सुषमा दिक्षित शुक्ला

सच्ची श्राद्ध


 


जीते जी सेवा किया नहीं,


 बस मरने पर श्राद्ध मनाते हैं।


 


 ऐसी संताने हैं कुल कलंक ,


मृत पुरखों को बहलाते हैं ।


 


 यदि देनी सच्ची श्रद्धांजलि ,


है प्यारे पुरखों को अपने ।


 


 तब धर्म करो सत्कर्म करो ,


अरु पूर्ण करो उनके सपने ।


 


यह वन्दन है अभिनंदन है ,


यह ही पुरखों का है तर्पण ।


 


उनकी स्मृतियों को हृदय लगा,


 श्रद्धा के सुमन करो अर्पण ।


 


तब पूर्वज भी होंगे प्रसन्न ,


पा सच्चे प्रेम समर्पण को ।


 


नित देंगे ढेरों शुभाशीष,


फिर देख प्रेम शुचि अर्पण को ।


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


सुषमा दीक्षित शुक्ला

हिन्दी से तुम प्यार करो 


 


हिंदुस्तान के रहने वालों ,


हिंदी से तुम प्यार करो ।


 


ये पहचान है मां भारत की,


 हिंदी का सत्कार करो ।


 


हिंदी के विद्वानों ने तो ,


परचम जग में फहराए।


 


 संस्कार के सारे पन्ने,


 हिंदी से ही हैं पाए ।


 


 देवनागरी लिपि में अपनी,


 छुपा हुआ अपनापन है ।


 


अपनी प्यारी भाषा हिंदी,


 भारत मां का दरपन है ।


 


हिंदुस्तानी होकर तुमने ,


यदि इसका अपमान किया ।


 


तो फिर समझो भारत वालों ,


खुद का ही नुकसान किया।


 


 हिंदुस्तान के रहने वालों,


 हिंदी से तुम प्यार करो ।


 


यह पहचान है माँ भारत की ,


हिंदी का सत्कार करो ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


सुरेश बाबू मिश्रा साहित्य भूषण "चाफेकर बंधु शहादत"

बलिदानी फूल


 


स्वतन्त्रता से पूर्व के दिन थे। पूना में भयंकर प्लेग फैला हुआ था। प्रतिदिन सैैकड़ों लोग तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे थे। परन्तु अंग्रेजी सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं था। उसका दमन चक्र और अधिक क्रूर होता जा रहा था। सरकार लोगों में फैल रही स्वतन्त्रता की चिंगारी को दबा देना चाहती थी।


ऐसे ही समय में नदी के किनारे बने एक वीरान मन्दिर के खंडहर में आज एक बैठक हो रही थी। बैठक में आए लोग ज़मीन पर अर्द्ध गोलाकार में बैठे थे। तभी पीछे से एक व्यक्ति आकर कोई सूचना देता है। लोगों में कानाफूसी शुरू हो जाती है-“दद्दा जी आ गए।“ सभी लोग इस नौजवान क्रान्तिकारी को देखने को बेहद उत्सुक थे।


दद्दा जी दो लोगों के साथ आए और मध्य में बैठ गए। बैठक शुरू हो गयी। बैठक में सम्मिलित अधिकांश नौजवान बेहद जोश में थे। सभी अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध अपना रोष व्यक्त कर रहे थे।


दद्दा जी ने बताया सारे देश में अंग्रेजी सरकार निर्दोष भारतीयों पर अत्याचार कर रही है। इसलिए हम नौजवानों ने देश को आजाद कराने का बीड़ा उठाया है। यहाँ प्लेग से हजारों परिवार उजड़ चुके और सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही। प्लेग की रोकथाम करने के बजाय अंग्रेज अधिकारी रैंड लोगों के घर में जबरन घुस-घुस कर उनके घरों की तलाशी ले रहे थे। निर्दोष भारतीयों को तरह-तरह से तंग कर रहे थे। प्लेग तो एक बहाना था, वास्तव में सरकार क्रान्तिकारी गतिविधियों से भयभीत है और उन्हें दबा देना चाहती है। परन्तु हम उसकी चालों को कामयाब नहीं होने देंगे। दल ने क्रूर और अत्याचारी अंग्रेज अधिकारी रैंड को मारने का फैसला कर लिया है। तुममें से जो इस काम के लिए तैयार हो, वह हाथ उठाए।


सभा में उपस्थिति अधिकांष लोगों ने अपना-अपना हाथ उठा दिया।


दद्दा जी ने समझाया-“क्रान्ति की राह बहुत कठिन है। इस राह में काँटे ही काँटे हैं। जिसे जीवन का मोह न हो वही इस मार्ग पर आगे आए।“


बैठक में मौजूद बाल कृष्ण चाफेकर ने कहा- “मैं इस बैठक में सबसे छोटा हूँ। मैं चाहता हूँ कि मुझे यह काम सौंपकर भारत माँ की सेवा करने का अवसर दिया जाए। दामोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर दोनों सगे भाई थे। अंत में दोनों के अनुरोध को स्वीकार कर उन्हें रैंड को मारने का दायित्व सौंपा गया।


इस बैठक से कुछ दिन बाद की बात है। बाईस जून का दिन था। उस दिन सारे देश में महारानी विक्टोरिया का जन्मदिन बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा था। देश की राजधानी दिल्ली में एक विशाल समारोह का आयोजन किया गया था। समारोह में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए देश के अन्य भागों से बड़ी संख्या में पुलिस बल को दिल्ली बुलाया गया था। पूना से भी काफी संख्या में पुलिस के अधिकारी और सिपाही दिल्ली गये हुए थे।


भयानक महामारी के बावजूद पूना में इस उपलक्ष्य में भव्य समारोह का आयोजन किया गया। अंग्रेज सिपाहियों को इस खुशी के मौके पर सरकार द्वारा मुफ्त शराब पीने को दी गई। सभी पुलिस वाले शराब पीने में मस्त थे।


रात के लगभग 11 बजे का वक्त था। समारोह अभी चल रहा था। उसी समय दो नौजवान समारोह स्थल पर आये। समारोह में इक्का-दुक्का ही पुलिस वाले दिखाई पड़ रहे थे और वे भी बातें करने में मशगूल थे। इसलिए दोनों नवयुवक निर्विघ्न अंदर पहुंच गए।


अंदर अंग्रेज अधिकारी रैंड बैठा हुआ लोगों को अपने कारनामे सुना रहा था। लोग हंस रहे थे। तभी दोनों नवयुवकों ने अपने रिवाल्वर निकाल लिए। वे बोले-“निर्दोष भारतीयों के रक्त से अपने हाथ रंगने वाले कुत्ते आज तुझे तेरी राज भक्ति का मज़ा चखाया जाएगा।“ और उन दोनों ने रैंड को गोली मार दी। गोली चलते ही भगदड़ मच गई। “पकड़ो-पकड़ो“ की आवाजें़ आने लगीं। परन्तु जब तक शराब में गाफिल पुलिस वाले आएं तब तक दोनों नवयुवक, बालकृष्ण और दामोदर चाफेकर वहाँ से फरार हो गए।


रैंड की हत्या से ब्रिटिश पुलिस चैकन्नी हो गई। सारे शहर की नाकेबंदी कर दी गई और अपराधियों की सरगर्मी से तलाश की जाने लगी। पूरे शहर में डोंढी पिटवाई जा रही थी कि जो रैंड के हत्यारों को पकड़वाएगा उसे बीस हज़ार रुपये का ईनाम दिया जाएगा।


एक जगह हरिशंकर और गणेश शंकर नामक दो नौजवान बैठे ताश खेल रहे थे। वे दोनों बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर के मित्र थे। उन्होंने भी इस घोषणा को सुना। गणेश शंकर बीस हजार रुपये की बात सुनकर लालच में आ गया। वह बोला-“मैं बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर को पकड़वा कर ईनाम के बीस हजार रुपये प्राप्त करूँगा।“ हरिशंकर ने कहा “तुम बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर के मित्र हो। क्या मित्र का यही धर्म होता है ? और फिर तुमने भी तो उस दिन बैठक में देश के लिए कार्य करने की शपथ ली थी। अब क्या तुम बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर को पकड़वाकर देश के साथ गद्दारी करोगे ?“ हरिशंकर के समझाने-बुझाने का गणेश शंकर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह दोनों को पकड़वाने की योजना बनाता हुआ घर की ओर चल दिया।


दूसरे दिन वह पुलिस अधिकारी बु्रइन के पास पहुँचा है। उसने बताया-“मिस्टर रैंड की हत्या बालकृष्ण चाफेकर नामक दो भाइयों ने की है। मैं उन दोनों को अच्छी तरह जानता हूँ और उन्हें गिरफ्तार करा सकता हूँ।“ पूरी तहकीकात करने के बाद ब्रुइन पुलिस को लेकर गणेश शंकर के साथ दामोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर के घर पहुँच गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गणेश शंकर को सरकारी गवाह बना लिया गया।


ब्रिटिश न्याय की चक्की चल पड़ी। उस समय अंग्रेजों की अदालतों से भारतीय क्रान्तिकारियों को एक ही चीज मिलती थी- सज़ा-ए-मौत। रैंड की हत्या का केस अदालत में शुरू हो गया। दोनों अभियुक्तों ने अपना अभियोग स्वीकार कर लिया।


आज अदालत में मिस्टर रैंड की हत्या के केस का फैसला होने वाला था। मुकद्दमे का फैसला सुनने के लिए आए लोगों से अदालत खचाखच भरी थी।


अंग्रेज जज ने मुल्जिम दामोदर चाफेकर से बयान देने को कहा।


दामोदर चाफेकर ने अपने बयान में कहा-“अंग्रेज सरकार प्लेग के बहाने हमारी राष्ट्रीय गतिविधियों को दवा देना चाहती थी। अत्याचारी अंग्रेज अधिकारी रैंड अपने क्रूर कारनामों से हमारी क्रान्तिकारी गतिविधियों, राष्ट्रीय, भावना, संस्कृति, धर्म तथा हमारी आत्मा को कुचल देना चाहता था। अतः मैंने गोली मार कर उस नर-पिशाच को उसकी राज-भक्ति का उचित पुरस्कार दे दिया। मुझे उसको गोली मारने का खेद नहीं, गर्व है। भारत माँ शीघ्र ही स्वतन्त्र होगी।“


दामोदर चाफेकर के बयान से अदालत में भारी उत्तेजना फैल गई थी।


जज ने दूसरे अभियुक्त बालकृष्ण चाफेकर से बयान देने का आदेश दिया।


बालकृष्ण चाफेकर ने अपने बयान में कहा-“मैं अपने ऊपर लगाये गए रैंड की हत्या के आरोप को सहर्ष स्वीकार करता हूँ। जिस प्रकार मार्ग में चलता हुआ पथिक अपने मार्ग मंे आने वाले काँटों को हटा देता है, उसी तरह स्वतन्त्रता के मार्ग में आने वाले रैंड रूपी काँटे को हमने हटा दिया है। दमन और अत्याचारों के द्वारा अब स्वतन्त्रता को चिंगारी को अधिक दिनों तक नहीं दबाया जा सकता। एक दिन यह चिंगारी भयानक आग का रूप धारण करेगी। जिसमें जलकर यह ब्रिटिश साम्राज्य भस्म हो जाएगा।“


पुलिस अधिकारी ने सरकारी गवाह के रूप में गणेश शंकर को अदालत में पेश किया। गणेश शंकर ने बयान दिया कि -“मी लार्ड, दामोदर चाफेकर तथा बालकृष्ण चाफेकर ने मेरे सामने ही मिस्टर रैंड को गोली.....“


मगर उसका बयान अधूरा ही रह गया, अचानक अदालत में-“भारत माता की जय“ और “इंक्लाब ज़िन्दाबाद“ के नारे लगाते हुए गोपाल कृष्ण चाफेकर ने प्रवेश किया, और रिवाल्वर से मुखबिर गणेश शंकर को गोली मार दी।


अदालत में भारी अफरा-तफरी मच गई। जज ने गोपाल कृष्ण चाफेकर को फौरन हिरासत में लेने का आदेश दिया। अदालत में मौजूद पुलिस अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।


बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर दोनों अपने छोटे भाई गोपाल कृष्ण चाफेकर के इस साहसिक कार्य से हैरान रह गये।


बालकृष्ण ने गोपाल कृष्ण से पूछा, “भइया, अंधी और बूढ़ी माँ की सेवा के लिए तुम्हीं तो रह गए थे, तुम यहाँ क्यों चले आए ?“


गोपाल कृष्ण बोला-“मैं माँ से आज्ञा लेकर आया हूँ भइया। जब एक ही डाली के दो फूल माँ भारती के चरणों में न्योछावर हो रहे हों तो तीसरा फूल उस सौभाग्य से वंचित क्यों रहे ?“


गोपाल कृष्ण से जज ने बयान देने को कहा। गोपाल कृष्ण बोला, “पैसे के लिए अपनी आत्मा और मित्रता को बेचने वाले गणेश शंकर नामक गद्दार को मैं यह बताना चाहता था कि क्रान्तिकारी वीरों से गद्दारी करने का अंजाम क्या होता है। “मी लार्ड! मैंने यहाँ आकर उसे इसलिए गोली मारी जिससे अंग्रेज अधिकारी यह देख लें कि भारत माँ की कोख से गणेश शंकर जैसे मुखबिर नहीं देश पर प्राण न्योछावर करने वाले नवयुवक जन्म लेते हैं। मैं गणेश शंकर की हत्या के आरोप को सहर्ष स्वीकार करता हूँ।“


तीन अभियुक्तों के बयानों के बाद जज ने अपना फैसला सुनाया-“सारे सबूतों एवं आरोपों पर विचार करने के बाद अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची कि मिस्टर रैंड की हत्या दामोदर चाफेकर एवं बालकृष्ण चाफेकर तथा गणेश शंकर की हत्या गोपाल कृष्ण चाफेकर ने की है। तीनों अभियुक्तों ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खुद भी इकबाल किया है। अतः अदालत उन्हें हत्या और राजद्रोह का मुजरिम करार देती है और तीनों अभियुक्तों को भारतीय दण्ड सहिता की धारा 302 के तहत सज़ा-ए-मौत देती है।“ इसी के साथ अदालत बर्खास्त हो गई। फांसी देने से पूर्व अंग्रेज अधिकारी ने उन तीनों से उनकी आखिरी इच्छा पूछी। दामोदर चाफेकर बोला-“मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ।“


अंग्रेज अधिकारी बोला-“आज तुम लोगों का आखिरी दिन है, कम से कम मरने से पूर्व तो शांति की बातें करो।“


बालकृष्ण चाफेकर ने कहा-“मैं शाति नहीं क्रान्ति चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि एक ऐसी आग लगे जिसमें यह ब्रिटिश साम्राज्य और भारत माँ की परतंत्रता जलकर भस्म हो जाए।“


अंग्रेज अधिकारी ने घबरा कर घड़ी देखी और फांसी लगाने की आज्ञा दी। तीनों भाई एक दूसरे से गले मिले और हाथ में गीता लिए हुए फांसी के फंदे पर झूल गए। भारत माँ की वेदी पर स्वतंत्रता की आस लिए हुए तीनों अधखिले फूल बलिदान हो गये।


 



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सुनीता असीम

मेरे पीछे मेरी बीबी पड़ी है।


लेगी गहने इसी जिद पे अड़ी है।


***†


न खाना और पानी भी मुझे दे।


जिधर देखूँ उधर सर पर खड़ी है।


****


न सोने दे न रोने दे मुझे वो।


मुझे भेजे वो लानत भी बड़ी है।


****


बचूं कैसे कोई मुझको बताए।


वो मुझको धूप सी लगती कड़ी है।


****


 कि मैंने मान ली अब मांग उसकी।


 उसे दे दी अंगूठी नग जड़ी है।


****


सुनीता असीम


डॉ0 निर्मला शर्मा 

शिक्षा


शिक्षा की हम अलख जगायें,


ज्ञान को इस जग में फैलायें।


 


हर घर रोशन हो विद्या से,


अज्ञान का तिमिर मिटे जहाँ से,


शिक्षा को हथियार बनायें।


शिक्षा की--------------------।


 


जीवन को सार्थक बनायें,


विज्ञान बोध साहित्य रचायें,


शिक्षा अक्षर ज्योति जलायें।


शिक्षा की---------------------।


 


शिक्षा से उन्नति द्वार को खोलें,


जीवन पथ की बाधाएँ तोड़ें,


सभ्यता, संस्कारों की नींव को डालें।


शिक्षा की----------------------।


 


बालक-बालिका का भेद मिटायें,


समाज मे समान अधिकार दिलायें,


शिक्षा को निज कर्तव्य बनायें।


शिक्षा की-----------------------।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

एक न एक दिन


 


एक न एक दिन तो,


जीवन में साथी-


सबको ही जाना होगा।


घोर अंधेरी रात के बाद,


साथी जग में-


सूरज को आना ही होगा।


कब- तक छायेगी गम की बदली,


इन्द्रधनुषी रंगों को-


साथी जीवन में गहराना होगा।


बीत चुकी काल रात्री,


नव भोर में मुस्कराना-


और जीवन सुखद बनाना होगा।


भूलकर अपना-बेगाना,


सबका साथ-


निभाना होगा।


एक न एक दिन तो,


जीवन में साथी-


सबको ही जाना होगा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


संदीप कुमार विश्नोई

पहन मुखौटा देखो , करते हैं बात कुछ , 


ये नकाब इनके तो , मुख से उतारिए। 


 


राम नाम जपते हैं , मन में छुपा है पाप , 


हाथ में उठा के डंडा , इनको सुधारिए। 


 


खा गए हैं संस्कार , भारत के ढोंगी सारे , 


नव्य पीढ़ी के लिए भी , कुछ तो विचारिए। 


 


जाया मत करो इन , ढोंगियों के पास कोई , 


इनके इमान को जी , आप ललकारिए। 


 


संदीप कुमार विश्नोई दुतारांवाली तह0 अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब


डॉ0 रामबली मिश्र

आत्मीयता


 


आत्म भाव अतिशय मधु सुंदर ।


लहराता है प्रेम समंदर ।।


 


अन्तर्मुखी बाह्य अनुरागी।


शांत स्वभाव सहज शिवशंकर।।


 


देखत खुद में सकल सृष्टि को।


ब्रह्मरूपमय ज्ञान धुरंधर।।


 


आत्मीयता अति प्रिय शीतल।


सुखद अमृता सभ्य धरोहर।।


 


सदा बूँद में सिंधु बहत है।


आत्मरूपमय दिव्य सरोवर।।


 


एक तत्व में बृहद तत्व है।


एकरूपमय आत्म मनोहर।।


 


परम अथाह चाह समरसता।


रसाकार संसार सुमंतर ।।


 


मस्त फकीरी अमर जीवनी।


संतहृदय शुचि भाव स्वतंतर ।।


 


बँधा विश्व है आत्म केन्द्र से।


बाह्य शून्यमय आत्म गजेन्दर।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ बीके शर्मा

तत्वज्ञान विषय


-----------------------------


त्याग संशय जान मुझको 


लगा चित्त पहचान मुझको


जानकर ज्ञान मुझको


मानकर विज्ञान मुझको 


हो कर मेरे परायण 


और फिर मान मुझको || -1


 


शेष नहीं कुछ भी मुझसे


हूं ज्ञान मैं विज्ञान मैं 


है विभूति बल जो तुझमें 


उस तत्व की भी जान मैं


हूं पराजय का भी कारण 


हूं जीत का सम्मान मैं || -2


 


अब जान अपरा अचेतन


भूत भाव परा चेतन


पृथ्वी जल अग्नि गगन


वायु बुद्धि अहंकार मन 


अष्ट तत्व में है प्रकृति 


भूत भाव में मानव वृत्ति


दोनों तत्व है प्रकृति में


दोनों भाव मानव प्रवृत्ति में || -3


 


 हे पार्थ :- 


 


पृथ्वी को प्रभव मान


जल को जीवन कारण


गगन को शून्य जान 


वायु को प्राण धारण


अग्नि को तेज मान


अहं विनाश कारण


मन को स्वार्थ जनित 


बुद्धि को दुख निवारण || -4


 


मैं हूं तू है तू है मैं हूं 


तू जग में है मैं जगती हूं 


खोल रहा हूं भेद सारे 


सुन ले "पार्थ" तू मेरे प्यारे ||-5


 


मैं ही जग का प्रभव


मैं ही जग की प्रलय हूं 


मैं ही जग का मूल कारण


मैं ही जगती की लय हूं


है नहीं कारण कोई दूजा 


मैं ही कारण मैं ही बजह हूं ||-6


 


जिस सूत्र से जगत बंधा है


उसका धागा भी मैं हूं 


मोती वन जो तुम पिरे हो


वही कृष्ण राधा भी मैं हूं ||-7


 


सुन पार्थ तू मेरे प्यारे


सूर्य चंद्र की ज्योति मैं हूं 


जल तरल में रस भी मैं हूं


वेदों में ओमकार भी मैं हूं ||-8


 


मैं ही मान हूं 


मैं ही मर्यादा 


मैं ही यश 


मैं ही अपयश हूं 


पर भक्तों के 


परबस हूं || -9


 


गूंजता शब्द आकाश में 


विरह गोपियों के रास में 


हे "पार्थ" 


मैं तुझ में वीर्य तत्व हूं 


मैं ही तेरा पुरुषत्व हूं


धरा से आती गंन्ध मैं हूं 


पुष्पों से निकलती सुगंध मैं हूं 


अग्नि में उसका तेज मैं हूं 


बहती हवा का वेग मैं हूं ||-10


 


मैं पल घड़ी और समय हूं 


मैं ही सनातन और विषय हूं


मैं ही बुद्धि चंचल मन हूं 


मैं ही कारण जीवन मरण हूं


मैं ही सत हूं मैं ही गत हूं


मैं ही विचार में ही मत हूं ||-11


 


मैं वीरों का सामर्थ हूं 


और कामियों का काम


धर्मशास्त्र सब मुझसे


हे पार्थ मुझे पहचान ||-12


 


 


वही प्रभु शब्द हैं 


वही गीता ज्ञान है 


मैं बीके एक प्रचारक हूं


यह ज्ञान तो गंगा समान है ||


 


"ॐ श्री कृष्ण शरणम प्रपद्ए मम् नमः"


 


 


 डॉ बीके शर्मा


 उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


संजय जैन

दर्द को समझो


 


किसी के दर्द को जब, 


तुम अपना दर्द समझोगें।


मरी हुई इंसानियत को, जिंदा कर पाओगें।


और अपने अंदर तुम,


तभी इंसान को पाओगें।


और मनुष्य होने का,


फर्ज तुम निभा पाओगें।।


 


नहीं काटती अब उम्र,


इस तरह के माहौल में।


घुटन होती है अब, 


इस तरह के माहौल में।


जहाँ कोई किसी पर,


नहीं करता विश्वास अब।


इसलिए नहीं जीना चाहता, 


इस कलयुग में।।


 


किये थे कुछ अच्छे कर्म,


तभी मनुष्य पर्याय मिला।


फिर से सदगति पाने को


करना पड़ेगा अच्छे कर्म।


तभी अच्छी मुक्ति हमें


मिल पाएगी इस जीवन से।


और फिर से हम मनुष्य, 


जन्म को पा पाएंगे।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ0 रामबली मिश्र

मेरी अभिनव मधुशाला


 


बहुत पुरातन अभिनव उतना,है मेरा पावन प्याला ,,


चिर स्थिर प्रिय सदा सामयिक,चिर सुरभित मेरी हाला,,


चिर प्रासंगिक सुखद अद्यतन,खड़ा आज मेरा साकी,,


अति आनन्दी अन्तहीन है,मेरी अभिनव मधुशाला।


 


लोकातीत परम सुखदायक,आकर्षक मोहक प्याला,,


मधु पराग वासन्तिक पुष्पों ,से निर्मित मेरी हाला,,


दिव्य भावना से अभिप्रेरित,प्रीति दानकर्त्ता साकी,,


मधुर मोहिनी सकल विश्व की,,मेरी अभिनव मधुशाला।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 रामबली मिश्र

चलते जाओ।


चरैवेति का पाठ पधओ।।


 


पढ़ते जाओ।


शिक्षा का मतलब बतलाओ।।


 


करते जाओ।


कर्मवाद का अर्थ बताओ।।


 


कदम बढ़ाओ।


चलने का अंदाज सिखओ।।


 


नहीं रुलाओ ।


हँसने की तरकीब बताओ।।


 


हँसो हँसाओ।


मनमोहक माहौल बनाओ।।


 


चलो चलाओ।


गति की पहिया सदा घुमाओ।।


 


बसो बसाओ।


सुन्दर बस्ती सदा सजाओ।।


 


पाठ पढ़ाओ।


सच्चाई की राह दिखाओ।।


 


सही कमओ।


मेहनतकश की बात बताओ।।


 


सीख सिखओ।


सबको सुन्दर मनुज बनाओ।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

परम पिता वो एक ही


 


मात-पिता सबका वही, 


                       है वो पालनहार।


जिसने ये दुनिया रची,


                     करो उसी से प्यार।


 


ख़ुदा कहो चाहे उसे,


                  या कह लो भगवान।


परमपिता वो एक ही,


                  रखे सभी का ध्यान।


 


जैसे सूरज एक ही,  


                     देता हमें प्रकाश। 


वैसे मालिक एक पर,


                   दिखे नहीं आकाश।


 


पालन पोषण वो करे, 


                       करे वही संहार। 


निराकार जिसको कहे, 


                        ये सारा संसार।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

अब भाग कॅरोना भाग।


 


कल कॅरोना से दूर से मुलाकात हो गई।


बस सामने सामने आंखों


आँखों में बात हो गई।।


कॅरोना बोला आयो गले मिलो, हाथ तो मिलायो।


मैंने कहा कि कहानी सब,


यह समाप्त हो गई।।


कॅरोना बोला बड़े ही, चालाक सयाने लगते हो।


जानते नहीं मेरे पास, जीवाणु विषाणु वाइरस है।।


तुम्हारे पास क्या है।


मैंने भी कह दिया कि,


मेरे पास मास्क,सैनिटाइजर, साबुन, अंगोछा, टोपी और दस्ताने भी हैं।


तुझे भगाने के और बहाने भी हैं।।


हमेशा सतर्क सावधान रहता हूँ।


स्वस्थ खानपान में ही मेरा


विश्वास है।।


रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, मेरे लिए बहुत खास है।।


काढ़ा, हर्बल,तुलसी,लौंग, इलायची का, सेवन नित करता हूँ।


प्रकृति से खूब निकटता रखता हूँ।।


व्यायाम योग ,मेरे जीवन का हिस्सा हैं।


यह सब रोज़, मेरे जीवन का किस्सा है।।


कॅरोना सुन, बकरे की माँ कब खैर मनायेगी।


एक दिन तेरी शामत ,तो जरूर आयेगी।


हर देश के कॅरोना योद्धा ,तुझे ढूंढ रहे हैं।


एन्टी बॉडी ,प्लाज्मा दान वाले भी हो रहे तैयार हैं।


तेरे लिए वैक्सीन बनाने को भी खूब होशियार हैं।।


खत्म पहले करने हमें सब तेरे यार है।


पी पी ई किट ,फेस शील्ड, हैंड वाश का खूब निर्माण हो रहा है।


लॉक डाउन खुल गया व्यापार हो रहा है।।


हमारी संस्कृति जीवन शैली खान पान की प्रकृति बहुत अलग है।


तुझे अधिक समय यह रास नहीं आयेगी।।


तेरी दाल ज्यादा दिन गल नहीं पायेगी।


तेरे अनुकूल वातावरण नही है यहाँ।।


तेरा ठिकाना है किसी और जहाँ।


बोरिया बिस्तर बांध और रुखसत हो जा।।


कॅरोना जा जा जा।


कॅरोना जा जा जा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


विनय साग़र जायसवाल

हमें शमा-ए -उल्फ़त जलानी पड़ेगी


अंधेरों की गर्दन झुकानी पड़ेगी


 


ख़ताएं जो हम करते आये हैं अब तक


कहीं उसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी


 


 कभी मेरी क़ुर्बत में था चैन तेरा


कहानी वो क्या अब भुलानी पड़ेगी


 


नदी तीर दोनों कभी बैठते थे 


वो तस्वीर क्या फिर बनानी पड़ेगी


 


ख़बर प्यार करने से पहले कहाँ थी


 हमें हाँ में हाँ ही मिलानी पड़ेगी


गिरह-


ज़रूरत यही आज के वक़्त की है


मुहब्बत दिलों में उगानी पड़ेगी


 


वफ़ादार साग़र यूँ लिख्खा है उसको 


 जफ़ा उसकी हर इक छुपानी पड़ेगी


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली


नूतन लाल साहू

राम नाम ही सार है


सुमिरन कर ले, निशदिन राम नाम


हर दिन शुभ ही शुभ होगा


है घट घट के वासी,सुख के सागर है


ताप संताप मिटाने वाला,सबका दुःख हरता है


विश्वास कर भक्त प्रहलाद सा,वे बल के धाम है


प्रभु राम के दिव्य भजन से,बहुत आंनद मिलता है


सुमिरन कर ले, निशदिन राम नाम


हर दिन शुभ ही शुभ होगा


सब संपति तेरी, यही रहेगी


भाई बंधु कुटुंब कबीला


पाप पुण्य में कोई,सहभागी नहीं रहेगा


राम नाम अनमोल रतन है


जो जायेगा,संग में तेरा


सुमिरन कर ले, निशदिन राम नाम


हर दिन शुभ ही शुभ होगा


लख चौरासी भोग के आया


बड़े भाग मानुष तन पाया है


जिसने तुम्हे जन्म दिया है


उसका नाम,क्यों भुल रहा है


एक दिन ऐसा होगा बंदे


यमराज लेने को आयेगा


पूछेंगे हिसाब तेरा,पाप पुण्य का


तब तू क्या बतलायेगा


सुमिरन कर ले, निशदिन राम नाम


हर दिन शुभ ही शुभ होगा


कौड़ी को तो,खूब संभाला


लाल रतन क्यों छोड़ रहा है


छोड़ वृथा,अभिमान तू बंदे


अवसर बीता जा रहा है


चार दिनों का मेला है,जग


उड़ जायेगा,ये हंस अकेला


राम नाम को पतवार बना लेे


भवसागर पार हो जायेगा


सुमिरन कर ले, निशदिन राम नाम


हर दिन शुभ ही शुभ होगा


नूतन लाल साहू


सुनील कुमार गुप्ता

तन-मन रहता बेचैन


"मिले सम्मान इतना जग में,


साथी उपजे न अभिमान।


अपनो संग जीवन-पथ पर,


फिर बना रहे स्वाभिमान।।


इतना रखना ध्यान साथी,


अपनत्व का न हो अपमान।


पग-पग पर फूल खिले साथी,


अपनत्व को मिले सम्मान।।


सद् कर्मो संग जग में साथी,


मिलता है-मन को चैन।


स्वार्थ की धरती पर साथी,


तन-मन रहता बेचैन।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-5


 


हाँकहिं डींग देवता सबहीं।


जब जुधि-भूमिहिं बाहर रहहीं।।


    कहहिं बीर सबहीं अपुनै को।


    जब नहिं आस लराई तिन्हको।।


का करिहहिं बनबासी संकर।


बिषनू जे एकांत निरंतर ।।


    अल्पबीर्य इंद्रहिं बस नाहीं।


     ब्रह्म तपस्वी अपि डरि जाहीं।।


तदपि न करिअ उपेछा तिन्हकर।


रहहिं सत्रु जग सत्रुहिं बनकर।।


     हम सभ नाथ सुरच्छा करबै।


     जड़ उखाड़ि रिपुन्ह कै फेकबै।।


इंद्री-दमन सदा हितकारी।


सो रिपु-दलन अहहि सुखकारी।।


    सभ सुर कै जड़ बिष्नू आहीं।


    रहइ सनातन धरमहिं पाहीं।।


धरम सनातन कै जड़ बेदा।


गऊ-तपस्या-द्विजहिं अभेदा।।


     जग्य-दच्छिना औरउ दाना।


      अहहिं सनातन धरम-बिधाना।।


हम सभ करब नास यहि सबकर।


ब्रह्मन-बेद--तपस्या-गउ कर ।।


      ब्रह्मन-गऊ-तपस्या-बेदा।


      श्रद्धा-दया व सत्य अभेदा।।


मन-निग्रह अरु इंद्री-दमना।


जग्य-तितिच्छा बिषनुहिं बपुना।


     असुर-सत्रु अरु सुर कै स्वामी।


      भोजराज सुनु, बिष्नुहिं नामी।।


पर ऊ रहइ गुफा के अंदर।


उहइ अहइ जड़ ब्रह्मा-संकर।।


     तासु मृत्यु कै एक उपाया।


     ऋषि-मुनि कै जब होय सफाया।।


कंसइ दंभी-सत्यानासी।


भ्रष्ट-बुद्धि अरु धरम-बिनासी।।


     कंसहिं सचिव कंस तें बढ़कर।


     देहिं सलाह घृनित सभ मिलकर।।


हिंसा-प्रेमी राच्छस सबहीं।


नृप-आयसु पा मारन चलहीं।।


      संत पुरुष जे रहहिं सुधर्मी।


      मारैं तिनहिं उ सबहिं कुकर्मी।।


रजोगुनी रह प्रकृति असुर कै।


तमोगुनी रह चिंतहिं तिनहिं कै।।


   उचित न अनुचित समुझहिं असुरा।


   तिनहिं के सिर जनु कालहि पसरा।।


बिबिध रूप धरि इत-उत फिरहीं।


इरिषा-जलन संत सँग रखहीं।।


दोहा-करइ अनादर संत जे,कबहुँ न सुख ते पाहिं।


        संपति-आयुहि-धर्म-जसु, खोवहिं जग पछिताहिं।।


                       डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-6


 


मुनि अगस्त्य धाइ प्रभु मिलहीं।


कुसलइ छेमु पूछि पुनि कहहीं।।


     हे प्रभु रामइ कृपा-निकेता।


     तुम्हरो दरस परम सुख देता।।


सुनि मुनि-बचन राम मुस्काने।


प्रनमहिं सानुज मुनि-सम्माने।।


    दइ असीष कुंभज तब कहऊ।


    मम हिय प्रभु सानुज-सिय रहऊ।।


प्रभु दुख-भंजन,कृपा-निकेतन।


बिनु प्रभु-कृपा न जग जड़-चेतन।।


     राम-प्रकास रहहि तिहुँ लोका।


     नाम सुमिरि जग भवहि असोका।


राम-नाम जग जे जन जपहीं।


भव-सागर झट ते नर तिरहीं।।


    जाको मुहँ प्रभु-नाम न आवा।


     ताकर जनम बिरथ होइ जावा।।


ऋषि-मुनि,सुर-जोगी अरु ध्यानी।


बेद-सास्त्र-पाठी अरु ग्यानी ।।


    सुमिरन सबहिं करैं दिन-राती।


    पा प्रभु-दरस जुड़ावैं छाती।।


तब रघुबर अगस्त्य तें कहहीं।


बिदित आपु हम काहें अवहीं।।


    हे मुनि नाथ आपु बड़ ग्यानी।


    काल-चक्र-गति सभ पहिचानी।।


चाहहुँ मैं राच्छस-कुल नासा।


मों बताउ कहँ करीं निवासा।।


    जहँ रहि मुक्त करउँ मैं धरती।


    असुर-अतंक-अनल जे जरती।।


करउँ नास मैं ऋषि-मुनि-द्रोही।


जप-तप,धरम-करम-बिद्रोही।।


    मुनि मुस्काइ कहे मृदु बानी।


     धामहिं एक नाम मैं जानी ।।


पंचबटी तिसु नाम मनोरम।


हरहु साप तहँ रहि मुनि गौतम।।


    पंचबटी दंडक बन माहीं।


    सापित मुनि गौतम की ताहीं।।


जाइ तहाँ प्रभु करउ निवासा।


मारउ असुरन्ह मुनि जे त्रासा।।


    दंडक बन गोदावरि-तीरा।


    रहन लगे प्रभु छाइ कुटीरा।।


दोहा-मिले जटायू सन प्रभू,वहि बन करत निवास।


        खग-मृग अरु बन-जीव सभ,प्रभु सँग रहहिं उलास।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


आरती पांडे इंदौर 

आरती


पाटनीपुरा चौराहा इंदौर 


मो..7566821772


 


आलेख दिमागी-आजादी   


                                                 लोग कहते हैं हम आजाद हैं,पर सोच तो आज भी बंदिशों मैं है। लोग कहते हैं 21वीं सदी का भारत हैं ,सदी तो बदली पर भारत नहीं। लोग कहते हैं सब आनलाइन हैं पर विचार तो आज भी आफलाइन हैं। हम आजाद भारत मैं 200 साल की गुलामी के बाद सांस तो आजादी की ले रहे हैं पर सोच आजादी की नहीं हैं। सोच, विचार, और मानसिकता से हम आज भी गुलाम हैं ।जिस भारत को आजाद कराने के लिए अनेकों भारतीय एकजुट हुए. थे आज वो एकजुटता देश से क्या भारत के हर घरों से गायब हैं । भारत की आन- बान- शान उसकी बेटियां होती थीं ,पर आज वहीं मासूम बेटियां घरों मैं भी असुरक्षित हैं।हम अंग्रेजों से आजाद हुए पर अंग्रेजी तरीकों से नहीं। आज देश का 18.साल का बच्चा सिगरेट, बीयर पीता हैं इसे आधुनिकता का नाम देता हैं । आज बच्चा हिंदी नहीं बोल पाता हैं ,और अपने को हिंदुस्तानी कहता हैं।आज की युवा पीढी अपने माता- पिता को वृद्धाआश्चम छोड़ कर आती हैं, और अपने को भारत का लाल कहती हैं।यदि हम वाकई भारतीय हैं और भारतीय होने का दावा करते हैं तो पुनः जरूरत हैं भारतीयता के उन पुराने मापदंडों को अपनाने की ,आज पुनः आवश्यकता हैं कि देश की आन -बान -शान के लिए हम फिर से गांधी, भगतसिंह, बाल गंगाधर तिलक बने ।सही मायनों मैं आजादी को समझे, और समझाये और एक स्वस्थ कुशल ,कोरोना मुक्त भारत के निर्माण मैं अपना योगदान दे।


संजय जैन

अकेलापन


तेरे प्यार का मुझको, 


यदि मिले जाए आसरा।


तो जिंदगी हंसकर के,  


गुजर जाएगी मेरी।


और अंधेरे दिल में, 


रोशनी हो जाएगी।


और अकेलापन मेरा,  


दूर हो जाएगा।।


 


तुझे देख कर दिल,


धड़कने लगा है।


बुझे हुए चिराग,


फिर से जल उठे।


कुछ तो बात है तुममें,


जो दिलकी धड़कन हो।


और फिरसे जीने की,


तुम ही किरन हो।।


 


दिलों का मिलना भी, 


एक इत्तफाक ही तो है।


तुमसे प्यार होना भी,


एक इत्तफाक ही तो है।


तभी तुम बार बार मेरे,  


सपनो में आते जाते हो।


और मेरे अकेलापन को,


दूर कर जाते हो।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


निशा अतुल्य

हिन्दी 


आज ढूंढती


स्वयं में स्वयं 


कहाँ है 


विकास ।


 


भाषा 


मातृ तुम्हारी


क्यों स्वीकार्य नही


कोई मुझे


बताएगा ।


 


साप्ताहिक


कार्यक्रम इतिश्री


मना कर पखवाड़ा


पल्ला मत


झाड़िये ।


 


छंदों


की परिभाषा


नवरसों से भरी


अलंकृत हो 


सजी ।


 


हिन्दी


प्रसार प्रचार


नही एक दिन 


जीवन में


उतारिए ।


 


हिन्दी 


हमारा आत्मसम्मान


अटल की पहचान


अंतरराष्ट्रीय बढ़ाया 


मान ।


 


हमें


अपनाना होगा


सम्मान दिलाना होगा


बना कर 


मातृभाषा ।


 


हिन्दी


सदा महान


जीवन मन प्राण


अंतर्मन मन 


बैठाइए ।


 


स्वरचित 


निशा अतुल्य


सुनीता असीम

तंगदिल कितने ये चहरे हो गए।


बस उदासी के ही पहरे हो गए।


*****


है बड़ा गुमसुम बशर हर आज तो।


जो निशाँ हल्के थे गहरे हो गए।


*****


कान होते हैं दिवारों के सुना।


आदमी लेकिन हैं बहरे हो गए।


*****


जो किया करते थे बातें प्यार की।


वक्त बीता वो भी बूढ़े हो गए।


*****


जो सरल लगते रहे थे रास्ते।


क्यूं बुढ़ापे में वो टेढ़े हो गए।


*****


सुनीता असीम


सुनील कुमार गुप्ता

पल भर का प्यार


 


पल भर का प्यार पाने को,


तरसता रहा -


मन हर बार।


बढ़ती कटुता और घुटन से ही,


टूटे संबंध और-


टूटे घर बार।


मन की मन में रहती जो,


कैसे-होते जीवन में-


सपने साकार।


व्यापार हो जब संबंधों का,


क्या-करेगा जीवन में-


पल भर का प्यार।


समझ ले साथी जीवन मे,


पल भर का प्यार ही-


बनता जीवन आधार।


अपनत्व होता जीवन में,


अपनो का तभी -


होता सत्कार।


पल भर का प्यार मिले,


जीवन सपने-


ले नव आकार।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


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