अमित दवे

सरल सहज वह जीवन जीता,


हर्ष क्षोभ में न विचलित होता,


नव ही नव नित करता जाता,


गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।


 


नित अनगढ़ माटी गढ़ता जाता,


तानाबाना वह सपनों का बुनता,


पर निज की नहीं गणना करता,


हाँ.गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।


 


रीति नीति का वह पाठ पढ़ाता,


सहज ही जीवन में साँसें भरता,


पथ जगत् में नित वही बतलाता,


सच!गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।


 


©अमित दवे,खड़गदा


सुषमा दीक्षित शुक्ला

तुम बिन कौन उबारे 


 


थोड़ी सी मुस्कान कन्हैया ,


जग को दे दो प्यारे ।


हर कोई है व्यथित यहाँ तो ,


 अपने दुख से हारे।


 इस धरती पर आकर खुद,


 तुमने भी दुख क्रूर सहे ।


 कारागृह में जन्म लिया ,


निज मात-पिता से दूर रहे ।


नंद यशोदा के लाला बन ,


ग्वाल बाल संग मेल किया ।


 गोपी गइया मोर मुरलिया ,


 इन सब के संग खेल किया ।


राधा के कान्हा तुमने ,


अमर प्रेम इतिहास किया ।


नंद यशोदा के लाला बन 


रक्त नात को मात दिया ।


मैत्री का इतिहास रचाया ,


दीन सुदामा मीत बनाकर।


 उनके दुख दारिद्र्य मिटाया ,


 अद्भुत प्रेम निछावर देकर।


दुष्ट कंस पापी को मारा ,


 सब की सघन सुरक्षा की।


 गोवर्धन पर्वत करे धारण,


 शरणागत की रक्षा की ।


दुष्ट दैत्य पूतना बकासुर 


एक एक कर सब मारे ।


अब दुखों का नाम मिटा दो ,


राधा जी के तुम् प्यारे ।


बने सारथी जब अर्जुन के ,


कर्म योग संदेश दिया ।


स्वयं जटिल जीवन जीकर भी ,


 गीता का उपदेश दिया।


 तड़प उठी मानवता अब ,


ये केवल तुम्हें पुकारे ।


तुम बिन मेरे कान्हा ,


  अब ये नइया कौन उबारे ।


थोड़ी सी मुस्कान कन्हैया ,


जग को दे दो प्यारे ।


हर कोई है व्यथित यहाँ तो ,


अपने दुख से हारे ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


रवि रश्मि अनुभूति

उड़ते पक्षियों की हमने तो , चाल सदा पहचानी है ..... 


जो भी न समझे वही उसकी , ये तो नादानी है ..... 


 


हौसला रख कर ही तो सुनो , भरते हैं उड़ान ही वो 


उड़ते - उड़ते रहे देखते , सारा जहान ही वो 


दुनिया सुनो पंछियों की ही , हुई सदा दीवानी है ..... 


जो भी न समझे वही उनकी , ये तो नादानी है .....


 


पंछी प्यारे हैं रह सकते , नहीं कभी बंधन में  


खुश होते हैं आ कर ही तो , सारे ही आँगन में 


साथ पंछियों का तो लगता , बहुदा रूहानी है .....


जो भी न समझे वही उनकी , ये तो नादानी है .....


 


घोंसला बना घर में सुन लो , आते - जाते ही हैं 


जब मर्ज़ी वो जाते हैं जब , हो मर्ज़ी आते हैं 


कितनी ज़िदादिल सदा उनकी , रही ये रवानी है ..... 


जो भी न समझे वही उनकी , ये तो नादानी है .....


 


उड़ते पक्षियों की हमने तो , चाल पहचानी है .....


जो भी न समझे वही , उसकी नादानी है .....


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


   मुंबई ( महाराष्ट्र ) ।


सुनील कुमार गुप्ता

गुरु शिष्य का भाग्य विधाता


जाने जग मे सब साथी,


गुरु बिन ज्ञान नहीं-


जीवन मे कही सम्मान नहीं।


गुरु ही शिष्य का भाग्य विधाता,


इसमें कही कोई -


साथी अभिमान नहीं।


माँ जीवन की प्रथम गुरु,


देती जीवन संस्कार-


फिर भी मिलता उसे सम्मान नहीं।


गुरु चरणो में बैठ जो साथी,


करे सम्मान पाता ज्ञान -


बनता जीवन में महान वहीं।


गुरु का स्थान प्रभु से भी ऊँचा,


देता वही प्रभु मिलन की-


साथी दिशा सही।


भटकते कदमो को दे दिशा,


दे सच्चा ज्ञान-


सद् गुरु की पहचान यही।


गुरु ही शिष्य का भाग्य विधाता,


सत्य है ये तो-


इसमे कही दो मत नहीं।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


संजय जैन

लूटकर सब कुछ अपना


तेरी शरण मे आया हूँ।


अब दवा दो या ये जहर


ये तेरे पर निर्भर करता है।


तेरी रहमत पर ही जिंदा हूँ


इसलिए तेरा आभारी हूँ।


और जिंदगी को अब 


धर्मानुसार जी रहा हूँ।।


 


न कोई किसी का होता


न कोई कोई रेहम करता है।


मिलता जिसको भी मौका


क्या अपना और पराया।


वो किसी को भी 


लूटने से नहीं चुकता है।


और धन को महत्व देकर


रिश्तों को भूल जाता है।।


 


आज कल इंसानों को


जानवरो से कम डरता है।


पर इंसानों से सबसे ज्यादा 


खुद इंसान डरता है।


क्योंकि अब इंसान और


इंसानियत पूरी मर चुकी है।


इसलिए वो अब अकेला 


जीना पसंद कर रहा है।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-45


 


केहि बिधि हो सभ काजु सुचारू।


सभ मिलि आपसु करहिं बिचारू।।


     करि सुचारु सभ काजु प्रणाली।


     भरत गए गुरु-धामहिं हाली।।


गुरु-आयसु,मति-बुधि अनुसारा।


नंदिग्राम तब भरतु पधारा।।


    कास-साँधरी,राम-खड़ाऊँ।


    तापसु-भेष भरत तहँ जाऊँ।।


निर्मित करि तहँ परन-कुटीरा।


नेम-बरत जस संत-फकीरा।।


     रहहिं भरत अब नंदीग्रामा।


     राम-पादुका रखि ऊँचि धामा।।


निसि-दिन सुति-उठि साँझ-सकारू।


पूजैं प्रति-दिन पाँव-पाँवरू।।


     लइ आदेस राम-पादुका कै।


     करैं प्रसासन अवधपुरा कै।।


नेम-धरम अरु ब्रत-उपवासा।


दूबर भरत न हो बिसुवासा।।


      घटै बदन-बल,मुख-छबि वैसै।


       बिमल चंद्र-छबि पातर जैसै।।


अवधपुरी अति पुरी सुहावन।


बासन-बसन,असन अरु आसन।


     सभ बिधि लागै अमरपुरी जस।


     धन-कुबेर तरसैं लखि-लखि तस।।


अस सुख-सुविधा तजि रामानुज।


रहहिं गाँव लइ तप-बल निज भुज।।


      दसरथपुरी भरत जनु ऐसे।


       जल बिनु पिए मीन जल जैसे।।


जटा-जूट सिर,तापस-पट मा।


हरषहिं सुरन्ह देखि निज मन मा।।


      धरम-धुरंधर,नीयम-पालक।


      राज-काजु-भारहिं सिर धारक।।


भरत निरंतर करहिं प्रसासन।


राम-नाम धारे अनुसासन।।


     राम-पादुका सतत निहारैं।


     सुमिरि राम कहँ दिवस गुजारैं।।


दोहा-भरत-प्रेम जग-प्रेम कै,सभ जन करहु बिचार।


         भरत-जनम के कारनहिं,जग-त्रुटि होय सुधार।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-8


 


रह अचेत सोवत पुरवासी।


नंदहिं गोकुल गाँव-निवासी।।


    अस लखि तब बसुदेवा तुरंता।


    जसुमति-खाटहिं रखि भगवंता।।


तहँ तें लइ कन्या नवजाता।


बंदीगृह आए जहँ माता।।


    कन्या सुता देवकी-सैया।


     जसुमति-खाटहिं किसुन कन्हैया।।


निज पगु बँधि बेड़ी-जंजीरा।


गए बैठि तहँ धरि हिय धीरा।।


    सकीं न जानि जसोदा माता।


    कइसन अहहि तासु नवजाता।।


लइका अथवा लइकी अहही।


माया-जोग अचेतइ रहही।।


दोहा-जे केहु धारन प्रभु करै, हिय रखि प्रेम अपार।


         जग-बेड़ी-बंधन कटै,जाय सिंधु-भव पार।।


         जमुन-नाम कृष्ना अहहि,कृष्न जमुन कै नीर।


         अस बिचार करि जमुन-जल,कृष्न हेतु भे थीर।।


        सूर्यबंस मा जब रहा,राम प्रभुहिं अवतार।


        चंद्र पिता बाँधे रहे,सागर-नीर अपार।।


        चंद्रबन्स अब प्रभु अहहिं, सुता अहहुँ मैं भानु।


        अस बिचार जमुना भईं,थीर प्रभुहिं पहिचानु।।


        कहहिं जगत-सत्पुरुष सभ,रख जे हिय भगवान।


        लहहि अलौकिक सुख उहहि,रहइ उ पुरुष-प्रधान।।


       ह्रदय प्रभुहिं रखि जमुन-जल,भे पुनीत जल-नीर।


       करतै मज्जन जेहि मा,सुचि मन होय सरीर।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां वीणा धारणी


***************


हे मां शुभ्र वस्त्रधारिणी,


दिव्य दृष्टि निहारिणी,


 हे मां वीणा धारणी ,


पाती में वीणा धरै,


तू कमल विहारिणी।


 


पवित्रता की मूर्ति तू,


सद् भाव की प्रवाहिनी,


हे मां सुमति दायनी,


ज्ञान का वरदान दे,


मैं प्रणाम कर रहा हूँ।।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी

न जाना मुझे छोड़ करके बहाना।


किया था जो' वादा सनम तुम निभाना।


 


सहारा न कोई तुम्हारे सिवा है,


पड़ेगा मुझे क्या तुम्हें ये बताना।


 


 


नहीं जी सकूॅ॑गी तुम्हारे बिना मैं,


सदा याद रखना इसे मत भुलाना।


 


तुम्ही चाॅ॑द मेरे तुम्हीं तो हो' सूरज,


तुम्हारे बिना तो न कुछ भी ज़माना।


 


बसाया नज़र में मुझे ये सही है,


मगर अब न नज़रों से मुझको गिराना।


 


ख़ुदा की कसम तुम ख़ुदा ही हो' मेरे,


गुज़ारिश यही हर बला से बचाना।


 


नहीं और ख़्वाहिश ख़ुदा की कसम है,


सिवा ये जनाज़े को कंधा लगाना।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

सार्थक होता जीवन अपना,


पल-पल देखे ऐसा सपना।


सत्य-पथ पर चल कर साथी,


यहाँ रूठे न कोई अपना।।


मिले अपनत्व अपनो से साथी,


सच हो जाये जीवन सपना।


प्रेम-सेवा और त्याग संग,


सार्थक होता जीवन अपना।।


स्वार्थ की धरती पर फिर से,


बने न कोई साथी अपना।


त्यागमय होता जो जीवन,


सार्थक होता तन-मन अपना।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

वक्त आना शेष है


 


  दर्दनाक है यह समय


 जी रहे हैं‌ जिसमें हम सभी


     जबकि और भी 


दर्दनाक वक्त आना शेष है


 वर्तमान का आइना भविष्य का 


     अपना भयावह


  रौद्र- रूप दिखा रहा है


  पूर्वाद्ध चरण आना कलिकाल


 का तो अभी बहुत दूर बता रहा है


 ऐसी विषम परिस्थिति में


  दुरुह हो जायेगा जीना


हर सांस में घुल जायेगी अविश्वास, अनास्था और अनैतिकता की ज़हरीली हवा


    कत्ल करने दौड़ेगा 


       भाई, भाई का


     दूसरों के दुःख में 


 सुख ढूंढ़ता फिरेगा मनुष्य


  भंग कर दिया जायेगा


   कौमार्य सारी रवायतों का


        खायी जायेंगी


     रक्त से सनी रोटियां


      पुत्र ही धारदार


हथियार का निर्माण करेगा 


पिता की गर्दन को रेतने के लिए


   धर्म और सत्कर्म 


की अस्मत लूटी जायेंगी


 ठीक मंदिरों के सामने 


  बच सकेगा मनुष्य 


  सर्प- दंश से


लेकिन कोई दैवीय शक्ति 


ही बचा सकेगी किसी


 नर- पिशाच के 


 रक्तिम नुकीले दंश से 


नृशंस हत्या


 सरेआम होगी सत्पथियों की 


यह वक्त तो आना अभी शेष है


 


 


डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र


प्रयागराज फूलपुर


7458994874


नूतन लाल साहू

गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता


माटी के लोंदे,जैसा शिष्य को


गुरु ही,बहुमूल्य बनाता है


पढ़ने वाले बच्चे,मोम जैसे होते हैं कच्चे


गुरु जैसे मोड़ दे, वैसे ही मुड़ जाते हैं


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


गौतम गांधी,श्री कृष्ण बलराम भी


अपने अपने गुरु का,शिष्य था


बाल्मिकी आश्रम में रहकर


बालपन में ही,लवकुश श्रेष्ठ बना


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


गुरु मुख से,ज्ञान की नदिया बहती हैं


जैसे गंगा जमुना सरस्वती


शिष्य का तन मन,पावन हो जाता है


सहाय होती है, मां शारदा भगवती


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


दुनिया के विधि को,विधि ने बनाया है


अब तक गुरु ही,शिष्य को श्रेष्ठ बनाया है


जीव हमारी जाति है,मानव धर्म हमारा धर्म है


यह ज्ञान भी,गुरु ने ही बताया है


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


चाहे घोर संकट ने घेरा हो


चाहे चारो ओर अंधेरा हो


मिलता है सच्चा सुख केवल


गुरु के उपदेशों को,साक्षात करने से


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


बिन गुरु प्रीत न उपजै


कबहु न पायो चैन


सूरज भी छोटा लगै


गुरु का जब,जग में फैले प्रकाश


गुरु कृपा अर्जित कर,मानुष जन्म सुधार


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

सींचते रहो सदा रिश्तों के पेड पौधों को।।


 


कोई खामोश है तो तुम


आवाज़ देकर बुला लो।


कुछ उसकी सुनो और


कुछ अपनी सुना लो।।


टूट रही है डोर बस जरा


थाम लो पकड़ कर।


रिश्तों में दर्द समझो


आँसू उनके चुरा लो।।


 


रिश्ता निभनेऔर निभाने


का ही नाम होता है।


हर कोई कुछ पाता और


कभी कुछ खोता है।।


एक तरफ़ा का चलन


नहीं होता है रिश्तों में।


वैसी ही फसल काटता


जैसी वह बोता है।।


 


तेरा आज का किया ही


तेरे कल काम आयेगा।


आज का आगाज़ ही


अंजाम को बतायेगा।।


रिश्तों में भी लागू जैसी


करनी वैसी ही भरनी।


जैसा करेगा सम्मान वैसा


ही परिणाम तू पायेगा।।


 


घमंड बहुत खतरनाक कि


रिश्ते इसकी खुराक हैं।


पल में टूट जाते संबंध कि


सब रह जाते आवाक हैं।।


मत काटना कभी रिश्तों


की मजबूत जडों को।


कि हरे भरे भी सूख 


जाते पेड़ पत्ते शाख हैं।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


एस के कपूर श्री हंस

माना कि ये कॅरोना बहुत 


ही सता रहा है।


मगर कैसे जीना चाहिये


ये भी बता रहा है।।


जीवन दिनचर्या और हमें


जरूरते बदलनी होंगी।


यह सब कुछ दिखा कर


हमें जता रहा है।।


 


क्या ज्यादा क्या गैर जरूरी


जीवन में ये सीखा है।


वरीयता किसको देनी यह


भी हमनें दिखा है।।


अनुशासन और सावधानी


जरूरी जीवनयापन में।


अस्वस्थ अब बचेगा नहीं


चाहे पैसे में भीगा है।।


 


स्वच्छता और प्रकृति के


मायने हैं समझा दिये।


लापरवाही और चूक ने


कई दीये बुझा दिये।।


रोग प्रतिरोधक क्षमता है


रसोई में ही विद्यमान।


प्रकृति ने ही हमें हैं कुछ


रास्ते सुझा दिये।।


 


कॅरोना के साथ चलना और


जीवन वैसा ढालना होगा।


मन के भीतर कुछ भ्रांतियों


को अब निकालना होगा।।


आर्थिक विकास भी जरूरी


ओ बीमारी से बचाव भी।


दोनों ही पडलों का संतुलन


हमें अब संभालना होगा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


विनय साग़र जायसवाल

कितने अजब ये आज के दस्तूर हो गये


कुछ बेहुनर से लोग भी मशहूर हो गये 


 


जो फूल हमने सूँघ के फेंके ज़मीन पर


कुछ लोग उनको बीन के मगरूर हो गये 


 


हमने ख़ुशी से जाम उठाया नहीं मगर


उसने नज़र मिलाई तो मजबूर हो गये 


 


उस हुस्ने-बेपनाह के आलम को देखकर


होश-ओ-ख़िरद से हम भी बहुत दूर हो गये 


 


इल्ज़ाम उनपे आये न हमको ये सोचकर


नाकरदा से गुनाह भी मंज़ूर हो गये


 


रौशन थी जिनसे चाँद सितारों की अंजुमन


वो ज़ाविये नज़र के सभी चूर हो गये


 


हर दौर में ही हश्र हमारा यही हुआ


हर बार हमीं देखिये मंसूर हो गये


 


साग़र किसी ने प्यार से देखा है इस कदर


शिकवे गिले जो दिल में थे काफूर हो गये 


 


विनय साग़र जायसवाल 


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

मैं ख्वाहिशों के दीप, जलाता चला गया,


मायूसियों को दिल से भगाता चला गया।।


 


कष्टों के जब भी बादल,छाते रहे गगन,


मैं बारिशों का जश्न मनाता चला गया ।।


 


आता रहा तूफ़ान था न फिर भी कोई ग़म,


मैं मुश्किलों से हाथ मिलाता चला गया ।।


 


राहें भी जिंदगी की, रहतीं रहीं कठिन,


मैं पत्थरों पे पाँव बढ़ाता चला गया ।।


 


आयी बला तो दोस्त भी,दिए न साथ तो,


मैं दुश्मनों को दोस्त बनाता चला गया।।


 


ख्वाहिशें ही ज़िंदगी की, राह सँवारें,


ख्वाहिशों को दिल में बसाता चला गया।।


 


आतीं तो हैं उदासियाँ,आतीं ही रहेंगीं,


उदासियों की रेख मिटाता चला गया।।


 


जब भी पड़ी है धूल, इज़्ज़त पे मुल्क़ की,


बेग़ैरतों को धूल चटाता चला गया ।।


                    ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


डॉ0 रामबली मिश्र

मूरख रहता सदा अचेत,बड़ बड़ बड़ बड़ बोला करता।


नहीं बुद्धि में रहती जान,बना निरंकुश सदा बहकता।


खाने का है नहीं ठिकान,बातें करता है महलों की।


उसके आगे दुनिया फेल,सिर्फ वही उत्तीर्ण विश्व में।


नहीं जेब में पैसा एक,बनता मूरख अरबपती है।


सदा बघारत अपनी शान,बढ़-चढ़ करके बोला करता।


करता अपना सत्यानाश,किन्तु हैकड़ी नहीं छूटती।


चलता रहता सदा उतान,अति दंभी मूरख अज्ञानी।


पाता नहीं कहीं सम्मान,फिर भी मूरख ऐंठा रहता।


 


रचनाकार :डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

अरुणाभ बना मैं शिक्षक हूँ


 


उत्थान सतत विज्ञान जगत


अरुणाभ बना शिक्षक मैं हूँ।


हर तमोगुणी आलोक विरत,


निशिचन्द्रप्रभा सोमाकर हूँ। 


 


मृण्मय काया मानव जीवन,


बन कुंभकार निर्माणक हूँ।


विविध ज्ञानरंग चारु सुघर,


शुभ पात्र मनुज मैं सर्जक हू्ँ।


 


सम शान्त चित्त निश्छल कोमल,


महादान ज्ञान सम्मानक हूँ।


सत्कर्म निरत गुण शील विनत,


सौरभ सरोज रस गुरुतर हूँ। 


 


घनघोर घटा तम छा मन में ,


आलोक नया दे पाता हूँ।


परमार्थ निरत नित स्वार्थ विरत,


सम्वाहक बस बन जाता ह़ूँ।


 


सोपान नया निर्माण पथिक,


वरदान ज्ञान उद्गाता हूँ।


मानक सह निष्ठा प्रतिमानक,


नवयुग साधक संधानक हूँ।


 


अखण्ड मण्डलाकार गुरुवर,


माना त्रिदेव से गुरुतर हूँ।


गोविन्द श्रेष्ठ शास्त्रज्ञ प्रवर,


परमार्थ जगत श्रेयस्कर हूँ। 


 


कर्तव्य बोध हो उज्ज्वल जग,


नित छात्र सहज गुण गाता हूँ।


उद्रेक ज्ञान जन कल्याणक,


नैतिक मानव पथ चलता हूँ। 


 


अन्तर्मन शीतल मृदु पावन,


निर्माण कार्य जग शुभफल हूँ।


पतवार बना मँझधार सरित,


बन नाविक मनुज खवैया हूँ।


 


नीर क्षीर सरोवर गुरु मानक,


गुरु मति विवेक हंसासन हूँ।


अभिलाष मनुज नवकीर्ति फलक


नव ज्योति किरण नव जीवन हूँ।


 


बहुरूप जगत गुरुदेव चरित,


बन मातु पिता आराधक हूँ।


नित आलोक बने शिक्षायतन,


जीवन अनेक गुरुनानक हूँ।


 


आधान जगत सम्मान मनुज,


शंंकर विधि हरि सम सर्जक हूँ।


अगस्त्य वशिष्ठ नर नारायण,


बुद्ध महावीर शंकर सम हूँ।


 


अत्रि कौत्स नित धौम्य समझ,


याज्ञवल्क्य व्यास गुरु गौतम हूँ।


बन वाल्मीकि विश्वामित्र जगत,


बृहस्पति शुक्र करुणाकर हूँ।


 


सदाचार युक्त पथ त्याग निरत,


चाणक्य नीति रत्नाकर हूँ।


हूँ भृगु समान भृगुनन्दन जग,


गार्ग्य पाणिनि कात्यायन हूँ।


 


दुर्वास कुप्त मन करुणाकर,


शुकदेव कपिल वात्स्यायन हूँ।


हूँ चरक जीवक संदीपन गुरु ,


पतंजलि स्वयं योगेश्वर हूँ।


 


त्याग शील गुण कर्म पथिक,


मद मोह विरत जग तारक हूँ।


तिमिर घोर विपद अज्ञान परत,


शशि भानु किरण निशिवासर हूँ। 


 


हूँ उमारमण ऋषितुल्य प्रवर,


परशुराम गुरु मंजू श्री हूँ।


हूँ अखिल विलास ललिता ममता,


आचार्य श्रेष्ठ शिवशंकर हूँ।  


 


बिन गुरु होत न ज्ञान मनुज जग,


पथप्रदर्शक जीवनधर गुरु हूँ।


श्रद्धा विनत रख चिर साधक बन,


पात्र शिष्य परिचारक गुरु हूँ।


 


शत् शत् प्रणाम गुरुश्रेष्ठ चरण,


उऋण समर्पित शिष्य विनत हूँ।


निशिचन्द्र अरुण जीवन तम बन,


अनमोल कीर्ति गुरु पदतल हूँ। 


 


कवि डॉ. राम कुमार झा निकुंज


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


शिक्षक दिवस चयनित सूची

शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर बहुतायत में आपसभी श्रेष्ठ शिक्षकों का विवरण प्राप्त हुआ इसमे से प्रथम चयनित सूची जारी की जा रही उपरोक्त चयनित गुरुजन अपनी फोटो और डाक का पता व्यक्तिगत प्रेषित करें जिससे उनको सम्मान पत्र प्रेषित किया जा सके ऑनलाइन अभी दिय्या जायगा शेष सम्मान सामग्री स्थापना दिवस पर मंच से प्रदान की जायेगी या कोरियर से प्रेषित कर दी जायेगी।।


अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार 262722


मो0 9919256950


 


1 सर्व श्री डॉ इन्दु झुनझुनवाला जी बैंगलौर ✔️


2-श्री दयानन्द त्रिपाठी जी महराजगंज गोरखपुर✔️


3 सुश्री उर्मिला शुक्ला


4 श्रीमती रश्मिलता मिश्रा जी बिलासपुर छग✔️


5 श्रीमती इला श्री जायसवाल नोयडा✔️


6- श्रीमती आशा पाण्डेय अम्बिकापुर सरगुजा छग


7- श्री गौरव शुक्ल मन्यौरा लखीमपुर खीरी✔️


8-सुश्री निर्मला शुक्ला


9- डा विनय यादव बेंगलूर


10 श्रीमान उमेश कुमार जी राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक कन्नौज✔️


11 सुश्री विमला शुक्ला


12 श्रीमती कृष्णा देवी पाण्डेय नेपाल


13-श्रीमती रुपा व्यास परमाणु नगरी रावतभाटा कोटा राजस्थान।,✔️


 


14 गिरिजा शंकर सिंह स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी प्रयागराज भूगोल विशेषज्ञ✔️


 


15-लवी सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर इन्वर्टिस यूनिवर्सटी बरेली✔️


 


16 सरोज गुप्ता जो hod हिंदी विभाग सागर mp 


 


17 सुश्री क्षमा टण्डन जी लखीमपुर खीरी


 


18 सुरेश लाल श्रीवास्तव, प्रधानाचार्य राजकीय इण्टर कालेज,अकबरपुर


 


19 डॉ वन्दना मिश्रा


प्राचार्य शासकीय हमीदिया कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक दो भोपाल   


 


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डॉ.राधा वाल्मीकि.


शिक्षिका,समाजसेविका, कवयित्री कृषि विश्वविद्यालय कैम्पस),न जिला-ऊधमसिंह नगर, उत्तराखण्ड


सही निशान वाले सम्मानित शिक्षको को प्रेषित कर दिया गया शेष आप सभी अपना पासपोर्ट साइज फोटो whatsapp कीजिए 9919256950 पर 


संगीता श्रीवास्तव सुमन

मिलता नहीं सहज , शिक्षा का प्रताप देखो , 


बड़े ही बड़ों का शीश , श्रद्धा से झुकाय है |


 


नाम गाँव धाम नहीं , कुल वंश राशि नहीं , 


ज्ञान का दीपक एक , लौ जगमगाय है | 


 


मोल तोल बोल ज़रा, छुटती ज़बान तेज़ ,


देख भाल के सुमन , ये तीर चलाय है | 


 


सच्चे गुरू से ही तो , मान विद्या का बढ़े ,


शिक्षक दिवस जग , पाठ ये पढ़ाय है |


 


@ संगीता श्रीवास्तव सुमन 


छिंदवाड़ा मप्र


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

कुवार माह के कृष्ण पक्ष में


पितृ पक्ष आ जाता है


मनोभाव से तर्पण कर 


मानव तृप्त हो जाता है।


 


पितृ पक्ष में पितर हमारे


सूक्ष्म रूप में आ जाते हैं


पावन धरा पर आकर ही


आशीष हमें दे जाते हैं।


 


पितृ पक्ष में ढूंढते रहते


पंचबली अपने-अपने भाग


माता-पिता के श्राद्ध कर्म का


पूड़ी खीर पकौड़ी और साग।


 


पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म से


यदि मानव विमुख हो जाता है


पितरों के कोप भाजन से


मानव का अनिष्ट हो जाता है।


 


सुत को चिंता में देख पितर


पंचबली के रूप में आते हैं


चिंता सब हर आशिष दें


पितर मात-पिता हो जाते हैं।


 


मात - पिता इस धरा पर 


देते स्नेह सदा हैं देव समान


ओझल होते इस धरा से ही


यादों में रहते प्रतिरुप ध्यान।


 


श्रद्धा से यदि श्राद्ध करें 


पितृ संतुष्ट - मुक्त हो जाते हैं


कष्टों को हर देते आशिष हमें


हम सबको सुखी कर जाते हैं।



   दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


     महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


नूतन लाल साहू

शिक्षक दिवस,गुरुजनों को सादर नमन


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरूर्देवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


चंदा और सुरुज से भी ज्यादा है


गुरुवर तोरेच, अंजोर


क्या बच्चा,क्या सियान 


करते हैं, गुरुवर तोरेच ध्यान


घर घर पूजा होता है


घर घर होता है, सम्मान


तोरेच धन की महिमा गुरुवर


खर्च करने से,उल्टा बढ़ता है


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरूर्देवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


तुहरेच कृपा ले गुरुवर


काली अउ सूरदास रिहिन


अपन समय के हीरा


जग में नाम कमा कर गया है


महादेवी और श्री कृष्ण भक्त मीरा ने


ज्ञानम शीलम, शिवम् सुंदरम


हो सबके हितकारी


वेद शास्त्र पुराण से ऊपर


तोरेच महिमा न्यारी है


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरुदेवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय


बलिहारी गुरु आपने,गोबिंद दियो बताय


पढ़ने वाले बच्चे,मोम जैसे होते हैं कच्चे


गुरुवर जैसे मोड़ दे, मुड जाते हैं वैसे


चाहे कोई ज्ञानी हो,चाहे कोई हो विज्ञानी


चाहे कोई नेता हो,चाहे कोई हो अभिनेता


गुरु से ही,अक्षर ज्ञान लिया है


लोहा को सोना बना दे


गुरु ही वो,पारस मणि का पत्थर है


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो, महेश्चरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


मै भी शरण में,आया हूं गुरुवर


हर लो, मेरी अशिक्षा को


मेरा भी विनती,सुन ले गुरुवर


हर लो,मेरी पीड़ा को


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

अष्टावक्र गीता-11


माया कल्पित विश्व यह,माने प्रज्ञावान।


विगत कामना को कहाँ,डर न, मृत्यु ध्रुव जान।।


 


रहे भले नैराश्य में,फिर भी नहीं उदास।


महा आत्मा-अनिछ जग,किससे तुले,न आस।।


 


बिना किसी अस्तित्व के,दृश्यमान जग मान।


त्याज्य और अत्याज्य को,लखे न प्रज्ञावान।।


 


सुख अथवा दुख उभय अपि,दोनों रहते एक।


अनासक्त नर के लिए,यद्यपि लोभ अनेक।।


 


बुद्धिमान को तो लगे,यह जग-लीला खेल।


कभी न,अष्टावक्र कह,बुधजन-मोहित-मेल।।


           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


              9919446372


एस के कपूर श्री हंस

शिक्षक ही हमारे भविष्य


का निर्माण करता है।


 


शिक्षक हमें पढ़ाता और


शिक्षक ही संवारता है।


शिक्षक ही तो उचित


ज्ञान हम पर वारता है।।


हमें देता है वह एक  


सही दिशा और सम्मति।


जीवन नव निर्माण लिये


शिक्षक ही सुधारता है।।


 


माता पिताऔर गुरु हमारे


जीवन के निर्माता हैं।


जान लीजिये यही तीनों


ही हमारे भाग्यविधाता हैं।।


माँ तो होती है बच्चों की


प्रथम शिक्षकऔर पालक।


शिक्षक ही हमारा पथ


प्रदर्शक और ज्ञान दाता है।।


 


शिक्षक ही हमें विषयों का


सही ज्ञान बताता है।


वही नैतिकता मानवता


का पाठ भी पढ़ाता है।।


गुरु ऋण से अवमुक्त हो


नहीं सकते हैं जीवन भर।


शिक्षक ही हमारे भविष्य


का निर्माण कराता है।।


 


गुरु जनों का आदर तुम


जीवन भर भरते रहना।


उनके आशीष वचनों से


जीवनअपना गढ़ते रहना।।


उनके आशीर्वाद का हर


कण तुम्हारा सफलता मंत्र


अपने गुरुजनों का आभार


जीवन भर करते रहना।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां वीणा धारणी वरदे


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


कला की देवी इस जीवन को


सुन्दरता से सुखमय कर दो


अपने अशीष की छाया से


मेरा जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


सरस सुधाकर शुभ वाणी से


अखिल विश्व को आलोकित कर दो


बुद्धि विवेक ज्ञान प्रकाश सबको देकर


सबका जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


तेरे चरणों में आकर मां


विश्वास का सम्बल मिलता है


जिस पर भी तुम करुणा करती हो


उसका जीवन धन-धान्य हो जाता है।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


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