सुनीता असीम

दुनिया में रहा जिसका कोई न ठिकाना है।


बेशक है खुदा उसका कहता ये जमाना है।


****


मगरूर हुआ दुश्मन खतरे में वतन है अब।


अपना तो हमें दम भी दुश्मन को दिखाना है।


****


आँखें भी दिखाता है गैरत न बची इसमें।


मैदान में आके इसके छक्के छुड़ाना है।


****


ख्वाहिश नहीं पूरी जिसकी कोई है होती।


भगवान को देता रहता शख्स वो ताना है।


****


क्यूं भूल ये है जाता इंसान यहां आकर।


आया है यहाँ पर जो इक दिन उसे जाना है।


****


सुनीता असीम


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार संगीता श्रीवास्तव सुमन  छिंदवाड़ा मप्र

नाम - संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'


कवयित्री / शायरा  


स्थाई पता - इलाहाबाद उप्र 


 


शिक्षा - पत्रकारिता एवं लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर 


विधा - गीत ,ग़ज़ल , मुक्तक आदि


प्रकाशित - एकमात्र काव्य संग्रह 'झरते पलाश'


दो साझा संकलन 


पत्र पत्रिकाओं में गीत ग़ज़लों का नियमित प्रकाशन


आकाशवाणी से काव्य पाठ


सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन कार्य से सम्बद्ध 


आकाशवाणी एवं दूरदर्शन हेतु स्वतंत्र लेखन एवं वाचन


 


 


गीतिका /ग़ज़ल ......


 


नदी हूँ मैं रवांँ रहना मेरी फितरत समझ लेना ,


किया कितना सफ़र मेैंने कभी हज़रत समझ लेना |


 


ये चुप्पी और दिल की धड़कनों का शोर कहता है,


मेरी ख़ामोशियों को तुमसे है निस्बत समझ लेना |


 


किसी चेहरे की रंगत से ही होती है ख़बर सबको,


कभी आकर मुझे देखो मेरी हालत समझ लेना |


 


हैं शिद्दत के ही धागों से बटन मैंने सभी टाँके ,


गुलाबी शर्ट जब पहनो मेरी कुरबत समझ लेना |


 


किसी दिन लौटकर आओगे तुम मेरी ही बाहों में ,


यही मेरी अक़ीदत है यही चाहत समझ लेना |


 


ये काले बादलों का झुंड उड़ता जा रहा है जो


गरज कर जब मिले तुमको किया स्वागत समझ लेना |


 


रज़ा जो कुछ तुम्हारी हो तुम्हें मालूम इतना हो , 


सुमन के ख़्वाब की तुम इक हसीं सूरत समझ लेना |


 


@संगीता श्रीवास्तव सुमन 


 छिंदवाड़ा मप्र


 


 


 


गीतिका. /ग़ज़ल


 


मौत से बढ़कर तेरी फुरक़त होती है,


अब जाना क्या चीज़ मुहब्बत होती है |


 


जानती हूँ अब तू है पराया फिर भी क्यूँ,


दिल को हरदम तेरी चाहत होती है |


 


इश्क़ अगर सच्चा हो तो फिर क्या कहना ,


हुस्न की आख़िरकार इनायत होती है |


 


मिट्टी के घर में होती है ये सीरत ,


सब मिलकर रहते हैं बरक़त होती है |


 


पास रहे तो ध्यान नहीं देता कोई,


दूर रहे तो कितनी क़ीमत होती है |


 


सब पे भरोसा कम करना ही है अच्छा ,


रिश्तों में अक्सर ये दिक्कत होती है |


 


सीधे साधे लोगों को ही हाय 'सुमन' 


सारी उलझन सारी गफ़लत होती है |


 


@


संजय जैन

सच्चे रिश्ते


 


अपने बचपन की बातें


आज याद कर रहा हूँ।


कितना सच्चा दिल हमारा


तब हुआ करता था।


बनाकर कागज की नाव,


छोड़ा करते थे पानी में।


बनाकर कागज के रॉकेट,


हवा में उड़ाया करते थे।


और दिल की बातें हम


किसी से भी कह देते थे।


और बच्चों की मांग को


सभी पूरा कर देते थे।।


 


न कोई भय न कोई डर,


हमें बचपन में लगता था।


मोहल्ले के सभी लोगों से


जो लाड प्यार मिलता था।


इसलिए आज भी उन्हें


में सम्मान देता हूँ।


और उन्हें अपने परिवार का


हिस्सा ही समझता हूँ।।


 


जो बचपन की यादों से 


अपना मुँह मोड़ता है।


और उन सभी रिश्तों को


समय के साथ भूलता है।


उससे बड़ा अभागा और


कोई हो नहीं सकता।


जो अपने स्वर्णयुग को 


कलयुग में भूल रहा है।।


 


सगे रिश्तो से बढ़कर 


होते मोहल्ले के रिश्ते।


तभी तो सुख दुख में


सदा ही खड़े हो जाते है।


और अपनों से बढ़कर


निभाते सभी रिश्ते।


इसलिए मातपिता जैसे


वो सभी लोग होते है।


और हमें ये लोग अपने 


परिवार का हिस्सा लगते है।।


 


जय जिनेन्द्र देव


संजय जैन (मुम्बई)


निशा अतुल्य

साक्षरता दिवस 


 


साक्षरता दिवस पर सभी साक्षरों से अनुरोध- आज प्रण नहीं ले सकते तो सोचें जरूर समाज में आपका क्या योगदान है।


 


हाथ में कलम और साथ में डिग्री ही 


साक्षरता अभियान को सफल नही बना सकती । जब तक हर हाथ को काम व बौद्धिक विकास न हो ये अभियान बेमानी है । 


  देश की परिस्थितियां बहुत विकट है क्यों कि 10 वी फेल की तादाद काफ़ी लंबी है जो न मजदूरी करतें हैं ना नौकरी मिलती है अंततः भटक कर नशे की गिरफ्त,चोरी और गुंडागर्दी में अटक कर रहजाते हैं । 


     आज संचार माध्यम सबके लिए सहज सुलभ है, मोबाइल ने जीवन को ओर विकट बना दिया । अब मोबाइल सब की जरूरत बन गया है और नेट आवश्यकता । जिसके चलते नई पीढ़ी भी बिना अक्षर ज्ञान के सब वो देख रही है सीख रही हैं जो सुलभता से उपलब्ध है।


      न जाने ये साक्षरता दिवस कहाँ जा रहा है आज भी सड़को पर कूड़ा बीनने वाले बच्चों की भरमार है जिनके माता पिता इस लिये विद्यालय नही भेजते की वो अपने पेट भरने का साधन स्वयं जुटाता है ।


     सच्ची साक्षरता उस दिन होगी जब हर बच्चा बौद्धिक स्तर से उठेगा और व्यवहारिक ज्ञान के साथ अक्षर ज्ञान ले अपने जीवन को सुधारेगा ।


       उसके लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है बिना अक्षर ज्ञान के बच्चे को दुसरीं कक्षा में उत्तीर्ण न किया जाए , कभी कभी शासनिक आदेश नई पीढ़ी के जीवन से खिलवाड़ कर जाता है ।


    अब क्या कहूँ आज विश्व साक्षर दिवस पर बस इतना ही कहना चाहूंगी जो साक्षर हैं एक बार आत्म निरीक्षण करें, अपने आस पास के निरक्षर को साक्षर सच में बनाने में सहयोग करें सिर्फ 1 घण्टा समाज के उन वंचितों को दे जो सच में देश की रीढ़ हैं उन्हें व्यवहारिक ज्ञान के साथ अक्षर ज्ञान दे जीवन स्तर कैसे उठाया जाए, बताया जाए । इसमें प्रबुद्ध जनों की भागीदारी होनी ही चाहिए ।


 


स्वतंत्र लेखन


निशा"अतुल्य"


एस के कपूर श्री हंस

युवायों से ही बनेगा भारत


सोने की चिड़िया जहान का।


 


आसमान को छूना और


तारों से आँख मिलानी है।


बस जाये जो हर दिल में


बात तुम्हें वह बनानी है।।


आप युवा राष्ट्र के


हैं भविष्य निर्माता।


आपको बनानी नायाब


ये अपनी जिंदगानी है।।


 


ऊर्जा,ज्ञान,ध्यान मिला कर


बनाना संसार में नाम है।


आपका दायित्व निर्वहन


से ही बनेगा भारत महान है।।


आपकी जिम्मेदारी ही तो है


धुरी राष्ट्र भविष्य की।


यह समर्पण ही सिद्ध करेगा


कि विश्व गुरु हिंदुस्तान है।।


 


आपकी शिक्षा ही तो आधार


है देश प्रगति मान का।


आपका भविष्य निश्चित


करेगा कार्य राष्ट्र निर्माण का।।


आप बेमिसाल तो देश भी


उभरेगा एक मिसाल बनकर।


तभी बनेगा देश फिर से


सोने की चिड़िया जहान का।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

अबला नहीं तू शक्ति है


खुद में तू हस्ती है।


वक्त बदल डाले नया इतिहास


रच डाले साहस की सबला 


हिम्मत हौसला तू नारी है।।


जो कुछ भी चाहे हासिल करना


कर डाले तू वीणा पाणी है शौम्य,


विनम्रता ,भाषी परिभाषी हैं तू नारी है।।


क्रोध की ज्वाला में काली दुर्गा


रण चंडी है।


पर्वत की तू बाला तू हाला


मधुशाला मादकता का मर्म


नारी हो।।


कली ,फूल ,खुशियाँ ,खुशबू 


अवनि अवतारी हो ,अवतारों


की धारी हो नारी हो।।


भोली ,नाज़ुक ,नादाँ ,कमसिन


कोमल नूतन कली किसलय


ममता की दरिया सागर हो तुम नारी हो।।


घृणा ,क्रोध ,में काल कराल


संघारी हो तुम नारी हो


देवोँ की ताकत आधी युग


ब्रह्माण्ड सृष्टि की बुनियादी तुम


नारी हो।।


महिमा और महत्व हो गरिमा


गौरव समाज का सत्य हो 


नर की जननी भरणी तरणि तुम


नारी हो।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


कालिका प्रसाद सेमवाल

श्री हनुमान जी के चरणों में


********************


राम दूत तुम सबके रक्षक हो


तुम ही तो बल के धाम हो


हम सब तुमको वंदन करते है


तुम्हारे चरणों में एक फूल चढ़ाते है।


 


तुम ही प्रेम के सच्चे स्वरूप हो


तुम्ही दया के सागर हो


तुम कष्ट हरण नाशक हो


तुम्हारे चरणों में एक फूल चढ़ाते है।


 


तुम ही सबके रक्षक हो


जो भी तुम्हारा नाम जपे


उसकी हर विपदा टली


तुम्हारे चरणों में एक फूल चढ़ाते है।


 


प्रभु श्रीराम के तुम अति प्रिय हो


केसरी नंदन सबको सुमति का दान दो


विद्या विनय का दान दो


तुम्हारे चरणों में एक फूल चढ़ाते है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी

तुम ही मेरे राम साजन,


            तुम ही मेरे श्याम हो।


तुम ही शिव हो,तुम ही विष्णु, 


           तुम ही तो बलराम हो।


 


तुम ही मेरे राम साजन,


             तुम ही मेरे श्याम हो।


 


जब तलक तुमको न देखूॅ॑, 


           चैन आता है नहीं।


सच कहूॅ॑ तो तुम बिना, 


          कुछ भी मुझे भाता नहीं।


तुम ही तो हो चैन मेरा, 


           तुम ही तो आराम हो।


 


तुम ही मेरे राम साजन, 


          तुम ही मेरे श्याम हो।


 


मन के मंदिर में बिठाया, 


            है सजन मैऩें तुम्हें।


चाह बस ये देव मेरे, 


            दूर मुझसे मत रहें।


पूजती हर दिन तुम्हें मैं, 


          जब सुबह या शाम हो। 


 


तुम ही मेरे राम साजन, 


          तुम ही मेरे श्याम हो।


 


तुम ही काशी,तुम ही मथुरा,


        तुम ही मेरे द्वारिका‌‌।‌


और कितने नाम लूॅ॑ मैं, 


        है ये लम्बी तालिका।


कुछ ही लफ़्ज़ों में कहूॅ॑ तो, 


        तुम ही चारो धाम हो।


 


तुम ही मेरे राम साजन, 


        तुम ही मेरे श्याम हो।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।


सुनील कुमार गुप्ता

कहाँ-साथी होगा तेरा?


यौवन की दहलीज़ पर साथी,


भटका फिर जो कदम तेरा।


कैसे-मिलेगी मंज़िल साथी?


कहाँ -थमेगा कदम तेरा?


देख पल पल सपने सुहावने,


कहाँ-होगा साथी तेरा?


यथार्थ धरातल पर जो देखा,


साथी संग चला न मेरा।।


मंगल-अमंगल हो न हो यहाँ,


साथी साथ निभाये तेरा।


साथी-साथी कहते जिसे फिर,


कहाँ-साथी होगा तेरा?"


 


 सुनील कुमार गुप्ता


 


नूतन लाल साहू

ऐसा भी होता है


एक दिन अकस्मात


हो गई,पुराने मित्र से मुलाकात


हमने कहा, सादर नमस्कार


वे बोले, गजब हो गया यार


गृहस्थी का बोझ ढो रहा हूं


ईश्वर की मेहरबानी है


मेरी सात कन्याये है


जीवन की बगिया में,आंसू बो रहा हूं


हमने कहा, आम की उम्मीद लिये


बबूल में लटके जा रहे हो


हम दो हमारा दो


सूखी परिवार के नारा को,क्यों नहीं अपना रहे हों


वे बोले, अपनी किस्मत में तो


फनफनाती हुई बीबी है


और दनदनाती हुई औेलाद है


सच पूछो तो, यही


पूंजीवाद और समाजवाद के बीच


फंसा हुआ बकरावाद है


शेर की तरह दहाड़ते,बारात लेकर गया था


अब बकरे की तरह,मिमिया रहा हूं


हमने कहा, देश का क्या होगा


संतान भगवान की देन हैं ये


बरसो से चला आ रहा है


छोटा परिवार,सुखी परिवार


शासन प्रशासन,रोज रोज चिल्ला रहा है


अपने भाग्य को,मत कोषों


नारी शिक्षित और समझदार हो गई हैं


आपसी सामंजस्य बिठाकर बोलो


हमारा भी कोई कैरियर है


हर बीस मील के बाद, एक बैरियर है


शिक्षित हो ठीक है,समझदार भी बनो


आरोप दूसरे पर मढ़ने से बचो


व्यक्ति में यदि,भक्ति समा जावे तो


व्यक्ति,इंसान बन जाता है


और यदि भक्ति,घर में समा जावे तो


घर, मंदिर बन जाता है


सहमति और भक्ति की भावना जगाओ


घर,परिवार और देश में


आदर्श स्थापित करने का प्रयास करो


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-1


 


सोरठा-पुनि कह मुनि सुकदेव,सुनहु परिच्छित धीर धरि।


          जब लवटे बसुदेव, भवा कपाटहिं बंद सभ।।


सिसू-रुदन सुनतै सभ जागे।


कंसहिं पास गए सभ भागे।।


   देवकि-गरभ सिसू इक जाता।


    कहे कंस तें सभ यहि बाता।।


पाइ खबर अस धावत कंसा।


गे प्रसूति-गृह ऐंठत बिहँसा।।


    लड़खड़ात पगु अरुझे केसा।


    कुपित-बिकल मन रहा नरेसा।।


काल-आगमन अबकी बारा।


सोचत रहा करब संहारा।।


   कंसहिं लखि कह देवकि माता।


    पुत्र-बधुहिं सम ई तव भ्राता।


कन्या-बध अरु स्त्री जाती।


नृप जदि करै न बाति सुहाती।।


    सुनहु भ्रात ई बाति हमारी।


    कहहुँ तमहिं तें सोचि-बिचारी।।


तेजवंत मम बहु सुत मारे।


तुम्हतें बचन रहे हम हारे।।


     अहहुँ लघू भगिनी मैं तोरी।


     बिनती करउँ न छोरउ छोरी।।


पापी रहा कंस बड़ भारी।


सुना न बिनती अत्याचारी।।


   झट-पट तुरतहिं लइकी छीना।


   किया देवकिहिं सुता बिहीना।।


दोहा-निष्ठुर-निर्मम कंस बहु,सुना न देवकि-बात।


       दियो फेंकि कन्या गगन,बरनन कइ नहिं जात।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                        9919र46372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-2


 


चित्रकूट जब बहु दिन बीता।


पुनि प्रभु चले लखन अरु सीता।।


    पहुँचे प्रभू अत्रि ऋषि-आश्रम।


    रह अति सुखद तत्र ऋतु आलम।।


जब ऋषि प्रभु आवत मग देखा।


पाए दृग-सुख प्रबल बिसेखा।।


    आगे बढ़ि प्रभु गरे लगावहिं।


    भेंटि प्रभुहिं अतिसय सुख पावहिं।।


राम-लखन-सिय छुइ ऋषि-चरना।


लहहिं असीष जाइ नहिं बरना।।


     ऋषि जुहाय देहिं तिन्ह आसन।


     परसहिं कंद-मूल-फल कानन।।


दोहा-पाइ समादर अत्रि कै, राम-लखन-सिय साथ।


        गदगद चित-मन-तन सहित,नवहिं मुनिहिं निज माथ।।


       राम बड़ाई कीन्ह ऋषि,बहु बिधि अरु बहु भाँति।


       प्रभु उपकारी जनहिं सभ,जाति-भेद नहिं पाँति।।


राम सहाय होंय वहि जन कै।


जे हिय होय भरोसा उन्हकै।।


      जे उर राम-प्रेम नहिं जागा।


      अह असंत ऊ अघी-अभागा।।


बड़े भागि तें मिलै सनेहू।


जग मा कृपा राम केहु-केहू।।


     प्रभु अखिलेस्वर अरु जगदीस्वर।


      प्रभुहिं होंय खलु ईस्वर-ईस्वर।।


आगम-निगम प्रभुहिं सभ जानैं।


भूत-भविष-आजु पहिचानें।।


    जे अस प्रभु मा चित्त लगावै।


     कबहुँ न पीर नरक कै पावै।।


जे प्रभु मा नहिं ध्यान लगावा।


रौ-रौ नरक अभागा पावा।।


दोहा-राम-नाम-सुमिरन मिलै,सदा हृदय कहँ सांति।


        करत-करत प्रभु-भजन तें, मिटै चित्त कै भ्रांति।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


डॉ निर्मला शर्मा

राजाराम 


युगो युगो से विराजे ह्रदय में


 करते सबकी नैया जो पार 


कलयुग में फिर से लौटे हैं 


अवध के भाग्य खुले हैं आज 


शमन किया राक्षसों का डटकर  


 धरती को दिया शांति का उपहार 


मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर दिखलाया 


दुनिया को कल्याण का मार्ग 


वन, उपवन, नगरी ,देवालय 


सभी में गूंजे राम का नाम


 दशरथ सुत कौशल्या नंदन 


अवध पधारे सीताराम


 लड़ी लड़ाई लंबी हर युग में 


 किया विश्व में न्याय का संधान


 दीप जलाओ मंगल गाओ 


अवध में आए राजा राम 


तर्क वितर्क की लंका ढह गई 


मिला राम को कानूनी अधिकार 


परम ब्रह्म वो अगम अगोचर


 हर मन में उनका आधार 


प्राणी मात्र की सांसो में बसे हैं 


रघुपति राघव राजा राम 


डॉ निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


डॉ निर्मला शर्मा

राजाराम 


युगो युगो से विराजे ह्रदय में


 करते सबकी नैया जो पार 


कलयुग में फिर से लौटे हैं 


अवध के भाग्य खुले हैं आज 


शमन किया राक्षसों का डटकर  


 धरती को दिया शांति का उपहार 


मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर दिखलाया 


दुनिया को कल्याण का मार्ग 


वन, उपवन, नगरी ,देवालय 


सभी में गूंजे राम का नाम


 दशरथ सुत कौशल्या नंदन 


अवध पधारे सीताराम


 लड़ी लड़ाई लंबी हर युग में 


 किया विश्व में न्याय का संधान


 दीप जलाओ मंगल गाओ 


अवध में आए राजा राम 


तर्क वितर्क की लंका ढह गई 


मिला राम को कानूनी अधिकार 


परम ब्रह्म वो अगम अगोचर


 हर मन में उनका आधार 


प्राणी मात्र की सांसो में बसे हैं 


रघुपति राघव राजा राम 


 


डॉ निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


डॉ0 रामबली मिश्र

 


श्वेत वस्त्र में भले टहलना।


श्वेतपोश अपराध न करना।।


 


श्वेतपोश को दूषित मत कर।


श्वेत वस्त्र को प्रोन्नत करना।।


 


श्वेत वस्त्र पर काला धब्बा।


नहीं पोत कर कभी मचलना।।


 


श्वेत वसन गौरवशाली है।


इस गौरव को कायम रखना।।


 


यह कुलीनता का प्रतीक है।


पहनावे की रक्षा करना।।


 


बुरा कर्म मत करना वंदे।


मर्यादा का पालन करना।।


 


तड़क-भड़क कपड़े के पीछे।


पाप कर्म को कभी न करना।।


 


श्वेतपोश अति सात्विक पावन।


निर्मल मन को स्थापित करना।।


 


धोखा देना नहीं किसी को।


नहीं किसी का शोषण करना।।


 


श्वेतपोश ही ब्रह्म वस्त्र है।


ब्रह्मदेव से डरते रहना।।


 


यह समाज की ब्रहमण संस्कृति।


उच्च भाव को नियमित करना।।


 


है समाज का उच्चासन यह।


नहीं कलंकित इसको करना।।


 


श्वेत वस्त्र धारण कर प्यारे।


शुभ शिव प्रिय कृति रचते रहना।।


 


रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

विषयः हिन्दी राष्ट्र धरोहर है


शीर्षकः "मानक है हिन्दी वतन"


 


हिन्दी पखवाड़ा दिवस, चलो मनाऊँ आज।


जनभाषा निज देश में , रक्षणीय मोहताज़।।१।।


 


अभिनंदन स्वागत करूँ,हिन्दी दिवस आगाज़।


इस स्वतंत्र गणतंत्र में , तरसे हिन्द समाज।।२।।


 


सिसक रही निज देश में , निज वजूद सम्मान। 


हिन्द देश हिन्दी वतन , निज रक्षण अपमान।।३।।


 


बाँध वतन जो एकता , दर्पण भारत शान।


जनभाषा तीसरी बड़ी , सहे हिन्द अवमान।।४।। 


 


साजीशें ये कबतलक , भिक्षाटन अस्तित्व।


जनभाषा हिन्दी वतन , माँग रहा है स्वत्व।।५।।


 


निज वाणी मधुरा प्रिया , हिन्दी नित सम्मान। 


भारत की जन अस्मिता , बने एकता शान।।६।।


 


नित यथार्थ सुन्दर सुलभ ,सूत्रधार जन देश।


संस्कृत तनया जोड़ती , हिन्द वतन संदेश।।७।।


 


कण्ठहार जनभाष बन , विविध रीति बन प्रीत।   


आन बान शाने वतन , हिन्दी है उद्गीत।।८।।


 


श्रवण कथन सम लेखनी , काव्यशास्त्र उद्गीत।


मानक है हिन्दी वतन , लोकतंत्र नवनीत।।९।।


 


शब्द अर्थ अधिगम सुलभ,साहित्यिक सत्काम। 


समरसता नवरंग से , हिन्दी है अभिराम।।१०।।


 


बने धरोहर राष्ट्र की , नव विकास आधार।


हिन्दी भाषा शुभ वतन , राष्ट्र भाष अधिकार।।११।।


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित )


नवदेहली


सुनीता असीम

ब्याज जब भी लगान से निकला।


 


दम लगा के किसान से निकला।


 


****


 


माल बाजार से हुआ गायब।


 


रख छिपा था दुकान से निकला।


 


****


 


मुंह खुले जब कभी बिना सोचे।


 


तीर लगता कमान से निकला।


 


****


 


बोलती बंद की गई उसकी।


 


लफ्ज़ कड़वा जुबान से निकला।


 


****


 


होश गुम हो गए सभी के तब।


 


पानी ऊपर निशान से निकला।


 


****


 


सुनीता असीम


निशा अतुल्य

चूं चूं करती आई चिड़िया


ढेंरों शिकायत लाई चिड़िया


कहीं नहीं हरियाली दिखती


ठाँव कहाँ पर पाए चिड़िया।


 


चुन्नू थोड़ा पानी रखो


दाना भी तुम पास ही रखो


देखो भीगे पंखों को लेकर 


अब कहाँ पर जाये चिड़िया ।


 


रोज सवेरे तुम्हें उठाती 


मीठे मीठे गीत सुनाती


चीं चीं करती रहती 


सुस्ती सबकी दूर भगाती ।


 


चिड़िया का संरक्षण करना


पेड़ों से है धरा को भरना


पर्यावरण जब रहे सुरक्षित


संतुलन भी तभी है बनता ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ0 रामबली मिश्र

माँ शारदे को नमन


 


नमनीया माँ मातृ शारदे।


हे माँ हमको नियमित वर दे।।


 


करें सदा सेवकाई तेरी।


मिले सदा अति प्रीति घनेरी।।


 


रहो सदा अनुकूल विधाता।


हे जग जननी हे सुखदाता।।


 


ज्ञान रत्न दे प्रेम रत्न दे।


भक्ति रत्न दे शुभद रत्न दे।


 


अति निर्मल प्रिय पावन गंगा।


कर दो माँ मन शीतल चंगा।।


 


मोहनिशा को दूर भगा दे।


मन में उत्तम भाव जगा दे।।


 


अंधकार हर नित प्रकाश दे।


ज्ञान ब्रह्ममय शिवाकाश दे।।


 


हर जड़ता को चेतन कर दे।


विद्या वारिधि उर में भर दे ।।


 


एक तुम्हारी हमें आसरा।


देना माँश्री सदा सहारा।।


 


रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 डॉ बीके शर्मा

जैसे गई हो लौट के आना


 


 जैसे गई हो लौट के आना


 बिना कहे तुम फिर ना जाना


 आत्म तत्व तुम मेरे उर का


 टूटे ना बंधन वादा निभाना


 जैसे गई हो लौट के आना -1


 


विचलित करती उर को पल पल 


तुम ही धड़कन तुम ही हल चल


है कब का दिल ने तुमको माना 


जैसे गई हो लौट के आना -2


 


मैं नाविक लहरों से लड़ाई 


कभी पथिक बन करता चढ़ाई 


चाहता रहा में लक्ष्य को पाना


जैसे गई हो लौट के आना-3


 


क्यों करती हो हेरा फेरी 


तुम ही गीत गजल हो मेरी


चाहती हो क्यों दिल को दुखाना 


जैसे गई हो लौट के आना-4


 


गगन से ज्यादा उर था मेरा 


करती थी तुम जिस में बसेरा 


तुम रुठे तो रुठे जमाना 


जैसे गई हो लौट के आना-5


 


अब आओ इंतजार तुम्हारा


 तुम जीत गई मैं तुम से हारा 


अब न करना कोई बहाना 


जैसे गई हो लौट के आना-6


 


 डॉ बीके शर्मा


 उच्चैन भरतपुर राजस्थान


 


डॉ. हरि नाथ मिश्र

रिम-झिम बरसात


 रिम-झिम हो बरसात,


नहीं पिया यदि साथ-कहो,क्या रह पाओगे?


सावन की हो रात,


नहीं पिया यदि साथ-कहो,क्या रह पाओगे?


    मेघ-गरजना से दिल दहले,


     बिजली आँख मिचौली खेले।


      लिए विरह-आघात-कहो, क्या रह पाओगे?


धरती ओढ़े धानी चुनरिया,


बलखाती-इठलाती गुजरिया।


वन-उपवन भरे पात-कहो, क्या रह पाओगे?


      सन-सन बहे पवन पुरुवाई,


       कारी बदरिया ले अँगड़ाई।


       सिहर उठे तन-गात-कहो, क्या रह पाओगे?


बस्ती-कुनबा, गाँव-गलिन में,


बाग़-बग़ीचा, खेत-नदिन में।


क़ुदरत की सौग़ात-कहो, क्या रह पाओगे?


     अनुपम प्रकृति-प्रेम-रस बरसे,


      निरखि-निरखि जेहि हिय-चित हर्षे।


      विह्वल मन न आघात-कहो, क्या रह पाओगे?


 


         ©डॉ. हरि नाथ मिश्र                                         9919446372


डॉ0 रामबली मिश्र

श्वेतपोश अपराध न करना


 


श्वेत वस्त्र में भले टहलना।


श्वेतपोश अपराध न करना।।


 


श्वेतपोश को दूषित मत कर।


श्वेत वस्त्र को प्रोन्नत करना।।


 


श्वेत वस्त्र पर काला धब्बा।


नहीं पोत कर कभी मचलना।।


 


श्वेत वसन गौरवशाली है।


इस गौरव को कायम रखना।।


 


यह कुलीनता का प्रतीक है।


पहनावे की रक्षा करना।।


 


बुरा कर्म मत करना वंदे।


मर्यादा का पालन करना।।


 


तड़क-भड़क कपड़े के पीछे।


पाप कर्म को कभी न करना।।


 


श्वेतपोश अति सात्विक पावन।


निर्मल मन को स्थापित करना।।


 


धोखा देना नहीं किसी को।


नहीं किसी का शोषण करना।।


 


श्वेतपोश ही ब्रह्म वस्त्र है।


ब्रह्मदेव से डरते रहना।।


 


यह समाज की ब्रहमण संस्कृति।


उच्च भाव को नियमित करना।।


 


है समाज का उच्चासन यह।


नहीं कलंकित इसको करना।।


 


श्वेत वस्त्र धारण कर प्यारे।


शुभ शिव प्रिय कृति रचते रहना।।


 


:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

मां सरस्वती


**********


हे मां सरस्वती,


तू प्रज्ञामयी मां


चित्त में शुचिता भरो,


कर्म में सत्कर्म दो


बुद्धि में विवेक दो


व्यवहार में नम्रता दो।


 


हे मां सरस्वती


हम तिमिर से घिर रहे,


तुम हमें प्रकाश दो


भाव में अभिव्यक्ति दो


मां तुम विकास दो हमें।


 


हे मां सरस्वती


विनम्रता का दान दो


विचार में पवित्रता दो


व्यवहार में माधुर्य दो


मां हमें स्वाभिमान का दान दो।


 


हे मां सरस्वती


लेखनी में धार दो


चित्त में शुचिता भरो,


योग्य पुत्र बन सकें


ऐसा हमको वरदान दो।।


*****************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनील कुमार गुप्ता

     जीवन में


इतनी न होती चाहत मन में,


जो पूरी होती न जीवन में।


भटकन ही भटकन होती यहाँ,


शांति न होती कभी जीवन में।।


त्यागमय जीवन भी फिर यहाँ,


दे न पाता कोई सुख मन में।


स्वार्थ संग डूबा साथी यहाँ,


दे न पाता वो अपनत्व जग में।।


संबंधों की गरिमा संग जो,


चलते साथी संग जीवन में।


चाहत कोई रहती न साथी,


अधूरी होती जो जीवन में।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

ज्ञाता भूत-भविष्य के 


 


ज्ञाता भूत-भविष्य के, 


                दिखें न अबअखबार।


करने बाधा दूर जो,


                 रहते थे तैयार। 


रहते थे तैयार,


                हमेशा जैसे घोड़ा।


 देकर झाॅ॑सा जेब,


               जिन्होंने खूब निचोड़ा।


कोरोना की मार,


              पड़ी उनको भी भाई।


निज़ भविष्य तो बाॅ॑च, 


             कहे अब रोज लुगाई।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...