डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-1


 


कहहिं कथा सुकदेव मुनी जी।


सुनहिं परिच्छित मुदितय चित जी।।


     बाबा नंद उदार-मनस्वी।


     मनसा-वाचा लगहिं तपस्वी।।


पुत्र-जनम सुनि हृदय-हुलासा।


भए अनंदित भरे उलासा।।


     बस्त्राभूषन बाबा नंदहिं।


     धारन कीन्हा अति आनंदहिं।।


ब्रह्मन-पंडित-बेद क ग्यानी।


स्वस्तिक बचन कीन्ह निज बानी।।


     सुरहिं-पितर बिधिवत पुजवावा।


      जात-करम निज तनय करावा।।


दुइ लख गऊ-बसन-आभूषन।


कीन्हा नंद दान द्विज-ब्रह्मन।।


      कंचन बसन-रतन-आच्छादित।


      सात तिलहिं गिरि दानहिं समुचित।।


सुद्धीकरन-गरभ-संस्कारा।


देइ क कीन्हा उपक्रम सारा।।


      सुद्धि आतमा होवै तबहीं।


       होय आत्म-ग्यान मन जबहीं।।


मागध-सूत-बंदिजन-ब्रह्मन।


करहिं स्तुती हरषित चित-मन।।


     बजै दुंदुभी ब्रज चहुँ-ओरा।


      भेरी बाजै गायन-सोरा ।।


घर-आँगन औरउ चौबारा।


बाहर-भीतर औरु दुवारा।।


     साफ-सफाई, जल छिड़कावा।


      करि सभ जन निज गृह महँकावा।।


पल्लव-माला,बंदनवारा।


धुजा-पताका गृहहिं सवाँरा।।


     बच्छ-गऊ-बृषभहिं सभ सोभित।


     हल्दी-तेल-लेप मन मोहित ।।


मोर-पंख-गेरू अरु माला।


कनक-जँजीरहिं बसन निराला।।


दोहा-गऊ-बच्छ अरु बृषभ सभ,सजि-सजि रह रम्भाय।


        घुघुरू-घंटी गर बजे,उछरत-कूदत जाँय ।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


राजेंद्र रायपुरी

लक्ष्मी बाई फिर आई है, 


                  ले करके अपनी तलवार।


सबक सिखाने उनको जिनकी,


                 जीभ बनी कैंची की धार।


 


नहीं डरी वो नहीं डरेगी,


               गीदड़ भभकी मिले हजार।


है क्षमता उसमें सहने की,


                  चाहे लाख करो तुम वार। 


 


दिखा दिया है दमखम अपना,


                 पहुॅ॑च गई शेरों के द्वार।


आओ जिसमें दम है मारो,


               दिया सभी को है ललकार।


 


झाॅ॑क रहे हैं बॅ॑गले सारे।


               जिनने भरी थी कल हुॅ॑कार।


झेंप मिटाने लेकिन अपनी, 


                  करें घरौंदे पर वे वार।


 


भले ज़ुल्म ढा लो तुम लाखों,


                डालेगी ना वो हथियार।


फौलादी हैं सदा रहेंगे,


                उसके अपने सोच-विचार।


 


दुहराना इतिहास उसे है।


              सदी बीस में अबकी बार।


जैसे सत्तावन में उसने,


                 लहराई अपनी तलवार।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 निर्मला शर्मा

पूर्वजों को नमन


 


श्रद्धावनत होकर करें,


पितृ पक्ष में श्राद्ध।


कुल के जनक हमारे,


करो कृपा अगाध।


 


शीश झुका वन्दन करूँ,


नमन मैं बारम्बार।


पितृ देव आराधन करूँ,


दीजै आशीष अपार।


 


जीवन सुखमय हो मेरा,


आये न कोई बाधा ।


वंश दीप जलता रहे,


यश वृद्धि हो सदा।


 


कुलदीपक जिनके संसार में,


पूर्वजों का नाम बढ़ाते हैं।


सुख समृद्धि बरसे उस घर में,


वे आशीष सभी का पाते हैं।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

मन-वचन और कर्म से यहाँ,


संग हो सत्य का वास।


तभी तो जीवन जग में यहाँ,


साथी छायेगा मधुमास।।


साधना-अराधना संग ही,


होता जीवन में प्रभु वास।


प्रेम-सेवा-त्याग संग ही,


फिर सुख का होता आभास।।


परमार्थ संग जीवन-पथ पर,


फिर मिले मन को विश्वास।


सत्य बने आधार जीवन का,


साथी छाये न अविश्वास।।


सुनील कुमार गुप्ता


नूतन लाल साहू

सबसे प्यारा हिंदी भाषा


तुझसे बना है,हिन्दुस्तान


तू है,भारत माता की शान


हिंदी भाषा,तुझे शत शत प्रणाम


वेद शास्त्र पुराण महाभारत और रामायण


तुझसे से ही बना है,जग का विधि विधान


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई


सबको है,हिंदी का ज्ञान


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


अनेकता में एकता का नारा


तेरा ही देन हैं


स्वतंत्रता की तू,लड़ी लड़ाई


सब भाषाओं की, तू माता है


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


ज्ञान के भरे भंडार हो


नही किसी का गुलाम हो


जन जन की भाषा हो


साक्षात तीरथ धाम हो


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


तुलसीदास का दोहा और


कबीरदास की साखी हो


साहित्य की स्याही, हो तुम ही


तेरी महिमा न्यारी है


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


हम फूल कली है,महफ़िल कलिया के


तुझसे से ही,हम सब आगे बढ़ा है


भारत माता की माथे की बिंदी


वंदन अभिनंदन है


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

बच्चों ऐसे ही तुमको दिन बिताना है।


मात पिता का नाम रोशन कराना है।।


 


सुबह सवेरे ही उठना है।


प्रणाम सबको करना है।।


दांत साफ करने अच्छे से।


फिर बैठ कर पढ़ना है।।


 


समय से स्कूल जाना है।


पढ़ाई में मन लगाना है।।


शिक्षकों का मानना कहना।


समय से ही घर आना है।।


 


माँ पिता की बात माननी है।


सच की आदत ही डालनी है।।


घर के काम में है हाथ बटाना।


गलती समझनी सुधारनी है।।


 


पास ही बाहर खेलने जाना है।


वहां न लड़ना न लडवाना है।।


घर आकर धोना है हाथ मुँह।


फिर खूब चबा कर खाना है।।


 


समय से स्कूलकार्य पूरा करना है।


नकल से तो हमेशा ही डरना है।।


बहाना नहीं बनाना है कभी कोई।


गलती की तो फल खुद भरना है।।


 


तुम माँ बाप के आँख के तारे हो।


उनके लिए सारे जग से न्यारे हो।।


कभी न दुख उनको देना तुम।


सारी दुनिया में सबसे प्यारे हो।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


मोब 9897071046


               8218685464


एस के कपूर श्री हंस

आज की मणिकर्णिका।


 


तुझमें सबको रानी लक्ष्मी बाई


का अक्स दिखता है।


वही अंदाज़, तेवर और अलग


ही रश्क दिखता है।।


शीशे से पत्थर को तोड़ने का


हौंसला कहाँ से पाया।


आग से खेलने का वैसा ही


नाजो नक्श दिखता है।।


 


तूने सारे के सारे भरम ही


तोड़ कर रख दिये हैं।


नारी नहींअबला कि सब रुख


मोड़ कर रख दिये हैं।।


खूब लड़ी मर्दानी की ललकार


तेरी धार में है लगती।


सारे समीकरण ही उल्टे तूने


जोड़ कर रख दिये हैं।।


 


हाथ जल जायेगा मशाल से


तुझको डर नहीं लगता।


तू जा नहीं पाये कहीं कोई भी


ऐसा सफर नहीं लगता।।


हौंसला ऐसा कि जिसकी और


कोई सानी मिसाल नहीं।


तुझे गिरा पाये अब ऐसा कोई


शजर नहीं लगता।।


 


वीरांगना रणचंडी दुर्गा स्वरूपा


तेरा अंदाज़ लगता है।


तेरा तौर तरीका सबसे अलग


कुछ खास लगता है।।


कहाँ जाकर रुकेगी तेरी छलांग


पता नहीं है किसीको।


तेरी हिम्मत का हर छोर दूर


खूब बेहिसाब लगता है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


डॉ0 रामबली मिश्र

तपस्या


 


घोर परिश्रम से मत डरना।


सतत तपस्या करते रहना।।


 


सदा कर्म को पूजा समझो।


कर्मनिष्ठ बन चलते रहना।।


 


सुंदर कर्मों का फल मीठा।


पर निष्कामी बनकर रहना।।


 


फल की इच्छा त्याग रे वंदे।


त्याग भाव में जीते रहना।।


 


समझ त्याग को नित्य तपस्या।


आजीवन तप करते रहना।।


 


नियमित करो परिश्रम प्रियवर।


श्रम को गले लगाते रहना।।


 


तन को मन को सदा तपाओ।


हर्षित होकर तपते रहना।।


 


तन -मन का प्रयोग अधिकाधिक।


स्व में दिव्य विचरते रहना। ।


 


करो तपस्या सदा अकेला।


अन्तेवासी बनकर रहना।।


 


उठते रहना व्योम क्षितिज तक।


आत्मतोष तक बढ़ते रहना।।


 


आत्मतोष ही तप का फल है।


आत्मकेन्द्र पर चलते रहना।।


 


अपने में ही खो कर देखो।


परम भाव में स्थिर रहना।।


 


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

हिंदी-भाषा के बिना,कभी न हो कल्याण।


आदर इसका सब करें,यही देश का प्राण।।


      हिंदी-भाषा विश्व की,भाषा एक प्रधान।


      हिंदी में अभिव्यक्ति से,मिलती है पहचान।।


अपनी बोली बोल कर,तन-मन प्रमुदित होय।


मीरा-तुलसी-सूर ने,दिया बीज है बोय ।।


      करें प्रतिज्ञा आज हम,भारत-भाषा हेतु।


       करें पार हम ज्ञान-सर,चढ़ निज भाषा-सेतु।।


हो विकसित समुचित यहाँ, हिंदी-भाषा-ज्ञान।


होवे लेखन-कथन में,हिंदी का गुण-गान ।।


        चाहे हो इंग्लैंड भी,वा अमरीका देश।


         हिंदी का डंका बजे,चहुँ-दिशि,देश-विदेश।।


भारतेंदु कविश्रेष्ठ ने,दिया चेतना खोल।


हमें कराया स्मरण,निज भाषा अनमोल।।


        उनके प्रति इस देश के,हैं कृतज्ञ सब लोग।


         निज भाषा का दे दिया,सुंदर-अनुपम भोग।।


हिंदी भाषा का हमें,करना है उत्थान।


इससे बढ़कर है नहीं,कोई कर्म महान।।


        गौरव-गरिमा-शान है,यह अपना सम्मान।


        रहें अमर अब विश्व में, हिंदी-हिंदुस्तान।।


                         © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919447372


संजय जैन

हिंदी ही आधार है


 


जब सीखा था बोलना, 


और बोला था माँ।


जो लिखा जाता है, 


हिंदी में ही सदा।।


 


गुरु ईश्वर की प्रार्थना, 


और भक्ति के गीत।


सबके सब गाये जाते, 


हिंदी में ही सदा।


इसलिए तो हिंदी, 


बन गई राष्ट्र भाषा।। 


 


प्रेम प्रीत के छंद, 


और खुशी के गीत।


गाये जाते हिंदी में, 


प्रेमिकाओ के लिए।


रस बरसाते युगल गीत, 


सभी को बहुत भाते।


और ताजा कर देते, 


उन पुरानी यादें।।


 


याद करो मीरा सूर, 


और करो रसखान को।


हिंदी के गीतों से बना, 


गये इतिहास को।


युगों से गाते आ रहे 


उनके हिंदी गीत।


गाने और सुनने से, 


मंत्र मुध हो जाते।।


 


मेरा भी आधार है, 


मातृ भाषा हिंदी ।


जिसके कारण मुझे, 


मिली अब तक ख्याति।


इसलिए माँ भारती को, 


सदा नमन करता हूँ।


और संजय अपने गीतों को


हिंदी में ही लिखता है।


हिंदी में ही लिखता है।।


 


मातृभाषा हिंदी को,


शत शत वंदन में करता हूँ।


और अपना जीवन हिंदी


को समर्पित करता हूँ।


हिंदी को समर्पण करता हूँ।।


 


हिंदी दिवस के पूर्व दिवस पर मेरी ये कविता आप सभी के लिए समर्पित है।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


13/09/2020


शिवांगी मिश्रा

क्यूँ नहीं पनप पा रही हिंदी ?


 


हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और साथ ही साथ हिंदी ही हमारी मातृभाषा भी है ।आज हिंदी का विस्तार हिंदी के प्रयोग की दर घटती ही जा रही है ।यह केवल एक समस्या नहीं वरन विचारणीय तथ्य भी है ।हम अपनी भाषा को त्याग कर विदेशी भाषा को अपना रहे हैं ।जिससे हमारी भाषा का स्तर घटता जा रहा है । हिंदी कहीं न कहीं अपना अस्तित्व खोती जा रही है ।हिंदी का खोना हिंदी का प्रचलन खत्म होना यह सब हमारी संस्कृति पर प्रभाव डाल कर हमारी नई पीढ़ी को वंचित कर रहा है ।हिंदी का हिन्द में प्रचलन ना होना,हिंदी का प्रयोग कम होना हिंदी का विस्तार ना होने का मुख्य कारण यह भी है कि हमनें कहीं ना कहीं धीरे-धीरे विदेशी भाषाओं का प्रचलन उसका प्रयोग प्रारम्भ कर दिया है जो हमारी हिंदी व हम पर हावी है । विदेशी रहन सहन को उसकी बोलचाल को अपनाकर स्वयं को उसमें ढालने का प्रयास किया है ।हम हिन्द के वासी आर्यपुत्र आज अंग्रेजी के रंग में रंगने को इतने आतुर हैं कि हम यह देख भी नहीं पा रहे कि कहीं ना कहीं विदेशी चोंचलों में पड़कर फिरंगी वेशभूषा ,बोलचाल भाषा को अपनाने से हम अपनी हिंदी,अपनी संस्कृति अपनी पहचान को खोते जा रहे हैं ।हमने ही परभाषी बोलचाल को अपने जीवन अपने क्रियाकलापों व रोजमर्रा के बोलचाल में इतनी अहमियत दे दी है कि आज हिन्द देश में अंग्रेजी का बोलबाला है और हिंदी का अस्तित्व खोता जा रहा है ।कारण यह है कि हमने अपनी पीढ़ी को हिंदी में शिक्षा ना देकर अंग्रेजी की तरफ आकर्षित कर अंग्रेजी सीखने को प्रेरित किया ।अपनी मातृभाषा को छोड़ कर अंग्रेजी की तरफ भागे । आज हम अपनी ही मातृभाषा को बोलने व अपनाने में झिझक,शर्म महसूस करते हैं वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी के प्रयोग से गर्व की अनुभूति करते हैं ।अंग्रेजी बोलने में हम स्वयं को शिक्षित ,योग्य,गुणवान व समाज मे बड़े लोगों में उठने बैठने लायक समझकर उनसे अपनी तुलना करने लगते हैं ।यही कारण है कि हमारी हिंदी का अस्तित्व खोता जा रहा है,शुध्द हिंदी का ज्ञान नहीं किसीको,हिंदी पनप नहीं पा रही है उसका विस्तार नहीं हो रहा और हम हिन्द वासी फिरंगी होते जा रहे हैं ।


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


सुषमा दिक्षित शुक्ला

सच्ची श्राद्ध


 


जीते जी सेवा किया नहीं,


 बस मरने पर श्राद्ध मनाते हैं।


 


 ऐसी संताने हैं कुल कलंक ,


मृत पुरखों को बहलाते हैं ।


 


 यदि देनी सच्ची श्रद्धांजलि ,


है प्यारे पुरखों को अपने ।


 


 तब धर्म करो सत्कर्म करो ,


अरु पूर्ण करो उनके सपने ।


 


यह वन्दन है अभिनंदन है ,


यह ही पुरखों का है तर्पण ।


 


उनकी स्मृतियों को हृदय लगा,


 श्रद्धा के सुमन करो अर्पण ।


 


तब पूर्वज भी होंगे प्रसन्न ,


पा सच्चे प्रेम समर्पण को ।


 


नित देंगे ढेरों शुभाशीष,


फिर देख प्रेम शुचि अर्पण को ।


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


सुषमा दीक्षित शुक्ला

हिन्दी से तुम प्यार करो 


 


हिंदुस्तान के रहने वालों ,


हिंदी से तुम प्यार करो ।


 


ये पहचान है मां भारत की,


 हिंदी का सत्कार करो ।


 


हिंदी के विद्वानों ने तो ,


परचम जग में फहराए।


 


 संस्कार के सारे पन्ने,


 हिंदी से ही हैं पाए ।


 


 देवनागरी लिपि में अपनी,


 छुपा हुआ अपनापन है ।


 


अपनी प्यारी भाषा हिंदी,


 भारत मां का दरपन है ।


 


हिंदुस्तानी होकर तुमने ,


यदि इसका अपमान किया ।


 


तो फिर समझो भारत वालों ,


खुद का ही नुकसान किया।


 


 हिंदुस्तान के रहने वालों,


 हिंदी से तुम प्यार करो ।


 


यह पहचान है माँ भारत की ,


हिंदी का सत्कार करो ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


सुरेश बाबू मिश्रा साहित्य भूषण "चाफेकर बंधु शहादत"

बलिदानी फूल


 


स्वतन्त्रता से पूर्व के दिन थे। पूना में भयंकर प्लेग फैला हुआ था। प्रतिदिन सैैकड़ों लोग तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे थे। परन्तु अंग्रेजी सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं था। उसका दमन चक्र और अधिक क्रूर होता जा रहा था। सरकार लोगों में फैल रही स्वतन्त्रता की चिंगारी को दबा देना चाहती थी।


ऐसे ही समय में नदी के किनारे बने एक वीरान मन्दिर के खंडहर में आज एक बैठक हो रही थी। बैठक में आए लोग ज़मीन पर अर्द्ध गोलाकार में बैठे थे। तभी पीछे से एक व्यक्ति आकर कोई सूचना देता है। लोगों में कानाफूसी शुरू हो जाती है-“दद्दा जी आ गए।“ सभी लोग इस नौजवान क्रान्तिकारी को देखने को बेहद उत्सुक थे।


दद्दा जी दो लोगों के साथ आए और मध्य में बैठ गए। बैठक शुरू हो गयी। बैठक में सम्मिलित अधिकांश नौजवान बेहद जोश में थे। सभी अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध अपना रोष व्यक्त कर रहे थे।


दद्दा जी ने बताया सारे देश में अंग्रेजी सरकार निर्दोष भारतीयों पर अत्याचार कर रही है। इसलिए हम नौजवानों ने देश को आजाद कराने का बीड़ा उठाया है। यहाँ प्लेग से हजारों परिवार उजड़ चुके और सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही। प्लेग की रोकथाम करने के बजाय अंग्रेज अधिकारी रैंड लोगों के घर में जबरन घुस-घुस कर उनके घरों की तलाशी ले रहे थे। निर्दोष भारतीयों को तरह-तरह से तंग कर रहे थे। प्लेग तो एक बहाना था, वास्तव में सरकार क्रान्तिकारी गतिविधियों से भयभीत है और उन्हें दबा देना चाहती है। परन्तु हम उसकी चालों को कामयाब नहीं होने देंगे। दल ने क्रूर और अत्याचारी अंग्रेज अधिकारी रैंड को मारने का फैसला कर लिया है। तुममें से जो इस काम के लिए तैयार हो, वह हाथ उठाए।


सभा में उपस्थिति अधिकांष लोगों ने अपना-अपना हाथ उठा दिया।


दद्दा जी ने समझाया-“क्रान्ति की राह बहुत कठिन है। इस राह में काँटे ही काँटे हैं। जिसे जीवन का मोह न हो वही इस मार्ग पर आगे आए।“


बैठक में मौजूद बाल कृष्ण चाफेकर ने कहा- “मैं इस बैठक में सबसे छोटा हूँ। मैं चाहता हूँ कि मुझे यह काम सौंपकर भारत माँ की सेवा करने का अवसर दिया जाए। दामोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर दोनों सगे भाई थे। अंत में दोनों के अनुरोध को स्वीकार कर उन्हें रैंड को मारने का दायित्व सौंपा गया।


इस बैठक से कुछ दिन बाद की बात है। बाईस जून का दिन था। उस दिन सारे देश में महारानी विक्टोरिया का जन्मदिन बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा था। देश की राजधानी दिल्ली में एक विशाल समारोह का आयोजन किया गया था। समारोह में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए देश के अन्य भागों से बड़ी संख्या में पुलिस बल को दिल्ली बुलाया गया था। पूना से भी काफी संख्या में पुलिस के अधिकारी और सिपाही दिल्ली गये हुए थे।


भयानक महामारी के बावजूद पूना में इस उपलक्ष्य में भव्य समारोह का आयोजन किया गया। अंग्रेज सिपाहियों को इस खुशी के मौके पर सरकार द्वारा मुफ्त शराब पीने को दी गई। सभी पुलिस वाले शराब पीने में मस्त थे।


रात के लगभग 11 बजे का वक्त था। समारोह अभी चल रहा था। उसी समय दो नौजवान समारोह स्थल पर आये। समारोह में इक्का-दुक्का ही पुलिस वाले दिखाई पड़ रहे थे और वे भी बातें करने में मशगूल थे। इसलिए दोनों नवयुवक निर्विघ्न अंदर पहुंच गए।


अंदर अंग्रेज अधिकारी रैंड बैठा हुआ लोगों को अपने कारनामे सुना रहा था। लोग हंस रहे थे। तभी दोनों नवयुवकों ने अपने रिवाल्वर निकाल लिए। वे बोले-“निर्दोष भारतीयों के रक्त से अपने हाथ रंगने वाले कुत्ते आज तुझे तेरी राज भक्ति का मज़ा चखाया जाएगा।“ और उन दोनों ने रैंड को गोली मार दी। गोली चलते ही भगदड़ मच गई। “पकड़ो-पकड़ो“ की आवाजें़ आने लगीं। परन्तु जब तक शराब में गाफिल पुलिस वाले आएं तब तक दोनों नवयुवक, बालकृष्ण और दामोदर चाफेकर वहाँ से फरार हो गए।


रैंड की हत्या से ब्रिटिश पुलिस चैकन्नी हो गई। सारे शहर की नाकेबंदी कर दी गई और अपराधियों की सरगर्मी से तलाश की जाने लगी। पूरे शहर में डोंढी पिटवाई जा रही थी कि जो रैंड के हत्यारों को पकड़वाएगा उसे बीस हज़ार रुपये का ईनाम दिया जाएगा।


एक जगह हरिशंकर और गणेश शंकर नामक दो नौजवान बैठे ताश खेल रहे थे। वे दोनों बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर के मित्र थे। उन्होंने भी इस घोषणा को सुना। गणेश शंकर बीस हजार रुपये की बात सुनकर लालच में आ गया। वह बोला-“मैं बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर को पकड़वा कर ईनाम के बीस हजार रुपये प्राप्त करूँगा।“ हरिशंकर ने कहा “तुम बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर के मित्र हो। क्या मित्र का यही धर्म होता है ? और फिर तुमने भी तो उस दिन बैठक में देश के लिए कार्य करने की शपथ ली थी। अब क्या तुम बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर को पकड़वाकर देश के साथ गद्दारी करोगे ?“ हरिशंकर के समझाने-बुझाने का गणेश शंकर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह दोनों को पकड़वाने की योजना बनाता हुआ घर की ओर चल दिया।


दूसरे दिन वह पुलिस अधिकारी बु्रइन के पास पहुँचा है। उसने बताया-“मिस्टर रैंड की हत्या बालकृष्ण चाफेकर नामक दो भाइयों ने की है। मैं उन दोनों को अच्छी तरह जानता हूँ और उन्हें गिरफ्तार करा सकता हूँ।“ पूरी तहकीकात करने के बाद ब्रुइन पुलिस को लेकर गणेश शंकर के साथ दामोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर के घर पहुँच गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गणेश शंकर को सरकारी गवाह बना लिया गया।


ब्रिटिश न्याय की चक्की चल पड़ी। उस समय अंग्रेजों की अदालतों से भारतीय क्रान्तिकारियों को एक ही चीज मिलती थी- सज़ा-ए-मौत। रैंड की हत्या का केस अदालत में शुरू हो गया। दोनों अभियुक्तों ने अपना अभियोग स्वीकार कर लिया।


आज अदालत में मिस्टर रैंड की हत्या के केस का फैसला होने वाला था। मुकद्दमे का फैसला सुनने के लिए आए लोगों से अदालत खचाखच भरी थी।


अंग्रेज जज ने मुल्जिम दामोदर चाफेकर से बयान देने को कहा।


दामोदर चाफेकर ने अपने बयान में कहा-“अंग्रेज सरकार प्लेग के बहाने हमारी राष्ट्रीय गतिविधियों को दवा देना चाहती थी। अत्याचारी अंग्रेज अधिकारी रैंड अपने क्रूर कारनामों से हमारी क्रान्तिकारी गतिविधियों, राष्ट्रीय, भावना, संस्कृति, धर्म तथा हमारी आत्मा को कुचल देना चाहता था। अतः मैंने गोली मार कर उस नर-पिशाच को उसकी राज-भक्ति का उचित पुरस्कार दे दिया। मुझे उसको गोली मारने का खेद नहीं, गर्व है। भारत माँ शीघ्र ही स्वतन्त्र होगी।“


दामोदर चाफेकर के बयान से अदालत में भारी उत्तेजना फैल गई थी।


जज ने दूसरे अभियुक्त बालकृष्ण चाफेकर से बयान देने का आदेश दिया।


बालकृष्ण चाफेकर ने अपने बयान में कहा-“मैं अपने ऊपर लगाये गए रैंड की हत्या के आरोप को सहर्ष स्वीकार करता हूँ। जिस प्रकार मार्ग में चलता हुआ पथिक अपने मार्ग मंे आने वाले काँटों को हटा देता है, उसी तरह स्वतन्त्रता के मार्ग में आने वाले रैंड रूपी काँटे को हमने हटा दिया है। दमन और अत्याचारों के द्वारा अब स्वतन्त्रता को चिंगारी को अधिक दिनों तक नहीं दबाया जा सकता। एक दिन यह चिंगारी भयानक आग का रूप धारण करेगी। जिसमें जलकर यह ब्रिटिश साम्राज्य भस्म हो जाएगा।“


पुलिस अधिकारी ने सरकारी गवाह के रूप में गणेश शंकर को अदालत में पेश किया। गणेश शंकर ने बयान दिया कि -“मी लार्ड, दामोदर चाफेकर तथा बालकृष्ण चाफेकर ने मेरे सामने ही मिस्टर रैंड को गोली.....“


मगर उसका बयान अधूरा ही रह गया, अचानक अदालत में-“भारत माता की जय“ और “इंक्लाब ज़िन्दाबाद“ के नारे लगाते हुए गोपाल कृष्ण चाफेकर ने प्रवेश किया, और रिवाल्वर से मुखबिर गणेश शंकर को गोली मार दी।


अदालत में भारी अफरा-तफरी मच गई। जज ने गोपाल कृष्ण चाफेकर को फौरन हिरासत में लेने का आदेश दिया। अदालत में मौजूद पुलिस अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।


बालकृष्ण चाफेकर और दामोदर चाफेकर दोनों अपने छोटे भाई गोपाल कृष्ण चाफेकर के इस साहसिक कार्य से हैरान रह गये।


बालकृष्ण ने गोपाल कृष्ण से पूछा, “भइया, अंधी और बूढ़ी माँ की सेवा के लिए तुम्हीं तो रह गए थे, तुम यहाँ क्यों चले आए ?“


गोपाल कृष्ण बोला-“मैं माँ से आज्ञा लेकर आया हूँ भइया। जब एक ही डाली के दो फूल माँ भारती के चरणों में न्योछावर हो रहे हों तो तीसरा फूल उस सौभाग्य से वंचित क्यों रहे ?“


गोपाल कृष्ण से जज ने बयान देने को कहा। गोपाल कृष्ण बोला, “पैसे के लिए अपनी आत्मा और मित्रता को बेचने वाले गणेश शंकर नामक गद्दार को मैं यह बताना चाहता था कि क्रान्तिकारी वीरों से गद्दारी करने का अंजाम क्या होता है। “मी लार्ड! मैंने यहाँ आकर उसे इसलिए गोली मारी जिससे अंग्रेज अधिकारी यह देख लें कि भारत माँ की कोख से गणेश शंकर जैसे मुखबिर नहीं देश पर प्राण न्योछावर करने वाले नवयुवक जन्म लेते हैं। मैं गणेश शंकर की हत्या के आरोप को सहर्ष स्वीकार करता हूँ।“


तीन अभियुक्तों के बयानों के बाद जज ने अपना फैसला सुनाया-“सारे सबूतों एवं आरोपों पर विचार करने के बाद अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची कि मिस्टर रैंड की हत्या दामोदर चाफेकर एवं बालकृष्ण चाफेकर तथा गणेश शंकर की हत्या गोपाल कृष्ण चाफेकर ने की है। तीनों अभियुक्तों ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खुद भी इकबाल किया है। अतः अदालत उन्हें हत्या और राजद्रोह का मुजरिम करार देती है और तीनों अभियुक्तों को भारतीय दण्ड सहिता की धारा 302 के तहत सज़ा-ए-मौत देती है।“ इसी के साथ अदालत बर्खास्त हो गई। फांसी देने से पूर्व अंग्रेज अधिकारी ने उन तीनों से उनकी आखिरी इच्छा पूछी। दामोदर चाफेकर बोला-“मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ।“


अंग्रेज अधिकारी बोला-“आज तुम लोगों का आखिरी दिन है, कम से कम मरने से पूर्व तो शांति की बातें करो।“


बालकृष्ण चाफेकर ने कहा-“मैं शाति नहीं क्रान्ति चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि एक ऐसी आग लगे जिसमें यह ब्रिटिश साम्राज्य और भारत माँ की परतंत्रता जलकर भस्म हो जाए।“


अंग्रेज अधिकारी ने घबरा कर घड़ी देखी और फांसी लगाने की आज्ञा दी। तीनों भाई एक दूसरे से गले मिले और हाथ में गीता लिए हुए फांसी के फंदे पर झूल गए। भारत माँ की वेदी पर स्वतंत्रता की आस लिए हुए तीनों अधखिले फूल बलिदान हो गये।


 



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सुनीता असीम

मेरे पीछे मेरी बीबी पड़ी है।


लेगी गहने इसी जिद पे अड़ी है।


***†


न खाना और पानी भी मुझे दे।


जिधर देखूँ उधर सर पर खड़ी है।


****


न सोने दे न रोने दे मुझे वो।


मुझे भेजे वो लानत भी बड़ी है।


****


बचूं कैसे कोई मुझको बताए।


वो मुझको धूप सी लगती कड़ी है।


****


 कि मैंने मान ली अब मांग उसकी।


 उसे दे दी अंगूठी नग जड़ी है।


****


सुनीता असीम


डॉ0 निर्मला शर्मा 

शिक्षा


शिक्षा की हम अलख जगायें,


ज्ञान को इस जग में फैलायें।


 


हर घर रोशन हो विद्या से,


अज्ञान का तिमिर मिटे जहाँ से,


शिक्षा को हथियार बनायें।


शिक्षा की--------------------।


 


जीवन को सार्थक बनायें,


विज्ञान बोध साहित्य रचायें,


शिक्षा अक्षर ज्योति जलायें।


शिक्षा की---------------------।


 


शिक्षा से उन्नति द्वार को खोलें,


जीवन पथ की बाधाएँ तोड़ें,


सभ्यता, संस्कारों की नींव को डालें।


शिक्षा की----------------------।


 


बालक-बालिका का भेद मिटायें,


समाज मे समान अधिकार दिलायें,


शिक्षा को निज कर्तव्य बनायें।


शिक्षा की-----------------------।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

एक न एक दिन


 


एक न एक दिन तो,


जीवन में साथी-


सबको ही जाना होगा।


घोर अंधेरी रात के बाद,


साथी जग में-


सूरज को आना ही होगा।


कब- तक छायेगी गम की बदली,


इन्द्रधनुषी रंगों को-


साथी जीवन में गहराना होगा।


बीत चुकी काल रात्री,


नव भोर में मुस्कराना-


और जीवन सुखद बनाना होगा।


भूलकर अपना-बेगाना,


सबका साथ-


निभाना होगा।


एक न एक दिन तो,


जीवन में साथी-


सबको ही जाना होगा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


संदीप कुमार विश्नोई

पहन मुखौटा देखो , करते हैं बात कुछ , 


ये नकाब इनके तो , मुख से उतारिए। 


 


राम नाम जपते हैं , मन में छुपा है पाप , 


हाथ में उठा के डंडा , इनको सुधारिए। 


 


खा गए हैं संस्कार , भारत के ढोंगी सारे , 


नव्य पीढ़ी के लिए भी , कुछ तो विचारिए। 


 


जाया मत करो इन , ढोंगियों के पास कोई , 


इनके इमान को जी , आप ललकारिए। 


 


संदीप कुमार विश्नोई दुतारांवाली तह0 अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब


डॉ0 रामबली मिश्र

आत्मीयता


 


आत्म भाव अतिशय मधु सुंदर ।


लहराता है प्रेम समंदर ।।


 


अन्तर्मुखी बाह्य अनुरागी।


शांत स्वभाव सहज शिवशंकर।।


 


देखत खुद में सकल सृष्टि को।


ब्रह्मरूपमय ज्ञान धुरंधर।।


 


आत्मीयता अति प्रिय शीतल।


सुखद अमृता सभ्य धरोहर।।


 


सदा बूँद में सिंधु बहत है।


आत्मरूपमय दिव्य सरोवर।।


 


एक तत्व में बृहद तत्व है।


एकरूपमय आत्म मनोहर।।


 


परम अथाह चाह समरसता।


रसाकार संसार सुमंतर ।।


 


मस्त फकीरी अमर जीवनी।


संतहृदय शुचि भाव स्वतंतर ।।


 


बँधा विश्व है आत्म केन्द्र से।


बाह्य शून्यमय आत्म गजेन्दर।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ बीके शर्मा

तत्वज्ञान विषय


-----------------------------


त्याग संशय जान मुझको 


लगा चित्त पहचान मुझको


जानकर ज्ञान मुझको


मानकर विज्ञान मुझको 


हो कर मेरे परायण 


और फिर मान मुझको || -1


 


शेष नहीं कुछ भी मुझसे


हूं ज्ञान मैं विज्ञान मैं 


है विभूति बल जो तुझमें 


उस तत्व की भी जान मैं


हूं पराजय का भी कारण 


हूं जीत का सम्मान मैं || -2


 


अब जान अपरा अचेतन


भूत भाव परा चेतन


पृथ्वी जल अग्नि गगन


वायु बुद्धि अहंकार मन 


अष्ट तत्व में है प्रकृति 


भूत भाव में मानव वृत्ति


दोनों तत्व है प्रकृति में


दोनों भाव मानव प्रवृत्ति में || -3


 


 हे पार्थ :- 


 


पृथ्वी को प्रभव मान


जल को जीवन कारण


गगन को शून्य जान 


वायु को प्राण धारण


अग्नि को तेज मान


अहं विनाश कारण


मन को स्वार्थ जनित 


बुद्धि को दुख निवारण || -4


 


मैं हूं तू है तू है मैं हूं 


तू जग में है मैं जगती हूं 


खोल रहा हूं भेद सारे 


सुन ले "पार्थ" तू मेरे प्यारे ||-5


 


मैं ही जग का प्रभव


मैं ही जग की प्रलय हूं 


मैं ही जग का मूल कारण


मैं ही जगती की लय हूं


है नहीं कारण कोई दूजा 


मैं ही कारण मैं ही बजह हूं ||-6


 


जिस सूत्र से जगत बंधा है


उसका धागा भी मैं हूं 


मोती वन जो तुम पिरे हो


वही कृष्ण राधा भी मैं हूं ||-7


 


सुन पार्थ तू मेरे प्यारे


सूर्य चंद्र की ज्योति मैं हूं 


जल तरल में रस भी मैं हूं


वेदों में ओमकार भी मैं हूं ||-8


 


मैं ही मान हूं 


मैं ही मर्यादा 


मैं ही यश 


मैं ही अपयश हूं 


पर भक्तों के 


परबस हूं || -9


 


गूंजता शब्द आकाश में 


विरह गोपियों के रास में 


हे "पार्थ" 


मैं तुझ में वीर्य तत्व हूं 


मैं ही तेरा पुरुषत्व हूं


धरा से आती गंन्ध मैं हूं 


पुष्पों से निकलती सुगंध मैं हूं 


अग्नि में उसका तेज मैं हूं 


बहती हवा का वेग मैं हूं ||-10


 


मैं पल घड़ी और समय हूं 


मैं ही सनातन और विषय हूं


मैं ही बुद्धि चंचल मन हूं 


मैं ही कारण जीवन मरण हूं


मैं ही सत हूं मैं ही गत हूं


मैं ही विचार में ही मत हूं ||-11


 


मैं वीरों का सामर्थ हूं 


और कामियों का काम


धर्मशास्त्र सब मुझसे


हे पार्थ मुझे पहचान ||-12


 


 


वही प्रभु शब्द हैं 


वही गीता ज्ञान है 


मैं बीके एक प्रचारक हूं


यह ज्ञान तो गंगा समान है ||


 


"ॐ श्री कृष्ण शरणम प्रपद्ए मम् नमः"


 


 


 डॉ बीके शर्मा


 उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


संजय जैन

दर्द को समझो


 


किसी के दर्द को जब, 


तुम अपना दर्द समझोगें।


मरी हुई इंसानियत को, जिंदा कर पाओगें।


और अपने अंदर तुम,


तभी इंसान को पाओगें।


और मनुष्य होने का,


फर्ज तुम निभा पाओगें।।


 


नहीं काटती अब उम्र,


इस तरह के माहौल में।


घुटन होती है अब, 


इस तरह के माहौल में।


जहाँ कोई किसी पर,


नहीं करता विश्वास अब।


इसलिए नहीं जीना चाहता, 


इस कलयुग में।।


 


किये थे कुछ अच्छे कर्म,


तभी मनुष्य पर्याय मिला।


फिर से सदगति पाने को


करना पड़ेगा अच्छे कर्म।


तभी अच्छी मुक्ति हमें


मिल पाएगी इस जीवन से।


और फिर से हम मनुष्य, 


जन्म को पा पाएंगे।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ0 रामबली मिश्र

मेरी अभिनव मधुशाला


 


बहुत पुरातन अभिनव उतना,है मेरा पावन प्याला ,,


चिर स्थिर प्रिय सदा सामयिक,चिर सुरभित मेरी हाला,,


चिर प्रासंगिक सुखद अद्यतन,खड़ा आज मेरा साकी,,


अति आनन्दी अन्तहीन है,मेरी अभिनव मधुशाला।


 


लोकातीत परम सुखदायक,आकर्षक मोहक प्याला,,


मधु पराग वासन्तिक पुष्पों ,से निर्मित मेरी हाला,,


दिव्य भावना से अभिप्रेरित,प्रीति दानकर्त्ता साकी,,


मधुर मोहिनी सकल विश्व की,,मेरी अभिनव मधुशाला।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 रामबली मिश्र

चलते जाओ।


चरैवेति का पाठ पधओ।।


 


पढ़ते जाओ।


शिक्षा का मतलब बतलाओ।।


 


करते जाओ।


कर्मवाद का अर्थ बताओ।।


 


कदम बढ़ाओ।


चलने का अंदाज सिखओ।।


 


नहीं रुलाओ ।


हँसने की तरकीब बताओ।।


 


हँसो हँसाओ।


मनमोहक माहौल बनाओ।।


 


चलो चलाओ।


गति की पहिया सदा घुमाओ।।


 


बसो बसाओ।


सुन्दर बस्ती सदा सजाओ।।


 


पाठ पढ़ाओ।


सच्चाई की राह दिखाओ।।


 


सही कमओ।


मेहनतकश की बात बताओ।।


 


सीख सिखओ।


सबको सुन्दर मनुज बनाओ।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

परम पिता वो एक ही


 


मात-पिता सबका वही, 


                       है वो पालनहार।


जिसने ये दुनिया रची,


                     करो उसी से प्यार।


 


ख़ुदा कहो चाहे उसे,


                  या कह लो भगवान।


परमपिता वो एक ही,


                  रखे सभी का ध्यान।


 


जैसे सूरज एक ही,  


                     देता हमें प्रकाश। 


वैसे मालिक एक पर,


                   दिखे नहीं आकाश।


 


पालन पोषण वो करे, 


                       करे वही संहार। 


निराकार जिसको कहे, 


                        ये सारा संसार।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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