बहुत ज़िंदगी जी लिए,बहुत किए व्यापार।
परम धाम जाना हमें,होना है तैयार।।
वक्ष तान, तन ऐंठ कर,जिस पर किए गुमान।
दिवस एक मिट्टी मिले, यही सत्य है जान।।
तिनका-तिनका जोड़कर,हो जो गृह-निर्माण।
धोखा देता अंत वह,दे न प्राण को त्राण ।।
इस यथार्थ का गौर से,सब जन करें विचार।
परम धाम जाना हमें, होना है तैयार ।।
जीओ, जीने दो सदा,है यह उचित विधान।
इसी सूत्र का कर अमल,होते लोग महान।।
परहित से बढ़कर नहीं,दूजा मानव-धर्म।
पर पीड़ा निज मानना,होता अति शुचि कर्म।।
जीने का इस जगत में,सबका है अधिकार।
परम धाम जाना हमें,होना है तैयार ।।
बड़े भाग्य यह तन मिला,वह भी मानव- देह।
निश्चित यह है प्रभु-कृपा,बिना किसी संदेह।।
इस तन से शुभ कर्म हो,ऐसा रहे प्रयास।
यदि ऐसा होता रहे,मिले स्वर्ग-आवास।।
शुद्ध सोच,शुभ कर्म हैं,ठोस जीवनाधार।
परम धाम जाना हमें,होना है तैयार।।
मद-घमंड, छल-छद्म से,जो जन रहते दूर।
उन्हें मिले सम्मान जग,वे कहलाते शूर।।
मधुर बोल,उज्ज्वल चरित,यदि रह सरल स्वभाव।
निश्चित जग देता उसे,कभी न प्रेमाभाव ।।
'मैं'को तजकर मीत प्रिय,अब तो कर ले प्यार।
परम धाम जाना हमें, होना है तैयार ।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372