डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः....*प्रथम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-23


अह सिव-धनु अति महिमा मंडित।


बेद-पुरान कहहिं सभ पंडित।।


    राम-संभु-संबंध पुराना।


    निगमागम-श्रुति-बेद बखाना।।


देव क देव प्रभू सिवसंकर।


ब्याधि भक्त कै हरैं निरंतर।।


    हिय धरि संभु जे गाल बजावा।


    तुरतै ते इच्छित फल पावा।।


ऐसहिं हैं भोले सिव दानी।


सबद अटै नहिं कहत कहानी।।


    तासु चापु भंजन प्रभु रामा।


    उतरे अवध करन यहि कामा।।


नभ नव उदित चंद्र की नाईं।


राम लगहिं बस यहि कहि पाईं।।


    अब प्रभु राम सुमिरि सिवसंकर।


    करहिं निरिच्छन चापु भयंकर।।


अति लाघव धनु-डोरी खींचे।


सके न देखि दृगन सभ मीचे।।


    विद्युत सम प्रकास जग भयऊ।


    कंपित महि,दृगपाल लजयऊ।।


जेहि छन प्रभु खंडित धनु कीन्हा।


करवट सेषनाथ जनु लीन्हा ।।


    हर्षित भए गगन सभ देवा।


    प्रभू-प्रसाद सिरहिं धरि लेवा।।


दोहा-ऋषि-मुनि सभ हर्षित भए,प्रमुदित अपि संसार।


         प्रन पूरन जनकहिं भयउ, कटि गे कष्ट अपार।।


सीता-गति नहिं जाय बखानी।


पाइ राम जसु संभु भवानी।।


    देव-संत-किन्नर-गंधर्बा।


    नभ-जल-थल हर्षित भे सर्बा।।


ब्योम-अनल लखि अस गति जग की।


कहहिं राम धनु तोरि क भल की ।।


    अब होइहिं सभकर कल्याना।


    दूबर असुर,संत बलवाना ।।


राम-राज होइहैं जग माहीं।


छोट-बड़न जग सबहिं सराहीं।।


    दूबर-नीबर एक समाना।


    सभ मा बसहिं राम भगवाना।।


छुआछूत इक रोग समाजा।


अब जग मा ई रोग न छाजा।।


    अब आतंक-मुक्त जग होई।


    निडर होइ सभ प्रमुदित सोई।।


अब नहिं होंहि निसाचर-माया।


निसि-बासर चहुँ दिसि प्रभु-दाया।।


   हवन-जग्य अब सुचिता पाई।


   असुर-कला नहिं परी देखाई।।


द्विज-पंडित अरु संत-पुजारी।


पाइ कृपा प्रभु होंहिं सुखारी।।


दोहा-भयो धनुष ई भंग अब,होइहिं राम-बिबाह।


        तदुपरांतयि जगत मा, रही न कोऊ आह।।


                  डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


रश्मि लता मिश्रा, बिलासपुर, सी,जी।

शिव बोलत नाहीं,शिव डोलत नाहीं,


शिव शंकर बैठे समाधि।


राम नाम की माला फेरें


पीटें उसकी मुनादी।


शिव नंदी चढ़त,शिव भंगिया पियत


झोली भर दें फरियादी।


पितरों के उद्धार हेतु फिर,


जटा से गंगा बहा दी।


 


श्रावण मास की दशमी तिथि की शिव भक्तों को शुभकामनाएं।


रश्मि लता मिश्रा, बिलासपुर, सी,जी।


श्रीकांत त्रिवेदी  लखनऊ

आज द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर एक रचना .....


 


काशी ही मधुवन हो जाए,


विश्वनाथ धड़कन हो जाए!


नयनों में उज्जैन  बसे तो,


सन्यासी ये मन हो जाए!


सोमनाथ का करें स्मरण,


मल्लिकार्जुन तन हो जाए!


ममलेश्वर का ध्यान करें,


वैद्यनाथ आंगन हो जाए!


भीमाशंकर के दर्शन हों,1


नागेश्वर तपवन हो जाए!


त्रयंबकेश्वर  हों नयनों में,


घुश्मेश्वर अंजन हो जाए!⁰


राम मिलें जब,रामेश्वर में,


केदारवन ये मन हो जाए !!


         .. श्रीकांत त्रिवेदी


                    लखनऊ


जया मोहन प्रयाग राज

चलो कुछ लिखते हैं।


राम की पीड़ा


न चाहा था राजमुकुट


न चाहा साम्राज्य


मैं तो रहना चाहता था


सिर्फ अपनी सीता के पास


राजा बन कर हमने क्या सुख पाया


पत्नी होते हुए भी मैंने


विधुर सा जीवन बिताया


वह भटकी वनवन में


मैं तड़पा राजभवन में


बिन कसूर दोनों ने वेदना


सही तन मन मे


सबके बच्चो को देख आँखे


मेरी भर आती थी


अपने बच्चों के लिए तड़पी


मेरी छाती थी


पिता होकर भी वह पिता का प्यार न पा सके


महलों के राजकुँवर जंगल


में जीवन काट रहे


सब कहते रामराज में कोई


दुखी नही रहता


मेरे अंतर्मन की ज्वाला को


क्या किसी ने देखा


लोक रंजन के लिए मैंने


ह्रदय पाषाण कर डाला


कुल की लाज बचाने को


सीता ने कठोर निर्णय कर डाला


न सह सकती उसके राम को कोई दोषी कह सके


इक्छावकु वंश के गौरव को


न कलंक लग सके


सह लेगी विरह वेदना को


वो मन मे धीरज धर कर


मन से दूर नहोगी कभी


तन से दूर होकर


सारे जीवन तड़पते रहे मिलन न उनका हो सका


आत्म सम्मान बचाने को


सीता ने खुद को धरती को सौपा


मैं नारायण था पर अवतारी था विधना की गति को भोगा


साधारण नर की तरह सूख में हँसा दुख में रोया


मन का दर्द किसी से न कह पाया


पाकर भी अपनी सीता को


मैंने न पाया


स्वरचित


जया मोहन


प्रयागराज


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

प्रस्तुत है एक छंद


 


करे शोर घनघोर, बरसे है बड़ी जोर,


                 घन घूमते है ऋतु, बरखा की आयी है।


लगता तिमिर निशि, जैसा विकराल दिन,


               नभ मे अपार देखो, काली घटा छायी है।


पादप हिलाती कभी, मन हरसाती कभी,


                   वेगवान शीतल ये, चले पुरवाई है।


ऐसी ही बरसात में, पहली मुलाकात में,    


                   जब से है देखा उसे, उर मे समायी है।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

मुक्तक


 


देश रहे गौरवशाली औ, नभ से ऊँचा भाल रहे।


सीमाएं भी रहे सुरक्षित, और सही हर लाल रहे।


मेहनती लोगों के घर मे, चावल, गेंहू , दाल रहे।


फसलें खेतों में लहरायें, हर आँगन खुशहाल रहे।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

*शिव स्तुति*


 


नीलकंठ महादेव, आशुतोष भोलेनाथ,


                 विश्वनाथ शंभु और, शिव त्रिपुरारी हो।


बाघम्बर तन सोहे, शीश चंद्र गंग धरे,


              डमरू त्रिशूल हस्त, कण्ठ अहि धारी हो।


अपने उपासकों पे, कष्ट नही आने देते,


               करते सभी की आप, सदा रखवारी हो।


विश्व के विधान सभी, आप से नियोजित है,


                सुर कुल भूषण औ, असुर संहारी हो।



सुषमा दीक्षित शुक्ला

नमस्कार मित्रों ,आज सावन मे राधाकृष्ण के अमर प्रेम का वर्णन किया मैंने ,,जरा पढियेगा


 


आज श्याम सँग झूला झूलें,


 प्यारी राधा रानी।


सावन पर भी यौवन छाया,


 झमझम बरसे पानी ।


हरा भरा हरियाला मौसम,


 भीगा भीगा तन मन है ।


राधाकिशन की प्रीति देखकर,


 हर्षित सारा उपवन ,है ।


नाच रहीं यमुना की लहरें ,


कितनी सुन्दर थिरकन है ।


धरती अम्बर एक हुए हैं ,


पावस विह्वल जोगन है ।


दशों दिशाएं झूम रही हैं ,


मादकता मे मधुबन है ।


मोर पपीहा पँछी गाये ,


जैसे पागल विरहन है ।


कोमल किसलय जैसी राधा ,


डूब गयी है मोहन में ।


जगमोहन भी डूब गये हैं,


 राधा के सम्मोहन में ।


सखियाँ सारी बाट जोहती,


 अपनी अपनी बारी की ।


स्वयं प्रकृति भी दृश्य देख यह,


 गर्वित है सुकुमारी सी ।


मोहन जैसा प्रियतम पाकर ,


धन्य हुई राधा रानी ।


राधा बिना कृष्ण भी आधा 


बात सभी ने ये मानी ।


अटल प्रेम का अद्भुत बन्धन


राधा कान्हा की दीवानी ।


अमर प्रेम इतिहास रचाया ,


हुई अमर ये प्रेम कहानी 


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सुषमा मोहन पांडेय

सुषमा मोहन पांडेय (शिक्षिका,कवित्री,समाज सेविका)


पति-श्याम मोहन पांडेय


पिता-श्री रामनारायण मिश्र"श्रमिक"


माता -श्रीमती शांती देवी


शैक्षणिक योग्यता-बी एस.सी, विशारद


इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स


निवास स्थान-सीतापुर (उत्तर प्रदेश)


अभिरुचि-कहानी ,कविता ,लघुकथा ,आलोचना ,संस्मरण, समीक्षा,पठन पाठन, समाज सेवा ,अध्यात्म,घूमना,खेल कूद।


प्रकाशन-विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख,लघुकथाएं एवं कहानियाँ कविताएँ प्रकाशित।


साहित्यिक गतिविधियाँ-कवि सम्मेलन, संगोष्ठियों एवं कार्यशालाओं में सक्रिय भागीदारी। सेवा कार्यों में अनेकों सम्मान प्राप्त,अनेकों साहित्य ग्रुपों में सक्रिय सदस्य,लोग जंग दैनिक समाचारपत्र भोपाल में रचनाओं का प्रकाशन


दैनिक समाचार पत्र विजय दर्पण टाइम्स मेरठ में प्रकाशितसंस्मरण, कहानी, रचनाएँ


लखनऊ से प्रकाशित दी लेजेंड समाचार पत्र में प्रकाशित रचनाएँ


सीतापुर से प्रकाशित पुस्तक 'सीतापुर के कलमकार, में मेरी कविता का समावेश


शाहजहाँ से प्रकाशित होने वाली कवित्री विशेषांक में मेरा गीत


भाषा-हिन्दी ,अंग्रेज़ी 


रूची -सामाजिक कार्य 


राष्ट्रीय ब्राह्मण एकता संघ की प्रदेश उपाध्यक्षा पद पर कार्यरत एवं ग़रीब बच्चों को फ़्री एजुकेशन 


सोशल क्लब की मीडिया प्रभारी


के पद पर कार्यरत


Mobile no.


9838732124


 


 


*तिरंगा*


ऐसा मेरा प्यार तिरंगा, अपने भारत की शान है


जिस देश जाती में जन्म लिया,उसकी यही पहचान है।


 


स्वतंत्र हुआ जब देश हमारा,


               लहर खुशी की छाई।


अंग्रेजों से पीछा छूटा,


               सांस चैन की पाई।


कितना जुल्म सहा लोगों ने,


          इतिहास मेरा बतलाता है।


हम तो पैदा नहीं हुए थे,


          पर गाथा वो सुनाता है।


इसका वंदन, औ अभिनंदन,


          करते सभी सुजान है।


ऐसा मेरा प्यारा तिरंगा,


           अपने भारत की शान है।


 


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श्वेत रंग है, शांति प्रतीक का,


           सबको बहुत ही भाता है।


हरा रंग हरियाली देती,


           समृद्धि देश कहलाता है।


केसरिया रंग कहानी सुनाता,


           त्याग औ बलिदानों की।


तिरंगे की बात निराली,


           यही हमारी आन है।


ऐसा मेरा प्यारा तिरंगा, 


           अपने देश की शान है।


 


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यही हमारी देश की धरती,


         और सबका अभिमान है।


चाहे हो सरदार भगत सिंह,


         सुखगुरू हो या फिर आजाद


सहज झूल गए फाँसी पर,


          कुर्बानी कर दी जान है।


सब कुछ मेरा इसको अर्पित,


          आन, बान, और शान है।


ऐसा मेरा प्यारा तिरंगा,


          अपने भारत की शान है।


 


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इन अमर शहीदों के कारण ही,


           हम आज स्वतंत्र बन बैठे हैं।


मैं हूँ स्वतंत्र, तुम हो स्वतंत्र,


           सब प्रजातंत्र में रहते हैं।


झुकने न दिया तिरंगा प्यारा,


            करते इन्हें हम सलाम हैं।


नहीं हर्फ़ है"सुषमा" पास फिर,


            भी गाथा गाने में शान है।


ऐसा मेरा प्यारा तिरंगा,


             अपने भारत की शान है।


 


##सुषमा मोहन पांडेय


 


कोरोना कोरोना कोरोना कोरोना


बहुत हो गया अब तुम दफा हो न।


चारो तरफ ही है जिक्र तुम्हारा


टीवी हो अखबार, चर्चा तुम्हारा


संस्कार सिखा दिए,नमस्ते करो न


करोना, करोना, करोना, करोना


बहुत हो गया अब तुम दफा हो न


 


महामारी बनकर तुम आ गई


सारे देशों में तुम छा गई।


सब हैरान हैं, सब परेशान है


अब इस धरती से तुम लुप्त हो न


करोना करोना करोना करोना


बहुत हो गया अब तुम दफा हो न।


 


बूढ़ों पे सबसे पहले करता ये वार है


संक्रमित करना ही इसका कार्य है


स्कूल, मॉल सिनेमाघर, सभी बंद हो गए


रुक गए सारे काम सुन ऐ करोना


करोना करोना करोना करोना


बहुत हो गया अब तुम दफा हो न


 


कोरोना के प्रति सावधानी बरतना


हाथों को अपने बार बार धोते रहना


भीड़-भाड़ से है तुम्हें यार बचना


बिन मतलब घर से न निकलो न


करोना करोना करोना करोना


बहुत हो गया अब तुम दफा हो न।


 


सुषमा मोहन पांडेय


सीतापुर उत्तर प्रदेश


 


एक गीत 


समर्पित मां के नाम


 


मां के चरणों में जन्नत तो मिल जाएगी।


जो मुसीबत भी होगी तो टल जाएगी।


मां के चरणों में...........................


 


बिन देखे ही है, प्यार उसने किया,


अपने खून से है उसने, ये जीवन दिया।


प्यार उससे करो खुशियां आ जाएंगी।


जो मुसीबत भी होगी तो टल जाएगी।


मां के चरणों में..........................


 


तूने जन्म दिया, आँचल में लिया।


हर सुख दुख में मेरा, है साथ दिया।


छाँव ममता की बन कर के दुलरायेगी।


जो मुसीबत भी होगी तो टल जाएगी।


मां के चरणों में..........................


 


इस धरती पर मां तू ही भगवान है,


है तरसता भी तेरे लिए भगवान है,


तू सदा संग रहे, जीत मिल जाएगी।


जो मुसीबत भी होगी तो टल जाएगी।


मां के चरणों में,.........................


 


सुषमा मोहन पांडेय


उत्तर प्रदेश


 


 


सपना


 


ये सुंदर सा सपना है मेरा जहां में


हो फूलों सा महकता जीवन जहां में


 


न कोई भी भूखा रहे इस जहां में


न कोई भी वस्त्रों को तरसे जहां में


शिक्षित सभी हों अशिक्षित न कोई


संपन्नता को भी तरसे न कोई


ये सुंदर सा सपना है मेरा जहां में


हो फूलों सा महकता जीवन जहां में


 


निराश्रित न हो कोई, वृद्ध जहां में


मिले प्यार संतान का इस जहां में


जैसे उन्होंने है चलना सिखाया


वैसे ही सेवा वो पाएं जहां में


 ये सुंदर सा.......................


हो फूलों सा........................


 


लक्ष्मी स्वरूपा है नारी जहां में


न अपमान कर , बन पापी जहां में


नारी है दुर्गा, नारी है भद्रकाली


नारी बने अन्नपूर्णा जहाँ में।


ये सुंदर...........................


हो फूलों .............................


 


भ्रूणहत्या करे न कोई भी जहां में।


न तरसे जन्म को कन्या जहां में।


बलात्कार, यौनशोषण न होवै जहां में


दहेजप्रथा भी लुप्त होवै जहां में


ये सुंदर सा...........................


हो फूलों .................................


 


मानव उत्पीड़न कोई करै न किसी का


अत्याचार भी कोई सहे न किसी का।


भ्रष्टाचार जैसी कुरीति न फैले


मेरा देश धनधान्य से फले फूले।


ये सुंदर...................................


हो फूलों ....................................  


 


बेरोजगारी न पनपै जहां में


बालश्रम भी बिल्कुल दिखे न जहां में


विचरण करै होके निर्भय जहां में


मिलजुल रहे प्रेम से इस जहां में


ये सुंदर ....................................


हो फूलों ............…......................


 


ये छोटा सा सपना, है मेरे ईश्वर


तू सच कर दे मेरे, हे जगदीश्वर


ये सुंदर................................


हो फूलों ...............................


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति तृतीय

पावन सरिता शिप्रा के तट महाकाल विख्यात सनातन।


स्थित ज्योतिर्लिंग त्रतीय है उज्जयिनी में परम पुरातन।


एक गोप बालक ने देखा चंद्रसेन राजन शिव पूजन।


करूंगा मैं भी शिव का पूजन ठानी बालक ने अपने मन।


पाहन एक किया स्थापित पूजन विधिवत शिवरूप किया।


भोजन पर भी जब ना आया तब मां ने पत्थर फेंक दिया।


अत्यंत दुखी करके विलाप रटते शिव नाम हुआ मूर्छित।


सुनकर पुकार शिव आशुतोष करुणा से हुये द्रवित विगलित।


बालक के नेत्र खुले देखा मन्दिर एक विशाल स्वर्ण मय।


उसके भीतर फिर प्रगट हुआ शिव ज्योतिर्लिंग परम तेजमय।


आनन्द विभोर हुआ बालक स्तुति करके शिव चरण छुए।


राम भक्त हनुमान उसी क्षण बालक के सम्मुख प्रगट हुए।


तेरी अष्टम पीढ़ी बालक जन्म नन्द गोप जी का होगा।


भगवान विष्णु का कृष्ण रूप अवतार उसी के घर होगा।


विविध करेंगे लीलाएं प्रभु अपने मनुज रूप में रहकर।


तत्क्षण ही अन्तरध्यान हुए अंजनी लाल इतना कहकर।


ज्योतिर्लिंग परम पवित्र यह जन मानस का कष्ट निवारक।


करे अकाल मृत्यु से रक्षा मोक्ष प्रदायक पाप विनाशक।


चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम। 


हे शिवशंकर हे गंगाधर हे गौरीपति तुम्हें प्रणाम।


 


     सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।


फोन-९९५८६९१०७८,८८४०४७७९८३


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति द्वितीय    


ज्योतिर्लिंग दूसरा पावन तमिलनाडु प्रान्त में स्थित।


पाप नसावन परम तीर्थ यह महिमा अमित शास्त्र में वर्णित।


श्री गणेश अरु कार्तिकेय से बोले इक दिन यूं शिवशंकर।


परिक्रमा करके पृथ्वी की आना तुमको कैलाश शिखर।


जो परिक्रमा पूरी करके दोनों में पहले आयेगा।


उसका ही प्रथम वरण होगा विधिवत विवाह हो जायेगा।


सुनकर यह स्वामी कार्तिकेय त्वरित परिक्रमा पर धाये।


थे श्री गणेश स्थूल काय उत्तम विचार मन में आये।


निज मातु पिता का पूजन कर की उनकी सातों परिक्रमा।


शास्त्रानुसार इस भांति हुई पृथ्वी की पूरी परिक्रमा।


श्री गणेश का रिद्धि सिद्धि से पहले विवाह सम्पन्न हुआ।


लौटे जब श्री कार्तिकेय जी यह देख उन्हें अति खेद हुआ।


होकर रुष्ट कोच्चि पर्वत पर श्री कार्तिकेय जी चले गए।


माता जी गईं मनाने उनको शिव जी भी पीछे पहुंच गए।


ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगटे तब प्रथम मल्लिका पुष्प चढ़ा।


शास्त्रोक्त इसी कारण से श्री मल्लिकार्जुन नाम पड़ा।


चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं सदा तुम्हें निष्काम।


हे शिव शंकर हे गंगाधर हे गौरी पति तुम्हें प्रणाम।


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।


फोन-९९५८६९१०७८,८८४०४७७९८३


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति प्रथम

आज श्रावण कृष्ण अष्टमी के दूसरे सोमवार पर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रथमश्री सोमनाथ विवरण एवं महिमा के माध्यम से उनके चरण कमलों में श्रद्धा सुमन।


    ‌‌      


हे शिवशंकर से गंगाधर हे गौरी पति तुम्हें प्रणाम।


द्वादश ज्योतिर्लिंग आपके कष्ट विमोचक मुक्ति के धाम।


श्री सोमनाथ गुजरात प्रान्त ज्योर्तिलिंग प्रथम यह पावन।


स्नान कुंड का दर्शन पूजन कलुष विनाशी पाप नसावन।


होकर क्रोधित दक्ष चन्द्र को क्षय रोग ग्रसित हो श्राप दिया।


ब्रम्हादेश दुखी सोम ने मृत्युंजय शिव का जाप किया।


होकर प्रसन्न शिव प्रगट हुए चन्द्र मिली प्रभु कृपा की छाया।


कृष्ण पक्ष इक एक कला क्षय शुक्ल पक्ष वृद्धि वर पाया।


देवों की विनती पर शिव जी शुभ्र चन्द्र जिनके माथे पर।


मां संग ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हुए जलधि के तट पर।


चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम।


हे शिवशंकर हे गंगाधर हे गौरीपति तुम्हें प्रणाम।


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।


फोन-९९५८६९१०७८,८८४०४७७९८


सुषमा दीक्षित शुक्ला

बस एक मुट्ठी देह मे आकाश जैसे मन संवरते ।


 


नयनों की कोठरी में गगन चुंबी स्वप्न पलते ।


 


हे मनुज दिग्भ्रमित ना हो यही तो जीवनव्यथा है ।


 


आरम्भ से ये अंत तक संसार की अद्भुत कथा है ।


 


घर गृहस्थी मे सदा से ,कष्ट हैं मेहमान होते ।


 


दुख न होते तो सभी ,सुख भोग से अज्ञान होते ।


 


क्या सही क्या गलत के जो भेद से अनजान होते 


 


न्याय के सम्मान को हठधर्मिता से वो कुचलते।


 


 कर्म पथ पर नित्य बढ़ना बस यही मानव धर्म है।


 


है फल प्रभू के हाथ में बस हाथ अपने कर्म है ।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार ममता बारोट गुजरात, गांधीनगर


सेक्टर 6/ए,472/1


शिक्षा स्नातक


सम्मान -- 


साहित्य शिल्पी सम्मान 


 


अक्षय काव्य सम्मान 


 


श्याम सौभाग्य सम्मान 


 


जनभाषाहिन्दी .काॅम द्वारा 


प्रशस्ति पत्र


 


रावटभाटा पावर प्लांट पत्रिका में कविता प्रकाशित


 


काव्य रंगोली 


 


रंगोली कविताओ की, 


सुंदर-सुंदर रंगो की ,


रंग रूपी शब्दों से सजी, 


काव्य से रंगोली बनाने की। 


 


कवि की सृजनता की,


सृजनता से सुंदरता की, 


सुंदर इसे बनाने की, 


काव्य रंगोली सजाने की। 


 


काव्यो के भावो की, 


उसे महसूस करने की, 


मन की बातें लिखने की, 


काव्य रंगोली हे मन की ।


 


भाव भरी सच्चाई की, 


सेवा भाव भलाई की, 


सच से अवगत करने की, 


काव्य रंगोली भावनाओं की।


 


कविता -2


 


कविता 


 


भाव प्रकट करने का माध्यम


कविता गुणवत्ता का साध्यम


ना बोल सके उसे लिख सकता 


भावनाओं को प्रकट हे करता 


कला लिखने की हे निखारता 


भावो को भी सुंदर करता


सुंदरता जीवन में भरता 


मन से भाव निकल सा जाता


साफ पवित्र मन ये बन जाता 


कवित्व जीवन सफल हो जाता


कविता ही जीवन बन जाता।


 


 


कविता 3


क्या हे पिता


 


पापा क्या हे, क्या तुमने जाना,


बस पापा पापा कहते जाना ,


पर उन्हें कभी तुमने हे जाना।


 


जरूरते घर की पूरी वह करते, 


पापा ये लाओ,पापा वो लाओ,


ये सब परिवार के लिए करते।


 


सुबह से शाम काम वो करते, 


भले ही कितना थक वो जाते, 


सब परिवार के लिए हे करते। 


 


भले पूरे दिन बाहर वो रहते, 


थक कर काम खुशी से करते, 


कभी हे सोचा क्यो ऐसा करते।


 


आगे बढ़ने की शिक्षा देते, 


अच्छाई का पाठ पढ़ाते, 


प्यार हे पर नहीं जताते। 


 


ममता बारोट


सेक्टर 6/ए,472/1


गुजरात, गांधीनगर


 


कविता 4


मे ममता, 


माँ का प्यार भी ममता, 


सबके लिए रखती हे समता। 


 


उनका हर रूप अनोखा, 


गुस्से मे भी प्यार हे रमता, 


मे और मेरीे माँ की ममता।


 


सच,झूठ की पहचान मे ममता,


डाटे, मारे उसमे भी ममता ,


उस जन्मदायिनी माँ की ममता। 


 


माँ के दुलार मे ममता, 


जीवन के उद्धार मे ममता, 


मूझको नाम दिया मे ममता।


 


अद्धभुत हे उनकी यह क्षमता, 


दुख को सुख मे बदलती ममता


मे और मेरे मा की ममता ।


 


कविता-5


जीवन का हर रुप बदलता, 


पत्तो का भी रंग बदलता,


मन भी तो पल पल बदलता। 


 


मन लगता, नहीं भी लगता,


दिल करता, नहीं भी करता, 


जीवन का हर क्षण बदलता। 


 


आशाओ से जीवन चलता,


इच्छाओ की धारा बदलता, 


धाराओ की दिशा बदलता। 


 


कभी धीमा, कभी तेज चलता,


कभी ये ,तो कभी वो हे करता, कुछ पाने को दिल हे करता। 


 


ये भी करू, वो भी करू,


क्या करू, क्या ना करू,


इच्छाओ को हर पल बदलता। 


 


दुख कभी तो सुख हे मिलता, दूर कभी तो पास हे लगता, 


मंजिल भी राह हे बदलता। 


 


कभी कवि,फंकार भी बनता, 


ना चाहा, हर काम हे करता, 


कुछ पाने की चाह हे करता।


 


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार शोभा त्रिपाठी बिलासपुर छग


पति-श्री अशोक त्रिपाठी 


शीक्षा बी ए ( आयुर्वेद रत्न)


एन सी सी ,


कविता लेखन,समाज सेवा ,पर्यावरण, पौध संरक्षण पर विषेश रुचि


विगत 28 वर्षों से जागृति महिला समिति का गठन कर समाज सेवा ,


लायसं क्लब के विभिन्न, पदों मे रही। 


वर्तमान लायनेस एरिया आफिसर 


विषेश रुचि कविता, लेखन,विभिन्न साहित्यिक संगठन से जुडना, 


बालिका विकास, सामाजिक बदलाव पर विगत 8 वर्ष से लायसं क्लब से जुड कर कार्य ।


विगत 30 वर्षों से कविता लेखन 


विभिन्न, स्थानीय, पत्रिकाओं मे प्रकाशित 


सरकारी स्कूलों मे संस्कार कक्षा का आयोजन, अपनी संस्कृति, और आयुर्वेद का ज्ञान बच्चों के विकाश हेतु, आयोजित करती है।


साहित्य के क्षेत्र मे,दस एवं लायंस क्लब से अनेक पुरस्कार प्राप्त कर,निरंतर सेवा पथ पर,अग्रसर है।


धन्यवाद


 


शोभा त्रिपाठी "शैव्या"


 


कविता-1. मजदूर


                ******


  सुन साथी,मजदूर हूं मै,


जीवन जीता हुं,मस्ती मे मै।


चीन्ता नहीं सुहाता है,


मेहनत की ही श्रम रोटी,


मुझको अधिक लुभाता है ।


सुन साथी.......मजदूर हुं मै।


 


नए, नए ,संसाधन लाता,


नया नया पुल,सडक बनाता।


नाज. मुझे है अपने श्रम पर,


नव निर्माण सदा करता हुं ।


सुन साथी मजदूर हूं मै।


 


चीर पहाडों की छाती को ,


नव पथ का निर्माण करूँ मै।


कलपुर्जों की बात ना पुछो,


नया सदा आयाम, गढूं मै।


सुन साथी मजदूर हुं मै ।


 


अपनी ईच्छा शक्ति से ही,


पवन पालकी लाया हुं।


चीर समंदर का सीना भी ,


नया डगर दीखलाया हूं


सुन साथी मजदूर हुं मै।


 


विद्युत की खोजी किरणों को,


जल से ले कर आया हुं ।


अपनी शक्ति, अपने बल पर,


रास्ट्र नया गढ ,पाया हूं।


सुन साथी मजदूर हूं मै


....सुन साथी मजदूर हुं मै ।


 


✒ शोभा त्रिपाठी "शैव्या"


       बिलासपुर ( छ. ग.)


 


कविता- 2


**** नन्हे बीज की यात्रा****


 


 


एक नंन्हा बीज ,देखो डोलता,


अंकुरित हो बृक्ष बनना चाहता।


एक नन्हें हाथ ने,उसको छुआ,


दौड बागों मे,उसे संग ले गया।


 


खोदता मीट्टी खडा वह लाडला,


नीम का वह बीज तब हँसने लगा।


पास से गुजरी,तो नानी ने कहा,


आओ बेटा बीज हम रोपें धरा।


 


जल से सीचें, रोज,तो होगा बडा।


तब हमें यह ,छांव देगा,


ठंडी ये बयार देगा,


सावन मे झुले ,डलेगें।


 


हो मगन कजरी सुनेगें,


पींग मारेगें सभी तब,


मिल सभी साथी तुम्हारे।


साथ झुले मे चढेगें।


 


बीज तब रोपा धरा मे,


अंकुरित होता गया,


हो मगन वह ,नन्हा पौधा,


बृक्ष बन सजने लगा।


 


नन्हा बालक हो बडा,


उस बृक्ष को तकता रहा,


झुमती हर डालियाँ,


लग गई नीम्बोलियाँ।


 


ना जाने,कई बीज फिर,


सज उठेंगे साख पर,


और तब इक नन्हा पौधा,


बृक्ष बन होगा खडा।


 


आओ मिल हम सब संवारे,


इस धरा को बृक्ष से,


हो यदि संकल्प दृढ तो,


अवनि, हरित,जरूर होगी।


 


✒ शोभा त्रिपाठी "शैव्या"


       बिलासपुर( छ.ग.)


     (सर्वाधिकार सुरक्षित)


 


कविता- 3


माँ के सपूतों


      ***********


 


मै सोच रही,मन मे अपने ,


क्या बोलुं और क्या लिख जाउँ।


भारत माता के चरणों मे,मै कैसे जा कर बलि जाऊं।


 


उन वीर सपूतों के पथ पर ,


मै फूल बनूं, और बीछ जाऊं।


और कभी सुगंधित, बन बयार,


उनके सांसो मे,बस जाऊं।


 


उनके इस शौर्य पताके का,


कुछ चटक रंग बन लग जाउं।


कैसे मै उनका कर्ज भरूं,


क्या करूं कि उन पर लुट जाउं।


 


हम आप ऋणी, उन वीरो के,


कैसे ये कर्ज उतारेंगे।


 माँ का आँचल धन्य हुआ,


पिता का पालन धन्य हुआ ।


 


जब ले हथियार चला रण मे,


तब धरती, अंम्बर डोल उठा।


हो अर्जुन का गांडिव ,तुम्ही,,


हो तुम्ही सुदर्शन कान्हा के।


 


 


हो महाकाल का रौद्र रूप


माँ काली का चित्कार तुम्ही।


माता पर जान लुटाते हो,


और अजर अमर हो जाते हो।


 


सर्वोच्च शिखर, संम्मान,


प्राप्त कर लिपट तिरंगा जाता है।


है नमन् तुम्हें हे धीर वीर ,


है ऋणी सदा ,हमसब तेरे।


 


वंन्देमातरम् 


 ✒शोभा त्रिपाठी "शैव्या"


           बिलासपुर


 


कविता- 4


**मूर्ति***


 


मूरति तेरी सांवरा,


लगे ना मूरति मोहे।


जो देखूं मुख सांवरे,


लगे लखत ,हो मोहे।


 


वंशी की धुन सुन रही,


लगत बजाते तान।


प्रेम रंग ना छुटता,


रंगी श्याम रंग आज।


 


मन तो वृन्दावन हुआ,


गोकुल, मे तेरे साथ।


मूरती बोलें, लोग ,है,


 नयन दिखो साक्षात।


 


वंशी तेरी बज उठी,


मन बृन्दावन धाम।


खो गई तेरे प्रित मे,


तू तो है,मुझ माहीं ।


 


 


भई प्रेम मे बावरी,


तुम्हें पूजती श्याम।


छोड दिया,जग सांवला


पूर्ण भई मै आज।


 


प्रेम मेरो प्रभु,उदधि है,


उठत तरंगित ज्वार।


तुम्हें रखुं,ऐसो प्रभु,


ज्यों हो देह मे श्वास।


 


   


 ✒शोभा त्रिपाठी " शैव्या"


 


कविता- 5


 


मेरा गांव


 


मेरा गांव शहर, की ओर है,


ना अलसाए दिन है ।


ना रामलीला होती रातें ,


सब मौन है, मेरा गांव ...


 


ना अम्मा के अनाज की चक्की,


ना बाबा का चौपाल,


ना गोबर थापती दादी,


ना आग मांगने का मनुहार।


बदल रहा कौन है ,मेरा गांव ....।


 


ना नवाइन की नहन्नी,


ना लोहार का हंसिया।


ना सीलबट्टे की चटनी,


ना भथुए की भाजी।


बदल रहा कौन है,मेरा गांव.....


 


पराऐ लोगों से प्रेमिल बातें


अनदेखे लोगो से प्रेम भरी बातें।


वाडसप्, फेसबुक का ,


गुलाम हो रहा है ।


मेरा गांव शहर की ओर..।


 


मामा,चाचा,दादी, बुआ ,


कहने से शर्मसार हो रहा है।


अब अंकल,आंटी कहना ,


कमाल हो रहा.है ,मेरा गांव .


✒ शोभा त्रिपाठी


         बिलासपुर ।


 


 


लक्ष्य" एवं "पहरु संस्था द्वारा आनलाईन कलमकार दिवस सम्पन्न

लखनऊ, दिनांक 12 जुलाई 2020, 


 


आज सायं 5 बजे से सुप्रसिद्ध संस्थाओं " के रुप में एक वृहद काव्य गोष्ठी द्वारा मनाया गया। अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार डा अजय प्रसून, मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि श्री कन्हैयालाल एवं विशिष्ठ अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती नवलता श्रीवास्तव थीं तथा संचालन कवि व्यंग्यकार मनमोहन बाराकोटी "तमाचा लखनवी" एवं सुमधुर वाणी वन्दना विख्यात कवियित्री श्रीमती रेनू द्विवेदी ने की। कलमकार दिवस पर सभी कवियों ने क्रान्ति जी के प्रति अपनी अपनी रचनाओं के साथ साथ उनके जीवन से जुड़े हर पहलू पर मंगलकामनाएं बधाई दीं।


वाणी वन्दना के पश्चात हास्य-व्यंग्य के युवा कवि राजीव पंत की यह रचना खूब सराही गईं --


इन्सान हो गया बौना, जब से आया कोरोना।


सैनिटाइजर से हाथ धोये, जो जाने न हाथ धोना।।


 


भोजपुरी के ससक्त हस्ताक्षर कवि कृष्णानन्द राय का पर्यावरण पर यह गीत-


फिर से अब एक बाग लगा दो।


जो सोये हैं उन्हें जगा दो।।


धपू से राहत मिल जायेगी।


फल जनता हरदम पायेगी।।


तरह-तरह के पौध मंगा दो। -- 


ने खूब तालियां बटोरते हुए कार्यक्रम को नई दिशा प्रदान की।


 


अत्यावश्यक निजी कार्य के कारण वरिष्ठता क्रम को तोड़ते हुए हुए संचालक ने मुख्य अतिथि कन्हैयालाल जी को कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया। कन्हैयालाल जी की सावन ऋतु पर सुन्दर कविता-


सुहावन सावन स्वागत में


धरा ने किया साज श्रृंगार


विखेरा मादक पुष्प सुगंध


पाकर रिमझिम सुखद फुहार।।


   सुहावन सावन स्वागत में....


ने ढेर सारी वाह वाही बटोरी।


 


श्रीमती अलका अस्थाना के इस गीत ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।----


सावन दुबके दुब् के आया


देखो गजब संदेशा लाया


 


मशहूर ग़ज़ल एवं गीतकार आहत लखनवी ने अपने सुमधुर कण्ठों से अनेकों छन्दों से प्रशंसा एवं खूब तालियां बटोरीं। उनका रुचिरा छंद की यह कविता काफी प्रशंसनीय रही -----


हरि ने थामा राधा-कर, तब नैन झुके धड़कीं छतियाँ 


कंपित उर के कोने में, होती मन से मन की बतियाँ 


राधा निज में ही सिमटी, जब अंक भरा हरि ने झट से 


श्याम भुजंग समाय गया, तत्क्षण मानो राधा-लट से


 


सुप्रसिद्ध कवियित्री रेनू द्विवेदी ने बहुत सुन्दर सुन्दर गीतों एवं ओज की कविताओं से ढेर सारी प्रशंसा एवं तालियां बटोरीं, उन्होंने पढ़ा-


जिस पर गर्वित सारी दुनिया,


संस्कृति वही पुरानी हूँ!


अंगारों से खेल चुकी हूँ,


झांसी वाली रानी हूँ!


 


संचालन कर रहे पहरु संस्था के अध्यक्ष एवं लक्ष्य संस्था के उपाध्यक्ष मनमोहन बाराकोटी "तमाचा लखनवी" ने पढ़ा -- 


दीप जलते रहें- तम को छलते रहें,


हम मचलते रहें, रोशनी के लिए।


गीत गाते रहें- गुनगुनाते रहें, 


इस धरा के लिए, इस जमीं के लिए।।


 


 विशिष्ठ अतिथि वरिष्ठ कवियित्री श्रीमती नव लता जी ने नवयुवकों में चेतना का नया संचार करते हुए पढ़ा कि --


तिमिर पर आलोक का अभियान, 


तुम सोए पड़े हो! 


निशा की अवसान वेला में


कहाँ खोए पड़े हो! 


उठो, जागो, और उठ कर


दूसरों को भी जगाओ।।


 


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध वरिष्ठ गीतकार एवं गज़लकार डॉ. अजय प्रसून जी ने आशीर्वचन के रूप में अपने इस गीत से वातावरण को रसमय कर दिया --


आंधियों तूफान झंझावात के मारे नहीं हैं।


हम अभी हारे नहीं हैं


हम अभी हारे नहीं हैं।।


 


अन्त में दोनों संस्थाओं की ओर से मनमोहन बाराकोटी "तमाचा लखनवी" सभी अतिथियों कवियों कवियित्रियों का आभार ज्ञापित किया।


 


- मनमोहन बाराकोटी


अध्यक्ष "पहरु" संस्था एवं उपाध्यक्ष "लक्ष्य" संस्था


 


मनमोहन बाराकोटी जी द्वारा लिखित काव्य गोष्ठी का विस्तृत समाचार!


काव्यकुल संस्थान (पंजी.) डिजिटल काव्य संध्या "

काव्यकुल संस्थान (पंजी.)की एक डिजिटल काव्य संध्या "आ जा सावन झूम के" गूगल मीट पर काव्यकुल संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय के संयोजन में आयोजित हुई जिसमें देश के बड़े बड़े साहित्यकारों ने अपनी सावन सम्बंधित रचना का पाठ कर अद्भुत छटा बिखेर दी।


अपने आप में अनूठे विषय पर श्रृंगार की ऐसी सरिता बही जिसमें तीन घण्टे तक 30 कवियों ने डुबकियां लगायीं। मुंबई से वरिष्ठ कवयित्री डॉ अलका पाण्डेय की अध्यक्षता में हुए इस काव्य समागम में मंडला मध्यप्रदेश से डॉ शरद नारायण खरे मुख्य अतिथि एवं मुम्बई से डॉ मीरा त्रिपाठी पाण्डेय विशिष्ट अतिथि रहीं। और संस्था के संरक्षक हनुमान गढ़ राजस्थान से शंकर लाल जांगिड़ दादा एवं स्वागताध्यक्ष मिथिलेश गुप्ता हर्ष रहे।


रांची झारखंड से डॉ रजनी शर्मा चंदा की सस्वर सरस्वती वंदना से काव्य समारोह का शुभारंभ हुआ।


नईदिल्ली से गीतकार ओंकार त्रिपाठी ने गीत की ये पंक्तियां पढ़ी तो सहज ही वाह वाह के स्वर फूटने लगे।


पायल बांध नदी की लहरें नाच रहीं अपनी मस्ती में।


नैनीताल सिमट आया है दो लघु झीलों की बस्ती में।


जलते दीप बुझाकर घर के कहती हैं मनचली हवाएं।


बौराई नदिया बधने दो फिर भुजपाशों की कश्ती में।


कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालक डॉ राजीव पाण्डेय ने इन पंक्तियों में सावन का चित्र खींचा


इंतजार में हूँ खड़ी,कर सोलह श्रृंगार।


आँखों में सावन लिये,अन्तस् में अंगार।


सावन आता झूम के,घिरी घटा घनघोर।


बिन घुँघरू के देखिए, नाचे मन के मोर।


पूर्णिमा शर्मा अजमेर,डॉ उदीशा शर्मा,गाजियाबाद,डॉ रजनी शर्मा चंदा, रांची,विजय कांत द्विवेदी, मुम्बई, नीलू गोयल, गाजियाबाद, अशोक राठौर,गाजियाबाद,डॉ अंजू अग्रवाल, नई दिल्ली,डॉ हरिदत्त गौतम "अमर",मुम्बई, आचार्य शुभेंदु(प्रदीप)त्रिपाठी,नई दिल्ली,राजेश कुमार सिंह श्रेयस लखनऊ,डॉ नीलम खरे मण्डला मध्यप्रदेश,राजेश मिश्रा नवोदयी आजमगढ़, रामनिवास'इंडिया' नई दिल्ली,कुसुम लता 'कुसुम' नई दिल्ली,नलिनी शर्मा "कृष्णा" अहमदाबाद,अनुपमा पांडेय भारतीय, साहिबाबाद,डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"जलगांव,डॉ ऊषा सिकरवार, ग्वालियर,गार्गी कौशिक,गाजियाबाद,डॉ शुभ्रा माहेश्वरी, डॉ निशि अवस्थी ,बदायूँ , अजय बनारसी ने बेहतरीन गीत ग़ज़ल,मुक्तक छ्न्द सुनाकर सराबोर कर दिया।


तीन घण्टे तक चले इस कार्यक्रम का सफल सन्चालन एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय किया।


प्रेषक


डॉ राजीव पाण्डेय


राष्ट्रीय अध्यक्ष


काव्यकुल संस्थान(पंजी.)


कोरोना कविता covid poem 19

बढ़ता कोरोना है बिकट, चिंता बहुत भारी प्रभू।


संकट में सारी सृष्टि है,इसकी करो रक्षा प्रभू।


पत्ता नही हिलता कोई , जब तक न मर्जी आपकी।


जय राम राघव लखन हनुमत ,लाज राख़ौ जानकी।


पावन पवित्र शरीर कर स्पर्श से बचिये सदा।


दूरी बनाकर सूर्य जैसे प्रेम बाँटो सर्वदा।।


मिलते नही भगवान लेकिन, नेह भक्तों पर करे।


दूरी बनाकर दुष्ट बीमारी कोरोना से बचे।


साबुन सदा ही जेब मे,शीशी में सेनीटाइजर।


हर एक सतह को, संक्रमित है ऐसे मन में मानकर। 


सब काम निपटाओ,रहे दूरी भरा अति प्यार हो।


नीरज नयन छलके न कोई संक्रमित बीमार हो।


मो0 9919256950


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार छविंदर कुमार शिमला  हिमाचल

छविंदर कुमार


पिता श्री टेकाराम 


निवास शिमला 


पोस्ट : प्राध्यापक हिंदी 


शिक्षा : परास्नातक हिंदी पीएचडी प्रक्रिया में 


उम्र तैंतीस वर्ष


व्यवसाय - अध्यापन


प्रकाशन तीन शोध आलेख प्रकाशित 


विशेष योग्यता : नेट उत्तीर्ण हिंदी साहित्य 


राज्य पात्रता परीक्षा 


संपर्क नंबर -- 94185 -12979


 


 


आज की जिंदगी 


कल तक जिंदगी चलती थी मौन से


कुछ होता तो सोचते , चिंतन करते एकांत में


राह मिल जाती थी 


मंजिलें मिल जाती थी


पर आज की जिंदगी चलती है लोन से


पहले चलती थी मौन से


अब है फिदा लोन पर


गाड़ी , बंगला और ज़मीं खरीदी 


शादी में दहेज खरीदा 


किया दिखावा बड़ा


पूछा अब क्या हुआ ? 


आवाज आई ..........


किश्तें चुकाए जा रहा हुं


खून पसीने से कमाए जा रहा हुं 


वही दूसरों को देखकर 


ज्यों लंगूर को देखकर 


वानर भैया अपनी टांगें तुड़वाए जा रहा है


अब तो किश्तें भी चुकती नहीं 


स्वयं चुके जा रहा हुं


मूल खड़ा है अब बेटा ब्याज चुकाए जा रहा है 


बिक रहे हैं घर बार


वो लहराती गेहूं की डोरियां


क्यों कि साहब पहले जिंदगी चलती थी मौन से


आज चलती है लोन से


किश्तें चुकाए जा


बड़ा नाम कमाए जा 


जिससे पैसा लिया है 


उस भगवान के चरण दबाए जा 


दिखावे के चक्कर में राम नाम सत्य है दुहराए जा । "


 


 


 


गुमनाम कर ही लिया है तूने ए जिंदगी 


एक रस्म और कर दे 


मेरी सांसों को हवाले कर किसी के 


मुझे दुनिया से विदा कर दे


बेगुनाह कहते हैं लोग खुद को मगर गुनेहगार है सभी


मुझे खुद से अलग कर दे


जिंदगी तू भी एक खता कर दे 


किसे मालूम था कि बर्बादी अपनी कुछ ऐसी होगी 


जिसने बर्बाद किया है जिंदगी उसे भी खबर कर दे


जिंदा नहीं है हम 


हम जिंदा लाश बनकर रह गए हैं 


लोग सबूत मांगेंगे मौत का 


जिंदगी सांसों को जिस्म से अलग कर दे 


हाथ गए थे हम खुदा से मगर निराला की दास्तां और धनपतराय की दरिद्रता ने उम्मीद दे दी 


जाने अंजाने में हमने जो भी कहा


ए जिंदगी हमें माफ कर दे । " 


____________________________


 


 


" मची विश्व में कोरोना की हाहाकार है 


ये तो मनवा तेरी करनी की पुकार है 


सड़कें खाली , नगर खाली 


खाली हुए तेरी उम्मीदों के आशियाने सारे 


भूल बैठा था तू वह गांव की मूरत 


माटी की वह गंध 


हरे - भरे सरसों से भरे खेत 


वो बाजरे की बालियां 


बासमती की बिखरी वह सुगंध 


देश छोड़ा तू प्रदेश छोड़ा 


पहुंचा विदेश तू 


मिटी न तेरी लालसा 


करता रहा मनमानी 


दौलत की खातिर भूल गया मां की वो लोरियां 


बाप के कंधों पर ज्येष्ठ की तपती धूप में 


तेरी खातिर राशन की वो बोरियां 


भूलाया बहन का प्यार वह


भूल बैठा दादा - दादी का वो लाड़ प्यार 


आकाश में उड़ा , वहीं बैठ गया तू 


अब क्यों पछतावे मनवा 


ये तो न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण की मार है 


आज क्यों दूर देश में बैठा तू 


स्वदेश आने को आतुर है 


मच गई है त्राहि-त्राहि 


अपने को बचाने की 


घर वापस आने की 


विश्व के कोने-कोने में दूर बैठा 


क्यों रो रहा है तू 


पड़े हैं प्राण बचाने के लाले 


जब गया था तब नहीं सोचा तू 


फिर तो हजारों नहीं लाखों के फेर में पड़ा तू 


हिंद देश तो कुछ नहीं 


जो कुछ है वो विदेश है 


 


दूर देश की तो भाषा अच्छी, व्यवस्था अच्छी


अच्छी कमाई सबकी भलाई कहता था तू 


अब क्यों पछतावे मनवा ये तो तेरी करनी की मार है


कोरोना नहीं है ये ,तेरी ही करनी का रोना है 


क्यों डरता है ! क्यों आंसू धोता है !


अभी भी वक्त है मनवा 


उठ , जाग और सोच 


कदर कर उस मां की 


भारत मां की 


उस गांव की माटी की 


जिससे तू पला , बढ़ा हुआ "


   


     छविंदर कुमार 


पता देहात / मकड़चछा / डाकघर चाबा, तहसील / सुन्नी,जनपद/शिमला हिमाचल प्रदेश


 संपर्क नंबर


 ९४१८५ - १२९७९


 


 


 


💐💐💐💐💐💐


 


रोशन कुमार झा 


सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता 


मो :- 6290640716


 


-:  वह बेटियां नारी है  !:-। कविता :-1


 


तुम्हारा और मेरा न, यह बेटियां हमारी है ,


पूजा करने योग्य सरस्वती, दुर्गा वही काली है !


कल भी , आज भी और भविष्य की भी वही लाली है ,


तो हे ! दुनिया वालों सहयोग करो ,वह बेटियां नारी है !


 


पढ़ने दो , बढ़ने दो जब तक वह कुँवारी है ,


जब-जब आपद आई है , तब-तब बेटियां ही संभाली है !


भंयकर रूप धारी है !


रानी लक्ष्मीबाई बनकर, बेटियां ही दुष्ट को मारी है ,


गर्व है हमें हर एक बेटियां पर , 


वह तेरी मेरी नहीं , वह बेटियां हमारी हैं !!


 


उसे स्वतंत्र रहने दो , उसी के लिए धरती की हरियाली है ,


बेटियां से ही सुख-सुविधा सारी है !


वह बिहारी न बंगाली वह दुनिया वाली है ,


इज़्ज़त करो यारों , वह बेटियां नारी है !!


 


बेटियां ही लक्ष्मी उसी से होली,ईद और दीवाली है ,


अभी जो कोरोना जैसी महामारी है !


उससे भी लड़ने के लिए बेटियां तैयारी है ,


हम रोशन बेटियां की रक्षा के लिए, 


आप सभी पाठकों के समक्ष बनें भिखारी है ,


मेरी भिक्षा यही है , कि बेटियां की इज़्ज़त करो


वह तेरी मेरी नहीं वह बेटियां हमारी हैं ।।


 


######### कविता :- 2 #######


 


-:  बेटियाँ तुम्हारी भलाई हो   !:-


 


मैं नमक रोटी खाऊं , पर तुम्हारे लिए मलाई हो ,


वही करूं हम रोशन जिससे तुम्हारी बेटियाँ भलाई हो !


बेटियाँ तुम्हारे लिए हमें जग से लड़ाई हो ,


आगे तुम चलना और तुम्हारे आगे मेरी कलाई हो !


 


ऐसा नियम हो ग़लत की पकड़ाई हो ,


वही पढ़ूं , जिसमें बहन और बेटियों की भलाई हो !


तुम बहन, बेटियाँ क्यों डराई हो ,


उठो , उठो तुम तो तिरंगा फहराई हो !!


 


मेरे लिए नहीं , तुम्हारे लिए मिठाई हो ,


सपना है मेरी, 


बेटियाँ की अपने मन से ही विदाई हो !


तब तक उसकी पढ़ाई हो ,


बहन की साथ निभाये , सिर्फ भारत का ही नहीं,


निभाने के लिए दुनिया का ऐसा भाई हो !


 


आगे बढ़ने से जो बेटियों को रोकें, उस पर कारवाई हो ,


उसी पर इतिहास बनें जो, बेटियों की सुख-सुविधा 


के लिए कुछ न कुछ बनवायी हो !


तुम बेटियाँ ही लक्ष्मी , तू ही धन लायी हो ,


आगे बढ़ बहन पीछे-पीछे हम तुम्हारा भाई हो !


 


####### (3) #####


 


-: आइए वीर हनुमान तोड़िए कोरोना की गुमान !:-


 


कोरोना भगाने में असफल रहा कला और विज्ञान ,


तब हम निर्धन रोशन का पुकार सुनिए भगवान !


आइए आप ही पवनपुत्र वीर हनुमान ,


और तोड़िए ये दुष्ट कोरोना की गुमान !!


 


साईकिल से हवाई जहाज तक बनायें इंसान ,


पर आज कोरोना जैसी मुसीबत में


व्यर्थ रहा हम मानव के ज्ञान !


कोरोना भगाने के लिए लगाकर आयें अनुमान ,


तब अब जल्दी आईयें रामभक्त वीर हनुमान !!


 


वह शक्ति दो घर पर रहकर सरकार के नीति नियम लूं मान ,


बंद पड़े हैं, हाट, बाज़ार , दुकान !


पर्वत लिए उठा , आप में है परम शक्ति हनुमान ,


तब कोरोना से दूर करों प्रभु ! ताकि हम भारतीय


फिर से नव जीवन पाकर करूं भारत मां की चुमान !!


 


मां सरस्वती की दया से लिखा हूं कविता,भले ही मैं


रोशन कोरोना में हो जाऊं कुर्बान ,


पर हे! राम अपने भक्त हनुमान के माध्यम से


लौटा दे धरती की मुस्कान !


ये सिर्फ हमारी नहीं, समस्त मानव जाति की है ज़ुबान ,


तब कोरोना भगाने के लिए सिर्फ एक बार आ जाओ


पवनपुत्र हनुमान !!


 


####### (4) #####


 


-: हम सब अतिथि है !:-


 


सब यहां अतिथि है ,


सुख-दुख से जीवन बीती है !


आना-जाना ही तो रीति है ,


अमीर हो या गरीब अंतिम संस्कार के लिए


तो यही मिट्टी है !!


 


जीव-जंतु हाथी और चींटी है ,


क्या कहूं मैं रोशन यह ज़िन्दगी भी मीठी है !


जन्म लिए तो मरने का भी एक तिथि है ,


क्या हम क्या आप , हम सभी यहां के अतिथि है !!


 


जो कल जवान रहें, वही आज बूढ़ा हुए ,


समय के साथ कृष्ण-राधा भी जुदा हुए !


अमृत भी विष, विष भी समय के साथ सुधा हुए ,


समय की बात है यारों , समय बदलते होशियार भी बेहूदा हुए !


 


एक मां की ही बेटा सम्पत्ति बांटने में भाग लेते ,


पत्नी आते ही मां-बाप को त्याग देते !


जिसे पाल पोस कर बड़ा करते वही संतान अंतिम


वक्त आग देते ,


सब मतलबी है यारों , सिर्फ अपना काम पर ही दिमाग़ देते !!


 


तो कोई दिमाग़ लगाकर भी हारा , कोई हार


के बाद भी जीती हैं ,


सफलता-असफलता ही तो जिन्दगी की नीति है !


जिंदगी पूजा पाठ,लेखन कार्य ,अर्थ व्यवस्था, संस्कृति


और राजनीति में ही बीती है ,


तब हम आप नहीं ,कहों यारों हम सब अतिथि है !!


 


####### (5 ) #####


 


-:  वह अब हैं न मेरी दिवानी !   !:-


 


हम जो कहें वह मानी नहीं ,


इसलिए वह आज मेरी रानी नहीं !


उससे बढ़कर कोई स्यानी नहीं ,


दुनिया के लिए समंदर हूं , पर अपने पास 


पीने के लिए पानी नहीं !!


 


उसके अलावा मेरी कोई कहानी नहीं ,


जगा हुआ है मेरी सोई हुई वाणी नहीं !


अब लाभ- हानि नहीं ,


क्योंकि अब कोई मेरी दिवानी नहीं !!


 


उसके लिए हमसे बढ़कर कोई दानी नहीं ,


देते रहे, लेती रही उससे बढ़कर कोई स्यानी नहीं !


पता रहा छोड़कर जायेगी , फिर भी लुटाये हम रोशन


से बढ़कर कोई अज्ञानी नहीं ,


प्यार- मोहब्बत से जो दूर रहा उससे 


बढ़कर कोई ज्ञानी नहीं !!


 


हम रहें कुत्ता , वह कानी नहीं ,


सब कुछ देखी , फिर भी वह मुझे अपना मानी नहीं !


मुझे अपना बनाने के लिए वह कभी भी


अपने मन में ठानी नहीं ,


इसलिए वह आज मेरी रानी नहीं !!


 


  


पूर्णिमा शर्मा अजमेर

सावन


 


  दिल झूमे रे गाय रे झूमे रे गाय रे


    देख नजारे ये सारे हा हा देख नजारे


     काली घटाए,बहती हवाएं, महकी फ़िज़ाए


       वर्षा का पानी सावन के धारे दिल झूमें रे


 तेरे ही आँगन में आँगन के सावन में


  दिल को लुभाने लगे हैं हमें ये दिल को


    इंद्र धनुषी फूल ये सारे कांटो सहारे


     मन को लुभाने लगे हैं हा रे मन को लुभाने 


  दूर क्षितिज में अंबर को देखो


   धरती को चूमे लगते हैं ये कितने प्यारे


      नील गगन से चंदा भी देखे


        नदियाँ को सागर के द्वारे


   दिल झूमें रे गाय रे झूमें रे गाय रे देख नज़ारे…


                                 


                                    स्वयं रचित


                            पूर्णिमा शर्मा अजमेर


रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

.


                  कविता


 


              *मेरे गांव में*


               ~~~~~~


     संस्कारों की अनुपम संस्कृति,


     मनभावन प्यार लुटाती।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     सबका वो मान बढ़ाती ।।


 


     सब मिल आपस में रहते,


     शुद्ध भावना परोपकारी।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     जय हो भारत माता की।।


 


     धरा पुत्र है शान हमारी,


     सैनिक सच्चा हितकारी।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     सब है सब आज्ञाकारी।।


 


     घी दूध दही की बातें,


     मनमोहक खुशबू आती।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     चटनी की याद सताती।।


 


     मां के हाथों की रोटी,


     छप्पन भोग सी लगती है।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     छाछ राबड़ी बनती है।।


 


      पर्यावरण अपना साथी,


      डाल डाल पर पक्षी चहके।


      सुख ही सुख मेरे गांव में,


      हर घर हरियाली महके।।


 


      ©®


         रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)


रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

ज़नसंख्या


              ~~~~~~


         हम भारत मां के बेटे,


        अब धर्म निभाना होगा।


        जनसंख्या नियंत्रण संदेश,


        जन हित समझाना होगा।।


 


        यदि यही हाल बना रहा,


        तो समस्या बढ़ जायेगी।


        समय रहते नहीं सुधरे,


        जनसंख्या रूप दिखायेगी।।


 


       जीवन उपयोगी संसाधन,


       दिन प्रतिदिन वो घट रहे है।


       जनसंख्या नियंत्रण नियम हमें,


       अपने पास बुला रहे है।।


 


       हम दो हमारे दो भावना,


       अब सबको समझनी होगी।


       जनसंख्या पर रोक लगाकर,


       मानवता अपनानी होगी।।


 


      अन्न जल फल फूल हमारे,


      सब में सब की हिस्सेदारी।


      जनसंख्या नियंत्रण नियम ही,


      सकारात्मक पहरेदारी।।


 


       ©®


          रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)


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कैसा रहेगा मेरा भविष्य


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मदन मोहन शर्मा "सजल" कोटा।

*कलम*


~~~~~


जिंदगी के रंग भरती है कलम, 


कदम-दर-कदम दामन पकड़ चलती है कलम, 


 


जज्बातों के उड़नखटोले में बेतहाशा उड़ती गगन में, 


दोगले चेहरों से नकली नकाबों को पलटती है कलम, 


 


अवसाद भरे दो तन्हा दिलों की अधूरी दास्तान, 


प्रेम में अविरल दरिया सी मचलती है कलम, 


 


जख्मी होती है जब मानवता, तार-तार हो इंसानियत, 


धधकती चिता के माफिक हर पल जलती है कलम, 


 


तुलसी, सूर, रहीम, रसखान, जायसी, प्रेमचंद, 


रामचरित्र, महाभारत, छंद, चौपाई रचती है कलम, 


 


कौन कहता है कि पंचतत्व है सबसे ताकतवर, 


इन सबको अपनी नोंक पर रखती है कलम, 


 


"सजल" जीवन को मृत्यु में और मौत को जीवन में, 


होकर बेपरवाह फैसलों में बदलती है कलम।


🌹🌿🌾✍✍🌾🌿🌹


मदन मोहन शर्मा "सजल"


कोटा।


रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर, सी जी

दोहा विषय साथी


 


साथी तेरे साथ बिन, सूना यह संसार।


तुझसे सारी है खुशी ,जीवन है गुलजार।।


 


तुझसा साथी जो मिला, जीवन हुआ निहाल।


सारे दुख-सुख जानता जाने मन का हाल।।


 


जीवन साथी तुझ बिना, जीवन है बेरंग।


परदेसी कब आ रहे, लोटो करो न तंग।।


 


साथ तुम्हारा साथिया ,ज्यों बादल की धूप।


चढ़ता जितना रंग है, खिलता उतना रूप।।


 


प्यासी थी मैं तो कली, छिलके हुई बहार।


जीवन साथी ने दिया, देखो सचा प्यार।।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर, सी जी


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