डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी

मेरे पावन मन की कविता


 


निकल बहो बन गंगा सरिता।


मेरे पावन मन की कविता।।


 


कहीं न रुकना बहती जाना।


मेरी मानवता की कविता।।


 


सारे जग में रच-बस जाना।


बनकर सबके दिल की कविता।।


 


भूखे-प्यासे का दु :ख हरना।


तप्त जगत को दे शीतलता।।


 


अपलक देख रहे सब तुझको।


खाओ तरस अब करो मित्रता।।


 


अक्षर-अक्षर शव्द-शव्द से।


भरना सबमें भाव सहजता।।


 


भाव प्रधान बने नित बहना।


भागे सबकी हृदय-दीनता।।


 


हरियाली बन दिखो चतुर्दिक।


जागे सबमें मधु-मादकता।।


 


मन में सबके बैठ निरन्तर।


बन जाना कान्हा की गीता।।


 


कदम-कदम पर दिखे विश्व में।


मेरे पावन मन की कविता।।


 


स्वर्ग उतर आये पृथ्वी पर।


लगे महकने अब मानवता।।


 


विषमय जीवन से सब उबरें।


स्थापित हो सत शिव सुन्दरता।।


 


लें अवतार परम प्रिय मानव।


बह जाये बयार नैतिकता।।


 


कविता रचने का मतलब यह।


जनमानस में भरे स्वच्छता।।


 


करे प्रहार कंस-रावण पर ।


स्थापित कृष्ण-राम-सभ्यता।।


 


ऐसा केवल कर सकती है।


मेरे पावन मन की कविता।।


 


जो नकारती दुष्प्रवृत्ति को।


वह अति उज्ज्वल पावन कविता।।


 


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


सुनील कुमार गुप्ता

कटु वचनों से जीवन में,


आहत हुआ मन-


मिटती नहीं उसकी चुभन।


भूलने की उसको जीवन में,


साथी तुम यहाँ-


कितना भी करो जतन।


अपने हो कर भी साथी,


अपने नहीं-


अपनत्व का चाहे करो प्रयत्न।


मिट जाती है ख़ुशियाँ सारी,


अमृत भी बनती विष प्याली-


साथी जो मिटी न मन की चुभन।


करे जो साधना-अराधना,


होगी प्रभु कृपा -


मिटेगी मन बसी चुभन।


कटु वचनो से जीवन में,


आहत हुआ मन-


मिटती नहीं उसकी चुभन।।


 सुनील कुमार गुप्ता


डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र

     ताकत होती है


 विध्वंस से अधिक निर्माण में


   निर्माण पलता है 


 विध्वंस के गर्भ में ही


   खेल चलता रहता है 


  सृष्टि में दोनों का अनवरत


 नहीं महसूस करनी चाहिए असहजता ऐसे समय में 


       हांलांकि 


दुःख देता है विध्वंस अक्सर 


   कभी- कभी 


 लकवा मार देता है 


 मनुष्य के साहस को भी 


लेकिन काम लेना चाहिए धैर्य से


 नियंत्रित करना चाहिए 


   मन के घोड़े को


 विवेक के रज्जू से


  पांच सौ वर्षों के 


वनवास की पूरी हो गई अवधि


हर लोगों ने माना अस्तित्व को 


 मर्यादा पुरुषोत्तम राम के 


     स्थापित होंगे 


अपने नियत स्थान पर


पराभव हुआ छलियों का 


 निष्प्रभावी हो जाती हैं


  मायावी शक्तियां 


कुछ चमत्कारी प्रदर्शन के बाद


   सेंकते रहते हैं निरंतर


     सियासी रोटियां


  विध्वंस के तावे पर 


    कुछ वंशवादी


नहीं बची खाने लायक किसी के गिर गए औधें मुंह 


 आई० सी० यू० में हैं आज


 ज़मीन अपनी ढूंढ़नी होगी उन्हें


  कि कहां खड़े हैं हम 


 चिंतन- मनन करना होगा कि


 घर- घर में हैं सबके राम 


घर- घर के हैं राम सबके


 बस इंतजार था वक्त का 


   लोहा मान गए 


सिकंदर और सुकरात दोनों 


नहीं होता वक्त, किसी का हमेशा


   जीवन में उतना ही


  फैलाओ साम्राज्य अपना 


    जितना महसूसते हो 


     सीखना चाहिए 


  जीव जंतुओं से भी


कछुआ उतना ही अंग अपना बाहर निकालता है 


जितनी ज़रूरत होती है उसे


ताकत अधिक होती है


 विध्वंस से अधिक निर्माण में


बस इंतजार करना होगा वक्त का 


 


डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र


स्नातकोत्तर शिक्षक, हिंदी


केन्द्रीय विद्यालय इफको


 फूलपुर प्रयागराज


सिन्धुजा श्रीवास्तव बेसिक टीचर -प्रा.वि.कुल्हनमऊ खास जौनपुर यू.पी.


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

मेरे प्रियतम का अमिट स्नेह 


जो पार क्षितिज तक चला गया


अमर सुहागिन मैं सदा रहूं


गोधूलि में प्रभू दीप जला गया।


 


मेरा जन्म हुआ तब शून्य प्रिये


तुझको पा हृदय प्रफुल्लित हुआ


तुम मुझमें अपना सुख देखो


प्रियतम सब तुझमें विलीन हुआ।


 


गौरा पार्वती ने घोर व्रत तप की


पाया अजन्मा शिव प्रेम प्रिये


गठबंधन ऐसा अलौकिक बंधन है


सतजन्मों के बंधन का प्रेम प्रिये।


 


गणपति संग शिवगौरा का पूजूं


व्रत हरितालिका से पाऊँ मैं आशीष


रहूं निर्जला व्रत मेरा है सौभाग्य 


श्रृंगार कर पाऊँ प्रियतमआशीष। 


 


मांग सिन्दूरी से भरा दें प्रभु आशीष 


मां गौरी के दीक्षा से लिया गृहस्थ मान


मेंहदी रची रहे प्रतिपल हाथों में


ये सब जीवन के अनमोल रत्न है भान। 


 


ईश ये विनती है सदा


दिजिए मुझको भी वरदान


तुझको है मेरा भाव समर्पित 


तुझमें रम्ह जाऊं ये मेरा अरमान। 



दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज उत्तर प्रदेश।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मिला अपनों से.........


 


मिला अपनों से मुझे धोका


मैं भूलकर भूल नहीं पाता


करता हूँ स्मरण जब उसका


तो वो जज्बात जगा जाता


 


छल फरेब कहें या मक्कारी


या मानें जीवन की परीक्षा


कहें पूर्व जन्मों का प्रारब्ध


या मान लें ईश्वर की इच्छा


 


निकल जायेंगे यह दिन भी


हमें कभी हसाते या रुलाते   


वक्त ही बन जायेगा मरहम


निकलेंगे वो घावों को पुराते


 


न मुझे कोई भय न आशंका


मेरे मीत श्री बांकेबिहारी हैं


करेंगे जीवन नाव की रक्षा


हरि के विश्वास की बारी है


 


करेंगी मदद बरसाने वाली


मेरे प्रति श्याम को रिझाने की


फसी झंझावातों में जिन्दगी


उसे मंजिल तक ले जाने की।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

धन्य अपनी धूल माटी, 


                    वीर जन्में हैं जहाॅ॑। 


धूल माटी यार ऐसी,


                   और बोलो है कहाॅ॑।


इस धरा पर राम जन्मे, 


               इस धरा पर कृष्ण भी। 


इस धरा पर जन्म लें हम, 


                      देव चाहें ये सभी।


 


है हिमालय ताज जिसका, 


                   है धरा अपनी वही।


और गंगा धार भी है, 


                 इस धरा पर ही बही।


कौन चाहेगा नहीं मैं,


                इस धरा पर जन्म लूॅ॑। 


और सेवा में इसी के,


                  प्राण अपने त्याग दूॅ॑।


 


धूल - धरती ये हमारी,


                  स्वर्ग से कम है नहीं।


देव दुर्लभ वेद गीता,


                   और रामायण यहीं।


इस धरा की धूल चंदन,


                    आइए टीका करें।


इस धरा में क्या नहीं है,


                  आइए झोली भरें।


 


               ।। राजेंद्र रायपुरी।।


 डॉ. निर्मला शर्मा

निष्काम कर्म


संसार मे बिना किसी स्वार्थ के 


जो चलता है सदमार्ग की ओर


जिसे न अभिलाषा है ख्याति की


चित्त रहे सदैव प्रभु चरणों की ओर


करे कर्म निष्काम सदा करता न 


कभी परिणाम की की चिंता


तटस्थ रहे जीवन में सदा निर्विकार


उसी की जगत में होती जयजयकार


कहता उसे क्या कोई देता कैसे नाम


उसे तो करना है कर्म अपना निरन्तर


उपाधियाँ न कर पाई कभी उसका सन्धान


कुविचारों को झोंक ज्ञान की अग्नि में


वो चला अनवरत कर्म करता नगरी में


गीता का सार रहा उसका मागदर्शक


जीवन जीने की कला थी उसकी आकर्षक


 डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

हर चाह जो होती पूरी,


यहाँ फिर न देखे सपने।


सपनो सी दुनियाँ संग भी,


यहाँ कुछ तो होते अपने।।


पहचान लेते जो जग में,


कौन-है अपने-बेगानें,


न होती फिर तड़पन मन में,


न होते वो फिर अनजाने।।


माने या न माने साथी,


सत्य को ही पहचाने।


सत्य से ही जीवन जग मे,


यहाँ होते सपने-अपने।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


नूतन लाल साहू

तीजा के तिहार


भादो के अंजोरी, तीज तिथि वार


मइके म मनाथे, तीजा के तिहार


ददा दाई के मया,भाई के दुलार


मइके के सुरता देवाथे, तीजा के तिहार


छत्तीस घंटा रहिथे,निर्जला उपवास


बिहान दिन बड़ बिहनिया लेे, करथे फरहार


कांसा के थारी,चंदन बंदन गुलाल


नंदिया बइला के, करथे पूजा पाठ


भादो के अंजोरी, तीज तिथि वार


मइके में मनाथे, तीजा के तिहार


ददा दाई के मया,भाई के दुलार


मइके के सुरता देवाथे, तीजा के तिहार


बड़ कठिन हे, तीजा के व्रत


साल भर ले अगोरा रहिथे, येकर बर


भाई बहिनी, दाई ददा म


परेम भाव ल जगाथे, तीजा के व्रत हा


भादो के अंजोरी, तीज तिथि वार


मइके में मनाथे, तीजा के तिहार


ददा दाई के मया, भाई के दुलार


मइके के सुरता देवाथे, तीजा के तिहार


बड़ कठिन हे,पर सब हे मगन


जम्मो झन मिलथे,पुराना सहेली मन हा


झिमीर झिमीर बरसा हे,भुइया दाई ह करे हे सिंगार


मइके के नवा लुगरा, पहिनथे बहिनी मन हा


भादो के अंजोरी,तीज तिथि वार


मइके में मनाथे, तीजा के तिहार


ददा दाई के मया,भाई के दुलार


मइके के सुरता देवाथे, तीजा के तिहार


ददा दाई के,ममता करुना लाड दुलार


तीजा तिहार म, मिलथे आसिरवाद


छत्तीसगढ़ी संसकिरती के, चिन्हारी हे


नारी जिनगी के महिमा,हे अपार


भादो के अंजोरी,तीज तिथि वार


मइके में मनाथे, तीजा के तिहार


ददा दाई के मया,भाई के दुलार


मइके के सुरता देवाथे, तीजा के तिहार


नूतन लाल साहू


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

बदल जाओ या बदलना सीखो


मंजिल से पहले ना रुकना सीखो।।


 


औकात का आंकलन खुद का करना सीखो ,औकात मेहनत की मस्ती है ईमानदारी का ईमान 


कर्म पूजा का सिंद्धांत ।।           


 


खुद पे


भरोसे के भरोसे को पूंजी


दुस्साहस नहीं साहस का सोपान।।


 


शब्द कर्म में भेद विभेद नहीं


कथनी करनी में अंतर ना हो


वचन निभाना सिखों।।


 


दिल दिमाग संतुलित


क्रोध द्वेष को त्यागना सीखो।।


 


आचार व्यवहार आचरण का


आदर्श आधार बनाना सीखो।।


 


तजुर्बा तालीम हथियार का


अहम स्वयं का त्याग औकात बनाना सीखो।।


 


मकसद ना हो खुदगर्जी


मकसद ना हो मतलब स्वार्थ।।


 


समय समाज राष्ट्र जिससे


पहचान मकसद में हो साथ।।


 


मकसद पर ध्यान लगाना सीखो


मकसद औकात हो बेलौश बेबाक


लम्हा लम्हा मकसद का जीवन जीना सीखो।।


 


जिंन्दगी के दिन चार दो रात के अंधेरो के दो सुबह नए शौर्य सूर्य


के साथ।।                         


 


दुनियां का नव सूर्योदय


विश्वाश आश बनाना सीखो।।


वक्त की कीमत वक्त बदलना


सीखो ,बोझ नहो समर्थ सोच


बनाना सीखो ।।


 


सयम संकल्प का कदम 


कदम विकल्प नहीं कोईं


संकल्पों की यज्ञ आहुति 


करना सीखो।।


 


हुजूम में भी तन्हा एक चिराग


हुजूम की कारवाँ मंज़िल का


दिया चिराग मशाल सा जलना सीखो।।


एकला चलों कारवाँ के बागवाँ


बनना सीखो।।


ईश्वर ,अल्ला ,गुरु ,जीजस , पैगम्बर तुझमे तेरे अंदर खुद में इनको खोजो ,इनमे ही इनसे ही दुनियां देखो ।।                   


 


जख्म दर्द हो चाहे जितने 


दुनियां के दर्दे गम जख्म 


का मरहम बनना सीखो।।


 


ताकत का मतलब जानो


ताकत का सदुपयोग करना


सीखो,मौका धोखा का फर्क समझना सीखो ।।


 


गुरुर नहीं जज्बे का जूनून कुछ


कर गुजरने का सुरूर वर्तमान


के कदमो से प्रेरक इतिहास


बनाना सीखो।।


 


जिंदगी रहम नहीं रहमत का रहीम करीम सा दुनियां में


जीना सीखो।।


 


चाहत जो भी हासिल कर पाओगे


अवनि के अवतार इंसान तुम


सिद्धार्थ से बुद्ध का सत्यार्थ तुम


प्रमाणिकता प्रमाण तुम ।।


 


पुरुष पराक्रम का परिधान धारण


करना सिखों ,धुँआ नहीं लपटो जैसा जलना सीखो।।


 


तुफानो सा चलना होगा


किस्मत की अनचाही लकीरो


मिटाना होगा तेरी आहाट दुनियां


की दुनियां में नई जिंदगी जमाने


का बयां अन्दाज़ करना सीखो।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


विनय साग़र जायसवाल

हुआ है जब से चमन में क़याम सावन का 


 गुलों ने ख़ूब किया एहतराम सावन का 


हुस्ने-मतला--


बहार आई है लेकर पयाम सावन का 


सुनाओ आज कोई तुम कलाम सावन का 


 


कली कली पे ही भंवरें हैं तान छेड़े हुए


नुमाया रंग है हर सू तमाम सावन का


 


बहार देख तबीयत जवान होती है


*पिला दो आज निगाहों से जाम सावन का*


 


सभी हैं ख़ुशियों के आलम में यूँ भी डूबे हुए


था मुंतज़िर हरिक खासो-आम सावन का 


 


बहुत दिनों से उदासी है बज़्म में साक़ी


करो तो आज ज़रा इंतज़ाम सावन का 


 


फ़िज़ाएं देख के दिल बाग़ -बाग़ होता है 


बड़ा हसीन है साग़र निज़ाम सावन का 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


एस के कपूर श्री हंस

पाने को थोड़ा सा


जीवन भर बहुत कुछ खोया करता है।


 


आदमी खिलौना मिट्टी का


पर फना होने से डरता है।


कर्म की चिन्ता नहीं अमर


होने की कामना करता है।।


मौत पर काबू नहीं और


बस नहीं है जिंदगी पर।


मिली इक छोटी सी जिंदगी


जाने कितना पाप भरता है।।


 


क्या होते जीवन के अर्थ ये


तो कभी सोचता नहीं है।


किसी गलत बात को भी


सामने से रोकता नहीं है।।


अपनी स्वार्थ की नाव पर ही


उसपर सदैव रहता है सवार ।


अपने कर्मों का फल स्वेच्छा


से कभी भी भोगता नहीं है।।


 


नफरत ईर्ष्या से ही सदा  


सरोकार बनाये रखता है।


सहयोग परोपकार की बात


बस जबानी ही भरता है।।


जीवन को जीवन की भांति


कभी नहीं है वह जीता।


कुछथोड़ा पाने कोजीवन भर


बहुत कुछ खोया करता है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


मधु शंखधर स्वतंत्र

प्रियतम से श्रृंगार है, प्रभुवर का आभार।


अमर सुहागन मैं रहूँ, दाता करूँ पुकार।।


 


गौरा ने जब व्रत धरा, पाया शिव का प्रेम।


गठबंधन के सूत्र में, बँधा अलौकिक प्यार।।


 


करके व्रत हरितालिका, पाऊँ शुभआशीष।


शिव गौरा के साथ ही, गणपति आएँ द्वार।।


 


रहूँ निर्जला व्रत प्रभो, पूजूँ गौरा साथ।


सुख सौभाग्य मिले सहज , प्रेम बसे आधार।।


 


सोलह कर श्रृंगार मैं, प्रियतम पाऊँ नेह।


माँग बसे सिन्दूर यह, जीवन का यह सार।।


 


हाथ रचे मेंहदी सदा, रंग सजे शुभ लाल।


लाली अधरों पर सजे, मधुर सजे व्यवहार।।


 


मधु जीवन की आस ये, मिले सुखद वरदान।


भाव समर्पित ईश को, प्रभुवर हो स्वीकार।।


 


मधु शंखधर स्वतंत्र


प्रयागराज


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरी जिंदगी की डोर अब तेरे हाथों में


मेरा पल पल बंधा है तेरे जज्बातों में


 


मुझ विरही चातक को हो स्वांति बूंद


मन लालायित रहता प्रेम बरसातों में


 


बहुत उधारी बढ़ गई तुम पै मेरे प्यार की


लिख दूं प्रियतमा उसे दिल के खातों में


 


कितनी चाहत दिल में तेरे प्रति सजनी


कैसे व्यक्त करें उसे बातों ही बातों में


 


नहीं जी पायेंगे हम तेरे बिना जग में


सत्य सो नहीं पाता बिन तेरे रातों में।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन

दिल जिस से लगा 


उसे पा न सका।


पाने की कोशिश में


बदनाम हम हो गये।


फिर जमाने वालो ने


खेल मजहब का खेला।


जिसके चलते हम दोनों को


अलग होना पड़ा।।


 


मोहब्बत करने वाला का 


क्या कोई मजहब होता है।


दोनों का खून क्या


अलग अलग होता है।


क्यों मोहब्बत में मजहब 


बीच में ले आते है लोग।


और सच्ची मोहब्बत का 


क्यों गला घोंट देते है।।


 


स्नेह प्यार से जीने में


क्या मजहब बाधा बनता है।


अरे जब रब ने दोनों को 


एज दूजे से मिलाया है।


तो क्यों नफरत की आग


प्रेमियों के दिलों में लागते हो।


और राजनीति का जहर क्यों 


मोहब्बत में भी फैला देते हो।।


 


संजय जैन मुम्बई


सुनीता असीम

ख्वाब भी केवल सताने ही सताने आते।


प्यार के सारे तराने दिल जलाने आते।


***


मिल नहीं सकतीं जरूरत है उन्हीं खुशियों की।


ये बहारों के नजारे भी चिढ़ाने आते।


***


जिंदगी ने दे दिए मुझको सदा ग़म ही ग़म।


चांद के कुछ तो सितारे घर सजाने आते।


***


कुछ सबक बाकी रहे हैं सीखने को मेरे।


आज तो रिश्ते सभी जीना सिखाने आते।


***


भूल बैठी हूं सभी सुध-बुध जमाने की मैं।


लोग भी बातें जमाने की सुनाने आते।


***


सुनीता असीम


दयानन्द त्रिपाठी 'व्याकुल' को मिला काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान - 2020

दयानन्द त्रिपाठी 'व्याकुल' को मिला काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान - 2020


 


- स्वतंत्रता दिवस पर आनलाइन आयोजित प्रतियोगिता में कविता प्रस्तुति के लिए मिला सम्मान



फोटो परिचय : दयानन्द त्रिपाठी 'व्याकुल'


 


लखीमपुर खीरी 


 


महराजगंज जनपद के शिक्षक एवं कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को काव्यरंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय आनलाइन स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में कार्यक्रम के संरक्षक अनिल गर्ग, संयोजक आशुकवि नीरज अवस्थी तथा विशिष्ट अतिथि एवं कार्यक्रम प्रमुख कैप्टन बीएन तिवारी 'अवधूत' ने काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान 2020 से सम्मानित किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री कैप्टन बीएन तिवारी 'अवधूत' ने दयानंद त्रिपाठी व्याकुल की कविताओं की सराहना करते हुए उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित किया है।



स्वतंत्रता दिवस पर काव्य रंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था । जिसमें देश के सभी प्रांतों से 245 से अधिक प्रतिभागियों ने प्रतिभाग कर स्वतंत्रता दिवस के अवसर देश के प्रति उभरे भावों तथा मन के विचारों को प्रस्तुत किया। इस आनलाइन कार्यक्रम में देश भर के 60 ऐसी शख्सियतों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करके सबको ओतप्रोत कर दिया। इसी कड़ी में जनपद महराजगंज के उभरते कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ने स्वतंत्रता दिवस पर रचित गीत प्रस्तुत किया। उनके इस प्रस्तुतिकरण को देखते हुए कार्यक्रम के संरक्षक अनिल गर्ग, संयोजक /सम्पादक आशुकवि नीरज अवस्थी जी, मुन्नालाल मिश्र, शेषादि त्रिवेदी एवं आलोक शुक्ल तथा विशिष्ट अतिथि एवं कार्यक्रम प्रमुख कैप्टन बीएन तिवारी 'अवधूत' द्वारा काव्यरंगोली भारत गौरव सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मिले सत्य को करुणा प्यार..


 


तुम जग का आधार किशोरी


स्वयं श्याम का तुम ही सहारा


जग तृष्णा से व्याकुल मन का


श्रीराधे तुम बिन कौंन हमारा


 


जो आतातायी हते माधव ने


तेरी प्रेरणा से मिला उन्हें बल


बृजरज का कण कण पावन


वह भी ठकुराइन तेरा संबल


 


जीव जगत को वात्सल्यमयी


सन्तति सम रखती हो दुलार


हे आराध्या माँ बरसाने वाली


मिले सत्य को करुणा प्यार।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर श्री हंस

वरिष्ठ नागरिक सेवानिवृत्ति 


दूसरी पारी की शुरुआत है।


 


अभी भी छूने को ऊपर


ऊंचा सा आसमान है।


एक वरिष्ठ नागरिक का


अनुभव तो महान है।।


सेवा निर्वती तो अंत नहीं


है इस जीवन का।


इसके बाद भी कर्म श्रम


पहचान सम्मान है।।


 


हर इक वरिष्ठ नागरिक


ज्ञान की खान होता है।


अपने में अनुभव समेटे


एक वरदान होता है।।


समाज का होता है वह


एक पथ प्रदर्शक।


वह समझ बूझ का सम्पूर्ण


एक पुराण होता है।।


 


दायित्व है उसके कंधों पर


नई पीढ़ी को सिखाने का।


अपने संस्कार संस्कृति की


हर बात बताने का।।


समाज परिवार का मुखिया 


रास्ता भी दिखाना है।


भार भी सर पर कुप्रथाओं


से समाज को बचाने का।।


 


वरिष्ठ नागरिक बनकर छिपी


प्रतिभा को आप जगाइये।


अपनी सुप्त अभिरुचियों को


फिर से आप महकाइये।।


यह तो आप की दूसरी पारी


की नई शुरुआत है।


कुछ नया सा करके लोगों के


सामने आप लाईये।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

तुफानो से लड़ना है तो


जीना सीखो जीना है मारना सीखो ।।                               


 


जवा जोश के 


गुरुर से डरना सीखो


हस्ती की हद नहीं हद खुद


तय करना सीखो।।


 


अरमानो का आसमाँ ,आँसमा से आगे अरमानों को हासिल करना सीखो।।


 


जूनून मकसद का मकसद


की राहों में गर आ जाए कोईं


मुश्किल तोड़ हर मुश्किल राहों


की हासिल मकसद करना सीखो।।


 


दुश्मन की शातिर चालो में 


फसना नहीं निकालना सीखो।।


 


अंगार तुम नौजवान तुम जवां हौसलों की उड़ान मेंउड़ाना सीखो।।


 


ताकत की गर्मी के बेजा ना 


जाए नफ़रत से नफ़रत में जीना


सीखो।।


 


बदल सकते हो दुनियां 


दुनिना बदलेगी कैसे दुनियां


बदलना सीखो ।।                  


 


मिटा दो हस्ती को अगर तू मर्तवा चाहे ख़ाक से गुलो गुलज़ार बुनियाद तुम दुनियां के दर्द आंसुओं गम जहर को पीना सीखो।।


 


हर इंसान में आते तुम एक बार


हर जान में जागते एक बार


आने जागने का फर्क फासला


समझो।।


 


मिटा दो या मिट जाओ 


दुनियां की तारीख पन्नों


का अल्फाज बनाना सीखो।।


 


यूँ ही नहीं लिखी जाती लम्हों


की लकीरे लम्हों की लकीरो


की इबारत की इबादत करना


सीखो ।।


 


मोहब्बत जिंदगी का फलसफा


इश्क आशिकी दीवानापन तरन्नुम


तराना जायज जिंदगी से इश्क का कलमा गीता कर्म ज्ञान का


पड़ना सीखो।।


 


वक्त बदलता रहता है लम्हा


लम्हा चलता रहता लम्हा लम्हा चलते वक्त में अपनावक्त बदलना सीखो।।


 


वक्त गुजरता जाएगा वक्त की


तकदीर् बदलना सीखो


चिंगारी तुम ज्वाला काल कराल


विकट विकराल तुम वक्त के फौलाद नौजवान तुम।।


 


तुम हिम्मत की धार तुम तूफां


की बौछार तुम वक्त के हथियार


तुम नौजवान तुम बेजा ना जाए जवानी की रवानी रहो होशियार तुम।।


 


ढल गयी गर जवानी न कहलाओ


कचरा कबाड़ तुम कुछ नए जोश


जश्न में गुजरो दुनियां रहो महेशा नौजवान तुम।।


 


तेरे साँसों की गर्मी की ज्वाला से


तेरे मंज़िल राहो के पथ अग्नि


को बदल डाले जँवा मस्ती में


कुछ तो ऐसा कर डालो।।


 


मिटटी के माधव मिटटी में ना


मिल जाओ नया इतिहास रचो


बाज़ीगर जादूगर बाज़ अरबाज़ तुम।।


 


जमी पे जन्नत की सूरत का


नया ज़माना नौजवान तुम।।


 


हसरत का पैमाना हकीकत


का मैखाना नए कलेवर का


नक्शा नशा शाराब तुम।।


 


सवाक नहीं कोई ऐसा खोज


सको न जबाव तुम नहीं कोई समस्या पाओनहीं निदान तुम।।


 


जज्बा जमाने का वक्त का कौल


तुम, तेरे ही कदमो की दुनियां बेमिशाल तुम ।।


 


जवानी की रावांनी के समंदर


न बन पाये तेरी गागराई जहाँ


का सुकुन तेरे रहने ना रहने को दुनियां कैसे समझ पाये।।


 


अवसर को उबलब्धि में 


बदलना सीखो नौजवान


तुम गिरना और संभालना


सीखो।।


 


नौजवान तुम इरादों के


चट्टान राई से पहाड़ मौका


को मतलब पर मोड़ना सीखो।।


 


खुद के रहने


के वर्तमान रच डालो ऐसा इतिहास दुनियां की तारीखों


के पन्नों को दुनियां की राहों के रौशन चिराग नौजवान तुम।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

हे भारत रत्न राजीव रतन 


        कोटि-कोटि नमन, वन्दन, 


तेरे बलिदान दिवस पर देखो 


         कृतज्ञ राष्ट्र करता क्रन्दन। 


 


आतंकी दल लिट्टे ने जब 


      निजघाती दस्ता तैयार किया, 


छद्म रूप से तेरे ऊपर 


        घातक बम प्रहार किया। 


 


मृदुभाषी व्यवहार कुशल 


         व्यक्तित्व में आकर्षण था, 


समृद्धि में जन्म लिया पर 


            जीवन में संघर्षण था। 


 


हे जननायक शान्तिदूत 


      आधुनिक भारत के निर्माता,


पंचायतीराज के विस्तारक 


       सूचना क्रांति के अधिष्ठाता। 


 


बलिदान व्यर्थ न जायेगा 


       भरसक प्रयास हमारा होगा,


आतंकवाद का निर्मूलन ही 


             राष्ट्रवाद का नारा होगा।


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


संजय जैन

खत प्यार का एक


हमने उनको लिखा।


पर पोस्ट उस को


अब तक नहीं किया।


अपने अल्फाजो को


अपने तक सीमित रखा।


बात दिल की अपनी 


उन तक पहुंच न सका।।


 


डर बहुत मुझको उनसे 


और अपनों से लगता था।


कही बात का बतंगड़


कुछ और बन न जाये।


इसलिए में अपने प्यार का


इजहार उनसे कर न सका।


और जो आंखों से चल रहा था


उसे ही आगे जारी रखा।।


 


लगता था एक दिन 


बात बन जाएगी।


प्यार के अंकुर 


दिलो में खिल जाएंगे।


पर ऐसा अब तक


कुछ भी हुआ ही नहीं।


और दोनों को किनारे


अबतक मिल न सकें।।


 


फिर समय ने अपना 


काम कर दिया।


उनकी जिंदगी में एक


नया अध्याय जोड़ दिया।


और हम इस किनारे बैठकर


दुनियाँ उजड़ते देखते रहे।


और प्यार का जनाजा 


निकलता हम देखते रहे।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


सुनीता असीम

जब भी देखा आंखें मलके।


बदरा थे आंसू बन छलके।


***


नाम नहीं लेती रूकने का।


बारिश पड़ती सिर्फ मचलके। 


***


जीवन धारा टेढ़ी होती।


चलना इसमें खूब संभलके।


***


 मुश्किल जीना आज हुआ तो।


कैसे देखूं सपने कलके।


***


कश्ती गोते खाती मेरी।


आंचल मेरा जब भी ढलके।


***


हर घर में अंधेर मचा है।


घर से देखो आप निकलके।


***


कीचड़ ही कीचड़ है जग में।


गिर मत जाना यार फिसलके।


***


सुध ले ली रब ने जब मेरी।


ख़ाक़ हुई दुनिया फिर जलके।


***


सुनीता असीम


प्रखर दीक्षित

मुक्तिका


 


पुतलों पर मंहगे लिबास हैं, जिंदा वसन विहीन मिले।


सदसयता ने पीड़ा बांटी, प्रभुता जन मनहीन मिले।।


दौलत छीने मुँह का निवाला, शोषण दंश दिए बहुतेरे,


अक्सर उजले चेहरे वाले, मन के प्रखर मलीन मिले।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


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