सत्य अधर में लटक रहा है,
झूठ दंभ व्यापार करें।
शिक्षा बसती है बातों में,
शिक्षक को लाचार करें।।
लगती ड्यूटी मतगणना में,
जनगणना फिर पशुगणना।
गधे शोषित क्यों हो रहे है,
तुम करते रहना धरना।
व्यर्थ हुआ है पढ़ना लिखना,
जात-पांत पर वार करें।।
मिड-डे-मील करायें या फिर,
बूँद पोलियो दें घर-घर।
घर -घर जाकर लेते बच्चे,
चप्पल होती है जर्जर।
कामचोर तो मौज उड़ाये,
परिश्रमी बेगार करें।।
लोकतंत्र का बोझ उठाये,
सेवा करता आया है।
शिक्षक सामाजिक प्रहरी का,
धर्म निभाता आया है।
धर्म कर्म में फँसकर शिक्षक,
सबकी फिर मनुहार करें।।
स्कूल चलो का पाठ पढ़ाते,
शिक्षा का अभियान यहाँ।
जाति वर्ग में बांट दिये हैं,
भेदभाव संज्ञान यहाँ।
अब स्वच्छता के अभियान में,
झाडू और बुहार करें।।
शिक्षा का अधिकार मिला है,
समझाते हैं छात्र हमें।
उनको डाँट सकते नहीं हम,
राजनीति के रंग जमें।
राजनीति का खेल निराला,
धमकी दे हुंकार भरे।
पावन पर्व शिक्षक दिवस पर,
नेता जी करते इच्छा।
उनसे मन की बात करेंगे,
नेता जी देंगे शिक्षा।
रस्म नवाजी नेट पैक के,
दूरभाष सत्कार करें।।
संचार व्यवस्थित करने में,
फिर लग जाते हैं शिक्षक।
राग द्वेष के बीच घिरे हैं,
फिर फँस जाते हैं शिक्षक।
अपना सब सम्मान तजें ये,
दूजों का उद्धार करें।।
डॉ रामकुमार चतुर्वेदी