सत्यप्रकाश पाण्डेय

राम मंदिर भूमि पूजन की मांगलिक शुभकामनाओं के साथ.........


 


टूट चुका विश्वास सभी का


चारों ओर घना अंधेरा था


सदियों से वनवासी राम ने


देखो पाया कष्ट घनेरा था


 


गन्दी राजनीति की भेंट चढ़े


न जाने कितने दिन मास


रामलला का बने आशियाना


टूटी भारतीयों की आस


 


रामराज्य की लिए संकल्पना


जनमन को मिली उदासी


क्रूर कुचक्र में फंसी अयोध्या


धर्म जाति की बनी दासी


 


वीरान हुआ सदन राम का


मानो हमें चिढ़ाता रहता


कबतक टेंट में रहेंगे रघुवर


नाकामी की गाथा कहता


 


अब हटा कुहासा रवि निकला


जन भावनाओं का सम्मान


उच्च अदालत और मोदी जी


बढ़ा दिया भारती का मान


 


समाप्त हुआ वनवास राम का


वह अपने भवन विराजेंगे


भूमि पूजन होगा मन्दिर का


अवध में झालर घंटे बाजेंगे


 


सियाराम में होगा आर्यावर्त


सभी हृदयों में होगा वास


राम राज्य स्थापित होकर के


भव तापों का होगा नाश


 


आओ मर्यादा पुरूषोत्तम का


मिल करके गुणगान करें


घर घर घी के दीप जलाकर


नव युग का आव्हान करें


 


अनन्त असीम अपार खुशी से


मन खग नाचेंगे व गायेंगे


राम नाम की गंगा में नहाकर


सब जीवन मोद मनायेंगे


 


जीवन चरित्र का अवलोकन


राम आदर्श करें स्थापित


आध्यात्मिक ज्ञान की उन्नति


अवगुण करदें विस्थापित


 


विशिष्ट ज्ञान से उर आलोकित


संकीर्ण सोच का परित्याग


रामायण जैसा हो भाईचारा


आलस्य त्याग जायें जाग।


 


रामाय रामचन्द्राय रामभद्राय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 *** वंदना *** 😊😊


 


प्रथम निवेदन आपसे, 


                     गजानन महाराज।


कलम लिया है हाथ तो,


                 रखना इसकी लाज।


 


माता वीणा वादनी, 


                      रखना मेरी लाज।


रुके कभी मत लेखनी, 


                   यही निवेदन आज।


 


वर दो माॅ॑ मुझको यही, 


                      रहे चरन में प्रीत।


निश-दिन वंदन को तुम्हें, 


                लिख पाऊॅ॑ कुछ गीत।


 


चाह नहीं तुलसी बनूॅ॑, 


                    या मैं कालीदास।


चाह सभी के दिल बसूॅ॑,


                    पूरी करना आस।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


प्रखर* *फर्रूखाबाद

*जय रामलला*


 


जय रामलला अवधेश लला, जगतारन पूर्ण प्रकाम हरे।


दशरथनंदन कौशल्या सुत, अनुपम छवि सुघर ललाम हरे।।


पीताम्बर गल नीलाम्बुज तन, मनहर नयना बजनी पैंजनि,


सौमित्र भरत रिपुसूदन सॆग , लटुरी बिखरी सुखधाम हरे।।


 


हर्षित नर नारि विहग चहकैं, न्यौंछावर कोटिन काम हरे।


अज अवध दुलनियाँ जस निखरी, दमकै पुनि स्वर्णिम धाम हरे।।


साकेत जयति जय जन्मभूमि, सिय पिय जय जय रघुनंदन जय,


जय धर्म ध्वजा जय भारत भू, शुभदा वरदा जय राम हरे।।


 


 


*प्रखर*


*फर्रूखाबाद*


प्रखर

राम जीव आलम्ब जग, सोई सृष्टि आधार।


ज़ड़ चेतन जंगम रमै, निराकार साकार।।


 


राम इमाम ए हिंद हैं, सजदा सौ सौ बार।


वो जिनके मनसबदार हैं, प्रभु उनके मनसबदार।।


 


सरजू तट मनभावनो, अवध सुहावन ठाँव।


तहाँ राम लीला करी, सियरी तरु तर छाँव।।


 


तम्बू के बम्बू उखड़, मिली पुन: जागीर।


देव गेह हित बलि चढ़े, अनत संत नर वीर।।


 


हिये कोशलापति रहैं, निग्रह इंद्रिय काम।


राम हरहिं कलमष सकल, चाहे विधाता बाम।।


 


प्रखर


राजेंद्र रायपुरी

 


     रामलला के दिन बहुराए।


     लोग अयोध्या देखन आए।


 


     पाॅ॑च सदी तक बहु दुख पावा।


     दुष्ट बहुत सब किन्ह छलावा।


 


     पाॅ॑च सदी प्रभु थे वनवासी।


     रही अवध में बहुत उदासी।


 


     देर-सवेर न्याय प्रभु पावा।


     आज अयोध्या दिन वो आवा।


 


     जब मंदिर की नींव खुदेगी।


     और शिला इक रजत डलेगी।


 


     मंदिर अब इक भव्य बनेगा। 


     जो दुनिया में नाम करेगा।


 


     अनुपम मंदिर होगा भाई।


     जा में राजेंगे रघुराई।


 


मास भाद्रपद कृष्ण दो,


                शुभ दिन था बुधवार।


शिलान्यास मंदिर हुआ,


                  मन में खुशी अपार‌।


 


              राजेंद्र रायपुरी


एस के कपूर श्री हंस

मुक्तक माला


 


सम्पूर्ण जगत ही आज तो 


जैसे राममय हो गया।


बनेगा भव्य सा राम मंदिर


यह भी तय हो गया।।


प्रतिष्ठित होंगें अब रामलला


विशाल गर्भ गृह में।


भारत वर्ष एक स्वर से ही


एक लय हो गया।।


 


पाँच सौ वर्षों का कारावास


आज समाप्त हो गया।


राम लला विराजमान को


घर अपना प्राप्त हो गया।।


प्रभु राम ह्रदय सम्राट हैं


भारत के जन जन के।


प्रत्येक भारत वासी को यह


उपहारे सौगात हो गया।।


 


अयोध्या तीर्थ स्थल अब छा


जायेगा विश्व मानचित्र पर।


भारत को गर्व होगा श्री राम


सरीखे जन जन मित्र पर।।


अपने जीवन काल में प्रत्येक


जाना चाहेगा मंदिर में।


पुष्प अर्पित करने अपने राम


जी आराध्य के चित्र पर।।


 


एस के कपूर श्री हंस


मदन मोहन शर्मा 'सजल'

लुटाई हैं जिंदगी


 


किसी ने हँसकर मुस्कराकर गुजारी है जिंदगी


हमने तन्हाई के आलम में गुजारी है जिंदगी,


 


कसूर हमने नहीं किया सनम मोहब्बत दिल को हुई


तड़फती है रोती है मौत ने पुकारी है जिंदगी,


 


पता नही था पत्थर दिल बेवफा से दिल लगा बैठे


आसमां पर बिठाकर बेसुध हो गिराई है जिंदगी,


 


हर पल बिछाए फूलों के गुलदस्ते उनकी राह में


कुचल दिए सब अरमां जफ़ा तले मिटाई है जिंदगी,


 


खून के कतरे बहाती है आँखे हमेशा याद में 


'सजल' जफ़ा में वफ़ा का खजाना लुटाती है जिंदगी।


 


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


सत्यप्रकाश पाण्डेय

किसी रूप की धूप से झुलसा बदन मेरा


कहीं मिले नहीं मुझको ठंडे जल के छींटे


बेरुखी दिखती है भले ही उसके मन में


फिर भी उसके हर अंदाज लगते है मीठे


 


लगा आँखों में अंजन रचा ओठों पै लाली


आकर्षक मोहिनी हर पल जो लुभाती है


घुंघराली लटों का जादू खींचता तार मन के


भंगिमाओं से वो तो हर दिल को रिझाती है


 


ऐसे कौंन से हैं गुण जो उसे मादक बनाते


डालती है चितवन हृदय छलनी हो जाते


पिलाती जाम आँखों से अधर सुरा प्याली


और हम जैसे आशिक घायल किये जाते


 


कैसे बयां करूँ अंदाजे ए मुहब्बत मैं उसका


कितना स्नेह या नफरत करती है वो हमसे


कर दिया बेचैन सत्य को छीन के निंदिया


चाहती है वह आवादी या बर्बादी हमसे।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

सफर जिंदगी है सुहाना 


मिलना बिछड़ना रोना मुस्कुराना।।


 


जिंदगी तनहा लोगों


रिश्तों नातों का कारवाँ ।        


 


भीड़ में


अकेला जिंदगी की परछाई यादों तनहाई सांसो धड़कन की जिंदगी बोझ ख़ुशी गम का मेला झमेला।।


 


 


इंसान अरमानों की मंज़िलों का


मुसाफिर मंजिलों को खोजता 


दुनियां से पता पूछता।


जिंदगी का जंग जीतने मकसद


मौसिकी का मसीहा ।।         


 


जमाने के


जज्बात हालात की कश्ती


का मांझी कभी खुद की कश्ती भँवर तूफ़ान निकालने की जद्दो जहद मसझधार में पतवार की गुहार जिंदगी।।


 


नशा जिंदगी जूनुन जिंदगी


शुरुर जिंदगी मकसद के जंग का


ढूढती हथियार जिंदगी ।।      


 


कभी


दौलत की मार कभी रिश्तों नातों 


की मार कभी किस्मत हालात की


मार जिंदगी।।


 


दौलत की होड़ का नशा आराम


अय्यासी का नशा शोहरत


का नशा इश्क हुस्न का नशा।।


 


जिंदगी नशा जरूर ना झूमती


ना नाचती अपने अंदाज़ के नशे


में गुजरती जाती।।


 


कही ठहर जाती पल दो पल 


कहीं से गुजर जाती चलती जाती


एक दिन गुजरे जमाने की यादें 


जिंदगी गुजर जाती।।


 


शराब साकी पैमाना बेवजह 


बदनाम इंसान शराब साकी


पैमाने मैखाने का ईमान।।


 


जिंदगी इंसान गुरुर की गहराई


जाम उतर गयी जिंदगी सागर की गहराई सागर की सुराही में ही डूबती जिंदगी।।


 


गुमनाम अंधेरो में खोई जिंदगी


बेनाम।।


जिंदगी खुद की अमानत नहीं


जिंदगी जहाँ का जज्बा जज्बात


जिंदगी जहाँ जमाने में गुजरती


खुद के कदमो से लिखती दरमियाने दास्ताँ।।


 


 


जिंदगी जज्बा दुनियां के लिए मारना।


दुनियां के लिये जिंदगी इबादत 


इम्तेहान से गुजराती जहाँ में अंधेरों को उजाले में बदलती।।


 


 


फर्श से अर्श फ़र्ज़ फ़क़ीर जिंदगी


ना कुछ लेकर आती ना कुछ साथ लेकर जाती जिंदगी।।


 


साँसों धड़कन के दौरान जो भी


कमाई दौलत दुनियां में साँसों धड़कन के बाद दुनियां के साथ


जिंदगी।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

आज मेरे राम फिर


अवध में पधार रहे


भक्त हनुमान हमेशा


राम नाम जपते जा रहे।


 


वर्तमान के गोद में


पल रहे थे भविष्य के सपने


है अयोध्या झूम रही


बस राम ही तो हैं अपने।


 


रात क्या दिन क्या अंधेरा


है दिव्य उजाली अयोध्या


देख ऐसा लग रहा है


स्वर्ग से उपर है अयोध्या। 


 


यत्न सारे राम ने ऐसे किये


हर क्षण को समेट रही जन सदा


राम अपनी जंग को जीत आखिर 


वैदेही संग स्थान को ले रहे सदा। 


 


देख विहगंम दृश्य धरा का


देव सभी अब सकुचाते 


काश! राम अपने संग 


अवध में ही बसाते। 


 


व्याकुल सदा रहा भारत देखता


लहरों संग सरयू बनी गवाह है


हरिये सभी विपदायें भारत की प्रभु 


दें आशिर्वाद जनमानस बेपरवाह है। 


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


  महराजगंज, उत्तर प्रदेश। 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार शमशेर सिंह जलंधरा


उपनाम :- "टेंपो" 


पिता का नाम :- श्री आदराम


माता का नाम :- श्रीमती संतरा देवी 


पत्नी का नाम :- एकता रानी 


जन्म :- 07 - 06 - 83 


स्थाई पता :- गांव ढाणी कुम्हारान , तहसील हांसी , जिला हिसार , हरियाणा ।


शिक्षा :- +12 


उपलब्धियां :- कई प्रतिष्ठित मंच पर कविता पाठ ।


कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता एवं गजल प्रकाशित ।


सम्मान :- विशेष फ़रवरी 2005 में हिसार की प्रतिष्ठित काव्य संस्था प्रेरणा परिवार के द्वारा ।


 


जनवरी 2006 को गुरु जंभेश्वर युनियर्सिटी में हरियाणा साहित्य अकादमी के द्वारा सम्मानित ।


 


सितम्बर 2008 में सोनीपत के गांव भावड में हरियाणा साहित्य की उर्दू अकादमी द्वारा सम्मानित


 


अगस्त 2010 में भारत माता मंदिर हिसार में हरियाणा के राज्य कवि श्री उदय भानु "हंस" के हाथो हरिद्वार की संस्था द्वारा सम्मानित ।


 


मध्य प्रदेश के लेखक मंच बैतूल द्वारा प्रशस्ति पत्र ।


 


इंद्रधनुष द्वारा प्रशस्ति पत्र ।


 


इसी तरह की काफी संस्थाओं द्वारा प्रशस्ति पत्र और सम्मान।


 


2014 में राव तुलाराम पुस्तकालय ढाना , (हांसी) द्वारा सम्मानित ।


 


करीब 1000 रचनाओं का संकलन ।


कविताएं , गजलें , दोहा , लघु कथाओं में लेखन ।


 


2000 , 11 , 12 , 13 में तक साहित्य प्रवाह मासिक पत्रिका उप संपादक बतौर संपादन ।


 


लोकल एक्सप्रेस उकलाना में 1 वर्ष साहित्य पेज का संपादन ।


 


रचनाएं 5 विशेष रचनाएं - 


 


*दलीलें*(1)


 


अवैध रूप से ,


करवाई गई लिंग जांच से ,


गर्भ में ,


बेटी होने की सुनते ही ,


तमरा उठती हैं आंखें ,


सब लोगों की ।


एक दूसरे से मशविरा होता है ,


गर्भपात करवाया जाए ,


उनके लिए तो गर्भपात होगा ,


पर मेरी तो हत्या है ।


मैं ,


कौन से न्यायालय का दरवाजा खटखटाऊं ,


मां की अदालत के सिवा ,


टूट जाती है आस ,


जीवन की ।


जहां मां भी ,


शामिल हो जाती है ,


उन सभी लोगों में ,


और खड़ी हो जाती है ,


गर्भपात के पक्ष में ।


मरना तय हो जाता है ,


जिस दर पर ,


तब दम तोड़ जाती हैं ,


तमाम तरह की दलीलें ।


 


*न्यारे न्यारे* (2)


 


कितना अच्छा था ,


इस दीवार से पहले का आंगन ,


मां उठती थी अलसुबह ,


पीसती चक्की ,


और चाची देती थी झाड़ू ,


और दोनों के काम से उत्पन्न ध्वनि ,


कितनी घुल मिल जाती थी ,


एक दूसरे में ।


पर अब जब से ,


पडने लगे हैं बंटवारे ,


उठने लगी है आंगन में दीवारें ,


वह मदमस्त मधुर आवाज सुनाई नहीं देती ,


हो गए हैं सब न्यारे न्यारे ,


अब अपना ही राग अलापे है ,


अलग-अलग सारे ,


हो गए सब न्यारे न्यारे ।


 


*याद रहे* (3)


 


सफलता का मूल ,


प्रयास का ज्वलंतदीप , 


टूटी आशा जो , 


मंजिल के समीप ।


फिर असफलता ही मिलेगी ,


पर वास्तव में ,


वह होती है सफलता ,


सीख लेने की ।


अपने आप को सुदृढ़ बनाने की ,


हौसले को जकड़ने की ,


मंजिल पाने की जिद को पकड़ने की ,


याद रहे कि फूल ,


कांटों में महफूज रहा करते हैं ।


अड़चनों बाद मिली सफलता ,


देती है मनमाफिक मिठास ।


सरलता से मिले सफलता तो ,


कम होती है खुशी ,


सुस्ती बढ़ती है यकीनन ,


फिर मन नहीं चाहता मेहनत करना ,


और फिर करनी पड़ती है ,


आलस से संधि ,


असफलताओं से होना पड़ता है संतुष्ट ।


 


*बना रहे प्रेम* (4) 


 


रिश्तो की नाजुकता ,


गुस्से की अग्नि से ,


मुरझा सकती है ।


इसलिए ,


हे प्रिय ,


समझा करो भावनाएं ,


किया करो समझौता ,


अपने मन और मस्तिष्क से ,


मिलाया करो अपने विचार ,


अपने प्रियवर से ,


ताकि बना रहे प्रेम ,


दोनों के दरमियां ,


मनमुटाव बाद भी ।


 


*कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती* (5)


 


कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती ,


उनमें भरा होता है विश्वास ,


टूटे प्यार के फिर से मिलने की आस ,


भावनाओं का ऐसा सागर ,


जिसकी गहराई मापना ,


आज भी नामुमकिन के समकक्ष है ।


भाई बहन मां बाप का प्यार ,


खुशियों से चहकने वाला परिवार ,


एक वह लड़की जिसके सपने ,


छुड़वा देते हैं अपने ,


उसके त्याग की परिभाषा ,


ब्रह्मांड की अन्य किसी चीज से,


मेल नहीं खाती ,


कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती ,


इनमें छिपा होता है ,


किसी का प्यार ,


खट्टी मीठी तकरार ,


किसी का आक्रोश ,


किसी का जोश ,


इंकलाब की शक्ति ,


मन की भक्ति ,


वरना यूं ही नहीं बनती कहावत ,


जहां न पहुंचे रवि ,


वहां पहुंचे कवि ।


 


संदीप मिश्र सरस, बिसवां(सीतापुर)

रिश्तों की गर्माहट


 


किसी ने सुझाव दिया 


अपेक्षाएं मत करो, दुःख नहीं होगा।


 


परामर्श उचित ही होगा।


कितना आसान होता है फार्मूले ईज़ाद करना। 


लेकिन उसे व्यवहारिक जामा पहनाना उतना ही कठिन।


 


तपता सूरज रोशनी दे, तो दे न दे न सही। छलिया चांद चांदनी दे तो दे,न दे न सही।


हमें पुष्पों से खुशबू की अपेक्षा क्यों हो?


हमें मधुबन से सावन की अपेक्षा क्यों हो? हमारी संवेदना को अनुभूति मिले न मिले। हमारी अनुभूति को अभिव्यक्ति मिले न मिले। हमारी भावनाको शब्दों की क्या आवश्यकता? 


हमारे शब्दों को शिल्प की क्या आवश्यकता?


हमारे शब्दशिल्प पर सृजन की निर्भरता क्यों?


 


हम परजीवी थोड़े ही हैं।


हम अपना अस्तित्व स्वयं निर्मित करेंगे।


हम स्वयं को स्थितिप्रज्ञ बनाएंगे।


 


दूसरों का सुख हमें हंसा न सकेगा।


दूसरों का दुख हमें रुला न सकेगा। 


 


हम निर्लिप्त देवत्व को स्पर्श करेंगे।


 


हमारा सब कुछ हमारे नियंत्रण में होगा आखिर हम पर हमारा भी तो हक बनता है।


 


लेकिन एक बात तो सोंचना हम भूल ही गए!


 


हमने संवेदना को रास्ता भटका तो दिया।


हमने भावनाओं को बहका तो दिया।


मन के अस्फुट तंतुओं को बरगला तो दिया। अनुभूतियों, अभिव्यक्तियों को नए सिरे से परिभाषित कर तो दिया।


अनपेक्षा का अनगढ़ सिद्धांत तो स्वीकार लिया।


रिश्तो को फार्मूलाबद्ध कर तो लिया।


 


लेकिन यह नहीं सोचा कि यदि मानव मन में,


स्वाभाविक अपेक्षा न रही तो 


चांद सूरज के स्वाभाविकता का क्या होगा? 


किसी पुष्प की खुशबू अपनी नैसर्गिकता का अर्थ कहां तलाशेगी?


संवेदना अपना वजूद कहां टटोलेगी?


अनुभूति किस चौखट पर सर पटक कर दम तोड़ेगी?


अभिव्यक्ति को शब्द कहां मयस्सर होंगे?


और शब्दों के अर्थ कब तक अपने अस्तित्व की गवाही देंगे?


 


और जब यह सब मर जाएंगे।


 


संवेदना नहीं होगी, अनुभूति नहीं होगी।


अभिव्यक्ति नहीं होगी, शब्द नहीं होंगे।


अर्थ नहीं होंगे, रिश्तो में भावना नहीं होगी। 


संवेग नहीं होंगे तीव्रता नहीं होगी।


 


और अंततः अपेक्षा नहीं होगी। तो फिर क्या बचेगा?


रिश्ते बेमानी न हो जाएंगे?


 


रुकिए,ठहरिए,सोचिए 


 


यदि रिश्तो में आत्मीय अपेक्षा ही न रही


तो रिश्तो की गर्माहट का क्या होगा?


 


रचनाकार,


संदीप मिश्र सरस, बिसवां(सीतापुर)


मो-9450382515/9140098712


डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी

जय श्री राम! 


         (गीत--रचना)  


जिस छवि के सम्मुख विश्व की ,


बेकार हर जागीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है।


सिर पर मुकुट गेरुआ बसन,


आजानुभुज श्यामल बरन ,


सुंदर चिबुक सुंदर नयन ,


माथे तिलक कुंडल श्रवण ,


नवनील अंबुज---सा बदन,


जमुना का जैसे नीर है। 


वह रुप है श्री राम का ,


वह राम की तस्वीर है ।


रघुवंश के नीलोत्पल , 


अपनी प्रतिज्ञा में अटल,


तप में कठिन जप में सरल, 


तन सुरमई मन के धवल, 


बन की कुटी हो या महल ,


बस एक ही तासीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है ।


खल निशिचरों के वास्ते, 


विपरीत जिनके रास्ते ,


सज्जन हैं जिनके नाश्ते, 


जो विघ्न नित उपराजते ,


कोदंड जिनके हाथ में है, 


पीठ पर तूणीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है। 


गुणवान जो मतिमान जो, 


संकट में धीरजवान जो, 


पुरुषों में सकल महान जो, 


सुख-दुख में एक समान जो ,


मानस में जिनकी कीर्ति का, 


वर्णन बहुत गंभीर है। 


वह रुप है श्री राम का ,


वह राम की तस्वीर है ।


जो विष्णु के अवतार हैं ,


दुनिया के पालनहार हैं ,


इस सृष्टि के पतवार हैं ,


त्रेता के मनसबदार हैं, 


प्रभु अवध में पैदा हुए ,


यह अवध की तकदीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है ।


श्री राम का जो कर्म है ,


आदर्श है सदधर्म है ,


यह राजनीतिक मर्म है -- 


जो आदमी बेशर्म है ,


वरना जगत में कुछ नहीं--- 


रघुवीर ही रघुवीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है।


-------- नीरव


सुषमा दीक्षित शुक्ला

माँ भारती की आन का ।


,वीरों के बलिदान का ।


 


राम मंदिर प्रतीक है , 


राष्ट्रीय स्वाभिमान का 


 


मान रखा राम जी ने ,


न्याय के सम्मान का।


 


प्रेम से मंदिर बने अब ,


महा प्रभु श्री राम का ।


 


 विश्व पटल पर सम्मानित है,


 पावन चरित्र श्री राम का ।


 


ये राम मंदिर चिन्ह है ,


इस राष्ट्र सम्मान का ।


 


रूह रूह मे राम बसे हैं


धड़कन में माँ जानकी ।


 


चारों धाम समाये जिसमें,


 जय बोल अयोध्या धाम की ।


 



  संस्मरण    डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी लोगों में सोच बदलने की सोच रहा हूँ।  

राम बाण🏹 अनछुए सवाल (संस्मरण)


 


मैं अपने स्कूल में बैठा था तभी एक महिला अंदर आने लगी।चपरासी ( महिला)ने रोका।अंदर नहीं जा सकती।


 


साहब से मिलना है तो नहा धोकर आ। बाम्हन आदमी से वैसे ही मिलने आ गई। साहब पूजा पाठ करते हैं, नहा धोकर स्कूल आते हैं। तू वैसे ही मिलने आ गई । वह महिला वापस चली गई 1 घंटे बाद फिर आई। चपरासी ने फिर उसे भगाना चाहा। तू फिर आ गई तेरे को बोली थी मैं नहा धोकर आ वैसे ही आ गई । वह बोली मैं नहाकर आई हूँ । साहब से दूर से ही बात कर लूंगी। एक बार साहब से मिलवा दो। महिला चपरासी मेरे चैम्बर में आई बोली सर वो (जातिसूचक शब्द निकालकर) आई है आपसे मिलना चाहती है। मैंने उसे आने को कहा वह दूर से ही अपनी बातें रखने लगी। उसे अपनी बच्ची का एडमीशन कराना था। यह घटना लगभग 30 वर्ष पहले की है। उस समय तहसील इतने विकसित नहीं थे। छुआछूत का प्रभाव था। वह बोली सर यदि आप मेरी बच्ची का एडमीशन अपने स्कूल में कर दें तो बहुत कृपा होगी। मैंने कहा यहाँ सरकारी स्कूल हैं, वहां एडमीशन ले लो यह प्राइवेट स्कूल है। यहां फीस लगती है।उसकी हालात से वह गरीब लग रही थी। वह बोली साहब मैं दूंगी। बस मेरी बच्ची को पाँचवीं तक पढ़ा दो। मैंने फिर कहा पांचवी तक ही क्यों? वह बोली साहब पांँचवी के बाद महाराष्ट्र में कोई स्कूल(जिसका नाम लिया) है, उसमे एडमीशन हो जायेगा। मैंने कहा यह जानकारी किसने दिया। वह सेंट्रल स्कूल के किसी सर का नाम बतायी कि चतुर्वेदी साहब ही तेरी मदद कर सकते हैं । सरकारी स्कूल में नाम लिखाने की डेट निकल गई ।और वहाँ पढ़ाई भी नहीं होती है। मैंने क्लर्क को बुलवाकर उसे एडमीशन प्रक्रिया बता दीजिये कहा।वह मुझे आश्चर्य से देख रहा था। कुछ बोला नहीं। उसके जाने के बाद एक शिक्षक और महिला चपरासी आ गये। सर इसकी बच्ची को एडमीशन दोगे? मैंने कहा क्यों क्या हुआ! सर वो स्वीपर (जाति सूचक शब्द दोहराई) है। तो क्या हुआ? वह बोली सर अपने स्कूल में सब अच्छी जात के हैं। एडमीशन नहीं होंगे,लोग क्या कहेंगे। मैंने चपरासी को बुलाया और कहा जब तुम्हारी नियुक्ति किया था उसके बाद चाय बनाने कहा था तब तुमने क्या कहा था। वह शांत हो गई। (मुझे याद है वह दिन! चाय के लिये कहा तो इसने कहा था सर आप हमारे हाथ की चाय पी लोगे। मैंने कहा हाथ की नहीं हाथ अच्छे से धोकर साफ स्वच्छता से चाय बनाओ । वह उस समय फिर बोली सर हम डेहरिया समाज के हैं। मैंने फिर कहा मुझे यह नहीं जानना है आप किस समाज से हैं आप स्वच्छता से चाय बनायें।) इस आशय से शिक्षक भी शांत रहा।और वह चपरासी के साथ बाहर चला आया।


 


सारे स्कूल में चर्चा थी कि स्वीपर की लड़की को पढाना पड़ेगा। सब लड़के उसे छुएंगे।एक दो पेरेंट भी आ गये। मैंने प्रार्थना समय पर छुआछूत का जन्म कहां से हुआ कैसे हुआ यह बच्चों को बताया तो स्कूल के शिक्षकों की आँखे खुल गई ।


 


वह महिला बहुत खुश थी उसकी बच्ची की जैसे मैंने जीवन बदल दिया । अगस्त माह में रक्षाबंधन पर वह राखी लेकर स्कूल आ गई ।चपरासिन को खल गया। तेरी नाक को शर्म नहीं है ! तू सर को राखी बांधने आ गई, साहब ने जरा सा मदद क्या कर दिये। तुम तो सिर पर बैठने लगीं। भाग यहां से। मुझे आवाज सुनाई पड़ी, भाग यहां से ..तो मैंने सोचा कुछ हो गया मैं बाहर निकला देखा दो तीन लोग, स्कूल बस के ड्राईवर उसे समझा रहे थे । मैंने पूछा क्या हो गया।वह बोली साहब आपके कारण मेरी बेटी की जिंदगी बदल जायेगी।इस कारण मेरा मन आपको भाई मानने लगा और राखी बांधने आई थी। मैं पांच मिनट तक शांत रहा कुछ नहीं बोला। वह बोली कि साहब कोई बात नहीं मैं यहां रख देती हूँ आपके निमित्त आप जैसा बांधना है या नहीं बांधना देख लेना। मैंने उसे पास बुलाया। मैंने कहा साल भर बिना राखी बांधे भी भाई- बहिन, भाई- बहिन ही रहते हैं। तो ..साहब इसलिए रखकर जा रही हूँ ।मैंने कहा बहिन का धर्म क्या है जानती हो?भाई क्या होता है? कभी जानने की कोशिश की ! या चले राखी बांधने ! भाई ने जेब से पैसा दे दिया बहिन ने राखी बांध दी हो गया, साल भर बाद फिर आयेगी राखी।साहब मैं अनपढ हूँ भाई बहन की मदद करता है सुनी हूँ आपने मदद करे तो राखी बांधने का विचार आ गया इसलिए आई थी। पर यहां सब लोग भी मना कर रहे थे । कैम्पस के अंदर कर्मचारी पास आ गये थे मानों मैं उनकी क्लास ले रहा हूँ। मैंने उस महिला से कहा कि मैंने अपनी बहिन के अलावा किसी से आज तक राखी नहीं बंधवाई।अगर राखी बांधना है तो बहन का फर्ज निभाना होगा। सब कर्मचारी और वह महिला शांत हो गये। जरा सी आवाज किसी की नहीं आ रही थी। तभी वह महिला बोली साहब आप बता दें मुझे क्या फर्ज निभाना है।मैंने कहा जब तुमको बहिन का फर्ज ही पता नहीं है तो तुम क्या राखी बांधोगी।आँसू निकल गये उसके। मुझे पता है साहब वह राखी रखी थाली उठा लायी तिलक लगाई राखी बांधी। मैंने पैसे देना चाहा पैसा नहीं ली।और अचानक मेरे पैर पड़ ली। मैं कुछ बोलता कि हम बहिन से पैर नहीं पड़वाते तो वह बोली साहब हमारे यहां छोटे बड़े का पैर पड़ते हैं।हालांकि मैं पैर पड़वाने के पक्ष में नहीं रहता। सभी देख रहे थे । दिन बीत गये उसकी लड़की का पांचवी के बाद महाराष्ट्र के स्कूल में एडमीशन हो गया । उसी समय मैं सड़क दुर्घटना में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दो साल के लगभग एडमिट रहा। वह महिला एक दो बार मुझे देखने नागपुर जहां एडमिट था गई। उसके पश्चात मैंने वहां का स्कूल आदि सब बेचकर सिवनी माता पिता के पास आ गया। यहाँ कालेज स्कूल खोल लिया। सन् 2018 में वह महिला छिन्दवाड़ा में मिल गई। दूर से उसने पहचान लिया और सड़क पर ही पैर पड़ लिया।उसके साथ उसकी बेटी थी जो डॉक्टर बन गई थी ।उसे माँ की हरकत अच्छी नहीं लग रही थी।क्योंकि वह पढ़ी लिखी थी। अपनी बेटी की ओर इशारा करते कहती है इन्हीं साहब के कारण तेरा अच्छे स्कूल में एडमीशन हो गया। और तू पढ़कर डॉक्टर बनी है। मैंने उसको बधाई दिया । वह थैक्यू बोली।उसकी माँ ने डॉटा ! पैर पड़ मैंने मना किया, मैंने कहा रहने दो ।लड़की भी पैर पड़नें में संकोच कर रही थी। संकोच स्वाभाविक था।पढ़ लिख जो गई थी।


 


 सोच थी यह ! पढ़े लिखों की ! और अनपढ़ों की! जिसमें पैर छूने की हो सोच हो या छुआछूत की।


 


    इसी सोच में डूबा हूँ मैं


डॉ अम्बरीष 'अम्बर  बाराबंकी

श्रीराम मंदिर का साहित्यिक स्वागत---


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                         दोहे


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बोल रहे जयहिंद सब ,उपवन बाग मिलिंद ।


अपने घर में आ गये, आज इमामे हिंद ।। १।।


(इमामे हिंद -भगवान राम)


 


ईश्वर या अल्लाह हों , राजनीति से दूर ।


दोनों एक प्रणम्य हैं , उन्हीं का जग में नूर।।२।।


 


मंदिर था प्रभु राम का, नहीं बहुत आसान।


योगी अंगद हो गये, मोदी श्री हनुमान।।३।।


 


हिन्दू हो या सिक्ख हो, ईसाई इस्लाम।


लेकिन है ध्रुवसत्य यह,सबके पूर्वज राम।।४।।


 


आज शम्सि मीनाई की,नज्म हुई साकार।


 इंकलाब की किरण को,मिला भव्य घर द्वार।।५।।


(इंकलाब की किरण-भगवान राम)


 


शायर विनय कुमार की, रामायण के राम।


अपने घर आये -हुई ' उर्दू तृप्ति तमाम।।६।।


(विनय कृत - विनय रामायण -उर्दू में )


 


रखते हैं श्री राम प्रति, उर्दू दां स्नेह।


'रामायण खुशतर' यहां,है 'रामायण मेह '।।७।।


(जगन्नाथ 'खुश्तर'कृत व सूरज नारायण 'मेह' कृत)


 


उर्दू -फारसी सभी के ,राम रहे मखदूम ।


'फारसी रामायण'पढ़ो,या कि पढ़ो 'मंजूम'।।८।।


(मखदूम-प्रिय, पहली -उर्दू शायर बदायूंनी कृत , दूसरी -' रामायण मंजूम'-शंकर दयाल 'फर्हत'कृत)


 


'रामायण का तर्जुमा' , भावों का भण्डार ।


श्री 'बहार' की भी पढ़ो, रामायण एक बार।।९।।


(बांके बिहारी लाल'बहार' कृत)


 


आलम वा रसखान के,राम चांद ज्यों ईद।


रामकाव्य रचकर गये,शायर 'चिश्ति'-'फरीद'।।१०।।


(ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती व बाबा फरीद)


 


'बेदिल' वा 'रसलीन' के,चित-चिंतन में राम ।


और 'हमीमुद्दीन' भी , लेते यहीं विराम ।।११।।


(चंद्रभान 'बेदिल', सै०गुलाम नबी'रसलीन'- बिलग्राम, हरदोई,हमीमुद्दीन नागौरी , राजस्थान)


 


विविध विलक्षण व विशद, होकर भी है ललाम।


संस्कृति को चिन्हित करें , सीता लक्ष्मण राम ।।१२।।


 


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                       डॉ अम्बरीष 'अम्बर'


                                बाराबंकी


काव्य रंगोली परिवार के द्वारा श्री सुंदरकांड का संगीतमय पाठ

काव्य रंगोली हिंदी साहित्य पत्रिका संबद्ध श्याम सौभाग्य फाउंडेशन के संयोजन में अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के अवसर पर 5 अगस्त 2020 को खमरिया पंडित स्थित एवं श्री हनुमान चालीसा का सत्संग सत्स्वर संगीत मय पाठ का आयोजन करने का संकल्प लिया गया है। स्थान होगा काव्य रंगोली के संपादक श्री मुन्नालाल मिश्र अनुज जी के आवास पर बना हुआ भगवान आशुतोष शिव शंकर जी का भव्य मंदिर प्रांगण और उसी प्रांगण में श्री रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ 5 अगस्त 2020 सायंकाल 5:00 बजे से कोरोना संकट एवम शाशनदेश के चलते बहुत अधिक भीड़ न करते हुए बहुत ही सीमित पाठकों द्वारा यह आयोजन हो रहा है आप लोग अपने घरों में काव्य रंगोली फेसबुक समूह के द्वारा सीधा सजीव प्रसारण देख सकते हैं ।बहुत-बहुत धन्यवाद जय श्री राम


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नीतेश उपाध्याय 


पिता- श्री उमेश उपाध्याय 


माता - श्रीमती पुष्पा उपाध्याय 


जन्म- 9-12-1995


जन्मस्थान- केवलारी उपाध्याय 


शिक्षा - बी.एस.सी ( सीबीजेड) एम.ए. (इंग्लिश)


 


पता- ग्राम केवलारी उपाध्याय पो- हिनौती जिला दमोह म.प्र.


ईमेल-


neeteshupadhyay96@gmail.com


मो- 7869699659


 


कविता-1


 खामोशी 


 


कई दर्द आसूँ बहाए बहुत खामोशी से 


गम दिल में जाने कितने छुपाए बहुत खामोशी से 


 


कुछ अपने थे जिनपर बहुत यकीन था मुझे 


वो भी एक एक करके सारे गवाए बहुत खामोशी से 


 


न कभी कुछ मिला मुझे उम्रभर खुदा से भी 


हर बार लौट आई दुआएँ बहुत खामोशी से 


 


यूँ तो तकलीफ बहुत आई जीने में


कई सितम रखे मैंने सीने में


हर दिन खिलाफ चली हवाएँ बहुत खामोशी से 


 


कई बार इलाज भी ढूँढा मर्ज ए मोहब्बत का मैंने 


काम आई न हकीम की दवाएँ बहुत खामोशी से 


 


देखकर उसे लगता था इश्क मौजूद है जहाँ में 


उनके बदलते रुख से लगा काश यूँ हम बदल पाएँ बहुत खामोशी से 


 


सब माँगा कि शायद कुछ तो मुकम्मल हो 


कभी पूरी न हुई जमाने से रजाएँ बहुत खामोशी से 


 


उनके रवैया और जमाने का रवैया बिल्कुल एक सा हो चला


इस दुनिया की भीड़ में अपना कैसे ढूँढ पाएँ बहुत खामोशी से 


 


थी महफिल पूरे शहर में उसकी दिल को तोड़कर रखने बाले


हम हर दिन यूँ ही टूट जाए 


कविता-2


 कह दिया


एक दर्द 


 


कभी आवारा हमें उन्होंने तो कभी नाकार कह दिया


घर पर बैठे रहे नाकाम से तो बेरोजगार कह दिया


 


दर्द आसूँ जखम सितम से भरा था दिल मेरा 


मेरी हालत देखकर मुझे गमों का बाजार कह दिया 


,,


 


कभी कहा इश्क है मोहब्बत है मुझे तुमसे 


उस हँसीने ने भी और करो इंतजार कह दिया 


,,,


 


न कोई जुल्म कभी किया वफा में


न कोई आलम कभी दिया जफा में 


फिर किस विनाह पर मुझे गुनहगार कह दिया 


 


,,,,,


 


नहीं हवस न प्यास की तलब थी मुझे कभी 


जो मिला तन्हा तो मुझे जिस्मों का तलवदार कह दिया 


 


,,,,,


 


कभी आँखों से गिरे अश्क मेरे 


तेरी निशानी के बतौर 


इन निगाहों को भी उन्होंने झूठा सा अखबार कह दिया 


 


,,,,


 


न बदला मैं तुम्हारी तरह उम्र भर कभी 


फिर भी मुझे ही बदलता सा किरदार कह दिया 


 


,,,


 


कोई पूछे मुझे कोई समझे मुझे इतनी काबिलियत नहीं 


 


शायद इसीलिए तुमने जाते जाते मुझे बेकार कह दिया 


,,,


 


मेरी मिटाकर हँसी जमीं के सारे मौसम तूने 


खुदको जमाने भर में गुलजार कह दिया 


,,,,


 


कविता -3


करेंगे - एक कटाक्ष 


 


सड़कों पर हो रही दुर्घटनाएँ, प्रभावित होती जीवन की धाराएँ


मेट्रो का तल में बस विस्तार करेंगे


ये झूठे वादे करने बालों अब इन समस्याओं का क्या सुधार करेंगे 


 


अपनों में भी नहीं सामंजस्यता एक बिल पास करने में भी आती है विपदा


और कहते हैं कई देशों में हम अपना व्यापार करेंगे 


 


नेताओं ने कहा था चुनाव के समय


लायेंगे विकासशीलता की एक नई लय


 ये मिथ्या के भाषण हमसे ये हर बार करेंगे 


 


सारे अधिकारी निलंबित हो 


जो कार्य में अपने विलंबित हो 


अब उठकर बोलना होगा


ये कब तक हमको लाचार करेंगे


 


ये देश है हिंदुस्तान मेरा यहाँ बलिदानों की रीत है 


होनी एक दिन नीरशता पर जागरुकता की जीत है 


जी लो देश को डुबाने बालों अब बाकी तेरे दिन चार करेंगे 


 


 कविता-4


नहीं बहाऊँगा


 


हाँ अब तेरी याद भी आएगी तो भी 


तेरी यादों में आँसू नहीं बहाऊँगा


कितना भी मन होगा तुमसे बात करने का 


पर अब पहले की तरह तुम्हे फोन भी नहीं लगाऊँगा


 


हाँ छोड़ आया हूँ वो वादे जिनपर तुम खरे ही नहीं उतरे थे 


मेरे ख्वाब मेरी आँखों में टूटकर यूँ बिखरे थे 


तो भी तुम्हे क्या लगा मैं अकेला ही बेमतलब सा ही जीता जाऊँगा 


 


तुमने अपने दिल से बेघर किया है मुझे दर्द तकलीफ तो बहुत हुई 


पर ऐसा नहीं कि तुमसे जुदा हुआ तो अपना नंबर भी बदल आऊँगा 


 


कभी हैरानी परेशानी भी बहुत होती होगी कभी कभी मुझे इन रातों में 


पर ऐसा नहीं कि तू मेरे साथ नहीं तो मैं रातभर सो नहीं पाऊँगा 


 


कोई गुनाह नहीं था वफा की ख्वाहिश रखना जानिब


अगर है भी तो मैं न यूँ नजरे जमाने से चुराऊँगा


 


 कविता -5


दहलाएँगे 


एक कविता आगामी स्वतंत्रता दिवस पर 


 


बहुत जलाए तुमने झंडे अब झंडे हम फहराएँगे


बहुत दिखाए दर्द थे तुमने अब हम तुमको दहलाएँगे 


 


खुशियाँ चेहरे पर पहले की तरह फिर से हम लाएँगे


इस बार तिरंगा जम्मू में इस बार से हम फहराएँगे


 


एकता का प्रतीक है भारत, सबसे अच्छा मीत है भारत 


क्या है भारत की स्वर्णिम गाथा सबको हम बतलाएँगे 


 


पत्थरबाजों पर ताला अब हाथों में कस जाएँगे 


अलगाववादियों के घर के घर सारे दूर कहीं बस जाएँगे 


करते है वादा खुदसे हम आतंकवाद भी जड़ से मिटाएँगे 


 


 


जो कहीं खो सी गई थी वो आवाजें खुशियाँ बाली


लाएँगे फिर से हम एक रोशन दुनिया बाली


आजादी की फिर से ज्वालाएँगे हाथों में आज उठाएँगे


 


 


जैसा भारत वर्षों पहले अपना कहलाता था 


खुद सूखी खाकर रोटी दूजों को नई रोज खिलाता था 


एक नवभारत मिलकर हम फिर से आज बनाएँगे


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की  महिमा  वर्णन


द्वादश पावन ज्योतिर्लिंगम्, महाराष्ट्र प्रान्त में है स्थित।


घुश्मेश्वर या घृष्णेश्वर, दोनों नामों से है चर्चित।


सुन्दर नैसर्गिक स्थल यह ऐल्लोरा में निकट गुफायें।


जनपद औरंगाबाद निकट,श्रद्धालु सदा दर्शन हित आयें।


ब्राम्हण इक शिव भक्त सुधर्मा,पत्नी सरल सुशील सुदेहा।


भई नहीं संतति इनके घर,सूना आंगन सूना गेहा।


बहन सुदेहा की घुष्मा से,ब्याह दूसरा ब्राह्मण कीन्हा।


परम भक्त शिव की थी घुष्मा,भये प्रसन्न पुत्र इक दीन्हा।


मिट्टी का शिव लिंग बनाकर, विधिवत पूजन अर्चन करती।


शिव मन्दिर के निकट सरोवर, प्रतिदिन उन्हें विसर्जित करती।


धूर्त पुजारी शिव मंदिर का, इस बालक का बध कर डाला।


निर्जीव देह को ले जाकर, फिर उसी सरोवर में डाला।


परम कृपा की शिव शंकर ने,बालक को जीवन दान दिया।


हो गये वहीं स्थित शिव जी, अनुरोध भक्त स्वीकार किया।


द्वादश ज्योतिर्लिंगम् का दर्शन,पावन परम महा फल दाई।


श्री रुद्र कोटि संहिता सहित,शिव पुराण ने महिमा गाई।


चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम।,


हे शिवशंकर हे गंगाधर हे गौरीपति तुम्हें प्रणाम।


     सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार

भगवान शिव के एकादश ज्योतिर्लिंग का विवरण तथा महिमा।


             --- एकादश--- 


शिव ज्योतिर्लिंगम् एकादश,अति पावन श्री केदारेश्वर।


श्री पर्वतराज हिमालय की,केदार श्रृंग पर शिवशंकर।


सुरनर मुनि यक्ष असुर पूजित ज्योतिर्लिंगम् यह अति पावन।


महिमा अमित शास्त्र में वर्णित, प्रकृति छटा अति रम्य सुहावन।


पश्चिम मंदाकिन के तट पर, शिव केदारेश्वर का मन्दिर।


पूर्व अलकनंदा के तट पर,श्री बद्रीनाथ विष्णु मन्दिर।


संयुक्त धार यह गंगा से, मिलती है देवप्रयाग जाकर।


नर नारायण ने शिव जी का,तप कठिन किया केदार शिखर।


ऋषियों के सम्मुख प्रगट हुए औघड़ दानी श्री शिवशंकर।


होकर भावविभोर उन्होंने,की स्तुति अरु पूजन अर्चन।


मैं अति प्रसन्न हूं वर मांगो, बोले गौरी पति जगबन्दन।


देवाधिदेव हे महादेव, मेरी विनती स्वीकार करें।


प्रभु ज्योतिर्लिंग स्वरूप यहीं,स्थित होने की कृपा करें।


ए्वमस्तु कह ऋषियों से, शिव करने लगे निवास वहीं।


केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगम्,तीरथ ऐसा अन्यत्र नहीं।


चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम।


हे शिवशंकर हे गंगाधर हे गौरीपति तुम्हें प्रणाम।


डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी

राम बाण🏹 अनछुए सवाल (संस्मरण)


मैं अपने स्कूल में बैठा था तभी एक महिला अंदर आने लगी।चपरासी ( महिला)ने रोका।अंदर नहीं जा सकती।


साहब से मिलना है तो नहा धोकर आ। बाम्हन आदमी से वैसे ही मिलने आ गई। साहब पूजा पाठ करते हैं, नहा धोकर स्कूल आते हैं। तू वैसे ही मिलने आ गई । वह महिला वापस चली गई 1 घंटे बाद फिर आई। चपरासी ने फिर उसे भगाना चाहा। तू फिर आ गई तेरे को बोली थी मैं नहा धोकर आ वैसे ही आ गई । वह बोली मैं नहाकर आई हूँ । साहब से दूर से ही बात कर लूंगी। एक बार साहब से मिलवा दो। महिला चपरासी मेरे चैम्बर में आई बोली सर वो (जातिसूचक शब्द निकालकर) आई है आपसे मिलना चाहती है। मैंने उसे आने को कहा वह दूर से ही अपनी बातें रखने लगी। उसे अपनी बच्ची का एडमीशन कराना था। यह घटना लगभग 30 वर्ष पहले की है। उस समय तहसील इतने विकसित नहीं थे। छुआछूत का प्रभाव था। वह बोली सर यदि आप मेरी बच्ची एडमीशन अपने स्कूल में कर दें तो बहुत कृपा होगी। मैंने कहा यहाँ सरकारी स्कूल हैं, वहां एडमीशन ले लो यह प्राइवेट स्कूल है। यहां फीस लगती है।उसकी हालात से वह गरीब लग रही थी। वह बोली साहब मैं दूंगी। बस मेरी बच्ची को पाँचवीं तक पढ़ा दो। मैंने फिर कहा पांचवी तक ही क्यों? वह बोली साहब पांँचवी के बाद महाराष्ट्र में कोई स्कूल(जिसका नाम लिया) है, उसमे एडमीशन हो जायेगा। मैंने कहा यह जानकारी किसने दिया। वह सेंट्रल स्कूल के किसी सर का नाम बतायी कि चतुर्वेदी साहब ही तेरी मदद कर सकते हैं । सरकारी स्कूल में नाम लिखाने की डेट निकल गई ।और वहाँ पढ़ाई भी नहीं होती है। मैंने क्लर्क को बुलवाकर उसे एडमीशन प्रक्रिया बता दीजिये कहा।वह मुझे आश्चर्य से देख रहा था। कुछ बोला नहीं। उसके जाने के बाद एक शिक्षक और महिला चपरासी आ गये। सर इसकी बच्ची को एडमीशन दोगे? मैंने कहा क्यों क्या हुआ! सर वो स्वीपर (जाति सूचक शब्द दोहराई) है। तो क्या हुआ? वह बोली सर अपने स्कूल में सब अच्छी जात के हैं। एडमीशन नहीं होंगे,लोग क्या कहेंगे। मैंने चपरासी को बुलाया और कहा जब तुम्हारी नियुक्ति किया था उसके बाद चाय बनाने कहा था तब तुमने क्या कहा था। वह शांत हो गई। (मुझे याद है वह दिन! चाय के लिये कहा तो इसने कहा था सर आप हमारे हाथ की चाय पी लोगे। मैंने कहा हाथ की नहीं हाथ अच्छे से धोकर साफ स्वच्छता से चाय बनाओ । वह उस समय फिर बोली सर हम डेहरिया समाज के हैं। मैंने फिर कहा मुझे यह नहीं जानना है आप किस समाज से हैं आप स्वच्छता से चाय बनायें।) इस आशय से शिक्षक भी शांत रहा।और वह चपरासी के साथ बाहर चला आया।


सारे स्कूल में चर्चा थी कि स्वीपर की लड़की को पढाना पड़ेगा। सब लड़के उसे छुएंगे।एक दो पेरेंट भी आ गये। मैंने प्रार्थना समय पर छुआछूत का जन्म कहां से हुआ कैसे हुआ यह बच्चों को बताया तो स्कूल के शिक्षकों की आँखे खुल गई ।


वह महिला बहुत खुश थी उसकी बच्ची की जैसे मैंने जीवन बदल दिया । अगस्त माह में रक्षाबंधन पर वह राखी लेकर स्कूल आ गई ।चपरासिन को खल गया। तेरी नाक को शर्म नहीं है ! तू सर को राखी बांधने आ गई, साहब ने जरा सा मदद क्या कर दिये। तुम तो सिर पर बैठने लगीं। भाग यहां से। मुझे आवाज सुनाई पड़ी, भाग यहां से ..तो मैंने सोचा कुछ हो गया मैं बाहर निकला देखा दो तीन लोग, स्कूल बस के ड्राईवर उसे समझा रहे थे । मैंने पूछा क्या हो गया।वह बोली साहब आपके कारण मेरी बेटी की जिंदगी बदल जायेगी।इस कारण मेरा मन आपको भाई मानने लगा और राखी बांधने आई थी। मैं पांच मिनट तक शांत रहा कुछ नहीं बोला। वह बोली कि साहब कोई बात नहीं मैं यहां रख देती हूँ आपके निमित्त आप जैसा बांधना है या नहीं बांधना देख लेना। मैंने उसे पास बुलाया। मैंने कहा साल भर बिना राखी बांधे भी भाई- बहिन, भाई- बहिन ही रहते हैं। तो ..साहब इसलिए रखकर जा रही हूँ ।मैंने कहा बहिन का धर्म क्या है जानती हो?भाई क्या होता है? कभी जानने की कोशिश की ! या चले राखी बांधने ! भाई ने जेब से पैसा दे दिया बहिन ने राखी बांध दी हो गया, साल भर बाद फिर आयेगी राखी।साहब मैं अनपढ हूँ भाई बहन की मदद करता है सुनी हूँ आपने मदद करे तो राखी बांधने का विचार आ गया इसलिए आई थी। पर यहां सब लोग भी मना कर रहे थे । कैम्पस के अंदर कर्मचारी पास आ गये थे मानों मैं उनकी क्लास ले रहा हूँ। मैंने उस महिला से कहा कि मैंने अपनी बहिन के अलावा किसी से आज तक राखी नहीं बंधवाई।अगर राखी बांधना है तो बहन का फर्ज निभाना होगा। सब कर्मचारी और वह महिला शांत हो गये। जरा सी आवाज किसी की नहीं आ रही थी। तभी वह महिला बोली साहब आप बात बता दें मुझे क्या फर्ज निभाना है।मैंने कहा जब तुमको बहिन का फर्ज ही पता नहीं है तो तुम क्या राखी बांधोगी।आँसू निकल गये उसके। मुझे पता है साहब वह राखी रखी थाली उठा लायी तिलक लगाई राखी बांधी। मैंने पैसे देना चाहा पैसा नहीं ली।और अचानक मेरे पैर पड़ ली। मैं कुछ बोलता कि हम बहिन से पैर नहीं पड़वाते तो वह बोली साहब हमारे यहां छोटे बड़े का पैर पड़ते हैं।हालांकि मैं पैर पड़वाने के पक्ष में नहीं रहता। सभी देख रहे थे । दिन बीत गये उसकी लड़की का पांचवी के बाद महाराष्ट्र के स्कूल में एडमीशन हो गया । उसी समय मैं सड़क दुर्घटना में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दो साल के लगभग एडमिट रहा। वह महिला एक दो बार मुझे देखने नागपुर जहां एडमिट था गई। उसके पश्चात मैंने वहां का स्कूल आदि सब बेचकर सिवनी माता पिता के पास आ गया। यहाँ कालेज स्कूल खोल लिया। सन् 2018 में वह महिला छिन्दवाड़ा में मिल गई। दूर से उसने पहचान लिया और सड़क पर ही पैर पड़ लिया।उसके साथ उसकी बेटी थी जो डॉक्टर बन गई थी ।उसे माँ की हरकत अच्छी नहीं लग रही थी।क्योंकि वह पढ़ी लिखी थी। अपनी बेटी की ओर इशारा करते कहती है इन्हीं साहब के कारण तेरा अच्छे स्कूल में एडमीशन हो गया। और तू पढ़कर डॉक्टर बनी है। मैंने उसको बधाई दिया । वह थैक्यू बोली।उसकी माँ ने डॉटा ! पैर पड़ मैंने मना किया, मैंने कहा रहने दो ।लड़की भी पैर पड़नें में संकोच कर रही थी। संकोच स्वाभाविक था।पढ़ लिख जो गई थी।


 सोच थी यह ! पढ़े लिखों की ! और अनपढ़ों की! जिसमें पैर छूने की हो सोच हो या छुआछूत की।


    इसी सोच में डूबा मैं सोच बदलने की सोच रहा हूँ।


        डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी


आशुकवि नीरज अवस्थी

मेंहदी भरे हाँथ बहना के और अखण्ड सुहाग रहे।


राखी सजे हाथ पर मेरे किंचित द्वेष न राग रहे।।


भाई-बहन का प्यार अलौकिक अतुलनीय धरती पर है,


हर भाई को बहन विधाता देना नीरज मांग रहे।


 


हम भावुक हो अश्रुबिंदु की भेंट समर्पित करते है।


वैभवशाली बहनो पर निज प्राण निछावर करते है।


नेह बहन भाई का जिसके सन्मुख दिनकर भी फीका।


बहनो के चरणों में मुद्रा महल अटारी धरते है।


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


एस के कपूर श्रीहंस

हाइकु


 


रक्षा का धागा


बिन भैना अभागा


भाग्य है जागा


 


सूत्र रक्षा का 


बंधन बंध जाता


ये बहन का


 


वचन धागा


निभाता यह भाई


बने वो भ्राता


 


पवित्र टीका


विश्वास की लकीर 


नहीं तो फीका


 


सिर्फ न धागा


स्नेह प्रेम गूँधा है


नहीं दिखावा


 


भाई निभाये


अवश्य जो बहन 


कभी बुलाये


 


है अद्धभुत


पर्व यह राखी का


वचन बद्ध


 


भाई बहन


त्याग ओ समर्पण


कर सहन


 


भाई बहना


रिश्ता अनमोल है


राखी कहना


 


रचयिता एस के कपूर श्रीहंस


बरेली।


 


संजय जैन

*बहिन भाई बंधन*


विधा : कविता


 


छोटी बड़ी बहिनों का,


हमे मिलता रहे प्यार।


क्योकि मेरी बहिना ही,


है मेरी मातपिता यार।


जो मांगा वो लेकर दिया,


अपने आपको सीमित किया।


पर मांग मेरी पूरी किया,


और मेरे को खुश करती रही।


मेरी गलतियों को छुपाती रही, 


और खुद डाट खाती रही।


पर मुझे हमेशा बचती रही,


ऐसी होती है बहिना।


उन सब का उपकार में,


कभी चुका सकता नहीं।


अपनी बहिनों को मैं,


कभी भूला सकता नहीं।


रहेंगी यादे सदा उनकी 


मेरे दिल के अंदर।


जो कुछ भी हूँ आज में,


बना बदौलत उनकी ही।


ये कर्ज हमारे ऊपर उनका


जिसको उतार सकता नही।


में अपनी बहिन को 


जिंदा रहते भूल सकता नही।


रक्षा बंधन पर बहिना से मिलना तो एक बहाना है।


वो तो मेरी हर धड़कन में, बसती क्योंकि बहिन हमारी है।


इसलिए टूट सकता नही भाई बहिन का ये बंधन।


इसलिये भूल सकता नही, 


रक्षा बंधन रक्षा बंधन।।


 


उपरोक्त मेरी कविता सभी भाइयों की ओर से बहिनों के लिए समर्पित है।


 


संजय जैन (मुम्बई)


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

रक्षाबंधन.................


 


न भाई बहिन का पर्व ये केवल


सबलों का है निबलों को संबल


एक धागे के बंधन में बंध कर


बढ़ जाता है असहायों का बल


 


है संस्कार संस्कृति की जंजीर 


बांधे रहती है संबंधों को राखी


एक दूजे के लिए समर्पण बन


रिश्तों में सदभावों की साक्षी


 


निज कर्तव्य का बोध कराती


परम्पराओं को मंडित करती


कैसी रक्षाबंधन की पावनता 


दुसवृतियों को खंडित करती


 


आओ मिल करके संकल्प करे


सदभावों के बंधन में बंध जाएं


है अतुल धरोहर भारतीयों की


पुण्य पर्व को न कभी लजाएं


 


जाति धर्म से ऊपर है मानवता


हुमायूं ने ये कर दिया प्रमाणित


उज्ज्वलता लेकर के भावों में


करें कभी न नरता अपमानित।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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