संपूर्णानंद मिश्र

रंग बदल लेता है इंसान


   अपनी- अपनी


 जरूरतों के मुताबिक 


गिरगिट भी रंग बदलता है


      पर उसका


 रंग बदलना स्वाभाविक होता है


हार्मोनल होता है


 प्राकृतिक होता है 


     हां कभी- कभी


 अपनी जान बचाने के लिए 


 शत्रु- दल की आंखों में धूल 


झोंकने के लिए भी होता है


     मनुष्य ने 


   रंग परिवर्तन के


  इस रण में उसे 


   पछाड़ दिया है 


 चित कर दिया है 


  महि- समर में 


  वह निश्चेष्ट पड़ा है


  इस रंग परिवर्तन में खूब प्रशिक्षण प्राप्त किया है 


आनलाइन भी शिक्षित और प्रशिक्षित होता रहता है


   इतना रंग बदलता है 


   कि कोई भी खा जाता है धोखा


   नहीं पहचान पाता है उसके 


   वास्तविक रंग- रूप को 


प्रेम के मुखौटे में छिपे स्वार्थ के विकृत चेहरे की पहचान 


   नहीं कर पाता है


      निष्णात होता है 


     रंग परिवर्तन में 


       गढ़ लेता है 


   परिभाषा भी प्रेम की


     बिछा देता है


   जाल कुछ दानों के


    फंसा लेता है 


उन निश्चछल कबूतरों को 


 जो भूख की ख़ातिर


     हो जाते हैं अंधे


   नहीं देख पाते हैं 


प्रेम की मलाई में


 प्रच्छन्न अपनी मृत्यु को


और किसी क्रूर बहेलिए का


   बन जाते हैं शिकार 


 


संपूर्णानंद मिश्र


प्रयागराज फूलपुर


सत्यप्रकाश पाण्डेय

लाये प्रभात एक प्यारा...


 


हरित पीत व रक्त श्याम


आभा से जग अभिराम


अनुपम सौंदर्य से संपूर्ण


रचा अवर्चनीय भव राम


 


वह ज्योति रवि सोम में


विखेर रही सौम्य प्रकाश


आल्हादित वन उपवन


कण कण में मृदुल हास


 


मन्द मन्द मुस्कान लिए


अंर्तमन में लेकर आशा


स्वर्ण रश्मियों से घिरकर


नव जीवन की प्रत्याशा


 


अंधकार ललकार रहीं 


नवल सृजनता का संदेश


रज रज में लिए दिव्यता      


हरि विधु व शिव का भेष


 


कोई परा शक्ति जिसने


ये अखिल ब्रह्मांड संवारा


वही शक्ति आ सत्य को


लाये प्रभात एक प्यारा।


 


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डॉ0 हरिनाथ मिश्र

गरआदमी 


गर आदमी न होता एहसान फ़रामोश,


 माना इसे न जाता जल्लाद कभी का।।


         गर जानती ये दुनिया क्या फ़र्ज़-ए-इंसान?


         होता लहू न इतना बरबाद सभी का ।।


                                    गर आदमी न होता....


ऋतु में,हवा ,फ़ज़ा में होता अगर वजूद,


होता चमन यक़ीनन आबाद कभी का।।


                             गर आदमी न होता....


       होता अगर जो मेल कभी तल्ख़ -मधुर का


       यक़ीनन ये तल्ख़ होता मधुर स्वाद कभी का।।


                               गर आदमी न होता....


होता अगर निशंक ज़माने में कोई यहाँ,


यक़ीनन,वतन ये होता आज़ाद कभी का।।


                    गर आदमी न होता....


होता नहीं गर धर्म का उन्माद जहाँ में।


तो मिलता इसे भी जन्नती प्रसाद कभी का।।


गर आदमी न होता.....।।


   © डॉ0 हरिनाथ मिश्र


रश्मि लता मिश्रा

ईश्वर आ जाओ भजते।


 


मंदिर देखो तो सजते।


 


धीरज माँगा है चलते।


 


सूरज जाता है जलते।


 


छूकर ऊँचाई कहता।


 


आकर ज्वाला भी सहता।


 


चाँद रहा देखो नभ में।


 


झाँक रहा लेके कसमे।


 


बाग झरे देखो झरने।


 


बोल लगे मीठे बहने।


 


 


आकर माँगा है वर ये।


 


लेकर जाना है दर से।


 


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


राम बिहारी पचौरी

अपनी दादी की नातिन हो तुम


अपने पापा की परी हो तुम 


अपनी मम्मी की लाडली हो तुम


अपने भाइयों की प्रिय बहन हो तुम


 अपने ससुर के लिए लक्ष्मी हो तुम


 अपने सासू मां की बिटिया हो तुम


 अपने ननद की भाभी हो तुम


दोनों कुल को तारने वाली देवी हो तुम


फूलों सी कोमल हृदय वाली हो तुम


माँ बाप की एक आह पर ही रोती हो तुम 


भाई के प्रेम में खुद को भुला देती हैं हो तुम 


बड़े नसीब वालों के घर जन्म लेती हो तुम


घर आँगन को खुशियों से भर देती हो तुम


देवालय में बजते शंख की ध्वनि हो तुम


देवताओं के हवन यज्ञ की अग्नि हो तुम


खुशनसीब हैं वो जिनके आँगन में हो तुम


जग की तमाम खुशियों की जननी हो तुम


खिलती हुई कलियाँ हो तुम


माँ-बाप का दर्द समझती हो तुम


घर को रोशन करती हो तुम


जिस घर में ऐसी बिटिया हो,


वह घर स्वर्ग बन जाता है


वहां साक्षात लक्ष्मी का वास हो जाता


 ऐसी बिटिया को राम बिहारी प्रणाम करता है


 


राम बिहारी पचौरी


भिंड (मध्य प्रदेश)


प्रिया चारण

विघ्न हरता मंगल करता देवो में देव ,


जो हर कार्य को सफल करता,,


मंगल कार्य का जो श्री गणेश है


गणनायक वो गौरी पुत्र मूषक नरेश है।


 


एक दंत है , प्रभु दयावान, प्रार्थना स्वीकृत है।


विद्या सागर, बुद्धि दाता प्रभु,


दिन दुःखी के आस तुम्ही ,


मोदक प्रिय, गौरी नन्दन गणेश ,


गणेश चर्तुथी को करे घर मे प्रवेश,,


 


मात पिता की परिक्रमा को चक्र ब्रह्माण्ड बताया,


जन जन को मात पिता का महत्व बताया।


 


कुबेर ख़जाना भोजन में खपाया,


अहंकार कुबेर जी का तोड़ दिखलाया,


तुलसी पत्र की महिमा को


कुबेर भण्डार से अधिक बतलाया,


 


मूषक को असवार लिए ,


इस बरस फिर बप्पा अवतार लिए ,


 


 


प्रिया चारण उदयपुर


सुनील कुमार गुप्ता

प्रेम का जीवन में महत्व


प्रेम तो प्रेम है जीवन में,


भूले न कभी साथी-


प्रेम का जीवन मे महत्व।


नफरत उपजे जब जब मन में,


मिट जाता है साथी-


प्रेम का जीवन में महत्व।


अपनत्व बढ़ता जब-जब ,


साथी समझ में आता-


प्रेम का जीवन में महत्व।


जब-जब मिटी पतझड़ की चुभन,


मधुमास का अहसास समझाता-


प्रेम का जीवन में महत्व।


नफरत से टूटे संबंध जुडे़ जब प्रेम से,


समझ में आया-


प्रेम का जीवन में महत्व।


अपनो से दूर रह कर ही जाना,


क्या-होता साथी-


प्रेम का जीवन में महत्व।


प्रेम बिन कुछ नहीं जीवन में,


जान सको तो जानो साथी-


प्रेम का जीवन में महत्व।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


संजय जैन

पानी है अनमोल,


समझो इसका मोल।


जो अभी न समझोगे,


तो सिर्फ पानी नाम सुनोगे।।


 


आने वाले वर्षों में,


पानी बनेगा एक समस्या ।


देख रहे हो जो भी तुम,


अंश मात्रा है विनाश का।


जो दे रहा तुमको संकेत।


जागो जागो सब प्यारे,


करो बचत पानी की तुम।


बूंद बूंद पानी की बचत से, 


भर जाएगा सागर प्यारा।।


 


बिन पानी कैसे जीयेंगे,


पड़े पौधे और जीव जंतु।


और पानी बिना मानव,


क्या जीवित रह पाएगा।


बिन पानी के वो,भी मर जायेगा।


और भू मंडल में कोई,  


नजर नही आएगा।


इसलिए संजय कहता है,


नष्ट न करो प्रकृति के सनसाधनों को।।


 


बचा लो पानी वृक्षो और पहाड़ों को।


लगाओ और लगवाओ, 


वृक्षो को तुम अपनो से।


कर सके ऐसा कुछ हम, 


तभी मानव कहलाओगे।


पानी विहीन भूमि में,


पानी को तुम पहुँचोगे।


और पड़ी बंजर भूमि को,


फिर से हराभरा कर पाओगे।


और एक महान कार्य करके,


दुनियां को दिखाओगे।।


 


 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ0 हरिनाथ मिश्र

अविनाशी है आत्मा,यही सत्य तुम जान।


बुद्धिमान नर जान यह,धरे न धन का ध्यान।।


 


हृदय वासना में रमे,जब मन में अज्ञान।


कहे सीप को रजत यह,भ्रम बस मन नादान।।


 


उर्मि-स्रोत इस सिंधु इव, मैं उद्गम संसार।


चले कहाँ तुम तज मुझे,दीन-हीन-मतिमार।।


 


शुचि-सुंदर-चैतन्य इस,आत्मा की पहचान।


कर न सकोगे जान यह,इन्द्रिय-सुख-अभिमान।।


 


सभी प्राणियों में स्वयं,स्वयं रहे संसार।


यह रहस्य मुनि जान रख,यदि ममत्व,बेकार।।


 


             © डॉ0 हरिनाथ मिश्र


निशा अतुल्य

चीर सीने को धरा के 


श्रृंगार सारा नोंच कर 


खड़े करें पत्थर के जंगल


हाल सब बे-हाल हैं ।


देखने को छोटी गौरैया 


नैन भी तरसे मेरे 


बाग तो सब ख़त्म हैं अब


कोकिल की कहाँ कुहुक हैं।


शीतल पवन का रुख है बदला


और सर्द मौसम कहाँ 


मेघ भी झंकार कर 


नृतन अब करते नहीं ।


दामिनी की चमक अब 


मुझको डराती नहीं 


ढूंढती हूँ छाँव मन की


जो कहीं मिलती नहीं ।


चल उठ मुसाफिर 


सोच कुछ,कदम आगे बढ़ा


न चले जो साथ कोई तेरे 


तू अकेला ही चला ।


नही कोई काम मुश्किल


मन में जो तू ठान ले


वृक्ष चल लगाए हम 


किनारे किनारे सड़क के।


मिल जाये जहाँ सूखी कोई धरा


आम,नीम, बबुल बो कर 


कर दें हम उसको हरा ।


शुद्ध होगी वायु तब


फूलों का तू चमन खिला


तितलियों के होंगे साये


हो भंवरो की गुँजार जब।


मेघ बरसेंगे घनाघन 


शुद्ध जल की भरमार हो


होगी धरा फिर सुन्दर


प्रकृति का शृंगार हो ।


 


निशा"अतुल्य"


शिवानी मिश्रा

समय के रथ का पहिया,


जो सवार को अपनी अनुभूतियों से


तेज और धीमी गति से चलने का


आभास करता रहता है।


पर समय सदा हीअपनी सम


गति से ही चलता जाता है।


साल दर साल आगे बढ़ता जाता है,


फिर एक दिन छोड़ जाता है वो यादें,


जो मानस पटल पर चित्रित हो जाती है,


और हम इंसान चाह कर भी,


समय को पकड़ नही पाते हैं।


क्योंकि वह निर्विरोध अपनी गति से बढ़ता जाता है।


 


 


शिवानी मिश्रा


प्रयागराज


अमित कुमार दवे

मैल तन से धोते जाओ,


हृदय निर्मल करते जाओ,


तन मन हर्षित करते जाओ,


बारिश में नित भीगते जाओ।।


 


शीतल शुभ्र मन कर जाओ,


विचार अब सार्थक कर जाओ,


नैत्रों को अब तर करते जाओ,


बारिश में नित भीगते जाओ।।


 


भाव तेरा-मेरा बहाते जाओ,


 नम संबंधों में होते जाओ,


शांत सहज नित होते जाओ,


बारिश में नित भीगते जाओ।।


 


सादर सस्नेह...


©अमित कुमार दवे,खड़गदा


डॉ0 रामबली मिश्र

गुरु पद सेवा जो नित करता,


उसका जीवन सफल है।


 


जो गुरु की करता नित निन्दा।


उसका जीवन विफल है।


 


गुरु सेवक बनता पुरुषार्थी,


फल देता पुरुषार्थ है।


 


गुरु आज्ञा को सिर पर रखना।


हो निर्द्वन्द्व सदा चलो।


 


गुरु से नेह लगाता जो भी,


परम प्रसाद मिले उसे।


 


गुरुद्रोही है प्रेत समाना,


कभी सुखी रहता नहीं।


 


जो गुरु में श्रद्धा रखता है,


ज्ञानी बन जाता वही।


 


गुरु को ही गोविन्द समझना।


भव सागर को पार कर।


 


गुरु के पग में चारों धामा।


गुरु सेवा अमृत सहज।


 


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


सम्पूर्णानंद मिश्र 

कोख की आवाज


 


कोख में ‌पल रही‌ बेटी 


 मां से कह रही है 


   अपनी व्यथा


सुनो मेरे जीवन की कथा 


नहीं जन्म लेना चाहती 


तुम भी मुझे ‌पाकर नहीं


  खोना चाहती 


कुछ दिन खेलकर 


 पढ़ने लिखने


   लग जाऊंगी


 थोड़ी बड़ी हो‌ने पर


ससुराल चली जाऊंगी 


न हीं रखेगा कोई आपकी


तरह मेरा ख्याल 


दहेज की खातिर ‌


रोज़ ताने सुनने पड़ेंगे


खुद से ही मन की


बात भी कहने पड़ेंगे


तुम भी ‌दर्द के ‌आंसू


 चाहकर भी नहीं 


पोछ पाओगी


घुट घुटकर जीवन 


जीना पड़ेगा 


अपमान ‌का बिष


निरंतर पीना पड़ेगा


अगर दहेज की मांग की 


कसौटी पर खरी नहीं


ऊतर पाऊंगी


तो फिर जिंदा ही 


जला दी जाऊंगी 


अगर ‌कहीं इससे बच गयी


तो किसी वहशी दरिंदों ‌की 


  बलि चढ़ जाऊंगी 


मुझे इस धरा पर मत लाओ


एक उपकार कर दो मां


कोख को ही सूना कर दो


बाहर नर भेड़िए ‌घूम रहे हैं 


किसी मां की कोख सूंघ रहे हैं


मुझे इस धरा पर मत लाओ ‌मां !


 


सम्पूर्णानंद मिश्र 


वरिष्ठ प्रवक्ता हिंदी


प्रयागराज फूलपुर


रवि ररश्मि अनुभूति

  यादों के झरोखों से 


 


जीवन के इस पड़ाव पर अब 


जब सोचूँ मैं उस अतीत को 


सुखद क्षणों के उन्हीं पलों को   


हर पल की सदा उस जीत को ।


 


कदम कदम संग साथ चल कर 


हर कष्ट को सदा दल दल कर 


खुद की न की परवाह तुमने 


जीत लिया मन मेरा तुमने 


किया समर्पित सदा प्रीत को 


हर पल की सदा उस जीत को .....


 


प्यार की परछाइयाँ पलतीं


क्षण की भी तन्हाइयाँ खलतीं   


साथ नहीं छोड़ा तुमने तो 


मुख न कभी मोड़ा तुमने तो 


सदा निभायी प्रीत - रीत तो 


हर पल की सदा उस जीत को .....


 


झरोखे याद के झाँकूँ जो 


लेखा - जोखा भी आँकूँ तो 


आल्हाद मन में होता है 


मन नयन भी तो भिगोता है 


गाऊँ फिर उस मिलन गीत को 


हर पल की सदा उस जीत को ....


 


(C) रवि ररश्मि 'अनुभूति '


संपूर्णानंद मिश्र

बचाती है विध्वंस से 


सृजनात्मकता सबको


रचती है एक नई दुनिया 


 जहां फ़र्क की भट्ठी में 


झोंकने से बचाया जा सकता है


 अमीरी और ग़रीबी को 


  ऊपर उठ जाता है 


इसको आत्मसात कर आदमी


 चावल खाकर मुट्ठी भर


 दरिद्रता दूर कर देता है


     सुदामा का 


धर्म निभाता है मित्रता का


शक्ति होती है सृजनशीलता में 


सदैव बचाती है विध्वंस से हमें 


कभी ढकेलती नहीं है


   रौरव नरक में 


  जीवन तलाशता है


  निर्माण में ही


नहीं मन में भाव आता है 


घोंसले को नष्ट करने का 


मुक्त हो जाता है सारे बंधनों से 


जल जाती है दर्प की रस्सियां 


उस सृजनात्मकता की आंच में


   भूमिका निभाता है 


   एक कुशल शिल्पी की 


    गढ़ने लगता है 


 अनगढ़ पत्थरों को


  प्राण फूंक देता है उसमें


   एक नव जीवन का 


   कोमल स्पर्श से 


उद्धार हो जाता है अहिल्या का 


अर्थ मिल जाता है जीवन का


 अंतर समझने लगती है 


     वह देवी 


    राम और इंद्र में 


ढूंढने लगता है स्वयं को सृजनशील व्यक्ति 


एक नए उद्देश्य के लिए 


खपा देता है सारी ज़िन्दगी 


मुक्त हो जाता है सारे द्वेष से 


  ढह जाती है 


सारी दीवारें भेद भाव की


समाहित हो जाती है 


   वह बूंद 


उस महासागर में 


 जहां प्राप्ति होती है 


 असीम आनंद की !


 


संपूर्णानंद मिश्र


प्रयागराज फूलपुर


आशुकवि नीरज अवस्थी

श्री गणेश चतुर्थी 2020


राधेश्यामी छन्द


 


हे महादेव के पूत गजानन मातु पार्वती के लाला। 


चरणों में विघ्नविनाशक के नीरज के शब्दों की माला। 


सब कार्य पूर्ण होते उनके जो मन से तुम्हे मनाते हैं ।


हे धूम्रवर्ण हे सूप कर्ण हम भजन आपके गाते हैं ।।


हे वक्रतुंड हे एकदंत कितने ही नाम तुम्हारे हैं।


हे विकटमेव हे लंबोदर भक्तों को अतिशय प्यारे हैं ।


संकट नाशक गणपति पूजा को श्रद्धा से जो नर करते ।


उनके सारे कष्टों को आकर स्वयं विनायक है हरते ।


जीवन में खुशियों का डेरा खुल जाता किस्मत का ताला।


चरणों में विघ्न विनाशक के नीरज के शब्दों की माला ।


हे महादेव के पूत गजानन मातु पार्वती के लाला। 


चरणों में विघ्न विनाशक के नीरज के शब्दों की माला



आशुकवि नीरज अवस्थी


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

हे! गजमुख गणपति मंगलमूर्ति पधारो मेरे द्वार,


रिद्धि-सिद्धि के स्वामी तुम हरो कष्ट विकार।


 


हे! गिरिजानंदन दुख भंजन संतन हितकारी


हे! लंबोदर विनती करूं मैं बनो काज सिध्दिकारी।


 


हे! विघ्न विनाशक मात पिता के आज्ञाकारी,


जग के कष्ट हरो प्रभु व्याकुल आया शरण तुम्हारी।



  दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


    महराजगंज उत्तर प्रदेश।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे गणपति तेरे गुण गाना


विघ्न विनाशक करो कल्याना


प्रथम पूज्य तुम लम्बोदर


दोष निवारक स्वरूप सुजाना


 


शंकर सुत हे उमा लाडले


जन जन के भाग्य विधाता


हे गणपति हे जग नायक


तुमसे बड़ा न जगत में दाता


 


मात पिता के आज्ञाकारी


हे गजानन जगत भय हारी


जगत ताप मिटें प्रभु मेरे


सत्य आया है शरण तुम्हारी।


 


लम्बोदराय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

जय गणनायक जय लंबोदर,


                    जय-जय कृपा निधान। 


तुम हो रिद्धि- सिद्धि के दाता।    


                       करो जगत कल्याण।


दुष्टों का तुम नाश करो,


                     भक्तों का संताप हरो। 


सद्बुद्धि देने को देवा,


                   सबके मन में वास करो। 


विनती है कर जोरि प्रभु, 


                         सब को दो ये ज्ञान। 


जो हरता है पीर पराई,


                         वो सच्चा इंसान।


 


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

अरजी गणेश जी से


मनमे पक्का हे,विश्वास


गणेश भगवान हा,कर दिहि कोरोना के नाश


रिद्धि सिद्धि के स्वामी हो


गिरजा नंदन,सब दुःख भंजन


संतन मन के हितकारी हो


महू ह,तोर शरन में आय हो


हर लेबे सबके पीरा ल


का लइका,का सियान अउ मइया मन हा


धरथे तोर ध्यान


मुसक तोर सवारी


मोरो ते हा,विनती सुन ले


पइया परो, मय तोर


तोर बुद्धि के आगे,सबके बुद्धि हारे


कतेक करो, मय बखान


मनमे पक्का हे विश्वास


गणेश भगवान हा,कर दिहि कोरोना के नाश


रिद्धि सिद्धि के स्वामी हो


गिरजा नंदन,सब दुःख भंजन


संतन मन के हितकारी हो


घर घर में,तोर पूजा होथे


विघ्न विनाशक,संकट मोचक


एक दंत,गज शुंड के धारी


लम्बा उदर तुम्हारा हे


वेद शास्त्र पुराण से ऊपर


तीनो लोक में,तोर किरती हे


फूल चढ़ाके,शीश नवाके


दीप धूप जलाके,प्रभु जी


अरजी करत हव तोर


मनमे पक्का हे विश्वास


गणेश भगवान हा,कर दिहि कोरोना के नाश


रिद्धि सिद्धि के स्वामी हो


गिरजा नंदन,सब दुःख भंजन


संतन मन के, हितकारी हो


 


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

सफर जारी रखो जिन्दगी


की तस्वीर बदलने को।


 


अभी सफर में हूँ कि अभी


बहुत दूर जाना है।


जिन्दगी को दिये कई वादों


को निभाना है।।


पूरे करने हैं हर अधूरे से


अरमान दिल के।


ऊपर ऊंचे आसमां को छू


कर भी आना है।।


 


मशाल बन कर दुनिया के


लिये बेमिसाल बनना है।


रास्ता दिखाना औरों को कि


एक मिसाल गढ़ना है।।


देश की तकदीर तस्वीर बदलने


में हिस्सेदारी है निभानी।


लकीर से हट कर कुछ काम 


नया करना है।।


 


चीर कर अंधेरों को आशा की


नई किरण जगानी है।


हर भोर हमें कुछ नई सुनहरी


सी धुन सुनानी है।।


कर लिया काफी पर अभी भी


है काम बाकी बहुत।


मिलकर एक नई सी स्वर्णिम


दुनिया बनानी है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


निशा अतुल्य

हे


गणपति ,मंगलमूर्ति 


वक्रतुंड, महाकाय, गजानन


एकदंत, दयावन्त


पधारो।


 


चन्द्र


हंसे देख 


शाप आपसे पाया


हो कलंकी


घबराया।


 


किनी


विनती रोकर


चतुर्थी चंद्र वर्जित


कर,क्षमादान


दीना ।


 


गणपति


कर परिक्रमा


मात पिता की


प्रथम पूज्या


कहलाये ।


 


सँग


रिद्धि सिद्धि


शुभ लाभ तुम्हारे


संकट काटे


सारे ।


 


भावे


पान, सुपारी


मोदक,दूर्वा प्यारी


विद्या-बुद्धि


प्रदाता ।


 


भक्त 


तुम्हें नित


मन से ध्याते


समृद्धि, सुख


पाते।


 


कल्याण 


करें प्रभु


काटें भव फंदा


तारे जीवन 


से ।


 


निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्रणय प्रलाप निराले....


 


तुम प्राण शक्ति हो मेरी, तुमसे ही प्राणों का संचार।


हे प्राण प्रिया तुमसे ही, है यह जीवन और संसार।।


 


प्राणों में प्राण बसे मेरे, प्राणों से ही प्राणों की रक्षा।


मेरे प्राणों की प्राण ज्योति,प्राण प्राण की लें परीक्षा।।


 


प्राण प्रणेता प्यार प्रतिष्ठा, प्राणों से प्राणों का पण पाले।


पल पल प्रेम प्रज्ज्वलित, प्रियतमा प्रणय प्रलाप निराले।।


 


प्रीति वारि की पर्जन्य प्रिया,प्रेम अंकुर का तुम परिमान।


समझ प्यार को पारितोष, हे प्रभंजना तुम जीवन आधान।।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


शिवेन्द्र मिश्र शिव

विघ्न-विनाशक गणपती, गिरिजासुवन गणेश।


लंबोदर, हे सिद्धिप्रिय, वक्रतुण्ड विघ्नेश।।०१


 


योगाधिप, प्रथमेश, तुम, मंगलमूर्ति, कवीश।


सिद्धिविनायक, भुवनपति, शूपकर्ण अवनीश।।०२


 


एकदंत, एकाक्षरा, धूम्रवर्ण, ढुँढिराज।


गौरीनंदन, विघ्नहर, द्वैमातुर महाराज।।०३


 


मोदकप्रिय, शंकरसुवन, हे! गणाधि, शुभनाथ।


उमापुत्र, हेरम्ब, ढुँढि, गजमुख, दीनानाथ।।०४


 


एकदन्त गौरीतनय, मूषकराज गणेश।


सिद्धिविनायक मेटिए,तन-मन के सब क्लेश॥०५


 


प्रथम पूज्य श्री गणपती,वक्रतुण्ड बुद्धीश।


कष्ट हरो मंगल करो, जग में तुम अवनीश।।०६


 


विद्यावारिधि, गजबदन, अंबिकेय, सुरराय।।


कपिल, सुमुख, क्षेमंकरी, हो प्रभु सदा सहाय।।०७


 


शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'


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