द्वितीय चरण(श्रीरामचरितबखान)-44
भरत लेइ तब तिरहुति राजा।
अवध चले निज साजि समाजा।।
प्रथम दिवस कहँ साँझ मझारे।
पहुँचे सबहीं जमुन-किनारे।।
रात्रि सयन करि निज-निज डेरा।
उठे सबहिं जब भवा सबेरा।।
सबहिं नहाय जमुन-जलधारा।
पूजन करि गे जमुना पारा।।
संगम-तट जब पहुँचे सबहीं।
पूजन-अर्चन बिधिवत करहीं।।
ऋषि-आश्रम रहि अच्छय बटहीं।
राज निषाद लेइ पुनि बढ़हीं।।
जथा-जोग गुह करि सभ सेवा।
सुरसरि पार करा बिनु खेवा।।
पा असीष लौटा निज ग्रामा।
श्रृंगबेरि रह जाकर नामा।।
साँझ परे सभ सई-किनारे।
सयन करहिं निज डेरा डारे।।
अति प्रातः सभ करि अस्नाना।
पूजन करहिं लगा निज ध्याना।।
भोजनादि करि कीन्ह पयाना।
निज-निज साधन जे बिधि जाना।।
डूबत-डूबत वहि दिन सबिता।
पहुँचे सभ जहँ गोमति सरिता।।
करि असनान गोमती-नीरा।
गयउ सभें पुनि तमसा-तीरा।।
तमसा पार करत दिन चारहिं।
जनक लेइ सभ अवध पधारहिं।।
दोहा-अवध पहुँचि मिथिला नृपति,रहहिं उहाँ दिन चार।
नगर-प्रसासन करि उचित,लौटे पुनि निज द्वार।।
रानी-भरत-सुमंत मिलि, बिदा करहिं सिय-मातु।
निज समाज सँग नृप तबहिं,चले जनक सिय-तातु।।
तब बसिष्ठ व सुमंतु मिलि, रानिन्ह भरत समेत।
आपस मा समुझन लगे,कस पुर काजु भवेत।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372