अनमोल धरोहर जीवन ईश्वर की
क्यों नफरत की अनल जला रहे
करना इससे कल्याण जगत का
क्यों ढाह ईर्ष्या से गढ़ हिला रहे
यदि हर न सके संताप किसे के भी
तो दुःख देने का भी अधिकार नहीं
मानव मूल्यों की कब्र खोदकर के
लगता मानवता से तुम्हें प्यार नहीं
पथ छोड़ दिया दिग्भ्रमित होकर
हे नर अमानवीयता की राह चला
शान्ति खो दई भौतिक लिप्सा में
मूरख बन पग पग पर गया छला
करना ही है कुछ काम जगत में
मानव ऐसी कोई करनी कर जा
याद करे तुम्हें यहां सारी दुनियां
ऐसी सुरभि से यह जग भर जा।
सत्यप्रकाश पाण्डेय