डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

  सत्य अधर में लटक रहा है, 


        झूठ दंभ व्यापार करें।


     शिक्षा बसती है बातों में,


    शिक्षक को लाचार करें।।


 


  लगती ड्यूटी मतगणना में,


 जनगणना फिर पशुगणना।


   गधे शोषित क्यों हो रहे है,


       तुम करते रहना धरना।


व्यर्थ हुआ है पढ़ना लिखना,


     जात-पांत पर वार करें।।


 


मिड-डे-मील करायें या फिर,


       बूँद पोलियो दें घर-घर।


   घर -घर जाकर लेते बच्चे,


        चप्पल होती है जर्जर।


    कामचोर तो मौज उड़ाये, 


         परिश्रमी बेगार करें।।


 


लोकतंत्र का बोझ उठाये,


          सेवा करता आया है।


शिक्षक सामाजिक प्रहरी का, 


          धर्म निभाता आया है।


 धर्म कर्म में फँसकर शिक्षक,


     सबकी फिर मनुहार करें।।


 


   स्कूल चलो का पाठ पढ़ाते,


     शिक्षा का अभियान यहाँ।


      जाति वर्ग में बांट दिये हैं,


           भेदभाव संज्ञान यहाँ।


अब स्वच्छता के अभियान में,


          झाडू और बुहार करें।।


 


 शिक्षा का अधिकार मिला है,


          समझाते हैं छात्र हमें।


  उनको डाँट सकते नहीं हम,


          राजनीति के रंग जमें।


   राजनीति का खेल निराला, 


           धमकी दे हुंकार भरे।


 


पावन पर्व शिक्षक दिवस पर,


          नेता जी करते इच्छा।


      उनसे मन की बात करेंगे,


            नेता जी देंगे शिक्षा।


       रस्म नवाजी नेट पैक के,


           दूरभाष सत्कार करें।।


 


     संचार व्यवस्थित करने में,


     फिर लग जाते हैं शिक्षक।


       राग द्वेष के बीच घिरे हैं,


    फिर फँस जाते हैं शिक्षक।


   अपना सब सम्मान तजें ये,


          दूजों का उद्धार करें।। 


 


          डॉ रामकुमार चतुर्वेदी


सत्यप्रकाश पाण्डेय

सत्य है स्वामी शरण तेरे..


 


मेरे राधे माधव जैसा तो


मैंने देखा नहीं संसार में


वह दोनों ही बिक जाते 


अपने भक्तों के प्यार में


 


नरसी का भरा मायरा


रसखान को दर्श दिया


द्रोपदी का चीर बढाया


विदुर का सम्मान किया


 


गुरु संदीपनी गुरुमाता


सुत लाकर सुखी किये


दो मुट्ठी चावल बदले


सुदामा को त्रिलोक दिये


 


सत्यस्वरूप व राधे रानी


युगलरूप हरो दुःख मेरे 


दया भाव बनाये रखना


सत्य है स्वामी शरण तेरे।


 


युगलरूपाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

शीश नवाऊॅ॑ उन गुरुओं को,


                         देते हैं जो ज्ञान। 


पूजनीय सारे के सारे,


                      प्रथम,बाद भगवान।


 


इन गुरुओं से भी पहले मैं, 


                      माॅ॑ को करूं प्रणाम।


जिसने चलना सिखलाया था,  


                      मुझको उॅ॑गली थाम।


 


शिक्षित करता जो औरों को,


                      देकर अपना ज्ञान। 


वही जगत में पूजनीय है,


                    रखें सदा ये ध्यान।


 


कुछ ने बना दिया शिक्षा को,


                    इस जग में व्यापार। 


गुरुओं को बदनाम किया है,


                   कर ये कारोबार।


 


आओ शिक्षक दिवस मनाएं,


                      कर गुरुओं का मान। 


जो जग को आलोकित करते, 


                     कर विद्या का दान।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

इतनी लगन लगे प्रभु से,


फिर रहे न तम का डेरा।


आशाओ के अंबर में,


आये न निराशा का फेरा।।


घर-आँगन में हो साथी,


संग फूलों का डेरा।


दु:ख की बदली से ही फिर,


निकलेगा सुख का फेरा।।


धूप-छाँव से जीवन में,


साथी सुख-दु:ख का डेरा।


हरे दु:ख अपनो के साथी,


होगा जीवन का सबेरा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


विनय साग़र जायसवाल

मुक़द्दर का लिखा मिटता नहीं है


यक़ीं इस पर मगर टिकता नही है


 


हमारी हैसियत समझेगा क्या वो


हुनर से जो कि वाबस्ता नहीं है


 


वो इन्सां है या है कोई फ़रिश्ता


लिबासों से पता चलता नहीं है


 


इसी इक बात से हूँ मुतमइन मैं


वो वादे से कभी हटता नहीं है


 


तड़पता है ये दिल चाहत में जिसकी


यही मुश्किल है कि वो मिलता नहीं है


 


फ़साना है बदलते दौर का यह


कि बच्चा बाप से डरता नहीं है 


 


शिकायत है यही बस हमको साग़र


तू दिल की बात को सुनता नहीं है


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


शिवांगी मिश्रा

गुरू है ज्ञान का सागर गुरू का मान तुम कर लो।


झुका है शीश चरणों मे प्रतिष्ठित भान तुम कर लो ।।


करो सम्मान तुम गुरू का सदा सम्मान पाओगे।


करो शिरोधार्य गुरू शिक्षा अमिट पहचान तुम कर लो ।।


 


किया सम्मान यदि गुरू का कभी झुकने ना पाओगे ।


विषम कितनी भी रहें हों कभी रुकने ना पाओगे ।।


अगर चाहे मिटाना भी कभी तुमको जहाँ सारा।


जलेगा ज्ञान का दीपक कभी मिटने ना पाओगे ।।


 


गुरू वह जलता दीपक है सदा जो ज्ञान हित जलता ।


मिले जिसको शरण गुरू की सदा वह प्रगति पथ चलता ।।


नमन वंदन करूँ गुरू का शब्द के पुष्प से अर्चन।


ये ममता की वह छाया है जीवन जिसमें सुखद पलता ।।


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


डॉ0 रामबली मिश्र

दिग्दर्शक है विश्व का,शिक्षक दिव्य महान।


रचता सुन्दर जगत यह,बनकर शिव विद्वान।।


 


मानववादी दृष्टि का ,करता सदा प्रचार।


सहज भाव से कर रहा,मानवता से प्यार।।


 


दंभ और पाखंड का,करता सतत विरोध।


नैतिकता के मूल्य पर ,करता रहता शोध।।


 


शिक्षक साधु समान है,पानी-दूध विवेक।


शिक्षक इक संस्था बना,करता काम अनेक।।


 


लेखक-रचनाकार बन,देता उत्तम ज्ञान।


दलित-शोषितों पर सहज,रचता काव्य विधान।।


 


स्वच्छ हृदय काया विमल,पावन मन प्रिय गेह।


सारी दुनिया पर सदा,करता हार्दिक स्नेह।।


 


शिवशंकर बनकर सदा,करता जन कल्याण।


सब प्रश्नों की काट है,शिक्षक परम महान।।


 


गुरु बनकर शिक्षक सहज,देता दिव्य प्रकाश।


करता रहता रात-दिन,तिमिरांचल का नाश।।


 


शिक्षक के सम्मान से,दुनिया स्वर्ग समान।


शिक्षक ब्रह्म समान ही,रचता सकल विधान।।


 


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


अर्चना द्विवेदी

शिक्षक है वो जेवर जिसका, 


कोई मोल नहीं होता।


सच्चे कोहिनूर हीरे का,


निज भूगोल नहीं होता।


 


सिंचित करता ज्ञान सभी का,


नेह सुधा रस बरसाता।


बुद्धि विवेक अलौकिक करके,


विनय भाव से नहलाता।


 


वो हर लेता घोर तिमिर को,


दीपक बनके ख़ुद जलता।


पत्थर में भी फूल खिलाकर,


हर जीवन सुष्मित करता।


 


आखर आखर हमें सिखाकर, 


राह प्रगति की दिखलाता।


बाहर से मृदु थाप लगाकर  


सुरलय कारक बन जाता।


 


उसके अहसानों का बदला,


जग में कौन चुका सकता।


धुँधले दर्पण को उजला कर,


बिंब सभी रोशन करता।


 


जिसकी अनुपम छवि के आगे,


हर वैभव फ़ीका लगता।


सृष्टि समाहित उद्भव आगे 


कोई बोल नहीं सकता।


 


ऐसे ज्ञान जलधि में प्राणी,


डुबकी ले मोती चुनता।


पाने को सम्मान जगत में, 


स्वप्न सुनहरे नित बुनता।


 


अर्चना द्विवेदी


अयोध्या


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

शिक्षक की कृपा है अपार,


नमन उन्हें बार-बार है। 


उन्हें शीश झुँकाए संसार 


नमन उन्हें...............


 


पहली शिक्षक माँ हैं मेरी 


मेरा दूजा गुरु परिवार।


नमन उन्हें...............


 


अन्तर्तम को दूर करें वो,


वो भरते हैं ज्ञान भण्डार।


नमन उन्हें................


 


शिक्षक मन-पावन करते हैं, 


करते भय-संशय संहार।


नमन उन्हें.................


 


शिक्षक ही तो योगगुरु हैं,


करें तन-मन में झंकार। 


नमन उन्हें................. 


 


आत्मा से परमात्म मिलाए,


वो करें भव सागर उस पार।


नमन उन्हें....................


 


गुरु पद पंकज शीश झुँकाऊँ, 


उनकी वाणी में अमृत धार।


नमन उन्हें.................. 


 


मैं तो गीली मिट्टी जैसा था,


मुझको दिये हैं वो आकार। 


नमन उन्हें................... 


 


गढ़ि-गढ़ि शिक्षक खोट निकाले, 


गढ़ता है कुम्भ ज्यों कुम्हार।


नमन उन्हें.....................


 


शिक्षक सिंचित करे बालमन, 


वो देते जीवन को आधार।


नमन उन्हें...................... 


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

भूख बड़ी या कोरोना


नहीं बहस का मुद्दा है यह,


भूख बड़ी या कोरोना।


छोटा कौन बड़ा है इसमें-


दोनों में रोना-रोना।।


 


कोरोना की मार भयानक,


संयम से ही रहना है।


भूख निगोड़ी बहुत सताए,


इससे भी तो बचना है।


करें सभी मिल यत्न अनूठा-


अब तज कर रोना-धोना।।


 


करें कर्म सब अपना-अपना,


थोड़ा दूर-दूर रहकर।


दूरी-संयम हैं निदान बस,


इसका नियमन हो डटकर।


भागे भूख,भगे कोरोना-


नहीं ज़िंदगी को खोना।।


 


हँसी-खुशी,मिल-जुल कर दोनों,


को ही हमें मिटाना है।


साफ-सफाई,भोजन सादा,


का नियमन अपनाना है।


नए सिरे से नई व्यवस्था-


के हैं बीज अभी बोना।।


 


कोरोना तो जाएगा ही,


किंतु भूख रह जानी है।


सदा परिश्रम करते रहना,


सचमुच यही कहानी है।


सदा जागते रहना जीवन-


मरण-निमंत्रण है सोना।।


        नहीं बहस का मुद्दा है यह,


         भूख बड़ी या कोरोना।।


                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


मदन मोहन शर्मा सजल

ज्ञान का भंडार गुरु, तम प्रतिकार गुरु


जीवन निखरता है, ज्ञानी जन जानते।


 


गुरु कुम्भकार जैसा, गुरु चित्रकार जैसा


माटी को बनाता सोना, वेद पहचानते।


 


गुरु शब्द वेद वाणी, राम कृष्ण ने बखानी


तारे भवसागर से, ऋषि सन्त मानते।


 


सत्य राह दिखलाए, प्रीत प्यार सिखलाये


बिन गुरु जीव पशु, जगत विचरते।


 


सूरज प्रकाश गुरु, सागर मिठास गुरु


प्रकृति का कण-कण, नींद में पुकारते।


 


मीठा जल स्त्रोत गुरु, तमस की मौत गुरु


दिशाओं की दिशा गुरु, देवता उच्चारते।


 


कर्म धर्म शिक्षा देते, नहीं कभी कुछ लेते


नाव पतवार गुरु, किनारे उतारते।


 


गुरु का सम्मान करो, मत अपमान करो


गुरु बिन ज्ञान नहीं, ग्रंथ भी बखानते।


 


आदि और अंत गुरु, प्रलय निर्माण गुरु


राष्ट्र का प्रणेता गुरु, पातक मिटाता है।


 


करोगे जो अपमान, निश्चित पतन मान


सबसे बड़ा है गुरु, ईश से मिलाता है।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


कोटा (राजस्थान)


शिवानी मिश्रा

भारत का भविष्य उसी में,


शिक्षा की अलख जगे जिसमें


आओ मिलकर साथ चले हम,


नव ज्योति शिक्षा की फैलाये हम।


 


शिक्षा वही जो राष्ट्र पर


गौरव करना सिखलाये,


देश का मान बढ़ाये शिक्षा,


निज सम्मान बढ़ाये शिक्षा।


 


जाति-धर्म का भेद मिटाकर,


शिक्षा की हम मशाल जलाये।


साथ चले हम,साथ पढ़े हम,


नव भारत का सृजन करें हम।


 


 


स्वरचित


शिवानी मिश्रा


प्रयागराज


डॉ बीके शर्मा 

उठो मनुष्य


उठो जागो 


हो जाओ शरणागत


पा कर गुरु ज्ञान


करो जग का कल्याण 


उठो मनुष्य उठो जागो.....


 


 


बनो ब्रह्मनिष्ठ


पाकर तत्वज्ञान


साधक बनो सच्चे


लक्ष्य को पाओ


उठो मनुष्य उठो जागो .......


 


क्या तुमने गुरु देखा है ?


कैसे समझोगे


कैसे जानोगे 


उस महापुरुष को !


 


वह कहां रहता है 


कैसा दिखता है 


कब जागता है 


कब सोता है 


कैसे पहचानोगे !


उठो मनुष्य उठो जागो......


 


कौन सगा है


कौन संबंधी 


कौन झूठा है


और कौन सच्चा गुरु है 


कैसे मानोगे !


 


मैं प्रकृति हूं 


मैं बताती हूं 


सब जीव की प्रवृत्ति 


 


सच्चा गुरु 


"ब्रह्मानिष्ठ है"


ना उसे भौतिक प्रपंच घेरते हैं 


ना वह प्रपंच में घिरा रहता है


ना चमकता है 


ना चमत्कार दिखाता है 


 


ना कान फूंकता है 


ना मन बहलाता है 


ना वह चेला ना वो शिष्य बनाता है 


 


वह तो शिष्य को दिशा दिखाता है 


लक्ष्य का बोध कराता है


 वह स्वयं गुरु नहीं बनता


शिष्य स्वयं उसे गरु बनाता है 


 


वह शिष्य को 


जीवन की दीक्षा देता है 


और इस दीक्षा को


 "दिव्य प्रेम दान" कहते हैं 


 


अब तो समझो 


हे मनुष्यो


उठो जागो.....


 


करो जगत कल्याण 


पाकर " दिव्य प्रेमदान"


लो बार-बार गुरु का नाम


ओम गुरुवे नमः


 


 शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

जय माँ शारदे


शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं


 


मनहरण घनाक्षरी


 


ज्ञान घट से पीयूष , का कराए पान गुरु , 


दिव्य ये प्रकाश पुँज , गुरु कहलाता है। 


 


हृद में उजाला करे , तम का करे विनाश , 


ज्यों कलाएँ नभ शशि , ये दिखाने आता है। 


 


शिष्य सम मिट्टी ले के , कुंभकार ज्यों बनाए , 


गढ़ता शिष्य महान , ब्रह्मा सा विधाता है। 


 


छंद शिल्प दिव्य ज्ञान , मनोज गुरु ने दिया , 


'रुद्र' करता प्रणाम , गुरु गुण गाता है। 


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र


गाँव दुतारांवाली तह0 अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शिक्षक दिवस पर मेरी या रचना


सर्व पल्ली राधाकृष्ण जी के जीवन दर्शन का आत्मसाथ आदर्श है वर्तमान में एज शिक्षक


जिसने अपने भगीरथ प्रयासों से हिंदी को एक नया छितिज प्रदान


करने की साध्य साधना के अनुष्ठान की जाग्रति का शंखनाद किया है उनके सम्मान में समर्पित


कुमार है विश्वाश है हिंदी हिंदुस्तान का अवनि आकाश है----


 


माँ बाप ने बोलना ,चलना


सिखाया जिंदगी के रिश्तों


से मिलाया।।


बापू ने हाथ पकड़कर पाठशाला


का राह बताया।


जिंदगी के सफ़र में ज्ञान कर्म


का पड़ाव।


शिक्षक माँ बाप के आशाओं


का शिल्पी।


ना छैनी, ना हथौड़ा ,सिर्फ अक्षर


से शुरू शब्द ,किताब पढ़ा गढ़ा 


मतलब महत्व का मानव बनाया।।


 


 ना कोई ग़ुरूर ना कोई लालच


अपनी पाठशाला के हर बचपन


को ज्ञान ,विज्ञानं ,गणित संस्कृत


संस्कार सिखाया ।।


अपने बेटे की तरह हर बचपन


को संवारा


कभी बेदर्द से कभी मोम


अपने विद्यार्थियों के लिये


अपना सर्वस्व गंवाया।।


कुछ मिले ना मिले हर बचपन की


जिंदगीे को लिये मर्म मर्यादा


का मान बताया।।


जिसने भी ध्यान से ज्ञान की


दीक्षा ,शिक्षा पे मन लगाया।


शिक्षक की शिक्षा का सार


निति रीती सुझ, बुझ सौम्यता


धैर्यता की सफलता पाया।।


 


शिक्षक ही है जिसने युग  


को जाने कितने ही महिमा


माहन दिये सयमित संकल्प


के समाज दिए ।


 


जंगलो में पर्ण कुटी जिसका


बसेरा गुरु कुल की परम्परा


पाठशाला ने ही गुरुकुल की


जगह कान्वेंट कल्चर शिक्षक


गुरु के रिश्तों कर्तव्यों को ही


निगल डाला।।


 


अब तो सर मैडम है


बच्चे पढे ना पढे शिक्षक


बचपन को गढे या ना गढे माँ 


बाप को बच्चों की जगह पढ़ना


पड़ता ।                              


 


व्शिक्षा शिक्षक का टूट


गया रिश्ता सर्व पल्ली के विचारो


का शिक्षक राधा कृष्णन के व्यवहारों का शीक्षक जाने


युग में कहाँ खो गया।।


 


 शिक्षा आत्म प्रकाश शिक्षक


प्राण है ,ज्ञान सांसे ,शिक्षक धड़कन जान है, शिक्षा संस्कार, व्यवहार।। 


                                    , शिक्षक मन ,मस्तिष्क, ध्यान ,योग, कर्म दायित्व का सत्य सत्कार ,साक्षात्कार है।।


 


शिक्षक की शिक्षा से समाज राष्ट्र


निर्माण है इतिहास वर्तमान है।।


 


परम शक्ति सत्ता से भी परिचय करवाता मर्म महात्म बताता स्वर ईश्वर से ऊँचा शिक्षक गुरु का प्रत्यक्ष भगवान से ऊँचा स्थान है।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


कबीर ऋषि सिद्धार्थी

वो शिक्षक है


 


जिसने हमें हाथ पकड़कर


चलना सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें बोल-बोलकर 


बोलना सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें ज़िन्दगी में


सही राह दिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें गलतियों पर


माफ करना सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें बड़ों का


आदर करना सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें चुनौतियों का


सामना करना सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें जीवन में


संघर्ष करना सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें जाति-धर्म से


ऊपर इंसान बनाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें हर परिस्थितियों में


ज़िन्दगी जीना सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


 


जिसने हमें जीवन में


कभी कुछ भी सिखाया हो


वो शिक्षक है...!


-कबीर ऋषि


******************


 


मेरे जीवन की पहली शिक्षक मेरे माँ, जिसने मुझे जिंदगी का सही अर्थ समझाया।


आज मैं जो कुछ भी हूँ उन्हीं का एक अंश मात्र हूँ।


 


–कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”


डॉ निर्मला शर्मा

" शिक्षक दिवस पर मुक्तक"


 


                           ( 1 )


बीज रोप पोषित करे, ज्यों किसान हर बार।


ज्ञान बीज सिंचित करे, त्यों शिक्षक हर बार।


कच्ची माटी से गढ़े ,ज्यों कुम्हार आकार।


शिक्षक भी उस विधि गढ़े, शिष्य रूप साकार।


 


                               ( 2 )


शिक्षा का देता वह ज्ञान,करे दूर अज्ञान।


गोविंद से भी पद बड़ा, शिक्षक मेरा महान।


भारतीय संस्कृति में रहा ,शोभनीय तुम्हारा नाम।


शिक्षक बिन मैं पथ विहीन, लो श्रद्धा से उनका नाम।


 


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

सोचा न था कभी जीवन में,


साथी इतना कुछ -


सहज ही पा जाऊँगा।


सद्गुरु की संगत से,


डूबी नैय्या -


पार लगा पाऊँगा।


जन्म दिया जिस माँ ने,


चलना और बोलना सिखाया,


ममता मयी उस माँ को-


नित शीष नवाऊँगा।


प्रथम गुरु है माँ मेरी साथी,


उसके ममतामयी आँचल के-


गीत गुनगुनाऊँगा।


ज्ञान का दीप जला कर,


उज्ज़वल कर दिया जीवन-


उस शिक्षक के तो-


चरणों में शीष झुकाऊँगा।


गुरु की महिमा अपार साथी,


ज्ञान -विज्ञान संग उससे ही-


भक्ति मार्ग भी पाऊँगा।


होगे प्रभु दर्शन जीवन में,


इसका रहस्य भी-


गुरु से ही जान पाऊँगा।


शिक्षक दिवस पर साथी 


उनको कर नमन-


शुभाशीष पाऊँगा।


सोचा न था कभी जीवन में,


साथी इतना कुछ-


सहज़ ही पा जाऊँगा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


अनीता सिद्धि

ज्ञान का प्रकाश देकर , अज्ञानता को दूर करतें हैं । 


 पथ में काटों को हटाकर फूल ही फूल भरते हैं।। 


 इस जीवन में जो मिला , गुरुवर तेरा उपकार है । 


मानव के रूप में आप , मेरे लिए ईश का उपहार हैं ।। भीड़ भरी दुनियाँ में हम खो ही जाते , 


गुरुवर आप नहीं मिलते हम पशु कहलाते।।


इस लेखनी ने से क्या लिखे ,हम तेरा गुणगान।


आपकी कृपा -दृष्टि सदा मिले , माँगूँ ये वरदान ।।


अनीता सिद्धि पटना 5/9/2020


सुनीता असीम

इश्क की बाजी लगा दी जाए।


ओट घूंघट की हटा दी जाए।


****


मीत जिसको न मिले मन का सा।


आस मिलने की जगा दी जाए।


****


चैन से जो जी रहा हो उसको।


क्यूं बेचारे को सजा दी जाए।


****


फेंकता कौन सही है पासे।


चलके शतरंज बिछा दी जाए।


****


आस जिसकी खो गई जीने की।


उसको उम्मीद बंधा दी जाए।


****


बिन पिए होश गए हों जिनके।


आज उनको भी पिला दी जाए।


****


कुछ जगह देना मेरे दिल को भी।


धाक इसकी भी जमा दी जाए।


****


सुनीता असीम


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गुरु-गरिमा है सिंधु सम,गुरु विराट आकाश।


गुरु-प्रसाद है दिव्यतम,पा हो ज्ञान-प्रकाश।।


 


गुरु समान हैं मातु-पितु,प्रथम बोल के स्रोत।


मातु-पिता-गुरु चंद्र सम,अन्य लोग खद्योत।।


 


सकल ज्ञान-विज्ञान का,होता गुरु से बोध।


करे सीख गुरु से मिली,जीवन में नव शोध।।


 


ऋषि-मुनि,संत-असंत सब,कर निज गुरु-सम्मान।


कुशल-निपुण होकर सदा,पाए जग-पहचान।।


 


ब्रह्मा-विष्णु-महेश ही,गुरु-गरिमा को जान।


गुरु ही तो जग ब्रह्म है,रखो सदा गुरु-मान।।


 


लख विकास निज शिष्य का,प्रमुदित बस गुरु होय।


बंधु-बांधव-अन्य जन,जलते आपा खोय ।।


 


लेकर गुरु-आशीष ही,होते लोग महान।


गुरु के बिना न ज्ञान-सर,होता कभी नहान।।


           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               9919446372


अमित कुमार दवे

एक शिक्षक


कच्ची मिट्टी में …


शीतल जल देखता है…


 तभी तो घट गढ़ता है।


 


एक शिक्षक 


आज मैं कल देखता है…


तभी तो आज पर जीवन निवेश करता है ।


 


एक शिक्षक…


सपनों में जीवन देखता है ।


तभी तो उन्हें जीवंत करने का प्रयास करता है ।


 


एक शिक्षक….


जब स्वयं खपता है….


तभी तो स्वर्णिम युग निर्माण फलता है।


 


एक शिक्षक …


जब सच में शिक्षक होता है….


तब परिवर्तन स्वतः ही दिखता है ।


 


एक शिक्षक……


जब शिक्षकत्व स्वयं का भूलता है…


तभी पतन वह हाथों अपने स्वयं सृजित करता है ।


सच! पतन वह हाथों अपने स्वयं सृजित करता है ।।


 


© अमित कुमार दवे, खड़गदा, राजस्थान


सुषमा मोहन पांडेय

शिक्षक दिवस के अवसर मेरे हृदय से निकले कुछ उद्गार 


 


चरणों मे पड़ी गुरुवर,हृदय तमस हर लो


जीवन में है अंधियारा,उसमें प्रकाश भर दो।


चरणों में पड़ी गुरुवर.........................


 


मोमबत्ती की तरह जल कर,तू सबको उजाला दे,


गलती जब करे कोई, तू क्षमा उसे कर दे,


कमजोरी दूर कर शिष्य, को शिखर तक पहुंचा दो


चरणों में पड़ी गुरुवर.................................


 


था ज्ञान नहीं कुछ भी,सब कुछ तुमने है सिखाया,


हमको सतपथ पर लाकर, एक अच्छा इंसां बनाया,


जो ज्ञान मिला तुमसे, वो ही सच्चा धन कर दो।


चरणों में पड़ी गुरुवर................................. .


 


हीरे को तराशे तो, कीमत उसकी बढ़ जाये,


विद्या धन पास में हो, तो जिंदगी सँवर जाए,


सब शिष्य झुके सामने,तुम सुखद छाँव कर दो,


चरणों में पड़ी गुरुवर........…….....................


 


तू ही एक जग में है, जिसने सबको बनाया,


गोविंद ने तुझको ही, है सबसे बड़ा बताया,


तू अपनी महिमा से,जग को रोशन कर दो।


चरणों में पड़ी गुरुवर........ .................


 


डॉक्टर, नेता, हीरो, गुरु तुमने ही है बनाये,


तू न अगर हो तो, कोई कुछ न बन पाए


तू जो कृपा कर दे, सबका जीवन धन्य हो।


चरणों में पड़ी गुरुवर........................


 


तू सब ग्रंथों का सार, तुझसे से ही ईश्वर मिलता,


तू अध्यात्म की ज्योति है,ये जीवन उजला दिखता,


कोई शिष्य तुझे जो भजे, जीवन तुम सफल करदो,


चरणों में पड़ी गुरुवर.................................


 


जब जब मैंने उठना चाहा, दुनिया ने मुझे गिराया,


तुम राह में आकर मेरे, मुझे रास्ता आगे दिखाया,


ईश्वर के अस्तित्व का तुम, मुझे ज्ञान बोध कर दो,


चरणों में पड़ी गुरुवर................................


 


जब जब संसार से हारी, गुरुवर तुमने मुझे बचाया,


सत्य धर्म का मार्ग दिखाकर,उस पे चलना सिखाया,


शतशत मैं नमन करूँ, मेरे सिर पर हाथ रख दो,


चारों में पड़ी गुरुवर..........…..........................


 


मेरे दिल के भाव ये हैं, जो तुझको अर्पण हैं,


गुरुवर मुझे शरण में लो, करते अभिनंदन हैं,


मैं निपट, मूढ़ गुरुवर, ज्ञान की अलख जगा दे।


चरणों में पड़ी सुषमा..........................    


 


धरती से धैर्य है तुझमें, अम्बर सी है उंचाई ,


सागर जैसे तुम गहरे,मैं पाऊँ कैसे गहराई,


तेरी शरण पड़ी ये सुषमा, नित ज्ञान नया भर दो।


चरणों में पड़ी गुरुवर....... .....…................


 


सुषमा मोहन पांडेय


सीतापुर उत्तर प्रदेश


Teacher's day शिक्षक दिवस

शिक्षक दिवस 5 सितम्बर


 


जिसने हमे सिखाया उस इंसान को नमन।


शिक्षित किया प्रशिक्षित उस नाम को नमन।


नीरज क शीश आपके चरणों की पादुका,


शिक्षक के रूप में मिले भगवान को नमन


 


भूतल के गुरु राधाकृष्णन जिनकी आज जयन्ती है।


ईश्वर से भी पहले पूजित दुनियां गाथा कहती है।।


नीरज नत मस्तक है उनके जिनने हमको ज्ञान दिया,,


आज गुरु गोविन्द प्रभू दोनों की कृपा बरसती है।।


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


 


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

फूल और काँटे जीवन बन,


मधुरिम खूशबू महकती हैं।


नित गन्धमाद पंकिल सरोज,


सुख दुख तटिनी बन बहती हैं।


 


काँटें नित संरक्षक पादप,


नवकिसलय पौध पनपती हैं।


विविध रंग सुरभित प्रसून नव,


नव यौवन खिली विहँसती हैं। 


 


काँटे प्रमाण संघर्ष सतत,


विघ्नों में राह दिखाती हैं।


होश निरत नवजोश प्रगति पथ,


उत्थान मार्ग नव गढ़ती हैं।


 


काँटे यायावर विश्रान्त निडर,


दृढ़ संकल्प पथी बनाती हैं।


साहस धीर गंभीर आत्मबल,


जीवन पथ सुगम बनाती हैं। 


 


दुश्मन से नित आगाह मनुज,


काँटे दिग्दर्शक बनती हैं।


सावधान आगत सब आपद, 


माँ आँचल बन रक्षा करती हैं।   


 


है कुटिल नुकीली काँटे नित,


घातक रक्षक बन जाती हैं।


विविध मनोहर पाटल पुष्पित,


चढ़ हरिहर शिखर दमकती है।


 


जो सदा कँटीला जीवन गति,


संकल्प नया नित देती है।


उठा मनोबल साहस धीरज,


सब आपद को हर लेती है। 


 


विश्वास नया हो पथिक अटल,


नवप्रगति कँटीली होती है।


आस्वाद नया मद मोह रहित,


दायित्व नीति बढ़ जाती है। 


 


कुसमित निकुंज मकरन्द मुदित,


काँटों के बीच महकता है।


अलिगान गूंज यश गन्ध विमल, 


अभिनव साफल्य चमकता है। 


 


हमराह बने सुख दुख जीवन,


मुस्कान अधर गम देती है।


आनंद फूल अवसाद कँटिल,


जीवन तटिनी बन जाती हैं। 


 


फूलों से सज काँटें पादप,


निर्भय खुशियाँ मुस्काती हैं।


नित स्वाभिमान संबल जीवन,


जीवन प्रसून सुख देती है। 


 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


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