वंदना शर्मा बिंदु देवास जिला मध्य प्रदेश

श्री कृष्ण जन्माष्टमी


 


कान्हा रे कान्हा तेरी बाजी रे मुरलिया


कान्हा रे कान्हा तेरी बाजी रे मुरलिया


 


सुध बिसराई दौड़ी आई मैं तो रसिया


सुध बिसराई दौड़ी आई मैं तो रसिया


 


जमुना किनारे रास रचाए कान्हा


मनमोहन बनवारी रे कान्हा।...


 


नीर भरन गई जमुना जी में


मिल गयो कान्हा बीच डगर में


 


मारी डगलिया फोड़ी गगरिया


भीगी सारी मोरी चुनरिया कान्हा।...


 


दधी बेचन को जाऊं बजरिया


बीच में मिल गयो  कृष्ण कन्हैया


 


बहियां मरोड़ी मौसे करे बरजोरी


छीन लई मोरी दही की मटकिया कान्हा।...


 


जाए कहूंगी मात यशोदा से


तेरे लाल ने तंग मोहे कीन्हा


 


फिर भी लगे यह प्यारा कन्हैया कान्हा


कान्हा रे कान्हा तेरी बाजी रे मुरलिया


 


सुध बिसराई दौड़ी आई मैं तो रसिया


कान्हा रे कान्हा तेरी बाजी रे मुरलिया


 


वंदना शर्मा बिंदु


देवास जिला मध्य प्रदेशश


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

ज़िद भी ऐसी ना हो


कि थक गया हूं बस करो


दूर तलक जा होना है आसमानी 


नई इबारत लिख रहा हूं बस करो। 


 


गुफ्तगू उनसे की नये सफर की


मृत्यु तो आनी ही है जी लिजिए


अमर होना है अगर हर दिलों में


मरकर जिंदगी के चरम ले लिजिए।


 


क्यों! मौत को चुपके से बुलाया


व्याकुल हो गये स्तब्ध हैं सब


मौत को आनी थी कल कहा था


आमंत्रित ऐसे किया स्तब्ध हैं सब। 



अश्रुपूरित श्रद्धांजलि राहत इन्दौरी साहब


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल 


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

श्री कृष्ण स्तुति


 


भाद्रपद कृष्ण पक्ष, अष्टमी की आधी रात,


                     विष्णु के आठवें हुए, कृष्ण अवतार थे।


वासुदेव देवकी की, आठवीं संतान कृष्ण,


                    गोकुल में पले - बढ़े, नन्द जी के द्वार थे।


बचपन से ही बड़े, नटखट श्याम रहे,


                      माखन चुराके खाते, मोहन अपार थे।


घट फोड़ देते कभी, वस्त्र भी चुराते कभी,


                  सारी गोपिकाओं से ही, करते वो प्यार थे।


 


कर्मयोगी कृष्ण बने, गीता उपदेश दिया,


                  मानवता को सिखाया, जीवन का सार है।


जैसा कर्म करो स्वयं, वैसा फल मिले सदा,


                    मानता ये बात आज, सारा ही संसार है।


अन्याय को मिटाकर, न्याय ही किया है सदा,


                    विश्व पर आपका तो, बड़ा उपकार है।


त्रुटियों को माफ़ कर, क्षमादान देते सदा,


                   नाम जपने से होता, सबका उद्धार है।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


सीतापुर - उत्तर प्रदेश


श्री कृष्ण बाल लीला आशुकवि नीरज अवस्थी

यशोदानन्द  के  नन्दन  गगरिया  तोड़ने वाले।


तुम अपनी बाललीलाओ से मन को मोहने वाले।


करूँ  तारीफ़  मैं  कितनी  बड़े भोले  मनोहर  हो,


सुदामा रंक से यारी क रिश्ता जोड़ने वाले।।


~9919256950


 


 


 


           


नीरज नयनन नीर अधीर बहे सुधि लीजै हे बनवारी ।         


सूर के आंधरि नैन हमारि सुलोचन दर्शन दो बनवारी।


गाय चरावो न वंशी बजावो न रास रचावो रासबिहारी ।


नीरज नयनन त्रास उदास भरो मन प्रीति मोरे बनवारी।


आशुकवि नीरज अवस्थी~9919256950


 


 


 


बालरूप कृष्ण नन्दवाबा जी के छैया,भैया गोकुल बसइया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।


दुष्टों के हन्ता नख पे गिरि को उठाने वाले धेनु चरवइया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।


नीति को बताकर अनरीति को मिटाने वाले गीता के बचइया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।


एक पल में अर्जुन के मोह को मिटाने वाले,सांवरे कन्हैया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।।


 


धन्य है कदम्ब कुंज धन्य ब्रजधाम धन्य मुरली बजइया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।


धन्य धन्य यमुना है धन्य यमुना का कूल नाग के नथइया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।


बालकृष्ण योगिराज राधेश्याम द्रोपदी की लाज के बचइया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।


नीरज की नाव मजधार बीच डोल रही उसके खेवइया तुम्हे कोटि सा प्रणाम है।।


 


आशुकवि नीरज अवस्थी मो.-9919256950


 


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श्री कृष्ण जन्माष्टमी राधा कृष्ण प्रेम मुक्तक

अगर तुम राधिका मेरी, कन्हैया मै तुम्हारा हूँ।


अगर तुम बांसुरी मैं श्याम अधरों का किनारा हूँ।


दही मक्खन चुराने वाला ग्वाला प्रीति का प्यासा,,


अगर तुम धार नदिया की तो मैं सागर तुम्हारा हूँ।।


          


प्रीति करो तो मीरा जैसी,छोड़ो सब संसार को।


एक तार दिल का जोड़ो उस जग के पालन हार से।


जहर बनेगा अमृत जैसे पिया हलाहल मीरा ने,


छोड़ वासना सच्चा निश्छल करके देखो प्यार को।


आशुकवि नीरज अवस्थी मो 9919256950


 


अतुल पाठक "धैर्य"

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व


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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जो रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में जन्मे थे। जन्माष्टमी को केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। सम्पूर्ण विश्व के अनेकों सनातन भक्तों की आस्था का केंद्र हैं भगवान श्रीकृष्ण।


श्रीकृष्ण देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र थे। मथुरा नगरी का राजा और देवकी का भाई कंस था जिसने आकाशवाणी द्वारा सुनी चेतावनी देवकी के आठवें पुत्र द्वारा अपनी हत्या के भय से देवकी और वसुदेव को काल कोठरी में डाल दिया और उनकी सात संतानों को जान से मार दिया। अत्याचारी कंस का समूल विनाश करने के लिए भगवान विष्णु ने भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि को श्रीकृष्ण अवतार के रूप में मथुरा में जन्म लिया। अत्याचार को मिटाने के लिए प्रभु स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए। अतः इस दिन को कृष्णजन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।


इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर सारी दुनिया भक्ति के रंगों में सराबोर हो उठती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर कान्हा की मनमोहक छवि को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा पहुँचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर न सिर्फ मथुरा अपितु सम्पूर्ण भारत कृष्णमय हो जाता है। इस दिन मंदिरों को ख़ास तौर पर सजाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन स्त्री पुरुष और बच्चे सभी बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में कान्हा की झाँकियाँ सजाती जाती हैं। भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। बालकुमारों को कृष्ण रूप में सजाया जाता है और रासलीला का आयोजन किया जाता है। इस पावन पर्व के लिए लोग लड्डू गोपाल के लिए पोशाक और अपने चहेते कान्हा की प्रतिमा खरीदते हैं। इस दिन सभी भक्त खूब जोरों से तैयारियाँ करते हैं और 12 बजे तक इंतजार करते हैं। 12 बजते ही सम्पूर्ण भारत में बड़ी धूमधाम से प्यारे मोहन का जन्मोत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन देश में कई जगह दही हांडी प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। दही हांडी प्रतियोगिता में हर नगर के बाल गोविंदा प्रतिभाग करते हैं। छाछ से भरी मटकी रस्सी से ऊपर आसमान में लटका दी जाती है। बाल गोविंदाओं द्वारा दही से भरी मटकी को फोड़ने का प्रयास किया जाता है। दही हांडी प्रतियोगिता में विजेता टीम को उनकी कुशलता के अनुरूप इनाम दिया जाता है।


इस पावन पर्व की बेला पर कृष्णभक्त गोविन्द गोपाल के मंगल गीतगान गाते हैं उन्हें भोग लगाने से पहले माखन मिश्री खिलाते हैं फिर यही प्रसाद सभी भक्त जनों में बाँटा जाता है।


मैं अतुल पाठक "धैर्य" भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव की सभी भक्तजनों को मंगल शुभकामनाएं देता हूँ। बाँके बिहारी सबकी मनोकामनाएं पूरी करें और अपनी कृपादृष्टि सब भक्तजनों पर बनाएं रखें।


जय श्रीराधेकृष्ण 


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निशा अतुल्य

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी,


हे नाथ नारायण वासुदेवा।


 


हे गिरधारी कृष्ण मुरारी,


विकल सकल संसार।


देख रहें हैं तुम को ही सब,


ले लो फिर अवतार ।


 


पाप बोझ बढा धरती पर,


लगती दुनिया पापी।


नन्ही नन्ही दौपद्री कान्हा,


फिरती मारी मारी।


 


मित्र ने कोई बने सुदामा,


ना सारथी तुम सा।


आंधी ऐसी चल रही कान्हा,


हो रहा नाश धर्म का ।


 


लगता हर कोई दुर्योधन,


अर्जुन बन कर आओ ।


देना ज्ञान उन्हें भी इतना,


चौपड़ न खिलवाओ।


 


महाभारत सा युद्ध न हो अब


जागे दुनिया सारी


एक बार लो अवतार प्रभु तुम


संभले दुनिया सारी ।


 


श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी ,


हे नाथ नारायण वासुदेवा।


 


निशा"अतुल्य"


संजय जैन

कितना पवन दिन आया है।


सबके मन को बहुत भाया है।


कंस का अंत करने वाले ने,


आज जन्म जो लिया है।


जिसको कहते है जन्माष्टमी।।


 


काली अंधेरी रात में नारायण लेते।


देवकी की कोक से जन्म।


जिन्हें प्यार से कहते है।


कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम।।


 


लिया जन्म काली राती में, 


तब बदल गई धरा।


और बैठा दिया मृत्युभय,


कंस के दिल दिमाग में।


भागा भागा आया जेल में,


पर ढूढ़ न पाया बालक को।


रचा खेल नारायण ने ऐसा, 


जिसको भेद न पाया कंस।।


 


फिर लीलाएं कुछ ऐसी खेली।


मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी।


माता यशोदा आगे पीछे भागे।


नंदजी देखे तमाशा मां बेटा का।।


 


सारे गांव को करते परेशान, 


फिर भी सबके मन भाते है।


गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये, 


बन्सी की धुन पर थिरकते है।


और मौज मस्ती करके, 


लीलाएं वो दिख लाते है।


और कंस मामा को,


सपने में बहुत सताते है।।


 


प्रेम भाव दिल में रखते थे,


तभी तो राधा से मिल पाए।


नन्द यशोदा भी राधा को, 


पसंद बहुत किया करते थे।


गोकुल वासियों को भी,


राधा कृष्ण बहुत भाते थे।


और प्रेमी युगलों को भी,


कृष्ण राधा का प्यार भाता है।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

अगस्त क्रांति की चिनगारी 


शोला बनकर भड़की उठी, 


सावन में आज़ादी की बदली 


बिजली बनकर कड़क उठी। 


 


तीन दिसम्बर की तिथि थी 


अट्ठारह सौ नवासी साल था, 


जन्म लिया था वह मतवाला 


अंग्रेजों का वह जो काल था।


 


लक्ष्मीप्रिया-त्रैलोक्यनाथ जी 


मात-पिता भी तो धन्य हुए,


धन्य धरा भारत की हो गयी 


सब भारतवासी भी धन्य हुए। 


 


किंग्जफोर्ड के वाहन पर जब 


बिस्फोटक से हमला बोल दिया, 


'युगान्तर' के उन वीर जवानों ने


खुलकर तब मोर्चा खोल दिया। 


 


उन अत्याचारी अंग्रेजों ने तब 


उनपर इतने अत्याचार किये, 


ग्यारह अगस्त उन्नीस सौ आठ 


को फाँसी का उनको हार दिये। 


 


खुदीराम बोस का नाम अमर 


है स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी में,


इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में 


शहीदों की अमर कहानी में।


 


वह गीता को हाथों में लेकर  


फाँसी का फंदा अपनाया था,


हँसते-हँसते ही वह मतवाला 


अपने मौत को गले लगाया था।


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

वर्तमान    की    बाहों    में 


देखे जाते हैं भविष्य के सपने


आकर्षित जग को माधव करते


गोकुल वृन्दावन सब हैं अपने।


 


दिन रात अलौकिक था जब


माधव के धरा पर पांव पड़े


अपनापन लेकर ही आये


ममता का सब लिए छांव खड़े।


 


अपने मोहित मुस्कानों से


सबके कष्टों को हर लेते हो


अपना सब सुख खोकर भी


जन-जन को राह दिखाते हो।


 


तुमने तो स्वयं से युद्ध किया


तुम  ही  हारे   तुम ही जीते


संदेश विश्व को देकर तुमने


कर्म ही सर्वोत्तम गीता कहते।


 


जैसी तेरी छवि है माधव 


वैसे तेरे सब प्रतिरूप नहीं


अर्जुन और सुदामा सा देखो


दूजा कोई मित्र स्वरूप नहीं।


 


धरा के सभी पापों का 


तूं ही तो निवारक है


बढ़ रहे दुराचारों के


तूं ही तो बस मारक है। 


 


हे! दो माताओं के एक सपूत


तूं कण-कण में ही बसता है


तेरे माखन की चोरी का


अब भी वात्सल्य में तकता है। 


 


तेरा  रहस्य  तूं  ही  जाने


तूं ही राघव तूं ही माधव है


जाने कितने हैं प्रतिरूप तेरे


तेरे आशिषों से जग साधव है।



दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


प्रखर

नंदलाला मुरलीधर कन्हैया श्याम बनवारी।


रसिक रसराज सांवरिया, योगेश्वर हे लिलहारी।।


छलिया ठग ठगा तुमने , तन मन से तुम्हारी मैं,


वनमाली बेनु अधरन , अलक उरझी घन कारी।।


 


मोहना रूप मनमोहन , नटवर हो बहुत नटखट।


करो क्यों रार माखन पै, मटकिया फोर धाए चट।।


तुम्हीं आलम्ब जीवन का, कण कण व्याप्त जग स्वामी,


तुम्हारी मैं मेरे हो तुम, उबारो नाथ तुम्हारी रट।।


 


प्रखर


फर्रूखाबाद


मदन मोहन शर्मा सजल

मेरी प्रीत की पहचान हो तुम,


गीतों की राग सुरतान हो तुम,


 


दिल में जलाकर प्यार का दीपक,


ख्वाब की महफूज वितान हो तुम,


 


चाहा तुम्हें दिल भी लुटा दिया,


यादों की मीठी विहान हो तुम,


 


रागिनी बन छाई मानो घटा,


कैसे न कहूँ रब जहान हो तुम,


 


दिल के दरवाजे बंद थे सनम,


दस्तक दी वो मेहमान हो तुम।


 


हवाले कर दी जीवन की डोर,


टप टप टपकते अरमान हो तुम,


 


कितनी सुहानी थी वो' मुलाकात,


जमीं, सितारे, आसमान हो तुम।


 


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


सुरेन्द्र पाल मिश्र

 सखी री आज आये हैं गोपाल।


आओ सब हिल मिल नाचे खेलें रंग गुलाल।


    सखी री आज आये हैं गोपाल।


भादों महिना कृष्ण अष्टमी कारी बदरी छाई।


रिमझिम रिमझिम मेघा बरसें यमुना जी उफनाई।


प्रभु स्वागत कदम्ब तरु झूमें झूमें ताल तमाल।   


      सखी री आज आये हैं गोपाल।


पुलकित मन है हर्षित अंखियां नाचे सारी काया।


बाद युगों के बृज भूमी ने प्रभु का दर्शन पाया।


यशुदा मैया लेत बलैया गोदी में नंदलाल।


      सखी री आज आये हैं गोपाल।


नंद बबा का आंगन देखो कैसा सुन्दर सोहे।


चन्दा जैसा रूप सलोना सुर नर मुनि सब मोहे।


सारा गोकुल झूंम रहा है झूंमें सारे ग्वाल।


       सखी री आज आये हैं गोपाल।


ब्रम्हा आये शिव जी आये प्रभु शिशु रूप निहारा।


पुलकित हर्षित अपलक देखें सुंदर मोहक प्यारा।


धन्य भाग्य गोपाल का दर्शन पाकर हुए निहाल।


सखी री आज आये हैं गोपाल।


संग सखा ले यमुना के तट कान्हा धेनु चराए।


मन मोहन सबका मन मोहे मुरली मधुर बजाये।


सारी गोपी बनी बावरी नाचे दे दे ताल।


      सखी री आज आये हैं गोपाल।


बृज की रक्षा हित प्रभु ने गोवर्धन गिरि धारा।


कंस सहित सब असुर संहारे धरती भार उतारा।


गीता ज्ञान दिया अर्जुन को काटे भ्रम के जाल।


      सखी री आज आये हैं गोपाल।


   सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।


रश्मि लता मिश्रा

वीना तेरी जो बज जाए माँ।


सुर मेरे सब सज जाएं माँ ।


तेरी स्तुति करती रहूँ।


 तूलिका भावों से भर जाए माँ


 


 मेरे शब्द दे सकें,


अक्षरों को शान भी। 


रच सकूं मैं ऐसे छंद 


झूम उठे जहान भी।


 रचना से जीवन सँवर जाए माँ तूलिका भावों से भर जाए मां 


वीणा तेरी,,


 


 कलम को वह शक्ति दे,


 बदल सके इतिहास जो।


 प्रेम पथ पर चल सकें,


सदाचरण की बात हो।


 इंसानियत फिर नजर आए मां।


तूलिका भावों से भर जाए मां।


वीणा तेरी जो बज जाए माँ


  सुर मेरे सब सजा जाएं माँ।


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी,जी।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

परोपकार ईश्वर का प्यार 


परोपकार परमेश्वर कार्य


परोपकार स्वयं स्वार्थ का त्याग है


परोपकार पर पीड़ा का प्रतिकार है।।


 


परोपकार जन कल्याण राष्ट्र समाज की दरकार युग पुरुषार्थ है


परोपकार पर्व जीवन मूल्य 


सिद्धान्त आशा आस्था भाग्य


भगवान् संसार विश्वाश है।।


 


सेवा समर्पण मानवता उद्धार


मंत्र मात्र एक ही शक्ति भक्ति


परोपकार उपकार नहीं कर्तव्यों का सत्कार निर्वाह है।।


 


पर दुःख पीड़ा का संघार


परोपकार में विष पान कर


शिव शंकर शम्भू औघड़ नाथ


परोपकार में धधिचि ने सर्वश्व


कर दिया त्याग।।


 


परोपकार दान नहीं भीख नहीं


प्रकृति प्राणी का दायित्व भाव है


क्या मतलब जब पेट भरा हो अपना कोई कोइ भूखा मर जाए।।           


 


अक्षम अधम शरीर पिपासा जीव जीवन का ही अंतर भूखे का भी छीन लेता निवाला परोपकार अपमान है।।            


 


भूखे को अपनी रोटी दे खुद भूखा रह जाता परोपकार मानवता का


नाता दाता सत्कार है।।


 


परमेश्वर की दे दुहाई इंसान


बन जाता कसाई आत्मा की परम् आत्मा परोपकार में जीजस सूली पर चढ़ जाता।।                  


 


सिद्धार्थ का सत्यार्थ बुद्ध अहिंसा परमो धर्मः का ध्येय धर्म मर्म परोपकार है।।


 


क्रूरता धूर्तता दानवता कपटी


युग ध्वंस विख्याता निहित स्वार्थ


में जीवन का तिरस्कार है।।


 


परोपकार पूण्य पापी पाप का दमन समन आत्म तत्व तथ्य का भान मान है।।


 


धर्म धैर्य धारण है विश्व धर्म बतलाता परोपकर सम धर्म


नहीं कर्म नहीं जन्म 


जीवन का व्यख्याता परोपकार है।।


 


परोपकार नर में नारायण का


दर्शन नर में नारायण मिल जाता


परोपकार समय समाज संवर्धन


सत्य जीवन दर्शन प्रमाण है।।


 


परोपकार सम्मान है।


परोपकार अभिमान है।


परोपकार मूल्य मूल्यवान है


परोपकार अनमोल है परोपकार


बेमोल है ।।


 


परोपकार तापसी का तप


जीवन का संधान है।।


परोपकार ईश्वर का याचक 


स्वर आगम निगम पुराण है।।


 


परोपकार कारक कारण समाज राष्ट्र युग निर्माण आधार है। परोपकार शिव् शंकर शम्भू कैलाश है।।


 


परोपकार की दिशा दृष्टि ईश्वर


अवसर उपलब्धि अंदाज़ा है। परोपकार में अल्लाह ईश्वर आराधना आजान है।।


 


परोपकार में गुरु वाणी 


परोपकार फ़क़ीर संत समाज है। परोपकार में ऋषि मुनियों की


त्याग तपश्या का युग वर्तमान है।।


 


परोपकार में प्रकृति पराक्रम


जीव जीवन प्राण है।


परोपकार में दरिया नदियां झरने


सागर झील पहाड़ है ।।


 


परोपकार में प्रकृति प्राणी प्राण है


कायनात ब्रह्माण्ड का परोपकार


बुनियाद है परोपकार में ईश ईश्वर


भगवान अवतार है।।


 


परोपकार में ग्रन्थ रामायण रामचरित मानस वेद पुराण कुरान


है परोपकार शक्ति सत्ता की परम्


शक्ति परमेश्वर का ज्ञान है।।


 


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


एस के कपूर श्री हंस

ये स्वतंत्रता दिवस


दूर हुई अमावस


शत्रु को करा विवश


माँ तुझको प्रणाम


 


आज़ादी का यह दिन


व्यर्थ है एकता बिन


स्वाभिमान का ये चिन्ह


 माँ तुझको सलाम


 


आज़ादी हमने पायी


संघर्षों की गाथा गाई


साहस शक्ति दिखाई


माँ तेरा ही सम्मान


 


दूर हुई ये गुलामी


आज़ादी पाई निशानी


बलिदान की कहानी


माँ यही अरमान


 


स्वाधीनता का संग्राम


आज़ादी दूसरा नाम


जन जन किया काम


पाया आत्म सम्मान


 


आज़ादी का आंदोलन


न्योछावर किया तन


तभी आया यह क्षण


आया आज़ादी नाम


 


निडर निर्भीक देश


हर भाषा और वेश


बांधे ये विजयी केश


*लाया यह अंजाम*


 


यह जय जय घोष


दमन किया वो रोष


जीत कर ही संतोष


सुनाया जीत गान


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


विनय साग़र जायसवाल

दिखाई दे रहे हैं फिर वही हालात पानी में


गयी फिर ज़िन्दगी की आज भी सौग़ात पानी में


हुस्ने मतला--


पता चल जायेगा होते हैं क्या असरात पानी में


ग़रीबों से कभी तो पूछिये हालात पानी में


 


उठीं ग़म की घटाएं फिर कहीं दिल के समुंदर से


लिखेंगी फिर कहीं आँखे कई नग़मात पानी में


 


सभी चेहरों पे घबराहट सभी की आँख रोती है 


कोई पूछे भी अब कैसे किसी की बात पानी में


 


वो दिल में आज भी महफ़ूज़ हैं ताज़ा गुलाबों से


गुज़ारे थे कभी जो पल तुम्हारे साथ पानी में


 


कभी आँखों में शोले थे कभी पहलू में अंगारे


लगाये आग रहते थे कभी दिन रात पानी में


 


कहीं बोतल खुलेगी औ'र कहीं छलकेंगे पैमाने


कोई रिन्दों के तो देखे ज़रा जज़्बात पानी में


 


निकालो हसरतें दिल की सजा लो दिल के काशाने


मुबारक हो तुम्हें *साग़र* मिलन की रात पानी में


 


विनय साग़र जायसवाल


सत्यप्रकाश पाण्डेय

घर घर आसुरी वृत्तियां जन्मी


तुम आ जाओ मनमोहन    


व्यथित होके रो रही मानवता


रक्षक बनके करो दोहन


   


कर्तव्य विमुख होकर मानव


प्रभु अनीति की राह चले


शुभकर्मों को देकर तिलांजलि


सदहृदयों को नित छले


 


कंश जरासंध शिशुपाल यहां


मानवमूल्यों का हनन करें


नित अबलाओं के चीर हरण


शिशुओं का वे दमन करें


 


वन वन घूम रहे साधु पाण्डव


कौरव कर रहे नंगा नाच


कपट पासे फेंक रहे हैं शकुनि


दुर्योधन के कटु नाराच


 


सन्त हृदयों पर रहम करो प्रभु


एक बार पुनः आ जाओ


छल कपट के काट के बंधन


स्व सत्ता का भान कराओ।


 


श्री युगलरूपाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सुनीता यादव


 


पद प्रधानाध्यपिका


 


विभाग बेसिक शिक्षा विभाग


 


निवास हरगांव,सीतापुर


 


साहित्यिक जीवन प्रारम्भ सितंबर2019


 


उपलब्धियाँ-


उत्कृष्ट शिक्षिका सम्मान सीतापुर, सम्मान पत्र अन्नपूर्णा सेवा संस्थान सीतापुर, काव्य शिरोमणि सम्मान हिंदी सभा सीतापुर,सम्मान पत्र काव्य कला निखार साहित्य मंच सीतापुर, कवच टीम सीतापुर में उत्कृष्ट कार्य हेतु प्राप्त सम्मान पत्र(आदरणीय श्री अखिलेश तिवारी जिलाधिकारी जनपद सीतापुर द्वारा),शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मान पत्र हस्ताक्षर सामाजिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा प्रदान किया गया।


 


 


इसके अतिरिक्त-


 


2013से अनवरत महिलाओं और बेटियों को प्रेरित करने के लिए महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम का आयोजन करना और एहसास पत्रिका का प्रकाशन।


मिशन शिक्षण संवाद मासिक पत्रिका में अभियान गीत और कविताओं का प्रकाशन।


एहसास पत्रिका में बेटियों और महिलाओं के लिए प्रेरक कविताओं का प्रकाशन,दिव्यांग भाई बहनों को प्रोत्साहित करना और उनकी मदद करना।


 


जीवन का उद्देश्य-


 


।। शिक्षा और साहित्य को उत्कृष्ट बनाना ।।


 


                    ।। सुनीता यादव।।


 


 


 


      योग लक्ष्य


                   कविता


 


 मन में यदि लक्ष्य योग का है,


 सबसे पहले युज को जानो।


 अंतर्मन में जो खंड- खंड, 


युज धातु जोड़ती है मानो।


           है योग प्रयोग पतंजलि का,


           है योग महर्षि अयंगर का ।


           होती है इससे बुद्धि शुद्धि,


           मन केंद्रित भाव बृहद मानो।


है योग ये सातों चक्रों का ,


ब्रह्मांड के पांचों तत्वों का।


मानव की निरोगी काया का,


 अद्भुत प्रयोग है यह जानो।


             प्रारंभ सूक्ष्म व्यायामो से ,


             वृक्षासन ताड़ासन जानो। 


             समयाभाव यदि हो जाए ,


            तो सूर्य नमस्कार को अपनाओ।


 है राज शरीर के सौष्ठव का ,


है राज प्रसन्न चित्त आत्मा का।


जीवन की सफलता का है राज,


यह बात सत्य है सब मानो।


 


                 सुनीता यादव


               प्रधानाध्यपिका


               हरगांव, सीतापुर


 


 


 


बदलते रिश्ते


 


 बदलते रिश्तो ने रुख किया तो,


 सारे रिश्ते बदल गए हैं।


 ना बाप की बेटा सुन रहा है,


 ना बेटे की बच्चे सुन रहे हैं।।


 


 घरों की सूरत कुछ ऐसे बदली,


 सारे रिश्ते दरक रहे हैं ।


 मां-बाप को छोड़ कर अकेले,


 बेटे बहू विदेश चले हैं।।


 


 शहर की चका चोंध देखने ,


कल जो गांव से शहर गए हैं।


देख मौत को सर पे अपने,


 फिर वो शहर से गांव चले हैं ।।


 


बदल गई हैँ सियासते सब,


 देश के नेता बदल रहे हैं।


 किये थे वादे जो संसद में, 


 आज उनसे से मुकर रहे हैं।।


 


              सुनीता यादव


             प्रधानाध्यपिका


          बेसिक शिक्षा विभाग


           हरगांव, सीतापुर


 


 


 


।।प्रथम अवधी रचना।।


                        लोकडॉउन


 


लॉकडाउन न हटैया ,मैं का करूं।


देश म। मची हैय्या दैय्या,मैं का करूँ।।


 


जब ते कोरोना दानव आवा,


देश म। छीछालेदर लावा।।


यू तौ कोईक न छोड़ैया, मैं का करूँ।


 


 पहिले पहिल जब आवा करोना ,


22 का सब बंद भे घरमा ।।


कागा बोले चढ़ि मढ़ैया, मैं का करूं ।।


 


दूसरे चरण मा 21 दिन दीन्हा,


 सगरी व्यवस्था रोक की कीन्हा।।


 तब्बो कोरोना न जवैय्या, मैं का करूँ ।।


 


बड़े जतन मा 21 दिन काटे,


 दिन और रात बराबर लागे।।


 21म जुडिगे 11 भैया ,मैं का करूं।।


 


 एक एक पल है भारी सबका,


 बैठे बूढ़े युवा और लरिका।।


 घरम। मची हैय्या दैय्या मैं का करूं ।।


 


बड़ी आश मा सब दिन कटिगे,


सोचेन दुःख हमरेऊ सब मिटिगे।।


खुलिगई ठेकी दैय्या दैय्या, मैं का करूं ।।


 


लोकडॉउन न हटतैय्या, मैं क्या करूं।।


देशवा म मचि हैय्या दैय्या, मैं का करूँ।।


                              सुनीता यादव


                             प्रधानाध्यपिका


                     बेसिक शिक्षा विभाग


                             हरगांव, सीतापुर


 


 


 


।। सुनीता के दोहे ।।


गुरु की महिमा है बड़ी ,गुरु ज्ञान की खान ।


गुरु से लेकर ज्ञान को, बच्चों बनो महान।।


सुनो सब बच्चों बनो महान।।


बच्चों सुन लो ध्यान से ,गुरु से ले लो ज्ञान ।


 बिना गुरु के ज्ञान के ,कोई न बना महान ।।


सुनो सब कोई न बना महान ।।


विद्यालय है खान रतन की,इसमें आओ रोज ।


रत्नों से जीवन रचो ,करो एमडीएम भोज ।।


 सुनो सब करो एमडीएम भोज ।।


मिलो मोबाइल पर गुरुजन से, करो पढ़ाई खूब।। दीक्षा प्रेरणा ऐप से, ले लो ज्ञान अनूप।।


 सुनो सब ले लो ज्ञान अनूप ।।


पढ़ लिख कर आगे बढ़ो ,पाओ सब सम्मान ।सम्मानों के ढेर से , बढे मात पिता का मान ।।


सुनो सब बढे मात पिता का मान।।


                           सुनीता यादव


                         प्रधानाध्यपिका


                         हरगांव,सीतापुर


 


 


 


*वतन को नमन*


 


है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


भार सहकर तदपि आज जीवन दिया।


धैर्य रखकर मुसीबत रवाना किया।


मातृ रत्नावती का करें अनुगमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


पितृवत स्नेह संबल हमेशा दिया।


हो मुसीबत लड़ें वीर जीवन जिया।


आज प्यारे गगन पर फिदा है चमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


राष्ट्र के प्रेम बिन हैं अधूरे सभी।


देश से ही हुए आज पूरे सभी।।


हो सजग आज हम सब करें अब मनन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


--सुनीता यादव


 


 


अनिता तोमर ‘अनुपमा’


मेरे सपनों का भारत


 


निज संस्कृति को अपनाकर, इस विश्व की दिव्य स्थली बनेगा।


वेद-पुराणों और संस्कारों से, जन-जन का ये अंत:करण भरेगा।।


सुंदर स्वर्णिम फलक पर, फिर-से इसका नाम जगमगाएगा।


एकता और अखंडता को देख, दुश्मन भी लोहा मान जाएगा।।


 


उत्सव रूपी विविध अलंकारों से, मिलकर इसका श्रृंगार करेंगे।


उत्तर से दक्षिण तक, हर भारतवासी की सकल पीड़ा को हरेंगे।।


अमीरी-गरीबी की रेखा मिटेगी, रोशन होगा हर घर का कोना।


कृषि प्रधान मेरे देश की धरती, दिनोंदिन उगलेगी हरा सोना।।


 


विध्वंसक शक्तियों का होगा नाश, ज्ञान दीप चहुँ-ओर जलेगा।


सड़ी-गली कुरीतियाँ मिटेंगी, नारी को वही सम्मान मिलेगा।।


विश्व शांति के महायज्ञ में, जलाकर मशाल संपूर्ण तमस हरेगा।


कर्मों के चंदन टीके से, हर भारतवासी इसका अभिषेक करेगा।।


 


अनिता तोमर ‘अनुपमा’


(स्वरचित एवं मौलिक रचना) 


3-B गोल्ड नेस्ट अपार्टमेंट, मुर्गेश पाल्या


बेंगलुरु


सुनील कुमार गुप्ता 

कविता:-


        *"कर्म"*


"त्यागमय हो जीवन सारा,


पल-पल ऐसा करो कर्म।


जीवन-पथ पर चलते-चलते,


अपना तो निभाओ धर्म।।कथनी करनी के अंतर का,


यहाँ कुछ तो पहचानो मर्म।


सत्य पथ पर चल कर साथी फिर,


भूल न जाना अपना कर्म।।


स्वार्थ में डूबा जीवन जो, 


होगा वो ऐसा अधर्म।


 


जीवन संबंधो में साथी,


फिर होगी न कोई शर्म।।


 


सुनील कुमार गुप्ता 


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अदभुत रूप तुम्हारा मोहन


आकर्षित जग को करता


हतास निराश जग जीवन के


हृदय को प्रमुदित करता


 


अंधकार से घिर जाता मानव


जब दिखती न कोई राह


परम् ज्योति हे परम् प्रकाशक


तब बनते तुम्ही हमराह


 


जीवन मूल्यों के आधार तुम्ही


नाथ तुम्ही सृष्टि संचालक


अज्ञान ग्रस्त अबोध सत्य के


स्वामी बन जाओ चालक।


 


श्री माधवाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

पिता गगन माता धरा, 


                    और विश्व परिवार।


मातु-पिता ही विश्व की, 


                    रचना के आधार।


 


पिता बिना सच मानिए, 


                    वैसे ही परिवार।


छप्पर बिन ज्यों झोपड़ी, 


                  महल बिना आधार।


 


जड़ बापू को मानिए, 


                    वृक्ष अगर परिवार।


जिसके दम पर झेलता,


                   आॅ॑धी की रफ़्तार।


 


पिता बिना भाए नहीं, 


                  खुशी भरा संसार।


ज्यों साड़ी है नवलखा,


                   बिन प्रकाश बेकार।


 


पिता हमारी ढाल है, 


                 दुनिया यदि तलवार।


आगे रहकर झेलता, 


                   वो ही सारे वार।


 


             राजेंद्र रायपुरी


नूतन लाल साहू

सबो दिन एके नइ रहय


अब रात पहा गेहे


उत्ती ललमुहा होगे


नवा बिहनिया आवत हे


न चले निरन्तर काल के जोर रे संगी


अब सुग्घर दिन बहुरावत हे


ये रसायन खातू के मारे


खेती परती लहुटत हे


गऊ पालन ले टिकाऊ खेती हो ही


गोबर कचरा खातू बनही


कम खरचा में गऊ मूत हा


रोग बीमारी ल दुर करही


गोधन न्याय योजना शुरू होंगे


अब रात पहा गेहे


ऊत्ती ललमुहा होगे


नवा बिहनिया आवत हे


न चले काल के जोर रे संगी


अब सुग्घर दिन ह बहुरावत हे


मय आंव किसनहा


मोर संग म नांगर बइला


नांगर बइला देवी देवता


अन्न हे लक्ष्मी माता


हरियर भुइया सुग्घर लागे


खेतखार मोर जिनगी हावय


सावन म बरसे रिमझिम रिमझिम


भादो म झमाझम बरसे


खेत ह पथरा होवत हे


बियासी करे बर झन छोड़व भइया


रसायन खातू म अब्बड बीमारी


कम्पोस्ट खातू के उपयोग करही किसनहा


गोधन न्याय योजना शुरू होंगे


अब रात पहा गेहे


उत्ती ललमुहा होंगे


नवा बिहनिया आवत हे


न चले निरन्तर काल के जोर रे संगी


अब सुग्घर दिन बहुरावत हे


 


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

घर में ही रहें आप कि अभी


कॅरोना का बुरा हाल है।


इस दुष्ट कॅरोना की चल रही


अभी भी वक्री चाल है।।


तुम अमर हो कि तुम्हें तो


कॅरोना हो नहीं सकता।


यह तो बस तेरा एक खोखला


ही वहमो ख्याल है।।


 


अभी तो बस दूर दूर से ही आप


दुनियादारी को निभाइये।


स्तिथि को खूब समझिये और


जरा समझदारी दिखाइये।।


खुद बचें इस महामारी से और


औरों को भी बचाइये आप।


यह सावधानी अपने घर परिवार


में भी आप बतलाइये।।


 


यह मान कर ही चलो कि सामने


वाले को कॅरोना है।


तेरा उससे मिलने का मतलब कि


तुझको भी होना है।।


क्यों जान यूँ ही अपनी जोखिम 


में डाल रहा है तू।


क्यों लापरवाही में फंस कर बस


तुझको रोना धोना है।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


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