परमानंद निषाद

जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,


वह भारत देश हमारा है,


जो हमारे प्राणों से भी प्यारा है,


जो हमें देती है प्रेरणा वह सीख है,


मातृभूमि की लाज के खातिर,


सर्वश अपना लुटाऊंगा,


इस माटी में जन्म लिया है,


इस माटी में मिल जाना है,


बदन को महकाने के सारी उम्र काट ली,


रूह को अब अपनी महकाओ तो अच्छा है,


वो मातृभूमि की रक्षा करते है,


हम मातृभाषा की कर लेते है,


मातृभूमि का बेटा हूं,


पर सोच हमारा संकीर्ण है,


मातृभूमि का मान लिए उग्र रूप को देखा है,


हर सेनानी इस जग में वीरभद्र को देखा है,


मातृभूमि की रक्षा करने में चाहे,


जीवन तेरा सौ बार आ जाए,


नमन नमन नमन है उनको,


जो मातृभूमि की रक्षा करते है,


जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,


वह भारत देश हमारा है।।


 


*परमानंद निषाद*


*ग्राम- निठोरा,पोस्ट- थरगांव*


*तहसील- कसडोल,जिला- बलौदा बाजार (छत्तीसगढ़)*


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

जन-जन में बस जायेगा


जब राष्ट्रवाद की दृढ़ता


तब भारत में होगा 


भारत की ही स्थिरता।


 


मिट जायेंगे फिर दुश्मन


जो घात लगायें ताक रहे


दिन-दिन विश्व में नाम बढ़े


दोहरे चरित्र वाले कांप रहे।


 


दोहरे चरित्र के क्या कहने


खाते, रहते हिन्द में पलते हैं


मां भारती के गौरव को लेकर ही


नयी - नयी चालें चलते रहते हैं।


 


भारत की पावन धरा रज


हम नित शीश चढ़ाते हैं


आनबान और शान के लिये


मर मिटने को इतराते हैं।


 


सत्य अहिंसा नित बतलाता


भारत की अखण्ड स्वतंत्रता रहे


यह स्वप्न हर भारतवासी का है


हर युगों तक तिरंगा फहरता रहे।



  दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


   महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


संजय निराला

बलिदानों भूल ही सब हुए प्रखर ,


उर में लिए हुए छल कपट !


नीले अम्बर के नीचे है खड़ा तिरंगा ,


स्वेत प्रखर उर लिए हुआ सतत् प्रहत ! 


 


किसने समझा किसने है जाना ,


इसकी पीड़ा को अपना माना !


नित्य खड़ा ये आहें भरता ,


रह गया अब बन भीड़ा !


 


भूल गए सब निर्वासन को ,


बहनों की चीख-पुकारों को !


नित्य लिए स्वाद अपने उर में ,


राष्ट्र पिता बन भटके जग में !


 


सब मिल अब करों जयघोष ,


वंदेमातरम् का ही करो उद्धोष !


है वतन से अगर तुम्हें प्रेम ,


आओ मिल करें इसे अजेय !


                  _____संजय निराला ✍️


दीप्ति मिश्रा 

मेरे सपनों का भारत 


 


बैठी थी एकाकी स्वगेह में 


रही थी निहार शून्य खे में 


सहसा एक कंपित स्वर ने चौंका दिया 


क्षण भर में स्वप्नलोक से धरा पर पहुँचा दिया 


पूछ रहा था कोई मुझसे 


क्या यही है मेरे सपनों का भारत 


भारत मेरा भारत वह भारत 


जिसके लिए वीरों ने प्राण गंवाए 


और स्वतंत्रता के आशा दीप जलाए 


क्या था स्थान भ्रष्टाचार का उसमें 


नेताजी ने जो सपना पलकों में संजोया था 


क्या भुखमरी बेरोजगारी से पीड़ित


 जनता के शोषण का संकल्प कराया था 


राजनीति की बिसात पे झंडा 


सांप्रदायिकता का फहराया था 


छोड़कर अपनी संस्कृति पश्चिमी सभ्यता अपनाने को 


आज की नवयुवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट किया था 


क्या ऐसे ही भारत का स्वप्न अपनी पलकों पर उन्होने संजोया था 


न दे सकी मै उसके एक भी प्रश्न का उत्तर 


खड़ी रही बस यूँ ही मूक बनी हो निरुत्तर 


धीरे धीरे वह आवाज लुप्त हो गई 


किसी देश की समृद्धि का आधार 


होती है उस देश की युवा पीढ़ी 


कर सकती है वही भारत का पुनरुद्धार 


खोजकर सफ़लता की पहली सीढ़ी 


कर सकते हैं कामना प्रयास से पूर्ण सफ़लता की 


जैसी कल्पना की थी पूर्वजों ने हमारे भारत की 


पाप घृणा स्वार्थ से दूर सौहार्द से परिपूर्ण 


क्या ऐसा ही वातावरण दे सकेंगे हम अपने भारत को


 


दीप्ति मिश्रा 


रचित रेनू बाला धार

आजादी वीरों ने दी है


 हम इस के रखवाले हैं 


आज हमारी मातृभूमि


अब हमारे हवाले हैं 


तो देश की आन ,देश की शान


 देश का मान बढ़ालें हम


 आजादी के रखवाले हम 


 


देश के पहरेदार हम हैं 


भावी कर्णधार हम हैं 


वक्त आने पर दिखला देंगे


 हम में कितना दम है 


मुंह की खानी होगी


 जो कोई भी टकरा ले अब 


आज हमारी मातृभूमि 


बस हमारे हवाले हैं


 


 जय जवान जय किसान 


जय विज्ञान का नारा है 


प्यारा प्यारा हिंदुस्तान 


हिंदुस्तान हमारा है


 बहुमुखी प्रगति से इसे


 विश्व विजई बना ले हम 


आज हमारी मातृभूमि बस 


हमारे हवाले हैं


 


 देश हमारा मोम नहीं


 जो यूं ही गल जाएगा


 टीला सा यह नहीं हिमालय 


जो पल में ढल जाएगा


 सबसे ऊंची चोटी पर


 तिरंगा फहरा लें हम 


आज हमारी मातृभूमि 


बस हमारे हवाले हैं 


तो देश के आन देश की शान


 देश का मान बढ़ाने हम ।।


जय हिंद।।


 


रचित रेनू बाला धार


मनोज शर्मा मधुर

बेटे ने पैगाम लिखा है ।


अपनी माँ के नाम लिखा है।।


 


छोटों को है प्यार, बड़ों को


आदर सहित प्रणाम लिखा है।


 


बन्दूकें और तोप खिलौने,


युद्ध खेल का नाम लिखा है।


 


जंग ही होली,जंग दीवाली,


फतह,ईद का नाम लिखा है।


 


संगीनें ही बनीं संगिनी,


कर्म,सजग अविराम लिखा है।


 


मातृभूमि अब माँ है मेरी,


घर को हिन्दुस्तान लिखा है।


 


यदि वैरी रावण-सा तो क्या,


खुद को उसने राम लिखा है।


 


तेरी कोख की पुण्य शहादत,


शोणित से युद्ध-विराम लिखा है।


 


मेरी वीर - प्रसूता माँ,


इस देश ने तुझे सलाम लिखा है।


 


© मनोज शर्मा मधुर


रूपबास,भरतपुर, राजस्थान


मो० 9784 999 333


सुशीला जोशी विद्योत्तमा

इस वतन के हर बशर की शान है पन्द्रह अगस्त।


हर बशर के मान की आन है पन्द्रह अगस्त ।


 


लाखों की कुर्बानियाँ इस दिन में समायी हैं ।


आजादी जनून की पहचान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


मिल जुल सभी के हौसलो ने हासिल इसे किया ।


भारत के हर बशर का ईमान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


खुश नसीब है जो देश पर मर कर अमर हुए ।


वीरो की शहादत का अंजाम है पन्द्रह अगस्त ।।


 


अपने वतन का मजहब इंसानियत है फ़क़त ।


लहराते तिरंगे की मुस्कान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


आजादी का ये जश्न मुबारक सभी को हो ।


हर बशर का एक सम्मान है पन्द्रह अगस्त ।।


 


सुशीला जोशी " विद्योत्तमा "


मुजफ्फरनगर


वीरेन्द्र सिंह वीर

क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


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तुम ऋषि अगस्त्य के वंशज हो


जो चुल्लू में सागर पी डाले,


पन्द्रह अगस्त के तुम मतवाले


जो दुश्मन के सपने धो डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


दाधीच की तुमको मिली विरासत


संधान-समर में दे अस्थि वज्र,


हर बार मिले क्यों तुझे नसीहत


तू तो काल को वश में कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


परशुराम के तुम सुत कहलाते


जन-विहीन जो धरा कर डाले,


मीरा की माटी से तुम्हें रज मिली


जो विष को भी अमृत कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


शून्य को तू-परिपूर्ण करे


व्योंम को 🕉️से भर डाले,


आर्यभट्ट सा तू युग दृष्टा


चाणक्य-चंद्रगुप्त घड़ डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


तू ही पार्थ, तू ही प्रताप


तू ही कर्ण का सामर्थ्य भरे,


तुझमें ध्रुव, एकलव्य भी तू


अभिमन्यु क्षत व्यूह को कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा 


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


गोविन्द के सपूतों की तुम्हें शपथ


है तेरी भुजा में शिवा-भगत,


आ जाए 'वीर' अपनी करनी पर


तू सागर का भी मंथन कर डाले...


फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा


क्यों कर में भुजंग को हो पाले...


 


           वीरेन्द्र सिंह ' वीर '


           म.न. ६१/३६२


           भारी पानी कॉलोनी


           भाभा नगर(३२३३०५)


           रावतभाटा, कोटा, राजस्थान


           


पवन गौतम बमूलिया

आज हिमालय की छाती 


की पीर सुनाने आया हूँ !


फिर से निकले कोई गंगा 


नीर बहाने आया हूँ ! 


लैला को मजनूं रांझा से


हीर मिलाने आया हूँ !


खण्ड खण्ड भारत की मैं 


तस्वीर दिखाने आया हूँ !


 


त्याग तपस्या और कुर्बानी 


हाय सभी बेकार हुई !


 


आजादी की मौज गुलामी 


सेज्यादा दुश्वार हुई ! 


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अब ना कोई चन्दरशेखर 


ओर ना राजगुरू होगा !


यवनो से लडने वाला ना 


झेलम वीर पुरू होगा !


जौहर के त्योहार तो जैसे 


नानी की बातें होगी !


आलम अंधकार का कायम 


हाँ ! काली राते होंगी !


 


आज खडी सीमा पर सेना


बेबस हो लाचार हुई!!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


===================


राजनीति वाचाल हो गई


नेता हुए खूब मक्कार !


छीना झपटी हाथापाई 


और संसद हैै शर्मोसार !


क्या गाँधी ने इसीलिए 


थी खाई अंग्रेजों की मार !


बालतिलक ने माँगा था क्या 


ऐसा जन्म सिद्ध अधिकार !


 


मानवता जख्मी है और 


घावों से ये चीत्कार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


================


हत्या चोरी और डकेती 


जाति धर्म वाला भूचाल !


किसने डाला दूध में खट्टेपन


का चुपके से कूचाल !


एक और रोटी के लाले 


उस पाले में मालामाल ।


भूख मिटाने की मजबूरी 


हवस भेडिए बने दलाल ।


 


हाय! यही कारण है फूलन सी


देवी बन खूंखार हुई! 


 


आजादी की की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!


===================


*राष्ट्रीय चिह्नो की स्थिति* 


===============


'हॉकी' हारी 'मोर' तडपता 


'बाघ' भागता जंगल से !


गुमसुम है मासूम 'तिरंगा' 


मंगल चिह्न अमंगल से !


'कमल' महकना छोड़ चुका है 


'राजभवन' है दंगल से !


'राष्ट्रगीत' और 'राष्ट्रगान' अब 


गाये जाते जिंगल से !


 


'बट' की छाया को तडपे 'राही' 


की करूण पुकार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!!


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रचनाकार-पवन गौतम बमूलिया।


अंता जिला बाराँ(राज)


 


कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी

स्वतंत्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा ।


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.......


 


अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरे शान की ।


ये बात आ खड़ी है अब तो तेरे स्वाभिमान की ।।


कटे नहीं मिटे नहीं झुके नहीं तो बात है ।


अपने फ़र्ज पर सदा डटे रहे तो बात है ।।


तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जाएगा ।


जो देश प्रति है फर्ज़ अपने फ़र्ज तू निभाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम......वन्दे मातरम.....


 


जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले ।


छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले ।।


भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गई ।


नही झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गई ।।


उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो ।


एक एक करके सबको देश से मिटाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.....


 


मिली हमें आजादी कितने माँ के लाल खो गए ।


हँसते हँसते भारती की गोद जाके सो गए ।।


आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें ।


ना भेद भाव मे बँटे वो साथ जो मिला इन्हें ।।


सौंप ये वतन गए उम्मीदें हमसे बाँध जो ।


संवार के उम्मीद उनकी देश को सजाये जा ।।


 


कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी"


धौरहरा लखीमपुरखीरी


विजयश्री वंदिता

रहे याद सदा भूले ना कभी, बलिदान उन वीर जवानो का 


मर मिटते है सीमा पर जो रहे मान उन वीर जवानो का 


 


आज मुख पर जो आजादी कि लाली ये हमने पाई है 


ये रंगत उनके लहू की है परिणाम है उनकी जानो का 


 


हम अपने घर पर अक्सर जो ये चैन की सांसे लेते है 


ये उनकी बदौलत संभव है करते जो वरन तुफानो का 


 


हम ये जो तिरंगा फहराते ये उन जानो की कीमत है 


ये शान जो उसकी सलामत है ये त्याग है वीर जवानो का 


 


है खड़ा हिमालय अडिग जो है पल पल का पहरेदार है वो 


वहां बिखरी पड़ी बर्फ पर है अनकही कहानी जवानो की 


 


करती हूँ नमन मै उन सबको पाए जो वीरगति को है 


नहीं कोई भी कीमत मुझ पर दे दू जो वीर जवानो को 


 


कहो लिखें वंदिता कैसे अब ये दर्द भरी पाती उनकी 


लिखा होता माँ भारती को प्रणाम लहू से जवानो का ।


 


विजयश्री 'वंदिता'


सुनीता सुवेंद्र सिंह

नन्ने नौनिहाल चले हैं, स्कूल


लेकर हाथ में तिरंगा और फूल


है ,आज इन्हें आजादी का दिवस मनाना


भारत का राष्ट्रीय गान है गाना


किसी ने धरा है गांधी वेष


किसी ने दिया जनसंदेश


मिलकर बदलेंगे भारत की तस्वीर


हम सब बनेंगे ऐसे वीर


भारत प्यारा देश हमारा


तिरंगा निराला है हमारा


सदा रखेंगे इसका मान


इससे ही है हमारी पहचान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा


सैकड़ों वीर हुए कुर्बान


तभी तो मिला हमें


 यह आजादी का जहान


इनकी कुर्बानी है महान


करना है सदा इन पर अभिमान


भारत प्यारा देश हमारा


है हमें यह अति प्यारा।


 


सुनीता सुवेंद्र सिंह


५- जवाहर नगर खंदारी चौराहा


आगरा (उत्तर प्रदेश)


अर्चना बामनगया

रक्त शिराओं में बहता


भारत का स्वाभिमान है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ


जहां जन्म लिए भगवान हैं।


पतित - पावनी धरती इस पर


महापुरुषों ने जन्म लिया।


शौर्य और साहस के बल पर


भारत को आजाद किया।


लाज तिरंगे की खातिर


कुर्बान हुए कई प्राण है।


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई


आपस में भाई भाई हैं।


इसके वीरों की गाथा


जन जन के मन में छाई है।


कभी दिवाली कभी ईद


कभी होली के त्योहार है


मैं उस भारत की बेटी हूँ - - - - -


गंगा यमुना सरस्वती


तन मन को पावन करती है।


तपोभूमि यह रिषि मुनियों की


रामायण को पढती है।


इस धरती की गोद में खेले


राम कृष्ण भगवान हैं।


मैं उस भारत की बेटी हूं - - - -


रूपा व्यास

ओ!मेरी जन्मदाता।


तेरी वजह से ही मैं बहुत कुछ पाता।


लेकिन तुझसे भी बढ़कर है,मेरे लिए भाग्य-विधाता।


वो,है,मेरी 'भारत माता'।


 


ओ!मेरी अर्धांगिनी।


तू,है,मेरी संगिनी।


तो 'भारत माता' है,मेरी सर्वस्व ।


जिसका अनुकरण करता पूरा विश्व ।।


 


ओ!मेरी बहना अभी है,राखी दूर।


तू,है बस रक्षा-सूत्र बाँधने में चूर।


मैं भी हूँ, मज़बूर।


'भारत-माता' की रक्षा के लिए मरना है मंजूर ।।


 


ओ!मेरे मार्गदर्शन पिता!


तुझसे है,मेरे जन्मों का नाता।


लेकिन मुझे मातृभूमि-प्रेम भाता।


क्योंकि हम-सब की है,एक 'भारत माता'।।


 


ओ!मेरी पुत्री, यदि मैं वापस न आऊं।


और देश-हित मिट्टी में मिल जाऊं।


तो रखना लाज तू ,मेरी बेटी।


बन जाना तू भी राष्ट्र-खातिर भारत माता की मिट्टी।।


 


नाम-रूपा व्यास,


पता-व्यास जनरल स्टोर, न्यू मार्केट, दुकान न.07,'परमाणु नगरी'रावतभाटा


जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान)


ओ पी मेरोठा हाड़ौती

शहीदों को नमन 


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में बारंबार नमन करता हूं


भारत के वीर शहीदों को


नमन करूं उनकी उस धन्य जवानी को


उनके उस धन्य समर्पण को


है नमन मेरा उन माताओं को


जिन्होंनें अपने बेटे खोये


जिनकी पथराही आंखो ने


है रक्त - रक्त आंसू रोये


जिसने उनको पाला था


जो , जी भरकर रो भी न सके


जो कतरा कतरा मरते है


है पिता वो धन्य शहीदों के


हर रोज जो जीकर मरते है


है नमन मेरा उन विधवाओं को


जिन्होंनें अपना सब कुछ खोया


जब महेंदी वाले हाथो ने


सिंदूर स्वयं अपना धोया


नमन करू उन बच्चो और मासूमों को


जिनके कोमल से हाथो ने


कितनी मासूम निगाहों से


जब अग्नि पिता को दी होगी


क्या बीती होगी बहनों पर


राखी वाले उस शुभ दिन पर


जब देख़ वह रक्षा सूत्रो को


तब फूट - फूट रोयी होगी


है धन्य तिरंगा लिपट गया जो


उसके धन्य समर्पण पर


है नमन मेरा सो बार नमन


भारत के वीर शहीदों को


 


 ओ पी मेरोठा हाड़ौती कवि 


   बारां , राजस्थान


मोब -: 8875213775


रामानन्द सागर

ये तन भारती है,वतन भारती है।


लगे इसमें तन, तो वो तन भारती है ।।


 


दीन दुखियों की सेवा में आयें।


आश्रय विहीनों को,आश्रय दिलायें।।


 


लगे इसमें धन तो वो धन भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


कहें जो करें, कह कर फिर बदलें न ।


प्राण चलें जाये फिर भी कहना टले न ।।


 


टले न वचन तो वचन भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


देश की रक्षा में निज तन को लगायें।


 


हंसते हंसते शहीद हो जायें।।


 


मिले जो "तिरंगा" सागर वो कफ़न भारती है ।


ये तन भारती है, वतन भारती है ।।


 


रामानन्द सागर दरियाबाद बाराबंकी उ०प्र०


अशोक कुमार मिश्र 

यह नींव बनाई है जिन्होंने,


                करके जीवन कुर्बान अपना।


खुशहाली में ही रहें अपनें,


                देखे होंगे यही उन्होंने सपना।।


 


सोंचा भी नहीं होगा यह वे,


                जिसके लिए किया हूँ अर्पण।


हस्र उसका ऐसा भी होगा,


                बन न सकूँगा उसी का दर्पण।।


 


उतावले होंगे पा अधिकार,


                समझेंगे न अर्थ आजादी का।


ब्याख्यायें वह मन की कर,


                खोदने लगेंगे गढ्ढे बर्बादी का।। 


 


ज्ञानी 'पथिक' भी स्वार्थ में, 


                समझ न पाये वे मतलब को। 


स्वतंत्रता प्रतिबन्ध होती है, 


                भूल गया वह उस तलब को।। 


 


सीमाओं में है निखरते रुप, 


                 होते कुरुप जब तोड़ चलते। 


अक्ल ठीकानें लगते सभी, 


                 नशीहतें जैसे वे छोड़ चलते।।


 


मंथन करें आओ मिलकर, 


                  यह वही है क्या ? आजादी। 


जिसको मनाते हैं हम सब, 


                  होके निरंकुश यह आजादी।। 


 


                 


अशोक कुमार मिश्र 


सुगम पार्क, आसनसोल


सुनीता यादव

है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


भार सहकर तदपि आज जीवन दिया।


धैर्य रखकर मुसीबत रवाना किया।


मातृ रत्नावती का करें अनुगमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


पितृवत स्नेह संबल हमेशा दिया।


हो मुसीबत लड़ें वीर जीवन जिया।


आज प्यारे गगन पर फिदा है चमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


राष्ट्र के प्रेम बिन हैं अधूरे सभी।


देश से ही हुए आज पूरे सभी।।


हो सजग आज हम सब करें अब मनन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन..


 


है धरा को नमन सँग गगन को नमन।


है नमन आज प्यारे वतन को नमन।।


 


   --सुनीता यादव


-- हरगाँव, सीतापुर


 -- 9918711020


रागिनी उपलपवार

ना रुके कदम ना रूकेंगे न हम


ना झुके कभी ना झुकेंगे न हम


देश के खातिर जीते हैं ,


देश पर मर मिटेंगे हम।


 


ना लड़ते कभी ना लडा़ते हैं।


पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते है।


एटम बमों से डरती दुनिया


और राम का पाठ पढ़ाते हम।


 


ऋषियों की वाणी ,वेदों का ज्ञान


क्षमा दया और करके दान


तकनीकी ज्ञान से बढ़ती दुनिया


और मानवता का भाव जगाते हम।


 


प्रेम भाई चारा और सद्भाव


जीवन में देते सुख की छा़व।


भौतिकता से पीडित दुनिया


और ज्ञान का मार्ग दिखाते हम।


 


 


पता-, रागिनी उपलपवार,एम जी 20,फार्चुन इस्टेट फेस -2कोलार भोपाल मध्यप्रदे


डॉ दिवाकर दिनेश गौड़

कर लें राष्ट्र को नमन


चले देशभक्ति की पवन।


        राष्ट्र है तो मिलजुल कर सब


        प्रेम- शांति से रहते हैं


        राष्ट्र है तो लोग सुखी हैं


        अपने मन की करते हैं


        राष्ट्र है तो गौरव है


        राष्ट्र बिना कुछ भी नहीं


        राष्ट्र है तो जीवन है


        बिना राष्ट्र पल भी नहीं


है राष्ट्र ही चमन


कर लें राष्ट्र को नमन।


 


         राष्ट्र है तो सारे दुख


         छोटे, लघुत्तम लगते हैं


         राष्ट्र है तो कांटे भी


         फूल सुगंधित लगते हैं


         राष्ट्र है तो तिरंगा भी 


         उत्सव पर लहराता है


         हर नागरिक आजादी के


         गीत मज़े से गाता है


हों राष्ट्र में मगन


कर लें राष्ट्र को नमन।


चले देशभक्ति की पवन


कर लें राष्ट्र को नमन।


 


 


प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़


गोधरा (गुजरात)


मो- 9426387438


निभा राय नवीन

भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा, 


जिसकी धरती उगले सोना, सूरज करता उजियारा l


जिसके रज कण-कण मे संचित, स्नेहिल भाईचारा, 


पावन नदियाँ गंगा-यमुना, बहती है जलधारा ll


 


श्वेत, हरा, केशरिया पहने, झंडा ऊँचा रहे हमारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर मे सबसे न्यारा ll1ll


 


जहाँ नारी त्याग की मूरत हो, हर माँ ममता की सूरत हो,  


है रीत-रिवाजों का संगम, हर नर-नारी करते वंदन l


हर भाषा-भाषी मिलकर रहते, जैसे इंद्रधनुष के रंग, 


सागर जिसका चरण पखारे, उस भारत माँ का है दम्भ ll


 


जहाँ बुद्ध-विवेका ज्ञान चक्षु ले, धरती पर अवतारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll2ll


 


 जहाँ अतिथि को ईश्वर माना, छः ऋतुएँ लगे सुहाना, 


जहाँ ऋषि-मुनि का डेरा है, गुण-ज्ञान अनन्त बसेरा है l


जहाँ हर डाली पर सुन्दर चिड़ियाँ, गाए शाम-सवेरा, 


जहाँ नित-नूतन रश्मि प्रभा, हर लेती घोर अँधेरा ll


 


जहाँ देव-दनुज के दलन हेतु, मानव तन ले अवतारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll3ll


 


जहाँ सत्य-अहिंसा और धर्म का, पाठ पढ़ाया जाए, 


जहाँ गाँधी-गौतम बुद्ध पुरुष को, शीश नवाया जाए l


जहाँ रामायण और गीता से,जन-जन का गहरा नाता, 


 जहाँ दुराचरण शोषण विरुद्ध, आवाज उठाया जाता ll


 


जहाँ श्वेत, हरा, केशरिया में, सजता है जीवन सारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll4ll


 


जहाँ गौ माता की पूजा हो, नारी देवी सम् पूजनिया, 


मात्-पिता-गुरु चरणों मे, शीश नवाती है दुनिया l


सभ्यता-संस्कृति और स्नेह का अतुलित है भंडारा, 


नर-नारी के स्वर से फूटे, अविरल काव्य की धारा ll


 


जहाँ राम पुरुषोत्तम, केशव प्रेरणा स्रोत पधारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll5ll


 


गौरवमय इतिहास जहाँ का,वेद पुराण बखाना है, 


शौर्यवान सुत शरहद पर, मातृभूमि की शान है l


जँह नारी दुर्गा, झाँसी की रानी बनकर संहार करे, 


सती अनसुइया से ब्रम्हा,विष्णु,महेश स्तनपान करे ll


 


जँह वात्सल्यता यशोदा का, पाने को कृष्ण पधारा l


भारत देश हमारा प्यारा, दुनिया भर में सबसे न्यारा ll6ll


                                     


नाम -"निभा राय नवीन"


स्थान - (चुनापुर, पूर्णियाँ), बिहार 


गीता सिंह 

भारत माँ का अभिमान बढ़े,


जब ख़ाकी सीना तान चले ।।


 


रात रात भर जागे खाकी,


दिन सड़कों पर काटे खाकी,


मिट्टी की द्योतक है खाकी,


मिट्टी से इसको मान मिले ।। जब खाकी सीना.....


यह संविधान की रक्षक है,


और कर्तव्यों की बोधक है,


जब मातृभूमि हो संकट में,


खाकी रंग फूल तमाम खिले।।जब खाकी सीना .....


खाकी फैशन परिधान नही,


धारण करना आसान नही,


यह लक्ष्य भेदने का प्रतीक,


है झंडे के अभिमान तले ।। जब खाकी सीना ...


माटी से नेह लगाती है,


मिट्टी से जुड़कर जीती है,


कर शपथ ग्रहण दायित्वों का,


आशा के दीप हजार जलें ।। ...जब खाकी सीना..


जब लिए तिरंगा धीर चलें,


खाकी में रंगे वीर चलें,


गाँधी के प्यारे तीर चलें ,


स्वर्णिम स्वप्नों के वितान तले।।जब खाकी .....


जय हिन्द कहा नेता जी ने,


सिंगापुर से ललकार उठी,


मतवाले वीर जवान चले,


गोरों के तोप कमान हिले ।।जब खाकी सीना..


हम भी ख़ाकी तुम भी खाकी,


जय हिन्द कहो भारत माँ की,


खाकी की ताकत देख देख,


अत्याचारी की चूल हिले ।।जब खाकी सीना...


 


गीता सिंह 


पता-सिविल लाइन,प्रयागराज


प्रिया चारण

आओ मिलकर मनाए 15 अगस्त ,


कहते है, गर्व से जिसे स्वंतत्रता दिवस ।


 


तिरंगे को नील गगन में लहराए ,


भारत के हर बच्चे के हाथो में तिरंगा थमाए ।


 


तीन रंगों से मिलकर जो बना है ,


अशोक चक्र जिसमे ,विकासशील विद्यमान है।


 


रंग इसके निराले जग से प्यारे ,


कफ़न तिरंगे सा सुशोभित वाह वाह रे,


 


बिना खड़क ,बिना ढाल किया था, चरखे ने कमाल,


पर इंक़लाब के नारे भी ,हिंदुस्तान से गूँजे थे,


भारत माँ के ,हज़ारो लाल ,फाँसी के फन्दों पर झूले थे।


क्या ? फिर इतनी सस्ती थी आज़ादी ,


जो हम इन वीरो के बलिदान को, 


स्वंतत्रता दिवस के बाद अनदेखा कर यूँ भूले थे ।


 


खेल नही था आज़ादी ,


शब्दों का केवल मेल नही था ,


इंक़लाब और अहिंसा का बेजोड़ द्वन्द था आज़ादी ।


 


जब सुहागन के लाल जोड़े का रंग सफेद हुआ था ।


सिन्दूर माँग का आँसू बन आँख से रुक्सत हुआ था।


जब अपनी माँ का आँचल छोड़, भारत माँ पर ,


लाल केसरी सा ,न्योछावर हुआ था।


 


 


फिर एक नई क्रान्ति आएगी, पुलिस अहिंसा अपनाएगी,


डॉक्टर की टीम इंक़लाब से कोरोना को भगाएगी,


कोरोना से आज़ादी दिलाएगी,


वर्दी रंग जो सफेद हुआ ,


ये ऐतिहासिक 15 अगस्त उन्हें भी सलामी दे जाएगी।


 


जश्ने आज़ादी एक कुर्बानी । जय हिंद


 


प्रिया चारण ,उदयपुर ,राजस्थान


8302854423


माधुरी पौराणिक

आजादी का जशन मनाये


आओ तिरंगे को फहराये।।


लहर लहर लहराए तिरंगा


 


जय भारती जय भारती


हम सब उतारे आरती


आजादी का गीत गाये


मिलकर सब भारती।।


^^


लहर लहर लहराए


तिरंगे को फहराये


नजर उठती जहा तक


हिमालय पर झंडा लपहराये।।


^^


वीर सपूतों का बलिदान


भारत की सुरक्षा का मान


करो शहीदों का सम्मान


नहि भूलेगा ये जहान


^^


जय भारती जय भारती


दुश्मन को संघारती


सीमा पर बैठा है प्रहर


देख रहा भारत भारती।।


^^


15 अगस्त के पावन दिन


सबको याद दिलाता है


वीर सपूतों के बलिदानों का


गाथा के गीत सुनाता है


^^


आओ आजादी का जशन मनाए


आओ तिरंगे को पहरायेB


वन्दे मातरम वन्दे मातरम।।


 


 माधुरी पौराणिक


सहायक अध्यपिका 


प्रा.वि.हस्तिनापुर झाँसी बड़ागाँव


अनुराग दीक्षित

अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


माता करती आर्तव पुकार


अरि शांति भंग करता अपार


सीमा उल्लंघन बार बार


अब शीश काटने हैं अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


है महाशक्ति का अरुण रंग


फड़के सैनिक का अंग अंग


रिपु का करने को अंग भंग


फिर रोक सकेगा कौन कंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


दुंदभी बजे फिर इधर तान


डमरू शिव तांडव का विधान


रणभेरी का हो अखिल गान


सीमा भारत की हो अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


हो वायु शक्ति या जल कमान


सब मिलकर रक्खें देश मान


गौरव का अपने रहे भान


हल सभी प्रश्न होवें ज्वलंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


अरि का मस्तक फिर डोल उठे


हल्दी घाटी फिर बोल उठे


रिपु का फिर शोणित पीने को,


पाताल भैरवी डोल उठे


एक बार दिखा दो दुनिया को,


भारत की ताकत दिग- दिगंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


रणभेरी से ही हल होंगे


इतिहास पूछता मूक प्रश्न


सिर हेमराज का बोल उठे


क़तरा क़तरा फिर खौल उठे


करना ही होगा आज तुम्हें,


इस छद्म युद्ध का सकल अंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


अनुराग दीक्षित


फर्रुखाबाद


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