आज हिमालय की छाती
की पीर सुनाने आया हूँ !
फिर से निकले कोई गंगा
नीर बहाने आया हूँ !
लैला को मजनूं रांझा से
हीर मिलाने आया हूँ !
खण्ड खण्ड भारत की मैं
तस्वीर दिखाने आया हूँ !
त्याग तपस्या और कुर्बानी
हाय सभी बेकार हुई !
आजादी की मौज गुलामी
सेज्यादा दुश्वार हुई !
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अब ना कोई चन्दरशेखर
ओर ना राजगुरू होगा !
यवनो से लडने वाला ना
झेलम वीर पुरू होगा !
जौहर के त्योहार तो जैसे
नानी की बातें होगी !
आलम अंधकार का कायम
हाँ ! काली राते होंगी !
आज खडी सीमा पर सेना
बेबस हो लाचार हुई!!
आजादी की मौज गुलामी
से ज्यादा दुश्वार हुई !!!
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राजनीति वाचाल हो गई
नेता हुए खूब मक्कार !
छीना झपटी हाथापाई
और संसद हैै शर्मोसार !
क्या गाँधी ने इसीलिए
थी खाई अंग्रेजों की मार !
बालतिलक ने माँगा था क्या
ऐसा जन्म सिद्ध अधिकार !
मानवता जख्मी है और
घावों से ये चीत्कार हुई!
आजादी की मौज गुलामी
से ज्यादा दुश्वार हुई !!!
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हत्या चोरी और डकेती
जाति धर्म वाला भूचाल !
किसने डाला दूध में खट्टेपन
का चुपके से कूचाल !
एक और रोटी के लाले
उस पाले में मालामाल ।
भूख मिटाने की मजबूरी
हवस भेडिए बने दलाल ।
हाय! यही कारण है फूलन सी
देवी बन खूंखार हुई!
आजादी की की मौज गुलामी
से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!
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*राष्ट्रीय चिह्नो की स्थिति*
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'हॉकी' हारी 'मोर' तडपता
'बाघ' भागता जंगल से !
गुमसुम है मासूम 'तिरंगा'
मंगल चिह्न अमंगल से !
'कमल' महकना छोड़ चुका है
'राजभवन' है दंगल से !
'राष्ट्रगीत' और 'राष्ट्रगान' अब
गाये जाते जिंगल से !
'बट' की छाया को तडपे 'राही'
की करूण पुकार हुई!
आजादी की मौज गुलामी
से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!!
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रचनाकार-पवन गौतम बमूलिया।
अंता जिला बाराँ(राज)