राजेंद्र रायपुरी

कोरोना ने किया सभी का, 


                     बहुत बुरा है हाल।


जाने कब जाएगा ये तो, 


                     है जी का जंजाल।


 


नहीं किसी से मिल पाते हैं, 


                     जाकर उसके द्वार।


और नहीं कोई आता तो, 


                      कर पाते सत्कार।


 


नहीं धूम या धमा-चौकड़ी, 


                    कहीं दिखी इस बार।


फीके-फीके निकल रहे हैं, 


                      सारे ही त्यौहार।


 


बच्चे सारे घर बैठे हैं, 


                    देखो मन को मार।


नहीं पढ़ाई होगी लगता, 


                     गया साल बेकार।


 


चौपट धंधे सभी हो गए,


                किस-किस का लें नाम।


श्रमिक फिरें सब मारे-मारे,


                   मिलता कहीं न काम।


 


डरी हुई है जनता सारी,


                      देख विश्व का हाल।


जाने कब,किसको खा जाए,


                     "कौरोना" बन काल।


 


बहुत हुआ अब हे प्रभु विनती,


                       है ये बारंबार।


रक्षक बनकर आओ जल्दी,


                    भक्षक को दो मार।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

छत्तीसगढ़ महतारी की जय


सबसे प्यारा सबसे सुंदर


है मेरा छत्तीसगढ़


ठंड भी कम और गरमी भी कम


बरसा होता है,अनुकूल


यहां का कलेवा,कहीं न मिलेगा


लगता है बड़ सुग्घर


सबसे प्यारा सबसे सुंदर


है मेरा छत्तीसगढ़


साक्षात त्रिवेणी संगम है


कहीं न मिलेगा, भकुर्रा महादेव


ऋषि मुनियों का है,तपो भूमि


प्रभु राम ने बिताया है,कई बरस


सबसे प्यारा सबसे सुंदर


है मेरा छत्तीसगढ़


अखंड ज्योति माता के मंदिर में


निशदिन गुंजत है, जयघोष


सप्त ऋषि के प्राण बिराजे


देख ले ध्यान लगा के


सबसे प्यारा सबसे सुंदर


है मेरा छत्तीसगढ़


करमा ददरिया,सुवा पड़की


घर दुआर, खेत खार


मोर छत्तीसगढ़ का है,पहचान


माता कौशल्या का है,मायके और


प्रभु श्री राम का है, मामा गांव


सबसे प्यारा सबसे सुंदर


है मेरा छत्तीसगढ़


गांव गांव रामायण भागवत


गऊ माता के बिसरे महिमा


दुनिया भर बगरावत हे


सदाचार अहार विहार


जग में सबले अलग हे


सबसे प्यारा सबसे सुंदर


है मेरा छत्तीसगढ़। 


नूतन लाल साहू


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम्ही रक्षा करो करतार...


 


कोरोना से हालात बिगड़े


है चहुँओर दुःखी इंसान


काम छोड़ बेरोजगार हुए


कमान संभालो भगवान


 


घर से बाहर डर लगता है


भूले कुशल क्षेम प्रणाम


अपनों से ही दूरी बढ़ गईं


छिड़ा जीवन से संग्राम


 


रेलों के पहिये थम गये


कल कारखाने शांत हुए


अर्थव्यवस्था प्रभावित


मानव कितने क्लांत हुए


 


न मेडिसिन न वैक्सीन


विज्ञान भी हुआ लाचार


सत्य करे अनुनय प्रभु


तुम्ही रक्षा करो करतार।


 


श्री कृष्णाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

स्वयं को भक्त राम का


कहते बड़ा मुश्किल है


भक्त राम का बन पाना।।


 


राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम


कठिन है जिंदगी में मर्यादा


 निभा पाना।।


 


पिता की आज्ञा से स्वीकारा


राम ने वन में जाना 


त्यागा राज पाठ मद लोभ


तापसी जीवन भी मर्यादा का


नजराना।।


 


पिता आज कुछ भी कहता


बेटे को फर्क नहीं पड़ता


आज बेटा राजा है पिता को


पड़ता है वन जाना।।


 


बहुत दुस्कर है भाई लखन भरत 


जैसा बन पाना।


लखन भाई राम की खातिर


जीवन का शुख भोग त्यागा


बना राम की परछाई बनकर


संग वन भटका ना सोया


चौदह वर्ष जागा।।


 


भारत भाई आज्ञा पालक 


 चरण पादुका के शरण


वनवासी नंदी ग्राम के


कण कण में राम बसा डाला।।


 


केवट जैसा सखा राम का 


सबरी के झूठे बेर भी राम 


अमृत जैसा।।


 


उंच नीच का


भेद राम ने मिटा डाला जग में


राम ने भगवान् भाव बता


डाला।।


 


मित्र धर्म मिशाल सुग्रीव मिशाल


अधम शारीर के भालू बानर की


भक्ति सेवा के कायल राम।


महाबीर हनुमान 


राम नाम की भक्ति की शक्ति जग का खेवनहार बना डाला।।


 


नाम राम का लेकर 


भाई का दुश्मन भाई


मित्र धर्म का मतलब ही 


दुनिया ने बदल डाला।।


 


भक्त राम का द्वेष रहित निष्पाप


अन्याय अत्य चार का प्रतिकार


राम भक्ति है आत्म बोध का


उजियार ।।


मन में राम नाम मर्म का 


दिया एक जला डालो


रामभक्ति का युग में अलख


जगा डालो।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


विनय साग़र जायसवाल

इश्क़ की आबरू हम बढ़ाते रहे


अश्क पीते रहे मुस्कुराते रहे 


 


जिनसे बिछड़े हुए एक मुद्दत हुई


हर नफ़स वो हमें याद आते रहे


 


यूँ तो वाबस्तगी हर क़दम पर रही


हौसले जाने क्यों डगमगाते रहे


 


इक ज़रा देर की रौशनी के लिए 


जाने क्यों लोग घर को जलाते रहे


 


इस इनायत का कैसे करूँ शुक्रिया


जब भी चाहा वो घर पर बुलाते रहे


 


इस कदर बढ़ गई ख़्वाहिश-ए-मयकशी


हम रहे तशनालब वो पिलाते रहे


 


दौरे-साग़र चला मयकदे में मगर


जश्ने तशनालबी हम मनाते रहे 


 


विनय साग़र जायसवाल बरेली


एस के कपूर श्री हंस

जिनदगी मुझे खुद वापिस


बुलाने लगी है।।


 


हक़ीक़त खुद ही मुझे आईना


दिखाने लगी है।


कौन दोस्त कौन दुश्मन अब


बताने लगी है।।


सुन रहा हूँ जबसे दिल की


आवाज़ अपनी मैं।


हर तस्वीर आज साफ़अब नज़र


आने लगी है।।


 


जिंदगी तो वही पर धुन कोई नई


गुनगुनाने लगी है।।


गर्द साफ करी जहन से कि फिर


मुस्कारानें लगी है।


बस आस्तीन के छिपे दोस्तों को 


जरा सा क्या पहचाना।


तबियत अब अपनी खुद ही


सुधर जाने लगी है।।


 


आज हालात यूँ कि मुश्किल खुद


रास्ता बताने लगी है।


जिन्दगी आज कुछ आसान सी


नज़र आने लगी है।।


जरा सा मैंने दिल से अपने हर


नफरत को क्या निकाला।


हवा खुद ही मेरे चिरागों को


अब जलाने लगी है।।


 


उम्मीद रोशनी नई सी जिन्दगी में  


चमकाने लगी है।


सही गलत की समझ खूब मुझे 


अब आने लगी है।।


बहुत दूर नहीं गया था मैं किसी


गलत राहों पर।


आज जिन्दगी मुझे खुद वापिस


बुलाने लगी है ।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरे वतन के नील गगन को


घने कुहासे ने घेरा था


संवैधानिक पेचिदगियों से


फैला कहीं अंधेरा था


 


एक राष्ट्र में दो दो ध्वज थे


पृथक पृथक थे कानून


गुमराह हुए लाल भारती के


पत्थरबाजी का ले जनून


 


अपनों का ही खून खराबा


अपनों द्वारा ही आतंक


अपने ही मुल्क में रहकर के


रहते थे हरपल आशंक


 


अपने ही राम की धरती पै


नहीं राम का आशियाना


जाति धर्म का जहर घोल के


अपनों को बनाया बेगाना


 


बीत गये कितने दिन बरस


मानवता को पीड़ा पाते


कितनी बार लहूलुहान रसा


कितने साल रहे करहाते


 


अब स्वतंत्रता के सही मायने


समझ हमारी में आये हैं


नव उदित भारतीय मूल्य जो


वर्तमान में अपनाये हैं।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन

बहुत ख़ुशी है आज 


हम सब को।


मना जो रहे है 


स्वंत्रता दिवस को।


पर मिली कैसे 


हमे ये आज़ादी।


जरा डालो नजर 


तुम इतिहास पर।।


 


न जाने कितनी मांओ 


की गोदे उजड़ गई। 


न जाने कितनी माँगे


बहिनों की उजाड़ गई।


न जाने कितने बच्चों के


सिर पर से उठ गया साया।


तब जाकर मिल पाई थी


हमको ये आज़ादी।।


 


न जाने कितने वीरो को 


हम लोगो ने खो दिया।


भरी जवानी में उन्हें 


प्राण गमाना पड़ा ।


और न देखा सुख 


उन्होंने इस आज़ादी का।


जिसके लिए दे गए 


सभी अपनी कुर्बानियां।। 


 


सलाम करते है हम


उनके माँ बाप को। 


जिनके पुत्रो पुत्रियों ने 


दिया बलिदान अपना। 


उन्हें अर्पण करते है 


श्रध्दा के सुमन हम।


सदा जिंदा रहेंगे वो 


भारत मां के दिलो में ।   


जिन्होंने दिलाई आजादी 


हमें उन अंग्रेजो से।।


 


स्वंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मेरी कविता उन सभी शहीदों के लिए समर्पित है। जिन्होंने हमे आजादी दिलाई। श्रध्दा सुमन अर्पित करता हूँ।


 


जय हिंद जय भारत


संजय जैन (मुंबई )


डॉ बीके शर्मा 

क्यों आवागमन में फंसते हैं 


क्यों एक दूजे पर हंसते हैं 


देह धारण हम करते विचरण 


क्यों आकर गर्त में धंसते हैं 


 


घट भरते पाप पुण्य से हम


फिर बूंद बूंद क्यों रिसते हैं 


है दो पाटों की जीवनधारा 


फिर बीच में क्यों हम पिसते हैं 


 


बार-बार क्यों आते धरा पर


क्यों देह से देह में बसते हैं 


एक त्यागा दूजा पाया 


यह देह भी कितने सस्ते हैं 


 


करते धारण प्राणी इनको 


क्यों रगड़ रगड़ कर घिसते हैं 


वह कर्म हीन हो जाते हैं फिर


खुद की कसौटी कसते हैं 


 


ना कोई अपना ना पराया 


यह झूठे सारे रिश्ते हैं 


सच्चा साथ है प्रियतम तेरा 


कण कण में तुम ही बसते हैं 


 


थाम हाथ संग ले चल साकी 


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी 


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान 


सुनीता असीम

ये मुआ मोह छोड़ता ही नहीं।


मोक्ष का मार्ग खोजता ही नहीं।


***


बोल कुछ भी जो बोल देता है।


क्यूं ये अंजाम सोचता ही नहीं।


***


देख अन्याय को रहो चुप बस।


आपका ख़ून खौलता ही नहीं।


***


ख़ार इसकी जुबान से निकलें।


प्यार जीवन में घोलता ही नहीं।


***


इक गलत बात भी असर डाले।


बोल से पूर्व सोचता ही नहीं।


 


सुनीता असीम


सुनील कुमार गुप्ता

मनाते रहे साथी,


वर्षानुवर्ष-


जश्न आज़ादी का।


अक्षुण रखने को आज़ादी,


भूले न बलिदान-


अमर शहीदो का।


जला कर दीप पग पग,


जीवन में हर पल-


सम्मान करें उनका।


सद्कर्मो से ही साथी,


पाओगे लक्ष्य-


जीवन का।


सत्य-अहिंसा और धर्म की,


लहराती रहे-


ध्वज पताका।


तभी बना रहेगा,


स्वाभिमान हमारा-


और राष्टीय ध्वज का।


मनाते रहे साथी,


वर्षानुवर्ष-


जश्न आज़ादी का।।"


 


सुनील कुमार गुप्ता


सुनील कुमार गुप्ता

स्वतंत्रता दिवस मनाएँ


स्वतंत्रता तो स्वतंत्रता है साथी,


हर हाल में जीवन में-


करें उसका सम्मान।


स्वतंत्रता दिलाने में साथी,


दिया जिसने बलिदान-


करना न उनका कभी अपमान।


स्वतंत्रता तो स्वतंत्रता है साथी,


इसमे भी सदा-


अपनत्व का रखे ध्यान।


स्वतंत्रता के साथ सबको साथी,


मिले मौलिक अधिकार-


करे र्दुउपयोग बढ़े अज्ञान।


पराधीनता से बड़ा दु:ख नही,


स्वतंत्रता से बड़ा सुख-


इसको सदा रखना ध्यान।


स्वतंत्रता दिवस मानाएँ वर्षानुवर्ष,


इससे बढ़ेगी-


जग में देश की शान।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


प्रखर दीक्षित

वंदित माता विश्व व्यापिनी, 


       जय भारत जय भारती....२


वंदे मातरम् ...... वंदे मातरम्....३


 


शस्य श्यामला धरा सुपावन, खॆत बाग खलिहान हरे।


श्रम के तप से उपजे सोना, विपुल खाद्य धन धान्य भरे।।


           जय किसान विज्ञान जयति जय,


                 सुभगे अर्चन आरती।।


            जय भारत जय भारती.


 


नदियों का स्पंदन जीवन, मचले गिरिनद झर झर निर्झर ।


मदिर सुहावन वनज समीरण, हिम आच्छादित शैल शिखर।।


            पद प्रच्छालन सागर करता,


               . प्राची रूप संवारती।।


            जय भारत जय भारती.


 


वीर उर्वरा वसुन्धरा यह, शौर्य पराक्रम बलदानी।


सुदृढ़ सीमा जिनसे , शुभ्र भाल माँ कल्यानी।।


             शान तिरंगा को शत वंदन,


                     संतति जय भापत उच्चारती।।


             जय भारत जय भारती.


 


वंदित माता विश्व व्यापिनी, 


       जय भारत जय भारती....२


वंदे मातरम् ...... वंदे मातरम्....३


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद(उत्तर प्रदेश)


सुनील कुमार गुप्ता

पनों को साकार कर


सार्थक हो जीवन सारा,


किसी का न अपमान कर।


देखे सपने पल-पल यहाँ,


सपनों को साकार कर।।


सत्य-सत्य है साथी यहाँ,


असत्य ना स्वीकार कर।


दु:ख हो या सुख साथी यहाँ,


धीरज और विश्वास धर।।


पूरे हो सके सपने फिर,


हर पल तू प्रयास कर।


देखा है सपना यहाँ जो,


सपनों को साकार कर।।


सुनील कुमार गुप्ता


डा. नीलम

सुनो कान्हा 


क्या तुम कभी भी


समझ सके


राधे के मन की पीर


क्या कभी देखी


तुमने उसकी


आँखों में 


आँसूओं की भीर


तुमने तो हर बार 


अपनी करनी को


नियति का नाम दिया 


और हर बार ही


तुमने राधा को


त्याग दिया 


माना तेरे नाम से पहले


आता है राधा का नाम 


पर तेरे निर्णयों में 


कब, कहाँ खड़ी है वो


लज्जा सखी द्रोपदी की 


तूने ही तो थी बचाई


फिर राधा को छोड़ दिया


जो लोक लाज तज


तेरे पीछे आई


तू तो कर्म के नाम पर 


जा बैठा मथुरा धाम


क्या गुजरी वृंदावन पे 


क्या समझेगा श्याम 


सुनो न कान्हा 


तुमतो थे न्याय पथगामी


फिर क्यों अन्याय से


काम लिया 


कर्ण के कवच, कुंडल 


उतरवा


भाई के हाथों भाई को


मरवा दिया 


जानते थे ना तुम तो


माँ गांधारी की


तपशक्ति को


फिर भी तुमने छल से


दुर्योधन की जानु को


आवृत करा कमजोर 


रहने दिया 


बार -बार न्याय का


देकर हवाला 


अन्याय को पोषित किया


पाँच पाण्डवों से


सौ कौरवों का संहार करवा


द्रोपदी को महाभारत का


कारक बनाया 


सच कान्हा तुमने 


हर बार 


करके सारे कृत्य आप


नारी को ही आधार बनाया ।


 


          डा. नीलम


सत्यप्रकाश पाण्डेय

समझे जिसे फूल ए गुलिस्तां


वो काँटों की बाढ़ निकली


मिलेगा सकूं ए दिल सुरभि से


सुगन्ध नहीं झाड़ निकली


 


दिख रहा रूप सौंदर्य का कोष 


सुहाना और अति मनोहर


अन्तर्मन से उतना ही जहरीला


जीवन घातक नहीं शोभर


 


रिझाती सी सम्मोहित सी करती


जिंदगी में उल्लास भरती


जग को सजाती संभारती सी वो


उन्नति कभी ह्रास करती


 


कौंन है वह अनुपमेय सुंदरी सी


जिसे समझ नहीं पा रहा


है वह खुशी भी और बेरुखी भी


जिसे हयात कहा जा रहा।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनीता असीम

सोए हुओं के हाथ में तुम इक मशाल दो।


दिल से मलाल ज़िन्दगी के सब निकाल दो।


***


इक हाथ कोई मार दे चहरे पे आपके।


फिर ये न हो कि दूसरा अपना ही गाल दो।


***


गर थक गए हो आप तो आराम भी करें।


पर मुस्कराके एक हसी भी उछाल दो।


***


सब दुश्मनी निकाल दो दिल से जनाब तुम।


जो भी हुआ है उसपे तो मिट्टी ही डाल दो।


***


कुछ कर दिखाओ आपका लें नाम भी सभी।


सबसे अलग मुकाम बना इक मिसाल दो।


 


सुनीता असीम


डॉ बीके शर्मा 

हार के उस पार चलूं


संग फिर आधार चलूं


रिश्ते नाते छोड़ चलूं मैं


बंधन सारे तोड़ चलूं मैं 


आ तेरे साथ चलूं मैं 


लोभ मोह सब मार चलूं


हार के उस पार चलूं-1


 


तन की पीड़ा त्याग चलूं मैं


जीवन बीड़ा त्याग चलूं मैं


चंचल मन मार चलूं मैं 


ले के कर्मों का सार चलूं 


हार के उस पार चलूं-2


 


दिन को चलूं रात चलूं मैं


बात चलूं बे बात चलूं मैं 


लिया जो "कर" चुकता चलूं मैं 


छोड़ना कोई उधार चलूं 


हार के उस पार चलूं-3


 


 क्यों देह धर बेकार चलूं मैं 


किस से चाल पर चाल चलूं मैं 


औरों से क्या विचार चलूं मैं 


आ संग दे छोड अंधकार चलूं


 हार के उस पार चलूं -4


 


छोड़ भंवर बाहर चलूं मैं 


क्यों प्रिय बेकार चलूं मैं 


छोड़ ये मझधार चलूं मैं


आं शून्य के पार चलूं


हार के उस पार चलूं-5


 


थाम हाथ संग ले चल साकी 


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी 


इस धार से उस आधार चलूं 


हार के उस पार चलूं-6 


 


 डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


संजय जैन

मिलें अपनो का प्यार हमको,


तो सफलता चूमेंगी कदम।


रहे सभी का अगर साथ, 


तो जीत जाएंगे हर जंग।


और मिल जाएगा हमको,


खोया हुआ आत्म सम्मान।


इसलिए हिल मिलकर, 


 रहो देशवासियो सब।।


 


तुम्हें कसम भारत मां की, दिखाओ अपना जौहर तुम।।


तुम्ही तो कणधार हो,


अब भारत माँ के बच्चों।


इसलिए में कहती हूँ ,


बहुत छला हैं गद्दारों ने।


तुम्हें अपनी माँ की रक्षा, 


 करने उतर जाओ मैदान में।।


 


बात जब माँ की आती हैं,


तो भूल जाते जाती धर्म।


और कस के कमर अपनी,


कूद जाते रणभूमि में हम।


और दिखा देते बहादुरी,  


 अपनी उन गद्दारो को।


तभी तो छोड़कर भाग जाते, 


वो जंग के मैदान से।।


 


उन सभी वीर बहादुर सैनानियों को सलाम करते है जिन्होंने हमे आज़ादी दिलाई और अपने प्राण भारत माँ पर निछावर कर दिए।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

एक दिन तेरी डोली सजाउंगा मैं,


अपने हाथों से तुझको बिठाउंगा मैं। 


 


खूब पढ़ लो अभी मेरे रहते हुए,


वक्त आने दो दुनिया दिखाउंगा मैं। 


 


तुम तो नन्हीं परी सी मेरी जान हो, 


तेरे सपनों को सच कर दिखाउंगा मैं। 


 


रो भी सकता नहीं तेरा बाबा हूँ मैं, 


अपनी बेटी को खुशियाँ लुटाउंगा मैं। 


 


हो गया है सबेरा सो न जाना कहीं, 


पाठशाला में तुझको ले के जाउंगा मैं। 


 


तेरे चाहत की झोली को भरते हुए।


उम्मीदों का दीपक जलाउंगा मैं। 


 


अश्क़ आँखों में अपने न लाना कभी, 


अपनी बेटी को जी भर पढ़ाउंगा मैं।


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश


रश्मि लता मिश्रा

मैं हिंदुस्तानी


 


हिंदुस्तान मेरी जान,


 मेरी यही कहानी ।


फक्र मैं हिंदुस्तानी  


फक्र मैं हिंदुस्तानी।


 


ऊँचे पर्वत गहरी नदियाँ


बल खाता सागर है 


नदियों को कहते हैं माता 


पूजें पीपल जड़ है 


पावन गंगा माता का है ,


झर झर बहता पानी।


 फक्र में हिंदुस्तानी।


 


उत्तर ,दक्षिण, पूरब, पश्चिम 


मिलकर सारे एक हैं ।


एक बनाएं अपना भारत ,


सब के इरादे नेक हैं ।


 जात -पात और धर्म भेद की


हुई पुरानी कहानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


 सीमा पर तैनात हैं प्रहरी ।


अपनी आंख बिछाए।


 भारत माता को तड़पाने ।


गर कोई दुश्मन आये।


गांव घरों से निकल पड़ेंगे ।


बनकर हम बलिदानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


विश्व गुरु की राह चलाएं ।


भारत अपने प्यारे को ।


विश्व ताज सर पर रख वाएँ ।


भारत अपने न्यारेको ।


पूरी दुनिया के वतनो में


  भारत का नहीं सानी।


 फक्र मैं हिंदुस्तानी।।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


निशा अतुल्य

मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं 


मन निर्मल कर दो ।


भर दो भक्ति रस की प्याली


भव से पार कर दो ।


 


ज्ञान का उपदेश दिया जो


कर्मपथ विस्तार करो


रस धारा बहा प्रेम की 


प्रेम मय संसार करो ।


तारो मुझको भव से कान्हा


बेड़ा पार कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


कैसी विपदा आन पड़ी ये


राहें सरल करो


लूट रहा जग मिल कर मुझको


प्रभु तम दूर करो ।


आई शरण तुम्हारे प्रभुवर


प्रभु दर्शन दे दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


झूठे सारे जग के बंधन


मुझे सहारा दो ।


टूटे न कभी आस जिया की


मन उज्ज्वल कर दो ।


सपने हो सब जग के पूरे


ऐसा जग कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


सुन्दर ये संसार बनाया 


कष्ट सब के हर लो ।


तुम तो पालन हारे प्रभु 


जग का ध्यान धर लो ।


कष्ट निवारो सब के प्रभु तुम


भाव सरल कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


निशा अतुल्य


राजेंद्र रायपुरी

खाओ-पीओ मौज़ उड़ाओ,


                       कल की चिंता छोड़ो।


साथ न जाने वाला भैया, 


                      धन इतना मत जोड़ो‌।


 


काम वक्त पर आएॅ॑ रिश्ते,


                    रिश्तों को मत तोड़ो।


टूट गए हैं रिश्ते जो भी, 


                    उन्हें आज ही जोड़ो।


 


दिल होता शीशे सा नाज़ुक,


                   दिल न किसी का तोड़ो।


तोड़ दिया दिल धोखे से तो,


                   उसे प्रेम से जोड़ो।


 


चुभें तीर से दिल में ऐसे, 


                   शब्द कभी मत बोलो।


बोल, बोलकर मीठे-मीठे,


                   कानों में रस घोलो।


 


जो बोओगे वो काटोगे, 


                    शूल बीज मत बोओ।


दुखी अगर है यार पड़ोसी,


                     चैन नींद मत सोओ।


 


जो आता है वो जाता है,


                     अमर कौन है बोलो।


जाने से पहले बाबुल घर,


                    दाग चुनरिया धो लो।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

पग-पग बने जीवन सहारा


दिग-भ्रमित रहा जीवन साथी,


विचारो से मिला सहारा।


छोड़ सत्य-पथ जीवन में साथी,


यहाँ फिर अपनो से हारा।।


परपीड़ा अनुभूति संग-संग,


यहाँ बीता जीवन सारा।


स्वार्थ नहीं जीवन में साथी,


परमार्थ ही बने सहारा।।


घट-घट में बसे प्रभु साथी,


क्या-सोचे मन का हारा?


अन्त:घट में बसे जो प्रभु साथी,


पग-पग बने जीवन सहारा।।


 सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जीवन पै रहे तेरा प्रभाव..


 


बिन तेरे कहां चैन जगत में


हे नटवर नन्दकिशोर


तेरे बिना है चहुँओर अंधेरा


तुम हो तो स्वामी भोर


 


अज्ञान ग्रसित होकर मानव


भटक रहा है दलदल में


ज्ञान ज्योति का आलोक मिले


निर्बल सबल बने पल में


 


मेरे मोहन बन जाओ आलम्बन


हीन भाव से मुक्त करो


जीव मात्र को समझूँ में अपना


उदार भाव से हिय भरो


 


जगतनियन्ता आधार जगत के


रखो सत्य पर दया भाव


सोते जगते बस स्मरण तुम्हारा


जीवन पै रहे तेरा प्रभाव।


 


श्री कृष्णाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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