डॉ शिव शरण श्रीवास्तव अमल

ज्योतिष क्या है ?


दुनिया में लगभग सभी लोग ज्योतिष के बारे में किसी न किसी रूप में चर्चा करते है,कोई इसे शत प्रतिशत सही मानता है तो कोई इसे अंध विश्वास ,तो कोई इसके बारे में स्पष्ट राय नहीं रखते परन्तु किसी न किसी रूप में मानते जरूर है ।


    वास्तव में ज्योतिष एक विशुद्ध विज्ञान है जो गृह,नक्षत्र,खगोलीय घटनाएं आदि पर आधारित है ।


      जिस तरह किसी रोग के निदान हेतु एक कुशल चिकित्सक दवा के साथ परहेज़ बताता है ,तथा यदि रोगी चिकित्सक द्वारा बताई औषधि को सही तरीके से इस्तेमाल करता है और चिकित्सक द्वारा बताए अनुसार परहेज़ करता है तो उस रोग के समाप्त हो जाने की पूरी,पूरी संभावना रहती है,फिर भी यदा_कदा फायदा नहीं भी मिलता है,क्योंकि कुछ चीजें ईश्वर के अधीन रहती है,ठीक इसी तरह ज्योतिष के बारे में भी समझना चाहिए,एक कुशल ज्योतिषी द्वारा बताए गए उपाय के साथ ही साथ यदि परहेज़ (अचार, ब्यव हार) का पालन किया जाय तो सफलता की पूरी,पूरी संभावना रहती है ,फिर भी यदि यदा _कदा पूरी तरह सफलता न मिले तो ज्योतिष को अंध विश्वास कहना किसी भी तरह उचित नहीं है।


     वस्तु तः जिस तरह तेज धूप से बचने के लिए छाता अथवा तेज बारिश से बचने के लिए रेन कोट सहायक है उसी तरह ज्योतिष को भी मानना चाहिए।


     ज्योतिषीय उपाय के साथ ही साथ अचार, ब्यव्हार में आवश्यक सुधार करने से निश्चित रूप से लाभ उठाया जा सकता है ।



डॉ शिव शरण श्रीवास्तव अमल


(कवि, लेखक, वक्ता, ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ)


9424192318


डॉ शिव शरण श्रीवास्तव अमल

हे जगन्नियंता, जग नायक,


हे जगदा धार प्रणाम तुम्हे ।


हे एक दंत, हे ज्ञान वंत,


प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।


हो खल_गंजन,तुम दुःख_भंजनं,


हो जन_रंजन, अभिराम तुम्हीं ।


हो निराकार तुम निर्गुण हो,


साकार रूप निष्काम तुम्ही।।


काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह,


छल, दंभ, द्वेष, दुःख नाशी हो ।


तुम अन्तर्यामी, जग स्वामी,


कण_कण, घट_घट में बासी हो ।। 


हे लम्बोदर, हे विघनेश्वर,


हे परम उदार प्रणाम तुम्हे ।


हे एक दंत, हे ज्ञान वं त,


प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।


तुम भुव पति, भव पति, भुवन पती,


हो भरग , ईश, ईशान भी हो ।


हो भूत, भूत पति,भवापती,


तुम भक्त_भरण, भगवान भी हो ।।


महिमा मय हो, मंगल मय हो,


मृत्युञ्जय हो, शत्रुंजय हो ।


हे विघ्न विनाशक, गण नायक,


तेरी जय हो, तेरी जय हो ।।


हे शोक नसावन, भय _भाजन,


जीवन आधार प्रणाम तुम्हे ।


हे एक दंत है ज्ञान वं त,


प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।


तुम ही जगती के संचालक,


माया पति हो, महिमा कर हो ।


भक्तों के पालनहार हो तुम,


करुणा कर के करुणा कर हो।।


तुम सत्यम, शिवम्, सुंदरम का,


सारांश तत्व दिखलाते हो।


तुम सत्य, चित्त, आनंद रूप,


का सत आभास कराते हो ।।


हे क्षमा_शील, हे दया वान,


जीवन पतवार प्रणाम तुम्हे।


हे एक दंत, हे ज्ञान वं त,


प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।


सर्वत्र अनीति, अनय फैली,


पापो ने डाला डेरा है।


भय, क्लेश, कलह, पाखंड, छद्म,


से चारों तरफ अंधेरा है ।।


रिश्ते_नाते, सब लुप्त हुए,


स्वारथ का भाई_चारा है।


है मत्स्य _न्याय से त्रस्त जगत,


सज्जन का नहीं गुजारा है।।


आ जाओ मन_मानस_मराल,


जग के करतार प्रणाम तुम्हे ।


हे एक दंत,है ज्ञान वं त,


प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।


हो विद्या, बुद्धि, प्रदाता तुम,


जग मंगल करने वाले ही ।


गज_वदन, सदन_सुखदायक हो,


सब संकट हरने वाले हो ।।


स्रष्टा हो सारी सृष्टि के तुम,


दृष्टा हो ब्यष्टी_समष्टि के तुम।


हो प्रिय जन के प्रतिपाल तुम्ही,


बादल हो दया की बृष्टि के तुम।।


हे सर्वेश्वर, हे परमेश्वर,


हे तारण हार प्रणाम तुम्हे ।


हे एक दंत , हे ज्ञान वं त,


प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।


विश्राम हो तुम विश्रां तो के,


ध्यानी_धारो, के ध्यान हो तुम।


भक्तों के जीवन_प्राण हो तुम,


भव_भय_हारी, भगवान हो तुम।।


हो पाप, ताप, दुःख हारी तुम,


संसार चलाने वाले हो।


जल_चर, थल_चर, नभ_चर वासी,


सब जीवों के रखवाले हो ।।


हे अलख, अगोचर, अनंत_चर,


गणपति , सुखसार प्रणाम तुम्हे ।


हे एक दंत, है ज्ञान वं त,


प्रभु बारंबार प्रणाम तुम्हे ।।



डॉ शिव शरण श्रीवास्तव अमल


दुर्गा प्रसाद नाग

सांस रुकने लगी, आंख दुखने लगी,


याद आई तेरी, गीत गाने लगे।


 


एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,


भूलने में जिसे हैं, जमाने लगे।।


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मेरे पलकों पे आंसू की अर्थी सजी,


मुस्कराओ तो फिर ये जनाजा उठे।


 


फिर जले यूं चिता, मेरे अरमानों की,


दिल में उम्मीद का, फिर धुआं सा उठे।।


 


मैने मन्दिर बनाया उसी मोड़ पर,


जिस रस्ते से तुम आने जाने लगे।


 


एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,


भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।


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मन के मन्दिर में मूरत तेरी बस गयी,


बंद आंखे करूं ध्यान तेरा ही हो।


 


जब करूं प्रार्थना,तू ही आए नजर,


आरती जो करूं, नाम तेरा ही हो।।


 


मेरी सारी तपस्या विफल हो गई,


कॉलेज छोड़कर जब वो जाने लगे।


 


एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,


भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।


_____________________


 


तेरे दीदार को मैं तरसता रहा,    


रात दिन आंसुओं में ये आंखे जलीं।


 


तू नहीं जानती, कितना भटका हूं मैं,


 


तुझसे होके जुदा, मौत भी न मिली।।


 


ओढ़ कर तेरी चूनर को, सो जाएं जब,


स्वप्न में ही महल हम बनाने लगे।


 


एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,


भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।


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तेरी हर खामियां, खूबियां बन गईं,


तुम जो रूठी, तो फिर से मना लूंगा मैं।


 


गर तेरा साथ हो, बीती हर बात हो,


रेत के फिर घरौंदे बना लूंगा मैं।।


 


अपने घर बार के, रास्ते भूलकर,


तेरी चौखट पे सर को झुकाने लगे।


 


एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,


भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।


_____________________


दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा- खीरी


(उत्तर प्रदेश)


मोo- 9839967711


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

 मैं शिक्षक निर्माणक हूँ,


 


शिक्षण हेतु बना मैं शिक्षक,


नीति रीति पथ परिपोषित हूँ।


नव जीवन नवयुग आधानक,


मैं नित शिक्षक निर्माणक हूँ।


 


विनयशील हो त्याग समन्वित,


नवयुग का नूतन वीक्षक हूँ।


नवजातों अरु नवांकुरों के,


नवजीवन रच संरक्षक हूँ।


 


सिंचन वर्धन ज्ञानामृत से,


सुयोग्य सुपात्र निर्माणक हूँ।


पुराकाल गुरुकुल से लेकर,


विद्यार्थी और शिक्षक भी हूँ।


 


नवयुगीन शिक्षा पद्धति तक


लक्ष्य सर्वदा शिक्षण भी हूँ।


नित "तमसो मा ज्योतिर्मय गमय"


यह दिव्य अलख जगाया हूँ।


 


सदाचार नित सद्विचार का 


भविष्यार्थ ज्ञान पिलाया हूँ।


अर्थनीति सह धर्मनीति का,


ज्ञानामृत पान कराया हूँ।


 


सदियों से लेकर अबतक हम,


सारस्वत विहार कराया हूँ। 


ज्ञानक्षीर व विवेक नीर से,


विद्यार्थी हंस बनाया हूँ।


 


गोविन्द श्रेष्ठ बन नवयुग को,


सुरभि चारु पुष्प सजाया हूँ।


सुखद समुन्नत यश सौरभ से,


नित गन्धमाद रच पाया हूँ।


 


नवपीढ़ी को नवनीत बनाकर ,


भारत गौरव गुण गाया हूँ।


सदा निरत बन परहित शिक्षक,


विद्यार्थी जीवन गायक हूँ।


 


बुद्धिमान और बुद्धि विशारद,


शिष्य संस्कार दे पाया हूँ।


शुक्र,धौम्य ,कृप, गुरु, संदीपनि,


त्याग सदा गुरु पद पाया हूँ।


 


वशिष्ठ ,भृगु , रत्नाकर , गौतम,


संघर्षक गुरु बन पाया हूँ।


राम, कृष्ण अरु पार्थ महार्णव,


इतिहास पुरुष निर्माणक हूँ।


 


प्रकृति सिद्ध निश्छल मनभावक,


त्याग गुण शील उन्नायक हूँ।


श्रावक नायक शुद्ध विनायक,


पथ सार्थवाह दिग्दर्शक हूँ।


 


सदा समादृत सामाजिक में,


युगपरिवर्तक शुभ शिक्षक हूँ।


ज्ञानामृत बन चरणामृत को,


विद्यार्थी पान कराया हूँ।


 


सतत विचारक मानक उद्यम,


सुन्दर जीवन रच रत्नाकर हूँ।


देश काल जन भाग्य विधायक,


चिरन्तन मानक शाश्वत हूँ।


 


दिग्दर्शक जन भावन अनुपम,


यायावर वाहक शिक्षक हूँ।


किन्तु आज मैं बदल गया यूं ,


भौतिकता संलिप्त हुआ हूँ।


 


गुरुता नैतिकता पर लघुता,


ज्ञान तिमिर में बदल गया हूँ।


धनलोलुप नित अहंकार रत,


सत्मार्ग विरत बन छाया हूँ।


 


गरिमा गुरुता सम्पूज्य जगत,


मैं शिक्षक अब भूल गया हूँ। 


मातु पिता,अभिभावक ,भाई, 


विश्वास कहीं अब खो गया हूँ।


 


मीत प्रीत समभाव समाहित,


क्या मैं अलख जगाया हूँ।


निज गुरुत्व गुरुता सम्मानित,


वात्सल्य, ममता दे पाया हूँ।


 


अपनापन मधुरिम भाव हृदय,


छात्र मनसि भाव जगाया हूँ।


संरक्षक शासक संचालक,


अहर्निश अग्रदूत बन पाया हूँ।


 


शान्त धीर व्यक्तित्व मनोहर,


गम्भीर सुभाष रह पाया हूँ।


भौतिक सुख लोभी रत अविरत,


शिक्षक विस्मृत कर आया हूँ।


 


मैं शिक्षक हूँ वरदान ईश,


गुरुदेव , मानो इल्मकार हूँ।


सप्तसिन्धु विज्ञानक नवरस,


दशा दिशा मनुज परिवर्तक हूँ।


 


नवयुग का निर्माणक सत्पथ,


आदर्श पुरुष बन छाया हूँ।


यायावर ईमान सत्य पथ,


आलोक ज्ञान गुरु बन आया हूँ।                                   


 


गौरवमय इतिहास हमारा,                                  


आज इसे हम भूल न जाएँ।                           


करें सुशिक्षित शिष्यवृन्द को,                      


नवजीवन का दीप जलाएँ।                           


 


ज्ञान पूंज जो चरित पुरोधा,       


सद्शिक्षक पद लाज बचाएँ ।                


पावन त्रिदेव सम ज्ञानवान,                              


स्वयं ज्ञान परब्रह्म कहाएँ।                               


 


मत पड़ें लोभ के चक्कर में ,                           


गुरु ख्याति सम्मान भी पाएँ।                               


चलें पुनः सत्पथ यायावर,


सद्गुरु बन फिर मान बचाएँ।                         


 


पर आज हमारी व्यथा- कथा,                                 


गुरु नाम से जन घबराते हैं।                                  


भक्ति प्रेम आदर गरिमा मय,                                    


अब शिक्षक से कतराते हैं।                      


 


शिक्षक दिवस के अवसर पर,                                  


निज चिरगाथा हम याद करें।                                      


सच में गुरुतम हम शिक्षक बन,                       


भारत माता सम्मान करें।                                          


 


आओ सब मिलकर गुरुगायन,                             


शिक्षक शिक्षा का शान बनें।                                    


सुमार्ग पुरोधा होता बन,                          


नवभारत का निर्माण करें।                                 


 


रचनाकारः डॉ.राम कुमार झा निकुंज


स्थानः नयी दिल्ली


डॉ बीके शर्मा

यह ज्ञान तो गंगा समान है


 


जगती मुझ पर बार करे 


मैं जगती पर बारूं |


लूटे जगती लुट जाऊं मैं 


मन से कभी ना हारूं ||


 


 ब्रह्म रूप इस अग्नि में


 दे दूं तन की आहुति |


ऐसी भस्म बनूं में जलकर


क्रिया रहें ना मेरी अछूती ||


 


 तुम अविनाशी तुम ही सनातन


 आपका चिंतन मेरा हवन हो |


आप परम हैं आप पिता हैं


आप में ध्यान आप में मन हो ||


 


अब प्राणों से प्राण यज्ञ है


क्या कर्म और क्या कर्तव्य है |


सृष्टि कर्ता तत्वों के स्वामी


क्या द्रव्यमय क्या ज्ञान यज्ञ है ||


 


आपको अर्पण मेरा तन मन 


आप ही करते दुख का छेदन


यह ज्ञान तो गंगा समान है 


ऐसा तेरा गीता ज्ञान है।


 


डॉ बीके शर्मा


 उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


आभा दवे

हाइकु-अनंत चतुर्देशी पर


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1) अनंत रूप 


   ढल जाते गणेश 


   मूषक संग ।


 


2) दस दिन ही 


    विराजते घरों में 


    देते आशीष ।


 


3) विदाई बेला


  अनंत चतुर्दशी


   हों जलमग्न।


 


4) धूमधाम से 


   भक्त करते विदा 


    बप्पा मोरया ।


 


5) विसर्जन से 


   हो गणेश उत्सव 


   का समापन ।


 


6) पूजते सदा 


  प्रथमेश गणेश 


   हर जगह ।


 


आभा दवे


मुंबई


सुषमा दीक्षित शुक्ला

कान्हा मुरली ना बजाओ,


 आधी रतियन मा ।


 कान्हा हमका ना सताओ,


 आधी रतियन मा ।


कान्हा मुरली ना बजओ ,


 आधी रतियन मा ।


कान्हा निदिया ना चुराओ ,


आधी रतियन मा ।


 शाम सवेरे रोज दिखत हो ,


 जमुना जी के तीर।


 ग्वाल बाल गोपिन संग खेलत ,


 हमरे मनवा पीर ।


कान्हा हियरा ना जलाओ,


 आधी रतियन मा ।


कान्हा हमका ना सताओ ,


 आधी रतियन मा ।


 कान्हा मुरली ना बजाओ ,


  आधी रतियन मा ।


 कान्हा तुम्हरी सांवरि सूरति ,


 भोले भाले नयना ।


तुम मनमोहन जनम के नटखट,


 मीठे तुम्हरे बयना ।


कान्हा चैना ना चुराओ ,


 आधी रतियन मा ।


कान्हा हमका ना सताओ ,


आधी रतियन मा ।


कान्हा मुरली ना बजाओ ,


आधी रतियन मा ।


भोर भये पनघट पर आऊँ ,


सुन मनमोहन प्यारे ।


वंशी तुम्हरी आज चुरा लूँ,


तुम दुनिया से न्यारे ।


कान्हा हमका ना बुलाओ ,


आधी रतियन मा ।


कान्हा मुरली ना बजाओ ,


आधी रतियन मा ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


डॉ0 रामबली मिश्र

कान्हा की वंशी की ध्वनि सुन।


सारी सखियों का हर्षित मन।।


 


कान्हा से मिलने को व्याकुल।


तोड़ रहीं अपना सारा तन।।


 


बढ़ती जाती बेचैनी है।


चाह रहीं वंशीमय हो मन।।


 


युग-युग से हैं भूखी-प्यासी।


चाह रही हैं कान्हा का तन।।


 


वंशी की आवाज सुरीली।


पर न्योछावर सब तन मन धन।।


 


नहीं रोक पाती हैं सखियाँ ।


पर मजबूरी में उनका मन।।


 


हाय कृष्ण ,हे मुरलीवाले।


आओ अब तुम मेरे उपवन।।


 


या वंशी की तान न छेड़ौ।


या आओ अब मेरे जीवन।।


 


विरहिन तुम मत हमें बनाओ।


आस बने तुम करो सुहागन।।


 


मत निराश कर प्यारे कान्हा।


लेकर चल हम सबको मधुवन।।


 


या यमुना के तट पर चलकर।


चूमेगे हम प्रिय श्याम वदन।।


 


मत ललचाओ हे प्रियतम तुम।


बरसो बनकर प्रेम श्याम -घन ।।


 


रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


सुनील कुमार गुप्ता

एक ऐसा युग पुरूष,


छोड़ चला दुनियाँ को-


फिर न मिलेगा कोई।


राजनीति के स्तम्भ,


लौहा मनते सब-


उन जैसा मिलेगा न कोई।


वित्त मंत्री के रूप में,


खूब कमाया नाम-


उन जैसा मिलेगा न कोई।


सत्ता पक्ष हो या विपक्ष,


सभी में पाया सम्मान-


उन जैसा मिलेगा न कोई।


छोड़ कर वो चला गया,


नाम अमर कर गया-


उन जैसा मिलेगा न कोई।


पूर्व राष्ट्पति प्रणव मुख्रर्जी जी को,


देव लोकमें भी मिले सम्मान-


और न कामना कोई।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


सुनीता असीम

ये जाके सजन को ख़बर कीजिए।


मुहब्बत को उनकी नज़र कीजिए।


****


अकेले कटेगा नहीं ये सफ़र।


ज़रा दिल में आके बसर कीजिए। 


****


दिखे चारसू चांदनी चांदनी।


कभी ज़िन्दगी को क़मर कीजिए।


****


कि मंज़िल मिलेगी हमें एक दिन।


अगर कुछ समय का सबर कीजिए।


****


न छोटा न कोई बड़ा है यहां।


जो अपना बड़ा कुछ जिगर कीजिए।


****


ये जीवन बनेगा ग़ज़ल इक सही।


सही आप इसकी बहर कीजिए।


****


यही है खुदा से महज इक अरज।


दुआओं में मेरी असर कीजिए।


****


सुनीता असीम


डॉ0 रामबली मिश्र

नम्र विनम्र सहज शलीना।


सदा ध्यान सम्मान प्रवीना।।


 


हिय में रुचि मन में अति हर्षा।


अंतस में सावन की वर्षा।।


 


खोज-खबर की इच्छा हर पल।


गर्मजोश मादक मृदु हलचल।।


 


परम समर्पण भाव सुधा सम।


उद्वेलित प्रिय मानस आगम।।


 


चाहत मेँ संवाद स्नेहमय ।


भीतर से आवाद गेहमय।।


 


अति संतुष्टमना प्रियदर्शी।


शलिग्राम सम ब्रह्म-महर्शी।।


 


वचन रसामृत सुघर सलोना।


भावुक जीवन का हर कोना।।


 


सहयोगी प्रवृत्ति मनभावन।


साहचर्य अति हृदय लुभावन।।


 


अति विशालता का नित परिचय।


संभावित व्यापकता अतिधय।।


 


दिव्य रीति रस का आलय है।


सत्व प्रेम का देवालय है।।


 


डॉ0रामबली मिश्र


हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

मेरे जीवन के उपवन के,


सूखे पुष्प शीघ्र खिल जाते।


पूनम की संध्या-वेला में-


सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।


 


उमस-ताप से व्याकुल धरती,


को भी अद्भुत सुख अति मिलता।


उछल-उछल कर नदियाँ बहतीं,


लखकर प्रेमी हृदय मचलता।


पावस बिना गगन में घिर-घिर-


अमृत जल बादल बरसाते।


       सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।


 


तेरे गीत सुहाने सुनकर,


पशु-पंछी अति हर्षित होते।


सुनकर तेरे मधुर बोल को,


जगते जो भी दिल हैं सोते।


फँसे कष्ट में व्यथित-थकित मन-


औषधि मीठी पा मुस्काते।


       सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।


 


मस्त हवा भी लोरी गाती,


सन-सन बहती जो गलियों में।


लाती गज़ब निखार चमन में,


भरकर गंध मृदुल कलियों में।


भन-भन भ्रमर-गीत मन-भावन-


को सुन प्रेमी-मन लहराते।


      सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।


 


प्रकृति नाचने लगती सुनकर,


तेरा गान विमल अति पावन।


बिना सुने ज्यों कहीं दूर से,


स्वर ढोलक का लगे सुहावन।


बिना सुने अनुभूति गीत से-


विरही-हृदय परम सुख पाते।


      सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।


 


हे,मेरे मनमीत सुरीले,


सुन लो मेरे दिल की पुकार।


देव-तुल्य यदि स्वर है तेरा,


मधुर मेरी वीणा-झनकार।


वीणा का मधुरिम स्वर सुनकर-


व्यथित-विकल मन अति हर्षाते।


   पूनम की संध्या-वेला में,सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।


             ©डॉ हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


सुनील कुमार गुप्ता

रूप बदलती इस दुनियाँ में,


कौन-यहाँ अपना-बेगाना?


पहचान सके न साथी उन्हें,


जिसको कहे वो अपना?


अनजानी राहो पर चल कर,


कैसे-फिर वो मंज़िल पाना?


भटकन ही मिली जग में साथी,


कब-साथी को साथी जाना?


फूलो की चाहत में साथी,


क्यों-काँटो ने दामन थामा?


फूलो का नाता काँटो से,


कब -साथी जीवन में माना?


 


 सुनील कुमार गुप्ता


 


विनय साग़र जायसवाल

कुछ तो उसकी भी शान रहने दे


इतना ऊँचा बखान रहने दे


हुस्ने मतला ---


 


उलटे सीधे बयान रहने दे


कुछ तो अपना भी मान रहने दे


 


फिर हक़ीक़त समझ में आयेगी


बस मुझे दर्मियान रहने दे


 


तू मुझे हर तरह गवारा है


शिजरा-ऐ-खानदान रहने दे


 


तुझको अब तक यक़ीं न हो पाया


और अब इम्तिहान रहने दे


 


मत मिटा इस तरह कहानी को


कुछ तो बाक़ी निशान रहने दे


 


एक से एक हैं यहाँ साग़र


ख़ुद पे इतना गुमान रहने दे


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


बरेली


सत्यप्रकाश पाण्डेय

चढ़े सत्य पै भक्ति रंग....


 


मेरे हृदय की शुचिता का


है युगलरूप आधार


जीवन रहे परिष्कृत मेरा


रहे तव चरणों में प्यार


 


काम क्रोध मद लोभ दंभ


हे ईश्वर मुझे सताये न


सत्य मार्ग पै सदा चलूं मैं


मन कभी घवराये न


 


करुनासिन्धु हे मुरलीधर


बृषभानु लली के संग


हरते रहें दुख दारिद्र मेरे


चढ़े सत्य पै भक्ति रंग।


 


श्री युगलरूपाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


आशुकवि नीरज अवस्थी

महान व्यक्तित्व प्रणव मुखर्जी


 


पूरी दुनिया मे किया भारत का नेतृत्व।


पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पाया अमरत्व।


इस नश्वर संसार से जाना है एक रोज।


बड़ी बात है क्या कहेंगे, जाने पर सब लोग।


पद अति गरिमा पूर्ण था ,किंचित ना अभिमान।


इसी लिए प्रत्येक दल करता है सम्मान।नाशवान काया मिटी ओर मिटा अस्तित्व।


किन्तु प्रणव दा को मिला वैभव युक्त शिवत्व।।


 


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


एस के कपूर श्री हंस

बन सकते हो तो किसी के 


हुमदोस्त हमराज बनो।


बन कर हमसाया दिल की  


तुम इक आवाज़ बनो।।


सहयोग संगठन संग साथ की 


भाषा है सर्वोत्तम।


जुड़ कर जमीन से भी तुम 


हवा से परवाज़ बनो।।


 


मैं तुम हम सब जान लो कि


एक दूजे से ही पूरे हैं।


उधार की जिन्दगानी में सब


के बिना अधूरे हैं।।


एक और एक मिल कर हम       


बन जाते हैं ग्यारह।


जिन्दगी की परिभाषा साथ


मिलकर ही भरेपूरे हैं।।


 


मिल कर सबकी बंद मुठ्ठी


मानो लाख की है।


खुल गई तो फिर वही बन


जाती खाक की है।।


मिलकर चलने का रास्ता ही


है जीत का मन्त्र।


इसीमें छिपी सच्चाई पूरे करने


को हर ख्वाब की है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली


राजेंद्र रायपुरी

विनती, गणपति बप्पा से 


 


गणपति बप्पा आप तो,जाने को तैयार।


नैया सारे भक्त की, फॅ॑सी हुई मझधार।


 


कर जाते यदि हे प्रभो,सबकी नैया पार।


तो बप्पा जी सच कहूॅ॑, होता ये उपकार।


 


विनती लेकर आपके,भक्त खड़े हैं द्वार।


हे प्रभु जी सुन लीजिए,इनकी करुण पुकार।


 


कोरोना से त्रस्त हैं, सारे अबकी बार।


जाते-जाते हे प्रभो, दीजै इसको मार।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

सस्पेंस में रखने का तरीका है,पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


एक व्यक्ति, दो किलो आम के दाम चुकाये, परंतु


उसने घर पर,सिर्फ एक किलो आम लाये


घर के तराजू पर, आंखो के सामने


स्वयं,आम का वजन करवाया


परंतु, एक किलो आम कहां खो गये


ये रहस्य समझ में नहीं आया


सस्पेंस में रखने का तरीका है,पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


गीत गायन,स्पर्धा के


मिस्टर कुंभकर्ण,अध्यक्ष बनाये गये


उनकी उपस्थिति में


तरह तरह के गीत सुनाये गये


अब आयोजक गण


बुरी तरह से हैरान और परेशान है


सभी प्रतियोगी


परिणाम की प्रतीक्षा, के लिए रो रहे हैं


स्पर्धा समाप्त होते ही


मिस्टर कुंभकर्ण मगन मस्त सो रहे हैं


सस्पेंस में रखने का तरीका है,पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


मृत्यु दंड से पहले


अपराधी से,अंतिम इच्छा पुछा जाता है


पर एक डाक्टर ने,बीमार व्यक्ति से कहा


आपकी आंखों में,अंधेरा छा गया है


मुझे क्षमा करें


अब आपका अंत समय आ गया है


आपकी कोई,अंतिम इच्छा हो तो


तत्काल बता दीजिये


बीमार व्यक्ति ने,डाक्टर से कहा


पहले जैसा मुझे


स्वस्थ सुंदर और जवान,बना दीजिये


सस्पेंस में रखने का तरीका है, पुराना


युगों युगों से चला आ रहा है,ये कारनामा


 


नूतन लाल साहू


डॉ. निर्मला शर्मा

दिन और रात की देखो बड़ी है सुंदर बात


एक दूजे के पूरक दोनों रहते आस- पास


दिन में होता है उजियारा फैलाता उल्लास


रात ढले सपनों में खोते मधुर नींद के साथ


दिन में करते सभी परिश्रम होठों पर ले मुस्कान


रात हुई घर मे सब आते वक्त बिताते साथ


सामासिक शब्द ये सुंदर द्वंद्व है इनका भेद


एक दूजे के विलोम शब्द हैं व्याकरण में देख 


दूर क्षितिज में कभी हैं मिलते सुबह शाम अभेद


देख चक्र इनके जीवन का लेवे ज्ञान हरेक


हर क्षण हो तटस्थ निज कर्तव्य निभाते दोनों


कभी न करते चूक तभी हैं घड़ी बनाते दोंनों


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-4


 


करहिं देवकी माता बंदन।


तोरैं नाथ सकल भव-बंधन।।


    तुम्ह प्रभु ब्रह्महिं जोति स्वरूपा।


    गुनहिं बिकार बिहीन अनूपा।।


निर्बचनीय बिसेषन हीना।


निष्क्रिय पर प्रभु सत्तासीना।।


     बुद्धि-प्रकासक बिष्नू तुमहीं।


      मम गृह आयि कृपा जे करहीं।।


उभय 'परार्धहि' पूरन जबहीं।


अंत उमिरि ब्रह्मा कै तबहीं।।


     होंहिं बिनष्टहिं तीनिउ लोका।


     कालहिं सक्ति-प्रभाव असोका।।


महाभूत तब पाँचउ बदलहिं।


अहंकार सँग कूदहिं-उछलहिं।।


     अहंकार तब बनि महतत्त्वा।


      जाइ समाय प्रकृति के तत्वा।।


ताहि समय बस तुम्ह अवसेषा।


रहहु नाथ तुम्ह रूपहिं सेषा।।


     'सेष'नाम यहि कारन तुम्हरो।


      नाम इहइ जानै जग सगरो।।


काल बिबिध नहिं जाकर सीमा।


अगनित बरस-निमिष निःसीमा।।


दोहा-काल-बरस अरु समय-पल,सभ कछु तुमहीं नाथ।


        उतरे प्रभु तुम्ह मम सदन,बंदउँ अवनत माथ।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-41


 


करहिं राम कौसिकहीं प्रनामा।


संग बसिष्ठ जाबालिहिं-बामा।।


    तब प्रनाम करि मातु, जनकहीं।


    अवधमनी भरतहिं अस कहहीं।।


अब तव कान्हें अवध-समाजू।


सभ सँग लेइ करहु तहँ राजू।।


     करु निबाह निज कुल-मरजादा।


      उच्च बिचार सँग जीवन सादा।।


कुल पुरुखन कै रीति निभाऊ।


धरम-करम तू जानेउ राऊ।।


    पसु-पंछिन्ह सुख जे नृप देवहिं।


     ईस-प्रसाद लपकि ते लेवहिं।।


हरित सस्य-बन-उपबन-बागा।


पसु-बिहार-जल-सरित-तड़ागा।


    जे नृप-राज रहहिं सभ पुरना।


    तासु प्रजा जग रहहि प्रसन्ना।।


प्रजा-तोष-सुख धयि हिय राजा।


करै राज सुख मिलै समाजा।।


    बरन-भेद अरु जाति-कुजाती।


    ऊँच-नीच,मम-तव केहु भाँती।।


सोभा कबहुँ नहीं कोउ नृप कै।


कस सोभा बिनु मुक्ता सृप कै।।


    सबहिं लेइ अब लवटउ भ्राता।


    अवधराज सूना नहिं भाता।।


लवटउ अबहिं बिनू मन भारी।


करउ राज अरु प्रजा सुखारी।।


  एहि तें पितु-आतम सुख लहहीं।


   देवन्ह अपि पितु सँग सुख पवहीं।।


दोहा-सुनि के प्रभु कै बचन अस,सभ भे पुलकित गात।


        प्रमुदित ऋषि-मुनि सँग सुरन्ह,करैं सुमन-बरसात।।


                  डॉ0हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


अशोक सपरा

करना अखण्ड भारत का सपना तुझे ही अब कवी अशोक साकार है


इस राजनीति की नीति में नैतिकता की हर एक परिभाषा स्वीकार है


 


विश्वासो का यहाँ कत्ल हुआ इस कदर की राम ने जला डाली मथुरा


भारत भूमि पे कन्हैया लगाये लांछन प्रभु नाम भी होने लगे गद्दार है


 


सरे आम अब निर्भया की आबरू दांव पर लग जाती यहाँ


मर्यादा का कंकाल शेष रह गया यहाँ न्याय हुआ अब बेकार है


 


यहाँ गरल उगलता देखा आस्तीन के पाले हुए सांपो को हमने


जिस थाली में खाते उसमे छेद कर जाते छुपे यहाँ रंगे सियार है


 


इससे अधिक अब क्या लिखूँ की ध्वाजा सकल विश्व पर फहरा दूंगा मैं


राम राज्य हो विश्व में जनता का शासक पर होगा सामान अधिकार है


 


अपने गुणों पर गर्व मुझे लिख दूंगा साहित्य में नया इतिहास


विश्व मंच की महफ़िलों में मेरे भारत देश का होगा अभिसार है


 


अशोक के अंदर की ज्वाला धधकती कब होगा महिमा मंडित भारत का


शत खण्डों में बिखरा भारत कब होगा इसका सम्पूर्ण विरस्तार है


 


भारत माता रोते रोज सपनों में आती अशोक होता मन आहत 


ले निर्णय भारत को गुलामी से आजाद कर गर देश से प्यार है


 


अंतरात्मा तक आहत हुई आज भारत माता की लिख दे कविता में अशोक


जो कहता भारत तेरे टुकड़े होंगे उन कपूतों के इस कृत्य पे धिक्कार है


 


अशोक सपरा 


श्लेष चन्द्राकर

अपना ये मुल्क़ जान लो कितना महान है


सबसे अलग जहान में हिन्दोस्तान है


 


हर ओर बहती पाक हवाएँ सुहावनी


हर बाग़ में महकता यहाँ ज़ाफ़रान है


 


अच्छा करेंगे काम सदा इसके वास्ते


हमको उठाना देश का दुनिया में मान है


 


भारत की पाक मिट्टी पे लेता है जन्म जो


वो तो समझता खुद को बहुत भाग्यवान है


 


बिल्कुल नहीं अदू का हमें ख़ौफ दोस्तो


उत्तर में हिमगिरी जो खड़ा पासबान है


 


आँगन में जिसके खेल के हम सब बड़े हुए


भारत हमारा एक वो प्यारा मकान है


 


रहते हैं लोग प्यार से हर धर्म के यहाँ


ऐ श्लेष अपने हिन्द पे मुझको गुमान है


 


श्लेष चन्द्राकर,


पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27, 


महासमुन्द (छत्तीसगढ़) 


योगिता तलोकर

 


वतन की मेरे देखो शान,


नाम है जिसका हिंदुस्तान।


 


धरती है यह ऋषि मुनियों की


राम, कृष्ण, नानक जैसे देवों की।


 


अद्भत है देवताओं की कथाएं,


इतिहास कहता शूरवीरों की गाथाएं।


 


संस्कृति इसकी कोई मिटा ना पाया,


चाहे, तैमूर, गौरी गजनवी आया।


 


लक्ष्मीबाई ,शिवाजी सांगा राणा,


दुनिया ने इनका लोहा माना।


 


स्वंत्रता की सैकड़ों सुनो कहानी,


सुनकर आंखो में भर आए पानी।


 


टैगोर ,तिलक, आजाद भगत सिंह,


बोस जैसे जांबाजों की बलिदानी।


 


ना झुका है ना झुकने दिया,


वतन की खातिर जवानों ने शीश दिया।


 


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,


आपस में हैं सब भाई- भाई,


 


दुश्मनों को भी यह बात समझाई,


जब जब बात वतन की आई।


 


तो क्या हुआ कि आज कल,


सत्ता की लालच मचाती हैं हलचल।


 


ये मेरा, मेरा वतन है,


सह लेगा सारी उथल पुथल।


 


आज फिर एक नए युग की शुरुआत है,


हस्ती इसकी ना मिटी है,


ना कोई मिटा पायेगा ,


मेरे वतन की निराली बात है।


मेरे वतन की निराली बात है।।


 


योगिता तलोकर


मोबाइल --- 9200099254


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