शुभा शुक्ला मिश्रा अधर

वर्णमाला प्रदीप छंद


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अखिल अवनि पर हिंदीभाषी,


साधक अमित अपार हैं।


आओ आज करा दूँ परिचय,


कैसे वर्ण-विचार हैं।।


 


*अ* -अद्भुत अनुपम है यह दुनिया,


*आ* -आते मन में भाव हैं।


*इ* -इसीलिए इस भव-सागर में,


*ई* -ईश्वर सुख की नाव हैं।।


 


*उ* -उड़ा दंभ में जो सब भूला,


*ऊ* -ऊपर सबसे जानता।


*ऋ* -ऋद्धि-सिद्धि सुख से वंचित पर,


*ए* -एक नहीं वह मानता।।


 


*ऐ* -ऐसा व्याकुल मन लेकर वो,


*ओ* -ओझल है प्रभु बोलता।


*औ* -और कहे मैं जग का स्वामी,


*अं* -अंकुर मुझसे डोलता।।


 


*अः* -अः हतभागी कब समझेगा,


*क* -कण-कण में भगवान हैं।


*ख* -खनक रहीं जो खुशियाँ जग में,


*ग* -गति यति सँग लयमान हैं।।


 


*घ* -घटता-बढ़ता सूर्य चन्द्र भी,


*च* -चहके उज्ज्वल कांति से।


         -चलता है संसार सर्वदा,


*छ* -छमछम करता शांति से।।


 


*ज* -जड़ता जब तक मन के अंदर,


*झ* -झरना बहे न प्रीति का।


*ट* -टकरायें सुविचार परस्पर,


*ठ* -ठहरे सागर नीति का।।


 


*ड* -डरें किसी से कभी नहीं हम,


*ढ* -ढलें प्रेम-विश्वास में।


*त* -तनिक समझ लें हिय की भाषा,


*थ* -थकें न,आयें पास में।।


 


*द* -दया-त्याग जैसे गुण पनपें,


*ध* -धन-धीरज अनमोल हो।


*न* -नतमस्तक हो सच को मानें,


*प* -परम सत्य हर बोल हो।।


 


*फ* -फलीभूत हो तब अभिलाषा,


*ब* -बनें तभी सब काम भी।


*भ* -भय कैसा जब वरदहस्त हो,


*म* -महादेव का नाम भी।।


 


*य* -यही बताते धर्म सभी को,


*र* -रहना मिलकर साथ में।


*ल* -लड़ने से क्या मिल जायेगी?


*व* -वसुधा तुमको हाथ में।।


 


*श* -शहद सरस हो जाये जीवन,


*ष* -षड़यंत्रों से दूर हो।


*स* -समझो-सीखो सहज सरलता,


*ह* -हठ से मत भरपूर हो।।


 


*क्ष* -क्षमा करो देखो मत अवगुण,


*त्र* -त्रस्त समस्त विकार हों।


*ज्ञ* -ज्ञान-दीप हों दिव्य 'अधर' पर,


*श्र* -श्रद्धा सदृश विचार हों।।


 


👉 *ङं,ञ,ण,ड़,ढ़*


आगे आने से कतराते,


बैठे हैं मुख मोड़ के।


अधिक हठीले ङं ञ् ण ड़ ढ़ ये,


रहते पर मन जोड़ के।।


 


   शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'❤️✍️


ऋचा मिश्रा रोली

हिंदी में ही पली बढ़ी हूं हिंदी है आधार


माँ हिंदी से विनती मेरी हो सपना साकार


नित नित इनकी करू मैं सेवा इनके ही गुण गावू


हिंदी में ही जियू हमेशा हिंदी में मर जावू


सकल विश्व मे बसती हिंदी यही हमारी शान है


हिंदी मेरी मात्र की भाषा और हम सबकी जान है


हिंदी में ही संस्कार है हिंदी ही संसार है


भूले गर तुम माँ हिंदी को तो दुनिया बेकार है


सदाचार व सर्वश्रेष्ठता हिंदी ही सिखलाती है


नैतिकता भी रखना अंदर माँ हिंदी बतलाती है


आओ मिल कर नमन करे हम माँ हिंदी की जान को 


हमे बचाये रखना होगा माँ हिंदी की शान को 


 


ऋचा मिश्रा रोली


 श्रावस्ती बलरामपुर 


 उत्तर प्रदेश


एस के कपूर श्री हंस

हिन्दी में भरा रस माधुर्य


कवित्व और मल्हार है।


हिन्दी में भाव और संवेदना


अभिव्यक्ति भी अपार है।।


हिन्दी में ज्ञान और विज्ञान


दर्शन का अद्धभुत समावेश।


हिन्दी भारत का विश्व को


एक अनमोल उपहार है।।


*2।।।।।।।।।।*


बस एक हिन्दी दिवस नहीं


हर दिन हो हिन्दी का दिन।


विज्ञान की भाषा भी हिन्दी


ज्ञान तो है नहीं हिन्दी बिन।।


मातृ भाषा , राज भाषा हिन्दी


है उच्च सम्मान की अधिकारी।


तभी राष्ट्र करेगा सच्ची उन्नति


कार्यभाषा हिंदी हो हर पलछिन।।


*3।।।।।।।।*


मातृ भाषा का दमन नहीं


हमें करना होगा नमन।


पुरातन मूल्य संस्कारों की


ओर करना होगा गमन।।


बनेगी तभी भारत वाटिका


अनुपम अतुल्य अद्धभुत।


जब देश में हर ओर बिखरा   


होगा हिन्दी का चमन।।


*4।।।।।।।*


हिन्दी का सम्मान ही तो


देश का गौरव गान बनेगा।


मातृ भाषा के उच्च पद से


ही राष्ट्र का मान बढेगा।।


हिन्दी तभी बन पायेगी


भारत मस्तक की बिन्दी।


जब राष्ट्र भाषा का ये रंग


हर किसी मन पर चढ़ेगा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


डॉ0 रामबली मिश्र

हिंदी को ही दिल में रखना।


हिंदी को सम्मानित करना।।


 


सारा काम करो हिंदी में।


हिंदी में ही लिखते रहना।।


 


लिखो कहानी या कविताएँ।


हिंदी में ही रचते रहना।।


 


हिंदी है साहित्य मनोरम।


इसमें ही नित रमते रहना।।


 


हिंदी भाषा सीख बोलना।


हिंदी को ही पढ़ते रहना।।


 


हिंदी संस्कृत की बेटी है।


पालन-पोषण करते रहना।।


 


बहुत सरल प्रिय सहज मधुर है।


जी हिंदी में अति खुश रहना।।


 


वैश्विक भाव प्रधान सरस यह ।


हिंदी रस को पीते रहना।।


 


हिंदी में मानवता रहती।


मानव बनकर जीते रहना।।


 


बहुत लचीली लोचदार यह।


हिंदी सीख प्रेम से रहना।।


 


राष्ट्रवादिनी हिंदी अनुपम।


राष्ट्रगान हिंदी में कहना।।


 


हिंदी से ही राष्ट्र भलाई।


हिंदी की ही सेवा करना।।


 


हिंदी से ही भारत माता।


भारत माँ की रक्षा करना।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


कबीर ऋषि सिद्धार्थी

मैं सिर्फ एक विचार हूँ


 


मैं कोई हिन्दी का जानकार नहीं हूँ!


न ही कोई लेखक और कवि


और न ही मैं, कोई साहित्यकार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ।


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


हाँ! मुझे नफ़रत है ऐसे लोगों से,


जो इंसान को इंसान से दूर करते हैं!


मुझे शिकायत है उन सत्ताधारियों से


जो भूल जाते हैं कि वो कौन हैं?


मैं नेता या सरकार नहीं हूँ!


और न ही कोई ओहदेदार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ।


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ।


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं कोई मीडिया या पत्रकार नहीं हूँ!


न ही किसी के हाथों की कठपुतली का तार हूँ!


और न ही कोई अख़बार हूँ!


मैं एक वफ़ादार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं उनका आज विरोधी भी हूँ!


जो लोगों को जाति-धर्म का पाठ पढ़ाकर


समाज को तोड़ना जानते हैं!


सच में वो अपना स्वार्थसिद्धि चाहते हैं।


मैं न ही किसी राजा का दरबार हूँ!


और न ही कोई चाटूकार हूँ!


मैं इंसानी धर्म का प्रचार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ।


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं कोई हिन्दी का जानकार नहीं हूँ!


न ही कोई लेखक और कवि


और न ही मैं, कोई साहित्यकार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


 


―कबीर ऋषि सिद्धार्थी


सम्पर्क सूत्र- 9415911010, 9455911010


पता- पण्डितपुरम प्रतापनगर बांसी, सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश


पिन कोड- 272153


ईमेल- krs09415911010@gmail.com


नूतन लाल साहू

हिंदी दिवस


अश्विन माह, पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


याद कर लें,साहित्य जगत के


सूरज चांद सितारों को


एक दिन तुम भी मुस्कुराओगे


असफलता एक चुनौती है


इसे तुम स्वीकार कर लो


जब तक सफल न हो तुम


नींद और चैन को त्याग दो


संघर्ष के मैदान को छोड़कर


तुम कहीं मत भागो


क्योंकि कुछ किये,बिना


जय जयकार, नहीं होती


और कोशिश करने वालों की


कभी हार नहीं होती है


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


लाख दलदल हो


अपना पैर, जमाये रखिये


अगर हाथ खाली हो तो


हाथ ऊपर उठाये रखिये


कौन कहता है कि,चलनी में पानी नहीं रुकता


सिर्फ और सिर्फ


बर्फ जमने तक,हौसला बनाये रखिये


सीख लो,छोटी सी चिड़िया से


तिनका तिनका उठाकर


मजबूत घोसला,बना लेती हैं


तुम तो,ज्ञान का भंडार हो


सफलता एक दिन,कदम चूमेगी


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


भारतवासियों की पहचान है,हिंदी


भारत माता की शान है,हिंदी


हिंदी से हिंदुस्तान बना है


सूरदास तुलसीदास केशवदास और


मीरा निराला,कबीरदास प्रेमचंद को


हिंदी ने ही,महान बना दिया है


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

हिंदी में बिंदी का भैया,


                        रखना हरदम ध्यान। 


वरना हिंदी का होगा, 


                       सच मानो अपमान।


 


"कद" पर बिंदी डाल दिया तो,


                       हो जाएगा "कंद"।


फिर तो सारे लोग कहेंगे,


                    है बिल्कुल मतिमंद।


 


यही हाल है "रग" का भैया,


                       हो जाएगा "रंग"। 


अगर पड़ी बिंदी "जग" पर तो,


                      होनी ही है "जंग"।


 


ऐसे शब्द बहुत हैं भाई,


                       जिनके बदलें अर्थ।


गलत जगह बिंदी मत डालो,


                        होगा बहुत अनर्थ।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

जीवन में


 


अनचाह दर्द जब-जब साथी,


यहाँ समा जाता जीवन में।


घुटन बन रह जाती साथी,


फिर हर चाहत इस तन-मन में।।


सपने तो सपने है-साथी,


कब-सच होते जीवन में?


चल सके सत्य-पथ पर साथी,


चाहत रहती पल-पल मन में।।


बाँट सके यहाँ दर्द मन का,


कोई तो साथी हो जग में।


मिले ख़ुशी अपनों को पल-पल,


ऐसा संग मिले जीवन में।


         सुनील कुमार गुप्ता


डॉ बीके शर्मा 

वक्त के हाथों में तकदीर तो देखो


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हाथों की मिटती लकीर तो देखो 


वक्त के हाथों में तकदीर तो देखो 


 


भूलकर मंजर जब हम चलने लगे 


पैरों को जकड़ती जंजीर तो देखो


 


जख्म ताजा मेरे और भरे भी नहीं 


कि सीने में उतरता तीर तो देखो 


 


भुला दी हमने याद जिनकी जिगर से 


उस बेरहमी को फिर करीब तो देखो 


 


मौत कि हमने उनसे की थी गुजारिश 


ना मिली रहमत में कोई फकीर तो देखो 


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


सुनील कुमार गुप्ता

धन्य मैं माँ तेरी कोख से जन्म लिया,


तेरी शिक्षा और संस्कारो से ही-


माँ तुमने ही यह मान दिलाया।


रूठो न मुझसे माँ अब तुम,


क्षमा करो मेरे अपराधों को-


माँ बस एक बार आ जाओ।


तुम बिन जीवन नहीं मेरा,


लौट कर आ जाओ माँ तुम-


माँ तुमसे कुछ कहना है।


रूठो न बताओ तुम मुझको,


माँ तुम हो कहाँ-


तुम बिन अब नही रहना है।


भूला नहीं हूँ बचपन की बाते,


प्यार भरी वो राते-


माँ तुम्हें याद आती है मेरी।


 


सुनील कुमार गुप्ता


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार अर्चना शुक्ला कानपुर ,मुंबई   


दूरभाष : 9924522633


शिक्षा : परास्नातक(अर्थशास्त्र), परास्नातक (शिक्षाशास्त्र)


व्यवसाय : शिक्षक 


विद्यालय: संत मेरी (इटावा) दो वर्ष 


         संत थॉमस (कानपुर) सोलह वर्ष 


         एसजीवीपी इंटरनेशनल स्कूल(अहमदाबाद) पांच वर्ष 


         दूरदर्शन अवम रंगमंच: तीन वर्ष 


मैं एक शिक्षक, परामर्शदाता,प्रेरक वक्ता, कवयित्री लेखक, दूरदर्शन और रंगमंच कलाकार 


Name : Archana Shukla 


Home town : Kanpur ( UP )


Current place : BKC,Mumbai 


Ph no: 9924522633


Education : MA,M.ed


Profession : Educator


I am an educator, counsellor, motivational speaker, poetess, writer, actor and a Theatre artist.


 


 


        राम जन्मभूमि                


सुनो सुनो भाई सुनो सुनो, सुनो सुनो भाई सुनो सुनो 


आज का दिन है बड़ा महान,राम का घर है पावन धाम||


 


पांच अगस्त की शुभ घड़ी आई अयोध्या में गूंजे शहनाई 


ढोल, नगाड़े,शंख बजे जय-जय सीता राम उद्घोष करे || 


 


 


अयोध्या में छाई बहार ,घर- घर सजे हैं......... बन्दंबार


दीपों की लड़ियों को सजाकर हर्षित मन हैं सब नर नार ||


 


सरयू नदी के भाग्य जगे जगमग जगमग दीप जले 


मने दीवाली आई बहार राम तेरी लीला अपरम्पार ||


 


भूमि पूजन का महूर्त आया,अयोध्या में मंगल छाया


संत समागम से आई बहार घर घर होवे जय जय कार||


 


पावन नदियों से कलश भराए,महासागर से जल मंगवाया  


तीर्थों की मिट्टी को लेकर, पहुंचे सेवक लिए... उदगार ||


 


 


धन्य धन्य हे राम लला अद्भुद ये दरबार सजा 


धूप दीप नैवैध्य सजाकर लड्डून का भोग लगा ||


 


हर्षित नाचें सब नर नार विश्व में छाई ख़ुशी अपार 


सब पर रखना कृपा महान राम लला की जय जयकार ||


 


अभिननदन अभिनभिनदन राम लला का अभिननदन


सवपन हुअ हे अब साकार , हर्षित नाचें सब नर नार ||  


 


 


 सुनो सुनो भाई सुनो सुनो, सुनो सुनो भाई सुनो सुनो 


आज का दिन है बड़ा महान,अयोध्या में छाई बहार ||


 


 


   


 


 


               “ बूँद”


              एक बूँद 


         समेटे है अनगिनत भाव   


        बूँद बूँद से ही भरती गागर 


      बूँद बूँद से ही ..........बनता सागर 


   तप्त मरुस्थल में एक बूँद पानी की चाहत 


प्यार की चाहत में एक बूँद...... प्यार का एहसास 


नवजात को एक बूँद महत्वपूर्ण है जिन्दगी के लिए 


चातक को इन्तजार है बारिश की अप्रितिम बूंदों का 


पलकें खामोश हैं समेटे भावों की बूंदों को आगोश में 


सीप को इन्तजार है उस ओस की....... एक बूँद का जो


       बदलने को बेताब है उसके अस्तित्व को 


सच ही है, हर एक बूँद समेटे है अपने में अलग रंग ,भाव 


        महत्व एवम् अपनी अलग पहचान ||


 


 


 


 


***** आँखों में ****


कितने रंग छुपा रखे हैं माँ 


तुम्हारी आँखों में |


गज़ब का भोलापन और चंचलता है


तुम्हारी आँखों में ||


सूरज जैसा तेज ,चाँद सी शीतलता


तुम्हारी आँखों में |


माँ की ममता का सागर भी छुपा 


तुम्हारी आँखों में ||


प्रियतमा का प्यार और मनुहार 


तुम्हारी आँखों में |


सागर जैसी गहराई और कई राज़ 


तुम्हारी आँखों में ||


मनमोहक ,मनमादक पर ठहराव 


तुम्हारी आँखों मैं|


प्यार से संहार तक कई रंग 


तुम्हारी आँखों में ||


 


 


 


 


 


 


*** शक्ति ****


क्यों मनवा बैचैन रे 


चिंता करिके काया जल गयी 


मिला न मन को चैन रे ||


जो ढूंढें तू बाहर अंदर 


छुपी वो तेरे खुद के अंदर 


खुद को तो पहचान रे ||


झूठी माया झूठे हमदम 


तोड़ के आ जा सारे बंधन 


अपनी शक्ति को पहचान रे ||


तीन खिड़कियाँ सात दरवाजे 


उसके अंदर शक्ति विराजे 


उसको तू पहचान रे ||


 


अर्थ: तीन खिड़कियाँ - तीनों नाड़ियां 


     सात दरवाजे - सातों चक्र 


     शक्ति - कुण्डलिनी


 


 


 


 


 


    **** नारी ****


नारी का आत्ममंथन लिखूँ या 


निःस्वार्थ प्रेम की कथा लिखूँ 


झूठ फरेब की व्यथा लिखूँ 


क्या लिखूँ और क्या छोडूँ मैं ||


बचपन का अहसास लिखूँ या 


नव यौवन का संसार लिखूँ 


परिवर्तन का इतिहास लिखूँ 


क्या लिखूँ और क्या छोडूँ मैं ||


समर्पण ,त्याग की मूर्ति लिखूँ या 


नारी का गौरव पूर्ण अतीत लिखूँ 


कलयुग में उसकी व्यथा लिखूँ 


क्या लिखूँ और क्या छोडूँ मैं ||


डॉ0 रामबली मिश्र

हिंदी का विकास


 


हिंदी में ही बात हो,हिंदी में दिन रात।


हिंदी में सूरज उगें ,हिंदी में हो प्रात।।


 


हिंदी से ही प्रेम कर,हिंदी पर कर गर्व।


हिंदी की प्रिय भीड़ में,हिंदी की बारात।।


 


हिंदी ही त्योहार हो,हिन्दी ही हो पर्व।


बन परंपरा यह करे,मानव की शुरुआत।।


 


हिंदी बनकर मेघ प्रिय,घूमे चारोंओर।


सकल भूमि पर नित करे,अमृत की बरसात।।


 


हिंदी में चिन्तन चले,हिंदी में ही लेख।


हिंदी में कविता खिले,रख हिंदी से नात।।


 


हिंदी मुंशी प्रेम की,जयशंकर की देन।


महादेवियों की यही,हिंदी है शिवरात।।


 


हिंदी को प्रोन्नीत कर,स्पर्श करे आकाश।


 जागो उठ धारण करो ,हिंदी का जेवरात।।


 


फैला दो इस विश्व में,अब हिंदी का जाल।


आये सबकी समझ में,हिंदी की औकात।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-7


 


लछिमन लखि रामहिं इक बारा।


बैठे प्रमुदित मुक्त बिचारा।।


     कहे बिनीत सुनहु जग-स्वामी।


     छमहु मोंहि जदि हो मनमानी।।


मोंहि बतावउ ग्यान-बिरागा।


मया-मोह,आसक्तिहिं-रागा।।


     ताहि समुझि मैं सेवा करऊँ।


     बनि तव चरन-दास मैं रहऊँ।।


थोरे मा प्रभु लखन तें कहहीं।


'तोर-मोर' बस माया अहहीं।।


     माया बसहि सभें जग-जीवहिं।


     इंद्री-सुख-रस मन जे पीवहिं।।


एक रूप जग जानै बिद्या।


दूजा जगत कहाय अबिद्या।।


    बिद्या प्रभु-प्रेरित जग रहही।


    ब्रह्म-ग्यान अतिसय सुख लहही।।


दुष्ट अबिद्या बहु जग-घातक।


पाइ ताहि जीव होय पातक।।


     ग्यानइ रहहि जगत बिनु माना।


    ब्रह्म-रूप सभ महँ पहिचाना।।


रिद्धि-सिद्धि-नवनिधि नहिं भावै।


बैरागी जग उहहि कहावै ।।


     निजइ स्वरूप जीव नहिं जानै।


     नहिं माया ईस्वर पहिचानै।।


धर्महिं बिरति मिलै संसारा।


जोगहिं ग्यान मिलै जग सारा।।


   सुनु मम भ्रात भगति जड़ सुख को।


   बिनु सत्संगहिं मिलै न कहु को ।।


मारग भगति बहुत अनुकूला।


मिलहिं प्रभू बरु जग प्रतिकूला।।


   उपजै नर महँ बिषय-बिरागा।


   प्रानी-प्रभु बिच तब अनुरागा।।


प्रभु प्रति प्रेम भगति नव रूपा।


लीला प्रभु कै रुचिर अनूपा।।


     लहहि जगत सभ संत-प्रेम तें।


     मन-क्रम-बचन-भजन-नेम तें।।


जे प्रभु-गुन गावै सुति-उठि नित।


अश्रु नयन भरि तन-मन पुलकित।।


      तासु हृदय प्रभु बसहिं निरंतर।


      डसै न तेहिं भव-नाग भयंकर।।


काम-क्रोध-मद-लोभ न जाको।


सरल-सुलभ सनेह प्रभु ताको।।


    मन-क्रम-बचन भजन जे करहीं।


    प्रभु-पद-पंकज-प्रेमहिं लहहीं।।


दोहा-गूढ़ ग्यान-गुन सुनि लखन,प्रभु निज मुखहिं बखान।


        नवा सीष छुइ प्रभु-चरन, भे रत जग-कल्यान ।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-1


 


कहहिं कथा सुकदेव मुनी जी।


सुनहिं परिच्छित मुदितय चित जी।।


     बाबा नंद उदार-मनस्वी।


     मनसा-वाचा लगहिं तपस्वी।।


पुत्र-जनम सुनि हृदय-हुलासा।


भए अनंदित भरे उलासा।।


     बस्त्राभूषन बाबा नंदहिं।


     धारन कीन्हा अति आनंदहिं।।


ब्रह्मन-पंडित-बेद क ग्यानी।


स्वस्तिक बचन कीन्ह निज बानी।।


     सुरहिं-पितर बिधिवत पुजवावा।


      जात-करम निज तनय करावा।।


दुइ लख गऊ-बसन-आभूषन।


कीन्हा नंद दान द्विज-ब्रह्मन।।


      कंचन बसन-रतन-आच्छादित।


      सात तिलहिं गिरि दानहिं समुचित।।


सुद्धीकरन-गरभ-संस्कारा।


देइ क कीन्हा उपक्रम सारा।।


      सुद्धि आतमा होवै तबहीं।


       होय आत्म-ग्यान मन जबहीं।।


मागध-सूत-बंदिजन-ब्रह्मन।


करहिं स्तुती हरषित चित-मन।।


     बजै दुंदुभी ब्रज चहुँ-ओरा।


      भेरी बाजै गायन-सोरा ।।


घर-आँगन औरउ चौबारा।


बाहर-भीतर औरु दुवारा।।


     साफ-सफाई, जल छिड़कावा।


      करि सभ जन निज गृह महँकावा।।


पल्लव-माला,बंदनवारा।


धुजा-पताका गृहहिं सवाँरा।।


     बच्छ-गऊ-बृषभहिं सभ सोभित।


     हल्दी-तेल-लेप मन मोहित ।।


मोर-पंख-गेरू अरु माला।


कनक-जँजीरहिं बसन निराला।।


दोहा-गऊ-बच्छ अरु बृषभ सभ,सजि-सजि रह रम्भाय।


        घुघुरू-घंटी गर बजे,उछरत-कूदत जाँय ।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


राजेंद्र रायपुरी

लक्ष्मी बाई फिर आई है, 


                  ले करके अपनी तलवार।


सबक सिखाने उनको जिनकी,


                 जीभ बनी कैंची की धार।


 


नहीं डरी वो नहीं डरेगी,


               गीदड़ भभकी मिले हजार।


है क्षमता उसमें सहने की,


                  चाहे लाख करो तुम वार। 


 


दिखा दिया है दमखम अपना,


                 पहुॅ॑च गई शेरों के द्वार।


आओ जिसमें दम है मारो,


               दिया सभी को है ललकार।


 


झाॅ॑क रहे हैं बॅ॑गले सारे।


               जिनने भरी थी कल हुॅ॑कार।


झेंप मिटाने लेकिन अपनी, 


                  करें घरौंदे पर वे वार।


 


भले ज़ुल्म ढा लो तुम लाखों,


                डालेगी ना वो हथियार।


फौलादी हैं सदा रहेंगे,


                उसके अपने सोच-विचार।


 


दुहराना इतिहास उसे है।


              सदी बीस में अबकी बार।


जैसे सत्तावन में उसने,


                 लहराई अपनी तलवार।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 निर्मला शर्मा

पूर्वजों को नमन


 


श्रद्धावनत होकर करें,


पितृ पक्ष में श्राद्ध।


कुल के जनक हमारे,


करो कृपा अगाध।


 


शीश झुका वन्दन करूँ,


नमन मैं बारम्बार।


पितृ देव आराधन करूँ,


दीजै आशीष अपार।


 


जीवन सुखमय हो मेरा,


आये न कोई बाधा ।


वंश दीप जलता रहे,


यश वृद्धि हो सदा।


 


कुलदीपक जिनके संसार में,


पूर्वजों का नाम बढ़ाते हैं।


सुख समृद्धि बरसे उस घर में,


वे आशीष सभी का पाते हैं।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

मन-वचन और कर्म से यहाँ,


संग हो सत्य का वास।


तभी तो जीवन जग में यहाँ,


साथी छायेगा मधुमास।।


साधना-अराधना संग ही,


होता जीवन में प्रभु वास।


प्रेम-सेवा-त्याग संग ही,


फिर सुख का होता आभास।।


परमार्थ संग जीवन-पथ पर,


फिर मिले मन को विश्वास।


सत्य बने आधार जीवन का,


साथी छाये न अविश्वास।।


सुनील कुमार गुप्ता


नूतन लाल साहू

सबसे प्यारा हिंदी भाषा


तुझसे बना है,हिन्दुस्तान


तू है,भारत माता की शान


हिंदी भाषा,तुझे शत शत प्रणाम


वेद शास्त्र पुराण महाभारत और रामायण


तुझसे से ही बना है,जग का विधि विधान


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई


सबको है,हिंदी का ज्ञान


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


अनेकता में एकता का नारा


तेरा ही देन हैं


स्वतंत्रता की तू,लड़ी लड़ाई


सब भाषाओं की, तू माता है


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


ज्ञान के भरे भंडार हो


नही किसी का गुलाम हो


जन जन की भाषा हो


साक्षात तीरथ धाम हो


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


तुलसीदास का दोहा और


कबीरदास की साखी हो


साहित्य की स्याही, हो तुम ही


तेरी महिमा न्यारी है


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


हम फूल कली है,महफ़िल कलिया के


तुझसे से ही,हम सब आगे बढ़ा है


भारत माता की माथे की बिंदी


वंदन अभिनंदन है


हिंदी भाषा, तुझे शत शत प्रणाम


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

बच्चों ऐसे ही तुमको दिन बिताना है।


मात पिता का नाम रोशन कराना है।।


 


सुबह सवेरे ही उठना है।


प्रणाम सबको करना है।।


दांत साफ करने अच्छे से।


फिर बैठ कर पढ़ना है।।


 


समय से स्कूल जाना है।


पढ़ाई में मन लगाना है।।


शिक्षकों का मानना कहना।


समय से ही घर आना है।।


 


माँ पिता की बात माननी है।


सच की आदत ही डालनी है।।


घर के काम में है हाथ बटाना।


गलती समझनी सुधारनी है।।


 


पास ही बाहर खेलने जाना है।


वहां न लड़ना न लडवाना है।।


घर आकर धोना है हाथ मुँह।


फिर खूब चबा कर खाना है।।


 


समय से स्कूलकार्य पूरा करना है।


नकल से तो हमेशा ही डरना है।।


बहाना नहीं बनाना है कभी कोई।


गलती की तो फल खुद भरना है।।


 


तुम माँ बाप के आँख के तारे हो।


उनके लिए सारे जग से न्यारे हो।।


कभी न दुख उनको देना तुम।


सारी दुनिया में सबसे प्यारे हो।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


मोब 9897071046


               8218685464


एस के कपूर श्री हंस

आज की मणिकर्णिका।


 


तुझमें सबको रानी लक्ष्मी बाई


का अक्स दिखता है।


वही अंदाज़, तेवर और अलग


ही रश्क दिखता है।।


शीशे से पत्थर को तोड़ने का


हौंसला कहाँ से पाया।


आग से खेलने का वैसा ही


नाजो नक्श दिखता है।।


 


तूने सारे के सारे भरम ही


तोड़ कर रख दिये हैं।


नारी नहींअबला कि सब रुख


मोड़ कर रख दिये हैं।।


खूब लड़ी मर्दानी की ललकार


तेरी धार में है लगती।


सारे समीकरण ही उल्टे तूने


जोड़ कर रख दिये हैं।।


 


हाथ जल जायेगा मशाल से


तुझको डर नहीं लगता।


तू जा नहीं पाये कहीं कोई भी


ऐसा सफर नहीं लगता।।


हौंसला ऐसा कि जिसकी और


कोई सानी मिसाल नहीं।


तुझे गिरा पाये अब ऐसा कोई


शजर नहीं लगता।।


 


वीरांगना रणचंडी दुर्गा स्वरूपा


तेरा अंदाज़ लगता है।


तेरा तौर तरीका सबसे अलग


कुछ खास लगता है।।


कहाँ जाकर रुकेगी तेरी छलांग


पता नहीं है किसीको।


तेरी हिम्मत का हर छोर दूर


खूब बेहिसाब लगता है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


डॉ0 रामबली मिश्र

तपस्या


 


घोर परिश्रम से मत डरना।


सतत तपस्या करते रहना।।


 


सदा कर्म को पूजा समझो।


कर्मनिष्ठ बन चलते रहना।।


 


सुंदर कर्मों का फल मीठा।


पर निष्कामी बनकर रहना।।


 


फल की इच्छा त्याग रे वंदे।


त्याग भाव में जीते रहना।।


 


समझ त्याग को नित्य तपस्या।


आजीवन तप करते रहना।।


 


नियमित करो परिश्रम प्रियवर।


श्रम को गले लगाते रहना।।


 


तन को मन को सदा तपाओ।


हर्षित होकर तपते रहना।।


 


तन -मन का प्रयोग अधिकाधिक।


स्व में दिव्य विचरते रहना। ।


 


करो तपस्या सदा अकेला।


अन्तेवासी बनकर रहना।।


 


उठते रहना व्योम क्षितिज तक।


आत्मतोष तक बढ़ते रहना।।


 


आत्मतोष ही तप का फल है।


आत्मकेन्द्र पर चलते रहना।।


 


अपने में ही खो कर देखो।


परम भाव में स्थिर रहना।।


 


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

हिंदी-भाषा के बिना,कभी न हो कल्याण।


आदर इसका सब करें,यही देश का प्राण।।


      हिंदी-भाषा विश्व की,भाषा एक प्रधान।


      हिंदी में अभिव्यक्ति से,मिलती है पहचान।।


अपनी बोली बोल कर,तन-मन प्रमुदित होय।


मीरा-तुलसी-सूर ने,दिया बीज है बोय ।।


      करें प्रतिज्ञा आज हम,भारत-भाषा हेतु।


       करें पार हम ज्ञान-सर,चढ़ निज भाषा-सेतु।।


हो विकसित समुचित यहाँ, हिंदी-भाषा-ज्ञान।


होवे लेखन-कथन में,हिंदी का गुण-गान ।।


        चाहे हो इंग्लैंड भी,वा अमरीका देश।


         हिंदी का डंका बजे,चहुँ-दिशि,देश-विदेश।।


भारतेंदु कविश्रेष्ठ ने,दिया चेतना खोल।


हमें कराया स्मरण,निज भाषा अनमोल।।


        उनके प्रति इस देश के,हैं कृतज्ञ सब लोग।


         निज भाषा का दे दिया,सुंदर-अनुपम भोग।।


हिंदी भाषा का हमें,करना है उत्थान।


इससे बढ़कर है नहीं,कोई कर्म महान।।


        गौरव-गरिमा-शान है,यह अपना सम्मान।


        रहें अमर अब विश्व में, हिंदी-हिंदुस्तान।।


                         © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919447372


संजय जैन

हिंदी ही आधार है


 


जब सीखा था बोलना, 


और बोला था माँ।


जो लिखा जाता है, 


हिंदी में ही सदा।।


 


गुरु ईश्वर की प्रार्थना, 


और भक्ति के गीत।


सबके सब गाये जाते, 


हिंदी में ही सदा।


इसलिए तो हिंदी, 


बन गई राष्ट्र भाषा।। 


 


प्रेम प्रीत के छंद, 


और खुशी के गीत।


गाये जाते हिंदी में, 


प्रेमिकाओ के लिए।


रस बरसाते युगल गीत, 


सभी को बहुत भाते।


और ताजा कर देते, 


उन पुरानी यादें।।


 


याद करो मीरा सूर, 


और करो रसखान को।


हिंदी के गीतों से बना, 


गये इतिहास को।


युगों से गाते आ रहे 


उनके हिंदी गीत।


गाने और सुनने से, 


मंत्र मुध हो जाते।।


 


मेरा भी आधार है, 


मातृ भाषा हिंदी ।


जिसके कारण मुझे, 


मिली अब तक ख्याति।


इसलिए माँ भारती को, 


सदा नमन करता हूँ।


और संजय अपने गीतों को


हिंदी में ही लिखता है।


हिंदी में ही लिखता है।।


 


मातृभाषा हिंदी को,


शत शत वंदन में करता हूँ।


और अपना जीवन हिंदी


को समर्पित करता हूँ।


हिंदी को समर्पण करता हूँ।।


 


हिंदी दिवस के पूर्व दिवस पर मेरी ये कविता आप सभी के लिए समर्पित है।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


13/09/2020


शिवांगी मिश्रा

क्यूँ नहीं पनप पा रही हिंदी ?


 


हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और साथ ही साथ हिंदी ही हमारी मातृभाषा भी है ।आज हिंदी का विस्तार हिंदी के प्रयोग की दर घटती ही जा रही है ।यह केवल एक समस्या नहीं वरन विचारणीय तथ्य भी है ।हम अपनी भाषा को त्याग कर विदेशी भाषा को अपना रहे हैं ।जिससे हमारी भाषा का स्तर घटता जा रहा है । हिंदी कहीं न कहीं अपना अस्तित्व खोती जा रही है ।हिंदी का खोना हिंदी का प्रचलन खत्म होना यह सब हमारी संस्कृति पर प्रभाव डाल कर हमारी नई पीढ़ी को वंचित कर रहा है ।हिंदी का हिन्द में प्रचलन ना होना,हिंदी का प्रयोग कम होना हिंदी का विस्तार ना होने का मुख्य कारण यह भी है कि हमनें कहीं ना कहीं धीरे-धीरे विदेशी भाषाओं का प्रचलन उसका प्रयोग प्रारम्भ कर दिया है जो हमारी हिंदी व हम पर हावी है । विदेशी रहन सहन को उसकी बोलचाल को अपनाकर स्वयं को उसमें ढालने का प्रयास किया है ।हम हिन्द के वासी आर्यपुत्र आज अंग्रेजी के रंग में रंगने को इतने आतुर हैं कि हम यह देख भी नहीं पा रहे कि कहीं ना कहीं विदेशी चोंचलों में पड़कर फिरंगी वेशभूषा ,बोलचाल भाषा को अपनाने से हम अपनी हिंदी,अपनी संस्कृति अपनी पहचान को खोते जा रहे हैं ।हमने ही परभाषी बोलचाल को अपने जीवन अपने क्रियाकलापों व रोजमर्रा के बोलचाल में इतनी अहमियत दे दी है कि आज हिन्द देश में अंग्रेजी का बोलबाला है और हिंदी का अस्तित्व खोता जा रहा है ।कारण यह है कि हमने अपनी पीढ़ी को हिंदी में शिक्षा ना देकर अंग्रेजी की तरफ आकर्षित कर अंग्रेजी सीखने को प्रेरित किया ।अपनी मातृभाषा को छोड़ कर अंग्रेजी की तरफ भागे । आज हम अपनी ही मातृभाषा को बोलने व अपनाने में झिझक,शर्म महसूस करते हैं वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी के प्रयोग से गर्व की अनुभूति करते हैं ।अंग्रेजी बोलने में हम स्वयं को शिक्षित ,योग्य,गुणवान व समाज मे बड़े लोगों में उठने बैठने लायक समझकर उनसे अपनी तुलना करने लगते हैं ।यही कारण है कि हमारी हिंदी का अस्तित्व खोता जा रहा है,शुध्द हिंदी का ज्ञान नहीं किसीको,हिंदी पनप नहीं पा रही है उसका विस्तार नहीं हो रहा और हम हिन्द वासी फिरंगी होते जा रहे हैं ।


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


सुषमा दिक्षित शुक्ला

सच्ची श्राद्ध


 


जीते जी सेवा किया नहीं,


 बस मरने पर श्राद्ध मनाते हैं।


 


 ऐसी संताने हैं कुल कलंक ,


मृत पुरखों को बहलाते हैं ।


 


 यदि देनी सच्ची श्रद्धांजलि ,


है प्यारे पुरखों को अपने ।


 


 तब धर्म करो सत्कर्म करो ,


अरु पूर्ण करो उनके सपने ।


 


यह वन्दन है अभिनंदन है ,


यह ही पुरखों का है तर्पण ।


 


उनकी स्मृतियों को हृदय लगा,


 श्रद्धा के सुमन करो अर्पण ।


 


तब पूर्वज भी होंगे प्रसन्न ,


पा सच्चे प्रेम समर्पण को ।


 


नित देंगे ढेरों शुभाशीष,


फिर देख प्रेम शुचि अर्पण को ।


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


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