शिवांगी मिश्रा

जग का मेरा प्यार नहीं था ।


 


प्रेम दीप में जलते जलते ।


प्रेम आश में पलते पलते ।।


ह्रदय किया था तुम्हें समर्पित , साधारण उपहार नहीं था । (१)


 


जग का मेरा प्यार नहीं था ।।


 


नयी किरण थी खिली खिली सी ।


उठी लहर थी मिली मिली सी ।।


तुम पर जीवन किया था अर्पित , गहनों का श्रृंगार नहीं था । (२)


 


जग का मेरा प्यार नहीं था ।।


 


तेरे मिलन की आशाओं में ।


दीप जला रक्खे राहों में ।।


भला मेरा अनमोल प्रेम ये , क्यूँ तुमको स्वीकार नहीं था । (३)


 


जग का मेरा प्यार नहीं था ।।


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


डॉ0 रामबली मिश्र

फिर भी बहुत जरूरी पीना


 


भोजन का है नहीं ठिकाना।


फिर भी बहुत जरूरी पीना।।


 


मन कहता जीना या जी ना।


पर देखो पीने का सपना।।


 


बीबी-बच्चों की मत सुनना।


रोटी की मत चिन्ता करना।।


 


पीने से बस मतलब रखना।


फटेहाल ही जीते रहना।।


 


लगा हुआ है जीना मरना।


इससे कभी न विचलित होना।।


 


जीने का मतलब है पीना।


भले झोपड़ी में ही रहना।।


 


मेहनत करके पैसे पाना।


पी कर सायं घर को आना।।


 


मुँह से बदबू भले उगलना।


फिर भी आवश्यक है पीना।।


 


भले राह में गिरना-पड़ना।


फिर भी आदत नहीं छोड़ना।।


 


भले कर्ज लेकर हो पीना।


या पत्नी को गीरो रखना।।


 


भूजी भाँग भले घर में ना।


फिर भी जीने को है पीना।।


 


सूदखोर की गाली सुनना।


जीवन को ही पीते रहना।।


 


रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नीरजा बसंती गोरखपुर

परिचय


नाम -नीरजा बसंती 


पद -स. अ. 


विभाग -बेसिक शिक्षा विभाग 


निवास -रुस्तमपुर, गोरखपुर


 


कविता 1


हे, दिव्य प्रभा अभिनन्दन, 


हे, दिव्य दिवस अभिनन्दन, 


हुई अयोध्या पुनः दिव्यमय, 


हे, राम आपका अभिनंदन !


है कोटि -कोटि अभिवंदन !!


 


नवल प्रात की आभा से, 


सरयू की पावन धारा से, 


भावों के पूर्ण समर्पण से, 


हे, दशरथ नंदन अभिनंदन !


है कोटि -कोटि अभिवंदन!!


 


विह्वल, अहलादित है जन -जन, 


पूरित आशा सज गए स्वप्न, 


अनगिन दीप जले मन -मन, 


हे, सियाराम शुभ अभिनंदन !


है, कोटि -कोटि शुभ अभिवंदन !!


 


दिव्य भूमि का पूजन दिवस, 


विजय दिवस -सा खिला हर्ष, 


मंगल, पावन, सुखद प्रहर, 


हे!परम् पुरुष, हे !पुरुषोत्तम, 


हे, राम आपका अभिनंदन !


है कोटि -कोटि अभिवंदन !!


 


नीरजा बसंती 


05/08/2020


 


कविता 2


नव नेह--


 


 


नैनो में 


नव नेह सजे 


हिय, हर्षित 


अभिलाषित।


दिवा, उमस 


शीतलता, सरस।


सब समतल 


परिभाषित !!


दृढ़ संकल्पित मन 


चले निरंतर कंटक पथ, 


फिर भी सुखमय 


लगे प्रहर 


क्षण-क्षण हो 


अह्लालादित !!


छूने को 


अक्षय आकाश 


कौतुहल मन उड़े उड़ान 


अति उमंग 


उल्लासित !!


रवि द्युतिमा से 


आयुष्मान, 


जीवन ज्योति प्रसार, 


प्राणो को 


नव संचय दे, 


लक्ष्य अटल हो 


ज्योतिर्मान !!


 


नीरजा बसंती 


29/6/2020


 


कविता 3


!!!मिट जायेगा गहन तिमिर यह !!


(कोरोना महामारी के संदर्भ में )


 


 


सहमी सी है वसुधा अपनी,


डरा हुआ अम्बर है, 


मुश्किल में है ये जन जीवन, 


कांप रहा हर मन है !


 


हवा के झोंके हुए विषैले, 


स्पर्श में है बीमारी, 


श्वास की घड़िया दुभर हो गयीं, फैली है महामारी !


 


मंदिर मस्जिद बंद हो गए, 


खुले हैं श्मशानों के द्वार, 


खुशियों पर पड़ गयीं बेड़िया, 


बनी है विपदा पहरे दार !


 


प्रलयनाद सी यह महामारी, 


जनमानस पर भारी, 


मानव जीवन लील रही, 


यह 'पशुओं की बीमारी ' !


 


विश्व युद्ध -सा द्वन्द चल रहा, 


हर जर्रे -जर्रे में, 


हुए अचंभित सोच रहे हैं, 


मृत्यु छिपी कण- कण में !


 


बड़े -बड़े विकसित देशों पर, 


छाई लाचारी -सी, 


दिखे नहीं कोई उजियारा, 


दुनिया बेचारी -सी !


 


विश्व पटल के विकसित देश, टिक न सकें इस रण में, 


जो अपना डंका बजा रहे थे, 


समृद्धि और बल में !


 


जो जितने विकसित थे, 


वे उतने ही बर्बाद हुए, 


पर अपनी 'संस्कृति' के बल पर, 


हम सबकी मिसाल हुए !


 


'संयम' और 'सामर्थ्य' छुपा है, 


देश के जनमानस में, 


सक्षम और समृद्ध खड़े, 


हम विपदा के इस क्षण में!


 


'मिट जायेगा गहन तिमिर यह,'


आशा के दीप जलाने से, 


विजयगान का शंख बजेगा, 


'सतर्कता' अपनाने से !


 


सन्नाटे -सी गलियों में, 


फिर फैलेगा सुखमय उजियारा, 


महानिशा के अंधकार में, 


चमकेगा फिर ध्रुवतारा !


 


अपनी 'सभ्यता' और 'संस्कृति', 


दुनिया को सिखलाना होगा, 


वही सनातन धर्म हमें, 


फिर से अपनाना होगा !


वही सनातन धर्म हमें, 


फिर से अपनाना होगा !!


 


नीरजा बसंती (सहायक अध्यापक )


प्रा.वि.-गहना 


ब्लॉक -खजनी 


गोरखपुर


 


 


 


कविता 4


मनभावन सावन...


 


 श्याम जलद नभ छाये, 


वर्षा ने मोती सी बुँदे, 


धरा के आँचल में बिखराया, 


मनभावन सावन आया !


 


वर्षा की शीतल शीतलता, 


मन की तपन बढ़ाये, 


चमक चमक गरज बादल के, 


विरही का विरह जगाये, 


मनभावन सावन आया !!


 


ताल -तलैया, वृक्ष, धरा, 


सब पर हरियाली छायी, 


पके आम, जामुन की डलियाँ, 


मह -मह सी खुशबू आये, 


सूखी मन की डाली, 


इंद्र धनुष न भाया, 


मनभावन सावन आया !!


 


कूक कोकिला मन न भाए, 


दादुर टेर भी शोर मचाये, 


पपिहा ने पीर बढ़ाया, 


मनभावन सावन आया !!


 


गोकुल छोड़ गए तुम कान्हा, 


वृन्दावन पतझड़ छाया, 


धरा ने ओढ़ी हरी चुनरिया, 


विरही मन मुरझाया, 


प्रेम जलद नभ छाये, 


कब मनभावन सावन आये? मनभावन सावन आया !!


 


नीरजा बसंती


 


कविता 5


टूटती सी आश.... 


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खुशनुमा ख़्वाबों का


मौसम 


ले रहा अंगड़ाईया 


सर्द सी चलती हवाये 


संग जैसे परछाईया !


आश पूरित स्वप्न लेकर 


गा रहा मन झूम कर।


मन की आशाये 


मचलती,सँवरतीं।


बज रही शहनाईयां !


स्वप्न में,आशा से भरे 


दृग ,


चपल, चंचल हो चले 


ताकतें नित राह को 


हैं ढूंढते, नित प्राण को !


टूटती सी आश में भी 


मन शांत हो अविचल खड़ा 


क्षण तनिक क्या सोच 


यह दृग सजल फिर हो चले !


फिर बढ़ चली यह रात्रि भी 


अंतिम प्रहर के रैन में 


चंद्र भी धूमिल निशा है


बढ़ रही अवसाद में !


हाय !यह दिन भी गया 


प्रिय तुम्हारी याद में 


आश बन कर रह गयी 


शहनाईया फिर ख्वाब में !!


 


 



28/6/2020


सेतराम साहू सेतु

आज फिर 15 अगस्त है,


हर कोई आज़ादी के जश्न में मस्त है


पुलिस वाले कुछ दिन पहले से ही


परेड में व्यस्त है


नौकरशाहों और नेताओं का जलवा,


आज दिखता ज़बरदस्त है।।


 


बच्चों ने सारा घर सुबह से सर पर उठाया है


उनके लिये नया-नया १५ अगस्त जो आया है


युवा तो एक दिन पहले से तैयारी करके है बैठे


क्यो की आज बंद रहने वाले है ठेके


महिलाओं को आज भी कहा आराम है


रोज़ से ज़्यादा तो आज काम है


सारे पतियों की है छुट्टी


बन रहे घरो में नये नये पकवान है


 


देश का क्या कहना है


वह तो निरंतर तरक़्क़ी के शिखर चढ़ रहा है


थोड़ा बन रहा तो थोड़ा बिगड़ रहा है


हर तरफ़ आज भी फैला अत्याचार है


बलात्कार है,भ्रष्टाचार है


मानवता का हो गया अंत है


शैतान घूम रहा बनकर संत है


कही कोई बन गया


ज़रूरत से ज्यादा धनवान है


तो कही कोई भूख और ग़रीबी से


बेतहाशा परेशान है


अस्पताल में मर रहे है बच्चे


और सड़कों पर किसान है


 


कहने को तो देश लगता आज़ाद सा है


थोड़ा आबाद सा है,थोड़ा बर्बाद सा है


हर तरफ़ बुराई है,समाज हो गया है गंदा


सिग्नल पर एक छोटा बच्चा बेच रहा है झंडा


बह जायेगी उस दिन सच में आज़ादी की गंगा


जब मजबूरी में कोई नही बेचेगा चोराहे-चोराहे पे तिरंगा।


 


अराजक्ता फैला रखी है


धर्मों के नाम पर


उँगलियाँ उठाई जाती है


ईमानदारों के काम पर


पुरानी संस्कृति का रंग हो चला है फीका


क्यो की अब भारत बनने जा रहा है अमरीका


आधुनिकता के नाम पर बन रहे है उधोग हज़ार


धुँआ छोड़ प्रकृति की छाती करते है तार-तार


 


प्रकृति को माँ तुम समझो,


ज़रा रखो तो उसका ध्यान


मानवता को धर्म बनालो


करो सबका सम्मान


खतरा तुम पर मँडरा रहा है,


ज़रा बचा लो अपने प्राण


अहिंसा जो तुम अपना लोगे


बन जाओगे गांधी जैसे इंसान


सकारात्मक होगा विचारों में बदलाव


तभी तो होगा देश का कल्याण


तभी तो कहलायेगा मेरा भारत महान।


 


सेतराम साहू सेतु


कौहाकुड़ा पिथौरा


मो. 9399434293


🇮🇳🙏🏻🇮🇳🙏🏻🇮🇳


डॉ कुमुद बाला

बढ़ो साथियों , लेके तिरंगा चलना है


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मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है


अब आँधी आये या तूफ़ां जाँ हथेली पे लेके चलना है 35


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


पूरब में सूरज उगता है मेरे वतन की खातिर


चंदा भी तम से मिलता है मेरे वतन की खातिर


सब तारे झिलमिल करते हैं मेरे वतन की खातिर


यह नीला व्योम चमकता है मेरे वतन की खातिर


हमें वतन की खातिर जीना दिल में वतन को लेके मरना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


देखो कितने वीरों ने दी देश पे अपनी कुर्बानी


हम भी तो कुछ कर जाएं रुक जाये नैनों का पानी


हँसकर पहने बासंती चोला चढ़ गये फाँसी पे


न्यौछावर देश पे की वीरों ने खिलती वह जवानी


उन वीरों की शहादत पे हमको जलाके मशालें चलना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


दुश्मन करता है गद्दारी पर कुछ अपने भी गद्दार हैं


लालच ये पैसों की करके उठाते फिर हथियार हैं


प्रण लें चलो निकालें चुनकर ऐसे धोखेबाज़ों को


तिलक लगा कहती है भाई अब बहनें भी तैयार हैं


मुण्डों की माला पहन बन काली दुश्मन का रक्तपान करना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


शर्म नहीं आती तुझको छुप देश पे वार करता है


नापाक इरादे ले मुख में मिश्री घोल के रखता है


हम वो हैं जो चट्टानों में भी अपनी राह बनाते हैं


सीने पे गोली खाने की जवान तमन्ना रखता है


अगर मैदान में तुम आ जाओ सर दल के तुम्हारे चलना है


मेरा शीश अगर ये कट भी जाये लेके तिरंगा चलना है।


हमें तो आगे बढ़ना है


वंदे मातरम वंदे मातरम


 


डॉ कुमुद बाला


हैदराबाद


छगनराज राव दीप

वीर सपूत शहीदों पे


अभिमान करता है वतन


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


जोश दिल में था भरपूर


डरकर मुंह मोड़ा नहीं


सरज़मीन से हिले नहीं


जब तक साँस छोड़ा नहीं


अड़े रहें वे डटे रहें


सैनिक शहीद माटी में


खूं से लिख गये नाम वे


वीर गलवान घाटी में


माँ भारती की लाज को


बचाने को ओढ़ा कफ़न


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


ड्रैगन तू कायर है जो


सोये सैनिक मार दिए


धोखेबाजी से तुमने


पीठ पीछे वार किए


खून का बदला खून हो


फौजों को खुली छूट दो


ड्रैगन को दिखा दो शक्ति


अब ऐसा इक सबूत दो


माटी तेरे लालों को


शीश झुकाता आज छगन


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


वीर सपूत शहीदों पे


अभिमान करता है वतन


भारत के रण वीरों को


शत शत करता आज नमन


 


छगनराज राव दीप


जोधपुर


9414301484


रणजीत सिंह रणदेव

ये प्यारा जग में न्यारा,भारत कुंज हमारा ।


ए शहीदों इसके गौरव में भी नाम तुम्हारा ।।


ये प्यारा जग में न्यारा ……………………….1


 


तुम सिमा पर इसके पहरी बनें खडें हों ,


आता कोई संकट तुम डटकर लड़ें हों ।


तुम भारत सिमा पर राही बन हो प्यादा ,,


भूखें-प्यासे रहकर रखतें तुम अमन इरादा ।।


तुम पहरी जिसे गुजरें हम सबका जमारा ,


ये प्यारा जग में न्यारा …………………………2


 


मुठभेड़ में तुम सिमा पर रंग लहरातें हो ,


भारत माता की जय ललकार लगातें हो। 


सीना गोली लगे तो मिट्टी मलम लगातें हो ,,


तुम देश रक्षा में जीवन शहीद कर जाते हों।।


तुम्हारें रक्त का फोलादी देते जवाब करारा ,


ये भारत जग में न्यारा …………………………3


 


ए नमन मेरे वतन के शहीदों वारि -वारि ,


तुम्हारे बलिदान से होता ह्रदय ज्वालाधारी ।


तुम्हारे बालिदानो की वाणी हम पर गूँजे ,,


याद दिलाती तेरी रक्त रंगीली माटी धूँजें। 


तेरी याद दिलाती कुर्बानी तू शहीद प्यारा ,


ये भारत जग में न्यारा ………………………..4


 


भारती का तूहीं सपूत अमर कहलाया हैं ।


सदाही तुनें भारती का ध्वज ऊंचा लहराया हैं।।


तेरे पर नाज हैं यहां रहने वाले बसेरों का,,


नमन तेरी कुर्बानी को हम जैसे मजबुरों का ।।


रणदेव तेरी गाथा लिखे तु अमर द्वीप हमारा ,


ये प्यारा जग में न्यारा, भारत कुंज हमारा ।


ए शहीदों इसके गौरव में भी नाम तुम्हारा ।।


_________________________________


रणजीत सिंह “रणदेव” चारण


राजसमंद


डॉ वन्दना सिंह

यह कैसा आजादी का दिवस आया ?


घरों में कैद हैं हम 


यह कैसा डर है फिजाओं में है छाया?


 घरों में कैद हैं हम 


आजादी कब मिलेगी दिल सोचता है ?


कब फिर से उड़ेंगे हम?


 हटेगा कब यह मनहूसियत का साया?


 घरों में कैद हैं हम


 यूं ही अनायास बिना कुछ किए 


जो मिल गई थी हमको आजादी 


नहीं उसकी कीमत जानते थे 


हर चीज से थी शिकायत 


जो मिल रहा ,कीमत ना उसकी 


पहचानते थे


एक अदृश्य वायरस के खौफ ने 


सब को रुलाया 


मंडरा रहा है सबके सिरों पर 


मौत का साया


  


 आजादी हमको मिली 


73 साल हो गए


पर आजादी की कद्र हमने


 नहीं थी जानी 


आजादी के नाम पर दंगे हुए 


  इस देश में


 करते रहे सब मनमानी


 बिना आत्मनिर्भर हुए 


आजादी के मायने भी क्या?


  सुई से लेकर जहाज तक 


विदेशों से मंगाते हैं हम 


खुद की संस्कृति का ज्ञान नहीं 


विदेशी पर इतराते हैं हम 


कहने को हम


 आजाद हैं बरसों से 


पर मानसिक गुलामी करते हैं हम


 खोखला सिस्टम हमारा 


खोखला समाज है


 आज भी पश्चिम की हर बात में


 हामी भरते हैं हम 


हम भी भारत को विश्व का 


सिरमौर बना सकते थे 


पर आपसी फूट ने और 


   तंत्र की लूट ने 


  देश को आगे बढ़ने न दिया।


 ये वक़्त है ठहर कर


 एक बार फिर


 गलतियों को समझो ,सुधारो।


ये बरस जैसे भी जाये 


 अगले बरस मन में 


नई उमंग भरकर पधारो ।


एक दिन झंडा फहराकर 


  देशभक्ति के गीत गाकर 


अकर्मण्यता की चादर में 


    फिर खुद को छुपा कर


  आपसी विद्वेष को 


    अपने ज्ञान से हम सींचते हैं


   GDP का पहाड़ा पढ़ने वाले


       बात बात में चीखते हैं!


       TV पर देखिए -


     रोज़ बढ़ते आंकड़ों को 


      और डिबेट में रोज आनेवाले


      नए पुराने रणबांकुरों को।


     कैसे कोरोना ने कर दिया 


     जीवन का एक बरस जाया!


  कैसा इस बार आज़ादी का दिवस आया?


 कैसा इस बार आजादी का दिवस आया


 


Written by -Dr. Vandana Singh


डॉ. आभा माथुर

भादों आया


      नीले नभ में 


छाये बादल 


        ज्यों गोरी के


नील- नयन में


         शोभित काजल


झरें मेघ झर 


        झर- झर-झर- झर


करें प्रकंपित 


         तन-मन, थर-थर


तनिक देर में


           चमका सूरज चम-


चम-चम-चम


            उड़ती तितली


 हर्षित कर मन


              जन जन प्रमुदित


चहुँ दिशि कलरव


               बच्चों का दल


लिये राष्ट्र ध्वज


                मधुर कंठ से


गगन गुँजाता


                छटा विलक्षण


इन्द्रधनुष बन


                 मन हर्षाता


राष्ट्र पर्व यह


                 याद दिलाता


निज गौरव रख


                 सबसे ऊपर


उड़े तिरंगा


              फर-फर-फर-फर


 


      डॉ. आभा माथुर


श्रीकांत त्रिवेदी

स्वातंत्र्य दिवस का पावन दिन,


हमसे यह कहता रहता है।


संयम,अनुशासन बिन मेरा,


अस्तित्व अधूरा रहता  है ।।


 


मै भारत राष्ट्र पुरातन हूं ,


चिर नूतन हूं,अधुनातन हूं,


दुष्यंत पुत्र से मिला नाम,


श्रीभरत की तरह सनातन हूं।


इंडिया नाम स्वीकार नहीं,


सुनकर मन रोता रहता है ।।


 


अपनी इस भारतमाता की,


बेड़ियां खुलीं संघर्षों से ,


पर अंग कटे,उन घावों से,


बह रहा रक्त है बरसों से!


उसकी पीड़ा को हरने का,


प्रण याद रहे ये कहता है!!


 


माना अंग्रेज नहीं हैं अब,


अग्रेजी फिर भी भारी है,


रह गई मात्र भाषा बनकर,


हिंदी की सिसकी जारी है!


हम कहें राजभाषा लेकिन ,


दासत्व भाव ही रहता है !!


 


खुद को कहने में भारतीय,


जब तक हमको हो गर्व नहीं,


तब तक है सिर्फ दिखावा ही,


कोई   स्वतंत्रता - पर्व   नहीं !


ये देश विश्व का मुकुट बने,


अपनी अभिलाषा कहता है!!


 


उत्तर में पुण्य हिमालय से,


दक्षिण लहराते सागर तक,


गिलगित से अक्षय चिन्ह तलक


कैलाश से मानसरोवर तक !


लहराए  तिरंगा  या  भगवा ,


मन में यह  सपना रहता है !!.........


 


कुछ किया,बहुत कुछ बाकी है,


जो हुआ वो बस इक झांकी है,


पटकथा अधूरी है अब तक,


मंचन  तो  पूरा  बाकी  है ! 


पूरे हो सकें स्वप्न सारे ,


हो लक्ष्य एक ही कहता है!!


          .... श्रीकांत त्रिवेदी


                     लखनऊ


गौरव सिंह घाणेराव

 भारत की जान


 


न हिन्दू,न मुसलमान हूँ,


मैं तो बस इंसान हूँ।


इस अच्छे और सच्चे देश


मेंरे भारत का अभिमान हूँ।


स्वतंत्र भारत में रहने वाला


मैं ही भारत की जान हूँ।


 


बेडियो से जकड़े भारत को


जब गोरो ने कस कर भींचा था।


तब इस माता की आजादी को,


मैंने अपने लहू से सींचा था।


न डरता था मरने से मैं


 न डरता था मैं भिड़ने से,


बस डरता था तो बिना कुछ 


किये निठल्ले मरने से मैं।


मैं वही भगत,वही सुभाष और 


वही अशफाक उल्लाह खान हूँ।


स्वतंत्र भारत का रहने वाला


मैं ही भारत की जान हूँ।


 


अब आतंकवाद की जड़ो ने 


जमकर पैर अपने पसारे थे।


न जाने कितने मासूम बच्चे,


और निरपराध भारतीय मारे थे।


उन सबके प्रतिशोध का ज्वालामुखी,


मैं शिव के तांडव की पहचान हूँ। 


आतंक के लिए काल का रूप,


मैं श्रीराम धनुष की तान हूँ।


स्वतंत्र भारत का रहने वाला,


मैं ही भारत की जान हूँ।


 


भेदभाव की जंजीरो को


अब तोड़ फेंकने आया हूँ,


आपसी सौहार्द और प्रेम भाव 


का पावन सन्देश लाया हूँ।


मैं इस बढ़ते हुए भारत के रथ


का केशव सारथि महान हूँ।


विश्वगुरु मेरे देश का 


मैं ही तो स्वाभिमान हूँ।


स्वतंत्र भारत का रहने वाला,


मैं ही भारत की जान हूँ।


 


गौरव सिंह घाणेराव


(अध्यापक,कवि,लेखक)


सुमेरपुर,राजस्थान


रश्मि लता मिश्रा

मैं हिंदुस्तानी


 


हिंदुस्तान मेरी जान,


 मेरी यही कहानी ।


फक्र मैं हिंदुस्तानी  


फक्र मैं हिंदुस्तानी।


 


ऊँचे पर्वत गहरी नदियाँ


बल खाता सागर है 


नदियों को कहते हैं माता 


पूजें पीपल जड़ है 


पावन गंगा माता का है ,


झर झर बहता पानी।


 फक्र में हिंदुस्तानी।


 


उत्तर ,दक्षिण, पूरब, पश्चिम 


मिलकर सारे एक हैं ।


एक बनाएं अपना भारत ,


सब के इरादे नेक हैं ।


 जात -पात और धर्म भेद की


हुई पुरानी कहानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


 सीमा पर तैनात हैं प्रहरी ।


अपनी आंख बिछाए।


 भारत माता को तड़पाने ।


गर कोई दुश्मन आये।


गांव घरों से निकल पड़ेंगे ।


बनकर हम बलिदानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


विश्व गुरु की राह चलाएं ।


भारत अपने प्यारे को ।


विश्व ताज सर पर रख वाएँ ।


भारत अपने न्यारेको ।


पूरी दुनिया के वतनो में


  भारत का नहीं सानी।


 फक्र मैं हिंदुस्तानी।।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


अभिजित त्रिपाठी

कहानी- पोस्ट ऑफिस


 


आज राजीव जी पोस्ट ऑफिस में ठंढ से कांपते हुए बैठे हैं। जनवरी का महीना चल रहा है और ठंढ बहुत ज्यादा पड़ रही है। आमतौर पर अब बहुत कम ही काम रहता है, किसी की चिट्ठी कभी आती ही नहीं। कभी कभार भूले बिसरे किसी की चिट्ठी आती है। राजीव जी दिन में ऑफिस में आते, देखते कोई चिट्ठी पहुंचानी है कि नहीं। जिस दिन उनके क्षेत्र में कोई चिट्ठी निकलती, उस दिन जाकर चिट्ठी दे आते, नहीं तो पूरा दिन ऑफिस में बैठकर सबके साथ आराम करते, गप्पबाजी होती।


आज एक चिट्ठी आई थी। चिट्ठी पर पता लिखा था जयनगर, एकदम किनारे का गांव। अब इतनी ठंढ में भला कौन इतनी दूर जाना चाहेगा। राजीव को बहुत गुस्सा आ रहा था। मन कर रहा था कि चिट्ठी को अभी फाड़कर फेंक दे। भला आज इतना मॉडर्न जमाना है, लोग मोबाइल में वीडियो कॉलिंग कर रहे हैं और ये पता नहीं कौन है, जिसने चिट्ठी लिखी है। 


लेकिन चिट्ठी पहुंचाना तो मजबूरी थी। इसलिए मजबूर होकर राजीव जी को चलना पड़ा। आज ठंढ बहुत ज्यादा थी और उसके अलावा धीरे धीरे बारिश भी हो रही थी। वो बाइक से एकदम धीरे धीरे जा रहे थे लेकिन तब भी बहुत ठंढ लग रही थी। उनको बहुत गुस्सा भी आ रहा था। बारिश होने के कारण ठंढ और ज्यादा लगने लगी थी। अचानक उनके दिमाग में एक ख्याल आया कि क्यों ना खुद ही रजिस्टर में लाइक कर दें कि चिट्ठी मिल गई और चिट्ठी पहुंचाने ना जाएं। वो एक चाय की दुकान पर रुके। फिर उन्होंने अपना थैला खोला और रजिस्टर निकाला। फिर उनके मन में विचार आया कि एक बार चिट्ठी पढ़ लूं, आखिर क्या लिखा है इसमें। राजीव जी ने लिफाफा खोला और चिट्ठी निकाली।


 


उन्होंने चिट्ठी पढ़नी शुरू की,,,


मेरी प्यारी, 


राधिका,,


 


कैसी हो ? मम्मी-पापा कैसे हैं? तुम मेरी चिंता मत करो मैं एकदम ठीक हूं। मैं समय से भोजन करता हूं और आराम भी करता हूं।


 


मुझे पता है कि तुम मुझसे बहुत नाराज़ हो। पिछले महीने मैंने आने का वादा किया था लेकिन आ नहीं सका। तुम्हारी चिट्ठी मिली थी। मुझे पता है कि तुम बहुत परेशान होती हो, तुमको मेरी चिंता रहती है, तुम मेरी आवाज़ सुनना चाहती हो, लेकिन क्या करूं? जब से कश्मीर में मेरी ड्यूटी लगी मैं कॉल नहीं कर पाता। यहां पर मोबाइल का नेटवर्क नहीं रहता है। हां चिट्ठी लिख सकता हूं लेकिन पोस्ट ऑफिस बहुत दूर है इसलिए महीने में एक बार ही चिट्ठियां भेजी जा सकती हैं। लेकिन तुम चिंता मत करो मैं एकदम ठीक हूं मुझे कुछ नहीं होगा।


 


वहां गांव में मौसम कैसा है? यहां पर तो बहुत ठंढ पड़ती है। गर जगह बर्फ जमी रहती है। हम लोग बर्फीली हवाओं के बीच बंकरों में बंदूक ताने खड़े रहते हैं। मैं ठंढ से बचने के लिए जैकेट पहने रहता हूं, क्यों कि मुझे पता है कि तुम मुझे डांटकर स्वेटर पहनाने नहीं आ सकती हो। यहां पर पूरा बंकर बर्फ से ढंक जाता है। बहुत ठंढ लगती है, कभी कभी तो हाथ पैर सुन्न पड़ जाते हैं, उंगलियां काम करना बंद कर देती हैं, लेकिन हम बंदूक ताने खड़े रहते हैं ताकी कोई दुश्मन हमारे देश की तरफ नजर उठा कर ना देख सके और हमारे देशवासी महफूज रहें।


 


पता है अक्सर बारिश भी होती रहती है। वैसी बारिश नहीं होती है, जैसी गांव में होती है। यहां पर पानी से ज्यादा बर्फ गिरती है। मुझे अक्सर याद आता है कि मैं बारिश में भीगने के लिए छत पर बाग जाता था और तुम मेरे पीछे पीछे छाता लेकर दौड़ती हुई आती थी। मुझे बहुत अच्छा लगता था जब तुम मेरे ऊपर छाता लगाकर मुझे डांटती हुई नीचे लाती थी। फिर तौलिए से मेरा सिर पोंछती और जब मैं शरीर पोंछकर कपड़े बदल लेता तो तुम मेरे लिए अदरक वाली चाय बनाकर लाती थी। 


 


मुझे तुम्हारी, गांव की सबकी बहुत याद आती है। तुमने चिट्ठी में लिखा था कि तुम मुझसे बहुत गुस्सा हो। मुझे तुम्हारी नाराजगी का कारण पता है। तुम्हारा गुस्सा होना जायज है लेकिन मैं क्या करूं?


मेरी मोहब्बत तुमसे जरा सी भी कम नहीं हुई है, मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं बल्कि उससे ज्यादा ही करता हूं। लेकिन मैं अपने वतन से भी प्यार करता हूं। 


 


राजीव जी इसके आगे पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा सके। उन्होंने तुरंत चिट्ठियां रखी और जयनगर की तरफ चल पड़े। ठंढी के दिनों की शाम थी, काफी अंधेरा हो चुका था। राजीव ने बाइक में लाइट ऑन कर दी। अब उनको जरा सी भी ठंढ नहीं लग रही थी। बारिश में भीगना भी उनको जरा सा भी बुरा नहीं लग रहा था।


 


उनको आज पता चला कि सच्चा इश्क क्या होता है। हमारे सैनिक भी सच्चा प्रेम करते हैं, उनकी मोहब्बत वही है, बस माशूक की जगह वतन की माटी ने ले ली है। प्रेम वही रहता है, वही बारिश, वही हवाएं, वही गीत,, बस महबूब बदलने पर इश्क के मायने बदल जाते हैं।


 


 


अभिजित त्रिपाठी


पूरे प्रेम, अमेठी,


उत्तर प्रदेश


विशाल चतुर्वेदी उमेश

शहीद होकर भी कभी ना मिटने दिया । 


हिन्दुस्तान की शान को ना झुकने दिया । 


हमेशा चलें शेरों की तरह , 


अपनी एक दहाड़ से दुश्मन को ना टिकने ने दिया ॥ 


 


चलें बांधे सिर पर कफन को । 


दें दिया सर्वस्व अपने वतन को । 


हिन्दुस्तान की मिट्टी के लालों ने दें दी जान,  


अपने लहू से सींचा है अपने चमन को ॥ 


 


कुर्बानी और शौर्य की गाथा हर पल अपने साथ लिऐ ।


भगत राज सुखदेव के सपनें हर पल अपने साथ लिऐ।


ना कभी झुके तिरंगा अपना , 


शहीद हुये मिट्टी की खुशबू अपने साथ लिऐ॥   


 


विशाल चतुर्वेदी उमेश


जबलपुर मध्य प्रदेश


ए.आर.साहिल

कहीं आग तो कहीं धुआँ है


 


मैं जब भी….


अपने शहर, अपने देश, अपने वतन,


अपने प्यारे वतन हिंदुस्तान को देखता हूँ,


तो मेरे जहन में एक ही सवाल आता है ….


जो मेरे दिल पर हथोड़े की तरह बरसता …


और मेरा दिल छलनी छलनी हो जाता है….!!


 


मैं अक्सर सोचा करता हूँ…


हमारे शहर, हमारे देश , हमारे वतन को …


हाँ हमारे प्यारे वतन हिन्दुस्तान को…


आखिर हुआ किया है….?


 


पूरब से लेकर पश्चिम तक …


कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक….


जहाँ भी देखो….


हर तरफ हर जगह…


कहीं आग तो कहीं धुआँ है…..


कहीं बमों का शोर तो कहीं गोली का धमाका है …


मर चुकी है इन्सानियत, जिन्दा सिर्फ हैवानियत का बोलबाला है….


और हमारे हिन्दुस्तान की जमीन…


मासूम बेगुनाह इन्सानो के खून से रंग चुकी है…


हर किसी की निगाहों में एक डर है…


हर कोई सहमा सहमा सा है…


जाने कब, कहाँ, किधर से गोली की बौछार हो जाये….


या कब बमों के धमाकों से आसमान गूँज उठे…


और एक बार फिर वही मंज़र दिखने लगे….


जहाँ भी देखो…


हर जगह हर तरफ….


कहीं आग तो कहीं धुआँ है….


आखिर हमारे हिन्दुस्तान को हुआ किया है ….!!


 


क्यों जल उठा है हमारा हिन्दुस्तान….


नफरतों की आग में….


धर्म मजहब व साम्प्रदायिकता की आग मैं…


जातिवाद व भाईवाद की आग में…


क्यों , आखिर क्यों जल रहा है हमारा हिन्दुस्तान…!!


 


ऐसे हिन्दुस्तान का ख्वाब तो नहीं देखा था…


हमारे पूर्वजों ने….


वीर क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानियों ने….


जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगा कर…


हमें गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया…


अपने प्यारे वतन हिंदुस्तान को आजाद कराया…!!


 


नहीं, ये हरगिज नहीं हो सकता…


जहाँ खून की होली खेली जाती हो….


इन्सानी लाशों से होलिका दहन होता हो….


खून के आंसुओं से दिवाली का दिया जलता हो…


जहां हैवानियत व हिंसा का नंगा नाच होता हो…


वो जगह वो शहर वो देश…


शांति व अहिंसा के पुजारी….


हमारे बापू महात्मा गांधी का देश नहीं हो सकता…!!


 


हमारा प्यारा वतन हिन्दुस्तान ऐसा नहीं हो सकता….


तो फिर क्यों…


हर कोई ये सब बर्दाश्त कर रहा है…!!


 


कोई कुछ बोलता क्यों नहीं…


क्यों हर कोई चुप है, डरा है, सहमा-सहमा सा है…


आखिर हमारे हिन्दुस्तान को हुआ किया है…


कहीं आग तो कहीं धुआँ धुआँ है….!!


 


©ए.आर.साहिल (सहरसा, बिहार)


मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

हे भारत माता 


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हे भारत माता तेरा अभिनन्दन 


तेरी मिट्टी का कण-कण चन्दन 


 


चाहूँ तेरे चप्पे-चप्पे में हो उजियारा 


दूध-दही की बहती रहे सदा नदी धारा 


 


यहाँ के नेताओं को मिले सद्बुद्धि 


विधर्मियों की हो जाये बस शुद्धि 


 


कोई जन न कर पाये कभी क्रंदन 


हे भारत माता तेरा अभिनन्दन 


 


आतंकवाद-नक्सलवाद मिट जाये 


राष्ट्रप्रेम का गीत घर-घर गाया जाये 


 


मंदिर-मस्जिद में न हो कभी लड़ाई 


हिंदू-मुस्लिम बनकर रहें यहाँ भाई-भाई 


 


झूठ, कपट, छल, द्वेष का हो खंडन


हे भारत माता तेरा अभिनन्दन 


 


सुभाष, भगत, बिस्मिल का स्वप्न हो साकार 


दीन-दुखी, निबल-बिकल रहे न कोई लाचार 


 


- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 


ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर, 


फतेहाबाद, आगरा, 283111


विजय मेंहदी

ऐ  मेरे वतन के लोगों,


                      तुम खूब लगा लो नारा 


ये प्रण होगा हम सब का,


                   चीनी सामान से करें किनारा


यह मत भूलो गलवान में,


                   वीरों ने हैं प्राण गँवाए


कुछ याद उन्हें भी कर लो,


                 जो लौट के घर ना आये।-2


_______________________________


ए मेरे वतन के लोगों,


                 जरा आँख में भर लो पानी। जो शहीद हुए हैं उनकी,


                    जरा याद करो कुर्बानी।


____________________________(2)


 


जब पागल हुआ चीनी ड्रैगन,


                       किया कृत्य बड़ा उन्मादी 


शान्ति-अमन की बात किया वो,


                      फिर कर दिया धोखेबाजी 


गिरगिट की तरा- रंग बदल कर,


                      ड्रैगन है किया नादानी


 जो कृत्य किया है चीनी ड्रैगन,


                  उनकी याद रखो कारिस्तानी


जब देश लड़ रहा था कोरोना से,


                    वो बुन रहे थे चालसाजी


 


धोंखे से निहत्थे वीरों पर,


                     कर दिये वो पत्थर बाजी 


थे धन्य शैतान वो चीनी,


                     थी धन्य उनकी शैतानी 


जो कुकृत्य किये हैं उसने,


                    जरा याद रखो कारिस्तानी


कोई सिख कोई यूपीवासी,


                     तेरह वीर बिहार के वासी


शरहद पर मरने वाला,-2


                     हर वीर था भारतवासी।


जो खून गिरा पर्वत पर,


                     वो खून था हिन्दुस्तानी 


जो शहीद हुए हैं बीसों,


                    उनकी बीस रही है जवानी 


थी खून से लथपथ काया,


                    फिर भी वे ना घबराते दो-दो के औसतन मारा,


                    फिर गिर गये होश गवांके।


जब अन्त समय आया तो,-2


                   कह गये कि हम मरते हैं।


ड्रैगन पे भरोसा ना करना,-2


                   वो धोखा ही करते हैं।-2


 


 क्या लोग थे वे दीवाने,


                  क्या लोग थे वे अभिमानी 


जो शहीद हुए हैं उनकी,


                    जरा याद करो कुर्बानी


तूम भूल न जाना उनको,


                    इस लिए लिखे ए कहानी।


जो शहीद हुए हैं उनकी,


                     जरा याद करो कुर्बानी।


जय हिंद,जय हिन्द,जय हिन्द,जय हिंद की सेना।----------


 


"Vijay Mehandi" (AT


राजहंस मिश्र

हे मातृ तुल्य,हे सर्वश्रेष्ठ, 


हे राष्ट्र तुम्हारी जय होवे।


हम जीवन का क्षण-क्षण दें दें न कभी तुम्हारी क्षय होवे।।


 


हे मातृ भूमि, हे पूज्य भूमि,


मस्तक पर ऐसे राजो तुम।


ज्यों स्वर्ण मुकुट हो राजा का 


इस मूढ़ पे ऐसे साजो तुम।


 


हैं कर्जदार हम सब तेरे....।


तेरा तुझको सब अर्पण है।।


यदि राष्ट्र हेतु जीवन आये


तो प्राणों का भी तर्पण है।।


 


हे सिंह सदा तुम सिंह रहो....


ना झुको ....प्रसिद्धि नित नय होवे।


हे मातृ तुल्य, हे सर्वश्रेष्ठ,


हे राष्ट्र तुम्हारी जय होवे।।


 


नाम:-राजहंस मिश्र


दीपा परिहार दीप्ति

तिरंगा राष्ट्र का तो मान है|


वतन पर मर मिटा जाना शान है |


 


सपूतों की बदौलत पाया इसे


ये मातृभूमि वीरों की खान है |


 


करो या फिर मरो नारा दिया


ये आजादी दिला दूं दी जान है |


 


मरे थे वे बचाने निज देश को


बचाई भारती की जो आन है|


 


नशे से देश जब होगा मुक्त तो


बिखेरेगें सुरों की तब तान है |


 


लडे़ रणवीर भारत खातिर सदा


वो केसरिया ही पहना परिधान है |


 


सभी दीपा दिखे स्वतंत्र यहाँ


तभी भारत यहाँ लगता महान है |


 


दीपा परिहार दीप्ति


जोधपुर (राज)


अतुल पाठक धैर्य

मना रहे स्वतंत्रता दिवस 


______________________


 


मना रहे स्वतंत्रता दिवस हम खुश हो झंडा फहराते हैं,


याद शहीदों की कर-कर के गीत ख़ुशी के गाते हैं।


 


याद करो चरखे वाले को कैसी अजब कताई की,


तोप-तमंचे नहीं चलाए सत्याग्रही लड़ाई की।


 


याद भगत सिंह को भी करलो इंकलाब नहीं भूला था, 


स्वतंत्रता के लिए वीर फाँसी पर झूला-झूला था।


 


दुर्गावती रूप दुर्गे का रख भारत में आई थी,


युद्ध क्षेत्र में रण चण्डी वन मारा-मार मचाई थी।


 


महाराणा ने देश की खातिर अपनी जान गँवाई थी,


जंगल-जंगल भटक-भटक कर घास की रोटी खाई थी।


 


याद शिवाजी को भी करलो चतुराई का चोला था,


मुगलों की ताकत को जिसने तलवारों पे तौला था।


 


याद करो लक्ष्मीबाई को मरने तक ना भूली थी,


अंग्रेजों को झाँसी देना हरगिज़ नहीं कबूली थी।


 


आओ मिलकर याद करें अब उस सेनापति बोस को,


दुनियाभर की कोई ताकत रोक सकी न जोश को।


 


मना रहे स्वतंत्रता दिवस हम खुश हो झंडा फहराते हैं,


याद शहीदों की कर-कर के गीत ख़ुशी के गाते हैं।


 


@अतुल पाठक धैर्य


जनपद हाथरस(उ.प्र.)


मोब-7253099710


विभा रानी श्रीवास्तव

स्व स्वतंत्रता : एक दृष्टिकोण


 


शाखें कट भी गईं तो ठूंठ से कोपल निकलते देखा है,


हाँ! अपने देश में दमन-दलदल से भी संभलते देखा है।


 


समकोटीय यशस्वी मंदिर मस्जिद गिरजा और गुरुद्वारा,


जी! अधिकारों संग दायित्व सिखाए ऐसा संविधान हमारा।


 


बरौनी थर्मल जर्जर स्थिति में था। सन् 2014 जून की बात है। मेरे पति बरौनी थर्मल पावर के महाप्रबंधक थे । उन्हें पटना हेडक्वार्टर में मीटिंग के लिए पहुँचना था। बरौनी से पटना आने में निजी सवारी से दो-ढ़ाई घण्टे का सफर है। बरौनी से हमलोग 5 बजे सुबह निकल गए कि अगर रास्ते में कुछ व्यवधान भी मिला तो 9 बजे तक पटना पहुँच जायेंगे। कुछ देर आराम कर भी हेडक्वार्टर मीटिंग में जाना आसान होगा। सुबह के 10 बजे से मीटिंग थी। हमलोगों की सवारी लगभग सवा आठ (8:15) बजे पटना में प्रवेश कर गई। आधे घण्टे की दूरी के पहले ट्रक, बस, कार की लंबी लाइन या यों कहें जाम से हमारा वास्ता पड़ा और थोड़ी देर में ही यह स्थिति हो गयी कि हमारी गाड़ी हिलने की स्थिति में नहीं रह गई। उस जाम में हमारी गाड़ी शाम के 4 बजे तक उसी तरह भीड़ में फँसी रही।


हाजीपुर और पटना को जोड़ने वाले पुल पर लगने वाला जाम कभी किसी के मृत्यु का कारण, तो कभी किसी की शादी का शुभ लग्न बीत जाने का कारण तो कभी किसी के परीक्षा छूट जाने का कारण बनता है। आखिर यह जाम क्यों लगता है..? लोकतंत्र में अधिकार सभी को चाहिए लेकिन धैर्य से कर्त्तव्य निभाने में अक्सर चूक जातें हैं। चूक जाने की यह आदत-संस्कार किस तरह की परवरिश-परिवेश में पनपता होगा? कुछ तो शिक्षा भी आधार होता होगा। सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों को शिक्षा देने की स्वतंत्रता कहाँ होती है..। वे तो शायद बंधुआ मजदूर होते हैं...।


–जनगणना करवाना हो तो शिक्षक.., घर-घर जाकर मतदान पर्ची बाँटना हो तो शिक्षक, ( मतदाताओं का शिक्षक के साथ बदसलूकी से बात करना जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर महिला है तो बिस्तर पर आने का प्रस्ताव देना..,


–कभी-कभी तो शिक्षक को मतदाताओं के द्वारा भिखारी समझ कुछ सिक्के अपने बच्चों के द्वारा दिला देते हैं।) मतदान पेटी उठानी हो तो शिक्षक..


 


–खुले में शौच करनेवालों का निगरानी करना,और उनकी तस्वीर खींच अपने उच्च अधिकारी को भेजना। तस्वीर खिंचते या निगरानी करते पकडे जाने पर आमलोगों से खुद की जमकर मरम्मत करवाना।


और तस्वीरे न भेजने पर अपना वेतन बंद हो जाने का डर  सताना।


 –विद्यालय में नामांकन के समय विद्यालय के आसपास के मुहल्लों के घरों में जा-जा कर अभिभावकों के आगे बच्चों के नामांकन के लिए गिड़गिड़ाना।


–शिक्षक को अपने ही वेतन के लिए चार-चार ,पाँच-पाँच महीने इंतजार करना।


–इस भयावह कोरोना काल में सभी को घर में रहने के लिए लॉकडाउन में रखने के लिए सभी तरह से प्रयास किये गए और शिक्षकों को कोरोनटाइन सेंटर में कार्य पर लगाया गया। प्रवासियों के आने पर डॉक्टर से पहले स्टेशन पर शिक्षकों के द्वारा स्क्रिनिग करवाना। जनवितरण के दुकान में बैठकर करोनाकाल में भीड़ वाली जगह में अनाज वितरण करवाना.. उफ्फ्फ..


 


*शर्म भी शर्मसार है..।*


 


हमें खुली हवा में साँस लेने की आज़ादी चाहिए तो वातावरण में ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन फैलता रहे इसकी कोशिश लगातार करनी चाहिए। जो ऐसा नहीं कर पाते हैं उनसे धरा को आज़ादी मिलनी चाहिए।


 


मुझे मेरे बचपन में देशप्रेम बहुत समझ में नहीं आता था। आजाद देश में पैदा हुई थी और सारे नाज नखरे आसानी से पूरे हो जाते थे। लेकिन मेरी जीवनी


 


'हम चिंता नहीं करते किसी की, जब खिलखिलाते हैं।


ज़मीर अपनी-आईना अपना, नजरें खुद से मिलाते हैं।।'


 


और झंडोतोलन हमेशा से पसंदीदा रहा। स्वतंत्रता दिवस के पच्चीसवें वर्षगांठ पर पूरे शहर को सजाया गया था। तब हम सहरसा में रहते थे। दर्जनों मोमबत्ती , सैकड़ों दीप लेकर रात में विद्यालय पहुँचना और पूरे विद्यालय को जगमग करने में सहयोगी बनना आज भी याद है। 50 वीं वर्षगाँठ पर कुछ अरमान अधूरे रह गए जिन्हें 75 वीं वर्षगाँठ पर पुनः उस पल को जी लेने की इच्छा बनी हुई है।


 


सन् 2011-2012 की बात है । रामनवमी चल रहा था । अष्टमी या नवमी के दिन मैं मेरा बेटा और मेरी पड़ोसन शहनाज़ तथा उनकी दोनों बेटियाँ घर के पास ही बने पंडाल में मूर्ति और सजावट देखने के ध्येय से पहुँच गए। रात्रि के लगभग दस बज रहा होगा। जब हमलोग पंडाल के पास पहुँचकर दर्शन कर रहे थे तो कुछ पुलिस कर्मी आकर हमलोगों को हट जाने के लिए कहा।


"क्यों ? हम क्यों हट जाएँ हमें आये तो मिनट भी नहीं गुजरा है।" मैं पूछी


"मुख्यमंत्री आने वाले हैं उनके आने के पहले भीड़ हटा दिया जाना नियम है।" एक पुलिस ने कहा।


"क्या यहाँ मुख्यमंत्री का ऑफिस है या किसी कार्य हेतु..,"


"दर्शन करने आने वाले हैं।"


"तो दर्शनार्थियों की तरह पँक्ति में लगें या गाड़ी में बैठ प्रतीक्षा करें हमारे दर्शन कर हट जाने की।"


"यह आप ठीक नहीं कर रही हैं..,"


"धमकी दे रहे हैं क्या कोई धारा लगता है ? मुख्यमंत्री को बता दीजिएगा , वो जो पूरे लावलश्कर के साथ दस गाड़ियों एम्बुलेंस के साथ निकलते हैं और सड़कों पर चलने वाली जनता को थमा देते हैं। ऑटो बस में सवारी करने वाली लड़की महिला देर से जो आना-जाना गन्तव्य स्थल पर देर से पहुँचती है और व्यंग्य सहती है। जी भर गाली देती है। मतदान के समय जो पैदल चलकर घर-घर घूमते हैं और जीत के बाद शहंशाह बन जाते हैं उनसे आज़ादी की चाहत रखती है जनता।" हमलोग पूरा दर्शन कर ही हटे।


 


'स्व स्वतंत्रता की रक्षा स्व अधिकार भी स्व दायित्व भी'


: सबको अपनी स्थिति तब विकट लगने लगती है जब जंग लड़ने की क्षमता खुद में कम हो और दोषारोपण की आदत बन जाये.. :


 


  *जय हिन्द*


 


विभा रानी श्रीवास्तव


- डाक पता


डॉ. अरूण कुमार श्रीवास्तव


104–मंत्र भारती अपार्टमेंट


रुकनपुरा , बेली रोड


पटना -बिहार *(वर्त्तमान में कैलिफोर्निया-अमेरिका)*


पिनकोड–800014


फ़ोन नम्बर –9162420798


सविता मिश्रा

कहीं रेगिस्तान है, तो कहीं पठार,


कहीं धूप है, तो कहीं छांव l1l


 


अतिथि देवो भवः है परम्परा ,


निभाते भी है हम अपनी परम्परा l2l


 


गौतम, नानक, अम्बेडकर, गाँधी, नेहरू, कलाम की है जन्म स्थली,


रानी लक्ष्मी बाई,दुर्गावती जैसी अनेकों वीरांगनाओं की भी है जन्मस्थली l3l


 


जननी-जन्मभूमि है बढ़कर स्वर्ग से ,


हर हिंदुस्तानी माने अपने दिल से l4l


 


धरती है सुनहरी जहां की,अम्बर है नीला जहां का


है वो देश रंगीला जहां का l5l


 


जिसकी है एक माता,


कहते हैं हम सभी भारतमाता l6l


 


जन - गण - मन है राष्ट्रीय गान,


गाकर बढ़ाते हैं इसका मान - सम्मान l7l


 


वन्देमातरम है हमारा राष्ट्रीय गीत,


बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था हमारा राष्ट्रीय गीत l8l


 


सभ्यता और संस्कृति है जिसकी पहचान,


धर्म और आस्था है जिसकी जान l9l


 


जिसकी धरती पर रहते हिन्दू - मुस्लिम- सिख - ईसाई,


लेकिन है सभी भाई- भाई l10l


 


भिन्न - भिन्न है, भाषाएँ, भिन्न भिन्न है बोली,


फिर भी सब की है एक ही बोली l11l


 


मेरा देश है महान,


करे हम सभी यही बस एक गुणगान l12l


 


अनेकता में एकता जिसकी है पहचान,


 है मेरा हिन्दुस्तान........ है मेरा हिन्दुस्तान l13l


 


है मेरा देश, 


है मेरा भारत देश l14l


 


 - सविता मिश्रा


 (शिक्षिका, समाजसेविका और कवियत्री )


पता - वाराणसी, उत्तर प्रदेश


आलोक कुमार यादव

गर्व मुझे अपनी धरती पर,


सबसे प्यारा हिंदुस्तान।


मातृभूमि की रक्षा के हित,


जीवन हो जाए बलिदान।।


 


जीवन हो जाए बलिदान,


बाकी न रहे कोई भी ग़म।


वीरों की यह धरती भारत,


रुकें न अपने कभी कदम।।


 


कितने वीरों ने इसके हित,


अपना रक्त बहाया है।


भारत माँ की रक्षा के हित,


निज कर में तेग उठाया है ।।


 


वीर सपूतों ने भारत के,


दुश्मन पर जब वार किया।


शीश लोटने लगे धरा पर,


जब अरि का संहार किया।


 


राणा लक्ष्मीबाई ने भी,


तलवारों से प्यार किया।


'आलोक' देश रक्षा हित में,


दुश्मन का संहार किया।।


 


 स्वतंत्रता दिवस हम सभी 


मिलकर आज मनाते हैं। 


भारत माता के गौरव का


एक प्यारा गीत गाते हैं ।।


 


 सबसे प्यारा भारत अपना


 इसका सब गुणगान करें। 


  भारत माँ की रक्षा खातिर


 निज हित का बलिदान करें।।


 


आलोक कुमार यादव


असिस्टेंट प्रोफ़ेसर


हेमवती नंदन बहुगुणा 


केंद्रीय विश्वविद्यालय 


उत्तराखंड


श्री बी. एन . केपटन

सुन्दर प्यारा देश हमारा 


लगता है, हम सब प्यारा 


सुन्दर ................. 


 


सत्य, अहिंसा, अमन चैन का


घर घर मे , गूनजे यह नारा। 


सुन्दर.............. 


 


आजादी के महायज्ञ मे बलिदान किया 


वीर सपूतो ने अपना तन मन सारा।


सुन्दर........./ 


 


गान्धी , नेहरू वीर भगत सिंह , 


इनके सपनो का देश हमारा।


सुन्दर ............ 


 


हिन्दू, मुस्लिम , सिख ईसाई 


सबके हे अभिमान का तारा। 


सुन्दर ......... 


 


धर्म , जाति भाषा के फूलो से 


महक रहा है , देश ये सारा। 


सुन्दर प्यारा ......... 


 


सुन्दर प्यारा देश हमारा   


लगता है , हम सब को पयारा। 


 


आदरणीय श्री बी. एन . केपटन जी को सादर प्रस्तुत ।


मदन मोहन शर्मा सजल

स्वतंत्रता की बलिवेदी पर


जिसने भी जान गंवाई है


अंग्रेजी शासन से मुक्ति


हर भारतवासी पाई है।


 


राजा और महाराजाओं सबने


जम कर लूटा जनता को,


अंग्रेजी गोरों की हुकूमत


दास बनाया जनता को।


 


दो सौ साल गुलामी सहकर


अंगड़ाई ली जनता ने,


मुक्ति मिले अत्याचारों से


किया फैसला जनता ने।


 


सन सत्तावन से बिगुल बजा


और रक्त बहाया वीरों ने,


बांध कफ़न सिर पर लोगों ने


गर्दन काटी शमशीरों ने।


 


लाल रक्त की बहती नदियां


नींद नही थी आंखों में,


इंकलाब के गूँजे नारे


गली गली चौराहों में।


 


कितने ही युवा गोली खाये


कितने ही फांसी भेंट चढ़े,


अनगिन जेलों काल कोठरी,


कितने ही शूली आन चढ़े।


 


भगतसिंह, सुखदेव, गुरु ने


नाकों चने चबा चबाये थे,


सुभाष चन्द्र ने बना फौज


दुश्मन के गले दबाये थे।


 


अंग्रेजी फौजें थर्राई


वीरों की बलिदानी से,


तब जाकर आजादी पाई


अंग्रेजों की गुलामी से।


 


महापर्व आजादी का यह


याद दिलाता कुर्बानी,


सुने सुनाए गाथा वीरों की


भावी पीढ़ी अपनी जुबानी।


 


देश रहेगा हम भी रहेंगे


इसकी रक्षा भार उठाये,


तन मन वारें शीश झुकाए


मिलकर सारे कदम बढ़ाये।


 


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


पता - 12-G-17, बॉम्बे योजना, आर0 के0 पुरम, 


कोटा (राजस्थान) 


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