अतुल पाठक धैर्य

मना रहे स्वतंत्रता दिवस 


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मना रहे स्वतंत्रता दिवस हम खुश हो झंडा फहराते हैं,


याद शहीदों की कर-कर के गीत ख़ुशी के गाते हैं।


 


याद करो चरखे वाले को कैसी अजब कताई की,


तोप-तमंचे नहीं चलाए सत्याग्रही लड़ाई की।


 


याद भगत सिंह को भी करलो इंकलाब नहीं भूला था, 


स्वतंत्रता के लिए वीर फाँसी पर झूला-झूला था।


 


दुर्गावती रूप दुर्गे का रख भारत में आई थी,


युद्ध क्षेत्र में रण चण्डी वन मारा-मार मचाई थी।


 


महाराणा ने देश की खातिर अपनी जान गँवाई थी,


जंगल-जंगल भटक-भटक कर घास की रोटी खाई थी।


 


याद शिवाजी को भी करलो चतुराई का चोला था,


मुगलों की ताकत को जिसने तलवारों पे तौला था।


 


याद करो लक्ष्मीबाई को मरने तक ना भूली थी,


अंग्रेजों को झाँसी देना हरगिज़ नहीं कबूली थी।


 


आओ मिलकर याद करें अब उस सेनापति बोस को,


दुनियाभर की कोई ताकत रोक सकी न जोश को।


 


मना रहे स्वतंत्रता दिवस हम खुश हो झंडा फहराते हैं,


याद शहीदों की कर-कर के गीत ख़ुशी के गाते हैं।


 


@अतुल पाठक धैर्य


जनपद हाथरस(उ.प्र.)


मोब-7253099710


विभा रानी श्रीवास्तव

स्व स्वतंत्रता : एक दृष्टिकोण


 


शाखें कट भी गईं तो ठूंठ से कोपल निकलते देखा है,


हाँ! अपने देश में दमन-दलदल से भी संभलते देखा है।


 


समकोटीय यशस्वी मंदिर मस्जिद गिरजा और गुरुद्वारा,


जी! अधिकारों संग दायित्व सिखाए ऐसा संविधान हमारा।


 


बरौनी थर्मल जर्जर स्थिति में था। सन् 2014 जून की बात है। मेरे पति बरौनी थर्मल पावर के महाप्रबंधक थे । उन्हें पटना हेडक्वार्टर में मीटिंग के लिए पहुँचना था। बरौनी से पटना आने में निजी सवारी से दो-ढ़ाई घण्टे का सफर है। बरौनी से हमलोग 5 बजे सुबह निकल गए कि अगर रास्ते में कुछ व्यवधान भी मिला तो 9 बजे तक पटना पहुँच जायेंगे। कुछ देर आराम कर भी हेडक्वार्टर मीटिंग में जाना आसान होगा। सुबह के 10 बजे से मीटिंग थी। हमलोगों की सवारी लगभग सवा आठ (8:15) बजे पटना में प्रवेश कर गई। आधे घण्टे की दूरी के पहले ट्रक, बस, कार की लंबी लाइन या यों कहें जाम से हमारा वास्ता पड़ा और थोड़ी देर में ही यह स्थिति हो गयी कि हमारी गाड़ी हिलने की स्थिति में नहीं रह गई। उस जाम में हमारी गाड़ी शाम के 4 बजे तक उसी तरह भीड़ में फँसी रही।


हाजीपुर और पटना को जोड़ने वाले पुल पर लगने वाला जाम कभी किसी के मृत्यु का कारण, तो कभी किसी की शादी का शुभ लग्न बीत जाने का कारण तो कभी किसी के परीक्षा छूट जाने का कारण बनता है। आखिर यह जाम क्यों लगता है..? लोकतंत्र में अधिकार सभी को चाहिए लेकिन धैर्य से कर्त्तव्य निभाने में अक्सर चूक जातें हैं। चूक जाने की यह आदत-संस्कार किस तरह की परवरिश-परिवेश में पनपता होगा? कुछ तो शिक्षा भी आधार होता होगा। सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों को शिक्षा देने की स्वतंत्रता कहाँ होती है..। वे तो शायद बंधुआ मजदूर होते हैं...।


–जनगणना करवाना हो तो शिक्षक.., घर-घर जाकर मतदान पर्ची बाँटना हो तो शिक्षक, ( मतदाताओं का शिक्षक के साथ बदसलूकी से बात करना जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर महिला है तो बिस्तर पर आने का प्रस्ताव देना..,


–कभी-कभी तो शिक्षक को मतदाताओं के द्वारा भिखारी समझ कुछ सिक्के अपने बच्चों के द्वारा दिला देते हैं।) मतदान पेटी उठानी हो तो शिक्षक..


 


–खुले में शौच करनेवालों का निगरानी करना,और उनकी तस्वीर खींच अपने उच्च अधिकारी को भेजना। तस्वीर खिंचते या निगरानी करते पकडे जाने पर आमलोगों से खुद की जमकर मरम्मत करवाना।


और तस्वीरे न भेजने पर अपना वेतन बंद हो जाने का डर  सताना।


 –विद्यालय में नामांकन के समय विद्यालय के आसपास के मुहल्लों के घरों में जा-जा कर अभिभावकों के आगे बच्चों के नामांकन के लिए गिड़गिड़ाना।


–शिक्षक को अपने ही वेतन के लिए चार-चार ,पाँच-पाँच महीने इंतजार करना।


–इस भयावह कोरोना काल में सभी को घर में रहने के लिए लॉकडाउन में रखने के लिए सभी तरह से प्रयास किये गए और शिक्षकों को कोरोनटाइन सेंटर में कार्य पर लगाया गया। प्रवासियों के आने पर डॉक्टर से पहले स्टेशन पर शिक्षकों के द्वारा स्क्रिनिग करवाना। जनवितरण के दुकान में बैठकर करोनाकाल में भीड़ वाली जगह में अनाज वितरण करवाना.. उफ्फ्फ..


 


*शर्म भी शर्मसार है..।*


 


हमें खुली हवा में साँस लेने की आज़ादी चाहिए तो वातावरण में ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन फैलता रहे इसकी कोशिश लगातार करनी चाहिए। जो ऐसा नहीं कर पाते हैं उनसे धरा को आज़ादी मिलनी चाहिए।


 


मुझे मेरे बचपन में देशप्रेम बहुत समझ में नहीं आता था। आजाद देश में पैदा हुई थी और सारे नाज नखरे आसानी से पूरे हो जाते थे। लेकिन मेरी जीवनी


 


'हम चिंता नहीं करते किसी की, जब खिलखिलाते हैं।


ज़मीर अपनी-आईना अपना, नजरें खुद से मिलाते हैं।।'


 


और झंडोतोलन हमेशा से पसंदीदा रहा। स्वतंत्रता दिवस के पच्चीसवें वर्षगांठ पर पूरे शहर को सजाया गया था। तब हम सहरसा में रहते थे। दर्जनों मोमबत्ती , सैकड़ों दीप लेकर रात में विद्यालय पहुँचना और पूरे विद्यालय को जगमग करने में सहयोगी बनना आज भी याद है। 50 वीं वर्षगाँठ पर कुछ अरमान अधूरे रह गए जिन्हें 75 वीं वर्षगाँठ पर पुनः उस पल को जी लेने की इच्छा बनी हुई है।


 


सन् 2011-2012 की बात है । रामनवमी चल रहा था । अष्टमी या नवमी के दिन मैं मेरा बेटा और मेरी पड़ोसन शहनाज़ तथा उनकी दोनों बेटियाँ घर के पास ही बने पंडाल में मूर्ति और सजावट देखने के ध्येय से पहुँच गए। रात्रि के लगभग दस बज रहा होगा। जब हमलोग पंडाल के पास पहुँचकर दर्शन कर रहे थे तो कुछ पुलिस कर्मी आकर हमलोगों को हट जाने के लिए कहा।


"क्यों ? हम क्यों हट जाएँ हमें आये तो मिनट भी नहीं गुजरा है।" मैं पूछी


"मुख्यमंत्री आने वाले हैं उनके आने के पहले भीड़ हटा दिया जाना नियम है।" एक पुलिस ने कहा।


"क्या यहाँ मुख्यमंत्री का ऑफिस है या किसी कार्य हेतु..,"


"दर्शन करने आने वाले हैं।"


"तो दर्शनार्थियों की तरह पँक्ति में लगें या गाड़ी में बैठ प्रतीक्षा करें हमारे दर्शन कर हट जाने की।"


"यह आप ठीक नहीं कर रही हैं..,"


"धमकी दे रहे हैं क्या कोई धारा लगता है ? मुख्यमंत्री को बता दीजिएगा , वो जो पूरे लावलश्कर के साथ दस गाड़ियों एम्बुलेंस के साथ निकलते हैं और सड़कों पर चलने वाली जनता को थमा देते हैं। ऑटो बस में सवारी करने वाली लड़की महिला देर से जो आना-जाना गन्तव्य स्थल पर देर से पहुँचती है और व्यंग्य सहती है। जी भर गाली देती है। मतदान के समय जो पैदल चलकर घर-घर घूमते हैं और जीत के बाद शहंशाह बन जाते हैं उनसे आज़ादी की चाहत रखती है जनता।" हमलोग पूरा दर्शन कर ही हटे।


 


'स्व स्वतंत्रता की रक्षा स्व अधिकार भी स्व दायित्व भी'


: सबको अपनी स्थिति तब विकट लगने लगती है जब जंग लड़ने की क्षमता खुद में कम हो और दोषारोपण की आदत बन जाये.. :


 


  *जय हिन्द*


 


विभा रानी श्रीवास्तव


- डाक पता


डॉ. अरूण कुमार श्रीवास्तव


104–मंत्र भारती अपार्टमेंट


रुकनपुरा , बेली रोड


पटना -बिहार *(वर्त्तमान में कैलिफोर्निया-अमेरिका)*


पिनकोड–800014


फ़ोन नम्बर –9162420798


सविता मिश्रा

कहीं रेगिस्तान है, तो कहीं पठार,


कहीं धूप है, तो कहीं छांव l1l


 


अतिथि देवो भवः है परम्परा ,


निभाते भी है हम अपनी परम्परा l2l


 


गौतम, नानक, अम्बेडकर, गाँधी, नेहरू, कलाम की है जन्म स्थली,


रानी लक्ष्मी बाई,दुर्गावती जैसी अनेकों वीरांगनाओं की भी है जन्मस्थली l3l


 


जननी-जन्मभूमि है बढ़कर स्वर्ग से ,


हर हिंदुस्तानी माने अपने दिल से l4l


 


धरती है सुनहरी जहां की,अम्बर है नीला जहां का


है वो देश रंगीला जहां का l5l


 


जिसकी है एक माता,


कहते हैं हम सभी भारतमाता l6l


 


जन - गण - मन है राष्ट्रीय गान,


गाकर बढ़ाते हैं इसका मान - सम्मान l7l


 


वन्देमातरम है हमारा राष्ट्रीय गीत,


बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था हमारा राष्ट्रीय गीत l8l


 


सभ्यता और संस्कृति है जिसकी पहचान,


धर्म और आस्था है जिसकी जान l9l


 


जिसकी धरती पर रहते हिन्दू - मुस्लिम- सिख - ईसाई,


लेकिन है सभी भाई- भाई l10l


 


भिन्न - भिन्न है, भाषाएँ, भिन्न भिन्न है बोली,


फिर भी सब की है एक ही बोली l11l


 


मेरा देश है महान,


करे हम सभी यही बस एक गुणगान l12l


 


अनेकता में एकता जिसकी है पहचान,


 है मेरा हिन्दुस्तान........ है मेरा हिन्दुस्तान l13l


 


है मेरा देश, 


है मेरा भारत देश l14l


 


 - सविता मिश्रा


 (शिक्षिका, समाजसेविका और कवियत्री )


पता - वाराणसी, उत्तर प्रदेश


आलोक कुमार यादव

गर्व मुझे अपनी धरती पर,


सबसे प्यारा हिंदुस्तान।


मातृभूमि की रक्षा के हित,


जीवन हो जाए बलिदान।।


 


जीवन हो जाए बलिदान,


बाकी न रहे कोई भी ग़म।


वीरों की यह धरती भारत,


रुकें न अपने कभी कदम।।


 


कितने वीरों ने इसके हित,


अपना रक्त बहाया है।


भारत माँ की रक्षा के हित,


निज कर में तेग उठाया है ।।


 


वीर सपूतों ने भारत के,


दुश्मन पर जब वार किया।


शीश लोटने लगे धरा पर,


जब अरि का संहार किया।


 


राणा लक्ष्मीबाई ने भी,


तलवारों से प्यार किया।


'आलोक' देश रक्षा हित में,


दुश्मन का संहार किया।।


 


 स्वतंत्रता दिवस हम सभी 


मिलकर आज मनाते हैं। 


भारत माता के गौरव का


एक प्यारा गीत गाते हैं ।।


 


 सबसे प्यारा भारत अपना


 इसका सब गुणगान करें। 


  भारत माँ की रक्षा खातिर


 निज हित का बलिदान करें।।


 


आलोक कुमार यादव


असिस्टेंट प्रोफ़ेसर


हेमवती नंदन बहुगुणा 


केंद्रीय विश्वविद्यालय 


उत्तराखंड


श्री बी. एन . केपटन

सुन्दर प्यारा देश हमारा 


लगता है, हम सब प्यारा 


सुन्दर ................. 


 


सत्य, अहिंसा, अमन चैन का


घर घर मे , गूनजे यह नारा। 


सुन्दर.............. 


 


आजादी के महायज्ञ मे बलिदान किया 


वीर सपूतो ने अपना तन मन सारा।


सुन्दर........./ 


 


गान्धी , नेहरू वीर भगत सिंह , 


इनके सपनो का देश हमारा।


सुन्दर ............ 


 


हिन्दू, मुस्लिम , सिख ईसाई 


सबके हे अभिमान का तारा। 


सुन्दर ......... 


 


धर्म , जाति भाषा के फूलो से 


महक रहा है , देश ये सारा। 


सुन्दर प्यारा ......... 


 


सुन्दर प्यारा देश हमारा   


लगता है , हम सब को पयारा। 


 


आदरणीय श्री बी. एन . केपटन जी को सादर प्रस्तुत ।


मदन मोहन शर्मा सजल

स्वतंत्रता की बलिवेदी पर


जिसने भी जान गंवाई है


अंग्रेजी शासन से मुक्ति


हर भारतवासी पाई है।


 


राजा और महाराजाओं सबने


जम कर लूटा जनता को,


अंग्रेजी गोरों की हुकूमत


दास बनाया जनता को।


 


दो सौ साल गुलामी सहकर


अंगड़ाई ली जनता ने,


मुक्ति मिले अत्याचारों से


किया फैसला जनता ने।


 


सन सत्तावन से बिगुल बजा


और रक्त बहाया वीरों ने,


बांध कफ़न सिर पर लोगों ने


गर्दन काटी शमशीरों ने।


 


लाल रक्त की बहती नदियां


नींद नही थी आंखों में,


इंकलाब के गूँजे नारे


गली गली चौराहों में।


 


कितने ही युवा गोली खाये


कितने ही फांसी भेंट चढ़े,


अनगिन जेलों काल कोठरी,


कितने ही शूली आन चढ़े।


 


भगतसिंह, सुखदेव, गुरु ने


नाकों चने चबा चबाये थे,


सुभाष चन्द्र ने बना फौज


दुश्मन के गले दबाये थे।


 


अंग्रेजी फौजें थर्राई


वीरों की बलिदानी से,


तब जाकर आजादी पाई


अंग्रेजों की गुलामी से।


 


महापर्व आजादी का यह


याद दिलाता कुर्बानी,


सुने सुनाए गाथा वीरों की


भावी पीढ़ी अपनी जुबानी।


 


देश रहेगा हम भी रहेंगे


इसकी रक्षा भार उठाये,


तन मन वारें शीश झुकाए


मिलकर सारे कदम बढ़ाये।


 


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


पता - 12-G-17, बॉम्बे योजना, आर0 के0 पुरम, 


कोटा (राजस्थान) 


प्रदीप बहराइची

वीरों की हर सांस में, 


है वफा एहसास में। 


 


पूरा अपना ख्वाब हुआ, 


देश जब आजाद हुआ। 


सारी खुशियां मिल गईं, 


जब तिरंगा हाथ हुआ। 


स्वप्न सलोने सज गये, आज के उल्लास में। 


 


है शहीदों को नमन, 


जिसके दम है यह चमन। 


देश की हर आन में, 


जो मिटाते अपना तन। 


हम न भूलेंगे कभी, वीरों के प्रयास को।। 


 


जो हवा अब बह रही, 


खुल के हमसे कह रही। 


आने वाली हर घड़ी , 


रूप बदल कर चल रही। 


कह दो कि हम नहीं,जिन्हें यकीं हो विनाश में।। 


इस वतन.............................।।


 


   प्रदीप बहराइची


   बहराइच, उ.प्र. 


मो नं.- 8931015684


रीतु प्रज्ञा

आजादी हमको प्यारी,


वतन आसमाँ न्यारी,


जंजीर तोड़ते चले,


गीत गाते मान में।


 


नवीन विचार रचे,


घृणित कार्य से बचे,


खुशबू उड़ाए हम,


झूमे झंडा शान में।


 


नमन करते हम,


मस्तक झुकाते हम,


करेंगे वतन रक्षा,


सीख बलिदान में।


 


अमन वास्ते हैं दृढ,


फोड़ देते शत्रु दृग,


जुल्म तो सहना नहीं,


पग बढे आन में।


 


           रीतु प्रज्ञा


       दरभंगा, बिहार


     स्वरचित एवं मौलिक


अलताफ हुसैन बेलिम

इक उम्र गुजार चुका हूँ बाक़ी उम्र मुझे गुजारने दो


जो मुझसे गुस्ताखियां हुई थी अब उन्हे सुधारने दो


 


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रुख़सत ए जहाँ तो मुझको होना है इक रोज जब


चीख़ पुकार मचेगी जहाँ में तो फ़िर उन्हें पुकारने दो


 


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उसके तन और बदन से खेलें थे हम बहुत हर दफ़ा


उस लम्स की हरारत को ज़ेहन में फिर मुझे उतारने दो


 


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तेरे सुर्ख़ होंठ वफ़ा में ढ़ले हुए गेसू शानों पे लटके हुए


ज़ेरो ज़बर उसके गेसुओं को फ़िर से मुझे सँवारने दो


 


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घर क्या बना लिया मैंने जब उसके घर के सामने ही


अब उजाड़ रहे है लोग घर मेरा तो उन्हें उजाड़ने दो


 


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इस मुक़म्मल जहाँ में उसके जैसा न हँसी कोई सनम


अगर वो ख़ुद पर इतराती हैं यारों तो उसे इतराने दो


 


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तुझें हवा भी छुए तो ग़म अलताफ को होता है बेहद


हर शय की नज़र हैं तुझपे वो नज़्र मुझे उतारने दो


 


 


अलताफ हुसैन बेलिम जोधपुर


        


राजेंद्र रायपुरी

 ये है हिंदुस्तान हमारा 


 


ये है हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान। 


ये है हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


जहाॅ॑ पे जन्मे राम-कृष्ण अरु,(२)


गौतमबुद्ध महान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


ये है हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


मुकुट सरीखे लगे हिमालय,


बसते डमरू धारी।(२)


उत्तर में ये करता भैया,


सरहद की रखवाली (२)


 


यहीं से निकलीं गंगा-यमुना(२)


जो भारत की शान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


दक्षिण में सागर की लहरें, 


इसके चरण पखारें।(२)


यहाॅ॑ भी बसते भोलेशंकर, 


जो हैं देव हमारे।(२)


 


पूरब में हैं जगन्नाथ जी,(२)


पश्चिम कृष्ण महान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


ये हैं हिंदुस्तान हमारा,ये है हिंदुस्तान।


 


कृषि प्रधान है देश हमारा,


होती खूब किसानी।(२)


बड़े बाॅ॑ध है देश हमारे,


जो देते हैं पानी(२)


 


भाखड़ा नांगल,हीराकुंड संग (२)


है नागार्जुन शान।


 


ये हैं हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


ये है हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


 


देश एक है धर्म अनेकों, 


यही खासियत भाई (२)


हिंदू-मुस्लिम,सिक्ख यहीं पर,


रहते यहीं ईसाई।(२)


 


होली,ईद,दिवाली के संग(२)


ईस्टर पर्व प्रधान।


 


ये है हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


ये है हिंदुस्तान हमारा, ये है हिंदुस्तान।


 


               ।। राजेंद्र रायपुरी।।


               (राजेन्द्र कुमार शर्मा)


              विकास विहार कालोनी,


             महादेव घाट रोड, रायपुरा,


               रायपुर (छत्तीसगढ़)


              मो० ९९२६५११७८९


कुमार निर्दोष

मेरे मर जाने पे तुम जन गण मन राग बजा देना 


अगर शहीद में हो जाऊँ तिरंगे का कफन उढ़ा देना


 


भारत माँ का मैं बेटा हूँ हर्गिज ना घबराऊँगा


सीने पे खा लूँगा गोली , पर ना पीठ दिखाऊँगा 


मेरे मर जाने पे मेरी माँ को धीर बँधा देना 


अगर शहीद में हो जाऊँ तिरंगे का कफन उढ़ा देना


 


दुश्मन चाहे जो भी हो भारत का झुकेगा ना सम्मान


चाहे हो फिर चीन या आये


 सामने पाकिस्तान


हर शहीद को हँसते हँसते भारत में दफना देना


अगर शहीद मैं हो जाऊँ तिरंगे का कफन उढ़ा देना


 


बतला देंगे दुश्मन को भारत के वीर सपूत हैं हम


एक एक सो सो पर भारी , भारत माँ के पूत हैं हम


भगत सिंह चन्द्र शेखर की सबको याद दिला देना


अगर शहीद मैं हो जाऊँ तिरंगे का कफन उढ़ा देना


 


अच्छा साथियों खुश रहना अब हमतो सफर करते हैं


हम वो हैं जो देश की खातिर हँसते हँसते मरते हैं


बंदेमातरम कहके तुम भी हँसके मुझे विदा देना 


लो शहीद मैं हो गया मुझे तिरंगे का कफन उढ़ा देना 


 


बंदेमातरम 


 


कुमार निर्दोष दिल्ली 


सर्वाधिकार सुरक्षित


एस के कपूर श्री हंस

नमन है उन शहीदों को जो,


देश पर कुरबान हो गए।


वतन के लिए देकर जान,


वो बेजुबान हो गए ।।


उनके प्राणों की कीमत से,


ही सुरक्षित है देश हमारा।


उठ कर जमीन से ऊपर,


वो जैसे आसमान हो गए।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


अब आर हो या पार हो,


बंद नरसंहार हो।


हर वार का जवाब वार,


अब लगातार हो।।


मिट जाये नक्शे से ही,


नाम विवाद का।


कुछ ऐसा कठोर प्रहार,


अबकी बार हो।।


*3,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


गलवान घाटी में दिखा कर,


ऐसी तू अराजकता।


मत खुश हो कि शर्मसार,


करके तू मानवता।।


नहीं जायेगा व्यर्थ कभी ये,


बलिदान शहीदों का।


होगा ऐसा प्रहार कि ना दिखा,


पायेगा तू दानवता।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली


प्रीति शर्मा असीम

भारत........


               मेरा है।


 


सत्य सनातन,


वेद आधारित,


कण -कण, 


जिस का,


पारस है।


 


वो भारत....


        मेरा है।


 


परम संस्कृत,


सहृदय -ह्रदयवान


दाता- दानवीर न्यारा है।


 


वो भारत........


                      मेरा है।


महान कथानक,


राम- राज्य संस्थापक,


मार्ग -दर्शक,


गीता -दर्शन,


नित -नया विचार भारत है।


 


वो भारत.........


                      मेरा है।


 


भारत किसी एक का नही।


भारत उसका,


जो भारत का,


यह मानव,


सभ्यता का,निर्माता है।


संसार को जीवन देने वाला,


 


वो भारत..........


                        मेरा है।


 


 @प्रीति शर्मा "असीम"


नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


सीताराम राय सरल 

भारत माता तुझे प्रणाम 


शहीदों को शत शत है सलाम 


 


था परतन्त्र देश सदियों से 


सह रहा था जुल्म पराये 


लूट लिया सब कुछ हमसे 


कहने पर कोडे बरसाये 


कुछ थे अपने ही नमक हराम ।।


भारत माता तुझे प्रणाम 


 


लाखों शहीदों की कुर्बानी 


खून से लिखी यही कहानी 


अरमानों का गला घोंटकर 


मां पर वार दी भरी जवानी 


चारों तरफ मचा था कोहराम ।


भारत माता तुझे प्रणाम 


 


पन्द्रह अगस्त का दिन पावन 


हुआ आजाद वतन सुहावन 


खुशियाॅ आई शुभ मनभावन 


वीरों की गाथा अमर सुहावन 


अपना रोशन कर गये शुभ नाम 


भारत माता तुझे प्रणाम 


 


श्रृद्धा सुमन समर्पित कर हम 


करते शत शत नमन तुम्हारा 


आजादी के पावन पर्व पर सदा 


हरदम होगा सम्मान तुम्हारा 


भारत के वीर सपूतो तुम्हें सलाम


भारत माता तुझे प्रणाम 


 


आजादी का जश्न तुम्हें है अर्पित 


नम आंखों से पुष्पांजलि समर्पित 


तुम सबकी कुर्बानी से दिन पाया 


करते नमन शौर्य तुम पर हैंगर्वित 


कुन्जी सरल संभालो रखना थाम 


भारत माता तुझे प्रणाम ।।


 


- सीताराम राय सरल 


टीकमगढ मध्यप्रदेश


नीमा शर्मा हँसमुख

जिसके होने से मुक्मल सारा जहाँ


शीश झुकाता है हिन्दुस्ता ।


तिरंगा हाथ में लेकर


खड़ी है भारत माँ ॥


 


भारत माँ तेरे प्यार में


वारी जाऊं मै ।


दिल तो क्या जान भी


कुर्बान जाऊं मै ॥


 


करूं श्रृंगार माँ तेरा


बलिहारी जाऊं मै ।


अपने लहू से हाथ तेरे


मेहंदी लगाऊं मैं ॥


 


तेरे चरण छू कर


हमने ये कसम खाई


छूटे ना गद्दार कोई


मैं मार गिराऊंगा ॥


 


दुश्मन है ललकार रहा


सीमा पर जाऊंगा ।


एक एक को भारत माता


मैं मार गिराऊंगा ॥


 


तेरे प्यार में भारत माँ


मैं लड़ने जाऊंगा


अपने बच्चो को भारत माँ


तेरी गोद दे जाऊंगा ।


 


करना तू हिफाजत उनकी


मैं लौट ना पाऊंगा


तेरे गोद मे सर रखकर 


माँ मैं सो जाऊंगा ॥


 


गर ना लौटा तो भारत माँ


सीने से लगा लेना ' ।


तीन रंग का तिरंगा


मुझको ओढ़ा देना॥


 


दे देना सलामी


मैं फिर से आऊँगा


दिल तो क्या जान भी


कुर्बान जाऊंगा ॥


 


नीमा शर्मा ' हँसमुख '


नजीबाबाद ( बिजनौर )


अविनाश सिंह

कफ़न तिरंगे का जो ओढ़े,उन्हें है प्रणाम


देश के लिए ऐसी कुर्बानी होना चाहिये


 


करके प्रहार घात , शत्रु शीश काट कर 


रणबांकुरों की ये कहानी होनी चाहिए


 


दुश्मनों का छीन शान,देशहित दिए जान


ऐसे वीर योद्धा को सलामी होना चाहिये


 


काट के गर्दन लाये,पाक को धूल चटायें


देश के लाल की ये कहानी होना चाहिये


 


तिरंगे मेरी शान हैं , दुश्मनों को मात कर


भगत सिंह वाली जवानी होना चाहिये


 


करते ना कोई पाप, रहते मन से साफ


राष्ट्र के खातिर स्वाभिमानी होना चाहिये


 


करें जो एकता भंग, कर दो उसका अंत


गद्दारों की ऐसी मेजबानी होना चाहिये


 


बढ़ाते है कदम जो ,रुकते ना वीर कभी


मन में सभी के हिंदुस्तानी होना चाहिए


 


दुश्मनों को चुन चुन,गोलियों से भून भून


झाँसी कीरानी जैसी मर्दानी होना चाहिये


 


अविनाश सिंह


शिक्षक,लेखक


सीमा शुक्ला

भारत मां के वीर सपूतों,


तेरी जय जयकार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


भूलेगा क्या देश शिवाजी


तेरी अमित कहानी को।


निकल पड़ी जो समर भूमि में


झांसी वाली रानी को।


राज गुरु, सुखदेव, भगत की,


उस कुर्बान जवानी को।


जय सुभाष, आज़ाद गर्व है


तुम पर हिन्दुस्तानी को।


 


दिया शहीदों ने आज़ादी,


का हमको उपहार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


भारत मां आजाद कराए,


जकड़ी थीं जंजीरों में।


कहां लिखा है कफ़न तिरंगा


जन जन की तकदीरों में।


धन्य तुम्हारा जन्म धरा पर,


धन्य तुम्हारी माता है ।


भारत मां का क़र्ज़ तुम्हारे,


जैसा कौन चुकाता है ।


 


सीमा की वह लिखें लड़ाई,


घाटी की चीत्कार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


जो हंसकर के खाई तुमने


सीने की गोली लिख दें।


मरते मरते बोल गए तुम,


इन्कलाब बोली लिख दें।


जब खेले तुम रक्त बहाकर,


सीमा पर होली लिख दें।


चली प्राण की देने आहुति,


वीरों की टोली लिख दें।


 


नमन तुम्हारा कोटि कोटि है,


वंदन बारम्बार लिखें ।


भारत मां के वीर सपूतों,


तेरी जय जयकार लिखें।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


विजय कुमार सक्सेना विजय

खूब मनाओ जश्न आज तुम, 


आजादी का दिन आया।


गाँव नगर हर गली गली में, 


आज तिरंगा फहराया।।


 


भूल न जाना कभी गुलामी, 


की उन काली रातों को।


कुचल दिया जुल्मी शासन ने,


वीरों के जज्बातों को।


जोरावर और फतेह सिंह को,


दीवारों में चुनवाया।


गाँव नगर हर गली गली-----


 


याद करो तुम मंगल पांडे,


याद करो रानी झांसी।


याद करो उन वीरों की जो,


हँस कर के झूले फांसी।


धन्य भूमि वो जहाँ पे ऐसे,


वीरों ने जीवन पाया।


गाँव नगर हर गली गली-----


 


राजगुरु,सुखदेव,भगतसिंह,


अरु सुभाष से बलिदानी।


मातृभूमि के लिये जिन्होंने,


दे दी अपनी कुर्बानी।


धन्य हो गयी धरा हिन्द की,


जब यह परचम फहराया।


गाँव नगर हर गली गली-----


 


विजय कुमार सक्सेना "विजय"


सुषमा दिक्षित शुक्ला

ये मातृ भूमि का वन्दन है 


 


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है । 


हम सब तेरे रखवाले मां,


ये माँ बच्चों का बंधन है।


 ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनन्दन है ।


तेरी आन न जाने पाये ,


तुझपे जान लुटा देंगे ।


तेरे चरणों में लाकर के ,


शत्रू शीश झुका देंगे ।


ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनंदन है ।


हम सब तेरे रखवाले मां,


 ये मां बच्चों का बंधन है ।


चंदन जैसी तेरी ममता ,


 है रखनी तेरी शान हमें ।


अगर जरूरत पड़ी वक्त पर,


 न्योछावर है प्रान तुम्हें ।


ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनंदन है।


 हम सब तेरे रखवाले ,


मां ये मां बच्चों का बंधन है ।


मां तेरा क्रंदन असहनीय ,


ऐ! मातृभूमि तू प्यारी है ।


हम तेरे प्यारे बालक हैं,


 तू हम सब की फुलवारी है ।


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है ।


हम सब तेरे रखवाले मां ,


ये माँ बच्चों का बंधन है ।


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


प्रज्ञा जैमिनी स्वर्णिमा

अंग्रेजी शासन से तो मिल गई आज़ादी 


लेकिन असली आजादी मिलेगी कब?


 


गरीबी, भूख,बेरोजगारी का


छाया है चहुँ ओर अंधेरा 


रोटी, कपड़ा और मकान की 


बुनियादी ज़रूरतें पूरी होंगी कब?


 


हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई 


सभी धर्मावलंबी हैं रहते यहाँ 


धर्म निरपेक्ष देश होने के बावजूद 


एक देश, एक कानून मानेंगे कब?


 


मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा 


सभी इमारतों में है मिट्टी- गारा


है ईश्वर, खुदा,यीशू सब मन में ही 


मानवता/ इंसानियत को ये धर्म मानेंगे कब?


 


शिक्षा, सभ्यता,संस्कृति का था जो गढ़ 


उसकी आधी जनता है,अभी भी अनपढ़ 


शिक्षा, रोजगार के असमान अवसरों से


आरक्षण का रोष दूर होगा कब?


 


संविधान में ही है कहा गया


धर्म, जाति, लिंग का होगा नहीं भेदभाव 


माना भी गया लड़का-लड़की एकसमान 


फिर कन्या भ्रूण हत्या रुकेगी कब?


 


प्रादेशिक भाषाओं की है बहुलता यहाँ 


अंग्रेजी भाषा की महत्ता भी समझते यहाँ 


भाषाओं के बढ़ते द्वंद्व में 


'भारत' को अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी मिलेगी कब?


 


स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था


'वसुधैव कुटुंबकम् ' का सपना


सभी धर्मावलंबी चाहें बस!हित अपना


आखिरकार भारतीयता की भावना पनपेगी कब?


 


-प्रज्ञा जैमिनी 'स्वर्णिमा ',दिल्ली


अवधेश कुमार वर्मा कुमार

क्या है देशप्रेम?


कभी सोचा!कभी कोशिश की


अन्तर्मन में समझने की?


देशप्रेम का मतलब


क्यों लगाते हैं हम 


मात्र सैनिकों से!


सीमा पर डटे जवानों से?


क्या हमारा कोई फर्ज नही ?


वास्तव मे हमारी दृष्टि 


नही है सही।


अरे!


हम सभी है देशभक्त,


दिखा सकते हैं 


सच्चा राष्ट्रप्रेम !


बना सकते हैं 


देश को महान,


विश्व का सिरमौर।


हमारे धर्म,जाति,लिंग 


भले हो अलग।


अमीर-गरीब,शिक्षित-अशिक्षित


का दंभ छोड़,


दिखायें देशभक्ति


अपने सत्कर्मों से।


भ्रष्टाचारी कौन है?


कौन है उपद्रवी,बेईमान?


कौन है कानूनों को तोड़ने वाला,


देश को गन्दा करने वाला ?


मजहब के नाम पर धन्धा


करने वाला ?


हम ही हैं,हम सब हैं,


कहीं ना कहीं


उसके जिम्मेदार।


आओ हम करें बदलाव


जहाँ हैं ,जिस पद पर हैं।


शासक,प्रशासक,नेता,व्यापारी, शिक्षक,धर्मज्ञ,छात्र,किसान,


या फिर अदना इंसान।


निःस्वार्थ करे आह्वान


खत्म हो दूषित मानसिकता,


करे स्वच्छ वातावरण का निर्माण।


तभी होगा सच


स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत


का सपना,


होगा यह भी राष्ट्रप्रेम,


तभी बनेगा 'भारत'


फिर विश्व का सिरमौर !!


 


-अवधेश कुमार वर्मा 'कुमार'©®


    महराजगंज {उ0प्र0}।


श्रीमती सुशीला शर्मा

दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है (2)


तीन तलाक हटा कर 


मुस्लिम बहनों को बचाया है ।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


सत्तर साल के संविधान में 


नया कानून बनाया है 


हटा के तीन सौ सत्तर धारा 


कश्मीर आजाद कराया है।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


 पुलवामा का लेकर बदला 


सर्जिकल करवाया है 


धूल चटाकर दुश्मन को


अभिमन्यु को बुलवाया है ।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


अमन चैन कश्मीर में छाया 


लोकतंत्र वहाँ आया है 


लेह को किया स्वतंत्र उसे भी 


केन्द्र शासित करवाया है।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


हिम्मत है तो मुमकिन है के 


नारे घर-घर गूँजे हैं


हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई 


भाई बनकर रहते हैं।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने


इतिहास रचाया है ।


 


विश्व विजेता भारत का 


परचम जग में फहराया है 


सिंह की तरह दहाड़ लगा 


दुश्मन को दूर भगाया है ।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


रामराज्य की हुई स्थापना 


रावण मारे जाएँगे 


लक्ष्मण रेखा गर लाँघी 


तो दुश्मन भस्म हो जाएँगे।


 


दो हजार अब बीस जो आया 


करली सब तैयारी है 


विश्व विजेता है ये भारत 


सौ दुश्मन पर भारी है ।


 


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श्रीमती सुशीला शर्मा 64-65 


विवेक विहार 


न्यू सांगानेर रोड, सोडाला 


जयपुर 302019 


मो. 9214056681


मान सिंह मनहर

बलिदानियों के शीश का है ताज तिरंगा।


लहरा रहा है उनके दम पे आज तिरंगा।।


 


हर रंग एक कहानी नई करता है बयाँ,


सीने में छुपाए है कितने राज तिरंगा।


 


खेली थी जान पर वो,मगर हार न मानी,


झाँसी की वीर सिंहनी की लाज तिरंगा।


 


चोला बसंती पहन जो शहीद हो गए,


करता है शहादत पे उनकी नाज तिरंगा।


 


करता रहूँ गुणगान अपनी मातृ भूमि का,


'मनहर' के दिल पे करता रहे राज तिरंगा।


 


मान सिंह 'मनहर'


शोभा गोयल

आया है स्वतंत्रता दिवस 


झूम उठा हैं भारत दिवस


 


जब जब तिरंगा लहर लहराएँ


भारत माता मंद मंद मुस्कराएँ


गुंजन करते पेड़ों पर गगनचर


सिंदूरी प्रभा से आसमां जगमगाएँ


 


सिंदूरी रंग से मन मयूर हर्षाए


सफेद रंग वातावरण सादगी महकाएँ


उदय होता प्रभाकर का नजारा


हरित रंग से धरा की हरियाली लहराएँ


 


आन मान तिरंगा अपना सम्मान है


बीच चक्र भारत माता की शान हैं


भारत वर्ष की स्वतंत्रता महान हैं


विश्व में इसका उच्चतम स्थान है


 


ले जनकल्याण की मशाल


ले संकल्प हम आज


हम सबको आगे जाना हैं


इस देश का मान बढ़ाना हैं


 


विश्व पटल पर लिखे नयी कहानी


भारत देश बने जन कल्याणकारी


यह हैं हर भारतवासी की जिम्मेदारी


शीर्ष पर रहे हमेशा हम हिदुस्तानी


 


शोभा गोयल


जयपुर


मो.-9571220372


शुचिता अग्रवाल शुचिसंदीप

एक है भारत एक तिरंगा फहराएं,


जोश से जन गण मन भारतवासी गाएं,


कण-कण केशरिया मिट्टी का दिखता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


धरती अम्बर पर्वत सागर झूम रहे,


लिए पताका नन्हे मुन्ने घूम रहे,


नवभारत का उदय हुआ सा  लगता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


माँ का आँचल आज खुशी से लहराया,


काश्मीर में झंडा माँ का फहराया,


खिसियाया आतंकी दर-दर फिरता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


बड़ी सफलताओं का युग अब आया है,


वतन विश्व से कदम मिला चल पाया है,


चन्द्रयान यूँ नभ पर आज दमकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


मनसूबे दुश्मन के पूरे ना होंगे,


अभिनंदन सम रोड़े सारे तोड़ेंगे,


राष्ट्रप्रेम जन-जन में खूब झलकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


वतन बिका ना बिकने ही अब हम देंगे,


आँख दिखाते दुश्मन का सिर काटेंगे,


'शुचिता' मस्तक माँ चरणों में झुकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"


तिनसुकिया, असम


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