श्याम कुँवर भारती [राजभर]

भोजपुरी शिव भजन – बहे जटा बीच गंगा धरवा |


 


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


भोला बाबा जी के जटवा झूम झूम के |


 


कैलाश बिराजे शिव संग गौरा जी के राखे |


कारतिक गणेश खेले नंदी जी के साथे |


बनले नागदेव शिव शंकर जी के हरवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


 


भांग धतूरा पीसी शिव जी भोगवा लगावे |


गंजवा चढ़ाई भोला खूब धुनिया रमावे |


डम ड्म बाजे डमरू भोला जीके करवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


 


कांधे कावर गंगाजल सब भोला जी के डाले |


झूमी झूमी नाचत गावत भक्त बाबा लग्गे जाले | 


अन धन भरी देले बाबा भक्तन के घरवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


औघड़दानी भोला ज्ञानी दुख दूर करी दिहे |


जटाधारी डमरूधारी सबके सुख भरी दिहे |


बम बोले भारती भजन गावे सन्तोष यरवा ।


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]


कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

अँधेरा छा जाता है तब 


जीवन में अरमानो का अवनि आकाश अधूरा रह जाता है।।


 


आँचल ममता की किलकारी


गोद माँ का साया ही रह जाता है।।


 


चलते वक्त निरंतर का भरम भस्म


हो जाता है


कभी अकेले ना होंगे हम


पल भर में चकनाचूर हो जाता


है माँ की यादों का साया ही


रह जाता है।।


 


चली गयी यादें देकर छाया की


काया देकर छलि गयी जीवन


जन्म मृत्यु के अंतर का चक्र काल


रह जाता है।।


 


अपनी संतानो की खातिर कितने


ही दुःख दर्द को गले लगाया 


अंतर मन की पीड़ा को ढाल हथियार ढाल बनाया।।


 


किसको ये मालुम छूट जाएगा


मूल्यों मर्यादा के पथ का हाथ


साथ जिसने चलना सिखलाया


शब्दों रिश्तों से परिचय करवाया


जीवन समाज का मर्म बताया


काया की माया आज।।


 


पता नहीं था उसको भी जिस


बाग की बागवाँ है वो आज बगिया के


किसलय कोमल उसकी यादो


भावों के दिन रात लिपटा सिमटा


वर्तमान अतीत हो जायेगा।।


 


संग रह जाता है गुजरे बचपन


जवानी की दौलत माँ के दौलत


दुलार की धन्य धरोहर का प्रति


पल खजाना।।


 


बचपन की लोरी रुखा सुखा भी


कौर छप्पन भोग खुद भूखे रह जाना अपने


लाडले के संग सो जाना।।


 


सपने माँ के आँखे उम्मीदों की


संतानो के माँ का इतराना।।


 


कही कभी आहत हो जाऊं ईश्वर


अल्ला से लड़ जाना माँ के ह्रदय


भाव से उठती ऐसी ज्वाला


दुर्गा काली रौद्र रूप काल कराला।।


 


 आसमान की बिजली सी गिरती


चाहे क्यों ना हो कोख का रखवाला सुहाग से संतानो के शुख चैन से नहीं कई समझौता


उसकी दुनियां उसकी संतान


ईश्वर अल्लाह खुदा भगवान्।।


 


 माँ तू जननी है जन्म भूमि की


महिमा गरिमा प्यास बूँद है 


आस विश्वास है समाज राष्ट्र की


निर्माती मानव की अर्थ आधार है।।


 


भगवान् का भाग्य बनाती कौसल्या है तो राम है दुनियां में


देवो के अस्तित्व की माता देवकी


यशोदा कुरुक्षेत्र के कर्म ज्ञान की


कोख अभ्युदय गीता कुरान है।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गुजरती जिंदगी अरमान अधूरे


बदलती दुनियां इंसान अधूरे


जिंदगी की दौड़ मुश्किलें बहुत


बदलता वक्त सच सपने अधूरे।।


इंसान की चाहता दुनियां दामन


में समेटे


राहों में भटकता मंजिलों का पता 


पूछता


एक दूजे की लाश की सीड़ी 


इंसानियत के रिश्तों में ईमान अधूरे।।


गुरुर इंसान का जूनून 


जूनून जिंदगी का सुरूर  


दुनियां तिज़ारत का बाज़ार  


दुनियां के बाज़ार में बिकते सपनें


आधे अधूरे।।


तोहमद ही तौफा खुनी पंजो की


दौलत


मोल बेमोल सस्ती महँगी बिक जाती है हर दौलत


बिन मांगे मिल जाती कभी मोहलत कभी मांगे नहीं मिलती


मोहलत।


जकात कभी दाम आधे अधूरे।।


प्यार व्यापार मोहब्बत धोखा


शातिर की चाल इंसानियत का सोसा


जख्म दर्द को मरहम का भी मौका


नाम बदनाम के पहचान अधूरे।।


 


हर जुगत जुगाड़ इल्म उखाड़ने का


मरी खाल से तक़दीर सवारने का


कोशिशे बहुत मगर कामयाब अधूरे।। झील में कमल का खिलना 


फूल का निखारना भौरों


का चलना मचलना 


सुबह सूरज का नया जोश 


बयां जिंदगी की सच्चाई


गम के सायों में दिन का उजाला


अधूरा।।


जिंदगी जंग बन गयी है साँसों


में सिमटती


पत्थरों का दिल धड़कता ही नहीं


पत्थरों के दिल में खुदा का दीदार


नहीं 


पत्थरों में चाहत का भगवान अधूरा।।


कस्मे वादे प्यार वफ़ा बाते ही बात


हकीकत हद से दूर निकलते  


मुस्कुराता है इंसान खोखली हंसी


कोफ़्त के अंगार में जलती जिंदगी


तलाश जिंदगी के अधूरा अधूरे।।


 


चार दिन की जिंदगी गुजर रही


दो दिन आरजू के दो दिन इम्तेहान 


जिन्दगीं इम्तेहान से आजिज इंसान


हासिल कुछ भी नहीं पुरे की चाह


लम्हा लम्हा कसमकस काश।


रह गया इंसान मलते मलते हाथ।


खोने औ पाने का हिसाब बराबर


पुरे की चाह में कट गयी जिंदगी


आधा गवां दिया पुरे की चाह 


में फिर भी रह गए अधूरे अधूरे।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

भारत के नौजवान 


माँ भारती कर रही पुकार तुम


चौतरफा खड़ी चुनौती की आग तुम।।


 


जीना है तो लड़ना सीखो


कदम कदम है खतरे 


त्यागो आपस के बैर भाव


युवा तेज हो युवा ओज तुम


बनाना है तुमको अंगार


 देश की माटी के ललकार तुम


भारत के नौजवान तुम।।


 


हिम्मत की हस्ती तुम


ताकत की मस्ती तुम


शहीद की वेवा की सुनी


मांग भारत के नौजावन के


अस्तित्व पर प्रहार 


सरहद पर जान गवांते


शहीद की अंतिम इच्छा


राष्ट्र के गौरव अस्मत की


खातिर अग्नि परीक्षा में


सदैव तैयार तुम।।


 


साँसों की गर्मी से तेरे


चाहे जो भी हो दुश्मन


जाएगा हार


वर्तमान तुम ,


भविष्य निर्धारक तुम


गौरव शाली अतीत के हो तुम


कर्णधार भारत के नौजवान तुम।।


 


जीना है तो उद्देश्यों के पथ


पर द्रढ़ता से चलना सीखो 


तूफानों से लड़ना सीखो


खुद की मर्यादा को अक्षुण रखना सीखो


माँ भारती की तुम संतान भारत


के नौजवान तुम।।


 


डिगा सके तुमको तेरे पथ से


कोई भी समर्थ सक्षम नहीं


अडिग चट्टान तुम् भारत के


नौजवान तुम।।


 


दीपक की लौ तुम


प्रज्वलित मशाल मिशाल


शौर्य सूर्य तुम बदलते काल


की चाल भारत के नौजवान


तुम।।


 


गीदड़ कैसे हो सकते 


बाज़ पंख परवाज़ तुम


हुंकार से डोले जमीं आसमान


तेरे कदमों की आहट दुनियां में


तेरी मकसद मंजिल की आवाज तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


गर्जना से तेरी निकले छद्म धोखे


का प्राण


नौजवान तुम कर्णधार तुम


समय काल के आधार तुम


निति नियत निर्माण तुम 


भारत के नौजवान तुम।।


 


साहस के सिंघनाद तुम


गौरव शैली राष्ट्र के विजयी विजेता पाँचजनन्य का शंख नाद


तुम संग्रामों के विकट विकराल


तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


युग बैभव दृष्ट्री सक्षम समर्थ


तेर हद हस्ती की दुनियां


पराक्रम पुरषार्थ तुम जो चाहो


लिख दो इबारत वक्त के


हताक्षर तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


शोला शूल तीर तलवार त्रिशूल तुम मझदार तुम पतवार तुम


कश्ती और किनारा तुम


सुबह शाम दिन रात युग वक्त


व्यवहार तुम।।


 


पीछे कभी देखा ही नहीं


आगे बढ़ते रहना शिखर


का नाज़ तुम हौसलों की


उड़ान तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


आँख दिखाए कोई करते नहीं


स्वीकार तुम ऊर्जा उतसाह तुम


उमंग उल्लास तुम जग के अंधेरों


को चीरते दुनिया का नव प्रकाश 


तुम भातस्त नौजवान तुम।


 


नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

-----श्रवण के प्रथम सोमवार--


 


अविनाशी पर्वत वासी


त्रिशूल ,डमरू ,मृगछाला धारी


तन भस्म रमाये कन्द मूल


फल खाये वनवासी।।


 


काल महाकाल रूद्र रौद्र


विकट विकराल श्मसान


की आग आदि मध्य अनंत


बैराग्य बैरागी ।।


 


जटाओं में गंगा चन्दा


नीलकंठ घट घट के वासी


करुणा दया छमाँ के सागर


क्रोधाग्नि त्रिनेत्र धारी।।


 


पास नहीं कुछ भी जो


कुछ मांगे दुनियां देते त्रिपुरारी


गले मुंड की माला नंदी सैर सवारी


नाग गले में लिपटे वेश उदासी।।


 


शिव शंकर ,कैलाशपति ,भोले 


शंकर ,शिवशंकर शिव शम्भू


सदा सहाय शिवाय मम उर वासी।।


 


अशुभ रूप भुत ,प्रेत ,पिचास,


डाकिनी ,हाकिनी, पिचसिनी


संग संग गौरा पार्वती।।


 


भुतनाथ,भैरों ,काली गण


तेरे प्रभु तू औघड़ दानी।।


 


अघोर की आराधना श्मशान


की वंदना संसार की संरचना हैं


तो प्राण प्राणी है।।


 


मृत्यु का उत्सव उत्साह 


सृष्टि का उद्भव विकास


विनाश है।।


 


 काम, क्रोध ,मोह ,मद लोभ का त्याग 


शुभ मंगल का गणपति गान है


मृत्युंजय है मोक्ष मार्ग है।।


 


विशेश्वर उमा पति वैद्य नाथ है।।


शोक ,रोग ,भय ,भ्रम विनासक


त्रिदेव शक्ति का मान है।।


 


अकाल नहीं काल हर हर महाकाल है स्वर सामराज्य


का ओंकार है।।


 


ओंकारेश्वर ममलेश्वर सयुक्त


ज्योति आपकी जगत कल्याण


का स्त्रोत वेद पुराण है।।


 


भीमाशंकर ,नागेश्वर ,सोमनाथ है


रामेश्वर, त्रमकेश्वर ,अनाथो का


नाथ विश्वनाथ है।।


 


मल्लिकार्जुन ब्रमणेभ्यो ,घृणेश्वर


शिवा शिवम् ताण्डवं कुलग्राम है।।


बबम बबम बम भोले बम लहरी


प्रिय धतूर भांग है।।


 


नमामि शंकरम् रूद्र रौद्र अष्टकम


शिवा सत्य आत्म प्रकाश है


नमामि शंकरम् प्रणामी शंकरम्


नमामि शंकरम्।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

तुम मिलना मुझे जब भी


दिल पुकारे 


चाहतों की राह में अरमानो की


आश में मुस्कानों के मुकाम पे।


 


तुम मिलना मुझे चलती जिंदगी


में विखर जाऊं ,मंजिलों से भटक


जाऊं ,मकसद की मासूका मकसद जिंदगी के अंधियारे उम्मीद उजालो में।।


 


तुम मिलना मुझे तुफान भंवर


में उलझ जाये जिंदगी की कश्ती।


डगमगाने डूबने लगे किश्ती की हस्ती।


मझधार तूफानों की मसक्कत मौसिकी


 पतवार बनकर किनारों में।।


 


तुम मिलना मुझे जज्बे के उठते


ज्वार में धड़कन की हर सांस में।


लम्हों उदास में थकती ,हारती


जिंदगी के विजय के प्रवाह उत्साह में।।


 


तुम मिलना मुझे जब जिंदगी का


कारवां साथ छोड़ दे तन्हाई में परछाई


भी दामन छोड़ दे ।            


 


जिंदगी बोझ लगे तन्हाई की हद हँसी मस्ती


जिंदगी की आवाज में।।


 


बचपन से तुझे सवारता, जवाँ जज्बे में उतारता ,जिन्दंगी की


की एहसास जान इज़्ज़त ईमान।


क्या कहूँ हिम्मत या हौसला


इरादा या इल्म माँ बाप गुरुओ का आशीर्वाद सच्चाई।


तुम मिलना मुझे मौका मुबारख


मुकाम में।।


 


खुदा के नूर में जन्नत की हूर में


स्वर ईश्वर की आवाज़ में अपने


अलग नाज़ अन्दाज़ में ।   


 


हर कदम ताल में दोजख की सजा अपराध में।


तुम मिलना मुझे जिंदगी के फलसफा फसानों अपसानो की


चाह की राह में।।


 


तुम मिलना मुझे मेरी पैदाईस


की पहली आवाज़ में मेरे जनाजे


के कंधे चार में प्राण में।।


 


तुम मिलना मुझे प्यार में यार में


रिश्ते नातो परिवार में घर संसार


में दोस्ती दुश्मनी के इंतज़ार इज़हार में।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गुरु पूर्णिमा विशेष--दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


जीवन को मर्यादा है,मर्म है जीवन मूल्यों का जीवन के अंधियारे का


उजाला है ।


दरबार हज़ारो देखे है तेरे दर सा


कोइ दरबार नही दुनियां के गुलशन में ऐसा कोइ सय नहीं


जिसमे तेरा गुलज़ार नहीं।।


ईश्वर भी तेरे दर आता परम आत्मा का परमज्ञान का दाता


तुझसे ऊपर जहाँ में कोई विधि


विधान नहीं।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


देवो का गुरु बृहस्पति असुरों का


सुक्राचार्य है सृष्टि की वाणी गुरु


वाणी मानवता का अस्तित्व अवतार।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


करुणा ,दया का सागर रौद्र रूद्र


शंकर शोक दुःख विनासक 


भय भव् भंजक माता पिता सम।।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


भाग्य भगवान बताता ईश्वर से 


मिलवाता सृष्टि की दृष्टि युग संसार अम्बर अवनि।।   


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


ममता का आँचल पृथ्वी


पिता आकाश सा सम्बल


ज्ञान ,कर्म ,दायित्व बोध जन्म,


जीवन सृष्टि ,नित्य ,निरंतर उत्तर मध्य आदि।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


दुष्ट दलन का क्रूर काल का निर्माण ,समाज राष्ट्र का रास राशि


विष्णु ,ब्रह्मा महेश देवो का धर्म मर्म मार्ग 


दुनियां बतलाता दिखलाता


सत्य साक्षात् परम परमेश्वर।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


गुरु श्रेष्ट है गुरु इष्ट है गुरु


आत्म का मोल मूल्य मोल


अनमोल जीवन मार्ग व्यवहार 


प्रकाश ।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


बचपन जीवन मृत्यु सुबह शाम


दिन रात की गौरव गरिमा गान


मान अभिमान है।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिंदगी का समर्पण कर


देता है जब मानव


 उद्देश् पथ पर विलग


विलय जिंदगी हो जाती है।।


 


उद्देश्य के उद्गम और शिखरतम्


तक।


स्वयं स्वीकार साकार उद्देश्य पथ 


सच्चाई अवनि आकाश की


ऊंचाई।।


 


व्यक्ति का व्यक्तित्व समर्पित 


समर्पण का वर्तमान इतिहास।


सत्य समर्पण के गर्भ से जन्म


नव चेतना की नयी


जागृति ,वर्तमान भविष्य


के मूल्यों का सिद्धांत।।


 


सत्य समर्पण मंगलकारी


क्लेश नाश का संचारी विस्मयकारी।


समर्पण जागृत होता मन की


अनंत धरा के झंझावात, तूफानों


के अंतर द्वन्द मंथन मति।।


 


समर्पण एक सार्थक योग 


मानव का कल्याणकारी।


समर्पण के स्वरुप बहुत है


नैतिकता से च्युत हो जाना


विमुख कर्तव्यों से होकर 


पतित पथ भ्रष्ट हो जाना


समर्पण अंतर मन की ज्वाला।।


 


प्यास ,आस ,विश्वाश


मूल्यों ,मर्यादाओं की नैतिकता


में विलय विलीन हो जाना।


भाग्य बदल लेता स्वयं मानव


अपना भगवान् का मिल जाना।।


 


समर्पण आकर्षण की आस्था


का स्वर साम्राज् सत्कार।


घनघोर निराशा के बादल जब 


छा जाते आशाओ के मार्ग 


अवरुद्ध हो जाते।।


 


संकल्प, समर्पण नई क्रांति का


नव सूर्योदय संध्या लाते।


अमंगल , मंगल ,मृग मरीचिका


विल्पव ,भ्रम ,भय भयंकर


दूर भगाते ।।


 


अस्तित्व ,अस्ति का मिट जाना 


व्यक्तित्व, व्यक्ति की पहचान


परिवर्तन सत्य समर्पण।


पत्थर में भगवान् बोलते प्राणी


में प्राण दीखते मिथ्य यह संसार।।


 


समर्पण का अति सुन्दर भाव


लूट जाना, मिट जाना जीवन


सम्पत्ति का, बैभव बिलिन हो जाना समपर्ण हो जाना।


 


समर्पण से प्रेम जाग्रत प्रेम में


आशाओं का संचार ।


आशाओं के आसमान में विश्वस


का प्रभा प्रवाह ।।


 


विश्वाश के प्रभा प्रवाह से अचल


अटल अडिग आस्था की अवनि


अविष्कार । समर्पण की वास्तविकता 


परम् अलौकिक प्रकाश।


प्रकाश की किरणों का युग


ब्रह्माण्ड नया सत्कार ।।


 


हे मानव मर्म मर्यादा के जीवन 


मूल्यों का संचय कर लो।


जीवन की यथार्थता सच साबित


कर दो ।।


 


जीवन पथ का जो भी हो उद्देश्य तुम्हारा उद्देश्य पथ के पथ पथिक


तुम ।                                


 


उद्देश्यों के मूल्यों में स्वयं


शक्ति की भक्ति समर्पण कर दो


मिट जाएगा अँधेरा।। 


 


उज्वल निर्मल मन काया की


माया के उजियारे से रौशन युग


कर दो।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

क्रोध बड़वानल आग 


ना चिंगारी ना धुंआ कर देती


सब कुछ ख़ाक है।।


          


क्रोधाग्नि दिखती नहीं 


अंतरमन की ज्वाल द्वेष ,दम्भ, घृणा क्रोधाग्नि का आधार है।


 


प्रतिशोध ,प्रतिकार क्रोधाग्नि की अस्तित्व ,आत्मा की


ज्वाला विकट विकराल है।।


 


क्रोध वासना का मद ,मदान्ध 


शैने शैने जलता प्राणी नहीं कोई


इलाज़।             


 


सुखेंन ,धन्वन्तरि 


नहीं खोज सके चिकित्सा आज 


विज्ञान, वैज्ञानिक क्रोध पर 


शोध नहीं करते क्रोध से क्रोधित


मलते रहते हाथ ।।


 


मद की माद से क्रोध का उद्भव,


उद्गम विकार क्रोध की धार है।


कही कभी क्रोध की ज्वाला


की लपटों का उठाना अनिवार्य


है।।


 


मान, अपमान ,अहंकार की चिंगारी


का क्रोध कायर पराक्रम की


लपटों का प्रलय सर्वनाश है।।


 


क्रोध शिव शंकर अविनासी


का तांडव का रौद्र रूद्र गरल


बिष काल कराल है।।


 


क्रोध भय भंयकर विकृत


का अवसाद है।


चिंता चिता बेचैनी की धरा 


प्रबल प्रवाह है।।


 


अदृश्य लपटो में जल जाते


कितने युग ,सृष्टि ,धरा धन्य


भी शर्माती क्रोध ,क्रूर ,काल,


हथियार है।


 


कंस क्रोध की आग की लपटो


का कृष्णा कंस वंश संघार है।


 


रावण के अंतर मन की ज्वाला


का पंडित ,ज्ञानी, वीर, धीर


का सर्व नाश मर्यादा का राम है।।


 


क्रोध कर्म मर्म धर्म दूर्वासा जैसा 


अन्याय अत्याचार भ्रष्ट भ्रष्टाचार का विनाश


विलप्लव भूचाल युग उद्धार परशुराम है।।


 


कभी क्रोध है काल ,कभी क्रोध


है ढाल. कभी क्रोध है चाल, 


क्रोध कही अनिवार्य है।।


 


विष्णु ना अपमानित होता


ना क्रोध की प्रतिज्ञा करता


ना होता वर्तमान ना मौर्य वंश


खंड खंड भारत की अखंड बुनियाद है । 


 


क्रोधाग्नि जब जल जाती 


निस्वार्थ कर्म की चिंगारी से


लपटों से इसके वर्तमान के


अंतर्मन से उदय ,उदित स्वर्णिम


भविष्य का नव सूर्योदय का 


निर्माण है।।


 


निष्काम कर्म के धर्म धुरी की


घर्षण चिंगारी पौरुषता की परिभाषा क्रोध युग जनमेजय


का नाम है।।


 


नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

1-विधा--कविता


शिर्षक--पानी


 


मर जाता आँख का पानी


इंशा शर्म से पानी पानी।


आँखों से बहता नीर नज़र का


आँसू पानी ही पानी।।


 


ख़ुशी के जज्बे जज्बात में


छलकता आँसू जिंदगी का मीठा


पानी ही पानी जिंदगानी।।


 


पानी है तो है प्राणी पानी से ही


प्राणी प्राण।


बिन पानी धरा धरती रेगिस्तान


वनस्पति पेड़ पौधे लापता उड़ती


रेत हवाओं में नज़ारा कब्रिस्तान।। 


 


कब्रिस्तान में सिर्फ दफ़न होता


मरा हुआ इन्शान


रेगिस्तान की मृगमरीचिका में


पानी को भटकता जिन्दा


दफ़न हो जाता जिन्दा इन्शान।।


 


पानी से सावन का बादल  


सावन सुहाना।


सावन की फुहार बरसात की बहार।


पानी धरती का प्राण


अन्नदाता किसान का जीवन अनुराग ।।


बारिस का पानी खेतों में हरियाली खुशहाली की एक एक बूँद 


कीमती धरती उगले 


सोना उगले हिरा मोती से दुनियां पानी पानी।।


पंच तत्व के अधम सरचना 


शारीर में पानी आवश्यक


आधार।


दूध में खून में अस्सी प्रतिसत पानी कही पानी ही पानी


कही बिन पानी सब सून।।


 


पानी प्यास ही नही बुझाती


जन्म ,जीवन का बुनियाद बनती।।


कही बाढ़ पानी ही पानी


पानी ही पी पी ही मरता इन्शान।


कही सुखा प्यासा भूखा नंगा


मरता इंसान ।।


पानी में परमात्मा पानी से आत्मा


पानी से खूबसूरत कायनात विश्वआत्मा।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


 2--विधा---कविता


    शीर्षक--पानी


 


झरना ,झील ,तालाब नदियां


समन्दर एक तिहाई का ब्रह्माण्ड


पानी पानी।


पानी पर्यावरण की शक्ति अनिवार्य।।


बहती नदियों की धाराएं


लम्हा लम्हा बहते पानी का एहसास चलती


जिंदगानी।।


धरती के ह्रदय तल से सूखता पानी बूँद बूँद कीमत बतलाता


पानी।।


शर्म से कोइ पानी पानी, गुस्तगी,


प्यार ,शरारत में सर ऊपर पानी


जंगो का मैदान भी पत पानी।।


 


पानी दौलत जरुरत पर खर्च


करों गैर जरुरत ना व्यर्थ करों।


पानी का सम्यक, संचय और निवेशन प्रकिति प्राणी का 


संवर्धन, संरक्षण।।


 


अभी गुन्जाईस है आने वाले


युग काल में पानी के लिये


होगा युद्ध पेट्रोल ,खून से होगा


महंगा पानी।।


सुनों गौर से दुनियांवालो ना


सूखे नज़रो का पानी


ना गुजरे सर से पानी


ना शर्म से हो पानी पानी


पानी दुनियां में है वाजिब।।


 


पानी से जिंदगानी जिंदगानी


से पानी प्राण प्राणी।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दर्द ,जख्मों का हिसाब 


इंसान लम्हा लम्हा करता।


कभी रिश्ते ,नातो के दिये जख्मो


को कोसता तो कभी खुद के


करम खुदा भगवान् को


कोसता।।


 


अंधे इंसान को पता ही नहीं


कुछ देखता ही नहीं।            


वाकये


का किरदार दुनियां में मज़ाक


गम, ख़ुशी के आसु पीता।


खुद के।गुनाहों का बोझ गैरों पे कसीदे पढ़ता।।


 


दर्द का इंसान जिंदगी से रिश्ता


जख्म दीखते नहीं खून रिसते


नहीं कराह में आहे भरता।।


 


जुदाई का गम कुछ चाह की


राह से भटक जाने का गम 


मुफलिसी की मसक्कत 


कभी शर्मशार का दर्द ।।


 


खुद के गुनाहों के लिये खुदा


से माफ़ी की अर्जी करता


दर्द का दरिंदा दर्द में रोता।।


 


दर्द बांटता जैसे मिलाद का


मलीदा


नासमझ को इल्म


ही नहीं होनी हैं तेरी भी होनी है बोटी बोटी


तेरे हर दुकडे से दर्द की चीख


जहाँ को सिख कसीदा।।


 


मगर इंसान की याद तो शमशान,


कब्रिस्तान की तरह माईयत उठाता फिर गुनाहों की अपनी


दुनियां में लौट जाता।।


 


जिंदगी अजीब फलसफा नेकी


गायब गुनाहों में इज़ाफ़ा


हर गुनाह से पहले खुदा को।


जरूर याद करता ।             


 


कसाई हर


जबह से पहले अल्ला हो अकबर 


खुदा को हाजिर नाजिर मान कर


जबह करता।।


 


दुनियां में दर्द का सौदागर 


दर्दो का बेरहम बादशाह


खुद के दर्द में खुदा के लिये


रहम की दुआ मांगता।।


 


मंदिर ,मस्जिद पिर ,पैगम्बर


के हुजूर में हाजिरी देता ।


ख्वाहिसों की आपा धापी में


भूल जाता जो दिया है मिलेगा


वही हिसाब बराबर जिंदगी खता बही।।


 


जज्बे ,जज्बात की जिंदगी 


दर्द भी अहम खुद के दर्दो छुपाता


जहाँ में बेनूर की हंसी में दिल के


छालो के आंसू बहाता खुद को


फुसलाता ।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आशा विश्वास जीवन के दो भाव


आशा लौ जैसी विश्वाश है बाती।


जीवन आशा विश्वाशों का दीप


जलता दीपक जीवन दीवाली।।


 


त्यौहार ,प्रज्वलित ,मद्धिम दीपक


जीवन सुख, दुःख का खेल ,मेल।


 


आशाओे का टूटना विश्वाश 


डगमगाना जीवन बेमेल ।।


 


आशा उत्साह जगाती विश्वाश


उद्देश्य का उद्भव उद्गम क़ी महिमा


मंडन का मार्ग बेजोड़।।


 


आशा और निराशा के बीच


घूमता जीवन जीत, हार ,जीवन


संग्राम का अर्थ उद्देश्य।।


 


आशा सावन कि फुहार निराशा


सावन का काला बादल।


जीवन् में संताप ख़ुशी का कारण


आशा कभी कदाचित निराधार निर्विकार ।।


 


आशा साक्षात्कार ,सत्कार


आशा विश्वास का अवनि आधार।


आस्था, अस्तित्व का आविष्कार


आशा विश्वाश जगाती विश्वाश का आस्था से रिश्ता नाता।।


 


आशा, विश्वाश की आस्था पत्थर में भगवान दिखाता ।


भाग्य ,भगवान आशा ,विश्वाश 


जीवन का वर्तमान भविष्य बताता।।


 


प्रेम भाव आशा कि जलती लौ


विश्वास कि ज्वाला आस्था। अस्तित्व के गहरे सागर से मिल 


जाना जीवन मूल्यों के पथ पथिक


का उद्देश्य का जीवन चलता। 


आशाओं को जगने दो अंतर मन के भावो से विश्वाश का उफान ज्वार पराक्रम की ललकारों से।


 


मिल जाएंगे अल्ला ईश्वर खुद में


चेतना के जीवन राहों में।।


 


कहीं खो ना जाओ मिथ्या के आडम्बर में ना आशा जगे जीवन


में ना विश्वास का बैभव हो।


नश्वर जीवन में ना स्वर हो न उमंग


तरंग का संगीत तराना जिंदगी सिर्फ कटते काल समय की बोझ


जीवन मृत्यु के मध्य का सोना जागना।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दिलों ओ दिमाग पे छाई है 


तेरी यादों की परछाई 


नादानियां तेरी शरारते


तेरा शर्माना छुप जाना शर्माई।


दिलों दिमाग पे छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


दिल में जज्बे का तूफां


दिमाग में जज्बातों के जंग


तुझे खोने फिर संग लाने की जिद आई।


दिलो ओ दिमाग छाई है 


तेरी यादों की परछआई।।


 


बरसात का मौसम बरसात


में भीगना छोकना बरसात का


पानी कागज की कश्ती बचपन


की कस्मे रस्में कमसिन की


कसम भोली सूरत दिलों की दस्तक छाई।


दिलो ओ दिमाग पे छाई है  


तेरी यादों की परछाई ।।


 


जिंदगी के तक़दीर का वो लम्हा


उसके साथ गुजरे तोहफा लम्हा


तुम्हारा साथ जिंदगी का एहसास


तेरी अक्स जिंदगी की साँसे धड़कन सौगात तू आयी।


दिलो ओ दिमाग में छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


गली की कली नाज़ुक


वक्त की नाज़ नज़ाकत


तू लाखों अरमानों की चाहत 


नादानों की मोहब्बत की खुशबू


 नज़ाकत अर्ज आरजू।


दिलों ओ दिमाग छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


हुस्न की हद हैसियत तेरी


दीवानगी में दिलो का


पागल हो जाना तेरी मासूम


चाहतों में जीने मरने का कस्मे खाना सिर्फ मेरी ही चाहत में तेरी


जिंदगी का तराना आशिकी।


दिलों ओ दिमाग में छाई है


तेरे यादों की परछाई।।


 


माँ बाप हसरतों की जमीं


दोस्तों की आहों का का बहाना


चाहतों की आसमां


जहाँ में तन्हा तू नाज़ुक हुस्न


की चाँद की चॉदनी।


दिलों दिमाग में छाई है तेरे यादों


की परछाई।।


 


दुनियां की भीड़ में आज भी तन्हा


तेरे संग गुजरे लम्हों की दौलत का कारवां तेरे ही इंतज़ार


की जिंदगी तेरे प्यार की हकीकत


इकरार का इज़हार का लम्हा आती जाती।


दिलों ओ दिमाग में छाई है


तेरे यादो की परछाई।।


 


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

-    


       ----रिश्ते ---              


पैदा होता ही इंसान रिश्तों के साथ । नौ माह कोख में रखती तमाम दुःख कष्टों को सहती माँ ।।     


 


अपने औलाद कि खातिर असह वेदना भी जीवन का वरदान मानती खुद चाहे ना पसंद हो संतान की चाहत में सब कुछ करती जीती मारती माँ।।


                              


 


स्नेह सरोवर की निर्मल निर्झर गंगा कि धारा । ममता, ममत्व, वात्सल्य मानव का सृष्टी का का रिश्ता माँ ।।


 


ख़ाबों और खयालो में अपने चाहत अरमानो की जीत, चाहत।


कुल ,खानदान का रौशन चिराग हो माँ का लाडला बेटा।।       


 


आन ,मान, सम्मान का का सत्य सत्यार्थ प्रकाश चिराग माँ का बेटा।                               


साहस, शक्ति ,ज्ञान, योग्यता का अभिमान हो माँ काबेटा दुनियां में माँ बाप खानदान का रोशन नाम करे ,समाज राष्ट्र का नव निर्माण करे ,माँ का बेटा।।


 


काल ,समय ,भाग्य ,भगवान ,कर्म धर्म ,कर्तव्य ,दायित्व बोध का अहंकार बने माँ का बेटा।।    


 


मजबूत इरादों कि बाहों के झूले में झुलाता । अपने सिंघासन जैसे कंधे पर शान से दुनिया को अहंकार से बतलाता देखो ये दुनियां वालों मेरे कंधे पर मेरा नाज़ ।


 


चौथेपन कि मेरी नज़रे लाठी कन्धा फौलाद मेरी औलाद।।


 


मानव का दुनियां में पिता पुत्र का रिश्ता उम्मीदों के आसमान का रिश्ता और फरिश्ता।।               


 


माँ बेटे पिता पुत्र का दुनिया, समाज ,परिवार का बुनियादी रिश्ता।।


 


बहना जीवन का गहना रिश्तों के परिवार समाज खुशियों कि रीत प्रीति का बचपन से जीवन का रिश्ता।।


 


कच्चे धागे का बंधन संग ,साथ बहना चाहे बड़ी हो या छोटी । प्यारी ,लाड़ली ,दुलारी परिवार का प्यार बहना ,दीदी जीवन की सच्चाई का रिश्ता लक्ष्मी ,लाज परिवरिस का प्यार।।           


 


लड़ाई झगड़े कट्टी, मिल्ली बचपन कि शरारत रिश्तो के कुनबे परिवार की खुशियाँ चमन बहार का रिश्ता।।                           


 


हर राखी पर उपहार मांगती दुआओं भैया की झोली भरती। भैया दूज कि मर्यादाओं कि अपनी अस्मत हस्ती कि हिफाजत कि हिम्मत ताकत का आशीर्बाद भी देती का रिश्ता बहना दीदी।।          


 


बचपन की अठखेली आँख मिचौली घड़ी पल प्रहर दिन महीनो साल । वर्तमान से निकल अपने अरमानो के साजन के घर चल देती ।।


 


आँखों में विरह के आंसू दे जाती नन्ही सी पारी नाज़ों की काली परिवार कि चर्चा यादों का दर्पण हो जाती।।


 


भाई से भाई का रिश्ता परस्पर प्रेम प्रधिस्पर्धा साथ- साथ खेलते पढ़ते लिखते बापू के अरमानों के जाबाज परिन्दे खुली नज़रो के खाब बापू के अरमानो के अवनि आकाश। स्वछंद अनरमानो के पंखों के परवाज़ भाई -भाई परस्पर परिवार की साख सम्मान का विश्वास रिश्ता ।।


 


मानव का रिस्तो से नाता ,रिश्ता ही परिवार बनाता परिवारों से सम्माज का नाता समाज का परम्परा रीती,रीवाज निति से रिश्ता नाता ।   


संस्कृति, संस्कार का समाज की पहचान से नाता मानव से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट् का रिश्ता नाता।। मानव, परिवार ,समाज, राष्ट्र कि संस्कृति समबृद्धि पहचान बताता।                          


 


हर एक मानव कि ताकत से संगठित सक्तिशाली परिवार समाज संगठित सक्तिशाली परिवारों के का संबल समाज से मजबूत, महत्व्पूर्ण ,सक्षम राष्ट्र का नाता रिश्ता।।


 


रिश्तों में समरसता ,विश्वास, प्रेम प्रतिष्ठा परिवार का आधार।


    


परस्पर ईमान ,ईमानदार सम्बन्धों के मानव मानवता से ही परिवार का रिश्ता नाता।।                


 


संबंधो में द्वेष ,दम्भ ,घृणा का कोई स्थान नहीं ,द्वेष, दम्भ ,घृणा परिवारों के विघटन के हथियारों से रिश्ता नाता ।                  


 


 


छमा, दया ,करुणा ,प्रेम, सेवा, सत्कार मानव, मानवता के रिश्तों परिवार में प्यार,सम्मान, परम्परा का सार्थक व्यवहार जीवन मूल्यों का रिश्ता नाता।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिंदगी जज्बे का तूफां लिये आई


हज़ारो साल नर्गिस के इंतज़ार का


तोहफा सौगात लिये आई।


बेशकीमती दौलत दामन में संभालूं कैसे।।


 


ख़ुशी से पाँव जीमीं पे नहीं लाखों


अरमान की हकीकत छुपाऊं कैसे।।


खुदा का करम कहूँ है या किस्मत


का करिश्मा पूछती है दुनियां बताऊँ कैसे।।


जिंदगी के यकीं का शोर बहुत


जहाँ में ,धीरे से जिंदगी की


मोहब्बत दिल में दबाऊं कैसे।।


 


नशा नसीब का बिन पिए शराब


भी सुरूर पे है जिंदगी के मैखाने


के ख़ास पैमाने को दिखाऊं 


कैसे।।


हर हद सरहद से गुजरने को


मचलता है दिल ,तरन्नुम में


मचलते दिल को समझाऊं


कैसे।।


 डर है की जिंदगी के तरानों का


ख़ास ये लम्हा ख्वाब ना हो जाये


अंदाजे ख़ास इस लम्हे को संभालूं कैसे।।


उगता हुआ सूरज है जिंदगी का ये


ख़ास लम्हा


चाँद की चाँदनी का दीदार अक्स


उतारूँ कैसे।।


लम्हा लम्हा गुजरती जिंदगी का


हसीन लम्हा जिंदगी का नूर


नज़र बनाऊ कैसे।।


हुस्न ,इश्क ,मोहब्बत मौसिकी का


आलम जिंदगी के हुजूर की मौसिकी गाऊँ कैसे।।


दीवाने परवाने का जूनून लम्हा जिंदगी का


हर साक पे बैठे की नज़र


हर साक की डाल को बताऊँ कैसे।।


ख़ास इंतज़ार की जिंदगी से 


इल्तज़ा इतनी मुबारख कदमो


के बाहरो का चमन हर कदम


जिंदगी में निहारूँ कैसे।।


 


नंदला लमणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

,वक्त मूल्य मूल्यवान है


वक्त ही जीवन की कद्रदान है।


वक्त के रूप अनेको, लोखों मिज़ाज़ है।।


 


वक्त भाग्य ,भगवान भगवान् है


वक्त विध्वंस निर्माण है।


वक्त राज को रंक बनाता 


रंक को रजा बनाता 


वक्त विकट विकराल है।।


 


वक्त ताकतवर ,वक्त कायर 


वक्त हालत, हालात 


वक्त की हर सह गुलाम, आजाद गुलाम है।।


 


दर ,दर ठोकरे देता वक्त साधारण,


असाधारण महान है।


वक्त रुकता नहीं चलता जाता


वक्त कोई रोक सकता नहीं 


वक्त पीछे मुड़ कर देखता नहीं


वही गांडीव वही अर्जुन वही


वाण कुल्ल भीलों के हाथ


हार गया महारथी का पुरुषार्थ ।।


 


वक्त को रोकने वाला ,मोड़ने वाला


किसी युग में जन्मा ही नहीं


वक्त निति ,नियत, निर्धारण की धार ढाल है।।


 


वक्त समर ,साम्राज् वक्त राई को पर्वत ,पर्वत को राई बनाता


वक्त की अपनी कीमत चाक का युग संसार है।।


 


वक्त मित्र ,वक्त शत्रु ,वक्त वक्त


कर्म ,धर्म का गीता ज्ञान है।


वक्त जय, पराजय पुरुषार्थ 


वक्त के हर संस्कृति संस्कार


वक्त के कई नाम समय ,सत्य,


काल नित्य निरंतर प्रवाह है।।


 


वक्त विजेता ,वक्त पराजय


वक्त ख़ुशी ,गम आंसू ,मुस्कान है।


वक्त गीत है, गान है ,क्रंदन कलरव् सम्मान है।।


 


वक्त नफरत ,वक्त हसरत अरमान है।


वक्त छल है ,छलावा,


पछतावा, प्रपंच ,काश ,कसमकस की आह है।।


 


वक्त मर्म ,मर्यादा का राम है


निष्काम कर्म का कृष्ण ,अन्याय


अत्याचार का संघार परशुराम है।।


 


वक्त तुला है शिवि को भी अपने


माप से तौलता वक्त की अपनी


सुर लय ताल है।


वक्त कभी वीणा की झंकार कभी


शिव तांडव का डमड्ड डमड्ड शिवा


के डमरू की नाद है।।


 


कुरुक्षेत्र की रणभेरी है पाञ्चजन्य


का शंख नाद है।


वक्त सौम्य, शालीन ,वक्त, वैभव


विराट है ।।                          


 


वक्त राजा हरिश्चंद कंगाल है 


वक्त नादाँ ,वक्त होसियार खबरदार वक्त अतीत वर्तमान 


इतिहास है।।


 


वक्त ग्रह ,गोचर है ग्रह गोचर की


माती गति वक्त गति सदगति सम्यक संचय ,ज्ञान है।


 


वक्त प्रहर है ,प्रहरी है वक्त


के अधोन् सृष्टि युग ब्रह्माण्ड है।


वक्त मौसम ,विधि ,विधान 


वक्त कद्रदान का गुलाम है।।


 


वक्त जीवन पहचानपरिधान है वक्त व्यवहार वक्त आचार ,विचार का जन्म दाता वक्त दुनियां की संस्कृतियों कानिर्माता वक्त भीड़ है वक्त एकाकी है कभी रहता ही नहींकभी कटता ही नहीं वक्त


मेहरवानी मेहरवान है।।


 


वक्त मेहरवान है साथ सारा जहां


है वक्त निर्मम ,निर्दयी वक्त सुई की नोक तीर तलवार है।।


 


वक्त मौका है, वक्त धोखा है


वक्त विश्वास है ,दृश्य ,अदृश्य


शान ,स्वाभिमा मान अपमान है।।


 


वक्त टूटता नहीं ,वक्त झुकता नहीं,


वक्त रुकता ही नहीं नित्य निरन्तर कि धारा सुबह शाम दिन रात वर्ष महीने साल का सूरज चाँद है।।


 


वक्त को मोड़ दे ,विवस कर दे


रुकने को प्रवर्तक जाना जाता


परिवर्तन वक्त का माना जाता 


वक्त युग के जवाँ जज्बे के


नौजवान के क़दमों की गूंज


की अनुगूंज गर्व ,गौरव गान है।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

बुड्ढे का सावन


 


 


मौसम का बदला मिजाज


मिली तपन से निज़ात


आया मौसम बरसात।।


सावन में लग गयी आग काश


हम होते जवान।।


 


कभी हल्की फुहार कभी बौछार ही बौछार 


चुहुँ ऒर हिरियाली का राज


सावन कि घटाओं में छुपा चाँद


मदमस्त जवाँ दिलों में प्यार कि


खुमार।।


सावन में लग गयी आग काश हम


होते जवान।।


 


कहते है दिल कभी बूढ़ा नहीं होता


बुजुर्गो के दिल में भी आने लगी 


बचपन की याद बारिस का पानी


कागज कि नांव।।


सावन में लग गयी आग काश


हम होते जवान।।


बारिस में भीगना गॉव कि गलियों


में कीचड़ से लिपटे पाँव 


खांसी छींक बुखार माँ बाप की डांट फटकार 


बाग़ ,बगीचों का आम मस्ती का


बचपन बेफिक्री का नाम।।


सावन में लग गयी आग काश


हम होते जवान।।


 


बुंढीयाँ भी करती अपने बचपन 


जवां दिनों कि याद 


क्या हस्ती थी बारिस 


 में भीगा बदन


साँसों की गर्मी घूमते इर्द गिर्द मजनूं हजार ।।


सावन में लग गयी आग काश हम


भी होते जवान।।


 


बुधीयों का शौहर से गीले शिकवे लाख


सर्दी सताती कांपते जैसे


आम से लदी डाल


पके आम से पिलपिले तपिस से


लग जाती लू बुखार 


जब बहती मस्त बसंती बयार मौसम 


बदलने कि पड़ती तुम पर मार 


हमारे बुढ़ऊ शौहर जवां जज्बे के


प्यार के खाब हज़ार।।


सावन में लग गयी आग काश


हम भी होते जवान।।


कौन कहता है दिल बूढ़ा नहीं होता शारीर ने साथ छोड़ा दिल बीमार


चीनी की बीमारी रक्तचाप


जंजाल जिंदगी खांसते दिन


रात डाबर का च्यवन प्रास झंडू का केशरी जीवन बेकार।।


सावन को लग गयी आग काश 


हम भी होते जवान।।


 


बुड्डा सठिया गया सावन में लग


गयी आग वदन साँसों में गर्मी नही


जिंदगी में सावन दिल जलाये


आहे आये काश हम होते जवान।।


सावन में लग गयी आग काश हम


भी होते जवान।।


 


बीबी को देखते ही दम फुलता


सांसो धड़कन में जवाँ हुश्न याद


आती हो जाते जज्बाती 


सांसो धड़कन कि चेतावनी 


खबदार ।।


सावन में लग गयी आग काश हम


भी होते जवान।।


बुढ़ऊ हार नहीं मानते ताकत कि


जुगत लगाते काजू किसमिस बादाम अण्डा दूध मलाई खाते 


हाज़मा दे देता जबाब ताकत 


मिलती नहीं जाते रहते संडास।।


 


सावन में लग गयी आग बीबी


कि पड़ने लगी डांट।।


 


जब नौजवानो से हो जाती


मुलाक़ात मारते डिंग शुद्ध


देशी घी खा कर हुये जवान


तुम डालडा ,पिज्जा ,वर्गर वाले


क्या जानो जवानी क्या ?


 


जवाँ दिलों का देखते जब उन्मुक्त


प्यार अपनी जवां दिनों को 


करते याद उन्ही दिनों के सावन


के ख़ाबों को जी लेते आज।।


 


आह भरते सावन में लग गयी


आग काश हम भी होते जवान।।


 


सावन में बुढ्ढा देवर मगर क्या


करे भाभियां बुड्डा तो नकली


पेवर देवर काम का न काज का


बेकार।।


तकदीर को कोसती भाभियां सावन में लग गयी आग सावन


हुआ बेकार।।


लाखो का सावन आय 


जाय जवानी के दिन याद दिलाय


चला जाय


मोहब्बत तो दिये जैसी


जलते ही बुझ जाय


सावन भादों प्यार मोहब्बत कि


बरसात जिंदगी में जवां जज्बात


बुड्ढों के बस की नहीं बात। 


सावन में लग गयी आग जिया


जलाये मन दरसाये याद आये


जवानी के सावन की रात।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

धर्म निरपेक्षता ढकोसला


 


 


धर्म ,समाज ,राष्ट्र धरोहर


माँ ,जन्म ,जन्म भूमि की 


पहचान।।


धर्म ,धन्य मानवता का


अभिमान ।


धर्म ,संस्कृति ,संस्कार 


नहीं सिखाता प्राणी


प्राण में भेद भाव।।


हिंसा ,घृणा ,विद्वेष धर्म नहीं


धर्म मार्ग है प्रेम ,शांति का


संदेस।।


धर्म नहीं करता मानव 


मानव में भेद।


अन्याय ,अत्याचार का प्रतिकार


सद कर्मो का सत्य ,सत्यार्थ


धर्म ,करुणा ,छमाँ मानवता


की मर्यादा मूल्य।।


लोकतंत्र मत बहुमत का मेल


लोक तंत्र में जाती धर्म के 


वर्ग बेमेल।।


लोकतंत्र सत्ता ,शासन का


मार्ग कभी तोड़ कर ,कभी


जोड़ कर मत बहुमत नित्य


निरंतर सत्ता शक्ति के संतुलन


अनेक।।


लोक तंत्र जनता का, जनता द्वारा,


जनता के लिये 


अक्सर भोली भाली जनता


अपने सपने को खुद


भवों के प्रवाह में दाँव लगाती


कभी हारती कभी जीतती


कभी हराती कभी खुद


हार जाती ।।


धर्म धुरी है मानवता कि जिसके इर्द गिर्द


मानव घूमता आशाओ के


विश्वाश में ,आस्था के अस्तित्व


में ,विराटता के बैभव में,


विचलित हो जाता ,जब मानव


धर्म मार्ग उसे तब बतलाता।।


लोकतंत्र भी मानवता के मूल्यों


का रखवाला 


मत बहुमत के चक्कर में 


बांटता बटाता और बँट जाता


लोकतंत्र सिद्धांत मत बहुमत


पर आधारित ।।


धर्म ,अक्षुण ,अक्षय युग समाज


का निर्माणी निर्णय कारी।


लोक तंत्र में बहुमत निर्णय


परिवर्तन का पथ प्रवाह


धर्म में कर्म ,ज्ञान के वेद्,


पुराण, कुरान जीवन मूल्य


आधार ।।


धर्म कि परिभाषा कि उलटी


व्याख्या घृणा का क्रूर ,


क्रूरतम, उग्र ,उग्रता ,उग्रवाद


लोक तंत्र में छद्म खद्दर धारी


जनता के प्रतिनिधि महात्मा


कि आत्मा विध्वंसक ,विघटन


कारी मानवता में घृणा के 


संचारी।।


धर्म निरपेक्ष नहीं मानव मन 


मस्तिष्क कि आस्था 


के मूल्यों कि परम शक्ति भगवान,


खुदा ,अल्ला ,बुद्ध ,जीजस , नानक भक्ति की शक्ति।


लोकतंत्र सिद्धान्तों के सापेक्ष मति ,सहमति कि


संयुक्त ताकत राज्य प्रशासन


की निति ,नियति राज्य निति राजनीती 


निरपेक्ष नहीं ,जब भगवान,


खुदा ,जीजस ,अल्ला भक्ति


के सापेक्ष।।


लोकतंत्र निरपेक्ष कैसे


लोक तंत्र बहुमत का प्रति


प्रतिनिधि का सापेक्ष।।


निरपेक्ष नहीं पैदा होता मानव


पैदा होता धर्म ,रिश्तों ,नातो के


समाज सापेक्ष में


कैसे हो सकता निरपेक्ष ।।


धर्मनिपेक्षता का राग ढोंग,


छद्म ,छलावा सबसे ज्यादा


धर्मांध धर्म निरपेक्षता कि


राग अलापता । 


धर्म निरपेक्षता खोखले


मर्यादाओ का अँधेरा अन्धकार


दिखता ।।


जब इंसान कि पहचान माँ ,बाप,


मातृभूमि ,समाज ,धर्म ,राष्ट्र 


जो मानव ,मानवता के रिश्तों


में रचता बसता समरसता


के समता मूलक राष्ट्र कि 


बुनियाद।।


शासन प्रशासन लोक तंत्र हो


राज तंत्र हो जो भी हो कि


सांसे धड़कन प्राण।।


हर राष्ट्र कि मौलिक चाहत


एक सूत्र में बंधा रहे राष्ट्र 


समाज ,धर्म का भी चिंतन


सिद्धान्त।।


दूरदृष्टि ,मजबूत इरादे ,नेक नियति


निष्ठा ,ईमानदारी ,आस्था और


विश्वास, धर्म और लोकतंत्र कि आत्मा आवाज़।।


 


धर्मनिरपेक्षता फरेब ,धोखा ,मौका,


मतलब परस्ती का समाज देश


के बुनियादों का दीमक जाल।।


देश समाज के खस्ता हाल


का जज्बा जज्बात जिमेदार।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

हर अल्फ़ाज़ रेशमी आवाज़ मिश्री सी मिठास बयां करते हर शायर कलम की धार।।           


 


जज्बे, जज्बात बस इतना कहता जीओ हज़ारों साल हर कदमों की मुस्कुराहटों से दुनिआ मैं खुशियां हज़ार !!


 


बहारों की फ़िज़ाओं में गज़ब की कशिश हलचल वक्त भी ठहर कर दे रहा था गवाही !!              


 


अंदाज़ खास आगाज़ की आवाज़ खास मुस्कुराता चेहरा जहाँ की खुशियों जज्बा जज्बात मनु कायनात की मिज़ाज़।।


 


सूरज सुरूर पे ही था चाँद दस्तक दे रहा था नए कायनात की बान।।                


 


सागर की सांसों ,धड़कन, वजूद की मल्लिका रौनक सागर की गहराई से उठते तूफानों की परछाई ।।  


 


चाँद ,चांदनी की चमक का ही जलता चिराग हर शायर फनकार!!     


 


सजी सवंरी सतरूपा मनु की


कायनात का इंतज़ार।।


 


चारों तरफ पानी ही पानी


जमीं का नहीं नामों निशाँ


सागर के तूफां में बस एक नांव।।


 


जहाँ के वजूद वज्म की


उम्मीद अरमान वक्त की


तेज रफ्तार ।।


 


मनु की सच्चाई का साथ


खूबसूरत मल्लिकाये मोहब्बत


की कायनात ।।


 


                          


 


बिटिया बहना फरिश्तों की नाज़ों की बहना गहना।। !


 


सागर की जान ,आरजू ,अरमान सच्चाई ,परछाई संग जमीं आसमान की उड़ान ।।           


 


हद हस्ती की पहचान ईमान !!


 


 सूरज सुरूर पे था चाँद ने दस्तक दिया सांसों धड़कन वजूद की मल्लिका रौनक जहाँ में खास।।


 


मोहब्बत कि बुनियाद का कायनात बँट गया आज 


टुकड़े हज़ार।।


 


नफरतों के दौर में इंसानी


रिश्तों में खत्म हो गयी मिठास।।


 


मनु की सच्चाई की परछाई सतरूपा भी है आज शर्मसार


क्यों जहाँ के बने बुनियाद।।


 


क्यों बनाई दुनियां जहाँ इंसान


ही एक दूजे की खिचता टांग


एक दूजे की लाशो की सीढ़ियों


पर छूना चाहता आसमान।।


 


जमी पर पैर नहीं हवा में


उड़ता मंजिल मकसद गुरुर


के जूनून का कायनात।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

---------पिता हमारे----


 


जब कही कभी परेशान हो जाता


ख्वाबो और ख्यालों यादो मन


के भावों पर छा जाते 


भटक जाऊं मूल्यों के जीवन


पथ से राह दिखाते ।।


 


पिता हमारे


भगवान मैं उनकी संतान।।


 


याद हमे है बचपन अपना


मैं उनके सपनो का संसार।


मेरी खुशियो कि खातिर जाने


कितने कष्ट उठाते ना थकते


ना हारते हर कदम नया उत्साह।


पिता हमारे भगवन मैं उनकी


संतान।।


 


जब तक रहते साथ जीवन सरल


सुगम कठिनाई का ना नाम।


जब कभी भी मन मस्तिष्क नज़रों से ओझल हो जाते जीवन राहो


में अँधेरा हो जाता दुर्गम जीवन 


हो जाता झट प्रत्यक्ष मन मंदिर


में प्रगट हो जाते जीवन के अंधेरो


में उजाले की दीप जला कर हो जाते अंतर्ध्यान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


मेरा सामर्थ उनका आर्शीवाद माद्री ताकत सम्बल उनका


आर्शीवाद ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी


संतान।।


 


पचपन में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया । जीवन के कुरु


क्षेत्र के कर्म, ज्ञान दीप जलाया


जीवन मूल्य ,मतलब सिद्धान्त


बताया हारना नहीं जीतना सिखाया जो भी उनकी पूंजी


जीवन कर दिया मुझ पर कुर्बान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


गिरना नहीं सम्भलना सिखाया


निति, नियत, ईमान दिया मर्म


मर्यादा दीया मूल्य मूल्यवा।


पिता हमारे भगवान् मैं उनकी


संतान।


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


 


फिर भी उनको लगता अब भी


मै बच्चा हूँ अबोध ।     


 


पल प्रहर दिन रात मेरी सुख दुःख की चिन्ता 


करते निवारण का पराक्रम का


धन्य ,धरोहर ,ध्यान 


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


चाहे जिस जाती ,धर्म ,प्राणी का


होऊं प्राण उनके ही बीज का बृक्ष बनु माँ के कोख में पलु ।


माँ की ममता के आँचल का वात्सल्य माँ भारती के आँगन


की किलकारी पुत्र मैं आज्ञाकारी


श्रवण,राम ,पशुराम ।


उनके चरणों की धूलि मेरे मस्तक


का अभिमान ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


उनकी साँसे उनकी धड़कन का


मेरा प्राण दम निकले मेरा पितृ 


भक्ति में गर अवसर आ जाये


उनकी खातिर दे दूँ उनका ही


अपना प्राण।।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

सभल जाओ ,सुधर जाओ


नहीं तो देंगे तुमको चीर


विषधर तुम विष बीज 


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


फन कुचल देंगे तुम्हारी हस्ती


मिटा देंगे मानवता के दुश्मन दानव चीन धूर्त ,पाखंडी,मक्कार


तेरी दानवता मक्कारी का 


विश्व बंधू देगा जबाब गिन गिन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


सन् बासठ में धोखा दिया


छल छद्म की चाल चला


भूले नहीं हम तेरी कुटिल


कुटिलता को भारत हम सौम्य 


शालीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


मेरी बाज़ारों का तू बड़ा व्यपारी


तेरी हर उत्पाद का वहिष्कार करेंगे  


तेरा मर्दन मान करेंगे तुझसे


दो दो हाथ करेंगे लड़ेंगे तेरा


सत्या नाश करेंगे।


मिटा कर रख देंगें तुझे चीन।।


 


तू चालाक लोमड़ी दोस्ती


का स्वांग रचता पीठ में खंजर


भोकता ।                                


 


तेरी निति ,नियत, कायर


दुष्टों की तेरी हर कुटिल ,चाल,


जाल को काट देंगे तेरी औकात


का किनारा तीर।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तूने हमारे पड़ोसी नेपाल को


दुश्मनी की राह दिखाई है।


 


निगल जाएगा तू भोले भाले


नेपाल ,नेपाली को तेरी मंसा


नहीं जानता गर नेपाल। 


                


मिट जाएगा तेरे पाश में


नहीं रहेगा विश्व नक्शे में नेपाल


भोले भाले नेपाली को शायद


नहीं आभास।


 


पूरी नहीं होने देंगे तेरी कोइ चाल


चाहे जीतनी चाले चल ले, तेरा


होने वाला है बुरा हाल नीच।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तू कितना दुष्ट दमनकारी अपने


ही लोगो का धेन्चौक पर करता


है संघार, तू विघटन कारी, तू


अत्याचारी ,होने वाला है तेरा


अब सर्वनाश ।                   


उछल कूद तू


चाहे जितना कर ले चीन


मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तू धमकी देता चेतावनी सुन ले


कान खोलकर तू है अब बेमोल कौड़ी का तीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


भारत के हर सैनिक की शहादत


का हिसाब करेंगे तेरे टुकड़े हज़ार


करेंगे नही बायेगा तू गिन गिन।


मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।


 


हर भारतवासी का खून है


खौला अपने हर शहीद जवान


का बदला एक एक पे बीस।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


ललकार सुन ले फुंकार तू अपनी


बंद कर देंगे तुझे हम कटपीस।


मिटाकर रख देंगे तुझे हम चीन।।


 


हम कायर कमजोर नहीं


हम तुझ जैसा धोखा और


फरेब नहीं ।


हम भारत का भारतवासी 


जो आँख दिखाए आँख


निकाले जो दे चुनौती


उसका काल बने सभल जाओं अब चीन।


मिटाकर रख देंगे हम चीन।।


 


कर तू आजमाइस जोर नहीं


पछतायेगा कही का ना तू


रह जाएगा होगा तू गमगीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे हम


चीन।।


 


प्रेम शांति का बुद्ध सिद्धांत


अहिंसा परमो धर्मः कि आवाज


अवतार से करता है तू रार


तेरी अब खैर नहीं तरसेगा


मरेगा बिन पानी के चीन।


मिटा कर रख देंगे हम


चीन।।


 


विश्व लड़ रहा जंग कोरोना से


तेरी ही शातिर खुराफात की


देंन जितना तू गिरता जाएगा


उतना तू पछतायेगा सभल नहीं


पायेगा चीन ।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

वैश्विक महामारी कोरोना-सम्पूर्ण विश्व में एक त्रदसी जिसने समूचे विश्व समुदाय को विवस कर दिया सोचने को कि मानवता के धीरे धीरे विनाश की यह मानव कि खुद कि ईजाद है या मानव द्वारा प्रकृति के साथ किये गए विकास के अँधा धुंध कि परिणीति या कोई और कारण अभी तक समूचा विश्व इस महामारी का कारण तक नही खोज पाया निवारण का खोजने का प्रयास कर रहा है।


जगह जगह मानवता बिवस है क्या उपाय करे इस महामारी के संक्रमण कि संक्रामकता से विकसित राष्टों का विकास का दम्भ तिलस्म टूट रहा है ।बेवस लाचारी में मानवता तड़फ तड़फ कर दम तोड़ रही है।अगर परम् शक्ति सत्ता ईश्वर नाम कि क़ोई ताकत है तो संभवतः मानव के सर्व शक्ति मान होने के अभिमान पर अट्टहास कर रही है ।


संस्कृतीयो को चुनौती-वैश्विक महामारी कोरोना कि शुरुआत चीन के बुहान् शहर से हुई जहाँ भगवान् बुद्ध के अहिंसा परमो धर्मः के पोषक और अनुयायी हैं आश्चर्य इस बात का है कि चीन में किस बुद्ध के सिद्धान्त के अनुयायी है क्योकि भगवान् बुद्ध ने अहिंसा को मूल सिद्धान्त मानवता के सर्वोत्तम मूल्यों के रूप में विश्व के समक्ष रखा था जबकि चीन में क़ोई जीव सुरक्षित नहीं है सभी प्रकार के जीव जंतु कीड़े मकोड़ो का आहार करते है।क्या इसके पीछे चीन कि विशाल जनसख्य के लिये भरपूर खाद्यान्न उपलब्ध नहीं है जो सम्भव नहीं है क्योकि चीन ने विकास के प्रत्येक माप दंड पर विश्व में अग्रणी भूमिका निभा रहा है तो क्या इस तरह कि महामारी अब विश्व समुदाय के लिये सामान्य बात् है जो कही इबोला कोरोना कि मार के रूप में सामने आया है और आता रहेगा।


 


सामान्य असामान्य--जब चीन के बुहान् शहर में कोरोना महामारी ने दस्तक हुआ तब किसी को पता नहीं था कि सुखी खाँसी बुखार और सांस लेने कि साधारण सी परेशानी मानवता के लिये इतनी भयावह स्तिति पैदा कर देगी।चीन तो दावा करता है कि उसके यहाँ संक्रमण नियंत्रण में है कितना विश्वास किया जा सकता है निश्चित नहीं है।बहुत जानकारों का मत है कि यह एक सोची समझी वैश्विक शक्ति एवम् नेतृत्व कि सोची समझी रणनिति तृतीय विश्व युद्ध का नया तरीका है मानव द्वारा तैयार किये गए जैविक हथियार के मानवीय भूल के विस्फोट का नतीजा है जिसका नतीजा संक्रमण है।


इसे कितना सही माना जा सकता है शोध का विषय है लेकिन यह संसय का विषय अवश्य है कि चीन द्वारा इस महामारी के विषय में विश्व समुदाय को अवगत नहीं कराया गया ना ही उससे निपटने के अपने तौर तरीको को मानवता के हितार्थ बताया गया जिससे कि विश्व समुदाय को कम हानि उठानी पड़ती ।


 


विश्व के विकसित देशों पर प्रभाव-- इस त्रदासी का भयावह पहलू है पश्चात विकसित राष्ट्रों की अपूरणीय क्षति शीत युद्ध समाप्त होने के लगभग पंद्रह वर्षो बाद चीन ही एक ऐसा राष्ट्र है जो इनको परोक्ष प्रत्यक्ष चुनौती देता रहता है जो इन सर्व शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों के लिये चुनौती और अहं पर चोट है यह भी कारण हो नया कारण सम्भव है आधुनिक युग में युद्ध का क्योंकि परमाणु शक्ति सम्पन्न अब बहुत राष्ट्र हो चुके है और परमाणु युद्ध कि भयानक परिणीति विश्व नागासाकी और हिरोशिमा में देख चूका है और परमाणु शस्त्रो का प्रयोग सिर्फ प्रत्यक्ष कारण करक के युद्ध में ही संभव है शीत युद्ध में राजनितिक कुशलता दक्षता में ऐसे शस्त्रो का प्रयोग सर्वथा असंभव है।नाटो संधि और वारसा पैक्ट के बाद सोवियत संघ एक शक्तिय ध्रुव था रूस के विखंडन और पूर्वी जर्मनी के जर्मनी में एकीकरण के पश्चात वारसा पैक्ट लगभग दिन हिन् हो गया और नाटो संधि उत्तरोत्तर शक्तिशाली अब तथाकथित वारसा पैक्ट का एतिहासिक शक्ति केंद्र नजर आता है ।अतः बहुत सम्भव है कि यह छद्म विश्व युद्ध का नया वैज्ञानिक तरीका हो ।क्योकि जो आंकड़े अब तक है उनके आधार पर स्पष्ठ तौर पर परिलक्षित है कि इस महामारी का प्रभाव क्यूबा उत्तरी कोरिया वियतनाम आदि दशो पर कम है जबकि यूरोप के देश अमेरिका इंग्लॅण्ड जर्मनी इटली स्पेन फ्रान्स न्यूजीलैंड आस्ट्रेलिया आदि देशो में कोरोना संक्रमण ने सर्वाधिक चौतरफा हानि पहुचाई है जिसमे मानव शक्ति आर्थिक हानि सम्मिलत है ।यहाँ एक बात महत्व्पूर्ण है कि इस महामारी का प्रभाव दक्षिणी देशो में भी अधिक नहीं है।इस महामारी का सर्वाधिक प्रभाव एशिया यूरोप के देशो पर पड़ा है।


 


कोरोना का प्रभाव-कोरोना संक्रमण ने एक तरह से समूचे मानव समाज को जीवन शैली कि एक नया आयाम प्रदान किया है पश्चिमी देशो के अति खुलेपन के समाज को भी कोरोना ने अपनी जीवन पद्धति के लिये विवस कर दिया है ।पश्चिमी देशों में भाग दौड़ और अति व्यस्तम जीवन शैली के कारण जीवन के लिये अनिवार्य भोजन भी बनाने कि।फुरसत नहीं होती आधा पका भोजन हाफ कुक्ड फ़ूड फ्रिज में रख कर हप्तो खाते है जो इस तरह के संक्रमण का प्रमुख कारण है।दूसरा वहाँ सभी आपस में मिलते है तो हाथ मिलाने या गले मिलकर किस करने कि परम्परा है जो इस सक्रमण का कारण है


इस संक्रमण में सोसल डिस्टेंसिन सभ्यता का ईजाद किया साथ ही साथ मानव के एकात्म भाव शारीर कि वास्तविकता का लाक डाउन नई जीवन शैली या यूँ कहे कि सयमित जीवन शैली का इज़ाद किया जिसके दुष्परिणाम एवम् सार्थक दोनों ही रहे दुष्परिणाम कि व्यवसायिक और औद्योगिक गतिविधियाँ एक एक रुक गयी जिसके कारण आर्थिक उपज उन्नति का मार्ग अवरुद्ध ही गया और व्यक्ति कि आय घट गयी या रोजगार समाप्त हो गया विकास कि रफ़्तार थम गयी ।लेकिन इसका दूसरा सार्थक पहलू है लोगो का बाहर निकलना सडको पर भीड़ भाड़ कम हुआ जिसके परिणाम स्वरुप सड़क दुर्घटनाओ में कमी आई और मानव के द्वारा होने वाले प्राकृतिक प्रदूषण में कमी आई ।कोरोना संक्रमण का सबसे बीभत्स पहलू यह है कि जब इस संक्रमण से क़ोई व्यक्ति संक्रमित हो जाता है तो उसके सगे संबंधी भी उसके पास तक नहीं पहुचने से परहेज करते है संक्रमित व्यक्ति को जब अपने बेटी बेटो पत्नी से ऐसा व्यवहार प्रत्यक्ष देखने को मिलता है तो उसे खुद पर मानव समाज और रिश्तो संबंधो से विश्वाश उठ जाता है संक्रमण में मानव कि भावनाये भी तिरस्कार से संक्रमित हो जाती है नतीजन वह टूट जाता है विशेषकर अधिक उम्र का व्यक्ति ।


वैसे भी कोरोना साठ साल से अधिक उम्र के लिये या किसी बिमारी से ग्रसित व्यक्ति के ज्यादा घातक है इस उम्र में अमुमन आम व्यक्ति का लगाव अपने रिश्तों नातो पर चमोत्कर्ष पर होता है।


 


 भारत विश्व गुरु क्यों और कैसे--भारतीय समाज कि शैली सभ्यता निश्चित रूप से विश्व के अन्य देशो से अधिक परिमार्जित और प्रासंगिक है एक तो यहाँ के अधिकतर लोग धर्म को अपनी जीवन पद्धति का आधार मानते है जिसके अनुसार सामाजिक सरोकार को अंत्यंत सार्थक और व्यवहारिक और करुणा पूर्ण रखा है ।यहाँ के अधिकतर लोग शाकाहार पसंद करते है और ताज़ा भोजन ही पसंद करते है मिलने जुलने में प्रणाम या चरण स्पर्श कि संस्कृति यहाँ आम है दूसरा यहाँ नियमित जीवन शैली और दिनचर्या बहुत महत्व्पूर्ण है ।विश्व समुदाय का यह मानना हो सकता है कि आर्थिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े होने के कारण यहाँ धार्मिक जीवन शैली ज्यादा महत्व्पूर्ण है मगर आज यह सोचने को समूचा विश्व विवस है कि यही जीवन शैली एक आदर्श जीवन शैली हो सकती है जो कोरोना के साथ साथ तमाम आपदाओ और संक्रमण से मानवता कि रक्षा करने में सक्षम और समर्थ है । सबसे खास बात भारतीय जिस परिस्तिति परिवेश स्तर आमिर गरीब हो उनमे दो बाते खास है एक तो शारीरिक श्रम कि आदत दूसरा चिंता मुक्त जीवन शैली के साथ साथ योग यही खासियत भी है भारतीयता और उसके धार्मिक समाज कि जिसके कारण शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता विश्व के अन्य देशो से भारतीयो में अधिक होती है । साथ ही साथ दक्षिण एसिया के अधिकतर देशो कि संस्कृति आपस में बहुत मिलती जुलती है इसी दृष्टि के दृष्टिकोण के अंतर्गत भारत के प्रधान मंत्री द्वारा सबसे पहले दक्षिण एसिया के देशो के मध्य कोरोना संक्रमण से निपटने के लिये सहयोग कि पहल का नेतृत्व किया गया।


                                       भारत पर कोरोना संक्रमण का प्रभाव--भारत विकासशील देश है और बहुत से क्षेत्रो में आत्म निर्भरता हासिल कि है मगर अभी बहुत कुछ करना बाकी है ।भारत कि लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी दैनिक आय पर आधारित है कोरोना संक्रमण के कारण लगभग साठ दिनों के लाक डाउन से सारी गतिविधिया एकाएक रुक गयी परिवहन संचार उद्योग आदि सभी कार्य बंद हो गए जिसके कारण आय बंद हो गयी और लोगो के समक्ष रोजी रोटी का प्रश्न खड़ा हो गया दूसरा देश के एक राज्य से दूसरे राज्यो में गए कामगर मजदूरो में भय का वातावरण व्यप्त हो गया जिसके कारण उनका पलायन शुरू हो गया जिसके कारण कभी दिल्ली उत्तर प्रदेश सिमा पर भीड़ एकठ्ठा हो गयी और अपने घर वापसी के लिए जिद्द करने लगी ऐसी ही स्तिति गुजरात महाराष्ट्र में हुई मजदूर जहाँ था वहाँ रुकने के लिये तैयार नहीं था क्योकि उसके समक्ष न्यूनतम दिनचर्या के लिये रोटी का प्रश्न था और प्रशासनिक व्यवस्थाओ पर उसे भरोसा नहीं था।नतीज़न उनके लिये प्रशासन को परिवहन कि अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ी वावजूद इसके हज़ारो लोग सैकड़ो मिल पैदल या किसी न किसी साधन से भागे जिससे पुरे राष्ट्र में भगदड़ कि स्तिति हो गयी ।तबलीगी जमात ने कोरोना के प्रसार में कम से कम भारत में महती भूमिका अदा कि प्रारम्भ में इसके प्रसार में टाइम बम कि भूमिका अदा कि। सारी गतिविधियों के बंद होने के कारण आर्थिक रफ़्तार थम गयी जो किसी भी विकासशील राष्ट्र के लिये बर्दास्त कर पाना संभव नहीं है ।


राज्य सरकारो के पास अपने कर्मचारियों के अपने खर्चे और कर्मचारियों के वेतन के लिये पैसा नहीं रह गया।


 बेरोजगारी कि स्तिति विश्व के सापेक्ष भारत में भी बढ़ी नतीजा आम जनता ने कोरोना से बचाव के सुरक्षा उपाय को नकारना शुरू कर दीया और यह धारणा बलवती हो गयी कि यदि मारना ही है तो भूखे मरने से ज्यादा बेहतर कोरोना से मारना है।


 


भारत सरकार कि पहल--निर्विवाद रूप से आजादी के बाद भारत को ऐसा नेतृत्व प्रधान मंत्री के रूप में मिला है जिसे सम्पूर्ण विश्व स्वीकार करता है ।भारत में अब तक जितने भी प्रधान मंत्री हुए है सभी कि अपनी अलग पहचान है सब बेजोड़ थे या है लेकिन बर्तमान का नेतृत्व का नेतृत्व भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा स्पष्ठ है आज़ादी के बाद भारतीय जन मानस ने कांग्रेस के अतिरिक्त किसी पर इतना भरोसा नहीं किया आदरणीय अटल जी तेरह दिन तेरह महीने और सादे चार वर्ष का कार्यकाल अवश्य पूरा किया मगर इतने बहुमत से नहीं ।भारतीय जन मानस के विश्वास पर वर्तमान नेतृत्व खरा उतरने कि प्राण पण से कोशिश कर रहा है।चूँकि लोकतंत्र कि अपनी मर्यादा होती है जिसका निर्बहन करना एक गुरुतर जिम्मेदारी होती है भारत में कोरोना संक्रमण काल में राज्य सरकारो के मध्य समन्वय का अभाव दिखा हा यु कहे कि था ही नहीं ख़ास कर उन राज्यो में जहाँ केंद्र सरकार के मत का शासन नहीं है जो लोकतंत्र कि खूबसूरती पर बदनुमा धब्बा बनकर मजदूरों का बिस्फोट तबलीगी बिस्फोट आदि के तौर पर जनमानस ने देखा ।


 संसाधनों के होते हुये भी समुचित उपयोग अवसर के अनुसार नहीं किया जा सका नतीज़न जन मांनस में आक्रोस ने जन्म लेना शुरू कर दिया।केंद्र सरकार ने बुजुर्गो के लिये उनकी पेंशन किसानो को सहतार्थ नगद रकम उपलब्ध कराया एल पी जी गैस सस्ते दर पर उपलब्ध करा रही है साथ ही साथ पी एम केयर फंड कि नई व्यवस्था के अंतर्गत संक्रमण से निपटने के लिये धन राशि जुटाई सांसदों विधायको ने अपने वेतन का तीस प्रतिसत दो वर्षो तक न लेने का अहम फैसला किया सरकार कि नयी घोषणा के अनुसार अगले दो वर्षो तक किसी नयी योजना की घोषणा नहीं कि जायेगी साथ ही साथ बीस लाख करोड़ का पॅकेज आर्थिक नुक्सान कि भरपाई के लिये केंद्र सरकार ने किया है ।सरकार कि नियत पर शक नहीं है उसकी घोषणाओं और व्यवस्थाओ का न्यायोचित वितरण न होने पर आक्रोस बढेगा और जन मानस में यह सन्देश जाते देर नहीं लगेगी कि सरकार सभी एक जैसी होती है जनता को पीसना ही है मुझे विश्वास है कि पूर्वव्रती सरकारो के विषय में यह मिथक वर्तमान सरकार तोड़ने में सफल और सक्षम होगी।


 


आंकड़े क्या कहते है--उनहत्तर लाख कुल मरीज लेख लिखे जाने तक पुरे विश्व में है जिसमे भारत में भारत में सवा दो लाख है कुल मृतको कि संख्या लगभग चार लाख है इतनी संख्या में दोनों विश्व युद्ध मिला दे तब भी लोग कालकलवित नहीं हुये थे ।विश्व के अन्य देशो में कोरोना मरीजो में मृत्य दर सात प्रतिसत है तो भारत में साढे तीन प्रतिशत स्पष्ठ है कि समय रहते सरकार द्वारा उठाये गए सार्थक कदमो से भारत में सक्रमण के प्रति जागरूकता बड़ी और इसे कई मायनो में सफलता मिली।


कोरोना संक्रमण के सार्थक पहलु-हर विपरीत अवसर खौफ आफत दहसत के समय भी कुछ सार्थक तथ्य उभर कर सामने आते है कोरोना संक्रमण ने भी यही सन्देश दिया है ।लाक डाउन के कारण नदियो का जल स्वक्ष हुआ मानव द्वारा फैलाई जा रही गन्दगी में कमी आयीं।दूसरा सड़को पर वाहन का चलना कम हो जाने के कारण वायु प्रदूषण में कमी आई ध्वनि प्रदूषण में कमी आई ।आम जन के खर्चे में कमी आई और संसाधनों के सदुपयोग कि शिक्षा मिली क्योकि बेकार बेमतलब कि पार्टी माल शॉपिंग और गैर जरुरी जैसे शराब सिगरेट या अन्य हानिकारक बस्तुओं के क्रय विक्रय में कमी आई।यदि यही सद्बुद्धि में बदल जाए तो समाज देश सम्पन्न मजबूत होगा।एक अत्यंत महत्व्पूर्ण आंकड़ा जो प्रत्येक भारत वासी को लाक डाउन से आत्म संतोष प्रदान करेगा जो चौकाने वाला भी है केवल भारत में ही प्रतिवर्ष लगभग तीन करोड़ लोग बिभिन्न हादसों के शिकार हो जाते है जिसमे सड़क दुर्घटना रेल हवाई जहाज आदि कि सामूहिक दुर्घटना लाक डाउन के कारण लगभग पचहत्तर लाख लोगो कि जान सिर्फ भारत में बची।


 लॉकडाउन के बाद कि स्तिति--अब तक लॉकडाउन सरकार के आदेश के तहत थे मगर लॉक डाउन खुलने के बाद स्तिति उलट जायेगी अपनी सुरक्षा और बेहतरी के लिये आम जन को स्वयं उन नियमो का कड़ाई से पालन करना होगा जो लॉक डाउन के दौरान लागू थे बेवजह कि भीड़ प्रदूषण और अनावश्यक खर्चो से बचाना होगा तब कही जाकर भारत वासी अपनी लोकतंतंत्रिक अधिकारो कि मर्यादा पालन कर सकेगा कोरोना भाग जाएगा भारतवासी जीत जायेगा ।साथ ही साथ कोरोना मरीजो को दुर्भाग्य से किसी को भी हो जाय को भस्वनात्मक रूप से सुरक्षित सहयक बनकर देख भाल करनी होगी और कोरोना बिमारी से लड़ना होगा बीमार का बहिस्कार नहीं।एक महत्व्पूर्ण तथ्य यहाँ और भी है भारतीय पुलिस द्वारा लाक डाउन के दौरान सराहनीय अनुकरणीय कार्य किया गया है निश्चित रूप से उनके बिषय में समाज में सार्थक सोच उभारनी चाहिये।चिकित्सक निरंतर सेवा भाव से अपनी योग्यता दक्षता क्षमता के अनुसार उत्कृष्ट सेवाएं मरीजो को उपलब्ध करा रहे है उनके निष्काम कर्म को सलाम साम्मान किया जाना चाहिये पत्रकार मिडिया जो प्रतिपल खुद को खतरे में दाल कर् सभी जानकारियां जन जन तक वहुचने में महती भूमिका अदा कर जन जन को खतरों से सावधान सचेत कर रहा है लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ को मजबूत निष्पक्ष होना देश हित कि अनिवार्यता है।


 


विश्व एवम् भारत पर कोरोना महामारी के प्रभाव और सिख--कोरोना संक्रमण तभी पूरी तरह से नियांत्रि हो सकता है जब मानव इसका निदान खोज ले तब तक संक्रमण जारी रह सकता है पश्चिमी देशो खासकर यूरोपीय देशो को अपनी जीवन शैली खान पान में बदलाव करने होंगे क्योकि कोरोना संकट प्रारम्भ हो सकता है विश्व राजनितिक प्रतिस्पर्धा प्रतिद्वंतीता का अंत नहीं क्योकि जैविक हथियारों कि दुनियां में शीत प्रतिस्पर्धा कायम होगी जो भयानक रूप में आती जायेगी ।भारत में इसका प्रभाव संख्या के आधार पर अधिक दिखेगा लेकिन हानि के आधार पर न्यूनतम होगा भारतीय जन मानस के लिये यह संक्रमण बहुत सिख दे गया। देश और इतिहास को बहुत अच्छी तरह याद है कि जब वर्तमान प्रधान मंत्री ने अपने प्रथम स्वतन्त्रता दिवस पर स्वस्च्छता को अपना उद्देश्य घोषित किया था तब बहुत से लोगो ने मज़ाक उड़ाया था लेकिन आज इस संक्रमण के दौर में सभी को उस उदेशय के संकल्प का आभास हो चूका होगा ।यदि नहीं हुआ है तो भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। भारतीय जन मानस के लिए सिखने कि खास बात यह है कि पर्यावरण को स्वयं के प्राण के अस्तित्व से जोड़ कर् संजोये संसाधनों का दुरूपयोग ना हो साथ ही साथ अनावश्यक खर्चो से बचे यहाँ थोडा भ्रम अर्थ शास्त्रियों को हो सकता है कि देश कि जनता कि क्रय क्षमता बढ़ने से मांग बढ़ती है और उत्पादन बढ़ाने के लिये उद्योगों को मजबूत होना लाज़मी है।मगर जरुरत होने पर जनता कि क्रय शक्ति मौजूद रहनी चाहिये।लॉकडाउन के दौरान बहुत से वैवाहिक आयोजन हुये जिसमे सिमित खर्च हुये और धन कि बर्बादी रुकी जनता को जागरूक होना पड़ेगा ताकि ऐसी परिस्तितियो में परेशान न हो ।सरकार के स्तर पर यह सोचना लाज़मी हो जाता है कि जब भी ऐसी स्तिति आने वाली हो उसके पहले भारतीय समाज कि स्तिति का अध्य्यन और निश्चित समयावधि में निराकरण करने का बाद शक्ति से प्रशाशनिक निर्णयो का पालन कराया जाय साथ ही साथ राज्य और केंद्र सरकारो के मध्य ऐसे आपदा के समय ताल मेल हो चाहे पक्ष कि सरकार हो या बिपक्ष कि जो इस महामारी में स्पष्ठ तौर पर नहीं दिखी राष्ट्रीय हितो पर समूचे राष्ट्र का स्वर एक होना चाहिये।एक ख़ास सिख भारत को बाहरी ताकतों से कही अधिक अपने ही लोगो से पराजित होना पड़ता है इस प्रबृति का समूल समापन होना चाहिये।लॉकडाउन के दौरान दुर्घटनाये रुक गयी थी कारण यातायात परिवहन बंद था ।अब चलना फिर शुरू हुआ है तो सावधानी सयमित और सुरक्षित होकर वाहन चलाये या परिवहन का उपयोग करे।यदि स्वीकार करें तो यह एक अवसर भी है बहुत कुछ सिखने समझने और आचरण में ढालने का।अन्यथा कोई समाधान कभी बढ़ते आफत दहसत का नहीं मिल पायेगा।              


 



सुषमा दीक्षित शुक्ला

अब ना सखी मोहे सावन सुहाए


 


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए


 अब ना सखी मोरा मन मचलाये।


 अब तो सही मोहे पिया बिसराए।


 अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


 अब नहीं करते पिया मीठी बतियाँ ।


अब नहीं सावन गाती हैं सखियां।


 कोई उमंग सखी मन में ना आए।


 अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


 बिरहा की अग्नी में हियरा जले है


 कब से ना उनसे नयना मिले हैं ।


 अब ना पिया मोहे गरवा लगाए।


 अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


 मोरे पिया का ऐसा था मुखड़ा।


 धरती पे आया हो चाँद का टुकड़ा।


 जैसे अनंगों ने रूप सजाए।


अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


 अब ना तरंगो ने दामन भिगाये 


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।


 



मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*


🌷🌷🌷🌷🌷


*उद्देश्य*


निश्चित है उद्देश्य वो, निश्चय हो गर राह।


बाधा सारी दूर कर, पाते निश्चित चाह।


विचलित होना मत कभी, नहीं निराशा हाथ,


बढ़ते जाना राह पर, मंजिल पर हो वाह।।


 


 संकट में लाए सदा, दृढ़ निश्चय विश्वास।


कर्म निहित मानव सदा, बन जाता है खास।


करो जतन निश्चय सहित, भूलो मत उद्देश्य,


मिले मूल उद्देश्य जब, लक्ष्य रचे इतिहास।।


 


संकल्पित उद्देश्य ही, जीवन का हो मूल।


दृढ़ इच्छा विश्वास से,प्रस्तर खिलता फूल।


शास्त्र कहे संकल्प से, सहज रूप उद्देश्य,


मस्तक का चंदन बने, मधु चरणों की धूल।।


*मधु शंखधर स्वतंत्र*


*प्रयागराज*


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार भावना गौड़ ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)

भावना गौड़


पिताजी - स्व.श्री जितेन्द्र कुमार शर्मा


जन्म- 7 जनवरी 


जन्मस्थान - कालाकोट जिला राजौरी(जम्मू कश्मीर)


पता ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


शिक्षा - मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र


अभिरूचि - कुकिंग,गार्डेनिंग,साहित्य पठन व लेखन


अनभुव - टीचिंग अध्ययन


उपलब्धियां - हिन्दी साहित्य ग्रुप में ऑनलाइन - 22


                     सम्मान पत्र पिंकिश फाउंडेशन(नारी सशक्तिकरण) -09


                     अंकुर साहित्य परिवार -02     


                     नवीन कदम साहित्य समाचार पत्र -01


                     दैनिक वर्तमान अंकुर नोएडा - 07


                     दैनिक नवीन कदम (छत्तीसगढ़) - 01,


                     दैनिक हरियाणा प्रदीप( गुरूग्राम) -03!


 


1.


उमंग


 


मन में एक उमंग होती बेटी की


मैं भी एक दिन दुल्हन बनूगी


बचपन में देखा दीदी की ब्याह


बहुत उत्साह से काम किए


अब अपनी उमंग मन आई


दुल्हन बन पिया के घर जाने की


बहुत अरमा से ख्वाब सजाए


एक घरौंदा मेरा भी बन जाए


उस आँगन में अपने पग रख पाए


खुशियों से वो भी पूरा हो जाए


अब बात चली ब्याह की मन हो जाए


उमंग रहती बड़ी नया घर नए लोग


यही उमंग एक खुशी बन जाती है


घर परिवार और नए रिश्ते की नींव


सच में बहुत प्यारी ख्वाहिश की 


उंमग है मेरी अभी नए रिश्ते में बंधने की ।


 


   ✍️✍️भावना गौड़


    ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


 


2.


बाल कविता


 


  नन्हें मुन्ने राही हम


     देश सिपाही


बड़े होकर वीर बनेगें


  नन्हें नन्हें कदमों से


दुश्मन के छक्के छुड़ाएंगे


   नहीं किसी से कम


   बाल वीर है हम


एक दिन बड़े होकर


 देश सिपाही बनेंगे


नज़रें नहीं झुकने देगें


  आज नहीं तो कल


   बड़े तो होगें पल


सपनें सभी पूरे करेंगे हम 


   वीर सिपाही बनेंगे


बोलेगें जय हिंद जय भारत


  वीर सिपाही है हम ।


 


✍️भावना गौड़


ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


 


 


3.


 


विदाई(हाइकू)


 


1.


रूप निखारे


जीवन है सँवारे


लगते प्यारे


 


2.


बेटी सहती


दुल्हन है बनती


नाज करती


 


3.


घर की कली


विदाई कर चली


अपनी गली


 


4.


छाई उदासी


नयनों में छाया सी


मन की प्यासी


 


5.


बेटी है कली


पिता के गोद पली


नाज़ो से चली ।


 


✍️✍️भावना गौड़


ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


 


4.


दोस्ती एक रिश्ता


 


     बहुत प्यारा रिश्ता 


अनमोल बन्धन विश्वास भरा


   दोस्ती की ना कोई उम्र 


दोस्ती के लिए कोई भी रिश्ता


   माँ पापा भाई बहन दोस्त


संयोग एक खुशनसीबी से दोस्त पाया


   दोस्ती से ना जाने कब प्रेम हुआ


वो दोस्ती का रिश्ता कब प्यार बन गया


   बहुत खुश हूं वो ही मेरा जीवन हुआ


एक दोस्त प्रेम बनकर एक रिश्ता बना


    दोस्ती करो तो दिल से निभाओ


मत सोचिए कि अमीर गरीब छोटा बड़ा


   बस दोस्ती का रिश्ता विश्वास से बने


दुःख सुख जब भी आए मत देखो वो कैसा


     हर पल उसके लिए तैयार रहे साथ


कच्चे धागों से अनमोल कड़ी का रिश्ता दोस्ती


   खून के रिश्ते से भी मजबूत बन्धन प्यार 


साथ निभाना अंतिम पल तक दोस्ती के यार।


 


  ✍️✍️भावना गौड़


ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)


    


 


5.


पिता(हाइकु)


 


1.


पिता हमारे


जीवन है सँवारे


लगते प्यारे


 


2.


पिताजी दूर


मिलन मजबूर


मेरा कुसूर


 


3.


यादें पुरानी


करते थे शैतानी 


हमनें मानी


 


4.


उनका साया


मैंने प्यार है पाया


छत्र छाया


 


5.


स्पर्श करती


प्रेम से मैं कहती


मर्म सहती ।


 


✍️✍️


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