मुक्ता गुप्ता

रणक्षेत्र में बिगुल बजा है


हो जाओ तैयार सैनिकों,


दिखला दो तुम आज विश्व को


अपनी माँ से प्यार सैनिकों।


कुछ साँप विषैले वसुधा पर


इन्हें कुचल-मसल देना है,


उठा ना पाएँ ये फन अपना


कर दो इतना वार सैनिकों।


बहुत पिलाया गोरस इनको


बस!रुक जाओ अब और नही,


दिखलाओ अब इनको भी तुम


अपनी भी हुंकार सैनिकों।


"हेमराज"के सिर को वीरों


नही भूल पाएँ हैं अब तक,


बंद पड़ी थी म्यानों में जो


तानो अब तलवार सैनिकों।


धू-धू लंका जली कनक की


बहुत बड़ा दंभी रावण था,


पाकिस्तानी राक्षस का भी


कर दो तुम संहार सैनिकों।


लहराएगा सदा तिरंगा


दुश्मन का सिर नीचा होगा,


दीप जलेगा घर-घर होगा


एक नया त्योहार सैनिकों।


गौरव हो तुम मातृभूमि के


तुमसे ही हम सबकी साँसे,


नत होती है "मुक्ता"तुम पर


एक नही सौ बार सैनिकों।


 


मुक्ता गुप्ता


बंशीधर शिवहरे

हम भारत माँ के बेटे है ,


मां पे शहीद हो जाएंगे ।


लेकिन मां के आंचल को ,


दुश्मन न छूने पायेंगे ।।


हम भारत माँ के बेटे है__ __ __ __ __ __


 


ये चीन तेरी चालाकी में ,


अब हम ना आने वाले है।


तू लाख बिछा दे जाल मगर ,


हम तुझको डसने वाले है ।।


इतरा ना इतना खुद पे तू ,


हम धूल ही तुझे चटाएंगे ।


लेकिन मां के आंचल को........ 


 


एक तो कोरोना भेज दिया ,


सारी दुनिया को हैरान किया ।


इक्कीसवीं सदी में जाना था ,


तूने और पीछे ढकेल दिया ।।


खुद को न विश्व गुरू समझो ,


हम पीछे करते जायेंगे ।


लेकिन माँ के आंचल को .......


 


ऐ पाक ना हमको आंख दिखा ,


हमको तुझसे क्या लेना है ।


है जितनी तेरी अबादी,


उतनी तो हमारी सेना है ।


चुटकी में मसल कर रख देंगे ,


  पी ओ के से तुझे हटायेंगे ।


लेकिन माँ के आंचल को 


दुश्मन न छूने पायेंगे ।।


हम भारत माँ के बेटे हैं,


मां पर शहीद हो जाएंगे।।


 


अवतार सिन्हा अँगार

मातृभूमि की रक्षा खातिर ,त्याग दिये अपने प्राण।


आओ मिलकर जलाये ,एक दीया शहीदों के नाम।।


 


पथ हो पहाड़ हो चट्टानों की दीवार हो।


जल हो मरुस्थल हो हिम् या दलदल हो।।


करते देश की रक्षा चाहे कोई भी हो अंजाम।


आओ मिलकर जलाये एक दिया शहीदों के नाम।।


 


पुलवामा पठानकोट कश्मीर और हो उरी।


लड़ते देश की ख़ातिर कोई भी हो मजबूरी।।


धर्म जिसका देशभक्ति भारत जिसका मुकाम।


आओ मिलकर जलाये एक दीया शहीदों के नाम।।


 


 


पत्नी रोती घर मे माँ का आँचल सुना।


बहन का खोया राखी पिता का बेटा नगीना।।


धरती रोती अम्बर रोता ,रोता हिंदुस्तान।


आओ मिलकर जलाये एक दीया शहीदों के नाम।।


 


भारत माँ के सच्चे सपूत देश के तुम जाबाज।


नाज पूरे भारत को तेरी जांबाजी पे आज।।


तेरी इस कुर्बानी को सदा वतन करेगा सलाम।


आओ मिलकर जलाये एक दीया शहीदों के नाम।।


 


नाम -अवतार सिन्हा अँगार


डॉ.अनिता सिंह 

वीरों की कुर्बानी को इक नया आयाम दे ।


चित्रकार चित्र में तू वीरों को सलाम दे ।


केसरिया हो रंग जीवन ज्योति सा निखार दे।


हरा से हरियाली है,श्वेत शांति का विचार दे।


चित्रकार चित्र में तू वीरों को सलाम दे..


चित्र में हो दयानंद वेदों का प्रचार हो ।


मीटे अधर्म जग में धर्म का प्रसार हो ।


युवावर्ग को विवेकानंद और बापू का विचार दे।


चित्रकार चित्र में तू वीरों को सलाम दे.....


लक्ष्मीबाई काअंग्रेजो से युद्ध हुआ था भारी ।


तात्या टोपे वीर और मंगल जैसे क्रांतिकारी। तिलक जी आजादी हेतु करते उद्घोष भारी।


शिवाजी की माता, जीजाबाई जैसे रचनाकार दे। चित्रकार चित्र में तू वीरों को सलाम दे ....


राम प्रसाद बिस्मिल फाँसी पर भी गाना गाते । सुभाषचंद्र बोस राष्ट्रहित सेना नयी बनाते । 


हो जिसमें वीरों सा जज्बा सेना वही सजा दे । चित्रकार चित्र में तू वीरों को सलाम .....


राजगुरु,सुखदेव ,भगत सिंह हंस कर फाँसी खाते । 


लौह पुरुष सरदार पटेल भारत दिव्य बनाते ।


लाल बहादुर शास्त्री जैसे आजाद के विचार दे। चित्रकार चित्र में तू वीरों को सलाम दे ....


माँ के मस्तक पर इन वीरों ने तिलक लगाया ।


तूफानों से लड़कर है तिरंगा फहराया ।


आजादी का मोल जीवन देकर है चुकाया ।


इन वीरों के सम्मान में चित्र को नवाकार दे 


चित्रकार चित्र में तू वीरों को सलाम दे । 


 


डॉ.अनिता सिंह 


सीपत रोड, राजीव विहार 


बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


पिन-495006


मोबाइल नंबर-9907901875


चन्दन सिंह चाँद

सारी दुनिया जिनके चरणों में


आज पड़ी है नतमस्तक 


जागो हे भागवतम भारत !


हे ब्रह्मकमल की दिव्य महक !


 


सकल जगत कर रहा आवाहन


जड़ - चेतन दे रहे निमंत्रण 


महाकाल का तुझे निवेदन 


जागो जननी , जागो माता 


जाग उठो हे विश्वविधाता !


 


हे सकल जगत की अग्निशिखा !


हे दिव्यज्योति भारत माता !


प्रगटो तव मूल रूप में अब 


हे परम ज्ञान की विज्ञाता !


 


जागो जागो हे परमप्रभु !


जागो जागो हे विश्वगुरु !


हे जग की जननी अब जागो 


हे भारत धरिणी अब जागो 


 


नन्हा शिशु आर्त पुकार रहा 


चरणों की ओर निहार रहा 


आओ माँ अब कर दो मंथन 


यह जगत बने तव मधुर सदन


 


अंग - अंग से उठी पुकार 


माँ अब तेरे शिशु तैयार 


आज गढ़ तू नवल जगत 


जग जाए भागवतम भारत 


 


माँ आ जाओ अब जीवन में


उतरो माँ तुम अब कण - कण में 


ले नई चेतना तुम आओ 


हृदयों में आज समा जाओ 


 


उठ चुका उदधि में है तूफान 


चरणों में नत हैं कोटि प्राण 


माँ आज कर तू यह भू महान 


माँ ला दे अब तू नव विहान 


 


माँ बस यही है प्रार्थना 


माँ सिद्ध कर तू साधना 


भारतभूमि अब भव्य हो 


जगतमूर्ति यह दिव्य हो ।।


 


- ©चन्दन सिंह "चाँद"


जोधपुर , राजस्थान


रत्ना वर्मा

आज देश भक्ति सिमट कर रह गई है ।


  हर दिन हमें देश के लिए सोचना चाहिए। इसके लिए 


एक निर्धारित दिन ही क्यू! आज स्वतंत्रता के लिए नहीं 


आतंकवाद और भ्रष्टाचार के लिए लड़ना है। यह लड़ाई 


लड़ना तो बहुत जादा गंभीर है, क्यों कि ये लड़ाई अपनों 


से लड़नी है।


पुराने जमाने में देश की ऐसी स्थिति न थी। हम गुलाम 


जरूर थें पर चोर ,उचक्कें ,मवाली नहीं थें। 


आपसी प्यार बहुत था। लोग एक दूसरे की मदद को


हमेशा तैयार रहते थें। 


लोगों की सोच अब के माहौल से बिलकुल भिन्न थीं। 


हर एक के दिल में देश प्रेम का जज़्बा था- लोग एक 


दूसरे की मदद को तैयार रहते थें। 


 आज देश में जिनको न्याय मिलनी चाहिए वही दर- दर भटक रहा है। सत्य बोलने पर लोग उसे पागल करार दे कर हवालात में बंद कर देते हैं। 


 ज़रा कुछ हुआ कि नहीं सरकारी सम्पत्ति को लोग 


नुकसान पहुंचाने लगते हैं। 


     कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिन्हें आपसी ताल मेल 


से हल किया जा सकता है ।


लेकिन इन सब के लिए राजनीति से हटकर समझदारी 


की जरूरत होगी।  


   यही समझदारी वास्तविक स्वतंत्रता दे सकती है ।


   अभी आज ही कश्मीर में आतंकी हमले में हमारे 


दो जवान मारे गए । बहुत दुःख होता है जब हमारे 


जंबाजों पर ऐसे हमले होते है ।


    देश बहुत है दुनिया में, 


पर देश भारत जैसा कोई नहीं!


हर मज़हब के लोग यहाँ-


देते हैं एक दूसरे को सम्मान,


बोलो - मेरा भारत है महान !


 


कोरा बेदाग भोला भाला ,


निश्छल मन सालार ।


उत्तर में गिरीराज हिमालय,


दक्षिण में सागर विशाल ।


बोलो मेरा भारत है महान।।


 


कविता ,काव्य, शेर ,गज़ल-


भजन, गीत अरू नाद से ...


होवत ईहां विहान ....


 भावना कल्पना आलमे विशाल,


बोलो मेरा भारत है महान। ।


      ऐसा सुन्दर देश है मेरा , तो कल्पना भी 


अच्छी होनी चाहिए .......


हमारे पिता- स्व श्री बद्री नारायण मेहता (स्वतंत्रता सेनानी) से ही हमें देश भक्ति विरासत में मिली है ।


आज करीब दस साल से ....


 हम नमन भारत की एक पोस्ट नियमित अपने 


फेसबुक वाॅल पर लोगों को जागरूक करने के लिए 


पोस्ट करतें हैं। हमें इससे संतुष्टि मिलती है। 


अंत में अपने देश के लिए यही कहना चाहूंगी ...


 


   ये धरती हिदुस्तान की , विकास होना चाहिए। 


    आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए।।


    मज़हब कोई भी हो, सम्मान होना चाहिए। 


    संस्कृति संस्कार का, विकास होना चाहिए।।


   द्वेष घृणा विद्वेष का, नास होना चाहिए। 


    मानव को मानवता का, ज्ञान होना चाहिए।।


  ये धरती हिदुस्तान की, विकास होना चाहिए...


  देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाईयाँ  


   


                      


                                


                            रत्ना वर्मा 


                                       सरायढेला 


                                  धनबाद- झारखंड 


                     संपर्क सूत्र- 9031695448


वीणा चौबे

क्यूँ जात पात में बँट गया ये प्यारा हिन्दुस्तान ।


जहाँ आजादी के साथ लिखा था ये संविधान ।


जहाँ खुली साँस को आह मे दबा दी जाती है,


जहाँ बेटियों को गर्भ ,और बाहर जिंदा जला दी जाती है,


यहां आरक्षण के नाम पर काबिल को नाकाम बना देते है,


जहाँ राजनीति में गुण्डागर्दी को आम बना देते हैं,


जहां मेहनतकश लोगों को रोटी नसीब नही है


जहाँ बेमानी ने अपनी झोली खूब भरी है,


भारत माता की खातिर जो खुद को कुरबान कर गये,


आजादी, अमन ,शान्ति ,सुख,चेन खुद का न्योछावर कर गये,


काट कलेजा महंगाई ने फिर जोर शोर मचाया


आत्मनिर्भर बनने फिर देश ने जोर लगाया


अंग्रेजों से आजाद हुए तो उनके गुण अपना रहे,


आज खुद ही अपने देश को गुलाम बना रहे


यही था आजाद देश का सपना जो अपनो का ही खून पियेगा 


अपने ही देश की बेटी की ईज्जत को लूटकर जिंदा जला देगा,


क्या एसी आजादी के लिये वीरों ने प्राण गंवाये


आज अगर वो होते तो सोचते की क्युं हमने ये कदम उठाये 


आजादी अगर एसी है तो हमे फिर से ये जन्म मिले,


कम से कम हम अपने देश के ही कर सके दूर ये शिकवे गिले ,


सोचा आजादी के मायने जानू,


क्या अपनी संस्कृति को नष्ट करना ये आजादी है,


तो सच मे क्या ये ही आजादी हमे प्यारी है। 


 


नाम- वीणा चौबे


सौम्या अग्रवाल 

देश की मिट्टी तुझे मेरा सलाम


तेरे आंचल में न जाने कितने वीर छिपे महान


अपने परिवार का त्याग कर हमें सुरक्षित करना


अपने अपनों की बजाए वतन पर मरना


आज़ाद यूं ही नहीं आज हम कहलाते 


आज भी न जाने कितने मात- पिता अपने लाडलों की तस्वीरें सहलाते 


हर दिन की खुद की खुद से लड़ाई 


 हर छुट्टी के बाद घर वालों से लंबी जुदाई


कब मां के हाथ के बने लड्डू का आखरी डिब्बा घर से आए


कब बहन की राखी और प्यार भरा खत आखरी बार पढ़ पाए


 वो तो बस कफन बांध चलता ही जाए


हर वीर को आज मेरा नमन है


उन्हीं की बदौलत मेरे देश में अमन है


 


 नाम - सौम्या अग्रवाल 


कक्षा- ग्यारहवीं की छात्रा  


मकान नंबर 5415 


पंजाबी मोहल्ला,


अंबाला छावनी, हरियाणा


पिन कोड -133001


मोबाइल नंबर- 9053708304


ई-मेल पता- saumyaaggarwal30@gmail.com


डॉ0विद्या सागर मिश्र सागर

एक दिन माँ से कहा जा रहा हूँ सीमा पर,


कर देश सेवा राष्ट्र्धर्म को निभाउंगा।


लडूंगा मै डट कर और सीना तान कर,


शत्रुओं को कभी नही पीठ मै दिखाऊँगा।


सीमा पर मर जाऊँ मिट जाऊँ गा मगर,


माता कभी नहीं तेरे दूध को लजाऊँगा।


शत्रुओं से लड़कर उनको खदेडकर,


नहीं तो तिरंगे मे लिपट घर आऊँगा ।।


 


डॉ0विद्या सागर मिश्र "सागर"


लखनऊ उ0प्र0


मो नं 9452018190


शिवानी शुक्ला श्रद्धा

मातृभूमि के लिए मिटे जो


कर लो उनकी याद


तन मन किया न्योछावर


ताकि रहे वतन आबाद ||


 


भेदभाव था नहीं किसी में


हिन्दू मुस्लिम भाई थे


तिलक किये इस वीर भूमि से


सिक्ख सौगंध उठाये थे 


सावरकर जैसे वीर कयी 


और मर मिटे अशफ़ाक़ ||


 


स्वतंत्रता का पर्व ये गाथा है


उनके बलिदानों की


राष्ट्र प्रेम हित मिटे यही पर


अनगिन वीर जवानों की


राजगुरु सुुखदेव भगतसिंह


और विस्मिल आजाद ||


 


स्वरचित मौलिक


शिवानी शुक्ला श्रद्धा


जौनपुर उत्तर प्रदेश


दिनेश चंद्र प्रसाद दीनेश

"मैं कश्मीर हूँ


 


धरती का स्वर्ग इंडिया का जन्नत हिंदुस्तान का तकदीर हूँ 


मैं कश्मीर हूँ,मैं कश्मीर हूं 


था धाराओं के जंजीरों में जकड़ा हुआ स्वार्थी तत्वों के द्वारा लूटा हुआ 


अब मैं आजाद धीर भीर गंभीर हूं 


मैं कश्मीर हूँ,मैं कश्मीर हूँ


उत्तर- दक्षिण,पूरब-पश्चिमभजन


सब हैं मेरे भाई बहन


मैं भारत माँ का लाडला बेटा हीर हूँ


मैं कश्मीर हूं,मैं कश्मीर हूँ


सेव और अखरोट की


हरी-भरी हैं वादीयाँ


बर्फ से ढकी सफेद चोटियाँ


यौवन करता है यहाँ अठखेलियाँ


रंग बिरंगे फूलों की है क्यारियां


केसर का अनमोल


सुगंध युक्त समीर हूँ 


मैं कश्मीर हूँ ,मैं कश्मीर हूँ


डल झील का शिकारा


गुलमर्ग का नजारा


आसमा से बातें करता


देवदार और चीनारा


विस्थापितों का दुख दर्द और पीर हूँ


मैं कश्मीर हूं ,मैं कश्मीर हूँ


किसी शायर की गजल हूं 


किसी झील का कंवल हूं


पंच नदियों का मैं निर्मल नीर हूं 


मैं कश्मीर हूं,मैं कश्मीर हूँ


हिफाजत में मेरे जो शहीद हुए


उन वीर जवान शहीदों के


गले का मुक्ता हार हूँ


मैं कश्मीर हूँ, मैं कश्मीर हूँ


देखे जो मुझे प्यार से


उसके लिए मैं फुल हूं


तिरछी नजर वालों के लिए


मैं तेज शमशीर हूं 


मैं कश्मीर हूं, दिनेश मैं कश्मीर हूं 


मैं कश्मीर हूँ, मैं कश्मीर हूँ


 


दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता


DC-119/4,स्ट्रीट न.310,न्यूटाउन,


कलकत्ता-700156


मोबाईल. 9434758093


शिवनाथ सिंह

आजादी के लिए ही त्याग दिये थे, देश के वीरों ने अपने घरबार,


संकल्प बड़े पक्के थे उनके, मर मिटने को हरदम रहते थे तैयार,


भारत आजाद कराकर दम लेंगे, संकल्प दोहराया करते थे वे,


वे विलक्षण थे, स्वाभिमानी थे, उनके होते थे क्रांतिकारी विचार ।


 


तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा, बोस ने नारा लगाया था,


वीर सपूतों की 'हिन्द फौज' ने, आजादी का बिगुल बजाया था,


सुभाष चंद्र बोस प्रतिभाशाली थे, मतभेद था उनका अहिंसा से,


काल कवलित हो वे कहाँ चले गए, कोई भी समझ न पाया था ।


 


आज भी हमारे देश की सेना, अपने जौहर दिखलाया करती है,


वीरता का परिचय देती, अपने देश का लोहा मनवाया करती है,


नित नये नये परचम लहरा कर, गौरव की अनुभूति करा देती,


देश के दुशमनों को चुन चुन कर, सही ठिकाने लगाया करती है ।


 


इन वीर सपूतों की शौर्य गाथाएँ, हम भुला नहीं सकते हैं कभी,


भारत के शहीदों की निशानियाँ, हम मिटा नहीं सकते हैं कभी,


इस धरती माँ के वो बहादुर बेटे, जो दुर्गम सरहदों पर डटे हुए,


उन वीर सपूतों के साहस को, हम बिसरा नहीं सकते हैं कभी ।


 


शिवनाथ सिंह, लखनऊ


डाॅ0 उषा पाण्डेय 

फौजी भाई सीमा पर, 


करते दुश्मन को बेहाल।


तभी तो रहते हम खुशहाल ।


तभी तो रहते हम खुशहाल।


 


अपनी जान जोखिम में डालकर,


हम सबकी जान बचाते हैं।


हौसले अपने बुलंद रख कर,


आगे ही बढ़ते जाते हैं।


हम सब के लिए ये हैं मिसाल


तभी तो रहते हम खुशहाल।


 


चाहे जितनी गर्मी, ठण्डी हो,


ये परवाह नहीं करते।


सीना ताने खड़े रहते हैं,


तनिक भी नहीं डरते।


बनते ये हम सबकी ढाल, 


तभी तो रहते हम खुशहाल।


 


असहनीय दर्द ये सहते हैं,


पर, 'उफ्' कभी नहीं करते।


सोने के लिए बिस्तर हो, न हो,


परवाह कभी नहीं करते।


देश को रखते हैं संभाल,


तभी तो रहते हम खुशहाल।


 


हमारी तरह ये भी इंसान है,


पर हम सबसे महान हैं।


हम देशवासियों के लिए, 


ये धरती पर भगवान हैं।


दिल होता इनका विशाल,


तभी तो रहते हम खुशहाल ।


 


आइए, हम सब मिल कर


इनके लिए प्रार्थना करें।


प्रभु इन पर कृपा करें,


प्रभु इनकी रक्षा करें।


करते रहते ये कमाल


तभी तो रहते हम खुशहाल ।


 


फौजी भाई, सीमा पर,


करते दुश्मन को बेहाल ।


तभी तो रहते हम खुशहाल ।


तभी तो रहते हम खुशहाल।


 


डाॅ0 उषा पाण्डेय 


स्वरचित


संतोष कुमार वर्मा कविराज

जज्बा हो कुछ कर दिखाने की हर मुश्किल से पार पाने की।


 


 चट्टानों से भी फौलादी हो सीना जुनून हो दुश्मनों से टकराने की।


 


 दुश्मन कोई और नहीं है सच में जरूरत है अपने भीतर बैठे शैतान को मिटाने की ।


 


कम नहीं आंखों किसी को कभी गूढ़ ये भी हो, हर किसी को सम्मान देने की ।


 


सोच हो अपनी यूं विकसित विश्व भी आतुर हो 


भारत से कुछ सिखाने की ।


 


जज्बा हो कुछ कर दिखाने की हर मुश्किल से पार पाने की।


 


संतोष कुमार वर्मा ' कविराज '


शिवानंद चौबे

मातृभूमि के स्वाभिमान को


हँसकर फांसी स्वीकार किया


धन्य जीवन उन विरो का 


साहस, त्याग अपार किया ।


 


भुला सकते नहीं है हम


 उन वीरों की शहादत को,


हुए बलिदान बलि वेदी पे 


जो उनकी इबादत को।


 


वतन के वास्ते जीना


 वतन के वास्ते मरना,


वतन के वास्ते जो हैं 


न्यौछावर उस मोहब्बत को।


 


साहस शौर्य और वीरता


 की जो गौरवगाथा थे,


त्याग समर्पण देश प्रेम की


 जो अद्भुत परिभाषा थे।


 


राष्ट्र ऋणी हैं ऋणी रहेगा 


बलिदान की अमर कहानी को,


शिवम् करे शत शत हैं नमन


अमर वीर बलिदानी को।।


 


शिवानंद चौबे


विजय मेहंदी

 


          जम्मू है सिरमौर देश का,


          दाईं भूज गुजरात है।


          बाईं भुजा पुर्वोत्तर भारत,


          खाड़ी का सम्राट है।


 


          दिल्ली है जिगर देश की,


          दिल यूपी महाविराट है।


          आंध्रा बाईं कोंख देश की,


          दाईं महाराष्ट्र है।


 


        सावधान की सथिति में खड़े,


        दो पैर केरल औ- मद्रास हैंं।


        कन्याकुमारी माँ के चरणों में,


        पुष्प-गुच्छ आच्छाद है।


 


        दक्षिण में चरणों को धोता,


        सागर का सम्राट है।


        शत्रु देश हैं चोटी कटवा,


        उनकी क्या औकात है।


 


"विजय मेहंदी" (सहायक अध्यापक)


कम्पोजिट इंग्लिश मीडियम स्कूल शुदनीपुर,मड़ियाहूँ,जौनपुर(यू पी)


जयपाल धामेजा

आयी अलसुबह गलवान घाटी से, इक बुरी खबर ऐसी 


छा गयी हो संपूर्ण आसमां पे, घनघोर कालिमा हो जैसी 


अचानक आ गया हो मानो, इक बवंडर सा 


भविष्य हो गया वीराना, हो मानो कोई मरुस्थल सा 


 


दिख रही चहुँओर पगडंडीयां, वृक्षविहीन सी 


आयी हो दिल में मानो, आंधियों की सुनामी सी 


सावन की काली घटाएं, अब तो लग रही है ऐसी 


डंस रही हैं शरीर को वे, मानो हों जहरीली नागिन सी 


 


चुभ रहा है अक्स, अब तो आईना भी देखकर 


धंस रहा दिल की गहराईयों में, नागफनी के छूल बनकर 


बारिश की बूंदें तन पे, लग रही हैं ऐसे


आसमां से बरस रहा हो, गरम लावा हो जैसे 


 


भारत मां के लाल थे वो, रखते थे शेर का जिगर सभी 


हुंकार भरने से ही उनके, कांप जाती थी दुश्मनों की रूहें भी 


सरहदों पे तैनात थे वो, झंडा थामा था रणबाकुरों ने 


धोखे से मार गिराया उनको, पडौसी देश के कायरों ने 


 


अगले जनम में भी मैं तुमको ही पाऊं, जीवन तुम्हारे नाम हो 


किया गौरवान्वित तुमने मुझको, देकर बलिदान भारत मां को 


देकर सर्वोच्च बलिदान अपना, तन हो गया था खण्ड खण्ड 


धरती मां का कर्ज चुका पति मेरा, कर गया मां का आंचल अखण्ड 


कर गया मां का आंचल अखण्ड ।


 


जयपाल धामेजा


हरदा म. प्र.


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

जीवन  के संघर्षों में तुम 


अपने लिये भी जिया करो


अपनी ही अनुभूति से तुम


सुखद संकल्प लिया करो।


 


क्या है जीवन की परिभाषा


खुद से खुद को दिया करो


गिरकर उठना उठकर चलना


नव ऊर्जा प्राणों में भर चला करो।


 


आत्मसात कर स्वयं कर तूं


क्या खोया है क्या पाया


लो समेट हर क्षण को तुम


पुण्य कर्म संचित कर ना हो जाया।


 


दूजे प्राणी का दु:ख अपना 


मरहम सा तुम लगा करो


तन की सुन्दरता से मन सुन्दर


मन कर्म - धर्म से लगा करो।


 


जीवन के दु:ख विस्मृत कर


मन मानव बनकर रम्हा करो


कोई भी दुविधा हो खड़ी कहीं


संन्यास भाव से चला करो।


 


जीवन पथ के शूलों से तुम


हर पल व्याकुल हो जाते हो


पथ के शूलों को पार कर


सुगम पदचिन्ह दिया करो।



-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


     महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


डॉ निर्मला शर्मा

आशा का परचम लहरा


 


ना हो निराश बढा आत्मबल आगे बढ़ता जा 


जीवन के हर मोड़ पर आशा का परचम लहरा 


विकट है जीवन रूपी मोड उनमें अटक ना जा 


बाधा को जो पार करे ऐसा केवट बन जा


 मृग मरीचिका जीवन में रही हमें भटका


 नैनो के मधु स्वप्न हमें देते नई दिशा


 विपत्ति चाहे कैसी पड़े सरल उसे तू बना


 होना है वह निश्चित है मन में ना शोक मना


 सुख-दुख की जो स्थिति बने एकरस जीता जाय 


मरम जो जीवन का मिले भरम सभी मिट जाय


 कभी जीत के निकट पहुंच जब वापस लौट के आए


 मन को ऋषि की भांति साध आशा का परचम लहरा ।


 


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


शिवांगी मिश्रा

चलो चलें नदिया के पार.....


चलो चलें नदिया के पार ।।


जहाँ पे बहती प्रेम की धार.....


जहाँ पे बहती प्रेम की धार ।


जहाँ मिले जीवन आधार ।।


 


चलो चलो.....हूँ....चलो चलो.....


 


चलो चलें नदिया के पार......


चलो चलें नदिया के पार ।


चलो चलें नदिया के पार.......


चलो चलें नदिया के पार ।।


 


प्रेम की तलाश है तो चलते रहो तुम.....


चलते रहो तुम ।


जीवन के पथ पर बढ़ते रहो तुम..


बढ़ते रहो तुम ।।


प्रेम की तलाश है तो चलते रहो तुम ।


जीवन के पथ पर बढ़ते रहो तुम ।।


ठोकर मिलेंगी गिरना संभालना ।


पर ना कभी तुम रुकना ठिठुरना ।।


पा जाओगे उस पथ को तुम....


पा जाओगे उस पथ को तुम ।


मिलेगा तुमको जहाँ पे प्यार ।। (१)


 


चलो चलें नदिया के पार......


चलो चलें नदिया के पार ।


चलो चलें नदिया के पार......


चलो चलें नदिया के पार ।।


चलो चलो...हूँ.... चलो चलो.....


 


जीवन कठिन है जीते रहो तुम....


जीते रहो तुम ।


विष का है प्याला पीते रहो तुम....


पीते रहो तुम ।।


जीवन कठिन है जीते रहो तुम ।


विष का है प्याला पीते रहो तुम ।।


बढ़ते रहो तुम हार ना मानो ।


आयी घड़ी जब तुम खुद को जानो ।।


जीतोगे परीक्षा जीवन की तुम ही.....


जीतोगे परीक्षा जीवन की तुम ही ।


पा जाओगे जीवन का सार ।।


 


 


चलो चलें नदिया के पार......


चलो चलें नदिया के पार ।


चलो चलें नदिया के पार......


चलो चलें नदिया के पार ।।


चलो चलो...हूँ.... चलो चलो.....


 


अपनों का रिश्ता मतलब की सानी....


मतलब की सानी ।


जीवन में विपदा हैं आनी जानी...


हैं आनी जानी ।।


अपनों का रिश्ता मतलब की सानी ।


जीवन में विपदा हैं आनी जानी ।।


दुनिया में मतलब मतलब से रिश्ता ।


अब ना है मिलता कोई फरिश्ता ।।


कर जाओ तुम जीते जी ऐसा....


कर जाओ तुम जीते जी ऐसा ।


याद करे ये तुमको संसार ।।


 


चलो चलें नदिया के पार......


चलो चलें नदिया के पार ।


चलो चलें नदिया के पार......


चलो चलें नदिया के पार ।।


चलो चलो...हूँ.... चलो चलो.....


 


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


अतुल पाठक धैर्य

अल्फ़ाज़ों के अफ़सानों में लिखती थी बेबाक सच्चाई वो,


पढ़ने वाले पाठक को रचना में देती दिखाई वो।


 


शब्दों के मोती संजो-संजो कर अंतर्मन को हर लेती वो,


भाव बसाने को अक्षर में कलम को थाम लेती वो।


 


खामोशियों को बड़े गौर से अमृता अक़्सर सुनती रहती थी,


रातों के समय वो प्रीतम ही सुकून से लिखती रहती थी।


 


लिखने वाले तो बस कविता लिखते और ज़िन्दगी जीते हैं,


मगर ज़िन्दगी को लिखती प्रीतम थी और कविता को ही जीती थी।


 


अफ़साने का हर अल्फ़ाज़ साहिर की नज़्र में लिखती थी,


वो प्रीतम थी जो प्रेम पर कविता लिख-लिख कर ही जीती थी।


 


@अतुल पाठक "धैर्य"


जनपद हाथरस(उ.प्र.)


मोब-7253099710


रवि रश्मि अनुभूति

राधा कान्हा ही जपे , कहाँ गया चितचोर ।


मोहन को ढूँढ़ूँ कहाँ , हो जायेगी भोर ।।


कुंज गली में घूमती , आन मिलो अब श्याम , 


तेरे हाथों है अभी , मेरी जीवन डोर ।।


 


ब्रज के हो तुम लाड़ले , लेते सबको मोह ।


घूमकर सब गली गली , लेते ग्वाले टोह ।।


कृष्ण प्यारे सभी तुझे , चाहें मन से आज , 


लीला करते देखते , सबको लेते मोह ।।


 


देखो घटा अभी घिरी , घिरी हुई घनघोर ।


सावन में अब रास से , बहला दो चितचोर ।।


शीतल छा बहार अभी , लो छाये आनंद , 


चित चुरा के छुपे कहाँ , पूछे मन का मोर ।।


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


सुषमा दीक्षित शुक्ला

दुनिया के रखवाले तुझ पर,


अर्पण मेरा तन मन धन ।


 


तू दाता है परमपिता है ,


तू ही जीवन और मरन ।


 


नजरें कभी न फेरो हे! प्रभु ,


इतनी सी फरियाद मेरी ।


 


भूल चूक सब क्षमा करो प्रभु,


दुनिया हो आबाद तेरी ।


 


सारी दुनिया रूठ भी जाये,


तुम ना रूठो परमपिता ।


 


सारी दुनिया अगर त्याग दे ,


नही त्यागते मात पिता ।


 


तेरा धन है तेरा मन है,


तेरा ही ये तन मेरा ।


 


तेरा सबकुछ तुम्हें समर्पित ,


क्या लागे इसमें मेरा ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


संजय जैन

प्रेम दिल से होता है


 


मोहब्बत सूरत से नहीं होती है।


मोहब्बत तो 


दिल से होती है।


सूरत खुद प्यारी 


लगने लगती है।


कद्र जिन की 


दिल में होती है।।


 


मुझे आदत नहीं 


कही रुकने की।


लेकिन जब से 


तुम मुझे मिले हो।


दिल कही और 


ठहरता नहीं है।


दिल धड़कता है 


बस आपके लिए।।


 


कितनो ने मुझसे 


नज़ारे मिलाई।


पर किसी से 


नज़रे मिली नहीं।


दिल की गहराइयों 


में तुम थी।


इसलिए दिल ने 


औरो को चाहा नहीं।।


 


बड़ा ही साफ़ 


पाक रिश्ता है।


जनाब, 


रिश्ता ये मोहब्बत का।


दरवाजे खुद खोल


जाते है जन्नत के।


जिन को सच्ची 


मोहब्बत होती है।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुंबई)


डॉ0 हरिनाथ मिश्र

दीवारों के कान हैं,कहता है संसार।


फिर भी खड़ी दिवार कर,करता अत्याचार।।


 


कभी-कभी संबंध को,मधुर करे दीवार।


टूटे दिल को जोड़ती,जिसमें रही दरार।।


 


जब विवाद छिड़ता कहीं,जब होती तक़रार।


झट-पट उठ दीवार ही,लाए शीघ्र बहार।।


 


प्यार-घृणा दोनों लिए,सदा खड़ी दीवार।


कभी सटा, कभी दूर कर,है अद्भुत व्यवहार।।


 


कितने इसमें चुन गए,इसे नहीं परवाह।


प्रेमी सच्चे बाँवरे, है इतिहास गवाह।।


 


गारे-माटी से बनी,अजब-गजब दीवार।


घर बनकर देती शरण,यह जीवन-आधार।।


 


तेरे-मेरे घर-भवन,जो भी हैं निर्माण।


कर संभव दीवार यह,बनी सभी का प्राण।।


 


धन्य-धन्य दीवार तुम,तुम्हीं दरार-क़रार।


कर क़रार बनती तुम्हीं,जब होती है रार।।


            ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


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