डॉ कुसुम सिंह *अविचल*
1145-प्लॉट, रतनलाल नगर
कानपुर-208022
उ०प्र०
व्यक्तित्व-
सेवानिवृत पूर्व अधिकारी पंजाब नेशनल बैंक-कानपुर मण्डल
वर्तमान--अध्यक्ष-संयोजक आगमन साहित्यिक समूह- कानपुर इकाई
संस्थापक अध्यक्ष--'श्री सत्यसन्देश...एक संकल्प" साहित्यिक संस्था ,कानपुर
कृतित्व--
कविता लेखन,वैचारिक आलेख लेखन में रुचि
प्रकाशित कविता संग्रह--
"अनुभूति से अभिव्यक्ति तक"-2016
"गागर से छलकता सागर"2018
"क्षितिज के उस पार"--2019
लघु कविता संग्रह--
"हिमनद"--2017
"लहरों में समन्दर"--2018
इसके अतिरिक्त समय समय पर कविताएं,लेख,समसामयिक आलेख दैनिक,साप्ताहिक,मासिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।साझा काव्य संग्रहों,संकलनों व पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।
विभागीय,स्थानीय व राष्ट्रीय संस्थाओं से अनेक साहित्यिक सम्मानों से सम्मानित।
समय समय पर विभागीय,स्थानीय व राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा आयोजित वैचारिक सम्मेलनों,संगोष्ठियों में वक्तव्य,संवाद व काव्यात्मक गोष्ठियों में मंचीय प्रस्तुतियां।
कविता--1
महामारी कोरोनॉ संकट
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रक्तबीज सी व्याधि कोरोनॉ, पनप रही हर पल अबाध,
अदृश्य बना घातक विषाणु,मायावी दानव सी है साध,
श्वास हर रहा,प्राण ले रहा,कैसा फैलाया माया जाल,
आना होगा माँ असुर मर्दिनी ,खप्पर संग ले चंद्रहास।
संकट की है घड़ी विकट एकजुट होकर लड़ना होगा,
आपसी भेद भाव को भूल,कोरोनॉ अरि से भिड़ना होगा।
हो रहा विषैला पर्यावरण,यह सबसे बड़ी चुनौती है,
प्रकृति से छेड़छाड़ अनुचित,नितप्रति कर रही पनौती है।
क्रुद्ध हुई प्राकृतिक सृष्टि,प्रतिक्रियात्मक प्रकोप दिखाती है,
ऋतुचक्र कालक्रम बदल बदल,मानव को लक्ष्य बनाती है।
अब भी हम संभले नहीं अगर,यह आफत कहर मचाएगी,
प्राकृतिक चक्र यूँ ही टूटेगा,सृष्टि पर विपदा आएगी।
नित नई व्याधियों की आहट,नई नई विपदाओं की दस्तक,
वैज्ञानिक शोध पड़े चक्कर में,औषधि चिकित्सा ज्ञानप्रवर्तक।
मानव बम,मानव जनित विषाणु,खुद सर्जक दानव का मानव,
मानव-मूल्यों को भुला दिया,स्वयंभू मानव बना महादानव,
उलटी गिनती आरंभ हुई अब,बनना था विश्व की महाशक्ति
विध्वंसक विज्ञान ज्ञान लेकर,हो रही सृष्टि की महाविनष्टि।
विज्ञान हमारा सहयोगी,पर हावी जब हम पर होता है,
तो दनुजों की दुर्जेय शक्ति सा,निज अहंकार में खोता है।
मस्तिष्क संतुलन खो करके अनुचित करने लग जाता है दैवीय योग अस्तित्व छेड़, अपना प्रभुत्व समझता है।
है समय अभी सचेत हो हम,त्यागे विनाश के सब हथियार,
विश्वपटल समग्र होगा समृद्ध,ले विज्ञान ज्ञान के चमत्कार।
हैं भले धर्म सम्प्रदाय पृथक,है एक हमारा स्वर परचम,
मानव संस्कृति से एक है हम,भारत की शान न होगी कम।
स्वीकार हमें हरएक चुनौती,वरदान हमें नचिकेता सा,
जीवन अपना संघर्षशील,सौभाग्य अजेय विजेता का।
हम सजग रहें भयभीत नहीं,हम श्रेष्ठ सहिष्णु धैर्यवान,
वनवास नहीं गृहवास मिला है,समझो हम हैं भाग्यवन।
डटकर टक्कर देंगे इस व्याधि को,दुम दबा कोरोनॉ भागेगा,
सौगंध हमें अपनी संस्कृति की,विजयी भव अपना हिंदुस्तान।
जय हो भारत
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24-04-2020 रचनाकार
8318972712 डॉ०कुसुम सिंह*अविचल*
9335723876 1145-रतनलाल नगर कानपुर
208022(उ०प्र०
कविता-2
आशा-किरण
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माना कि संकट है घना,जीवन भी है कुछ अनमना,
झंझावातों से घिरा यह,विधि की है प्रस्तावना,
नैराश्य के वारिद से धूमिल,हो गयी आशा की किरणें,
है अमावस रात की लम्बी इसे पूर्णमास कर देंगे,
एक नया इतिहास रच देंगे,
फिर नई शुरुआत कर देंगे।
घुल गया है वायु में विष,श्वास लेते भी डर रहे हैं,
गतिमान जीवन थम गया है,क्लांत जीवन जी रहे हैं,
ऊर्जा को मूर्छा आ गयी,उल्लास बोझिल हो गया है,
पतझड़ सी उजड़ी शुष्कता को मधुमास कर देंगे,
एक नया इतिहास रच देंगे,
फिर नई शुरुआत कर देंगे।
लक्ष्य ओझल हो गया है,नेपथ्य में हैं पथिक सारे,
भंवर में है फंसा जीवन,दूर नज़रों से किनारे,
प्रकृति से खिलवाड़ करने की सजा हम पा रहे हैं,
भूल मानव से हुई है,अपराध का एहसास कर लेंगे,
एक नया इतिहास रच देंगे,
फिर नई शुरुआत कर देंगे।
जीवन की बगिया फिर खिलेगी,संगीत की धुन फिर बजेगी
सृजन होगा फिर नया,शुचि सत्य की नदियां बहेगी,
युग का नवल उत्थान होगा,साकार होंगे स्वप्न सारे,
कल्पनाएं नभ छुएंगी,प्रेम के सम्बंध पर विश्वास भर देंगे,
एक नया इतिहास रच देंगे,
फिर नई शुरुआत कर देंगे।
इस आपदा का अंत होगा,हर संभावना अंगड़ाई लेगी,
लहलहायेंगी फिर से फसलें,सोंधी मृदा फिर भू की होगी,
स्वीकार्य होगी सभ्य संस्कृति,आत्म निर्भर हम बनेंगे,
सद्गुणों से युक्त होकर,अवगुणों का प्रतिकार कर देंगे,
एक नया इतिहास रच देंगे,
फिर नई शुरुआत कर देंगे
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रचनाकार
डॉ०कुसुम सिंह *अविचल*
कानपुर
कविता--3
"सृष्टि सौंदर्य"
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उदित जो प्राची से तुम प्रभाकर,
पश्चिम में अस्ताचल को गमन वो,
हमें बताना गति अपने पथ की,
ऊषा से गोधूलि तक का भ्रमण वो।
वसुधा गगन संग क्षितिज बन उभरते,
सरिता की लहरों में सतरंग भरते,
चैतन्य करते धरा का जो जीवन,
प्राणी जगत सुप्त का जागरण वो।
रजनी के नायक रजत पुंज अम्बर,
अपना ठिकाना बताते नहीं हो,
किधर से हो आते,किधर को हो जाते,
अधूरे या पूरे,जताते नहीं हो।
तारों की बारात संग तुम कलानिधि,
कलाओं से अपनी जगत को रिझाते,
पूनम के चंदा की उपमा हैं अनुपम,
अमावस में सूरत दिखाते नहीं हो।
बरस के झमाझम जो बादलों तुम,
इंद्रधनुषी छटा से गगन को सजाते,
सूचित हमें हो कि किस लय गति से,
धरणी को तुम यूँ भिगो करके जाते।
पवन के झोकों बहो निरंतर,
दिशा ठिकाना हमे तुम बताना,
कि किस यति और किस मति से,
प्रवाह अपना बहाते चलते।
उपवन की कलियों जब तुम चटकना,
प्रफुल्लित हो करके तुम महकना,
रखना सुगन्धित महक बन्द अपनी,
बताना उसे जब तुम्हें हो बहाना।
भ्रमरों की गुंजन से गुंजित हो बगिया,
तितली भी फूलों का रस ले रही हो,
हरीतिम छटा में पुष्पों के सब रंग,
बेलों में डाली में जब तुम सजाना।
जो काट हिमखण्ड प्रस्तर से टकरा,
वन वन भटकती राहें बनाती,
हिमालय से चलकर बही हो जो गंगे,
अविरल विरल धार अपनी बहती।
भुवि पर उतर करके लहरों में बहती,
धरती की माटी को उर्वर बनाती,
राहों में नदियों नद संग समागम,
नियत लक्ष्य पा,जा उदधि में समाती।
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01-06-2019 रचनाकार
संपर्क सूत्र डॉ०कुसुम सिंह 'अविचल'
09453815403 1145--(प्लॉट स्कीम)
08318972712 रतन लाल नगर
09335723876 कानपुर-208022(उ०प्र०)
कविता--4
छू लेने दो अब मुझे शिखर
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रिश्तों का जंजाल हटा,हो जाऊं मुखर,हो जाऊं प्रखर,
अनुबंधों के कटिबन्ध हिले,छू लेने दो अब मुझे शिखर।
सम्बन्धों के लिए समर्पण ही,कर गया छलावा संग मेरे,
मैं रही सरलऔर सहज सदा,बिछे कपट जाल सम्मुख मेरे।
सम्बन्धों पर विश्वास सुदृढ,मेरी आँखों को भिगो गया,
नित धूल झौकता आंखों में,जीवन कटुता में डुबो गया।
अब सम्बंध सुहाते नहीं मुझे,हो गयी वितृष्णा इन सबसे,
अपनों ने ही किये प्रपंच,तो करूं शिकायत अब किससे।
खुद से ना कोई उपालम्भ,हर फर्ज निभाया शिद्दत से,
अपने ही छलते रहे सदा,खुद अपनी अपनी फितरत से।
रही अडिग जीवन पथ पर,बाधाएं विचलित कर न सकी,
हर मार्ग मिला,हर लक्ष्य मिला,सफलता ने मानों राह तकी।
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मो०9453815403 रचनाकार
8318972712 कुसुम सिंग *अविचल*
9335723876 कानपुर-208022 (उ०प्र०)
कविता-5
"रिक्तता"
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हरा भरा सुखदायी जीवन ,पलभर में ही रिक्त हो गया,
विचलित हुई गति जीवन की,भावी जीवन स्तब्ध हो गया,
छल-छद्म का त्रास मिला अपनों से,गैरों से कोई गिला नहीं,
सच का चोला ओढ़े था जो,अंतस से झूठा था,घात हो गया
अमिय कलश में गरल भरा, जीवन में हुआ भरम,
ज्ञात नहीं था छल का मुझको,इतना सरल नियम,
परिस्थितियां कुछ भिन्न हुई,कुछ वैसी ही बनी रही,
स्मृतियों के द्वार वेदना ने ले लिया जनम।
डगमग जीवन नैय्या डोली,अपनों ने जीवन खार किया,
चिन्तन लेखन पतवार बनी,बिखरे जीवन को निखार दिया,
जीवन से न कोई उपालम्भ,प्रारब्ध का लेखाजोखा है,
शुचिता धीरज दृढ़ता की शक्ति,जीवन प्रपंच को पार किया
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09453815403 रचनाकार
08318972712