संजय जैन

लूटकर अपना सब कुछ


अभी तक तो जिंदा है।


रहमो कर्मो पर उसके


अभी तक जी रहे है।


किसी और की करनी का


फल पूरा विश्व भोग रहा है।


और फिर भी शर्म उन्हें बिल्कुल भी नही आ रहा।।


 


कितना जहरीला होता है


आज का ये इंसान।


जो विपत्ति में भी अपने 


मुंह से जहर उगल रहा है।


और निर्दोषों को अपास


में लड़वा जा रहा है।


बेशर्मता की अब तो 


बहुत हद हो गई।


क्योंकि नियमो की धज्जियां 


नेता ही उड़ा रहे।।


 


अब देखो भक्तों 


वक्त बदल रहा है।


जहर उगलने वालो 


पर ही कहर ढा रहा है।


एक एक करके सारे 


 मैदान में आ रहे है।


और अपनी करनी का 


 फल भोगे जा रहे है।।


 


भाग्यविधा किसी को 


भी नहीं छोड़ता है।


अपने पर हुए अत्याचारों का 


हिसाब किताब ले रहा है।


जो खुदको भगवान


समझ बैठे थे


खुद भगवान से रेहम की 


 भीख मांग रहा है।


और चौखट पर उसकी


नही पहुंच पा रहा है।


क्योंकि उसने अपने द्वार अब इंसानों को बंद कर दिए,


बंद कर दिए...।।


 


 


संजय जैन (मुम्बई)


गीता पांडेय

सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


आओ मिलकर खुशियां मनाएं घर-घर में दीप जलाएं 


देशभक्त वीरों की सबको याद दिलाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


आओ हम सब अपने -अपने 


घर में तिरंगा लहराए 


सबको लड्डू मिठाई बांटकर राष्ट्रीय उत्सव मनाए 


पावन पर्व है हम सबका 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


एकता अखंडता की सबको शपथ दिलाये


सब मिलजुल कर रहे 


यह संदेश फैलाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


हम भारत वासी 


सिर गर्व से उठाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


राष्ट्रीय गीत जन गण मन सब गाये


और अपना जीवन सफल बनाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा


भारत देश हमारा  


गीता पांडेय "बेबी " 


जबलपुर मध्य प्रदेश


निशा अतुल्य

देश बढ़े और बढ़ता ही रहे 


ऐसे काम सदा करना ।


मान बढ़े देश का सँग तेरे 


काम विलक्षण कुछ करना ।


 


चिड़िया जहाँ चहचहाती हो,


मंदिर की घण्टी बजती हो,


प्रातः भोर अनुपम बेला में,


माँ घर में दीप जलाती हो ।


 


बड़े बड़े सपनों से सजी ,


रात धीरे से ढल जाती हो।


मेरे देश की माटी चंदन है ,


हर दिल में महक जगाती हो ।


 


होंठो पे माँ का गुणगान रहे


हर पल सब शिश नवातें हो ।


ऊर्जा मन में संचित जो रहे ,


तब काम बड़े कर जाते हो ।


 


प्रभु इतना ज्ञान सदा देना,


कोई काम बुरा न हमसे हो ।


जग चाहे जैसे काम करें,


मन में हमारे सद्भावना हो ।


 


राग द्वेष और ईर्ष्या से ,


प्रभु हम को दूर सदा रखना ।


काम देश के आएं हम ,


ये ज्ञान सदा मन में भरना ।


 


देश बढ़े और बढ़ता रहे 


हर दिल में सदा ये चाह रखना ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य


डॉ बीके शर्मा 

मैं तरसा 


तुम तरसो 


आओ प्रियतम


दो बूंद तो बरसो 


 


ना मन विचलित हो


फिर मेरा 


एक बार मिलो 


ना तुम बिसरो


मैं तरसा 


तुम तरसो 


 


तुम साथ चलो 


हम ना रह पाए 


पकड़ वाहें 


तेरे संग जाएं


तुम साथ रहो 


हमें परखो


मैं तरसा 


तुम तरसो 


 


तुम ध्रुव सी अटल 


मेरा प्रेम प्रबल


आज नहीं तो 


चलना है कल 


स्वीकार मुझे 


बंधन तेरा 


पास तो आओ 


अभिनंदन तेरा 


तुम तरस करो


ना विचरो 


 


ना तुम तरसो


ना मै तरसूं


थाम हाथ संग ले चल साकी


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


विनय साग़र जायसवाल

इस दर्जा पी रहे हो ये किसके ख़याल में


थे सैकड़ों सवाल किसी के सवाल में


हुस्ने मतला--


रखना इसी ख़याल को अपने ख़याल में 


उलझा हुआ हूँ अब भी तुम्हारे सवाल में


 


तुम आ गये तो घर में बहारें भी आ गईं


दिल फड़फड़ा रहा था कबूतर सा जाल में 


 


आओ चलो चराग़े -मुहब्बत जलायें हम


यह शब गुज़र न जाये जवाब-ओ-सवाल में


 


भूखा था मैं तो प्यार का फिर कैसे सोचता


सामान मौत का है मुहब्बत के जाल में


 


वो जब मिला तो वक़्त के सुल्तान सा लगा 


इक नूर सा ख़ुमार था जाह-ओ-जलाल में


 


दिल कर रहा है आज मैं तौबा को तोड़ दूँ


साग़र सुराही जाम पड़े हैं मलाल में


 


साग़र अदाये-वक़्त से तू भी तो सीख ले


क्यों फ़र्क ढूँढता है हराम-ओ-हलाल में 


 


विनय साग़र जायसवाल


  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"


  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"


 


        वरिष्ठ साहित्यकार , कवि , अर्थशास्त्री , शिक्षाविद्


 


 


जन्म : 23 मार्च 1927 मंडला (मप्र)


 


 


स्थायी पता : विवेक सदन नर्मदा गंज , मण्डला म.प्र. ४८१६६१


 


 


वर्तमान पता : बंगला नम्बर A 1, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.) पिन-482008


 


 


मोबाइल : 0७०००३७५७९८ / ९४२५४८४४५२


 


 


शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अर्थशास्त्र),  एम.एड.,साहित्य रत्न,


 


शासकीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से सेवानिवृत प्राध्यापक । 


 


-    केंद्रीय विद्यालय जबलपुर क्रमांक 1 एवं जूनियर कॉलेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य । 


 


 


सृजन की विधाएं : कविता, अनुवाद, शैक्षिक और बाल साहित्य , चिंतन , ललित लेख। 


 


 


प्रकाशित पुस्तकें : २५ से अधिक किताबें 


 


-    काव्य कृतियाँ :वतन को नमन ,  अनुगुंजन, मुक्तक संग्रह, स्वयं प्रभा, अंतर्ध्वनि (गीत संग्रह), ईशाराधन 


 


-    अनुवाद : भगवत गीता हिन्दी पद्यानुवाद, मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद, रघुवंशम पद्यानुवाद ।


 


-    निबंध संग्रह : उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युगध्वनि, जय जवान जय किसान, मानस के मोती


 


-    शैक्षिक  साहित्य : समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, शिक्षण में नवाचार, 


 


-    बाल साहित्य : बालगीतिका , बाल कौमुदी , सुमन साधिका , चारु चंद्रिका  बाल गीत संग्रह (4 भागों में शिशु गीत , से किशोर गीत तक  ),  आदर्श भाषण कला , नैतिक कथायें , जन सेवा , अंधा और लंगड़ा , कर्मभूमि के लिये बलिदान 


 


 


ई बुक्स डेली हंट एप पर भी उपलब्ध 


 


 


    संपादन : अर्चना, पयस्वनी, उन्मेष, वातास पत्रिकायें । 


 


ब्लाग ... http://pitashrikirachnaye.blogspot.com


 


   ...संस्कृत का मजा हिन्दी में .....http://vikasprakashan.blogspot.com


 


 


फेसबुक पेज ..http://www.facebook.com/profcbshrivastava`


 


 


प्रकाशन : 


 


-    सन 1946 में सरस्वती पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित, तब से निरंतर पत्र पत्रिकाओ में कविताये, बाल रचनायें,लेख आदि प्रकाशित हो रहे हैं । 


 


-    वर्तमान में देशबंधु जबलपुर सहित, दशहरा रायपुर, त्रिपुरी टाईम् आदि अखबारो व पत्रिकाओ में उनके द्वारा किए गए भगवत गीता व रघुवंश के पद्यानुवादों का धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है । 


 


 


प्रसारण : 


 


-    आकाशवाणी , दूरदर्शन से रचनाओं, वार्ताओं और चिंतन आलेखों का नियमित प्रसारण । 


 


मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी , हिन्दी साहित्य सम्मेलन , अभियान , नेहरू युवा संगठन उर्दू अकादमी मध्य प्रदेश शासन , वर्तिका ,पाथेय  सहित अनेको साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थायें उन्हें या उनकी पुस्तको को समय समय पर पुरस्कृत कर स्वयं गौरवांवित हुई हैं . 


 


शिक्षा जगत में विशेष कार्य : 


 


-    वे केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य हैं.  


 


- सरस्वती शिक्षा मंदिर मण्डला के आचार्यो को उनके बाल मनोविज्ञान तथा शैक्षिक प्रशिक्षण के परिणाम स्वरूप शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम मिले 


 


-    प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर तथा राज्य शिक्षा संस्थान भोपाल में उन्होने माईक्रो टीचिंग पर शोधात्मक किताबें लिखी । 


 


-    पाठ्यक्रम निर्माण, औपचारिकेतर शिक्षण, पढ़ो कमाओ, माइक्रो टीचींग, सतत शिक्षा, शैक्षिक प्रौद्योगिकी, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण सुधार, शिक्षा में गुणात्मक सुधार, शालेय पर्यवेक्षण, आदि विषयो पर उनके कई शोध आलेख प्रकाशित हुये हैं । तथा उन्होने इन विषयों पर नीतिगत व मैदानी निर्णायक योगदान दिया है । 


 


-    नेहरू युवा केद्र संगठन में अपनी रचनाधर्मिता से उन्होने युवाओ के लिये आव्हान गीतो तथा प्रेरक उद्बोधनो के माध्यम से योगदान दिया व सम्मानित हुए । 


 


‍‌- विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में सहभागिता . 


 


सामाजिक अनुकरणीय कार्य :     


 


1-    नारी शिक्षा को बढ़ावा । 


 


2-    विवेकान्द शिला स्मारक कन्याकुमारी तथा यू एन ओ भवन दिल्ली के निर्माण के लिये उन्होने धन संग्रह किया तथा व्यक्तिगत रूप से बड़ी राशि दान स्वरूप दी । 


 


3-    मण्डला में रेड क्रास समिति की स्थापना उनके ही प्रयासो से हुई । 


 


4-    उन्होने मण्डला में अनेक युवाओ हेतु आत्मनिर्भर रोजगार के नये अवसर दिये । 


 


5-     वे कामनवैल्थ काउंसिल फार एजूकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य हैं । 


 


6-    आल इण्डिया फेडरेशन आफ एजूकेशनल एशोसियेशन्स के महाविद्यालयीन विभाग के वे सचिव रहे हैं । 


 


7-    भारत चीन युद्ध, कारगिल युद्ध, लातूर के भूकम्प, उत्तरांचल आपदा आदि अवसरो पर प्रधान मंत्री सहायता कोष में उन्होने बड़ी राशि स्वतः प्रेरणा से बैंक जाकर दान दी है  


 


8-    उन्होने हजारो किताबें विभिन्न शालाओ व पुस्तकालयो में दान स्वरूप दी हैं जिससे पठन पाठन की संस्कृति को बढ़ावा मिले ।     


1


 


भारतमाता


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


भारतमाता शांतिदायिनी !


 


 


सघन हरित अभिराम वनांचल


 


पावन नदियां ज्यों गंगाजल


 


विविध अन्न फल फूल समृद्धा


 


जनहितकारी सुख विधायिनी


 


आनंद मूला मधुर भाषिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


मर्यादित शालीन सुहानी


 


बहुभाषा भाषी कल्याणी


 


मुदित आनना निष्चल हृदया


 


पंपरागत ग्राम वासिनी


 


स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


सरल सहज शुभ सात्विक रूपा


 


शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा


 


अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक


 


अखिल विश्व समता प्रसारिणी


 


निर्मल प्रेम भाव धारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री


 


आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री


 


मलय पवन सुरभित शुभ आंचल


 


मृदुला नवजीवन प्रदायिनी


 


धर्म प्राण संताप हारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


2


राम जाने कि क्यो राम आते नहीं ? 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘  


 


A 1 , MPEB Colony , Rampur Jabalpur


 


 


हो रहा आचरण का निरंतर पतन,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


हैं जहां भी कहीं हैं दुखी साधुजन दे के उनको शरण क्यों बचाते नहीं


 


 


उजड़ी केशर की क्यारी है बारूद से, रावी सतलज का जल खून से लाल है 


 


धर्म के नाम नाहक ही फैला जुनूं , हर समझदार उलझन में बेहाल है 


 


सारे कश्मीर में ,उधर आसाम में ,चल रही गोलियां और लगी आग है 


 


कर रही आसुरी शक्ति विध्वंस यों , खून से गांव कोई न बेदाग है 


 


खाने को दौड़ता सा है वातावरण , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


रोज होते रहे जहां पूजन भजन , आज खण्डहर पड़े हैं कई वे भवन 


 


यज्ञ करते रहे लोग जो देश हित , अब वही सैकड़ों हो रहे हैं हवन 


 


छाया आतंक की बढ़ रही हर तरफ , घिर रहा है घरों में अंधेरा घना


 


लोग गुमसुम डरे सकपकाये से हैं , हरएक चेहरा नजर आता अनमना 


 


बढ़ रहा खर औ" दूषण का नित अतिक्रमण ,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


बढ़ती जाती कलह हर जगह बेवजह , नेह सद्भाव पड़ते दिखाई नहीं


 


एकता , प्रेम , विश्वास हैं अधमरे , आदमियत आदमी से गुम हुई है कहीं 


 


स्वार्थ , सिंहासनो पर अब आसीन हैं , कोई समझता नहीं है किसी की व्यथा 


 


मिट गई रेखा लक्ष्मण ने खींची थी जो , महिमा मंडित है अपराधियों की कथा 


 


है खुले आम रावण का आवागमन ,   राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं , आचरण में अधिकतर हैं मनमानियां 


 


जिसकी लाठी है अब उसकी ही भैंस है , राजनेताओ में दिखती हैं नादानियां 


 


स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो , हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई 


 


मान मिलता है अब कम समझदार को , भीड़ नेताओ की इतनी है बढ़ गई 


 


हर जगह डगमगा गया है संतुलन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक, कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन


 


स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को, पंचवटियों में बढ़ रहा अपहरण


 


घूमते हैं असुर साधु के वेश में , अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला


 


सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है, रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला


 


हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण ,राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !


 


 3


 


सरस्वती वन्दना


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध 


 


ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर 


 


vivek1959@yahoo.co.in


 


मो ७०००३७५७९८


 


 


 


शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,


 


डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !


 


 


हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,


 


स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना


 


आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,


 


चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !


 


 


सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना 


 


बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना 


 


रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और और ध्वंस है


 


बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे 


 


 


ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई 


 


बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई  


 


उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में 


 


भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे 


 


 


चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में 


 


जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में 


 


थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में 


 


हृदय को माँ ! पूर्णिमा का मधु भरा संसार दे


 


4


 


 


शारदी चांदनी


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना  


 


प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे 


 


नैन मन की मिली योजना से,  चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे 


 


बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से 


 


वीण से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे 


 


सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे 


 


मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से 


 


मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारा


 



 


दुर्गावती


 


 


प्रो.चित्र भूषण  श्रीवास्तव ‘‘विदग्ध‘‘


 


A 1 एमपीईबी कालोनी 


 


रामपुर, जबलपुर 482008


 


मो. ७०००३७५७९८


 


 


गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का 


 


दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।


 


 


उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने


 


दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने


 


 


उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी


 


गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी


 


 


युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी


 


प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी


 


 


दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था


 


हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था


 


 


साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था


 


बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था


 


 


एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया


 


राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया


 


 


बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया


 


और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया


 


 


दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा


 


बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा


 


 


एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान


 


और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान


 


 


घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा


 


लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा


 


 


आती है जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे


 


राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे


 


 


पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ


 


विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ


 


 


रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के 


 


अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने


 


 


बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा


 


आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उनसे हारा   


 


 


तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला


 


नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका


 


 


तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार


 


युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार


 


 


युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार


 


लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार


 


 


तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ 


 


काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात


 


 


भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ


 


बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ


 


 


छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार


 


तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार


 


 


तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण


 


सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान


 


 


सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ


 


ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास


 


 


फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस


 


बाण निकाला स्वतः हाथ से हुआ हार का तब आभास


 


 


क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार


 


दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार


 


 


घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार


 


तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार


 


 


स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे 


 


जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में


 


 


महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी 


 


सारे प्रोफेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध”, जबलपुर : संक्षिप्त परिचय


 


 


  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"


 


        वरिष्ठ साहित्यकार , कवि , अर्थशास्त्री , शिक्षाविद्गो


 


 


जन्म : 23 मार्च 1927 मंडला (मप्र)


 


 


स्थायी पता : विवेक सदन नर्मदा गंज , मण्डला म.प्र. ४८१६६१


 


 


वर्तमान पता : बंगला नम्बर A 1, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.) पिन-482008


 


 


मोबाइल : 0७०००३७५७९८ / ९४२५४८४४५२


 


 


शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अर्थशास्त्र),  एम.एड.,साहित्य रत्न,


 


शासकीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से सेवानिवृत प्राध्यापक । 


 


-    केंद्रीय विद्यालय जबलपुर क्रमांक 1 एवं जूनियर कॉलेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य । 


 


 


सृजन की विधाएं : कविता, अनुवाद, शैक्षिक और बाल साहित्य , चिंतन , ललित लेख। 


 


 


प्रकाशित पुस्तकें : २५ से अधिक किताबें 


 


-    काव्य कृतियाँ :वतन को नमन ,  अनुगुंजन, मुक्तक संग्रह, स्वयं प्रभा, अंतर्ध्वनि (गीत संग्रह), ईशाराधन 


 


-    अनुवाद : भगवत गीता हिन्दी पद्यानुवाद, मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद, रघुवंशम पद्यानुवाद ।


 


-    निबंध संग्रह : उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युगध्वनि, जय जवान जय किसान, मानस के मोती


 


-    शैक्षिक  साहित्य : समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, शिक्षण में नवाचार, 


 


-    बाल साहित्य : बालगीतिका , बाल कौमुदी , सुमन साधिका , चारु चंद्रिका  बाल गीत संग्रह (4 भागों में शिशु गीत , से किशोर गीत तक  ),  आदर्श भाषण कला , नैतिक कथायें , जन सेवा , अंधा और लंगड़ा , कर्मभूमि के लिये बलिदान 


 


 


ई बुक्स डेली हंट एप पर भी उपलब्ध 


 


 


    संपादन : अर्चना, पयस्वनी, उन्मेष, वातास पत्रिकायें । 


 


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प्रकाशन : 


 


-    सन 1946 में सरस्वती पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित, तब से निरंतर पत्र पत्रिकाओ में कविताये, बाल रचनायें,लेख आदि प्रकाशित हो रहे हैं । 


 


-    वर्तमान में देशबंधु जबलपुर सहित, दशहरा रायपुर, त्रिपुरी टाईम् आदि अखबारो व पत्रिकाओ में उनके द्वारा किए गए भगवत गीता व रघुवंश के पद्यानुवादों का धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है । 


 


 


प्रसारण : 


 


-    आकाशवाणी , दूरदर्शन से रचनाओं, वार्ताओं और चिंतन आलेखों का नियमित प्रसारण । 


 


मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी , हिन्दी साहित्य सम्मेलन , अभियान , नेहरू युवा संगठन उर्दू अकादमी मध्य प्रदेश शासन , वर्तिका ,पाथेय  सहित अनेको साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थायें उन्हें या उनकी पुस्तको को समय समय पर पुरस्कृत कर स्वयं गौरवांवित हुई हैं . 


 


शिक्षा जगत में विशेष कार्य : 


 


-    वे केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य हैं.  


 


- सरस्वती शिक्षा मंदिर मण्डला के आचार्यो को उनके बाल मनोविज्ञान तथा शैक्षिक प्रशिक्षण के परिणाम स्वरूप शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम मिले 


 


-    प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर तथा राज्य शिक्षा संस्थान भोपाल में उन्होने माईक्रो टीचिंग पर शोधात्मक किताबें लिखी । 


 


-    पाठ्यक्रम निर्माण, औपचारिकेतर शिक्षण, पढ़ो कमाओ, माइक्रो टीचींग, सतत शिक्षा, शैक्षिक प्रौद्योगिकी, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण सुधार, शिक्षा में गुणात्मक सुधार, शालेय पर्यवेक्षण, आदि विषयो पर उनके कई शोध आलेख प्रकाशित हुये हैं । तथा उन्होने इन विषयों पर नीतिगत व मैदानी निर्णायक योगदान दिया है । 


 


-    नेहरू युवा केद्र संगठन में अपनी रचनाधर्मिता से उन्होने युवाओ के लिये आव्हान गीतो तथा प्रेरक उद्बोधनो के माध्यम से योगदान दिया व सम्मानित हुए । 


 


‍‌- विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में सहभागिता . 


 


सामाजिक अनुकरणीय कार्य :     


 


1-    नारी शिक्षा को बढ़ावा । 


 


2-    विवेकान्द शिला स्मारक कन्याकुमारी तथा यू एन ओ भवन दिल्ली के निर्माण के लिये उन्होने धन संग्रह किया तथा व्यक्तिगत रूप से बड़ी राशि दान स्वरूप दी । 


 


3-    मण्डला में रेड क्रास समिति की स्थापना उनके ही प्रयासो से हुई । 


 


4-    उन्होने मण्डला में अनेक युवाओ हेतु आत्मनिर्भर रोजगार के नये अवसर दिये । 


 


5-     वे कामनवैल्थ काउंसिल फार एजूकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य हैं । 


 


6-    आल इण्डिया फेडरेशन आफ एजूकेशनल एशोसियेशन्स के महाविद्यालयीन विभाग के वे सचिव रहे हैं । 


 


7-    भारत चीन युद्ध, कारगिल युद्ध, लातूर के भूकम्प, उत्तरांचल आपदा आदि अवसरो पर प्रधान मंत्री सहायता कोष में उन्होने बड़ी राशि स्वतः प्रेरणा से बैंक जाकर दान दी है  


 


8-    उन्होने हजारो किताबें विभिन्न शालाओ व पुस्तकालयो में दान स्वरूप दी हैं जिससे पठन पाठन की संस्कृति को बढ़ावा मिले ।     


1


 


भारतमाता


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


भारतमाता शांतिदायिनी !


 


 


सघन हरित अभिराम वनांचल


 


पावन नदियां ज्यों गंगाजल


 


विविध अन्न फल फूल समृद्धा


 


जनहितकारी सुख विधायिनी


 


आनंद मूला मधुर भाषिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


मर्यादित शालीन सुहानी


 


बहुभाषा भाषी कल्याणी


 


मुदित आनना निष्चल हृदया


 


पंपरागत ग्राम वासिनी


 


स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


सरल सहज शुभ सात्विक रूपा


 


शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा


 


अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक


 


अखिल विश्व समता प्रसारिणी


 


निर्मल प्रेम भाव धारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री


 


आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री


 


मलय पवन सुरभित शुभ आंचल


 


मृदुला नवजीवन प्रदायिनी


 


धर्म प्राण संताप हारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


2


राम जाने कि क्यो राम आते नहीं ? 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘  


 


A 1 , MPEB Colony , Rampur Jabalpur


 


 


हो रहा आचरण का निरंतर पतन,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


हैं जहां भी कहीं हैं दुखी साधुजन दे के उनको शरण क्यों बचाते नहीं


 


 


उजड़ी केशर की क्यारी है बारूद से, रावी सतलज का जल खून से लाल है 


 


धर्म के नाम नाहक ही फैला जुनूं , हर समझदार उलझन में बेहाल है 


 


सारे कश्मीर में ,उधर आसाम में ,चल रही गोलियां और लगी आग है 


 


कर रही आसुरी शक्ति विध्वंस यों , खून से गांव कोई न बेदाग है 


 


खाने को दौड़ता सा है वातावरण , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


रोज होते रहे जहां पूजन भजन , आज खण्डहर पड़े हैं कई वे भवन 


 


यज्ञ करते रहे लोग जो देश हित , अब वही सैकड़ों हो रहे हैं हवन 


 


छाया आतंक की बढ़ रही हर तरफ , घिर रहा है घरों में अंधेरा घना


 


लोग गुमसुम डरे सकपकाये से हैं , हरएक चेहरा नजर आता अनमना 


 


बढ़ रहा खर औ" दूषण का नित अतिक्रमण ,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


बढ़ती जाती कलह हर जगह बेवजह , नेह सद्भाव पड़ते दिखाई नहीं


 


एकता , प्रेम , विश्वास हैं अधमरे , आदमियत आदमी से गुम हुई है कहीं 


 


स्वार्थ , सिंहासनो पर अब आसीन हैं , कोई समझता नहीं है किसी की व्यथा 


 


मिट गई रेखा लक्ष्मण ने खींची थी जो , महिमा मंडित है अपराधियों की कथा 


 


है खुले आम रावण का आवागमन ,   राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं , आचरण में अधिकतर हैं मनमानियां 


 


जिसकी लाठी है अब उसकी ही भैंस है , राजनेताओ में दिखती हैं नादानियां 


 


स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो , हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई 


 


मान मिलता है अब कम समझदार को , भीड़ नेताओ की इतनी है बढ़ गई 


 


हर जगह डगमगा गया है संतुलन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक, कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन


 


स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को, पंचवटियों में बढ़ रहा अपहरण


 


घूमते हैं असुर साधु के वेश में , अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला


 


सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है, रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला


 


हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण ,राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !


 


 3


 


सरस्वती वन्दना


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध 


 


ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर 


 


vivek1959@yahoo.co.in


 


मो ७०००३७५७९८


 


 


 


शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,


 


डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !


 


 


हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,


 


स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना


 


आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,


 


चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !


 


 


सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना 


 


बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना 


 


रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और और ध्वंस है


 


बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे 


 


 


ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई 


 


बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई  


 


उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में 


 


भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे 


 


 


चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में 


 


जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में 


 


थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में 


 


हृदय को माँ ! पूर्णिमा का मधु भरा संसार दे


 


4


 


 


शारदी चांदनी


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना  


 


प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे 


 


नैन मन की मिली योजना से,  चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे 


 


बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से 


 


वीण से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे 


 


सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे 


 


मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से 


 


मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारा


 



 


दुर्गावती


 


 


प्रो.चित्र भूषण  श्रीवास्तव ‘‘विदग्ध‘‘


 


A 1 एमपीईबी कालोनी 


 


रामपुर, जबलपुर 482008


 


मो. ७०००३७५७९८


 


 


गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का 


 


दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।


 


 


उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने


 


दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने


 


 


उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी


 


गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी


 


 


युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी


 


प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी


 


 


दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था


 


हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था


 


 


साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था


 


बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था


 


 


एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया


 


राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया


 


 


बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया


 


और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया


 


 


दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा


 


बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा


 


 


एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान


 


और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान


 


 


घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा


 


लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा


 


 


आती है जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे


 


राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे


 


 


पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ


 


विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ


 


 


रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के 


 


अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने


 


 


बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा


 


आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उनसे हारा   


 


 


तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला


 


नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका


 


 


तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार


 


युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार


 


 


युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार


 


लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार


 


 


तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ 


 


काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात


 


 


भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ


 


बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ


 


 


छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार


 


तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार


 


 


तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण


 


सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान


 


 


सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ


 


ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास


 


 


फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस


 


बाण निकाला स्वतः हाथ से हुआ हार का तब आभास


 


 


क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार


 


दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार


 


 


घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार


 


तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार


 


 


स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे 


 


जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में


 


 


महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी 


 


सारे गोडवाने में जन जन से जो गई सराही थी


 


 


असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में


 


दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में


 


 


जीकर दुख में अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान


 


24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण


 


 


है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार


 


गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार


 


 


कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार


 


बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार


 


 


कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश


 


अगर न बरसा होता पानी तो कुछ अलग होता इतिहास


 


डवाने में जन जन से जो गई सराही थी


 


 


असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में


 


दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में


 


 


जीकर दुख में अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान


 


24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण


 


 


है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार


 


गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार


 


 


कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार


 


बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार


 


 


कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश


 


अगर न बरसा होता पानी तो कुछ अलग होता इतिहास


 


 


अनिल विधार्थी

मन मे है दुख प्रेयसी का पर नित मे कलम उठाता हू


करता प्रणाम उन वीरो को मे गीत उन्ही के गाता हू


 


जो बर्फीली चट्टानो मे अपना करतव निभा रहे


 


हैं गद्धार देश के अंदर न कदम से कदम मिला रहे


 


ना गरीब तक पेंसन पहुचे ना कोई सेबा सरकारी


 


निर्धन बच्चे भूंखे बिलखें खाये मेवा करमचारी


 


देख दशा इन लोगों की ए मन मे विचलित हो जाता हू


है प्रणाम उन वीरो को---


 


भूल गये ये भारत मे की कैसे कैसे वीर हुये


 


भगत सिंह सुख देव राज चन्द्रशेखर समशीर हुये


 


भूल गये ये झांसी की रानी की वह अमर कहानी


 


ना गोरों को शीश झुकाया खूबलडी बो मरदानी


 


गौरव गाथाये याद कर मे नतमस्तक हो जाता हू


है प्रणाम उन वीरो----


 


भूल गये हल्दी घाटी महाराणा की कहानी को


 


बार बार प्रणाम मे करता राजपूत कि जवानी को


 


भूल गये चेतक की गाथा और उसकी कुरवानी को


 


आज भी मंदिर बना बो जग देखता उसी निसानी को


 


छब्बीश फुट गहरे कूंदा सोच जयकार लगाता हू


है प्रणाम उन वीरो को----


 


    अनिल विधार्थी (जख्मी)


प्रखर

सखी री! रुचि रुचि मेंहदी धरी।


भर सावन मँह रग-रग लहके, जब जब मेह झरी।


बाग तड़ाग पोखरा अंगना , भई धरती हरी भरी।।


अंबर कारे बदरा बिजुरी, गैलन कींच करी।


जानै कब साजन घर अइहैं, मैं मुरझी गेह परी।।


इतै झुराने रास रंग बालम, उत काम्य उतान भरी।


झूला सलोनो चंदन पटुला, जामै रेशम डोर परी।।


बरै श्रावणी जिया जरावै, भारी विरह घरी।


प्रखर कंत बिनु प्रिया उदासी, कब भेटिहैं कंत हरी ।।


 


*सावन का लालित्य*


 


भवानी रूप को वंदन मुखर लालित्य सावन का।


नखशिख सौम्यता लाली आसरा पीय आवन का।।


घिरे घनश्याम री आली! कजरी तीज मल्हारें,


भिगाए मेघ तन मन को प्रखर उर नेह सावन का।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


प्रखर

भजो मन राम पुरुषोत्तम वही परब्रह्म परमेश्वर।


जो व्यापक सत चराचर में वो अलक्षित लक्ष अखिलेश्वर।।


वो जड़ जंगम है चेतन में चिरंतन आदि प्रलय में भी,


सियापति राम भवतारक वो करुणाकर है सरवेश्वर।।


 


अमंगलहार का सुमिरन जीव भव से पार जाते हैं।


वो वत्सल राम उनके हैं जो जीवन हार जाते हैं।।


वो सारंगधर सुदर्शनधर वो पालनहार सृष्टा भी ,


प्रखर सुमिरन से नारायण अगम भव तार जाते हैं।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रूखाबाद


अवनीश त्रिवेदी

भारती की आरती में, शीश को चढ़ाएं नित,


                     देश की अखंडता को, मिल के बचायेंगे।


लाखों कुर्बानी देकर, पायी ये स्वतंत्रता है,


                  क्रांतिकारियों की गाथा, कभी न भुलायेंगे।


राजगुरु, सुखदेव, अशफ़ाक, बिस्मिल औ,


                     भगत की परिपाटी, आगे ही बढ़ायेंगे।


चमक कभी देश की, खोने नही देंगे कभी,


                   देके आहुति प्राणों की, राष्ट्र को सजायेंगे।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


मंजूषा श्रीवास्तव मृदुल

वतन हिन्द मेरा मेरी जान है


 


वतन हिन्द मेरा मेरी जान है |


यही शान अपनी यही मान है |


 


 


अमन का पुजारी अमन चाहता -


अमन हो जहाँ में ये अरमान है |


 


 


तिरंगा हमारा झुकेगा नहीं -


मेरे देश की यह ही पहचान है|


 


 


है मिट्टी यहाँ की तिलक भाल का -


यही आत्म गौरव ये सम्मान है |


 


 


विविध जाति धर्मों के खिलते सुमन -


ये वो बाग जिसकी अजब शान है |


 


 


ये हिन्दू मुसलमां ये सिख पारसी -


ये हिन्दोसतां की ही संतान हैं |


 


 


जो इस सच को झुठला करे नीचता -


कृतघ्नी हैं वो कितना हैवान है |


 


 


मिटा शत्रु को आन रखना सदा -


वतन के लिए जान कुर्बान है |


 


 


'मृदुल' भावना शक्ति की साधना -


यही मान सम्मान अभिमान है |


 


 मंजूषा श्रीवास्तव मृदुल


लवी सिंह बहेड़ी बरेली उत्तर प्रदेश राष्ट्र वंदना


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जाति धर्म की हम तोड़ श्रृंखलाएं


मानवता से नाता जोड़ें


नर हैं तो हम नरता को अपनाएं


अमानवीयता को छोड़ें


 


जन गण मन के बनके अधिनायक


अखण्ड राष्ट्र का निर्माण


सभी सुशिक्षित व सभी सुसंस्कृत


मानव मात्र का कल्याण


 


सत्य अहिंसा अस्तेय व अपरिग्रह


ममता समता और त्याग


मिले नारी को सम्मान व प्रतिष्ठा


कुत्सित भावों का त्याग


 


राष्ट्र प्रेम की ज्योति जले हृदय में


सामाजिक मूल्यों उत्थान


मान न गिरने दें मातृ भूमि का


धर्म बने नर की पहचान


 


सबको रोटी कपड़ा व मकान मिले


दीन हीन को मिले न्याय


मिले स्वास्थ्य हों शिक्षा से अलंकृत


मिलकर सभी करें उपाय


 


पाश्चात्य का अंधानुकरण छोड़


संस्कार संस्कृति अपनाएं


राष्ट उत्सव से बड़ा पर्व न कोई


मिलकर स्वतंत्रता दिवस मनाएं...


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन

है प्यार बहुत देश हमारा हिन्दुतान।


है संस्कृति इसकी सबसे निराली है।


कितनी जाती धर्म के, लोग रहते यहाँ पर।


सब को स्वत्रंता पूरी है, संविधान के अनुसार।।


कितना प्यार देश है हमारा हिंदुस्तान।


इसकी रक्षा करनी है आगे तुम सबको।।


 


कितने बलिदानों के बाद मिली है आज़ादी।


कितने वीर जवानों को हमने खो दिया।


गांधी सुभाष और भगत सिंह चढ़े इसकी बलि।


चंद्रशेखर और मंगल पांडेय हो गए शाहिद।


तब जाके हमको ये मिली है आज़ादी ।।


अब देखो नेताओ का ये नया हथकंडा,


आपास में बाट रहे अपने ही देश को ।।


 


इससे उन शहीदों कैसे मिलेगा सकून।


जिन्होंने आज़ादी के लिए गमा दिया प्राण।


क्या उन सभी कुर्बानियां व्यर्थ जाएगी।


फिर से देश क्या गुलाम बन जायेगा।


यदि ऐसा अब हुआ तो सब खत्म हो जाएगा ।


भारत फिर से गुलाम बन जायेगा।


इसका सारा दोष देश के नेताओ को जाएगा।।


कितना प्यार देश है हमारा हिंदुस्तान ।


इसकी रक्षा करनी है आगे तुम सब को।।


 


 


संजय जैन (मुम्बई)


सीमा शुक्ला अयोध्या

भारत मां के वीर सपूतों,


तेरी जय जयकार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


भूलेगा क्या देश शिवाजी


तेरी अमित कहानी को।


निकल पड़ी जो समर भूमि में


झांसी वाली रानी को।


राज गुरु, सुखदेव, भगत की,


उस कुर्बान जवानी को।


जय सुभाष, आज़ाद गर्व है


तुम पर हिन्दुस्तानी को।


 


दिया शहीदों ने आज़ादी,


का हमको उपहार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


भारत मां आजाद कराए,


जकड़ी थीं जंजीरों में।


कहां लिखा है कफ़न तिरंगा


जन जन की तकदीरों में।


धन्य तुम्हारा जन्म धरा पर,


धन्य तुम्हारी माता है ।


भारत मां का क़र्ज़ तुम्हारे,


जैसा कौन चुकाता है ।


 


सीमा की वह लिखें लड़ाई,


घाटी की चीत्कार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


जो हंसकर के खाई तुमने


सीने की गोली लिख दें।


मरते मरते बोल गए तुम,


इन्कलाब बोली लिख दें।


जब खेले तुम रक्त बहाकर,


सीमा पर होली लिख दें।


चली प्राण की देने आहुति,


वीरों की टोली लिख दें।


 


नमन तुम्हारा कोटि कोटि है,


वंदन बारम्बार लिखें ।


भारत मां के वीर सपूतों,


तेरी जय जयकार लिखें।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


एस के कपूर श्री हंस

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई


बस एक नाम देना है।


हैं एक देश की संतानें बस


उसी को मान देना है।।


इतनी महोब्बत हो कि नाम


नफरत का मिट जाये।


हम सब हैं भारत वासी बस


यही पैगाम देना है।।


*संख्या।।।।।।।।।2।।।।।।।।।।*


विश्व के शिखर पर हमेंअब भारत


का नाम चाहिये।


चोटी पर लहराता तिरंगा ऊंचा 


आलीशान चाहिये।।


चाहिये वही पुरातन विश्व गुरु


का दर्जा भारत को।


फिर से वही हमें सोने की चिड़िया


वाला हिंदुस्तान चाहिये।।


*संख्या।।।।।3।।।।।।।।।।।*


शत शत नमन. उन. शहीदों को


जो देश पर कुर्बान हो गये।


वतन के लिए. होकर. बलिदान


वह बस बे जुबान हो गये।।


उनके प्राणों की कीमत पर ही


सुरक्षित है देश हमारा।


वह जैसे जमीन ऊपर उठ कर


आसमान हो गये ।।


*संख्या।।।।।।।4।।।।।।।।*


अम्बर के उस पार. जाना है


नया हिंदुस्तान बनाना है।


भारत के गौरव चंद्रयान से


चाँद को छू कर आना है।।


अंतरिक्ष की उड़ान. से. सम्पूर्ण


मानवता को दिया संदेश।


बस दुनिया. भर में भारत को 


हमें महान कहलाना है।।ए


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली


एस के कपूर श्री हंस

नमन है उन शहीदों को जो,


देश पर कुरबान हो गए।


वतन के लिए देकर जान,


वो बेजुबान हो गए ।।


उनके प्राणों की कीमत से,


ही सुरक्षित है देश हमारा।


उठ कर जमीन से ऊपर,


वो जैसे आसमान हो गए।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


अब आर हो या पार हो,


बंद नरसंहार हो।


हर वार का जवाब वार,


अब लगातार हो।।


मिट जाये नक्शे से ही,


नाम विवाद का।


कुछ ऐसा कठोर प्रहार,


अबकी बार हो।।


*3,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


गलवान घाटी में दिखा कर,


ऐसी तू अराजकता।


मत खुश हो कि शर्मसार,


करके तू मानवता।।


नहीं जायेगा व्यर्थ कभी ये,


बलिदान शहीदों का।


होगा ऐसा प्रहार कि ना दिखा,


पायेगा तू दानवता।।


एस के कपूर श्री हंस


बरेली


विनय साग़र जायसवाल

यह कह के तय किये थे सफ़र सूए-दार के


आयेंगे एक दिन तो यहाँ दिन क़रार के


 


रखते हैं लोग उनको ही दिल में संवार के 


जाते हैं जानो-दिल जो वतन पर निसार के


 


कितना सुरूर जज़्बा-ए-आज़ादियों में था


बादाकशों को याद हैं वो दिन ख़ुमार के


 


हम भी तो हैं सपूत तेरे मादर-ऐ-वतन 


इक बार देख ले तू हमें भी पुकार के


 


कहती है बार-बार ये तारीख़ दोस्तो


भागे नहीं हैं हम कभी मैदान हार के


 


हम हैं वतन परस्त शहीदों के जांं नशीं


रख देंगे राहे-फ़र्ज़ में गर्दन उतार के


 


पुरखों का ख़ून अपने सभी मौसमों में है


यूँ हीं नहीं मिले हैं हमें दिन बहार के


 


*साग़र* हैं दुश्मनों की निगाहें इसी तरफ़


आँखों में नक्श रखना हमेशा दयार के


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


वंदना रमेश चंद्र शर्मा 

वंदना शर्मा  (विंदू)


पति का नाम- रमेश चंद्र शर्मा


पिता स्वर्गीय श्री कैलाश नारायण जी रावत


मां  श्रीमती सरोज देवी रावत


जन्म     8    अप्रैल


जिला   देवास   म . प्र.


प्रकाशन  विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओ का प्रकाशन व सम्मान नईदुनिया मि लेख पत्र व रचनाएं  प्रकाशित


सम्मान  ऑनलाइन कवि सम्मेलन मैं पुरस्कृत


ऑनलाइन श्लोक वाचन


हिंदी साहित्य लहर


अग्निशिखा मंच


काव्य धारा


साहित्य वसुधा


श्री नवमान साहित्य सम्मान


शुभ संकल्प आदि में सम्मान प्राप्त हुआ है


व्यवसाय   हाउस वाइफ  रचनाकार  कवित्री


विचारधारा   धार्मिक   राष्ट्रवादी


स्थाई पता   देवास जिला मध्य प्रदेश


52  सर्वोदय नगर देवास


फोन नंबर  744 1128 069


 


     


 


1 सरस्वती वंदना निमाड़ी हिंदी


 


सरस्वती वंदना


 


माडी़ म्हरी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे भगवती शारदे


माडी़ म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे सरस्वती शारदे


 


माडी़ थारे शीश मुकुट गल हार रे कानारा कुंडल शोभिते । 


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तारदे  भगवती शारदे।


 


माड़ी म्हारी कर माला पुस्तक धारिणी भगवती शारदे। 


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे सरस्वती शारदे


 


माडीं म्हरी वीणा वादिनी ज्ञान दायिनी 


ज्ञान रि तू भंडार है माडी़ म्हारी  सरस्वती


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे भगवती शारदे


 


तू ही कमला तू ही ब्रह्माणी तू ही बागेश्वरी शारदे


उमा रमा कल्याणी जगदंबा तू ही भवानी शारदे


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे भगवती शारदे


 


माड़ी म्हारी धवल वस्त्र धारणी हंस वाहिनी


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे भगवती शारदे


 


माडी़ म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे सरस्वती शारदे


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे भगवती शारदे


 


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे भगवती शारदे


माड़ी म्हारी भक्ति रो ज्ञान दे तार दे सरस्वती शारदे


 


वंदना शर्मा बिंदु 


देवास


 


2मजदूर


 


 


हूं गुदड़ी को लाल 


म्हारे आवे तामझाम नी


भोलो भालो आदमी हूं


बिल्कुल लाफाबाज नी...


 


दो आना की ताड़ी ली ने


दो आना का  भूगड़ा 


चारआना की दि्याड़की में


मिल गई माया राम की...


 


घर में जित्रा सभी कमा वें


कई बूढ़ा कई ज्वान(जवान)जी


रोज कमावाँ रोज उड़ा वाँ


कइ चिंता की बात नी..


 


वोइ खवाड़े वोइ पिरावे


भंडारा में जीमाए जी 


रखवालो हे राम जी तो


कइ डरना की बात जी...


 


नित्य नई बन रई योजना


जय हो वे सरकार की


हूं मजदूर मजा से दूर


सुमिरू हरि को नाम जी.. 


 


हूं गुदड़ी को लाल


म्हारे आवे तामझाम नी


 


 


वंदना रमेश चंद्र शर्मा देवास


 


 


दोस्त


 


सखा हो कान्हा सा जिसका


सुदामा तर  ही जाता है


 


फंसे मोंह जाल में हम तो


वह बाहर खींच लाता है


 


भटक जाए जो राहों में


तो वो रास्ता दिखाता है


 


रतन अनमोल वो साथी


ना कोई भाव करता है


 


जमाना हो अगर दुशमन


वो फिर भी साथ रहता है


 


जो संकट आए तो ऊपर


वो आ संबल बढ़ाता है


 


सभी रिश्तो से बढ़कर है


सखा की प्रीत का रिश्ता


 


टेर सुन दौड़ा आए वो 


लुटाए जा सखा पे जो


 


सखा हो कान्हा जी जैसा


सुदामा तर ही जाता है


 


वंदना रमेश चंद्र शर्मा देवास


 


4 ।।भ्रूण हत्या।।


 


इतना बतलादो ना, मेरा कुसूर क्या है


इतना बतलादो ना, मेरा कुसूर क्या है


 


कहीं भूल हुई तुझसे, क्यू सजा मिली मुझको


कहीं लाल की चाहत में, आहत कर दी मुझको


 


मैं प्यार तेरा पाऊं, तेरी गोद में छुप जाऊं


ममता की छांव में, महफूज में हो जाऊं


 


क्यू अंक से नुचवाकर, कूड़े में डाल मां


क्या रूह नही कांपी, तू ऐसी क्यों है मां


 


क्या बलि चढ़ी मेरी, परिवार वाद में मां


तुझ पर दबाव होगा, तेरी एक चली ना मां


 


मैं बनकर के अंकुर, तेरे उदर में आई मां


दस्तक नन्हे हाथों से, तेरे द्वार पे दी है मां


 


इस धरती पर मुझको, आने तो दे ना जरा


बनके फुलवारी में, तेरा आंगन महकाऊ


 


तेरे बाग की चिड़िया बन, नीलगगन छू लूं


मैं कली हूं नन्ही सी, मुझे खिलने तो दो ना


 


तेरा मस्तक हो ऊंचा, कुछ ऐसा कर गुजरू


मुझे कोंख में ना मारो मुझे कोंख में  ना मारो


 


यह पाप बड़ा भारी, हैं भ्रूण हत्या कारी


मेरी चीख घुटी अंदर, मै सिसक रही  हूं ना


 


ग़र आज मिटाओगे, कल फिर पछताओगे


ये पाप बड़ा भारी, है  भ्रूण हत्या कारी


 


इतना बतला दो ना मेरा कुसूर क्या है


इतना बतला दो ना मेरा कुसूर क्या है


 


वंदना रमेश चंद्र शर्मा


देवास जिला मध्य प्रदेश


 


5।।गांव की यादें।।


 


कई-कई बात बताऊं दादा


म्हारे आवे गांव की याद घणी


माई तो म्हारे बसी हिबड़े 


दादा की नैनन छवि गढ़ी


भावाज बेहना की कमी खली


सखियन की आवे याद घणी


 


उठ भुनसारे माल में जाता


झूड़या आंबा इमली घणी


खाया जामन खूब करौंदा


ताजा नींबू नमक धरी


 


ताल तलैया नद्दी नाला


झिरी पोखरया खूब भरया


सखी सहेल्यां संग हिल मिल के


खेत खला में घुम्या घणा


 


झाड़ू वारा लिप्या पुत्या 


घर आंगन लाग्या बड़ा भला


फेरया खापरा कंडा थाप्या


पनघट से पानी लाया


 


जद जइने चुलो बालियों ने


ज्वार मक्का का रोटा घड़ियां


लसुण की चटनी कांदो अथाणों


गुड़ की भेली साथ धरा


साग भाजी की कमी नी होवे


रुचि रुचि खांवा घड़ी घड़ी 


 


बैलगाड़ी की करा सवारी


सांझा होली पांचा खेल्या


दादा संग चौपाल में घूमिया


वीरा संग कंचा खेल्या


कई-कई बात बताऊं दादा


म्हारे आवे गांव की याद घणी


 



राजेंद्र रायपुरी

 ये है हिंदुस्तान हमारा 


 


ये है हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान। 


ये है हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


जहाॅ॑ पे जन्मे राम-कृष्ण अरु,(२)


गौतमबुद्ध महान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


ये है हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


मुकुट सरीखे लगे हिमालय,


बसते डमरू धारी।(२)


उत्तर में ये करता भैया,


सरहद की रखवाली (२)


 


यहीं से निकलीं गंगा-यमुना(२)


जो भारत की शान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


दक्षिण में सागर की लहरें, 


इसके चरण पखारें।(२)


यहाॅ॑ भी बसते भोलेशंकर, 


जो हैं देव हमारे।(२)


 


पूरब में हैं जगन्नाथ जी,(२)


पश्चिम कृष्ण महान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


कृषि प्रधान है देश हमारा,


होती खूब किसानी।(२)


बड़े बाॅ॑ध है देश हमारे,


जो देते हैं पानी(२)


 


भाखड़ा नांगल,हीराकुंड संग (२)


है नागार्जुन शान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


ये है हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


 


देश एक है धर्म अनेकों, 


यही खासियत भाई (२)


हिंदू-मुस्लिम,सिक्ख यहीं पर,


रहते यहीं ईसाई।(२)


 


होली,ईद,दिवाली के संग(२)


ईस्टर पर्व प्रधान।


 


ये है हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


ये है हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


 


               ।। राजेंद्र रायपुरी।।


      


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आदिशक्ति हे जगत पालिका


तुमसे ही सृष्टि और संसार


तेरा बल पा करके किशोरी 


कृष्ण बना प्रेम का पारावार


 


अदभुत रूप सौंदर्य तुम्हारा


फिर भी कर दूं राधे श्रृंगार


कृष्ण हृदय की दिव्य ज्योति


तुम अर्धांग और मेरे आधार


 


आओ मिलकर आर्यावर्त को


हम दे दें खुशियों की सौगात


मिले समानता और स्वतंत्रता


हर पल इनका नव प्रभात


 


एक मात्र आध्यात्म भूमि है


जग में हिंदुस्तान है नाम


ऐसी पावन पुण्य वसुंधरा को


आओ राधा करें प्रणाम।


 


युगलरूपाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


अमित अग्रवाल

आजादी का पर्व अनूठा, जीवन में ऐसा आया..


बिन बेड़ी के बंधे हुए हैं, कैसी अजब रची माया..


 


काम धाम सब बंद पड़े हैं, लेकिन खर्चे थमे नहीं..


घर में खाली बैठे बैठे, मन भी बिल्कुल लगे नहीं..


 


मेल जोल के छीन गये मौके, रूखे हैं त्यौहार सभी..


पीहर आने की चाहत में, बहनें हैं लाचार सभी..


 


घर से बाहर जाने का तो, सपना भी बेमानी है..


खुद ही हैं मेहमान हमीं, खुद की ही मेजबानी है..


 


ऐसी विकट समस्या में हम, कैसे हर्ष मनाएंगे..


कैसे अब जयघोष करेंगे, कैसे ध्वज फहराएंगे..


 


बिन बच्चों के गली में कैसे, जुलूस निकाला जाएगा..


तुतलाती बोली में वंदन, कोई नहीं सुन पाएगा..


 


श्वास भी अब तो लगती मुश्किल, कैसे गौरव गान करें..


नम आंखों से आजादी का, कैसे हम गुणगान करें..


 


जब तक सर पर बना है खतरा, कोरोना की व्याधि का..


तुम ही बताओ कैसे लिख दूं, गीत नया आजादी का..


 


अमित अग्रवाल 'मीत'


डॉ. निर्मला शर्मा

समय की बात


कहावत सुनी सबने यही


समय बड़ा बलवान


समय के आगे न चले


चाकर हो या महाराज


समय की कीमत है बड़ी


जानो इसका मोल


समय समय पर ही करो


काम बड़े अनमोल


निकल गया यदि समय अभी


फिसले रेत समान


हाथों में न कुछ रहे


मन मे रहे मलाल


कर्म की गति को तीव्र करो


पकड़ो समय की चाल


वरना तुम रह जाओगे


समय का रथ बढ़ जाये


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी

आजादी का सपना संजोये कितने ही कुर्बान हुए ।


पाने को आजादी देश की कितने ही बलिदान हुए ।।


बरसों बाद देखा है हमने चेहरा हँसता वादी का ।


आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।


 


लहू से सींचा है अपने तब


बाग खिला इस माटी का ।


वीरों के बलिदान से महके 


चमन देश की घाटी का ।।


कफ़न बाँध कर चलते हैं वो..2


रूप धरा है खादी का ।।


 


आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।


 


देश की रक्षा में जो लगे हैं


भेद-भाव ना उनमें है ।


दूर रखो मेरे देश से उनको


द्वेष भावना जिनमें है ।।


तोड़ रहे हैं देश को मेरे..2


करके बहाना जाति का ।।


 


आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।


 


शांति प्रेम स्नेह भरा है 


मेरे देश के कण कण में ।


हरियाली मुसकाती है अब


धरा के पावन हर क्षण में ।।


मुस्काती है मातु भारती..2


रूप धर के शहजादी का ।।


 


आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।


 


 


कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी


लखीमपुर खीरी


नूतन लाल साहू

स्वाधीनता दिवस


आज है,पंद्रह अगस्त का दिन


आज का दिन महान हैं


भारत के नौजवानों,आजादी के दीवानों


अपनी आजादी को हरगिज,भुला नहीं सकते हैं


जंजीरों से बंधी हुई थी,सदियों से भारत माता


इन्हें तोड़ने वाला,लाखो ने दे दी अपनी जान हैं


स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है


ये पैग़ाम, बाल गंगाधर तिलक ने है दिया


आज है पंद्रह अगस्त का दिन


आज का दिन महान हैं


भारत के नौजवानों,आजादी के दीवानों


अपनी आजादी को,हरगिज भुला नहीं सकते हैं


कहते हैं,हम अब दुश्मनों को ललकार के


यहां रखना कदम,तुम अपना संभाल के


ख़ाक हो जायेगा, जो इधर आयेगा


देश के बेटे जाग उठे हैं,हर दुश्मन भागेगा


आज हैं पंद्रह अगस्त का दिन


आज का दिन महान हैं


भारत के नौजवानों,आजादी के दीवानों


अपनी आजादी को,हरगिज भुला नहीं सकते हैं


हंसती आंखो को,जिसने आंसू दिये थे


उसे हम,माफ कभी नहीं कर सकते हैं


हिमालय कह रहा है,इस वतन के नौजवानों से


खड़ा हूं संतरी बनके,मै सरहद पे जमानो से


आज है,पंद्रह अगस्त का दिन


आज का दिन महान हैं


भारत के नौजवानों,आजादी के दीवानों


अपनी आजादी को,हरगिज भुला नहीं सकते हैं


हम भांति भांति के पंछी है,पर


बाग तो एक हमारा है


भारत की तकदीर बनी,इसी तिरंगे के नीचे है


अपनी मां से भी बड़ी,भारत मां हमारा है


आज है,पंद्रह अगस्त का दिन


आज का दिन महान हैं


भारत के नौजवानों,आजादी के दीवानों


अपनी आजादी को, हरगिज भुला नहीं सकते हैं। 


नूतन लाल साहू


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