डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

वक्त आना शेष है


 


  दर्दनाक है यह समय


 जी रहे हैं‌ जिसमें हम सभी


     जबकि और भी 


दर्दनाक वक्त आना शेष है


 वर्तमान का आइना भविष्य का 


     अपना भयावह


  रौद्र- रूप दिखा रहा है


  पूर्वाद्ध चरण आना कलिकाल


 का तो अभी बहुत दूर बता रहा है


 ऐसी विषम परिस्थिति में


  दुरुह हो जायेगा जीना


हर सांस में घुल जायेगी अविश्वास, अनास्था और अनैतिकता की ज़हरीली हवा


    कत्ल करने दौड़ेगा 


       भाई, भाई का


     दूसरों के दुःख में 


 सुख ढूंढ़ता फिरेगा मनुष्य


  भंग कर दिया जायेगा


   कौमार्य सारी रवायतों का


        खायी जायेंगी


     रक्त से सनी रोटियां


      पुत्र ही धारदार


हथियार का निर्माण करेगा 


पिता की गर्दन को रेतने के लिए


   धर्म और सत्कर्म 


की अस्मत लूटी जायेंगी


 ठीक मंदिरों के सामने 


  बच सकेगा मनुष्य 


  सर्प- दंश से


लेकिन कोई दैवीय शक्ति 


ही बचा सकेगी किसी


 नर- पिशाच के 


 रक्तिम नुकीले दंश से 


नृशंस हत्या


 सरेआम होगी सत्पथियों की 


यह वक्त तो आना अभी शेष है


 


 


डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र


प्रयागराज फूलपुर


7458994874


नूतन लाल साहू

गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता


माटी के लोंदे,जैसा शिष्य को


गुरु ही,बहुमूल्य बनाता है


पढ़ने वाले बच्चे,मोम जैसे होते हैं कच्चे


गुरु जैसे मोड़ दे, वैसे ही मुड़ जाते हैं


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


गौतम गांधी,श्री कृष्ण बलराम भी


अपने अपने गुरु का,शिष्य था


बाल्मिकी आश्रम में रहकर


बालपन में ही,लवकुश श्रेष्ठ बना


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


गुरु मुख से,ज्ञान की नदिया बहती हैं


जैसे गंगा जमुना सरस्वती


शिष्य का तन मन,पावन हो जाता है


सहाय होती है, मां शारदा भगवती


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


दुनिया के विधि को,विधि ने बनाया है


अब तक गुरु ही,शिष्य को श्रेष्ठ बनाया है


जीव हमारी जाति है,मानव धर्म हमारा धर्म है


यह ज्ञान भी,गुरु ने ही बताया है


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


चाहे घोर संकट ने घेरा हो


चाहे चारो ओर अंधेरा हो


मिलता है सच्चा सुख केवल


गुरु के उपदेशों को,साक्षात करने से


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


बिन गुरु प्रीत न उपजै


कबहु न पायो चैन


सूरज भी छोटा लगै


गुरु का जब,जग में फैले प्रकाश


गुरु कृपा अर्जित कर,मानुष जन्म सुधार


गुरु,शिष्य का भाग्य विधाता होता है


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

सींचते रहो सदा रिश्तों के पेड पौधों को।।


 


कोई खामोश है तो तुम


आवाज़ देकर बुला लो।


कुछ उसकी सुनो और


कुछ अपनी सुना लो।।


टूट रही है डोर बस जरा


थाम लो पकड़ कर।


रिश्तों में दर्द समझो


आँसू उनके चुरा लो।।


 


रिश्ता निभनेऔर निभाने


का ही नाम होता है।


हर कोई कुछ पाता और


कभी कुछ खोता है।।


एक तरफ़ा का चलन


नहीं होता है रिश्तों में।


वैसी ही फसल काटता


जैसी वह बोता है।।


 


तेरा आज का किया ही


तेरे कल काम आयेगा।


आज का आगाज़ ही


अंजाम को बतायेगा।।


रिश्तों में भी लागू जैसी


करनी वैसी ही भरनी।


जैसा करेगा सम्मान वैसा


ही परिणाम तू पायेगा।।


 


घमंड बहुत खतरनाक कि


रिश्ते इसकी खुराक हैं।


पल में टूट जाते संबंध कि


सब रह जाते आवाक हैं।।


मत काटना कभी रिश्तों


की मजबूत जडों को।


कि हरे भरे भी सूख 


जाते पेड़ पत्ते शाख हैं।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


एस के कपूर श्री हंस

माना कि ये कॅरोना बहुत 


ही सता रहा है।


मगर कैसे जीना चाहिये


ये भी बता रहा है।।


जीवन दिनचर्या और हमें


जरूरते बदलनी होंगी।


यह सब कुछ दिखा कर


हमें जता रहा है।।


 


क्या ज्यादा क्या गैर जरूरी


जीवन में ये सीखा है।


वरीयता किसको देनी यह


भी हमनें दिखा है।।


अनुशासन और सावधानी


जरूरी जीवनयापन में।


अस्वस्थ अब बचेगा नहीं


चाहे पैसे में भीगा है।।


 


स्वच्छता और प्रकृति के


मायने हैं समझा दिये।


लापरवाही और चूक ने


कई दीये बुझा दिये।।


रोग प्रतिरोधक क्षमता है


रसोई में ही विद्यमान।


प्रकृति ने ही हमें हैं कुछ


रास्ते सुझा दिये।।


 


कॅरोना के साथ चलना और


जीवन वैसा ढालना होगा।


मन के भीतर कुछ भ्रांतियों


को अब निकालना होगा।।


आर्थिक विकास भी जरूरी


ओ बीमारी से बचाव भी।


दोनों ही पडलों का संतुलन


हमें अब संभालना होगा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


विनय साग़र जायसवाल

कितने अजब ये आज के दस्तूर हो गये


कुछ बेहुनर से लोग भी मशहूर हो गये 


 


जो फूल हमने सूँघ के फेंके ज़मीन पर


कुछ लोग उनको बीन के मगरूर हो गये 


 


हमने ख़ुशी से जाम उठाया नहीं मगर


उसने नज़र मिलाई तो मजबूर हो गये 


 


उस हुस्ने-बेपनाह के आलम को देखकर


होश-ओ-ख़िरद से हम भी बहुत दूर हो गये 


 


इल्ज़ाम उनपे आये न हमको ये सोचकर


नाकरदा से गुनाह भी मंज़ूर हो गये


 


रौशन थी जिनसे चाँद सितारों की अंजुमन


वो ज़ाविये नज़र के सभी चूर हो गये


 


हर दौर में ही हश्र हमारा यही हुआ


हर बार हमीं देखिये मंसूर हो गये


 


साग़र किसी ने प्यार से देखा है इस कदर


शिकवे गिले जो दिल में थे काफूर हो गये 


 


विनय साग़र जायसवाल 


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

मैं ख्वाहिशों के दीप, जलाता चला गया,


मायूसियों को दिल से भगाता चला गया।।


 


कष्टों के जब भी बादल,छाते रहे गगन,


मैं बारिशों का जश्न मनाता चला गया ।।


 


आता रहा तूफ़ान था न फिर भी कोई ग़म,


मैं मुश्किलों से हाथ मिलाता चला गया ।।


 


राहें भी जिंदगी की, रहतीं रहीं कठिन,


मैं पत्थरों पे पाँव बढ़ाता चला गया ।।


 


आयी बला तो दोस्त भी,दिए न साथ तो,


मैं दुश्मनों को दोस्त बनाता चला गया।।


 


ख्वाहिशें ही ज़िंदगी की, राह सँवारें,


ख्वाहिशों को दिल में बसाता चला गया।।


 


आतीं तो हैं उदासियाँ,आतीं ही रहेंगीं,


उदासियों की रेख मिटाता चला गया।।


 


जब भी पड़ी है धूल, इज़्ज़त पे मुल्क़ की,


बेग़ैरतों को धूल चटाता चला गया ।।


                    ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


डॉ0 रामबली मिश्र

मूरख रहता सदा अचेत,बड़ बड़ बड़ बड़ बोला करता।


नहीं बुद्धि में रहती जान,बना निरंकुश सदा बहकता।


खाने का है नहीं ठिकान,बातें करता है महलों की।


उसके आगे दुनिया फेल,सिर्फ वही उत्तीर्ण विश्व में।


नहीं जेब में पैसा एक,बनता मूरख अरबपती है।


सदा बघारत अपनी शान,बढ़-चढ़ करके बोला करता।


करता अपना सत्यानाश,किन्तु हैकड़ी नहीं छूटती।


चलता रहता सदा उतान,अति दंभी मूरख अज्ञानी।


पाता नहीं कहीं सम्मान,फिर भी मूरख ऐंठा रहता।


 


रचनाकार :डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

अरुणाभ बना मैं शिक्षक हूँ


 


उत्थान सतत विज्ञान जगत


अरुणाभ बना शिक्षक मैं हूँ।


हर तमोगुणी आलोक विरत,


निशिचन्द्रप्रभा सोमाकर हूँ। 


 


मृण्मय काया मानव जीवन,


बन कुंभकार निर्माणक हूँ।


विविध ज्ञानरंग चारु सुघर,


शुभ पात्र मनुज मैं सर्जक हू्ँ।


 


सम शान्त चित्त निश्छल कोमल,


महादान ज्ञान सम्मानक हूँ।


सत्कर्म निरत गुण शील विनत,


सौरभ सरोज रस गुरुतर हूँ। 


 


घनघोर घटा तम छा मन में ,


आलोक नया दे पाता हूँ।


परमार्थ निरत नित स्वार्थ विरत,


सम्वाहक बस बन जाता ह़ूँ।


 


सोपान नया निर्माण पथिक,


वरदान ज्ञान उद्गाता हूँ।


मानक सह निष्ठा प्रतिमानक,


नवयुग साधक संधानक हूँ।


 


अखण्ड मण्डलाकार गुरुवर,


माना त्रिदेव से गुरुतर हूँ।


गोविन्द श्रेष्ठ शास्त्रज्ञ प्रवर,


परमार्थ जगत श्रेयस्कर हूँ। 


 


कर्तव्य बोध हो उज्ज्वल जग,


नित छात्र सहज गुण गाता हूँ।


उद्रेक ज्ञान जन कल्याणक,


नैतिक मानव पथ चलता हूँ। 


 


अन्तर्मन शीतल मृदु पावन,


निर्माण कार्य जग शुभफल हूँ।


पतवार बना मँझधार सरित,


बन नाविक मनुज खवैया हूँ।


 


नीर क्षीर सरोवर गुरु मानक,


गुरु मति विवेक हंसासन हूँ।


अभिलाष मनुज नवकीर्ति फलक


नव ज्योति किरण नव जीवन हूँ।


 


बहुरूप जगत गुरुदेव चरित,


बन मातु पिता आराधक हूँ।


नित आलोक बने शिक्षायतन,


जीवन अनेक गुरुनानक हूँ।


 


आधान जगत सम्मान मनुज,


शंंकर विधि हरि सम सर्जक हूँ।


अगस्त्य वशिष्ठ नर नारायण,


बुद्ध महावीर शंकर सम हूँ।


 


अत्रि कौत्स नित धौम्य समझ,


याज्ञवल्क्य व्यास गुरु गौतम हूँ।


बन वाल्मीकि विश्वामित्र जगत,


बृहस्पति शुक्र करुणाकर हूँ।


 


सदाचार युक्त पथ त्याग निरत,


चाणक्य नीति रत्नाकर हूँ।


हूँ भृगु समान भृगुनन्दन जग,


गार्ग्य पाणिनि कात्यायन हूँ।


 


दुर्वास कुप्त मन करुणाकर,


शुकदेव कपिल वात्स्यायन हूँ।


हूँ चरक जीवक संदीपन गुरु ,


पतंजलि स्वयं योगेश्वर हूँ।


 


त्याग शील गुण कर्म पथिक,


मद मोह विरत जग तारक हूँ।


तिमिर घोर विपद अज्ञान परत,


शशि भानु किरण निशिवासर हूँ। 


 


हूँ उमारमण ऋषितुल्य प्रवर,


परशुराम गुरु मंजू श्री हूँ।


हूँ अखिल विलास ललिता ममता,


आचार्य श्रेष्ठ शिवशंकर हूँ।  


 


बिन गुरु होत न ज्ञान मनुज जग,


पथप्रदर्शक जीवनधर गुरु हूँ।


श्रद्धा विनत रख चिर साधक बन,


पात्र शिष्य परिचारक गुरु हूँ।


 


शत् शत् प्रणाम गुरुश्रेष्ठ चरण,


उऋण समर्पित शिष्य विनत हूँ।


निशिचन्द्र अरुण जीवन तम बन,


अनमोल कीर्ति गुरु पदतल हूँ। 


 


कवि डॉ. राम कुमार झा निकुंज


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


शिक्षक दिवस चयनित सूची

शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर बहुतायत में आपसभी श्रेष्ठ शिक्षकों का विवरण प्राप्त हुआ इसमे से प्रथम चयनित सूची जारी की जा रही उपरोक्त चयनित गुरुजन अपनी फोटो और डाक का पता व्यक्तिगत प्रेषित करें जिससे उनको सम्मान पत्र प्रेषित किया जा सके ऑनलाइन अभी दिय्या जायगा शेष सम्मान सामग्री स्थापना दिवस पर मंच से प्रदान की जायेगी या कोरियर से प्रेषित कर दी जायेगी।।


अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार 262722


मो0 9919256950


 


1 सर्व श्री डॉ इन्दु झुनझुनवाला जी बैंगलौर ✔️


2-श्री दयानन्द त्रिपाठी जी महराजगंज गोरखपुर✔️


3 सुश्री उर्मिला शुक्ला


4 श्रीमती रश्मिलता मिश्रा जी बिलासपुर छग✔️


5 श्रीमती इला श्री जायसवाल नोयडा✔️


6- श्रीमती आशा पाण्डेय अम्बिकापुर सरगुजा छग


7- श्री गौरव शुक्ल मन्यौरा लखीमपुर खीरी✔️


8-सुश्री निर्मला शुक्ला


9- डा विनय यादव बेंगलूर


10 श्रीमान उमेश कुमार जी राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक कन्नौज✔️


11 सुश्री विमला शुक्ला


12 श्रीमती कृष्णा देवी पाण्डेय नेपाल


13-श्रीमती रुपा व्यास परमाणु नगरी रावतभाटा कोटा राजस्थान।,✔️


 


14 गिरिजा शंकर सिंह स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी प्रयागराज भूगोल विशेषज्ञ✔️


 


15-लवी सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर इन्वर्टिस यूनिवर्सटी बरेली✔️


 


16 सरोज गुप्ता जो hod हिंदी विभाग सागर mp 


 


17 सुश्री क्षमा टण्डन जी लखीमपुर खीरी


 


18 सुरेश लाल श्रीवास्तव, प्रधानाचार्य राजकीय इण्टर कालेज,अकबरपुर


 


19 डॉ वन्दना मिश्रा


प्राचार्य शासकीय हमीदिया कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक दो भोपाल   


 


20 


डॉ.राधा वाल्मीकि.


शिक्षिका,समाजसेविका, कवयित्री कृषि विश्वविद्यालय कैम्पस),न जिला-ऊधमसिंह नगर, उत्तराखण्ड


सही निशान वाले सम्मानित शिक्षको को प्रेषित कर दिया गया शेष आप सभी अपना पासपोर्ट साइज फोटो whatsapp कीजिए 9919256950 पर 


संगीता श्रीवास्तव सुमन

मिलता नहीं सहज , शिक्षा का प्रताप देखो , 


बड़े ही बड़ों का शीश , श्रद्धा से झुकाय है |


 


नाम गाँव धाम नहीं , कुल वंश राशि नहीं , 


ज्ञान का दीपक एक , लौ जगमगाय है | 


 


मोल तोल बोल ज़रा, छुटती ज़बान तेज़ ,


देख भाल के सुमन , ये तीर चलाय है | 


 


सच्चे गुरू से ही तो , मान विद्या का बढ़े ,


शिक्षक दिवस जग , पाठ ये पढ़ाय है |


 


@ संगीता श्रीवास्तव सुमन 


छिंदवाड़ा मप्र


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

कुवार माह के कृष्ण पक्ष में


पितृ पक्ष आ जाता है


मनोभाव से तर्पण कर 


मानव तृप्त हो जाता है।


 


पितृ पक्ष में पितर हमारे


सूक्ष्म रूप में आ जाते हैं


पावन धरा पर आकर ही


आशीष हमें दे जाते हैं।


 


पितृ पक्ष में ढूंढते रहते


पंचबली अपने-अपने भाग


माता-पिता के श्राद्ध कर्म का


पूड़ी खीर पकौड़ी और साग।


 


पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म से


यदि मानव विमुख हो जाता है


पितरों के कोप भाजन से


मानव का अनिष्ट हो जाता है।


 


सुत को चिंता में देख पितर


पंचबली के रूप में आते हैं


चिंता सब हर आशिष दें


पितर मात-पिता हो जाते हैं।


 


मात - पिता इस धरा पर 


देते स्नेह सदा हैं देव समान


ओझल होते इस धरा से ही


यादों में रहते प्रतिरुप ध्यान।


 


श्रद्धा से यदि श्राद्ध करें 


पितृ संतुष्ट - मुक्त हो जाते हैं


कष्टों को हर देते आशिष हमें


हम सबको सुखी कर जाते हैं।



   दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


     महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


नूतन लाल साहू

शिक्षक दिवस,गुरुजनों को सादर नमन


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरूर्देवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


चंदा और सुरुज से भी ज्यादा है


गुरुवर तोरेच, अंजोर


क्या बच्चा,क्या सियान 


करते हैं, गुरुवर तोरेच ध्यान


घर घर पूजा होता है


घर घर होता है, सम्मान


तोरेच धन की महिमा गुरुवर


खर्च करने से,उल्टा बढ़ता है


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरूर्देवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


तुहरेच कृपा ले गुरुवर


काली अउ सूरदास रिहिन


अपन समय के हीरा


जग में नाम कमा कर गया है


महादेवी और श्री कृष्ण भक्त मीरा ने


ज्ञानम शीलम, शिवम् सुंदरम


हो सबके हितकारी


वेद शास्त्र पुराण से ऊपर


तोरेच महिमा न्यारी है


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरुदेवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय


बलिहारी गुरु आपने,गोबिंद दियो बताय


पढ़ने वाले बच्चे,मोम जैसे होते हैं कच्चे


गुरुवर जैसे मोड़ दे, मुड जाते हैं वैसे


चाहे कोई ज्ञानी हो,चाहे कोई हो विज्ञानी


चाहे कोई नेता हो,चाहे कोई हो अभिनेता


गुरु से ही,अक्षर ज्ञान लिया है


लोहा को सोना बना दे


गुरु ही वो,पारस मणि का पत्थर है


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो, महेश्चरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


मै भी शरण में,आया हूं गुरुवर


हर लो, मेरी अशिक्षा को


मेरा भी विनती,सुन ले गुरुवर


हर लो,मेरी पीड़ा को


गुरुरब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो, महेश्वरह


अक्षर ज्ञान देने वाले, गुरुवो को शत शत नमन


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

अष्टावक्र गीता-11


माया कल्पित विश्व यह,माने प्रज्ञावान।


विगत कामना को कहाँ,डर न, मृत्यु ध्रुव जान।।


 


रहे भले नैराश्य में,फिर भी नहीं उदास।


महा आत्मा-अनिछ जग,किससे तुले,न आस।।


 


बिना किसी अस्तित्व के,दृश्यमान जग मान।


त्याज्य और अत्याज्य को,लखे न प्रज्ञावान।।


 


सुख अथवा दुख उभय अपि,दोनों रहते एक।


अनासक्त नर के लिए,यद्यपि लोभ अनेक।।


 


बुद्धिमान को तो लगे,यह जग-लीला खेल।


कभी न,अष्टावक्र कह,बुधजन-मोहित-मेल।।


           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


              9919446372


एस के कपूर श्री हंस

शिक्षक ही हमारे भविष्य


का निर्माण करता है।


 


शिक्षक हमें पढ़ाता और


शिक्षक ही संवारता है।


शिक्षक ही तो उचित


ज्ञान हम पर वारता है।।


हमें देता है वह एक  


सही दिशा और सम्मति।


जीवन नव निर्माण लिये


शिक्षक ही सुधारता है।।


 


माता पिताऔर गुरु हमारे


जीवन के निर्माता हैं।


जान लीजिये यही तीनों


ही हमारे भाग्यविधाता हैं।।


माँ तो होती है बच्चों की


प्रथम शिक्षकऔर पालक।


शिक्षक ही हमारा पथ


प्रदर्शक और ज्ञान दाता है।।


 


शिक्षक ही हमें विषयों का


सही ज्ञान बताता है।


वही नैतिकता मानवता


का पाठ भी पढ़ाता है।।


गुरु ऋण से अवमुक्त हो


नहीं सकते हैं जीवन भर।


शिक्षक ही हमारे भविष्य


का निर्माण कराता है।।


 


गुरु जनों का आदर तुम


जीवन भर भरते रहना।


उनके आशीष वचनों से


जीवनअपना गढ़ते रहना।।


उनके आशीर्वाद का हर


कण तुम्हारा सफलता मंत्र


अपने गुरुजनों का आभार


जीवन भर करते रहना।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां वीणा धारणी वरदे


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


कला की देवी इस जीवन को


सुन्दरता से सुखमय कर दो


अपने अशीष की छाया से


मेरा जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


सरस सुधाकर शुभ वाणी से


अखिल विश्व को आलोकित कर दो


बुद्धि विवेक ज्ञान प्रकाश सबको देकर


सबका जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


तेरे चरणों में आकर मां


विश्वास का सम्बल मिलता है


जिस पर भी तुम करुणा करती हो


उसका जीवन धन-धान्य हो जाता है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

  सत्य अधर में लटक रहा है, 


        झूठ दंभ व्यापार करें।


     शिक्षा बसती है बातों में,


    शिक्षक को लाचार करें।।


 


  लगती ड्यूटी मतगणना में,


 जनगणना फिर पशुगणना।


   गधे शोषित क्यों हो रहे है,


       तुम करते रहना धरना।


व्यर्थ हुआ है पढ़ना लिखना,


     जात-पांत पर वार करें।।


 


मिड-डे-मील करायें या फिर,


       बूँद पोलियो दें घर-घर।


   घर -घर जाकर लेते बच्चे,


        चप्पल होती है जर्जर।


    कामचोर तो मौज उड़ाये, 


         परिश्रमी बेगार करें।।


 


लोकतंत्र का बोझ उठाये,


          सेवा करता आया है।


शिक्षक सामाजिक प्रहरी का, 


          धर्म निभाता आया है।


 धर्म कर्म में फँसकर शिक्षक,


     सबकी फिर मनुहार करें।।


 


   स्कूल चलो का पाठ पढ़ाते,


     शिक्षा का अभियान यहाँ।


      जाति वर्ग में बांट दिये हैं,


           भेदभाव संज्ञान यहाँ।


अब स्वच्छता के अभियान में,


          झाडू और बुहार करें।।


 


 शिक्षा का अधिकार मिला है,


          समझाते हैं छात्र हमें।


  उनको डाँट सकते नहीं हम,


          राजनीति के रंग जमें।


   राजनीति का खेल निराला, 


           धमकी दे हुंकार भरे।


 


पावन पर्व शिक्षक दिवस पर,


          नेता जी करते इच्छा।


      उनसे मन की बात करेंगे,


            नेता जी देंगे शिक्षा।


       रस्म नवाजी नेट पैक के,


           दूरभाष सत्कार करें।।


 


     संचार व्यवस्थित करने में,


     फिर लग जाते हैं शिक्षक।


       राग द्वेष के बीच घिरे हैं,


    फिर फँस जाते हैं शिक्षक।


   अपना सब सम्मान तजें ये,


          दूजों का उद्धार करें।। 


 


          डॉ रामकुमार चतुर्वेदी


सत्यप्रकाश पाण्डेय

सत्य है स्वामी शरण तेरे..


 


मेरे राधे माधव जैसा तो


मैंने देखा नहीं संसार में


वह दोनों ही बिक जाते 


अपने भक्तों के प्यार में


 


नरसी का भरा मायरा


रसखान को दर्श दिया


द्रोपदी का चीर बढाया


विदुर का सम्मान किया


 


गुरु संदीपनी गुरुमाता


सुत लाकर सुखी किये


दो मुट्ठी चावल बदले


सुदामा को त्रिलोक दिये


 


सत्यस्वरूप व राधे रानी


युगलरूप हरो दुःख मेरे 


दया भाव बनाये रखना


सत्य है स्वामी शरण तेरे।


 


युगलरूपाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

शीश नवाऊॅ॑ उन गुरुओं को,


                         देते हैं जो ज्ञान। 


पूजनीय सारे के सारे,


                      प्रथम,बाद भगवान।


 


इन गुरुओं से भी पहले मैं, 


                      माॅ॑ को करूं प्रणाम।


जिसने चलना सिखलाया था,  


                      मुझको उॅ॑गली थाम।


 


शिक्षित करता जो औरों को,


                      देकर अपना ज्ञान। 


वही जगत में पूजनीय है,


                    रखें सदा ये ध्यान।


 


कुछ ने बना दिया शिक्षा को,


                    इस जग में व्यापार। 


गुरुओं को बदनाम किया है,


                   कर ये कारोबार।


 


आओ शिक्षक दिवस मनाएं,


                      कर गुरुओं का मान। 


जो जग को आलोकित करते, 


                     कर विद्या का दान।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

इतनी लगन लगे प्रभु से,


फिर रहे न तम का डेरा।


आशाओ के अंबर में,


आये न निराशा का फेरा।।


घर-आँगन में हो साथी,


संग फूलों का डेरा।


दु:ख की बदली से ही फिर,


निकलेगा सुख का फेरा।।


धूप-छाँव से जीवन में,


साथी सुख-दु:ख का डेरा।


हरे दु:ख अपनो के साथी,


होगा जीवन का सबेरा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


विनय साग़र जायसवाल

मुक़द्दर का लिखा मिटता नहीं है


यक़ीं इस पर मगर टिकता नही है


 


हमारी हैसियत समझेगा क्या वो


हुनर से जो कि वाबस्ता नहीं है


 


वो इन्सां है या है कोई फ़रिश्ता


लिबासों से पता चलता नहीं है


 


इसी इक बात से हूँ मुतमइन मैं


वो वादे से कभी हटता नहीं है


 


तड़पता है ये दिल चाहत में जिसकी


यही मुश्किल है कि वो मिलता नहीं है


 


फ़साना है बदलते दौर का यह


कि बच्चा बाप से डरता नहीं है 


 


शिकायत है यही बस हमको साग़र


तू दिल की बात को सुनता नहीं है


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


शिवांगी मिश्रा

गुरू है ज्ञान का सागर गुरू का मान तुम कर लो।


झुका है शीश चरणों मे प्रतिष्ठित भान तुम कर लो ।।


करो सम्मान तुम गुरू का सदा सम्मान पाओगे।


करो शिरोधार्य गुरू शिक्षा अमिट पहचान तुम कर लो ।।


 


किया सम्मान यदि गुरू का कभी झुकने ना पाओगे ।


विषम कितनी भी रहें हों कभी रुकने ना पाओगे ।।


अगर चाहे मिटाना भी कभी तुमको जहाँ सारा।


जलेगा ज्ञान का दीपक कभी मिटने ना पाओगे ।।


 


गुरू वह जलता दीपक है सदा जो ज्ञान हित जलता ।


मिले जिसको शरण गुरू की सदा वह प्रगति पथ चलता ।।


नमन वंदन करूँ गुरू का शब्द के पुष्प से अर्चन।


ये ममता की वह छाया है जीवन जिसमें सुखद पलता ।।


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


डॉ0 रामबली मिश्र

दिग्दर्शक है विश्व का,शिक्षक दिव्य महान।


रचता सुन्दर जगत यह,बनकर शिव विद्वान।।


 


मानववादी दृष्टि का ,करता सदा प्रचार।


सहज भाव से कर रहा,मानवता से प्यार।।


 


दंभ और पाखंड का,करता सतत विरोध।


नैतिकता के मूल्य पर ,करता रहता शोध।।


 


शिक्षक साधु समान है,पानी-दूध विवेक।


शिक्षक इक संस्था बना,करता काम अनेक।।


 


लेखक-रचनाकार बन,देता उत्तम ज्ञान।


दलित-शोषितों पर सहज,रचता काव्य विधान।।


 


स्वच्छ हृदय काया विमल,पावन मन प्रिय गेह।


सारी दुनिया पर सदा,करता हार्दिक स्नेह।।


 


शिवशंकर बनकर सदा,करता जन कल्याण।


सब प्रश्नों की काट है,शिक्षक परम महान।।


 


गुरु बनकर शिक्षक सहज,देता दिव्य प्रकाश।


करता रहता रात-दिन,तिमिरांचल का नाश।।


 


शिक्षक के सम्मान से,दुनिया स्वर्ग समान।


शिक्षक ब्रह्म समान ही,रचता सकल विधान।।


 


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


अर्चना द्विवेदी

शिक्षक है वो जेवर जिसका, 


कोई मोल नहीं होता।


सच्चे कोहिनूर हीरे का,


निज भूगोल नहीं होता।


 


सिंचित करता ज्ञान सभी का,


नेह सुधा रस बरसाता।


बुद्धि विवेक अलौकिक करके,


विनय भाव से नहलाता।


 


वो हर लेता घोर तिमिर को,


दीपक बनके ख़ुद जलता।


पत्थर में भी फूल खिलाकर,


हर जीवन सुष्मित करता।


 


आखर आखर हमें सिखाकर, 


राह प्रगति की दिखलाता।


बाहर से मृदु थाप लगाकर  


सुरलय कारक बन जाता।


 


उसके अहसानों का बदला,


जग में कौन चुका सकता।


धुँधले दर्पण को उजला कर,


बिंब सभी रोशन करता।


 


जिसकी अनुपम छवि के आगे,


हर वैभव फ़ीका लगता।


सृष्टि समाहित उद्भव आगे 


कोई बोल नहीं सकता।


 


ऐसे ज्ञान जलधि में प्राणी,


डुबकी ले मोती चुनता।


पाने को सम्मान जगत में, 


स्वप्न सुनहरे नित बुनता।


 


अर्चना द्विवेदी


अयोध्या


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

शिक्षक की कृपा है अपार,


नमन उन्हें बार-बार है। 


उन्हें शीश झुँकाए संसार 


नमन उन्हें...............


 


पहली शिक्षक माँ हैं मेरी 


मेरा दूजा गुरु परिवार।


नमन उन्हें...............


 


अन्तर्तम को दूर करें वो,


वो भरते हैं ज्ञान भण्डार।


नमन उन्हें................


 


शिक्षक मन-पावन करते हैं, 


करते भय-संशय संहार।


नमन उन्हें.................


 


शिक्षक ही तो योगगुरु हैं,


करें तन-मन में झंकार। 


नमन उन्हें................. 


 


आत्मा से परमात्म मिलाए,


वो करें भव सागर उस पार।


नमन उन्हें....................


 


गुरु पद पंकज शीश झुँकाऊँ, 


उनकी वाणी में अमृत धार।


नमन उन्हें.................. 


 


मैं तो गीली मिट्टी जैसा था,


मुझको दिये हैं वो आकार। 


नमन उन्हें................... 


 


गढ़ि-गढ़ि शिक्षक खोट निकाले, 


गढ़ता है कुम्भ ज्यों कुम्हार।


नमन उन्हें.....................


 


शिक्षक सिंचित करे बालमन, 


वो देते जीवन को आधार।


नमन उन्हें...................... 


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

भूख बड़ी या कोरोना


नहीं बहस का मुद्दा है यह,


भूख बड़ी या कोरोना।


छोटा कौन बड़ा है इसमें-


दोनों में रोना-रोना।।


 


कोरोना की मार भयानक,


संयम से ही रहना है।


भूख निगोड़ी बहुत सताए,


इससे भी तो बचना है।


करें सभी मिल यत्न अनूठा-


अब तज कर रोना-धोना।।


 


करें कर्म सब अपना-अपना,


थोड़ा दूर-दूर रहकर।


दूरी-संयम हैं निदान बस,


इसका नियमन हो डटकर।


भागे भूख,भगे कोरोना-


नहीं ज़िंदगी को खोना।।


 


हँसी-खुशी,मिल-जुल कर दोनों,


को ही हमें मिटाना है।


साफ-सफाई,भोजन सादा,


का नियमन अपनाना है।


नए सिरे से नई व्यवस्था-


के हैं बीज अभी बोना।।


 


कोरोना तो जाएगा ही,


किंतु भूख रह जानी है।


सदा परिश्रम करते रहना,


सचमुच यही कहानी है।


सदा जागते रहना जीवन-


मरण-निमंत्रण है सोना।।


        नहीं बहस का मुद्दा है यह,


         भूख बड़ी या कोरोना।।


                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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