एस के कपूर श्री हंस

पाने को थोड़ा सा


जीवन भर बहुत कुछ खोया करता है।


 


आदमी खिलौना मिट्टी का


पर फना होने से डरता है।


कर्म की चिन्ता नहीं अमर


होने की कामना करता है।।


मौत पर काबू नहीं और


बस नहीं है जिंदगी पर।


मिली इक छोटी सी जिंदगी


जाने कितना पाप भरता है।।


 


क्या होते जीवन के अर्थ ये


तो कभी सोचता नहीं है।


किसी गलत बात को भी


सामने से रोकता नहीं है।।


अपनी स्वार्थ की नाव पर ही


उसपर सदैव रहता है सवार ।


अपने कर्मों का फल स्वेच्छा


से कभी भी भोगता नहीं है।।


 


नफरत ईर्ष्या से ही सदा  


सरोकार बनाये रखता है।


सहयोग परोपकार की बात


बस जबानी ही भरता है।।


जीवन को जीवन की भांति


कभी नहीं है वह जीता।


कुछथोड़ा पाने कोजीवन भर


बहुत कुछ खोया करता है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


मधु शंखधर स्वतंत्र

प्रियतम से श्रृंगार है, प्रभुवर का आभार।


अमर सुहागन मैं रहूँ, दाता करूँ पुकार।।


 


गौरा ने जब व्रत धरा, पाया शिव का प्रेम।


गठबंधन के सूत्र में, बँधा अलौकिक प्यार।।


 


करके व्रत हरितालिका, पाऊँ शुभआशीष।


शिव गौरा के साथ ही, गणपति आएँ द्वार।।


 


रहूँ निर्जला व्रत प्रभो, पूजूँ गौरा साथ।


सुख सौभाग्य मिले सहज , प्रेम बसे आधार।।


 


सोलह कर श्रृंगार मैं, प्रियतम पाऊँ नेह।


माँग बसे सिन्दूर यह, जीवन का यह सार।।


 


हाथ रचे मेंहदी सदा, रंग सजे शुभ लाल।


लाली अधरों पर सजे, मधुर सजे व्यवहार।।


 


मधु जीवन की आस ये, मिले सुखद वरदान।


भाव समर्पित ईश को, प्रभुवर हो स्वीकार।।


 


मधु शंखधर स्वतंत्र


प्रयागराज


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरी जिंदगी की डोर अब तेरे हाथों में


मेरा पल पल बंधा है तेरे जज्बातों में


 


मुझ विरही चातक को हो स्वांति बूंद


मन लालायित रहता प्रेम बरसातों में


 


बहुत उधारी बढ़ गई तुम पै मेरे प्यार की


लिख दूं प्रियतमा उसे दिल के खातों में


 


कितनी चाहत दिल में तेरे प्रति सजनी


कैसे व्यक्त करें उसे बातों ही बातों में


 


नहीं जी पायेंगे हम तेरे बिना जग में


सत्य सो नहीं पाता बिन तेरे रातों में।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन

दिल जिस से लगा 


उसे पा न सका।


पाने की कोशिश में


बदनाम हम हो गये।


फिर जमाने वालो ने


खेल मजहब का खेला।


जिसके चलते हम दोनों को


अलग होना पड़ा।।


 


मोहब्बत करने वाला का 


क्या कोई मजहब होता है।


दोनों का खून क्या


अलग अलग होता है।


क्यों मोहब्बत में मजहब 


बीच में ले आते है लोग।


और सच्ची मोहब्बत का 


क्यों गला घोंट देते है।।


 


स्नेह प्यार से जीने में


क्या मजहब बाधा बनता है।


अरे जब रब ने दोनों को 


एज दूजे से मिलाया है।


तो क्यों नफरत की आग


प्रेमियों के दिलों में लागते हो।


और राजनीति का जहर क्यों 


मोहब्बत में भी फैला देते हो।।


 


संजय जैन मुम्बई


सुनीता असीम

ख्वाब भी केवल सताने ही सताने आते।


प्यार के सारे तराने दिल जलाने आते।


***


मिल नहीं सकतीं जरूरत है उन्हीं खुशियों की।


ये बहारों के नजारे भी चिढ़ाने आते।


***


जिंदगी ने दे दिए मुझको सदा ग़म ही ग़म।


चांद के कुछ तो सितारे घर सजाने आते।


***


कुछ सबक बाकी रहे हैं सीखने को मेरे।


आज तो रिश्ते सभी जीना सिखाने आते।


***


भूल बैठी हूं सभी सुध-बुध जमाने की मैं।


लोग भी बातें जमाने की सुनाने आते।


***


सुनीता असीम


दयानन्द त्रिपाठी 'व्याकुल' को मिला काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान - 2020

दयानन्द त्रिपाठी 'व्याकुल' को मिला काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान - 2020


 


- स्वतंत्रता दिवस पर आनलाइन आयोजित प्रतियोगिता में कविता प्रस्तुति के लिए मिला सम्मान



फोटो परिचय : दयानन्द त्रिपाठी 'व्याकुल'


 


लखीमपुर खीरी 


 


महराजगंज जनपद के शिक्षक एवं कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को काव्यरंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय आनलाइन स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में कार्यक्रम के संरक्षक अनिल गर्ग, संयोजक आशुकवि नीरज अवस्थी तथा विशिष्ट अतिथि एवं कार्यक्रम प्रमुख कैप्टन बीएन तिवारी 'अवधूत' ने काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान 2020 से सम्मानित किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री कैप्टन बीएन तिवारी 'अवधूत' ने दयानंद त्रिपाठी व्याकुल की कविताओं की सराहना करते हुए उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित किया है।



स्वतंत्रता दिवस पर काव्य रंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था । जिसमें देश के सभी प्रांतों से 245 से अधिक प्रतिभागियों ने प्रतिभाग कर स्वतंत्रता दिवस के अवसर देश के प्रति उभरे भावों तथा मन के विचारों को प्रस्तुत किया। इस आनलाइन कार्यक्रम में देश भर के 60 ऐसी शख्सियतों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करके सबको ओतप्रोत कर दिया। इसी कड़ी में जनपद महराजगंज के उभरते कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ने स्वतंत्रता दिवस पर रचित गीत प्रस्तुत किया। उनके इस प्रस्तुतिकरण को देखते हुए कार्यक्रम के संरक्षक अनिल गर्ग, संयोजक /सम्पादक आशुकवि नीरज अवस्थी जी, मुन्नालाल मिश्र, शेषादि त्रिवेदी एवं आलोक शुक्ल तथा विशिष्ट अतिथि एवं कार्यक्रम प्रमुख कैप्टन बीएन तिवारी 'अवधूत' द्वारा काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मिले सत्य को करुणा प्यार..


 


तुम जग का आधार किशोरी


स्वयं श्याम का तुम ही सहारा


जग तृष्णा से व्याकुल मन का


श्रीराधे तुम बिन कौंन हमारा


 


जो आतातायी हते माधव ने


तेरी प्रेरणा से मिला उन्हें बल


बृजरज का कण कण पावन


वह भी ठकुराइन तेरा संबल


 


जीव जगत को वात्सल्यमयी


सन्तति सम रखती हो दुलार


हे आराध्या माँ बरसाने वाली


मिले सत्य को करुणा प्यार।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर श्री हंस

वरिष्ठ नागरिक सेवानिवृत्ति 


दूसरी पारी की शुरुआत है।


 


अभी भी छूने को ऊपर


ऊंचा सा आसमान है।


एक वरिष्ठ नागरिक का


अनुभव तो महान है।।


सेवा निर्वती तो अंत नहीं


है इस जीवन का।


इसके बाद भी कर्म श्रम


पहचान सम्मान है।।


 


हर इक वरिष्ठ नागरिक


ज्ञान की खान होता है।


अपने में अनुभव समेटे


एक वरदान होता है।।


समाज का होता है वह


एक पथ प्रदर्शक।


वह समझ बूझ का सम्पूर्ण


एक पुराण होता है।।


 


दायित्व है उसके कंधों पर


नई पीढ़ी को सिखाने का।


अपने संस्कार संस्कृति की


हर बात बताने का।।


समाज परिवार का मुखिया 


रास्ता भी दिखाना है।


भार भी सर पर कुप्रथाओं


से समाज को बचाने का।।


 


वरिष्ठ नागरिक बनकर छिपी


प्रतिभा को आप जगाइये।


अपनी सुप्त अभिरुचियों को


फिर से आप महकाइये।।


यह तो आप की दूसरी पारी


की नई शुरुआत है।


कुछ नया सा करके लोगों के


सामने आप लाईये।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

तुफानो से लड़ना है तो


जीना सीखो जीना है मारना सीखो ।।                               


 


जवा जोश के 


गुरुर से डरना सीखो


हस्ती की हद नहीं हद खुद


तय करना सीखो।।


 


अरमानो का आसमाँ ,आँसमा से आगे अरमानों को हासिल करना सीखो।।


 


जूनून मकसद का मकसद


की राहों में गर आ जाए कोईं


मुश्किल तोड़ हर मुश्किल राहों


की हासिल मकसद करना सीखो।।


 


दुश्मन की शातिर चालो में 


फसना नहीं निकालना सीखो।।


 


अंगार तुम नौजवान तुम जवां हौसलों की उड़ान मेंउड़ाना सीखो।।


 


ताकत की गर्मी के बेजा ना 


जाए नफ़रत से नफ़रत में जीना


सीखो।।


 


बदल सकते हो दुनियां 


दुनिना बदलेगी कैसे दुनियां


बदलना सीखो ।।                  


 


मिटा दो हस्ती को अगर तू मर्तवा चाहे ख़ाक से गुलो गुलज़ार बुनियाद तुम दुनियां के दर्द आंसुओं गम जहर को पीना सीखो।।


 


हर इंसान में आते तुम एक बार


हर जान में जागते एक बार


आने जागने का फर्क फासला


समझो।।


 


मिटा दो या मिट जाओ 


दुनियां की तारीख पन्नों


का अल्फाज बनाना सीखो।।


 


यूँ ही नहीं लिखी जाती लम्हों


की लकीरे लम्हों की लकीरो


की इबारत की इबादत करना


सीखो ।।


 


मोहब्बत जिंदगी का फलसफा


इश्क आशिकी दीवानापन तरन्नुम


तराना जायज जिंदगी से इश्क का कलमा गीता कर्म ज्ञान का


पड़ना सीखो।।


 


वक्त बदलता रहता है लम्हा


लम्हा चलता रहता लम्हा लम्हा चलते वक्त में अपनावक्त बदलना सीखो।।


 


वक्त गुजरता जाएगा वक्त की


तकदीर् बदलना सीखो


चिंगारी तुम ज्वाला काल कराल


विकट विकराल तुम वक्त के फौलाद नौजवान तुम।।


 


तुम हिम्मत की धार तुम तूफां


की बौछार तुम वक्त के हथियार


तुम नौजवान तुम बेजा ना जाए जवानी की रवानी रहो होशियार तुम।।


 


ढल गयी गर जवानी न कहलाओ


कचरा कबाड़ तुम कुछ नए जोश


जश्न में गुजरो दुनियां रहो महेशा नौजवान तुम।।


 


तेरे साँसों की गर्मी की ज्वाला से


तेरे मंज़िल राहो के पथ अग्नि


को बदल डाले जँवा मस्ती में


कुछ तो ऐसा कर डालो।।


 


मिटटी के माधव मिटटी में ना


मिल जाओ नया इतिहास रचो


बाज़ीगर जादूगर बाज़ अरबाज़ तुम।।


 


जमी पे जन्नत की सूरत का


नया ज़माना नौजवान तुम।।


 


हसरत का पैमाना हकीकत


का मैखाना नए कलेवर का


नक्शा नशा शाराब तुम।।


 


सवाक नहीं कोई ऐसा खोज


सको न जबाव तुम नहीं कोई समस्या पाओनहीं निदान तुम।।


 


जज्बा जमाने का वक्त का कौल


तुम, तेरे ही कदमो की दुनियां बेमिशाल तुम ।।


 


जवानी की रावांनी के समंदर


न बन पाये तेरी गागराई जहाँ


का सुकुन तेरे रहने ना रहने को दुनियां कैसे समझ पाये।।


 


अवसर को उबलब्धि में 


बदलना सीखो नौजवान


तुम गिरना और संभालना


सीखो।।


 


नौजवान तुम इरादों के


चट्टान राई से पहाड़ मौका


को मतलब पर मोड़ना सीखो।।


 


खुद के रहने


के वर्तमान रच डालो ऐसा इतिहास दुनियां की तारीखों


के पन्नों को दुनियां की राहों के रौशन चिराग नौजवान तुम।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

हे भारत रत्न राजीव रतन 


        कोटि-कोटि नमन, वन्दन, 


तेरे बलिदान दिवस पर देखो 


         कृतज्ञ राष्ट्र करता क्रन्दन। 


 


आतंकी दल लिट्टे ने जब 


      निजघाती दस्ता तैयार किया, 


छद्म रूप से तेरे ऊपर 


        घातक बम प्रहार किया। 


 


मृदुभाषी व्यवहार कुशल 


         व्यक्तित्व में आकर्षण था, 


समृद्धि में जन्म लिया पर 


            जीवन में संघर्षण था। 


 


हे जननायक शान्तिदूत 


      आधुनिक भारत के निर्माता,


पंचायतीराज के विस्तारक 


       सूचना क्रांति के अधिष्ठाता। 


 


बलिदान व्यर्थ न जायेगा 


       भरसक प्रयास हमारा होगा,


आतंकवाद का निर्मूलन ही 


             राष्ट्रवाद का नारा होगा।


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


संजय जैन

खत प्यार का एक


हमने उनको लिखा।


पर पोस्ट उस को


अब तक नहीं किया।


अपने अल्फाजो को


अपने तक सीमित रखा।


बात दिल की अपनी 


उन तक पहुंच न सका।।


 


डर बहुत मुझको उनसे 


और अपनों से लगता था।


कही बात का बतंगड़


कुछ और बन न जाये।


इसलिए में अपने प्यार का


इजहार उनसे कर न सका।


और जो आंखों से चल रहा था


उसे ही आगे जारी रखा।।


 


लगता था एक दिन 


बात बन जाएगी।


प्यार के अंकुर 


दिलो में खिल जाएंगे।


पर ऐसा अब तक


कुछ भी हुआ ही नहीं।


और दोनों को किनारे


अबतक मिल न सकें।।


 


फिर समय ने अपना 


काम कर दिया।


उनकी जिंदगी में एक


नया अध्याय जोड़ दिया।


और हम इस किनारे बैठकर


दुनियाँ उजड़ते देखते रहे।


और प्यार का जनाजा 


निकलता हम देखते रहे।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


सुनीता असीम

जब भी देखा आंखें मलके।


बदरा थे आंसू बन छलके।


***


नाम नहीं लेती रूकने का।


बारिश पड़ती सिर्फ मचलके। 


***


जीवन धारा टेढ़ी होती।


चलना इसमें खूब संभलके।


***


 मुश्किल जीना आज हुआ तो।


कैसे देखूं सपने कलके।


***


कश्ती गोते खाती मेरी।


आंचल मेरा जब भी ढलके।


***


हर घर में अंधेर मचा है।


घर से देखो आप निकलके।


***


कीचड़ ही कीचड़ है जग में।


गिर मत जाना यार फिसलके।


***


सुध ले ली रब ने जब मेरी।


ख़ाक़ हुई दुनिया फिर जलके।


***


सुनीता असीम


प्रखर दीक्षित

मुक्तिका


 


पुतलों पर मंहगे लिबास हैं, जिंदा वसन विहीन मिले।


सदसयता ने पीड़ा बांटी, प्रभुता जन मनहीन मिले।।


दौलत छीने मुँह का निवाला, शोषण दंश दिए बहुतेरे,


अक्सर उजले चेहरे वाले, मन के प्रखर मलीन मिले।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


आरती पांडेय

आलेख.....दिमागी -आजादी (लेख)


 


लोग कहते हैं हम आजाद हैं, पर सोच तो आज भी बंदिशों मैं है। लोग कहते हैं 21वीं सदी का भारत हैं ,सदी तो बदली पर भारत नहीं। लोग कहते हैं सब आनलाइन हैं पर विचार तो आज भी आफलाइन हैं। हम आजाद भारत मैं 200 साल की गुलामी के बाद सांस तो आजादी की ले रहे हैं पर सोच आजादी की नहीं हैं। सोच, विचार, और मानसिकता से हम आज भी गुलाम हैं ।जिस भारत को आजाद कराने के लिए अनेकों भारतीय एकजुट हुए. थे आज वो एकजुटता देश से क्या भारत के हर घरों से गायब हैं । भारत की आन- बान- शान उसकी बेटियां होती थीं ,पर आज वहीं मासूम बेटियां घरों मैं भी असुरक्षित हैं।हम अंग्रेजों से आजाद हुए पर अंग्रेजी तरीकों से नहीं। आज देश का 18.साल का बच्चा सिगरेट, बीयर पीता हैं इसे आधुनिकता का नाम देता हैं । आज बच्चा हिंदी नहीं बोल पाता हैं ,और अपने को हिंदुस्तानी कहता हैं।आज की युवा पीढी अपने माता- पिता को वृद्धाआश्चम छोड़ कर आती हैं, और अपने को भारत का लाल कहती हैं।यदि हम वाकई भारतीय हैं और भारतीय होने का दावा करते हैं तो पुनः जरूरत हैं भारतीयता के उन पुराने मापदंडों को अपनाने की ,आज पुनः आवश्यकता हैं कि देश की आन -बान -शान के लिए हम फिर से गांधी, भगतसिंह, बाल गंगाधर तिलक बने ।सही मायनों मैं आजादी को समझे, और समझाये और एक स्वस्थ कुशल ,कोरोना मुक्त भारत के निर्माण मैं अपना योगदान दे।


आरती पांडेय


सुनीता असीम

जो आसरा दे कहां वो शज़र मिलेगा मुझे।


कि डूबकर ही लगे अब गुहर मिलेगा मुझे।


***


अभी तलक हैं किए कर्म जो भले ही थे।


कि किस जन्म में उनका समर मिलेगा मुझे।


***


जो रूह को मेरी दे चैन औ सुकूँ भी दे।


वो चाँदनी को लुटाता क़मर मिलेगा मुझे।


***


तलाश करती ठिकाना खुदा के चरणों में।


वहीं चलूंगी जहां वो बसर मिलेगा मुझे।


***


समझ लिया था जिसे ख़ैरख्वाह मैंने तो।


पता नहीं था उसीसे ही डर मिलेगा मुझे।


***


सुनीता असीम


प्रिया चारण

गीत :- मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है।


करता है तू कन्हैया मेरा नाम हो रहा है।


गीत पर आधारित कविता सभी महानुभावो के सामने प्रस्तुत है।


 


कविता :-


 


करता है ,तू कन्हैया मेरा हर काम विख्यात हो रहा है


तेरे बिना में क्या थी? तेरे होने से मुक़्क़म्मल हर ख़्वाब हो रहा है।


 


कुब्जा सी थी में , राधा और मीरा सा 


हर दिन प्यार मिल रहा है,


ग़मो से भरी थी में ,अश्को की सखी थी में,


सुदामा की तरह तेरा दिया राजपाट मिल रहा है।


 


हैरान है जमाना मंज़िल भी मिल रही है।।


 


कीचड़ में मेरी जिंदगी तेरी कृपा से कान्हा ,


कमल सी खिल रही है।


पतझड़ में तेरी वजह से मुझे ,फूलो की बहार मिल रही है।


तूफानों में मेरी कश्ती ,तेरी कृपा से किनारो से मिल रही है।


करती नही में कुछ भी बस तेरी रहमतो से आबाद,


सीरत मेरी हुई है।


किसी और चीज़ की अब चाह ही नही है ,


अख़बारों में इश्तिहार मेरे अब क्रिशू की कलम लिख रही है।


देखती हूँ बस तेरी सूरत भीगी पलको से, 


और तेरी कृपा से मेरी फ़ोटो 


कभी tv तो कभी अख़बार में दिख रही है।


 


जानता था कौन इस नाम को ,


जब से ये प्रिया कृष्णप्रिया बनी है ,


इस नाम की वाह वाही हर जुबा से मिल रही है।


 


आपकी कृपा से मेरी जिंदगी खुशियों से भरी है,


करता नही में कुछ भी बस तेरी कृपा बरस रही है।


 


प्रिया चारण (krishu)


उदयपुर


डॉ बीके शर्मा 

(भ्रष्टाचार और गरीबी)


 


वह मेरे साथ खेला था 


मेरे साथ पढ़ा था 


उसे पॉच वर्ष पहले देखा 


जवान था 


शरीर से भी 


मन से भी ||


 


आज अचानक मिला 


मेरे पास आकर रुका 


दवे स्वर से आवाज आई 


भाई कैसे हो ?


 


मैं मंत्र मुग्ध स्तब्ध 


नजरें उसी चेहरे को 


जानने टिक गई


चेहरे पर झुर्रियां


माथे पर सलवट 


आंखें खाई में धंसी हुई 


बालों पर सफेद चादर 


होठों पर पपड़ी 


और 


निर्जन रेगिस्तान की तरह 


बादलों के इंतजार में 


जैसे कोई बाट झोता हो ||


 


इंसानियत को 


भ्रष्टाचारी गिद्धों ने 


नोच नोच कर खाया 


और गरीब को 


शोषण रूपी कौऔं ने 


खूब चबाया


खादीधारी चोरों ने 


खूब इंसानियत का 


बलात्कार किया ||


 


मेरी नजरें हटी


उर से आवाज आई 


अरे "दीनू" तुम !


 


हां भाई 


मैं


पर यह कैसे ?


दबे स्वर में दीनू बोला ||


 


भाई !


सब के सब चोर है 


सत्ताधारी मोर हैं 


बादल जब गरजते हैं 


तभी नाचते हैं 


कुर्सी पर बैठते ही 


भ्रष्टाचार का चालीसा लिखते हैं 


और बांचते हैं ||


 


पहले गरीबों को आंकते हैं


फिर उनकी इज्जत में झांकते हैं 


भाई गरीबी ईमान वफादार है 


भ्रष्टाचार होशियार है 


भाई हमारे चेहरे की झुर्रियों की 


धंसी आंखों की 


सफेद बालों की 


और चटके के होठों की 


"स्विस बैंक"


भ्रष्टाचार को ब्याज दे रहा है ||


 


मैं यह सुनकर


कंम्पित हुआ 


दृढ से बोला 


नहीं "दीनू"


अभी हक की लड़ाई बाकी है 


गांधीवाद आदर्श है


खादीबाद अपकर्ष है 


हां ये सब के सब चिड़ीमार हैं 


पर हमारे पास 


एकता का 


अखंडता का 


हथियार है ||


 


वो तो सब ठीक है भाई !


पर यह बारिश में निकलने वाले 


मेंडक हैं 


ये कुकुरमुत्ते की तरह है 


इनके घर दो पैरौं के पालतू कुत्ते हैं


जो गरीब की हड्डियों को चवाते हैं 


और 


गिदडों की वफादारी निभाते हैं ||


 


पर भाई ये हमारे बनाए हुए 


सिर चढ़ाए हुए हैं 


इन्हें नीचे लाना होगा 


सत्य का आइना दिखाना होगा 


यही एक युग निर्माण का 


रास्ता है


और 


गरीब को गरीबी का वास्ता है ||


 


फिर "दीनू" थोड़ा आगे बढ़ा


 रुका और बोला 


भाई !


इनकी कथनी और करनी में 


बड़ा फर्क है 


और फिर चल दिया........


मैं निरुत्तर सा देखता रहा बस......


 


डॉ बीके शर्मा 


संजय जैन

हिंदी मेरी मां है तो


उर्दू है मेरी खाला।


दोनों ने ही मिलकर 


मुझे बचपन से है पाला।


दोनों की रहनुमा ने


लेखक कवि बना डाला।


कैसे मैं भूल जाँऊ


अपनी दोनों मांओ को।


जो कुछ भी में बना हूँ


दोनों के ही कारण।।


 


हिंदी और उर्दू ने 


मुझको दिलाई सौहरत।


बैठा हूँ जो शिखर पर


इबाद है सब उनकी।


जब भी में गिरा तो


थमा है इन दोनों ने।


फिर से मुझे चलना 


इन दोनों ने सिखाया है।


कैसे में अपनी माँ और 


खाला को भूल जाँऊ।।


 


कितने कमीने और 


खुदगर्ज होते है इंसान।


मतलब के लिए अपने


मां और खाला को लड़वाते है।


और उनकी गर्म हवाओं में 


रोटियां अपनी शेखते है।


पर फिर भी अलग नहीं


कर पाते दोनों बहिनों को।।


हिंदी मेरी मां है तो


उर्दू है मेरी खाला।


दोनों ने ही मिलकर 


मुझे बचपन से है पाला।।


 


संजय जैन मुम्बई


एस के कपूर श्री हंस

अब मैं कहलाता नहीं इंसान हूँ।


 


एक रोज़ एक राक्षस और भूत


के सामने एक आदमी आ गया।


दोंनों का चेहरा आदमी को देख


एक दम सकपका गया।।


आदमी बोला हटो सामने से,


जानते नहीं मैं कौन हूँ।


मैं मानव भी हूँ।


मैं दानव भी हूँ।।


तुम दोंनों को मुझ से डरना चाहिये।


अपनी रक्षा का उपाय करना चाहिये।।


मैं नारी की भांति तुम दोनों को भी


मसल सकता हूँ।


तुझ से पहले मैं अपने स्वार्थ के


मौके लपक सकता हूँ।।


तुम क्या हो भूत प्रेत पिशाच चुड़ैल


क्या हो तुम।


पर मुझ से तेरा कोई मुकाबला नहीं है।


अब तेरा मेरा कोई साबका नहीं है।।


तुझ से मनुष्य जाति अब डरती नहीं है।


बचने को तुझसे कोई जादू टोना करती नहीं है।।


अब आदमी आदमी से बचने को तंत्र मंत्र करता है।


किसी के किये का पाप आदमी दूसरा


भरता है।।


अब मेरे काटे का कोई ईलाज नहीं है।


मेरे जैसा तेरे पास कोई रियाज़ नहीं है।।


जिस पेड़ पर तू रहता है वह मैं काट देता हूँ।


भाई को भाई से बाँट देता हूँ।।


मत रोक मेरा रास्ता मुझे जाने दे।


अपनी खैर को जरा मनाने दे।।


मैं सांप नाथ से भी अधिक खतरनाक हूँ।


मैं नागनाथ सा भी एक विश्वास घात हूँ।।


*मैं हैवान हूँ।।*


*मैं शैतान हूँ।।*


*मैं अब कहलाता नहीं इंसान हूँ।।*


 


एस के कपूर श्री हंस 


बरेली।


विनय साग़र जायसवाल

सारे अज़ीज़ उनकी हिमायत में आ गये


मजबूर होके हम भी सियासत में 


आ गये 


 


हाँलाकि ख़ौफ़ सबको सितमगर का था बहुत


कुछ लोग फिर भी मेरी वकालत में आ गये 


 


इतने हसीन जाल बिछाये थे आपने


हम ख़ुद शिकार होके हिरासत में आ गये 


 


सोचा नहीं नशे में हुकूमत के आपने 


अहबाब इतने कैसे बग़ाबत में आ गये 


 


हम तो इसी गुमान में लुटते रहे कि वो


आवारगी को छोड़ शराफ़त में आ गये


 


इतना फ़रेब उसकी निगाहों में था छुपा


उस पर यक़ीन करके मुसीबत में आ गये


 


शीशे में हमने उनको उतारा ही इस तरह


इनकार करते करते मुहब्बत में आ गये


 


*साग़र* हमारे बारे में क्या उड़ गई ख़बर 


सुनते ही जिसको आज वो हैबत में आ गये


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


नूतन लाल साहू

दोस्ती परिवार से कर लो


तेरा घर मंदिर,बन जायेगा


मातु पिता,गुरुजन की सेवा


जगत में जीवन है,दिन चार


दुःख में सुख में,हर पल बंदे


परिवार ही तेरा काम आयेगा


दोस्ती परिवार से कर लो


तेरा घर मंदिर बन जायेगा


बड़ी कठिनाई से यह नरतन,पाया है


मेरी मेरी कहकर,उम्र गुजार रहा है


मुठ्ठी बांधकर आया है,हाथ पसारे जायेगा


मीठे वचन बोल सबसे, अति सुख तू पायेगा


दोस्ती परिवार से कर लो


तेरा घर मंदिर बन जायेगा


झगड़ा कभी न किजिये,सब सन राखिये प्रीति


निंदक नियरे राखिये,आंगन कुटी छवाय


झगड़ा से घर उजड़त है,सत्य वचन इसे जान


जो नर दूसरो का आदर करे,उसका होता है कल्याण


दोस्ती परिवार से कर लो


तेरा घर मंदिर बन जायेगा


सुख के साथी अनेकोनेक है


वक्त पड़ा तब कोई नहीं है


धर्म कर्म कुछ कर ले


आखिर में तुम्हारा कोई नहीं है


पर पीड़ा सा पाप कोई नहीं है


परहित से ही पुण्य मिलेगा


नाता भला क्या है,जग से हमारा


दोस्ती ही बनेगा तेरा सहारा


दोस्ती परिवार से कर लो


तेरा घर मंदिर बन जायेगा


याद करो प्रभु श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती


अनेकोनेक कष्ट भोगा,सुदामा का परिवार


पर धर्म न खोया,प्रभु की भक्ति को बनाया सहारा


रंक से राजा बना,अमर हो गई वो गाथा


दोस्ती परिवार से कर लो


तेरा घर मंदिर बन जायेगा। 


 


नूतन लाल साहू


सत्यप्रकाश पाण्डेय

नग शिखरों से दौड़ पड़ी 


अपने प्रियतम से मिलने


ऊबड़खाबड़ पथरीले पथ


आँखों में स्वर्णिम सपने


 


कहीं सघन कांतार व्याप्त


कहीं दुर्गमता रोकें प्रवाह


कहीं शिलाखन्ड टूटकर 


विरहिणी की रोकें है राह


 


अविचल सी अव्यथित हो


वो तो चली लक्ष्य की ओर


सारे अवरोध तोड़ बढ़ रही


जिस रवि से मिलनी है भोर


 


छोड़ के सारे जग के बंधन 


उस असीम की ओर चली 


निज अस्तित्व मिटा देगी


गिरि उपवन का छोड़ चली


 


शैल उतंग से लगाव कहाँ 


न सुरभित कानन से मोह


नहीं वसुधा का आकर्षण


असहनीय उदधि बिछोह


 


पारावार ही मंजिल उसकी


उसी अनन्त की गोद प्रिय


चली उसी से मिलने सजनी


जगत छोड़ वह मोद प्रिय


 


वैसे ही यह जीवन सरिता


परमब्रह्म सागर से मिलने


क्यों न लालायित रहती है


इहि भव-सागर से तरने


 


उस असीम गोद में जाकर


जहां अनंत को मिले सहारा


जीव नदी के लिए अधिक न


इससे बढ़कर कोई किनारा।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

गहराती बदली यादों की,


कैसे-उभरे उससे मन?


यादों के साये में पल-पल,


व्याकुल रहा अपना मन।।


स्वार्थ में डूबा जो तन-मन,


यहाँ पाया न अपनापन।


चाहत संग-संग जग में फिर,


खोये रहे सपनो संग।।


पूरे होते जीवन सपने,


कुछ तो ऐसा करता तन।


सत्य-पथ अपनाते जो साथी,


फिर व्याकुल होता न मन।


 सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

आल्हा छंद पर रचना


 


वीर-वधू कहती हैं भैया,


   ‌‌ देखो हर दिन कर चित्कार।


बदला लिया नहीं साजन का,


                खत्म हो गए क्या हथियार।


 


वादा था ये लेंगे बदला,


                  बीस नहीं हम सौ को मार।


लेकिन सके नहीं बदले में,


                 मार अभी तक दो या चार।


 


क्या जवाब मैं दूॅ॑ साजन को,


                      जो पूछें मुझसे हर बार।


कब तक हम वीरों का बदला,


                     दुश्मन से लेगी सरकार।


 


खून गिरा गलवान सजन का,


                 हर दिन कहता है चित्कार।


कोई तो बंदूक उठाए,


                      और करे दुश्मन संहार।


 


सूख न पाया इंतजार में,


                    बीते भले दिवस हैं साठ।


लहू देखना है दुश्मन का,


                      बाॅ॑धी है मैंने ये गाॅ॑ठ।


 


कोई तो प्रण पूरा कर दे,


                    पीर मुझे भारी है यार।


चैन कहो कैसे आएगा,


                     दुश्मन अभी रहा हूॅ॑कार।


 


देख पिय के रक्त की पीड़ा,


                    मेरे अॅ॑खियन बहती धार।


कोई तो उनसे बदला ले, 


                       विनय यही है बारंबार।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रमेश कुमार सिंह रुद्र 

रमेश कुमार सिंह "रुद्र"  


पिता- श्री ज्ञानी सिंह, माता - श्रीमती सुघरा देवी।


    पत्नि- पूनम देवी, पुत्र-पलक एवं इशान 


जन्मतिथि- फरवरी 1985


मुख्य पेशा - माध्यमिक शिक्षक ( हाईस्कूल बिहार सरकार वर्तमान में कार्यरत उच्च माध्यमिक विद्यालय रामगढ चेनारी रोहतास-821104 )


शिक्षा- एम. ए. अर्थशास्त्र एवं हिन्दी, बी. एड. 


 साहित्य सेवा- साहित्य लेखन के लिए प्रेरित करना। 


     सह सम्पादक "साहित्य धरोहर" अवध मगध साहित्य मंच (हिन्दी)


     प्रदेश प्रभारी(बिहार) - साहित्य सरोज पत्रिका एवं विभिन्न पत्रिकाओं, साहित्यक संस्थाओं में सदस्यता प्राप्त।


     प्रधानमंत्री - बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इकाई रोहतास सासाराम 


समाज सेवा - अध्यक्ष, शिक्षक न्याय मोर्चा संघ इकाई प्रखंड चेनारी जिला रोहतास सासाराम 


राज्य- बिहार 


पता  -


 पोस्ट- कर्मनाशा, थाना -दुर्गावती, जनपद-कैमूर पिन कोड-821105


मोबाइल - 9572289410 /9955999098/9473000080 


 मेल आई- rameshpunam76@gmail.com


                   rameshpoonam95@gmail.com 


लेखन मुख्य विधा- छन्दमुक्त एवं छन्दमय काव्य,नई कविता, हाइकु, गद्य लेखन। 


प्रकाशित रचनाएँ- देशभर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एवं  साझा संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित। लगभग 600 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं तथा 50 साझा संग्रहों एवं तमाम साहित्यिक वेब पर रचनाये प्रकाशित। 


साहित्य में पहला कदम- वैसे 2002 से ही, पूर्णरूप से दिसम्बर 2014 से।


 प्राप्त सम्मान विवरण -:


भारत के विभिन्न साहित्यिक / सामाजिक संस्थाओं से  80 सम्मान प्राप्त/चयनित। 


 


 


 


रचनाएं-:


1-


सरस्वती माँ 


वीणावादिनी ज्ञान दायिनी ज्ञानवान कर दे....


माँ रूपसौभग्यदायिनी नव रुप भर दे....


हंसवाहिनी श्वेतांबरी जग उज्ज्वल कर दे.....


वीणापाणिनि शब्ददायिनी शब्दों से भर दे....


ज्योतिर्मय जीवन 


तरंगमय जीवन


सभी जन प्रकाशयुक्त 


सभी जन ज्ञानयुक्त


अज्ञान निशा को


जीवों से दूर कर दे..... 


सत्य पथ सत्यमय


वीणा के तारों से 


विद्या-विनयमय


स्वरों की झंकारों से


सभी जीव-प्राणि को  


सुखद पल भर दे..... 


कमलासिनी कमलनयन से सभी को दृष्टि दे...


वाग्देवी माँ वागेश्वरी वाणी से सभी को वृष्टि दे.....


कमंडलधारिणी करकमलों से सभी को वृद्धि दे.....


बुद्धिदात्री ब्रम्भचारिणी सभी को सृष्टि दे.....


रमेश कुमार सिंह रुद्र


 


2-


माता माँ काली कहलाती,


करो माँ हम सबका उद्धार।


तेरे द्वारे हम आये हैं,


रुद्र करत है यही पुकार।-॥१॥


 


दरवाजे पर मेरे हो तुम,


कर दो मेरा बेड़ा पार।


धाम विनय लेकर आये है


रुद्र करत है यही पुकार।-॥२॥


 


माँ सुने है दुर्गा कहलाती,


माँ ही जीवन का आधार।


विग्न दूर करने आये हैं,


रुद्र करत है यही पुकार।-॥३॥


 


चरणों मे माथा टेके हैं,


कर दो नईया मेरा पार।


कष्ट निवारण हम आये है,


रुद्र करत है यही पुकार।-॥४॥


 


कष्टो मे हम सभी जीते है,


मिल गया कष्ट मुझे अपार।


निजात पाने हम आये है


रुद्र करत है यही पुकार।-॥५॥


 रमेश कुमार सिंह रुद्र


 


 


3- कविता मेरी काव्य रंगोली। 


 


विभिन्न रंगों की है ये टोली


इन्द्रधनुषी सुरत भोली


मौन रुप में दिखती हरदम


मन हृदय को करती चंचल


             सत्य राह आनन्द की झोली।


             कविता मेरी काव्य रंगोली।


 


रंग बिरंगे भाव पड़े हैं


सबके मन साथ खड़े हैं


सुख दुख में साथ निभाते 


जिवनचर्या साथ बिताते 


             मिलती सबको मिठी बोली। 


             कविता मेरी काव्य रंगोली। 


 


जीवन में खुशहाली लाती 


रंगमय कर भाव दिखाती 


लाल हरा बैगनी पीला है 


सातरंगो से बना झीना है 


             पर्व त्योहार पर भरती रोरी। 


             कविता मेरी काव्य रंगोली। 


 


सबके मन को बहलाये 


थके हुए तन सहलाये


उदासियों के साथ निभाये


जीवन को सतरंगी बनाये


             कभी कभी संग खेले होली। 


             कविता मेरी काव्य रंगोली। 


 


नव वर्ष नव भाव लिए


नव रीति नव आस लिए


चलती है अविरल धारा 


सब लोग लिए एक नारा 


             नव वर्ष मुबारक है होनी। 


             कविता मेरी काव्य रंगोली। 


         रमेश कुमार सिंह रुद्र 


   


   


4-


माँ मुझे दो आर्शीवाद


 


माँ मुझे दो आर्शीवाद !!


          ममता बिन कैसे रह पांऊगी।


बचपन तेरी गोद बिताया,


                  कैसे वहाँ हँस पांऊगी। 


आँगन की एक फूल हूँ ,


                  खिलकर मुस्कुराऊंगी।


कदम चुमने तेरा ही मैं,


                  पुन: लौट कर आऊंगी।


आंचल की बगिया मैं तेरे,


                   पुन: चहकने आऊंगी।


सुमन लता चमेली बनकर,


                    सुगन्ध मैं फैलाऊंगी।


 


 


माँ मुझे दो आर्शीवाद !!


          ममता बिन कैसे रह पांऊगी।


मैं हूँ तेरी नन्ही चिड़िया ,


                कभी उड़कर आऊंगी।


पंख को तूने ही सहलाया,


                 इसके सहारे आऊंगी।


तेरे सिखाए हुनर को मैं,


               जाकर वहां दिखाऊंगी।


दुख आये या सुख आये,


               सहर्ष पार कर जाऊंगी।


तेरे ही आर्शीवचनो से,


            कठिन डगर चल पाऊंगी।


 रमेश कुमार सिंह रुद्र 


 


 


5-दीपक 


दीपक की रोशनी को इतना बढ़ाएँ


कि सबके हृदय में फूल खिल जाय।


दीपावली पर दीप इतना जलाएँ,


कि सबके यहाँ प्रकाश फैल जाय।


 


उदासी की दुनिया में खुशियाँ मनाएँ,


कि चारो तरफ खुशनुमा पल हो जाय।


अपने मन से ईर्ष्या, कलह, द्वेष हटा दें,


हृदय में स्वच्छता का वास हो जाय।


 


स्नेह का दिया इतना जलाएँ,


स्वार्थ का पर्दा आँखो से हट जाय।


इस पर्व पर ऐसा माहौल बनाएँ,


सबके अन्दर मधुर भाव आ जाय।



 


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