पिता- श्री उमेश उपाध्याय
माता - श्रीमती पुष्पा उपाध्याय
जन्म- 9-12-1995
जन्मस्थान- केवलारी उपाध्याय
शिक्षा - बी.एस.सी ( सीबीजेड) एम.ए. (इंग्लिश)
पता- ग्राम केवलारी उपाध्याय पो- हिनौती जिला दमोह म.प्र.
ईमेल-
neeteshupadhyay96@gmail.com
मो- 7869699659
कविता-1
खामोशी
कई दर्द आसूँ बहाए बहुत खामोशी से
गम दिल में जाने कितने छुपाए बहुत खामोशी से
कुछ अपने थे जिनपर बहुत यकीन था मुझे
वो भी एक एक करके सारे गवाए बहुत खामोशी से
न कभी कुछ मिला मुझे उम्रभर खुदा से भी
हर बार लौट आई दुआएँ बहुत खामोशी से
यूँ तो तकलीफ बहुत आई जीने में
कई सितम रखे मैंने सीने में
हर दिन खिलाफ चली हवाएँ बहुत खामोशी से
कई बार इलाज भी ढूँढा मर्ज ए मोहब्बत का मैंने
काम आई न हकीम की दवाएँ बहुत खामोशी से
देखकर उसे लगता था इश्क मौजूद है जहाँ में
उनके बदलते रुख से लगा काश यूँ हम बदल पाएँ बहुत खामोशी से
सब माँगा कि शायद कुछ तो मुकम्मल हो
कभी पूरी न हुई जमाने से रजाएँ बहुत खामोशी से
उनके रवैया और जमाने का रवैया बिल्कुल एक सा हो चला
इस दुनिया की भीड़ में अपना कैसे ढूँढ पाएँ बहुत खामोशी से
थी महफिल पूरे शहर में उसकी दिल को तोड़कर रखने बाले
हम हर दिन यूँ ही टूट जाए
कविता-2
कह दिया
एक दर्द
कभी आवारा हमें उन्होंने तो कभी नाकार कह दिया
घर पर बैठे रहे नाकाम से तो बेरोजगार कह दिया
दर्द आसूँ जखम सितम से भरा था दिल मेरा
मेरी हालत देखकर मुझे गमों का बाजार कह दिया
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कभी कहा इश्क है मोहब्बत है मुझे तुमसे
उस हँसीने ने भी और करो इंतजार कह दिया
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न कोई जुल्म कभी किया वफा में
न कोई आलम कभी दिया जफा में
फिर किस विनाह पर मुझे गुनहगार कह दिया
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नहीं हवस न प्यास की तलब थी मुझे कभी
जो मिला तन्हा तो मुझे जिस्मों का तलवदार कह दिया
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कभी आँखों से गिरे अश्क मेरे
तेरी निशानी के बतौर
इन निगाहों को भी उन्होंने झूठा सा अखबार कह दिया
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न बदला मैं तुम्हारी तरह उम्र भर कभी
फिर भी मुझे ही बदलता सा किरदार कह दिया
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कोई पूछे मुझे कोई समझे मुझे इतनी काबिलियत नहीं
शायद इसीलिए तुमने जाते जाते मुझे बेकार कह दिया
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मेरी मिटाकर हँसी जमीं के सारे मौसम तूने
खुदको जमाने भर में गुलजार कह दिया
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कविता -3
करेंगे - एक कटाक्ष
सड़कों पर हो रही दुर्घटनाएँ, प्रभावित होती जीवन की धाराएँ
मेट्रो का तल में बस विस्तार करेंगे
ये झूठे वादे करने बालों अब इन समस्याओं का क्या सुधार करेंगे
अपनों में भी नहीं सामंजस्यता एक बिल पास करने में भी आती है विपदा
और कहते हैं कई देशों में हम अपना व्यापार करेंगे
नेताओं ने कहा था चुनाव के समय
लायेंगे विकासशीलता की एक नई लय
ये मिथ्या के भाषण हमसे ये हर बार करेंगे
सारे अधिकारी निलंबित हो
जो कार्य में अपने विलंबित हो
अब उठकर बोलना होगा
ये कब तक हमको लाचार करेंगे
ये देश है हिंदुस्तान मेरा यहाँ बलिदानों की रीत है
होनी एक दिन नीरशता पर जागरुकता की जीत है
जी लो देश को डुबाने बालों अब बाकी तेरे दिन चार करेंगे
कविता-4
नहीं बहाऊँगा
हाँ अब तेरी याद भी आएगी तो भी
तेरी यादों में आँसू नहीं बहाऊँगा
कितना भी मन होगा तुमसे बात करने का
पर अब पहले की तरह तुम्हे फोन भी नहीं लगाऊँगा
हाँ छोड़ आया हूँ वो वादे जिनपर तुम खरे ही नहीं उतरे थे
मेरे ख्वाब मेरी आँखों में टूटकर यूँ बिखरे थे
तो भी तुम्हे क्या लगा मैं अकेला ही बेमतलब सा ही जीता जाऊँगा
तुमने अपने दिल से बेघर किया है मुझे दर्द तकलीफ तो बहुत हुई
पर ऐसा नहीं कि तुमसे जुदा हुआ तो अपना नंबर भी बदल आऊँगा
कभी हैरानी परेशानी भी बहुत होती होगी कभी कभी मुझे इन रातों में
पर ऐसा नहीं कि तू मेरे साथ नहीं तो मैं रातभर सो नहीं पाऊँगा
कोई गुनाह नहीं था वफा की ख्वाहिश रखना जानिब
अगर है भी तो मैं न यूँ नजरे जमाने से चुराऊँगा
कविता -5
दहलाएँगे
एक कविता आगामी स्वतंत्रता दिवस पर
बहुत जलाए तुमने झंडे अब झंडे हम फहराएँगे
बहुत दिखाए दर्द थे तुमने अब हम तुमको दहलाएँगे
खुशियाँ चेहरे पर पहले की तरह फिर से हम लाएँगे
इस बार तिरंगा जम्मू में इस बार से हम फहराएँगे
एकता का प्रतीक है भारत, सबसे अच्छा मीत है भारत
क्या है भारत की स्वर्णिम गाथा सबको हम बतलाएँगे
पत्थरबाजों पर ताला अब हाथों में कस जाएँगे
अलगाववादियों के घर के घर सारे दूर कहीं बस जाएँगे
करते है वादा खुदसे हम आतंकवाद भी जड़ से मिटाएँगे
जो कहीं खो सी गई थी वो आवाजें खुशियाँ बाली
लाएँगे फिर से हम एक रोशन दुनिया बाली
आजादी की फिर से ज्वालाएँगे हाथों में आज उठाएँगे
जैसा भारत वर्षों पहले अपना कहलाता था
खुद सूखी खाकर रोटी दूजों को नई रोज खिलाता था
एक नवभारत मिलकर हम फिर से आज बनाएँगे