काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार छविंदर कुमार शिमला  हिमाचल

छविंदर कुमार


पिता श्री टेकाराम 


निवास शिमला 


पोस्ट : प्राध्यापक हिंदी 


शिक्षा : परास्नातक हिंदी पीएचडी प्रक्रिया में 


उम्र तैंतीस वर्ष


व्यवसाय - अध्यापन


प्रकाशन तीन शोध आलेख प्रकाशित 


विशेष योग्यता : नेट उत्तीर्ण हिंदी साहित्य 


राज्य पात्रता परीक्षा 


संपर्क नंबर -- 94185 -12979


 


 


आज की जिंदगी 


कल तक जिंदगी चलती थी मौन से


कुछ होता तो सोचते , चिंतन करते एकांत में


राह मिल जाती थी 


मंजिलें मिल जाती थी


पर आज की जिंदगी चलती है लोन से


पहले चलती थी मौन से


अब है फिदा लोन पर


गाड़ी , बंगला और ज़मीं खरीदी 


शादी में दहेज खरीदा 


किया दिखावा बड़ा


पूछा अब क्या हुआ ? 


आवाज आई ..........


किश्तें चुकाए जा रहा हुं


खून पसीने से कमाए जा रहा हुं 


वही दूसरों को देखकर 


ज्यों लंगूर को देखकर 


वानर भैया अपनी टांगें तुड़वाए जा रहा है


अब तो किश्तें भी चुकती नहीं 


स्वयं चुके जा रहा हुं


मूल खड़ा है अब बेटा ब्याज चुकाए जा रहा है 


बिक रहे हैं घर बार


वो लहराती गेहूं की डोरियां


क्यों कि साहब पहले जिंदगी चलती थी मौन से


आज चलती है लोन से


किश्तें चुकाए जा


बड़ा नाम कमाए जा 


जिससे पैसा लिया है 


उस भगवान के चरण दबाए जा 


दिखावे के चक्कर में राम नाम सत्य है दुहराए जा । "


 


 


 


गुमनाम कर ही लिया है तूने ए जिंदगी 


एक रस्म और कर दे 


मेरी सांसों को हवाले कर किसी के 


मुझे दुनिया से विदा कर दे


बेगुनाह कहते हैं लोग खुद को मगर गुनेहगार है सभी


मुझे खुद से अलग कर दे


जिंदगी तू भी एक खता कर दे 


किसे मालूम था कि बर्बादी अपनी कुछ ऐसी होगी 


जिसने बर्बाद किया है जिंदगी उसे भी खबर कर दे


जिंदा नहीं है हम 


हम जिंदा लाश बनकर रह गए हैं 


लोग सबूत मांगेंगे मौत का 


जिंदगी सांसों को जिस्म से अलग कर दे 


हाथ गए थे हम खुदा से मगर निराला की दास्तां और धनपतराय की दरिद्रता ने उम्मीद दे दी 


जाने अंजाने में हमने जो भी कहा


ए जिंदगी हमें माफ कर दे । " 


____________________________


 


 


" मची विश्व में कोरोना की हाहाकार है 


ये तो मनवा तेरी करनी की पुकार है 


सड़कें खाली , नगर खाली 


खाली हुए तेरी उम्मीदों के आशियाने सारे 


भूल बैठा था तू वह गांव की मूरत 


माटी की वह गंध 


हरे - भरे सरसों से भरे खेत 


वो बाजरे की बालियां 


बासमती की बिखरी वह सुगंध 


देश छोड़ा तू प्रदेश छोड़ा 


पहुंचा विदेश तू 


मिटी न तेरी लालसा 


करता रहा मनमानी 


दौलत की खातिर भूल गया मां की वो लोरियां 


बाप के कंधों पर ज्येष्ठ की तपती धूप में 


तेरी खातिर राशन की वो बोरियां 


भूलाया बहन का प्यार वह


भूल बैठा दादा - दादी का वो लाड़ प्यार 


आकाश में उड़ा , वहीं बैठ गया तू 


अब क्यों पछतावे मनवा 


ये तो न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण की मार है 


आज क्यों दूर देश में बैठा तू 


स्वदेश आने को आतुर है 


मच गई है त्राहि-त्राहि 


अपने को बचाने की 


घर वापस आने की 


विश्व के कोने-कोने में दूर बैठा 


क्यों रो रहा है तू 


पड़े हैं प्राण बचाने के लाले 


जब गया था तब नहीं सोचा तू 


फिर तो हजारों नहीं लाखों के फेर में पड़ा तू 


हिंद देश तो कुछ नहीं 


जो कुछ है वो विदेश है 


 


दूर देश की तो भाषा अच्छी, व्यवस्था अच्छी


अच्छी कमाई सबकी भलाई कहता था तू 


अब क्यों पछतावे मनवा ये तो तेरी करनी की मार है


कोरोना नहीं है ये ,तेरी ही करनी का रोना है 


क्यों डरता है ! क्यों आंसू धोता है !


अभी भी वक्त है मनवा 


उठ , जाग और सोच 


कदर कर उस मां की 


भारत मां की 


उस गांव की माटी की 


जिससे तू पला , बढ़ा हुआ "


   


     छविंदर कुमार 


पता देहात / मकड़चछा / डाकघर चाबा, तहसील / सुन्नी,जनपद/शिमला हिमाचल प्रदेश


 संपर्क नंबर


 ९४१८५ - १२९७९


 


 


 


💐💐💐💐💐💐


 


रोशन कुमार झा 


सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता 


मो :- 6290640716


 


-:  वह बेटियां नारी है  !:-। कविता :-1


 


तुम्हारा और मेरा न, यह बेटियां हमारी है ,


पूजा करने योग्य सरस्वती, दुर्गा वही काली है !


कल भी , आज भी और भविष्य की भी वही लाली है ,


तो हे ! दुनिया वालों सहयोग करो ,वह बेटियां नारी है !


 


पढ़ने दो , बढ़ने दो जब तक वह कुँवारी है ,


जब-जब आपद आई है , तब-तब बेटियां ही संभाली है !


भंयकर रूप धारी है !


रानी लक्ष्मीबाई बनकर, बेटियां ही दुष्ट को मारी है ,


गर्व है हमें हर एक बेटियां पर , 


वह तेरी मेरी नहीं , वह बेटियां हमारी हैं !!


 


उसे स्वतंत्र रहने दो , उसी के लिए धरती की हरियाली है ,


बेटियां से ही सुख-सुविधा सारी है !


वह बिहारी न बंगाली वह दुनिया वाली है ,


इज़्ज़त करो यारों , वह बेटियां नारी है !!


 


बेटियां ही लक्ष्मी उसी से होली,ईद और दीवाली है ,


अभी जो कोरोना जैसी महामारी है !


उससे भी लड़ने के लिए बेटियां तैयारी है ,


हम रोशन बेटियां की रक्षा के लिए, 


आप सभी पाठकों के समक्ष बनें भिखारी है ,


मेरी भिक्षा यही है , कि बेटियां की इज़्ज़त करो


वह तेरी मेरी नहीं वह बेटियां हमारी हैं ।।


 


######### कविता :- 2 #######


 


-:  बेटियाँ तुम्हारी भलाई हो   !:-


 


मैं नमक रोटी खाऊं , पर तुम्हारे लिए मलाई हो ,


वही करूं हम रोशन जिससे तुम्हारी बेटियाँ भलाई हो !


बेटियाँ तुम्हारे लिए हमें जग से लड़ाई हो ,


आगे तुम चलना और तुम्हारे आगे मेरी कलाई हो !


 


ऐसा नियम हो ग़लत की पकड़ाई हो ,


वही पढ़ूं , जिसमें बहन और बेटियों की भलाई हो !


तुम बहन, बेटियाँ क्यों डराई हो ,


उठो , उठो तुम तो तिरंगा फहराई हो !!


 


मेरे लिए नहीं , तुम्हारे लिए मिठाई हो ,


सपना है मेरी, 


बेटियाँ की अपने मन से ही विदाई हो !


तब तक उसकी पढ़ाई हो ,


बहन की साथ निभाये , सिर्फ भारत का ही नहीं,


निभाने के लिए दुनिया का ऐसा भाई हो !


 


आगे बढ़ने से जो बेटियों को रोकें, उस पर कारवाई हो ,


उसी पर इतिहास बनें जो, बेटियों की सुख-सुविधा 


के लिए कुछ न कुछ बनवायी हो !


तुम बेटियाँ ही लक्ष्मी , तू ही धन लायी हो ,


आगे बढ़ बहन पीछे-पीछे हम तुम्हारा भाई हो !


 


####### (3) #####


 


-: आइए वीर हनुमान तोड़िए कोरोना की गुमान !:-


 


कोरोना भगाने में असफल रहा कला और विज्ञान ,


तब हम निर्धन रोशन का पुकार सुनिए भगवान !


आइए आप ही पवनपुत्र वीर हनुमान ,


और तोड़िए ये दुष्ट कोरोना की गुमान !!


 


साईकिल से हवाई जहाज तक बनायें इंसान ,


पर आज कोरोना जैसी मुसीबत में


व्यर्थ रहा हम मानव के ज्ञान !


कोरोना भगाने के लिए लगाकर आयें अनुमान ,


तब अब जल्दी आईयें रामभक्त वीर हनुमान !!


 


वह शक्ति दो घर पर रहकर सरकार के नीति नियम लूं मान ,


बंद पड़े हैं, हाट, बाज़ार , दुकान !


पर्वत लिए उठा , आप में है परम शक्ति हनुमान ,


तब कोरोना से दूर करों प्रभु ! ताकि हम भारतीय


फिर से नव जीवन पाकर करूं भारत मां की चुमान !!


 


मां सरस्वती की दया से लिखा हूं कविता,भले ही मैं


रोशन कोरोना में हो जाऊं कुर्बान ,


पर हे! राम अपने भक्त हनुमान के माध्यम से


लौटा दे धरती की मुस्कान !


ये सिर्फ हमारी नहीं, समस्त मानव जाति की है ज़ुबान ,


तब कोरोना भगाने के लिए सिर्फ एक बार आ जाओ


पवनपुत्र हनुमान !!


 


####### (4) #####


 


-: हम सब अतिथि है !:-


 


सब यहां अतिथि है ,


सुख-दुख से जीवन बीती है !


आना-जाना ही तो रीति है ,


अमीर हो या गरीब अंतिम संस्कार के लिए


तो यही मिट्टी है !!


 


जीव-जंतु हाथी और चींटी है ,


क्या कहूं मैं रोशन यह ज़िन्दगी भी मीठी है !


जन्म लिए तो मरने का भी एक तिथि है ,


क्या हम क्या आप , हम सभी यहां के अतिथि है !!


 


जो कल जवान रहें, वही आज बूढ़ा हुए ,


समय के साथ कृष्ण-राधा भी जुदा हुए !


अमृत भी विष, विष भी समय के साथ सुधा हुए ,


समय की बात है यारों , समय बदलते होशियार भी बेहूदा हुए !


 


एक मां की ही बेटा सम्पत्ति बांटने में भाग लेते ,


पत्नी आते ही मां-बाप को त्याग देते !


जिसे पाल पोस कर बड़ा करते वही संतान अंतिम


वक्त आग देते ,


सब मतलबी है यारों , सिर्फ अपना काम पर ही दिमाग़ देते !!


 


तो कोई दिमाग़ लगाकर भी हारा , कोई हार


के बाद भी जीती हैं ,


सफलता-असफलता ही तो जिन्दगी की नीति है !


जिंदगी पूजा पाठ,लेखन कार्य ,अर्थ व्यवस्था, संस्कृति


और राजनीति में ही बीती है ,


तब हम आप नहीं ,कहों यारों हम सब अतिथि है !!


 


####### (5 ) #####


 


-:  वह अब हैं न मेरी दिवानी !   !:-


 


हम जो कहें वह मानी नहीं ,


इसलिए वह आज मेरी रानी नहीं !


उससे बढ़कर कोई स्यानी नहीं ,


दुनिया के लिए समंदर हूं , पर अपने पास 


पीने के लिए पानी नहीं !!


 


उसके अलावा मेरी कोई कहानी नहीं ,


जगा हुआ है मेरी सोई हुई वाणी नहीं !


अब लाभ- हानि नहीं ,


क्योंकि अब कोई मेरी दिवानी नहीं !!


 


उसके लिए हमसे बढ़कर कोई दानी नहीं ,


देते रहे, लेती रही उससे बढ़कर कोई स्यानी नहीं !


पता रहा छोड़कर जायेगी , फिर भी लुटाये हम रोशन


से बढ़कर कोई अज्ञानी नहीं ,


प्यार- मोहब्बत से जो दूर रहा उससे 


बढ़कर कोई ज्ञानी नहीं !!


 


हम रहें कुत्ता , वह कानी नहीं ,


सब कुछ देखी , फिर भी वह मुझे अपना मानी नहीं !


मुझे अपना बनाने के लिए वह कभी भी


अपने मन में ठानी नहीं ,


इसलिए वह आज मेरी रानी नहीं !!


 


  


पूर्णिमा शर्मा अजमेर

सावन


 


  दिल झूमे रे गाय रे झूमे रे गाय रे


    देख नजारे ये सारे हा हा देख नजारे


     काली घटाए,बहती हवाएं, महकी फ़िज़ाए


       वर्षा का पानी सावन के धारे दिल झूमें रे


 तेरे ही आँगन में आँगन के सावन में


  दिल को लुभाने लगे हैं हमें ये दिल को


    इंद्र धनुषी फूल ये सारे कांटो सहारे


     मन को लुभाने लगे हैं हा रे मन को लुभाने 


  दूर क्षितिज में अंबर को देखो


   धरती को चूमे लगते हैं ये कितने प्यारे


      नील गगन से चंदा भी देखे


        नदियाँ को सागर के द्वारे


   दिल झूमें रे गाय रे झूमें रे गाय रे देख नज़ारे…


                                 


                                    स्वयं रचित


                            पूर्णिमा शर्मा अजमेर


रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

.


                  कविता


 


              *मेरे गांव में*


               ~~~~~~


     संस्कारों की अनुपम संस्कृति,


     मनभावन प्यार लुटाती।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     सबका वो मान बढ़ाती ।।


 


     सब मिल आपस में रहते,


     शुद्ध भावना परोपकारी।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     जय हो भारत माता की।।


 


     धरा पुत्र है शान हमारी,


     सैनिक सच्चा हितकारी।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     सब है सब आज्ञाकारी।।


 


     घी दूध दही की बातें,


     मनमोहक खुशबू आती।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     चटनी की याद सताती।।


 


     मां के हाथों की रोटी,


     छप्पन भोग सी लगती है।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     छाछ राबड़ी बनती है।।


 


      पर्यावरण अपना साथी,


      डाल डाल पर पक्षी चहके।


      सुख ही सुख मेरे गांव में,


      हर घर हरियाली महके।।


 


      ©®


         रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)


रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

ज़नसंख्या


              ~~~~~~


         हम भारत मां के बेटे,


        अब धर्म निभाना होगा।


        जनसंख्या नियंत्रण संदेश,


        जन हित समझाना होगा।।


 


        यदि यही हाल बना रहा,


        तो समस्या बढ़ जायेगी।


        समय रहते नहीं सुधरे,


        जनसंख्या रूप दिखायेगी।।


 


       जीवन उपयोगी संसाधन,


       दिन प्रतिदिन वो घट रहे है।


       जनसंख्या नियंत्रण नियम हमें,


       अपने पास बुला रहे है।।


 


       हम दो हमारे दो भावना,


       अब सबको समझनी होगी।


       जनसंख्या पर रोक लगाकर,


       मानवता अपनानी होगी।।


 


      अन्न जल फल फूल हमारे,


      सब में सब की हिस्सेदारी।


      जनसंख्या नियंत्रण नियम ही,


      सकारात्मक पहरेदारी।।


 


       ©®


          रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)


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जन्म  पत्री नहीं है ,जन्म की तारीख नहीं मालूम ,कोई जन्म का रिकॉर्ड नहीं है।


कैसा रहेगा मेरा भविष्य


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मदन मोहन शर्मा "सजल" कोटा।

*कलम*


~~~~~


जिंदगी के रंग भरती है कलम, 


कदम-दर-कदम दामन पकड़ चलती है कलम, 


 


जज्बातों के उड़नखटोले में बेतहाशा उड़ती गगन में, 


दोगले चेहरों से नकली नकाबों को पलटती है कलम, 


 


अवसाद भरे दो तन्हा दिलों की अधूरी दास्तान, 


प्रेम में अविरल दरिया सी मचलती है कलम, 


 


जख्मी होती है जब मानवता, तार-तार हो इंसानियत, 


धधकती चिता के माफिक हर पल जलती है कलम, 


 


तुलसी, सूर, रहीम, रसखान, जायसी, प्रेमचंद, 


रामचरित्र, महाभारत, छंद, चौपाई रचती है कलम, 


 


कौन कहता है कि पंचतत्व है सबसे ताकतवर, 


इन सबको अपनी नोंक पर रखती है कलम, 


 


"सजल" जीवन को मृत्यु में और मौत को जीवन में, 


होकर बेपरवाह फैसलों में बदलती है कलम।


🌹🌿🌾✍✍🌾🌿🌹


मदन मोहन शर्मा "सजल"


कोटा।


रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर, सी जी

दोहा विषय साथी


 


साथी तेरे साथ बिन, सूना यह संसार।


तुझसे सारी है खुशी ,जीवन है गुलजार।।


 


तुझसा साथी जो मिला, जीवन हुआ निहाल।


सारे दुख-सुख जानता जाने मन का हाल।।


 


जीवन साथी तुझ बिना, जीवन है बेरंग।


परदेसी कब आ रहे, लोटो करो न तंग।।


 


साथ तुम्हारा साथिया ,ज्यों बादल की धूप।


चढ़ता जितना रंग है, खिलता उतना रूप।।


 


प्यासी थी मैं तो कली, छिलके हुई बहार।


जीवन साथी ने दिया, देखो सचा प्यार।।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर, सी जी


संजय जैन (मुम्बई

*भगवान रूठ गये*


विधा : कविता


 


कैसा ये दौर आ गया है,


जिसमें कुछ नहीं रहा है।


और जिंदगी का सफर,


अब खत्म हो रहा है।


क्योंकि इंसानों में अब,


दूरियाँ जो बढ़ रही है।


जिससे संगठित समाज, अब बिखर रहा है।।


 


इंसानों की इंसानियत,


अब मरती जा रही है।


क्योंकि इन्सान एकाकी,


जो होता जा रहा है।


सुखदुख में वह शामिल,


अब नही हो पा रहा है।


और अन्दर ही अंदर,


घुटकता जा रहा है।।


 


मिलते जुलते थे जहाँ,


रोज इंसान अपास में।


वो मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे,


अब बंद हो गये है।


मानो भगवान भी अब,


इंसानों से रूठ गये।


और उनकी करनी का


फल इन्हें दे रहे है।।


 


साफ पाक स्थान भी,


पवित्र नहीं बची है।


जिससे पाप बढ़ गए है,


और परिणाम सामने है।


क्यों दौलत की चाह में,


इंसान इतना गिर रहा है।


जिसके कारण ही उसे,


भगवान ने दूर कर दिया।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


11/07/2020


सुनीता असीम

इस तन को नश्वर कहते हैं।


पत्थर को ईश्वर कहते हैं।


****


राह दिखाए हमको सच्ची।


उसको ही रहबर कहते हैं।


*†**


संभलो तुम जग के झंझट से।


ऐसा दानिश-वर कहते हैं।


****


आग दिखे तो पानी बोलें।


कुछ भी दीदा-वर कहते हैं। 


****


औरों का वो दुख क्या समझे।


जिसको सब पत्थर कहते हैं।


****


 कुछ भी कर लो जल्दी कर लो।


कुछ बैठे सर -पर कहते हैं।


****


 पहले अनदेखी हैं करते।


संभलेंगे लुटकर कहते हैं।


****


 मंदिर जैसा जो है लगता ।


उसको ही तो घर कहते हैं।


****


सुनीता असीम


११/७/२०२०


श्याम कुँवर भारती [राजभर]

भोजपुरी शिव भजन – बहे जटा बीच गंगा धरवा |


 


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


भोला बाबा जी के जटवा झूम झूम के |


 


कैलाश बिराजे शिव संग गौरा जी के राखे |


कारतिक गणेश खेले नंदी जी के साथे |


बनले नागदेव शिव शंकर जी के हरवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


 


भांग धतूरा पीसी शिव जी भोगवा लगावे |


गंजवा चढ़ाई भोला खूब धुनिया रमावे |


डम ड्म बाजे डमरू भोला जीके करवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


 


कांधे कावर गंगाजल सब भोला जी के डाले |


झूमी झूमी नाचत गावत भक्त बाबा लग्गे जाले | 


अन धन भरी देले बाबा भक्तन के घरवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


औघड़दानी भोला ज्ञानी दुख दूर करी दिहे |


जटाधारी डमरूधारी सबके सुख भरी दिहे |


बम बोले भारती भजन गावे सन्तोष यरवा ।


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]


कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


श्याम कुँवर भारती [राजभर]

भोजपुरी शिव भजन – बहे जटा बीच गंगा धरवा |


 


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


भोला बाबा जी के जटवा झूम झूम के |


 


कैलाश बिराजे शिव संग गौरा जी के राखे |


कारतिक गणेश खेले नंदी जी के साथे |


बनले नागदेव शिव शंकर जी के हरवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


 


भांग धतूरा पीसी शिव जी भोगवा लगावे |


गंजवा चढ़ाई भोला खूब धुनिया रमावे |


डम ड्म बाजे डमरू भोला जीके करवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


 


कांधे कावर गंगाजल सब भोला जी के डाले |


झूमी झूमी नाचत गावत भक्त बाबा लग्गे जाले | 


अन धन भरी देले बाबा भक्तन के घरवा |


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


औघड़दानी भोला ज्ञानी दुख दूर करी दिहे |


जटाधारी डमरूधारी सबके सुख भरी दिहे |


बम बोले भारती भजन गावे सन्तोष यरवा ।


झूम झूम के |


बहे जटा बीच गंगा धरवा झूम झूम के |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]


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नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

अँधेरा छा जाता है तब 


जीवन में अरमानो का अवनि आकाश अधूरा रह जाता है।।


 


आँचल ममता की किलकारी


गोद माँ का साया ही रह जाता है।।


 


चलते वक्त निरंतर का भरम भस्म


हो जाता है


कभी अकेले ना होंगे हम


पल भर में चकनाचूर हो जाता


है माँ की यादों का साया ही


रह जाता है।।


 


चली गयी यादें देकर छाया की


काया देकर छलि गयी जीवन


जन्म मृत्यु के अंतर का चक्र काल


रह जाता है।।


 


अपनी संतानो की खातिर कितने


ही दुःख दर्द को गले लगाया 


अंतर मन की पीड़ा को ढाल हथियार ढाल बनाया।।


 


किसको ये मालुम छूट जाएगा


मूल्यों मर्यादा के पथ का हाथ


साथ जिसने चलना सिखलाया


शब्दों रिश्तों से परिचय करवाया


जीवन समाज का मर्म बताया


काया की माया आज।।


 


पता नहीं था उसको भी जिस


बाग की बागवाँ है वो आज बगिया के


किसलय कोमल उसकी यादो


भावों के दिन रात लिपटा सिमटा


वर्तमान अतीत हो जायेगा।।


 


संग रह जाता है गुजरे बचपन


जवानी की दौलत माँ के दौलत


दुलार की धन्य धरोहर का प्रति


पल खजाना।।


 


बचपन की लोरी रुखा सुखा भी


कौर छप्पन भोग खुद भूखे रह जाना अपने


लाडले के संग सो जाना।।


 


सपने माँ के आँखे उम्मीदों की


संतानो के माँ का इतराना।।


 


कही कभी आहत हो जाऊं ईश्वर


अल्ला से लड़ जाना माँ के ह्रदय


भाव से उठती ऐसी ज्वाला


दुर्गा काली रौद्र रूप काल कराला।।


 


 आसमान की बिजली सी गिरती


चाहे क्यों ना हो कोख का रखवाला सुहाग से संतानो के शुख चैन से नहीं कई समझौता


उसकी दुनियां उसकी संतान


ईश्वर अल्लाह खुदा भगवान्।।


 


 माँ तू जननी है जन्म भूमि की


महिमा गरिमा प्यास बूँद है 


आस विश्वास है समाज राष्ट्र की


निर्माती मानव की अर्थ आधार है।।


 


भगवान् का भाग्य बनाती कौसल्या है तो राम है दुनियां में


देवो के अस्तित्व की माता देवकी


यशोदा कुरुक्षेत्र के कर्म ज्ञान की


कोख अभ्युदय गीता कुरान है।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गुजरती जिंदगी अरमान अधूरे


बदलती दुनियां इंसान अधूरे


जिंदगी की दौड़ मुश्किलें बहुत


बदलता वक्त सच सपने अधूरे।।


इंसान की चाहता दुनियां दामन


में समेटे


राहों में भटकता मंजिलों का पता 


पूछता


एक दूजे की लाश की सीड़ी 


इंसानियत के रिश्तों में ईमान अधूरे।।


गुरुर इंसान का जूनून 


जूनून जिंदगी का सुरूर  


दुनियां तिज़ारत का बाज़ार  


दुनियां के बाज़ार में बिकते सपनें


आधे अधूरे।।


तोहमद ही तौफा खुनी पंजो की


दौलत


मोल बेमोल सस्ती महँगी बिक जाती है हर दौलत


बिन मांगे मिल जाती कभी मोहलत कभी मांगे नहीं मिलती


मोहलत।


जकात कभी दाम आधे अधूरे।।


प्यार व्यापार मोहब्बत धोखा


शातिर की चाल इंसानियत का सोसा


जख्म दर्द को मरहम का भी मौका


नाम बदनाम के पहचान अधूरे।।


 


हर जुगत जुगाड़ इल्म उखाड़ने का


मरी खाल से तक़दीर सवारने का


कोशिशे बहुत मगर कामयाब अधूरे।। झील में कमल का खिलना 


फूल का निखारना भौरों


का चलना मचलना 


सुबह सूरज का नया जोश 


बयां जिंदगी की सच्चाई


गम के सायों में दिन का उजाला


अधूरा।।


जिंदगी जंग बन गयी है साँसों


में सिमटती


पत्थरों का दिल धड़कता ही नहीं


पत्थरों के दिल में खुदा का दीदार


नहीं 


पत्थरों में चाहत का भगवान अधूरा।।


कस्मे वादे प्यार वफ़ा बाते ही बात


हकीकत हद से दूर निकलते  


मुस्कुराता है इंसान खोखली हंसी


कोफ़्त के अंगार में जलती जिंदगी


तलाश जिंदगी के अधूरा अधूरे।।


 


चार दिन की जिंदगी गुजर रही


दो दिन आरजू के दो दिन इम्तेहान 


जिन्दगीं इम्तेहान से आजिज इंसान


हासिल कुछ भी नहीं पुरे की चाह


लम्हा लम्हा कसमकस काश।


रह गया इंसान मलते मलते हाथ।


खोने औ पाने का हिसाब बराबर


पुरे की चाह में कट गयी जिंदगी


आधा गवां दिया पुरे की चाह 


में फिर भी रह गए अधूरे अधूरे।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

भारत के नौजवान 


माँ भारती कर रही पुकार तुम


चौतरफा खड़ी चुनौती की आग तुम।।


 


जीना है तो लड़ना सीखो


कदम कदम है खतरे 


त्यागो आपस के बैर भाव


युवा तेज हो युवा ओज तुम


बनाना है तुमको अंगार


 देश की माटी के ललकार तुम


भारत के नौजवान तुम।।


 


हिम्मत की हस्ती तुम


ताकत की मस्ती तुम


शहीद की वेवा की सुनी


मांग भारत के नौजावन के


अस्तित्व पर प्रहार 


सरहद पर जान गवांते


शहीद की अंतिम इच्छा


राष्ट्र के गौरव अस्मत की


खातिर अग्नि परीक्षा में


सदैव तैयार तुम।।


 


साँसों की गर्मी से तेरे


चाहे जो भी हो दुश्मन


जाएगा हार


वर्तमान तुम ,


भविष्य निर्धारक तुम


गौरव शाली अतीत के हो तुम


कर्णधार भारत के नौजवान तुम।।


 


जीना है तो उद्देश्यों के पथ


पर द्रढ़ता से चलना सीखो 


तूफानों से लड़ना सीखो


खुद की मर्यादा को अक्षुण रखना सीखो


माँ भारती की तुम संतान भारत


के नौजवान तुम।।


 


डिगा सके तुमको तेरे पथ से


कोई भी समर्थ सक्षम नहीं


अडिग चट्टान तुम् भारत के


नौजवान तुम।।


 


दीपक की लौ तुम


प्रज्वलित मशाल मिशाल


शौर्य सूर्य तुम बदलते काल


की चाल भारत के नौजवान


तुम।।


 


गीदड़ कैसे हो सकते 


बाज़ पंख परवाज़ तुम


हुंकार से डोले जमीं आसमान


तेरे कदमों की आहट दुनियां में


तेरी मकसद मंजिल की आवाज तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


गर्जना से तेरी निकले छद्म धोखे


का प्राण


नौजवान तुम कर्णधार तुम


समय काल के आधार तुम


निति नियत निर्माण तुम 


भारत के नौजवान तुम।।


 


साहस के सिंघनाद तुम


गौरव शैली राष्ट्र के विजयी विजेता पाँचजनन्य का शंख नाद


तुम संग्रामों के विकट विकराल


तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


युग बैभव दृष्ट्री सक्षम समर्थ


तेर हद हस्ती की दुनियां


पराक्रम पुरषार्थ तुम जो चाहो


लिख दो इबारत वक्त के


हताक्षर तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


शोला शूल तीर तलवार त्रिशूल तुम मझदार तुम पतवार तुम


कश्ती और किनारा तुम


सुबह शाम दिन रात युग वक्त


व्यवहार तुम।।


 


पीछे कभी देखा ही नहीं


आगे बढ़ते रहना शिखर


का नाज़ तुम हौसलों की


उड़ान तुम भारत के नौजवान तुम।।


 


आँख दिखाए कोई करते नहीं


स्वीकार तुम ऊर्जा उतसाह तुम


उमंग उल्लास तुम जग के अंधेरों


को चीरते दुनिया का नव प्रकाश 


तुम भातस्त नौजवान तुम।


 


नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

-----श्रवण के प्रथम सोमवार--


 


अविनाशी पर्वत वासी


त्रिशूल ,डमरू ,मृगछाला धारी


तन भस्म रमाये कन्द मूल


फल खाये वनवासी।।


 


काल महाकाल रूद्र रौद्र


विकट विकराल श्मसान


की आग आदि मध्य अनंत


बैराग्य बैरागी ।।


 


जटाओं में गंगा चन्दा


नीलकंठ घट घट के वासी


करुणा दया छमाँ के सागर


क्रोधाग्नि त्रिनेत्र धारी।।


 


पास नहीं कुछ भी जो


कुछ मांगे दुनियां देते त्रिपुरारी


गले मुंड की माला नंदी सैर सवारी


नाग गले में लिपटे वेश उदासी।।


 


शिव शंकर ,कैलाशपति ,भोले 


शंकर ,शिवशंकर शिव शम्भू


सदा सहाय शिवाय मम उर वासी।।


 


अशुभ रूप भुत ,प्रेत ,पिचास,


डाकिनी ,हाकिनी, पिचसिनी


संग संग गौरा पार्वती।।


 


भुतनाथ,भैरों ,काली गण


तेरे प्रभु तू औघड़ दानी।।


 


अघोर की आराधना श्मशान


की वंदना संसार की संरचना हैं


तो प्राण प्राणी है।।


 


मृत्यु का उत्सव उत्साह 


सृष्टि का उद्भव विकास


विनाश है।।


 


 काम, क्रोध ,मोह ,मद लोभ का त्याग 


शुभ मंगल का गणपति गान है


मृत्युंजय है मोक्ष मार्ग है।।


 


विशेश्वर उमा पति वैद्य नाथ है।।


शोक ,रोग ,भय ,भ्रम विनासक


त्रिदेव शक्ति का मान है।।


 


अकाल नहीं काल हर हर महाकाल है स्वर सामराज्य


का ओंकार है।।


 


ओंकारेश्वर ममलेश्वर सयुक्त


ज्योति आपकी जगत कल्याण


का स्त्रोत वेद पुराण है।।


 


भीमाशंकर ,नागेश्वर ,सोमनाथ है


रामेश्वर, त्रमकेश्वर ,अनाथो का


नाथ विश्वनाथ है।।


 


मल्लिकार्जुन ब्रमणेभ्यो ,घृणेश्वर


शिवा शिवम् ताण्डवं कुलग्राम है।।


बबम बबम बम भोले बम लहरी


प्रिय धतूर भांग है।।


 


नमामि शंकरम् रूद्र रौद्र अष्टकम


शिवा सत्य आत्म प्रकाश है


नमामि शंकरम् प्रणामी शंकरम्


नमामि शंकरम्।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

तुम मिलना मुझे जब भी


दिल पुकारे 


चाहतों की राह में अरमानो की


आश में मुस्कानों के मुकाम पे।


 


तुम मिलना मुझे चलती जिंदगी


में विखर जाऊं ,मंजिलों से भटक


जाऊं ,मकसद की मासूका मकसद जिंदगी के अंधियारे उम्मीद उजालो में।।


 


तुम मिलना मुझे तुफान भंवर


में उलझ जाये जिंदगी की कश्ती।


डगमगाने डूबने लगे किश्ती की हस्ती।


मझधार तूफानों की मसक्कत मौसिकी


 पतवार बनकर किनारों में।।


 


तुम मिलना मुझे जज्बे के उठते


ज्वार में धड़कन की हर सांस में।


लम्हों उदास में थकती ,हारती


जिंदगी के विजय के प्रवाह उत्साह में।।


 


तुम मिलना मुझे जब जिंदगी का


कारवां साथ छोड़ दे तन्हाई में परछाई


भी दामन छोड़ दे ।            


 


जिंदगी बोझ लगे तन्हाई की हद हँसी मस्ती


जिंदगी की आवाज में।।


 


बचपन से तुझे सवारता, जवाँ जज्बे में उतारता ,जिन्दंगी की


की एहसास जान इज़्ज़त ईमान।


क्या कहूँ हिम्मत या हौसला


इरादा या इल्म माँ बाप गुरुओ का आशीर्वाद सच्चाई।


तुम मिलना मुझे मौका मुबारख


मुकाम में।।


 


खुदा के नूर में जन्नत की हूर में


स्वर ईश्वर की आवाज़ में अपने


अलग नाज़ अन्दाज़ में ।   


 


हर कदम ताल में दोजख की सजा अपराध में।


तुम मिलना मुझे जिंदगी के फलसफा फसानों अपसानो की


चाह की राह में।।


 


तुम मिलना मुझे मेरी पैदाईस


की पहली आवाज़ में मेरे जनाजे


के कंधे चार में प्राण में।।


 


तुम मिलना मुझे प्यार में यार में


रिश्ते नातो परिवार में घर संसार


में दोस्ती दुश्मनी के इंतज़ार इज़हार में।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गुरु पूर्णिमा विशेष--दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


जीवन को मर्यादा है,मर्म है जीवन मूल्यों का जीवन के अंधियारे का


उजाला है ।


दरबार हज़ारो देखे है तेरे दर सा


कोइ दरबार नही दुनियां के गुलशन में ऐसा कोइ सय नहीं


जिसमे तेरा गुलज़ार नहीं।।


ईश्वर भी तेरे दर आता परम आत्मा का परमज्ञान का दाता


तुझसे ऊपर जहाँ में कोई विधि


विधान नहीं।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


देवो का गुरु बृहस्पति असुरों का


सुक्राचार्य है सृष्टि की वाणी गुरु


वाणी मानवता का अस्तित्व अवतार।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


करुणा ,दया का सागर रौद्र रूद्र


शंकर शोक दुःख विनासक 


भय भव् भंजक माता पिता सम।।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


भाग्य भगवान बताता ईश्वर से 


मिलवाता सृष्टि की दृष्टि युग संसार अम्बर अवनि।।   


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


ममता का आँचल पृथ्वी


पिता आकाश सा सम्बल


ज्ञान ,कर्म ,दायित्व बोध जन्म,


जीवन सृष्टि ,नित्य ,निरंतर उत्तर मध्य आदि।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


दुष्ट दलन का क्रूर काल का निर्माण ,समाज राष्ट्र का रास राशि


विष्णु ,ब्रह्मा महेश देवो का धर्म मर्म मार्ग 


दुनियां बतलाता दिखलाता


सत्य साक्षात् परम परमेश्वर।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


गुरु श्रेष्ट है गुरु इष्ट है गुरु


आत्म का मोल मूल्य मोल


अनमोल जीवन मार्ग व्यवहार 


प्रकाश ।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


बचपन जीवन मृत्यु सुबह शाम


दिन रात की गौरव गरिमा गान


मान अभिमान है।


दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में


तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिंदगी का समर्पण कर


देता है जब मानव


 उद्देश् पथ पर विलग


विलय जिंदगी हो जाती है।।


 


उद्देश्य के उद्गम और शिखरतम्


तक।


स्वयं स्वीकार साकार उद्देश्य पथ 


सच्चाई अवनि आकाश की


ऊंचाई।।


 


व्यक्ति का व्यक्तित्व समर्पित 


समर्पण का वर्तमान इतिहास।


सत्य समर्पण के गर्भ से जन्म


नव चेतना की नयी


जागृति ,वर्तमान भविष्य


के मूल्यों का सिद्धांत।।


 


सत्य समर्पण मंगलकारी


क्लेश नाश का संचारी विस्मयकारी।


समर्पण जागृत होता मन की


अनंत धरा के झंझावात, तूफानों


के अंतर द्वन्द मंथन मति।।


 


समर्पण एक सार्थक योग 


मानव का कल्याणकारी।


समर्पण के स्वरुप बहुत है


नैतिकता से च्युत हो जाना


विमुख कर्तव्यों से होकर 


पतित पथ भ्रष्ट हो जाना


समर्पण अंतर मन की ज्वाला।।


 


प्यास ,आस ,विश्वाश


मूल्यों ,मर्यादाओं की नैतिकता


में विलय विलीन हो जाना।


भाग्य बदल लेता स्वयं मानव


अपना भगवान् का मिल जाना।।


 


समर्पण आकर्षण की आस्था


का स्वर साम्राज् सत्कार।


घनघोर निराशा के बादल जब 


छा जाते आशाओ के मार्ग 


अवरुद्ध हो जाते।।


 


संकल्प, समर्पण नई क्रांति का


नव सूर्योदय संध्या लाते।


अमंगल , मंगल ,मृग मरीचिका


विल्पव ,भ्रम ,भय भयंकर


दूर भगाते ।।


 


अस्तित्व ,अस्ति का मिट जाना 


व्यक्तित्व, व्यक्ति की पहचान


परिवर्तन सत्य समर्पण।


पत्थर में भगवान् बोलते प्राणी


में प्राण दीखते मिथ्य यह संसार।।


 


समर्पण का अति सुन्दर भाव


लूट जाना, मिट जाना जीवन


सम्पत्ति का, बैभव बिलिन हो जाना समपर्ण हो जाना।


 


समर्पण से प्रेम जाग्रत प्रेम में


आशाओं का संचार ।


आशाओं के आसमान में विश्वस


का प्रभा प्रवाह ।।


 


विश्वाश के प्रभा प्रवाह से अचल


अटल अडिग आस्था की अवनि


अविष्कार । समर्पण की वास्तविकता 


परम् अलौकिक प्रकाश।


प्रकाश की किरणों का युग


ब्रह्माण्ड नया सत्कार ।।


 


हे मानव मर्म मर्यादा के जीवन 


मूल्यों का संचय कर लो।


जीवन की यथार्थता सच साबित


कर दो ।।


 


जीवन पथ का जो भी हो उद्देश्य तुम्हारा उद्देश्य पथ के पथ पथिक


तुम ।                                


 


उद्देश्यों के मूल्यों में स्वयं


शक्ति की भक्ति समर्पण कर दो


मिट जाएगा अँधेरा।। 


 


उज्वल निर्मल मन काया की


माया के उजियारे से रौशन युग


कर दो।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

क्रोध बड़वानल आग 


ना चिंगारी ना धुंआ कर देती


सब कुछ ख़ाक है।।


          


क्रोधाग्नि दिखती नहीं 


अंतरमन की ज्वाल द्वेष ,दम्भ, घृणा क्रोधाग्नि का आधार है।


 


प्रतिशोध ,प्रतिकार क्रोधाग्नि की अस्तित्व ,आत्मा की


ज्वाला विकट विकराल है।।


 


क्रोध वासना का मद ,मदान्ध 


शैने शैने जलता प्राणी नहीं कोई


इलाज़।             


 


सुखेंन ,धन्वन्तरि 


नहीं खोज सके चिकित्सा आज 


विज्ञान, वैज्ञानिक क्रोध पर 


शोध नहीं करते क्रोध से क्रोधित


मलते रहते हाथ ।।


 


मद की माद से क्रोध का उद्भव,


उद्गम विकार क्रोध की धार है।


कही कभी क्रोध की ज्वाला


की लपटों का उठाना अनिवार्य


है।।


 


मान, अपमान ,अहंकार की चिंगारी


का क्रोध कायर पराक्रम की


लपटों का प्रलय सर्वनाश है।।


 


क्रोध शिव शंकर अविनासी


का तांडव का रौद्र रूद्र गरल


बिष काल कराल है।।


 


क्रोध भय भंयकर विकृत


का अवसाद है।


चिंता चिता बेचैनी की धरा 


प्रबल प्रवाह है।।


 


अदृश्य लपटो में जल जाते


कितने युग ,सृष्टि ,धरा धन्य


भी शर्माती क्रोध ,क्रूर ,काल,


हथियार है।


 


कंस क्रोध की आग की लपटो


का कृष्णा कंस वंश संघार है।


 


रावण के अंतर मन की ज्वाला


का पंडित ,ज्ञानी, वीर, धीर


का सर्व नाश मर्यादा का राम है।।


 


क्रोध कर्म मर्म धर्म दूर्वासा जैसा 


अन्याय अत्याचार भ्रष्ट भ्रष्टाचार का विनाश


विलप्लव भूचाल युग उद्धार परशुराम है।।


 


कभी क्रोध है काल ,कभी क्रोध


है ढाल. कभी क्रोध है चाल, 


क्रोध कही अनिवार्य है।।


 


विष्णु ना अपमानित होता


ना क्रोध की प्रतिज्ञा करता


ना होता वर्तमान ना मौर्य वंश


खंड खंड भारत की अखंड बुनियाद है । 


 


क्रोधाग्नि जब जल जाती 


निस्वार्थ कर्म की चिंगारी से


लपटों से इसके वर्तमान के


अंतर्मन से उदय ,उदित स्वर्णिम


भविष्य का नव सूर्योदय का 


निर्माण है।।


 


निष्काम कर्म के धर्म धुरी की


घर्षण चिंगारी पौरुषता की परिभाषा क्रोध युग जनमेजय


का नाम है।।


 


नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

1-विधा--कविता


शिर्षक--पानी


 


मर जाता आँख का पानी


इंशा शर्म से पानी पानी।


आँखों से बहता नीर नज़र का


आँसू पानी ही पानी।।


 


ख़ुशी के जज्बे जज्बात में


छलकता आँसू जिंदगी का मीठा


पानी ही पानी जिंदगानी।।


 


पानी है तो है प्राणी पानी से ही


प्राणी प्राण।


बिन पानी धरा धरती रेगिस्तान


वनस्पति पेड़ पौधे लापता उड़ती


रेत हवाओं में नज़ारा कब्रिस्तान।। 


 


कब्रिस्तान में सिर्फ दफ़न होता


मरा हुआ इन्शान


रेगिस्तान की मृगमरीचिका में


पानी को भटकता जिन्दा


दफ़न हो जाता जिन्दा इन्शान।।


 


पानी से सावन का बादल  


सावन सुहाना।


सावन की फुहार बरसात की बहार।


पानी धरती का प्राण


अन्नदाता किसान का जीवन अनुराग ।।


बारिस का पानी खेतों में हरियाली खुशहाली की एक एक बूँद 


कीमती धरती उगले 


सोना उगले हिरा मोती से दुनियां पानी पानी।।


पंच तत्व के अधम सरचना 


शारीर में पानी आवश्यक


आधार।


दूध में खून में अस्सी प्रतिसत पानी कही पानी ही पानी


कही बिन पानी सब सून।।


 


पानी प्यास ही नही बुझाती


जन्म ,जीवन का बुनियाद बनती।।


कही बाढ़ पानी ही पानी


पानी ही पी पी ही मरता इन्शान।


कही सुखा प्यासा भूखा नंगा


मरता इंसान ।।


पानी में परमात्मा पानी से आत्मा


पानी से खूबसूरत कायनात विश्वआत्मा।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


 2--विधा---कविता


    शीर्षक--पानी


 


झरना ,झील ,तालाब नदियां


समन्दर एक तिहाई का ब्रह्माण्ड


पानी पानी।


पानी पर्यावरण की शक्ति अनिवार्य।।


बहती नदियों की धाराएं


लम्हा लम्हा बहते पानी का एहसास चलती


जिंदगानी।।


धरती के ह्रदय तल से सूखता पानी बूँद बूँद कीमत बतलाता


पानी।।


शर्म से कोइ पानी पानी, गुस्तगी,


प्यार ,शरारत में सर ऊपर पानी


जंगो का मैदान भी पत पानी।।


 


पानी दौलत जरुरत पर खर्च


करों गैर जरुरत ना व्यर्थ करों।


पानी का सम्यक, संचय और निवेशन प्रकिति प्राणी का 


संवर्धन, संरक्षण।।


 


अभी गुन्जाईस है आने वाले


युग काल में पानी के लिये


होगा युद्ध पेट्रोल ,खून से होगा


महंगा पानी।।


सुनों गौर से दुनियांवालो ना


सूखे नज़रो का पानी


ना गुजरे सर से पानी


ना शर्म से हो पानी पानी


पानी दुनियां में है वाजिब।।


 


पानी से जिंदगानी जिंदगानी


से पानी प्राण प्राणी।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दर्द ,जख्मों का हिसाब 


इंसान लम्हा लम्हा करता।


कभी रिश्ते ,नातो के दिये जख्मो


को कोसता तो कभी खुद के


करम खुदा भगवान् को


कोसता।।


 


अंधे इंसान को पता ही नहीं


कुछ देखता ही नहीं।            


वाकये


का किरदार दुनियां में मज़ाक


गम, ख़ुशी के आसु पीता।


खुद के।गुनाहों का बोझ गैरों पे कसीदे पढ़ता।।


 


दर्द का इंसान जिंदगी से रिश्ता


जख्म दीखते नहीं खून रिसते


नहीं कराह में आहे भरता।।


 


जुदाई का गम कुछ चाह की


राह से भटक जाने का गम 


मुफलिसी की मसक्कत 


कभी शर्मशार का दर्द ।।


 


खुद के गुनाहों के लिये खुदा


से माफ़ी की अर्जी करता


दर्द का दरिंदा दर्द में रोता।।


 


दर्द बांटता जैसे मिलाद का


मलीदा


नासमझ को इल्म


ही नहीं होनी हैं तेरी भी होनी है बोटी बोटी


तेरे हर दुकडे से दर्द की चीख


जहाँ को सिख कसीदा।।


 


मगर इंसान की याद तो शमशान,


कब्रिस्तान की तरह माईयत उठाता फिर गुनाहों की अपनी


दुनियां में लौट जाता।।


 


जिंदगी अजीब फलसफा नेकी


गायब गुनाहों में इज़ाफ़ा


हर गुनाह से पहले खुदा को।


जरूर याद करता ।             


 


कसाई हर


जबह से पहले अल्ला हो अकबर 


खुदा को हाजिर नाजिर मान कर


जबह करता।।


 


दुनियां में दर्द का सौदागर 


दर्दो का बेरहम बादशाह


खुद के दर्द में खुदा के लिये


रहम की दुआ मांगता।।


 


मंदिर ,मस्जिद पिर ,पैगम्बर


के हुजूर में हाजिरी देता ।


ख्वाहिसों की आपा धापी में


भूल जाता जो दिया है मिलेगा


वही हिसाब बराबर जिंदगी खता बही।।


 


जज्बे ,जज्बात की जिंदगी 


दर्द भी अहम खुद के दर्दो छुपाता


जहाँ में बेनूर की हंसी में दिल के


छालो के आंसू बहाता खुद को


फुसलाता ।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आशा विश्वास जीवन के दो भाव


आशा लौ जैसी विश्वाश है बाती।


जीवन आशा विश्वाशों का दीप


जलता दीपक जीवन दीवाली।।


 


त्यौहार ,प्रज्वलित ,मद्धिम दीपक


जीवन सुख, दुःख का खेल ,मेल।


 


आशाओे का टूटना विश्वाश 


डगमगाना जीवन बेमेल ।।


 


आशा उत्साह जगाती विश्वाश


उद्देश्य का उद्भव उद्गम क़ी महिमा


मंडन का मार्ग बेजोड़।।


 


आशा और निराशा के बीच


घूमता जीवन जीत, हार ,जीवन


संग्राम का अर्थ उद्देश्य।।


 


आशा सावन कि फुहार निराशा


सावन का काला बादल।


जीवन् में संताप ख़ुशी का कारण


आशा कभी कदाचित निराधार निर्विकार ।।


 


आशा साक्षात्कार ,सत्कार


आशा विश्वास का अवनि आधार।


आस्था, अस्तित्व का आविष्कार


आशा विश्वाश जगाती विश्वाश का आस्था से रिश्ता नाता।।


 


आशा, विश्वाश की आस्था पत्थर में भगवान दिखाता ।


भाग्य ,भगवान आशा ,विश्वाश 


जीवन का वर्तमान भविष्य बताता।।


 


प्रेम भाव आशा कि जलती लौ


विश्वास कि ज्वाला आस्था। अस्तित्व के गहरे सागर से मिल 


जाना जीवन मूल्यों के पथ पथिक


का उद्देश्य का जीवन चलता। 


आशाओं को जगने दो अंतर मन के भावो से विश्वाश का उफान ज्वार पराक्रम की ललकारों से।


 


मिल जाएंगे अल्ला ईश्वर खुद में


चेतना के जीवन राहों में।।


 


कहीं खो ना जाओ मिथ्या के आडम्बर में ना आशा जगे जीवन


में ना विश्वास का बैभव हो।


नश्वर जीवन में ना स्वर हो न उमंग


तरंग का संगीत तराना जिंदगी सिर्फ कटते काल समय की बोझ


जीवन मृत्यु के मध्य का सोना जागना।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दिलों ओ दिमाग पे छाई है 


तेरी यादों की परछाई 


नादानियां तेरी शरारते


तेरा शर्माना छुप जाना शर्माई।


दिलों दिमाग पे छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


दिल में जज्बे का तूफां


दिमाग में जज्बातों के जंग


तुझे खोने फिर संग लाने की जिद आई।


दिलो ओ दिमाग छाई है 


तेरी यादों की परछआई।।


 


बरसात का मौसम बरसात


में भीगना छोकना बरसात का


पानी कागज की कश्ती बचपन


की कस्मे रस्में कमसिन की


कसम भोली सूरत दिलों की दस्तक छाई।


दिलो ओ दिमाग पे छाई है  


तेरी यादों की परछाई ।।


 


जिंदगी के तक़दीर का वो लम्हा


उसके साथ गुजरे तोहफा लम्हा


तुम्हारा साथ जिंदगी का एहसास


तेरी अक्स जिंदगी की साँसे धड़कन सौगात तू आयी।


दिलो ओ दिमाग में छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


गली की कली नाज़ुक


वक्त की नाज़ नज़ाकत


तू लाखों अरमानों की चाहत 


नादानों की मोहब्बत की खुशबू


 नज़ाकत अर्ज आरजू।


दिलों ओ दिमाग छाई है 


तेरे यादों की परछाई।।


 


हुस्न की हद हैसियत तेरी


दीवानगी में दिलो का


पागल हो जाना तेरी मासूम


चाहतों में जीने मरने का कस्मे खाना सिर्फ मेरी ही चाहत में तेरी


जिंदगी का तराना आशिकी।


दिलों ओ दिमाग में छाई है


तेरे यादों की परछाई।।


 


माँ बाप हसरतों की जमीं


दोस्तों की आहों का का बहाना


चाहतों की आसमां


जहाँ में तन्हा तू नाज़ुक हुस्न


की चाँद की चॉदनी।


दिलों दिमाग में छाई है तेरे यादों


की परछाई।।


 


दुनियां की भीड़ में आज भी तन्हा


तेरे संग गुजरे लम्हों की दौलत का कारवां तेरे ही इंतज़ार


की जिंदगी तेरे प्यार की हकीकत


इकरार का इज़हार का लम्हा आती जाती।


दिलों ओ दिमाग में छाई है


तेरे यादो की परछाई।।


 


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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       ----रिश्ते ---              


पैदा होता ही इंसान रिश्तों के साथ । नौ माह कोख में रखती तमाम दुःख कष्टों को सहती माँ ।।     


 


अपने औलाद कि खातिर असह वेदना भी जीवन का वरदान मानती खुद चाहे ना पसंद हो संतान की चाहत में सब कुछ करती जीती मारती माँ।।


                              


 


स्नेह सरोवर की निर्मल निर्झर गंगा कि धारा । ममता, ममत्व, वात्सल्य मानव का सृष्टी का का रिश्ता माँ ।।


 


ख़ाबों और खयालो में अपने चाहत अरमानो की जीत, चाहत।


कुल ,खानदान का रौशन चिराग हो माँ का लाडला बेटा।।       


 


आन ,मान, सम्मान का का सत्य सत्यार्थ प्रकाश चिराग माँ का बेटा।                               


साहस, शक्ति ,ज्ञान, योग्यता का अभिमान हो माँ काबेटा दुनियां में माँ बाप खानदान का रोशन नाम करे ,समाज राष्ट्र का नव निर्माण करे ,माँ का बेटा।।


 


काल ,समय ,भाग्य ,भगवान ,कर्म धर्म ,कर्तव्य ,दायित्व बोध का अहंकार बने माँ का बेटा।।    


 


मजबूत इरादों कि बाहों के झूले में झुलाता । अपने सिंघासन जैसे कंधे पर शान से दुनिया को अहंकार से बतलाता देखो ये दुनियां वालों मेरे कंधे पर मेरा नाज़ ।


 


चौथेपन कि मेरी नज़रे लाठी कन्धा फौलाद मेरी औलाद।।


 


मानव का दुनियां में पिता पुत्र का रिश्ता उम्मीदों के आसमान का रिश्ता और फरिश्ता।।               


 


माँ बेटे पिता पुत्र का दुनिया, समाज ,परिवार का बुनियादी रिश्ता।।


 


बहना जीवन का गहना रिश्तों के परिवार समाज खुशियों कि रीत प्रीति का बचपन से जीवन का रिश्ता।।


 


कच्चे धागे का बंधन संग ,साथ बहना चाहे बड़ी हो या छोटी । प्यारी ,लाड़ली ,दुलारी परिवार का प्यार बहना ,दीदी जीवन की सच्चाई का रिश्ता लक्ष्मी ,लाज परिवरिस का प्यार।।           


 


लड़ाई झगड़े कट्टी, मिल्ली बचपन कि शरारत रिश्तो के कुनबे परिवार की खुशियाँ चमन बहार का रिश्ता।।                           


 


हर राखी पर उपहार मांगती दुआओं भैया की झोली भरती। भैया दूज कि मर्यादाओं कि अपनी अस्मत हस्ती कि हिफाजत कि हिम्मत ताकत का आशीर्बाद भी देती का रिश्ता बहना दीदी।।          


 


बचपन की अठखेली आँख मिचौली घड़ी पल प्रहर दिन महीनो साल । वर्तमान से निकल अपने अरमानो के साजन के घर चल देती ।।


 


आँखों में विरह के आंसू दे जाती नन्ही सी पारी नाज़ों की काली परिवार कि चर्चा यादों का दर्पण हो जाती।।


 


भाई से भाई का रिश्ता परस्पर प्रेम प्रधिस्पर्धा साथ- साथ खेलते पढ़ते लिखते बापू के अरमानों के जाबाज परिन्दे खुली नज़रो के खाब बापू के अरमानो के अवनि आकाश। स्वछंद अनरमानो के पंखों के परवाज़ भाई -भाई परस्पर परिवार की साख सम्मान का विश्वास रिश्ता ।।


 


मानव का रिस्तो से नाता ,रिश्ता ही परिवार बनाता परिवारों से सम्माज का नाता समाज का परम्परा रीती,रीवाज निति से रिश्ता नाता ।   


संस्कृति, संस्कार का समाज की पहचान से नाता मानव से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट् का रिश्ता नाता।। मानव, परिवार ,समाज, राष्ट्र कि संस्कृति समबृद्धि पहचान बताता।                          


 


हर एक मानव कि ताकत से संगठित सक्तिशाली परिवार समाज संगठित सक्तिशाली परिवारों के का संबल समाज से मजबूत, महत्व्पूर्ण ,सक्षम राष्ट्र का नाता रिश्ता।।


 


रिश्तों में समरसता ,विश्वास, प्रेम प्रतिष्ठा परिवार का आधार।


    


परस्पर ईमान ,ईमानदार सम्बन्धों के मानव मानवता से ही परिवार का रिश्ता नाता।।                


 


संबंधो में द्वेष ,दम्भ ,घृणा का कोई स्थान नहीं ,द्वेष, दम्भ ,घृणा परिवारों के विघटन के हथियारों से रिश्ता नाता ।                  


 


 


छमा, दया ,करुणा ,प्रेम, सेवा, सत्कार मानव, मानवता के रिश्तों परिवार में प्यार,सम्मान, परम्परा का सार्थक व्यवहार जीवन मूल्यों का रिश्ता नाता।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिंदगी जज्बे का तूफां लिये आई


हज़ारो साल नर्गिस के इंतज़ार का


तोहफा सौगात लिये आई।


बेशकीमती दौलत दामन में संभालूं कैसे।।


 


ख़ुशी से पाँव जीमीं पे नहीं लाखों


अरमान की हकीकत छुपाऊं कैसे।।


खुदा का करम कहूँ है या किस्मत


का करिश्मा पूछती है दुनियां बताऊँ कैसे।।


जिंदगी के यकीं का शोर बहुत


जहाँ में ,धीरे से जिंदगी की


मोहब्बत दिल में दबाऊं कैसे।।


 


नशा नसीब का बिन पिए शराब


भी सुरूर पे है जिंदगी के मैखाने


के ख़ास पैमाने को दिखाऊं 


कैसे।।


हर हद सरहद से गुजरने को


मचलता है दिल ,तरन्नुम में


मचलते दिल को समझाऊं


कैसे।।


 डर है की जिंदगी के तरानों का


ख़ास ये लम्हा ख्वाब ना हो जाये


अंदाजे ख़ास इस लम्हे को संभालूं कैसे।।


उगता हुआ सूरज है जिंदगी का ये


ख़ास लम्हा


चाँद की चाँदनी का दीदार अक्स


उतारूँ कैसे।।


लम्हा लम्हा गुजरती जिंदगी का


हसीन लम्हा जिंदगी का नूर


नज़र बनाऊ कैसे।।


हुस्न ,इश्क ,मोहब्बत मौसिकी का


आलम जिंदगी के हुजूर की मौसिकी गाऊँ कैसे।।


दीवाने परवाने का जूनून लम्हा जिंदगी का


हर साक पे बैठे की नज़र


हर साक की डाल को बताऊँ कैसे।।


ख़ास इंतज़ार की जिंदगी से 


इल्तज़ा इतनी मुबारख कदमो


के बाहरो का चमन हर कदम


जिंदगी में निहारूँ कैसे।।


 


नंदला लमणि त्रिपाठी पीताम्बर


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