सीमा दूबे सांझ
शहर जमशेदपुर झारखंड
गृहणी एवम् छात्रा
मेरी पुस्तक - फरिश्ते
अग्निशिखा मंच सम्मान पत्र
काव्य गोष्ठी सम्मान पत्र
आकाशवाणी रेडियो पर सम्मान पत्र
कविता -1
हौसलों का समय आ गया
एकता के गीत को है दोहराना
चल मिलकर सब भाईचारे को एक है बनाना
रोक सको तो रोक लो हमें मजहबी झंझट में ना है आना
इस युद्ध को हमें साथ मिलकर है हराना
आज साथ मिलकर सब बैठे हैं अपने अपने घरों में
कोई धर्म किसी के खिलाफ नहीं
सबके कर्म एक ही हैं
हम कल भी साथ थे और आज भी हैं
हम कल भी साथ थे और आज भी हैं
हौसलों का समय आ गया
एकता के गीत को है दोहराना
चल सब मिलकर चल मिलकर भाईचारे को एक है बनाना
कब तक जीत पाएगा ये वायरस ये महामारी
हम भारतवासी हैं सब पर भारी
डटकर खड़े हैं जंगे मैदान में डटकर खड़े हैं जंगे मैदान में
ऐसी कितनी मुश्किलों को हमने हर बार मात दे डाली
गर्व है हमें अपनी मातृभूमि पर
गर्व से कहते हैं हम हैं हिंदुस्तानी
हौसलों का समय आ गया
एकता के गीत को है दोहराना
चल मिलकर सब भाईचारे को एक है बनाना
कोरोना को है हराना शपथ है सब ने खाई
वह कोई भी धर्म हो हिंदू ,मुस्लिम ,सिख, ईसाई
फिर सब देशों ने भारत के हौसलों के आगे शीश झुकाई
आज फिर एकता है रंग लाई
हौसलों का समय आ गया
एकता के गीत को है दोहराना चल मिलकर सब
भाईचारे को एक है बनाना
Seema Dubey (sanjh)
कविता- 2
लेखक की कलम
लिख रहा दिल की बात आज जाने क्या लिखेगा
अरमानों के साथ या दुख भरे साज लिखेगा
खुशियों के दामन थामे या दर्द की सौगात लिखेगा
दर्द भरे शब्दों में वह अपनी बात लिखेगा
प्यार भरी यादों में अपनी हर वो रात की याद लिखेगा
कुछ पाकर झूम उठा खिलखिलाते हुए पुरानी डायरी मिले उसे पढ़कर पड़ रहा शरमाते हुए
कहीं आंसुओं के सैलाब समेटेगा
उठ सोच रहा जाने किस को कागज पर उकेरेगा
कलम डूबा कर स्याही में बढ़ रहा कागज की ओर
जाने किस को आज फिर जीवित करेगा
रचना रचते रचते समय बीत गया
मैं तो पात्र हूं नाटक का आज मेरा नाटक का अंत बहेगा सांझ की ठंडी हवा में उस प्रेमी का साथ लिखेगा
जो पल गुजारे उसके साथ उन पलों को शब्दों में पिरो कर उस शब्दों की माला गूथे गा
प्यार की खुशबू को कविता के रूप में बिखेरेगा
सीमा दुबे सांझ
कविता- 3
साजन न आए
ओ मेरे साजन इस बरस भी तुम घर ना आए
तेरी सोच में निंदिया ना आए, बैरी क्यू भए तुम?
दूर ही क्यों गए तुम ,वादा किया था जो वह तोड़ दिए?
हुए साजन तुम तो पराए,
रतिया में निंदिया न आए ,न दिल में चैन आए,
ओ बैरी साजन, इस बरस भी तुम घर ना आए।।
पपीहा कोई क्यों चीख गए ,
हो किस हाल में तुम मन घबराए ,
दर्द मन में उठे तन सुख सुख जाए ,
विरह मन को ठेस पहुंचाए ,क्या करूं मैं धीर कैसे धरु मै ,
क्यों विसारे साजन , इस बरस भी तुम घर ना आए।।
मेरे माथे पर बिंदिया न भाए,दर्पण देखूं तो वह मुझे चिड़ाए
,चूड़ियो की खनखन मुझे सताए, हर आहट में मनवा चौक जाए,
बैठे हैं घर के दरवाजे पर पलके बिछाए ,
क्यों भूले साजन ,इस बरस भी तुम घर ना आए ।।
काश यह मन संभल जाए ,अबकी साजन घर आ जाए,
छुपा लो निगाहों में, कस लूं अपनी बाहों में,
फिर न जाने दूं ,कसम देकर उन्हें बांध लू आंचल में
काश मेरे साजन , इस बरस घर को लौट आए।।
सीमा दुबे सांझ
कविता- 4
स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी
कभी कभी न जाने
मन में विप्लव छा जाता है
दुविधा व्यतीत करती हैं
शोकाकुल मन हो जाता है
क्यों बढ़ती और लिखती रही
उत्पीड़न भ्रष्ट लोगों की निंदाओं की कहानी
काश लिखा होता
शाश्वत प्रेम काव्य तो मिली होती
किसी के अतुल्य प्रेम की निशानी
स्त्री अधीन है घर गृहस्ती
सजाने का सामान होती है
यदि यह मार्ग न चुन सके
इच्छाओं की भली न दे सके
तो अग्नि परीक्षा का आयाम होती
स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी
आज श्रृंगार खुद पर करती है
वह भी पति का मान के रहता है
खुद के लिए सजती है
वह भी पति के साथ चला जाता है
स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी
तुम भूल गई थी
तुम स्त्री हो तुम्हें परिभाषाएं
बदलने का अधिकार नहीं
तुम्हारा सोच तुम्हारा शोध
निरंतर सरपंची पौरोष पर वार नहीं था
स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी
शोध जो ऐसे सीता अनसूया
की कहानी पढ़ रहे थे
अपने पुरुषार्थ की
परिभाषाएं गढ़ रहे थे
स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी
मन में बहुत विचार उत्पन्न हुए
क्यों हर पल स्त्री उत्पीड़न का शिकार हुई
क्या उनकी अभिलाषा है
कुछ खास नहीं जो
पूरी हो सके क्या उनमें बात नहीं
स्त्री के अंतर्द्वंद के कहानी
सीमा दुबे सांझ
कविता- 5
वह बचपन याद आता है
वह स्कूल ना जाने का बहाना
और जाने पर घंटों आंसू बहाना
वह पेंसिल खो जाना
और दूसरों की रबड़ चुराना
आज याद आता है ......
वह जरा सी बात पर झगड़ा
और गलतियों पर बेलन पढ़ना
वह धूप में साइकिल चलाना
और घर आकर बीमार पड़ जाना
आज याद आता है .....
वह शक्तिमान के लिए भाई से लड़ना
और खींचतान में रिमोट का टूटना
वह कहानियों की किताबें लाना
स्कूल छोड़ कॉमिक्स में ही लग जाना
आज याद आता है ....
छुआछूत का ज्ञान नहीं
वह पैसे चुरा टॉफिया खाना
वह दोस्तों संग मेला जाना
और कुल्हड़ बर्फ को खाना
आज याद आता है.......