेकिन मम्मी मुझको तुम एक कोल्ड ड्रिंक


पिलवाओ


कोका कोला सबसे अच्छा फ़ैन्टा भी चलेगा


अगर पिला दो लहर पेप्सी,मज़ा बहुत


आयेगा"


अब मुर्ग़ी को ग़ुस्सा आया,धक्का देकर


बोली


"भाग निकम्मे शरम न आती मुझ से करे


ठिठोली


अरे बेशरम मैं तो समझूँ ,तुझ को नन्हा बच्चा


लेकिन तू बन गया पियक्कड़ निकला सब


का चच्चा


पीते पड़ोस वाले भी हैं,पर पीते हैं देसी


तू तो सबसे आगे निकला माँग रहा


अंग्रेज़ी "


तब से लेकर आज तलक माँ बेटे की कुट्टी


है


आगे की फिर बतलायेंगे,आज की अब छुट्टी है


 


                         


               


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला

गुरु ज्ञान का आहार दे


 


 प्रलय भी निर्माण भी,


हैं गोद जिसकी पल रहे ।


 


शिक्षक प्रणेता राष्ट्र का ,


कर्तव्य पर यदि दृढ़ रहे ।


 


यदि विमुख है गुरु धर्म से ,


तो घोर पातक पात्र है ।


 


पर व्यर्थ अपमानित हुआ,


 तो पतन की शुरुआत है ।


 


ज्यौं पिंड मिट्टी का उठा,


 बर्तन बना कुम्हार दे।


 


 त्यौं बीज रूपी शिष्य को,


 गुरु ज्ञान का आहार दे।


 


गोविंद से भी प्रथम क्यों ,


गुरु वन्दना का नियम है ।


 


गुरु दिखाता मार्ग प्रभु का ,


सब दूर करता भरम है ।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ .आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद गुजरात

 


 


डाॅ.आशासिंह सिकरवार 


 


जन्म: 1.5.76


जन्मस्थान : अहमदाबाद (गुजरात)


पति का नाम : विपिन सिंह राजावत 


मूल निवासी: जालौन ,उरई ( उत्तर-प्रदेश )


शिक्षा :एम.ए.एम.फिल. (हिन्दी साहित्य)


:पीएच.डी


(गुजरात यूनिवर्सिटी )


प्रकाशित तीन आलोचनात्मक पुस्तकें :


:1.समकालीन कविता 


के परिप्रेक्ष्य में चंद्रकांत


देवताले की कविताएँ (जवाहर प्रकाशन )


(2017)


2.उदयप्रकाश की


:कविता (2017)(जवाहर प्रकाशन )


:3.बारिश में भीगते 


बच्चे एवं आग कुछ 


नहीं बोलती (2017)(,जवाहर प्रकाशन )


4.उस औरत के बारे में, 2020 जगमग दीप ज्योति पब्लिकेशन राजस्थान 


अन्य लेखन -


कविता, कहानी, लघुकथा 


समीक्षा लेख शोध- पत्र, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, आकाश वाणी से रचनाएँ प्रसारित ।


 


काव्य संकलन -


झरना निर्झर देवसुधा,गंगोत्री, मन की आवाज, गंगाजल, कवलनयन, कुंदनकलश, अनुसंधान, त्रिवेणी, कौशल्या, शुभप्रभात, कलमधारा, प्रथम कावेरी ,अलकनंदा, साँसों की सरगम ,गुलमोहर ,गंगोत्री इत्यादि काव्य संकलनों में कविताएँ शामिल ।


सम्मान एवं पुरस्कार :


1. भारतीय राष्ट्र रत्न गौरव पुरस्कार -पूणे 


2.किशोरकावरा पुरस्कार -अहमदाबाद 


3 अम्बाशंकर नागर पुरस्कार -अहमदाबाद 


4.महादेवी वर्मा सम्मान -उत्तराखंड


5.देवसुधा रत्न अलंकरण -उत्तराखंड


6 काव्य गौरव सम्मान -पंजाब 


7.अलकनंदा साहित्य सम्मान - लखनऊ 


8.महाकवि रामचरण हयारण ' मित्र 'सम्मान - जालंधर 


9.त्रिवेणी साहित्य सम्मान - दुर्ग ( छतीसगढ)


10.हिन्दी भाषा.काॅम सम्मान -मध्यप्रदेश 


11,नवीन कदम साहित्य प्रथम पुरस्कार छत्तीसगढ़ 


12.साहित्य दर्पण प्रथम पुरस्कार भरतपुर राजस्थान 


13 .राष्ट्रीय साहित्य सागर श्री इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान मध्यप्रदेश और देशभर से अनेकों सम्मान ।


सम्प्रति :स्वतंत्र लेखन 


सम्पर्क 


आदिनाथ नगर, ओढव, अहमदाबाद -382415 (गुजरात ) 


 


"शोकगीत " शीर्षक 


 


जीवन में जितनी ईज़ा है 


उतनी ही कठिन यात्राएं


एक सफेद घोड़ा मेरी तरफ दौड़ा आ रहा है 


 


उसके पदचाप से टूट रही है मेरी नींद 


जबकि सन्नाटे ने भर दिया है जिदंगी को अंधेरे से 


कि चीर रहा है समय रोशनी की फांके 


 


हमारे रोने को लिखा जा रहा है इतिहास में 


जबकि खोजने पर भी नहीं मिलेंगे दुख के अवशेष 


इस वक्त नहीं रखी जा रही है संग्रहालय में 


सहज कर आदमी की भूख 


एक दिन जीवा पर रखा रहेगा स्वाद 


विमूढ़ होकर भूख को कंधे पर लादे 


फिरते रहेंगे देर तलक 


आदमी की हथेली पर दाना रखा रहेगा 


संसार से बाहर होगें पक्षी 


कलरव को तरसती रहेगीं पीढियाँ 


 


नहीं होता दुख का निश्चित कोई काल 


 


हर काल में वह अपनी जगह बनाता है 


जब भी हुईं संक्रमित हवाएं 


बच गया मनुष्य जिंदगी की ओट में छिप कर 


 


फिर बच जाएंगे हम


कितने घटेंगे अपने भीतर 


और कितने बचेंगे हम


कहना बहुत कठिन है 


 


समय ने परिमाण नहीं बांधा


बंध गये हम 


हमारी अपनी कमजोरियों ने 


रख छोड़ा समय की पाटी पर सबक 


अत्याधिक सुख के भीतर जब सांस लेता है दुख 


धरती पर पसर जातीं हैं व्यथा की अतमाई जड़ें 


 


चाहे जितना लीप लो 


कि अंदरूनी तह में बहती है अदृश्य नदी 


समय ने संताप से भर दिया है 


 


अनबुझी प्यास को 


जीवन का रथ चल देगा एक दिन 


पीछे छोड़ते हुए चिह्न 


 


ये शोक गीत छूट जाएंगे 


कालान्तर में 


फिर से डूब जाएंगे हम


प्रार्थनाओं में 


हो जाएंगे समाधिस्थ धरती के प्रेम में 


 


डॉ .आशा सिंह सिकरवार 


अहमदाबाद गुजरात


 


 


कविता


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       " अपराजिता "


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जब महसूस करती हूं


अपनी पराजय


निपट अकेली


एकांती क्षण में


अश्रुधारा बह निकलती


जैसे अभी-अभी फूटी हो


शिखर से भागीरथी ।


 


जो चाहती है


कल - कल बहना धरती पर


नही दिखता कोई


संपूर्ण भूभाग पर


खड़ी निर्झर पेड़ सी ।


 


सूरज ही आता है मुझसे मिलने


तब वही सोखता है


मेरे भीगे दामन को 


जिसे दलित कहकर


धकेल दिया गया बाहर ।


 


तपने लगता है भूखंड


रसातल में चले जाते हैं सारे आंसू


बैठकर घने वृक्ष के नीचे


सोचती हूं


कैसे ज़रा बनकर झुका है


देखती हूं


उसके नि: स्वार्थ भाव को ।


 


वह नही पूछता राहगीर से


क्या है मज़हब ?


कौन जात हो ?


नही उसके चित में


कोई लिंगभेद ।


 


वह सबकी भूख को


देखता है एक नज़र से


सभी के लिए


मीठे फल 


ठंडी छांह ।


 


कि लौट आती हूं अपने में


फिर से दौड़ने लगता है लहू


मेरी रगो में


जीने के जुनून के साथ


अभी और जीना है मुझे ।


 


मैं अपराजिता हूं


न हार सकती


नही रूक सकती 


स्वयं से भी लड़ना है


अनेकों मोर्चों पर


फिर से खुद को तैयार कर रही हूं


आने वाली सैकड़ों लड़ाईयों के लिए ।


 


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डॉ. आशा सिंह सिकरवार


अहमदाबाद / गुजरात


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" यंत्रणा "


 


 


उसका दमन, तिरस्कार 


उसकी यंत्रणा 


उतनी ही प्राचीन है 


जितना कि पारिवारिक जीवन का इतिहास 


असंगत और मन्द प्रक्रिया में 


उसने हिंसा को हिंसा की दृष्टि से 


देखा ही नहीं कभी 


वह स्वयं भी हिंसा से इंकार करती है 


धार्मिक मूल्य और सामाजिक दृष्टि का बोझ 


उसके कंधे पर रख दिया गया 


'आक्रमण ', 'बल' , 'उत्पीड़न 'के 


चक्रव्यूह में फँसती चली गई 


उसने सहे आघात पे आघात 


धकेल दिया गया 


उसकी भावनाओं को भीतर 


ज़बरन उससे छीन ली गई 


उसकी स्वेच्छा 


वह पूछती है कौन हैं वे अपराधी 


अपराधियों को अपराध करने की प्रेरणा 


कहाँ से मिलती है ?


इन्हें रोकने के उपाय किसके वश में हैं ?



रविंदर कुमार शर्मा घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

"मैं एक पुल"


 


सुनो,मैं हूँ पुल


दरिया, खड्डों,नालों पर पड़ा हूँ


अपना सीना तान कर खड़ा हूँ


आजके इंसान की तरह तोड़ने का नहीं


जोड़ने का काम करता हूँ


सर्दी गर्मी बरसात तूफान में


मैं अडिग रहता हूँ


मेरे ऊपर से हर दिन 


सब तरह के लोग गुजरते हैं


मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं


कोई बंदिश नहीं


बिना किसी भेदभाव के


मैं सभी को पार पहुंचाता हूँ


खुद वहीं खड़ा रह जाता हूँ


क्योंकि मैं एक पुल हूँ


भगवान राम के ज़माने से सेतु के रूप में


कहीं न कहीं काम आ रहा हूँ


सारी सृष्टि को रास्ता दिखा रहा हूँ


जिस किसी को भी पार जाना होता है


मेरे दिल के ऊपर से धड़ाधड़ गुज़र जाता है


मेरी सिसकियों की आवाज कोई नहीं सुनता


दब जाती है गाड़ियों शोर में


क्योंकि मैं एक पुल हूँ


मुझे केवल इस्तेमाल किया जाता है


जब मैं जवान होता हूँ


सब याद करते है मुझे


बूढ़ा होने पर किनारे कर दिया जाता हूँ


मेरा ज़र्ज़र शरीर अब काम का नहीं रहा


कोई नहीं पूछ रहा मुझे


क्योंकि मैं एक पुल हूँ


मैंने जातपात ,धर्म,मज़हब कुछ नही देखा


सबमें एक ही रूप देखा


फिर ए इंसान तू क्यों आपस में लड़ा रहा है


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई करवा रहा है


मेरी तरह जोड़ना सीख ले


यही काम आएगा


वरना लड़ाते लड़ाते एक दिन इस लड़ाई में


सब खत्म हो जाएगा।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार आभा गुप्ता बिलासपुर छत्तीसगढ़

श्रीमती आभा गुप्ता 


*जन्म* : 25 जून 1964   


*शिक्षा*: बी.एस.सी. , एम.ए. ( हिन्दी साहित्य ) बी.एड. ( हिन्दी साहित्य ) 


*उल्लेखनीय*: 


श्रीमद् भागवत कथा का सरल शब्दों में लेखन एवं प्रवचन । 


*सहभागिता*: राजकीय , राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता 


*सम्मान*:


1 ) विकास संस्कृति महोत्सव द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय सम्मान 8 नवम्बर 2009  


 2 ) अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद बिलासपुर की तृतीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 5 दिसम्बर 2010 में विकलांग विमर्श राष्ट्रीय सम्मान । 


3 ) प्रताप महाविद्यालय अमलनेर ( महाराष्ट्र ) मैं आयोजित त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में विकलांग विमर्श पर अंतराष्ट्रीय सम्मान 19 जुलाई 2014 


*सम्पर्क*:


एच -2 / 121 नर्मदा नगर , बिलासपुर ( छ.ग. ) 


मो . नं . - 7828070332 , 9131859881


पिन -495001


Email id: abhagupta1964@gmail.com


 


कविता -1


*बेटी (भ्रूण हत्या )*


1 . माॅ की आॅखो की नूर है बेटी ,


    जहाॅ की सबसे खूबसूरत हूर है बेटी,


रिश्तो को निभाने में मशहूर है बेटी,


*फिर क्यों*-माॅ की कोख से दूर है बेटी।


2 *_माता-पिता के लिए संदेश_*


 बनते है हम अति- आधुनिक और महान।


नही कोई फर्क बेटा-बेटी मे यह देते ज्ञान ,


बारी जब अपनी आती है, तो बन जाते अन्जान ।


इस कारण जन्म से पहले, बेटियाॅ पहुंच जाती श्मशान ।


3. *_चिकित्सक के लिए_* 


अजन्में बालिका शिशु के, पाप से आत्मा को न मारो।


नारी कोख ने तुम्हे रचा है, इस बात को विचारो ।


ब॓द करो यह अत्याचार, मानवता को स्वीकारो ।


प्रायश्चित करो और अब, ईश्वर को पुकारो ।


4 *_समाज के लिए -_* 


बेटी अब नही होती है अबला नारी ।


आज नही है वह लाचार और बेचारी ।


कदम से कदम मिला कर पुरुषो के कर रही भागीदारी ।


तभी तो बेटी के कंधो के सहारे हम करते है बुढ़ापे की तैयारी ।


5. *_भाग्य_* --


  धन्य है वह मां-बाप, जिसने बेटी धन है पाया ।


बेटे के गुरूर ने आज, बुढ़ापे मे है ठुकराया ।


चल दिया बहु लेकर नही, कोई अपना पराया ।


मै हुँ, तुम्हारे साथ यह बेटी ने दिलासा दिलाया ।


6. _*संदेश*_ 


जीवन पर्यन्त चलती रहेगी यह कहानी।


कुल तारक आज भी बेटा ही है निशानी।


परवाह नही कल की कट जायें जिंदगानी ।


मरने के बाद तो काया भी हो जाती है बेगानी ।


 


कविता -2


*झूठ*


 


मानव की उदंड अभिलाषा , 


यही है झूठ की परिभाषा । 


झूठ है इक बहता पानी , 


रूकता नहीं पल करता मनमानी। 


असत्य जीवन का है लाइलाज रोग, 


जिसे मनुष्य चुपचाप रहा है भोग। 


यह झूठ है , कहती रह जाती आत्मा, 


झूठी शान कर देता उसका खात्मा। 


अरे ! तू झूठ बोलकर क्या पायेगा, 


अपनी ही नजरों में गिरता जायेगा। 


इंसान किस तरह झूठ बोलता है , 


हर हाल में अपनी ही पोल खोलता है। 


कभी बड़ाई के लिए झूठ


कभी लड़ाई के लिए झूठ। 


कभी बात की सफाई के लिए झूठ 


कभी अधिक कमाई के लिए झूठ।


कभी सम्मान पाने के लिए झूठ


कभी अपमान से बचने के लिए झूठ। 


कभी रोटी के लिए झूठ 


कभी बेटी के लिए झूठ।


गिनती नहीं इनकी दो - चार, 


इनके तो है अनेक प्रकार ।


यह करता है बिन लाठी प्रहार, 


इंसा ,मन से हो जाता जार जार । 


इसका नहीं है कोई अंत ,


चलता रहेगा यह जीवन पर्यन्त । 


अभी भी वक्त है मान जा मेरे भाई , 


झूठ से मत कर जीवन की सफाई । 


सच का प्रकाश जीवन में भरने दो , 


झूठ को आंखो से आंसू बनकर झरने दो । 


होगी जब शुद्ध तेरी आत्मा ,


मिल जायेंगे तुझे भी परमात्मा ।


 


कविता -3


*बेवफा समय*


समय तू कितनी बेवफा है,


स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । 


एक ही कोख से जन्में भाई - बहन ही,


आज सबसे अधिक आपस में खफा है।


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । निःस्वार्थ प्यार और अपनेपन से घर - आंगन रहता था गुलजार,


अब मैं और मेरी दुनियाँ में ही सिमट कर रह गया है, सारा संसार । 


दर्द मन की गहराइयों में, दब कर हो रहे हैं जार - जार ,


क्योंकि ! सुनने के लिए वक्त नहीं , 


बांटे किससे कोई भी नहीं है सच्चा किरदार ।


समय तू - कितनी बेवफा है ,


स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नही अब वफ़ा है। 


बूढ़े माँ - बाप आधुनिक बच्चों की भावनाओं के हो गये है गुलाम,


इस कुर्बानी को भूल पल भर भी कोई नहीं मानता उनका एहसान,


समय के साथ एडजस्ट करना पड़ेगा , तभी तक होगा तुम्हारा मान,


वरना , कर लो अपना इंतजाम और बांध लो अपना सामान । 


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । गलतफहमी और ईगो ही इंसानियत की है, दुश्मन बड़े घरों में रहने वाले आधुनिक लोगों के छोटे हो गये हैं मन । 


अपनों से ही मिलता है दर्द , गैरों ने तो फिर भी सहलाया है दामन,


कसूर है , वक्त का कि , माँ - बाप से भी हो जाती है ,अनबन ।


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है ।


बिखरते रिश्तों में लग रहे हैं , सिर्फ इल्जाम 


मान ले अपनी गल्ती इतना नहीं है , कोई महान ताली दोनों हाथ से बजती है , मेरे भाई ,


इससे नहीं कोई अन्जान । फिर भी उलझे रिश्ते, मुश्किल से है सुलझते 


सब सिर्फ देते हैं ज्ञान । समय तू कितनी बेवफा है,


 स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । चार दिन की जिंदगी फिर किस बात का इतना है गुरूर,


अकेले आये हैं , अकेले हैं , और अकेले ही जाना है सबसे दूर । 


समस्या इतनी विकराल क्यों हो जाती है ,


कि, हो जाते हैं हम मजबूर ,


मिटा लो सारे गिले - शिकवे ,


कहीं दर्द न बन जायें नासूर । 


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है ।


 


 


कविता -4


*आज की शूर्पणखा*


1.नाक उसकी थी कटी, नकटे हम हो गए ।


लाज उसने थी गिरायी,


निर्लज्ज हम बन गए ।


कटी नाक और फ टी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने चली है होली ।


2 .त्रेतायुग की शुर्पणखा को हम कहते थे बेशर्म,


आज की शूर्पणखाओ को लोग कहते है जानेमन।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


3. रावण राज के लिए 


वह बन गयी थी अभिशाप,


हमारे समाज के लिए 


आज है वह सबसे बड़ा पाप ।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


4.पर्दे पर नाचती नंगी महिलाएं,


नारी जाति को कलंकित करती अदाएं ,


नव पीढ़ी के जीवन में भरती वासनाएं,


हर युग मे रहेंगी ये नकटी शूर्पणखाये,


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


5.भारतीयता को भूल संस्कारो को कर सलाम,


पाश्चात्य फेशेंन की बन गयी है गुलाम,


लज्जा से सजी पूजा सी होती थी पवित्र,


आज नंगापन बन गया है उसका चरित्र।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


6.दुख होता है आज देखकर उनका यह रूप,


समाज को बनाने वाली क्यों हो गयी इतनी कुरूप।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


 


 


 


कविता -5


_*"CORONA VIRUS का कहर"*_


 


भागती हुई ज़िन्दगी थम गयी;


समय के हाथों बेबस हो गयी;


किसने सोच था,यह दिन भी आएगा;


एक छोटे से *Virus* से विश्व तबाह हो जाएगा।


 


काल बनकर *Corona* सबको निगल रही;


समृद्ध देशों की शान भी मिट्टी में मिल गयी;


प्रलय के इस मंज़र में दुनिया थम गयी;


दहशत आज दिलो में घर कर गयी।


 


घर के अंदर आज कैद हो कर रह गयी है जिंदगी;


दिल से कर लो अब, तुम भी खुदा की बंदगी;


*Lockdown* के समय में न फैलाओ फ़िज़ूल दरिंदगी;


समय नही है प्यारो अब साफ कर लो दिलो से गंदगी।


 


नमन उनको जो हमे बचाने चल पड़े;


डॉक्टर , पुलिस और सफाई कर्मचारी *COVID-19* से लड़ पड़े;


सलाह मोदी जी की मान कर, हम घर पर ही रहे अड़े;


मुसीबत की इस घड़ी मे हम सब एक साथ रहे खड़े।


 


तुझे भी हरा कर हम हो जाएंगे मस्त ;


बस आप अपने हौसलो को न होने दो पस्त; 


घबराकर सब बिल्कुल भी डरो ना; 


दम नही कि, हमारा बिगाड़े कुछ *Corona*।


 


 *ABHA GUPTA*


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

आत्महत्याः उलझन या सुलझन 


 


दिनांकः १८.०६.२०१८


दिवसः गुरुवार 


विधाः गद्य 


 


"आत्महत्या उलझन या सुलझन" पटल द्वारा प्रदत्त आज का विषय अत्यन्त ही गंभीर , चिन्तनीय और अफ़सोसजनक है। 


आत्महत्या कायरों ,बुजदिलों, अकर्मण्य पलायनवादी, अधीरता , भयभीत मानसिकता और जीवन के संघर्षपथ से विरमित होने कि एक कायराना हटकण्डा है। संघर्ष,बाधा, कठिनाईयाँ , अवरोध , दुर्दीन व दुर्गम पथ -ये सब यायावर जीवन पथ के विविध सोपान हैं जिससे बुद्धि ,विवेक, सहिष्णुता , सत्य, अहिंसा, धैर्य,साहस और आत्मबल आदि संसाधनों से आरोहित किया जाता है। अगर सफलता इतनी आसानी से मिल जाती , तो फिर असफलता और उपर्युक्त बाधक सोपानों की कल्पना ही नहीं होती। याद रखनी चाहिए कि प्रारम्भ में झूठ, फसाद, छल ,कपट, ईर्ष्या, द्वेष आदि की ही जीत होती है। उनका प्रारम्भिक जीवन काल उन्नतिपरक, आनंददायक, विजयपथ पर अग्रसर, उन्मादक अहंकार से चूर होता है, परन्तु उनकी दुर्नीति, असत्य, प्रपंची क्षणिक सुखद पापों का मायाजाल का अंत अत्यन्त ही समूल विनाशक,महत् आपदा सह अवसादपूर्ण होता है। सत्य,.न्याय, धर्म , सदाचार, नैतिकता, मानवता की विजय संघर्षों के विविध कँटीले उबर खाबर दुर्गम पगदण्डियों के माध्यम से ही होकर होती है। हजारों लाखों वर्षों का इतिहास हमारे सामने प्रमाण रूप में विद्यमान है। कोई भी ऐसा,भूत,वर्तमान में बता दें जिनके जीवन में केवल सुख , सम्पदा ,यश,  


सम्मान ही मिलें हों। उनके जीवन में कभी दुःख ,शोक, पीड़ा, दीनता, अपमान, संघर्ष न मिला हो। उलझनें तो जीवन में सफलता का मार्गदर्शक है। मनुष्य कठिनाईयों,बाधाओं में ही सदैव सीखता है, समझता है, अपने रिश्तों , अनुबन्धों, मित्रों की पहचान करता है। ये आँधी,तूफ़ान, बाढ़- विभीषिका, भूकम्पन, भूस्खलन, ज्वालामुखी, विस्फोट, चक्रवात, भीषण गर्मी ,बरसात, जानलेवा कंपायमान ठंड और कोराना जैसी महामारी आदि प्राकृतिक प्रकोप  


आदि कठिनाईयाँ जीवन संघर्ष ही तो हैं जिसमें मनुष्य अपने आपको धीरज,साहस, बुद्धि बल, आत्मविश्वास और जीने की संकल्पित ध्येय को मन में रखकर मुसीबतों से बाहर निकलता है। जिनमें उपर्युक्त गुण का अभाव होता है ,वे उन्हें उलझन समझ हतोत्साहित हो आत्महत्या कर लेते हैं,या स्वयं ही कालकवलित हो जाते हैं।


मैं अपनी बात करता हूँ। बहुत गरीब पढ़े लिखे घर से आता हूँ। मेरे जीवन का उद्देश्य ही आइ.ए.एस बनना था। विज्ञान का मेधावी पटना साइंस कॉलेज का छात्र था। उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कला संकाय अर्थात् पटना कॉलेज में नामांकन ले इतिहास का छात्र बन गया। दो दो बार संघीय लोक सेवा आयोग की प्रारम्भिक और मेन (मुख्यलिखित) परीक्षा में सफलता प्राप्त की। साक्षात्कार में सफलता नहीं मिली। मैंने सोचा कि मेरी जिंदगी तो बर्बाद हो गई , सब कुछ खत्म हो गया, बड़े यत्न ,अहर्निश परिश्रम संघर्षों को सहते हुए , कभी भोजन किया कभी नहीं किया - ऐसी समस्याओं और उलझनों से लबालब मैंने दिनरात चार बर्षों तक लगा रहा।सोचा ,आत्महत्या कर लूँ। मेरे जीवन का कोई औचित्य नहीं। मैं किसी को मुँह दिखाने का काबिल नहीं। 


उस जमाने में आज की तकनीकी शिक्षा ,सोशल मीडिया, कम्प्यूटर मोबाईल आदि कुछ भी नहीं थे। वार्तालाप का माध्यम स्वतः मिलन या पोस्टकार्ड,अन्तर्देशीय लिफ़ाफ़ा या तार ही होते थे। ये सब अस्सी से नब्बे की दशक की बातें हैं। 


पटना वि.वि.के विभिन्न विभागाध्यक्षों को इस बात की खब़र मिली। उन सबने मुझे बुलाया, डाँटा, समझाया। केवल यू पी एस सी ही जीवन नहीं है। दुनिया में हजारों दरवाज़े हैं सफलता के। तुम मेधावी टॉपर विद्यार्थी हो, जे.एफ.आर. कर चुके हो, पी.एच.डी.करो। पागलपन छोड़ो। महीने भर वे समझाते रहे। अंततोगत्वा मैं पुनः अध्ययन और पी एच. डी हेतु तैयार हुआ। पैसों ,पैरबी घूस चापलूसी ,के मायाजाल में महाविद्यालय या वि।विद्यालय शिक्षक भी न बन सका। जीवन की दर्दनाक थपेड़ों में अपनी सारी अभिलाषा, सुकून, व वज़ूद ही लूट गया।फिर भी आत्महत्या नहींं की ।जो मिला उसी को विधातव्य समझ अपमानित होता हुआ भी जीवन के पथ पर अनवरत बढ़ रहा हूँ। ये अवदशा मेरे जैसे और मुझसे लाखों करोड़ों गुणा अधिक सारस्वत मेधावियों के जीवन में ऐसी घटनाएँ सदा से घटती आ रही हैं। 


आज किसान, वैज्ञानिक, मज़दूर, छात्र छात्राएँ ,माता,पिता,बहन, भाई ,प्राध्यापक,वकील, आइ ए एस ,आइ पी एस ,एलाइड , अभिनेता ,नेता सब थोड़ी सी उलझनों ,असफलता या अपमान को बर्दाश्त नहीं करते और फाँसी लगाकर ,नदी में कूदकर , रेल पटरी पर लेटकर, ज़हर खाकर और न जाने कितने दुस्साहसी तरकीबों से आत्महत्या के जघन्य कृत्य को कर अपने को स्वनामधन्य करने का कुकृत्य करते आ रहे हैं। आपका यह जीवन केवल आपका नहीं है, बल्कि आप पर परिवाल ,समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व मानवता का अधिकार है। आपको अपने साथ दूसरों के लिए ,समाज और देश के लिए जीना है। आपको मानवीय कर्तव्यों के निर्वहणार्थ जीना है। परन्तु दुःख और शर्म की बात है कि ये स्वार्थी लोग केवल अपने हितपूरणार्थ जीवन जीते हैं। इच्छा पूरी नहीं हुई, बाधाएँ ,आयी, कठिनाईयों और झंझावातों से गुज़रना क्या पड़ा, माँ- बाप, गुरु,मित्र,अधिकारी पति,पत्नी ,प्रेमी,प्रेमिका आदि कोई भी अनचाहे कुछ भी कहा, या असफल हुए, या बाधाएँ आयी ,सहनशक्ति, धैर्य, आत्मबल, और साहस के अभाव में भगौड़ा डरपोक बन आत्महत्या जैसी घिनौनी हरकत कर बैठते हैं। 


मैं इस तरह के कुकृत्य को उलझन नहीं मानता और न ही सुलझन मानता हूँ,वरन् एक दुर्बल, कमज़ोर , कायरता, और पलायनवादी मानता हूँ। संघर्ष ही जीवन समझो और वही सफलता की मूल है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभूत विचार है। आपकी सहमति असहमति से मेरी सोच में कोई परिवर्तन नहीं आ सकता। 


 


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" की✍️ कलम से👉


नई दिल्ली


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