डॉ पुष्पलता मुजफ्फरनगर
2- पिता का नाम -श्री श्याम सिंह
3- पति का नाम-दीपक कुमार सिंह
4- स्थाई पता - डॉ पुष्पलता अधिवक्ता
253,a साउथ सिविल लाइन मुजफ्फरनगर 251001 उत्तर प्रदेश
5- फोन नं. 9810350330
6- जन्म तिथि -1968
7- शिक्षा- एम. ए .हिंदी,समाजशास्त्र, बी .एड.,एल. एल. बी .,पी- एच. डी .
8- व्यवसाय-अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट ,पूर्व प्राचार्य बी, एस ,एम जंधेड़ी डिग्री कॉलेज (सहारनपुर )
9- प्रकाशित रचनाओं का विवरण -असंख्य
(अ) ऑनलाइन प्रकाशित रचनाओं की संख्या-असंख्य
(ब) हार्ड कापी में प्रकाशित रचनाओं की संख्या-असंख्य
10- व्यक्तिगत प्रकाशित पुस्तकों का विवरण -18
(अ) ऑनलाइन प्रकाशित पुस्तकों की संख्या- 3
पत्रिकाएँ -प्रणवाक्षर,अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक संसद ,आखर -आखर
(ब) हार्ड कापी में प्रकाशित पुस्तकों की संख्या-18
खण्ड काव्य -एक और उर्मिला,एक और वैदेही, एक और अहल्या,
उपन्यास-पृथ्वी पर नारायण,फीका लड्डू, दूसरा सूरज
कहानी -कबरबेहड़ा ,गुड़ियाएं
काव्य- मन का चाँद, अरे बाबुल काहे को मारे ,सूरज पर स्याही ,नदी कहती है ,पानी की देह ,
सूफी टप्पे -झांझर मीरा की
बाल गीत-पोषम पा ,दाब का बन्दा ,
निबंध -परत दर परत ,
लघु कथा -पानी के फूल
गद्य -कुँअर बेचैन के साहित्य में नारी विमर्श
11- सम्मान का विवरण
(अ) ऑनलाइन प्राप्त सम्मान की संख्या-12
(ब) हार्ड कापी में प्राप्त सम्मान की संख्या-25 से ज्यादा सरकारी, गैर सरकारी,राष्ट्रीय - अंतर्राष्ट्रीय
1"अनंत "
देह से मुक्त होकर
तैरने लगती हूँ आकाश में
पीड़ा के किनारों को तोड़कर
विहार करने लगती हूँ
आनंद के महासागर में
देह की निर्रथकता को लेकर भी
खोजने लगती हूँ
जीवन की सार्थकता
शब्दों में
देह की शून्यता में भी
पा जाती हूँ
कामनाओं का चंद्रमा
तुम्हारे अहसास भर से
बदल जाती है
सरसता में नीरसता
पा जाती हूँ अनंत
डॉ पुष्पलता मुजफ्फरनगर
2.
"बताओ न?"
सुबह- सुबह मंदिर में बजती
घंटियों सा कुछ
मन की लहरों में मचलता सा कुछ
भावों के पुल से उभरकर
नदी की छलछल से
कल -कल हँसी सा उछलता सा कुछ
चांदनी के पंखों पर ,स्वप्नों में
मुस्कराकर बदलता सा कुछ
दिल के तहखानों में दबे
गीतों को छेड़कर पवित्र गहरा हरा भरा सा आलौकिक जलता सा कुछ
हाथों से मासूम परिंदों सा फिसलता सा कुछ
संगीत सा बजता है रह-रहकर
हृदय की वीणा में जब मिलते हो तुम
तुम्हारे साथ दुनियादारी को छोड़कर क्या है?
बनकर बिखरता बिखरकर बनता सा कुछ
समझ नहीं सकी बताओ न?
डॉ पुष्पलता मुजफ्फरनगर
3."शर्मीली देह"
पीले फूलों का घाघरा
धानी चूनर पहनकर
इठला रही है धरती
म्रदु शीतल हाथों से
छेड़ रहा है पवन
रात भर अश्कों से भीगी
विरह व्याकुल रही धरती
सुबह -सुबह आकर
सधस्नाता धरती के निचुड़ते हुए केशों कोमल अंगों को देखकर
मुस्करा उठा है सूरज
वह बना रही है चाय
परस रही है पकोड़े दही वड़े
मचल उठे हैं सूरज के हाथ दिल
घबरा रही है धरती
टूट न जाएं उसकी नाजुक चूड़ियों सी कोपलें
आक्रामक हो उठा है सूरज
मल रहा है गालों ,बाहों पर
पीला सुनहरा गुलाल
अंगड़ाई ले रहा है पवन
टूट गयी हैं कुछ नाजुक
चूड़ियों सी कोपलें
थोड़ी रूठकर उन्मत सकुचाई सी खिलकर ढीली हो गयी है धरती की शर्मीली देह
डॉ पुष्पलता मुजफ्फरनगर
4.
"नदी कहती है "
तुममें समाते ही
मिट जाएगा अस्तित्व
फिर भी दौड़ती हूँ तुम्हारी ओर
तुम मुझमें हो मैं तुममें
दो सिरों वाले रक्षा सूत्र की तरह
जब सूखने लगती हूँ
तुम्हीं भेजते हो पानी
बादलों के हाथ
और तुम भी पुकारते रहते हो मुझे
जानते हुए भी
कि मुझे अस्तित्व में समेटते ही
घुल जाएगी
तुम्हारे जीवन में
मेरे अश्कों की खारता
डॉ पुष्पलता मुजफ्फरनगर
253/a साउथ सिविल लाइन ,मुजफ्फरनगर
251002
उत्तर प्रदेश
5."कुछ तो हो "
किस्मत का शरारा या अंधेरी रात के बाद उभरा सकारा
समुद्र से मन का खुला आसमां
या नदी का किनारा
धड़कनों को धड़कनों के
सलोने करों का सहारा
या घनी वादियों की नजरों का
धुआँ बुहारता उजियारा
मुट्ठी में पकड़ी हुई धूप या
इन आँखों का सूरज सा तारा
दिल पर लगी मीठी दस्तक
या अठखेलियाँ करते सपनों से
पीछे छूटा नजारा
उलझे गेसुओं से निकली एक लट का इशारा या नयनों से अश्रु सा लिपटा
नमकीन पानी का धारा
कुछ तो हो तुम
जो पुकार रहे हो मुझे
उत्सुक कर रहे हो
मुड़ने के लिए
जबकि साधना रत होकर
निष्चेष्ट जा रही हूँ मैं
डॉ पुष्पलता मुजफ्फरनगर
डॉ पुष्पलता मुजफ्फरनगर
253/a साउथ सिविल लाइन मुजफ्फरनगर 251002
उत्तर प्रदेश