सुनीता असीम

किसी के प्यार में पड़कर मिटा हालात हूँ मैं।


उजड़ता सा चमन हूँ और बीती बात हूँ मैं।


***


कलेजा चाक करके रख दिया मेरा किसीने।


खुदी अपने लिए बनता रहा। आघात हूं मैं।


***


दिलों पर टूटकर बिजली गिराती जो रही है।


डरों को पालती भीतर अंधेरी रात हूँ मैं।


***


बनाता औरतों को मैं ही अबला और सबला।


उसे दासी बनाते मर्द की ही जात हूँ मैं।


***


अनोखी ही हवा चलने लगी दुनिया में अब है।


दिखे अंजाम भी इसका अभी शुरुआत हूं मैं।


 


सुनीता असीम


शिवानी मिश्रा

समय नही होता,याद करने का,


वक़्त बेवक़्त ही याद कर लिया करो।


व्यस्तता के दौर में,


अपनो को भी जान लिया करो।


कोई दूर है,कोई पास है,


अपनो में भी कोई खास है,


उस अपने के हालातों को भी जान लिया करो।


जीवन है तो सम्बन्ध है,


उन सम्बन्धों को भी


खास बना लिया करो।


जमाने गये, जरूरत पड़ने पर


अपनों के काम आने के,


आज अपने ही गैर, 


गैर ही अपने काम आने लगे।


वक़्त के साथ सब कुछ बदलता है,


सुध कर लो,उस पल की


जब कुछ ख़ास याद आने लगे।


 


शिवानी मिश्रा


(प्रयागराज)


संजय जैन

न हम हिन्दू न हम मुस्लिम


और न सिख ईसाई है।


हिंदुस्तान में जन्म लिया है तो 


पहले हम हिंदुस्तानी है।


आज़दी की जंग में 


इन सब ने जान गमाई थी।


तब जाकर हमको ये


आज़दी मिल पाई थी।


कैसे भूल उन सब को


वो भी हमारे बेटे थे।।


 


पर भारत माँ अब बेबस है


और अंदर ही अंदर रोती है।


अपने ही बेटों की करनी पर 


खून के आंसू पीती है।


धर्म निरपेक्षय देश हम 


सब ने मिलकर बनाया था।


पुनः खण्ड खण्ड कर डाला 


अपने देश बेटों ने।।


क्या हाल बना दिया


अपनी भारत माँ का अब।।


 


कितनी लज्जा कितनी शर्म 


आ रही है अपने बेटों पर।


भारत माँ रोती रहती 


एक कोने में बैठकर।


क्या ये सब करने के लिए


 ही हमने आज़दी पाई है।


और धूमिल कर डाले


आज़दी के उन सपनों को।


और मजबूर कर दिया


अपनो की लाशों पर रोने को।।


 


चल कहाँ से थे हम


कहाँ तक आ पहुंचे।


और कहां तक गिरना है


तुम बतला दो बेटों अब।


भारत माँ के बेटों को 


क्या बेटों के हाथों मरना है। 


नही चाहिए ऐसी आज़दी


जो भाइयों को लड़वाती है।


नही चाहिए ऐसी आज़दी 


जो अपास में लड़वाती है।


और मरे कोई भी दंगो में


पर माँ को ही रोना पड़ता है।


और बेटों की करनी पर 


शर्मिदा होना पड़ता है।


शर्मिदा होना पड़ता है।।


 


संजय जैन (मुम्बई) 


निशा अतुल्य

कितने सुन्दर कृष्ण कन्हिया


माँ मुझको तुम राधा बना दो


मुरली इनकी कितनी सुन्दर


बना मोर पँख मुझे सजा दो ।


 


मैं ले गगरी पनघट जाऊंगी


लहंगा चोली मुझे पहना दो


जब कान्हा फोड़ेगा गगरी


यशोदा माँ से उसे पिटवा दो।


 


छेड़गा जब कृष्ण कन्हैया


गोकुल में फिर रास रचा दो


सूरत से लगता है भोला 


माँ मुझको तुम कृष्ण दिला दो।


 


मुरली सुन सखियों सँग नाचूं


ग्वाल बाल सँग उसे नचा दो।


मेरा कान्हा बड़ा है प्यारा


माखन मिश्री इसे खिला दो ।


 


कितने सुन्दर कृष्ण कन्हिया


माँ मुझको तुम राधा बना दो ।


 


निशा अतुल्य


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम्ही हो मेरा जीवन धन


 


हृदयांगम करलो सजनी


मेरे हिय उपवन के फूल


मिल जायेगा तेरा आश्रय


जीवन हो जाये अनुकूल


 


अंतर्मन के भाव प्रिय मैं


कैसे शब्दों में व्यक्त करूँ


तरल तरंगित स्नेह नीर मैं


सदा आँखों में लिए फिरूँ


 


तेरी छवि बसा के दिल में


मन के मनिका फेर रहा


हे अन्तरंग में स्थित मूर्ति


मनखग तुझे ही टेर रहा


 


भावों की प्रखर ज्योति से


झिलमिल है रोम रोम मेरे


मृदुल मनोहर पिक वाणी


गुंजायमान श्रुति लोम मेरे


 


मेरे आसक्त हिय को प्रिय


तुम दो प्रेम का आलम्बन


टूट न जाये सत्य प्रियतमा


तुम्ही हो मेरा जीवन धन।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


रत्ना वर्मा

" स्वतंत्रता की संघर्ष पूर्ण कहानी "


आओ सुनाती हूँ तुम्हे स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी ,


 देश पर मर मिटेन वालों की संघर्ष पूर्ण जवानी। 


जब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी भारत की आजादी। 


तब आजादी के ख्वाब देखने वाले वीर क्रांतिकारियों 


ने दी थी नारा इंकलाबी .....आओ सुनाती हूँ तुम्हे स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी ......


 


गीत अभी भी गुंजित होते हैं कानों में ...


तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें दूँगा आजादी ....


अधिकार से मैं ले कर रहूँगा स्वराज ....


नहीं डरूंगां ले कर रहूँगा आजादी ...


आओ सुनाती हूँ तुम्हे स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी। 


 


 


स्वतंत्रता सेनानियों से पूछो ....जब संकल्प लिया था 


भारत छोड़ो .. .तब मर रही थी अंग्रेजों की नानी ...


हाँ हाँ यही कहानी ....उन्नीस सौ बेयालिस में ...


छिड़ा आन्दोलन सपना पूरा हुकआ उन्नीस सौ सैतालिस में ..... आओ सुनाती हूँ तुम्हे स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी . ...


 


अल्प आयु में मारे गये अनगिनत वीर क्रांतिकारी,


 तब जा कर मिली हमें आजादी, वंदेमातरम का ...


जय घोष हुआ अपने दम पर जी जिंदगानी ...


सच्चे देश भक्त ने गाया यह गीत ...सरफरोशी की तमन्ना 


अब भी हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए ।


 


 


 


 रत्ना वर्मा


 धनबाद -झारखंड


सुनील कुमार गुप्ता

पल-पल मन न रोता


थाम लेते मन की तड़पन,


जो साथी अपना होता।


अपनत्व की चाहत को फिर,


यहाँ पल-पल न रोता।।


छोड़ मंझधार में उनको,


साथी चैन संग सोता।


अपनत्व नहीं जीवन में,


क्यों-ये मन पल-पल रोता?


वही मिले जीवन में फिर,


साथी कर्मो संग बोता।


सद्कर्म हीन जीवन में फिर,


साथी पल-पल मन रोता।।"


 


सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हर जीवन में दर्द बढ़ता ही जा रहा है


व्यथित है दुनियां कोरोना सता रहा है


 


कुछ तरस गये हैं अपनों से मिलन को


पीड़ित हैं कुछ दो जून के भोजन को


 


कहीं रोजगार तो कहीं चैन छिन गया 


हे माधव मानव का सकून छिन गया


 


करो स्नेह की बारिश श्री बांकेबिहारी


जग से यह पीड़ा हरो बृषभानु दुलारी


 


सत्य की जिंदगी भी नाथ तेरे हवाले


दुःख से रखो या सुख से हे मुरली वाले।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

भाग्योदय होता तभी,


                जब करते कुछ काम।


होता भाग्योदय नहीं ,


                    करने से आराम।


 


झूठ नहीं यह बात है,


                  सच मानो श्रीमान।


दुखी सदा रहते वही,


                   जो सोते हैं तान।


 


करे परिश्रम जो सदा,


                   सुखी वही इंसान।


जो माने कहना नहीं, 


                   समझो वो नादान।


 


सतत परिश्रम कीजिए, 


                   यदि करना उत्थान।


बिना परिश्रम तो नहीं,


                  मिले मान-सम्मान।


 


भाग्योदय का मानिए, 


                   केवल एक उपाय।


बिना कहे हो कर्म निज़,


                    कहता है कविराय।


 


             । राजेंद्र रायपुरी।


अविनाश सिंह

अटल थे वो


अटल ही रहेंगे


जय अटल।


 


सादा जीवन


सरल था स्वभाव


उच्च विचार।


 


नही डरते


अटल ही रहते


शत्रु काँपते।


 


शुरू की यात्रा


दिल्ली से लाहौर की


प्रथम यात्री।


 


रोड प्रोजेक्ट


जोड़ा गाँव-शहर


मुख्य उद्देश्य।


 


कोलकाता को


दिल्ली,चेन्नई,मुंबई


संग जोड़ा।


 


एक सपना


सबका हो विकास


रहे अटल।


 


दिया साहस


सैनिकों को बढ़ावा


जंग जिताया।


 


प्रथम मंत्री


दिया हिंदी व्याख्यान


गौरवान्वित।


 


किया उन्होंने


परमाणु परीक्षण


पोखरण में।


 


प्रसिद्ध कवि


ग्वालियर के लाल


ओज के कवि।


 


दिलाया जीत


कारगिल युद्ध में


चटाया धूल।


 


जहां भी रहे


किया देश का नाम


शान से रहे।


 


अटल नाम


अटल थे इरादे


काम अटल।


 


भारत रत्न


पद्म से विभूषित


थे वो अटल।


 


सफल नेता


पत्रकार व कवि


प्रधानमंत्री।


 


मृत्यु या हत्या


बिन्दु बिन्दु विचार


प्रमुख कृति।


 


कुशल नेता


बहुमुखी प्रतिभा


के थे वो धनी।


 


अविनाश सिंह


रंजना सिंह"शिक्षिका" बेगुसराय बिहार

इकाई।


2- पति का नाम - शशि भूषण सिंह(व्यवसाय))


3 संतान; एक पुत्री'दिव्या रंजन(आर्किटेक्ट)


एक पुत्र; विशाल भूषण(प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी)


4- पता -ग्राम,पोस्ट-भैरवार


भाया-मिर्जापुर वनद्वार


थाना-मुफ्फसिल


जिला-बेगूसराय


 5 फोन नं. - 7761097376 , 9570182068


6 जन्म तिथि - 11 / 11 / 1976


7जन्म स्थान - मोरतर (बिहार) प्रखंड:गढ़पुरा


जिला:बेगूसराय"बिहार"


8 शिक्षा - स्नातकोत्तर(आधुनिक इतिहास)


          


         बी.एड


स्कूली शिक्षा;राँची(झारखंड)


8- व्यवसाय- शिक्षिका(उत्क्रमित मध्य विद्यालय,देवड़ा)


          गढ़पुरा"बेगूसराय"बिहार


10 साहित्यिक-उपलब्धियां 


1 नेपाल भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन ,रौतहट द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कवि कुम्भ महोत्सव में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सम्मानित


2 विश्व पुस्तक मेला में नारायणी साहित्य अकादमी,नई दिल्ली द्वारा सम्मानित"।


3 हिंदी भाषा साहित्य परिषद(खगड़िया) द्वारा सम्मानित


4 पुष्पवाटिका परिवार द्वारा "सारस्वत सम्मान"


5 जयमंगला महोत्सव"2018" में जयमंगला      


                फाउंडेशन द्वारा।


6 भारत उत्थान न्यास,कानपुर एवं वृंदावन शोध संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 'सारस्वत सम्मान' से सम्मानित 


7 महिला सशक्तिकरण की दिशा में बेहतर कार्य करने के लिए दैनिक अखबार "प्रभात खबर "की ओर से वर्ष 2018 के लिए (बेगूसराय)"अपराजिता" सम्मान।


8 विश्व अंगिका साहित्य सम्मेलन द्वारा "कपिल सिंह मुनि अंग विभूति " सम्मान 


9 विजयानी फाउंडेशन,नई दिल्ली द्वारा सम्मानित


10 विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना प्रचार-प्रसार योजना के अंतर्गत प्रकाशित होने वाली साहित्य पत्रिका 'नारी शक्ति सागर" में रचनात्मक योगदान के लिए ''नारी शक्ति सागर' सम्मान से सम्मानित।


11- अनुभव


नारायणी साहित्य अकादमी ,बिहार इकाई की पूर्व अध्यक्ष


इंद्रप्रस्थ लिट्रेचर फेस्टिवल ,नई दिल्ली द्वारा बिहार प्रान्त की अध्यक्ष ।।


12 रचनाओं से सम्बंधित विवरण :-


अब तक कोई पुस्तक प्रकाशित नही हुई है परन्तु


दैनिक ,पाक्षिक,मासिक पत्र-पत्रिकाओं यथा कोसी टाइम्स,बिहार टाइम्स,हयात लेके चलो,पुष्पवाटिका ,समय प्रसंग,सरजमीं, युवाप्रवर्तक ,कानपुर से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित समाचार पत्र स्टेपआहेड, नारी शक्ति सागर साझा पुस्तक में, चैतन्य हिन्द धन्य पुस्तक में रचनाएँ प्रकाशित। रांची से प्रकाशित हिंदुस्तान,प्रभात खबर,नई दुनियां इत्यादि में आलेख,कविताएं,समीक्षा,साक्षात्कार आदि प्रकाशित ।।


अभिरुचि-शिक्षण,लेखन एवं महिलासशक्तिकरण हेतु विभिन्न तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करवाना।


लेखन विधा; दोहा, छंद मुक्त कविता,लघु कथा,आलेख ,गज़ल इत्यादि


नाम - रंजना सिंह"शिक्षिका"


 


1 -स्वाभिमानिनी सीता


तू आदि शक्ति


जगत जननी


धरित्री के अतिरिक्त


नहीं सामर्थ्य था


किसी में कि वह नौ माह


अपनी कोख में


तुझे पल्लवित कर सके।


तू धर्मपरायण


कर्तव्यपरायण


स्वाभिमानिनी


प्रखर विदुषी


अद्भुत


तार्किक सक्षमता तुझमें


जीवन रूपी


पथरीली भूमि पर भी


राह बनाने वाली


महलो में पली


कोमलांगी


जनकनंदिनी


कठिन परिस्थिति में भी


बिना विलंब किये


साहसिक निर्णय लेनेवाली


चल पड़ी


उस मार्ग


जहाँ शूल ही शूल मिले


इतना था स्वयं पर विश्वास


कि लक्ष्मण रेखा भी


कमजोर न कर सका


आत्मबल तुम्हारा


 तू तो शक्ति की श्रोत थी


चाहती तो भस्म हो जाता रावण


और तू राम के पास वापस चली आती


किन्तु चुनौतियों को स्वीकारा तुमने


 श्री राम के स्वाभिमान व पुरुषार्थ


 रक्षार्थ हेतु


सबला होकर भी


अबला सी 


प्रतिक्षा में श्री राम के


अशोकवाटिका में


अपने आराध्य श्री राम 


नाम लिखती रही


फिर भी विधाता को दया न आई


वनवास तो पूरे हुए


किन्तु जीवन आंधियो से


घिरता रहा


और तू लव-कुश की माता बन


पुनः


रघुकुल को गौरव दिया


स्वयं पर आए लांक्षण का


ऐसा प्रत्युत्तर दिया


कि इतिहास राम से पूर्व,


तेरा नाम लेता रहा


जय सियाराम।। 


 


 


2 मन की गिरह


 


 


वक्त की करवट


ख्वाहिशों के महल को


मलबों में तब्दील कर


जीवन गति


बनाए रखने के लिए


नव विकल्प की संभावनाएं 


तलाश लेगी


जिंदगी सब्र की 


थपकियों से


अंतः के विचलन को


कम करने का 


अनवरत प्रयास जारी रखेगी


मगर


बालों की सफेदी


और चेहरे पर पड़ी


सिलवटों में दबी


स्त्री मन की गिरह


उसके श्वांस संग


वफ़ा निभाकर


जीवन के साथ चली जाएगी।।


 


 


3.व्यथा सदियों की रंजना


है !मनुष्य


मैं पर्वत,सागर,अम्बर,नदी,जंगल युक्त,


सुंदर जगत निर्माण की।


हृदय सुवासित करनेवाले,


सुगंधित पुष्प,कीट-पतंग,


पशु-पक्षी,जीव-जंतु तथा


उन सबमें श्रेष्ठ बुद्धिजीवी,


का निर्माण तुम हो।


सभी जीव के जीवन-यापन हेतु,


वातानुकूलित परिवेश दिया।


कई सदियों को आत्मसात करती हुई,


बिना रुके,बिना थके ,


तुहारे साथ चलती रही,


लेकिन तुम्हारी अति लिप्सा के स्वार्थ ने,


मेरे अस्तित्व को ही छिन्न-भिन्न कर डाला।


कभी तो तुम्हारी मनमानियों की समाप्ति हो,


इसी विचार से तुम्हे सचेष्ट करती रही,


भीतर ही भीतर सुलगती रही


कभी भूचाल बन फटती रही,


कभी बाढ़ बन उमड़ती रही।


फिर भी मेरी चेतावनी व्यर्थ गई,


तुम मेरे द्वारा निर्मित इस सुंदर जगत को,


अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझ बैठे।


मान बैठे स्वयं को ही सर्वशक्तिमान,


तुम्हारी इन करतूतों का परिणाम,


निरीह जीव-जंतु, भूमि,जल,वायु आदि,


भुगतने लगे।


जीवों को तुमने आश्रयविहीन कर दिया।


तोड़ दी तुमने अपनी उच्छृंखलता की सीमाएँ।


धर्म,जाति, सम्प्रदाय की आड़ में,


तुमने मानवता की हत्या की,


तुम्हारे अति सुविधाभोगी स्वभाव से,


जब मेरी सांसें अवरुद्ध होने लगी,


प्रतिदान स्वरूप हमने तुम्हें दंडित किया,


आज तुम्हारी भलाई कैद रहने में ही है।


तुम कैद हो,मैं स्वच्छंद हूँ।


तुमने मुझसे दूरी बढ़ाई,


मैं तुम्हे सबसे दूर कर दी।


और हाँ सुनो---"बंद रहो अपने घर मे


मुझे मेरे साथ सुखपूर्वक रहने दो।


,""कि जरूरत नही मुझे तुम्हारी"


 


 


4 शब्द


 


 


वर्णों के संयोजन से


करता मैं आकर ग्रहण


हर्ष,विषाद,घृणा,प्रेम


भावों के भिन्न-भिन्न रूपों का


मैं करता प्रतिनिधित्व


कभी जख्म कभी मरहम बन


और कभी बनता उद्गार


 


 


संवादों का मैं आधार


मिर्ची से भी ज्यादा तीखा


और मधु से ज्यादा मीठा


जब ढल जाता मैं वाणी में


 तब जिह्वा से मुखरित होता


  पड़ता हूँ सबके कानो में


 


 


एहसासों के धागों में गूंधकर


संबोधन,सांत्वना,विश्वास बनता


कभी आशा बन निखरता


तो कभी निराशा बन बिखरता


और जब कवि कलम से निःसृत होता


अनुभूति का पर्याय मैं बनता।।


 


 


 


 


5 देहरी


 


 


बचपन का सारा


प्यार-दुलार


नोंक-झोंक


मान-मनुहार


सबकुछ तो छोड़ आयी


देहरी के उसपार


 एक नई देहरी 


पार करने के लिए


साथ अपने


 अरमानों की पोटली


बाँध लायी थी


जिसे खर्च दी


मकान को घर बनाने में


कभी पति का हौसला बन


कभी सास-श्वसुर का सहारा बन


कभी सृजन-धारा बन


-'तन्मयता


"हाँ"


इसे भी तो


कई हिस्सों में बांट रखी


कभी दाल की छौंक में


कभी डिटर्जेंट में डूबे कपड़ों में


कभी त्योहारो के पकवानों में


कभी बच्चों के


 भविष्य निर्माण में


ताकि देहरी पर उकेरी


रंगोली की तरह


जीवन की सुंदरता


विद्यमान रहे


रह भी जाए शेष कुछ


तो मन का अरमान रहे


क्योंकि


उड़ान के बाद की थकान


मिटती है देहरी पर आकर ही


जो अंतर्मन को


सुकून से भर देती है।।


संदीप कुमार विश्नोई

जला कर राख तुम कर दो , उठाया नैन जो जाए , 


हमारे देश की सरहद , कभी दुश्मन न छू पाए। 


 


चलो सब शान से वीरो, तिरंगा साथ में ले कर , 


उड़ा दो शीश अरिदल के , कटारी हाथ में ले कर। 


बहुत पावन लगे मन को , हमारा पर्व आजादी , 


दिए बलिदान वीरों ने , बनी है गर्व आजादी। 


 


कहीं तोता कहीं मैना , कहीं बुलबुल यहाँ गाए , 


हमारे देश की सरहद , कभी दुश्मन न छू पाए। 


 


बही थी खून की नदियाँ , हमारे देश भारत में , 


चमकते वीर हैं बन के , सितारे देश भारत में। 


करो गुणगान भारत का , यही गुरु विश्व कहलाता , 


सुनो संदीप भारत का , तिरंगा आज लहराता। 


 


गगन में शान से झंडा , तिरंगा आज लहराए , 


हमारे देश की सरहद , कभी दुश्मन न छू पाए। 


 


संदीप कुमार विश्नोई "रुद्र"


जिला फाजिल्का पंजाब


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

जीवन में अवसान सत्य है


दोनों के अवागमन सत्य है


आये हो निज जीवन लेकर


जाने का सम्मान सत्य है। 


 


तेरी माया से हार चला हूं 


सम्बन्धों को त्याग चला हूं


मृत्यु का भी क्या है कहना


जीवन का अनमोल है गहना। 


 


आना ही जीवन पर हंसता 


जाना ही जीवन पर हंसता 


दो पाटों के बीच में देखो


जीवन ही आखिर है पीसता। 


 


जीवन भरी मधुशाला है


मृत्यु अमृत का प्याला है


जीवन पर सब न्यौछावर कर


मृत्यु के चरम सुख वरण कर। 


 


मृत्यु निहार रही है द्वारे


भव से तुमको पार उतारें


नहीं मांगता स्नेह को तुमसे


आओ पुण्यवेदी पर वारें।


 


जीवन कभी हताशा है


मृत्यु बड़ी ही आशा है


पत्तों पर पानी का गिरना


बूंद रुके उत्तम है कहना


 


पत्ते को बूंद ही पाकर


ठहर जीवन का अनुभव कर


आओ अन्दर खामोशी रो पड़ी है


मृत्यु ही सुखद जीवन की अमिट घड़ी है।



  दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


    महराजगंज उत्तर प्रदेश।


एस के कपूर श्री हंस

मैं नहीं हम है जीत का पैमाना।


 


हम से मैं पर उतरते ही अभिमान


शुरू हो जाता है।


अहम से ही हर काम में व्यवधान


शुरू हो जाता है।।


आदमी जीने लगता है हनक की


नकली दुनिया में।


मैं से हम पर आते ही परिणाम


शुरू हो जाता है।।


 


यह गरूर ही तो हमारी सबसे


बड़ी रुकावट है।


ये हमारे चारों ओर बुन देता इक


नकली बनावट है।।


हमें तो भान ही नहीं रहता अपनी


असली ताकत का।


भूल जाते हैं कि विनम्रता ही तो


असली सजावट है।।


 


मिलनसारिता और सहयोग की


सोच को अपनाइये।


छुटकारा अपने दिमागी फितूर ओ


मोच से पाइये।।


दृढ़ता हो पर हठधर्मिता तो सबसे


बड़ा अवगुण है।


करना है कुछ बड़ा तो कामकाज


में लोच लेकर आईये।।


 


इस नफरत और जीने का यह


नज़रिया बदलना होगा।


आत्म निरीक्षण करके सही गलत


का अंतर समझना होगा।।


जीवन की दिशा और दशा निर्भर


ही हमारे दृष्टिकोण पर।


आत्म विश्वास से अपनी राह पर


आगे हमें बढ़ना होगा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे ऊर्जा के पुन्ज 


कौंन कहता आप चले गये


जो सोचते है ऐसा


वे निश्चय ही छले गये


हे राष्ट्र निर्माता


सुयश तुम्हारा अजर अमर


प्रखर अभिव्यक्ति


रहेगी युगों युगों तक मुखर


हे राष्ट्र के गौरव


योगदान तुम्हारा न भुला पायेंगे


तुम्हारे कृतित्व को


देशवासी सहस्राब्दियों तक गायेंगे


तुम ही अटल नहीं


इरादे भी अटल थे तुम्हारे


तुम भारत के नहीं


थे सकल जगत को प्यारे


पोकरण परीक्षण


तुम्हारी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक था


तुम्हारा हर शब्द


पथप्रदर्शक और मधुर संगीत था


अद्वितीय व्यक्तित्व


भावों के शब्द सुमन अर्पित तुम्हें


पदचिन्हों पर चल सकें


ऐसा देना आप आशीष हमें।


 


सत्यप्रकाश 


सुरेन्द्र पाल मिश्र

चले गए तुम दीप बुझ गये।


चले अटल जो जीवन पथ पर,


कालसेज पर अचल हो गये।


तुम भारत के शुभ्र रत्न थे,


राजनीति सर के सरसिज थे।


तुम थेराह दिखाने वाले,


जिज्ञासू हित वरद हस्त थे।


छोड़ा बस भौतिक तन अपना,


इस जग में तुम अमर हो गए।


                चले गए तुम दीप बुझ गये।


विमल राजनीति के उदगम,भारत के जन प्रिय पी.यम।


वक्ता प्रखर कुशल कवि ज्ञानी, बहु प्रतिभा का अद्भुत संगम।


आदर्श आपके जीवन के, भारत के नभ में उदित हो गये।


              चले गए तुम दीप बुझ गये।


भारत ने प्रिय लाल खो दिया, जनता ने निज रत्न खो दिया।


संघर्षों के नेता धे तुम,युग ने मानव रत्न खो दिया।


कैसे व्यक्त करें दुःख गहरा,जब अधरों से शब्द खो गये।


               चले गए तुम दीप बुझ गये।


सुरेन्द्र पाल मिश्र


पूर्व निदेशक भारत सरकार


संजय जैन

लूटकर अपना सब कुछ


अभी तक तो जिंदा है।


रहमो कर्मो पर उसके


अभी तक जी रहे है।


किसी और की करनी का


फल पूरा विश्व भोग रहा है।


और फिर भी शर्म उन्हें बिल्कुल भी नही आ रहा।।


 


कितना जहरीला होता है


आज का ये इंसान।


जो विपत्ति में भी अपने 


मुंह से जहर उगल रहा है।


और निर्दोषों को अपास


में लड़वा जा रहा है।


बेशर्मता की अब तो 


बहुत हद हो गई।


क्योंकि नियमो की धज्जियां 


नेता ही उड़ा रहे।।


 


अब देखो भक्तों 


वक्त बदल रहा है।


जहर उगलने वालो 


पर ही कहर ढा रहा है।


एक एक करके सारे 


 मैदान में आ रहे है।


और अपनी करनी का 


 फल भोगे जा रहे है।।


 


भाग्यविधा किसी को 


भी नहीं छोड़ता है।


अपने पर हुए अत्याचारों का 


हिसाब किताब ले रहा है।


जो खुदको भगवान


समझ बैठे थे


खुद भगवान से रेहम की 


 भीख मांग रहा है।


और चौखट पर उसकी


नही पहुंच पा रहा है।


क्योंकि उसने अपने द्वार अब इंसानों को बंद कर दिए,


बंद कर दिए...।।


 


 


संजय जैन (मुम्बई)


गीता पांडेय

सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


आओ मिलकर खुशियां मनाएं घर-घर में दीप जलाएं 


देशभक्त वीरों की सबको याद दिलाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


आओ हम सब अपने -अपने 


घर में तिरंगा लहराए 


सबको लड्डू मिठाई बांटकर राष्ट्रीय उत्सव मनाए 


पावन पर्व है हम सबका 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


एकता अखंडता की सबको शपथ दिलाये


सब मिलजुल कर रहे 


यह संदेश फैलाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


हम भारत वासी 


सिर गर्व से उठाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा 


भारत देश हमारा 


राष्ट्रीय गीत जन गण मन सब गाये


और अपना जीवन सफल बनाएं 


सबसे सुंदर सबसे प्यारा


भारत देश हमारा  


गीता पांडेय "बेबी " 


जबलपुर मध्य प्रदेश


निशा अतुल्य

देश बढ़े और बढ़ता ही रहे 


ऐसे काम सदा करना ।


मान बढ़े देश का सँग तेरे 


काम विलक्षण कुछ करना ।


 


चिड़िया जहाँ चहचहाती हो,


मंदिर की घण्टी बजती हो,


प्रातः भोर अनुपम बेला में,


माँ घर में दीप जलाती हो ।


 


बड़े बड़े सपनों से सजी ,


रात धीरे से ढल जाती हो।


मेरे देश की माटी चंदन है ,


हर दिल में महक जगाती हो ।


 


होंठो पे माँ का गुणगान रहे


हर पल सब शिश नवातें हो ।


ऊर्जा मन में संचित जो रहे ,


तब काम बड़े कर जाते हो ।


 


प्रभु इतना ज्ञान सदा देना,


कोई काम बुरा न हमसे हो ।


जग चाहे जैसे काम करें,


मन में हमारे सद्भावना हो ।


 


राग द्वेष और ईर्ष्या से ,


प्रभु हम को दूर सदा रखना ।


काम देश के आएं हम ,


ये ज्ञान सदा मन में भरना ।


 


देश बढ़े और बढ़ता रहे 


हर दिल में सदा ये चाह रखना ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य


डॉ बीके शर्मा 

मैं तरसा 


तुम तरसो 


आओ प्रियतम


दो बूंद तो बरसो 


 


ना मन विचलित हो


फिर मेरा 


एक बार मिलो 


ना तुम बिसरो


मैं तरसा 


तुम तरसो 


 


तुम साथ चलो 


हम ना रह पाए 


पकड़ वाहें 


तेरे संग जाएं


तुम साथ रहो 


हमें परखो


मैं तरसा 


तुम तरसो 


 


तुम ध्रुव सी अटल 


मेरा प्रेम प्रबल


आज नहीं तो 


चलना है कल 


स्वीकार मुझे 


बंधन तेरा 


पास तो आओ 


अभिनंदन तेरा 


तुम तरस करो


ना विचरो 


 


ना तुम तरसो


ना मै तरसूं


थाम हाथ संग ले चल साकी


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


विनय साग़र जायसवाल

इस दर्जा पी रहे हो ये किसके ख़याल में


थे सैकड़ों सवाल किसी के सवाल में


हुस्ने मतला--


रखना इसी ख़याल को अपने ख़याल में 


उलझा हुआ हूँ अब भी तुम्हारे सवाल में


 


तुम आ गये तो घर में बहारें भी आ गईं


दिल फड़फड़ा रहा था कबूतर सा जाल में 


 


आओ चलो चराग़े -मुहब्बत जलायें हम


यह शब गुज़र न जाये जवाब-ओ-सवाल में


 


भूखा था मैं तो प्यार का फिर कैसे सोचता


सामान मौत का है मुहब्बत के जाल में


 


वो जब मिला तो वक़्त के सुल्तान सा लगा 


इक नूर सा ख़ुमार था जाह-ओ-जलाल में


 


दिल कर रहा है आज मैं तौबा को तोड़ दूँ


साग़र सुराही जाम पड़े हैं मलाल में


 


साग़र अदाये-वक़्त से तू भी तो सीख ले


क्यों फ़र्क ढूँढता है हराम-ओ-हलाल में 


 


विनय साग़र जायसवाल


  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"


  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"


 


        वरिष्ठ साहित्यकार , कवि , अर्थशास्त्री , शिक्षाविद्


 


 


जन्म : 23 मार्च 1927 मंडला (मप्र)


 


 


स्थायी पता : विवेक सदन नर्मदा गंज , मण्डला म.प्र. ४८१६६१


 


 


वर्तमान पता : बंगला नम्बर A 1, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.) पिन-482008


 


 


मोबाइल : 0७०००३७५७९८ / ९४२५४८४४५२


 


 


शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अर्थशास्त्र),  एम.एड.,साहित्य रत्न,


 


शासकीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से सेवानिवृत प्राध्यापक । 


 


-    केंद्रीय विद्यालय जबलपुर क्रमांक 1 एवं जूनियर कॉलेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य । 


 


 


सृजन की विधाएं : कविता, अनुवाद, शैक्षिक और बाल साहित्य , चिंतन , ललित लेख। 


 


 


प्रकाशित पुस्तकें : २५ से अधिक किताबें 


 


-    काव्य कृतियाँ :वतन को नमन ,  अनुगुंजन, मुक्तक संग्रह, स्वयं प्रभा, अंतर्ध्वनि (गीत संग्रह), ईशाराधन 


 


-    अनुवाद : भगवत गीता हिन्दी पद्यानुवाद, मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद, रघुवंशम पद्यानुवाद ।


 


-    निबंध संग्रह : उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युगध्वनि, जय जवान जय किसान, मानस के मोती


 


-    शैक्षिक  साहित्य : समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, शिक्षण में नवाचार, 


 


-    बाल साहित्य : बालगीतिका , बाल कौमुदी , सुमन साधिका , चारु चंद्रिका  बाल गीत संग्रह (4 भागों में शिशु गीत , से किशोर गीत तक  ),  आदर्श भाषण कला , नैतिक कथायें , जन सेवा , अंधा और लंगड़ा , कर्मभूमि के लिये बलिदान 


 


 


ई बुक्स डेली हंट एप पर भी उपलब्ध 


 


 


    संपादन : अर्चना, पयस्वनी, उन्मेष, वातास पत्रिकायें । 


 


ब्लाग ... http://pitashrikirachnaye.blogspot.com


 


   ...संस्कृत का मजा हिन्दी में .....http://vikasprakashan.blogspot.com


 


 


फेसबुक पेज ..http://www.facebook.com/profcbshrivastava`


 


 


प्रकाशन : 


 


-    सन 1946 में सरस्वती पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित, तब से निरंतर पत्र पत्रिकाओ में कविताये, बाल रचनायें,लेख आदि प्रकाशित हो रहे हैं । 


 


-    वर्तमान में देशबंधु जबलपुर सहित, दशहरा रायपुर, त्रिपुरी टाईम् आदि अखबारो व पत्रिकाओ में उनके द्वारा किए गए भगवत गीता व रघुवंश के पद्यानुवादों का धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है । 


 


 


प्रसारण : 


 


-    आकाशवाणी , दूरदर्शन से रचनाओं, वार्ताओं और चिंतन आलेखों का नियमित प्रसारण । 


 


मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी , हिन्दी साहित्य सम्मेलन , अभियान , नेहरू युवा संगठन उर्दू अकादमी मध्य प्रदेश शासन , वर्तिका ,पाथेय  सहित अनेको साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थायें उन्हें या उनकी पुस्तको को समय समय पर पुरस्कृत कर स्वयं गौरवांवित हुई हैं . 


 


शिक्षा जगत में विशेष कार्य : 


 


-    वे केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य हैं.  


 


- सरस्वती शिक्षा मंदिर मण्डला के आचार्यो को उनके बाल मनोविज्ञान तथा शैक्षिक प्रशिक्षण के परिणाम स्वरूप शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम मिले 


 


-    प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर तथा राज्य शिक्षा संस्थान भोपाल में उन्होने माईक्रो टीचिंग पर शोधात्मक किताबें लिखी । 


 


-    पाठ्यक्रम निर्माण, औपचारिकेतर शिक्षण, पढ़ो कमाओ, माइक्रो टीचींग, सतत शिक्षा, शैक्षिक प्रौद्योगिकी, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण सुधार, शिक्षा में गुणात्मक सुधार, शालेय पर्यवेक्षण, आदि विषयो पर उनके कई शोध आलेख प्रकाशित हुये हैं । तथा उन्होने इन विषयों पर नीतिगत व मैदानी निर्णायक योगदान दिया है । 


 


-    नेहरू युवा केद्र संगठन में अपनी रचनाधर्मिता से उन्होने युवाओ के लिये आव्हान गीतो तथा प्रेरक उद्बोधनो के माध्यम से योगदान दिया व सम्मानित हुए । 


 


‍‌- विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में सहभागिता . 


 


सामाजिक अनुकरणीय कार्य :     


 


1-    नारी शिक्षा को बढ़ावा । 


 


2-    विवेकान्द शिला स्मारक कन्याकुमारी तथा यू एन ओ भवन दिल्ली के निर्माण के लिये उन्होने धन संग्रह किया तथा व्यक्तिगत रूप से बड़ी राशि दान स्वरूप दी । 


 


3-    मण्डला में रेड क्रास समिति की स्थापना उनके ही प्रयासो से हुई । 


 


4-    उन्होने मण्डला में अनेक युवाओ हेतु आत्मनिर्भर रोजगार के नये अवसर दिये । 


 


5-     वे कामनवैल्थ काउंसिल फार एजूकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य हैं । 


 


6-    आल इण्डिया फेडरेशन आफ एजूकेशनल एशोसियेशन्स के महाविद्यालयीन विभाग के वे सचिव रहे हैं । 


 


7-    भारत चीन युद्ध, कारगिल युद्ध, लातूर के भूकम्प, उत्तरांचल आपदा आदि अवसरो पर प्रधान मंत्री सहायता कोष में उन्होने बड़ी राशि स्वतः प्रेरणा से बैंक जाकर दान दी है  


 


8-    उन्होने हजारो किताबें विभिन्न शालाओ व पुस्तकालयो में दान स्वरूप दी हैं जिससे पठन पाठन की संस्कृति को बढ़ावा मिले ।     


1


 


भारतमाता


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


भारतमाता शांतिदायिनी !


 


 


सघन हरित अभिराम वनांचल


 


पावन नदियां ज्यों गंगाजल


 


विविध अन्न फल फूल समृद्धा


 


जनहितकारी सुख विधायिनी


 


आनंद मूला मधुर भाषिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


मर्यादित शालीन सुहानी


 


बहुभाषा भाषी कल्याणी


 


मुदित आनना निष्चल हृदया


 


पंपरागत ग्राम वासिनी


 


स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


सरल सहज शुभ सात्विक रूपा


 


शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा


 


अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक


 


अखिल विश्व समता प्रसारिणी


 


निर्मल प्रेम भाव धारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री


 


आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री


 


मलय पवन सुरभित शुभ आंचल


 


मृदुला नवजीवन प्रदायिनी


 


धर्म प्राण संताप हारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


2


राम जाने कि क्यो राम आते नहीं ? 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘  


 


A 1 , MPEB Colony , Rampur Jabalpur


 


 


हो रहा आचरण का निरंतर पतन,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


हैं जहां भी कहीं हैं दुखी साधुजन दे के उनको शरण क्यों बचाते नहीं


 


 


उजड़ी केशर की क्यारी है बारूद से, रावी सतलज का जल खून से लाल है 


 


धर्म के नाम नाहक ही फैला जुनूं , हर समझदार उलझन में बेहाल है 


 


सारे कश्मीर में ,उधर आसाम में ,चल रही गोलियां और लगी आग है 


 


कर रही आसुरी शक्ति विध्वंस यों , खून से गांव कोई न बेदाग है 


 


खाने को दौड़ता सा है वातावरण , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


रोज होते रहे जहां पूजन भजन , आज खण्डहर पड़े हैं कई वे भवन 


 


यज्ञ करते रहे लोग जो देश हित , अब वही सैकड़ों हो रहे हैं हवन 


 


छाया आतंक की बढ़ रही हर तरफ , घिर रहा है घरों में अंधेरा घना


 


लोग गुमसुम डरे सकपकाये से हैं , हरएक चेहरा नजर आता अनमना 


 


बढ़ रहा खर औ" दूषण का नित अतिक्रमण ,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


बढ़ती जाती कलह हर जगह बेवजह , नेह सद्भाव पड़ते दिखाई नहीं


 


एकता , प्रेम , विश्वास हैं अधमरे , आदमियत आदमी से गुम हुई है कहीं 


 


स्वार्थ , सिंहासनो पर अब आसीन हैं , कोई समझता नहीं है किसी की व्यथा 


 


मिट गई रेखा लक्ष्मण ने खींची थी जो , महिमा मंडित है अपराधियों की कथा 


 


है खुले आम रावण का आवागमन ,   राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं , आचरण में अधिकतर हैं मनमानियां 


 


जिसकी लाठी है अब उसकी ही भैंस है , राजनेताओ में दिखती हैं नादानियां 


 


स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो , हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई 


 


मान मिलता है अब कम समझदार को , भीड़ नेताओ की इतनी है बढ़ गई 


 


हर जगह डगमगा गया है संतुलन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक, कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन


 


स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को, पंचवटियों में बढ़ रहा अपहरण


 


घूमते हैं असुर साधु के वेश में , अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला


 


सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है, रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला


 


हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण ,राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !


 


 3


 


सरस्वती वन्दना


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध 


 


ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर 


 


vivek1959@yahoo.co.in


 


मो ७०००३७५७९८


 


 


 


शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,


 


डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !


 


 


हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,


 


स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना


 


आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,


 


चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !


 


 


सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना 


 


बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना 


 


रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और और ध्वंस है


 


बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे 


 


 


ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई 


 


बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई  


 


उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में 


 


भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे 


 


 


चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में 


 


जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में 


 


थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में 


 


हृदय को माँ ! पूर्णिमा का मधु भरा संसार दे


 


4


 


 


शारदी चांदनी


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना  


 


प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे 


 


नैन मन की मिली योजना से,  चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे 


 


बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से 


 


वीण से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे 


 


सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे 


 


मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से 


 


मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारा


 



 


दुर्गावती


 


 


प्रो.चित्र भूषण  श्रीवास्तव ‘‘विदग्ध‘‘


 


A 1 एमपीईबी कालोनी 


 


रामपुर, जबलपुर 482008


 


मो. ७०००३७५७९८


 


 


गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का 


 


दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।


 


 


उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने


 


दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने


 


 


उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी


 


गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी


 


 


युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी


 


प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी


 


 


दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था


 


हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था


 


 


साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था


 


बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था


 


 


एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया


 


राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया


 


 


बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया


 


और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया


 


 


दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा


 


बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा


 


 


एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान


 


और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान


 


 


घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा


 


लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा


 


 


आती है जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे


 


राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे


 


 


पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ


 


विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ


 


 


रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के 


 


अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने


 


 


बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा


 


आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उनसे हारा   


 


 


तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला


 


नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका


 


 


तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार


 


युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार


 


 


युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार


 


लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार


 


 


तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ 


 


काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात


 


 


भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ


 


बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ


 


 


छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार


 


तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार


 


 


तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण


 


सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान


 


 


सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ


 


ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास


 


 


फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस


 


बाण निकाला स्वतः हाथ से हुआ हार का तब आभास


 


 


क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार


 


दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार


 


 


घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार


 


तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार


 


 


स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे 


 


जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में


 


 


महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी 


 


सारे प्रोफेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध”, जबलपुर : संक्षिप्त परिचय


 


 


  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"


 


        वरिष्ठ साहित्यकार , कवि , अर्थशास्त्री , शिक्षाविद्गो


 


 


जन्म : 23 मार्च 1927 मंडला (मप्र)


 


 


स्थायी पता : विवेक सदन नर्मदा गंज , मण्डला म.प्र. ४८१६६१


 


 


वर्तमान पता : बंगला नम्बर A 1, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.) पिन-482008


 


 


मोबाइल : 0७०००३७५७९८ / ९४२५४८४४५२


 


 


शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अर्थशास्त्र),  एम.एड.,साहित्य रत्न,


 


शासकीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से सेवानिवृत प्राध्यापक । 


 


-    केंद्रीय विद्यालय जबलपुर क्रमांक 1 एवं जूनियर कॉलेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य । 


 


 


सृजन की विधाएं : कविता, अनुवाद, शैक्षिक और बाल साहित्य , चिंतन , ललित लेख। 


 


 


प्रकाशित पुस्तकें : २५ से अधिक किताबें 


 


-    काव्य कृतियाँ :वतन को नमन ,  अनुगुंजन, मुक्तक संग्रह, स्वयं प्रभा, अंतर्ध्वनि (गीत संग्रह), ईशाराधन 


 


-    अनुवाद : भगवत गीता हिन्दी पद्यानुवाद, मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद, रघुवंशम पद्यानुवाद ।


 


-    निबंध संग्रह : उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युगध्वनि, जय जवान जय किसान, मानस के मोती


 


-    शैक्षिक  साहित्य : समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, शिक्षण में नवाचार, 


 


-    बाल साहित्य : बालगीतिका , बाल कौमुदी , सुमन साधिका , चारु चंद्रिका  बाल गीत संग्रह (4 भागों में शिशु गीत , से किशोर गीत तक  ),  आदर्श भाषण कला , नैतिक कथायें , जन सेवा , अंधा और लंगड़ा , कर्मभूमि के लिये बलिदान 


 


 


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    संपादन : अर्चना, पयस्वनी, उन्मेष, वातास पत्रिकायें । 


 


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प्रकाशन : 


 


-    सन 1946 में सरस्वती पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित, तब से निरंतर पत्र पत्रिकाओ में कविताये, बाल रचनायें,लेख आदि प्रकाशित हो रहे हैं । 


 


-    वर्तमान में देशबंधु जबलपुर सहित, दशहरा रायपुर, त्रिपुरी टाईम् आदि अखबारो व पत्रिकाओ में उनके द्वारा किए गए भगवत गीता व रघुवंश के पद्यानुवादों का धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है । 


 


 


प्रसारण : 


 


-    आकाशवाणी , दूरदर्शन से रचनाओं, वार्ताओं और चिंतन आलेखों का नियमित प्रसारण । 


 


मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी , हिन्दी साहित्य सम्मेलन , अभियान , नेहरू युवा संगठन उर्दू अकादमी मध्य प्रदेश शासन , वर्तिका ,पाथेय  सहित अनेको साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थायें उन्हें या उनकी पुस्तको को समय समय पर पुरस्कृत कर स्वयं गौरवांवित हुई हैं . 


 


शिक्षा जगत में विशेष कार्य : 


 


-    वे केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य हैं.  


 


- सरस्वती शिक्षा मंदिर मण्डला के आचार्यो को उनके बाल मनोविज्ञान तथा शैक्षिक प्रशिक्षण के परिणाम स्वरूप शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम मिले 


 


-    प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर तथा राज्य शिक्षा संस्थान भोपाल में उन्होने माईक्रो टीचिंग पर शोधात्मक किताबें लिखी । 


 


-    पाठ्यक्रम निर्माण, औपचारिकेतर शिक्षण, पढ़ो कमाओ, माइक्रो टीचींग, सतत शिक्षा, शैक्षिक प्रौद्योगिकी, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण सुधार, शिक्षा में गुणात्मक सुधार, शालेय पर्यवेक्षण, आदि विषयो पर उनके कई शोध आलेख प्रकाशित हुये हैं । तथा उन्होने इन विषयों पर नीतिगत व मैदानी निर्णायक योगदान दिया है । 


 


-    नेहरू युवा केद्र संगठन में अपनी रचनाधर्मिता से उन्होने युवाओ के लिये आव्हान गीतो तथा प्रेरक उद्बोधनो के माध्यम से योगदान दिया व सम्मानित हुए । 


 


‍‌- विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में सहभागिता . 


 


सामाजिक अनुकरणीय कार्य :     


 


1-    नारी शिक्षा को बढ़ावा । 


 


2-    विवेकान्द शिला स्मारक कन्याकुमारी तथा यू एन ओ भवन दिल्ली के निर्माण के लिये उन्होने धन संग्रह किया तथा व्यक्तिगत रूप से बड़ी राशि दान स्वरूप दी । 


 


3-    मण्डला में रेड क्रास समिति की स्थापना उनके ही प्रयासो से हुई । 


 


4-    उन्होने मण्डला में अनेक युवाओ हेतु आत्मनिर्भर रोजगार के नये अवसर दिये । 


 


5-     वे कामनवैल्थ काउंसिल फार एजूकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य हैं । 


 


6-    आल इण्डिया फेडरेशन आफ एजूकेशनल एशोसियेशन्स के महाविद्यालयीन विभाग के वे सचिव रहे हैं । 


 


7-    भारत चीन युद्ध, कारगिल युद्ध, लातूर के भूकम्प, उत्तरांचल आपदा आदि अवसरो पर प्रधान मंत्री सहायता कोष में उन्होने बड़ी राशि स्वतः प्रेरणा से बैंक जाकर दान दी है  


 


8-    उन्होने हजारो किताबें विभिन्न शालाओ व पुस्तकालयो में दान स्वरूप दी हैं जिससे पठन पाठन की संस्कृति को बढ़ावा मिले ।     


1


 


भारतमाता


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


भारतमाता शांतिदायिनी !


 


 


सघन हरित अभिराम वनांचल


 


पावन नदियां ज्यों गंगाजल


 


विविध अन्न फल फूल समृद्धा


 


जनहितकारी सुख विधायिनी


 


आनंद मूला मधुर भाषिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


मर्यादित शालीन सुहानी


 


बहुभाषा भाषी कल्याणी


 


मुदित आनना निष्चल हृदया


 


पंपरागत ग्राम वासिनी


 


स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


सरल सहज शुभ सात्विक रूपा


 


शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा


 


अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक


 


अखिल विश्व समता प्रसारिणी


 


निर्मल प्रेम भाव धारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


 


भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री


 


आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री


 


मलय पवन सुरभित शुभ आंचल


 


मृदुला नवजीवन प्रदायिनी


 


धर्म प्राण संताप हारिणी


 


भारतमाता शांतिदायिनी


 


2


राम जाने कि क्यो राम आते नहीं ? 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘  


 


A 1 , MPEB Colony , Rampur Jabalpur


 


 


हो रहा आचरण का निरंतर पतन,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


हैं जहां भी कहीं हैं दुखी साधुजन दे के उनको शरण क्यों बचाते नहीं


 


 


उजड़ी केशर की क्यारी है बारूद से, रावी सतलज का जल खून से लाल है 


 


धर्म के नाम नाहक ही फैला जुनूं , हर समझदार उलझन में बेहाल है 


 


सारे कश्मीर में ,उधर आसाम में ,चल रही गोलियां और लगी आग है 


 


कर रही आसुरी शक्ति विध्वंस यों , खून से गांव कोई न बेदाग है 


 


खाने को दौड़ता सा है वातावरण , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


रोज होते रहे जहां पूजन भजन , आज खण्डहर पड़े हैं कई वे भवन 


 


यज्ञ करते रहे लोग जो देश हित , अब वही सैकड़ों हो रहे हैं हवन 


 


छाया आतंक की बढ़ रही हर तरफ , घिर रहा है घरों में अंधेरा घना


 


लोग गुमसुम डरे सकपकाये से हैं , हरएक चेहरा नजर आता अनमना 


 


बढ़ रहा खर औ" दूषण का नित अतिक्रमण ,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


बढ़ती जाती कलह हर जगह बेवजह , नेह सद्भाव पड़ते दिखाई नहीं


 


एकता , प्रेम , विश्वास हैं अधमरे , आदमियत आदमी से गुम हुई है कहीं 


 


स्वार्थ , सिंहासनो पर अब आसीन हैं , कोई समझता नहीं है किसी की व्यथा 


 


मिट गई रेखा लक्ष्मण ने खींची थी जो , महिमा मंडित है अपराधियों की कथा 


 


है खुले आम रावण का आवागमन ,   राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं , आचरण में अधिकतर हैं मनमानियां 


 


जिसकी लाठी है अब उसकी ही भैंस है , राजनेताओ में दिखती हैं नादानियां 


 


स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो , हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई 


 


मान मिलता है अब कम समझदार को , भीड़ नेताओ की इतनी है बढ़ गई 


 


हर जगह डगमगा गया है संतुलन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं


 


 


है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक, कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन


 


स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को, पंचवटियों में बढ़ रहा अपहरण


 


घूमते हैं असुर साधु के वेश में , अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला


 


सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है, रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला


 


हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण ,राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !


 


 3


 


सरस्वती वन्दना


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध 


 


ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर 


 


vivek1959@yahoo.co.in


 


मो ७०००३७५७९८


 


 


 


शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,


 


डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !


 


 


हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,


 


स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना


 


आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,


 


चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !


 


 


सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना 


 


बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना 


 


रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और और ध्वंस है


 


बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे 


 


 


ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई 


 


बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई  


 


उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में 


 


भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे 


 


 


चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में 


 


जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में 


 


थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में 


 


हृदय को माँ ! पूर्णिमा का मधु भरा संसार दे


 


4


 


 


शारदी चांदनी


 


 


प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘


 


ए 1, एमपीईबी कालोनी


 


रामपुर, जबलपुर


 


मो.७०००३७५७९८७


 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना  


 


प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे 


 


नैन मन की मिली योजना से,  चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे 


 


बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से 


 


वीण से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे


 


 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे 


 


सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे 


 


मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से 


 


मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना 


 


है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना 


 


शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारा


 



 


दुर्गावती


 


 


प्रो.चित्र भूषण  श्रीवास्तव ‘‘विदग्ध‘‘


 


A 1 एमपीईबी कालोनी 


 


रामपुर, जबलपुर 482008


 


मो. ७०००३७५७९८


 


 


गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का 


 


दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।


 


 


उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने


 


दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने


 


 


उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी


 


गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी


 


 


युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी


 


प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी


 


 


दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था


 


हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था


 


 


साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था


 


बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था


 


 


एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया


 


राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया


 


 


बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया


 


और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया


 


 


दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा


 


बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा


 


 


एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान


 


और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान


 


 


घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा


 


लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा


 


 


आती है जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे


 


राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे


 


 


पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ


 


विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ


 


 


रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के 


 


अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने


 


 


बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा


 


आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उनसे हारा   


 


 


तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला


 


नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका


 


 


तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार


 


युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार


 


 


युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार


 


लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार


 


 


तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ 


 


काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात


 


 


भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ


 


बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ


 


 


छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार


 


तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार


 


 


तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण


 


सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान


 


 


सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ


 


ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास


 


 


फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस


 


बाण निकाला स्वतः हाथ से हुआ हार का तब आभास


 


 


क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार


 


दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार


 


 


घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार


 


तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार


 


 


स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे 


 


जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में


 


 


महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी 


 


सारे गोडवाने में जन जन से जो गई सराही थी


 


 


असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में


 


दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में


 


 


जीकर दुख में अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान


 


24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण


 


 


है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार


 


गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार


 


 


कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार


 


बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार


 


 


कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश


 


अगर न बरसा होता पानी तो कुछ अलग होता इतिहास


 


डवाने में जन जन से जो गई सराही थी


 


 


असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में


 


दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में


 


 


जीकर दुख में अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान


 


24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण


 


 


है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार


 


गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार


 


 


कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार


 


बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार


 


 


कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश


 


अगर न बरसा होता पानी तो कुछ अलग होता इतिहास


 


 


अनिल विधार्थी

मन मे है दुख प्रेयसी का पर नित मे कलम उठाता हू


करता प्रणाम उन वीरो को मे गीत उन्ही के गाता हू


 


जो बर्फीली चट्टानो मे अपना करतव निभा रहे


 


हैं गद्धार देश के अंदर न कदम से कदम मिला रहे


 


ना गरीब तक पेंसन पहुचे ना कोई सेबा सरकारी


 


निर्धन बच्चे भूंखे बिलखें खाये मेवा करमचारी


 


देख दशा इन लोगों की ए मन मे विचलित हो जाता हू


है प्रणाम उन वीरो को---


 


भूल गये ये भारत मे की कैसे कैसे वीर हुये


 


भगत सिंह सुख देव राज चन्द्रशेखर समशीर हुये


 


भूल गये ये झांसी की रानी की वह अमर कहानी


 


ना गोरों को शीश झुकाया खूबलडी बो मरदानी


 


गौरव गाथाये याद कर मे नतमस्तक हो जाता हू


है प्रणाम उन वीरो----


 


भूल गये हल्दी घाटी महाराणा की कहानी को


 


बार बार प्रणाम मे करता राजपूत कि जवानी को


 


भूल गये चेतक की गाथा और उसकी कुरवानी को


 


आज भी मंदिर बना बो जग देखता उसी निसानी को


 


छब्बीश फुट गहरे कूंदा सोच जयकार लगाता हू


है प्रणाम उन वीरो को----


 


    अनिल विधार्थी (जख्मी)


प्रखर

सखी री! रुचि रुचि मेंहदी धरी।


भर सावन मँह रग-रग लहके, जब जब मेह झरी।


बाग तड़ाग पोखरा अंगना , भई धरती हरी भरी।।


अंबर कारे बदरा बिजुरी, गैलन कींच करी।


जानै कब साजन घर अइहैं, मैं मुरझी गेह परी।।


इतै झुराने रास रंग बालम, उत काम्य उतान भरी।


झूला सलोनो चंदन पटुला, जामै रेशम डोर परी।।


बरै श्रावणी जिया जरावै, भारी विरह घरी।


प्रखर कंत बिनु प्रिया उदासी, कब भेटिहैं कंत हरी ।।


 


*सावन का लालित्य*


 


भवानी रूप को वंदन मुखर लालित्य सावन का।


नखशिख सौम्यता लाली आसरा पीय आवन का।।


घिरे घनश्याम री आली! कजरी तीज मल्हारें,


भिगाए मेघ तन मन को प्रखर उर नेह सावन का।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


प्रखर

भजो मन राम पुरुषोत्तम वही परब्रह्म परमेश्वर।


जो व्यापक सत चराचर में वो अलक्षित लक्ष अखिलेश्वर।।


वो जड़ जंगम है चेतन में चिरंतन आदि प्रलय में भी,


सियापति राम भवतारक वो करुणाकर है सरवेश्वर।।


 


अमंगलहार का सुमिरन जीव भव से पार जाते हैं।


वो वत्सल राम उनके हैं जो जीवन हार जाते हैं।।


वो सारंगधर सुदर्शनधर वो पालनहार सृष्टा भी ,


प्रखर सुमिरन से नारायण अगम भव तार जाते हैं।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रूखाबाद


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