सुनीता असीम

ये मुआ मोह छोड़ता ही नहीं।


मोक्ष का मार्ग खोजता ही नहीं।


***


बोल कुछ भी जो बोल देता है।


क्यूं ये अंजाम सोचता ही नहीं।


***


देख अन्याय को रहो चुप बस।


आपका ख़ून खौलता ही नहीं।


***


ख़ार इसकी जुबान से निकलें।


प्यार जीवन में घोलता ही नहीं।


***


इक गलत बात भी असर डाले।


बोल से पूर्व सोचता ही नहीं।


 


सुनीता असीम


सुनील कुमार गुप्ता

मनाते रहे साथी,


वर्षानुवर्ष-


जश्न आज़ादी का।


अक्षुण रखने को आज़ादी,


भूले न बलिदान-


अमर शहीदो का।


जला कर दीप पग पग,


जीवन में हर पल-


सम्मान करें उनका।


सद्कर्मो से ही साथी,


पाओगे लक्ष्य-


जीवन का।


सत्य-अहिंसा और धर्म की,


लहराती रहे-


ध्वज पताका।


तभी बना रहेगा,


स्वाभिमान हमारा-


और राष्टीय ध्वज का।


मनाते रहे साथी,


वर्षानुवर्ष-


जश्न आज़ादी का।।"


 


सुनील कुमार गुप्ता


सुनील कुमार गुप्ता

स्वतंत्रता दिवस मनाएँ


स्वतंत्रता तो स्वतंत्रता है साथी,


हर हाल में जीवन में-


करें उसका सम्मान।


स्वतंत्रता दिलाने में साथी,


दिया जिसने बलिदान-


करना न उनका कभी अपमान।


स्वतंत्रता तो स्वतंत्रता है साथी,


इसमे भी सदा-


अपनत्व का रखे ध्यान।


स्वतंत्रता के साथ सबको साथी,


मिले मौलिक अधिकार-


करे र्दुउपयोग बढ़े अज्ञान।


पराधीनता से बड़ा दु:ख नही,


स्वतंत्रता से बड़ा सुख-


इसको सदा रखना ध्यान।


स्वतंत्रता दिवस मानाएँ वर्षानुवर्ष,


इससे बढ़ेगी-


जग में देश की शान।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


प्रखर दीक्षित

वंदित माता विश्व व्यापिनी, 


       जय भारत जय भारती....२


वंदे मातरम् ...... वंदे मातरम्....३


 


शस्य श्यामला धरा सुपावन, खॆत बाग खलिहान हरे।


श्रम के तप से उपजे सोना, विपुल खाद्य धन धान्य भरे।।


           जय किसान विज्ञान जयति जय,


                 सुभगे अर्चन आरती।।


            जय भारत जय भारती.


 


नदियों का स्पंदन जीवन, मचले गिरिनद झर झर निर्झर ।


मदिर सुहावन वनज समीरण, हिम आच्छादित शैल शिखर।।


            पद प्रच्छालन सागर करता,


               . प्राची रूप संवारती।।


            जय भारत जय भारती.


 


वीर उर्वरा वसुन्धरा यह, शौर्य पराक्रम बलदानी।


सुदृढ़ सीमा जिनसे , शुभ्र भाल माँ कल्यानी।।


             शान तिरंगा को शत वंदन,


                     संतति जय भापत उच्चारती।।


             जय भारत जय भारती.


 


वंदित माता विश्व व्यापिनी, 


       जय भारत जय भारती....२


वंदे मातरम् ...... वंदे मातरम्....३


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद(उत्तर प्रदेश)


सुनील कुमार गुप्ता

पनों को साकार कर


सार्थक हो जीवन सारा,


किसी का न अपमान कर।


देखे सपने पल-पल यहाँ,


सपनों को साकार कर।।


सत्य-सत्य है साथी यहाँ,


असत्य ना स्वीकार कर।


दु:ख हो या सुख साथी यहाँ,


धीरज और विश्वास धर।।


पूरे हो सके सपने फिर,


हर पल तू प्रयास कर।


देखा है सपना यहाँ जो,


सपनों को साकार कर।।


सुनील कुमार गुप्ता


डा. नीलम

सुनो कान्हा 


क्या तुम कभी भी


समझ सके


राधे के मन की पीर


क्या कभी देखी


तुमने उसकी


आँखों में 


आँसूओं की भीर


तुमने तो हर बार 


अपनी करनी को


नियति का नाम दिया 


और हर बार ही


तुमने राधा को


त्याग दिया 


माना तेरे नाम से पहले


आता है राधा का नाम 


पर तेरे निर्णयों में 


कब, कहाँ खड़ी है वो


लज्जा सखी द्रोपदी की 


तूने ही तो थी बचाई


फिर राधा को छोड़ दिया


जो लोक लाज तज


तेरे पीछे आई


तू तो कर्म के नाम पर 


जा बैठा मथुरा धाम


क्या गुजरी वृंदावन पे 


क्या समझेगा श्याम 


सुनो न कान्हा 


तुमतो थे न्याय पथगामी


फिर क्यों अन्याय से


काम लिया 


कर्ण के कवच, कुंडल 


उतरवा


भाई के हाथों भाई को


मरवा दिया 


जानते थे ना तुम तो


माँ गांधारी की


तपशक्ति को


फिर भी तुमने छल से


दुर्योधन की जानु को


आवृत करा कमजोर 


रहने दिया 


बार -बार न्याय का


देकर हवाला 


अन्याय को पोषित किया


पाँच पाण्डवों से


सौ कौरवों का संहार करवा


द्रोपदी को महाभारत का


कारक बनाया 


सच कान्हा तुमने 


हर बार 


करके सारे कृत्य आप


नारी को ही आधार बनाया ।


 


          डा. नीलम


सत्यप्रकाश पाण्डेय

समझे जिसे फूल ए गुलिस्तां


वो काँटों की बाढ़ निकली


मिलेगा सकूं ए दिल सुरभि से


सुगन्ध नहीं झाड़ निकली


 


दिख रहा रूप सौंदर्य का कोष 


सुहाना और अति मनोहर


अन्तर्मन से उतना ही जहरीला


जीवन घातक नहीं शोभर


 


रिझाती सी सम्मोहित सी करती


जिंदगी में उल्लास भरती


जग को सजाती संभारती सी वो


उन्नति कभी ह्रास करती


 


कौंन है वह अनुपमेय सुंदरी सी


जिसे समझ नहीं पा रहा


है वह खुशी भी और बेरुखी भी


जिसे हयात कहा जा रहा।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनीता असीम

सोए हुओं के हाथ में तुम इक मशाल दो।


दिल से मलाल ज़िन्दगी के सब निकाल दो।


***


इक हाथ कोई मार दे चहरे पे आपके।


फिर ये न हो कि दूसरा अपना ही गाल दो।


***


गर थक गए हो आप तो आराम भी करें।


पर मुस्कराके एक हसी भी उछाल दो।


***


सब दुश्मनी निकाल दो दिल से जनाब तुम।


जो भी हुआ है उसपे तो मिट्टी ही डाल दो।


***


कुछ कर दिखाओ आपका लें नाम भी सभी।


सबसे अलग मुकाम बना इक मिसाल दो।


 


सुनीता असीम


डॉ बीके शर्मा 

हार के उस पार चलूं


संग फिर आधार चलूं


रिश्ते नाते छोड़ चलूं मैं


बंधन सारे तोड़ चलूं मैं 


आ तेरे साथ चलूं मैं 


लोभ मोह सब मार चलूं


हार के उस पार चलूं-1


 


तन की पीड़ा त्याग चलूं मैं


जीवन बीड़ा त्याग चलूं मैं


चंचल मन मार चलूं मैं 


ले के कर्मों का सार चलूं 


हार के उस पार चलूं-2


 


दिन को चलूं रात चलूं मैं


बात चलूं बे बात चलूं मैं 


लिया जो "कर" चुकता चलूं मैं 


छोड़ना कोई उधार चलूं 


हार के उस पार चलूं-3


 


 क्यों देह धर बेकार चलूं मैं 


किस से चाल पर चाल चलूं मैं 


औरों से क्या विचार चलूं मैं 


आ संग दे छोड अंधकार चलूं


 हार के उस पार चलूं -4


 


छोड़ भंवर बाहर चलूं मैं 


क्यों प्रिय बेकार चलूं मैं 


छोड़ ये मझधार चलूं मैं


आं शून्य के पार चलूं


हार के उस पार चलूं-5


 


थाम हाथ संग ले चल साकी 


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी 


इस धार से उस आधार चलूं 


हार के उस पार चलूं-6 


 


 डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


संजय जैन

मिलें अपनो का प्यार हमको,


तो सफलता चूमेंगी कदम।


रहे सभी का अगर साथ, 


तो जीत जाएंगे हर जंग।


और मिल जाएगा हमको,


खोया हुआ आत्म सम्मान।


इसलिए हिल मिलकर, 


 रहो देशवासियो सब।।


 


तुम्हें कसम भारत मां की, दिखाओ अपना जौहर तुम।।


तुम्ही तो कणधार हो,


अब भारत माँ के बच्चों।


इसलिए में कहती हूँ ,


बहुत छला हैं गद्दारों ने।


तुम्हें अपनी माँ की रक्षा, 


 करने उतर जाओ मैदान में।।


 


बात जब माँ की आती हैं,


तो भूल जाते जाती धर्म।


और कस के कमर अपनी,


कूद जाते रणभूमि में हम।


और दिखा देते बहादुरी,  


 अपनी उन गद्दारो को।


तभी तो छोड़कर भाग जाते, 


वो जंग के मैदान से।।


 


उन सभी वीर बहादुर सैनानियों को सलाम करते है जिन्होंने हमे आज़ादी दिलाई और अपने प्राण भारत माँ पर निछावर कर दिए।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

एक दिन तेरी डोली सजाउंगा मैं,


अपने हाथों से तुझको बिठाउंगा मैं। 


 


खूब पढ़ लो अभी मेरे रहते हुए,


वक्त आने दो दुनिया दिखाउंगा मैं। 


 


तुम तो नन्हीं परी सी मेरी जान हो, 


तेरे सपनों को सच कर दिखाउंगा मैं। 


 


रो भी सकता नहीं तेरा बाबा हूँ मैं, 


अपनी बेटी को खुशियाँ लुटाउंगा मैं। 


 


हो गया है सबेरा सो न जाना कहीं, 


पाठशाला में तुझको ले के जाउंगा मैं। 


 


तेरे चाहत की झोली को भरते हुए।


उम्मीदों का दीपक जलाउंगा मैं। 


 


अश्क़ आँखों में अपने न लाना कभी, 


अपनी बेटी को जी भर पढ़ाउंगा मैं।


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश


रश्मि लता मिश्रा

मैं हिंदुस्तानी


 


हिंदुस्तान मेरी जान,


 मेरी यही कहानी ।


फक्र मैं हिंदुस्तानी  


फक्र मैं हिंदुस्तानी।


 


ऊँचे पर्वत गहरी नदियाँ


बल खाता सागर है 


नदियों को कहते हैं माता 


पूजें पीपल जड़ है 


पावन गंगा माता का है ,


झर झर बहता पानी।


 फक्र में हिंदुस्तानी।


 


उत्तर ,दक्षिण, पूरब, पश्चिम 


मिलकर सारे एक हैं ।


एक बनाएं अपना भारत ,


सब के इरादे नेक हैं ।


 जात -पात और धर्म भेद की


हुई पुरानी कहानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


 सीमा पर तैनात हैं प्रहरी ।


अपनी आंख बिछाए।


 भारत माता को तड़पाने ।


गर कोई दुश्मन आये।


गांव घरों से निकल पड़ेंगे ।


बनकर हम बलिदानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


विश्व गुरु की राह चलाएं ।


भारत अपने प्यारे को ।


विश्व ताज सर पर रख वाएँ ।


भारत अपने न्यारेको ।


पूरी दुनिया के वतनो में


  भारत का नहीं सानी।


 फक्र मैं हिंदुस्तानी।।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


निशा अतुल्य

मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं 


मन निर्मल कर दो ।


भर दो भक्ति रस की प्याली


भव से पार कर दो ।


 


ज्ञान का उपदेश दिया जो


कर्मपथ विस्तार करो


रस धारा बहा प्रेम की 


प्रेम मय संसार करो ।


तारो मुझको भव से कान्हा


बेड़ा पार कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


कैसी विपदा आन पड़ी ये


राहें सरल करो


लूट रहा जग मिल कर मुझको


प्रभु तम दूर करो ।


आई शरण तुम्हारे प्रभुवर


प्रभु दर्शन दे दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


झूठे सारे जग के बंधन


मुझे सहारा दो ।


टूटे न कभी आस जिया की


मन उज्ज्वल कर दो ।


सपने हो सब जग के पूरे


ऐसा जग कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


सुन्दर ये संसार बनाया 


कष्ट सब के हर लो ।


तुम तो पालन हारे प्रभु 


जग का ध्यान धर लो ।


कष्ट निवारो सब के प्रभु तुम


भाव सरल कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


निशा अतुल्य


राजेंद्र रायपुरी

खाओ-पीओ मौज़ उड़ाओ,


                       कल की चिंता छोड़ो।


साथ न जाने वाला भैया, 


                      धन इतना मत जोड़ो‌।


 


काम वक्त पर आएॅ॑ रिश्ते,


                    रिश्तों को मत तोड़ो।


टूट गए हैं रिश्ते जो भी, 


                    उन्हें आज ही जोड़ो।


 


दिल होता शीशे सा नाज़ुक,


                   दिल न किसी का तोड़ो।


तोड़ दिया दिल धोखे से तो,


                   उसे प्रेम से जोड़ो।


 


चुभें तीर से दिल में ऐसे, 


                   शब्द कभी मत बोलो।


बोल, बोलकर मीठे-मीठे,


                   कानों में रस घोलो।


 


जो बोओगे वो काटोगे, 


                    शूल बीज मत बोओ।


दुखी अगर है यार पड़ोसी,


                     चैन नींद मत सोओ।


 


जो आता है वो जाता है,


                     अमर कौन है बोलो।


जाने से पहले बाबुल घर,


                    दाग चुनरिया धो लो।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

पग-पग बने जीवन सहारा


दिग-भ्रमित रहा जीवन साथी,


विचारो से मिला सहारा।


छोड़ सत्य-पथ जीवन में साथी,


यहाँ फिर अपनो से हारा।।


परपीड़ा अनुभूति संग-संग,


यहाँ बीता जीवन सारा।


स्वार्थ नहीं जीवन में साथी,


परमार्थ ही बने सहारा।।


घट-घट में बसे प्रभु साथी,


क्या-सोचे मन का हारा?


अन्त:घट में बसे जो प्रभु साथी,


पग-पग बने जीवन सहारा।।


 सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जीवन पै रहे तेरा प्रभाव..


 


बिन तेरे कहां चैन जगत में


हे नटवर नन्दकिशोर


तेरे बिना है चहुँओर अंधेरा


तुम हो तो स्वामी भोर


 


अज्ञान ग्रसित होकर मानव


भटक रहा है दलदल में


ज्ञान ज्योति का आलोक मिले


निर्बल सबल बने पल में


 


मेरे मोहन बन जाओ आलम्बन


हीन भाव से मुक्त करो


जीव मात्र को समझूँ में अपना


उदार भाव से हिय भरो


 


जगतनियन्ता आधार जगत के


रखो सत्य पर दया भाव


सोते जगते बस स्मरण तुम्हारा


जीवन पै रहे तेरा प्रभाव।


 


श्री कृष्णाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


नूतन लाल साहू

बदलत हे जिनगानी


लईकामन अब नई पकड़य


तितली अउ फुरफुंदी


नदागे ढेंकी कुरिया अउ जाता


माटी के कुरिया घलो नदावत हे


अब नई हे फुरसत, सबो झन काहत हे


वाह रे कम्प्य़ूटर अउ मोबाइल


तोर टावर ले, चिरई चिरगुन नदावत हे


कइसना होथे, लइकई


लइकापन ल लइका मन भुलावत हे


चूल्हा के आगी, घलो नदावत हे


इही पायके, लम्बा उमर ह सिरावत हे


लइका मन अब नई पकड़य


तितली अउ फुरफुंदी


नदागे ढेंकी कुरिया अउ जाता


माटी के कुरिया घलो नदावत हे


अब नई हे फुरसत, सबो झन काहत हे


जंगल कोन ल कहय,अपन पीरा


गांव म नइये,अब पीपर के छइया


मोर मन पूछथे,मोरेच ले


का ये ही नीव ऊपर, रचबे तै अपन


नारी ल देवी कहवइया समाज


वोला इंसान काबर नइ मानत हे


काबर होवत हे, अपहरन अउ बलतकार


तकलीफ़ म घलो, रहिथे चुपचाप


पिंजरा म बइठे मइना,देखत हे अगास


कतका गहिरागे हे, अंधियार


अइसना म नदा जा ही, एक दिन पबरित अहार


लइका मन अब नई पकड़य


तितली अउ फुरफुंदी


नदागे ढेंकी कुरिया अउ जाता


माटी के कुरिया घलो नदावत हे


अब नई हे फुरसत, सबो झन काहत हे


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

अभी वक़्त अनुकूल


नहीं है बाहर आने जाने को।।


 


बुला रही खुली हवा पर अभी


तू मत बाहर निकल।


लगी है आग मौत की तो तू


मत जाकर जल।।


बस किताबी ज्ञान नहीं है यह   


दो ग़ज़ की दूरी।


हर कोने में आज है कॅरोना मत


फँसना तू इस दल दल।।


 


बन रही दवा पर अभी भी कुछ


वक़्त बाकी है।


अभी भी जिम्मेदारी इसमें बहुत


सख्त बाकी है।।


कम से कम मिले बाहर लोगों से 


अभी भी आप।


कि दिखते अच्छे भले पर कहीं


कॅरोना रक्त बाकी है।।


 


यह बस एक महामारी ही नहीं


मानो एक चुनौती है।


बस अभी हर किसी के लिए जिंदा


रहने की मनौती है।।


बस कुछ दिन और काम लेना है


धैर्य विवेक समझदारी से।


रखना ख्याल परिवार का बनना


नहीं एक पनौती है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली


नन्द कुमार मिश्र (वरिष्ठ पत्रकार )

आजादी की लड़ाई में लखीमपुर खीरी का विशेष योगदान


चार को फांसी दी गयी 3 जेल में कैद के दौरान हुए शहीद


दो को दी गयी 12 बेंत की सजा


भारत छोड़ो आंदोलन में 326 स्वतंत्रता सेनानी गए जेल


नंद कुमार मिश्र


(लेखक पत्रकार है व प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम आसरे शुक्ल का नाती व आश्रित है)


लखीमपुर खीरी। आजादी की लड़ाई में लखीमपुर खीरी का विशेष योगदान रहा। 12 नवम्बर 1929 में महात्मा गांधी दलित उत्थान के लिए चंदा इकट्ठा करने लखीमपुर आये। मेमोरियल हॉल में बैठक की। उन्हें 3146 रुपया5 आना 3 पैसा का चंदा दिया गया। 28,29,30 सितम्बर 1928 में जवाहर लाल नेहरू ने लखीमपुर में राजनैतिक कान्फ्रेन्स में भाग लिया। 22 जन व 22 जून 1940 में दो बार नेता जी सुभाष चंद्र बोस लखीमपुर आये।26 अगस्त 1920 को तीन सेनानियों नसीरुद्दीन मौजी, माशूक व बशीर ने तत्कालीन ब्रिटिश डीएम विलोबी का सर तलवार से काट दिया। तीनो को फांसी दी गयी। रम्पा तेली को अंग्रेजो ने गोली से उड़ा दिया। देवतादीन व नत्थू लाल सजा के दौरान बीमारी से जेल में ही शहीद हो गए। ग्राम भीखमपुर के युवा राज नारायण मिश्र को अंग्रेजो ने शस्त्र इकट्ठा करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। 9 दिस 1944 को जिला जेल खीरी में 24 वर्ष की आयु में राज नारायण मिश्र को फांसी दी गयी। डीएम लखनऊ ने पार्थिव शरीर परिजनों को पंडित रामआसरे शुक्ल का शपथ पत्र लेने के बाद सौंपा। गंगाघाट कानपुर में इस शहीद का अंतिम संस्कार किया गया। लखीमपुर में श्री मिश्र की मूर्ति लगी है। पंडित बंशीधर मिश्र कई वर्ष जेल में रहे। 1957, 1962, 1967 में विधायक रहे। यूपी के काबीना वन मंत्री रहे। अवधी सम्राट पंडित बंशीधर मिश्र कई वर्ष जेल में रहे और 1957 में विधायक रहे। ठाकुर करन सिंह व शिव प्रसाद नागर ने अंग्रेजों की सजा को भोगा और आजादी के बाद विधायक भी रहे। पण्डित राम आसरे शुक्ल नमक सत्याग्रह 1920, 1932 के सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन , 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल में गए। 12 बेत की सजा भोगी। 1930 में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के श्री शुक्ल डिक्टेटर भी रहे। कई माह अकेले ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन किया। शुक्ल के पुत्र हरी राम शुक्ल भी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए। पिता व पुत्र दोनो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। शासन ने शहपुरा कोठी चौराहा से गुरु गोविंद सिंह चौक रोड का नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम आसरे शुक्ल मार्ग के नाम से रखने का आदेश दिया। पंडित बंशीधर शुक्ल के नाम से भी मार्ग का नामकरण किया गया। हर स्वतंत्रता सेनानी की बड़ी गौरवगाथा है। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है देखना है बोझ कितना बाजुवे कातिल में है कहकर अंग्रेजो को ललकारने वाले बहादुरों / शहीदों को नमन।


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार राजहंस मिश्र


माता:- श्रीमती जमुना देवी


पिता:- श्री आशाराम मिश्र


पता:-बाजार वार्ड धौरहरा खीरी-262723


शिक्षा- बी.एस. सी, डी एल एड, कंप्यूटर डिप्लोमा(CCC,ADCE), योग में डिप्लोमा।


कार्य: प्राइवेट स्कूल में शिक्षक , दिल्ली की संस्था 'योगा करो' में योग शिक्षक।


मो0 :- 9838992915, 8419882915


E-mail:- rajhans2915@gmail.com


rajkattyan111@gmail.com


 


कविता -1


झरना ,पत्थरों से छूट के बना है।


दुनिया मे जो भी बना है, टूट के बना है।।


 


वक़्त ने तोड़ दिया था,कभी जिस डाली को


वहाँ से कोपलें ,देखो हजार फूटीं हैं।


फूल ने रोजगार फिर से दिया माली को


बन के उम्मीद की ,देखो बाहर छूटीं हैं।।


 


पत्तो मुस्कुराओ,....... कुंभलाना मना है


दुनिया के में जो भी बना है ,टूट के बना है।।


गर्दिशें तोड़ देंगी तुझको, टूट जाने दे।


जो रूठता है तुझसे, उसको रुठ जाने दे।।


तेरा जब वक्त आये ,सबको मना लेना तू।


फिर टूटने के लिए, ख्वाब सजा लेना तू।।


 


मग़र......... मंजिल तक पहुचने से पहले, अलसाना........ मना है।


दुनिया में जो भी बना है टूट के बना है।।


 


कविता-2


सिक्कों की मोहताज हमेशा रही जिन्दगी मगर....।


हम जमीर वालो से जमीर बेचा न गया।।


गलत को सही कभी नही कहा 


झूठ हमसे तो बिल्कुल देखा न गया।।


कितने दरिया थे निकले डुबाने मगर....


मुसाफिर पागल सा था उनसे रोका न गया।।


लाख जंजीरे बांधी गयी पांव में।


सबने कसके लगाया नमक घाव में।।


 


जलजालती चुभन आँख में रह गयी।


टीस दिल मे जो थी, कान में कह गयी..


मतलबी लोगो के दिमाग से धोखा न गया।


मुसाफ़िर पागल था उनसे रोका न गया।।


 


कविता-3


हे मातृ तुल्य,हे सर्वश्रेष्ठ, 


हे राष्ट्र तुम्हारी जय होवे।


हम जीवन का क्षण-क्षण दें दें न कभी तुम्हारी क्षय होवे।।


 


हे मातृ भूमि, हे पूज्य भूमि,


मस्तक पर ऐसे राजो तुम।


ज्यों स्वर्ण मुकुट हो राजा का 


इस मूढ़ पे ऐसे साजो तुम।


 


हैं कर्जदार हम सब तेरे....।


तेरा तुझको सब अर्पण है।।


यदि राष्ट्र हेतु जीवन आये


तो प्राणों का भी तर्पण है।।


 


हे सिंह सदा तुम सिंह रहो....


ना झुको ....प्रसिद्धि नित नय होवे।


हे मातृ तुल्य, हे सर्वश्रेष्ठ,


हे राष्ट्र तुम्हारी जय होवे।।


 


 


कविता-4


"हौसला"


अभी गिरते हैं तो गिरने दो, के चलना सीख जाएंगे।


 मुश्किलें हार जाएंगी, इरादे जीत जाएंगे।।


 


सबर रख, तपिस झेल, फिर चमकेगा एक दिन


तेरी उम्मीद का सूरज, निकलेगा एक दिन


परिन्दे डगमगायें तो , उड़ना सीख जाएंगे।


मुश्किलें हार जाएंगी, इरादे जीत जाएंगे।।


 


पसीना डाल धरती पर, और बंजर हरा कर दे


तू लोहे को पिघला कर, सोने सा खरा कर दे


इन हाथों में , नसीबों की , लकीरें खींच लाएंगे।


मुश्किलें हार जाएंगी, इरादे जीत जाएंगे।।


 


कविता-5


मिलो तो बताऊं दर्द कितने बे-हिसाब रखे हैं


तकिए के नीचे अब भी कुछ अधूरे से ख्वाब रखे हैं।


तारीखें, वक्त, इंतजार ,सबर सब लबालब भरा है.......


सहेज कर मैंने तुम्हारे हिस्से के गुलाब रखे हैं।।


 


के रोज शाम गुज़र जाती है ऐसे तन्हा


तेरी तस्वीर मिले तो भी बात बन जाये।


तेरे दामन मे सिमट जाउं भंवरा बन के


काश ऐसी कोई छोटी सी रात बन जाये।


तुम आये ....हाथ थामा और छोड़ा ही नही


आह.... कैसे अजीब ये पागल से ख्वाब रखे हैं।


सहेज कर मैंने तुम्हारे हिस्से के गुलाब रखे हैं।।


 


 


 डॉ बीके शर्मा 

 अर्जुन उवाच


 


आप हैं शांत हैं 


आप ही आधार हैं 


आप ही परम हैं


आप ही विचार हैं-1


 


आप ही मनन हैं 


आप ही पठन हैं 


आप ही निरंतर 


आप ही चिंतन हैं-2


 


आप ही कर्ता हैं


आप ही प्रधान हैं 


आप ही सुगम हैं 


आप ही महान हैं-3


 


आप ही रहस्य हैं 


आप ही अर्थ हैं 


आप ही तत्व हैं


आप ही समर्थ हैं-4


 


आप से कर्म हैं


आप से धर्म हैं 


आप तो अनंत हैं 


आपसे ही मर्म हैं-5


 


आप मेघ वर्ण हैं


आप ही परिणाम हैं


आप तो अजय हैं 


आप से ही नाम है-6


 


आप से ही तन है 


आप से ही मन है 


आपसे ही जीव है 


आप से ही जन है-7


 


आप से ही वेद हैं 


आपसे ही ज्ञान है 


आप परम पुरुष हैं


आप में ही ध्यान है-8


 


आप तो पिता हैं


 हम संतान हैं 


आप तो ज्ञाता हैं 


हम अनजान हैं-9


 


आप ही सीता हैं 


आप ही राम हैं 


आप ही राधा हैं


आप ही श्याम हैं-10


 


 डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


प्रखर

वदी अष्टमी भाद्रपद, घिरी घठा घनघोर।


जन्मे कारागार मँह, कान्ह श्याम चितचोर।।


 


सोलह कला निरुपणा, श्रीहरि को अवतार।


तिथि अष्टमी काल सम, कीम्ह असुर संहार।।


 


दुर्गेश्वरि की अष्टमी, सौख्यप्रदा वर देय।


करै मनोरथ सुफल शुभ, चिंत ताप हर लेय।।


 


कदन्ब तमाल तरु घने, बहति जमुन जलधार।


गोचारण तहँ रास रस, गोपी गोप कुमार।।


 


प्रखर


फर्रुखाबाद


शिवांगी मिश्रा

बाजे बधइया आज जनमें कन्हैया ।


धन्य धन्य मइया घर आयो कन्हैया ।।


जय कन्हैया लाल की जय कन्हैया लाल की ।


गोकुल आनंद छायौ जय हो नंदलाल की ।।


 


खुशी की तरंग है झूमे अंग अंग है ।


नाचे गोपी ग्वाला आज संग संग हैं ।।


नाचो गाओ झूमो सब उत्सव मनाओ ।


बाँटो मिठाइयाँ आज दे दो बधइयाँ ।।


 


धन्य धन्य मइया घर आयो कन्हैया ।।


 


दरस को लाला के आये सब देव हैं ।


बनके सन्यासी देखो आये महादेव हैं ।।


व्याकुल ये नैन दरस पाने गोपाल के ।


करते अरज दिख लादे कन्हैया ।।


 


धन्य धन्य मइया घर आयो कन्हैया ।।


 


विष्णु अवतार लिये बनके कन्हैया ।


कान्हा कहलाये जग यशोमति मइया ।।


मोहन का रूप देख मोहे जग सारा ।


लागे ना नजर सब ले लो बलइयाँ ।।


 


धन्य धन्य मइया घर आयो कन्हैया ।।


 


जय कन्हैया लाल की जय कन्हैया लाल की ।


गोकुल आनंद छायौ जय हो नंदलाल की ।।


 


शिवांगी मिश्रा


लखीमपुर खीरी


संदीप कुमार विश्नोई "रुद्र"

श्याम सलोने मोहन मेरे , नटखट नन्दकिशोर। 


कोई नटवर कहता इनको , कोई माखनचोर। 


 


पद पंकज से पावन करते , वृन्दावन का धाम। 


भक्तों की पीड़ा हरते हैं , हरपल खाटूश्याम। 


आए बन कर श्याम मुरारी , हरने कष्ट तमाम , 


ब्रज की रज को मोहन छू कर , करते पुण्य ललाम। 


 


पीत ललाट लगाकर चंदन , होते भावविभोर , 


कोई नटवर कहता इनको , कोई माखनचोर। 


 


मंजुल आनन प्यारा लगता , ज्यों श्यामल घनघोर , 


प्रेमिल पाश बँधा मैं ऐसे , जैसे चन्द्र चकोर। 


मेरे मन में छुपकर बैठे , शोभित श्याम सुजान , 


भक्तों का यश श्याम बढ़ाते , बन उनकी पहचान। 


 


ढोल नगाड़े शंख बजाओ , आई है शुभ भोर , 


कोई नटवर कहता इनको , कोई माखनचोर। 


 


संदीप कुमार विश्नोई "रुद्र"


 पंजाब


आचार्य गोपाल जी 

समझ ना पाता


 


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


 मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 जीत लिखूं या हार लिखूं 


 मैं संशय में रह जाता हूँ


कंस का वध किया तुमने 


पर जरासंध से भाग गए


रणछोड़ कहूं या रण बांका


इस उलझन में पड़ जाता हूँ


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


 मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


मैं गीता का ज्ञान लिखूँ


या पांडव का अभिमान लिखूँ


गांधारी का मैं त्याग लिखूँ


या द्रौपदी का भाग्य लिखूँ


मैं रुकमणी का राग लिखूँ


या राधा से तेरा विराग लिखूँ


तेरी प्रीत समझ न पाता हूँ


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


नंद-यशोदा का ग्वाल कहूँ


या वसुदेव-देवकी का लाल कहूँ


मधुसूदन मदन गोपाल कहूँ


या नटवर नागर ब्रजलाल कहूँ


तुम्हें माखन चोर मतवाल कहूँ


 या केशव विराट विकराल कहूँ


मैं तेरा मर्म समझ न पाता हूं


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


माखन चोर कन्हैया तू


मुरली मधुर बजैया तू


मधुबन में रास रचैया तू


बलदाऊ का छोटा भैया तू


द्रौपदी की लाज बचैया तू


सुदामा से नेह लगैया तू


तेरी करनी समझ न पाता हूँ


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


 मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


आचार्य गोपाल जी 


               उर्फ 


आजाद अकेला बरबीघा वाले


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...