सीमा शुक्ला

भारत मां के वीर सपूतों,


तेरी जय जयकार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


भूलेगा क्या देश शिवाजी


तेरी अमित कहानी को।


निकल पड़ी जो समर भूमि में


झांसी वाली रानी को।


राज गुरु, सुखदेव, भगत की,


उस कुर्बान जवानी को।


जय सुभाष, आज़ाद गर्व है


तुम पर हिन्दुस्तानी को।


 


दिया शहीदों ने आज़ादी,


का हमको उपहार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


भारत मां आजाद कराए,


जकड़ी थीं जंजीरों में।


कहां लिखा है कफ़न तिरंगा


जन जन की तकदीरों में।


धन्य तुम्हारा जन्म धरा पर,


धन्य तुम्हारी माता है ।


भारत मां का क़र्ज़ तुम्हारे,


जैसा कौन चुकाता है ।


 


सीमा की वह लिखें लड़ाई,


घाटी की चीत्कार लिखें।


लिखें तुम्हारे बलिदानों को,


भारत मां से प्यार लिखें।


 


जो हंसकर के खाई तुमने


सीने की गोली लिख दें।


मरते मरते बोल गए तुम,


इन्कलाब बोली लिख दें।


जब खेले तुम रक्त बहाकर,


सीमा पर होली लिख दें।


चली प्राण की देने आहुति,


वीरों की टोली लिख दें।


 


नमन तुम्हारा कोटि कोटि है,


वंदन बारम्बार लिखें ।


भारत मां के वीर सपूतों,


तेरी जय जयकार लिखें।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


विजय कुमार सक्सेना विजय

खूब मनाओ जश्न आज तुम, 


आजादी का दिन आया।


गाँव नगर हर गली गली में, 


आज तिरंगा फहराया।।


 


भूल न जाना कभी गुलामी, 


की उन काली रातों को।


कुचल दिया जुल्मी शासन ने,


वीरों के जज्बातों को।


जोरावर और फतेह सिंह को,


दीवारों में चुनवाया।


गाँव नगर हर गली गली-----


 


याद करो तुम मंगल पांडे,


याद करो रानी झांसी।


याद करो उन वीरों की जो,


हँस कर के झूले फांसी।


धन्य भूमि वो जहाँ पे ऐसे,


वीरों ने जीवन पाया।


गाँव नगर हर गली गली-----


 


राजगुरु,सुखदेव,भगतसिंह,


अरु सुभाष से बलिदानी।


मातृभूमि के लिये जिन्होंने,


दे दी अपनी कुर्बानी।


धन्य हो गयी धरा हिन्द की,


जब यह परचम फहराया।


गाँव नगर हर गली गली-----


 


विजय कुमार सक्सेना "विजय"


सुषमा दिक्षित शुक्ला

ये मातृ भूमि का वन्दन है 


 


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है । 


हम सब तेरे रखवाले मां,


ये माँ बच्चों का बंधन है।


 ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनन्दन है ।


तेरी आन न जाने पाये ,


तुझपे जान लुटा देंगे ।


तेरे चरणों में लाकर के ,


शत्रू शीश झुका देंगे ।


ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनंदन है ।


हम सब तेरे रखवाले मां,


 ये मां बच्चों का बंधन है ।


चंदन जैसी तेरी ममता ,


 है रखनी तेरी शान हमें ।


अगर जरूरत पड़ी वक्त पर,


 न्योछावर है प्रान तुम्हें ।


ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनंदन है।


 हम सब तेरे रखवाले ,


मां ये मां बच्चों का बंधन है ।


मां तेरा क्रंदन असहनीय ,


ऐ! मातृभूमि तू प्यारी है ।


हम तेरे प्यारे बालक हैं,


 तू हम सब की फुलवारी है ।


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है ।


हम सब तेरे रखवाले मां ,


ये माँ बच्चों का बंधन है ।


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


प्रज्ञा जैमिनी स्वर्णिमा

अंग्रेजी शासन से तो मिल गई आज़ादी 


लेकिन असली आजादी मिलेगी कब?


 


गरीबी, भूख,बेरोजगारी का


छाया है चहुँ ओर अंधेरा 


रोटी, कपड़ा और मकान की 


बुनियादी ज़रूरतें पूरी होंगी कब?


 


हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई 


सभी धर्मावलंबी हैं रहते यहाँ 


धर्म निरपेक्ष देश होने के बावजूद 


एक देश, एक कानून मानेंगे कब?


 


मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा 


सभी इमारतों में है मिट्टी- गारा


है ईश्वर, खुदा,यीशू सब मन में ही 


मानवता/ इंसानियत को ये धर्म मानेंगे कब?


 


शिक्षा, सभ्यता,संस्कृति का था जो गढ़ 


उसकी आधी जनता है,अभी भी अनपढ़ 


शिक्षा, रोजगार के असमान अवसरों से


आरक्षण का रोष दूर होगा कब?


 


संविधान में ही है कहा गया


धर्म, जाति, लिंग का होगा नहीं भेदभाव 


माना भी गया लड़का-लड़की एकसमान 


फिर कन्या भ्रूण हत्या रुकेगी कब?


 


प्रादेशिक भाषाओं की है बहुलता यहाँ 


अंग्रेजी भाषा की महत्ता भी समझते यहाँ 


भाषाओं के बढ़ते द्वंद्व में 


'भारत' को अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी मिलेगी कब?


 


स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था


'वसुधैव कुटुंबकम् ' का सपना


सभी धर्मावलंबी चाहें बस!हित अपना


आखिरकार भारतीयता की भावना पनपेगी कब?


 


-प्रज्ञा जैमिनी 'स्वर्णिमा ',दिल्ली


अवधेश कुमार वर्मा कुमार

क्या है देशप्रेम?


कभी सोचा!कभी कोशिश की


अन्तर्मन में समझने की?


देशप्रेम का मतलब


क्यों लगाते हैं हम 


मात्र सैनिकों से!


सीमा पर डटे जवानों से?


क्या हमारा कोई फर्ज नही ?


वास्तव मे हमारी दृष्टि 


नही है सही।


अरे!


हम सभी है देशभक्त,


दिखा सकते हैं 


सच्चा राष्ट्रप्रेम !


बना सकते हैं 


देश को महान,


विश्व का सिरमौर।


हमारे धर्म,जाति,लिंग 


भले हो अलग।


अमीर-गरीब,शिक्षित-अशिक्षित


का दंभ छोड़,


दिखायें देशभक्ति


अपने सत्कर्मों से।


भ्रष्टाचारी कौन है?


कौन है उपद्रवी,बेईमान?


कौन है कानूनों को तोड़ने वाला,


देश को गन्दा करने वाला ?


मजहब के नाम पर धन्धा


करने वाला ?


हम ही हैं,हम सब हैं,


कहीं ना कहीं


उसके जिम्मेदार।


आओ हम करें बदलाव


जहाँ हैं ,जिस पद पर हैं।


शासक,प्रशासक,नेता,व्यापारी, शिक्षक,धर्मज्ञ,छात्र,किसान,


या फिर अदना इंसान।


निःस्वार्थ करे आह्वान


खत्म हो दूषित मानसिकता,


करे स्वच्छ वातावरण का निर्माण।


तभी होगा सच


स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत


का सपना,


होगा यह भी राष्ट्रप्रेम,


तभी बनेगा 'भारत'


फिर विश्व का सिरमौर !!


 


-अवधेश कुमार वर्मा 'कुमार'©®


    महराजगंज {उ0प्र0}।


श्रीमती सुशीला शर्मा

दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है (2)


तीन तलाक हटा कर 


मुस्लिम बहनों को बचाया है ।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


सत्तर साल के संविधान में 


नया कानून बनाया है 


हटा के तीन सौ सत्तर धारा 


कश्मीर आजाद कराया है।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


 पुलवामा का लेकर बदला 


सर्जिकल करवाया है 


धूल चटाकर दुश्मन को


अभिमन्यु को बुलवाया है ।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


अमन चैन कश्मीर में छाया 


लोकतंत्र वहाँ आया है 


लेह को किया स्वतंत्र उसे भी 


केन्द्र शासित करवाया है।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


हिम्मत है तो मुमकिन है के 


नारे घर-घर गूँजे हैं


हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई 


भाई बनकर रहते हैं।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने


इतिहास रचाया है ।


 


विश्व विजेता भारत का 


परचम जग में फहराया है 


सिंह की तरह दहाड़ लगा 


दुश्मन को दूर भगाया है ।


 


दो हजार उन्नीस से भारत ने 


इतिहास रचाया है ।


 


रामराज्य की हुई स्थापना 


रावण मारे जाएँगे 


लक्ष्मण रेखा गर लाँघी 


तो दुश्मन भस्म हो जाएँगे।


 


दो हजार अब बीस जो आया 


करली सब तैयारी है 


विश्व विजेता है ये भारत 


सौ दुश्मन पर भारी है ।


 


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श्रीमती सुशीला शर्मा 64-65 


विवेक विहार 


न्यू सांगानेर रोड, सोडाला 


जयपुर 302019 


मो. 9214056681


मान सिंह मनहर

बलिदानियों के शीश का है ताज तिरंगा।


लहरा रहा है उनके दम पे आज तिरंगा।।


 


हर रंग एक कहानी नई करता है बयाँ,


सीने में छुपाए है कितने राज तिरंगा।


 


खेली थी जान पर वो,मगर हार न मानी,


झाँसी की वीर सिंहनी की लाज तिरंगा।


 


चोला बसंती पहन जो शहीद हो गए,


करता है शहादत पे उनकी नाज तिरंगा।


 


करता रहूँ गुणगान अपनी मातृ भूमि का,


'मनहर' के दिल पे करता रहे राज तिरंगा।


 


मान सिंह 'मनहर'


शोभा गोयल

आया है स्वतंत्रता दिवस 


झूम उठा हैं भारत दिवस


 


जब जब तिरंगा लहर लहराएँ


भारत माता मंद मंद मुस्कराएँ


गुंजन करते पेड़ों पर गगनचर


सिंदूरी प्रभा से आसमां जगमगाएँ


 


सिंदूरी रंग से मन मयूर हर्षाए


सफेद रंग वातावरण सादगी महकाएँ


उदय होता प्रभाकर का नजारा


हरित रंग से धरा की हरियाली लहराएँ


 


आन मान तिरंगा अपना सम्मान है


बीच चक्र भारत माता की शान हैं


भारत वर्ष की स्वतंत्रता महान हैं


विश्व में इसका उच्चतम स्थान है


 


ले जनकल्याण की मशाल


ले संकल्प हम आज


हम सबको आगे जाना हैं


इस देश का मान बढ़ाना हैं


 


विश्व पटल पर लिखे नयी कहानी


भारत देश बने जन कल्याणकारी


यह हैं हर भारतवासी की जिम्मेदारी


शीर्ष पर रहे हमेशा हम हिदुस्तानी


 


शोभा गोयल


जयपुर


मो.-9571220372


शुचिता अग्रवाल शुचिसंदीप

एक है भारत एक तिरंगा फहराएं,


जोश से जन गण मन भारतवासी गाएं,


कण-कण केशरिया मिट्टी का दिखता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


धरती अम्बर पर्वत सागर झूम रहे,


लिए पताका नन्हे मुन्ने घूम रहे,


नवभारत का उदय हुआ सा  लगता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


माँ का आँचल आज खुशी से लहराया,


काश्मीर में झंडा माँ का फहराया,


खिसियाया आतंकी दर-दर फिरता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


बड़ी सफलताओं का युग अब आया है,


वतन विश्व से कदम मिला चल पाया है,


चन्द्रयान यूँ नभ पर आज दमकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


मनसूबे दुश्मन के पूरे ना होंगे,


अभिनंदन सम रोड़े सारे तोड़ेंगे,


राष्ट्रप्रेम जन-जन में खूब झलकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


वतन बिका ना बिकने ही अब हम देंगे,


आँख दिखाते दुश्मन का सिर काटेंगे,


'शुचिता' मस्तक माँ चरणों में झुकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"


तिनसुकिया, असम


सुमित आर दास

चलो याद करे भारत कैसे आजाद हुआ


 


चलो आज मिल कर याद करे कैसे भारत देश आजाद हुआ


किसने छाती पे गोली खाई किसके साथ विशवासघात हुआ


कितने वीर सपूतों ने माँ भारती के लिए न्योछावर प्राण किये


और जाने कौन था जिस के कारण जाँलियावाला बाग हुआ


 


आज पूछो अपने अध्यापक से मंगल पांडे क्यों शहीद हुआ


ऎसा क्या था नेताजी में जिस से हिटलर उन का मुरीद हुआ


जानो काकोरी के अशफकुल्ला और रामप्रसाद बिस्मिल को


और पूछो चौहान से गौरी का कितनी बार मिट्टी पलीद हुआ


 


इतिहास के पन्ने पलटो और जानो डायर का क्या हाल हुआ


कैसे कोंधाना में उदय भान का‌ तान्हा जी नामक काल हुआ


नमन करो‌ उन सिखों ‌को जो अकेले सवा लाख पर भारी थे


पढो गोरा बादल के चलते राणा का बाँका एक न बाल हुआ


 


लाल स्याही से लिख‌ दो सूर्य सेन पर कितना अत्याचार हुआ


पता करो चंद्र शेखर आजाद‌‌ किस के धोखे‌ का शिकार हुआ


पीठ‌ पर बच्चे को बाँध कैसे रानी लक्ष्मी बाई ने था युद्ध लड़ा


और जाने खुदीराम‌‌ बोस को जिसको आजादी से प्यार हुआ


 


ऎसे कितने ही वीर है जिस के कारण भारत देश महान हुआ


आजादी के इस पावन यज्ञ में न जाने कितना बलिदान हुआ


हाथ जोङ के आज हर स्वतंत्रता सेनानी को तुम प्रणाम करो


आज के दिन विश्व पटल पर आजाद भारत का सम्मान हुआ


 


- सुमित आर दास


  कहुआ , बिहार


  9874671212


उमेश श्रीवास सरल

हे भारत के परमवीर,


मेरे वतन के शूरवीर।


तुम्ही से देश में अमन है,


शत्-शत् तुमको नमन् है।।


================


अपनी जाँ हथेली में लेकर,


अपना सर्वस्व आहूति देकर।


तुमने सर पर बांधे कफ़न है,


शत्-शत् तुमको नमन् है।।


=================


माँ-बहन,पत्नी और बच्चे,


मोह त्यागे तुम्ही वीर सच्चे।


 दुश्मनों का किया दमन है,


शत्-शत् तुमको नमन् है।।


=================


छोंड़कर अपने सब सुखचैन,


सीनातान लड़ते हो सुपरमैन।


ऋणी तुम्हारा ये चमन है,


शत्-शत् तुमको नमन् है।।


==================


सच्चे सपूत तुम भारत माँ के,


माटीपुत्र हो तुम हिन्दुस्तान के।


तुमने ही किया हर जतन है,


शत्-शत् तुमको नमन् है।।


==================


लतपथ खून से जीते हर समर,


रहोगे हमेशा इस जहाँ में अमर।


तुम्हारे चरणों में मेरा वन्दन है,


 शत्-शत् तुमको नमन् है।।


===================


      *स्वरचित*


*उमेश श्रीवास"सरल"*


*मु.पो.-अमलीपदर*


*विकासखण्ड-मैनपुर*


*जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)*


*मोबाईल-9302927785*


अनुपम कौशल

आजादी का दिन है आया


  खुशियां छाई चहुँ ओर। 


वीणा पाणी के मंदिर में


 हम सब है हर्ष विभोर ।।


 


कितनी कुर्बानी दे करके


हमने ये आजादी पाई ।


 इसको संभाले रखना 


 मेरी बहना और भाई ।।


इसकी रक्षा में अपना


लगा देना सब जोर ।।


वीणा पाणी .......


 


 गांधी ,सुभाष भगत सिंह 


   का यह देश है हमारा ।


   प्राणों से बढ़कर हमको


 अपना देश है ये प्यारा ।।


  वर्षों था अंधियारा 


 हुई है अब भोर । वीणा ....


 


   देश पर जो आंच आये 


   सब मिल जाना ।


   दुश्मन हो जो कोई


     उसे धूल है चटाना ।।


    बच न पायेगा दुश्मन


    कर ले कितना भी शोर


    वीणा ......


    


   अनुपम कौशल


    सहायक अध्यापक


  पूर्व माध्यमिक विद्यालय


   नगला बिहारी सैफ़ई 


      इटावा9457123104


डॉक्टर शिवा अग्रवाल 

जश्न ए आजादी ए दोस्त ऐसे ही कहा मना होगा


जंजीरों में बंधकर शैल पर खून तो बहुत बहा होगा


नम आंखों से कई बार अपनों को अलविदा कहा होगा 


 बिस्मी हुई चूड़ियों को डब्बे में बंद कर याद अपनों को किया होगा


 गैर की निगाहों से खुद को बचा कर जहर का प्याला भी पिया होगा


 जश्न ए आजादी ए दोस्त ऐसे ही कहा मना होगा


 


प्यारा भारत देश हमारा 


सोने की चिड़िया कहलाया 


क्रांतिकारियों ने इसके मस्तक पर 


अपने लहू से तिलक लगाया 


ये मर मिटने का जज़्बा न जाने इनमें कहां से आया


इनकी वीरता, दृढ़ता , जोश के आगे


 श्रद्धा से हमने शीश झुकाया


 


माताएं तो इनकी भी ममतामय होंगी


अपने बेटों को लहूलुहान देख भीतर से दर्दमय होंगी


बांध कफन मौत का ममता का आंचल हटाया


भारत मां के लिए ये जज्बा न जाने इनमें कहां से आया


 


पिता तो इनके भी राह देख थकते होंगे 


अपने बेटों को गले लगाने के लिए तरसते होंगे


अपने बुढ़ापे के सहारे को कांधा देकर अरमानों को भी दफनाया


अपने देश के लिए ये जज्बा ना जाने इनमें कहां से आया


 


पत्नी, बच्चे, भाई-बहन और प्रेमिका


हर रिश्ता प्यार साथ विश्वास की नींव पर टिका


 हर उम्मीद हर सपना भी साथ उनके गंगाजल में बहाया


स्वतंत्रता के लिए ये जज्बा ना जाने इनमें कहां से आया


 


यह वीर भी तो कभी बच्चे होंगे


बचपन से ही सपने में तिरंगा झंडा हर पल फहराया


माता-पिता इनके फक्र से कहते होंगे


अंग्रेजों भारत छोड़ो देखो वीर क्रांतिकारी आया


 


नाम -डॉक्टर शिवा अग्रवाल 


मकान नंबर 5415


 पंजाबी मोहल्ला, अंबाला


 हरियाणा। 


निभा राय नवीन

वतन की सौंधी-सी खुशबू, हमें जान से प्यारी है l


जय हिन्द,जय भारत माँ,अनुपम कीर्ति तुम्हारी है ll1ll


 


जिसकी धरती उगले सोना, सूरज करता उजियारा , 


जिसके रज कण-कण मे संचित, स्नेहिल भाईचारा l


पावन नदियाँ गंगा-यमुना, बहती है जलधारा, 


श्वेत, हरा, केशरिया पहने, झंडा ऊँचा रहे हमारा ll


 


लिए तिरंगा हाथों में, करते हम रखवारी है l


जय हिन्द,जय जय भारत माँ,अनुपम कीर्ति तुम्हारी है ll2ll


 


जहाँ नारी त्याग की मूरत हो, हर माँ ममता की सूरत हो,  


है रीत-रिवाजों का संगम, हर नर-नारी करते वंदन l


हर भाषा-भाषी मिलकर रहते, जैसे इंद्रधनुष के रंग, 


हिमगिरि भाल सोहती, उस भारत माँ का है दम्भ ll


 


जहाँ बुद्ध-विवेका ज्ञान चक्षु ले, धरती पर अवतारा, 


भारत देश हमारा न्यारा, वतन जान से प्यारी है l


जय हिन्द, जय भारत माँ, अनुपम कीर्ति तुम्हारी है ll3ll


 


 जहाँ अतिथि को ईश्वर माना, छः ऋतुएँ लगे सुहाना, 


जहाँ ऋषि-मुनि का डेरा है,गुण-ज्ञान अनन्त बसेरा है l


जहाँ हर डाली पर सुन्दर चिड़ियाँ, गाए शाम-सवेरा, 


जहाँ नित-नूतन रश्मि प्रभा, हर लेती घोर अँधेरा ll


 


जहाँ देव-दनुज के दलन हेतु, मानव तन ले अवतारा l


एक हाथ मे लिए तिरंगा, दूजा आरती थाली है l


जय हिन्द, जय भारत माँ, अनुपम कीर्ति तुम्हारी है ll4ll


 


जहाँ सत्य-अहिंसा और धर्म का, पाठ पढ़ाया जाए, 


जहाँ गाँधी-गौतम बुद्ध पुरुष को, शीश नवाया जाए l


जहाँ रामायण और गीता से,जन-जन का गहरा नाता, 


 जहाँ दुराचरण शोषण विरुद्ध, आवाज उठाया जाता ll


 


जहाँ श्वेत, हरा, केशरिया में, सजता है जीवन सारा l


हमको है अभिमान वतन का, हम भारत की नारी है l


जय हिन्द, जय भारत माँ, अनुपम कीर्ति तुम्हारी है ll5ll


 


जहाँ गौ माता की पूजा हो, नारी देवी सम् पूजनिया, 


मात्-पिता-गुरु चरणों मे, शीश नवाती है दुनिया l


सभ्यता-संस्कृति और स्नेह का अतुलित है भंडारा, 


नर-नारी के स्वर से फूटे, अविरल काव्य की धारा ll


 


जहाँ राम पुरुषोत्तम, केशव प्रेरणा स्रोत पधारा l


जिसका पाँव पखारे सागर,जिसका सिंह सवारी है l


जय हिन्द जय भारत माँ, अनुपम कीर्ति तुम्हारी है ll6ll


 


गौरवमय इतिहास जहाँ का,वेद पुराण बखाना है, 


शौर्यवान सुत शरहद पर, मातृभूमि की शान है l


जँह नारी दुर्गा, झाँसी की रानी बनकर संहार करे, 


सती अनसुइया से ब्रम्हा,विष्णु,महेश स्तनपान करे ll


 


जँह वात्सल्यता यशोदा का, पाने को कृष्ण पधारा l


वतन खून का प्यासा है, दुश्मन दल पर भारी है l


जय हिन्द, जय भारत माँ, अनुपम कीर्ति तुम्हारी है ll7ll


                                *"निभा राय नवीन"*                                          


                                    (पूर्णियाँ, बिहार)


अर्चना द्विवेदी

दुश्मन की टोली में छाया,


हर सीमा पर हाहाकार।


भारत के वीरों ने दी है,


कायर बैरी को ललकार।।


 


माँ को आँख उठा यदि देखा,


देंगे तेरी आँख निकाल।


मत चल अब शतरंजी चालें,


सिंहों ने भर ली हुंकार।।


 


बच्चा-बच्चा वीर शिवाजी, 


माटी में पलते आज़ाद।


शस्त्र उठा लेती जब नारी,


दुर्गा बन करती संहार।।


 


क्रोध में हम दुर्वासा जैसे,


दया भावना में प्रभु राम।


कायरता तेरी रग-रग में,


अब ले परशुराम का वार।।


 


बलिदानों की अमर कहानी,


गूँज रही चहुँ दिशि आकाश।


नमन करे हर भारत वासी,


यश गाये नित ये संसार।।


 


अमर रहा है,अमर रहेगा,


मानचित्र में हिंदुस्तान।


जिसने जन्म यहाँ पाया है,


मानो देवों का उपहार।।


          अर्चना द्विवेदी


              अयोध्या उत्तरप्रदेश


अरविन्द्र ओमप्रकाश पाल

आदेशित करिए जगजननी,


हर धार मोड़ दी जाएगी।


जो आँख उठेगी भारत पर


वह आँख फोड़ दी जाएगी।।


 


गीदड़ की ये औलादें क्या 


फौलादों से टकराएंगी।


आएगी मृत्यु निकट जब जब


चलकर शहरों को जाएंगी।।


 


उत्तर में प्रहरी के समान


जब पर्वतराज हिमालय है ।


दक्षिण में सिन्धु सरोवर तट


आखिर हमको किसका भय है।।


 


सोने की चिड़िया विश्वगुरू


मेरा भारत कहलाया है।


छ: ऋतुओं से होकर निबद्ध


पावन वसन्त जब आया है।।


 


पीले सरसों के खेत हुए


वसुधा धानी हो जाती है।


नीहार बिन्दु मोती जैसे


भीनी सी खुशबू आती है।।


 


इतिहास पुरातन जिन्दा है,


हर भारतवासी की नश में।


गौरव गरिमा का गान बनें,


परिणित हों जीवन अन्तस में।।


 


 


 *अरविन्द्र ओमप्रकाश पाल* 


   *फतेहपुर उत्तर प्रदेश*


संजय जैन

बहुत ख़ुशी है आज 


हम सब को।


मना जो रहे है 


स्वंत्रता दिवस को।


पर मिली कैसे 


हमे ये आज़ादी।


जरा डालो नजर 


तुम इतिहास पर।।


 


न जाने कितनी मांओ 


की गोदे उजड़ गई। 


न जाने कितनी माँगे


बहिनों की उजाड़ गई।


न जाने कितने बच्चों के


सिर पर से उठ गया साया।


तब जाकर मिल पाई थी


हमको ये आज़ादी।।


 


न जाने कितने वीरो को 


हम लोगो ने खो दिया।


भरी जवानी में उन्हें 


प्राण गमाना पड़ा ।


और न देखा सुख 


उन्होंने इस आज़ादी का।


जिसके लिए दे गए 


सभी अपनी कुर्बानियां।। 


 


सलाम करते है हम


उनके माँ बाप को। 


जिनके पुत्रो पुत्रियों ने 


दिया बलिदान अपना। 


उन्हें अर्पण करते है 


श्रध्दा के सुमन हम।


सदा जिंदा रहेंगे वो 


भारत मां के दिलो में ।   


जिन्होंने दिलाई आजादी 


हमें उन अंग्रेजो से।।


 


स्वंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मेरी कविता उन सभी शहीदों के लिए समर्पित है। जिन्होंने हमे आजादी दिलाई। श्रध्दा सुमन अर्पित करता हूँ।


 


जय हिंद जय भारत


संजय जैन (मुंबई )


14/08/2020


गायत्री द्विवेदी कोमल

देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,


मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।


चैन मिलता बहुत दूर सब कष्ट हों,


देश की भूमि को चूमकर देखिए ।।


 


जो हिमालय खड़ा शौर्य गाथा कहे,


वीर जां दे गए उच्च माथा रहे ।


ताज़गी तन-बदन व्याप्त होती तुरत,


देश की भक्ति में झूमकर देखिए ।


देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,


मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।।


 


धर्म दीवार बन राह रोकें नहीं ।


मान लो रीति जो कोई' टोकें नहीं ।


हर घड़े में बसा ईश का अंश है,


मानते लोग सब झूमकर देखिए ।


देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,


मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।।


 


पेड़ पत्थर नदी जीवधारी सभी ।


टूट सकता नहीं नात इनसे कभी ।


पुण्य मिलता सदा पाप का नाश हो,


मातु भारत चरण चूमकर देखिए ।


देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,


मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।।


 


 


गायत्री द्विवेदी 'कोमल'


फतेहपुर (उ.प्र.)


डॉ शिवानी मिश्रा

शहीदों की शान में हर बरस लगेंगें मेले,


गर्व करेगी देश की धरती,


बलिदान सार्थक हो जायेगा, उन माताओ बहनों का,


जब तिरंगे मे लिपटे लाल को वह अपनी छाती से लगायेंगी,


हर देशवासी गर्व से करेगा सलाम उन्हें,


तब बूढ़े पिता की आंखे बरसेंगी जरूर,


मगर ह्रदय सम्मान से चौड़ा होता जायेगा।


बेटे की शहादत को स्वीकार कर,


धन्य हो जाएंगी बूढ़ी आंखे,


कामना यही करती जायेंगी, फिर मुझे लाल मिले ऐसा।


तिरंगे की शान में भेट जिसे चढ़ाऊँ,


शहर देश सारा सैलाब उमड़ेगा,


शहीद की विदाई पर आसमान से फरिश्ता भी अश्रु बहायेगा।


जाया न जायेगी मेरे वीर जवानों की शहादत,


आज चार तो कल चौबीस सरहद पर आबाद मिलेंगें।


ये वीरों की जननी मातृभूमि है मेरी,


कल दुश्मन के खेमे में सौ-सौ जवान तैनात मिलेंगे।


 


डॉ शिवानी मिश्रा


प्रयागराज


डा० भारती वर्मा बौड़ाई

हो गए शहीद जो 


याद हम उनको करें,


मार्ग जो बता गए 


चलने का प्रण करें।


 


सारे मोह छोड़ कर 


देश के लिए लड़े,


खेल सा समझ कर 


फाँसी पर भी चढ़े।


 


गूँजती है आज भी 


हवा में उनकी सदाएँ,


हर अधरों पर आज 


बोल रही उनकी कथाएँ।


 


आ पड़ा है अब समय


हर हाथ में शस्त्र हो,


जो बेड़ियाँ जकड़ रही 


उन्हें काटने का अस्त्र हो।


 


वे तो हो गए शहीद 


लिख कर स्व अध्याय,


जीवित रहेंगे वे तभी 


सब लिखें नव अध्याय।


 


है राष्ट्रहित सर्वोपरि 


याद यह प्रतिपल रहे,


हर शहीद की कामना 


मेरा राष्ट्र अग्रणी रहे।


 


देश के हर युवा की 


बस यही एक चाह हो,


राष्ट्रहित के लिए ही 


निकलती हर राह हो।


—————————-


डा० भारती वर्मा बौड़ाई


देहरादून, उत्तराखंड 


9759252537


कमल कालु दहिया

मुल्क की हिफाजत में फिर सो गया, 


वह जन्नत वाली गलियों में खो गया।


 


 यहां देखो गम कितने हैं,


    पत्नी का सिंदूर नहीं रहा।


 किसको यह बूढ़े मां बाप बेटा कहे,


      पुत्र का दस्तूर नहीं रहा।।


 


 अपने जिस्म में गोलियां बो गया,


 मुल्क की हिफाजत में फिर सो गया। 


 


नन्ही सी बिटिया ,


    क्यों बार-बार पापा बुलाती है,


 आंसू पीती है मां ,


    और शांत करके बेटी को सुलाती है।


 


 कबसे फौजी था शहीद हो गया,


 मुल्क की हिफाजत में फिर सो गया।। 


 


नयनों की पलके इतनी भीगी है ,


   जैसे दरिया तो छोटा, समन्दर हो गया हो।


 बारूद तो जले है सरहद पे,


 यहां जैसे बारूद से भयंकर मंजर हो गया हो।।


 


 आखिर ये खुशहाल परिवार रो गया,


  मुल्क की हिफाजत में फिर सो गया।।


 


नाम - कमल कालु दहिया 


पता - शेरगढ., जोधपुर, राजस्थान


प्रेमलता अवस्थी सानू

हमारे देश के दुश्मन मिट जाये तो खत लिखना। 


हमारे देश का तिरंगा फहर जाये तो खत लिखना।


झुकाकर सर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे को तुम जाना। 


सीमा का कफन बांध कर तुम आना।


घरों की याद जो आये तो तुम खत लिखना।


हमारे देश के दुश्मन................


 यहाँ पे मौत के किस्से तुम्हें दुश्मन सुनायेगें। 


तुम्हारें लिये लोरी वतन के लोग गायेगें। 


तुम्हारें मन को लोरी भाये वतन को खत तुम लिखना। 


हमारे देश के दुश्मन......... 


 अमन शान्ति समृद्धि का ज्ञान देकर तुम आना। 


दुश्मनों से सुरक्षित करके भारत माँ को तुम आना। 


कहें 'सानू' की बात याद करके खत लिखना। 


हमारे देश के दुश्मन.........


हमारे देश का तिरंगा........... 


 


        प्रेमलता अवस्थी 'सानू '


निर्मल जैन नीर

कोटि वंदन~


अमर शहीदों को


कोटि नमन


-


जय जवान~


राष्ट्र हित लुटाते


अपनी जान


-


राष्ट्र ही शक्ति~


कूट-कूट के भरी


राष्ट्र की भक्ति


-


देश महान~


तिरंगे में लिपटा


वीर जवान


-


राष्ट्र की शान~


करते प्राणोत्सर्ग


बढ़ाते मान


-


एक ही आशा~


अखण्डित हो देश


है अभिलाषा


-


देश है न्यारा~


विश्व पटल पर


तिरंगा प्यारा


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      निर्मल जैन 'नीर'


   ऋषभदेव/राजस्थान


कार्तिकेय त्रिपाठी राम

हरी-भरी वसुंधरा को 


देख कर मेरा वतन ,


मुस्कुरा रहा है ऐसे 


फूल का कोई चमन ।


हर जवान देखता है 


सीना तानकर यहां ,


आजाद,भगत,बोस ने


जन्म लिया है जहां ।


जमीं है मेरे प्यार की 


जमीं है मेरे दुलार की,


महक ये बिखेरती 


प्रेम,पावन,प्यार की ।


ये धरा भी देखो हमको 


कैसे यूं लुभा रही , 


छा रही अमराई है 


गंगा सुधा बरसा रही ।


इसका थोडा़ गुणगान करें


और इसका मान धरें ,


गीत भी अर्पण करें 


और मन दर्पण करें ।


पा रहें हैं इससे मनभर 


खुशियों का जहान हम ,


रक्त रंजित ना धरा हो 


इसका धरें ध्यान हम ।


संजीवनी है ये धरा 


मुस्कानों से भर दें घडा़,


इससे बढ़कर कुछ नहीं है


इस धरा पर है धरा ।


पाकर धरा पर हम ये जीवन


जीते ही तो जा रहे ,


शीर्ष पर फहरा तिरंगा 


हिन्द जन मुस्का रहे ।


~~~~~~~~~~~ 


'कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम


इन्दौर , 7869799232


रमेश कुमार सिंह रुद्र

है आज का दिवस हमारा शुभ्र-वेला में चमन।


सुखद दिवस की दिव्यावधि में हुआ देश में अमन।


स्वाभिमान की विजय-वैज्यन्ति लहरी विश्वाकाश में 


अमन का प्रतीक बने इस तिरंगे को शत्-शत् नमन॥


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जब भारत पर अंग्रेजो ने,कहर यहां बरसाया था।


तब वीर सपूतों ने हर पल अपना जान गवाया था॥


किये थे भारत माँ की रक्षा,रखकर जान हथेली पर।


लेकर गोली और बारूद,हमला किये हवेली पर ॥


जान की बाजी लगाकर सब,आजादी दिलवाये थे।


रक्षार्थ देश हम जन्म लिए,यही प्रेम सिखलाये थे॥


अंग्रेजो से पंगा लेकर,सभी का लहु बहाये थे।


फाँसी झुलकर हँसकर वे,सबको राह दिखाये थे॥


                           ©️रमेश कुमार सिंह 'रुद्र'®️


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