एस के कपूर श्री हंस

यह जीवन कभी


व्यर्थ नहीं जाने पाये।।


 


कभी हारना फिर जीतना यही


जिंदगी का फलसफा है।


कौन कहता कि तेरी किस्मत


तुझसे खफा है।।


कभी धूप कभी छाँव यही है


इस जीवन का नाम।


जीवन के हिसाब किताब में


कभी नुकसान ओ नफा है।।


 


जीवन पहेली नहीं बना कर


सहेली इसको जीना है।


कभी सुख की बहारें तो कभी


गमों का घूंट पीना है।।


माना मुश्किलें हज़ार जिन्दगी


में कदम कदम पर।


फिर भी हर दुःख पर भारी 


जीवन एक नगीना है।।


 


जीवन की आपाधापी में भी


मन अपना शांत रखो।


दैनिक आत्म विश्लेषण करते


समय कुछ एकांत रखो।।


स्वयं को पढ़िये कि आप भी


हैं एक पुस्तक समान।


निर्णय अपने तुम न्याय परक


और मस्तिष्क वेदांत रखो।।


 


यह एक ही मिला है जीवन कि


व्यर्थ नहीं जाने पाये।


करो जीवन में ऐसा कि कंही 


अर्थ नहीं निकल जाये।।


प्रभु ने दिया जन्म शक्ति ऊर्जा का


सदुपयोग करने को।


याद रहे जीवन तेरा हर दिन तुझे


कुछ समर्थ ही बनाये।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


संजय जैन

दिलों का मिलन


चिराग ए दिल में जलाओगें


तो प्रेम बरसेगा।


दिल में निश्चित ही


प्यार का उदय होगा।


जो प्रेम को इबादत 


और साधना समझते है।


वो ही मोहब्बत के 


रस को पी पाते है।।


 


दिल-ए नादान जो होते है 


प्यार वो कर नहीं पाते।


क्योंकि प्यार करना इतना आसान नहीं होता।


ये तो वो तपस्या और


साधना होती है।


जो दिलों के मिलन 


से ही जन्म लेती है।।


 


आजकल तो मोहब्बत को


प्रेम वासना से देखते है।


जिस्म की प्यास बुझाने


के लिए मोहब्बत करते है।


पर रब ने भी ऐसा 


सबक सिखाया उनको।


और जीवन अधूरा 


बनाया उनका है।।


 


प्यार को प्यार से जीतोगें


तो प्यार तुम पाओगें।


पूणिमा के चांद की तरह से तुम दोनों खिल जाओगे।


और प्रेमरस को तुम 


हमेशा पी पाओगें।


और गुलाब की तरह 


तुम महक जाओगें।


और स्नेह प्यार को


जीवन भर पाओगें।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


10/09/2020


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

"मानक है हिन्दी वतन"


 


हिन्दी पखवाड़ा दिवस, चलो मनाऊँ आज।


जनभाषा निज देश में , रक्षण निज मोहताज़।।१।।


 


अभिनंदन स्वागत करूँ,हिन्दी दिवस आगाज़।


इस स्वतंत्र गणतंत्र में , तरसे हिन्द समाज।।२।।


 


सिसक रही निज देश में , निज वजूद सम्मान। 


हिन्द देश हिन्दी वतन , निज रक्षण अपमान।।३।।


 


बाँध वतन जो एकता , दर्पण भारत शान।


जनभाषा तीसरी बड़ी , सहे हिन्द अवमान।।४।। 


 


साजीशें ये कबतलक , भिक्षाटन अस्तित्व।


जनभाषा हिन्दी वतन , माँग रहा है स्वत्व।।५।।


 


निज वाणी मधुरा प्रिया , हिन्दी नित सम्मान। 


भारत की जन अस्मिता , बने एकता शान।।६।।


 


नित यथार्थ सुन्दर सुलभ ,सूत्रधार जन देश।


संस्कृत तनया जोड़ती , हिन्द वतन संदेश।।७।।


 


कण्ठहार जनभाष बन , विविध रीति बन प्रीत।   


आन बान शाने वतन , हिन्दी है उद्गीत।।८।।


 


श्रवण कथन सम लेखनी , काव्यशास्त्र उद्गीत।


मानक है हिन्दी वतन , लोकतंत्र नवनीत।।९।।


 


शब्द अर्थ अधिगम सुलभ,साहित्यिक सत्काम। 


समरसता नवरंग से , हिन्दी है अभिराम।।१०।।


 


बने धरोहर राष्ट्र की , नव विकास आधार।


हिन्दी भाषा शुभ वतन , राष्ट्र भाष अधिकार।।११।।


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नवदेहली


आचार्य गोपाल जी

चंदन की खुशबू


 


 


घिसे जाओगे जब कर्तव्य शीला पर,


तभी फैलाओगे चंदन सी खुशबू।


 


जो उतरोगे दिलों में धड़कन बनकर, 


तो आएगी तुम से भी चंदन की खुशबू।


 


बैर-द्वेष और वैमनस्यता को त्यागोगे,


अंतरात्मा में महकेगी चंदन की खुशबू।


 


भाईचारे का दीपक जो जलेगा दिलों में,


तो भारत में महकेगी चंदन की खुशबू।


 


आचार्य गोपाल जी


             उर्फ 


आजाद अकेला बरबीघा वाले


डॉ निर्मला शर्मा 

हिंदी का सम्मान


हिंदी देश के वासी हम सब


 हिंदी है भाषा का नाम 


अपनी भाषा पर गर्व हमें


 हम करें इसी में काम 


संपूर्ण विश्व में डंका बजता है


 विश्व गुरु सी शान 


ये है हमारी मातृभाषा 


जिसकी है निराली आन


 हिंदी का सम्मान करें हम 


बढे हमारा मान


 संस्कृत भाषा जननी इसकी 


ये है बड़ी महान 


देवनागरी लिपि है इसकी 


व्याकरण बड़ी है समृद्ध


 वर्णमाला में छिपे हुए हैं 


स्वर, व्यंजन उच्चारण आबद्ध


विश्व में नहीं कोई ऐसी भाषा


 जिसका वैज्ञानिक है प्रकार 


प्रत्येक ध्वनि के लिए प्रयुक्त है


 जिसमें अलग-अलग आकार


 प्राणवायु से जुड़े हुए स्वर 


ओमाक्षर प्राण तत्व आधार


 उच्चारण करते जब हम सब 


मिले ऐंद्रिय सुख अपार 


हिंदी का सम्मान करो सब


 यह जोड़े है भारतवर्ष 


भाषा की ताकत को जाना जब 


हुआ देश का नवीन उत्कर्ष 


आजादी की डोर बनी जब


 जन आंदोलन गहराया 


शब्द से शब्द जुड़े बन शक्ति


 तब केसरिया लहराया 


विवेकानंद ने दस दिनों तक


 हिंदी का अलख जगाया


 विदेशी धरती पर जाकर 


निज भाषा का मान बढ़ाया 


दयानंद खुसरो भारतेंदु 


और महावीर प्रसाद द्विवेदी 


हिंदी के कर्णधार हमारे 


रची जिन्होंने भाषा रूपी वेदी


 राजभाषा मातृभाषा


 संपर्क भाषा के नाम से है विख्यात


 बने यही राष्ट्रभाषा हमारी 


सबके मन की चाह ये ख्यात।


 


डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


डॉ0 रामबली मिश्र

बना कबीरा चलते रहना


 


सदा फक्कड़ी बनक चलना।


बना कबीरा चलते रहना। ।


 


मत करना परवाह किसी की।


चिन्तन ध्यान लगाये रहना।।


 


करो अनसुनी सदा मस्त रह।


योगी बनकर विचरण करना।।


 


गन्दी राजनीती में पड़कर।


अपना जीवन नष्ट न करना।।


 


खैर मनाओ हर मानव की।


सदा निरापद बनकर रहना।।


 


मत सहना तुम कभी अनर्गल ।


सार्थक बातें कहना सुनना।।


 


चित से दुष्टों को उतार दो।


ले कबीर की लाठी चलना।।


 


सत्संगति का मजा लूट लो।


नहीं कुसंगति में तुम पड़ना।।


 


दांव-पेंच को दूर फेंककर।


सीधी-सादी बातें करना।।


 


दुनियादारी यही एक बस।


अपने में ही जीते रहना।।


 


लोई एक मात्र काफी है।


बन पत्नी का भक्त विचरना ।।


 


राग-द्वेष के ऊपर जाकर ।


सम मंत्रों को जपते रहना।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


नूतन लाल साहू

खाली दिमाक, शैतान का घर है


सुखी वहीं, जो काम में व्यस्त हैं


दुसरो के बारे में,सोचने का वक्त नहीं है


जिनके पास काम नहीं है, बेकाम है


वो ही व्यक्ति,दुनिया में बदनाम है


खाली दिमाक, शैतान का घर है


बेकाम का घर,कर्ज में डूब गया


जिन्दगी का नाव,मझधार में गुम गया


उनका तन,धू धू कर जल रहा है


ऐसा व्यक्ति,मर मर के जी रहा है


खाली दिमाक, शैतान का घर है


काम में ही सोच और सोच से ही बुद्धि है


बुद्धि से दृष्टि और दृष्टि से ही सृष्टि है


काम में ही, व्यक्ति का सम्मान है


काम नहीं तो समझो, छुट गया जिन्दगी का पतवार है


खाली दिमाक, शैतान का घर है


आज नहीं तो कल,काम करना ही पड़ेगा


काम में जो लिप्त रहेगा,कलिया बन मुस्कुरायेगा


काम से ही भूख और काम में ही प्यास है


भूख मिटेगा पेट का और सतगति पा जायेगा


खाली दिमाक, शैतान का घर है


काम करने वाले को ही,नया नया साल


उत्साह और उमंग के साथ,नया नया ख्याल आता है


काम ही उसका हार और काम ही उसकी जीत है


काम ही उसका भक्ति और काम ही तीरथ धाम है


खाली दिमाक, शैतान का घर है हर संकट,काम करने वाले के लिए सहज


और बेकाम के लिए,महाकाल बन जाता है


सुख और समृद्धि आता है


काम करने वाले के जिन्दगी में


बेकाम वाले, हलाहल होते जाता है


 


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

नारी, नवयुग की 


 


अबला अब मत समझो उसको,


 उसने करने की सब ठानी। 


  अपने दम पर कहलाएगी, 


   वो अपने राजा की रानी।


 


है बचा कौन सा क्षेत्र कहो,


 जिसमें परचम लहरा न सकी। 


  है मंज़िल ऐसा कौन कहो,


   जिसको नारी है पा न सकी।


 


वो गए ज़माने बीत सुनो,


 जब घूॅ॑घट नहीं उठाती थी।


  ड्योढ़ी के बाहर कदम कभी,


   ख़ुद होकर नहीं बढ़ाती थी‌।


 


वो खेतों में खलिहानों में,


 वो खेल-कूद मैदानों में।


  वो मिल जाएगी ड्यूटी पर,


   जाकर देखो तुम थानों में।


 


वो जल में, थल में, नभ में भी,


 अपना करतब है दिखलाती।


  हर मोर्चे पर डट कर ही वो,


   नवयुग की नारी कहलाती।


 


बन नहीं द्रौपदी रहना है,


 उसने मन है अब ठान लिया।


  नवयुग की नारी कैसी हो,


   उसने है अब पहचान लिया।


 


सर ऊॅ॑चा करके रहती है।


 अब नहीं ज़ुल्म वो सहती है। 


  बनकर नवयुग की सरिता वो,


   अब कल-कल कल-कल बहती है।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

शीतल-छाया


आहत मन को कही साथी,


मिल जाती शीतल छाया।


अपनत्व के अहसास संग फिर,


सुख पाती अपनी काया।।


मोह-माया के बंधन संग,


खोया अपनत्व का साया।


सुख के ही सब साथी-साथी,


दु:ख में वो काम न आया।।


आहत मन को फिर जो साथी,


मिलता जो प्रभु का साया।


भक्ति में डूबा तन-मन साथी,


संताप न फिर मन आया।।"


 सुनील कुमार गुप्ता


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-3


 


जब तक नर जानै नहिं अंतर।


सुख-दुख सदा रहहि अभ्यंतर।।


    जनम-मरन यहि कारन भवई।


    होतै ग्यान मुक्ति पुनि मिलई।।


'बध्य'-'बधिक' सम मन अग्याना।


देइ सतत दुख जग बिधि नाना।।


     मैं अब 'मरब'व'मारब'तुमहीं।


     अस बिचार अग्यानहिं अहहीं।।


'छमहु मोंहि तुम्ह' साधु-सुभाऊ।


दीनन्ह रच्छक सभ मन भाऊ।।


   अस कहि कंस पकरि तिन्ह चरना।


   रोवत रहा जाइ नहिं बरना ।।


तिनहिं मुक्त करि बंदी-गृह तें।


लगा दिखावन प्रेम हृदय तें।।


   देवकि लखि कंसइ पछितावा।


   दीन्ह छमा तेहिं प्रेम सुभावा।।


भूलि क तासु सकल अपराधू।


कह बसुदेवहिं नेह अगाधू।।


    तोर बचन हे कंस मनस्वी।


    परम उचित अस कहहिं तपस्वी।


जब 'मैं' भाव जीव महँ आवै।


जीवहि ग्यान-भ्रष्ट कहलावै।।


   'तव'-'मम'-भेद तुरत उपजावै।


   'अपुन'-'पराया'-पाठ पढ़ावै।।


उपजै सोक-लोभ-मद-द्वेषा।


भय उर बसै साथ लइ क्लेसा।।


   जीव न समुझइ भगवत माया।


   रहइ सदा माया-भरमाया ।।


सोरठा-कहे मुनी सुकदेव, सुनहु परिच्छित ध्यान धरि।


           देवकि अरु बसुदेव, छमा कीन्ह कंसहिं तुरत।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-4


 


तब मुनि सीष नवा प्रभु चलहीं।


लइ सिय संग लखन पथ बनहीं।।


     आगे राम लखन पुनि पाछे।


     तापस-भेष लगहिं सभ आछे।।


ब्रह्म-जीव बिच माया जैसे।


रामहिं-लखन मध्य सिय तैसे।।


     जेहि मग राम-लखन मग चलहीं।


      प्रकृति मनोरम सुख ते पवहीं।।


मंदहि पवन बहहि प्रभु-पथ मा।


छाया करहिं मेघ पल-पल मा।।


     असुर बिराध मिला मग माहीं।


     झपकत पलक बधे प्रभु ताहीं।।


राम-प्रताप पाइ रुचि रूपा।


गया असुर प्रभु-धाम अनूपा।।


    बन-पथ चलत मुनी सरभंगा।


    लखि सिय-लखन राम के संगा।।


बड़-बड़ भागि सरावहिं आपनु।


कहहीं सुफल आजु बन-यापनु।।


     अइहैं अवसि राम यहि राहीं।


     जब तें सुने रहे हम ताहीं।।


धाम बिरंचि जाइ इक बारा।


भयो साँच आजु एतबारा।।


     जोहत रहे बाट दिन-राती।


     लखि प्रभु राम जुड़ाइल छाती।।


पूरन होई अब प्रभु-परना।


दरस पाइ हम खोइब बदना।।


     जप-तप-जोग-जग्य ऋषि कीन्हा।


      प्रबल भगति-बर प्रभु तिन्ह दीन्हा।।


साँवर रूप लखन-सिय सँगहीं।


करहु निवास हृदय मम अबहीं।।


दोहा-लेइ क बर अनुकूल ऋषि,बारे तप-बल आगि।


       जारे निज तन अगिनि महँ,धनि-धनि ऋषि कै भागि।।


      देखि परम सरभंग-गति,मुनिगन भवहिं प्रसन्न।


      पुनि-पुनि भागि सराहहीं, लखि प्रभु तहँ आसन्न।।


                   डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


डॉ निर्मला शर्मा

दर्पण से भी अधिक 


नाजुक होता है विश्वास 


जरा सा भी दरका--


 तो खंड -खंड हो टूट जाता है


 जब होता है किसी पर विश्वास


 तो आंखों पर -------


मानो पट्टी बंध जाती है


 दिखाई नहीं देता कुछ 


उस विश्वसनीय के सिवाय


 दुनिया सिमट जाती है


 उस क्षण उसी में 


पर कहते हैं ना ---------


विश्वास दूसरे नहीं


वही अपने तोड़ते हैं अपना


 जो सबसे करीब होते हैं 


दिल के पास 


जैसे ही-------


 टूट कर विश्वास बिखरता है


 तो फिर से मानो 


हवा में दूर तक बिखर जाता हैं 


आदमी के कदमों तले की


 जमीन भी नहीं रहती फिर वहां


 पैर लड़खड़ा कर


 जमीन पर गिरा जाते हैं


 आसमान में उड़ने वाले


 वह परिंदे पल में ही 


पंखों बिन तडपडाते हैं 


वर्तमान का-----


 यही है यथार्थ यही कहानी 


आज---------


 हर व्यक्ति की जबान पर


 यही है वाणी


 प्रतिदिन हर समाचार पत्र के


 मुख्य पृष्ठ पर 


और टीवी के हर चैनल पर 


दिखाई जा रही 


विश्वास टूटने की 


यही कहानी -------यही कहानी।


••••••••••••••••••••••••••••••••••


 डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


संजय जैन

मोहब्बत में अक्सर लोग,


सब कुछ भूल जाते है।


दिल दिमाग में उसके,


मोहब्बत छाई रहती है।


न कुछ कहता न सुनता,


बस अपने में मस्त रहता।


और प्यार के सागर में,


वो डूब जाता है।।


मोहब्बत में अक्सर लोग,


सब कुछ भूल जाते है।।


 


नैन से नैन लड़ा के,


दिलमें उतर जाती है।


फिर दिल के अंदर जो,


मोहब्बत को बढ़ाती है। 


जिसके कारण ही वो,


आंखों में छाई रहती है।


और दीप मोहब्बत का,


दिलों में जला देती है।।


मोहब्बत में अक्सर लोग,


सब कुछ भूल जाते है।।


 


किसी से दिल लगाना,


आसान नहीं होता है।


प्यार में जीना मरना,


आसान नहीं होता है।


ये वो आग होती है जिसे,


कोई बूझा सकता नहीं।


इसलिए सच्ची प्रेमी,


आजकल कम होते हैं।।


मोहब्बत में अक्सर लोग,


सब कुछ भूल जाते है।।


 


जय जिनेन्द्र देव


संजय जैन मुंबई


विनय साग़र जायसवाल

हम बनायें चलो उस जगह आशियां


कोई आये न दूजा जहां दर्मियां


 


वो जगह कोई मंदिर से कम तो नहीं


मिल रहें को जहाँ पर ज़मीं आसमां


 


जब अकेला ही मैं आगे बढ़ने लगा


पीछे आने लगा इक मेरे कारवां


 


उसने घोले मेरी ज़ीस्त में ऐसे रंग 


लोग सुनते हैं अब तक मेरी दास्तां


 


गिरह---


उस जगह आशियाँ क्यों बनायेंगे हम


*सूख जाते हैं दरिया के दरिया जहां*


 


पर निकलते ही ताइर सभी उड़ गये


किस कदर है पशेमान अब बाग़बां


 


चंद सिक्के ही साग़र दिये थे उसे


दी दुआ उसने खिलता रहे गुलसितां


 


विनय साग़र जायसवाल


बरेली


8/9/2020


ताइर-पंछी


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

साक्षरता


मानव बनता सभ्य तब,जब हो अक्षर-ज्ञान।


चलो चलाएँ मिल सभी,साक्षरता-अभियान।।


 


अक्षर-ज्ञान-अभाव तो,है जीवन-अभिशाप।


शिक्षा से सुधरे सभी,मानव-क्रिया-कलाप।।


 


विश्व-समस्या यह विकट,करें इसे निर्मूल।


करें सजग सबको अभी,बिना किसी को भूल।।


 


केवल भाषण से नहीं,होगा इसका काम।


घर-घर जाकर छेड़ना,है इसका संग्राम।।


 


जन-जागृति,जन-चेतना,शिक्षा-अभिरुचि साथ।


संभव होगी जब मिलें, सबके हाथ से हाथ ।।


 


शिक्षा से कल्याण हो,शिक्षा शान समाज।


शिक्षा को विकसित करें, दृढ़प्रतिज्ञ हो आज।।


 


साक्षरता का पर्व यह,दीपक ज्ञान-प्रकाश।


जले ज्ञान की ज्योति जग,रवि-शशि इव आकाश।।


              © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ0 रामबली मिश्र

प्रिय बोली से अमृत बरसत।


कटु बोली आजीवन तरसत।।


 


प्रिय बोली है ब्रह्म समाना।


कटु बोली से जान गँवाना।।


 


बोलो मीठी बोली भाषा।


रच विनम्रता की परिभाषा।।


 


मीठी बोली औषधि जैसी।


कर कटुता की ऐसी-तैसी।।


 


शोक हरो अरु मन की पीड़ा।


मीठी बोली की लो वीणा।।


 


मीठे वचन बोल कर आदर।


कटुक बोल मत करो अनादर।।


 


सबको कर प्रणम नित सादर।


झुक कर सबका करो समादर।।


 


मत करना अपमान किसी का।


करते रह सम्मान सभी का।।


 


मीठे वचनों का संवादी।


बनकर रच मीठी आवादी।।


 


:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


सुनीता असीम

इश्क करके छिपा नहीं सकता।


औ किसीको बता नहीं सकता। 


***


दिल की बातें किसे कहूँ मैं भी।


हर किसीको सुना नहीं सकता।


***


ग़मजदा जो रहे सदा ही तो।


उसके दुख को बढ़ा नहीं सकता।


***


वो किसी और की अमानत है।


उसको अपना बना नहीं सकता।


****


जो समझदार खुद को समझे है।


कोई उसको पढ़ा नहीं सकता।


***


सुनीता असीम


डॉ0 रामबली मिश्र

इन्तजार


 


अपना काम छोडकर,


दूसरे का इंतजार क्यों कर रहे हो?


अपना काम रोककर,


दुसरे से अपेक्षा क्यों कर रहे हो?


दुसरे से आशा कर,


अपनी उपेक्षा क्यों कर रहे हो?


नादान दोस्त!


अगर तुम अपना काम करते 


और आगे बढ़ते रहते ,


तो तुम आगे होते 


सफलता के शीर्ष पर होते।


दूसरों के चक्कर में,


तुमने अपना सब कुछ मिटा दिया 


अपनी तमन्ना को धूल चटा दिया।


अब रो रहे हो 


जंगल में हो 


कोई सुननेवाला नहीं 


कोई आँसू पोंछनेवाला नहीं।


अगर तुम खुद को देखते 


तो आज आज आदर्श बनते।


पर अफसोस!


आज तुम सीमान्त हो 


भयाक्रांत हो।


डरे हो न 


मरे हो न 


अपने कारण 


अकारण 


चलो 


अब तो सोचो 


अब भी समय है 


चेत जाओ तो अच्छा है 


अन्यथा सब बुरा है।


 


: डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 रामबली मिश्र

आत्मतोष


बहुत बड़ी चीज है यार।


साक्षात ईश्वर का प्यार।।


इससे अधिक तो कुछ नहीं।


सबसे बड़ा तो है यही।।


यह मिला तो सब कुछ मिला।


नहीं मिला तो बहुत गिला।।


पाया यह तो सब पाया।


तब फीकी-फीकी माया।।


 


:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


प्रिया चारण

 में लिखने का शोक रखती हूँ 


 


में लिखने का शोख रखती हूँ ,,।


पर क्या? लिखूं , लिखने से डरती हूँ,,।


मैं अपने कुछ जज़्बात अपने अंदर ही रखती हूँ ।


ल मैं लिखने से डरती हूँ , पर अंदर ही अंदर ,


सबसे छिपकर छिपाकर इतिहास रचती हूँ ।


 


मैं लिखने का शोक रखती हूँ ,,।


पर क्या ?लिखूं लिखने से डरती हूँ ।


मैं हर रोज़ उडान तो भरती हूँ, पर ज़माने से डरती हूँ ,,,।


 


क्या कहेंगे लोग, यहाँ सबकी है ,यही सोच


इस सोच से हर शाम बिखरती हूँ ।।


 


में लिखने का शोख रखती हूँ,


पर क्या? लिखूं लिखने से डरती हूँ ,,।।


मैं खुदको हार कर भी, 


दुनिया को जीतने का शोख़ रखती हूँ ।


नन्ही चिड़िया सी हुँ , घोसले को खोने से डरती हूँ ,,,


फिर भी दाना लेने को हर सवेरे उडान भरती हूँ ।।


 


मैं लोखन का शोख़ रखती हूँ 


पर क्या? लिखूं लिखने से डरती हूँ ।।


 


प्रिया चारण


सुनील कुमार गुप्ता

   दर्शन दे भगवान


जन-जन में कण-कण में साथी,


जहाँ दर्शन दे भगवान।


रहे न निर्धन कोई जग में,


सभी हो जाये धनवान।।


विकार न हो तन-मन में साथी,


अपनत्व का हो सम्मान।


परमार्थ में बीते जीवन,


स्वार्थ का न होगा नाम।।


भक्ति पथ संग चलते -चलते,


यहाँ पा जाये वो धाम।


सद्कर्मो संग जीवन पथ पर,


यहाँ दर्शन दे भगवान।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

बुझे तीर में धार नहीं आती


जंग खाई तलवार में मार नहीं आती।।


जरुरी नहीं की सांसो ,धड़कन का


आदमी ,इंसान जिन्दा हो ।


पुतला भो हो सकता है पुतलों के


कदमो की चाल आवाज नहीं


आती।।


जिन्दा आदमी उद्देश्यों के आसमान में उड़ता बाज़


अवनि की हद हस्ती गरिमा का जाबांज।।


जिसके तरकस के तीर नहीं


बुझते।


जिसके तलवारे जंग नहीं खाती


जिसके उद्देशोयो पथ पर नहीं


आती बाधा जिसके पथ पर अंधेरो का रहता नहीं नामो निशान।।


जिसके कदमों की आहट को लेता


समय काल पहचान


 


जिसकी सक्रियता का वर्तमान


पीढ़ियों का प्रेरक प्रसंग प्रेरणा का


युग में प्रमाण।।


जन्म मृत्यु के मध्य का भेद मिटा


रहता सदा वर्तमान गर चाहो गिनना नाम ।।                       


 


थक जाओगे 


परम् शक्ति सत्ता ईश्वर


की रचना का मानव या ईश्वर 


का प्रतिनिधि पराक्रम का 


परम प्रकाश।।


युग मानव कहती दुनियां 


पता नहीं खुद उसको चल 


पड़ा किस पथ पर धरा धन्य


युग में कहाँ पड़ाव।।


 


चलता जाता निष्काम कर्म के


पथ पर छड़ भंगुर पल दो


पल की सांसो धड़कन के संग


अकेला निर्धारित करने एक


नया आयाम।।


गुजर जाता जिधर से बूत पुतलो


में आ जाता अपने होने का विश्वाश।।


जड़ को भी चेतन कर देता सृष्टि


सार्थक का मानव।


कहता कोई महान कोई कहता


शूरबीर जाने क्या क्या कहती


दुनियां लेकिन निसफिक्र निर्विकार चलता जाता अपनी


धुन में नए जागरण जाग्रति का 


सदा वर्तमान।।                     


 


जिन्दा हो जागती कब्रो की


रूहे शमशान के मुर्द्रे भी जीवित


हो जाते ।


बुझे तीर को देता कोई धार


जंग लगी तलवारों से भी लड़ता


जीवन का संग्राम कभी अतीत


नहीं ह्रदय ह्रदय में जीवित का


आदर भाव युग तेज का शौर्य


सूर्य नित्य निरंतर प्रवाह।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


एस के कपूर श्री हंस

हमारे कर्मों से ही बनता जीवन


पत्थर या सोना है।।


 


मिट्टी का खिलौना और चंद


सांसों का मेहमान है।


जाने किस बात पर अहम


चढ़ रहा परवान है।।


मालूम है कि यह जीवन  


मिलता नहीं बार बार।


क्यों रहता किसी नफरत में


जाने कितना नादान है।।


 


जीवन सत्य को जानो कड़वा


पर लाजवाब है।


हज़ारों मुश्किलें पर ये जीवन


बहुत नायाब है।।


जान लो कि सत्य परेशान हो


सकता पराजित नहीं।


कठोर है अनमोल है नहीं इस


जीवन का कोई जवाब है।।


 


मिट्टी से बना तन एक दिन


तो फना होना है।


मायने जीवन के ही कुछ पाना


और कुछ खोना है।।


दुःख का दस्तावेज और है यह


सुख का संसार भी।


हमारे कर्मों से ही बन जाता


यह पत्थर या सोना है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


नूतन लाल साहू

अब के जमाना में


रात दिन हरहर कटकट के


कलजुग ह खरागेहे


अइसन जिनगी ह,का जिनगी ये


अब के समय हा, दुभर होगे


आदमी पन ले,में बिट्टागेव


बमफार के, नहि ते


सुसक सुसक के,रो लेतेव


अइसन लागत हे


कोन अइसन, बइद हे


जोन सब मनखे के दुख हरे


झन आवय,नवा नवा बीमारी ह


अइसन उदीम करे


रात दिन हरहर कटकट के


कलजुग ह, खरागेहे 


अइसन जिनगी ह,का जिनगी ये


हाय समागे, राऊर छागे


भईसा सही कमावत हन


तभो ले पुर नी आवत हे


येती वोती रोटी खातिर


घुमत हन देश विदेश


फुटबाल कस,धक्का खावत हन


तभो ले घर म,करुवा गेहन


रात दिन हरहर कटकट के


कलजुग ह, खरागेहे


अइसन जिनगी ह,का जिनगी ये


अंधविसवास,गरीबी अउ लाचारी


संगे संगे अतियाचारी


सबो सन लड़त हन


दया ममता सलाह सुनता


दिनोदिन कमजोर पड़त हे


पुर वाही के पावन ला, कइसे में मनाव


बगरा दे तैहर, आस के अंजोर


अइसन हावे, ये जिनगी के खेल


रात दिन हरहर कटकट के


कलजुग ह, खरागेहे


अइसन जिनगी ह,का जिनगी ये


नूतन लाल साहू


कालिका प्रसाद सेमवाल

सरस्वती वंदना


************ 


हे मां सरस्वती


तुम प्रज्ञा रूपी किरण पुंज है,


हम तो निपट अंधेरा है मां।


हर दो मां अंधकार तन -मन का,


मां सबकी नयै पार कर दो।


 


मां हमरे अन्दर ऐसा भाव जगाओ,


हर जन का उपकार करे।


हममें जो भी कमियां हैं मां,


उनको हमसे दूर करो मां।


 


पनपें ना दुर्भाव कभी हृदय में,


घर -आंगन उजियारा करो मां।


बुरा न देखें बुरा कहें ना,


ऐसी सद् बुद्धि हमें दे दो मां।


 


मां हम तो निपट अज्ञानी है,


हमको सुमति तुम दे दो मां।


निर्मल करके तन-मन सारा,


सकल विकार मिटा दो मां।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...