प्रखर दीक्षित

भजन


 


*मोहना*


 


कंगना ले आयी बाजना


मैं दौडी चली आयी मोहना


 


मैं वृन्दावन की हौं गुजरिया


नेक बंसुरी सुनाय रे! सांवरिया।


तू रसराज छबोलो बांको,


मैं दौडी चली आयी......


 


सावन घन छाए नैनन मँह 


मेरी नींद गयी जाने चैन कँह


कजरारे कपोल उदास पैंजनी,


लागै सखि सुनो आंगना।।


मैं दौडी चली आयी.........


 


पनघट जमुना तट सुन परे


रसराज बिना रस कौन भरे


छछिया भर छाछ जो मांगै सखी,


अब सूने खरिक घट री दोहना।।


मैं दौडी चली आयी ..............


 


सिर मोर मुकट गल पीताम्बर


तुम पै वारी मैं मुरलीधर


रे! तू छलिया चितवन टेढी,


मतवारी रास रचाऊँ सोहना।।


मैं दौडी चली आयी ..............


 


*प्रखर दीक्षित*


*फर्रूखाबाद*


निशा"अतुल्य"

सावन फ़ुहार


7.8.2020


 


मनहरण घनाक्षरी 


 


बरखा बहार आई,


घनघोर घटा छाई ।


सावन फ़ुहार पड़े,


मन तरसाइये ।


 


पिया जी जो साथ रहें,


सावन न बेरी लगे।


झूला सँग साजन के,


खूब ही झुलाइये ।


 


सखियों के रंग रँगी,


मेहंदी हाथों में सजी।


कजरे की धार फिर,


तेज कर जाइए ।


 


याद जब साजन की,


आये तुम्हें घड़ी घड़ी।


मिलने की चाह फिर,


मन में जगाइए ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


सुनीता असीम

मुझे तेरी नज़र ने आज .....दीवाना बना डाला।


तेरी बातों ने मेरे दिल को अफ्साना बना डाला।


***


बड़ी संकरी गली हैं धर्म की इन रास्तों में भी।


हरिक घर में जहां ने एक बुतखाना बना डाला।


***


ग़मों से जो करो यारी रहो मदहोश फिर बनकर।


समंदर ने ग़मों के एक मयखाना बना डाला।


***


न आए काम सबके जो अकेला ही रहेगा वो।


खुदी को आज उसने सिर्फ बेगाना बना डाला।


***


करेगा दूर गुलशन से सभी के खार चुनकर जो।


उसे दुख दूर करने का ही पैमाना बना डाला।


****


सुनीता असीम


७/८/२०२०


##############


संजय जैन (मुम्बई

*तुम लिखवाते हो*


विधा : गीत


 


मेरे गीतों की 


सुनकर आवाज़ तुम।


दौड़ी चली आती 


हो मेरे पास।


और मेरे अल्फाजो को


अपना स्वर देकर।


गीत में चार चांद


तुम लगा देती हो।।


 


लिखने वाले से ज्यादा 


गाने वाले का रोल है।


चार चांद तब लग


जाते है गीतों में।


जब मेरे शब्दों को


दिलसे तुम गाती हो।


और गीत को अमर


तुम बना देती हो।।


 


मैं वो ही लिखता हूँ


जो दिलसे निकलता है।


एक एक शब्द मेरा 


खुद हकीकत कहता है।


तभी तो पढ़ने वाले भी


खुद गुनगुनाने लगते है।


और रचना को सार्थक


वो बना देते है।।


 


जय जिनेन्द्रा देव की


संजय जैन (मुम्बई)


07/08/2020


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

एक दूजे पे मिट जाना


एक दूजे की खातिर खुद


न्यवछावर हो जाना।


 


त्याग बलिदानों का रिश्ता


अनोखा मित्रता का भाव तराना।।


 


अलग अलग मन मस्तिष्क


शरीर एक दूजे की हस्ती का


विलय सयुक्त हस्ती उदय


दोस्ती याराना।।


 


मुश्किल है मिलना अजीम 


अजीज शख्स शख्सियत


दोस्त दोस्ती का मिल पाना।।


 


मत एक मतभेद नहीं


ह्रदय दो पर बंटा नहीं


शुख दुःख का भागिदार


आरजू ईमान इंसान 


प्यार यार याराना।।


 


एक ऐसा रिश्ता परे स्वार्थ


निश्चल जाती धर्म


देश काल परिस्तितिे बंधन 


मुक्त मित्रता ने ना जाने कितने


इतिहास रच डाला।।


 


सखा स्वरुप गोपियों को


कृष्णा मिल जाता नारी नश्वर


सृष्टि दृष्टि में मर्यादा 


मूल परम शक्ति सत्ता अर्ध 


नारीश्वर कहलाता।।


 


भेद नहीं विभेद नहीं द्वेष


दम्भ नहीं मित्रता मर्यादाओं


मर्म धर्म कर्म दायित्व बोध


एक दूजे का सुख दुःख 


एक दूजे का हो जाता।।


 


कौन नहीं जानता है युग में


कृष्ण सुदामा मित्र धर्म में


जगत कृपालु का निर्वाह


नहीं समझ सका सुदामा मित्र


धर्म का निर्वाह।।


 


 


मधुसूदन मित्र के मिलने से ही


श्रीदामा को जग ने जाना।


 


अपमान तिरस्कार के घावों


पीड़ा में घायल कर्ण को दुर्योधन


मित्र का मरहम महारथी


जीवन संकल्प साध्य साधना आराधना जीवन मूल्य राधेय


कर्ण मित्र धर्म के ध्वज धन्य को युग ने जाना।


 


कौन कहता है रिश्तों का


मोल नहीं रिश्तों की दुनियां में


रिश्ते अनमोल ।


मित्रता की मस्ती दोस्ती की हस्ती


हर हद को तोड़ती रिश्तों का


मायने मतलब का नया आयाम


अंजाम है गड़ती।।


 


दुनिया में अब रिश्तों के मतलब


बदल गए सखी सखा के भाव


भक्ति के रिश्ते बॉय फ्रेंड गर्ल


फ्रेंड में हो गए।।


 


विकृत हो चुकी मानसिकता महिला मित्र के मतलब स्वार्थ अर्थ का चित्त ।।                       


 


द्रोपदी की सुन पुकार आया


मधुसूदन दौड़े भाग नारी के


अस्मत अस्तित्व का सखा


गिरवर गिरधारी बन गया चट्टान।।


 


अब मित्र का रिश्ता भी दूषित


द्वेष का आधार प्रति दिन मिलते


बिछड़ते मित्रों को मित्र रहता नहीं


याद।।


 


मित्रता की देकर दुहाई


मित्र मित्र को करता शर्मसार


कृष्ण सुदामा कर्ण दुर्योधन मित्रता के रिश्तों के मिशाल मशाल।।


 


घुटती है स्वर्ग में आत्मा जिसने रखी मित्रता बेमिशाल देख कलयुग में मित्रता की पवित्रता को कलुषित कलंकित करता


झूठे मित्रो का समाज।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नूतन लाल साहू

चलो शरण प्रभु श्री राम के


काम क्रोध अउ तिसना हिंसा


पर्दा आंख पड़े हे


जुरमिल के ये चारो दानो


बुद्धि नाश करे हे


बार के ज्ञान के दिया ला


घर घर जोत जलाबो


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


बेइमान अउ भ्रष्टाचारी मन


छल पाखंड करत हे


दुराचार अउ अत्याचार के


बोलबाला बढ़त हे


ईमानदारी के तीर चलाके


ये दुश्मन ल मार भगाबो


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


पहिली चरण वंदना गुरुवर के


फिर माता के चरण मनावव


श्रद्धा सजल,प्रभु राम के शरण


दुःख पीरा गोहरावव


स्थूल रूप हे,प्रभु मुरत के


देख ले ध्यान लगा के


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


प्रभु राम ही हमन के भाग विधाता


प्रभु राम ही हमन के जीवनदाता


प्रभु राम ही हावय परमेश्वर


वेद शास्त्र पुराण ह


जेकर महिमा गाईन


प्रभु राम के किरपा पा के


ब्रम्हा ह सरिस्टी रचाये हे


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


नूतन लाल साहू


एस के कपूर* *"श्री हंस"।।।।।।। बरेली*

*बस महोब्बत ही महोब्बत*


*का पैगाम हो दुनिया में।।।*


 


हर इक इंसानी जान की


हिफाज़त हो दुनिया में।


बस महोब्बत ही की


तिजारत हो दुनिया में।।


नफरत से हो पर्दादारी 


हर दिल के अन्दर।


अमनो चैन की न कोई


खिलाफत हो दुनिया में।।


 


इंसानियत से तो न कभी


बगावत हो दुनिया में।


हर इंसां के बीच न कोई


भी अदावत हो दुनिया में।।


हर निगाह को महोब्बत


की ही नज़र मिल जाये।


बस यही इक ही


इबादत हो दुनिया में।।


 


खुदा नज़र आये इंसा में


यूँ शराफत हो दुनिया में।


न बरसे आग आंखों से


यूँ तरावट हो दुनिया में।।


महोब्बत से न हो कोई


कभी भी तन्हा यहाँ।


हर लफ्ज़ हो इक पैगाम


यूँ लिखावट हो दुनिया में।।


 


हाथों में हाथ दोस्ती का


यूँ दिखावट हो दुनिया में।


जज्बातों से न खेले कोई


यूँ बनावट हो दुनिया में।।


हर गुनाह से हो तौबा


अपने इस जमाने में।


सब मैं से बन जायें हम


यूँ सजावट हो दुनिया में।।


 


*रचयिता।।।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।।।।।।। बरेली*


मोब 9897071046


               8218685464


राजेंद्र रायपुरी

🧍🏽‍♀️🧍🏽‍♀️**** बेटी **** 🧍🏽‍♀️🧍🏽‍♀️


 


बेटी आॅ॑गन की महक,


                      बेटी से घर- बार।


सृष्टि सृजन वो ही करे, 


                    कोख नहीं दो मार।


कोख नहीं दो मार,


                  वही तो है फुलवारी।


महकाए दो द्वार,


                 जानती दुनिया सारी।


उसको रखो सम्हाल, 


                मानकर धन की पेटी।


देखन दो संसार, 


              न मारो कोखन बेटी।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरी जीवन डोर है कृष्णा हाथों में तेरे


तेरी ही कृपा से है मेरे जीवन में सवेरे


दुःख सुख लिख दिये मेरी किश्मत में


हैं पूर्व जन्मों के संस्कार व प्रारब्ध मेरे


 


नहीं कोई गिला नहीं है कोई शिकवा


हस करके जीवन जीऊँगा मेरे स्वामी


चाहूंगा तेरे चरणकमलों की मैं भक्ति


अनुग्रह बनाये रखना तुम अंतर्यामी।


 


श्री गोविन्दाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


    *"कोई करना न व्यापार"*


"अनहोनी न हो कोई फिर,


साथी ऐसा हो परिवेश।


सद्कर्म करते रहे जग में,


प्रभु का ऐसा हो आदेश।।


छाए न विकार मन में फिर,


पल-पल ऐसा करो प्रयास।


प्रभु भक्ति छाए मन में साथी,


यहाँ सत्य का हो आभास।।


सत्य ही जीवन जग में साथी,


बन जाये जीवन आधार।


संबंधों का जीवन में साथी,


कोई करना न व्यापार।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 07-08-2020


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त ' विवश '

स्वाधीनता आन्दोलन में ' अगस्त क्रांति ' .....एक कविता 


 


विषय:- भारत छोड़ो आन्दोलन 


 


 


भारत की धरती वीरों की


अजर अमर रणधीरों की, 


किंचित कायर नहीं यहाँ 


शौर्य-पराक्रमी गम्भीरों की।


 


'मरो नहीं मारो' का नारा 


शास्त्री जी ने फरमाया,


आजादी के आन्दोलन में 


दावानल को भड़काया। 


 


गांधी जी ने तोे दिया हमें 


'भारत छोड़ो' नारा प्यारा, 


'करो या मरो' को देकर 


भारत माँ को दिया सहारा। 


 


आठ अगस्त दिवस अमर 


है भारत के इतिहास में,


असहयोग आंदोलन छेंड़ा


अंग्रेजों के क्रूर प्रवास में।


 


ब्रिटिश हुकूमत भारत में 


जब बादल बनकर छाया,


उन्नीस सौ बयालीस में जो  


'अगस्त क्रांति' कहलाया। 


 


मेदिनीपुर सतारा में तब 


प्रतिसरकार बना डाला,


भारत के वीर जवानों ने 


अपना उद्देश्य सुना डाला। 


 


द्वितीय विश्वयुद्ध में तब 


अंग्रेजों के खट्टे दाँत हुए, 


उनके साम्राज्यवाद पर  


अाघात पर प्रतिघात हुए। 


 


युद्ध की लपटें पश्मिम में 


पूरब में था क्रांति का घोष, 


एक तरफ बापू की आशा 


एक तरफ सुभाष का जोश। 


 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त ' विवश '


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


संजय जैन (मुम्बई)

*अपना राग आलापों..*


विधा : कविता


 


लिखे वो लेखक 


पढ़े वो पाठक।


जो पढ़े मंच से


वो होता है कवि।


जो सुनता वो 


श्रोता होता है।


यही व्यवस्था है


हमारे भारत की।


लिखने वाला कुछ भी


लिख देता है।


पढ़ने वाला कुछ भी 


पढ़ लेता है।


और कुछ का कुछ


अर्थ लगा लेता है।


पर सवाल जवाब का 


मौका किसे मिलता है?


यही हालात आजकल


हमारे महान देश का है।


न कोई सुनता है


न कोई कुछ कहता है।


अपनी अपनी ढपली 


हर कोई बजता रहता है।


और अपनी धुन में


वो मस्त रहता है।


इसलिए अब हिंदुस्तान में 


संवाद खत्म हो गया है।


और भारत को विश्वस्तर पर पीछे कर दिया है।


जिसका सबसे ज्यादा असर,


हिंदी साहित्य पर पड़ा है।


और भारत की संस्कृति


व इतिहास लुप्त हो रहा है।


मंदिर मस्जिद गुरूद्वरा तक भी 


अब धर्म नही बचा है।


और इंसानियत का मानो


जनाजा निकल चुका है।।


 


जय जिनेन्द्रा देव की


संजय जैन (मुम्बई)


08/08/2020


निशा"अतुल्य

क्षणिकाएं 


8.8.2020


 


मुझसे ही 


जन्में रिश्ते


सवाल मुझसे 


ही करते 🤔


 


आज ढूंढ रही


बेसब उसे,


जो कोई नही मेरा,


नही सम्बंध 


देह का ,


ख़्वाहिश मेरी,


मीरा बनने की ।


 


निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


    *"छाये न गमो की बदली"*


"ख़ुशियों के आँगन में भी,


क्यों-छाती गम की बदली?


आये जो गम के आँसू,


पीना समझ अमृत प्याली।।


मिले न मिले खुशी तुमको,


दे सुखी संसार साथी।


भूल जाना दर्द अपना,


दे खुशी में साथ साथी।।


करे निष्काम कर्म साथी,


यहाँ मिले भक्ति निराली।


पूरी हो कामना मन की,


छाये न गमो की बदली।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 08-08-2020


नूतन लाल साहू

कइसन जमाना आगे


ये अगस्त महीना म, तिहारेच तिहार हे


मगन,भाई बहिनी, लइका सियनहा हे


अधिकारी कर्मचारी के मरे बिहान हे


कोरोना के मारे,सब हलाकान हे


डारा हरियर, पाना हरियर


भुइयां के हरियाली ह,बड़ सुग्घर हे


पर सब बेचैन हे, गवइया शहरिया


कोनो पार न पाया,तोर महिमा सबले ऊपर हे


ये अगस्त महीना म, तिहारेच तिहार हे


मगन,भाई बहिनी, लइका सियनहा हे


अधिकारी कर्मचारी के मरे बिहान हे


कोरोना के मारे,सब हलाकान हे


रिद्धि सिद्धि के स्वामी,गणपति देवता जी


विघ्न विनाशक,मूषक तोर सवारी


अगुन सगुण के रूप में,तय हस


संकट ल हर ले,अब तो अवइया हस


ये अगस्त महीना म, तिहारेच तिहार हे


मगन,भाई बहिनी, लइका सियनहा हे


अधिकारी कर्मचारी के मरे बिहान हे


कोरोना के मारे,सब हलकान हे


पर्यावरण के लाज ला,हम मिल जुरके बचाबो


अइसन प्रदुषण ला, गांव शहर ले भगाबो


सुख दुःख के संगवारी,छोटे बड़े मोर मयारु


सरकार चेतावत हे, नइ सुनन हमन ह


ये अगस्त महीना म, तिहारेच तिहार हे


मगन,भाई बहिनी, लइका सियनहा हे


अधिकारी कर्मचारी के मरे बिहान हे


कोरोना के मारे,सब हलाकान हे


सुवा मैना, पांव म,घुंघरू बांध के नांचे


हरषाय के बेरा म, जिनगी ह कुम्हलागे


देखत रहिथव तरिया पार म, घाटे घटौना बइठे


विधि के रचइया ह,अपन भक्त ल भुलागेहे


ये अगस्त महीना म, तिहारेच तिहार हे


मगन,भाई बहिनी, लइका सियनहा हे


अधिकारी कर्मचारी के मरे बिहान हे


कोरोना के मारे, सब हलाकान हे


नूतन लाल साहू


एस के कपूर"श्री हंस*" *बरेली।*

*कॅरोना संकट।घर में रहना*


*ही आज की सबसे बड़ी*


*सच्चाई है।*


 


वजह बेवजह हाथों को 


धोते ही रहिये।


घर पर काम करते और


सोते भी रहिये।।


यही तो ज़रूरत है आज


की सबसे बड़ी।


सावधानियों से लगातार


परिचित होते रहिये।।


 


घर पर ही टिके रहने में


ही बहुत भलाई है।


इस कॅरोना काल में जीवन


में उधड़ी हुई सिलाई है।।


यह दौर नाज़ुकऔर कटेगा


बस बचाव से ही।


यही ध्यान रहे कि अभी


बनी नहीं दवाई है।।


 


इक बात कॅरोना ने सभीको


सिखलाई है।


प्रकृति से नाता जोड़ने की


राह दिखलाई है।।


धन अर्जन से भी अधिक


जरूरी स्वास्थ्य रक्षा।


इस महामारी ने बात यह खूब


बतलाई है।।


 


*रचयिता।एस के कपूर"श्री हंस*"


*बरेली।*


मोब। 9897071046


                    8218685464


राजेंद्र रायपुरी

😊😊* * एक भजन * *😊😊


 


साॅ॑वरे है बता तू कहाॅ॑,


             ढूंढ डाली मैं सारा जहां। (२)


 


काहे बंशी बजाता नहीं।


         कोई धुन क्यों सुनाता नहीं। (२)


चैन बिन बंशी के आए ना,


           साॅ॑वरे है बता तू कहाॅ॑। (२)


 


बात है क्या, बताता न क्यूं


       सामने कान्हा, आता न क्यूं। (२)


रूठ बैठा है जाने कहाॅ॑,


         ढूंढ डाली मैं सारा जहां।(२)


 


साॅ॑वरे है बता तू कहाॅ॑।


          ढूंढ डाली मैं सारा जहां।(२)


 


यूॅ॑ न रूठो सुनो मोहना,


        दिल न लागे तुम्हारे बिना।(२)


हो गई हो अगर कुछ ख़ता।


       माफ़ कर दो रखो दिल में ना।(२)


 


साॅ॑वरे हो बताओ कहाॅ॑।


       ढूंढ डाली मैं सारा जहां।(२)


 


सूनी है, कूंज की हर गली।


        है कली भी न कोई खिली।(२)


तेरी गइया भी कुछ खाएॅ॑ ना।


       है कहाॅ॑ तू, बता मोहना।(२)


 


साॅ॑वरे, है बता तू कहाॅ॑।


         ढूंढ डाली मैं सारा जहां।(२)


 


सारी सखियाॅ॑ पुकारें तुझे।


         है कहाॅ॑ तू बता दें मुझे।(२)


सारी सखियों को लाऊॅ॑ वहाॅ॑।


        मोहना तू है बैठा जहाॅ॑।(२)


 


साॅ॑वरे है बता तू कहाॅ॑।


         ढूंढ डाली, मैं सारा जहां।(२)


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ बीके शर्मा  उच्चैन भरतपु

"मृत्यु गीत" -1


"""""""""""""""""""""


थाम हाथ


संग ले चल साकी


सामना तेरा मेरा है अभी बाकी


 


खूब जी के


जी भर जिया मैं


है अधीन जग तेरे 


तू नहीं किसी की दासी


थाम हाथ संग ले चल सकी.....


 


नहीं कुछ यहां मेरा जग


सर्व अर्पण मेरा तुझे पग पग में


मैं बाट जोहूं तो किस की 


ना मिलेगा कोई तुझसा साथी


थाम हाथ संग ले चल साकी......


 


क्यों मैं क्षण क्षण मरु


हूं क्यों मैं पल-पल जलूं


क्यों मैं आजकल करूं


क्यों चेहरे पर अपने लाऊ उदासी


थाम हाथ संग ले चल साकी......


 


 चाहता नहीं मैं पीछे हटना


 चाहता नहीं मैं तेरा टलना


 मैं चाहता हूं तुझमें मिलना 


 देख मेरी तू काल राशि 


 


थाम हाथ संग ले चल साकी


 सामना तेरा मेरा है अभी बाकी


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


डॉ .निर्मलाशर्मा दौसा राजस्थान

श्री राम अवध में आए


 श्री राम अवध में आए 


संग लखन सहित सिय लाये


चरणों में हनुमत सेवा करें 


अगवानी में भरत कर जोड़े खड़े


 शत्रुघ्न चँवर हिलावे मुसकावे बड़े 


श्री राम अवध में आए


 संग लखन सहित सिय लाये


घर घर में खुशी के दीप जले 


हर द्वार पे बंधनवार सजे 


आंगन में मोतियन चौक पुरे 


देहरी पर कंचन कलश धरे 


श्री राम अवध में आए 


संग लखन सहित सिय लाये


 सियाराम की मंगल जोड़ी है


 छवि अनुपम अद्भुत न्यारी है


 व्याकुल दर्शन को भारी है


 सब अवध के खड़े नर नारी हैं


 श्री राम अवध में आए 


संग लखन सहित सिय लाये


 माताएं वात्सल्य लुटाती हैं


मन का हर भरम मिटाती हैं


चारों ओर से जय जयकार करें


 देवता भी पुष्पों की वर्षा करें


 यह दृश्य बड़ा ही प्यारा है 


श्री राम अवध में आए 


संग लखन सहित सिय लाये


डॉ .निर्मलाशर्मा


दौसा राजस्थान


प्रखर फर्रुखाबाद

*मानस*


 


कविकुल गुरू तुलसी रची, मानस दिव्य अनूप।


दोहा चौपाई खचित, सोरठ छंद सरूप।।


 


मानस अमृत कुम्भ सत, पावन राम प्रसंग।


सरल चितेरा सहज पिब, झूमत मनस विहंग।।


 


पावन कलि तरणी शुभं, मानस जीवन सार।


धर्म नीति कर्तव्य का, शाश्वत मूलाधार।।


 


वाङग्यमयी वपु राम को, सिय सनेह प्रतिमान।


रुचिर नव्यता द्युति प्रखर, शम्भु शिवा आख्यान।।


 


*प्रखर*


*फर्रुखाबाद*


विनय साग़र जायसवाल

गीतिका 


 


उसकी बाँहों में नींद आती है


यह ही आदत उसे लुभाती है


 


ध्यान रहता है मेरा जो उसमें


मुझसे हर चीज़ टूट जाती है


 


लूट लेती है दिल अदा उसकी 


जिस अदा से मुझे मनाती है


 


चाट लेता हूँ उंगलियाँ अक्सर


इतनी उम्दा वो डिश बनाती है 


 


तीस सालों में भी नहीं बदली 


आज भी वैसे ही लजाती है


 


सादगी में भी उसका क्या कहना


एक बिंदिया ही बस लगाती है


 


ज़िद की पक्की है इस कदर *साग़र* 


बस यही बात इक रुलाती है 


 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


6/8/2020


सत्येन्द्र कुमार यादव 


क्षेत्र - कमासिन, जिला - बाँदा


राज्य - उत्तर प्रदेश २१०१२५


पद - विद्यार्थी 


संस्था - जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय चित्रकूट उत्तर प्रदेश 


मोबाइल नंबर - ७३१०२२५०६९


ईमेल - satyendra7310225069@gmail.com


सम्मान - कलमकार साहित्य सम्मान, दोहा सम्मान और दैनिक जागरण सहित अन्य पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं 


विधा- दोहा 


 


पंगु दिखे कानून अब, होता है व्यभिचार। 


होगा आखिर कब तलक,ऐसे अत्याचार।।


 


आना सखे चुनाव फिर, होगें खड़े प्रधान। 


कहीं मिलेंगे नोट तो, कहीं मिलेगा पान।। 


 


कोट पहन कर लाम ले, आते जोड़े हाथ। 


बनना मुझे प्रधान है, मिल जाए गर साथ।।


 


 देंगे साथ जरूर हम, इतना सुनिए नाथ। 


कहीं भूल जाना नहीं, वोट मिले जब हाथ।। 


 


नहीं अगर विश्वास है, लो थामो अब नोट। 


लेकिन इतना गौर कर, देना हमको वोट।। 


 


नहीं नहीं हमको सुनो, नहीं नोट की प्यास। 


रहती केवल आपसे, सदा प्रेम की आस।।


 


बात नहीं है आपकी, सुनिए ग्राम प्रधान। 


बहुतों को देखा सुना, कहा इसे मैं जान।।


 


चले शुरू से हम नहीं, कोई ऐसी चाल। 


भले न हमको मिल सके, रोटी कपड़ा दाल।। 


 


स्नान ध्यान पूजा करें, करते मानस पाठ। 


कलह करें घर में सदा, देते गाली साठ।। 


 


रामचरित पढ़ते अगर, करो राम गुणगान।


धारण कर फिर रामगुण, बन जा तू भगवान।। 


 


रहते भाई घर अगर, पिता बँटाओ हाथ। 


शेष जिंदगी और कुछ, देंगे कब तक साथ।। 


 


करते करते काम नित, शिथिल हुए सब अंग।


 लानी होगी समझ अब, करो न इनको तंग।। 


 


लोग करें वैसे यहाँ, खूब धर्म की बात। 


मगर सोचते अहर्निश, मिल जाए कब घात।। 


 


दूर कोरोना से रखे, साफ सफाई मीत। 


हाथ मिलाने से डरो, पार करोगे जीत।। 


 


भारत आया है अगर, डरो ना इससे मित्र। 


मात दिलाएंगे इसे, जिसका दिखे ना चित्र।। 


 


मास्क पहने काम से, उतना जाएं आप। 


जिससे भूखों ना मरें, और न हो संताप।। 


 


हवा में फैले न कभी, रक्तबीज का रोग। 


बचे रहें अफवाह से, करते हैं जो लोग।। 


 


ताजा भोजन कीजिए, रहो स्वस्थ भरपूर। 


तभी करोना आपसे, भागेगा कुछ दूर।।


 


बंधु दूर जाना नहीं, छोड़ कहीं घर आप। 


नीच करोना है अभी, बना हुआ अभिशाप।। 


 


कलयुग भी अब देखिए, करने लगा धमाल। 


वंशीधर अवतार लो, विपदा बड़ी कराल।। 


 


कोरोना के चक्र से, बचा न कोई आज ।


चाहे कोई रंक हो, चाहे हों सरताज।। 


 


 


डाॅक्टर होते हैं यहाँ, ईश्वर दूजा रूप। 


अर्पित करता मैं इन्हें, धन्यवाद की धूप।।


 


फर्ज निभाने में नहीं, करें कभी ये चूक। 


गंभीर हाल में सदा, करते बात सलूक।। 


 


धन्यवाद ज्ञापित करूँ, डाॅक्टर बारम्बार। 


छोड़ कपट छल छंद जो, स्वस्थ करें परिवार।।


 


कठिन समय में आप ही, तुरत बनें भगवान। 


बिना आपके फिर कहीं, मिलता नहीं निदान।। 


 


घर से अगर कहीं चलूँ, माँ हो जाती खिन्न। 


टीस मन में भरे हुए, देती चीजें भिन्न।। 


 


जितना बस उनका चले, इच्छा करतीं पूर।


जितना चाहे हम कहें, खूब बडा़ भरपूर।। 


 


दुखिया माता देख हम, हो जाते गंभीर। 


मुख से कुछ निकले नहीं, नयनों से बस नीर।। 


 


अश्रु निकलते हैं मगर, लेता हूं मैं रोंक। 


कहता हूँ माँ जा रहा, आप रहें बेशोक।। 


 


पैर बढ़ाऊँ राह पर, रोता फिर सिसकार। 


माँ का प्रेम समुद्र सम, करिये जरा विचार।।


लवी सिंह बरेली

स्त्री विमर्श पर नारी शशक्तिकरण की कालजयी कविता


"तुम कब तक मुझको रोकोगे''


 


मैं खुले गगन की चिड़िया हूँ, पंख पसार उड़ जाऊंगी।


तुम कब तक मुझको रोकोगे


आखिर तुम कब तक रोकोगे


 


कोई शीशा नहीं हूँ मैं जो ठेस लगने पर बिखर जाऊंगी, 


लाख चोटें खाने पर भी मैं यूँ ही मुस्कुराउंगी,


तुम और कितने इम्तहान मेरी जिंदगी से अब लोगे


मैं एक दिन जीत जाऊंगी.....तुम कब तक मुझको रोकोगे...


अखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


स्त्री होने पर कोई पाप नहीं किया मैंने,जो घूँघट में छिप जाऊंगी


अस्तित्त्व है मेरा भी,मैं भी अपनी पहचान बनाऊंगी


ये धर्म-जाति के बंधन में तुम कब तक मुझको झोंकोगे


मैं नया समाज बनाऊंगी...तुम कब तक मुझको रोकोगे....


आखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


तपते सहरा में मैं साया बन जाऊंगी,


राहों के अंधेरे का मैं उजाला बन जाऊंगी,


बहन,बेटी,पत्नी,माँ स्त्री का हर रूप मैं निभाउंगी


फिर भी अगर तुम पुरुषत्व मुझ पर थोपोगे


तो नारी सशक्तिकरण की मैं मिसाल बन जाऊंगी...तुम कब तक मुझको रोकोगे...


आखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


मैं खुले गगन की चिड़िया हूँ पंख पसार उड़ जाऊंगी.....तुम कब तक मुझको रोकोगे,


तुम कब तक मुझको रोकोगे...


आखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


लवी सिंह बहेड़ी बरेली उत्तर प्रदेश


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

निज संस्कृति, गौरव, उन्मेष


स्वर्णिम जिसका इतिहास रहा है


रहता जो सदा आलोकित


 


पावन पवित्र धरा जिसकी


मनीषियों से होती सदा सुशोभित


 


संस्कार संस्कृति पर जिसकी


मुझको कोटि कोटि अभिमान


 


जिओ और जीने दो की रही


 परिपाटी जिसकी सम्मान


 


निज स्वार्थ का कर त्याग


सदा परमार्थ मार्ग अपनाया


 


मेरा भारत देश महान जहाँ


आध्यात्म का घना साया


 


सर्वे भवन्तु सुखिनः कहकर


आनन्द का रस बरसाया


 


जगत जीव कल्याण हेतु


हमें नैतिक धर्म सिखाया


 


गीता, रामायण जैसे महाग्रन्थ


 सिखलाएँ जीना जीवन


 


दिखला कल्याण का मार्ग


मनुज का करते मार्गदर्शन


 


ये ऋषि मुनियों की धरती है


अदभुत इसका संसार है


 


नारी को शक्ति स्वरूप मान


दिया देवी रूप में मान है


 


त्याग, बलिदान, साहस, धैर्य


वीरता से पगी ये धरती


 


शांति का नित सन्देश सुनाती


नित वंदन सभी का करती


 


ज्ञान, विज्ञान, चिकित्सा ,दर्शन


है सभी में सबसे आगे


 


ये आर्यावर्त की पावन धरती


जहाँ मंगल गीत हैं साजे


 


निज संस्कृति का मान करें


अभिमान करें हम इसपर


 


विश्व गुरु भारत को नमन है


सदा मेरा झुक- झुककर


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ बीके शर्मा

चले दूर कहीं (एक ग़ज़ल)


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खुल ना जाए राज कहीं 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं


 


उम्र ये ढल ना जाए 


है फैसले की घड़ी 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


साथ-सांझ जैसा 


है रात दामन छोड़ चली


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


है अजीब अपनी छाया


है दिन साथ रात छोड़ चली


चले दूर कहीं, चले दूर कहीं 


 


झण भर के दुख सुख साथी


हो उदास क्यों कोने खड़ी 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


लिखते लिखते मेरी कलम


है आज क्यों रो पड़ी 


चले दूर कहीं,चले दूर कहीं


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


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