कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी

स्वतंत्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा ।


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.......


 


अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरे शान की ।


ये बात आ खड़ी है अब तो तेरे स्वाभिमान की ।।


कटे नहीं मिटे नहीं झुके नहीं तो बात है ।


अपने फ़र्ज पर सदा डटे रहे तो बात है ।।


तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जाएगा ।


जो देश प्रति है फर्ज़ अपने फ़र्ज तू निभाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम......वन्दे मातरम.....


 


जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले ।


छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले ।।


भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गई ।


नही झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गई ।।


उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो ।


एक एक करके सबको देश से मिटाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.....


 


मिली हमें आजादी कितने माँ के लाल खो गए ।


हँसते हँसते भारती की गोद जाके सो गए ।।


आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें ।


ना भेद भाव मे बँटे वो साथ जो मिला इन्हें ।।


सौंप ये वतन गए उम्मीदें हमसे बाँध जो ।


संवार के उम्मीद उनकी देश को सजाये जा ।।


 


कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी"


धौरहरा लखीमपुरखीरी


विजयश्री वंदिता

रहे याद सदा भूले ना कभी, बलिदान उन वीर जवानो का 


मर मिटते है सीमा पर जो रहे मान उन वीर जवानो का 


 


आज मुख पर जो आजादी कि लाली ये हमने पाई है 


ये रंगत उनके लहू की है परिणाम है उनकी जानो का 


 


हम अपने घर पर अक्सर जो ये चैन की सांसे लेते है 


ये उनकी बदौलत संभव है करते जो वरन तुफानो का 


 


हम ये जो तिरंगा फहराते ये उन जानो की कीमत है 


ये शान जो उसकी सलामत है ये त्याग है वीर जवानो का 


 


है खड़ा हिमालय अडिग जो है पल पल का पहरेदार है वो 


वहां बिखरी पड़ी बर्फ पर है अनकही कहानी जवानो की 


 


करती हूँ नमन मै उन सबको पाए जो वीरगति को है 


नहीं कोई भी कीमत मुझ पर दे दू जो वीर जवानो को 


 


कहो लिखें वंदिता कैसे अब ये दर्द भरी पाती उनकी 


लिखा होता माँ भारती को प्रणाम लहू से जवानो का ।


 


विजयश्री 'वंदिता'


सुनीता सुवेंद्र सिंह

नन्ने नौनिहाल चले हैं, स्कूल


लेकर हाथ में तिरंगा और फूल


है ,आज इन्हें आजादी का दिवस मनाना


भारत का राष्ट्रीय गान है गाना


किसी ने धरा है गांधी वेष


किसी ने दिया जनसंदेश


मिलकर बदलेंगे भारत की तस्वीर


हम सब बनेंगे ऐसे वीर


भारत प्यारा देश हमारा


तिरंगा निराला है हमारा


सदा रखेंगे इसका मान


इससे ही है हमारी पहचान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा


सैकड़ों वीर हुए कुर्बान


तभी तो मिला हमें


 यह आजादी का जहान


इनकी कुर्बानी है महान


करना है सदा इन पर अभिमान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा।


 


सुनीता सुवेंद्र सिंह


५- जवाहर नगर खंदारी चौराहा


आगरा (उत्तर प्रदेश)


अर्चना बामनगया

रक्त शिराओं में बहता


भारत का स्वाभिमान है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ


जहां जन्म लिए भगवान हैं।


पतित - पावनी धरती इस पर


महापुरुषों ने जन्म लिया।


शौर्य और साहस के बल पर


भारत को आजाद किया।


लाज तिरंगे की खातिर


कुर्बान हुए कई प्राण है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई


आपस में भाई भाई हैं।


इसके वीरों की गाथा


जन जन के मन में छाई है।


कभी दिवाली कभी ईद


कभी होली के त्योहार है


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


गंगा यमुना सरस्वती


तन मन को पावन करती है।


तपोभूमि यह रिषि मुनियों की


रामायण को पढती है।


इस धरती की गोद में खेले


राम कृष्ण भगवान हैं।


मैं उस भारत की बेटी हूं - - - -


रूपा व्यास

ओ!मेरी जन्मदाता।


तेरी वजह से ही मैं बहुत कुछ पाता।


लेकिन तुझसे भी बढ़कर है,मेरे लिए भाग्य-विधाता।


वो,है,मेरी 'भारत माता'।


 


ओ!मेरी अर्धांगिनी।


तू,है,मेरी संगिनी।


तो 'भारत माता' है,मेरी सर्वस्व ।


जिसका अनुकरण करता पूरा विश्व ।।


 


ओ!मेरी बहना अभी है,राखी दूर।


तू,है बस रक्षा-सूत्र बाँधने में चूर।


मैं भी हूँ, मज़बूर।


'भारत-माता' की रक्षा के लिए मरना है मंजूर ।।


 


ओ!मेरे मार्गदर्शन पिता!


तुझसे है,मेरे जन्मों का नाता।


लेकिन मुझे मातृभूमि-प्रेम भाता।


क्योंकि हम-सब की है,एक 'भारत माता'।।


 


ओ!मेरी पुत्री, यदि मैं वापस न आऊं।


और देश-हित मिट्टी में मिल जाऊं।


तो रखना लाज तू ,मेरी बेटी।


बन जाना तू भी राष्ट्र-खातिर भारत माता की मिट्टी।।


 


नाम-रूपा व्यास,


पता-व्यास जनरल स्टोर, न्यू मार्केट, दुकान न.07,'परमाणु नगरी'रावतभाटा


जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान)


ओ पी मेरोठा हाड़ौती

शहीदों को नमन 


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में बारंबार नमन करता हूं


भारत के वीर शहीदों को


नमन करूं उनकी उस धन्य जवानी को


उनके उस धन्य समर्पण को


है नमन मेरा उन माताओं को


जिन्होंनें अपने बेटे खोये


जिनकी पथराही आंखो ने


है रक्त - रक्त आंसू रोये


जिसने उनको पाला था


जो , जी भरकर रो भी न सके


जो कतरा कतरा मरते है


है पिता वो धन्य शहीदों के


हर रोज जो जीकर मरते है


है नमन मेरा उन विधवाओं को


जिन्होंनें अपना सब कुछ खोया


जब महेंदी वाले हाथो ने


सिंदूर स्वयं अपना धोया


नमन करू उन बच्चो और मासूमों को


जिनके कोमल से हाथो ने


कितनी मासूम निगाहों से


जब अग्नि पिता को दी होगी


क्या बीती होगी बहनों पर


राखी वाले उस शुभ दिन पर


जब देख़ वह रक्षा सूत्रो को


तब फूट - फूट रोयी होगी


है धन्य तिरंगा लिपट गया जो


उसके धन्य समर्पण पर


है नमन मेरा सो बार नमन


भारत के वीर शहीदों को


 


 ओ पी मेरोठा हाड़ौती कवि 


   बारां , राजस्थान


मोब -: 8875213775


रामानन्द सागर

ये तन भारती है,वतन भारती है।


लगे इसमें तन, तो वो तन भारती है ।।


 


दीन दुखियों की सेवा में आयें।


आश्रय विहीनों को,आश्रय दिलायें।।


 


लगे इसमें धन तो वो धन भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


कहें जो करें, कह कर फिर बदलें न ।


प्राण चलें जाये फिर भी कहना टले न ।।


 


टले न वचन तो वचन भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


देश की रक्षा में निज तन को लगायें।


 


हंसते हंसते शहीद हो जायें।।


 


मिले जो "तिरंगा" सागर वो कफ़न भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


रामानन्द सागर दरियाबाद बाराबंकी उ०प्र०


अशोक कुमार मिश्र 

यह नींव बनाई है जिन्होंने,


                करके जीवन कुर्बान अपना।


खुशहाली में ही रहें अपनें,


                देखे होंगे यही उन्होंने सपना।।


 


सोंचा भी नहीं होगा यह वे,


                जिसके लिए किया हूँ अर्पण।


हस्र उसका ऐसा भी होगा,


                बन न सकूँगा उसी का दर्पण।।


 


उतावले होंगे पा अधिकार,


                समझेंगे न अर्थ आजादी का।


ब्याख्यायें वह मन की कर,


                खोदने लगेंगे गढ्ढे बर्बादी का।। 


 


ज्ञानी 'पथिक' भी स्वार्थ में, 


                समझ न पाये वे मतलब को। 


स्वतंत्रता प्रतिबन्ध होती है, 


                भूल गया वह उस तलब को।। 


 


सीमाओं में है निखरते रुप, 


                 होते कुरुप जब तोड़ चलते। 


अक्ल ठीकानें लगते सभी, 


                 नशीहतें जैसे वे छोड़ चलते।।


 


मंथन करें आओ मिलकर, 


                  यह वही है क्या ? आजादी। 


जिसको मनाते हैं हम सब, 


                  होके निरंकुश यह आजादी।। 


 


                 


अशोक कुमार मिश्र 


सुगम पार्क, आसनसोल


सुनीता यादव

है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


भार सहकर तदपि आज जीवन दिया।


धैर्य रखकर मुसीबत रवाना किया।


मातृ रत्नावती का करें अनुगमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


पितृवत स्नेह संबल हमेशा दिया।


हो मुसीबत लड़ें वीर जीवन जिया।


आज प्यारे गगन पर फिदा है चमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


राष्ट्र के प्रेम बिन हैं अधूरे सभी।


देश से ही हुए आज पूरे सभी।।


हो सजग आज हम सब करें अब मनन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


   --सुनीता यादव


-- हरगाँव, सीतापुर


 -- 9918711020


रागिनी उपलपवार

ना रुके कदम ना रूकेंगे न हम


ना झुके कभी ना झुकेंगे न हम


देश के खातिर जीते हैं ,


देश पर मर मिटेंगे हम।


 


ना लड़ते कभी ना लडा़ते हैं।


पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते है।


एटम बमों से डरती दुनिया


और राम का पाठ पढ़ाते हम।


 


ऋषियों की वाणी ,वेदों का ज्ञान


क्षमा दया और करके दान


तकनीकी ज्ञान से बढ़ती दुनिया


और मानवता का भाव जगाते हम।


 


प्रेम भाई चारा और सद्भाव


जीवन में देते सुख की छा़व।


भौतिकता से पीडित दुनिया


और ज्ञान का मार्ग दिखाते हम।


 


 


पता-, रागिनी उपलपवार,एम जी 20,फार्चुन इस्टेट फेस -2कोलार भोपाल मध्यप्रदे


डॉ दिवाकर दिनेश गौड़

कर लें राष्ट्र को नमन


चले देशभक्ति की पवन।


        राष्ट्र है तो मिलजुल कर सब


        प्रेम- शांति से रहते हैं


        राष्ट्र है तो लोग सुखी हैं


        अपने मन की करते हैं


        राष्ट्र है तो गौरव है


        राष्ट्र बिना कुछ भी नहीं


        राष्ट्र है तो जीवन है


        बिना राष्ट्र पल भी नहीं


है राष्ट्र ही चमन


कर लें राष्ट्र को नमन।


 


         राष्ट्र है तो सारे दुख


         छोटे, लघुत्तम लगते हैं


         राष्ट्र है तो कांटे भी


         फूल सुगंधित लगते हैं


         राष्ट्र है तो तिरंगा भी 


         उत्सव पर लहराता है


         हर नागरिक आजादी के


         गीत मज़े से गाता है


हों राष्ट्र में मगन


कर लें राष्ट्र को नमन।


चले देशभक्ति की पवन


कर लें राष्ट्र को नमन।


 


 


प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़


गोधरा (गुजरात)


मो- 9426387438


निभा राय नवीन

भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा, 


जिसकी धरती उगले सोना, सूरज करता उजियारा l


जिसके रज कण-कण मे संचित, स्नेहिल भाईचारा, 


पावन नदियाँ गंगा-यमुना, बहती है जलधारा ll


 


श्वेत, हरा, केशरिया पहने, झंडा ऊँचा रहे हमारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर मे सबसे न्यारा ll1ll


 


जहाँ नारी त्याग की मूरत हो, हर माँ ममता की सूरत हो,  


है रीत-रिवाजों का संगम, हर नर-नारी करते वंदन l


हर भाषा-भाषी मिलकर रहते, जैसे इंद्रधनुष के रंग, 


सागर जिसका चरण पखारे, उस भारत माँ का है दम्भ ll


 


जहाँ बुद्ध-विवेका ज्ञान चक्षु ले, धरती पर अवतारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll2ll


 


 जहाँ अतिथि को ईश्वर माना, छः ऋतुएँ लगे सुहाना, 


जहाँ ऋषि-मुनि का डेरा है, गुण-ज्ञान अनन्त बसेरा है l


जहाँ हर डाली पर सुन्दर चिड़ियाँ, गाए शाम-सवेरा, 


जहाँ नित-नूतन रश्मि प्रभा, हर लेती घोर अँधेरा ll


 


जहाँ देव-दनुज के दलन हेतु, मानव तन ले अवतारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll3ll


 


जहाँ सत्य-अहिंसा और धर्म का, पाठ पढ़ाया जाए, 


जहाँ गाँधी-गौतम बुद्ध पुरुष को, शीश नवाया जाए l


जहाँ रामायण और गीता से,जन-जन का गहरा नाता, 


 जहाँ दुराचरण शोषण विरुद्ध, आवाज उठाया जाता ll


 


जहाँ श्वेत, हरा, केशरिया में, सजता है जीवन सारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll4ll


 


जहाँ गौ माता की पूजा हो, नारी देवी सम् पूजनिया, 


मात्-पिता-गुरु चरणों मे, शीश नवाती है दुनिया l


सभ्यता-संस्कृति और स्नेह का अतुलित है भंडारा, 


नर-नारी के स्वर से फूटे, अविरल काव्य की धारा ll


 


जहाँ राम पुरुषोत्तम, केशव प्रेरणा स्रोत पधारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll5ll


 


गौरवमय इतिहास जहाँ का,वेद पुराण बखाना है, 


शौर्यवान सुत शरहद पर, मातृभूमि की शान है l


जँह नारी दुर्गा, झाँसी की रानी बनकर संहार करे, 


सती अनसुइया से ब्रम्हा,विष्णु,महेश स्तनपान करे ll


 


जँह वात्सल्यता यशोदा का, पाने को कृष्ण पधारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll6ll


                                     


नाम -"निभा राय नवीन"


स्थान - (चुनापुर, पूर्णियाँ), बिहार 


गीता सिंह 

भारत माँ का अभिमान बढ़े,


जब ख़ाकी सीना तान चले ।।


 


रात रात भर जागे खाकी,


दिन सड़कों पर काटे खाकी,


मिट्टी की द्योतक है खाकी,


मिट्टी से इसको मान मिले ।। जब खाकी सीना.....


यह संविधान की रक्षक है,


और कर्तव्यों की बोधक है,


जब मातृभूमि हो संकट में,


खाकी रंग फूल तमाम खिले।।जब खाकी सीना .....


खाकी फैशन परिधान नही,


धारण करना आसान नही,


यह लक्ष्य भेदने का प्रतीक,


है झंडे के अभिमान तले ।। जब खाकी सीना ...


माटी से नेह लगाती है,


मिट्टी से जुड़कर जीती है,


कर शपथ ग्रहण दायित्वों का,


आशा के दीप हजार जलें ।। ...जब खाकी सीना..


जब लिए तिरंगा धीर चलें,


खाकी में रंगे वीर चलें,


गाँधी के प्यारे तीर चलें ,


स्वर्णिम स्वप्नों के वितान तले।।जब खाकी .....


जय हिन्द कहा नेता जी ने,


सिंगापुर से ललकार उठी,


मतवाले वीर जवान चले,


गोरों के तोप कमान हिले ।।जब खाकी सीना..


हम भी ख़ाकी तुम भी खाकी,


जय हिन्द कहो भारत माँ की,


खाकी की ताकत देख देख,


अत्याचारी की चूल हिले ।।जब खाकी सीना...


 


गीता सिंह 


पता-सिविल लाइन,प्रयागराज


प्रिया चारण

आओ मिलकर मनाए 15 अगस्त ,


कहते है, गर्व से जिसे स्वंतत्रता दिवस ।


 


तिरंगे को नील गगन में लहराए ,


भारत के हर बच्चे के हाथो में तिरंगा थमाए ।


 


तीन रंगों से मिलकर जो बना है ,


अशोक चक्र जिसमे ,विकासशील विद्यमान है।


 


रंग इसके निराले जग से प्यारे ,


कफ़न तिरंगे सा सुशोभित वाह वाह रे,


 


बिना खड़क ,बिना ढाल किया था, चरखे ने कमाल,


पर इंक़लाब के नारे भी ,हिंदुस्तान से गूँजे थे,


भारत माँ के ,हज़ारो लाल ,फाँसी के फन्दों पर झूले थे।


क्या ? फिर इतनी सस्ती थी आज़ादी ,


जो हम इन वीरो के बलिदान को, 


स्वंतत्रता दिवस के बाद अनदेखा कर यूँ भूले थे ।


 


खेल नही था आज़ादी ,


शब्दों का केवल मेल नही था ,


इंक़लाब और अहिंसा का बेजोड़ द्वन्द था आज़ादी ।


 


जब सुहागन के लाल जोड़े का रंग सफेद हुआ था ।


सिन्दूर माँग का आँसू बन आँख से रुक्सत हुआ था।


जब अपनी माँ का आँचल छोड़, भारत माँ पर ,


लाल केसरी सा ,न्योछावर हुआ था।


 


 


फिर एक नई क्रान्ति आएगी, पुलिस अहिंसा अपनाएगी,


डॉक्टर की टीम इंक़लाब से कोरोना को भगाएगी,


कोरोना से आज़ादी दिलाएगी,


वर्दी रंग जो सफेद हुआ ,


ये ऐतिहासिक 15 अगस्त उन्हें भी सलामी दे जाएगी।


 


जश्ने आज़ादी एक कुर्बानी । जय हिंद


 


प्रिया चारण ,उदयपुर ,राजस्थान


8302854423


माधुरी पौराणिक

आजादी का जशन मनाये


आओ तिरंगे को फहराये।।


लहर लहर लहराए तिरंगा


 


जय भारती जय भारती


हम सब उतारे आरती


आजादी का गीत गाये


मिलकर सब भारती।।


^^


लहर लहर लहराए


तिरंगे को फहराये


नजर उठती जहा तक


हिमालय पर झंडा लपहराये।।


^^


वीर सपूतों का बलिदान


भारत की सुरक्षा का मान


करो शहीदों का सम्मान


नहि भूलेगा ये जहान


^^


जय भारती जय भारती


दुश्मन को संघारती


सीमा पर बैठा है प्रहर


देख रहा भारत भारती।।


^^


15 अगस्त के पावन दिन


सबको याद दिलाता है


वीर सपूतों के बलिदानों का


गाथा के गीत सुनाता है


^^


आओ आजादी का जशन मनाए


आओ तिरंगे को पहरायेB


वन्दे मातरम वन्दे मातरम।।


 


 माधुरी पौराणिक


सहायक अध्यपिका 


प्रा.वि.हस्तिनापुर झाँसी बड़ागाँव


अनुराग दीक्षित

अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


माता करती आर्तव पुकार


अरि शांति भंग करता अपार


सीमा उल्लंघन बार बार


अब शीश काटने हैं अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


है महाशक्ति का अरुण रंग


फड़के सैनिक का अंग अंग


रिपु का करने को अंग भंग


फिर रोक सकेगा कौन कंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


दुंदभी बजे फिर इधर तान


डमरू शिव तांडव का विधान


रणभेरी का हो अखिल गान


सीमा भारत की हो अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


हो वायु शक्ति या जल कमान


सब मिलकर रक्खें देश मान


गौरव का अपने रहे भान


हल सभी प्रश्न होवें ज्वलंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


अरि का मस्तक फिर डोल उठे


हल्दी घाटी फिर बोल उठे


रिपु का फिर शोणित पीने को,


पाताल भैरवी डोल उठे


एक बार दिखा दो दुनिया को,


भारत की ताकत दिग- दिगंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


रणभेरी से ही हल होंगे


इतिहास पूछता मूक प्रश्न


सिर हेमराज का बोल उठे


क़तरा क़तरा फिर खौल उठे


करना ही होगा आज तुम्हें,


इस छद्म युद्ध का सकल अंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


अनुराग दीक्षित


फर्रुखाबाद


लवी सिंह

हे भारत के वीर सपूतों,


नमन तुम्हें शत बार है।


 


दिखाकर जज़्बा देशभक्ति का,देशहित में 


लड़ने को वीर सिपाही रहता हरदम तैयार है


हे देश के वीर सैनिकों तुमको बारम्बार प्रणाम है।  


 


मौत की बिन फिक्र किये,


होठों पर सदा मुस्कान लिये,


देश हित में सीना तान


खड़ा देश का पुत्र महान


हे देशरक्षक हम सब करते तुम्हारा सम्मान। 


 


है देश में रौनक तुमसे ही,


तुमसे ही मांग का सिन्दूर है,


बेटी, बहन की लाज भी तुमसे है,


तुमसे माँ की ममता भरपुर है। 


 


हे मातृभूमि के वीर सिपाही,


तुमको सौ बार प्रनाम है


 


लवी सिंह


असिस्टेंट प्रोफ़ेसर 


इनवर्टीस विश्वविद्यालय 


बरेली


अनन्तराम चौबे अनन्त

लाल किले में फहराया था


तीन रंग का तिरंगा प्यारा ।


स्वतंत्रता पाई थी जब हमने


15 अगस्त का दिन था प्यारा।


 


आजादी पाने को वीरों ने


अपनी जान गंवाई थी ।


तभी तो देश में आजादी


15 अगस्त को पाई थी ।


 


लक्ष्मीबाई ने सबसे पहले


आजादी की लड़ी लड़ाई थी।


आजादी को पाने अंग्रेजों से


वो खूब लड़ी मर्दानी थी ।


 


स्वतंत्रता पाने को रानी ने


अपनी जान गंवाई थी ।


मशाल फूंकी थी आजादी 


की वो झांसी की रानी थी ।


 


भगतसिंह,सुभाषचन्द्र ने


आगे की राह दिखाई थी।


चन्द्रशेखर आजाद ने भी


आजादी की विगुल बजाई थी।


 


राजगुरू सुखदेव ने भी


मिलकर लड़ी लड़ाई थी ।


ऐसे वीर योद्धाओं ने


अंग्रेजों की नींद उड़ाई थी।


 


ऐसे वीर योद्धाओं ने देश


को आजादी दिलाई थी ।


फांसी पर चढ़कर भी


अपनी जान गंवाई थी ।


 


15 अगस्त 1947 को


स्वतंत्रता हमने पाई थी ।


सारा सच तो यही है भाई


वीरों ने जान गंवाई थी ।


 


जन्माष्टमी के दिन भगवान


कृष्ण की खुशियां भी मनाई थी।


सभी देश भक्तों ने मिलकर


जन्माष्टमी खूब मनाई थी ।


 


वीर शहीदों की कुर्बानी को


याद करके फिर दोहरानी है ।


स्वतंत्रता दिवस के शुभ दिन


को तिरंगी की शान बढ़ानी है ।


 


 अनन्तराम चौबे अनन्त


रश्मि लता मिश्रा

मैं हिंदुस्तानी


 


हिंदुस्तान मेरी जान,


 मेरी यही कहानी ।


फक्र मैं हिंदुस्तानी  


फक्र मैं हिंदुस्तानी।


 


ऊँचे पर्वत गहरी नदियाँ


बल खाता सागर है 


नदियों को कहते हैं माता 


पूजें पीपल जड़ है 


पावन गंगा माता का है ,


झर झर बहता पानी।


 फक्र में हिंदुस्तानी।


 


उत्तर ,दक्षिण, पूरब, पश्चिम 


मिलकर सारे एक हैं ।


एक बनाएं अपना भारत ,


सब के इरादे नेक हैं ।


 जात -पात और धर्म भेद की


हुई पुरानी कहानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


 सीमा पर तैनात हैं प्रहरी ।


अपनी आंख बिछाए।


 भारत माता को तड़पाने ।


गर कोई दुश्मन आये।


गांव घरों से निकल पड़ेंगे ।


बनकर हम बलिदानी ।


फक्र में हिंदुस्तानी।।


 


विश्व गुरु की राह चलाएं ।


भारत अपने प्यारे को ।


विश्व ताज सर पर रख वाएँ ।


भारत अपने न्यारेको ।


पूरी दुनिया के वतनो में


  भारत का नहीं सानी।


 फक्र मैं हिंदुस्तानी।।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


पंडित डीडी पाठक अनुराग वशिष्ट

चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा,


देश की रक्षा की खातिर सरहद पर लड़ने जाऊंगा।


 


सेना में शामिल होकर मैं भी रक्षक बन जाऊंगा,


दुश्मन देश की सेनाओ के खट्टे दांत कराऊंगा।


चुन चुन कर दुश्मनों को जहन्नुम में पहुंचाऊंगा।


भारत मां का बनकर सेवक देश का मान बढ़ाऊंगा।


 


कश्मीर से कंयाकुमारी तक तिरंगा मैं फैराऊंगा।


देश की आन की खातिर हंसकर बलिदान हो जाऊंगा। 


चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा।


देश की रक्षा की खातिर सरहद पर लड़ने जाऊंगा।


 


वीर शिवाजी राणा के पद्चिन्हों पर मैं चल जाऊंगा।


खंड खंड में बटे देश को अखंड भारत बनाऊंगा।


स्वामी जी के सपनों का विश्वगुरू भारत मैं बनाऊंगा।


देश की रक्षा की खातिर मैं कुरवानी दे जाऊंगा।


 


चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा।


देश की रक्षा खातिर शरहद पर लडने जाऊँगा।


 


पंडित डीडी पाठक अनुराग वशिष्ट


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 मधुरिम रिश्ते नित सुखद , हैं जीवन वरदान। 


अति कोमल नाजुक सतत , निर्भर नित सम्मान।।१।।


 


निर्भर हो रिश्ते मधुर , त्याग शील परमार्थ।


लघुतर जीवन तब सफल, रिश्ते हो बिन स्वार्थ।।२।।


 


घर बाहर समाज हो , चाहे देश विदेश। 


आपस के व्यवहार पर , रहते रिश्ते शेष।।३।।


 


रिश्ते हैं अनमोल धन , मधुरामृत उपहार।


सखा सहोदर पूत सम , जीवन का आधार।।४।।


 


नीति रीति नित प्रीति पथ , रिश्ते चले अघात।


सरल सहज औदार्यता , रिश्ते मधुर सुहात।।५।।


 


पलभर दुर्लभ जिंदगी , मधुरिम हो सम्बन्ध।


वाच सुभाष सुहास जन , हों रिश्ते तटबन्ध।।६।।


 


राष्ट्र तभी उन्नत शिखर , रिश्ते बिना सबूत। 


शान्ति प्रेम समरस सुखी , हों पड़ोस मज़बूत।।७।।


 


आकर्षण स्नेहिल हृदय , रिश्ते बिना प्रपंच। 


भातृ बन्धु पशु खग सखा , बिना रखे मन रंच।।८।।


 


छोटी सी भी भूल बस , रिश्ते बने खटास।


पल भर में दुश्मन बने , भूले सभी मिठास।।९।।


 


सब मिलकर खिलता निकुंज,पशु पादप खग वृन्द।


तब हो भुवि सुष्मित प्रकृति , रिश्ते सम अरविन्द।।१०।।


 


कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे ज्योतिपुंज शत् शत् प्रणाम


हे ज्योतिपुंज ब्रह्म शत् शत् प्रणाम


लीला तेरी अपरम्पार


कहीं दृश्य तो कहीं अदृष्य 


भ्रम में खोया यह संसार।


 


तेरी अनुभूति से तेरा रुप बनाया


अगणित आकार बना बैठे


मानस मंदिर से दूर कहीं


तेरा घर द्वार बसा बैठे हैं।


 


हर चिंगारी तू अंगार बना


सौरभ बन फूलों का प्राण बना


ले रहे श्वास जो जड़ और चेतन


उसके रग-रग का रक्त संचार बना।


 


हे ज्योतिपुंज ब्रह्म शत् शत् प्रणाम


लीलाएं तेरी अपरम्पार


सर्वत्र व्याप्त छवि तेरी


अविनाशी ब्रह्म तू घट-घट वासी।।


 


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-40


 


चले मिलन जनकहिं रघुनाथू।


गुरु बसिष्ठ-लछिमन लइ साथू।।


    पाछे सकल समाजइ गयऊ।


    सचिव सुमंतु संग जे रहऊ।।


गुरु बसिष्ठ कौसिक ऋषि मिलि के।


करैं बिचार भविष-गति लखि के।।


    कीन्हा नमन राम कौसिकहीं।


    सिय-पितु नृप जनकहिं प्रति नवहीं।।


सिय जननी तब रानि सुनैना।


तुरत गईं जहँ रानिन्ह रहना।।


     सुख-दुख कह सभ समधिन्ह मिलि के।


      हरष-बिषाद नयन जल भरि के।।


जथा-जोग सभ जन मिलि भेंटहिं।


कहहिं-सुनहिं कलेस निज मेंटहिं।।


दोहा-राम-लखन दोउ भाइ मिलि, ऋषिहिं झुकावैं सीष।


        बामदेव-जाबालि सँग,कौसिक देहिं असीष।।


        आयसु पा मुनि अत्रि कै,भरत संग सभ लोग।


        चित्रकूट-कामद-छबी,निरखे भा संजोग ।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा अध्याय(श्रीकृष्णचरितबखान)-3


 


स्थिर चितइ जोरि निज हाथा।


प्रभु-चरनहिं नवाय निज माथा।।


    तजि भव-भय बसुदेव असोका।


    करन लगे स्तुति बिनु रोका।।


प्रकृति अतीत नाथ पुरुषोत्तम।


जानहुँ मैं प्रभु तुमहिं नरोत्तम।।


    नाथ रूप-अनुभूति अनंदा।


    दरस प्रभू कै नंदइ-नंदा।।


मात्र एक प्रभु बुद्धि-प्रमाना।


कहहिं सकल अस बेद-पुराना।।


     जगत त्रिगुनमय सृष्टी करहीं।


     नाथहिं प्रकृति जगत भर रहहीं।।


बिनू प्रबिषटहिं प्रभू प्रविष्टा।


अदृस रहहिं प्रभु जग कै स्रष्टा।।


     कारन-तत्त्व पृथक सभ रहहीं।


     पृथकहिं-पृथक सक्ति सभ अहहीं।।


मिलतइ पर षट दसहिं बिकारा।


तत्व-सक्ति-इंद्रियादिहिं सारा।।


     रचना करि ब्रह्मांडहिं नाथा।


     रहहिं अलख जग-तत्वहिं साथा।।


बुद्धिमात्र गुन-लच्छन देवहिं।


इंद्रिमात्र गुन बिषयहिं सेवहिं।।


    जदपि प्रभू कै उहहिं निवासा।


    पर नहिं दरस नाथ तहँ आसा।।


अंतरजामी,आतम-रूपा।


सत परमारथ नाथ अनूपा।।


     अजर-अमर अरु अलख-असीमा।


     प्रभुहिं अंस सभ जीव महीमा।।


देह-गेह अरु बाग-बिलासा।


साँच नहीं ए रखु बिस्वासा।।


     जदपि नाथ गुनरहित बिकारा।


      तदपि करहिं रचना संसारा।।


रच्छहिं-नासहिं तीनिउ लोका।


सकल प्रकास प्रभू-आलोका।।


     सत्व सुकुल प्रभु बिष्नुहिं रूपा।


     पोषहिं-सरजहिं नाथ अनूपा।।


रुधिर बरन रज ब्रह्मा बनि के।


रचहिं बिस्व प्रभु इहवाँ ठहि के।।


तमोगुनहिं प्रभु कृष्नहिं बरना।


रुद्र रूप बनि नासहिं रचना।।


     नाथ कृपालू सक्ति अनंता।


      मम गृह जनम लीन्ह भगवंता।।


तुमहीं प्रभो सकल जग-स्वामी।


करउ सँहार असुर नृप नामी।।


      सुनहु नाथ ई कंसइ पापी।


       तव अवतार सुनत संतापी।।


धावत इहँ आई लइ सस्त्रा।


मुक्त बृषभ इव परम सुतंत्रा।।


सोरठा-भ्रातन्ह तव सभ जेठ,हता कंस निर्मम हृदय।


           सुनि अवतारहिं श्रेष्ठ,प्रभु सन कह बसुदेव अस।।


           कहे मुनी सुकदेव, सुनहु परिच्छित ध्यान धरि।


          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


सुनील कुमार गुप्ता

बदल गये


"रास्ते वही जीवन के,


यहाँ कदम बदल गये।


जीवन के पथ में साथी,


फिर साथी बदल गये।।


पत्थर की दीवारो के,


यहाँ रूप बदल गये।


कही भक्त कही भगवान,


इस जग में बदल गये।।


भगवान तो वही साथी,


उनके रूप बदल गये।


पहन चोला भक्ति का फिर,


यहाँ भक्त बदल गये।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


 


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