डॉ बीके शर्मा 

कर चुका हूं मंथन तेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा 


तू ही अटल तू ही सत्य है 


स्वीकार मुझे है बंधन तेरा


आ करूं अभिनंदन तेरा 


 


तू ही चिर है तू ही स्थिर 


सब नष्टबान और अस्थिर 


है जीवन की यही अभिलाषा 


करता रहूं मैं बंदन तेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा 


 


वह रस कहां और मिलन में 


जो रस तेरे है आलिंगन में 


क्यों ना इसका पान करूं फिर 


तन भी तेरा मन भी तेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा 


 


तू सत्यम और सुंदरम


शिवोअहम् और बंदनम्


है निर्माण शांति प्रदम्


मालिक है रघुनंदन तेरा


आ करूं अभिनंदन तेरा


 


तुम मृत्यु हरी मुख की बानी


अखिल विश्व श्रुतियों की रानी 


चिर निद्रा हो योगेश्वर की


स्वीकार करो अभिवादन मेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा


 


 


 डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


संजय जैन

फूलों की सुगंध से, 


सुगन्धित हो जीवन तुम्हारा।


तारों की तरह चमके, 


जीवन तुम्हारा।


उम्र हो सूरज जैसी, 


जिसे याद रखे दुनियाँ सारा।


आप महफ़िल सजाएं ऐसी, 


की हम सब आये दुवारा।।


 


आपके जीवन में हजारो बार,  


मौके आये इस तरह के।


की लोग कहते कहते न थके, 


की मुबारक हो मुबारक हो।


जिंदगी जीने का 


ये तरीका तुम्हारा।


जिसमें खुशी होती है,


गम नहीं।


तभी तो जीते हो तुम, 


जिन्दा दिली से यहां पर।


और सभी के दिलो में,


प्रेमरस बरसते हो।।


 


अपनी दुआओं में,


आपने याद किया हमें।


तहे दिल से करते है,


हम अपाक शुक्रिया।


जिन्दगी बदत्तर या बेहतर रहे,


और चाहे जैसी भी रहे।


बस आपका साथ हमें,


जिंदगी भर मिलता रहे।


तभी तो आपकी दुआओ में हम शामिल हो पाएंगे।


और दुनियाँ को जिंदगी,


जीने का अंदाज छोड़ जाएंगे।।


 


 


संजय जैन (मुंबई )


सीमा शुक्ला

अधरों पर उठता प्रणय गान,


आशायित हो उठता विहान।


जब खुले पृष्ठ उन यादों के,


जब दिन हो सावन भादों के।


 


बहती मन भावों की सरिता।


तब तब मन लिखता है कविता।।


 


मन में नित भाव अमंद उठे


जब प्रेम हृदय बन छंद उठे।


हिय उठे कल्पना का सागर


अरमानों की छलके गागर।


 


जब स्वप्न पले हिय में अमिता


तब तब मन लिखता है कविता।


 


उर में अनुपम अनुराग उठे,


असहा नित हृदय विराग उठे,


जब पल पल पीर उभरती है,


चिर व्यथा नयन से बहती है।


 


जब जले चांद ज्यों हो सविता।


तब तब मन लिखता है कविता ।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


एस के कपूर श्री हंस

बाल कविता


 


बच्चे तुम ही हो भविष्य के


भारत भाग्य विधाता।


तुम से ही देश का कल


सुनहरा है हो पाता।।


आज का तेरा बचपन ही


कल की दुनिया होगी।


यही बात तो तुम्हें मैं हर 


रोज़ हूँ बतलाता।।


 


आज के तेरे खेल खिलौने


कल के यंत्र होंगें।


तेरी विद्या से ही सिद्ध


कल के मंत्र होंगें।।


तेरे कंधों पर ही भार होगा


सामाजिक तंत्र का।


तुझसे ही मजबूत राष्ट्र के


स्तम्भ गणतंत्र होंगें।।


 


तुझको भारत नव निर्माण


का बीड़ा उठाना है।


देश की रक्षा का भी तुझको


बिगुल बजाना है।।


तेरी बुनियाद पर खड़ी बुलंद


भारत की इमारत।


तुझको ही ऐसा अखंड विश्व


गुरु भारत बनाना है।।


 


तेरे नन्हें हाथ कल देश 


की नींव होंगें।


पूरे करने सपने राष्ट्र के


भी असीम होंगें।।


तुम ही बनोगे कल के बापू


सुभाष भगत सिंह।


तेरे कल में ही देश के


राम रहीम होंगें।।


 


तुम हो देश के कर्ण धार


कल की विरासत हो।


तुम ही तो कल की संसद


देश की सियासत हो।।


तुम ही हो रूपरेखा कल के


भारत इतिहास की।


तुम ही तो कल के देश


की इबादत हो।।


 


एस के कपूर श्री हंस


      बरेली


सुनील कुमार गुप्ता

       पहचान


अपनो को अपना कहने से,


क्यों- होता उनका अपमान?


इतने बड़े हो गये अपने,


कैसे- लेते उनका नाम?


संग-संग खेले बचपन में,


अब नही कोई पहचान।


रक्त संबंधों में भी साथी,


क्यों-हो गया ऐसा काम?


सींच नेह से जीवन-पथ को,


जिसने -दिया नव- आयाम?


ऐसे संबंधों को जग में,


मन करे पल-पल प्रणाम।।


 


-सुनील कुमार गुप्ता


सुषमा मोहन पांडेय

तुम्हीं मेरी आस्था हो, तुम्हीं मेरा विश्वास।


तेरी ही भक्ति में है मेरा विश्वास।


सुख हो या दुख मुझे कुछ भी न पता,


रहती हमेशा सिर्फ तुमसे ही एक आस।


 


 जबसे होश संभाला, तुझको ही अपना पाया,


चारो ओर मुझे कोई और, नजर न आया।


बंद नयन कर जो तुझे देखा है मैंने,


हरदम तुझको ही अपने करीब पाया।


 


मेरे सब कुछ तो तुम्हीं हो,


मेरा हँसना रोना भी तुम्हीं हो,


जो भी कुछ आज तक है मैंने पाया,


मेरे हर कर्म के साक्षी भी तुम्हीं हो।


 


पूजा, तपस्या, धर्म-अधर्म, कुछ


मुझे मालूम नहीं


पाप-पुण्य,ज्ञान-अज्ञान ये मैं जानूँ नहीं।


मेरी रोम रोम में बसे हुए हो, इतना मैं जानती हूँ


दृढ़ अहसास है मेरी आस्था का, और कुछ जानूँ नहीं।


 


 


सुषमा मोहन पांडेय


सीतापुर उत्तर प्रदेश


 


सुषमा मोहन पांडेय


 सीतापुर, उत्तरप्रदेश। 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अनुनय स्वीकार कीजे.... 


मुझे श्याम से मिला दे


जग जननी राधे रानी


मुझे कृपा पात्र बना दे


माते बृज की ठकुरानी


 


यहां मोह माया ने घेरा


दिखे चारों ओर अंधेरा


माँ तेरी भक्ति मिले तो


हो जायेगा शुभ्र सवेरा


 


तेरी अनुकम्पा पाऊँ तो


कान्हा भी अपना लेंगे


मझधार पड़ी जो नौका


वो निश्चय ही पार करेंगे


 


माँ सत्य तो बालक तेरा


करुणामयी शरण लीजे


पाऊँ मैं स्नेह की छाया


अनुनय स्वीकार कीजे।


 


श्री युगलरूपाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


विनय साग़र जायसवाल

मुफ़लिसी से मेरी यूँ चालाकियाँ चलता रहा 


ज़हनो-दिल में वो मेरे ख़ुद्दारियाँ भरता रहा


 


मैं करम के वास्ते करता था जिससे मिन्नतें


वो मेरी तक़दीर में दुश्वारियाँ लिखता रहा


 


मोतियों के शहर में था तो मेरा भी कारवाँ


फिर भला क्यों रेत से मैं सीपियाँ चुनता रहा


 


कहने को मुश्किल नहीं था दोस्तो मेरा सफ़र 


मेरा माज़ी राह में चिंगारियाँ रखता रहा


 


दिल की हर दहलीज़ पर थे नफ़रतों के ज़ाविये


मैं तो हर इक रहगुज़र के दर्मियाँ डरता रहा


 


ख़त के हर अल्फाज़ में थीं इस कदर चिंगारियाँ


मेरे दिल के साथ मेरा आशियाँ जलता रहा


 


कोई आकर छेड़़ता रहता था रोज़ाना मुझे


मैं फ़कत दामन की अपने धज्जियाँ सिलता रहा


 


जब भी बाँहों में समेटे चूमना चाहा उसे


मेरे होंठो पर हमेशा उंगलियाँ धरता रहा


 


जीत की ख़्वाहिश थी साग़र उसके दिल में इस कदर


अपनी हारों पर मेरी क़ुर्बानियाँ करता रहा


 


विनय साग़र जायसवाल


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


अब ये रिश्ते बेमानी से लगते


जो राजनीति के शूलों पर है


ऐसे सम्बंधों का क्या करना


जो बर्बादी के तीरों पर हैं।


 


लांछित हैं सब ऐसे रिश्ते


जो विज्ञापन के अधिकारों पर हैं


साक्षी मान जिससे कुछ कहते तुम


ऐसे सम्बंधों में प्यार कहां पर है।


 


खबर सनसनीदार बनाने पर


देखो कितना सम्मान कहां है


इस पर तो अब ध्यान हमें है


सीधी सच्चाई अधिकार कहां है।


 


अब रिश्ते के मूल्यों को देखो


काट रहे हो क्यों रोकर


कर्मों के विश्वासों से जकड़ो


जन्म सम्बंधों को मारो ठोकर।


 


मिला एक निष्ठ श्रद्धा का


कितना सुन्दर सा फल है


रिश्ते की सच्चाई को देखो


अंगारों से जला सिर्फ बचा जल है।


 


चक्र समय का जीवन में चलता


दु:ख-सुख सुख-दु:ख का भान नहीं है


बैठा घात लगाये तेरे कर्मों पर अब


निष्ठुर समय तुझको ये अनुमान नहीं है।


 


छल-प्रपंच के चालों से जो


किस्मत के ताले खोल रहे हैं


देखो मर्यादा को तार-तार कर


जन्म-जन्म के पाप मोल रहे हैं।


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


सुबोध कुमार

नींव से निर्माण तक


जन्म से निर्वाण तक


सुख-दुख साथ है चलते


चुनौतियों के संज्ञान तक


 


नीड बदलते रहते हैं


प्रकृति है परिवर्तनशील


लेती है सदा परीक्षाएं


परिंदों की उड़ान तक


 


कोहरा हो या पाला पड़े


परिंदा अपनी उड़ान भरे


पहली किरण है भोर की


उद्यम के परवान तक


 


जिसने इसको साध लिया


चुनौतियों को आघात दिया


प्रकृति से करी कदमताल


जीवन की पहचान तक


 


           सुबोध कुमार


रत्ना वर्मा धनबाद-

नमन मंच काव्य रंगोली 


     शिलान्यास पर मन के भाव


 


मन से मन का दीप जला लो,


प्रेम प्यार खुशी बरसा लो ।


बरसों बाद आज लौटे राम ,


फूलों से सजा अयोध्या धाम।


 


 


कली कली मुस्काई है ,


गीत खुशी की गाई है ।


प्रीत प्रेम का गागर ...


सरयू में छलक आई है ।


 


राम नाम का आज एक ,


नया इतिहास बना है ।


असुरी शक्तियों का विनाश कर,


वनवासी को अयोध्या धाम मिला है। 


 


निश्छल भाव शबरी के ,


मन को भाते हैं ....।


केवटी की वाणी में हम,


कथा सुनाते हैं ....।


 


पुरुषोत्तम श्री राम के


गुण हम गातें हैं ।


वही तो जीवन नैया 


पार लगातें हैं। ।


 


स्वरचित मौलिक रचना 


रत्ना वर्मा 


धनबाद- झारखंड


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जीवन चमन के फूल..


 


मेरे जीवन चमन के फूल


आ तुझे हृदय से लगा लूँ


अरे न पहुँचे क्षति तुझको


खुद सुरभि से महका लूँ


 


अनछुआ मकरन्द वो तेरा


करूँ आस्वादन जी भरके


क्षितविक्षित नहीं हो कली


करूँ आलिंगन पलकों के


 


भरे यौवन कलश जो तेरे


लगें सोमरस के से प्याले


पीता हूँ नयनों की राह से


बनाये रखते वो मतवाले


 


भले क्लिष्ट संरचना प्रिय


लगतीं तुम सौम्यता मूर्ति


मुझ स्नेह आकिंचन को


आकर्षित करती विभूति


 


भरी अंग अंग में सुवास


करे सुवासित हिय आंगन


एक तमन्ना है मेरी सजनी


बना लो सत्य को साजन।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


प्रखर दीक्षित

भजन


 


*मोहना*


 


कंगना ले आयी बाजना


मैं दौडी चली आयी मोहना


 


मैं वृन्दावन की हौं गुजरिया


नेक बंसुरी सुनाय रे! सांवरिया।


तू रसराज छबोलो बांको,


मैं दौडी चली आयी......


 


सावन घन छाए नैनन मँह 


मेरी नींद गयी जाने चैन कँह


कजरारे कपोल उदास पैंजनी,


लागै सखि सुनो आंगना।।


मैं दौडी चली आयी.........


 


पनघट जमुना तट सुन परे


रसराज बिना रस कौन भरे


छछिया भर छाछ जो मांगै सखी,


अब सूने खरिक घट री दोहना।।


मैं दौडी चली आयी ..............


 


सिर मोर मुकट गल पीताम्बर


तुम पै वारी मैं मुरलीधर


रे! तू छलिया चितवन टेढी,


मतवारी रास रचाऊँ सोहना।।


मैं दौडी चली आयी ..............


 


*प्रखर दीक्षित*


*फर्रूखाबाद*


निशा"अतुल्य"

सावन फ़ुहार


7.8.2020


 


मनहरण घनाक्षरी 


 


बरखा बहार आई,


घनघोर घटा छाई ।


सावन फ़ुहार पड़े,


मन तरसाइये ।


 


पिया जी जो साथ रहें,


सावन न बेरी लगे।


झूला सँग साजन के,


खूब ही झुलाइये ।


 


सखियों के रंग रँगी,


मेहंदी हाथों में सजी।


कजरे की धार फिर,


तेज कर जाइए ।


 


याद जब साजन की,


आये तुम्हें घड़ी घड़ी।


मिलने की चाह फिर,


मन में जगाइए ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


सुनीता असीम

मुझे तेरी नज़र ने आज .....दीवाना बना डाला।


तेरी बातों ने मेरे दिल को अफ्साना बना डाला।


***


बड़ी संकरी गली हैं धर्म की इन रास्तों में भी।


हरिक घर में जहां ने एक बुतखाना बना डाला।


***


ग़मों से जो करो यारी रहो मदहोश फिर बनकर।


समंदर ने ग़मों के एक मयखाना बना डाला।


***


न आए काम सबके जो अकेला ही रहेगा वो।


खुदी को आज उसने सिर्फ बेगाना बना डाला।


***


करेगा दूर गुलशन से सभी के खार चुनकर जो।


उसे दुख दूर करने का ही पैमाना बना डाला।


****


सुनीता असीम


७/८/२०२०


##############


संजय जैन (मुम्बई

*तुम लिखवाते हो*


विधा : गीत


 


मेरे गीतों की 


सुनकर आवाज़ तुम।


दौड़ी चली आती 


हो मेरे पास।


और मेरे अल्फाजो को


अपना स्वर देकर।


गीत में चार चांद


तुम लगा देती हो।।


 


लिखने वाले से ज्यादा 


गाने वाले का रोल है।


चार चांद तब लग


जाते है गीतों में।


जब मेरे शब्दों को


दिलसे तुम गाती हो।


और गीत को अमर


तुम बना देती हो।।


 


मैं वो ही लिखता हूँ


जो दिलसे निकलता है।


एक एक शब्द मेरा 


खुद हकीकत कहता है।


तभी तो पढ़ने वाले भी


खुद गुनगुनाने लगते है।


और रचना को सार्थक


वो बना देते है।।


 


जय जिनेन्द्रा देव की


संजय जैन (मुम्बई)


07/08/2020


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

एक दूजे पे मिट जाना


एक दूजे की खातिर खुद


न्यवछावर हो जाना।


 


त्याग बलिदानों का रिश्ता


अनोखा मित्रता का भाव तराना।।


 


अलग अलग मन मस्तिष्क


शरीर एक दूजे की हस्ती का


विलय सयुक्त हस्ती उदय


दोस्ती याराना।।


 


मुश्किल है मिलना अजीम 


अजीज शख्स शख्सियत


दोस्त दोस्ती का मिल पाना।।


 


मत एक मतभेद नहीं


ह्रदय दो पर बंटा नहीं


शुख दुःख का भागिदार


आरजू ईमान इंसान 


प्यार यार याराना।।


 


एक ऐसा रिश्ता परे स्वार्थ


निश्चल जाती धर्म


देश काल परिस्तितिे बंधन 


मुक्त मित्रता ने ना जाने कितने


इतिहास रच डाला।।


 


सखा स्वरुप गोपियों को


कृष्णा मिल जाता नारी नश्वर


सृष्टि दृष्टि में मर्यादा 


मूल परम शक्ति सत्ता अर्ध 


नारीश्वर कहलाता।।


 


भेद नहीं विभेद नहीं द्वेष


दम्भ नहीं मित्रता मर्यादाओं


मर्म धर्म कर्म दायित्व बोध


एक दूजे का सुख दुःख 


एक दूजे का हो जाता।।


 


कौन नहीं जानता है युग में


कृष्ण सुदामा मित्र धर्म में


जगत कृपालु का निर्वाह


नहीं समझ सका सुदामा मित्र


धर्म का निर्वाह।।


 


 


मधुसूदन मित्र के मिलने से ही


श्रीदामा को जग ने जाना।


 


अपमान तिरस्कार के घावों


पीड़ा में घायल कर्ण को दुर्योधन


मित्र का मरहम महारथी


जीवन संकल्प साध्य साधना आराधना जीवन मूल्य राधेय


कर्ण मित्र धर्म के ध्वज धन्य को युग ने जाना।


 


कौन कहता है रिश्तों का


मोल नहीं रिश्तों की दुनियां में


रिश्ते अनमोल ।


मित्रता की मस्ती दोस्ती की हस्ती


हर हद को तोड़ती रिश्तों का


मायने मतलब का नया आयाम


अंजाम है गड़ती।।


 


दुनिया में अब रिश्तों के मतलब


बदल गए सखी सखा के भाव


भक्ति के रिश्ते बॉय फ्रेंड गर्ल


फ्रेंड में हो गए।।


 


विकृत हो चुकी मानसिकता महिला मित्र के मतलब स्वार्थ अर्थ का चित्त ।।                       


 


द्रोपदी की सुन पुकार आया


मधुसूदन दौड़े भाग नारी के


अस्मत अस्तित्व का सखा


गिरवर गिरधारी बन गया चट्टान।।


 


अब मित्र का रिश्ता भी दूषित


द्वेष का आधार प्रति दिन मिलते


बिछड़ते मित्रों को मित्र रहता नहीं


याद।।


 


मित्रता की देकर दुहाई


मित्र मित्र को करता शर्मसार


कृष्ण सुदामा कर्ण दुर्योधन मित्रता के रिश्तों के मिशाल मशाल।।


 


घुटती है स्वर्ग में आत्मा जिसने रखी मित्रता बेमिशाल देख कलयुग में मित्रता की पवित्रता को कलुषित कलंकित करता


झूठे मित्रो का समाज।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


नूतन लाल साहू

चलो शरण प्रभु श्री राम के


काम क्रोध अउ तिसना हिंसा


पर्दा आंख पड़े हे


जुरमिल के ये चारो दानो


बुद्धि नाश करे हे


बार के ज्ञान के दिया ला


घर घर जोत जलाबो


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


बेइमान अउ भ्रष्टाचारी मन


छल पाखंड करत हे


दुराचार अउ अत्याचार के


बोलबाला बढ़त हे


ईमानदारी के तीर चलाके


ये दुश्मन ल मार भगाबो


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


पहिली चरण वंदना गुरुवर के


फिर माता के चरण मनावव


श्रद्धा सजल,प्रभु राम के शरण


दुःख पीरा गोहरावव


स्थूल रूप हे,प्रभु मुरत के


देख ले ध्यान लगा के


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


प्रभु राम ही हमन के भाग विधाता


प्रभु राम ही हमन के जीवनदाता


प्रभु राम ही हावय परमेश्वर


वेद शास्त्र पुराण ह


जेकर महिमा गाईन


प्रभु राम के किरपा पा के


ब्रम्हा ह सरिस्टी रचाये हे


आवव भाई आवव बहिनी


चलो शरण प्रभु श्री राम के


नूतन लाल साहू


एस के कपूर* *"श्री हंस"।।।।।।। बरेली*

*बस महोब्बत ही महोब्बत*


*का पैगाम हो दुनिया में।।।*


 


हर इक इंसानी जान की


हिफाज़त हो दुनिया में।


बस महोब्बत ही की


तिजारत हो दुनिया में।।


नफरत से हो पर्दादारी 


हर दिल के अन्दर।


अमनो चैन की न कोई


खिलाफत हो दुनिया में।।


 


इंसानियत से तो न कभी


बगावत हो दुनिया में।


हर इंसां के बीच न कोई


भी अदावत हो दुनिया में।।


हर निगाह को महोब्बत


की ही नज़र मिल जाये।


बस यही इक ही


इबादत हो दुनिया में।।


 


खुदा नज़र आये इंसा में


यूँ शराफत हो दुनिया में।


न बरसे आग आंखों से


यूँ तरावट हो दुनिया में।।


महोब्बत से न हो कोई


कभी भी तन्हा यहाँ।


हर लफ्ज़ हो इक पैगाम


यूँ लिखावट हो दुनिया में।।


 


हाथों में हाथ दोस्ती का


यूँ दिखावट हो दुनिया में।


जज्बातों से न खेले कोई


यूँ बनावट हो दुनिया में।।


हर गुनाह से हो तौबा


अपने इस जमाने में।


सब मैं से बन जायें हम


यूँ सजावट हो दुनिया में।।


 


*रचयिता।।।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।।।।।।। बरेली*


मोब 9897071046


               8218685464


राजेंद्र रायपुरी

🧍🏽‍♀️🧍🏽‍♀️**** बेटी **** 🧍🏽‍♀️🧍🏽‍♀️


 


बेटी आॅ॑गन की महक,


                      बेटी से घर- बार।


सृष्टि सृजन वो ही करे, 


                    कोख नहीं दो मार।


कोख नहीं दो मार,


                  वही तो है फुलवारी।


महकाए दो द्वार,


                 जानती दुनिया सारी।


उसको रखो सम्हाल, 


                मानकर धन की पेटी।


देखन दो संसार, 


              न मारो कोखन बेटी।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरी जीवन डोर है कृष्णा हाथों में तेरे


तेरी ही कृपा से है मेरे जीवन में सवेरे


दुःख सुख लिख दिये मेरी किश्मत में


हैं पूर्व जन्मों के संस्कार व प्रारब्ध मेरे


 


नहीं कोई गिला नहीं है कोई शिकवा


हस करके जीवन जीऊँगा मेरे स्वामी


चाहूंगा तेरे चरणकमलों की मैं भक्ति


अनुग्रह बनाये रखना तुम अंतर्यामी।


 


श्री गोविन्दाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


    *"कोई करना न व्यापार"*


"अनहोनी न हो कोई फिर,


साथी ऐसा हो परिवेश।


सद्कर्म करते रहे जग में,


प्रभु का ऐसा हो आदेश।।


छाए न विकार मन में फिर,


पल-पल ऐसा करो प्रयास।


प्रभु भक्ति छाए मन में साथी,


यहाँ सत्य का हो आभास।।


सत्य ही जीवन जग में साथी,


बन जाये जीवन आधार।


संबंधों का जीवन में साथी,


कोई करना न व्यापार।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 07-08-2020


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त ' विवश '

स्वाधीनता आन्दोलन में ' अगस्त क्रांति ' .....एक कविता 


 


विषय:- भारत छोड़ो आन्दोलन 


 


 


भारत की धरती वीरों की


अजर अमर रणधीरों की, 


किंचित कायर नहीं यहाँ 


शौर्य-पराक्रमी गम्भीरों की।


 


'मरो नहीं मारो' का नारा 


शास्त्री जी ने फरमाया,


आजादी के आन्दोलन में 


दावानल को भड़काया। 


 


गांधी जी ने तोे दिया हमें 


'भारत छोड़ो' नारा प्यारा, 


'करो या मरो' को देकर 


भारत माँ को दिया सहारा। 


 


आठ अगस्त दिवस अमर 


है भारत के इतिहास में,


असहयोग आंदोलन छेंड़ा


अंग्रेजों के क्रूर प्रवास में।


 


ब्रिटिश हुकूमत भारत में 


जब बादल बनकर छाया,


उन्नीस सौ बयालीस में जो  


'अगस्त क्रांति' कहलाया। 


 


मेदिनीपुर सतारा में तब 


प्रतिसरकार बना डाला,


भारत के वीर जवानों ने 


अपना उद्देश्य सुना डाला। 


 


द्वितीय विश्वयुद्ध में तब 


अंग्रेजों के खट्टे दाँत हुए, 


उनके साम्राज्यवाद पर  


अाघात पर प्रतिघात हुए। 


 


युद्ध की लपटें पश्मिम में 


पूरब में था क्रांति का घोष, 


एक तरफ बापू की आशा 


एक तरफ सुभाष का जोश। 


 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त ' विवश '


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


संजय जैन (मुम्बई)

*अपना राग आलापों..*


विधा : कविता


 


लिखे वो लेखक 


पढ़े वो पाठक।


जो पढ़े मंच से


वो होता है कवि।


जो सुनता वो 


श्रोता होता है।


यही व्यवस्था है


हमारे भारत की।


लिखने वाला कुछ भी


लिख देता है।


पढ़ने वाला कुछ भी 


पढ़ लेता है।


और कुछ का कुछ


अर्थ लगा लेता है।


पर सवाल जवाब का 


मौका किसे मिलता है?


यही हालात आजकल


हमारे महान देश का है।


न कोई सुनता है


न कोई कुछ कहता है।


अपनी अपनी ढपली 


हर कोई बजता रहता है।


और अपनी धुन में


वो मस्त रहता है।


इसलिए अब हिंदुस्तान में 


संवाद खत्म हो गया है।


और भारत को विश्वस्तर पर पीछे कर दिया है।


जिसका सबसे ज्यादा असर,


हिंदी साहित्य पर पड़ा है।


और भारत की संस्कृति


व इतिहास लुप्त हो रहा है।


मंदिर मस्जिद गुरूद्वरा तक भी 


अब धर्म नही बचा है।


और इंसानियत का मानो


जनाजा निकल चुका है।।


 


जय जिनेन्द्रा देव की


संजय जैन (मुम्बई)


08/08/2020


निशा"अतुल्य

क्षणिकाएं 


8.8.2020


 


मुझसे ही 


जन्में रिश्ते


सवाल मुझसे 


ही करते 🤔


 


आज ढूंढ रही


बेसब उसे,


जो कोई नही मेरा,


नही सम्बंध 


देह का ,


ख़्वाहिश मेरी,


मीरा बनने की ।


 


निशा"अतुल्य"


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