निशा अतुल्य

रेशम की डोरी


 


स्नेह बंधन रेशम की डोरी


कलाई पर भाई के सजती


रक्षा सूत्र बांध कर बहना


हर विपदा भाई की हरती ।


 


सुख दुःख अपना साँझा करते


कोई विपदा कभी न ठहरे


सहोदर हम बाल सखा हैं


दूर रह,सँग हरपल रहते।


 


दिल के तार जुड़े ऐसे हैं


आहट हर सुख दुःख की होती


बहना को जब पड़े जरूरत


खड़ा भाई हर पल दिखता है ।


 


खुशियों का संसार वहीं है


भाई बहन का प्यार यहीं है


मन से होता मन का बंधन


इस रिश्ते का सार यही है ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


काव्यकुल संस्थान समाचार, रामांजलि

काव्यकुल संस्थान की काव्यात्मक रामांजलि में लगी भक्ति की डुबकी


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काव्यकुल संस्थान(पंजी) द्वारा ऑनलाइन "अंतरराष्ट्रीय काव्यात्मक रामांजलि" का आयोजन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय के संयोजन में किया गया जिसमें देश विदेश के तीस कवि एवं कवयित्रियों द्वारा भाव पूर्ण प्रस्तुति दी गयी। भारत अफ्रीका फिलीपींस के कलमकारों से सजे काव्य समारोह में प्रभु राम और राम मंदिर विषय पर केंद्रित ही रचनाओं का पाठ किया गया।


इस प्रकार के अनूठे आयोजन में अयोध्या मथुरा काशी तीनों धार्मिक केंद्रो के कवियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।


रामांजली काव्य अनुष्ठान की अध्यक्षता दिल्ली के वरिष्ठ गीतकार ओंकार त्रिपाठी ने की।उन्होंने अपने कविता पाठ में कहा


आओ शबरी के राम, तुम्हारा अभिनंदन।


हे मर्यादा के धाम, तुम्हारा अभिनंदन।


 आओ मिल दीप जलाएं अब, 


घर सुन्दर भव्य बनाएं अब,


कर रामलला का राज तिलक,


सिंहासन उन्हें बिठाएं अब।


 


तंजानिया (अफ्रीका)से कवि सी ए अजय गोयल की इन पंक्तियों को खूब वाहवाही मिली


हो नभ से पुष्प वर्षा, सुर दुन्दुभि बजाएं


भू पूजने को बृह्मा अवतार धर के आएं


प्रभु का महल हो ऐसा सारे महल लजाएं


खुद आके विश्वकर्मा बैकुण्ठ सा सजाएं।


संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय ने राममंदिर पर यह गीत पढ़कर ओज का संचार किया।


जो आंखों में अभिलाषा थी, उसको पंख मिलेंगे अब।


उस मंदिर के शिखर शिखर पर भगवा ध्वज फहरेंगे अब।


कार्यक्रम को ऊंचाई प्रदान करते हुए मंडला मध्यप्रदेश से वरिष्ठ गीतकार प्रो डॉ शरद नारायन खरे ने लोक भाषा में शानदार गीत पढ़कर मन जीत लिया।


मनीला फिलीपींस की कवयित्री अनुपमा सिंह ने राम के चरित्र पर कोमल संवेदना की कविता पढ़ी। जिसे काफी सराहना मिली।


वारणसी से देश के बडे गीतकार डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश की इन पंक्तियों ने वातावरण को राममय कर दिया


राम जी दशरथ नन्दन हैं,


शांति के सुख के स्यंदन हैं


राम साकार ईश के रूप


करते उनका वंदन हैं।


 अहमदाबाद से आत्म प्रकाश कुमार की ये पंक्तियां काफी सराही गयी


अब बनेगा भव्य मंदिर राम का।


नाम होगा अब अयोध्या धाम का।


मथुरा के रबेन्द्र पाल रसिक ने कहा


बाबरी परम्परा की बाबरी कुरीति मिटा


स्वाभिमान देश का बढ़ने को जा रहा।


मेरठ से राजकुमार शर्मा राज ने मुक्तक के माध्यम से कहा


 


राम हैं योद्धा सुभट,है अयोध्या श्री राम की।


यश,कीर्ति, वैभव, सम्पदा, युगपुरोधा श्री राम की।।


मुरादाबाद से राजीव गुर्जर की राम महिमा की पंक्तियां बहुत सराही गयी


राम-राह पर हम चल पाए


ऐसा वर दो मुक्तिधाम 


जीवनदाता कृपा करना


नमन सियवर जय श्री राम


अयोध्या से राजेश मिश्रा नवोदयी की रामभक्ति की कजरी ने वातावरण राममय कर दिया


 


पतित पावन अयोध्या नगरी नाम है.... राम जी का धाम है जी....


बहती सरयू नदी पावन, प्रकृति मनोहर लुभावन... जहां राम राम गूंजे आठोयाम है... राम जी का धाम है जी...


मुम्बई महाराष्ट्र डॉ हरिदत्त गौतम अमर ने सुन्दर गीत में कल्पना के स्वर भर दिए


हम कितने सौभाग्यवान जो घड़ी दिव्य पाई


राम लला का मन्दिर बनता देता दिखलाई


पुरी अयोध्या दुल्हन जैसी सज धज इतराई


वाल्मीकि के श्लोक मुग्ध तुलसी की चौपाई।


दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ अंजू अग्रवाल ने कहा


क्या प्रमाण दूं राम का


 कैसा प्रमाण दूं राम का ।


 पहले तुम रामायण पढ़ो 


उसके सातों कांड पढ़ो


फिर सारे वेद पुराण पढ़ो


फिर आचार्यों से 


 शास्त्रार्थ करो


तब मांगना तुम प्रमाण।


गाजियाबाद से इंजीनियर अशोक राठौर ने सस्वर कण्ठ से मुक्तक पढ़ते हुए अपनी रामन्जली इस प्रकार दी


दिया राम को वचन निभाता हिन्दुस्तान !


मंदिर का निर्माण कराता हिन्दुस्तान !


शिलान्यास की करी घोषणा दिल्ली ने,


बार--बार आभार जताता हिन्दुस्तान !


गाजियाबाद से डॉ उदीशा शर्मा ने कहा राम शत में राम तप में राम कण कण में।


दिल्ली से गीतकार शायर डॉ रामनिवास इंडिया के छ्न्द में कहा


' धर्म मर्यादा के उदाहरण हमारे प्रभु


आस्था और विस्वास के प्रतीक श्रीराम हैं।


लखनऊ से राजेश सिंह ने क्या खूब सजी नगरी गीत पढ़कर मन मोह लिया।


अहमदाबाद गुजरात से काव्यकुल संस्थान की प्रदेश अध्यक्ष नलिनी शर्मा कृष्ण ने बधाई गीत 'बधाई हो बधाई हो,हे राम तुम्हें बधाई हो।


कानपुर से लक्ष्मी शर्मा श्री,रांची झारखंड से डॉ रजनी शर्मा चंदा, छत्तीसगढ़ से संजय बहिदार , गाजियाबाद से आचार्य प्रद्योत पाराशर, मिथिलेश गुप्ता हर्ष,आगरा से प्रेमलता मिश्रा वीर,अहमदाबाद से डॉ गुलाब चंद पटेल,गोधरा गुजरात से प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़,कासगंज से डॉ रामप्रकाश पथिक, हनुमान गढ़ राजस्थान से शंकर लाल जांगिड़,आदि कवियों की काव्यात्मक रामांजली ने वातावरण को राममय कर दिया।


इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन का शुभारंभ डॉ उदीसा शर्मा की वाणी वन्दना से हुआ। अयोध्या से डॉ हरिनाथ मिश्र ने मंगलाचरण की चौपाई पढ़ी।कार्यक्रम के संयोजक डॉ राजीव ने इस भव्य समारोह का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन किया।


प्रेषक 


डॉ राजीव पाण्डेय


राष्ट्रीय अध्यक्ष


पंजी)


रश्मिलता मिश्रा

शिव शंकर आराध्य हैं


देवों के सरताज हैं


डम डम डमरू बजाते हैं


शीश से गंगा बहाते हैं


काशी उनको प्यारी है


अन्नपूर्णा छवि न्यारी है


त्रिशूल बड़ा मतवाला है।


नंदी पर मृग छाला है।


कैलाशी अविनाशी हैं


भोले घट-घट वासी हैं।


जपे राम की माला है


जग का वो खवाला है।


 


रश्मिलता मिश्रा


बिलासपुर


सी जी।


आशुकवि नीरज अवस्थी

*******रक्षाबंधन***********


जो नर हैं धरती पर उनकी , ना सूनी कभी कलाई हो|


हर भाई को एक बहन मिले, और बहनों के भी भाई हो|


रक्षाबन्धन के अवसर पर,रक्षा का वचन निभाएगें.|


कन्या संतति के सरंक्षण, हित सब जन आगे आएँगे|


बालिका अजन्मी की हत्या, जो नित कर रहे कसाई हैं|


जिस घर में बेटी बहन नही, वा घर आँगन दुख दायी है|


नीरज नयनन की आस यही भैया के संग भौजाई हो


हर भाई को एक बहन मिले, और बहनों के भी भाई हो|


××××××××××××××××××××××××××××××


मेंहदी भरे हाँथ बहना के और अखण्ड सुहाग रहे।


राखी सजे हाथ पर मेरे किंचित द्वेष न राग रहे।।


भाई-बहन का प्यार अलौकिक अतुलनीय धरती पर है,


हर भाई को बहन विधाता देना नीरज मांग रहे।


 


हम भावुक हो अश्रुबिंदु की भेंट समर्पित करते है।


वैभवशाली बहनो पर निज प्राण निछावर करते है।


नेह बहन भाई का जिसके सन्मुख दिनकर भी फीका।


बहनो के चरणों में मुद्रा महल अटारी धरते है


 आशुकवि नीरज अवस्थी मो.-9919256950


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

भीग रही आंखों में देखो


कई नयी पुरानी स्मृतियां


राह निहारे आता होगा भाई मेरा


राखी को ले ना हो विस्मृतियां। 


 


बचपन से अब तक की भूली बिसरी


यादों को जी लूंगी खुल हंसकर


आज लिपट भाई से इतराउंगी


कैसा है अब सपनों का घर।


 


उसने हंस दी राह निहारे


बहना खड़ी हुई है द्वारे


ममता की कैसी है माया


कैसी है री बता पुकारे।


 


बोला आंखों में आंसू को देख


कुछ पाने को खोना भी है पड़ता 


खुलकर हंसने वालों को भी


रोना भी तो है पड़ता। 


 


मन भावुकता में बह चला था


देख राखी, अक्षत, रोली, चंदन


थाल सजाये रेशम के धागों के संग


सावन में खड़ी है लेकर रक्षाबंधन। 


 


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल 


महराजगंज, उत्तर प्रदेश। 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गांव ,शहर, नगर की गलियों की


कली सुबह सुर्ख सूरज की लाली केसाथ खिली ।।


 


चमन में बहार ही बहार मकरंद


करते गुंजन गान।


मालूम नहीं उनकी चाहत जिंदगी


जान कब छोड़ देगी साथ।।


 


रह जाएगा चमन में रह जाएगा गम का गमगीन साया किसी नई


कली के फूल बनने का इंतज़ार।।


 


फिर कली खिली किस्मत या


बदकिस्मत से फूल बनी।   


 


आवारा


भौरें के इंतज़ार सब्र की सौगात सुबह फिर लम्हों केलिये जुदाई की याद में मिली।।


 


गली गली फिरता भौरा


बेईमान कलियों की गली में।


 


खुदा से कली के फूल


बनने की इल्तज़ा दुआ की


चाह राह में।।


 


गुल गुलशन गुलज़ार के चमन बहार में कली की मुस्कराहट


फूल की चाह आवारा भौरे का


उपहार।।


 


भौरे की जिंदगी प्यार का यही


दस्तूर ।                            


 


जिंदगी भर अपने मुकम्मल


प्यार की तलाश में घूमता इधर


उधर ।।                                


 


पूरी जिंदगी हो जाती खाक


भौरे को हर सुबह खिले फूलों का


लम्हा दो लम्हा साथ ही जिंदगी


का एहसास।।


 


पल दो पल के एहसास के लिये भौरे बदनाम आवारा दुनियां ने दिया नाम।।


 


भौरे की किस्मत उसके साथ


यही उसकी नियति जिंदगी प्यार


जज्बात।।  


 


इंसान की जिंदगी भौरों से कुछ


कम नहीं अपनी चाहत की खुशियों के फूल की करता


रहता तलाश।।


 


हर सुबह शाम लेता भगवान् का


नाम अपनी चाहत की कली की


डाली को दामन में समेटने को


परेशान।।


 


कभी एक इंसान की चाहत की


कली को दूसरा इंसान ही मसल


देता अरमानों पर गिरा देता आसमान।।


 


कभी अरमानो की कली के खिलते ही फूल बनते ही आ


जाता किस्मत के करिश्मे का


वक्त बेवक्त।।


 


आगे बढ़कर छीन लेता अरमानो का जमी आसमान तमाम मसक्कत इंतज़ार की काली फूल


सी जिंदगी की आरजू का आसमान।।


 


इंसान कभी जुदाई में कभी फिर


चमन सी जिंदगी में तमन्नाओ के


तरन्नुम में निकल पड़ता कभी


तन्हा कभी कारवां में भी तनहा


इंसान।।


 


रात की कली सुबह की फूल शाम


धुल को फूल सी जिंदगी इंसान।।


 


आवारा भौरों की तरह अपनी मंजिल मकसद की गलियो की


गलियों में भटकता।।          


 


ना जाने


कब हो जाती जिंदगी की शाम


दो गज़ जमीन पर लेता धुल की


फूल सी जिंदगी गुमनाम।।


 


 


 


 



नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुदा तेरा अजीब करिश्मा इंसान


तुझे अपने इल्म हुनर की देता तालीम आज इंसान।।


 


तू खुद ही खुद के करिश्मे से परेशान।


बड़े गुरुर से बनाया था तूने इंसान


खुद की इबादत का दुनियां में


मेहमान इंसान।।


 


इंसान ही तोड़ता तेरा गुरुर इंसान ही शैतान।


तू खुद ही सोचता होगा तूने इंन्सान बनाया या शैतान।।


 


तेरे वसूलों को आय दिन करता


तार तार तेरी ही कसमें खाता करता एक दूजे करता वार इंसान।।


 


इंसानी जज्बे के मायने बदल


गए रिश्ते मौका मतलब का


नाम तिज़ारत की इबादत का इंसान।।


 


इंसान ही कातिल एक दूजे का


धोखा मक्कारी मतलब फरोसी का सबब आज इंसान।।


 


खुद के गुरुर में पैरों तले रौंदता तेरी कायनात।


एक दूजे की पीठ में खंजर भोकता लेकर तेरा नाम इंसान।।


 


तेरे ही नाम की कस्मे खाता तेरा


ही तौहीन करता इंसान।


खुदा तू तो है मुंसिफ मिज़ाज़


तेरे यहाँ वकील नहीं।


तेरे यहाँ क़ोई दलील नहीं।


तेरी किताब में लिखा नहीं माफ़।।


 


इंसान फिर भी डरता ही नहीं


तेरे कहर का खौफ रहा ही नहीं


खुद को खुदा समझ बैठा इंसान।।


 


तेरा वजूद ही आज खतरे में है


हर रोज नई मुसीबत तेरी ही दुनियां में तेरे लिए पेश करता इंसान।।


 


तू रहीम है करीम है कब तक


माफ़ करता रहेगा हद से गुजरता


इंसान।


क़यामत किसने देखा है आय दिन


क़यामत के करिश्मे से रूबरू होता इंसान।।


 


क़यामत के तेरे हिसाब का करता


मज़ाक इंसान।


सच तो यही तू तो नेक नियति


का ईमान ।।


 


तू ही इंसानो में तूने ही बनाया शैतान।


तेरे ही सामने अहम मसाला है किसे माफ़ी दे किसे दे सजा का


पैगाम।।


 


इंसान को सजा दे या मारे शैतान


दोनों तेरी ही सजदा के इज़ाद। गैरत मंद तेरी ही कायनात को


करते बदनाम।।


 



कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे करुणा मयि मां शारदे*


******************


विद्या वाणी की देवी मां शारदे,


नित तेरी मैं आराधना करु,


ऐसी मुझे विमल मति दे,


गौ, गंगा की मैं नित सेवा करु।


 


हे मधुर भाषिणी मां शारदे,


तिमिर का तू नाश करती,


 कुविचार का तू सर्व नाश करती,


सबको सुविचार और ज्ञान दे मां।


 


हे शुभ्र वस्त्र धारणी मां शारदे,


जो भी तुम्हारे शरण में आये,


उसे सही राह बताना मां,


उसे सद् बुद्धि दे देना मां।


 


हे मां सरस्वती ऐसा वरदान दो,


दीन दुखियों की सेवा सदा करु,


राह से भटके राही को मैं सही राह बताओं,


नित नित तेरा ही ध्यान करु मां


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां जगदम्बा दया करो


********************


हे मां जगदम्बा दया करो,


हमें सत्य की राह बताओ,


कभी किसी को सताये नहीं,


ऐसी सुमति हमें देना मां।


 


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


अपनी कृपा वर्षा करो,


हम अज्ञानी तेरी शरण में,


हमें सही राह बताना मां।


 


ये जीवन तुम्ही ने दिया है


राह भी तुम्हें बताओ मां


हो गई है भूल कोई तो,


राह सही बताओ मां।


 


कभी किसी का बुरा न करुं,


दया भाव से हृदय भरो,


मस्तक तुम्हारे चरणों में हो,


ऐसी बुद्धि हमें दे दो मां।


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


जग में न कोई किसी जीव को,


पीड़ा कभी न पहुंचाएं मां,


ऐसी सब की बुद्धि कर दो।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे मां शारदे*


**************


हे मां शारदे


शब्द के कुछ सुमन है समर्पित तुम्हे,


बस चरण में इन्हें अब शरण चाहिए ।


 


हे मां शारदे


कण्ठ से फूट जाये मधुर रागनी,


गीत-संगीत में मुझे तू दक्ष कर दे।


 


हे मां शारदे


स्वर लहर में रहे भीगते तेरे तन वदन,


शारदा मां गुणगान नित करता रहूं।


 


हे मां शारदे


मिट सके तम के साये प्रखर ज्योति दो,


हंस वाहिनी शुभे शत् शत् नमन।


 


हे मां शारदे


मां मेरी तुम से है यही प्रार्थना कि


ध्यान में डूबकर गीत तेरे मैं गाता रहूं।


 


हे मां शारदे


साधना की डगर हो सुगम मां यहां


तम विमल मन मगन गुनगुनाता रहूँ।


 


हे मां शारदे


कल्पना के क्षितिज में नये बिम्ब हो,


चित्र जिनसे नये नित सजाता रहूँ।


 


हे मां शारदे


अवगुणों को मिटा दे


बुद्धि को सुमति कर दे।।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌹🙏🏻मां शारदे🙏🏻🌹


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


हे मां शारदे


रोशनी दे ज्ञान की


तू तो ज्ञान का भंडार है


हाथों में वीणा पुस्तक 


 हंस वाहनी ,कमल धारणी


ओ ममतामयी मां


इतनी कृपा मुझ पर करना


मैं सदाचारी बनूं


सत्य पथ पर ही चलूं


विरोध क्यूं अन्याय का


मुस्किलों में भी न घबराओ


हे मां शारदे


दूर कर अज्ञानता


उर में दया का वास हो


ज्योति से भर दे वसुंधरा


यही मेरी नित्य प्रार्थाना


यही मेरी कामना


यही मेरी वंदना


हे मां मुझे रोशनी दे ज्ञान दे


विद्या विनय का दान दें


हे मां शारदे 


हे मां शारदे।।


🌹🌹🌹🌹🌹🌹


📚 कालिका प्रसाद सेमवाल


          मानस सदन अपर बाजार


             रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


                  246171


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे मां वीणा धारणी वरदे*


********************


हे मां वीणा धारणी वरदे


योग्य पुत्र बन सकूं


ऐसा मुझे वरदान दे


वाणी में मधुरता दे


जीवन में सबका हित करु


ऐसा मुझे संस्कार दे।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


दृष्टि में पवित्रता दे


चित्त में सुचिता भर


आहार में सात्विकता देना


स्नेह में शुद्धता देना


जीवन में सत्यता देना।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


कर्म में सत्कर्म देना


व्यक्तित्व में रमणीकता देना


बुद्धि में दिव्यता देना


कला में निपुणता देना


सम्बन्धो में निर्लिप्तता देना।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

*मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम*


******************


जन जन के नायक है 


मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम,


 


दीन दुखियों के तारक है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


सबके कल्याण कर्ता है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


सब को सद् बुद्धि देते है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


सब के दुखहर्ता है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम


 


आओ राम मंदिर के निर्माण में


खुशियां मनाई दीप जलाये,


 


सबके घरों में समृद्धि लाए


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


भारत धरा के रक्षक है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


देश की पहचान है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।


********************


*कालिका प्रसाद सेमवाल*


*मानस सदन अपर बाजार*


*रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड*


कालिका प्रसाद सेमवाल

तमसो मा ज्योतिर्गमय


*******************


बसुधा का कण कण प्रमुदित हो,


ज्ञान और विज्ञान उदित हो,


बने व्यवस्था ऐसी भू पर


जिसमें जन का कल्याण निहित हो।


 


          क्षत विक्षत हो महिमण्डल


          विस्तृत जो अज्ञान अनय


          तमसो मा ज्योतिर्गमय।


 


प्रेम दया की ज्योति जगे,


द्वेष क्लेश दूर भगे,


हिंसा का हो सर्वनाश अब


मानव , मानव को न ठगे।


 


           तिमिर नष्ट हो भूमण्डल का


           मानव-उर हो ज्योतिर्मय


           तमसो मा ज्योतिर्गमय।


 


सुख समृद्धि सफलता जाए


कण कण में समरसता भाए


युग का बने प्रवर्तन ऐसा


जन जन में नव जीवन आए।


   


            जागे सब में दया भाव


            गूंज उठे संगीत मधुर मय


            तमसो मा ज्योतिर्गमय।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार गायत्री द्विवेदी 'कोमल'


माता का नाम-लल्ली देवी


पिता का नाम-स्व०रमेश चन्र्द द्विवेदी 


संरक्षक-वामदेव द्विवेदी (लल्ला)


शिक्षा-एम. ए.(राजनीति,हिन्दी)


जन्मतिथि-20/06/1997


प्रकाशित रचनाएं-साहित्य के चमकते सितारे (संयुक्त काव्य संग्रह), दीपोत्सव (संयुक्त काव्य संग्रह), दैनिक जागरण,अमर उजाला,हिन्दुस्तान जैसे राष्ट्रीय पत्र तथा अंडरलाइन जैसी पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित ।


प्राप्त सम्म्मान-दोहा सम्मान गुफ्तगू प्रयागराज,सारस्वत सम्मान नासिक,तहजीब ए लखनऊ सम्मान (लखनऊ)राष्ट्रीय रामायण मेला सम्मान चित्रकूट (2019, 2020), काव्यांजलि साहित्यिक संस्था कानपुर द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में गीत विधा में प्रथम स्थान प्राप्त किया 2018 में ।


विशेष-आकाशवाणी छतरपुर से काव्य पाठ तथा उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के कई कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ ।


पता -ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उ.प्र )पि.212645


 


 


(1)


 


शीर्षक-रक्षाबंधन


विधा -मुक्तक


 


धागों में बहनों का प्यार ।


खुशियों का झिलमिल संसार ।


रिश्तों को करने मजबूत,


आया राखी का त्यौहार ।।1।।


 


छायी चारों ओर बहार ।


झलके भ्रात बहन का प्यार। ।


हर्षित पूरा भारत देश,


आया राखी का त्यौहार ।।2।।


 


पूजा की थाली तैयार ।


बहना बैठी रूप सँवार ।


जल्दी आओ प्यारे भ्रात,


आया राखी का त्यौहार ।।3।।


 


चाहे ना कोई उपहार ।


भइया देना केवल प्यार ।


बहना करती इतनी चाह,


आया राखी का त्यौहार ।।4।।


 


बहना करती है चित्कार ।


जीवन में दुख की भरमार ।


प्यारा भइया हुआ शहीद,


आया राखी का त्यौहार ।।5।।


(2)


शीर्षक कमजोर नहीं तुम नारी हो


  विधा - गीत


 


खुद को जानो चिंगारी हो ।


कमजोर नहीं तुम नारी हो ।।


 


कब तक तुम अपमान सहोगी ।


निज बल से अनजान रहोगी ।


सदियों से प्रकृति दुलारी हो ।


कमजोर नहीं तुम नारी हो ।।


 


प्रलय-सृजन अंतस में पलते ।


कर्म दीप हर पथ में जलते ।


भाव यज्ञ नव तैयारी हो ।


कमजोर नहीं तुम नारी हो ।।


 


मातु शारदे लक्ष्मी काली ।


रूप कई हैं कृपा निराली ।


सच में तुम दुनिया सारी हो ।


कमजोर नहीं तुम नारी हो ।।


 


(3)


 


शीर्षक - जनसंख्या


विधा - गीत


 


और करें साधन हम खोज ।


जनसंख्या बढ़ती हर रोज ।।


 


धरती पर है बने दबाव ।


सूझे कोई नहीं बचाव ।


खेतों में नित बनें मकान ।


अन्न बिना मरते इंसान ।।


देती वायु विषैला डोज ।


जनसंख्या..............।।1।।


 


काम बिना भटकेंगे लोग ।


नए-नए होते हैं रोग ।


जिधर देखिए दिखती भीड़ ।


छोड़ परिंदे भागे नीड़ ।।


सोचो कैसी लगती पोज ।


जनसंख्या.............।।2।।


 


सुनिए बूढ़ी माँ की चीख ।


माँग रहे हैं बच्चे भीख ।


भूख यहाँ ले लेती जान ।


कुचले जाएँ नित अरमान ।।


करो नियंत्रण वाली खोज ।


जनसंख्या...............।।3।।


 


(4)


 


शीर्षक- गुरु जीवन जगत का सार है


विधा -मुक्तक


 


05/07/2020


 


 


सच में ज्ञान का आधार है ।


अपने में सकल संसार है ।


हर जन तथ्य यह स्वीकारता,


गुरु जीवन जगत का सार है ।।


 


उनसे खत्म होता अँधकार है ।


साक्षी ज्ञान वाला अवतार है ।


शत-शत बार चरणों में है नमन,


गुरु जीवन जगत का सार है ।।


 


होता प्राप्त जो भी अधिकार है ।


गुरु कर प्रेम शोभित तलवार है ।


देखो ग्रंथ भी ऐसा मानते,


गुरु जीवन जगत का सार है ।।


 


जिनकी बात सबको स्वीकार है ।


जिनका काम देना बस प्यार है ।


सब जन एक स्वर से कह रहे,


गुरु जीवन जगत का सार है ।।


 


अर्पित पद नमन बारंबार है ।


ईश्वर से जुड़ा सीधा तार है ।


प्यारी बात इतनी मत भूलना,


गुरु जीवन जगत का सार है ।।


 


(5)


 


शीर्षक-सावन


विधा- गीत 


 


सावन की अनुपम छटा, छाई है चहुँ ओर ।


तन में भरती ताजगी, मन में उठे हिलोर ।।


 


आम-नीम झूले पड़े, सखी-सहेली साथ ।


हँसी-खुशी से झूलतीं, लिए हाथ में हाथ ।


महुए का है पालना, अरु रेशम की डोर ।


सावन............ ।।1।।


 


दमक रही है दामिनी, गिरने लगी फुहार ।


हरी-हरी चूनर धरा, पहने दिखा निखार ।


दादुर-चातक कर रहे, स्वागत वाला शोर ।


सावन........।।2।।


 


कृषक खेत हल-बैल ले, मगन रहे कर काम ।


धान लगाती नारियाँ, लगतीं बड़ी ललाम ।


मेघ पंक्ति नव देखकर, नाच उठे हैं मोर ।


सावन..............।।3।।


 


 


आशुकवि नीरज अवस्थी

रक्षाबंधन


मेंहदी भरे हाँथ बहना के और अखण्ड सुहाग रहे।


राखी सजे हाथ पर मेरे किंचित द्वेष न राग रहे।।


भाई-बहन का प्यार अलौकिक अतुलनीय धरती पर है,


हर भाई को बहन विधाता देना नीरज मांग रहे।


 


हम भावुक हो अश्रुबिंदु की भेंट समर्पित करते है।


वैभवशाली बहनो पर निज प्राण निछावर करते है।


नेह बहन भाई का जिसके सन्मुख दिनकर भी फीका।


बहनो के चरणों में मुद्रा महल अटारी धरते है


 आशुकवि नीरज अवस्थी मो.-9919256950 


 


आशुकवि नीरज अवस्थी

*******रक्षाबंधन***********


जो नर हैं धरती पर उनकी , ना सूनी कभी कलाई हो|


हर भाई को एक बहन मिले, और बहनों के भी भाई हो|


रक्षाबन्धन के अवसर पर,रक्षा का वचन निभाएगें.|


कन्या संतति के सरंक्षण, हित सब जन आगे आएँगे|


बालिका अजन्मी की हत्या, जो नित कर रहे कसाई हैं|


जिस घर में बेटी बहन नही, वा घर आँगन दुख दायी है|


नीरज नयनन की आस यही भैया के संग भौजाई हो


हर भाई को एक बहन मिले, और बहनों के भी भाई हो|


××××××××××××××××××××××××××××××


मेंहदी भरे हाँथ बहना के और अखण्ड सुहाग रहे।


राखी सजे हाथ पर मेरे किंचित द्वेष न राग रहे।।


भाई-बहन का प्यार अलौकिक अतुलनीय धरती पर है,


हर भाई को बहन विधाता देना नीरज मांग रहे।


 


हम भावुक हो अश्रुबिंदु की भेंट समर्पित करते है।


वैभवशाली बहनो पर निज प्राण निछावर करते है।


नेह बहन भाई का जिसके सन्मुख दिनकर भी फीका।


बहनो के चरणों में मुद्रा महल अटारी धरते है


मो.-9919256950


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार राजेश तिवारी " मक्खन "

पं.राजेश कुमार तिवारी " मक्खन"


कवि / साहित्यकार


एम. ए.(संस्कृत ) बी. एड.


जन्म तिथि 1/12/1964


पता : टाइप 2/528 बी एच ई एल 


आवास पुरी भेल झांसी ( उ. प्र.)


सम्प्रति : जिला परिषद इण्टर कालेज भेल झांसी


मो. व वाट्सेप नं. 09451131195


पिता : श्री मनप्यारे लाल तिवारी


माता : श्री मति कौशिल्या देवी 


जन्म स्थान : ग्राम पिपरा पो . बघैरा जि. झांसी 


Gmail -- rajeshtiwari528bhel@gmail.com


विधा :कविता ,गीत ,गजल ,हास्य, व्यंग अनेक पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित ,आकाश वाणी से प्रसारित , कुछ चैनलों से प्रसारण अनेक मंचों पर काव्य पाठ एवं समाचार पत्र व मासिक पत्रिका का सम्पादन ।विशेषांक आदि ।


समीक्षा : तपस्विनी ( उपन्यास , लेखक सत्य प्रकाश शर्मा , सानिध्य बुक्स प्रकाशन नई दिल्ली )


सम्बन्ध : मंत्री ,सत्यार्थ साहित्य कार संस्थान झांसी 


               महा मंत्री , कवितायन साहित्य संस्था झांसी


               सचिव , नवोदित साहित्य कार परिषद भेल झांसी


               उपाध्यक्ष , प्रगतिशील साहित्य संस्था झांसी


सम्मान : ( निम्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है )


१. सत्यार्थ साहित्य कार संस्थान झांसी


२. कवितायन साहित्य संस्थान झांसी


३. सरल साहित्य संस्थान झांसी


४. निराला साहित्य संस्थान बड़ागांव झासी


५. काव्य क्रांति परिषद झांसी


६. बुन्देल खण्ड साहित्य संगीत कला संस्थान झांसी 


७. श्री सरस्वती काव्य कला संगम नगरा झांसी द्वारा साहित्य सम्मान 


८.विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा साहित्य सम्मान


९. वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई साहित्य सम्मान


१०. बुन्देली साहित्य व संस्कृति परिषद द्वारा विधान सभा भोपाल में साहित्य सम्मान


११. आचार्य श्री १०८ श्री ज्ञान सागर महाराज द्वारा साहित्यकार सम्मान


१२. नवांकुर साहित्य एवं कला परिषद झांसी द्वारा कीर्ति शेष पं. बन्द्री प्रसाद त्रिवेदी स्मृति सम्मान 


१३. विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा लक्ष्मी बाई मैमोरियल एवार्ड सम्मान


१४ . विश्व मानवाधिकार मंच द्वारा राष्ट्रीय गौरव सम्मान


१५. निराला साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवा सम्मान


१६. राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा भारत के साहित्य रत्न 


१७. विश्व हिन्दी रचना कार मंच द्वारा राष्ट्र भूषण सम्मान


१८. महात्मा गांधी साहित्य सेवा मंच गुजरात द्वारा महात्मा गांधी साहित्य सेवा सम्मान


१९. लोक कवि ईश्वरी साहित्य शोध संस्थान द्वारा सम्मान 


२०.हिंदी साहित्य अँचल मंच अररिया , बिहार द्वारा हिंदी साहित्य रत्न सम्मान 


२१. सनशाइन क्लब झांसी द्वारा सम्मान


२२. प्रतिध्वनि साहित्यिक मंच नई दिल्ली द्वारा प्रशस्ति पत्र 


२३. "नचिकेता बाल साहित्य सम्मान " महात्मा गांधी साहित्य सेवा मंच गांधी नगर गुजरात


२४. ईसुरी साहित्य शोध संस्थान मेढ़की झांसी द्वारा बुन्देली कवि सम्मान


२५. प्रशस्ति / सम्मान पत्र काव्य कला निखार साहित्य मंच सीतापुर उ.प्र. द्वारा


२६. हमरंग साहित्यिक मंच पटना , बिहार द्वारा सम्मान ।


२७.. तुलसी साहित्य अकादमी जिला इकाई छतरपुर म.प्. द्वारा सम्मान पत्र 


२८.काव्य कला निखार साहित्य मंच सीतापुर उ प्र द्वारा "योग साधक सम्मान"


२९. हमरंग साहित्यिक मंच पटना बिहार द्वारा "साहित्य भूषण सम्मान"


३०. अखिल भारतीय साहित्य परिषद जिला टीकमगढ़ द्वारा योग दिवस पर सम्मान पत्र


३१. अखिल भारतीय काव्य मंच मुम्बई द्वारा सम्मान पत्र 


३२. मातृका विवेक साहित्यिक मंच द्वारा "मातृका सारथी सम्मान" 


३३. दैनिक देश भक्ति मंच दिल्ली द्वारा सम्मान पत्र


३४. हम तुम एवं गजल शायरी और गंजल संध्या परिवार अखिल भारतीय साहित्य कवि सम्मेलन इटावा द्वारा साहित्य गौरव सम्मान


३५. राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा साहित्यिक गुरु इन्द्रा स्वप्न साहित्य सम्मान


३६. हमरंग साहित्यिक मंच पटना बिहार द्वारा सम्मान पत्र


३७. गांधी नगर साहित्य सेवा संस्थान चेरी ट्रेवल ट्रस्ट गुजरात द्वारा " गांधी नगर साहित्य सम्मान २०२० से सम्मानित ।


३८. संस्था राजस्थान भीनमाल जिला जालौर काव्य कला मंच द्वारा सम्मान पत्र


जहाँ विराजे राजा बनके,श्री सीता पति राम,


          ,मनुआ चलो ओरछा धाम ।।


 


पुष्य नखतर पैदल चलकर आते है नर नारी ।


सुनते राजा राम सभी की कहते महिमा भारी ।


लगती भारत भर में केबल,यही सलामी न्यारी ।


भूखी नही सो सकतीं कोई भक्त मंडली प्यारी ।।


अपने अपने हिय में ध्यावो,जो शोभा के धाम ।................................१


 


बैठे सुन्दर सिंहासन पर ,हीरा चमक रहा है ।


धनुष बाण है करकमलों में,चेहरा चमक रहा है ।


बाम भाग सोहै वैदेही,लघु भ्राता ललक रहा है ।


दुष्ट दलन के काजै उनका , बाहु फरक रहा है ।


भरा हुआ दरवार देख लो ,जो दीनो के दाम ।..................................२


 


राज काज सब धाम ओरछा के दिन भर निपटाते ।


मारुत सूत तब लाद पीठ पर रात अवध ले जाते ।


कनक भवन अरु धाम ओरछा दृश्य एक दिखलाते ।


 दूर दूर से दर्शन खातिर, नारी नर यहाँ से आते ।


भव्य चतुरभुज मंदिर से अब कोई नहीं है काम ।...............................३


 


पाताली हनुमान के दर्शन ,भक्ति भाव से करते ।


ये ही है वो राम दूत जो लाद पीठ पर चल ते ।।


केबल सीता राम नाम ये रात दिना ही जपते ।


जिनकी एक हुंकार मात्रसे दुष्ट निशाचर कपते ।


इननें ही प्रभु की सेवा हित रूप धरा अभिराम ।....................................४


 


दक्षिण दिश में वेत्रवती माँ वहती कलकल करती ।


जीवन का उत्साह सहज ही मानव उर में भरती ।


कंचन घाट की देखो शोभा क्या कमनीय कसकती ।


तट के तीर नीर अति निर्मल,मत्स्य किलोले करती ।


सच्चे मन से नहा के बोलो,जय जय सीताराम ।...................................५


 


 


                                  पं. राजेश तिवारी "मक्खन"


                                  शिक्षक जिला परिषद इण्टर कालेज भेल 


                                  पता::2/528 बी एच ई एल झांसी( उ.प्र.)284120


                                  मो09451131195


ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं


वृक्ष हमें देते है जीवन , ये जीवन सफल बनाओ ।


तीरथ व्रत और यज्ञ के पहले ,एक एक वृक्ष लगाओ ।।


वृक्ष धरा के भूषण है , ये करते दूर प्रदूषण ।


वसुधा का श्रंगार करो तुम ,पहना पादप भूषण ।।


देते प्राण वायु जो तुम को , दूषित को हर लेते ।


अर्थ धर्म अरु काम मोक्ष , ये चार पदार्थ देते ।।


इनसे सीता पता पूछते , राम ने कहा सुनाओ ।.......१...


पर उपकारी पेड़ सभी फल , फूल मूल सब देते ।


जिसके बदले में तुमसे ये , कहौ कहाँ कुछ लेते ।।


औषधि दवा जड़ी बूटी सब , तुम को प्राप्त कराते ।


वर्षा के हित बने सहायक , ग्रीष्म की छाह सुहाते ।।


सब तरू संत विटप बन रहते , शिक्षा कुछ अपनाओ ।।...........२


दातुन से ले दाह कर्म तक , इनका साथ रहा है ।


कथा भागवत में देखो तो , सुन्दर श्याम कहा है ।।


फूल फरै पर हेतु विटप ये , जीवन धन्य रहा है ।


जीवन वन से वन से जीवन , कैसा सत्य कहा है ।।


केवल माया में भरमाया , प्राकृतिक प्रेम बढ़ाओ ।..................३


ये उपकारी प्राणी है सब , इनको अब न काटो । 


जो है इन्हें काटने वाले , उनको भी अब डाटो ।।


मोहन बेनु बजावत तरु तर , दृश्य जरा तुम झाको ।


प्रभु तरु तर कपि डारके ऊपर , रामायन को आंको ।।


कार्बन ले आक्सीजन देते , सबको यह समझाओ ।..................४


तुलसी पीपल शमी आँवला , पूजें सब नर नारी ।


खड़ी आज अति विकट समस्या , परयावरणी भारी ।


अं धा धुन्ध कटाई करते , क्यों न वृक्ष लगाते ।


अपने पाउन आप कुल्हाड़ी , क्यों दुर्बुद्धि चलाते ।।


रोमावली माँ वसुधा की है , इनका दर्द मिटाओ ।..................५


जिन पर कोयल बैठ कूकती , पपिहा पिऊ पिऊ करता।


ऐसी पावन देख प्रकृति क्या , तेरा मन नही भरता ।।


आश्रम की शोभा है इनसे , खग मृग आश्रय दाता ।


इनकी सृष्टि कर अपने को , माने धन्य विधाता ।।


दस पुत्रो सम एक वृक्ष है , शास्त्रन सार सुनाओ ।..................६


तीर्थ वृत और यज्ञ के पहले , एक एक वृक्ष लगाओ ।।


रचयिता


राजेश कुमार तिवारी "मक्खन"


पता ...टाइप 2/528 आवास पुरी बी .एच.ई.एल. झांसी (उ.प्र.)पिन नं० 284120


मो.नं.09451131195


 


युवराज आपका अभिनन्दन , ऋतुराज आपका अभिनन्दन ।।


 


नूतन पल्लव परिधान पहिन ,


लतिकायें वंदन वार बनी ।


कर केलि कोकिला कूक रही ,


मंजरी आम तरु आन तनी ।।


अलि यत्र तत्र करते गुन्जन ।..............................१


 


मद मस्त हुए मधुकर आके ,


गुन गुन करके मड़राते है ।


कलियों का करते आलिंगन ,


चुम्बन ले के उड़ जाते है ।।


वहे वायु ऐसी जैसे हो नन्दन ।........................२


 


 सरसों की प्यारी क्यारी पर ,


देखो तितली मड़राती है ।


कभी इत आती कभी उत जाती , 


पीकर पराग इठलाती है ।।


सुन्दर सदृश्य का अभिवंदन ।.......................३


 


बागों में बहारें आने लगी ,


तरुओं पर छाई तरुनाई ।


मानव के मन भी उमंग भरे ,


बाकी वसंत की ऋतु आई ।।


सुमनान्जलि सहित करू वंदन ।......................४


 


ऋतुराज आगमन शुभ होवे ,


जन मानस में सद्भाव भरो ।


इस सृष्टि के हर प्राणी का ,


कल्याण करो कल्याण करो ।।


दुनिया में कही न हो क्रन्दन ।...........................५


 


राजेश तिवारी "मक्खन"


झांसी उ.प्र.


 


 


माँ जगजननी जगत धात्री जगपालन कारी ।


उमा रमा ब्रह्माणी माता माँ भव भय हारी ।।


माँ सीता सावित्री गीता माँ सबसे प्यारी ।


माँ की महिमा मैं क्या वरनु माँ सबसे न्यारी ।।......१


 


माँ कबीर की साखी सुन्दर , माँ काबा काशी ।


अल्प बुद्धि से मैं क्या कहदू , महिमा है खासी ।।


माँ तुलसी की रामायण है , मीरा पद वासी ।


माँ की कृपा कटाक्ष होत ही, दुर बुद्धि नासी ।।.......२


 


माँ वेदों का मूल स्रोत है , माँ मंगल वाणी ।


माँ है सब सुख सार यार , माँ ही है कल्याणी ।।


माँ ही स्वर की शुभ देवी है , माँ वीणा पाणी ।


मातृ की प्रेरणा से उपजत है , निरमल हिय वाणी ।।.......३


 


माँ गंगा यमुना कावेरी , सरस्वती सतलज है ।


शीतल मंद सुगंध पवन नित , माँ ही यह मलयज है ।।


माँ पाटल चम्पा वेला , माँ पावन पुष्प जलज है ।


माँ ही नृत्य मोर की थिरकन , माँ ही एक सहज है ।।..........४


 


माँ ममता का मान सरोवर , हिमगिर उच्च शिखर है ।


माँ पूनम की धवल चांदनी , दिनकर ज्योति प्रखर है ।।


माँ जिस पर करुणा कर देती , उसका भाग्य निखर है ।


जिस पर माँ की भ्रगुटी टेड़ी , वह तो अवश्य बिखर है ।।........५


 


माँ धरती की हरी दूब है , माँ केसर की क्यारी है ।


सकल विश्व में श्रेष्ठ हमारी , भारत माता प्यारी है ।।


यह पूरब के पुण्य हमारे , सुन्दर मति हमारी है ।


दिये मातु संस्कार सुमति संग , निश्चत बुद्धिसुधारी है ।।.........६


 


माँ धरती के धैर्य सरीखी , माँ ममता की खान है ।


माँ की उपमा केवल माँ से , माँ सचमुच भगवान है ।।


मातृ भूमि की महिमा माने , वह ही देश महान है ।


मक्खन सा मन जिसका होता , वही सही इंसान है ।।................७


 


माँ सामाग्री शकुन्तला है , माँ सु नीति की जननी ।


माँ सुरेश की सह धर्मणी , माँ सु भ्रात की भगनी ।।


दिव्य नीति की ज्योति जलाई बनी सुभग ये सजनी ।


वह अनन्त आकाश सुशोभित हुई शुभ तारा गगनी ।।..................८


 


कवि 


राजेश तिवारी "मक्खन "


टाइप 2/528 भेल झांसी उ. प्र.


9451131195


ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं


इस धरा का इस धरा पर सब धरा रह जायेगा ।


(चिन्ता तज चिन्तन करो , साथ में क्या जायेगा ।)


काम ऐसे कर तू वन्दे यश जगत रह जायेगा ।।


                                             अर्थ आये भी भला तुम धर्म मय अर्जन करो ।


                                             नीति की करना कमाई अंश कुछ अर्पन करो ।।


                                             पाप का पैसा तेरा सब , पाप ही कर वायेगा ।।.......१


जिनकी खातिर कर्म निदिंत तू हमेशा कर रहा ।


कनक सी काया कलश में पाप को क्यों भर रहा ।।


पाप का तेरा महल यह , देखते ढ़ह जायेगा ।।..........२


                                             पाप से यदि की कमाई काम न कुछ आयेगी ।


                                            कर्म यदि सुन्दर किये तो नाम दुनिया गायेगी ।।


                                            कर्म जो शुभ या अशुभ हो भोगना पड़ जायेगा ।।.......३


स़ोच लो जाना कहा है स्वर्ग में या नरक में ।


ईश कण कण में समाया सोच तेरे फरक में ।।


त्याग तप सम योग जीवन हो सफल सब जायेगा ।।........४


 



शिक्षक जि . परि . इ . का . भेल (झांसी )


9451131195


ंंंंंंंंंंंंंंंंंं


 


 


 


 


 


 


 


कवियत्री "श्रेया कुमार

"मां "में जवान हो रहा हूं,


 बोला मेरा बारह वर्ष का बेटा ,


"आईने -में "देख कर खुद कर,


'देखो 'अब मेरी हल्की-हल्की मुछें भी उग आई है ...


सुनती रही उसकी बातें पर बातों पर ध्यान नहीं दिया 


बेटा फ़िर से बोला मां देखो" ना 


मैं जवान हो गया..


 खाने में पूर्ण पौष्टिक भोजन दो.. 


अब रोज बादाम ,दूध, घी की मात्रा बढ़ा दो 


रोटियां भी दो से तीन कर दो...


 हंसी आ गई सुनकर उसकी बातें कहां अच्छा आज क्या हो गया?


 बेटा फ़िर से बोला मां मैं जवान हो गया...


मां बस कुछ साल की बात और है.. सब तक़लीफे दूर हो जाएंगी 


जब मेरी कोई अच्छी -सी 


"सरकारी -नौकरी" लग जाएगी 


मैं अपनी हंसी को रोक ना पाई,


 कहां.. हां इंतजार रहेगा ,'बेटा फिर गंभीर मुद्रा में बोला..


' मां ,सुनो ना मैं जवान हो गया '


देखो आपके कंधे तक आ गया हूं... थोड़ा "दुबला -पतला" सा खुद को पा रहा हूं ...


मां कहीं खेलों में या व्यामशाला में इंतजाम करा दो ...


देखो पढ़ाई के साथ-साथ खेलों की कोचिंग भी करा दो !


हूं ...... सर को हिला कर


समर्थन किया 


क्या कहती बेटे से ?खर्च बहुत बढ़ गया ?


बेटा फ़िर से बोला मां ..मैं जवान हो गया 


अब बारी मेरी थी ,प्रश्नों की पूछा.. फिर क्या बनोगे बड़े होकर 


आजकल लोग नाम से ही नहीं


 ओहदे और पैसों से पहचाने जाते हैं.. अभी से सभी इंतजाम करना होगा "लोन- वोन" का जुगाड़ करना होगा


 बेटे ने कहा,' मां ,मैंने मन में ठाना है ...


तेरा ही नहीं ,'मां भारती का कर्ज चुकाना है'…..


 जवान ,'उम्र से नहीं शरीर से नहीं हमेशा जवान ही रहना है 


मां मुझे हिंदुस्तान का जवान होना है 


ध्यान रखना "मेरी मां" मेरा कहीं एप्लीकेशन अस्वीकार ना हो जाए खानपान मेरा रखरखाव अब तुमको और अच्छे ढंग से करना है....


" अस्सी का होकर".. भी हमेशा "जवान ही कहलाऊं"...


 मां ,मैं अब तेरा बेटा नहीं "मां -भारती" का बेटा भी कहलाऊं ..


 मुझे तुम्हारा ही नहीं" 'हिंदुस्तान की मिट्टी' का भी 'कर्ज -चुकाऊ '….


मां मुझे "भारतीय -आर्मी" में जवान होना है ....


सुनकर ,उसकी बातें फक्र से 


मैंने कहा कि हां ,अब मेरा बेटा जवान हो रहा है ..


अब मेरा बेटा जवान हो रहा है ..


जय हिंद, जय भारत ,जय जवान, जय किसान ,जय विज्ञान।


 


"..नई दिल्ली110063


 मिलनसार अपार्टमेंट


 


सुषम दीक्षित शुक्ल

ऐ! भावी भारत के नव कर्णधार ।


 


ऐ! युवा शक्ति नव सृजनकार ।


 


तेरे कंधों पर है देखो ऋण अपार। 


 


 है तुमसे ही आशा अब लगातार।


 


 तुम ही हो राष्ट्र धर्म के सूत्रधार।


 


इतिहास रचो ऐ! सृजनकार ।


 


 है भारत माँ की यह पुकार ।


 


 तुमको पालन करने सारे संस्कार 


 


 मां बहनों के रक्षक तुम होनहार।


 


 पूर्ण करोअपनो के सपने हजार।


 


चुकता कर दो माँ का दुलार ।


 


गाथाएँ लिख दें कलमकार ।


 


ऐ! भावी भारत के नव कर्णधार।


 


ऐ ! युवा शक्ति नव सृजनकार ।


अविनाश सिंह

*हाइकु:-विषय-दोस्ती।*


*******************


दोस्ती दिवस


आता साल में एक


लगे फरेब।


 


मित्र बनाओ


मन से अपनाओ


साथ निभाओ।


 


दोस्त हो ऐसा


बिन आंख वो देखे


तुम्हारे आँसू।


 


मित्र हो ऐसा


न करे भेदभाव


रहे समान।


 


दोस्ती हो ऐसी


कृष्ण सुदामा जैसी


देखें दुनियां।


 


सुख या दुःख


हो आंखों के सम्मुख


सच्चा वो मित्र।


 


सच के साथ


आजीवन चलता


दोस्ती का रिश्ता।


 


पिता का हाथ


दोस्त का दिया साथ


रहे हमेशा।


 


धूप में छाव


मुसीबत में साथ


रहते दोस्त।


 


दोस्तों की बात


रहे हमेशा याद


होते है खास।


 


 जो हँसा देता


आँसू को सूखा देता


वही हैं मित्र।


 


लगाता गले


पढ़े दिल की बात


असली मित्र।


 


सच्ची मित्रता


दूर करता शूल


बिछाए फूल।


 


बाँट लो दुःख


खोल दो हर राजा


दोस्तों के बीच।


 


मित्रता होती


सहारा जीवन का


भूल न यारा।


 


रखना तुम


पवित्रता से रिश्ता


चलेगी दोस्ती।


 


कैसे हो मित्र


जैसे भी रहे मित्र


मन पवित्र।


 


रहे जो साथ


पर्वत सा अडिग


वही है मित्र।


 


बीते जो पल


बचपन की याद


कैसे भुलाऊँ।


 


भूले न भूले


बचपन की बात


थे दोस्त साथ।


 


गिरने न दे


कभी झुकने न दे


वो यार दोस्त।


 


करो झगड़ा


हो जाना फिर साथ


यही है दोस्ती।


 


दोस्ती का धागा


मोतियों से पिरोना


दिखे सुंदर।


 


*अविनाश सिंह*


*8010017450*


*मित्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं*


संजय जैन (मुम्बई)

*अपनो से डर*


विधा : कविता


 


न जाने कितनों को,


अपने ही लूट लिया।


साथ चलकर अपनो का,


गला इन्होंने घोट दिया।


ऊपर से अपने बने रहे,


और हमदर्दी दिखाते रहे।


मिला जैसे ही मौका तो,


खंजर पीठ में भौक दिया।।


 


ये दुनियाँ बहुत जालिम है,


यहां कोई किसी का नही।


इंतजार करते है मौके का,


जो मिलते भूना लेते है।


और भूल जाते है अपने


सारे रिश्ते नातो को।।


और अपना ही हित


ऐसे लोग देखते है।।


 


आज कल इंसान ही,  


इंसान पर विश्वास नही करता।


क्योंकि उसे डर, 


लगता है अपनो से।


की कही उससे विश्वासघात,


मिलने वाले न कर दे।


तभी तो अपनापन का,


अभाव होता जा रहा है।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


29/07/2020


संजय जैन (मुम्बई)

*संगनी का साथ..*


विधा : गीत


 


मैं अब कैसे बतलाऊँ, 


अपने बारे में लोगो।


कैसे करूँ गुण गान, 


अपने कामो का मैं।


बहुत कुछ सीखने को, 


मिला मुझे यहाँ पर।


और निकाले जीवन के, 


30 वर्ष यहाँ पर।।


 


मिला सब कुछ जीवन में,  


जो भी चाहा था हमनें।


करू कैसे मैं इंकार की,  


मिला नहीं अपनों का प्यार।


जो किये थे पूर्व जन्म में,  


कुछ अच्छे कर्म हमने।


तभी तो मिला है मुझको, 


आप सब से इतना प्यार।।


 


अब फिरसे शुरू करूँगा,


नई पारी की शुरुआत।


इस पारी में हमें मिलेगा,   


जीवनसंगनी का साथ।


पूरे जीवन करती रही, 


वो सब लोगो का ख्याल।


अब बारे मेरी आई है, 


रखूँगा उसका में ख्याल।।


 


उम्र के इस पड़ाव पर,


नहीं मिलता किसीका साथ।


सभी अपने जीवन को,  


जीते है अपने अपने अनुसार।


सही में हम दोनों को, 


मिला जीने का ये अवसर।


तो क्यों शामिल करे हम,  


औरो को इस कार्य में।।


 


निभाएंगे हम दोनों किये थे,


जो एक दूसरे से जो वादे।


सुखदुःख की हर घड़ी में, 


रहेंगे साथ अब हम दोनों। 


जिंदगी को संग जीने की, बहुत बड़ी सच्चाई है।


इसे जितने जल्दी तुम, 


समझ लोगे तुम प्यारो।


हकीकत खुद व्य करेगी, 


समय के आने पर।।


 


जय जिनेंद्र देव की


संजय जैन (मुंबई ) 


30/07/2020


संजय जैन (मुम्बई)

*कार्यशाला से सेवानिवृती* 


विधा : कविता


 


कर्मशाला से विदाई का


अब समय आ गया।


तो दिल की धड़कने 


बहुत तेजी हो गई।


और अपनो के प्यार के लिए,


दिल बहुत तड़पने लगा।


साथ जिनके काम किया,


अब उनसे विदा ले रहा हूँ।


और अपनी नई जिंदगी में


प्रवेश करने जा रहा हूँ।।


 


कितना उतार चढ़ाव भरा रहा,


मेरा कार्य क्षैत्र का सफर।


कितने पराये अपने बने,


और कितने अपने रूठ गये।


जो रूठे वो अपने थे,


जो पराये थे वो अपने बने।


क्योंकि सफर जिंदगी का,


इसी तरह से चलता है।


जिसके चलते कर्मशाला से,


मेरे सफर का अंत हो गया।।


 


सीने में कुछ राज अब हमेशा के लिए दफन हो गये।


और नई सोच के साथ


नई जिंदगी का उदय हो गया।


और उनकी साजिशों का,


आज पर्दाफाश हो गया।


और हमको संभालने का


समय रहते मौका मिल गया।


और अपने परायों का 


आज से खेल खत्म हो गया।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


31/07/2020


संजय जैन (मुम्बई)

*भाई बहिन का बंधन*


विधा : कविता


 


भाई बहिन का बंधन,


जिसको कहते रक्षाबंधन।


स्नेह प्यार से बंधा रहे,


भाई बहिन का रिश्ता।


इसलिए तो आता है,


हर साल ये रक्षा बंधन।


बहिना सबसे मिलती है,


मायके में इसदिन आकर।


दिल सबके खिल उठाते है,


बहिना से जो मिलकर।


भागम भाग की जिंदगी से,


मिल नही पाता हम सब।


इसलिए तो कृष्ण ने,


बना दिया ये रक्षा बंधन।


ताकि मिल सके भाई-बहिन,


इस बंधन के कारण ही।


और याद करे वो मिलकर,


अपने बचपन की यादों को।


श्रेष्ठि निर्माता ने ही तो,


रचा संसार कुछ ऐसा।


जिसमे सभी को दिया,


कुछ न कुछ तो ऐसा।


जिससे सभी में बना रहे,


स्नेह प्यार के संबधं बंधन।


और मिलजुल कर मनाते रहे,


होलो दिवाली और रक्षा बंधन।


रक्षा बंधन रक्षा बंधन।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


02/08/2020


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