प्रखर फर्रुखाबाद

*मानस*


 


कविकुल गुरू तुलसी रची, मानस दिव्य अनूप।


दोहा चौपाई खचित, सोरठ छंद सरूप।।


 


मानस अमृत कुम्भ सत, पावन राम प्रसंग।


सरल चितेरा सहज पिब, झूमत मनस विहंग।।


 


पावन कलि तरणी शुभं, मानस जीवन सार।


धर्म नीति कर्तव्य का, शाश्वत मूलाधार।।


 


वाङग्यमयी वपु राम को, सिय सनेह प्रतिमान।


रुचिर नव्यता द्युति प्रखर, शम्भु शिवा आख्यान।।


 


*प्रखर*


*फर्रुखाबाद*


विनय साग़र जायसवाल

गीतिका 


 


उसकी बाँहों में नींद आती है


यह ही आदत उसे लुभाती है


 


ध्यान रहता है मेरा जो उसमें


मुझसे हर चीज़ टूट जाती है


 


लूट लेती है दिल अदा उसकी 


जिस अदा से मुझे मनाती है


 


चाट लेता हूँ उंगलियाँ अक्सर


इतनी उम्दा वो डिश बनाती है 


 


तीस सालों में भी नहीं बदली 


आज भी वैसे ही लजाती है


 


सादगी में भी उसका क्या कहना


एक बिंदिया ही बस लगाती है


 


ज़िद की पक्की है इस कदर *साग़र* 


बस यही बात इक रुलाती है 


 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


6/8/2020


सत्येन्द्र कुमार यादव 


क्षेत्र - कमासिन, जिला - बाँदा


राज्य - उत्तर प्रदेश २१०१२५


पद - विद्यार्थी 


संस्था - जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय चित्रकूट उत्तर प्रदेश 


मोबाइल नंबर - ७३१०२२५०६९


ईमेल - satyendra7310225069@gmail.com


सम्मान - कलमकार साहित्य सम्मान, दोहा सम्मान और दैनिक जागरण सहित अन्य पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं 


विधा- दोहा 


 


पंगु दिखे कानून अब, होता है व्यभिचार। 


होगा आखिर कब तलक,ऐसे अत्याचार।।


 


आना सखे चुनाव फिर, होगें खड़े प्रधान। 


कहीं मिलेंगे नोट तो, कहीं मिलेगा पान।। 


 


कोट पहन कर लाम ले, आते जोड़े हाथ। 


बनना मुझे प्रधान है, मिल जाए गर साथ।।


 


 देंगे साथ जरूर हम, इतना सुनिए नाथ। 


कहीं भूल जाना नहीं, वोट मिले जब हाथ।। 


 


नहीं अगर विश्वास है, लो थामो अब नोट। 


लेकिन इतना गौर कर, देना हमको वोट।। 


 


नहीं नहीं हमको सुनो, नहीं नोट की प्यास। 


रहती केवल आपसे, सदा प्रेम की आस।।


 


बात नहीं है आपकी, सुनिए ग्राम प्रधान। 


बहुतों को देखा सुना, कहा इसे मैं जान।।


 


चले शुरू से हम नहीं, कोई ऐसी चाल। 


भले न हमको मिल सके, रोटी कपड़ा दाल।। 


 


स्नान ध्यान पूजा करें, करते मानस पाठ। 


कलह करें घर में सदा, देते गाली साठ।। 


 


रामचरित पढ़ते अगर, करो राम गुणगान।


धारण कर फिर रामगुण, बन जा तू भगवान।। 


 


रहते भाई घर अगर, पिता बँटाओ हाथ। 


शेष जिंदगी और कुछ, देंगे कब तक साथ।। 


 


करते करते काम नित, शिथिल हुए सब अंग।


 लानी होगी समझ अब, करो न इनको तंग।। 


 


लोग करें वैसे यहाँ, खूब धर्म की बात। 


मगर सोचते अहर्निश, मिल जाए कब घात।। 


 


दूर कोरोना से रखे, साफ सफाई मीत। 


हाथ मिलाने से डरो, पार करोगे जीत।। 


 


भारत आया है अगर, डरो ना इससे मित्र। 


मात दिलाएंगे इसे, जिसका दिखे ना चित्र।। 


 


मास्क पहने काम से, उतना जाएं आप। 


जिससे भूखों ना मरें, और न हो संताप।। 


 


हवा में फैले न कभी, रक्तबीज का रोग। 


बचे रहें अफवाह से, करते हैं जो लोग।। 


 


ताजा भोजन कीजिए, रहो स्वस्थ भरपूर। 


तभी करोना आपसे, भागेगा कुछ दूर।।


 


बंधु दूर जाना नहीं, छोड़ कहीं घर आप। 


नीच करोना है अभी, बना हुआ अभिशाप।। 


 


कलयुग भी अब देखिए, करने लगा धमाल। 


वंशीधर अवतार लो, विपदा बड़ी कराल।। 


 


कोरोना के चक्र से, बचा न कोई आज ।


चाहे कोई रंक हो, चाहे हों सरताज।। 


 


 


डाॅक्टर होते हैं यहाँ, ईश्वर दूजा रूप। 


अर्पित करता मैं इन्हें, धन्यवाद की धूप।।


 


फर्ज निभाने में नहीं, करें कभी ये चूक। 


गंभीर हाल में सदा, करते बात सलूक।। 


 


धन्यवाद ज्ञापित करूँ, डाॅक्टर बारम्बार। 


छोड़ कपट छल छंद जो, स्वस्थ करें परिवार।।


 


कठिन समय में आप ही, तुरत बनें भगवान। 


बिना आपके फिर कहीं, मिलता नहीं निदान।। 


 


घर से अगर कहीं चलूँ, माँ हो जाती खिन्न। 


टीस मन में भरे हुए, देती चीजें भिन्न।। 


 


जितना बस उनका चले, इच्छा करतीं पूर।


जितना चाहे हम कहें, खूब बडा़ भरपूर।। 


 


दुखिया माता देख हम, हो जाते गंभीर। 


मुख से कुछ निकले नहीं, नयनों से बस नीर।। 


 


अश्रु निकलते हैं मगर, लेता हूं मैं रोंक। 


कहता हूँ माँ जा रहा, आप रहें बेशोक।। 


 


पैर बढ़ाऊँ राह पर, रोता फिर सिसकार। 


माँ का प्रेम समुद्र सम, करिये जरा विचार।।


लवी सिंह बरेली

स्त्री विमर्श पर नारी शशक्तिकरण की कालजयी कविता


"तुम कब तक मुझको रोकोगे''


 


मैं खुले गगन की चिड़िया हूँ, पंख पसार उड़ जाऊंगी।


तुम कब तक मुझको रोकोगे


आखिर तुम कब तक रोकोगे


 


कोई शीशा नहीं हूँ मैं जो ठेस लगने पर बिखर जाऊंगी, 


लाख चोटें खाने पर भी मैं यूँ ही मुस्कुराउंगी,


तुम और कितने इम्तहान मेरी जिंदगी से अब लोगे


मैं एक दिन जीत जाऊंगी.....तुम कब तक मुझको रोकोगे...


अखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


स्त्री होने पर कोई पाप नहीं किया मैंने,जो घूँघट में छिप जाऊंगी


अस्तित्त्व है मेरा भी,मैं भी अपनी पहचान बनाऊंगी


ये धर्म-जाति के बंधन में तुम कब तक मुझको झोंकोगे


मैं नया समाज बनाऊंगी...तुम कब तक मुझको रोकोगे....


आखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


तपते सहरा में मैं साया बन जाऊंगी,


राहों के अंधेरे का मैं उजाला बन जाऊंगी,


बहन,बेटी,पत्नी,माँ स्त्री का हर रूप मैं निभाउंगी


फिर भी अगर तुम पुरुषत्व मुझ पर थोपोगे


तो नारी सशक्तिकरण की मैं मिसाल बन जाऊंगी...तुम कब तक मुझको रोकोगे...


आखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


मैं खुले गगन की चिड़िया हूँ पंख पसार उड़ जाऊंगी.....तुम कब तक मुझको रोकोगे,


तुम कब तक मुझको रोकोगे...


आखिर तुम कब तक रोकोगे।


 


लवी सिंह बहेड़ी बरेली उत्तर प्रदेश


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

निज संस्कृति, गौरव, उन्मेष


स्वर्णिम जिसका इतिहास रहा है


रहता जो सदा आलोकित


 


पावन पवित्र धरा जिसकी


मनीषियों से होती सदा सुशोभित


 


संस्कार संस्कृति पर जिसकी


मुझको कोटि कोटि अभिमान


 


जिओ और जीने दो की रही


 परिपाटी जिसकी सम्मान


 


निज स्वार्थ का कर त्याग


सदा परमार्थ मार्ग अपनाया


 


मेरा भारत देश महान जहाँ


आध्यात्म का घना साया


 


सर्वे भवन्तु सुखिनः कहकर


आनन्द का रस बरसाया


 


जगत जीव कल्याण हेतु


हमें नैतिक धर्म सिखाया


 


गीता, रामायण जैसे महाग्रन्थ


 सिखलाएँ जीना जीवन


 


दिखला कल्याण का मार्ग


मनुज का करते मार्गदर्शन


 


ये ऋषि मुनियों की धरती है


अदभुत इसका संसार है


 


नारी को शक्ति स्वरूप मान


दिया देवी रूप में मान है


 


त्याग, बलिदान, साहस, धैर्य


वीरता से पगी ये धरती


 


शांति का नित सन्देश सुनाती


नित वंदन सभी का करती


 


ज्ञान, विज्ञान, चिकित्सा ,दर्शन


है सभी में सबसे आगे


 


ये आर्यावर्त की पावन धरती


जहाँ मंगल गीत हैं साजे


 


निज संस्कृति का मान करें


अभिमान करें हम इसपर


 


विश्व गुरु भारत को नमन है


सदा मेरा झुक- झुककर


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ बीके शर्मा

चले दूर कहीं (एक ग़ज़ल)


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खुल ना जाए राज कहीं 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं


 


उम्र ये ढल ना जाए 


है फैसले की घड़ी 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


साथ-सांझ जैसा 


है रात दामन छोड़ चली


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


है अजीब अपनी छाया


है दिन साथ रात छोड़ चली


चले दूर कहीं, चले दूर कहीं 


 


झण भर के दुख सुख साथी


हो उदास क्यों कोने खड़ी 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


लिखते लिखते मेरी कलम


है आज क्यों रो पड़ी 


चले दूर कहीं,चले दूर कहीं


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


सुनीता उपाध्याय

वो ही करेंगे अब भला आवाम का।


मिलकर सभी जो नाम लें श्रीराम का।


 ****


आधार हैं सबके सुधारें काम भी।


करते रहे हैं नाम भी बेनाम का।


 ****


जब पड़ गई है नींव तो देखो सभी।


जगमग हुआ हर है सितारा बाम का।


****


 वो भी करेगा काम सब संसार में।


रहता रहा है जो सदा बेकाम का।


****


जो राम का गुनगान करते हैं सदा।


होता नहीं उनको है डर अंजाम का।


****


सुनीता उपाध्याय


६/८/२०२०


डा. नीलम

*आ के सावन..* 


 


आ के सावन बीत गया, ऋतु भादो की ना बीत जाए कहीं 


 


तू कहे अगर गूँथू मैं 


तेरी बिखरी अलकों में 


फूल कोई


चूम के तेरे गोल कपोल 


नयनों में रख दूं रुप कोई 


ऐसा ना हो मौसम ये 


रुखा ही बीत जाए कहीं 


 


आ के सावन बीत गया, ऋतु भादो की ना 


बीत जाए कहीं 


 


खोई खोई तेरी जवानी में 


आ प्रेम का थोड़ा रस भर दूं


 तेरे रुखे होठों को लहू जिगर का दे दूं


ये हसीन जवानी की ऋतु है


अनछूई ना रह जाए कहीं 


 


आ के सावन बीत गया,ऋतु भादों की नी बीत जाए कहीं। 


 


       डा. नीलम


संजय जैन (मुम्बई

*परिश्रम फल*


विधा : कविता


 


मिला मुझको बहुत कुछ


अपनी मेहनत लगन से।


मेरे अनुभवों को कोई न


क्या कभी छोड़ा पायेगा।


तपा हूँ आग की भट्टी में


तो कुछ बनकर ही निकला हूँ।


और फिर से जिंदगी में कुछ नया निश्चित करूंगा।।


 


भले ही जमाने ने हमे 


ठोकर मार दी हो।


पर अपने लक्ष्य से में


कभी पीछे नही हटूंगा।


और अपने कदमो को


मंजिल तक पहुंचाऊंगा।


और अपनी मंजिल को


मेहनत लगन से पाऊंगा।।


 


करके जाऊंगा कुछ ऐसा


की जमाने वाले देखेंगे।


और अपने आप पर 


वो भी शर्मिन्दी देखेंगे।


यदि इरादे नेक हो तो


मंजिल निश्चित मिलती है।


और फिर से तेरी किस्मत


एक दिन जरूर चमकेगी।।


 


जय जिनेन्द्रा देव की


संजय जैन (मुम्बई)


06/08/2020


मदन मोहन शर्मा 'सजल

*लुटाई हैं जिंदगी*


~~~~~~~~~~


किसी ने हँसकर मुस्कराकर गुजारी है जिंदगी


हमने तन्हाई के आलम में गुजारी है जिंदगी,


 


कसूर हमने नहीं किया सनम मोहब्बत दिल को हुई


तड़फती है रोती है मौत ने पुकारी है जिंदगी,


 


पता नही था पत्थर दिल बेवफा से दिल लगा बैठे


आसमां पर बिठाकर बेसुध हो गिराई है जिंदगी,


 


हर पल बिछाए फूलों के गुलदस्ते उनकी राह में


कुचल दिए सब अरमां जफ़ा तले मिटाई है जिंदगी,


 


खून के कतरे बहाती है आँखे हमेशा याद में 


'सजल' जफ़ा में वफ़ा का खजाना लुटाती है जिंदगी।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


सत्यप्रकाश पाण्डेय

किसी रूप की धूप से झुलसा बदन मेरा


कहीं मिले नहीं मुझको ठंडे जल के छींटे


बेरुखी दिखती है भले ही उसके मन में


फिर भी उसके हर अंदाज लगते है मीठे


 


लगा आँखों में अंजन रचा ओठों पै लाली


आकर्षक मोहिनी हर पल जो लुभाती है


घुंघराली लटों का जादू खींचता तार मन के


भंगिमाओं से वो तो हर दिल को रिझाती है


 


ऐसे कौंन से हैं गुण जो उसे मादक बनाते


डालती है चितवन हृदय छलनी हो जाते


पिलाती जाम आँखों से अधर सुरा प्याली


और हम जैसे आशिक घायल किये जाते


 


कैसे बयां करूँ अंदाजे ए मुहब्बत मैं उसका


कितना स्नेह या नफरत करती है वो हमसे


कर दिया बेचैन सत्य को छीन के निंदिया


चाहती है वह आवादी या बर्बादी हमसे।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर "श्री हंस*" *बरेली।*

*राम काज करिबे को आतुर।।*


*।।।।।।मुक्तक माला।।।।।।।।।*


 


 


सम्पूर्ण जगत ही आज तो 


जैसे राममय हो गया।


बनेगा भव्य सा राम मंदिर


यह भी तय हो गया।।


प्रतिष्ठित होंगें अब रामलला


विशाल गर्भ गृह में।


भारत वर्ष एक स्वर से ही


एक लय हो गया।।


 


पाँच सौ वर्षों का कारावास


आज समाप्त हो गया।


राम लला विराजमान को


घर अपना प्राप्त हो गया।।


प्रभु राम ह्रदय सम्राट हैं


भारत के जन जन के।


प्रत्येक भारत वासी को यह


उपहारे सौगात हो गया।।


 


अयोध्या तीर्थ स्थल अब छा


जायेगा विश्व मानचित्र पर।


भारत को गर्व होगा श्री राम


सरीखे जन जन मित्र पर।।


अपने जीवन काल में प्रत्येक


जाना चाहेगा मंदिर में।


पुष्प अर्पित करने अपने राम


जी आराध्य के चित्र पर।।


 


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।*


मोब 9897071046


              8218685464


एस के कपूर "श्री हंस*" *बरेली।*

*भाव वसुधैव कुटुम्बकम का*


*होना चाहिये।*


 


जब दिल मुस्कुराये तो वही


सच्ची मुस्कान है।


दिल से निकली दुआ ही तो


सच्ची गुणगान है।।


बनावटी नकली रंगत पड़


जाती है फीकी।


जो मन से मांगे सब की खैर


वही सच्चा इंसान है।।


 


किसी के दिल का उजाला


बनो शमा बन कर।


जीत लो शत्रु का भी ह्रदय


तुम क्षमा बन कर।।


तुम्हारा अच्छा किया लौट


कर आता है जरूर।


डूबते के लिए सहारा बनो


तिनके सा जहाँ बन कर।।


 


वसुधैव कुटुंबकम का भाव


जाग्रत होना पाइये।


सब के साथ आप हँसना 


और रोना लाईये।। 


सब हैं एक ही ईश्वर की


संतानें इस जहाँ में।


क्षमा भाव हो ह्रदय में प्रबल


क्रोध खोना चाहिये।।


 


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।*


मोब।। 9897071046


                   8218685464


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

सफर जिंदगी है सुहाना 


मिलना बिछड़ना रोना मुस्कुराना।।


 


जिंदगी तनहा लोगों


रिश्तों नातों का कारवाँ ।        


 


भीड़ में


अकेला जिंदगी की परछाई यादों तनहाई सांसो धड़कन की जिंदगी बोझ ख़ुशी गम का मेला झमेला।।


 


 


इंसान अरमानों की मंज़िलों का


मुसाफिर मंजिलों को खोजता 


दुनियां से पता पूछता।


जिंदगी का जंग जीतने मकसद


मौसिकी का मसीहा ।।         


 


जमाने के


जज्बात हालात की कश्ती


का मांझी कभी खुद की कश्ती भँवर तूफ़ान निकालने की जद्दो जहद मसझधार में पतवार की गुहार जिंदगी।।


 


नशा जिंदगी जूनुन जिंदगी


शुरुर जिंदगी मकसद के जंग का


ढूढती हथियार जिंदगी ।।      


 


कभी


दौलत की मार कभी रिश्तों नातों 


की मार कभी किस्मत हालात की


मार जिंदगी।।


 


दौलत की होड़ का नशा आराम


अय्यासी का नशा शोहरत


का नशा इश्क हुस्न का नशा।।


 


जिंदगी नशा जरूर ना झूमती


ना नाचती अपने अंदाज़ के नशे


में गुजरती जाती।।


 


कही ठहर जाती पल दो पल 


कहीं से गुजर जाती चलती जाती


एक दिन गुजरे जमाने की यादें 


जिंदगी गुजर जाती।।


 


शराब साकी पैमाना बेवजह 


बदनाम इंसान शराब साकी


पैमाने मैखाने का ईमान।।


 


जिंदगी इंसान गुरुर की गहराई


जाम उतर गयी जिंदगी सागर की गहराई सागर की सुराही में ही डूबती जिंदगी।।


 


गुमनाम अंधेरो में खोई जिंदगी


बेनाम।।


जिंदगी खुद की अमानत नहीं


जिंदगी जहाँ का जज्बा जज्बात


जिंदगी जहाँ जमाने में गुजरती


खुद के कदमो से लिखती दरमियाने दास्ताँ।।


 


 


जिंदगी जज्बा दुनियां के लिए मारना।


दुनियां के लिये जिंदगी इबादत 


इम्तेहान से गुजराती जहाँ में अंधेरों को उजाले में बदलती।।


 


 


फर्श से अर्श फ़र्ज़ फ़क़ीर जिंदगी


ना कुछ लेकर आती ना कुछ साथ लेकर जाती जिंदगी।।


 


साँसों धड़कन के दौरान जो भी


कमाई दौलत दुनियां में साँसों धड़कन के बाद दुनियां के साथ


जिंदगी।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


सत्यप्रकाश पाण्डेय

त्रास हरो


 


तेरी मन मोहिनी मूरत पर


कृष्णा सारे सुख मैं वार दूं


अपनाले मुझे जग स्वामी


तुम्हें पाके सभी विसार दूं


 


अवर्चनीय शीश की शोभा


मोर मुकुट का आकर्षण


अधर विराजे मुरली प्यारी   


सौम्य सुधारस का वर्षण


 


कमलनयन का चितवन


कमलकांति तनमन में धारे


हे कमलापति श्री राधेश्वर


करकमल मनोहर अति प्यारे


 


तुम करुणा के अक्षय पात्र


"सत्य" हृदय में वास करो


भक्त वत्सल करुनासिन्धु


मेरी विपदा और त्रास हरो।


 


श्री गोविन्दाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

🚩🚩** जय श्रीराम **🚩🚩


     रामलला के दिन बहुराए।


     लोग अयोध्या देखन आए।


 


     पाॅ॑च सदी तक बहु दुख पावा।


     दुष्ट बहुत सब किन्ह छलावा।


 


     पाॅ॑च सदी प्रभु थे वनवासी।


     रही अवध में बहुत उदासी।


 


     देर-सवेर न्याय प्रभु पावा।


     आज अयोध्या दिन वो आवा।


 


     जब मंदिर की नींव खुदेगी।


     और शिला इक रजत डलेगी।


 


     मंदिर अब इक भव्य बनेगा। 


     जो दुनिया में नाम करेगा।


 


     अनुपम मंदिर होगा भाई।


     जा में राजेंगे रघुराई।


 


मास भाद्रपद कृष्ण दो,


                शुभ दिन था बुधवार।


शिलान्यास मंदिर हुआ,


                  मन में खुशी अपार‌।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


          *"मीत"*


"बाँध ले डोर जीवन की,


कोई ऐसा मिले मीत।मिले सुख अपनो को यहाँ,


कोई ऐसा लिखे गीत।।


बाँधे सुरो संग उसको,


कोई दे ऐसा संगीत।


थामे कदमो को उनके,


साथी पल-पल सुने गीत।।


उभरे न दर्द फिर अपना,


जग में जब भी मिले मीत।


बाँटे ख़ुशियाँ उनको पल-पल,


गाता रहे ऐसा गीत।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःः


         सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 06-08-2020


प्रखर

*राम*


 


राम जीव आलम्ब जग, सोई सृष्टि आधार।


ज़ड़ चेतन जंगम रमै, निराकार साकार।।


 


राम इमाम ए हिंद हैं, सजदा सौ सौ बार।


वो जिनके मनसबदार हैं, प्रभु उनके मनसबदार।।


 


सरजू तट मनभावनो, अवध सुहावन ठाँव।


तहाँ राम लीला करी, सियरी तरु तर छाँव।।


 


तम्बू के बम्बू उखड़, मिली पुन: जागीर।


देव गेह हित बलि चढ़े, अनत संत नर वीर।।


 


हिये कोशलापति रहैं, निग्रह इंद्रिय काम।


राम हरहिं कलमष सकल, चाहे विधाता बाम।।


 


*प्रखर*


डॉ निर्मला शर्मा  दौसा राजस्थान

( गीत )


  अवध में मंगल


 


 अवध में मंगल है भारी


 लौटे आज राम, सिय, लक्ष्मण


 लगे अयोध्या अति प्यारी


 


 चलो सखी हम दिए जलायें


 फूलों से नगरी को सजायें


 करें स्तुति मंगल गायें


 मन जाए उनके बलिहारी 


                                              अवध में मंगल है भारी दर्शन को तरसे येअखियां 


सरयू पर बैठी सब सखियां


बाट निहारे कर- कर बतिया


 अब आओ धनुषधारी 


                                                अवध में मंगल है भारी पल-पल जैसे सदियों बीते 


न्याय की आस में दिन गए रीते


 आई घड़ी जब हुआ फैसला 


सत्य की जीत पे मैं बलिहारी 


                                                 अवध में मंगल है भारी मन पुलकित तन खुशी से नाचे


 सीताराम की महिमा गावे 


अबीर- गुलाल, पुष्प की वर्षा


 स्वागत करते नर नारी  


                                                  अवध में मंगल है भारी


डॉ निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


अर्चना पाठक  अम्बिकापुर ,सरगुजा  छत्तीसगढ़

चौपाई


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मन में राम


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अवध पुरी आए सिय रामा।


ढोल बजे नाचे सब ग्रामा।।


 


घर-घर खुशहाली हर द्वारे। 


शिलान्यास मंदिर का प्यारे।।


 


राम राज चहुँ दिशि है व्यापे। 


लोक लाज संयत सब ताके ।।


 


राजधर्म सिय वन प्रस्थाना ।


सत्य ज्ञान किंतु नहीं माना।।


 


है अंतस सदा बसी सीता।


रहे एकांत उर बिन मीता।।


 


सुख त्याग सर्व कर्म निभावें।


प्रजा सुखी निज दुख बिसरावें।।


 


नरकासुर मारे बनवारी।


राम तो है विष्णु अवतारी।।


 


खील बताशे अरू आरती।


सबके मन खुशियाँ भर आती।।


 


सज रही देख दीप मालिका।


खुश हैं बालक सभी बालिका।।


 


उर आनंदित चहुँ दिशि छाये। 


हरे तिमिर जगमग छवि पाये।।


 


मन में राम नाम नित जापे। 


नम्र निवेदित खोते आपे।। 


 


अयोध्या में कुंभ है भारी। 


मन से जन का बढ़ना जारी।। 


 


 


अर्चना पाठक 


अम्बिकापुर ,सरगुजा 


छत्तीसगढ़


संजय जैन (मुम्बई

*कलाम का कमाल*


विधा : गीत


 


बहुत फक्र करते थे


हम अपनो पर यार।


बंद आंखों से विश्वास  


 करते थे उन पर हम।


पर पढ़ न सके उन्हें


साथ रहते हुये हम।


तभी तो उठा दिया जनाजा विश्वास का आज।


और आंखे मेरी खोल दी,


की मत करो किसी पर विश्वास।।


 


जो अपनो से विश्वास 


घात करता है।


और अपनो को अपना  


 बनकर लूटता है।


एक दिन ऐसा आएगा 


 उनके भी जीवन में।


सब कुछ रहेगा पास 


पर अपना न होगा कोई।।


 


जब तक तेरे सितारे


बुलंद होते है,


तबतक तेरा कोई कुछ 


 बिगड़ सकता नहीं।


इसलिए तो अपने कामो पर करता रहा घमंड।


पर जब आता है बुरा वक्त 


तब कोई भी साथ नहीं देते।


तब अपने किये गये कर्म


याद बार बार आते है,


पर तब तक देर 


हो चुकी होती।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


05/08/2020


सुनीता असीम

राजा रहे जो पूर्व में अकबर महान से।


हिलते धरा गगन भी थे उनकी उड़ान से।


***


वो भी नहीं टिके हैं बड़ी आन-बान थी।


सब छोड़कर यहां पे गए थे जहान से।


***


बस चार दिन रहेगा यहां ठाठ बाट सब।


माया व मोह छोड़ दो तन के मकान से।


***


रहता खुदा जो आसमां में कह रहा यही।


बस देखता हूं तुझको यहां मैं मचान से।


***


क्या आपकी कमाई यहां हो रही कहो।


बाहर करो बुराई को दिल की दुकान से।


***


सुनीता असीम


५/८/२०२०


अवधेश रजत        वाराणसी

#मत्तगयन्द_सवैय्या #कवि_रजत


राम लला घर लौट रहे चहुँ ओर खुशी मन भावन लागे,


गाँव गली हर एक दिशा शुभ गूँज रही धुन पावन लागे।


खत्म हुआ वनवास छिपा मुँह दुष्ट पराजित रावन लागे,


वेग न थाम सकें दृग के पट प्रेम झरे जस सावन लागे।।


©अवधेश रजत


       वाराणसी


सम्पर्क #8887694854


कबीर ऋषि “सिद्धार्थी

•राम जन्मभूमि पूजन•


त्रेतायुग की अवधपुरी में फिर हरियाली छायी है!


कौशल्या माता के घर में जो खुशहाली आयी है!


राम-नाम की गुंज उठी है हर भारत के घर-घर में,


सम्पूर्ण "राम-अयोध्या" में फिर दीपावली आयी है!


–कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रचना उनियाल

रचना उनियाल(परिचय)


 


माता पिता साहित्यिक क्षेत्र से जुड़े हुए थे।


पिता- स्वर्गीय कवि भगीरथ


कवि भगीरथ की कृतियाँ


जय ध्वनि, सृष्टि-सेतु


माता-श्रीमती मंजू काले


पति -कर्नल अरविंद मोहन उनियाल (सेवानिवृत्त)


 


शिक्षा-रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर, व बी.एड.


(भूतपूर्व अध्यापिका )



उपलब्धियाँ-


बारह वर्ष आई.टी.आई. महिला मंडल के सचिव के पद पर रहते हुये तीन सौवेनियरस का लोकार्पण किया।



रचनाओं का विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन।
मंचों पर काव्य पाठ 
रुचि-गायन,लेखन,कार्यक्रमों का आयोजन,

प्रकाशित काव्य साझा संग्रह-


 


1-शब्द कलश,


2-महफ़िल-ए-ग़ज़ल,
3-भाव सरिता,


4-योग संगम,



एकल संग्रह-


1-प्रस्तुति -एक प्रयास


2-नोराइज़


3-भगीरथ की रचना


4-दमकते बदरवा


5-काव्यमेघ


 


सम्मान-


साहित्य प्रहरी सम्मान-प्रेरणा मंच बैंगलोर,



शीर्षक स्तम्भ,शब्द सारथी,शब्द कुंज सम्मान,शीर्षक साहित्य परिषद (भोपाल)
काव्य सागर सम्मान-साहित्य सागर,(राजस्थान)



पुरस्कार-80 बार से अधिक बार श्रेष्ठ सृजन के लिए शीर्षक साहित्य परिषद, साहित्य संगम संस्थान, नारी सुवास मंच, रचनाकार मंच, उड़ान, भावों के मोती,दोहाकार ,नवोदित साहित्यकार,सोपान साहित्यिक संस्था,साहित्य सरिता संस्थान,अटल काव्यांजलि, जय हिंद जय नदी,क़लम बोलती है,मंचों द्वारा सम्मानित


 


साहित्य ज्योति,शिवमृत,शिवपूजन सहाय,


साहित्य तुषार रत्न,मधुशाला काव्य गौरव,साहित्य सारथी,अमीर खुसरो,शिव साहित्य साधक, महेंद्र कपूर,लोक गीतकार,मातृत्व,शोभा गुर्टू जी,अटल कर्मवीर,सम्मानों से सम्मानित



इसके अतिरिक्त समीक्षाधीश , श्रेष्ठ टिप्पणीकार सम्मानों से सम्मानित


 


शीर्षक साहित्य परिषद भोपाल द्वारा सम्मानित “श्रेष्ठ वार्षिक रचनाकार” २०१९ “शब्द सागर”(भोपाल)


 


शीर्षक आन माइक प्रतियोगिता २०२० में प्रथम पुरस्कार “शब्द गौरव” से सम्मानित(भोपाल)


 



पता-फ़्लैट नम्बर-४१० 
होरामवु मेन रोड,
होरामवु,
बैंगलोर(कर्नाटका)
पिन कोड-५६००४३
मोबा0-९९८६९२६७४५


 


१-


शिव की स्तुति


कुंडलियाँ


आओ वसुधा देव तुम ,काटो जग के त्रास।


नमन करें हम आपको, तारो बंधन रास।।


तारो बंधन रास, वंदना करें तुम्हारी।


मिले ज्ञान ओंकार, यज्ञमय हे त्रिपुरारी।।


रचना रचती जाय,भक्ति से शिव को पाओ।


पाप करे जो प्राण,उसे दंडित कर आओ।।


 


शंकर भोले नाथ का, लुभा रहा है वेश।


मुण्डमाल हैं धारते, गंग धरें हैं केश।।


 गंग धरें हैं केश, भाल में चंद्र सुहाता।


व्याघ्र चर्म को डाल,कंठ में गरल विधाता।।


रचना रचती जाय,लोक के हैं अभयंकर।


भस्म लपेटे नाथ, नमन हे भोले शंकर।।


 


त्रिपुरारी के ध्यान से, कटे कर्म का फाग।


महाकाल आराधना, तज जायेगा राग।।


तज जायेगा राग, शम्भु लोकों के स्वामी।


काल शोभता अंग , करूँ वंदना प्रनामी ।।


रचना रचती जाय, रूद्र हैं त्रिनेत्रधारी।


निराकार साकार, सभी जानें त्रिपुरारी।।


 


डम डम डम डमरू बजे, डमरू धारी नृत्य।


बम भोले तांडव करें, प्रलेयन्कारी कृत्य।।


 प्रलेयन्कारी कृत्य, देह में त्रिशूल सजता।


शाश्वत है यह अस्त्र ,उमापति के रंग रजता।।


रचना रचती जाय,महेश्वर करते बम बम ।


आशुतोष का क्रोध,सृष्टि में होती डम डम।।


 


स्वरचित


रचना उनियाल


२-


फुहारें(नवगीत)


               


मेघावली कर जाय झंकारें,


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।



झिर-झिर लड़ियाँ क्षुधा बुझाती,


वसुधा पेंगें भरती जाती,


हरीतिमा नयनों को भाये,


मुदित प्रकृति उल्लासित गाती।


 


अंबुविहार धरती को सँवारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।


 



सुधियों में पावस की रजनी,


नेह सिक्त तब साजन-सजनी,


वृष्टि बहुल फुहार ने छेड़ा,


मनोहारी प्रणय धुन बजनी।


 


प्रेम निहार के खिलती बहारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।



यदुनंदन हैं राजदुलारे,


उतरे अचला घन के तारे,


मुरलीधर की मुरली बोले,


रवितनया तट रास रचा रे।


 


पड़ती नव रंगों की बौछारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।


 


३-


 


समर्पण(राष्ट्र के प्रति)


वीर छंद आधारित गीत (१६,१५ मात्राएँ अंत २१)


 


भारत भू के भूषण हो तुम,उन्नति का अतुलित अंबार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


अधिकारों की है लगी हुई,


हर कोने में जैसे होड़।


मुख से बोले वाणी ऐसे,


बोलों से ही देंगें तोड़।


चंचल दूषित अंतस को तज,अंतह अवलोकन शृंगार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


वसुधा के सीमा के प्रहरी,


चपल अटल चौकस दिन-रात।


न्यौछावर करते प्राणों को,


बलिदानी सैनिक की बात।।


सीमाओं की करें सुरक्षा,त्रिदल शस्त्र की सुन टंकार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


झेलम कावेरी अरु सतलज,


ब्रह्म पुत्र करता है नाद।


भारत माता की संततियों,


कहो हिंद जय ज़िंदाबाद।


तीन रंग से जीवन पाओ , नेह बंध है विचरण सार ।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


अनुबंधित हो गये धरा से,


पाया जब धरणी का द्वार।


उऋण तभी तुम हो पाओगे,


अर्पण करना सत उद्गार।


वचन कर्म से माँ के आँचल,पर करना पुष्पों बौछार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


स्वरचित


रचना उनियाल


 


४-


पर्यावरण दिवस


जनहरण घनाक्षरी


 


समय गुनन तन,


 घट मत वन घन,


    शपथ धरत मन,


       प्रकृति मुदित हो।


 


जन-जन उर तल,


    प्रखर ललक बल,


       अनिल अचल चल,


         तनु मुखरित हो।


 


सुत घर सुनकर,


    तरु क्षिति बुनकर,


       घटत मलिन शर,


          द्रुम अगणित हो।


 


नभचर नभ वर,


    सरि सर पय भर,


       मनुज हृदय धर,


          दिवस हरित हो।


 


स्वरचित


रचना उनियाल


५-


व्यायाम


 


गोपी छंद(मात्रिक छंद,चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत, प्रति चरण १५ मात्राएँ ,आदि में त्रिकल,अंत गुरु /वाचिक,चरणातक दो गुरु)


 


करे व्यायाम सदा काया।


रोग की पड़े नहीं छाया।।


 


प्रात उठ दौड़ लगा प्राणी।


बोल फिर मधुरिम सी वाणी।


उदय जब सूर्य देव आयें।


नमन से तन भी सुख पायें।


धमनियों में शोणित भागे।


लुप्त हों चिंता के धागे।


शांति का भाव मनुज पाया।


करे व्यायाम सदा काया।


 


जीत जाओगे हर बाजी।


बनोगे तन के तुम काजी।


बदन शतरंज जीत राजा।


खुले उन्नति का दरवाजा।


कर्म फल तन मन का योगी।


बना तुम नियम बनो भोगी।


बरस फिर लक्ष्मी की माया।


करे व्यायाम सदा काया।


 


हृदय में गर्व भाव आता।


योग का भारत है दाता।


जीव यदि जीवन को जीना।


काय में कसरत को सीना।


अंश के अंग खिले लाली।


ध्यान तुम रखना बनमाली। 


खिले उपवन में हर ज़ाया।


रोग की पड़े नहीं छाया।।


 


स्वरचित



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