काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रचना उनियाल

रचना उनियाल(परिचय)


 


माता पिता साहित्यिक क्षेत्र से जुड़े हुए थे।


पिता- स्वर्गीय कवि भगीरथ


कवि भगीरथ की कृतियाँ


जय ध्वनि, सृष्टि-सेतु


माता-श्रीमती मंजू काले


पति -कर्नल अरविंद मोहन उनियाल (सेवानिवृत्त)


 


शिक्षा-रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर, व बी.एड.


(भूतपूर्व अध्यापिका )



उपलब्धियाँ-


बारह वर्ष आई.टी.आई. महिला मंडल के सचिव के पद पर रहते हुये तीन सौवेनियरस का लोकार्पण किया।



रचनाओं का विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन।
मंचों पर काव्य पाठ 
रुचि-गायन,लेखन,कार्यक्रमों का आयोजन,

प्रकाशित काव्य साझा संग्रह-


 


1-शब्द कलश,


2-महफ़िल-ए-ग़ज़ल,
3-भाव सरिता,


4-योग संगम,



एकल संग्रह-


1-प्रस्तुति -एक प्रयास


2-नोराइज़


3-भगीरथ की रचना


4-दमकते बदरवा


5-काव्यमेघ


 


सम्मान-


साहित्य प्रहरी सम्मान-प्रेरणा मंच बैंगलोर,



शीर्षक स्तम्भ,शब्द सारथी,शब्द कुंज सम्मान,शीर्षक साहित्य परिषद (भोपाल)
काव्य सागर सम्मान-साहित्य सागर,(राजस्थान)



पुरस्कार-80 बार से अधिक बार श्रेष्ठ सृजन के लिए शीर्षक साहित्य परिषद, साहित्य संगम संस्थान, नारी सुवास मंच, रचनाकार मंच, उड़ान, भावों के मोती,दोहाकार ,नवोदित साहित्यकार,सोपान साहित्यिक संस्था,साहित्य सरिता संस्थान,अटल काव्यांजलि, जय हिंद जय नदी,क़लम बोलती है,मंचों द्वारा सम्मानित


 


साहित्य ज्योति,शिवमृत,शिवपूजन सहाय,


साहित्य तुषार रत्न,मधुशाला काव्य गौरव,साहित्य सारथी,अमीर खुसरो,शिव साहित्य साधक, महेंद्र कपूर,लोक गीतकार,मातृत्व,शोभा गुर्टू जी,अटल कर्मवीर,सम्मानों से सम्मानित



इसके अतिरिक्त समीक्षाधीश , श्रेष्ठ टिप्पणीकार सम्मानों से सम्मानित


 


शीर्षक साहित्य परिषद भोपाल द्वारा सम्मानित “श्रेष्ठ वार्षिक रचनाकार” २०१९ “शब्द सागर”(भोपाल)


 


शीर्षक आन माइक प्रतियोगिता २०२० में प्रथम पुरस्कार “शब्द गौरव” से सम्मानित(भोपाल)


 



पता-फ़्लैट नम्बर-४१० 
होरामवु मेन रोड,
होरामवु,
बैंगलोर(कर्नाटका)
पिन कोड-५६००४३
मोबा0-९९८६९२६७४५


 


१-


शिव की स्तुति


कुंडलियाँ


आओ वसुधा देव तुम ,काटो जग के त्रास।


नमन करें हम आपको, तारो बंधन रास।।


तारो बंधन रास, वंदना करें तुम्हारी।


मिले ज्ञान ओंकार, यज्ञमय हे त्रिपुरारी।।


रचना रचती जाय,भक्ति से शिव को पाओ।


पाप करे जो प्राण,उसे दंडित कर आओ।।


 


शंकर भोले नाथ का, लुभा रहा है वेश।


मुण्डमाल हैं धारते, गंग धरें हैं केश।।


 गंग धरें हैं केश, भाल में चंद्र सुहाता।


व्याघ्र चर्म को डाल,कंठ में गरल विधाता।।


रचना रचती जाय,लोक के हैं अभयंकर।


भस्म लपेटे नाथ, नमन हे भोले शंकर।।


 


त्रिपुरारी के ध्यान से, कटे कर्म का फाग।


महाकाल आराधना, तज जायेगा राग।।


तज जायेगा राग, शम्भु लोकों के स्वामी।


काल शोभता अंग , करूँ वंदना प्रनामी ।।


रचना रचती जाय, रूद्र हैं त्रिनेत्रधारी।


निराकार साकार, सभी जानें त्रिपुरारी।।


 


डम डम डम डमरू बजे, डमरू धारी नृत्य।


बम भोले तांडव करें, प्रलेयन्कारी कृत्य।।


 प्रलेयन्कारी कृत्य, देह में त्रिशूल सजता।


शाश्वत है यह अस्त्र ,उमापति के रंग रजता।।


रचना रचती जाय,महेश्वर करते बम बम ।


आशुतोष का क्रोध,सृष्टि में होती डम डम।।


 


स्वरचित


रचना उनियाल


२-


फुहारें(नवगीत)


               


मेघावली कर जाय झंकारें,


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।



झिर-झिर लड़ियाँ क्षुधा बुझाती,


वसुधा पेंगें भरती जाती,


हरीतिमा नयनों को भाये,


मुदित प्रकृति उल्लासित गाती।


 


अंबुविहार धरती को सँवारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।


 



सुधियों में पावस की रजनी,


नेह सिक्त तब साजन-सजनी,


वृष्टि बहुल फुहार ने छेड़ा,


मनोहारी प्रणय धुन बजनी।


 


प्रेम निहार के खिलती बहारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।



यदुनंदन हैं राजदुलारे,


उतरे अचला घन के तारे,


मुरलीधर की मुरली बोले,


रवितनया तट रास रचा रे।


 


पड़ती नव रंगों की बौछारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।


 


३-


 


समर्पण(राष्ट्र के प्रति)


वीर छंद आधारित गीत (१६,१५ मात्राएँ अंत २१)


 


भारत भू के भूषण हो तुम,उन्नति का अतुलित अंबार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


अधिकारों की है लगी हुई,


हर कोने में जैसे होड़।


मुख से बोले वाणी ऐसे,


बोलों से ही देंगें तोड़।


चंचल दूषित अंतस को तज,अंतह अवलोकन शृंगार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


वसुधा के सीमा के प्रहरी,


चपल अटल चौकस दिन-रात।


न्यौछावर करते प्राणों को,


बलिदानी सैनिक की बात।।


सीमाओं की करें सुरक्षा,त्रिदल शस्त्र की सुन टंकार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


झेलम कावेरी अरु सतलज,


ब्रह्म पुत्र करता है नाद।


भारत माता की संततियों,


कहो हिंद जय ज़िंदाबाद।


तीन रंग से जीवन पाओ , नेह बंध है विचरण सार ।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


अनुबंधित हो गये धरा से,


पाया जब धरणी का द्वार।


उऋण तभी तुम हो पाओगे,


अर्पण करना सत उद्गार।


वचन कर्म से माँ के आँचल,पर करना पुष्पों बौछार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


स्वरचित


रचना उनियाल


 


४-


पर्यावरण दिवस


जनहरण घनाक्षरी


 


समय गुनन तन,


 घट मत वन घन,


    शपथ धरत मन,


       प्रकृति मुदित हो।


 


जन-जन उर तल,


    प्रखर ललक बल,


       अनिल अचल चल,


         तनु मुखरित हो।


 


सुत घर सुनकर,


    तरु क्षिति बुनकर,


       घटत मलिन शर,


          द्रुम अगणित हो।


 


नभचर नभ वर,


    सरि सर पय भर,


       मनुज हृदय धर,


          दिवस हरित हो।


 


स्वरचित


रचना उनियाल


५-


व्यायाम


 


गोपी छंद(मात्रिक छंद,चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत, प्रति चरण १५ मात्राएँ ,आदि में त्रिकल,अंत गुरु /वाचिक,चरणातक दो गुरु)


 


करे व्यायाम सदा काया।


रोग की पड़े नहीं छाया।।


 


प्रात उठ दौड़ लगा प्राणी।


बोल फिर मधुरिम सी वाणी।


उदय जब सूर्य देव आयें।


नमन से तन भी सुख पायें।


धमनियों में शोणित भागे।


लुप्त हों चिंता के धागे।


शांति का भाव मनुज पाया।


करे व्यायाम सदा काया।


 


जीत जाओगे हर बाजी।


बनोगे तन के तुम काजी।


बदन शतरंज जीत राजा।


खुले उन्नति का दरवाजा।


कर्म फल तन मन का योगी।


बना तुम नियम बनो भोगी।


बरस फिर लक्ष्मी की माया।


करे व्यायाम सदा काया।


 


हृदय में गर्व भाव आता।


योग का भारत है दाता।


जीव यदि जीवन को जीना।


काय में कसरत को सीना।


अंश के अंग खिले लाली।


ध्यान तुम रखना बनमाली। 


खिले उपवन में हर ज़ाया।


रोग की पड़े नहीं छाया।।


 


स्वरचित



डॉ निर्मला शर्मा  दौसा राजस्थान

राजाराम 


युगो युगो से विराजे ह्रदय में


 करते सबकी नैया जो पार 


कलयुग में फिर से लौटे हैं 


अवध के भाग्य खुले हैं आज 


शमन किया राक्षसों का डटकर  


 धरती को दिया शांति का उपहार 


मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर दिखलाया 


दुनिया को कल्याण का मार्ग 


वन, उपवन, नगरी ,देवालय 


सभी में गूंजे राम का नाम


 दशरथ सुत कौशल्या नंदन 


अवध पधारे सीताराम


 लड़ी लड़ाई लंबी हर युग में 


 किया विश्व में न्याय का संधान


 दीप जलाओ मंगल गाओ 


अवध में आए राजा राम 


तर्क वितर्क की लंका ढह गई 


मिला राम को कानूनी अधिकार 


परम ब्रह्म वो अगम अगोचर


 हर मन में उनका आधार 


प्राणी मात्र की सांसो में बसे हैं 


रघुपति राघव राजा राम 


डॉ निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली*

*अयोध्या राम मंदिर निर्माण।*


*मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।।*


*दिनाँक ,,,05,,,08,,,, 2020*


*(समय12 बजकर15 मिनट)*


 


हर अवरोध पर इक संकल्प


आज भारी पड़ गया।


नगरी अयोध्या पर रंग प्रभु


श्री राम का चढ़ गया।।


बनने जा रहा मंदिर भगवान


अपने श्री राम का।


आज भारतवर्ष का इतिहास


नया संस्करण गढ़ गया।।


 


आज इक दिव्य स्वप्न मूर्त


आकार ले रहा है।


भव्य राममंदिर का सुंदर रूप


साकार ले रहा है।।


आस्था का केंद्र स्थापित हो


रहा है अयोध्या में।


भारत का जन जनआशीर्वाद


हर प्रकार ले रहा है।।


 


मर्यादा पुरुषोत्तम राम मंदिर


विश्व को संदेश देगा।


भारत वर्ष आज से एक नया


ही गण वेश लेगा।।


संस्कार संस्कृति आज से ले


रही नया रूप भारत में।


राम लला विराजमान आज


अपना गृह प्रवेश लेगा।।


 


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।*


मोब। 9897071046


                 8218685464


अर्चना द्विवेदी        अयोध्या उत्तरप्रदेश

सजा दो राह कलियों से,


अवध में राम आये हैं


अयोध्या फिर हुई पावन


ख़ुशी के मेघ छाये हैं।


 


कहीं कजरी,कहीं झूले


कहीं पकवान की ख़ुशबू


रँगीले दीप अलियों से


सुहावन सी लगे सरयू


अयोध्या लग रही दुल्हन


धरा नभ मुस्कुराये हैं


 


 


सियापति राम कण-कण में


बने आराध्य जन जन के


दयानिधि त्याग की मूरत


सहारा दीन निर्धन के


बनेगा भव्य इक मंदिर


भजन सब गुनगुनाये हैं


 


 प्रतीक्षा हो गयी पूरी


 मिटाकर द्वेष की भाषा


 विचारों में सियापति हैं


 पढ़े सब प्रेम परिभाषा


 हुये सब देवगण हर्षित


 सुमन नभ से लुटाये हैं।।


         अर्चना द्विवेदी


       अयोध्या उत्तरप्रदेश


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

श्रीराम भूमि पूजन पर विशेष


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       जय श्रीराम..... एक गीत 


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नव किसलय नव कली खिली, 


बेला, चम्पा, हरसिंगार लिली।


 


नव प्रभात के नवल रश्मि में,


श्री नरेन्द्राजय चले महाबली।


 


चिड़ियों का कलरव गूँज उठा, 


सर में सरोज की खिली कली। 


 


नीहार नहायी टटकी पंखुड़ियाँ,


सब आपस में हैं हिली-मिलीं।


 


निज शैया से उठ उषा सुन्दरी,


तम हर कर मन मुदित चली। 


 


हर-हर महादेव की जय-जय, 


सब करते मंदिर में पुष्पांजलि।


 


शताब्दि अवधि बाद अवध में,


सब सियाराम मय गली-गली।


 


चरण कमल श्रीराम का धोने, 


कल-कल सरयू की धार चली।


 


हर्षित जन-मन उत्साहित सब,


सखि दर्शन को कर श्रृंगार चली।


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)


मो० नं० 9919886297


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

आज मेरे राम फिर


अवध में पधार रहे


भक्त हनुमान हमेशा


राम नाम जपते जा रहे।


 


वर्तमान के गोद में


पल रहे थे भविष्य के सपने


है अयोध्या झूम रही


बस राम ही तो हैं अपने।


 


रात क्या दिन क्या अंधेरा


है दिव्य उजाली अयोध्या


देख ऐसा लग रहा है


स्वर्ग से उपर है अयोध्या। 


 


यत्न सारे राम ने ऐसे किये


हर क्षण को समेट रही जन सदा


राम अपनी जंग को जीत आखिर 


वैदेही संग स्थान को ले रहे सदा। 


 


देख विहगंम दृश्य धरा का


देव सभी अब सकुचाते 


काश! राम अपने संग 


अवध में ही बसाते। 


 


व्याकुल सदा रहा भारत देखता


लहरों संग सरयू बनी गवाह है


हरिये सभी विपदायें भारत की प्रभु 


दें आशिर्वाद जनमानस बेपरवाह है। 


 


*_श्रीराम_जी_के_मंदिर_निर्माण_भूमि_पूजन एवं आधारशिला स्थापना के सुअवसर पर अकिंचन भक्त कविता प्रस्तुत है........_*


 


*दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल*


   महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


प्रखर

*जय राम जी की*


संकट घन भग्न हुए सारे,प्रफुल्लता चहुँओर है।


औध दुलहिन जस सजी, ढप ढोल ध्वनि घनघोर है।।


वत्सला सरजू उमंगित, जय राम का उद्घोष नभ,


श्रीराम द्वारे गवै सोहर, नर


 नारि संत विभोर हैं।।


 


 


 


*प्रखर*


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

धर्म आस्था की अवनि आकाश


धर्म मर्यादा संस्कृति संस्कार।।


 


धर्म शौम्य विनम्र युग समाज


व्यवहार।।


 


धर्म जीवन मूल्यों आचरण का


सत्य सत्यार्थ।।


 


धर्म छमाँ करुणा सेवा परोपकार


कल्याण जीव जीवन का सिद्धान्त।।


 


धर्म न्याय नैतिकता ध्येय ध्यान ज्ञान सिद्धांत।।


 


धर्म निति नियति का मौलिक आविष्कार।।


 


धर्म द्वन्द द्वेष घृणा


का प्रतिकार।।


 


धर्म कर्म वचन दायित्व कर्तव्य बोध से धारण करने प्राणी प्राण।।


 


धार्म धैर्य है धर्म शौर्य है धर्म


विजयी पथ का मार्ग।।


 


शासन शक्ति की भक्ति शासक


मति अभिमान का समय काल।।


 


शासन भय है भय निर्भयता का


आधार शासन शक्ति का मौलिक


अधिकार।।


 


शासन समन्वय है जन मानस 


मन की आवाज़।।


 


शासन आस्था नहीं शासन विश्वास


राज्य् निति और राजनीति का साकार।।


 


शासन द्वेष भेद न्याय अन्याय


विवेचना समय काल स्तिति परिस्तिति की माँग।।


 


शासन दो धारी तलवार है संवैधानिक इसके धार।।


 


शासन का मूल व्यवहार शासक


की मर्जी और विचार।।


 


न्याय अन्याय की व्याख्या मौके


मतलब के अनुसार।।


 


शासन की अपनी विवासता 


अँधा कभी कभी दृष्टि दृष्टिकोण


अतीत वर्तमान।।


 


धर्म और शासन में अंतर मात्र


धर्म मानव मानवता जीव जीवन


निरंतरता ।।        


 


आस्था की अस्ति का


नाम सिर्फ उत्कर्ष उत्थान उत्सर्ग 


प्रसंग परिणांम।।


 


शासन जब चल पड़ता धर्म 


मार्ग पर शासन धर्म एकात्म स्वरुप जन्म लेता मर्यादा


का श्री राम।।


 


धर्म शासन का उद्देश्य एक समरसता समता मूलक युग


समाज का निर्माण।।


 


आस्था और विश्वाश का विलय


एक दूजे का ग्राह सम्मत का शासन ।।                             


 


जन आकांक्षाओं का


अभिनन्दन राम राज्य् की बुनियाद ।।


 


जन जन राम सरीखा


शासक शासन प्राण सरीखा।


 


धर्म का शासन शासन में धर्म


नैतिक युग का मर्म राम राज्य् और जय श्रीराम का ।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली*

*जीवन के रंग अनेक।।।।।।*


 *विविध हाइकु।।।।।।।।।।।।*


1


हुई है भूल


समझे फूल पर


निकले शूल


2


अब तो नारी


पुरुष पर भारी


नहीं बेचारी


3


लोहे को लोहा


काटे पर मरता


जंग से लोहा


4


जन्म मरण


निचोड़ जीवन का


कर्म ही धर्म


5


काया ओ माया


सब यहीं रहेगी


पा प्रभु साया 


6


तेरा या मेरा


सब यहीं रहेगा


जाना अकेला


7


जीवन खेला


आशा ओ विश्वास


नहीं तो रेला


8


शरद अंत


छाने से लगे रंग


ऋतु बसंत


  9                  


आर या पार


नहीं मिलें विचार


छोड़ दें यार


10


बिखरे रंग


करिश्मे कुदरत


प्रक्रति संग


  11            


यह मुखौटा


चेहरे पे चेहरा


है दिल खोटा


12


गठ बंधन


स्वार्थ की ये दोस्ती है


बन नन्दन


13


प्रभु की भक्ति


नर सेवा इससे


मिलती शक्ति


14


यह गलती


मिटता ये अहम


तब दिखती


15


मेरे अपने


दिल के ये टुकड़े


मेरे सपने


16


ये मेहमान


चार दिन की बस


जिन्दगी नाम


17


ये कलाकार


बदले किरदार


हैं फनकार


18


पैसा ओ पैसा


आज बन गया है


जीवन ऐसा


19


यह सुविधा


नहीं मिलती जब


बढे दुविधा


20


ये आसमान


सोचो करो बड़ा हो


तेरा मुकाम


*रचयिता।।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली*


*मोबाइल।* 9897071046


                        8218685464


सुनील कुमार

कविता:-


        *"साथी"*


"हारे न हारे मन से साथी,


जग में कुछ तो करो जतन।


बनी रहे मानवता जग में,


आदर्शो का न हो पतन।।


संगत मिले साधु की साथी,


पल-पल सत्य का रहे संग।


दूर होगी कटुता तन-मन की,


जीवन का निखरेगा रंग।।


छोड़ दामन अंधकार का,


उजाले का बनना अंग।


देख मोह-माया के बंधन,


साथी रह न जाना दंग।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 05-08-2020


नूतन लाल साहू

आज ऐतिहासिक दिवस है


हमे गर्व है कि हम हिन्दू हैं


अयोध्या में प्रभु राम का मंदिर अब बन जायेगा


पर अपने मन मंदिर में प्रभु राम को बैठा लो


तो तुम,सचमुच में इंसान बन जायेगा


शंख बजेगा, बादल भी गरजेगा


बहुत दिनों से इंतजार था,इस दिन का


पानी भी रिमझिम रिमझिम बरसेगा


आज का दिन इतिहास में


स्वर्ण अक्षरों से लिखा जायेगा


हमे गर्व है कि हम हिन्दू हैं


अयोध्या में प्रभु राम का मंदिर अब बन जायेगा


पर अपने मन मंदिर में प्रभु राम को बैठा लो


तो प्रभु सचमुच में इंसान बन जायेगा


यह तन है,एक जर्जर नैया


प्रभु राम ही है,केवल खिवैया


जिसने गणिका गिद्ध अजामिल तारे


तारे सदन कसाई है


जूठे बेर शबरी के खाये


वहीं मेरे प्रभू,राम रघुराई है


हमे गर्व है कि हम हिन्दू हैं


अयोध्या में प्रभु राम का मंदिर अब बन जायेगा


पर अपने मन मंदिर में प्रभु राम को बैठा लो


तो तुम सचमुच में इंसान बन जायेगा


उठ जाग मुसाफिर,अब भोर भयो


अब रैन कहां, जो सोवत है


जो जागत है,सो पावत है


मै नहीं,मेरा नहीं,यह तन किसी का है दिया


साधना की राह पर,साधन किसी का है दिया


जो प्रभु राम के चरण को चित लायेगा


वो भवसागर से तर जायेगा


हमे गर्व कि हम हिन्दू हैं


अयोध्या में प्रभु राम का मंदिर अब बन जायेगा


पर अपने मन मंदिर में प्रभु राम को बैठा लो


तो तुम सचमुच में इंसान बन जायेगा


नूतन लाल साहू


सत्यप्रकाश पाण्डेय

राम मंदिर भूमि पूजन की मांगलिक शुभकामनाओं के साथ.........


 


टूट चुका विश्वास सभी का


चारों ओर घना अंधेरा था


सदियों से वनवासी राम ने


देखो पाया कष्ट घनेरा था


 


गन्दी राजनीति की भेंट चढ़े


न जाने कितने दिन मास


रामलला का बने आशियाना


टूटी भारतीयों की आस


 


रामराज्य की लिए संकल्पना


जनमन को मिली उदासी


क्रूर कुचक्र में फंसी अयोध्या


धर्म जाति की बनी दासी


 


वीरान हुआ सदन राम का


मानो हमें चिढ़ाता रहता


कबतक टेंट में रहेंगे रघुवर


नाकामी की गाथा कहता


 


अब हटा कुहासा रवि निकला


जन भावनाओं का सम्मान


उच्च अदालत और मोदी जी


बढ़ा दिया भारती का मान


 


समाप्त हुआ वनवास राम का


वह अपने भवन विराजेंगे


भूमि पूजन होगा मन्दिर का


अवध में झालर घंटे बाजेंगे


 


सियाराम में होगा आर्यावर्त


सभी हृदयों में होगा वास


राम राज्य स्थापित होकर के


भव तापों का होगा नाश


 


आओ मर्यादा पुरूषोत्तम का


मिल करके गुणगान करें


घर घर घी के दीप जलाकर


नव युग का आव्हान करें


 


अनन्त असीम अपार खुशी से


मन खग नाचेंगे व गायेंगे


राम नाम की गंगा में नहाकर


सब जीवन मोद मनायेंगे


 


जीवन चरित्र का अवलोकन


राम आदर्श करें स्थापित


आध्यात्मिक ज्ञान की उन्नति


अवगुण करदें विस्थापित


 


विशिष्ट ज्ञान से उर आलोकित


संकीर्ण सोच का परित्याग


रामायण जैसा हो भाईचारा


आलस्य त्याग जायें जाग।


 


रामाय रामचन्द्राय रामभद्राय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 *** वंदना *** 😊😊


 


प्रथम निवेदन आपसे, 


                     गजानन महाराज।


कलम लिया है हाथ तो,


                 रखना इसकी लाज।


 


माता वीणा वादनी, 


                      रखना मेरी लाज।


रुके कभी मत लेखनी, 


                   यही निवेदन आज।


 


वर दो माॅ॑ मुझको यही, 


                      रहे चरन में प्रीत।


निश-दिन वंदन को तुम्हें, 


                लिख पाऊॅ॑ कुछ गीत।


 


चाह नहीं तुलसी बनूॅ॑, 


                    या मैं कालीदास।


चाह सभी के दिल बसूॅ॑,


                    पूरी करना आस।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


प्रखर* *फर्रूखाबाद

*जय रामलला*


 


जय रामलला अवधेश लला, जगतारन पूर्ण प्रकाम हरे।


दशरथनंदन कौशल्या सुत, अनुपम छवि सुघर ललाम हरे।।


पीताम्बर गल नीलाम्बुज तन, मनहर नयना बजनी पैंजनि,


सौमित्र भरत रिपुसूदन सॆग , लटुरी बिखरी सुखधाम हरे।।


 


हर्षित नर नारि विहग चहकैं, न्यौंछावर कोटिन काम हरे।


अज अवध दुलनियाँ जस निखरी, दमकै पुनि स्वर्णिम धाम हरे।।


साकेत जयति जय जन्मभूमि, सिय पिय जय जय रघुनंदन जय,


जय धर्म ध्वजा जय भारत भू, शुभदा वरदा जय राम हरे।।


 


 


*प्रखर*


*फर्रूखाबाद*


प्रखर

राम जीव आलम्ब जग, सोई सृष्टि आधार।


ज़ड़ चेतन जंगम रमै, निराकार साकार।।


 


राम इमाम ए हिंद हैं, सजदा सौ सौ बार।


वो जिनके मनसबदार हैं, प्रभु उनके मनसबदार।।


 


सरजू तट मनभावनो, अवध सुहावन ठाँव।


तहाँ राम लीला करी, सियरी तरु तर छाँव।।


 


तम्बू के बम्बू उखड़, मिली पुन: जागीर।


देव गेह हित बलि चढ़े, अनत संत नर वीर।।


 


हिये कोशलापति रहैं, निग्रह इंद्रिय काम।


राम हरहिं कलमष सकल, चाहे विधाता बाम।।


 


प्रखर


राजेंद्र रायपुरी

 


     रामलला के दिन बहुराए।


     लोग अयोध्या देखन आए।


 


     पाॅ॑च सदी तक बहु दुख पावा।


     दुष्ट बहुत सब किन्ह छलावा।


 


     पाॅ॑च सदी प्रभु थे वनवासी।


     रही अवध में बहुत उदासी।


 


     देर-सवेर न्याय प्रभु पावा।


     आज अयोध्या दिन वो आवा।


 


     जब मंदिर की नींव खुदेगी।


     और शिला इक रजत डलेगी।


 


     मंदिर अब इक भव्य बनेगा। 


     जो दुनिया में नाम करेगा।


 


     अनुपम मंदिर होगा भाई।


     जा में राजेंगे रघुराई।


 


मास भाद्रपद कृष्ण दो,


                शुभ दिन था बुधवार।


शिलान्यास मंदिर हुआ,


                  मन में खुशी अपार‌।


 


              राजेंद्र रायपुरी


एस के कपूर श्री हंस

मुक्तक माला


 


सम्पूर्ण जगत ही आज तो 


जैसे राममय हो गया।


बनेगा भव्य सा राम मंदिर


यह भी तय हो गया।।


प्रतिष्ठित होंगें अब रामलला


विशाल गर्भ गृह में।


भारत वर्ष एक स्वर से ही


एक लय हो गया।।


 


पाँच सौ वर्षों का कारावास


आज समाप्त हो गया।


राम लला विराजमान को


घर अपना प्राप्त हो गया।।


प्रभु राम ह्रदय सम्राट हैं


भारत के जन जन के।


प्रत्येक भारत वासी को यह


उपहारे सौगात हो गया।।


 


अयोध्या तीर्थ स्थल अब छा


जायेगा विश्व मानचित्र पर।


भारत को गर्व होगा श्री राम


सरीखे जन जन मित्र पर।।


अपने जीवन काल में प्रत्येक


जाना चाहेगा मंदिर में।


पुष्प अर्पित करने अपने राम


जी आराध्य के चित्र पर।।


 


एस के कपूर श्री हंस


मदन मोहन शर्मा 'सजल'

लुटाई हैं जिंदगी


 


किसी ने हँसकर मुस्कराकर गुजारी है जिंदगी


हमने तन्हाई के आलम में गुजारी है जिंदगी,


 


कसूर हमने नहीं किया सनम मोहब्बत दिल को हुई


तड़फती है रोती है मौत ने पुकारी है जिंदगी,


 


पता नही था पत्थर दिल बेवफा से दिल लगा बैठे


आसमां पर बिठाकर बेसुध हो गिराई है जिंदगी,


 


हर पल बिछाए फूलों के गुलदस्ते उनकी राह में


कुचल दिए सब अरमां जफ़ा तले मिटाई है जिंदगी,


 


खून के कतरे बहाती है आँखे हमेशा याद में 


'सजल' जफ़ा में वफ़ा का खजाना लुटाती है जिंदगी।


 


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


सत्यप्रकाश पाण्डेय

किसी रूप की धूप से झुलसा बदन मेरा


कहीं मिले नहीं मुझको ठंडे जल के छींटे


बेरुखी दिखती है भले ही उसके मन में


फिर भी उसके हर अंदाज लगते है मीठे


 


लगा आँखों में अंजन रचा ओठों पै लाली


आकर्षक मोहिनी हर पल जो लुभाती है


घुंघराली लटों का जादू खींचता तार मन के


भंगिमाओं से वो तो हर दिल को रिझाती है


 


ऐसे कौंन से हैं गुण जो उसे मादक बनाते


डालती है चितवन हृदय छलनी हो जाते


पिलाती जाम आँखों से अधर सुरा प्याली


और हम जैसे आशिक घायल किये जाते


 


कैसे बयां करूँ अंदाजे ए मुहब्बत मैं उसका


कितना स्नेह या नफरत करती है वो हमसे


कर दिया बेचैन सत्य को छीन के निंदिया


चाहती है वह आवादी या बर्बादी हमसे।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

सफर जिंदगी है सुहाना 


मिलना बिछड़ना रोना मुस्कुराना।।


 


जिंदगी तनहा लोगों


रिश्तों नातों का कारवाँ ।        


 


भीड़ में


अकेला जिंदगी की परछाई यादों तनहाई सांसो धड़कन की जिंदगी बोझ ख़ुशी गम का मेला झमेला।।


 


 


इंसान अरमानों की मंज़िलों का


मुसाफिर मंजिलों को खोजता 


दुनियां से पता पूछता।


जिंदगी का जंग जीतने मकसद


मौसिकी का मसीहा ।।         


 


जमाने के


जज्बात हालात की कश्ती


का मांझी कभी खुद की कश्ती भँवर तूफ़ान निकालने की जद्दो जहद मसझधार में पतवार की गुहार जिंदगी।।


 


नशा जिंदगी जूनुन जिंदगी


शुरुर जिंदगी मकसद के जंग का


ढूढती हथियार जिंदगी ।।      


 


कभी


दौलत की मार कभी रिश्तों नातों 


की मार कभी किस्मत हालात की


मार जिंदगी।।


 


दौलत की होड़ का नशा आराम


अय्यासी का नशा शोहरत


का नशा इश्क हुस्न का नशा।।


 


जिंदगी नशा जरूर ना झूमती


ना नाचती अपने अंदाज़ के नशे


में गुजरती जाती।।


 


कही ठहर जाती पल दो पल 


कहीं से गुजर जाती चलती जाती


एक दिन गुजरे जमाने की यादें 


जिंदगी गुजर जाती।।


 


शराब साकी पैमाना बेवजह 


बदनाम इंसान शराब साकी


पैमाने मैखाने का ईमान।।


 


जिंदगी इंसान गुरुर की गहराई


जाम उतर गयी जिंदगी सागर की गहराई सागर की सुराही में ही डूबती जिंदगी।।


 


गुमनाम अंधेरो में खोई जिंदगी


बेनाम।।


जिंदगी खुद की अमानत नहीं


जिंदगी जहाँ का जज्बा जज्बात


जिंदगी जहाँ जमाने में गुजरती


खुद के कदमो से लिखती दरमियाने दास्ताँ।।


 


 


जिंदगी जज्बा दुनियां के लिए मारना।


दुनियां के लिये जिंदगी इबादत 


इम्तेहान से गुजराती जहाँ में अंधेरों को उजाले में बदलती।।


 


 


फर्श से अर्श फ़र्ज़ फ़क़ीर जिंदगी


ना कुछ लेकर आती ना कुछ साथ लेकर जाती जिंदगी।।


 


साँसों धड़कन के दौरान जो भी


कमाई दौलत दुनियां में साँसों धड़कन के बाद दुनियां के साथ


जिंदगी।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

आज मेरे राम फिर


अवध में पधार रहे


भक्त हनुमान हमेशा


राम नाम जपते जा रहे।


 


वर्तमान के गोद में


पल रहे थे भविष्य के सपने


है अयोध्या झूम रही


बस राम ही तो हैं अपने।


 


रात क्या दिन क्या अंधेरा


है दिव्य उजाली अयोध्या


देख ऐसा लग रहा है


स्वर्ग से उपर है अयोध्या। 


 


यत्न सारे राम ने ऐसे किये


हर क्षण को समेट रही जन सदा


राम अपनी जंग को जीत आखिर 


वैदेही संग स्थान को ले रहे सदा। 


 


देख विहगंम दृश्य धरा का


देव सभी अब सकुचाते 


काश! राम अपने संग 


अवध में ही बसाते। 


 


व्याकुल सदा रहा भारत देखता


लहरों संग सरयू बनी गवाह है


हरिये सभी विपदायें भारत की प्रभु 


दें आशिर्वाद जनमानस बेपरवाह है। 


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


  महराजगंज, उत्तर प्रदेश। 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार शमशेर सिंह जलंधरा


उपनाम :- "टेंपो" 


पिता का नाम :- श्री आदराम


माता का नाम :- श्रीमती संतरा देवी 


पत्नी का नाम :- एकता रानी 


जन्म :- 07 - 06 - 83 


स्थाई पता :- गांव ढाणी कुम्हारान , तहसील हांसी , जिला हिसार , हरियाणा ।


शिक्षा :- +12 


उपलब्धियां :- कई प्रतिष्ठित मंच पर कविता पाठ ।


कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता एवं गजल प्रकाशित ।


सम्मान :- विशेष फ़रवरी 2005 में हिसार की प्रतिष्ठित काव्य संस्था प्रेरणा परिवार के द्वारा ।


 


जनवरी 2006 को गुरु जंभेश्वर युनियर्सिटी में हरियाणा साहित्य अकादमी के द्वारा सम्मानित ।


 


सितम्बर 2008 में सोनीपत के गांव भावड में हरियाणा साहित्य की उर्दू अकादमी द्वारा सम्मानित


 


अगस्त 2010 में भारत माता मंदिर हिसार में हरियाणा के राज्य कवि श्री उदय भानु "हंस" के हाथो हरिद्वार की संस्था द्वारा सम्मानित ।


 


मध्य प्रदेश के लेखक मंच बैतूल द्वारा प्रशस्ति पत्र ।


 


इंद्रधनुष द्वारा प्रशस्ति पत्र ।


 


इसी तरह की काफी संस्थाओं द्वारा प्रशस्ति पत्र और सम्मान।


 


2014 में राव तुलाराम पुस्तकालय ढाना , (हांसी) द्वारा सम्मानित ।


 


करीब 1000 रचनाओं का संकलन ।


कविताएं , गजलें , दोहा , लघु कथाओं में लेखन ।


 


2000 , 11 , 12 , 13 में तक साहित्य प्रवाह मासिक पत्रिका उप संपादक बतौर संपादन ।


 


लोकल एक्सप्रेस उकलाना में 1 वर्ष साहित्य पेज का संपादन ।


 


रचनाएं 5 विशेष रचनाएं - 


 


*दलीलें*(1)


 


अवैध रूप से ,


करवाई गई लिंग जांच से ,


गर्भ में ,


बेटी होने की सुनते ही ,


तमरा उठती हैं आंखें ,


सब लोगों की ।


एक दूसरे से मशविरा होता है ,


गर्भपात करवाया जाए ,


उनके लिए तो गर्भपात होगा ,


पर मेरी तो हत्या है ।


मैं ,


कौन से न्यायालय का दरवाजा खटखटाऊं ,


मां की अदालत के सिवा ,


टूट जाती है आस ,


जीवन की ।


जहां मां भी ,


शामिल हो जाती है ,


उन सभी लोगों में ,


और खड़ी हो जाती है ,


गर्भपात के पक्ष में ।


मरना तय हो जाता है ,


जिस दर पर ,


तब दम तोड़ जाती हैं ,


तमाम तरह की दलीलें ।


 


*न्यारे न्यारे* (2)


 


कितना अच्छा था ,


इस दीवार से पहले का आंगन ,


मां उठती थी अलसुबह ,


पीसती चक्की ,


और चाची देती थी झाड़ू ,


और दोनों के काम से उत्पन्न ध्वनि ,


कितनी घुल मिल जाती थी ,


एक दूसरे में ।


पर अब जब से ,


पडने लगे हैं बंटवारे ,


उठने लगी है आंगन में दीवारें ,


वह मदमस्त मधुर आवाज सुनाई नहीं देती ,


हो गए हैं सब न्यारे न्यारे ,


अब अपना ही राग अलापे है ,


अलग-अलग सारे ,


हो गए सब न्यारे न्यारे ।


 


*याद रहे* (3)


 


सफलता का मूल ,


प्रयास का ज्वलंतदीप , 


टूटी आशा जो , 


मंजिल के समीप ।


फिर असफलता ही मिलेगी ,


पर वास्तव में ,


वह होती है सफलता ,


सीख लेने की ।


अपने आप को सुदृढ़ बनाने की ,


हौसले को जकड़ने की ,


मंजिल पाने की जिद को पकड़ने की ,


याद रहे कि फूल ,


कांटों में महफूज रहा करते हैं ।


अड़चनों बाद मिली सफलता ,


देती है मनमाफिक मिठास ।


सरलता से मिले सफलता तो ,


कम होती है खुशी ,


सुस्ती बढ़ती है यकीनन ,


फिर मन नहीं चाहता मेहनत करना ,


और फिर करनी पड़ती है ,


आलस से संधि ,


असफलताओं से होना पड़ता है संतुष्ट ।


 


*बना रहे प्रेम* (4) 


 


रिश्तो की नाजुकता ,


गुस्से की अग्नि से ,


मुरझा सकती है ।


इसलिए ,


हे प्रिय ,


समझा करो भावनाएं ,


किया करो समझौता ,


अपने मन और मस्तिष्क से ,


मिलाया करो अपने विचार ,


अपने प्रियवर से ,


ताकि बना रहे प्रेम ,


दोनों के दरमियां ,


मनमुटाव बाद भी ।


 


*कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती* (5)


 


कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती ,


उनमें भरा होता है विश्वास ,


टूटे प्यार के फिर से मिलने की आस ,


भावनाओं का ऐसा सागर ,


जिसकी गहराई मापना ,


आज भी नामुमकिन के समकक्ष है ।


भाई बहन मां बाप का प्यार ,


खुशियों से चहकने वाला परिवार ,


एक वह लड़की जिसके सपने ,


छुड़वा देते हैं अपने ,


उसके त्याग की परिभाषा ,


ब्रह्मांड की अन्य किसी चीज से,


मेल नहीं खाती ,


कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती ,


इनमें छिपा होता है ,


किसी का प्यार ,


खट्टी मीठी तकरार ,


किसी का आक्रोश ,


किसी का जोश ,


इंकलाब की शक्ति ,


मन की भक्ति ,


वरना यूं ही नहीं बनती कहावत ,


जहां न पहुंचे रवि ,


वहां पहुंचे कवि ।


 


संदीप मिश्र सरस, बिसवां(सीतापुर)

रिश्तों की गर्माहट


 


किसी ने सुझाव दिया 


अपेक्षाएं मत करो, दुःख नहीं होगा।


 


परामर्श उचित ही होगा।


कितना आसान होता है फार्मूले ईज़ाद करना। 


लेकिन उसे व्यवहारिक जामा पहनाना उतना ही कठिन।


 


तपता सूरज रोशनी दे, तो दे न दे न सही। छलिया चांद चांदनी दे तो दे,न दे न सही।


हमें पुष्पों से खुशबू की अपेक्षा क्यों हो?


हमें मधुबन से सावन की अपेक्षा क्यों हो? हमारी संवेदना को अनुभूति मिले न मिले। हमारी अनुभूति को अभिव्यक्ति मिले न मिले। हमारी भावनाको शब्दों की क्या आवश्यकता? 


हमारे शब्दों को शिल्प की क्या आवश्यकता?


हमारे शब्दशिल्प पर सृजन की निर्भरता क्यों?


 


हम परजीवी थोड़े ही हैं।


हम अपना अस्तित्व स्वयं निर्मित करेंगे।


हम स्वयं को स्थितिप्रज्ञ बनाएंगे।


 


दूसरों का सुख हमें हंसा न सकेगा।


दूसरों का दुख हमें रुला न सकेगा। 


 


हम निर्लिप्त देवत्व को स्पर्श करेंगे।


 


हमारा सब कुछ हमारे नियंत्रण में होगा आखिर हम पर हमारा भी तो हक बनता है।


 


लेकिन एक बात तो सोंचना हम भूल ही गए!


 


हमने संवेदना को रास्ता भटका तो दिया।


हमने भावनाओं को बहका तो दिया।


मन के अस्फुट तंतुओं को बरगला तो दिया। अनुभूतियों, अभिव्यक्तियों को नए सिरे से परिभाषित कर तो दिया।


अनपेक्षा का अनगढ़ सिद्धांत तो स्वीकार लिया।


रिश्तो को फार्मूलाबद्ध कर तो लिया।


 


लेकिन यह नहीं सोचा कि यदि मानव मन में,


स्वाभाविक अपेक्षा न रही तो 


चांद सूरज के स्वाभाविकता का क्या होगा? 


किसी पुष्प की खुशबू अपनी नैसर्गिकता का अर्थ कहां तलाशेगी?


संवेदना अपना वजूद कहां टटोलेगी?


अनुभूति किस चौखट पर सर पटक कर दम तोड़ेगी?


अभिव्यक्ति को शब्द कहां मयस्सर होंगे?


और शब्दों के अर्थ कब तक अपने अस्तित्व की गवाही देंगे?


 


और जब यह सब मर जाएंगे।


 


संवेदना नहीं होगी, अनुभूति नहीं होगी।


अभिव्यक्ति नहीं होगी, शब्द नहीं होंगे।


अर्थ नहीं होंगे, रिश्तो में भावना नहीं होगी। 


संवेग नहीं होंगे तीव्रता नहीं होगी।


 


और अंततः अपेक्षा नहीं होगी। तो फिर क्या बचेगा?


रिश्ते बेमानी न हो जाएंगे?


 


रुकिए,ठहरिए,सोचिए 


 


यदि रिश्तो में आत्मीय अपेक्षा ही न रही


तो रिश्तो की गर्माहट का क्या होगा?


 


रचनाकार,


संदीप मिश्र सरस, बिसवां(सीतापुर)


मो-9450382515/9140098712


डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी

जय श्री राम! 


         (गीत--रचना)  


जिस छवि के सम्मुख विश्व की ,


बेकार हर जागीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है।


सिर पर मुकुट गेरुआ बसन,


आजानुभुज श्यामल बरन ,


सुंदर चिबुक सुंदर नयन ,


माथे तिलक कुंडल श्रवण ,


नवनील अंबुज---सा बदन,


जमुना का जैसे नीर है। 


वह रुप है श्री राम का ,


वह राम की तस्वीर है ।


रघुवंश के नीलोत्पल , 


अपनी प्रतिज्ञा में अटल,


तप में कठिन जप में सरल, 


तन सुरमई मन के धवल, 


बन की कुटी हो या महल ,


बस एक ही तासीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है ।


खल निशिचरों के वास्ते, 


विपरीत जिनके रास्ते ,


सज्जन हैं जिनके नाश्ते, 


जो विघ्न नित उपराजते ,


कोदंड जिनके हाथ में है, 


पीठ पर तूणीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है। 


गुणवान जो मतिमान जो, 


संकट में धीरजवान जो, 


पुरुषों में सकल महान जो, 


सुख-दुख में एक समान जो ,


मानस में जिनकी कीर्ति का, 


वर्णन बहुत गंभीर है। 


वह रुप है श्री राम का ,


वह राम की तस्वीर है ।


जो विष्णु के अवतार हैं ,


दुनिया के पालनहार हैं ,


इस सृष्टि के पतवार हैं ,


त्रेता के मनसबदार हैं, 


प्रभु अवध में पैदा हुए ,


यह अवध की तकदीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है ।


श्री राम का जो कर्म है ,


आदर्श है सदधर्म है ,


यह राजनीतिक मर्म है -- 


जो आदमी बेशर्म है ,


वरना जगत में कुछ नहीं--- 


रघुवीर ही रघुवीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है।


-------- नीरव


सुषमा दीक्षित शुक्ला

माँ भारती की आन का ।


,वीरों के बलिदान का ।


 


राम मंदिर प्रतीक है , 


राष्ट्रीय स्वाभिमान का 


 


मान रखा राम जी ने ,


न्याय के सम्मान का।


 


प्रेम से मंदिर बने अब ,


महा प्रभु श्री राम का ।


 


 विश्व पटल पर सम्मानित है,


 पावन चरित्र श्री राम का ।


 


ये राम मंदिर चिन्ह है ,


इस राष्ट्र सम्मान का ।


 


रूह रूह मे राम बसे हैं


धड़कन में माँ जानकी ।


 


चारों धाम समाये जिसमें,


 जय बोल अयोध्या धाम की ।


 



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