एस के कपूर श्री हंस

ये स्वतंत्रता दिवस


दूर हुई अमावस


शत्रु को करा विवश


माँ तुझको प्रणाम


 


आज़ादी का यह दिन


व्यर्थ है एकता बिन


स्वाभिमान का ये चिन्ह


 माँ तुझको सलाम


 


आज़ादी हमने पायी


संघर्षों की गाथा गाई


साहस शक्ति दिखाई


माँ तेरा ही सम्मान


 


दूर हुई ये गुलामी


आज़ादी पाई निशानी


बलिदान की कहानी


माँ यही अरमान


 


स्वाधीनता का संग्राम


आज़ादी दूसरा नाम


जन जन किया काम


पाया आत्म सम्मान


 


आज़ादी का आंदोलन


न्योछावर किया तन


तभी आया यह क्षण


आया आज़ादी नाम


 


निडर निर्भीक देश


हर भाषा और वेश


बांधे ये विजयी केश


*लाया यह अंजाम*


 


यह जय जय घोष


दमन किया वो रोष


जीत कर ही संतोष


सुनाया जीत गान


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


विनय साग़र जायसवाल

दिखाई दे रहे हैं फिर वही हालात पानी में


गयी फिर ज़िन्दगी की आज भी सौग़ात पानी में


हुस्ने मतला--


पता चल जायेगा होते हैं क्या असरात पानी में


ग़रीबों से कभी तो पूछिये हालात पानी में


 


उठीं ग़म की घटाएं फिर कहीं दिल के समुंदर से


लिखेंगी फिर कहीं आँखे कई नग़मात पानी में


 


सभी चेहरों पे घबराहट सभी की आँख रोती है 


कोई पूछे भी अब कैसे किसी की बात पानी में


 


वो दिल में आज भी महफ़ूज़ हैं ताज़ा गुलाबों से


गुज़ारे थे कभी जो पल तुम्हारे साथ पानी में


 


कभी आँखों में शोले थे कभी पहलू में अंगारे


लगाये आग रहते थे कभी दिन रात पानी में


 


कहीं बोतल खुलेगी औ'र कहीं छलकेंगे पैमाने


कोई रिन्दों के तो देखे ज़रा जज़्बात पानी में


 


निकालो हसरतें दिल की सजा लो दिल के काशाने


मुबारक हो तुम्हें *साग़र* मिलन की रात पानी में


 


विनय साग़र जायसवाल


सत्यप्रकाश पाण्डेय

घर घर आसुरी वृत्तियां जन्मी


तुम आ जाओ मनमोहन    


व्यथित होके रो रही मानवता


रक्षक बनके करो दोहन


   


कर्तव्य विमुख होकर मानव


प्रभु अनीति की राह चले


शुभकर्मों को देकर तिलांजलि


सदहृदयों को नित छले


 


कंश जरासंध शिशुपाल यहां


मानवमूल्यों का हनन करें


नित अबलाओं के चीर हरण


शिशुओं का वे दमन करें


 


वन वन घूम रहे साधु पाण्डव


कौरव कर रहे नंगा नाच


कपट पासे फेंक रहे हैं शकुनि


दुर्योधन के कटु नाराच


 


सन्त हृदयों पर रहम करो प्रभु


एक बार पुनः आ जाओ


छल कपट के काट के बंधन


स्व सत्ता का भान कराओ।


 


श्री युगलरूपाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सुनीता यादव


 


पद प्रधानाध्यपिका


 


विभाग बेसिक शिक्षा विभाग


 


निवास हरगांव,सीतापुर


 


साहित्यिक जीवन प्रारम्भ सितंबर2019


 


उपलब्धियाँ-


उत्कृष्ट शिक्षिका सम्मान सीतापुर, सम्मान पत्र अन्नपूर्णा सेवा संस्थान सीतापुर, काव्य शिरोमणि सम्मान हिंदी सभा सीतापुर,सम्मान पत्र काव्य कला निखार साहित्य मंच सीतापुर, कवच टीम सीतापुर में उत्कृष्ट कार्य हेतु प्राप्त सम्मान पत्र(आदरणीय श्री अखिलेश तिवारी जिलाधिकारी जनपद सीतापुर द्वारा),शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मान पत्र हस्ताक्षर सामाजिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा प्रदान किया गया।


 


 


इसके अतिरिक्त-


 


2013से अनवरत महिलाओं और बेटियों को प्रेरित करने के लिए महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम का आयोजन करना और एहसास पत्रिका का प्रकाशन।


मिशन शिक्षण संवाद मासिक पत्रिका में अभियान गीत और कविताओं का प्रकाशन।


एहसास पत्रिका में बेटियों और महिलाओं के लिए प्रेरक कविताओं का प्रकाशन,दिव्यांग भाई बहनों को प्रोत्साहित करना और उनकी मदद करना।


 


जीवन का उद्देश्य-


 


।। शिक्षा और साहित्य को उत्कृष्ट बनाना ।।


 


                    ।। सुनीता यादव।।


 


 


 


      योग लक्ष्य


                   कविता


 


 मन में यदि लक्ष्य योग का है,


 सबसे पहले युज को जानो।


 अंतर्मन में जो खंड- खंड, 


युज धातु जोड़ती है मानो।


           है योग प्रयोग पतंजलि का,


           है योग महर्षि अयंगर का ।


           होती है इससे बुद्धि शुद्धि,


           मन केंद्रित भाव बृहद मानो।


है योग ये सातों चक्रों का ,


ब्रह्मांड के पांचों तत्वों का।


मानव की निरोगी काया का,


 अद्भुत प्रयोग है यह जानो।


             प्रारंभ सूक्ष्म व्यायामो से ,


             वृक्षासन ताड़ासन जानो। 


             समयाभाव यदि हो जाए ,


            तो सूर्य नमस्कार को अपनाओ।


 है राज शरीर के सौष्ठव का ,


है राज प्रसन्न चित्त आत्मा का।


जीवन की सफलता का है राज,


यह बात सत्य है सब मानो।


 


                 सुनीता यादव


               प्रधानाध्यपिका


               हरगांव, सीतापुर


 


 


 


बदलते रिश्ते


 


 बदलते रिश्तो ने रुख किया तो,


 सारे रिश्ते बदल गए हैं।


 ना बाप की बेटा सुन रहा है,


 ना बेटे की बच्चे सुन रहे हैं।।


 


 घरों की सूरत कुछ ऐसे बदली,


 सारे रिश्ते दरक रहे हैं ।


 मां-बाप को छोड़ कर अकेले,


 बेटे बहू विदेश चले हैं।।


 


 शहर की चका चोंध देखने ,


कल जो गांव से शहर गए हैं।


देख मौत को सर पे अपने,


 फिर वो शहर से गांव चले हैं ।।


 


बदल गई हैँ सियासते सब,


 देश के नेता बदल रहे हैं।


 किये थे वादे जो संसद में, 


 आज उनसे से मुकर रहे हैं।।


 


              सुनीता यादव


             प्रधानाध्यपिका


          बेसिक शिक्षा विभाग


           हरगांव, सीतापुर


 


 


 


।।प्रथम अवधी रचना।।


                        लोकडॉउन


 


लॉकडाउन न हटैया ,मैं का करूं।


देश म। मची हैय्या दैय्या,मैं का करूँ।।


 


जब ते कोरोना दानव आवा,


देश म। छीछालेदर लावा।।


यू तौ कोईक न छोड़ैया, मैं का करूँ।


 


 पहिले पहिल जब आवा करोना ,


22 का सब बंद भे घरमा ।।


कागा बोले चढ़ि मढ़ैया, मैं का करूं ।।


 


दूसरे चरण मा 21 दिन दीन्हा,


 सगरी व्यवस्था रोक की कीन्हा।।


 तब्बो कोरोना न जवैय्या, मैं का करूँ ।।


 


बड़े जतन मा 21 दिन काटे,


 दिन और रात बराबर लागे।।


 21म जुडिगे 11 भैया ,मैं का करूं।।


 


 एक एक पल है भारी सबका,


 बैठे बूढ़े युवा और लरिका।।


 घरम। मची हैय्या दैय्या मैं का करूं ।।


 


बड़ी आश मा सब दिन कटिगे,


सोचेन दुःख हमरेऊ सब मिटिगे।।


खुलिगई ठेकी दैय्या दैय्या, मैं का करूं ।।


 


लोकडॉउन न हटतैय्या, मैं क्या करूं।।


देशवा म मचि हैय्या दैय्या, मैं का करूँ।।


                              सुनीता यादव


                             प्रधानाध्यपिका


                     बेसिक शिक्षा विभाग


                             हरगांव, सीतापुर


 


 


 


।। सुनीता के दोहे ।।


गुरु की महिमा है बड़ी ,गुरु ज्ञान की खान ।


गुरु से लेकर ज्ञान को, बच्चों बनो महान।।


सुनो सब बच्चों बनो महान।।


बच्चों सुन लो ध्यान से ,गुरु से ले लो ज्ञान ।


 बिना गुरु के ज्ञान के ,कोई न बना महान ।।


सुनो सब कोई न बना महान ।।


विद्यालय है खान रतन की,इसमें आओ रोज ।


रत्नों से जीवन रचो ,करो एमडीएम भोज ।।


 सुनो सब करो एमडीएम भोज ।।


मिलो मोबाइल पर गुरुजन से, करो पढ़ाई खूब।। दीक्षा प्रेरणा ऐप से, ले लो ज्ञान अनूप।।


 सुनो सब ले लो ज्ञान अनूप ।।


पढ़ लिख कर आगे बढ़ो ,पाओ सब सम्मान ।सम्मानों के ढेर से , बढे मात पिता का मान ।।


सुनो सब बढे मात पिता का मान।।


                           सुनीता यादव


                         प्रधानाध्यपिका


                         हरगांव,सीतापुर


 


 


 


*वतन को नमन*


 


है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


भार सहकर तदपि आज जीवन दिया।


धैर्य रखकर मुसीबत रवाना किया।


मातृ रत्नावती का करें अनुगमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


पितृवत स्नेह संबल हमेशा दिया।


हो मुसीबत लड़ें वीर जीवन जिया।


आज प्यारे गगन पर फिदा है चमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


राष्ट्र के प्रेम बिन हैं अधूरे सभी।


देश से ही हुए आज पूरे सभी।।


हो सजग आज हम सब करें अब मनन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


--सुनीता यादव


 


 


अनिता तोमर ‘अनुपमा’


मेरे सपनों का भारत


 


निज संस्कृति को अपनाकर, इस विश्व की दिव्य स्थली बनेगा।


वेद-पुराणों और संस्कारों से, जन-जन का ये अंत:करण भरेगा।।


सुंदर स्वर्णिम फलक पर, फिर-से इसका नाम जगमगाएगा।


एकता और अखंडता को देख, दुश्मन भी लोहा मान जाएगा।।


 


उत्सव रूपी विविध अलंकारों से, मिलकर इसका श्रृंगार करेंगे।


उत्तर से दक्षिण तक, हर भारतवासी की सकल पीड़ा को हरेंगे।।


अमीरी-गरीबी की रेखा मिटेगी, रोशन होगा हर घर का कोना।


कृषि प्रधान मेरे देश की धरती, दिनोंदिन उगलेगी हरा सोना।।


 


विध्वंसक शक्तियों का होगा नाश, ज्ञान दीप चहुँ-ओर जलेगा।


सड़ी-गली कुरीतियाँ मिटेंगी, नारी को वही सम्मान मिलेगा।।


विश्व शांति के महायज्ञ में, जलाकर मशाल संपूर्ण तमस हरेगा।


कर्मों के चंदन टीके से, हर भारतवासी इसका अभिषेक करेगा।।


 


अनिता तोमर ‘अनुपमा’


(स्वरचित एवं मौलिक रचना) 


3-B गोल्ड नेस्ट अपार्टमेंट, मुर्गेश पाल्या


बेंगलुरु


सुनील कुमार गुप्ता 

कविता:-


        *"कर्म"*


"त्यागमय हो जीवन सारा,


पल-पल ऐसा करो कर्म।


जीवन-पथ पर चलते-चलते,


अपना तो निभाओ धर्म।।कथनी करनी के अंतर का,


यहाँ कुछ तो पहचानो मर्म।


सत्य पथ पर चल कर साथी फिर,


भूल न जाना अपना कर्म।।


स्वार्थ में डूबा जीवन जो, 


होगा वो ऐसा अधर्म।


 


जीवन संबंधो में साथी,


फिर होगी न कोई शर्म।।


 


सुनील कुमार गुप्ता 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अदभुत रूप तुम्हारा मोहन


आकर्षित जग को करता


हतास निराश जग जीवन के


हृदय को प्रमुदित करता


 


अंधकार से घिर जाता मानव


जब दिखती न कोई राह


परम् ज्योति हे परम् प्रकाशक


तब बनते तुम्ही हमराह


 


जीवन मूल्यों के आधार तुम्ही


नाथ तुम्ही सृष्टि संचालक


अज्ञान ग्रस्त अबोध सत्य के


स्वामी बन जाओ चालक।


 


श्री माधवाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

पिता गगन माता धरा, 


                    और विश्व परिवार।


मातु-पिता ही विश्व की, 


                    रचना के आधार।


 


पिता बिना सच मानिए, 


                    वैसे ही परिवार।


छप्पर बिन ज्यों झोपड़ी, 


                  महल बिना आधार।


 


जड़ बापू को मानिए, 


                    वृक्ष अगर परिवार।


जिसके दम पर झेलता,


                   आॅ॑धी की रफ़्तार।


 


पिता बिना भाए नहीं, 


                  खुशी भरा संसार।


ज्यों साड़ी है नवलखा,


                   बिन प्रकाश बेकार।


 


पिता हमारी ढाल है, 


                 दुनिया यदि तलवार।


आगे रहकर झेलता, 


                   वो ही सारे वार।


 


             राजेंद्र रायपुरी


नूतन लाल साहू

सबो दिन एके नइ रहय


अब रात पहा गेहे


उत्ती ललमुहा होगे


नवा बिहनिया आवत हे


न चले निरन्तर काल के जोर रे संगी


अब सुग्घर दिन बहुरावत हे


ये रसायन खातू के मारे


खेती परती लहुटत हे


गऊ पालन ले टिकाऊ खेती हो ही


गोबर कचरा खातू बनही


कम खरचा में गऊ मूत हा


रोग बीमारी ल दुर करही


गोधन न्याय योजना शुरू होंगे


अब रात पहा गेहे


ऊत्ती ललमुहा होगे


नवा बिहनिया आवत हे


न चले काल के जोर रे संगी


अब सुग्घर दिन ह बहुरावत हे


मय आंव किसनहा


मोर संग म नांगर बइला


नांगर बइला देवी देवता


अन्न हे लक्ष्मी माता


हरियर भुइया सुग्घर लागे


खेतखार मोर जिनगी हावय


सावन म बरसे रिमझिम रिमझिम


भादो म झमाझम बरसे


खेत ह पथरा होवत हे


बियासी करे बर झन छोड़व भइया


रसायन खातू म अब्बड बीमारी


कम्पोस्ट खातू के उपयोग करही किसनहा


गोधन न्याय योजना शुरू होंगे


अब रात पहा गेहे


उत्ती ललमुहा होंगे


नवा बिहनिया आवत हे


न चले निरन्तर काल के जोर रे संगी


अब सुग्घर दिन बहुरावत हे


 


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

घर में ही रहें आप कि अभी


कॅरोना का बुरा हाल है।


इस दुष्ट कॅरोना की चल रही


अभी भी वक्री चाल है।।


तुम अमर हो कि तुम्हें तो


कॅरोना हो नहीं सकता।


यह तो बस तेरा एक खोखला


ही वहमो ख्याल है।।


 


अभी तो बस दूर दूर से ही आप


दुनियादारी को निभाइये।


स्तिथि को खूब समझिये और


जरा समझदारी दिखाइये।।


खुद बचें इस महामारी से और


औरों को भी बचाइये आप।


यह सावधानी अपने घर परिवार


में भी आप बतलाइये।।


 


यह मान कर ही चलो कि सामने


वाले को कॅरोना है।


तेरा उससे मिलने का मतलब कि


तुझको भी होना है।।


क्यों जान यूँ ही अपनी जोखिम 


में डाल रहा है तू।


क्यों लापरवाही में फंस कर बस


तुझको रोना धोना है।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


एस के कपूर श्री हंस

अवधपुरी में हे राम तुम्हारा


बहुत स्वागत है।


वर्ष पाँच सौ पश्चात तुम्हारी


हुई यहाँ पर आगत है।।


करोडों की आस्था के जन


नायक हैं श्री राम।


भारत जन जन का विश्वास


ही मंदिर की लागत है।।


 


भव्य विशाल मंदिर का अब


सुंदर आकार होगा।


जो करोड़ों जन जन की


आस्था का आधार होगा।।


पुरातन संस्कार संस्कृति का


केंद्र होगा राम मंदिर।


भारतीय आस्था का दिव्य


स्वप्न अब साकार होगा।।


 


प्रभुराम तेरा वनवास लंबा था


मगर यह कट गया।


राम लला विराजमान आखिर


यह त्रिपाल हट गया।।


त्रेतायुग समान पुनः सूर्य उदय


होगा अयोध्या में।


भूमि पूजन के साथ ही मंदिर


निर्माण काम में डट गया।।


 


हमारी सांस्कृतिक विरासत


अब संसार देखेगा।


हमारी पौराणिक मान्यतायों


का मूर्त आकार देखेगा।।


नई पीढ़ी परिचित होगी


भारतीय इतिहास से।


अब हर कोई विश्व गुरु भारत


का लक्ष्य साकार देखेगा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


संजय जैन

उम्र बीत जाती है,


जिंदगी को बनाने में।


मेहनत करनी पड़ती है,


लक्ष्य को पाने में।


तब कही जाकर मंजिल, हासिल कर पाते है।


और अपनी पहचान,


बना पाते है जमाने में।।


 


लोगों को हँसना तालियां बजबना,


कोई आसान काम होता नही।


खुदका दर्द पीकर 


जो हंसाये जग को।


वो बहुत जिंदा दिल 


इंसान होता है।


मुर्दा होते है वो 


 जो गमो में डूबे रहते है।


और जिंदा होते हुए 


मुर्दा बन जाते है।।


 


दाग जिंदगी पर 


तब लग जाता है।


बिना मूल्यांकन के 


अंक दिया जाता है।


और जिंदगी को तहबा 


कर दिया जाता है।


जिंदा रहते हुए 


मार देते उसे।


और बदनाम उसको


जग में कर देते है।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


निशा अतुल्य

प्यार का एक मैं दीप जलाऊँ,


प्रियतम मन में तुम्हें बैठाऊँ ।


बैठो पास जरा तुम मेरे,


प्रेम गीत मैं तुम्हें सुनाऊँ।


प्यार का एक मैं दीप जलाऊँ,


प्रियतम मन में तुम्हें बैठाऊँ ।


 


बातें बहुत सी हैं कहनी, 


बोलो किस पल तुम्हें बताऊँ।


वो मीठी मीठी सी यादें,


सोच सोच कर मैं शरमाऊँ।


प्यार का एक मैं दीप जलाऊँ,


प्रियतम मन में तुम्हें बैठाऊँ ।


 


तुम तो मेरे प्राण प्रिय हो,


तुमको हर पल ही मैं रिझाऊँ


प्रेम प्रीत का बंधन अनुपम,


हर जन्म मैं साथ निभाऊँ।


प्यार का एक मैं दीप जलाऊँ,


प्रियतम मन में तुम्हें बैठाऊँ ।


 


कितना सुंदर सफर हमारा,


मिल कर इसको पार लगाऊँ


साथ सदा रहना तुम साथी,


बस ईश्वर से सदा मनाऊँ ।


प्यार का एक मैं दीप जलाऊँ,


प्रियतम मन में तुम्हें बैठाऊँ ।


 


निशा अतुल्य


प्रखर

ये जिंदगी पहले ही बहुत परेशां सी, अब और सवाली न कर।


तू करता ईमान का सौदा, सुन अब नमकहलाली न कर।।


मैं बिल्कुल मुतनईन हूँ उस बेवफा हिसाबी से,


प्रखर दलदल में सने तू , दलालो की दलाली न कर।।


 


दरी बिछायी है कब्जा भी होगा, बस मकां खाली न कर।


मौसम है मौका और दस्तूर भी,तू मतलबपरस्ती की जुगाली न कर।।


न जाने वो कौन सा मुहुर्त था, जौ तू मेरे गले पड़ी,


जर्जर हिलती दिवार हूँ मैं, तू अब और बदहाली न कर।।


 


प्रखर


फर्रूखाबाद


डॉ बीके शर्मा 

धर्म त्याग हो जाए मगर 


कर्ता बनकर कर्म न छूटे 


जगती में लुट जाऊं चाहे 


जगती आकर मुझको लूटे


 


 सबका क्रोध जलाए मुझको


 पर क्रोध ना मेरा उर से फूटे


 परख तपन से होती स्वर्ण की


 फिर मर्म मेरे क्यों रहे अछूते 


 


नहीं जानता हित अनहित मैं


पर साथ तेरा ना मेरा छुटे


है सच्चा बंधन तेरा मेरा 


बाकी सारे रिश्ते झूठे


 


सुख कहां बिरंचि जगत में


चमत्कार हो चाहे अनूठे 


हो स्वार्थ मोह बलवान मगर


लग्न मेरी ना तुझसे टूटे 


 


जल जीवन वायु प्राण भूगर्भ 


पावक ज्योति अनंत मार्ग में 


मिलना प्रिय साथ तेरा ना छूटे 


 


थाम हाथ संग ले चल सकी


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी..


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सीमा दूबे सांझ

सीमा दूबे सांझ


शहर जमशेदपुर झारखंड 


 गृहणी एवम् छात्रा 


मेरी पुस्तक - फरिश्ते


 अग्निशिखा मंच सम्मान पत्र


काव्य गोष्ठी सम्मान पत्र


आकाशवाणी रेडियो पर सम्मान पत्र


 


कविता -1


हौसलों का समय आ गया


 एकता के गीत को है दोहराना 


चल मिलकर सब भाईचारे को एक है बनाना 


रोक सको तो रोक लो हमें मजहबी झंझट में ना है आना 


इस युद्ध को हमें साथ मिलकर है हराना 


 आज साथ मिलकर सब बैठे हैं अपने अपने घरों में


कोई धर्म किसी के खिलाफ नहीं 


सबके कर्म एक ही हैं 


हम कल भी साथ थे और आज भी हैं 


हम कल भी साथ थे और आज भी हैं 


हौसलों का समय आ गया 


एकता के गीत को है दोहराना 


चल सब मिलकर चल मिलकर भाईचारे को एक है बनाना


 कब तक जीत पाएगा ये वायरस ये महामारी 


हम भारतवासी हैं सब पर भारी


 डटकर खड़े हैं जंगे मैदान में डटकर खड़े हैं जंगे मैदान में


 ऐसी कितनी मुश्किलों को हमने हर बार मात दे डाली 


गर्व है हमें अपनी मातृभूमि पर


  गर्व से कहते हैं हम हैं हिंदुस्तानी


 हौसलों का समय आ गया


 एकता के गीत को है दोहराना


 चल मिलकर सब भाईचारे को एक है बनाना


 कोरोना को है हराना शपथ है सब ने खाई 


वह कोई भी धर्म हो हिंदू ,मुस्लिम ,सिख, ईसाई  


फिर सब देशों ने भारत के हौसलों के आगे शीश झुकाई


 आज फिर एकता है रंग लाई 


हौसलों का समय आ गया 


एकता के गीत को है दोहराना चल मिलकर सब 


भाईचारे को एक है बनाना


 Seema Dubey (sanjh)


 


कविता- 2


लेखक की कलम


लिख रहा दिल की बात आज जाने क्या लिखेगा


 अरमानों के साथ या दुख भरे साज लिखेगा


 खुशियों के दामन थामे या दर्द की सौगात लिखेगा 


दर्द भरे शब्दों में वह अपनी बात लिखेगा


 प्यार भरी यादों में अपनी हर वो रात की याद लिखेगा


 कुछ पाकर झूम उठा खिलखिलाते हुए पुरानी डायरी मिले उसे पढ़कर पड़ रहा शरमाते हुए


 कहीं आंसुओं के सैलाब समेटेगा 


उठ सोच रहा जाने किस को कागज पर उकेरेगा


 कलम डूबा कर स्याही में बढ़ रहा कागज की ओर


 जाने किस को आज फिर जीवित करेगा 


रचना रचते रचते समय बीत गया


 मैं तो पात्र हूं नाटक का आज मेरा नाटक का अंत बहेगा सांझ की ठंडी हवा में उस प्रेमी का साथ लिखेगा 


जो पल गुजारे उसके साथ उन पलों को शब्दों में पिरो कर उस शब्दों की माला गूथे गा


  प्यार की खुशबू को कविता के रूप में बिखेरेगा


सीमा दुबे सांझ


 


कविता- 3


साजन न आए


 


ओ मेरे साजन इस बरस भी तुम घर ना आए


 तेरी सोच में निंदिया ना आए, बैरी क्यू भए तुम?


 दूर ही क्यों गए तुम ,वादा किया था जो वह तोड़ दिए?


  हुए साजन तुम तो पराए,


 रतिया में निंदिया न आए ,न दिल में चैन आए, 


ओ बैरी साजन, इस बरस भी तुम घर ना आए।।


 


 पपीहा कोई क्यों चीख गए ,


हो किस हाल में तुम मन घबराए ,


दर्द मन में उठे तन सुख सुख जाए ,


विरह मन को ठेस पहुंचाए ,क्या करूं मैं धीर कैसे धरु मै ,


क्यों विसारे साजन , इस बरस भी तुम घर ना आए।।


 


 मेरे माथे पर बिंदिया न भाए,दर्पण देखूं तो वह मुझे चिड़ाए


,चूड़ियो की खनखन मुझे सताए, हर आहट में मनवा चौक जाए, 


बैठे हैं घर के दरवाजे पर पलके बिछाए ,


क्यों भूले साजन ,इस बरस भी तुम घर ना आए ।।


 


काश यह मन संभल जाए ,अबकी साजन घर आ जाए, 


छुपा लो निगाहों में, कस लूं अपनी बाहों में,


 फिर न जाने दूं ,कसम देकर उन्हें बांध लू आंचल में


 काश मेरे साजन , इस बरस घर को लौट आए।।


सीमा दुबे सांझ


 


कविता- 4


स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी


 


कभी कभी न जाने 


मन में विप्लव छा जाता है 


दुविधा व्यतीत करती हैं 


शोकाकुल मन हो जाता है 


 क्यों बढ़ती और लिखती रही


 उत्पीड़न भ्रष्ट लोगों की निंदाओं की कहानी 


काश लिखा होता


 शाश्वत प्रेम काव्य तो मिली होती 


किसी के अतुल्य प्रेम की निशानी 


 


स्त्री अधीन है घर गृहस्ती 


सजाने का सामान होती है 


यदि यह मार्ग न चुन सके


 इच्छाओं की भली न दे सके


 तो अग्नि परीक्षा का आयाम होती


 


 स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी


 आज श्रृंगार खुद पर करती है


 वह भी पति का मान के रहता है


 खुद के लिए सजती है


 वह भी पति के साथ चला जाता है 


 


स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी


 तुम भूल गई थी


 तुम स्त्री हो तुम्हें परिभाषाएं 


बदलने का अधिकार नहीं 


तुम्हारा सोच तुम्हारा शोध 


निरंतर सरपंची पौरोष पर वार नहीं था 


 


स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी


शोध जो ऐसे सीता अनसूया 


की कहानी पढ़ रहे थे 


अपने पुरुषार्थ की 


परिभाषाएं गढ़ रहे थे


 


स्त्री के अंतर्द्वंद की कहानी


मन में बहुत विचार उत्पन्न हुए 


क्यों हर पल स्त्री उत्पीड़न का शिकार हुई


 क्या उनकी अभिलाषा है 


कुछ खास नहीं जो 


पूरी हो सके क्या उनमें बात नहीं


 स्त्री के अंतर्द्वंद के कहानी 


सीमा दुबे सांझ


 


कविता- 5


वह बचपन याद आता है 


वह स्कूल ना जाने का बहाना 


और जाने पर घंटों आंसू बहाना


 वह पेंसिल खो जाना 


और दूसरों की रबड़ चुराना


 आज याद आता है ......


वह जरा सी बात पर झगड़ा 


और गलतियों पर बेलन पढ़ना


 वह धूप में साइकिल चलाना 


और घर आकर बीमार पड़ जाना 


आज याद आता है .....


वह शक्तिमान के लिए भाई से लड़ना


 और खींचतान में रिमोट का टूटना


 वह कहानियों की किताबें लाना 


स्कूल छोड़ कॉमिक्स में ही लग जाना


 आज याद आता है ....


छुआछूत का ज्ञान नहीं


 वह पैसे चुरा टॉफिया खाना


 वह दोस्तों संग मेला जाना 


और कुल्हड़ बर्फ को खाना


 आज याद आता है.......


         



दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

हलषष्ठी का पूजन है मनभावन,


भद्र पक्ष में आया है पर्व पावन।


सभी सुहागिनें करतीं पूजन वन्दन


संतानों की दीर्घायु का लेती वचन।


 


जन्मदिन हलधर का है क्रन्दन,


प्रिय कृष्णा का भी होता वन्दन।


श्रद्धा भाव से जो उन्हें पुकारते


सुख - समृद्धि जीवन भर पाते।


 


ऐसा सुन्दर फिर दिन है आई,


करते पूजन सब हलषष्ठी माई।


गौरी-गणेश का होता पूजन


शिव संग मां पार्वती का होता अर्चन।


 


महुआ, लाई और फूल चढ़ातीं,


सतरंगी कपड़ों का निशान पातीं।


छ अन्नों का भोग लगातीं,


छ ही कथा सुना श्रवण सुख पातीं।


 


हल से जोते बोये अन्न न खातीं


पसहर चावल से ही भोग लगातीं।


निराहार निर्जला व्रत हैं रखती


संतानों की सारी विपदाओं को हरतीं।


 


भैंस के दूध दही औ घी भी लातीं


पूजन अर्चन वन्दन में रम्ह जाती


हलषष्ठी माई आशिष हैं देती


सारी विपत्तियों को हर लेती।



दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


रवि रश्मि अनुभूति 

अवधपुरी में जन्म लिया है ।


पावन इस धरा को किया है ।।


प्रबल सभी भाग्य ले आये ।


कौशल्या सदन पुत्र सुहाये ।।


 


पुरुषोत्तम राम वे कहाये । 


कल्याण सभी का कर पाये ।।


गले माल सजे धनुर्धारी ।


सारी दुनिया रही पुजारी ।।


 


तेजस्वी राम ही बने थे ।


सौम्य बहुत वे वीर बने थे ।।


शीश मुकुट वाले सोहे थे ।


सभी ब्रह्मांड में मोहे थे ।।


 


मन में अपने राम बसा लो ।


बिगड़े अपने काम बना लो ।।


राम अयोध्या अब आये हैं ।


बादल खुशियों के छाये हैं ।।


 


अयोध्यानगरी अभी झूमे। 


खुशियों में तो अब सब घूमें ।।


भजन आरती अब सब गायें । 


मन में अब आध्यात्मिकता पायें ।।


 


सभी के हैं बस राम प्यारे ।


करते काम नेक सब न्यारे ।।


अब मंदिर में धूम मची है ।


सुन्दर झाँकी अभी सजी है ।।


 


सब जन मन में राम बसाओ ।


सभी जन खुशियाँ भी मनाओ ।।


मोहक छवि सब ही अपनाओ । 


राम के गुण सभी ही गाओ ।।


 


राम सबका भाग्य बनाते । 


पाप सभी के हैं कट जाते ।।


दुविधाओं में सुख देते हैं । 


कष्ट सभी के हर लेते हैं ।।


 


मन में सब ही राम बसाओ । 


राम नाम ही जपते जाओ ।। 


मन में राम बसेंगे जैसे । 


सुख - वर्षा हो वैसे - वैसे ।।


 


रवि रश्मि अनुभूति 


विवेक दूबे निश्चल

अश्क़ भरे आंखों में बहाये न गये ।


रूठ कर आज अपने मनाये न गये ।


 


कह गये बात तल्ख़ लहज़े में वो ,


नर्म अल्फ़ाज़ जुवां पे सजाये न गये ।


 


 उठाते रहे हर नाज़ बड़े सलीक़े से ,


अहसास फ़र्ज़ कभी दिलाये न गये ।


 


हो गये गैर अपने गैर की ख़ातिर ,


अपने कभी मग़र भुलाये न गये ।


 


 सह गये हर चोट बड़े अदब से हम ,


ज़ख्म निश्चल कभी दिखाये न गये ।


     विवेक दूबे निश्चल


 डॉ बीके शर्मा 

कर चुका हूं मंथन तेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा 


तू ही अटल तू ही सत्य है 


स्वीकार मुझे है बंधन तेरा


आ करूं अभिनंदन तेरा 


 


तू ही चिर है तू ही स्थिर 


सब नष्टबान और अस्थिर 


है जीवन की यही अभिलाषा 


करता रहूं मैं बंदन तेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा 


 


वह रस कहां और मिलन में 


जो रस तेरे है आलिंगन में 


क्यों ना इसका पान करूं फिर 


तन भी तेरा मन भी तेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा 


 


तू सत्यम और सुंदरम


शिवोअहम् और बंदनम्


है निर्माण शांति प्रदम्


मालिक है रघुनंदन तेरा


आ करूं अभिनंदन तेरा


 


तुम मृत्यु हरी मुख की बानी


अखिल विश्व श्रुतियों की रानी 


चिर निद्रा हो योगेश्वर की


स्वीकार करो अभिवादन मेरा 


आ करूं अभिनंदन तेरा


 


 


 डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


संजय जैन

फूलों की सुगंध से, 


सुगन्धित हो जीवन तुम्हारा।


तारों की तरह चमके, 


जीवन तुम्हारा।


उम्र हो सूरज जैसी, 


जिसे याद रखे दुनियाँ सारा।


आप महफ़िल सजाएं ऐसी, 


की हम सब आये दुवारा।।


 


आपके जीवन में हजारो बार,  


मौके आये इस तरह के।


की लोग कहते कहते न थके, 


की मुबारक हो मुबारक हो।


जिंदगी जीने का 


ये तरीका तुम्हारा।


जिसमें खुशी होती है,


गम नहीं।


तभी तो जीते हो तुम, 


जिन्दा दिली से यहां पर।


और सभी के दिलो में,


प्रेमरस बरसते हो।।


 


अपनी दुआओं में,


आपने याद किया हमें।


तहे दिल से करते है,


हम अपाक शुक्रिया।


जिन्दगी बदत्तर या बेहतर रहे,


और चाहे जैसी भी रहे।


बस आपका साथ हमें,


जिंदगी भर मिलता रहे।


तभी तो आपकी दुआओ में हम शामिल हो पाएंगे।


और दुनियाँ को जिंदगी,


जीने का अंदाज छोड़ जाएंगे।।


 


 


संजय जैन (मुंबई )


सीमा शुक्ला

अधरों पर उठता प्रणय गान,


आशायित हो उठता विहान।


जब खुले पृष्ठ उन यादों के,


जब दिन हो सावन भादों के।


 


बहती मन भावों की सरिता।


तब तब मन लिखता है कविता।।


 


मन में नित भाव अमंद उठे


जब प्रेम हृदय बन छंद उठे।


हिय उठे कल्पना का सागर


अरमानों की छलके गागर।


 


जब स्वप्न पले हिय में अमिता


तब तब मन लिखता है कविता।


 


उर में अनुपम अनुराग उठे,


असहा नित हृदय विराग उठे,


जब पल पल पीर उभरती है,


चिर व्यथा नयन से बहती है।


 


जब जले चांद ज्यों हो सविता।


तब तब मन लिखता है कविता ।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


एस के कपूर श्री हंस

बाल कविता


 


बच्चे तुम ही हो भविष्य के


भारत भाग्य विधाता।


तुम से ही देश का कल


सुनहरा है हो पाता।।


आज का तेरा बचपन ही


कल की दुनिया होगी।


यही बात तो तुम्हें मैं हर 


रोज़ हूँ बतलाता।।


 


आज के तेरे खेल खिलौने


कल के यंत्र होंगें।


तेरी विद्या से ही सिद्ध


कल के मंत्र होंगें।।


तेरे कंधों पर ही भार होगा


सामाजिक तंत्र का।


तुझसे ही मजबूत राष्ट्र के


स्तम्भ गणतंत्र होंगें।।


 


तुझको भारत नव निर्माण


का बीड़ा उठाना है।


देश की रक्षा का भी तुझको


बिगुल बजाना है।।


तेरी बुनियाद पर खड़ी बुलंद


भारत की इमारत।


तुझको ही ऐसा अखंड विश्व


गुरु भारत बनाना है।।


 


तेरे नन्हें हाथ कल देश 


की नींव होंगें।


पूरे करने सपने राष्ट्र के


भी असीम होंगें।।


तुम ही बनोगे कल के बापू


सुभाष भगत सिंह।


तेरे कल में ही देश के


राम रहीम होंगें।।


 


तुम हो देश के कर्ण धार


कल की विरासत हो।


तुम ही तो कल की संसद


देश की सियासत हो।।


तुम ही हो रूपरेखा कल के


भारत इतिहास की।


तुम ही तो कल के देश


की इबादत हो।।


 


एस के कपूर श्री हंस


      बरेली


सुनील कुमार गुप्ता

       पहचान


अपनो को अपना कहने से,


क्यों- होता उनका अपमान?


इतने बड़े हो गये अपने,


कैसे- लेते उनका नाम?


संग-संग खेले बचपन में,


अब नही कोई पहचान।


रक्त संबंधों में भी साथी,


क्यों-हो गया ऐसा काम?


सींच नेह से जीवन-पथ को,


जिसने -दिया नव- आयाम?


ऐसे संबंधों को जग में,


मन करे पल-पल प्रणाम।।


 


-सुनील कुमार गुप्ता


सुषमा मोहन पांडेय

तुम्हीं मेरी आस्था हो, तुम्हीं मेरा विश्वास।


तेरी ही भक्ति में है मेरा विश्वास।


सुख हो या दुख मुझे कुछ भी न पता,


रहती हमेशा सिर्फ तुमसे ही एक आस।


 


 जबसे होश संभाला, तुझको ही अपना पाया,


चारो ओर मुझे कोई और, नजर न आया।


बंद नयन कर जो तुझे देखा है मैंने,


हरदम तुझको ही अपने करीब पाया।


 


मेरे सब कुछ तो तुम्हीं हो,


मेरा हँसना रोना भी तुम्हीं हो,


जो भी कुछ आज तक है मैंने पाया,


मेरे हर कर्म के साक्षी भी तुम्हीं हो।


 


पूजा, तपस्या, धर्म-अधर्म, कुछ


मुझे मालूम नहीं


पाप-पुण्य,ज्ञान-अज्ञान ये मैं जानूँ नहीं।


मेरी रोम रोम में बसे हुए हो, इतना मैं जानती हूँ


दृढ़ अहसास है मेरी आस्था का, और कुछ जानूँ नहीं।


 


 


सुषमा मोहन पांडेय


सीतापुर उत्तर प्रदेश


 


सुषमा मोहन पांडेय


 सीतापुर, उत्तरप्रदेश। 


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