संस्मरण    डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी लोगों में सोच बदलने की सोच रहा हूँ।  

राम बाण🏹 अनछुए सवाल (संस्मरण)


 


मैं अपने स्कूल में बैठा था तभी एक महिला अंदर आने लगी।चपरासी ( महिला)ने रोका।अंदर नहीं जा सकती।


 


साहब से मिलना है तो नहा धोकर आ। बाम्हन आदमी से वैसे ही मिलने आ गई। साहब पूजा पाठ करते हैं, नहा धोकर स्कूल आते हैं। तू वैसे ही मिलने आ गई । वह महिला वापस चली गई 1 घंटे बाद फिर आई। चपरासी ने फिर उसे भगाना चाहा। तू फिर आ गई तेरे को बोली थी मैं नहा धोकर आ वैसे ही आ गई । वह बोली मैं नहाकर आई हूँ । साहब से दूर से ही बात कर लूंगी। एक बार साहब से मिलवा दो। महिला चपरासी मेरे चैम्बर में आई बोली सर वो (जातिसूचक शब्द निकालकर) आई है आपसे मिलना चाहती है। मैंने उसे आने को कहा वह दूर से ही अपनी बातें रखने लगी। उसे अपनी बच्ची का एडमीशन कराना था। यह घटना लगभग 30 वर्ष पहले की है। उस समय तहसील इतने विकसित नहीं थे। छुआछूत का प्रभाव था। वह बोली सर यदि आप मेरी बच्ची का एडमीशन अपने स्कूल में कर दें तो बहुत कृपा होगी। मैंने कहा यहाँ सरकारी स्कूल हैं, वहां एडमीशन ले लो यह प्राइवेट स्कूल है। यहां फीस लगती है।उसकी हालात से वह गरीब लग रही थी। वह बोली साहब मैं दूंगी। बस मेरी बच्ची को पाँचवीं तक पढ़ा दो। मैंने फिर कहा पांचवी तक ही क्यों? वह बोली साहब पांँचवी के बाद महाराष्ट्र में कोई स्कूल(जिसका नाम लिया) है, उसमे एडमीशन हो जायेगा। मैंने कहा यह जानकारी किसने दिया। वह सेंट्रल स्कूल के किसी सर का नाम बतायी कि चतुर्वेदी साहब ही तेरी मदद कर सकते हैं । सरकारी स्कूल में नाम लिखाने की डेट निकल गई ।और वहाँ पढ़ाई भी नहीं होती है। मैंने क्लर्क को बुलवाकर उसे एडमीशन प्रक्रिया बता दीजिये कहा।वह मुझे आश्चर्य से देख रहा था। कुछ बोला नहीं। उसके जाने के बाद एक शिक्षक और महिला चपरासी आ गये। सर इसकी बच्ची को एडमीशन दोगे? मैंने कहा क्यों क्या हुआ! सर वो स्वीपर (जाति सूचक शब्द दोहराई) है। तो क्या हुआ? वह बोली सर अपने स्कूल में सब अच्छी जात के हैं। एडमीशन नहीं होंगे,लोग क्या कहेंगे। मैंने चपरासी को बुलाया और कहा जब तुम्हारी नियुक्ति किया था उसके बाद चाय बनाने कहा था तब तुमने क्या कहा था। वह शांत हो गई। (मुझे याद है वह दिन! चाय के लिये कहा तो इसने कहा था सर आप हमारे हाथ की चाय पी लोगे। मैंने कहा हाथ की नहीं हाथ अच्छे से धोकर साफ स्वच्छता से चाय बनाओ । वह उस समय फिर बोली सर हम डेहरिया समाज के हैं। मैंने फिर कहा मुझे यह नहीं जानना है आप किस समाज से हैं आप स्वच्छता से चाय बनायें।) इस आशय से शिक्षक भी शांत रहा।और वह चपरासी के साथ बाहर चला आया।


 


सारे स्कूल में चर्चा थी कि स्वीपर की लड़की को पढाना पड़ेगा। सब लड़के उसे छुएंगे।एक दो पेरेंट भी आ गये। मैंने प्रार्थना समय पर छुआछूत का जन्म कहां से हुआ कैसे हुआ यह बच्चों को बताया तो स्कूल के शिक्षकों की आँखे खुल गई ।


 


वह महिला बहुत खुश थी उसकी बच्ची की जैसे मैंने जीवन बदल दिया । अगस्त माह में रक्षाबंधन पर वह राखी लेकर स्कूल आ गई ।चपरासिन को खल गया। तेरी नाक को शर्म नहीं है ! तू सर को राखी बांधने आ गई, साहब ने जरा सा मदद क्या कर दिये। तुम तो सिर पर बैठने लगीं। भाग यहां से। मुझे आवाज सुनाई पड़ी, भाग यहां से ..तो मैंने सोचा कुछ हो गया मैं बाहर निकला देखा दो तीन लोग, स्कूल बस के ड्राईवर उसे समझा रहे थे । मैंने पूछा क्या हो गया।वह बोली साहब आपके कारण मेरी बेटी की जिंदगी बदल जायेगी।इस कारण मेरा मन आपको भाई मानने लगा और राखी बांधने आई थी। मैं पांच मिनट तक शांत रहा कुछ नहीं बोला। वह बोली कि साहब कोई बात नहीं मैं यहां रख देती हूँ आपके निमित्त आप जैसा बांधना है या नहीं बांधना देख लेना। मैंने उसे पास बुलाया। मैंने कहा साल भर बिना राखी बांधे भी भाई- बहिन, भाई- बहिन ही रहते हैं। तो ..साहब इसलिए रखकर जा रही हूँ ।मैंने कहा बहिन का धर्म क्या है जानती हो?भाई क्या होता है? कभी जानने की कोशिश की ! या चले राखी बांधने ! भाई ने जेब से पैसा दे दिया बहिन ने राखी बांध दी हो गया, साल भर बाद फिर आयेगी राखी।साहब मैं अनपढ हूँ भाई बहन की मदद करता है सुनी हूँ आपने मदद करे तो राखी बांधने का विचार आ गया इसलिए आई थी। पर यहां सब लोग भी मना कर रहे थे । कैम्पस के अंदर कर्मचारी पास आ गये थे मानों मैं उनकी क्लास ले रहा हूँ। मैंने उस महिला से कहा कि मैंने अपनी बहिन के अलावा किसी से आज तक राखी नहीं बंधवाई।अगर राखी बांधना है तो बहन का फर्ज निभाना होगा। सब कर्मचारी और वह महिला शांत हो गये। जरा सी आवाज किसी की नहीं आ रही थी। तभी वह महिला बोली साहब आप बता दें मुझे क्या फर्ज निभाना है।मैंने कहा जब तुमको बहिन का फर्ज ही पता नहीं है तो तुम क्या राखी बांधोगी।आँसू निकल गये उसके। मुझे पता है साहब वह राखी रखी थाली उठा लायी तिलक लगाई राखी बांधी। मैंने पैसे देना चाहा पैसा नहीं ली।और अचानक मेरे पैर पड़ ली। मैं कुछ बोलता कि हम बहिन से पैर नहीं पड़वाते तो वह बोली साहब हमारे यहां छोटे बड़े का पैर पड़ते हैं।हालांकि मैं पैर पड़वाने के पक्ष में नहीं रहता। सभी देख रहे थे । दिन बीत गये उसकी लड़की का पांचवी के बाद महाराष्ट्र के स्कूल में एडमीशन हो गया । उसी समय मैं सड़क दुर्घटना में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दो साल के लगभग एडमिट रहा। वह महिला एक दो बार मुझे देखने नागपुर जहां एडमिट था गई। उसके पश्चात मैंने वहां का स्कूल आदि सब बेचकर सिवनी माता पिता के पास आ गया। यहाँ कालेज स्कूल खोल लिया। सन् 2018 में वह महिला छिन्दवाड़ा में मिल गई। दूर से उसने पहचान लिया और सड़क पर ही पैर पड़ लिया।उसके साथ उसकी बेटी थी जो डॉक्टर बन गई थी ।उसे माँ की हरकत अच्छी नहीं लग रही थी।क्योंकि वह पढ़ी लिखी थी। अपनी बेटी की ओर इशारा करते कहती है इन्हीं साहब के कारण तेरा अच्छे स्कूल में एडमीशन हो गया। और तू पढ़कर डॉक्टर बनी है। मैंने उसको बधाई दिया । वह थैक्यू बोली।उसकी माँ ने डॉटा ! पैर पड़ मैंने मना किया, मैंने कहा रहने दो ।लड़की भी पैर पड़नें में संकोच कर रही थी। संकोच स्वाभाविक था।पढ़ लिख जो गई थी।


 


 सोच थी यह ! पढ़े लिखों की ! और अनपढ़ों की! जिसमें पैर छूने की हो सोच हो या छुआछूत की।


 


    इसी सोच में डूबा हूँ मैं


डॉ अम्बरीष 'अम्बर  बाराबंकी

श्रीराम मंदिर का साहित्यिक स्वागत---


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                         दोहे


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बोल रहे जयहिंद सब ,उपवन बाग मिलिंद ।


अपने घर में आ गये, आज इमामे हिंद ।। १।।


(इमामे हिंद -भगवान राम)


 


ईश्वर या अल्लाह हों , राजनीति से दूर ।


दोनों एक प्रणम्य हैं , उन्हीं का जग में नूर।।२।।


 


मंदिर था प्रभु राम का, नहीं बहुत आसान।


योगी अंगद हो गये, मोदी श्री हनुमान।।३।।


 


हिन्दू हो या सिक्ख हो, ईसाई इस्लाम।


लेकिन है ध्रुवसत्य यह,सबके पूर्वज राम।।४।।


 


आज शम्सि मीनाई की,नज्म हुई साकार।


 इंकलाब की किरण को,मिला भव्य घर द्वार।।५।।


(इंकलाब की किरण-भगवान राम)


 


शायर विनय कुमार की, रामायण के राम।


अपने घर आये -हुई ' उर्दू तृप्ति तमाम।।६।।


(विनय कृत - विनय रामायण -उर्दू में )


 


रखते हैं श्री राम प्रति, उर्दू दां स्नेह।


'रामायण खुशतर' यहां,है 'रामायण मेह '।।७।।


(जगन्नाथ 'खुश्तर'कृत व सूरज नारायण 'मेह' कृत)


 


उर्दू -फारसी सभी के ,राम रहे मखदूम ।


'फारसी रामायण'पढ़ो,या कि पढ़ो 'मंजूम'।।८।।


(मखदूम-प्रिय, पहली -उर्दू शायर बदायूंनी कृत , दूसरी -' रामायण मंजूम'-शंकर दयाल 'फर्हत'कृत)


 


'रामायण का तर्जुमा' , भावों का भण्डार ।


श्री 'बहार' की भी पढ़ो, रामायण एक बार।।९।।


(बांके बिहारी लाल'बहार' कृत)


 


आलम वा रसखान के,राम चांद ज्यों ईद।


रामकाव्य रचकर गये,शायर 'चिश्ति'-'फरीद'।।१०।।


(ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती व बाबा फरीद)


 


'बेदिल' वा 'रसलीन' के,चित-चिंतन में राम ।


और 'हमीमुद्दीन' भी , लेते यहीं विराम ।।११।।


(चंद्रभान 'बेदिल', सै०गुलाम नबी'रसलीन'- बिलग्राम, हरदोई,हमीमुद्दीन नागौरी , राजस्थान)


 


विविध विलक्षण व विशद, होकर भी है ललाम।


संस्कृति को चिन्हित करें , सीता लक्ष्मण राम ।।१२।।


 


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                       डॉ अम्बरीष 'अम्बर'


                                बाराबंकी


काव्य रंगोली परिवार के द्वारा श्री सुंदरकांड का संगीतमय पाठ

काव्य रंगोली हिंदी साहित्य पत्रिका संबद्ध श्याम सौभाग्य फाउंडेशन के संयोजन में अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के अवसर पर 5 अगस्त 2020 को खमरिया पंडित स्थित एवं श्री हनुमान चालीसा का सत्संग सत्स्वर संगीत मय पाठ का आयोजन करने का संकल्प लिया गया है। स्थान होगा काव्य रंगोली के संपादक श्री मुन्नालाल मिश्र अनुज जी के आवास पर बना हुआ भगवान आशुतोष शिव शंकर जी का भव्य मंदिर प्रांगण और उसी प्रांगण में श्री रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ 5 अगस्त 2020 सायंकाल 5:00 बजे से कोरोना संकट एवम शाशनदेश के चलते बहुत अधिक भीड़ न करते हुए बहुत ही सीमित पाठकों द्वारा यह आयोजन हो रहा है आप लोग अपने घरों में काव्य रंगोली फेसबुक समूह के द्वारा सीधा सजीव प्रसारण देख सकते हैं ।बहुत-बहुत धन्यवाद जय श्री राम


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नीतेश उपाध्याय 


पिता- श्री उमेश उपाध्याय 


माता - श्रीमती पुष्पा उपाध्याय 


जन्म- 9-12-1995


जन्मस्थान- केवलारी उपाध्याय 


शिक्षा - बी.एस.सी ( सीबीजेड) एम.ए. (इंग्लिश)


 


पता- ग्राम केवलारी उपाध्याय पो- हिनौती जिला दमोह म.प्र.


ईमेल-


neeteshupadhyay96@gmail.com


मो- 7869699659


 


कविता-1


 खामोशी 


 


कई दर्द आसूँ बहाए बहुत खामोशी से 


गम दिल में जाने कितने छुपाए बहुत खामोशी से 


 


कुछ अपने थे जिनपर बहुत यकीन था मुझे 


वो भी एक एक करके सारे गवाए बहुत खामोशी से 


 


न कभी कुछ मिला मुझे उम्रभर खुदा से भी 


हर बार लौट आई दुआएँ बहुत खामोशी से 


 


यूँ तो तकलीफ बहुत आई जीने में


कई सितम रखे मैंने सीने में


हर दिन खिलाफ चली हवाएँ बहुत खामोशी से 


 


कई बार इलाज भी ढूँढा मर्ज ए मोहब्बत का मैंने 


काम आई न हकीम की दवाएँ बहुत खामोशी से 


 


देखकर उसे लगता था इश्क मौजूद है जहाँ में 


उनके बदलते रुख से लगा काश यूँ हम बदल पाएँ बहुत खामोशी से 


 


सब माँगा कि शायद कुछ तो मुकम्मल हो 


कभी पूरी न हुई जमाने से रजाएँ बहुत खामोशी से 


 


उनके रवैया और जमाने का रवैया बिल्कुल एक सा हो चला


इस दुनिया की भीड़ में अपना कैसे ढूँढ पाएँ बहुत खामोशी से 


 


थी महफिल पूरे शहर में उसकी दिल को तोड़कर रखने बाले


हम हर दिन यूँ ही टूट जाए 


कविता-2


 कह दिया


एक दर्द 


 


कभी आवारा हमें उन्होंने तो कभी नाकार कह दिया


घर पर बैठे रहे नाकाम से तो बेरोजगार कह दिया


 


दर्द आसूँ जखम सितम से भरा था दिल मेरा 


मेरी हालत देखकर मुझे गमों का बाजार कह दिया 


,,


 


कभी कहा इश्क है मोहब्बत है मुझे तुमसे 


उस हँसीने ने भी और करो इंतजार कह दिया 


,,,


 


न कोई जुल्म कभी किया वफा में


न कोई आलम कभी दिया जफा में 


फिर किस विनाह पर मुझे गुनहगार कह दिया 


 


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नहीं हवस न प्यास की तलब थी मुझे कभी 


जो मिला तन्हा तो मुझे जिस्मों का तलवदार कह दिया 


 


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कभी आँखों से गिरे अश्क मेरे 


तेरी निशानी के बतौर 


इन निगाहों को भी उन्होंने झूठा सा अखबार कह दिया 


 


,,,,


 


न बदला मैं तुम्हारी तरह उम्र भर कभी 


फिर भी मुझे ही बदलता सा किरदार कह दिया 


 


,,,


 


कोई पूछे मुझे कोई समझे मुझे इतनी काबिलियत नहीं 


 


शायद इसीलिए तुमने जाते जाते मुझे बेकार कह दिया 


,,,


 


मेरी मिटाकर हँसी जमीं के सारे मौसम तूने 


खुदको जमाने भर में गुलजार कह दिया 


,,,,


 


कविता -3


करेंगे - एक कटाक्ष 


 


सड़कों पर हो रही दुर्घटनाएँ, प्रभावित होती जीवन की धाराएँ


मेट्रो का तल में बस विस्तार करेंगे


ये झूठे वादे करने बालों अब इन समस्याओं का क्या सुधार करेंगे 


 


अपनों में भी नहीं सामंजस्यता एक बिल पास करने में भी आती है विपदा


और कहते हैं कई देशों में हम अपना व्यापार करेंगे 


 


नेताओं ने कहा था चुनाव के समय


लायेंगे विकासशीलता की एक नई लय


 ये मिथ्या के भाषण हमसे ये हर बार करेंगे 


 


सारे अधिकारी निलंबित हो 


जो कार्य में अपने विलंबित हो 


अब उठकर बोलना होगा


ये कब तक हमको लाचार करेंगे


 


ये देश है हिंदुस्तान मेरा यहाँ बलिदानों की रीत है 


होनी एक दिन नीरशता पर जागरुकता की जीत है 


जी लो देश को डुबाने बालों अब बाकी तेरे दिन चार करेंगे 


 


 कविता-4


नहीं बहाऊँगा


 


हाँ अब तेरी याद भी आएगी तो भी 


तेरी यादों में आँसू नहीं बहाऊँगा


कितना भी मन होगा तुमसे बात करने का 


पर अब पहले की तरह तुम्हे फोन भी नहीं लगाऊँगा


 


हाँ छोड़ आया हूँ वो वादे जिनपर तुम खरे ही नहीं उतरे थे 


मेरे ख्वाब मेरी आँखों में टूटकर यूँ बिखरे थे 


तो भी तुम्हे क्या लगा मैं अकेला ही बेमतलब सा ही जीता जाऊँगा 


 


तुमने अपने दिल से बेघर किया है मुझे दर्द तकलीफ तो बहुत हुई 


पर ऐसा नहीं कि तुमसे जुदा हुआ तो अपना नंबर भी बदल आऊँगा 


 


कभी हैरानी परेशानी भी बहुत होती होगी कभी कभी मुझे इन रातों में 


पर ऐसा नहीं कि तू मेरे साथ नहीं तो मैं रातभर सो नहीं पाऊँगा 


 


कोई गुनाह नहीं था वफा की ख्वाहिश रखना जानिब


अगर है भी तो मैं न यूँ नजरे जमाने से चुराऊँगा


 


 कविता -5


दहलाएँगे 


एक कविता आगामी स्वतंत्रता दिवस पर 


 


बहुत जलाए तुमने झंडे अब झंडे हम फहराएँगे


बहुत दिखाए दर्द थे तुमने अब हम तुमको दहलाएँगे 


 


खुशियाँ चेहरे पर पहले की तरह फिर से हम लाएँगे


इस बार तिरंगा जम्मू में इस बार से हम फहराएँगे


 


एकता का प्रतीक है भारत, सबसे अच्छा मीत है भारत 


क्या है भारत की स्वर्णिम गाथा सबको हम बतलाएँगे 


 


पत्थरबाजों पर ताला अब हाथों में कस जाएँगे 


अलगाववादियों के घर के घर सारे दूर कहीं बस जाएँगे 


करते है वादा खुदसे हम आतंकवाद भी जड़ से मिटाएँगे 


 


 


जो कहीं खो सी गई थी वो आवाजें खुशियाँ बाली


लाएँगे फिर से हम एक रोशन दुनिया बाली


आजादी की फिर से ज्वालाएँगे हाथों में आज उठाएँगे


 


 


जैसा भारत वर्षों पहले अपना कहलाता था 


खुद सूखी खाकर रोटी दूजों को नई रोज खिलाता था 


एक नवभारत मिलकर हम फिर से आज बनाएँगे


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की  महिमा  वर्णन


द्वादश पावन ज्योतिर्लिंगम्, महाराष्ट्र प्रान्त में है स्थित।


घुश्मेश्वर या घृष्णेश्वर, दोनों नामों से है चर्चित।


सुन्दर नैसर्गिक स्थल यह ऐल्लोरा में निकट गुफायें।


जनपद औरंगाबाद निकट,श्रद्धालु सदा दर्शन हित आयें।


ब्राम्हण इक शिव भक्त सुधर्मा,पत्नी सरल सुशील सुदेहा।


भई नहीं संतति इनके घर,सूना आंगन सूना गेहा।


बहन सुदेहा की घुष्मा से,ब्याह दूसरा ब्राह्मण कीन्हा।


परम भक्त शिव की थी घुष्मा,भये प्रसन्न पुत्र इक दीन्हा।


मिट्टी का शिव लिंग बनाकर, विधिवत पूजन अर्चन करती।


शिव मन्दिर के निकट सरोवर, प्रतिदिन उन्हें विसर्जित करती।


धूर्त पुजारी शिव मंदिर का, इस बालक का बध कर डाला।


निर्जीव देह को ले जाकर, फिर उसी सरोवर में डाला।


परम कृपा की शिव शंकर ने,बालक को जीवन दान दिया।


हो गये वहीं स्थित शिव जी, अनुरोध भक्त स्वीकार किया।


द्वादश ज्योतिर्लिंगम् का दर्शन,पावन परम महा फल दाई।


श्री रुद्र कोटि संहिता सहित,शिव पुराण ने महिमा गाई।


चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम।,


हे शिवशंकर हे गंगाधर हे गौरीपति तुम्हें प्रणाम।


     सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार

भगवान शिव के एकादश ज्योतिर्लिंग का विवरण तथा महिमा।


             --- एकादश--- 


शिव ज्योतिर्लिंगम् एकादश,अति पावन श्री केदारेश्वर।


श्री पर्वतराज हिमालय की,केदार श्रृंग पर शिवशंकर।


सुरनर मुनि यक्ष असुर पूजित ज्योतिर्लिंगम् यह अति पावन।


महिमा अमित शास्त्र में वर्णित, प्रकृति छटा अति रम्य सुहावन।


पश्चिम मंदाकिन के तट पर, शिव केदारेश्वर का मन्दिर।


पूर्व अलकनंदा के तट पर,श्री बद्रीनाथ विष्णु मन्दिर।


संयुक्त धार यह गंगा से, मिलती है देवप्रयाग जाकर।


नर नारायण ने शिव जी का,तप कठिन किया केदार शिखर।


ऋषियों के सम्मुख प्रगट हुए औघड़ दानी श्री शिवशंकर।


होकर भावविभोर उन्होंने,की स्तुति अरु पूजन अर्चन।


मैं अति प्रसन्न हूं वर मांगो, बोले गौरी पति जगबन्दन।


देवाधिदेव हे महादेव, मेरी विनती स्वीकार करें।


प्रभु ज्योतिर्लिंग स्वरूप यहीं,स्थित होने की कृपा करें।


ए्वमस्तु कह ऋषियों से, शिव करने लगे निवास वहीं।


केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगम्,तीरथ ऐसा अन्यत्र नहीं।


चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम।


हे शिवशंकर हे गंगाधर हे गौरीपति तुम्हें प्रणाम।


डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी

राम बाण🏹 अनछुए सवाल (संस्मरण)


मैं अपने स्कूल में बैठा था तभी एक महिला अंदर आने लगी।चपरासी ( महिला)ने रोका।अंदर नहीं जा सकती।


साहब से मिलना है तो नहा धोकर आ। बाम्हन आदमी से वैसे ही मिलने आ गई। साहब पूजा पाठ करते हैं, नहा धोकर स्कूल आते हैं। तू वैसे ही मिलने आ गई । वह महिला वापस चली गई 1 घंटे बाद फिर आई। चपरासी ने फिर उसे भगाना चाहा। तू फिर आ गई तेरे को बोली थी मैं नहा धोकर आ वैसे ही आ गई । वह बोली मैं नहाकर आई हूँ । साहब से दूर से ही बात कर लूंगी। एक बार साहब से मिलवा दो। महिला चपरासी मेरे चैम्बर में आई बोली सर वो (जातिसूचक शब्द निकालकर) आई है आपसे मिलना चाहती है। मैंने उसे आने को कहा वह दूर से ही अपनी बातें रखने लगी। उसे अपनी बच्ची का एडमीशन कराना था। यह घटना लगभग 30 वर्ष पहले की है। उस समय तहसील इतने विकसित नहीं थे। छुआछूत का प्रभाव था। वह बोली सर यदि आप मेरी बच्ची एडमीशन अपने स्कूल में कर दें तो बहुत कृपा होगी। मैंने कहा यहाँ सरकारी स्कूल हैं, वहां एडमीशन ले लो यह प्राइवेट स्कूल है। यहां फीस लगती है।उसकी हालात से वह गरीब लग रही थी। वह बोली साहब मैं दूंगी। बस मेरी बच्ची को पाँचवीं तक पढ़ा दो। मैंने फिर कहा पांचवी तक ही क्यों? वह बोली साहब पांँचवी के बाद महाराष्ट्र में कोई स्कूल(जिसका नाम लिया) है, उसमे एडमीशन हो जायेगा। मैंने कहा यह जानकारी किसने दिया। वह सेंट्रल स्कूल के किसी सर का नाम बतायी कि चतुर्वेदी साहब ही तेरी मदद कर सकते हैं । सरकारी स्कूल में नाम लिखाने की डेट निकल गई ।और वहाँ पढ़ाई भी नहीं होती है। मैंने क्लर्क को बुलवाकर उसे एडमीशन प्रक्रिया बता दीजिये कहा।वह मुझे आश्चर्य से देख रहा था। कुछ बोला नहीं। उसके जाने के बाद एक शिक्षक और महिला चपरासी आ गये। सर इसकी बच्ची को एडमीशन दोगे? मैंने कहा क्यों क्या हुआ! सर वो स्वीपर (जाति सूचक शब्द दोहराई) है। तो क्या हुआ? वह बोली सर अपने स्कूल में सब अच्छी जात के हैं। एडमीशन नहीं होंगे,लोग क्या कहेंगे। मैंने चपरासी को बुलाया और कहा जब तुम्हारी नियुक्ति किया था उसके बाद चाय बनाने कहा था तब तुमने क्या कहा था। वह शांत हो गई। (मुझे याद है वह दिन! चाय के लिये कहा तो इसने कहा था सर आप हमारे हाथ की चाय पी लोगे। मैंने कहा हाथ की नहीं हाथ अच्छे से धोकर साफ स्वच्छता से चाय बनाओ । वह उस समय फिर बोली सर हम डेहरिया समाज के हैं। मैंने फिर कहा मुझे यह नहीं जानना है आप किस समाज से हैं आप स्वच्छता से चाय बनायें।) इस आशय से शिक्षक भी शांत रहा।और वह चपरासी के साथ बाहर चला आया।


सारे स्कूल में चर्चा थी कि स्वीपर की लड़की को पढाना पड़ेगा। सब लड़के उसे छुएंगे।एक दो पेरेंट भी आ गये। मैंने प्रार्थना समय पर छुआछूत का जन्म कहां से हुआ कैसे हुआ यह बच्चों को बताया तो स्कूल के शिक्षकों की आँखे खुल गई ।


वह महिला बहुत खुश थी उसकी बच्ची की जैसे मैंने जीवन बदल दिया । अगस्त माह में रक्षाबंधन पर वह राखी लेकर स्कूल आ गई ।चपरासिन को खल गया। तेरी नाक को शर्म नहीं है ! तू सर को राखी बांधने आ गई, साहब ने जरा सा मदद क्या कर दिये। तुम तो सिर पर बैठने लगीं। भाग यहां से। मुझे आवाज सुनाई पड़ी, भाग यहां से ..तो मैंने सोचा कुछ हो गया मैं बाहर निकला देखा दो तीन लोग, स्कूल बस के ड्राईवर उसे समझा रहे थे । मैंने पूछा क्या हो गया।वह बोली साहब आपके कारण मेरी बेटी की जिंदगी बदल जायेगी।इस कारण मेरा मन आपको भाई मानने लगा और राखी बांधने आई थी। मैं पांच मिनट तक शांत रहा कुछ नहीं बोला। वह बोली कि साहब कोई बात नहीं मैं यहां रख देती हूँ आपके निमित्त आप जैसा बांधना है या नहीं बांधना देख लेना। मैंने उसे पास बुलाया। मैंने कहा साल भर बिना राखी बांधे भी भाई- बहिन, भाई- बहिन ही रहते हैं। तो ..साहब इसलिए रखकर जा रही हूँ ।मैंने कहा बहिन का धर्म क्या है जानती हो?भाई क्या होता है? कभी जानने की कोशिश की ! या चले राखी बांधने ! भाई ने जेब से पैसा दे दिया बहिन ने राखी बांध दी हो गया, साल भर बाद फिर आयेगी राखी।साहब मैं अनपढ हूँ भाई बहन की मदद करता है सुनी हूँ आपने मदद करे तो राखी बांधने का विचार आ गया इसलिए आई थी। पर यहां सब लोग भी मना कर रहे थे । कैम्पस के अंदर कर्मचारी पास आ गये थे मानों मैं उनकी क्लास ले रहा हूँ। मैंने उस महिला से कहा कि मैंने अपनी बहिन के अलावा किसी से आज तक राखी नहीं बंधवाई।अगर राखी बांधना है तो बहन का फर्ज निभाना होगा। सब कर्मचारी और वह महिला शांत हो गये। जरा सी आवाज किसी की नहीं आ रही थी। तभी वह महिला बोली साहब आप बात बता दें मुझे क्या फर्ज निभाना है।मैंने कहा जब तुमको बहिन का फर्ज ही पता नहीं है तो तुम क्या राखी बांधोगी।आँसू निकल गये उसके। मुझे पता है साहब वह राखी रखी थाली उठा लायी तिलक लगाई राखी बांधी। मैंने पैसे देना चाहा पैसा नहीं ली।और अचानक मेरे पैर पड़ ली। मैं कुछ बोलता कि हम बहिन से पैर नहीं पड़वाते तो वह बोली साहब हमारे यहां छोटे बड़े का पैर पड़ते हैं।हालांकि मैं पैर पड़वाने के पक्ष में नहीं रहता। सभी देख रहे थे । दिन बीत गये उसकी लड़की का पांचवी के बाद महाराष्ट्र के स्कूल में एडमीशन हो गया । उसी समय मैं सड़क दुर्घटना में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दो साल के लगभग एडमिट रहा। वह महिला एक दो बार मुझे देखने नागपुर जहां एडमिट था गई। उसके पश्चात मैंने वहां का स्कूल आदि सब बेचकर सिवनी माता पिता के पास आ गया। यहाँ कालेज स्कूल खोल लिया। सन् 2018 में वह महिला छिन्दवाड़ा में मिल गई। दूर से उसने पहचान लिया और सड़क पर ही पैर पड़ लिया।उसके साथ उसकी बेटी थी जो डॉक्टर बन गई थी ।उसे माँ की हरकत अच्छी नहीं लग रही थी।क्योंकि वह पढ़ी लिखी थी। अपनी बेटी की ओर इशारा करते कहती है इन्हीं साहब के कारण तेरा अच्छे स्कूल में एडमीशन हो गया। और तू पढ़कर डॉक्टर बनी है। मैंने उसको बधाई दिया । वह थैक्यू बोली।उसकी माँ ने डॉटा ! पैर पड़ मैंने मना किया, मैंने कहा रहने दो ।लड़की भी पैर पड़नें में संकोच कर रही थी। संकोच स्वाभाविक था।पढ़ लिख जो गई थी।


 सोच थी यह ! पढ़े लिखों की ! और अनपढ़ों की! जिसमें पैर छूने की हो सोच हो या छुआछूत की।


    इसी सोच में डूबा मैं सोच बदलने की सोच रहा हूँ।


        डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी


आशुकवि नीरज अवस्थी

मेंहदी भरे हाँथ बहना के और अखण्ड सुहाग रहे।


राखी सजे हाथ पर मेरे किंचित द्वेष न राग रहे।।


भाई-बहन का प्यार अलौकिक अतुलनीय धरती पर है,


हर भाई को बहन विधाता देना नीरज मांग रहे।


 


हम भावुक हो अश्रुबिंदु की भेंट समर्पित करते है।


वैभवशाली बहनो पर निज प्राण निछावर करते है।


नेह बहन भाई का जिसके सन्मुख दिनकर भी फीका।


बहनो के चरणों में मुद्रा महल अटारी धरते है।


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


एस के कपूर श्रीहंस

हाइकु


 


रक्षा का धागा


बिन भैना अभागा


भाग्य है जागा


 


सूत्र रक्षा का 


बंधन बंध जाता


ये बहन का


 


वचन धागा


निभाता यह भाई


बने वो भ्राता


 


पवित्र टीका


विश्वास की लकीर 


नहीं तो फीका


 


सिर्फ न धागा


स्नेह प्रेम गूँधा है


नहीं दिखावा


 


भाई निभाये


अवश्य जो बहन 


कभी बुलाये


 


है अद्धभुत


पर्व यह राखी का


वचन बद्ध


 


भाई बहन


त्याग ओ समर्पण


कर सहन


 


भाई बहना


रिश्ता अनमोल है


राखी कहना


 


रचयिता एस के कपूर श्रीहंस


बरेली।


 


संजय जैन

*बहिन भाई बंधन*


विधा : कविता


 


छोटी बड़ी बहिनों का,


हमे मिलता रहे प्यार।


क्योकि मेरी बहिना ही,


है मेरी मातपिता यार।


जो मांगा वो लेकर दिया,


अपने आपको सीमित किया।


पर मांग मेरी पूरी किया,


और मेरे को खुश करती रही।


मेरी गलतियों को छुपाती रही, 


और खुद डाट खाती रही।


पर मुझे हमेशा बचती रही,


ऐसी होती है बहिना।


उन सब का उपकार में,


कभी चुका सकता नहीं।


अपनी बहिनों को मैं,


कभी भूला सकता नहीं।


रहेंगी यादे सदा उनकी 


मेरे दिल के अंदर।


जो कुछ भी हूँ आज में,


बना बदौलत उनकी ही।


ये कर्ज हमारे ऊपर उनका


जिसको उतार सकता नही।


में अपनी बहिन को 


जिंदा रहते भूल सकता नही।


रक्षा बंधन पर बहिना से मिलना तो एक बहाना है।


वो तो मेरी हर धड़कन में, बसती क्योंकि बहिन हमारी है।


इसलिए टूट सकता नही भाई बहिन का ये बंधन।


इसलिये भूल सकता नही, 


रक्षा बंधन रक्षा बंधन।।


 


उपरोक्त मेरी कविता सभी भाइयों की ओर से बहिनों के लिए समर्पित है।


 


संजय जैन (मुम्बई)


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

रक्षाबंधन.................


 


न भाई बहिन का पर्व ये केवल


सबलों का है निबलों को संबल


एक धागे के बंधन में बंध कर


बढ़ जाता है असहायों का बल


 


है संस्कार संस्कृति की जंजीर 


बांधे रहती है संबंधों को राखी


एक दूजे के लिए समर्पण बन


रिश्तों में सदभावों की साक्षी


 


निज कर्तव्य का बोध कराती


परम्पराओं को मंडित करती


कैसी रक्षाबंधन की पावनता 


दुसवृतियों को खंडित करती


 


आओ मिल करके संकल्प करे


सदभावों के बंधन में बंध जाएं


है अतुल धरोहर भारतीयों की


पुण्य पर्व को न कभी लजाएं


 


जाति धर्म से ऊपर है मानवता


हुमायूं ने ये कर दिया प्रमाणित


उज्ज्वलता लेकर के भावों में


करें कभी न नरता अपमानित।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निशा अतुल्य

रेशम की डोरी


 


स्नेह बंधन रेशम की डोरी


कलाई पर भाई के सजती


रक्षा सूत्र बांध कर बहना


हर विपदा भाई की हरती ।


 


सुख दुःख अपना साँझा करते


कोई विपदा कभी न ठहरे


सहोदर हम बाल सखा हैं


दूर रह,सँग हरपल रहते।


 


दिल के तार जुड़े ऐसे हैं


आहट हर सुख दुःख की होती


बहना को जब पड़े जरूरत


खड़ा भाई हर पल दिखता है ।


 


खुशियों का संसार वहीं है


भाई बहन का प्यार यहीं है


मन से होता मन का बंधन


इस रिश्ते का सार यही है ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


काव्यकुल संस्थान समाचार, रामांजलि

काव्यकुल संस्थान की काव्यात्मक रामांजलि में लगी भक्ति की डुबकी


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काव्यकुल संस्थान(पंजी) द्वारा ऑनलाइन "अंतरराष्ट्रीय काव्यात्मक रामांजलि" का आयोजन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय के संयोजन में किया गया जिसमें देश विदेश के तीस कवि एवं कवयित्रियों द्वारा भाव पूर्ण प्रस्तुति दी गयी। भारत अफ्रीका फिलीपींस के कलमकारों से सजे काव्य समारोह में प्रभु राम और राम मंदिर विषय पर केंद्रित ही रचनाओं का पाठ किया गया।


इस प्रकार के अनूठे आयोजन में अयोध्या मथुरा काशी तीनों धार्मिक केंद्रो के कवियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।


रामांजली काव्य अनुष्ठान की अध्यक्षता दिल्ली के वरिष्ठ गीतकार ओंकार त्रिपाठी ने की।उन्होंने अपने कविता पाठ में कहा


आओ शबरी के राम, तुम्हारा अभिनंदन।


हे मर्यादा के धाम, तुम्हारा अभिनंदन।


 आओ मिल दीप जलाएं अब, 


घर सुन्दर भव्य बनाएं अब,


कर रामलला का राज तिलक,


सिंहासन उन्हें बिठाएं अब।


 


तंजानिया (अफ्रीका)से कवि सी ए अजय गोयल की इन पंक्तियों को खूब वाहवाही मिली


हो नभ से पुष्प वर्षा, सुर दुन्दुभि बजाएं


भू पूजने को बृह्मा अवतार धर के आएं


प्रभु का महल हो ऐसा सारे महल लजाएं


खुद आके विश्वकर्मा बैकुण्ठ सा सजाएं।


संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय ने राममंदिर पर यह गीत पढ़कर ओज का संचार किया।


जो आंखों में अभिलाषा थी, उसको पंख मिलेंगे अब।


उस मंदिर के शिखर शिखर पर भगवा ध्वज फहरेंगे अब।


कार्यक्रम को ऊंचाई प्रदान करते हुए मंडला मध्यप्रदेश से वरिष्ठ गीतकार प्रो डॉ शरद नारायन खरे ने लोक भाषा में शानदार गीत पढ़कर मन जीत लिया।


मनीला फिलीपींस की कवयित्री अनुपमा सिंह ने राम के चरित्र पर कोमल संवेदना की कविता पढ़ी। जिसे काफी सराहना मिली।


वारणसी से देश के बडे गीतकार डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश की इन पंक्तियों ने वातावरण को राममय कर दिया


राम जी दशरथ नन्दन हैं,


शांति के सुख के स्यंदन हैं


राम साकार ईश के रूप


करते उनका वंदन हैं।


 अहमदाबाद से आत्म प्रकाश कुमार की ये पंक्तियां काफी सराही गयी


अब बनेगा भव्य मंदिर राम का।


नाम होगा अब अयोध्या धाम का।


मथुरा के रबेन्द्र पाल रसिक ने कहा


बाबरी परम्परा की बाबरी कुरीति मिटा


स्वाभिमान देश का बढ़ने को जा रहा।


मेरठ से राजकुमार शर्मा राज ने मुक्तक के माध्यम से कहा


 


राम हैं योद्धा सुभट,है अयोध्या श्री राम की।


यश,कीर्ति, वैभव, सम्पदा, युगपुरोधा श्री राम की।।


मुरादाबाद से राजीव गुर्जर की राम महिमा की पंक्तियां बहुत सराही गयी


राम-राह पर हम चल पाए


ऐसा वर दो मुक्तिधाम 


जीवनदाता कृपा करना


नमन सियवर जय श्री राम


अयोध्या से राजेश मिश्रा नवोदयी की रामभक्ति की कजरी ने वातावरण राममय कर दिया


 


पतित पावन अयोध्या नगरी नाम है.... राम जी का धाम है जी....


बहती सरयू नदी पावन, प्रकृति मनोहर लुभावन... जहां राम राम गूंजे आठोयाम है... राम जी का धाम है जी...


मुम्बई महाराष्ट्र डॉ हरिदत्त गौतम अमर ने सुन्दर गीत में कल्पना के स्वर भर दिए


हम कितने सौभाग्यवान जो घड़ी दिव्य पाई


राम लला का मन्दिर बनता देता दिखलाई


पुरी अयोध्या दुल्हन जैसी सज धज इतराई


वाल्मीकि के श्लोक मुग्ध तुलसी की चौपाई।


दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ अंजू अग्रवाल ने कहा


क्या प्रमाण दूं राम का


 कैसा प्रमाण दूं राम का ।


 पहले तुम रामायण पढ़ो 


उसके सातों कांड पढ़ो


फिर सारे वेद पुराण पढ़ो


फिर आचार्यों से 


 शास्त्रार्थ करो


तब मांगना तुम प्रमाण।


गाजियाबाद से इंजीनियर अशोक राठौर ने सस्वर कण्ठ से मुक्तक पढ़ते हुए अपनी रामन्जली इस प्रकार दी


दिया राम को वचन निभाता हिन्दुस्तान !


मंदिर का निर्माण कराता हिन्दुस्तान !


शिलान्यास की करी घोषणा दिल्ली ने,


बार--बार आभार जताता हिन्दुस्तान !


गाजियाबाद से डॉ उदीशा शर्मा ने कहा राम शत में राम तप में राम कण कण में।


दिल्ली से गीतकार शायर डॉ रामनिवास इंडिया के छ्न्द में कहा


' धर्म मर्यादा के उदाहरण हमारे प्रभु


आस्था और विस्वास के प्रतीक श्रीराम हैं।


लखनऊ से राजेश सिंह ने क्या खूब सजी नगरी गीत पढ़कर मन मोह लिया।


अहमदाबाद गुजरात से काव्यकुल संस्थान की प्रदेश अध्यक्ष नलिनी शर्मा कृष्ण ने बधाई गीत 'बधाई हो बधाई हो,हे राम तुम्हें बधाई हो।


कानपुर से लक्ष्मी शर्मा श्री,रांची झारखंड से डॉ रजनी शर्मा चंदा, छत्तीसगढ़ से संजय बहिदार , गाजियाबाद से आचार्य प्रद्योत पाराशर, मिथिलेश गुप्ता हर्ष,आगरा से प्रेमलता मिश्रा वीर,अहमदाबाद से डॉ गुलाब चंद पटेल,गोधरा गुजरात से प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़,कासगंज से डॉ रामप्रकाश पथिक, हनुमान गढ़ राजस्थान से शंकर लाल जांगिड़,आदि कवियों की काव्यात्मक रामांजली ने वातावरण को राममय कर दिया।


इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन का शुभारंभ डॉ उदीसा शर्मा की वाणी वन्दना से हुआ। अयोध्या से डॉ हरिनाथ मिश्र ने मंगलाचरण की चौपाई पढ़ी।कार्यक्रम के संयोजक डॉ राजीव ने इस भव्य समारोह का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन किया।


प्रेषक 


डॉ राजीव पाण्डेय


राष्ट्रीय अध्यक्ष


पंजी)


रश्मिलता मिश्रा

शिव शंकर आराध्य हैं


देवों के सरताज हैं


डम डम डमरू बजाते हैं


शीश से गंगा बहाते हैं


काशी उनको प्यारी है


अन्नपूर्णा छवि न्यारी है


त्रिशूल बड़ा मतवाला है।


नंदी पर मृग छाला है।


कैलाशी अविनाशी हैं


भोले घट-घट वासी हैं।


जपे राम की माला है


जग का वो खवाला है।


 


रश्मिलता मिश्रा


बिलासपुर


सी जी।


आशुकवि नीरज अवस्थी

*******रक्षाबंधन***********


जो नर हैं धरती पर उनकी , ना सूनी कभी कलाई हो|


हर भाई को एक बहन मिले, और बहनों के भी भाई हो|


रक्षाबन्धन के अवसर पर,रक्षा का वचन निभाएगें.|


कन्या संतति के सरंक्षण, हित सब जन आगे आएँगे|


बालिका अजन्मी की हत्या, जो नित कर रहे कसाई हैं|


जिस घर में बेटी बहन नही, वा घर आँगन दुख दायी है|


नीरज नयनन की आस यही भैया के संग भौजाई हो


हर भाई को एक बहन मिले, और बहनों के भी भाई हो|


××××××××××××××××××××××××××××××


मेंहदी भरे हाँथ बहना के और अखण्ड सुहाग रहे।


राखी सजे हाथ पर मेरे किंचित द्वेष न राग रहे।।


भाई-बहन का प्यार अलौकिक अतुलनीय धरती पर है,


हर भाई को बहन विधाता देना नीरज मांग रहे।


 


हम भावुक हो अश्रुबिंदु की भेंट समर्पित करते है।


वैभवशाली बहनो पर निज प्राण निछावर करते है।


नेह बहन भाई का जिसके सन्मुख दिनकर भी फीका।


बहनो के चरणों में मुद्रा महल अटारी धरते है


 आशुकवि नीरज अवस्थी मो.-9919256950


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

भीग रही आंखों में देखो


कई नयी पुरानी स्मृतियां


राह निहारे आता होगा भाई मेरा


राखी को ले ना हो विस्मृतियां। 


 


बचपन से अब तक की भूली बिसरी


यादों को जी लूंगी खुल हंसकर


आज लिपट भाई से इतराउंगी


कैसा है अब सपनों का घर।


 


उसने हंस दी राह निहारे


बहना खड़ी हुई है द्वारे


ममता की कैसी है माया


कैसी है री बता पुकारे।


 


बोला आंखों में आंसू को देख


कुछ पाने को खोना भी है पड़ता 


खुलकर हंसने वालों को भी


रोना भी तो है पड़ता। 


 


मन भावुकता में बह चला था


देख राखी, अक्षत, रोली, चंदन


थाल सजाये रेशम के धागों के संग


सावन में खड़ी है लेकर रक्षाबंधन। 


 


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल 


महराजगंज, उत्तर प्रदेश। 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गांव ,शहर, नगर की गलियों की


कली सुबह सुर्ख सूरज की लाली केसाथ खिली ।।


 


चमन में बहार ही बहार मकरंद


करते गुंजन गान।


मालूम नहीं उनकी चाहत जिंदगी


जान कब छोड़ देगी साथ।।


 


रह जाएगा चमन में रह जाएगा गम का गमगीन साया किसी नई


कली के फूल बनने का इंतज़ार।।


 


फिर कली खिली किस्मत या


बदकिस्मत से फूल बनी।   


 


आवारा


भौरें के इंतज़ार सब्र की सौगात सुबह फिर लम्हों केलिये जुदाई की याद में मिली।।


 


गली गली फिरता भौरा


बेईमान कलियों की गली में।


 


खुदा से कली के फूल


बनने की इल्तज़ा दुआ की


चाह राह में।।


 


गुल गुलशन गुलज़ार के चमन बहार में कली की मुस्कराहट


फूल की चाह आवारा भौरे का


उपहार।।


 


भौरे की जिंदगी प्यार का यही


दस्तूर ।                            


 


जिंदगी भर अपने मुकम्मल


प्यार की तलाश में घूमता इधर


उधर ।।                                


 


पूरी जिंदगी हो जाती खाक


भौरे को हर सुबह खिले फूलों का


लम्हा दो लम्हा साथ ही जिंदगी


का एहसास।।


 


पल दो पल के एहसास के लिये भौरे बदनाम आवारा दुनियां ने दिया नाम।।


 


भौरे की किस्मत उसके साथ


यही उसकी नियति जिंदगी प्यार


जज्बात।।  


 


इंसान की जिंदगी भौरों से कुछ


कम नहीं अपनी चाहत की खुशियों के फूल की करता


रहता तलाश।।


 


हर सुबह शाम लेता भगवान् का


नाम अपनी चाहत की कली की


डाली को दामन में समेटने को


परेशान।।


 


कभी एक इंसान की चाहत की


कली को दूसरा इंसान ही मसल


देता अरमानों पर गिरा देता आसमान।।


 


कभी अरमानो की कली के खिलते ही फूल बनते ही आ


जाता किस्मत के करिश्मे का


वक्त बेवक्त।।


 


आगे बढ़कर छीन लेता अरमानो का जमी आसमान तमाम मसक्कत इंतज़ार की काली फूल


सी जिंदगी की आरजू का आसमान।।


 


इंसान कभी जुदाई में कभी फिर


चमन सी जिंदगी में तमन्नाओ के


तरन्नुम में निकल पड़ता कभी


तन्हा कभी कारवां में भी तनहा


इंसान।।


 


रात की कली सुबह की फूल शाम


धुल को फूल सी जिंदगी इंसान।।


 


आवारा भौरों की तरह अपनी मंजिल मकसद की गलियो की


गलियों में भटकता।।          


 


ना जाने


कब हो जाती जिंदगी की शाम


दो गज़ जमीन पर लेता धुल की


फूल सी जिंदगी गुमनाम।।


 


 


 


 



नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुदा तेरा अजीब करिश्मा इंसान


तुझे अपने इल्म हुनर की देता तालीम आज इंसान।।


 


तू खुद ही खुद के करिश्मे से परेशान।


बड़े गुरुर से बनाया था तूने इंसान


खुद की इबादत का दुनियां में


मेहमान इंसान।।


 


इंसान ही तोड़ता तेरा गुरुर इंसान ही शैतान।


तू खुद ही सोचता होगा तूने इंन्सान बनाया या शैतान।।


 


तेरे वसूलों को आय दिन करता


तार तार तेरी ही कसमें खाता करता एक दूजे करता वार इंसान।।


 


इंसानी जज्बे के मायने बदल


गए रिश्ते मौका मतलब का


नाम तिज़ारत की इबादत का इंसान।।


 


इंसान ही कातिल एक दूजे का


धोखा मक्कारी मतलब फरोसी का सबब आज इंसान।।


 


खुद के गुरुर में पैरों तले रौंदता तेरी कायनात।


एक दूजे की पीठ में खंजर भोकता लेकर तेरा नाम इंसान।।


 


तेरे ही नाम की कस्मे खाता तेरा


ही तौहीन करता इंसान।


खुदा तू तो है मुंसिफ मिज़ाज़


तेरे यहाँ वकील नहीं।


तेरे यहाँ क़ोई दलील नहीं।


तेरी किताब में लिखा नहीं माफ़।।


 


इंसान फिर भी डरता ही नहीं


तेरे कहर का खौफ रहा ही नहीं


खुद को खुदा समझ बैठा इंसान।।


 


तेरा वजूद ही आज खतरे में है


हर रोज नई मुसीबत तेरी ही दुनियां में तेरे लिए पेश करता इंसान।।


 


तू रहीम है करीम है कब तक


माफ़ करता रहेगा हद से गुजरता


इंसान।


क़यामत किसने देखा है आय दिन


क़यामत के करिश्मे से रूबरू होता इंसान।।


 


क़यामत के तेरे हिसाब का करता


मज़ाक इंसान।


सच तो यही तू तो नेक नियति


का ईमान ।।


 


तू ही इंसानो में तूने ही बनाया शैतान।


तेरे ही सामने अहम मसाला है किसे माफ़ी दे किसे दे सजा का


पैगाम।।


 


इंसान को सजा दे या मारे शैतान


दोनों तेरी ही सजदा के इज़ाद। गैरत मंद तेरी ही कायनात को


करते बदनाम।।


 



कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे करुणा मयि मां शारदे*


******************


विद्या वाणी की देवी मां शारदे,


नित तेरी मैं आराधना करु,


ऐसी मुझे विमल मति दे,


गौ, गंगा की मैं नित सेवा करु।


 


हे मधुर भाषिणी मां शारदे,


तिमिर का तू नाश करती,


 कुविचार का तू सर्व नाश करती,


सबको सुविचार और ज्ञान दे मां।


 


हे शुभ्र वस्त्र धारणी मां शारदे,


जो भी तुम्हारे शरण में आये,


उसे सही राह बताना मां,


उसे सद् बुद्धि दे देना मां।


 


हे मां सरस्वती ऐसा वरदान दो,


दीन दुखियों की सेवा सदा करु,


राह से भटके राही को मैं सही राह बताओं,


नित नित तेरा ही ध्यान करु मां


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां जगदम्बा दया करो


********************


हे मां जगदम्बा दया करो,


हमें सत्य की राह बताओ,


कभी किसी को सताये नहीं,


ऐसी सुमति हमें देना मां।


 


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


अपनी कृपा वर्षा करो,


हम अज्ञानी तेरी शरण में,


हमें सही राह बताना मां।


 


ये जीवन तुम्ही ने दिया है


राह भी तुम्हें बताओ मां


हो गई है भूल कोई तो,


राह सही बताओ मां।


 


कभी किसी का बुरा न करुं,


दया भाव से हृदय भरो,


मस्तक तुम्हारे चरणों में हो,


ऐसी बुद्धि हमें दे दो मां।


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


जग में न कोई किसी जीव को,


पीड़ा कभी न पहुंचाएं मां,


ऐसी सब की बुद्धि कर दो।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे मां शारदे*


**************


हे मां शारदे


शब्द के कुछ सुमन है समर्पित तुम्हे,


बस चरण में इन्हें अब शरण चाहिए ।


 


हे मां शारदे


कण्ठ से फूट जाये मधुर रागनी,


गीत-संगीत में मुझे तू दक्ष कर दे।


 


हे मां शारदे


स्वर लहर में रहे भीगते तेरे तन वदन,


शारदा मां गुणगान नित करता रहूं।


 


हे मां शारदे


मिट सके तम के साये प्रखर ज्योति दो,


हंस वाहिनी शुभे शत् शत् नमन।


 


हे मां शारदे


मां मेरी तुम से है यही प्रार्थना कि


ध्यान में डूबकर गीत तेरे मैं गाता रहूं।


 


हे मां शारदे


साधना की डगर हो सुगम मां यहां


तम विमल मन मगन गुनगुनाता रहूँ।


 


हे मां शारदे


कल्पना के क्षितिज में नये बिम्ब हो,


चित्र जिनसे नये नित सजाता रहूँ।


 


हे मां शारदे


अवगुणों को मिटा दे


बुद्धि को सुमति कर दे।।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌹🙏🏻मां शारदे🙏🏻🌹


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


हे मां शारदे


रोशनी दे ज्ञान की


तू तो ज्ञान का भंडार है


हाथों में वीणा पुस्तक 


 हंस वाहनी ,कमल धारणी


ओ ममतामयी मां


इतनी कृपा मुझ पर करना


मैं सदाचारी बनूं


सत्य पथ पर ही चलूं


विरोध क्यूं अन्याय का


मुस्किलों में भी न घबराओ


हे मां शारदे


दूर कर अज्ञानता


उर में दया का वास हो


ज्योति से भर दे वसुंधरा


यही मेरी नित्य प्रार्थाना


यही मेरी कामना


यही मेरी वंदना


हे मां मुझे रोशनी दे ज्ञान दे


विद्या विनय का दान दें


हे मां शारदे 


हे मां शारदे।।


🌹🌹🌹🌹🌹🌹


📚 कालिका प्रसाद सेमवाल


          मानस सदन अपर बाजार


             रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


                  246171


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे मां वीणा धारणी वरदे*


********************


हे मां वीणा धारणी वरदे


योग्य पुत्र बन सकूं


ऐसा मुझे वरदान दे


वाणी में मधुरता दे


जीवन में सबका हित करु


ऐसा मुझे संस्कार दे।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


दृष्टि में पवित्रता दे


चित्त में सुचिता भर


आहार में सात्विकता देना


स्नेह में शुद्धता देना


जीवन में सत्यता देना।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


कर्म में सत्कर्म देना


व्यक्तित्व में रमणीकता देना


बुद्धि में दिव्यता देना


कला में निपुणता देना


सम्बन्धो में निर्लिप्तता देना।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

*मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम*


******************


जन जन के नायक है 


मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम,


 


दीन दुखियों के तारक है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


सबके कल्याण कर्ता है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


सब को सद् बुद्धि देते है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


सब के दुखहर्ता है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम


 


आओ राम मंदिर के निर्माण में


खुशियां मनाई दीप जलाये,


 


सबके घरों में समृद्धि लाए


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


भारत धरा के रक्षक है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,


 


देश की पहचान है


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।


********************


*कालिका प्रसाद सेमवाल*


*मानस सदन अपर बाजार*


*रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड*


कालिका प्रसाद सेमवाल

तमसो मा ज्योतिर्गमय


*******************


बसुधा का कण कण प्रमुदित हो,


ज्ञान और विज्ञान उदित हो,


बने व्यवस्था ऐसी भू पर


जिसमें जन का कल्याण निहित हो।


 


          क्षत विक्षत हो महिमण्डल


          विस्तृत जो अज्ञान अनय


          तमसो मा ज्योतिर्गमय।


 


प्रेम दया की ज्योति जगे,


द्वेष क्लेश दूर भगे,


हिंसा का हो सर्वनाश अब


मानव , मानव को न ठगे।


 


           तिमिर नष्ट हो भूमण्डल का


           मानव-उर हो ज्योतिर्मय


           तमसो मा ज्योतिर्गमय।


 


सुख समृद्धि सफलता जाए


कण कण में समरसता भाए


युग का बने प्रवर्तन ऐसा


जन जन में नव जीवन आए।


   


            जागे सब में दया भाव


            गूंज उठे संगीत मधुर मय


            तमसो मा ज्योतिर्गमय।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...