नूतन लाल साहू

सस्पेंस में रखने का तरीका है,पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


एक व्यक्ति, दो किलो आम के दाम चुकाये, परंतु


उसने घर पर,सिर्फ एक किलो आम लाये


घर के तराजू पर, आंखो के सामने


स्वयं,आम का वजन करवाया


परंतु, एक किलो आम कहां खो गये


ये रहस्य समझ में नहीं आया


सस्पेंस में रखने का तरीका है,पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


गीत गायन,स्पर्धा के


मिस्टर कुंभकर्ण,अध्यक्ष बनाये गये


उनकी उपस्थिति में


तरह तरह के गीत सुनाये गये


अब आयोजक गण


बुरी तरह से हैरान और परेशान है


सभी प्रतियोगी


परिणाम की प्रतीक्षा, के लिए रो रहे हैं


स्पर्धा समाप्त होते ही


मिस्टर कुंभकर्ण मगन मस्त सो रहे हैं


सस्पेंस में रखने का तरीका है,पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


मृत्यु दंड से पहले


अपराधी से,अंतिम इच्छा पुछा जाता है


पर एक डाक्टर ने,बीमार व्यक्ति से कहा


आपकी आंखों में,अंधेरा छा गया है


मुझे क्षमा करें


अब आपका अंत समय आ गया है


आपकी कोई,अंतिम इच्छा हो तो


तत्काल बता दीजिये


बीमार व्यक्ति ने,डाक्टर से कहा


पहले जैसा मुझे


स्वस्थ सुंदर और जवान,बना दीजिये


सस्पेंस में रखने का तरीका है, पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


 


नूतन लाल साहू


डॉ. निर्मला शर्मा

दिन और रात की देखो बड़ी है सुंदर बात


एक दूजे के पूरक दोनों रहते आस- पास


दिन में होता है उजियारा फैलाता उल्लास


रात ढले सपनों में खोते मधुर नींद के साथ


दिन में करते सभी परिश्रम होठों पर ले मुस्कान


रात हुई घर मे सब आते वक्त बिताते साथ


सामासिक शब्द ये सुंदर द्वंद्व है इनका भेद


एक दूजे के विलोम शब्द हैं व्याकरण में देख 


दूर क्षितिज में कभी हैं मिलते सुबह शाम अभेद


देख चक्र इनके जीवन का लेवे ज्ञान हरेक


हर क्षण हो तटस्थ निज कर्तव्य निभाते दोनों


कभी न करते चूक तभी हैं घड़ी बनाते दोंनों


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-4


 


करहिं देवकी माता बंदन।


तोरैं नाथ सकल भव-बंधन।।


    तुम्ह प्रभु ब्रह्महिं जोति स्वरूपा।


    गुनहिं बिकार बिहीन अनूपा।।


निर्बचनीय बिसेषन हीना।


निष्क्रिय पर प्रभु सत्तासीना।।


     बुद्धि-प्रकासक बिष्नू तुमहीं।


      मम गृह आयि कृपा जे करहीं।।


उभय 'परार्धहि' पूरन जबहीं।


अंत उमिरि ब्रह्मा कै तबहीं।।


     होंहिं बिनष्टहिं तीनिउ लोका।


     कालहिं सक्ति-प्रभाव असोका।।


महाभूत तब पाँचउ बदलहिं।


अहंकार सँग कूदहिं-उछलहिं।।


     अहंकार तब बनि महतत्त्वा।


      जाइ समाय प्रकृति के तत्वा।।


ताहि समय बस तुम्ह अवसेषा।


रहहु नाथ तुम्ह रूपहिं सेषा।।


     'सेष'नाम यहि कारन तुम्हरो।


      नाम इहइ जानै जग सगरो।।


काल बिबिध नहिं जाकर सीमा।


अगनित बरस-निमिष निःसीमा।।


दोहा-काल-बरस अरु समय-पल,सभ कछु तुमहीं नाथ।


        उतरे प्रभु तुम्ह मम सदन,बंदउँ अवनत माथ।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-41


 


करहिं राम कौसिकहीं प्रनामा।


संग बसिष्ठ जाबालिहिं-बामा।।


    तब प्रनाम करि मातु, जनकहीं।


    अवधमनी भरतहिं अस कहहीं।।


अब तव कान्हें अवध-समाजू।


सभ सँग लेइ करहु तहँ राजू।।


     करु निबाह निज कुल-मरजादा।


      उच्च बिचार सँग जीवन सादा।।


कुल पुरुखन कै रीति निभाऊ।


धरम-करम तू जानेउ राऊ।।


    पसु-पंछिन्ह सुख जे नृप देवहिं।


     ईस-प्रसाद लपकि ते लेवहिं।।


हरित सस्य-बन-उपबन-बागा।


पसु-बिहार-जल-सरित-तड़ागा।


    जे नृप-राज रहहिं सभ पुरना।


    तासु प्रजा जग रहहि प्रसन्ना।।


प्रजा-तोष-सुख धयि हिय राजा।


करै राज सुख मिलै समाजा।।


    बरन-भेद अरु जाति-कुजाती।


    ऊँच-नीच,मम-तव केहु भाँती।।


सोभा कबहुँ नहीं कोउ नृप कै।


कस सोभा बिनु मुक्ता सृप कै।।


    सबहिं लेइ अब लवटउ भ्राता।


    अवधराज सूना नहिं भाता।।


लवटउ अबहिं बिनू मन भारी।


करउ राज अरु प्रजा सुखारी।।


  एहि तें पितु-आतम सुख लहहीं।


   देवन्ह अपि पितु सँग सुख पवहीं।।


दोहा-सुनि के प्रभु कै बचन अस,सभ भे पुलकित गात।


        प्रमुदित ऋषि-मुनि सँग सुरन्ह,करैं सुमन-बरसात।।


                  डॉ0हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


अशोक सपरा

करना अखण्ड भारत का सपना तुझे ही अब कवी अशोक साकार है


इस राजनीति की नीति में नैतिकता की हर एक परिभाषा स्वीकार है


 


विश्वासो का यहाँ कत्ल हुआ इस कदर की राम ने जला डाली मथुरा


भारत भूमि पे कन्हैया लगाये लांछन प्रभु नाम भी होने लगे गद्दार है


 


सरे आम अब निर्भया की आबरू दांव पर लग जाती यहाँ


मर्यादा का कंकाल शेष रह गया यहाँ न्याय हुआ अब बेकार है


 


यहाँ गरल उगलता देखा आस्तीन के पाले हुए सांपो को हमने


जिस थाली में खाते उसमे छेद कर जाते छुपे यहाँ रंगे सियार है


 


इससे अधिक अब क्या लिखूँ की ध्वाजा सकल विश्व पर फहरा दूंगा मैं


राम राज्य हो विश्व में जनता का शासक पर होगा सामान अधिकार है


 


अपने गुणों पर गर्व मुझे लिख दूंगा साहित्य में नया इतिहास


विश्व मंच की महफ़िलों में मेरे भारत देश का होगा अभिसार है


 


अशोक के अंदर की ज्वाला धधकती कब होगा महिमा मंडित भारत का


शत खण्डों में बिखरा भारत कब होगा इसका सम्पूर्ण विरस्तार है


 


भारत माता रोते रोज सपनों में आती अशोक होता मन आहत 


ले निर्णय भारत को गुलामी से आजाद कर गर देश से प्यार है


 


अंतरात्मा तक आहत हुई आज भारत माता की लिख दे कविता में अशोक


जो कहता भारत तेरे टुकड़े होंगे उन कपूतों के इस कृत्य पे धिक्कार है


 


अशोक सपरा 


श्लेष चन्द्राकर

अपना ये मुल्क़ जान लो कितना महान है


सबसे अलग जहान में हिन्दोस्तान है


 


हर ओर बहती पाक हवाएँ सुहावनी


हर बाग़ में महकता यहाँ ज़ाफ़रान है


 


अच्छा करेंगे काम सदा इसके वास्ते


हमको उठाना देश का दुनिया में मान है


 


भारत की पाक मिट्टी पे लेता है जन्म जो


वो तो समझता खुद को बहुत भाग्यवान है


 


बिल्कुल नहीं अदू का हमें ख़ौफ दोस्तो


उत्तर में हिमगिरी जो खड़ा पासबान है


 


आँगन में जिसके खेल के हम सब बड़े हुए


भारत हमारा एक वो प्यारा मकान है


 


रहते हैं लोग प्यार से हर धर्म के यहाँ


ऐ श्लेष अपने हिन्द पे मुझको गुमान है


 


श्लेष चन्द्राकर,


पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27, 


महासमुन्द (छत्तीसगढ़) 


योगिता तलोकर

 


वतन की मेरे देखो शान,


नाम है जिसका हिंदुस्तान।


 


धरती है यह ऋषि मुनियों की


राम, कृष्ण, नानक जैसे देवों की।


 


अद्भत है देवताओं की कथाएं,


इतिहास कहता शूरवीरों की गाथाएं।


 


संस्कृति इसकी कोई मिटा ना पाया,


चाहे, तैमूर, गौरी गजनवी आया।


 


लक्ष्मीबाई ,शिवाजी सांगा राणा,


दुनिया ने इनका लोहा माना।


 


स्वंत्रता की सैकड़ों सुनो कहानी,


सुनकर आंखो में भर आए पानी।


 


टैगोर ,तिलक, आजाद भगत सिंह,


बोस जैसे जांबाजों की बलिदानी।


 


ना झुका है ना झुकने दिया,


वतन की खातिर जवानों ने शीश दिया।


 


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,


आपस में हैं सब भाई- भाई,


 


दुश्मनों को भी यह बात समझाई,


जब जब बात वतन की आई।


 


तो क्या हुआ कि आज कल,


सत्ता की लालच मचाती हैं हलचल।


 


ये मेरा, मेरा वतन है,


सह लेगा सारी उथल पुथल।


 


आज फिर एक नए युग की शुरुआत है,


हस्ती इसकी ना मिटी है,


ना कोई मिटा पायेगा ,


मेरे वतन की निराली बात है।


मेरे वतन की निराली बात है।।


 


योगिता तलोकर


मोबाइल --- 9200099254


Sindhuja Srivastava

ऐ  मेरे वतन के लोगों,


                      तुम खूब लगा लो नारा 


ये प्रण होगा हम सब का,


                   चीनी सामान से करें किनारा


यह मत भूलो गलवान में,


                   वीरों ने हैं प्राण गँवाए


कुछ याद उन्हें भी कर लो,


                 जो लौट के घर ना आये।-2


_______________________________


ए मेरे वतन के लोगों,


                 जरा आँख में भर लो पानी। जो शहीद हुए हैं उनकी,


                    जरा याद करो कुर्बानी।


____________________________(2)


 


जब पागल हुआ चीनी ड्रैगन,


                       किया कृत्य बड़ा उन्मादी 


शान्ति-अमन की बात किया वो,


                      फिर कर दिया धोखेबाजी 


गिरगिट की तरा- रंग बदल कर,


                      ड्रैगन है किया नादानी


 जो कृत्य किया है चीनी ड्रैगन,


                  उनकी याद रखो कारिस्तानी


जब देश लड़ रहा था कोरोना से,


                    वो बुन रहे थे चालसाजी


 


धोंखे से निहत्थे वीरों पर,


                     कर दिये वो पत्थर बाजी 


थे धन्य शैतान वो चीनी,


                     थी धन्य उनकी शैतानी 


जो कुकृत्य किये हैं उसने,


                    जरा याद रखो कारिस्तानी


कोई सिख कोई यूपीवासी,


                     तेरह वीर बिहार के वासी


शरहद पर मरने वाला,-2


                     हर वीर था भारतवासी।


जो खून गिरा पर्वत पर,


                     वो खून था हिन्दुस्तानी 


जो शहीद हुए हैं बीसों,


                    उनकी बीस रही है जवानी 


थी खून से लथपथ काया,


                    फिर भी वे ना घबराते दो-दो के औसतन मारा,


                    फिर गिर गये होश गवांके।


जब अन्त समय आया तो,-2


                   कह गये कि हम मरते हैं।


ड्रैगन पे भरोसा ना करना,-2


                   वो धोखा ही करते हैं।-2


 


 क्या लोग थे वे दीवाने,


                  क्या लोग थे वे अभिमानी 


जो शहीद हुए हैं उनकी,


                    जरा याद करो कुर्बानी


तूम भूल न जाना उनको,


                    इस लिए लिखे ए कहानी।


जो शहीद हुए हैं उनकी,


                     जरा याद करो कुर्बानी।


जय हिंद,जय हिन्द,जय हिन्द,जय हिंद की सेना।--------


 


Sindhuja Srivastava 


सीमा निगम 

आजादी का जश्न सब मनाते रहे,


मेरे देश में शांति और अमन हो |


 


भाई-चारे समानता का भाव रहे,


सबके लिए ईद और दीवाली हो |


 


शहीदों की शहादत याद रहे ,


आजादी के वीरों का गुणगान हो |


 


कानून के प्रति लोगों का विश्वास रहे,


लूट हिंसा आतंक का सर्वनाश हो |


 


जन-जन में देशप्रेम का लहर रहे,


देश के लिए मर मिटने का जज्बा हो |


 


देश की एकता-अखंडता बनी रहे, 


अधिकारों और कर्तव्यों का निर्वहन हो|


 


गणतंत्र की सार्थकता बनी रहे,


एक राष्ट्रधर्म का नया आगाज हो|


 


 


रचना सक्सेना

मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ मे,


आत्मा इसकी अमर रहेगी दुनिया के हर गाँवों में।


जब जब धर्म की बात चलेगी- भारत पूजा जाएगा ,


सब धर्मों को एक धर्म के रूप मे देखा जाएगा।


प्रेम भाव और इंसानियत धर्मो के आधारो मे,


मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ मे।


 


उपजी सभ्यता कितनी और दफन हुई इस मिट्टी में,


जलकर लकड़ी राख हो जाऐ- जाकर जैसे भट्टी मे,


जलकर भी न राख हुई - कनक रूप दिख जाऐगा,


भारत का गौरव आज भी वैसे ही मिल जाऐगा।


रीतिरिवाज और संस्कारों के मूल तत्व आधारो मे,


मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ।


 


जब भी हवा चलेगी कोई कही किसी दिशाओ से,


भारत के पुष्पो की महक उत्साह भरी आशाओ से।


महकाती धरती विश्व को -हर जगह मिल जाऐगी,


धर्म शास्त्र के ज्ञान की छाया हर जगह दिख जाऐगी।


देशभक्ति से ओझल इस धरती के सब लालो मे,


मत नापो भारत को अपने सरहद की सीमाओ मे।


 


रचना सक्सेना


इलाहाबाद


मौलिक


डॉ. अर्चना दुबे रीत

है राह यह सुहाना, चाहे शीश हो कटाना ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


भारत के ऐ सपूतों, विश्वास को जगाओ ।


कमजोर करके दुश्मन, को देश से भगाओ ।


छायी रहे सदा ही, स्वाधीनता की लाली ।


आजाद हुई जननी, छाये सदा हरियाली ।


आकाश में लहराओ, तुम देश का तिरंगा ।


मन प्रशन्न होकर, जय हिंद गान गायें ।


उस लाल किले ऊपर, फहरे तिरंगा प्यारा ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


जय हिंद की धरा पर, गोरों का कैसे हक था ।


हर भारतीय बहादुर, खाया भी यह कसम था ।


करते थे कैसे पीड़ित, पूर्वज को वो हमारे ।


हक छीन लो तुम अपना, जननी तुम्हें पुकारे ।


डर भय को त्याग करके, हाथों में भाल ले लो ।


आवेश को जगाओ, उत्साहित होकर जाओ ।


दुश्मन न टिकने पाये, उन्हें देश से भगाओ ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


गांधी, सुभाष, नेहरु, आजाद, भगत, विस्मिल ।


सुखदेव, वीर अब्दुल, थे वीर साहसी वो ।


जिनके हृदय में जागी, पीड़ित हैं अपनी जननी ।


सर पर कफ़न को बांधे, निकली थी ऐसी टोली ।


दुश्मन के खून खेलें, स्वतंत्रता की होली ।


गोरों तुम्हें है जाना, भारत है यह हमारा ।


दुश्मन को खेद करके, वीरो ने गान गाया ।


तुम सुन लो देशवासी, यह देश है हमारा ।


है राह यह सुहाना, चाहे शीश हो कटाना ।


तुम सुन लो देशवासी यह देश है हमारा ।


 


डॉ. अर्चना दुबे रीत


परमानंद निषाद

जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,


वह भारत देश हमारा है,


जो हमारे प्राणों से भी प्यारा है,


जो हमें देती है प्रेरणा वह सीख है,


मातृभूमि की लाज के खातिर,


सर्वश अपना लुटाऊंगा,


इस माटी में जन्म लिया है,


इस माटी में मिल जाना है,


बदन को महकाने के सारी उम्र काट ली,


रूह को अब अपनी महकाओ तो अच्छा है,


वो मातृभूमि की रक्षा करते है,


हम मातृभाषा की कर लेते है,


मातृभूमि का बेटा हूं,


पर सोच हमारा संकीर्ण है,


मातृभूमि का मान लिए उग्र रूप को देखा है,


हर सेनानी इस जग में वीरभद्र को देखा है,


मातृभूमि की रक्षा करने में चाहे,


जीवन तेरा सौ बार आ जाए,


नमन नमन नमन है उनको,


जो मातृभूमि की रक्षा करते है,


जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,


वह भारत देश हमारा है।।


 


*परमानंद निषाद*


*ग्राम- निठोरा,पोस्ट- थरगांव*


*तहसील- कसडोल,जिला- बलौदा बाजार (छत्तीसगढ़)*


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

जन-जन में बस जायेगा


जब राष्ट्रवाद की दृढ़ता


तब भारत में होगा 


भारत की ही स्थिरता।


 


मिट जायेंगे फिर दुश्मन


जो घात लगायें ताक रहे


दिन-दिन विश्व में नाम बढ़े


दोहरे चरित्र वाले कांप रहे।


 


दोहरे चरित्र के क्या कहने


खाते, रहते हिन्द में पलते हैं


मां भारती के गौरव को लेकर ही


नयी - नयी चालें चलते रहते हैं।


 


भारत की पावन धरा रज


हम नित शीश चढ़ाते हैं


आनबान और शान के लिये


मर मिटने को इतराते हैं।


 


सत्य अहिंसा नित बतलाता


भारत की अखण्ड स्वतंत्रता रहे


यह स्वप्न हर भारतवासी का है


हर युगों तक तिरंगा फहरता रहे।



  दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


   महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


संजय निराला

बलिदानों भूल ही सब हुए प्रखर ,


उर में लिए हुए छल कपट !


नीले अम्बर के नीचे है खड़ा तिरंगा ,


स्वेत प्रखर उर लिए हुआ सतत् प्रहत ! 


 


किसने समझा किसने है जाना ,


इसकी पीड़ा को अपना माना !


नित्य खड़ा ये आहें भरता ,


रह गया अब बन भीड़ा !


 


भूल गए सब निर्वासन को ,


बहनों की चीख-पुकारों को !


नित्य लिए स्वाद अपने उर में ,


राष्ट्र पिता बन भटके जग में !


 


सब मिल अब करों जयघोष ,


वंदेमातरम् का ही करो उद्धोष !


है वतन से अगर तुम्हें प्रेम ,


आओ मिल करें इसे अजेय !


                  _____संजय निराला ✍️


दीप्ति मिश्रा 

मेरे सपनों का भारत 


 


बैठी थी एकाकी स्वगेह में 


रही थी निहार शून्य खे में 


सहसा एक कंपित स्वर ने चौंका दिया 


क्षण भर में स्वप्नलोक से धरा पर पहुँचा दिया 


पूछ रहा था कोई मुझसे 


क्या यही है मेरे सपनों का भारत 


भारत मेरा भारत वह भारत 


जिसके लिए वीरों ने प्राण गंवाए 


और स्वतंत्रता के आशा दीप जलाए 


क्या था स्थान भ्रष्टाचार का उसमें 


नेताजी ने जो सपना पलकों में संजोया था 


क्या भुखमरी बेरोजगारी से पीड़ित


 जनता के शोषण का संकल्प कराया था 


राजनीति की बिसात पे झंडा 


सांप्रदायिकता का फहराया था 


छोड़कर अपनी संस्कृति पश्चिमी सभ्यता अपनाने को 


आज की नवयुवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट किया था 


क्या ऐसे ही भारत का स्वप्न अपनी पलकों पर उन्होने संजोया था 


न दे सकी मै उसके एक भी प्रश्न का उत्तर 


खड़ी रही बस यूँ ही मूक बनी हो निरुत्तर 


धीरे धीरे वह आवाज लुप्त हो गई 


किसी देश की समृद्धि का आधार 


होती है उस देश की युवा पीढ़ी 


कर सकती है वही भारत का पुनरुद्धार 


खोजकर सफ़लता की पहली सीढ़ी 


कर सकते हैं कामना प्रयास से पूर्ण सफ़लता की 


जैसी कल्पना की थी पूर्वजों ने हमारे भारत की 


पाप घृणा स्वार्थ से दूर सौहार्द से परिपूर्ण 


क्या ऐसा ही वातावरण दे सकेंगे हम अपने भारत को


 


दीप्ति मिश्रा 


रचित रेनू बाला धार

आजादी वीरों ने दी है


 हम इस के रखवाले हैं 


आज हमारी मातृभूमि


अब हमारे हवाले हैं 


तो देश की आन ,देश की शान


 देश का मान बढ़ालें हम


 आजादी के रखवाले हम 


 


देश के पहरेदार हम हैं 


भावी कर्णधार हम हैं 


वक्त आने पर दिखला देंगे


 हम में कितना दम है 


मुंह की खानी होगी


 जो कोई भी टकरा ले अब 


आज हमारी मातृभूमि 


बस हमारे हवाले हैं


 


 जय जवान जय किसान 


जय विज्ञान का नारा है 


प्यारा प्यारा हिंदुस्तान 


हिंदुस्तान हमारा है


 बहुमुखी प्रगति से इसे


 विश्व विजई बना ले हम 


आज हमारी मातृभूमि बस 


हमारे हवाले हैं


 


 देश हमारा मोम नहीं


 जो यूं ही गल जाएगा


 टीला सा यह नहीं हिमालय 


जो पल में ढल जाएगा


 सबसे ऊंची चोटी पर


 तिरंगा फहरा लें हम 


आज हमारी मातृभूमि 


बस हमारे हवाले हैं 


तो देश के आन देश की शान


 देश का मान बढ़ाने हम ।।


जय हिंद।।


 


रचित रेनू बाला धार


मनोज शर्मा मधुर

बेटे ने पैगाम लिखा है ।


अपनी माँ के नाम लिखा है।।


 


छोटों को है प्यार, बड़ों को


आदर सहित प्रणाम लिखा है।


 


बन्दूकें और तोप खिलौने,


युद्ध खेल का नाम लिखा है।


 


जंग ही होली,जंग दीवाली,


फतह,ईद का नाम लिखा है।


 


संगीनें ही बनीं संगिनी,


कर्म,सजग अविराम लिखा है।


 


मातृभूमि अब माँ है मेरी,


घर को हिन्दुस्तान लिखा है।


 


यदि वैरी रावण-सा तो क्या,


खुद को उसने राम लिखा है।


 


तेरी कोख की पुण्य शहादत,


शोणित से युद्ध-विराम लिखा है।


 


मेरी वीर - प्रसूता माँ,


इस देश ने तुझे सलाम लिखा है।


 


© मनोज शर्मा मधुर


रूपबास,भरतपुर, राजस्थान


मो० 9784 999 333


सुशीला जोशी विद्योत्तमा

इस वतन के हर बशर की शान है पन्द्रह अगस्त।


हर बशर के मान की आन है पन्द्रह अगस्त ।


 


लाखों की कुर्बानियाँ इस दिन में समायी हैं ।


आजादी जनून की पहचान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


मिल जुल सभी के हौसलो ने हासिल इसे किया ।


भारत के हर बशर का ईमान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


खुश नसीब है जो देश पर मर कर अमर हुए ।


वीरो की शहादत का अंजाम है पन्द्रह अगस्त ।।


 


अपने वतन का मजहब इंसानियत है फ़क़त ।


लहराते तिरंगे की मुस्कान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


आजादी का ये जश्न मुबारक सभी को हो ।


हर बशर का एक सम्मान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


सुशीला जोशी " विद्योत्तमा "


मुजफ्फरनगर


वीरेन्द्र सिंह वीर

क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


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तुम ऋषि अगस्त्य के वंशज हो


जो चुल्लू में सागर पी डाले,


पन्द्रह अगस्त के तुम मतवाले


जो दुश्मन के सपने धो डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


दाधीच की तुमको मिली विरासत


संधान-समर में दे अस्थि वज्र,


हर बार मिले क्यों तुझे नसीहत


तू तो काल को वश में कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


परशुराम के तुम सुत कहलाते


जन-विहीन जो धरा कर डाले,


मीरा की माटी से तुम्हें रज मिली


जो विष को भी अमृत कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


शून्य को तू-परिपूर्ण करे


व्योंम को 🕉️से भर डाले,


आर्यभट्ट सा तू युग दृष्टा


चाणक्य-चंद्रगुप्त घड़ डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


तू ही पार्थ, तू ही प्रताप


तू ही कर्ण का सामर्थ्य भरे,


तुझमें ध्रुव, एकलव्य भी तू


अभिमन्यु क्षत व्यूह को कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा 


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


गोविन्द के सपूतों की तुम्हें शपथ


है तेरी भुजा में शिवा-भगत,


आ जाए 'वीर' अपनी करनी पर


तू सागर का भी मंथन कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


           वीरेन्द्र सिंह ' वीर '


           म.न. ६१/३६२


           भारी पानी कॉलोनी


           भाभा नगर(३२३३०५)


           रावतभाटा, कोटा, राजस्थान


           


पवन गौतम बमूलिया

आज हिमालय की छाती 


की पीर सुनाने आया हूँ !


फिर से निकले कोई गंगा 


नीर बहाने आया हूँ ! 


लैला को मजनूं रांझा से


हीर मिलाने आया हूँ !


खण्ड खण्ड भारत की मैं 


तस्वीर दिखाने आया हूँ !


 


त्याग तपस्या और कुर्बानी 


हाय सभी बेकार हुई !


 


आजादी की मौज गुलामी 


सेज्यादा दुश्वार हुई ! 


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अब ना कोई चन्दरशेखर 


ओर ना राजगुरू होगा !


यवनो से लडने वाला ना 


झेलम वीर पुरू होगा !


जौहर के त्योहार तो जैसे 


नानी की बातें होगी !


आलम अंधकार का कायम 


हाँ ! काली राते होंगी !


 


आज खडी सीमा पर सेना


बेबस हो लाचार हुई!!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


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राजनीति वाचाल हो गई


नेता हुए खूब मक्कार !


छीना झपटी हाथापाई 


और संसद हैै शर्मोसार !


क्या गाँधी ने इसीलिए 


थी खाई अंग्रेजों की मार !


बालतिलक ने माँगा था क्या 


ऐसा जन्म सिद्ध अधिकार !


 


मानवता जख्मी है और 


घावों से ये चीत्कार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


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हत्या चोरी और डकेती 


जाति धर्म वाला भूचाल !


किसने डाला दूध में खट्टेपन


का चुपके से कूचाल !


एक और रोटी के लाले 


उस पाले में मालामाल ।


भूख मिटाने की मजबूरी 


हवस भेडिए बने दलाल ।


 


हाय! यही कारण है फूलन सी


देवी बन खूंखार हुई! 


 


आजादी की की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!


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*राष्ट्रीय चिह्नो की स्थिति* 


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'हॉकी' हारी 'मोर' तडपता 


'बाघ' भागता जंगल से !


गुमसुम है मासूम 'तिरंगा' 


मंगल चिह्न अमंगल से !


'कमल' महकना छोड़ चुका है 


'राजभवन' है दंगल से !


'राष्ट्रगीत' और 'राष्ट्रगान' अब 


गाये जाते जिंगल से !


 


'बट' की छाया को तडपे 'राही' 


की करूण पुकार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!!


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रचनाकार-पवन गौतम बमूलिया।


अंता जिला बाराँ(राज)


 


कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी

स्वतंत्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा ।


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.......


 


अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरे शान की ।


ये बात आ खड़ी है अब तो तेरे स्वाभिमान की ।।


कटे नहीं मिटे नहीं झुके नहीं तो बात है ।


अपने फ़र्ज पर सदा डटे रहे तो बात है ।।


तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जाएगा ।


जो देश प्रति है फर्ज़ अपने फ़र्ज तू निभाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम......वन्दे मातरम.....


 


जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले ।


छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले ।।


भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गई ।


नही झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गई ।।


उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो ।


एक एक करके सबको देश से मिटाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.....


 


मिली हमें आजादी कितने माँ के लाल खो गए ।


हँसते हँसते भारती की गोद जाके सो गए ।।


आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें ।


ना भेद भाव मे बँटे वो साथ जो मिला इन्हें ।।


सौंप ये वतन गए उम्मीदें हमसे बाँध जो ।


संवार के उम्मीद उनकी देश को सजाये जा ।।


 


कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी"


धौरहरा लखीमपुरखीरी


विजयश्री वंदिता

रहे याद सदा भूले ना कभी, बलिदान उन वीर जवानो का 


मर मिटते है सीमा पर जो रहे मान उन वीर जवानो का 


 


आज मुख पर जो आजादी कि लाली ये हमने पाई है 


ये रंगत उनके लहू की है परिणाम है उनकी जानो का 


 


हम अपने घर पर अक्सर जो ये चैन की सांसे लेते है 


ये उनकी बदौलत संभव है करते जो वरन तुफानो का 


 


हम ये जो तिरंगा फहराते ये उन जानो की कीमत है 


ये शान जो उसकी सलामत है ये त्याग है वीर जवानो का 


 


है खड़ा हिमालय अडिग जो है पल पल का पहरेदार है वो 


वहां बिखरी पड़ी बर्फ पर है अनकही कहानी जवानो की 


 


करती हूँ नमन मै उन सबको पाए जो वीरगति को है 


नहीं कोई भी कीमत मुझ पर दे दू जो वीर जवानो को 


 


कहो लिखें वंदिता कैसे अब ये दर्द भरी पाती उनकी 


लिखा होता माँ भारती को प्रणाम लहू से जवानो का ।


 


विजयश्री 'वंदिता'


सुनीता सुवेंद्र सिंह

नन्ने नौनिहाल चले हैं, स्कूल


लेकर हाथ में तिरंगा और फूल


है ,आज इन्हें आजादी का दिवस मनाना


भारत का राष्ट्रीय गान है गाना


किसी ने धरा है गांधी वेष


किसी ने दिया जनसंदेश


मिलकर बदलेंगे भारत की तस्वीर


हम सब बनेंगे ऐसे वीर


भारत प्यारा देश हमारा


तिरंगा निराला है हमारा


सदा रखेंगे इसका मान


इससे ही है हमारी पहचान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा


सैकड़ों वीर हुए कुर्बान


तभी तो मिला हमें


 यह आजादी का जहान


इनकी कुर्बानी है महान


करना है सदा इन पर अभिमान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा।


 


सुनीता सुवेंद्र सिंह


५- जवाहर नगर खंदारी चौराहा


आगरा (उत्तर प्रदेश)


अर्चना बामनगया

रक्त शिराओं में बहता


भारत का स्वाभिमान है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ


जहां जन्म लिए भगवान हैं।


पतित - पावनी धरती इस पर


महापुरुषों ने जन्म लिया।


शौर्य और साहस के बल पर


भारत को आजाद किया।


लाज तिरंगे की खातिर


कुर्बान हुए कई प्राण है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई


आपस में भाई भाई हैं।


इसके वीरों की गाथा


जन जन के मन में छाई है।


कभी दिवाली कभी ईद


कभी होली के त्योहार है


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


गंगा यमुना सरस्वती


तन मन को पावन करती है।


तपोभूमि यह रिषि मुनियों की


रामायण को पढती है।


इस धरती की गोद में खेले


राम कृष्ण भगवान हैं।


मैं उस भारत की बेटी हूं - - - -


रूपा व्यास

ओ!मेरी जन्मदाता।


तेरी वजह से ही मैं बहुत कुछ पाता।


लेकिन तुझसे भी बढ़कर है,मेरे लिए भाग्य-विधाता।


वो,है,मेरी 'भारत माता'।


 


ओ!मेरी अर्धांगिनी।


तू,है,मेरी संगिनी।


तो 'भारत माता' है,मेरी सर्वस्व ।


जिसका अनुकरण करता पूरा विश्व ।।


 


ओ!मेरी बहना अभी है,राखी दूर।


तू,है बस रक्षा-सूत्र बाँधने में चूर।


मैं भी हूँ, मज़बूर।


'भारत-माता' की रक्षा के लिए मरना है मंजूर ।।


 


ओ!मेरे मार्गदर्शन पिता!


तुझसे है,मेरे जन्मों का नाता।


लेकिन मुझे मातृभूमि-प्रेम भाता।


क्योंकि हम-सब की है,एक 'भारत माता'।।


 


ओ!मेरी पुत्री, यदि मैं वापस न आऊं।


और देश-हित मिट्टी में मिल जाऊं।


तो रखना लाज तू ,मेरी बेटी।


बन जाना तू भी राष्ट्र-खातिर भारत माता की मिट्टी।।


 


नाम-रूपा व्यास,


पता-व्यास जनरल स्टोर, न्यू मार्केट, दुकान न.07,'परमाणु नगरी'रावतभाटा


जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान)


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